अंदर आने के बाद मेने झट से अप'ने पूरे कपड़े निकाल दिए और में नंगा हो गया. मेने देखा के ऊर्मि दीदी ने अपना गीला लिबास शावर की रोड पर सूख'ने के लिए डाला था. वो देख'कर मेने झट से सोचा के जैसे उस'का लिबास गीला हो गया है वैसे उसकी ब्रेसीयर और पैंटी भी गीली हो गयी थी तो फिर उस'ने वो कहाँ पर सूख'ने के लिए डाली होंगी? क्योंकी मुझे उसके वो वस्त्र दिखाई नही दे रहे थे. मेने उस'का लिबास उठाकर देखा तो उसके नीचे मुझे वे नज़र आए.
फिर क्या!! मेने ऊर्मि दीदी की वो गीली ब्रेसीयर और पैंटी निकाली. उनको सिर्फ़ हाथ में लेते ही मेरा लंड स्प्रिंग की तरह उठ गया. पैंटी की वो जगहा जहाँ पर मेरी बहेन की चूत चिप'की होती है, उस जगह को मेने प्यार से सूंघ लिया. उसकी चूत की गंध से नशीला होकर अप'ने आप मेरा हाथ मेरे कड़े लंड पर गया और में मूठ मार'ने लगा. फिर मेने उसकी ब्रेसीयर ले ली और उस'का कप में चूस'ने लगा. नीचे उसकी पैंटी मेने मेरे लंड'पर लपेट ली और मेरा लंड ज़ोर ज़ोर्से हिला'ने लगा. फिर में आँखे बंद कर के याद कर'ने लगा के ऊर्मि दीदी के साथ होटेल के रूम से बाहर निकल'ने के बाद से वापस आने तक मेने कैसे कैसे उस'का स्पर्श सुख और नयन सुख लिया था. उन ख़याल से दो मिनिट में ही मेरे लंड से वीर्य की पिच'करी छुट गयी और ऊर्मि दीदी की पैंटी उस'से भर गयी.
मेरे विर्यपतन के बाद में थोड़ा शांत हो गया. फिर मेने ऊर्मि दीदी की पैंटी पानी से साफ की और फिर वो ब्रेसीयर और पैंटी मेने ड्रेस के नीचे पह'ले जैसी वापस रख दी. मेरे गीले कपड़े भी मेने वहाँ सूख'ने के लिए डाल दिए. झट से में फ्रेश हो गया और दूसरा लिबास पहन'कर बाहर आया. मेने देखा के ऊर्मि दीदी आईने में देख'कर मेक अप कर रही थी. उस'ने आसमानी रंग की साऱी पहन ली थी.
"अरे, दीदी! तुम'ने वापस साऱी पहन ली?"
"फिर क्या करूँ, सागर? मेरे पास एक ही लिबास था जो गीला हो गया. तो मुझे वापस साऱी पहेन'नी पड़ी,"
आईने में से मेरी तरफ देख'कर ऊर्मि दीदी ने कहा, "लेकिन तुम फ़िक्र मत करो, सागर. भले मेने साऱी पहन ली है फिर भी में तुम्हारी दोस्त ही रहूंगी."
"ओहा, दीदी! मुझे इस में कोई ऐतराज नही है. साऱी तो तुम्हे अच्च्ची ही दिख'ती है. उलटा में ये कहूँगा के ड्रेस से ज़्यादा तुम साऱी में अच्छी दिख'ती हो."
"वो तो में लगूंगी ही, सागर. अब क्या मेरी उम्र लिबास पहन'ने जैसी रही क्या?"
"ऐसा क्यों कह रही हो, दीदी? तुम्हें लिबास भी अच्छा दिखता है. सच कहूँ तो तुम'हे बीच बीच में लिबास पहनना चाहिए."
"अब वो संभव नही है, सागर! क्योंकी तुम्हारे जीजू को मेरा लिबास पहेनना पसंद नही है. काफ़ी महीने हो गये मेने लिबास पहना ही नही था. लेकिन ठीक है! मुझे उस'से कोई ऐतराज नही है. मुझे भी साऱी पहनना अच्च्छा लगता है."
'और मुझे भी!'.
Bahan ki ichha -बहन की इच्छा
Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा
ऊर्मि दीदी को पिछे से निहार'ते मेने मन ही मन में कहा. में उसके पिछे ऐसे खड़ा था जिस'से उसे आईने से नज़र नही आ रहा था के में कहाँ देख रहा हूँ. हमेशा की तरह उस'ने साऱी अच्छी तरह लपेट के पह'नी हुई थी जिस'से उसकी फिगर उभर के दिख रही थी.
