कोमलप्रीत कौर के गरम गरम किस्से
भाग ५. चार फौजी और चूत का मैदान
लेखिका : कोमलप्रीत कौर
भाग-४ (बीच रात की बात) से आगे....
सर्दियों के दिन थे, मैं अपने मायके गई हुई थी, मेरे भैया भाभी के साथ ससुराल गये थे और घर में मैं, मम्मी और पापा ही थे। उस दिन ठण्ड बहुत थी, मेरा दिल कर रहा था कि आज कोई मेरी गरमागरम चुदाई कर दे। कईं बार चूत में केला और बीयर की बोतल डाल कर मुठ मार चुकी थी लेकिन चूत में चैन नहीं पड़ रहा था। मैं दिल ही दिल में सोच रही थी कि कोई आये और मेरी चुदाई करे.. कि अचानक दरवाजे की घण्टी बजी।
मैंने दरवाजा खोला तो सामने चार आदमी खड़े थे। एकदम तंदरुस्त और चौड़ी छातियाँ!
फिर पीछे से पापा की आवाज आई- “ओये मेरे जिगरी यारो, आज कैसे रास्ता भूल गये?”
वो भी हंसते हुए अन्दर आ गये और पापा को मिलने लगे...
पापा ने बताया कि “हम सब आर्मी में इकट्ठे ही थे.. एक राठौड़ अंकल, दूसरे शर्मा अंकल, तीसरे सिंह अंकल और चौथे राणा अंकल ! सभी एक्स आर्मी मैन हैं।”
वो सभी मुझे मिले और सभी ने मुझे गले से लगाया। गले से क्या लगाया, सबने अपनी छाती से मेरे चूचों को दबाया।
मैं समझ गई कि ये सभी ठरकी हैं। अगर किसी को भी लाइन दूँगी तो झट से मुझे चोद देगा। मैं खुश हो गई कि कहाँ एक लौड़ा मांग रही थी और कहाँ चार-चार लौड़े आ गये। पापा उनके साथ अन्दर बैठे थे और मैं चाय लेकर गई। जैसे ही मैं चाय रखने के लिए झुकी तो साथ ही बैठे राठौड़ अंकल ने मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा- “कोमल बेटी.. तुम बताओ क्या करती हो...?”
मैं चाय रख कर राठौड़ अंकल के पास ही सोफे के हत्थे पर बैठ गई और अपने बारे में बताने लगी। साथ ही राठौड़ अंकल मेरी पीठ पर हाथ चलाते रहे और फिर बातों-बातों में उनका हाथ मेरी कमर से होता हुआ मेरे कूल्हों तक पहुँच गया।
यह बात बाकी फौजियों ने भी नोट कर ली सिवाए मेरे पापा के। फिर मम्मी की आवाज आई तो मैं बाहर चली गई और फिर कुछ खाने के लिए लेकर आ गई। जब मैं झुक कर नाश्ता परोस रही थी तो उन चारों का ध्यान मेरे मम्मों की तरफ ही था और मैं भी उनकी पैंट में हलचल होती देख रही थी।
अब फिर मैं राठौड़ अंकल के पास ही बैठ गई ताकि वो भी मेरे दिल की बात समझ सकें। मगर वो ही क्या उनके सारे दोस्त मेरे दिल की बात समझ गये। वो सारे मेरे गहरे गले में से दिख रहे मेरे कबूतर, मेरी गाण्ड और मेरी मदमस्त जवानी को बेचैन निगाहों से देख रहे थे और राठौड़ अंकल तो मेरी पीठ से हाथ ही नहीं हटा रहे थे।
फिर मैं रसोई में उनके लिए खाना बनाने में मम्मी की मदद करने लगी। बीच में ही मम्मी ने मुझे कहा- “पुत्तर! घर में महमान आये हैं... तू भी खाने के पहले मुँह हाथ धो कर कुछ अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हो जा।”
मम्मी ना भी कहती तो मै तो उन चारों को लट्टू करने के लिये तैयार होने ही वाली थि। मैंने चुन कर झीनी सी सबसे गहरे गले वाली कमीज़ और कसी हुई चुड़ीदार सलवार पहन ली। अपने मम्मों को मैंने चुन्नी से ढक लिया जिससे मम्मी को शक ना हो।
हमने उनके पीने का इंतजाम ऊपर के कमरे में कर दिया। शराब के एक दौर के बाद सबने खाना खा लिया।
फिर मैंने और मम्मी ने भी खाना खाया और फिर मम्मी तो जाकर लेट गई। मम्मी ने तो नींद की गोली खाई और सो गई पर मुझे कहाँ नींद आने वाली थी... घर में चार लौड़े हों और मैं बिना चुदे सो जाऊँ! ऐसा कैसे हो सकता है....?
मैं ऊपर के कमरे में चली गई, वहाँ पर फ़िर शराब का दौर चल रहा था। मुझे देख कर पापा ने तो मुझे जा कर सो जाने के लिए बोला, मगर सिंह अंकल ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने साथ सटा कर बिठा लिया और बोले- “अरे यार, बच्ची को हमारे पास बैठने दे, हम इसके अंकल ही तो हैं!” तो पापा मान गये और फिर सिंह अंकल मुझे बोले – “आओ हमारे साथ भी एक पैग लगाओ!” मैंने मुस्कुरा कर हामी भरी तो उन्होंने खुद शराब का एक बड़ा पैग बना कर मुझे पकड़ा दिया और उसके बद सारे अंकल मुझे फ़ौज की बातें सुनाने लगे।
फिर हम सभी शराब पीते रहे। मैं तो पहला ही पैग बहुत धीरे-धीरे पी रही थी, मगर वो सभी पापा को बड़े-बड़े पैग दे रहे थे और खुद छोटे-छोटे पैग ले रहे थे। मैं समझ गई कि वो चारों पापा को जल्दी लुढ़काने के चक्कर में हैं।
फिर सिंह अंकल ने भी अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया। वो मेरी पीठ पर बिखरे मेरे बालों में हाथ घुमाने लगे। जब मेरी तरफ से कोई विरोध नहीं देखा तो वो मेरी गाण्ड पर भी हाथ घुमाने लगे। पापा का चेहरा हमारी तरफ सीधा नहीं था मगर फिर भी अंकल सावधानी से अपना काम कर रहे थे।
फिर वो मेरी बगल में से हाथ घुसा कर मेरी चूची को टटोलने लगे मगर अपना हाथ मेरी चूची पर नहीं ला सकते थे क्योंकि पापा देख लेते तो सारा काम बिगड़ सकता था। उधर मेरा भी बुरा हाल हो रहा था। मेरा भी मन कर रहा था कि अंकल मेरे चूचों को कस कर दबा दें। फिर मैंने अपनी पीठ पर बिखड़े बाल कंधे के ऊपर से आगे को लटका दिए जिससे मेरा एक मम्मा मेरे बालों से ढक गया।
सिंह अंकल तो मेरे इस कारनामे से खुश हो गये। उन्होंने अपना हाथ मेरी बगल में से आगे निकाला और बालों के नीचे से मेरी चूची को मसल दिया। मेरी आह निकल गई... मगर मेरे होंठों में ही दब गई।
मैं भी टाँग पर टाँग रख कर बैठी थी और बीच-बीच में सिंह अंकल की टाँग पर घुटने के नीचे प्यार से अपने सैंडल से सहला रही थी। हमारी हरकतें पापा के दूसरे दोस्त भी देख रहे थे मगर उनको पता था कि आज रात उनका नंबर भी आएगा। अब मेरा मन दोनों मम्मे एक साथ मसलवाने का कर रहा था। मैं बेचैन हो रही थी मगर पापा तो इतनी शराब पी कर भी नहीं लुढ़क रहे थे। मेरा भी दूसरा पैग चल रहा था और नशा छाने लगा था।
मैं दूसरा पैग खतम करके उठी और बाहर आ गई और साथ ही सिंह अंकल को बाहर आने का इशारा कर दिया और पापा को बोल दिया- “मैं सोने जा रही हूँ।”
मैं बाहर आई और अँधेरे की तरफ खड़ी हो गई। थोड़ी देर में ही सिंह अंकल भी फ़ोन पर बात करने के बहाने बाहर आ गये। मैंने उनको धीमी सी आवाज दी। वो मेरी तरफ आ गये और आते ही मुझको अपनी बाँहों में भर लिया और मेरे होंठ अपने मुँह में लेकर जोर-जोर से चूसने लगे। फिर मेरे बड़े-बड़े चूचे अपने हाथों में लेकर मसल कर रख दिए। मैं भी उनका लौड़ा अपनी चूत से टकराता हुआ महसूस कर रही थी और फिर मैंने भी उनका लौड़ा पैंट के ऊपर से हाथ में पकड़ लिया।
अभी पांच मिनट ही हुए थे कि पापा बाहर आ गये और सिंह अंकल को आवाज दी- “ओये सिंह! यार कहाँ बात कर रहा है इतनी लम्बी.. जल्दी अन्दर आ....!”
तो सिंह अंकल जल्दी से पापा की ओर चले गये। अँधेरा होने की वजह से पापा मुझे नहीं देख सके। मैं वहीं खड़ी रही कि शायद अंकल फिर आयेंगे मगर थोड़ी देर में ही राणा अंकल बाहर आ गये और सीधे अँधेरे की तरफ आ गये जैसे उनको पता हो कि मैं कहाँ खड़ी हूँ। शायद सिंह अंकल ने उनको बता दिया होगा।
आते ही वो भी मुझ पर टूट पड़े और मेरी गाण्ड, चूचियाँ, जांघों को जोर-जोर से मसलने लगे और मेरे होंठों का रसपान करने लगे। वो मेरी कमीज़ को ऊपर उठा कर मेरे दोनों निप्पल को मुँह में डाल कर चूसने लगे। मैं भी उनके सर के बालों को सहलाने लगी।
तभी शर्मा अंकल की आवाज आई- “अरे राणा तू चल अब अन्दर, मेरी बारी आ गई!” अचानक आई आवाज से हम लोग डर गये। हमें पता ही नहीं चला था कि कोई आ रहा है।
फिर राणा अंकल चले गये और शर्मा अंकल मेरे होंठ चूसने लगे। मेरे मम्मे, गाण्ड, चूत और मेरे सारे बदन को मसलते हुए वो भी मुझे पूरा मजा देने लगे। शर्मा अंकल ने पजामा पहना था। मैंने पजामे में हाथ डाल कर उनके लण्ड को पकड़ लिया। खूब कड़क और लम्बा लण्ड हाथ में आते ही मैंने उसको बाहर निकाल लिया और नीचे बैठ कर मुँह में ले लिया।
शर्मा अंकल भी मेरे बालों को पकड़ कर मेरा सर अपने लण्ड पर दबाने लगे। मैं उनका लण्ड अपने होंठों और जीभ से खूब चूस रही थी। वो भी मेरे मुँह में अपने लण्ड के धक्के लगा रहे थे। फिर अंकल ने अपना पूरा लावा मेरे मुँह में छोड़ दिया और मेरा सर कस के अपने लण्ड पर दबा दिया। मैंने भी उनका सारा माल पी लिया। उनका लण्ड ढीला हो गया तो उन्होंने अपना लण्ड मेरे मुँह से निकाल लिया और फिर मेरे होंठों को चूसने लगे और फिर बोले- “मैं राठौड़ को भेजता हूँ...!” और अन्दर चले गये।
फिर राठौड़ अंकल आ गये। वो भी आते ही मुझे बेतहाशा चूमने लगे। मगर मैंने कहा- “अंकल ऐसा कब तक करोगे?”
वो रुक गये और बोले- “क्या मतलब?”
मैंने कहा- “अंकल, मैं सारी रात यहाँ पर खड़ी रहूँगी क्या? इससे अच्छा है कि मैं चूत में केला डाल कर सो जाती हूँ।”
तो वो बोले- “अरे क्या करें, तेरा बाप लुढ़क ही नहीं रहा! हम तो कब से तेरी चूत में लौड़ा घुसाने के लिए हाथ में पकड़ कर बैठे हैं!”
