रश्मि एक सेक्स मशीन compleet

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raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 14 Oct 2014 08:01


मैं उठ कर अपने फटे पेटिकोट को उठाया और उसे पहन कर उस पर सारी को अच्छि तरह से लपेट लिया. ब्लाउस और ब्रा वापस पहनने लायक नही बचे थे. मैने सारी को ही बदन पर इस तरह लपेटा कि मेरे कमर के उपर का हिस्सा सारी की ओट मे छिप जाए. मैने वहाँ लगे एक टूटे काँच पर एक बार अपने बदन को देखा. फिर लुकति च्छुपती वहाँ से निकली. पीछे से थानेदार की आवाज़ आइ,



“ साली बड़ी मस्त चीज़ है. दोबारा जल्दी ही बुलाना.”



मैं लोगों की नज़रों से बचते बचाते अपने घर पहुँची. पास से गुज़रता हर व्यक्ति मानो मुझे ही घूर रहा था. मेरी पीठ होते ही मानो सारी दुनिया मुझ पर हंस रही थी.



रतन मुझे देखते ही तरह तरह के सवाल करने लगा. मगर जब उसने मेरी दास्तान सुनी तो उसकी ज़ुबान को मानो ताला लग गया. हम दोनो घंटों तक अपनी बेबसी पर रोते रहे और दूसरों को कोसते रहे. हमे समझ मे नही आ रहा था की अब हम न्याय की किससे गुहार लगाए.



मोहल्ले वाले तरह तरह की बातें बनाना लगे. दमले मुझे देखते ही गंदी गंदी गलियाँ देने लगता. खुल्ले आम अश्लील हरकतें करने लगता. मैं कभी सामना होते ही कतरा कर निकालने की कोशिश करती. मगर हर वक़्त घर के अंदर तो बंद हो कर नही रहा जा सकता. मुझे लगता था वो पूरी टोली मुझे परेशान करने के लिए हर वक़्त मेरे घर के इर्द गिर्द ही चक्कर लगता रहता था.



रतन हर वक़्त बुझा बुझा सा रहता था. जब भी बाहर जाता मैं टेन्षन मे रहती थी. मेरी सुंदरता ही हमारे परिवार के बर्बाद होने का कारण बन गया था. जिंदगी मे एक छ्होटी सी खुशी मिली थी मुझे इतने भले पति के रूप मे इतने अच्छे सास ससुर के रूप मे मगर…सब कुछ पल भर मे ख़त्म हो गया.



उसकी दास्तान सुनते सुनते कब मेरी आँखें भर आइ पता ही नही चला.



“ बहुत बुरी है ये दुनिया रश्मि. यहाँ सीधे साधे आदमी वो भी ग़रीब मे और एक छींटी मे कोई अंतर नही होता है. कोई भी उसे बस चुटकियों मे मसल कर ख़तम कर सकता है.” रजनी ने मेरे बालों मे अपनी उंगलियाँ फेरते हुए कहा.



कुच्छ दिनो मे वापस जिंदगी नॉर्मल होने लगी तो एक दिन फिर ठहरे पानी मे फेंके गये किसी पत्थर की तरह सुबह किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी.



रतन ने दरवाजा खोल कर देखा कि कोई पोलीस वाला खड़ा है.



“ साहब ने राज़निदेवी को बुलाया है.” उसने एक कागज रतन को दिखाते हुए कहा.



“अब क्या काम है? उसका बयान तो उन्हों ने पहले ही ले लिया था.”



“ थाने मे एसपी साहब आए हैं. थानेदार साहब उनके सामने रजनी देवी का बयान लेना चाहते हैं.”

raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 14 Oct 2014 08:02



“ नही देना कोई बयान और गवाही. हम अपना केस वापस ले रहे हैं. हमे किसी से कोई शिकायत नही है. हमे अकेला छ्चोड़ दो. मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ. हमे नही चाहिए किसी से कोई न्याय.” रतन उसके सामने हाथ जोड़ने लगा ये देख कर मैं भी बाहर आ गयी.