मेक अप कर'ने के लिए वो थोड़ा झुक गयी थी और उसके भरे हुए चुत्तऱ उभर आए थे. जैसे आदत से मजबूर वैसे मेने उसके चुत्तऱ को गौर से देखा और मुझे उसके चूतड़'पर अंदर पह'नी हुई पैंटी की लाइन नज़र आई और में खूस हुआ. लड़कियों और औरतों के चुत्तऱ को निहार कर उनके अंदर पह'नी हुई पैंटी की लाइन ढूँढना मेरा पसंदीदा खेल था और उस'से मुझे एक अलग ही खुशी मिल'ती थी. और वो चुत्तऱ अगर मेरे बहन के हो तो फिर में कुच्छ ज़्यादा ही खूश होता हूँ. भूके भेड़ीये की तरह में ऊर्मि दीदी के चुत्तऱ को पिछे से देख रहा था.
हम लोग तैयार हो गये और फिर एक रेस्टोरेंट में खाना खाने गये. खाने के बाद बाकी जो हरे भरे दर्श'नीय स्थान रह गये थे उन्हे देख'ना हम'ने चालू किया. ज़्यादा तर दर्श'नीय स्थान शांत जगह के थे. हम दोनो भाई-बहेन वहाँ प्रेमी जोड़ी की तरह घूमे. फिरते सम'य कभी कभी ऊर्मि दीदी मासूमीयत से मेरा हाथ पकड़ लेती थी. किसी जगह चढ़'ने, उतर'ने के लिए उसे में हाथ देकर मदद करता था और बाद में वो मेरा हाथ वैसे ही पकड़ के रख'ती थी. कोई साँस रोक'नेवाला, बहुत ही प्यारा सीन देख'ते सम'य वो मुझे ज़ोर से चिप'का के खड़ी रह'ती थी. कभी वो मेरे पिछे खड़ी रह'ती थी तो कभी में उसके पिछे उसे चिपक के खड़ा रहता था.
ऊर्मि दीदी जब मुझ से चिपक के खड़ी रह'ती थी तब उसकी गदराई छा'ती मेरे बदन पर दब'ती थी. किसी दर्श'नीय स्थान पर अगर रेलंग है तो में उस पर हाथ रख'कर खड़ा रहता और ऊर्मि दीदी आकर मुझसे चिपक के खड़ी रह'ती थी. उस'से कभी कभी मेरा हाथ उसकी टाँगो के बीच में दब जाता था. में ठीक से बोल नही सकता लेकिन शायद मेरे हाथ को उसकी चूत या चूत के उप्पर की जगह का स्पर्श महसूस होता था. जब में उसके पिछे उस'से सट के खड़ा रहता था तब उसके भरे हुए चुत्तऱ पर मेरा लंड दब जाता था और उस'से मेरा लंड थोड़ा सा कड़क हो जाता था. उसे वो महसूस होता होगा लेकिन कभी वो बाजू में हटी नही. उलटा जब मेरा लंड ज़्यादा ही कड़क होता था तब में खुद बाजू हटता था ये सोच'कर के उसे वो ज़्यादा महसूस ना हो.
क्रमशः……………………………
मेक अप कर'ने के लिए वो थोड़ा झुक गयी थी और उसके भरे हुए चुत्तऱ उभर आए थे. जैसे आदत से मजबूर वैसे मेने उसके चुत्तऱ को गौर से देखा और मुझे उसके चूतड़'पर अंदर पह'नी हुई पैंटी की लाइन नज़र आई और में खूस हुआ. लड़कियों और औरतों के चुत्तऱ को निहार कर उनके अंदर पह'नी हुई पैंटी की लाइन ढूँढना मेरा पसंदीदा खेल था और उस'से मुझे एक अलग ही खुशी मिल'ती थी. और वो चुत्तऱ अगर मेरे बहन के हो तो फिर में कुच्छ ज़्यादा ही खूश होता हूँ. भूके भेड़ीये की तरह में ऊर्मि दीदी के चुत्तऱ को पिछे से देख रहा था.
हम लोग तैयार हो गये और फिर एक रेस्टोरेंट में खाना खाने गये. खाने के बाद बाकी जो हरे भरे दर्श'नीय स्थान रह गये थे उन्हे देख'ना हम'ने चालू किया. ज़्यादा तर दर्श'नीय स्थान शांत जगह के थे. हम दोनो भाई-बहेन वहाँ प्रेमी जोड़ी की तरह घूमे. फिरते सम'य कभी कभी ऊर्मि दीदी मासूमीयत से मेरा हाथ पकड़ लेती थी. किसी जगह चढ़'ने, उतर'ने के लिए उसे में हाथ देकर मदद करता था और बाद में वो मेरा हाथ वैसे ही पकड़ के रख'ती थी. कोई साँस रोक'नेवाला, बहुत ही प्यारा सीन देख'ते सम'य वो मुझे ज़ोर से चिप'का के खड़ी रह'ती थी. कभी वो मेरे पिछे खड़ी रह'ती थी तो कभी में उसके पिछे उसे चिपक के खड़ा रहता था.