मैंने कहा – “तो कोई बात नहीं... मैं जाकर सोती हूँ! केले से ही काम चला लुँगी!” मैंने आगे बढ़ते हुए कहा। मैं हल्के नशे में थी और चूत की बेचैनी अब सहन नहीं हो रही थी।
अंकल ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले- “बस तू पांच मिनट रुक... मैं देखता हूँ वो कैसे नहीं लुढ़कता!” और अन्दर चले गये।
फिर पांच मिनट में ही राणा और राठौड़ अंकल बाहर आये और बोले- “चल छमक-छल्लो! तुझे उठा कर अन्दर लेकर जाएँ जा खुद चलेगी?”
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि पापा इतनी जल्दी लुढ़क गये। फिर राणा अंकल ने मुझे गोद में उठा लिया और मुझे अन्दर ले गये। पापा सच में कुर्सी पर ही लुढ़के पड़े थे।
मैंने कहा- “पहले पापा को दूसरे कमरे में छोड़ कर आओ।”
तो राणा और राठौड़ अंकल ने पापा को पकड़ा और दूसरे कमरे में ले गये। फिर शर्मा और सिंह अंकल ने मुझे आगे पीछे से अपनी बाँहों में ले लिया और मुझे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। शर्मा अंकल मेरे होंठों को चूसने लगे और सिंह अंकल मेरे ऊपर बैठ गये। तभी राणा और राठौड़ अंकल अन्दर आये और बोले- “अरे सालो, रुक जाओ, सारी रात पड़ी है! इतने बेसबरे क्यों होते हो, पहले थोड़ा मज़ा तो कर लें!”
वो मेरे ऊपर से उठ गये और मैं भी बिस्तर पर बैठ गई। मैंने कहा- “थैंक्स अंकल, आपने मुझे बचा लिया, नहीं तो ये मुझे कोई मजा नहीं लेने देते...!”
फिर राणा अंकल ने पांच पैग बनाये और सब को उठाने के लिए कहा। मैं पहले ही दो बड़े पैग पी चुकी थी और ठीक-ठाक नशे में थी इसलिये मैंने नहीं उठाया तो अंकल बोले- “अरे अब नखरे छोड़ो और पैग उठा लो। चार चार फौजी तुमको चोदेंगे। नहीं तो झेल नहीं पाओगी....!”
नशे में अगर कोई ज्यादा पीने के लिये ज़ोर दे तो काबू नहीं रहता। मैंने भी पैग उठा लिया और पूरा पी लिया। राणा अंकल ने फिर से मुझे पैग बनाने को कहा तो मैंने सिर्फ चार ही पैग बनाए। राणा अंकल बोले- “बस एक ही पैग लेना था?”
तो मैंने कहा- “नहीं!... अभी तो चार पैग और लुँगी!”
मैं राणा अंकल के सामने जाकर नीचे बैठ गई। अंकल की पैंट खोल कर और उतार दी। वो सभी मेरी ओर देख रहे थे। फिर मैंने अंकल का कच्छा नीचे किया और उनका सात-आठ इंच का लौड़ा मेरे सामने तन गया।
फिर मैंने अंकल के हाथ से पैग लिया और उनके लण्ड को पैग में डुबो दिया और फिर लण्ड अपने मुँह में ले लिया। मैं बार-बार ऐसा कर रही थी। राणा अंकल तो मेरी इस हरकत से बुरी तरह आहें भर रहे थे। मैं जब भी उनका लण्ड मुँह में लेती तो वो अपने चूतड़ उठा कर अपना लण्ड मेरे मुँह में धकेलने की कोशिश करते।
मैंने जोर-जोर से उनके लण्ड को हाथों और होठों से सहलाना जारी रखा और फिर उनके लण्ड से वीर्य निकल कर मेरे मुँह पर आ गिरा। मैंने अपने हाथ से सारा माल इक्कठा किया और पैग में डाल दिया और उनका पूरा जाम खुद ही पी लिया। अब मैं काफी उत्तेजना और नशे में थी। इस हालत में अब शराब पीने पर मेरा कोई बस नहीं था।
फिर मैं राठौड़ अंकल के सामने चली गई। वो लुंगी पहन कर बैठे थे। मैंने उनकी लुंगी खींच कर उतार दी और फिर उनका लण्ड भी शराब में डाल-डाल कर चूसने लगी। उनका वीर्य भी मैंने मुँह में ही निगल लिया और उनका पैग भी।
फिर सिंह अंकल, जो कब से अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, उनका लण्ड भी मैंने अपने हाथों में ले लिया और उन्होंने मेरी कमीज को उतार दिया। अब मैं सलवार और ब्रा में थी.. फिर उन्होंने मेरी ब्रा को भी खोल दिया और मेरे दोनों मम्मे आजाद हो गये। उन्होंने अपना लण्ड दोनों मम्मों के बीच में नीचे से घुसा दिया। उनका लण्ड शायद सबसे लम्बा लग रहा था मुझे। उनका लण्ड मेरे मम्मों के बीचों-बीच ऊपर मेरे मुँह के सामने निकल आया था।
मैंने फिर से अपना मुँह खोला और उनका लण्ड अपने मुँह में ले लिया। वो अपने लण्ड और मेरे मम्मों के ऊपर शराब गिरा रहे थे जिसको मैं साथ-साथ ही चाटे जा रही थी। मैं अपने दोनों मम्मों को साथ में जोड़ कर उनके सामने बैठी थी और वो अपनी गाण्ड को ऊपर नीचे करके मेरे मम्मों को ऐसे चोद रहे थे जैसे चूत में लण्ड अन्दर-बाहर करते हों।... और जब उनका लण्ड ऊपर निकल आता तो वो मेरे गुलाब जैसे लाल होंठों घुस जाता और उसके साथ लगी हुई शराब भी मैं चख लेती।
आखिर वो भी जोर-जोर से धक्के मारने लगे। मैं समझ गई कि वो भी झड़ने वाले हैं। मैंने उनके लण्ड को हाथों में लेकर सीधा मुँह में डाल लिया। अब उनका लण्ड मेरे गले तक पहुँच रहा था और फिर उनका भी लावा मेरे मुँह में फ़ूट गया। वीर्य गले में से सीधा नीचे उतर गया।
अब शर्मा अंकल ने मुझे उठा लिया और मुझे बैड पर बिठा कर मेरी सलवार उतार दी। वो मेरी जांघों को मसलने लगे। फिर राठौड़ अंकल ने मेरी पैंटी उतार दी। अब मैं मादरजात नंगी थी... बस पैरों में ऊँची ऐड़ी के सैंडल पहने हुए थे। सिंह अंकल भी मेरे सर की तरफ बैठ गये और मेरे मुँह में शराब डाल कर पिलाने लगे।
मैंने सभी के लण्ड देखे… सारे तने हुए थे।
शर्मा अंकल का नंबर पहला था। मैं उठी और शर्मा अंकल को नीचे लिटा कर उनके लण्ड पर अपनी चूत टिका दी और धीरे-धीरे उस पर बैठने लगी। शर्मा अंकल का पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस गया। मैं उनके लण्ड को अपनी चूत में चारों ओर घुमाने लगी। फिर मैं ऊपर नीचे होकर शर्मा अंकल को चोदने लगी। शर्मा अंकल भी मेरी गाण्ड को पकड़ कर मुझे ऊपर नीचे कर रहे थे और अपनी गाण्ड भी नीचे से उछाल-उछाल कर मुझे चोद रहे थे। मेरे उछलने से मेरे चूचे भी उछल रहे थे जो राणा अंकल ने पकड़ लिए और उनके साथ खेलने लगे।
फिर राणा अंकल ने मुझे आगे की तरफ झुका दिया और खुद मेरे पीछे आ गये जिससे मेरी गाण्ड उनके सामने आ गई और वो अपना लण्ड मेरी गाण्ड में घुसाने लगे। मगर उनका लौड़ा मेरी कसी सूखी गाण्ड में आसानी से नहीं घुसने वाला था। फिर उन्होंने और जोर से धक्का मारा तो मुझे बहुत दर्द हुआ जैसे मेरी गाण्ड फट गई हो। मैं उनका लण्ड बाहर निकालना चाहती थी मगर उन्होंने नहीं निकालने दिया और फिर मुझे भी पता था कि दर्द तो कुछ देर का ही है।
वैसा ही हुआ, थोड़ी देर में ही उनका पूरा लण्ड मेरी सूखी गाण्ड में था। दोनों तरफ से लग रहे धक्कों से मेरे मुँह से “आह आह” की आवाजें निकल रही थी। फिर राठौड़ अंकल ने मेरे सामने आकर अपना तना हुआ लण्ड मेरे मुँह के सामने कर दिया। मैंने उनका लण्ड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
जब राणा अंकल मेरी गाण्ड में अपना लण्ड पेलने के लिए धक्का मारते तो सामने खड़े राठौड़ अंकल का लण्ड मेरे मुँह के अन्दर तक घुस जाता। मेरी “आह आह” की आवाजें कमरे में गूंजने लगी। मेरा बुरा हाल हो रहा था। उनका लण्ड मेरी गाण्ड में और भी अन्दर तक चोट कर रहा था। फिर उनका आखरी धक्का तो मेरे होश उड़ा गया। उनका लण्ड मेरी गाण्ड के सबसे अन्दर तक पहुँच गया था। मुझ में और घोड़ी बने रहने की ताकत नहीं बची थी। मैं नीचे गिर गयी मगर राणा अंकल ने मेरी गाण्ड को तब तक नहीं छोड़ा जब तक उनके वीर्य का एक-एक कतरा मेरी गाण्ड में ना उतर गया।
मैं बहुत थक गई थी। हम सभी ने एक-एक पैग और लगाया। मेरी गाण्ड अभी भी दर्द कर रही थी मगर मैं इतने सारे पैग ले चुकी थी और नशे में इतनी धुत्त थी कि सब कुछ अच्छा-अच्छा ही लग रहा था।
मैं अंकल राठौड़ के आगे उनकी जांघों पर सर रख के लेट गई और उनके लण्ड से खेलने लगी। सिंह अंकल मेरी टांगो की तरफ आकर बैठ गये। मैंने अपनी टांगे सिंह अंकल के आगे खोल दी और अपना सर राठौड़ अंकल के आगे रख दिया।
सिंह अंकल मेरे ऊपर आ गये और अपना लण्ड मेरी चूत के ऊपर रख कर धीरे-धीरे से अन्दर डाल दिया और फिर अन्दर बाहर करने लगे और झड़ गए।
फ़िर राठौड़ अंकल ने मुझे अपने नीचे लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर आकर मेरी चूत चोदने लगे। मेरी टांगों को उठा कर उन्होंने ने भी मुझे पूरे जोर से चोदा। फिर उन्होंने ने मेरी गाण्ड को भी चोदा और मेरी गाण्ड में ही झड़ गये। मैं कितनी बार झड़ चुकी थी, मुझे याद भी नहीं था।
मेरा इतना बुरा हाल था कि अब मुझसे खड़ा होना भी मुशकिल लग रहा था। मैं वहीं पर लेट गई। हम सभी नंगे ही एक ही बिस्तर में सो गये। फिर अचानक मेरी आँख खुली और मैंने समय देखा तो सुबह के तीन बजे थे।
मैंने अपने कपड़े उठाये और बिल्कुल नंगी ही नीचे आने लगी। मगर सीढ़ियाँ उतरते वक्त मेरी टांगें नशे में बुरी कांप रही थी और चूत और गाण्ड में भी दर्द हो रहा था। नशे में बिल्कुल चूर थी और ऊँची ऐड़ी के सैंडलों में नंगी ही लड़खड़ती हुई कमरे तक आयी। रास्ते में तीन-चार बार लुढ़की भी।
सुबह मैं काफी देर से उठी और मुझ से चला भी नहीं जा रहा था। इसलिए मैं बुखार का बहाना करके बिस्तर पर ही लेटी रही। जब अंकल जाने लगे तो वो मुझसे मिलने आये। पापा और मम्मी भी साथ थे, इसलिए उन्होंने मेरे सर को चूमा और फिर जल्दी आने को बोल कर चले गये।
मगर मैं पूरा दिन और पूरी रात बिस्तर पर ही अपनी चूत और गाण्ड को पलोसती रही।
!!! क्रमशः !!!