“ भाई साहब हम को माफ़ कर दो. हम ग़रीब हैं और बेसहारा भी हो गये हैं. हमे अपनी दुनिया मे रह लेने दो. हम बहुत दुखी हैं मगर हमे किसी से कोई शिकायत नही है. आप प्लीएज वापस चले जाएँ.” कहते हुए रतन ने उसके पैर पकड़ लिए. मैं रोने लगी और उससे अपनी इज़्ज़त की भीख माँगने लगी. मगर वो बिल्कुल भी नही पासीजा.



“ सुन बे जैसा कहा जाता है चुप चाप करले नहीं तो हमारा साहब गुस्से से पागल हो जाएगा. लगता है तूने अभी तक उनके बारे मे ज़्यादा नही सुना है. वो अगर चाहे तो तेरी बीवी को यहाँ से थाने तक नंगी घसीटते हुए ले जाए. गनीमत इसीमे है की रजनी देवी आप चुपचाप मेरे साथ चली चलें. वरना………जैसी आप लोगों की मर्ज़ी.” वो कुच्छ देर तक चुप रह कर महॉल बनाता रहा फिर धीरे से कहा, “ एक राज की बात बताउ?” वो धीरे से आगे बोला, “ साहब ने किसी भी कीमत पर तेरी बीवी को उठा लाने को कहा है. तू अगर ज़्यादा नाटक करे तो मुझे तेरा एनकाउंटर कर देने की भी छ्छूट है.”



मैं चुप रही. कुच्छ भी नही था आगे कहने के लिए. मैने बेबसी से अपना सिर झुकाते हुए अपनी रजा मंदी दी.



“ चलो मैं चलने को तैयार हूँ.” रतन बेबसी से मुझे उस संतरी के साथ जाता हुया देखता रहा. मैं चुप चाप उसके पीछे पीच्चे सिर झुकाए चलती रही. ऐसा लग रहा था पूरी बस्ती हंस रही हो और मज़ाक उड़ा रही हो. मैं अपनी आँखों से बहते हुए पानी को रोक नही पा रही थी.



मैं उसके पीछे पीछे थाने मे जा पहुँची.



“ जा साहब के कमरे मे.” उसने कहा. मैने बिना कुच्छ कहे उस थानेदार के कॅबिन मे प्रवेश किया. वहाँ एक 50-55 की उम्र का छर्हरे बदन का आदमी बैठा हुया था.



“ ह्म्‍म्म….” उसने मुझे एक नज़र देख कर एक हुंकार भरी,” माल तो बहुत अच्च्छा ढूँढा रे. इस साल तेरा प्रमोशन पक्का.”



“ साहब. मैं जानता था आपको पसंद आएगी. ये कोई रांड़ नही है. किसी की नयी नवेली जोरू है. फँस गयी हमारे चंगुल मे.”



“ और तू इसे अपनी रांड़ समझ कर इसकी बोटी बोटी एक कर रहा है. हाहाहा….साला….तू बहुत हरामी है…..”



थानेदार ने मुझे अपनी सारी का आँचल सीने से हटाने का इशारा किया. मैने बिना कुच्छ कहे वैसा ही किया. मैं जानती थी इन लोगों से मुझे बचाने वाला कोई नही है. ये जो चाहते हैं करके ही रहेंगे. खुशी ख़ुसी नही की तो ज़ोर ज़बरदस्ती करेंगे. जिससे नुकसान मेरा ही होगा. मेरी हालत तो उस तरबूज की तरह थी की चाकू उस पर गिरे ये वो चाकू पे, हर हालत मे नुकसान तरबूज का ही होता है.



मैं अपनी सारी को सीने से हटा कर अपने बड़े बड़े उरोज उसकी तरफ तान कर खड़ी रही. दोस्तों कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा क्रमशः............


raj..
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Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 22 Oct 2014 08:02

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -26
गतान्क से आगे...


“वाआह….वाह…क्या रसीले आम हैं. मेरा तो बुरा हाल हो रहा है. अबे ये कोई नाज़ नखरे तो नही करेगी ना?”