ऊर्मि दीदी जब मुझ से चिपक के खड़ी रह'ती थी तब उसकी गदराई छा'ती मेरे बदन पर दब'ती थी. किसी दर्श'नीय स्थान पर अगर रेलंग है तो में उस पर हाथ रख'कर खड़ा रहता और ऊर्मि दीदी आकर मुझसे चिपक के खड़ी रह'ती थी. उस'से कभी कभी मेरा हाथ उसकी टाँगो के बीच में दब जाता था. में ठीक से बोल नही सकता लेकिन शायद मेरे हाथ को उसकी चूत या चूत के उप्पर की जगह का स्पर्श महसूस होता था. जब में उसके पिछे उस'से सट के खड़ा रहता था तब उसके भरे हुए चुत्तऱ पर मेरा लंड दब जाता था और उस'से मेरा लंड थोड़ा सा कड़क हो जाता था. उसे वो महसूस होता होगा लेकिन कभी वो बाजू में हटी नही. उलटा जब मेरा लंड ज़्यादा ही कड़क होता था तब में खुद बाजू हटता था ये सोच'कर के उसे वो ज़्यादा महसूस ना हो.
क्रमशः……………………………
Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा
Bahan ki ichchhaa—4
gataank se aage…………………………………..
"Men majak nahee kar raha hoon, didee!" Mene use samajhate huye kaha, "ulaTa tum agar is saaDee ke bajay Dres pahanogee to koi bolega bhee nahee ke tumhaaree shadee ho gayee hai. Ham dono premee joDee lagenge agar ham haath men haath lekar ghumenge to."
"Tumhaaree kalpana to achchhee hai, Sagar. Lekin isaka kya??" Aise kahate Urmi Didi ne apana mangalasootr mujhe dikhate kaha, "ise dekh'ne ke baad to koi bhee samajha lega ke meree shadee ho gayee hai."
"Ham! Tum sahee kah rahee ho, didee! lekin us'se kya pharak paData hai? Ham dono shadeeshuda hai aise hee sabako lagega na. Ab ham dono shadeeshuda joDee lage ke premee joDee lage ye tum tay kar lo, didee!"
"Achchha! Achchha! Sagar. Chal! ab ham taiyaar hote hai baahar ja'ne ke liye." Aisa kah'kar Urmi Didi uTh gayee aur batharoom men gayee. Phresh hokar vo baahar ayee aur phir men batharoom men gaya. Batharoom men aane ke baad sabase pah'le agar mene kya kiya to apana lunD baahar nikal'kar saTasaT mooTh mar lee aur kamoD ke andar mera paanee giraaya.
Subaha jab mene Urmi Didi ko saaDee men dekha tab men kaphee uttejeet ho gaya tha. Tab se mujhe mooTh mar'ne kee ichchha ho rahee thee lekin saphar kee vajaha se men mooTh nahee mar saka. Baad men Urmi Didi ke saath jaise jaise mera samay kaT raha tha vaise vaise men jyada hee uttejeet hota gaya. Aur thoDee der pah'le meree uske saath jo 'pyaaree' baat'cheet hui thee us'ne to meree kam'bhavana aur bhee bhaDaka dee thee. is'liye batharoom men aane ke baad mooTh mar'ne ka mauka mene chhoDa nahee. Phir phresh hokar men baahar aaya.
Baahar aane ke baad mene dekha ke Urmi Didi ne saaDee badal dee thee aur halka pink colour ka panjabee Dress pahan liya tha. Vo Dres dekh'kar men khil uTha. Meree bahen ka ye Dress mujhe kaphee pasand tha kyonkee usamen se us'ka kaphee angapradarshan hota tha. Men uske Dress se use nihaar raha hoon ye dekh'kar Urmi Didi ne kaha,
"Aise kya dekh rahe ho, Sagar. Hairan ho gaye na ye Dress dekh'kar?" Urmi Didi ne baDe laaD se kaha, "ye Dress meree bag men tha jo men leke ja rahee thee ap'ne mausee kee laR'kee ko dene ke liye. Kyonkee mujhe ye Dres thoDa Tight hota hai aur vaise bhee aj kal men Dres pahanatee hee nahee hoon. Vo to abhee thoDee der pah'le tum'ne kaha tha na ke Dres pahan'ne se men kuvaree lagungee is'liye mene socha chalo pahan lete hai aaj ke din ye Dres!"
"Ye to bahut achchha kiya tum'ne, didee!" Mene khoosh hokar kaha. Phir Urmi Didi Dreseeng Tebal ke aaine men dekh'kar make up kar'ne lagee. Mene hamare bag lock kiye aur varD rob ke andar rakh diye. Phir men chair'par baiTh'kar Urmi Didi ke taiyaar hone kee raah dekh'ne laga. Jaaheer hai ke men use kamook najar se chupake se nihaar raha tha. Vo Dress use achchha khasa Tight ho raha tha aur us vajaha se uske mansal ang ke uThaan aur gaharaiyan us'men se saaph saaph najar aa rahee thee.