हिन्दी में मस्त कहानियाँ
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Re: हिन्दी में मस्त कहानियाँ
कोमलप्रीत कौर के गरम गरम किस्से
भाग ६. कॉलेज़ के गबरू
लेखिका : कोमलप्रीत कौर
भाग-५ (चार फौजी और चूत का मैदान) से आगे....
यह बात तब की है जब मेरी सासु जी जालंधर के एक अस्पताल में दाखिल थी और मेरे ससुर जी भी रात को उनके पास ही रहते थे। मैं सुबह घर से खाना वगैरह लेकर बस में जाती थी। वैसे तो मैं ड्राइविंग जानती थी लेकिन अस्पताल में और उसके आसपास पार्किंग की बहुत ही दिक्कत थी। एक दिन मैं सुबह जब बस में चढ़ी तो बस में बहुत भीड़ थी, जिनमें ज्यादा स्कूल और कॉलेज के लड़के थे।
उस दिन मैंने गहरे गले वाला सफ़ेद और गुलाबी रंग का पटियाला सलवार कमीज़ पहन रखा था और हमेशा की तरह पैरों में सफ़ेद रंग के ही काफी ऊँची ऐड़ी के सैंडल पहने हुए थे। जहाँ पर मैं खड़ी थी वहां पर मेरे आगे एक बूढ़ी औरत और मेरे पीछे एक लड़का था। कुछ देर बाद उस लड़के ने अपना लण्ड मेरी गाँड से लगा लिया। बस में इतनी भीड़ थी कि ऐसा होना आम था और किसी को पता भी नहीं चल सकता था। यह तो मुझे और उस लड़के को ही पता था।
मेरी तरफ से कोई विरोध ना देख कर लड़के ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड पर रगड़ा। मेरे बदन में एक करंट सा दौड़ गया। मुझे लण्ड के स्पर्श से बहुत मजा आया! और आता भी क्यों ना? लण्ड होता ही मजे के लिए है.. खासकर मेरे लिए...। लड़के का लण्ड सख्त हो चुका था और बेकाबू भी होता जा रहा था क्योंकि अब उसकी छलांगे मेरी गाण्ड महसूस कर रही थी। उस दिन मैंने पैंटी भी नहीं पहनी थी और कॉटन की पटियाला सलवार के नीछे मेरी गाँड बिल्कुल नंगी थी। इसके अलावा ऊँची ऐड़ी के सैंडल की वजह से मेरी बड़ी गाँड और भी ज्यादा पीछे की ओर उभरी हुई थी। जब भी बस में कहीं धक्का लगता तो मैं भी उसके लण्ड पर दबाव डाल देती। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
हम दोनों लण्ड और गाण्ड की रगड़ाई के मजे ले रहे थे। अब बस जालंधर पहुँच चुकी थी और सब बस से उतर रहे थे, मुझे भी उतरना था और उस लड़के को भी। बस से उतरते ही लड़का पता नहीं कहाँ चला गया। मेरी चूत मेरा चुदने का मन कर रहा था, मगर वो लड़का तो अब कॉलेज चला गया होगा, यह सोच कर मैं उदास हो गई।
अब मुझे अस्पताल जाना था। मैं बस स्टैंड से बाहर आ गई और ऑटो में बैठने ही वाली थी कि वही लड़का बाईक लेकर मेरे पास आकर खड़ा हो गया। मैं उसे देख कर हैरान हो गयी। वो बोला- “भाभी जी आओ, मैं आपको छोड़ देता हूँ।”
पहले तो मैंने मना कर दिया, मगर फिर उसने कहा- “आप जहाँ कहोगी मैं वहीं छोड़ दूँगा!”
वैसे भी लड़का इतना सैक्सी था कि उसको मना करना मुश्किल था। तो मैं उसकी बाईक की सीट पर उसके पीछे बैठ गई। उसकी बाईक में पैर रखने के लिये सिर्फ एक छोटा सा खूँटा था तो मैंने उस खूँटे पर अपना एक सैंडल टिका लिया और उस टाँग पर अपनी दूसरी टाँग चढ़ा कर बैठी थी और सहारे के लिये मैंने उसके कंधे पर हाथ रख लिया। सीट की ढलान की वजह से मैं उससे सटी हुई थी और जब उसने बाइक की स्पीड बढ़ा दी तो मुझे सहरे के लिये उसकी कमर में अपनी दोनों बाँहें डालने पड़ीं। बीच-बीच में मैं उसकी टाँगों के बीच में भी हाथ फिरा कर उसके सख्त लण्ड का जायज़ा ले लेती थी।
रास्ते में उसने अपना नाम अनिल बताया। मैंने भी अपने बारे में बताया। थोड़ी आगे जाकर उसने कहा- “भाभी अगर आप गुस्सा ना करो तो यहीं पास में से मैंने अपने दोस्त से कुछ किताबें लेनी थी...!”
मैंने कहा- “कोई बात नहीं, ले लो...” लेखिका : कोमलप्रीत कौर
फिर आगे जाकर उसने एक बड़े से शानदार घर के आगे बाईक रोकी। गेट खुला था तो वो बाईक और मुझे भी अंदर ले गया। उसका दोस्त सामने ही खड़ा था। वो दोनों मुझसे थोड़ी दूर खड़े होकर कुछ बातें करने लगे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे चोदने की बातें कर रहे हों। काश यह दोनों लड़के आज मेरी चुदाई कर दें! बस में और फिर बाईक पर अनिल को खुल्लेआम सिगनल तो मैंने दे ही दिया था।
फिर अनिल ने अपने दोस्त से मिलवाया। उसका नाम सुनील था। सुनील ने मुझे अंदर आने को कहा मगर मैंने सोचा कि सुनील के घर वाले क्या सोचेंगे। इसलिए मैंने कहा- “नहीं मैं ठीक हूँ!” और फिर अनिल को भी जल्दी चलने को कहा।
तो अनिल मुझसे बोला – “भाभी जी, दो मिनट बैठते हैं, सुनील घर में अकेला ही है।”
यह सुनकर तो मैं बहुत खुश हो गई कि यहाँ पर तो बड़े आराम से चुदाई करवाई जा सकती है। मैं उनके साथ अंदर चली गई और सोफे पर बैठ गई। सुनील कोल्ड ड्रिंक लेकर आया और हम कोल्ड ड्रिंक पीते हुए आपस में बातें करने लगे।
अनिल मेरे साथ बैठा था और सुनील मेरे सामने। वो दोनों घुमा फिरा कर बात मेरी सुन्दरता की करते। अनिल ने कहा- “भाभी, आप बहुत सुन्दर हो, जब आप बस में आई थी तो मैं आपको देखता ही रह गया था!”
मैंने कहा- “अच्छा तो इसी लिए मेरे पास आकर खड़े हो गये थे?”
अनिल बोला- “नहीं भाभी, वो तो बस में काफी भीड़ थी, इस लिए...”
फिर मुझे वही पल याद आ गये जो बस में गुजरे थे इसलिए मैं शरमाते हुए चुप रही। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
फिर अनिल बोला- “भाभी वैसे बस में काफी मजा था... मेरा मतलब इतनी भीड़ थी कि सर्दी का पता ही नहीं चल रहा था!”
मैंने शरमाते हुए कहा- “हाँ...! वो... वो... तो है...” मैं समझ गई थी कि वो क्या कहना चाहता है।
उसने अपना हाथ बढ़ाया और मेरे हाथ पर रख दिया और बोला- “भाभी अब काफी सर्दी लग रही है, अब क्या करूँ?”
उसका हाथ पड़ते ही मैं शरमा गई और बोली- “क क.. क्या... क्या.. कर.... करना.. है... गर्मी चाहिए तो पैग-शैग लगाओ....”
अनिल- “भाभी, मगर मुझे तो वो ही गर्मी चाहिए जो बस में थी...”
मैं शरमाते हुए अपने बाल ठीक करने लगी। मेरा शरमाना उनको सब कुछ करने की इजाजत दे रहा था। अनिल ने मौके को समझा और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
मैंने आँखे बंद कर ली और सोफे पर ही लेट गई। अनिल भी मेरे ऊपर ही लेट गया! अब सारी शर्म-हया ख़त्म हो चुकी थी…
अनिल ने मेरे होंठ अपने मुँह में और मेरे चूचे अपने हाथों में पकड़ लिए थे। मेरी आँखें बंद थी। इस वक्त सुनील पता नहीं क्या कर रहा था मगर उसने अभी तक मुझे नहीं छुआ था। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
अनिल मेरे होंठों को जोर जोर से चूस रहा था, मैंने हाथ उसकी कमर पर ढीले से छोड़ रखे थे…
फिर सुनील मेरी सर की तरफ आ गया और मेरे गोरे-गोरे गालों और मेरे बालों में हाथ घुमाने लगा। मेरी आँखें अब भी बंद थीं।
वो दोनों मुझसे प्यार का भरपूर का मजा ले रहे थे... कभी अनिल मेरे होंठ चूसता तो कभी सुनील।
अनिल ने मेरी पजामी और कमीज उतार दी। फिर सुनील ने ब्रा भी उतार दी... पैंटी तो पहनी ही नहीं हुई थी।
मैं बिलकुल नंगी हो चुकी थी। बस गले में सफ़ेद मोतियों की माला, कलाइयों में चूड़ियाँ और पैरों में ऊँची ऐड़ी के सैंडल। दोनों मुँह खोले मेरी साफ-सुथरी और शेव की हुई चिकनी चूत ताकने लगे। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
वासना में मेरी साँसें तेज़ चल रही थीं और आगे बढ़ने से पहले मैंने उनसे कहा – “क्यों ना शराब एक-एक पैग लगा लें! फिर और भी मज़ा आयेगा!” तो दोनों लड़के हैरान हो गये। अनिल बोला- “भाभी आप को शराब पीनी है?” मैंने मुस्कुराते हुए गर्दन हिला कर हामी भरी तो सुनील बोला – “शराब! भाभी… वो भी इतनी सुबह?”
मैं भी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोली – “क्यों! अगर इतनी सुबह मेरे साथ ये सब मज़े कर सकते हो तो शराब में क्या बुरायी है... शराब से मज़ा दुगना हो जायेगा।”
अनिल परेशान होते हुए बोला- “भाभी हमने तो पहले कभी पी नहीं है...”
“पीते नहीं पर पिला तो सकते हो!” मैंने थोड़ा ज़ोर दिया तो अनिल ने कहा – “पर इतनी सुबह शराब कहाँ मिलेगी?”
सुनील बोला – “मिल जायेगी! मेरे चाचा जी के कमरे में मिलेगी... मैं ले कर आता हूँ!” फिर वो भगता हूआ अंदर गया और बैगपाइपर व्हिस्की की आधी भरी बोतल ले आया और एक काँच का ग्लास आधा भर कर मुझे पकड़ा दिया। मेरी हँसी छूट गयी- “ये तो पूरा पटियाला पैग ही बना दिया तुमने...!”
सुनील झेंपते हुए बोला- “सॉरी भाभी! मैंने कहाँ कभी पैग बनाया है पहले... लाइये मैं कम कर देता हूँ!”