“अरे साहब….ये कुच्छ नही करेगी…साली थोड़ी सी भी चूं चापद की तो पूरे मोहल्ले मे नंगी करके घूमावँगा इसे और सारे मोहल्ले के सामने इसका और इसके मरद का एनकाउंटर कर दूँगा.” थानेदार भद्दी हँसी हंसता हुआ आगे बोला, “ आप इसे जितनी मर्ज़ी जैसी मर्ज़ी रागडो. साली मर भी जाए तो कोई बात नही है.”



फिर थानेदार मेरे करीब आकर दबी ज़ुबान मे मुझे धमकी दी. “ अगर तूने साहब के सामने ज़रा भी नाटक किया तो तेरी बोटी बोटी अलग करके कुत्तों के आगे डाल दूँगा. समझी? साहब को आज मज़ा आ जाए फिर तुझे आज़ाद कर दूँगा.”



वो आदमी एक झटके से उठ खड़ा हुया और लगभग मुझे खींचता हुया बगल के उसी कमरे मे ले गया जहाँ मैं पहले भी नूच चुकी थी. मैने कोई विरोध किया. उसने जैसा चाहा मुझे नोचा. साला कुत्ता इतना विकृत मानसिकता वाला था की उसने संभोग करते वक़्त अपनी सिगरेट से मेरे स्तनो को मेरी अन्द्रूनि जांघों को गोद डाला. मैं चीख रही थी चिल्ला रही थी मगर कोई सुनने वाला नही था. जब मैं ज़्यादा ही चीखने लगी तो थानेदार ने आकर मेरे हाथ पैरों को फैला कर बिस्तर के सिरहाने के साथ बाँध दिया.



मेरे जिस्म को एक एक कर सब ने नोचा. कब सुबह हो गयी पता ही नही चला. सुबह मुझे थाने से बाहर छ्चोड़ दिया गया. मैं गिरती पड़ती अपने घर पहुँची तो देखा घर का दरवाजा खुला हुआ है और रतन का कोई नामो निशान नही है. वो इस परेशानी को बर्दस्त नही कर सका और घर छ्चोड़ कर पता नही कहाँ चला गया. दो तीन दिन तक मैं उसका इंतेज़ार करती रही. जब लोगों को इस बात का पता चला तो सब मुझ से किसी धंधे वाली की तरह छेड़ छाड़ करने लगे. दमले से जब अपनी असमात बचना मुश्किल हो गया तो एक रात सुनसान मे मे एक पोटली मे दो जोड़ी कपड़े रख कर घर से निकल पड़ी.



मैं वहाँ से चलती हुई स्टेशन पहुँची वहाँ खड़ी एक ट्रेन पर चढ़ गयी. सोचा था कि चलती ट्रेन से कहीं कूद जाउन्गी मगर जिगर मे इतनी हिम्मत ना जुटा पाई. आत्महत्या करना भी हर किसी के बस की बात नही होती.



मैं एक सीट पर अपने घुटनो पर सिर रखे पता नही किस सोच मे डूबी हुई थी. तभी चार गेरुआ वस्त्र मे साधु आकर आमने सामने बैठ गये. मुझे पता ही नही था कि वो एक रिज़र्व्ड कॉमपार्टमेंट था. ट्रेन चलने के कुकछ देर बाद टीटी आ पहुँचा. मुझसे टिकेट माँगा तो मैं घबरा कर इधर उधर देखने लगी. तभी सामने बैठ उन साधुओं के गुरुजी ने अपने बटुए से पैसे निकाल कर टीटी को टिकेट बनाने को कहा.



“कहाँ जाना है.” टीटी ने पूछा. मैं चुप रही. मुझे पता ही नही था कि मुझे जाना कहाँ है.



“देल्ही तक का बना दो.” स्वामी जी ने कहा. मैने उनका चेहरा देखा. उनके चेहरे मे इतना तेज था कि मैं उनसे नज़रें नही मिला पाई.

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