“रहने दे... अब तूने पटियाला पैग बना ही दिया तो अब पी लुँगी... चीयर्स!” – मैं मुस्कुराते हुए पैग पीने लगी। “किसी को चोदा तो है ना पहले कि वो भी मुझे ही सिखाना पड़ेगा?” मैंने पैग पीते हुए बीच में हंसते हुए पूछा!
तो अनिल बोला- “क.. क.. की तो नहीं है पर हमें सब पता है!”
“हाँ भाभी... हमने ब्लू-फिल्मों में सब देखा है और फिर आप भी तो गाइड करेंगी!” सुनील भी बोला।
मैं तो बस मज़ाक कर रही थी मगर मन ही मन में खुश हो रही थी कि मुझे दो कुँवारे लण्ड चोदने क मिल रहे थे। पैग खत्म करके मैंने ग्लास एक तरफ रख कर फिर मैं सोफे पर घुटनों के बल बैठ गई और सुनील की पैंट उतार दी.. उसका लौड़ा उसके कच्छे में फ़ूला हुआ था। मैंने झट से उसका लौड़ा निकाला और अपने हाथों में ले लिया और फिर मुँह में डाल कर जोर-जोर से चूसने लगी। मैं सोफे पर ही घोड़ी बन कर उसका लौड़ा चूस रही थी और अनिल मेरे पीछे आकर मेरी चूत चाटने लगा। अनिल जब भी अपनी जीभ मेरी चूत में घुसाता तो मैं मचल उठती और आगे होने से सुनील का लौड़ा मेरे गले तक उतर जाता।
सुनील भी मेरे बालों को पकड़ कर अपना लौड़ा मेरे मुंह में ठूंस रहा था। फिर सुनील का वीर्य निकल गया और मैंने सारा वीर्य चाट लिया। उधर अनिल के चाटने से मैं भी झड़ चुकी थी। इतनी देर में मुझ पर शराब का मस्ती भरा हल्का नशा चढ़ चुका था।
अब अनिल का लौड़ा मुझे शांत करना था। अनिल सोफे पर बैठ गया और मैं अनिल के आगे उसी की तरफ मुंह करके उसके लौड़े पर अपनी चूत टिका कर बैठ गई। उसका लोहे जैसा लौड़ा मेरी चूत में घुस गया। “आहहह!” मुझे दर्द हुआ मगर मैंने फिर भी उसका पूरा लौड़ा अपनी चूत में घुसा लिया। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
मैं ऊपर-नीचे होकर उसके लौड़े से चुदाई करवा रही थी और सुनील मेरे मम्मों को अपने हाथों से मसल रहा था।
अनिल भी नीचे से जोर-जोर से मेरी चूत में अपना लौड़ा घुसेड़ रहा था। इसी दौरान मैं फ़िर झड़ गई और अनिल के ऊपर से उठ गई मगर अनिल अभी नहीं झड़ा था तो उसने मुझे घोड़ी बना लिया और अपना लौड़ा मेरी गाण्ड में ठूंस दिया।
उफ़! यह बहुत मजेदार चुदाई थी!
अनिल ने मेरी गाण्ड में छः-सात ज़ोरदार धक्के लगाये तो मेरी इच्छा दोहरी चुदाई का मज़ा लेने की हुई। इसलिये मैंने अनिल को लिटाया और मैं उसके लौड़े पर बैठ गयी। अब अनिल मेरे नीचे था और मैं अनिल का लौड़ा अपनी गाण्ड में लिए उसके पैरों की ओर मुंह कर के बैठी थी। मैंने इशारा किया तो सुनील मेरे सामने आ कर बैठ गया और अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसाने लगा। मैं अनिल पर उलटी लेट गई और सुनील ने मेरे ऊपर आकर अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसा दिया। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
उफ़! अब तो मुझे बहुत दर्द हो रहा था और मेरा दिल चिल्लाने को कर रहा था मगर थोड़ी ही देर में चुदाई फिर शुरू हो गई। मैं दोनों के बीच चूत और गाण्ड की प्यास एक साथ बुझा रही थी और वो दोनों जोर-जोर से मेरी चुदाई कर रहे थे।
मैं दो बार झड़ चुकी थी… फिर अनिल भी झड़ गया और उसके बाद सुनील भी झड़ गया। हम तीनों थक हार कर लेट गये। फिर मैंने अपने कपड़े पहने। हल्का सा नशा अभी भी था मगर मैंने पानी पिया और हस्पताल चली गई।
हस्पताल से निकलने के बाद शाम को और पूरी रात को मैं अकेली ही होती थी इस लिए वो अनिल और सुनील दोनों शाम को मुझे हस्पताल से सुनील के घर ले जाते। सुनील के घर वाले दिल्ली गये हुए थे इसलिये कोई पूरी आज़ादी थी। मेरे साथ वो भी शराब पीने लगे। हम तीनों मिलकर ब्लू-फिल्म देखते, शराब पीते और फिर वो दोनों मिलकर सारी रात मेरी चुदाई करते। सुबह मैं तैयार होकर हस्पताल आ जाती और वो दोनों कॉलेज इसी तरह पाँच दिन चुदाई चलती रही और फिर सासु ठीक होकर घर आ गई तो उन दोनों लड़कों के साथ चुदाई भी बंद हो गई।
!!! क्रमशः !!!
भाग ६. कॉलेज़ के गबरू
लेखिका : कोमलप्रीत कौर
भाग-५ (चार फौजी और चूत का मैदान) से आगे....
यह बात तब की है जब मेरी सासु जी जालंधर के एक अस्पताल में दाखिल थी और मेरे ससुर जी भी रात को उनके पास ही रहते थे। मैं सुबह घर से खाना वगैरह लेकर बस में जाती थी। वैसे तो मैं ड्राइविंग जानती थी लेकिन अस्पताल में और उसके आसपास पार्किंग की बहुत ही दिक्कत थी। एक दिन मैं सुबह जब बस में चढ़ी तो बस में बहुत भीड़ थी, जिनमें ज्यादा स्कूल और कॉलेज के लड़के थे।
उस दिन मैंने गहरे गले वाला सफ़ेद और गुलाबी रंग का पटियाला सलवार कमीज़ पहन रखा था और हमेशा की तरह पैरों में सफ़ेद रंग के ही काफी ऊँची ऐड़ी के सैंडल पहने हुए थे। जहाँ पर मैं खड़ी थी वहां पर मेरे आगे एक बूढ़ी औरत और मेरे पीछे एक लड़का था। कुछ देर बाद उस लड़के ने अपना लण्ड मेरी गाँड से लगा लिया। बस में इतनी भीड़ थी कि ऐसा होना आम था और किसी को पता भी नहीं चल सकता था। यह तो मुझे और उस लड़के को ही पता था।
मेरी तरफ से कोई विरोध ना देख कर लड़के ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड पर रगड़ा। मेरे बदन में एक करंट सा दौड़ गया। मुझे लण्ड के स्पर्श से बहुत मजा आया! और आता भी क्यों ना? लण्ड होता ही मजे के लिए है.. खासकर मेरे लिए...। लड़के का लण्ड सख्त हो चुका था और बेकाबू भी होता जा रहा था क्योंकि अब उसकी छलांगे मेरी गाण्ड महसूस कर रही थी। उस दिन मैंने पैंटी भी नहीं पहनी थी और कॉटन की पटियाला सलवार के नीछे मेरी गाँड बिल्कुल नंगी थी। इसके अलावा ऊँची ऐड़ी के सैंडल की वजह से मेरी बड़ी गाँड और भी ज्यादा पीछे की ओर उभरी हुई थी। जब भी बस में कहीं धक्का लगता तो मैं भी उसके लण्ड पर दबाव डाल देती। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
हम दोनों लण्ड और गाण्ड की रगड़ाई के मजे ले रहे थे। अब बस जालंधर पहुँच चुकी थी और सब बस से उतर रहे थे, मुझे भी उतरना था और उस लड़के को भी। बस से उतरते ही लड़का पता नहीं कहाँ चला गया। मेरी चूत मेरा चुदने का मन कर रहा था, मगर वो लड़का तो अब कॉलेज चला गया होगा, यह सोच कर मैं उदास हो गई।
अब मुझे अस्पताल जाना था। मैं बस स्टैंड से बाहर आ गई और ऑटो में बैठने ही वाली थी कि वही लड़का बाईक लेकर मेरे पास आकर खड़ा हो गया। मैं उसे देख कर हैरान हो गयी। वो बोला- “भाभी जी आओ, मैं आपको छोड़ देता हूँ।”
पहले तो मैंने मना कर दिया, मगर फिर उसने कहा- “आप जहाँ कहोगी मैं वहीं छोड़ दूँगा!”
वैसे भी लड़का इतना सैक्सी था कि उसको मना करना मुश्किल था। तो मैं उसकी बाईक की सीट पर उसके पीछे बैठ गई। उसकी बाईक में पैर रखने के लिये सिर्फ एक छोटा सा खूँटा था तो मैंने उस खूँटे पर अपना एक सैंडल टिका लिया और उस टाँग पर अपनी दूसरी टाँग चढ़ा कर बैठी थी और सहारे के लिये मैंने उसके कंधे पर हाथ रख लिया। सीट की ढलान की वजह से मैं उससे सटी हुई थी और जब उसने बाइक की स्पीड बढ़ा दी तो मुझे सहरे के लिये उसकी कमर में अपनी दोनों बाँहें डालने पड़ीं। बीच-बीच में मैं उसकी टाँगों के बीच में भी हाथ फिरा कर उसके सख्त लण्ड का जायज़ा ले लेती थी।
रास्ते में उसने अपना नाम अनिल बताया। मैंने भी अपने बारे में बताया। थोड़ी आगे जाकर उसने कहा- “भाभी अगर आप गुस्सा ना करो तो यहीं पास में से मैंने अपने दोस्त से कुछ किताबें लेनी थी...!”
मैंने कहा- “कोई बात नहीं, ले लो...” लेखिका : कोमलप्रीत कौर
फिर आगे जाकर उसने एक बड़े से शानदार घर के आगे बाईक रोकी। गेट खुला था तो वो बाईक और मुझे भी अंदर ले गया। उसका दोस्त सामने ही खड़ा था। वो दोनों मुझसे थोड़ी दूर खड़े होकर कुछ बातें करने लगे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे चोदने की बातें कर रहे हों। काश यह दोनों लड़के आज मेरी चुदाई कर दें! बस में और फिर बाईक पर अनिल को खुल्लेआम सिगनल तो मैंने दे ही दिया था।
फिर अनिल ने अपने दोस्त से मिलवाया। उसका नाम सुनील था। सुनील ने मुझे अंदर आने को कहा मगर मैंने सोचा कि सुनील के घर वाले क्या सोचेंगे। इसलिए मैंने कहा- “नहीं मैं ठीक हूँ!” और फिर अनिल को भी जल्दी चलने को कहा।
तो अनिल मुझसे बोला – “भाभी जी, दो मिनट बैठते हैं, सुनील घर में अकेला ही है।”
यह सुनकर तो मैं बहुत खुश हो गई कि यहाँ पर तो बड़े आराम से चुदाई करवाई जा सकती है। मैं उनके साथ अंदर चली गई और सोफे पर बैठ गई। सुनील कोल्ड ड्रिंक लेकर आया और हम कोल्ड ड्रिंक पीते हुए आपस में बातें करने लगे।
अनिल मेरे साथ बैठा था और सुनील मेरे सामने। वो दोनों घुमा फिरा कर बात मेरी सुन्दरता की करते। अनिल ने कहा- “भाभी, आप बहुत सुन्दर हो, जब आप बस में आई थी तो मैं आपको देखता ही रह गया था!”
मैंने कहा- “अच्छा तो इसी लिए मेरे पास आकर खड़े हो गये थे?”
अनिल बोला- “नहीं भाभी, वो तो बस में काफी भीड़ थी, इस लिए...”
फिर मुझे वही पल याद आ गये जो बस में गुजरे थे इसलिए मैं शरमाते हुए चुप रही। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
फिर अनिल बोला- “भाभी वैसे बस में काफी मजा था... मेरा मतलब इतनी भीड़ थी कि सर्दी का पता ही नहीं चल रहा था!”
मैंने शरमाते हुए कहा- “हाँ...! वो... वो... तो है...” मैं समझ गई थी कि वो क्या कहना चाहता है।
उसने अपना हाथ बढ़ाया और मेरे हाथ पर रख दिया और बोला- “भाभी अब काफी सर्दी लग रही है, अब क्या करूँ?”
उसका हाथ पड़ते ही मैं शरमा गई और बोली- “क क.. क्या... क्या.. कर.... करना.. है... गर्मी चाहिए तो पैग-शैग लगाओ....”
अनिल- “भाभी, मगर मुझे तो वो ही गर्मी चाहिए जो बस में थी...”
मैं शरमाते हुए अपने बाल ठीक करने लगी। मेरा शरमाना उनको सब कुछ करने की इजाजत दे रहा था। अनिल ने मौके को समझा और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
मैंने आँखे बंद कर ली और सोफे पर ही लेट गई। अनिल भी मेरे ऊपर ही लेट गया! अब सारी शर्म-हया ख़त्म हो चुकी थी…
अनिल ने मेरे होंठ अपने मुँह में और मेरे चूचे अपने हाथों में पकड़ लिए थे। मेरी आँखें बंद थी। इस वक्त सुनील पता नहीं क्या कर रहा था मगर उसने अभी तक मुझे नहीं छुआ था। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
अनिल मेरे होंठों को जोर जोर से चूस रहा था, मैंने हाथ उसकी कमर पर ढीले से छोड़ रखे थे…
फिर सुनील मेरी सर की तरफ आ गया और मेरे गोरे-गोरे गालों और मेरे बालों में हाथ घुमाने लगा। मेरी आँखें अब भी बंद थीं।
वो दोनों मुझसे प्यार का भरपूर का मजा ले रहे थे... कभी अनिल मेरे होंठ चूसता तो कभी सुनील।
अनिल ने मेरी पजामी और कमीज उतार दी। फिर सुनील ने ब्रा भी उतार दी... पैंटी तो पहनी ही नहीं हुई थी।
मैं बिलकुल नंगी हो चुकी थी। बस गले में सफ़ेद मोतियों की माला, कलाइयों में चूड़ियाँ और पैरों में ऊँची ऐड़ी के सैंडल। दोनों मुँह खोले मेरी साफ-सुथरी और शेव की हुई चिकनी चूत ताकने लगे। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
वासना में मेरी साँसें तेज़ चल रही थीं और आगे बढ़ने से पहले मैंने उनसे कहा – “क्यों ना शराब एक-एक पैग लगा लें! फिर और भी मज़ा आयेगा!” तो दोनों लड़के हैरान हो गये। अनिल बोला- “भाभी आप को शराब पीनी है?” मैंने मुस्कुराते हुए गर्दन हिला कर हामी भरी तो सुनील बोला – “शराब! भाभी… वो भी इतनी सुबह?”
मैं भी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोली – “क्यों! अगर इतनी सुबह मेरे साथ ये सब मज़े कर सकते हो तो शराब में क्या बुरायी है... शराब से मज़ा दुगना हो जायेगा।”
अनिल परेशान होते हुए बोला- “भाभी हमने तो पहले कभी पी नहीं है...”
“पीते नहीं पर पिला तो सकते हो!” मैंने थोड़ा ज़ोर दिया तो अनिल ने कहा – “पर इतनी सुबह शराब कहाँ मिलेगी?”
सुनील बोला – “मिल जायेगी! मेरे चाचा जी के कमरे में मिलेगी... मैं ले कर आता हूँ!” फिर वो भगता हूआ अंदर गया और बैगपाइपर व्हिस्की की आधी भरी बोतल ले आया और एक काँच का ग्लास आधा भर कर मुझे पकड़ा दिया। मेरी हँसी छूट गयी- “ये तो पूरा पटियाला पैग ही बना दिया तुमने...!”
सुनील झेंपते हुए बोला- “सॉरी भाभी! मैंने कहाँ कभी पैग बनाया है पहले... लाइये मैं कम कर देता हूँ!”
“रहने दे... अब तूने पटियाला पैग बना ही दिया तो अब पी लुँगी... चीयर्स!” – मैं मुस्कुराते हुए पैग पीने लगी। “किसी को चोदा तो है ना पहले कि वो भी मुझे ही सिखाना पड़ेगा?” मैंने पैग पीते हुए बीच में हंसते हुए पूछा!
तो अनिल बोला- “क.. क.. की तो नहीं है पर हमें सब पता है!”
“हाँ भाभी... हमने ब्लू-फिल्मों में सब देखा है और फिर आप भी तो गाइड करेंगी!” सुनील भी बोला।
मैं तो बस मज़ाक कर रही थी मगर मन ही मन में खुश हो रही थी कि मुझे दो कुँवारे लण्ड चोदने क मिल रहे थे। पैग खत्म करके मैंने ग्लास एक तरफ रख कर फिर मैं सोफे पर घुटनों के बल बैठ गई और सुनील की पैंट उतार दी.. उसका लौड़ा उसके कच्छे में फ़ूला हुआ था। मैंने झट से उसका लौड़ा निकाला और अपने हाथों में ले लिया और फिर मुँह में डाल कर जोर-जोर से चूसने लगी। मैं सोफे पर ही घोड़ी बन कर उसका लौड़ा चूस रही थी और अनिल मेरे पीछे आकर मेरी चूत चाटने लगा। अनिल जब भी अपनी जीभ मेरी चूत में घुसाता तो मैं मचल उठती और आगे होने से सुनील का लौड़ा मेरे गले तक उतर जाता।
सुनील भी मेरे बालों को पकड़ कर अपना लौड़ा मेरे मुंह में ठूंस रहा था। फिर सुनील का वीर्य निकल गया और मैंने सारा वीर्य चाट लिया। उधर अनिल के चाटने से मैं भी झड़ चुकी थी। इतनी देर में मुझ पर शराब का मस्ती भरा हल्का नशा चढ़ चुका था।
अब अनिल का लौड़ा मुझे शांत करना था। अनिल सोफे पर बैठ गया और मैं अनिल के आगे उसी की तरफ मुंह करके उसके लौड़े पर अपनी चूत टिका कर बैठ गई। उसका लोहे जैसा लौड़ा मेरी चूत में घुस गया। “आहहह!” मुझे दर्द हुआ मगर मैंने फिर भी उसका पूरा लौड़ा अपनी चूत में घुसा लिया। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
मैं ऊपर-नीचे होकर उसके लौड़े से चुदाई करवा रही थी और सुनील मेरे मम्मों को अपने हाथों से मसल रहा था।
अनिल भी नीचे से जोर-जोर से मेरी चूत में अपना लौड़ा घुसेड़ रहा था। इसी दौरान मैं फ़िर झड़ गई और अनिल के ऊपर से उठ गई मगर अनिल अभी नहीं झड़ा था तो उसने मुझे घोड़ी बना लिया और अपना लौड़ा मेरी गाण्ड में ठूंस दिया।
उफ़! यह बहुत मजेदार चुदाई थी!
अनिल ने मेरी गाण्ड में छः-सात ज़ोरदार धक्के लगाये तो मेरी इच्छा दोहरी चुदाई का मज़ा लेने की हुई। इसलिये मैंने अनिल को लिटाया और मैं उसके लौड़े पर बैठ गयी। अब अनिल मेरे नीचे था और मैं अनिल का लौड़ा अपनी गाण्ड में लिए उसके पैरों की ओर मुंह कर के बैठी थी। मैंने इशारा किया तो सुनील मेरे सामने आ कर बैठ गया और अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसाने लगा। मैं अनिल पर उलटी लेट गई और सुनील ने मेरे ऊपर आकर अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसा दिया। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
उफ़! अब तो मुझे बहुत दर्द हो रहा था और मेरा दिल चिल्लाने को कर रहा था मगर थोड़ी ही देर में चुदाई फिर शुरू हो गई। मैं दोनों के बीच चूत और गाण्ड की प्यास एक साथ बुझा रही थी और वो दोनों जोर-जोर से मेरी चुदाई कर रहे थे।
मैं दो बार झड़ चुकी थी… फिर अनिल भी झड़ गया और उसके बाद सुनील भी झड़ गया। हम तीनों थक हार कर लेट गये। फिर मैंने अपने कपड़े पहने। हल्का सा नशा अभी भी था मगर मैंने पानी पिया और हस्पताल चली गई।
हस्पताल से निकलने के बाद शाम को और पूरी रात को मैं अकेली ही होती थी इस लिए वो अनिल और सुनील दोनों शाम को मुझे हस्पताल से सुनील के घर ले जाते। सुनील के घर वाले दिल्ली गये हुए थे इसलिये कोई पूरी आज़ादी थी। मेरे साथ वो भी शराब पीने लगे। हम तीनों मिलकर ब्लू-फिल्म देखते, शराब पीते और फिर वो दोनों मिलकर सारी रात मेरी चुदाई करते। सुबह मैं तैयार होकर हस्पताल आ जाती और वो दोनों कॉलेज इसी तरह पाँच दिन चुदाई चलती रही और फिर सासु ठीक होकर घर आ गई तो उन दोनों लड़कों के साथ चुदाई भी बंद हो गई।
!!! क्रमशः !!!
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Re: हिन्दी में मस्त कहानियाँ
कोमलप्रीत कौर के गरम गरम किस्से
भाग ७. जब कुत्ते ने मुझे चोदा
लेखिका : कोमलप्रीत कौर
भाग-६ (कॉलेज़ के गबरू) से आगे....
जैसे कि अपनी पिछली कहानियों में बता चुकी हूँ कि मेरा नाम कोमल प्रीत कौर है और मेरे पति आर्मी में मेजर है। उनकी पोस्टिंग दूर-दराज़ के सीमावर्ती इलाकों पर होती तहती है और इसलिये मैं अपनी सास और ससुर के साथ जालंधर के पास एक गाँव में रहती हूँ जहाँ हमारी पुश्तैनी कोठी और काफी ज़मीन-जायदाद है। मैं बहुत ही चुदक्कड़ किस्म की औरत हूँ। मेरी चुदाई की प्यास इतनी ज्यादा है कि दिन में कम से कम आठ-दस बार तो मुठ मार कर झड़ती ही हूँ।
मेरी उम्र तीस की है। मैं स्लिम और सैक्सी बदन की मालकिन हूँ। मेरी लम्बाई वास्तव में हालांकि पाँच फुट तीन इंच है पर दिखने मैं पाँच फुट सात इंच के करीब लगती हूँ क्योंकि मुझे हर वक्त ऊँची ऐड़ी की चप्पल सैंडल पहनने का शौक है। मेरा गोरा बदन, बड़े-बड़े गोल मटोल चूतड़ (३६) और उसके ऊपर पतली सी कमर (२८) और फ़िर गठीले तने हुए गोल गोल मम्मे (३४) और मेरी कमर के ऊपर लहराते मेरे चूतड़ों तक लंबे काले घने बाल किसी का भी लंड खड़ा करने के लिये काफी हैं। मगर फ़िर भी जब मैं अपने हुस्न के नखरे और अपनी कातिलाना अदायें बिखेरती हूँ तो बुढ्ढों के भी लंड खड़े होते मैंने देखे हैं। मैंने कईयों से चुदाई भी करवाई है जिसमें से कुछ किस्से पिछली कहानियों में बता चुकी हूँ।
जैसे कि आपको पता है कि रात को बेडरूम में शराब की चुस्कियाँ लेते हुए मुझे कंप्यूटर पर वयस्क वेबसाइटों पर नंगी ब्लू-फिल्में देखते हुए मुठ मारने की आदत है। ऐसे ही एक दिन मैं जब इंटरनेट पर ब्लू-फिल्में देखने के लिये सर्च कर रही थी तो एक वेबसाइट पर कुत्ते के साथ चुदाई की क्लिप मिली जिसमें दो औरतें कुत्ते के लण्ड से चुदवा रही थीं। इसे देख कर मैं बहुत उत्तेजित हो गयी और सोडे की बोतल चूत में घुसेड़ कर खुब मुठ मारी। फिर मेरा भी दिल करने लगा कि मैं भी हमारे कुत्ते रॉकी से चुदाई करवा के देखूँ। मगर घर में सास और ससुर के होते ये होना मुश्किल था।
रॉकी ज्यादातर मेरे ससुर जी के साथ ही रहता था। रात को भी उनके कमरे में ही सोता था। वैसे भी कुत्ते से चुदाई का कोई तजुर्बा तो था नहीं इसलिए रॉकी से जल्दबाज़ी में तो चुदाई हो नहीं सकती थी। रॉकी को किसी तरह फुसला कर अपनी इस कामुक इच्छा को अंजाम देने के लिये मुझे पूरी प्राइवसी की जरूरत थी। अपनी वासना में बहक कर फिर भी मैं मौका देख कर कभी-कभी रॉकी को प्यार से पुचकारती और उसके लंड वाली जगह पर हाथ लगा देती तो रॉकी भी एक बार चिहुंक उठता। मैं तो कुत्ते के लंड कि इतनी प्यासी थी कि मेरा मन हर वक्त रॉकी के लंड वाली जगह पर ही टिका रहता। हर रोज़ रात को इंटरनेट पर कुत्तों से औरतों की चुदाई की फिल्में देख कर मुठ मारने लगी और दिन में कईं बार बाथरूम में या बेडरूम में जा कर रॉकी के बारे में सोचते हुए मुठ मारती।
फिर एक दिन मुझे मौका मिल ही गया। मेरे सास और ससुर को कुछ दिनों के लिये कहीं रिश्तेदारों में जाना था। वो दोपहर घर से करीब तीन बजे निकले और फ़िर मैंने भी जल्दी-जल्दी घर का काम निपटाया। रॉकी उस दिन सुबह से हमारे खेत पर था। मैंने खेतों की देखभाल करने वाले नौकर को फोन करके रॉकी को घर वापस लाने के लिये कह दिया। वो बोला कि कुछ जरूरी काम निपटाने के बाद करीब दो घंटे में रॉकी को घर छोड़ जायेगा। मुझे बहुत गुस्सा आया और एक बार तो मन किया कि खुद ही कार ले कर वहाँ जाऊँ और रॉकी को ले आऊँ। मगर फिर मैंने सोचा कि क्यों ना रॉकी को आकर्षित करने के लिये इतनी देर मैं थोड़ा सज-संवर कर तैयार हो लूँ। हालाँकि कुत्ते के लिये सजने संवरने का ख्याल बेकार का था लेकिन फिर भी मैंने नहा-धो कर अच्छा सा सलवार-कमीज़ और हाई हील के सैंडल पहने और मेक-अप भी किया।
तैयार होने में करीब एक घंटा ही निकला और रॉकी के आने में अभी भी करीब एक और घंटा बाकी था। मुझसे तो उत्तेजना और बेचैनी में इंतज़ार ही नहीं हो रहा था। कुछ और सूझा नहीं तो व्हिस्की का पैग पीते हुए मैं लैपटॉप पर कुत्ते से चुदाई की फिल्म देखने लगी। तीन औरतें दो कुत्तों के साथ चुदाई का मज़ा ले रही थीं। उनमें एक रॉकी कि तरह ही भूरा ऐल्सेशन कुत्ता था और दूसरा बड़ा सफेद कुत्ता शायद लैब्राडोर था। वो तीनों औरतें उनके लंड चूस रही थीं और अपनी चूत भी चटवा रही थीं। फिर उनमें से एक औरत अपनी चूत में कुत्ते का लंड लेकर चुदवाने लगी और एक औरत दूसरे कुत्ते से गाँड मरवाने लगी। मैंने अपनी पजामी में हाथ डाल कर चूत सहलाना शुरू कर दिया। करीब आधे घंटे बाद वो फिल्म खत्म हुई। इस दौरान मेरी चूत तीन बार झड़ी। अब तक मैंने व्हिस्की के दो पैग पी लिये थे और मुझ पे शराब की सुहानी सी खुमारी छा गयी थी। अपनी पिछली कहानियों में मैं ज़िक्र कर चुकी हूँ कि मुझे चुदाई से पहले शराब पीना अच्छा लगता है मगर शराब मैं इतनी ही पीती हूँ कि मुझे इतना ज्यादा नशा ना चढ़े कि मैं खुद को संभाल ना सकूँ। वैसे कईं बार ज्यादा भी हो जाती है।
अगले आधे घंटे में मैंने शराब का एक छोटा पैग और पिया। फिर खेत पे काम करने वाले नौकर ने घंटी बजायी तो रॉकी को अंदर लेकर मैंने दरवाजे को लॉक किया और रॉकी को पुचकारती हुई अपने बेडरूम में ले गयी और उसका भी दरवाजा बंद कर दिया। पहले तो मैंने उसके साथ बहुत प्यार किया और कपड़े उतारे बगैर ही उसे अपने बदन से चिपकती रही। रॉकी भी अपनी जुबान निकाल कर मुझे इधर उधर चाटने लगा। उसकी खुरदरी जुबान जब मेरी गर्दन के ऊपर चलती तो बहुत मज़ा आता। मैं नीचे ही टाँगें फैला कर उसके सामने बैठ गयी और फ़िर अपनी कमीज़ को उतार दिया। मेरे बूब्स मेरी ब्रा में से बाहर आने को थे।
मैंने रॉकी का मुँह पकड़ कर अपने मम्मों की तरफ़ किया तो वो सूँघ कर धीरे-धीरे से अपनी जुबान मेरे मम्मों के ऊपरी हिस्से पर रगड़ने लगा। ‘आअहहह’ क्या एहसास था उसकी खुरदरी जुबान का। वो ब्रा के बीच भी अपना मुँह डालने की कोशिश करता मगर ब्रा टाईट होने के कारण उसका मुँह अंदर नहीं जा पाता था। मगर उसकी जुबान थोड़ी सी निप्पल को छू जाती तो मेरे तन बदन में और भी बिजली दौड़ जाती।
अब मैंने अपनी ब्रा के हुक पीछे सो खोल दिये और फ़िर ब्रा को भी उतार दिया। रॉकी अब इन खुले कबूतरों को देख कर और भी तेजी से निप्पल पर अपनी जुबान चलाने लगा। वो अपनी पूँछ को बड़े अंदाज़ से हिला रहा था। मैं उसकी पीठ पर हाथ घुमाने लगी और फ़िर अपना हाथ उसके लंड कि तरफ़ ले गयी। जब मैंने रॉकी का लंड हाथ में पकड़ा तो शायद वो परेशान हो गया और जल्दी से मुढ़ कर मेरे हाथ की तरफ़ लपका। मैंने उसका लंड छोड़ दिया मगर मुझे उसके लंड की जगह वाला हिस्सा काफी सख्त लगा। रॉकी फ़िर से मेरे निप्पल को चाटने लगा। अब मैंने अपनी पजामी (सलवार) जो मेरी टाँगों से चिपकी हुई थी, उसका नाड़ा खोलना शुरू किया तो रॉकी पहले से ही मेरी पजामी को सूँघने लगा।
मैंने अपने चूतड़ उठा कर अपनी पजामी को नीचे किया और फ़िर अपने सैंडल पहने पैरों से निकाल कर अलग कर दिया। मेरी पैंटी पर चूत वाली जगह पर मेरी चूत का रस लगा हुआ था। रॉकी इसे तेजी से सूँघने लगा और फ़िर मैं खड़ी हो गयी और मैंने अपनी पैंटी भी उतार फेंकी। अब मैं बिल्कुल नंगी थी और बस पैरों में काले रंग के ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने हुए थे। मेरी चिकनी चूत को देख कर रॉकी मेरी टाँगों में मुँह घुसाने लगा और मेरी जाँघों पर अपनी जुबान से चाटने लगा।
एक तो पहले से ही शराब का नशा था और रॉकी की हरकतों से तो मैं और ज्यादा मदहोश हुई जा रही थी। मैं बेड के किनारे पर बैठ गयी और अपनी टाँगें फैला दी। रॉकी के सामने मेरी चूत के होंठ खुल गये जिसमें रॉकी ने जल्दी से अपनी जुबान का एक तगड़ा वार किया और मैं सर से पाँव तक उछल पड़ी। मुझे इतना मज़ा तो किसी मर्द से चूत चटवा कर भी नहीं आया था जितना मज़ा रॉकी मेरी चूत चाट कर दे रहा था। जब रॉकी अपनी जुबान को मेरी चूत पर ऊपर नीचे करता और उसकी जुबान मेरी चूत के दाने से टकराती जिसके कारण मैं भी अपनी चूत को मसलने लगी और मेरी चूत में से मेरे चूत-रस की एक तेज धार निकल कर रॉकी की जुबान पर गिरी। रॉकी को तो जैसे मलाई मिल गयी हो। वो और भी तेजी से चूत को चाटने लगा और अपनी जुबान को चूत के अंदर तक घुसेड़ने की कोशिश करने लगा। मैंने देखा रॉकी का लंड भी थोड़ा सा बाहर दिखायी दे रहा था और मुझसे भी अब और सब्र नहीं हो रहा था।
मैं ज़मीन पर ही कुत्तिया की तरह घुटनों के और अपने हाथों के बल बैठ गयी ताकि रॉकी मुझे कुत्तिया समझ कर मेरे पीछे से मेरे ऊपर चढ़ जाये। मगर वो तो मेरी साइड में से होकर मेरी चूत को ही चाटने की कोशिश कर रहा था। मैं कुत्तिया की तरह चल कर घूम गयी और अपनी चूत पीछे से उसके सामने कर दी। वो फ़िर से मेरी चूत को चाटने लगा। रॉकी पालतू कुत्ता था और उसने पहले कभी किसी कुत्तिया को नहीं चोदा था और चुदाई का उसे कोई तजुर्बा नहीं था। काफी देर के बाद भी जब वो मेरे ऊपर नहीं चढ़ा तो मैं अपने पैरों पर गाँड के बल बैठ गयी और मैंने उसके दोनों अगले पाँव पकड़े और उनको अपनी कमर के साथ लपेट लिया और फ़िर से आगे की ओर झुक गयी। इससे वो मेरी कमर पर आ गया, मगर उसका लंड अभी मेरी चूत तो क्या टाँगों से भी नहीं छू रहा था। मैं आगे से और नीचे झुक गयी और ज़मीन पर अपना सर लगा कर रॉकी के दोनों पाँव आगे को खींच लिये, जिससे अब रॉकी का लंड मेरी चूत के साथ टकरा गया। रॉकी को भी ये अच्छा लगा और वो भी अपनी कमर हिला-हिला कर अपना लंड मेरी चूत के इधर-उधर ठोकने लगा और अपने अगले पैरों से मेरी कमर को कस के पकड़ लिया। मगर उसका लंड अभी मेरी चूत में नहीं घुसा था।
मैं अपना एक हाथ पीछे लायी और रॉकी का लंड अपनी उंगलियों में हल्का सा पकड़ लिया। उसके लंड का अगला हिस्सा बहुत पतला महसूस हो रहा था। मेरी उंगलियों के स्पर्श से रॉकी को शायद ऐसा लगा कि उसका लंड मेरी चूत में घुस गया है तो वो जोर-जोर से धक्के मारने लगा और अपने अगले पाँव से मुझे अपनी ओर खींचने लगा। इतने तेज झटकों से मेरे हाथ से भी लंड इधर उधर हो रहा था और चूत में नहीं जा रहा था। मगर फ़िर अचानक रॉकी का लंड सही ठिकाने पर टकराया और तेजी से मेरी चूत में करीब दो इंच तक घुस गया। उसका लंड मेरी चूत की दीवारों से ऐसे टकराया जैसे कोई तेज धार वाला चाकू मेरी चूत में घुस गया हो। इस वार ने मेरा तो बैलेंस ही बिगाड़ कर रख दिया। मैंने जल्दी से लंड को छोड़ा और अपना हाथ आगे ज़मीन पर लगा कर गिरते-गिरते बची। उधर रॉकी भी मुझे अपनी ओर खींच रहा था तो उसका भी सहारा मिल गया। मगर इतनी देर में रॉकी का एक और धक्का लगा और उसका लंड दोबारा मेरी चूत की दीवारों से रगड़ता हुआ पहले से भी ज्यादा अंदर घुस गया। मेरे मुँह से फ़िर ‘आह’ की आवाज़ निकल गयी।
मैं समझ गयी कि कुत्ता तो मुझे कुत्ते की तरह ही चोदेगा। इसलिये मैं झट से संभल गयी और अगले वार के लिये तैयार भी हो गयी। रॉकी ने लंड को थोड़ा सा बाहर निकाल के फ़िर से लंड को मेरी चूत में घुसेड़ दिया। मैंने भी अपनी चूत को हिला कर लंड के धक्के सहने के लिये अड्जस्ट कर लिया। रॉकी के हर वार से मुझे मीठा-मीठा एहसास होने लगा था। रॉकी की ज़ुबान बाहर थी और वो मेरे कंधे के ऊपर से अपना मुँह आगे को निकाले हुए था और अपने अगले दोनों पैरों से मेरी कमर को इस तरह से पकड़े हुए था कि मेरी कमर उसके धक्के से आगे ना जा सके। अब ज़रा भी दर्द बाकी नहीं रहा था, बस मज़ा ही मज़ा था। रॉकी के लंड का आगे वाला पतला नोकीला हिस्सा जब मेरी चूत के अंदर तक जाता तो एक अजीब सा नशा मेरी चूत में घुल जाता था।
मगर अब फ़िर एक दर्दनाक हमला होने वाला था। रॉकी का लंड फूल कर अब मुझे कुछ ज्यादा ही मोटा महसूस होने लगा। मैंने इंटरनेट पे कुत्ते से चुदाई वाली फिल्मों में देखा तो था कि कुत्ते का लंड पीछे से एक गेंद कि तरह फूल जाता है और जो चूत में घुस जाता है। मगर इस हिस्से को चूत में लेने से अब मैं घबरा रही थी। मैंने पीछे हाथ लगा कर देखा तो सच में रॉकी का लंड एक गेंद के जैसे गोल फूला हुआ था और मोटा भी काफी था। रॉकी तो लगातार अपने धक्के तेज कर रहा था, ताकि उसका वो मोटा हिस्सा भी मेरी चूत में घुस जाये। मगर मैं जानबूझ कर उसका झटका लगते ही अपने आप को आगे ढकेल देती ताकि उसका वो मोट हिस्सा मेरी चूत में ना जाये।
पर रॉकी को ये सब मंज़ूर नहीं था। वो अपना काम अधूरा नहीं छोड़ने वाला था। उसने मुझे अपने अगले पैरों से कस के जकड़ लिया और अपने पीछे वाले पैर भी और आगे कर लिये। अब उसकी टाँगें मेरी जाँघों के साथ चिपकी हुई थीं। मुझे एहसास हो गया था कि अब रॉकी मेरे बलात्कार पर उतर आया है। रॉकी फ़िर से अपने मोटे लंड का प्रहार मेरी चूत पर करने लगा था और हर एक धक्के से मुझे एहसास होता कि उसका मोटा गेंद वाला हिस्सा मेरी चूत में घुस रहा है।
मैंने एक बार कोशिश भी कि के रॉकी के आगे वाले पैरों से छूट जाऊँ, मगर उसने मुझे इतनी मजबूती से जकड़ रखा था कि मैं डर गयी कि उसके नाखून मेरे बदन में न लग जायें। अब मैंने मोटे गेंद जैसे हिस्से को चूत में घुसवा लेना ही ठीक समझा। मेरी चूत मुझे फैलती हुई महसूस होने लगी और इससे दर्द भी होने लगा था। मेरे मुँह से ‘आह-आह’ की आवाजें निकलने लगी थी। मगर रॉकी को तो मज़ा आ रहा था। वो हर धक्के के साथ मुझे अपनी ओर खींच लेता और पीछे से जोरदार झटका लगा देता।
फिर एक और झटका लगा और उसका गेंद वाला हिस्सा भी पुरा मेरी चूत में घुस गया। मेरे मुँह से चींख निकल गयी। मेरी चूत का मुँह जो बुरी तरह फैल कर फट रहा था अब फिर से नॉर्मल हो गया जिससे मुझे कुछ राहत मिली। मगर मुझे अपनी चूत में वो गेंद जैसा हिस्सा ठूँसा हुआ थोड़ा अजीब भी लग रहा था और मज़ा भी आ रहा था। अब रॉकी थोड़ी देर के लिये रुका और फ़िर से झटके लगाने लगा।
मैं भी उसके साथ अपनी कमर हिलाने लगी। मगर अब उसका लंड चूत में फंस चुका था। वो बाहर नहीं आ रहा था और अंदर ही अपना कमाल दिखा रहा था। इतनी देर में रॉकी ने तेज-तेज कमर हिलायी और फ़िर अपनी कमर को ऊपर उठा कर मुझे जोरदार धक्का लगाते हुए कस के जकड़ लिया। मुझे भी अपनी चूत में उसके लंड का तेज झटका लगा, जो अब तक के झटकों से सब से आगे तक पहुँचा था और फ़िर रॉकी के लंड का गरम-गरम पानी मैंने अपनी चूत में महसूस किया। रॉकी के तेज झटकों की वजह से मैंने भी एक बार फ़िर से अपना पानी छोड़ दिया। उधर रॉकी ने मेरी चूत में जितनी भी पिचकारियाँ छोड़ी मुझे सब का बारी-बारी एहसास हुआ। मैं बेहद मज़े और मस्ती में थी और थोड़ी देर ऐसे ही लंड को चूत में रखना चाहती थी। मगर रॉकी जो बुरी तरह से हाँफ रहा था, उसने मेरी कमर को छोड़ दिया और एक साइड को उतरने लगा।
मेरी चूत में उसके लंड का गेंद वाला हिस्सा फंसा हुआ था और रॉकी के नीचे उतरने से मेरी चूत पर बहुत प्रेशर पड़ा और दर्द का एहसास होने लगा। इसलिये मैंने झट से उसकी दोनों टाँगें पकड़ी और उसको उतरने से रोक लिया। मगर रॉकी अब रुकने वाला नहीं था, वो बेतहाशा हाँफ रहा था। रॉकी अपने अगले पाँव मेरे ऊपर से हटा कर नीचे उतर गया और घूम कर खड़ा हो गया लेकिन उसका लंड मेरी चूत में वैसे ही फंसा रहा। मुझे एहसास हुआ कि उसके लंड से मेरी चूत में अब भी काफी रस बह रहा था। मैं ऐसे ही पंद्रह-बिस मिनट तक कुत्तिया की तरह रॉकी से जुड़ी रही जैसे कि अक्सर कुत्ते-कुत्तिया आपस में चिपके दिखायी देते हैं। फिर मुझे अपनी चूत में रॉकी के लंड का गेंद वाला हिस्सा थोड़ा ढीला होता महसूस हुआ तो मैंने एक हाथ से उसके लंड को पकड़ा और पीछे कि तरफ़ खींचा तो उसका मोटा हिस्सा बाहर आने लगा। जैसे ही उसका गेंद जैसा मोटा लंड मेरी चूत में से बाहर आया तो मेरी चूत में से ‘फ़च’ की आवाज आयी जैसे की शैम्पेन की बोतल खोली हो। रॉकी भी शायद इसी के इंतज़ार में था। लंड बाहर निकलते ही वो एक कोने में जाकर बैठ गया।
अब मैंने उसका पूरा लंड लटका हुआ देखा। करीब सात-आठ इंच का होगा और आखिर में वो मोटा गेंद वाला हिस्सा अभी भी काफी फूला हुआ था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी मोटी गेंद मेरी चूत में घुसी थी। मैं उसके लंड की तरफ़ देखती रही और खुद भी सीधी होकर बैठ गयी। मेरी चूत में से मेरा और रॉकी का मिला जुला माल बहने लगा। मैं नीचे ही फ़र्श पर बैठी थी और नीचे ही मेरी चूत में से निकल रहा पानी फ़ैल रहा था। मैं भी निढाल होकर बैठ गयी और रॉकी की तरफ़ देखती रही। रॉकी अपने लंड को चाट रहा था और थोड़ी देर में ही वो अपने पैर पे पैर रख कर सो गया और धीरे धीरे उसका लंड भी छोटा होकर खोल में समा गया।
जब मैं उठ कर खड़ी हुई तो मेरी चूत में से निकलता मेरा और रॉकी का मिला-जुला माल मेरी टाँगों से होता हुआ मेरे पैरों और सैंडलों के बीच में बहने लगा। मैंने बाथरूम में जाकर पेशाब किया। मेरी चूत टाँगें और सैंडलों में मेरे पैर चिपचिपा रहे थे और बेडरूम के फर्श पर भी काफी रस फैला हुआ था मगर उस वक्त मैंने कुछ साफ नहीं किया। बस बेडरूम में आकर धम्म से बेड पर लुढ़क गयी और सो गयी।
!!! समाप्त !!!
भाग ७. जब कुत्ते ने मुझे चोदा
लेखिका : कोमलप्रीत कौर
भाग-६ (कॉलेज़ के गबरू) से आगे....
जैसे कि अपनी पिछली कहानियों में बता चुकी हूँ कि मेरा नाम कोमल प्रीत कौर है और मेरे पति आर्मी में मेजर है। उनकी पोस्टिंग दूर-दराज़ के सीमावर्ती इलाकों पर होती तहती है और इसलिये मैं अपनी सास और ससुर के साथ जालंधर के पास एक गाँव में रहती हूँ जहाँ हमारी पुश्तैनी कोठी और काफी ज़मीन-जायदाद है। मैं बहुत ही चुदक्कड़ किस्म की औरत हूँ। मेरी चुदाई की प्यास इतनी ज्यादा है कि दिन में कम से कम आठ-दस बार तो मुठ मार कर झड़ती ही हूँ।
मेरी उम्र तीस की है। मैं स्लिम और सैक्सी बदन की मालकिन हूँ। मेरी लम्बाई वास्तव में हालांकि पाँच फुट तीन इंच है पर दिखने मैं पाँच फुट सात इंच के करीब लगती हूँ क्योंकि मुझे हर वक्त ऊँची ऐड़ी की चप्पल सैंडल पहनने का शौक है। मेरा गोरा बदन, बड़े-बड़े गोल मटोल चूतड़ (३६) और उसके ऊपर पतली सी कमर (२८) और फ़िर गठीले तने हुए गोल गोल मम्मे (३४) और मेरी कमर के ऊपर लहराते मेरे चूतड़ों तक लंबे काले घने बाल किसी का भी लंड खड़ा करने के लिये काफी हैं। मगर फ़िर भी जब मैं अपने हुस्न के नखरे और अपनी कातिलाना अदायें बिखेरती हूँ तो बुढ्ढों के भी लंड खड़े होते मैंने देखे हैं। मैंने कईयों से चुदाई भी करवाई है जिसमें से कुछ किस्से पिछली कहानियों में बता चुकी हूँ।
जैसे कि आपको पता है कि रात को बेडरूम में शराब की चुस्कियाँ लेते हुए मुझे कंप्यूटर पर वयस्क वेबसाइटों पर नंगी ब्लू-फिल्में देखते हुए मुठ मारने की आदत है। ऐसे ही एक दिन मैं जब इंटरनेट पर ब्लू-फिल्में देखने के लिये सर्च कर रही थी तो एक वेबसाइट पर कुत्ते के साथ चुदाई की क्लिप मिली जिसमें दो औरतें कुत्ते के लण्ड से चुदवा रही थीं। इसे देख कर मैं बहुत उत्तेजित हो गयी और सोडे की बोतल चूत में घुसेड़ कर खुब मुठ मारी। फिर मेरा भी दिल करने लगा कि मैं भी हमारे कुत्ते रॉकी से चुदाई करवा के देखूँ। मगर घर में सास और ससुर के होते ये होना मुश्किल था।
रॉकी ज्यादातर मेरे ससुर जी के साथ ही रहता था। रात को भी उनके कमरे में ही सोता था। वैसे भी कुत्ते से चुदाई का कोई तजुर्बा तो था नहीं इसलिए रॉकी से जल्दबाज़ी में तो चुदाई हो नहीं सकती थी। रॉकी को किसी तरह फुसला कर अपनी इस कामुक इच्छा को अंजाम देने के लिये मुझे पूरी प्राइवसी की जरूरत थी। अपनी वासना में बहक कर फिर भी मैं मौका देख कर कभी-कभी रॉकी को प्यार से पुचकारती और उसके लंड वाली जगह पर हाथ लगा देती तो रॉकी भी एक बार चिहुंक उठता। मैं तो कुत्ते के लंड कि इतनी प्यासी थी कि मेरा मन हर वक्त रॉकी के लंड वाली जगह पर ही टिका रहता। हर रोज़ रात को इंटरनेट पर कुत्तों से औरतों की चुदाई की फिल्में देख कर मुठ मारने लगी और दिन में कईं बार बाथरूम में या बेडरूम में जा कर रॉकी के बारे में सोचते हुए मुठ मारती।
फिर एक दिन मुझे मौका मिल ही गया। मेरे सास और ससुर को कुछ दिनों के लिये कहीं रिश्तेदारों में जाना था। वो दोपहर घर से करीब तीन बजे निकले और फ़िर मैंने भी जल्दी-जल्दी घर का काम निपटाया। रॉकी उस दिन सुबह से हमारे खेत पर था। मैंने खेतों की देखभाल करने वाले नौकर को फोन करके रॉकी को घर वापस लाने के लिये कह दिया। वो बोला कि कुछ जरूरी काम निपटाने के बाद करीब दो घंटे में रॉकी को घर छोड़ जायेगा। मुझे बहुत गुस्सा आया और एक बार तो मन किया कि खुद ही कार ले कर वहाँ जाऊँ और रॉकी को ले आऊँ। मगर फिर मैंने सोचा कि क्यों ना रॉकी को आकर्षित करने के लिये इतनी देर मैं थोड़ा सज-संवर कर तैयार हो लूँ। हालाँकि कुत्ते के लिये सजने संवरने का ख्याल बेकार का था लेकिन फिर भी मैंने नहा-धो कर अच्छा सा सलवार-कमीज़ और हाई हील के सैंडल पहने और मेक-अप भी किया।
तैयार होने में करीब एक घंटा ही निकला और रॉकी के आने में अभी भी करीब एक और घंटा बाकी था। मुझसे तो उत्तेजना और बेचैनी में इंतज़ार ही नहीं हो रहा था। कुछ और सूझा नहीं तो व्हिस्की का पैग पीते हुए मैं लैपटॉप पर कुत्ते से चुदाई की फिल्म देखने लगी। तीन औरतें दो कुत्तों के साथ चुदाई का मज़ा ले रही थीं। उनमें एक रॉकी कि तरह ही भूरा ऐल्सेशन कुत्ता था और दूसरा बड़ा सफेद कुत्ता शायद लैब्राडोर था। वो तीनों औरतें उनके लंड चूस रही थीं और अपनी चूत भी चटवा रही थीं। फिर उनमें से एक औरत अपनी चूत में कुत्ते का लंड लेकर चुदवाने लगी और एक औरत दूसरे कुत्ते से गाँड मरवाने लगी। मैंने अपनी पजामी में हाथ डाल कर चूत सहलाना शुरू कर दिया। करीब आधे घंटे बाद वो फिल्म खत्म हुई। इस दौरान मेरी चूत तीन बार झड़ी। अब तक मैंने व्हिस्की के दो पैग पी लिये थे और मुझ पे शराब की सुहानी सी खुमारी छा गयी थी। अपनी पिछली कहानियों में मैं ज़िक्र कर चुकी हूँ कि मुझे चुदाई से पहले शराब पीना अच्छा लगता है मगर शराब मैं इतनी ही पीती हूँ कि मुझे इतना ज्यादा नशा ना चढ़े कि मैं खुद को संभाल ना सकूँ। वैसे कईं बार ज्यादा भी हो जाती है।
अगले आधे घंटे में मैंने शराब का एक छोटा पैग और पिया। फिर खेत पे काम करने वाले नौकर ने घंटी बजायी तो रॉकी को अंदर लेकर मैंने दरवाजे को लॉक किया और रॉकी को पुचकारती हुई अपने बेडरूम में ले गयी और उसका भी दरवाजा बंद कर दिया। पहले तो मैंने उसके साथ बहुत प्यार किया और कपड़े उतारे बगैर ही उसे अपने बदन से चिपकती रही। रॉकी भी अपनी जुबान निकाल कर मुझे इधर उधर चाटने लगा। उसकी खुरदरी जुबान जब मेरी गर्दन के ऊपर चलती तो बहुत मज़ा आता। मैं नीचे ही टाँगें फैला कर उसके सामने बैठ गयी और फ़िर अपनी कमीज़ को उतार दिया। मेरे बूब्स मेरी ब्रा में से बाहर आने को थे।
मैंने रॉकी का मुँह पकड़ कर अपने मम्मों की तरफ़ किया तो वो सूँघ कर धीरे-धीरे से अपनी जुबान मेरे मम्मों के ऊपरी हिस्से पर रगड़ने लगा। ‘आअहहह’ क्या एहसास था उसकी खुरदरी जुबान का। वो ब्रा के बीच भी अपना मुँह डालने की कोशिश करता मगर ब्रा टाईट होने के कारण उसका मुँह अंदर नहीं जा पाता था। मगर उसकी जुबान थोड़ी सी निप्पल को छू जाती तो मेरे तन बदन में और भी बिजली दौड़ जाती।
अब मैंने अपनी ब्रा के हुक पीछे सो खोल दिये और फ़िर ब्रा को भी उतार दिया। रॉकी अब इन खुले कबूतरों को देख कर और भी तेजी से निप्पल पर अपनी जुबान चलाने लगा। वो अपनी पूँछ को बड़े अंदाज़ से हिला रहा था। मैं उसकी पीठ पर हाथ घुमाने लगी और फ़िर अपना हाथ उसके लंड कि तरफ़ ले गयी। जब मैंने रॉकी का लंड हाथ में पकड़ा तो शायद वो परेशान हो गया और जल्दी से मुढ़ कर मेरे हाथ की तरफ़ लपका। मैंने उसका लंड छोड़ दिया मगर मुझे उसके लंड की जगह वाला हिस्सा काफी सख्त लगा। रॉकी फ़िर से मेरे निप्पल को चाटने लगा। अब मैंने अपनी पजामी (सलवार) जो मेरी टाँगों से चिपकी हुई थी, उसका नाड़ा खोलना शुरू किया तो रॉकी पहले से ही मेरी पजामी को सूँघने लगा।
मैंने अपने चूतड़ उठा कर अपनी पजामी को नीचे किया और फ़िर अपने सैंडल पहने पैरों से निकाल कर अलग कर दिया। मेरी पैंटी पर चूत वाली जगह पर मेरी चूत का रस लगा हुआ था। रॉकी इसे तेजी से सूँघने लगा और फ़िर मैं खड़ी हो गयी और मैंने अपनी पैंटी भी उतार फेंकी। अब मैं बिल्कुल नंगी थी और बस पैरों में काले रंग के ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने हुए थे। मेरी चिकनी चूत को देख कर रॉकी मेरी टाँगों में मुँह घुसाने लगा और मेरी जाँघों पर अपनी जुबान से चाटने लगा।
एक तो पहले से ही शराब का नशा था और रॉकी की हरकतों से तो मैं और ज्यादा मदहोश हुई जा रही थी। मैं बेड के किनारे पर बैठ गयी और अपनी टाँगें फैला दी। रॉकी के सामने मेरी चूत के होंठ खुल गये जिसमें रॉकी ने जल्दी से अपनी जुबान का एक तगड़ा वार किया और मैं सर से पाँव तक उछल पड़ी। मुझे इतना मज़ा तो किसी मर्द से चूत चटवा कर भी नहीं आया था जितना मज़ा रॉकी मेरी चूत चाट कर दे रहा था। जब रॉकी अपनी जुबान को मेरी चूत पर ऊपर नीचे करता और उसकी जुबान मेरी चूत के दाने से टकराती जिसके कारण मैं भी अपनी चूत को मसलने लगी और मेरी चूत में से मेरे चूत-रस की एक तेज धार निकल कर रॉकी की जुबान पर गिरी। रॉकी को तो जैसे मलाई मिल गयी हो। वो और भी तेजी से चूत को चाटने लगा और अपनी जुबान को चूत के अंदर तक घुसेड़ने की कोशिश करने लगा। मैंने देखा रॉकी का लंड भी थोड़ा सा बाहर दिखायी दे रहा था और मुझसे भी अब और सब्र नहीं हो रहा था।
मैं ज़मीन पर ही कुत्तिया की तरह घुटनों के और अपने हाथों के बल बैठ गयी ताकि रॉकी मुझे कुत्तिया समझ कर मेरे पीछे से मेरे ऊपर चढ़ जाये। मगर वो तो मेरी साइड में से होकर मेरी चूत को ही चाटने की कोशिश कर रहा था। मैं कुत्तिया की तरह चल कर घूम गयी और अपनी चूत पीछे से उसके सामने कर दी। वो फ़िर से मेरी चूत को चाटने लगा। रॉकी पालतू कुत्ता था और उसने पहले कभी किसी कुत्तिया को नहीं चोदा था और चुदाई का उसे कोई तजुर्बा नहीं था। काफी देर के बाद भी जब वो मेरे ऊपर नहीं चढ़ा तो मैं अपने पैरों पर गाँड के बल बैठ गयी और मैंने उसके दोनों अगले पाँव पकड़े और उनको अपनी कमर के साथ लपेट लिया और फ़िर से आगे की ओर झुक गयी। इससे वो मेरी कमर पर आ गया, मगर उसका लंड अभी मेरी चूत तो क्या टाँगों से भी नहीं छू रहा था। मैं आगे से और नीचे झुक गयी और ज़मीन पर अपना सर लगा कर रॉकी के दोनों पाँव आगे को खींच लिये, जिससे अब रॉकी का लंड मेरी चूत के साथ टकरा गया। रॉकी को भी ये अच्छा लगा और वो भी अपनी कमर हिला-हिला कर अपना लंड मेरी चूत के इधर-उधर ठोकने लगा और अपने अगले पैरों से मेरी कमर को कस के पकड़ लिया। मगर उसका लंड अभी मेरी चूत में नहीं घुसा था।
मैं अपना एक हाथ पीछे लायी और रॉकी का लंड अपनी उंगलियों में हल्का सा पकड़ लिया। उसके लंड का अगला हिस्सा बहुत पतला महसूस हो रहा था। मेरी उंगलियों के स्पर्श से रॉकी को शायद ऐसा लगा कि उसका लंड मेरी चूत में घुस गया है तो वो जोर-जोर से धक्के मारने लगा और अपने अगले पाँव से मुझे अपनी ओर खींचने लगा। इतने तेज झटकों से मेरे हाथ से भी लंड इधर उधर हो रहा था और चूत में नहीं जा रहा था। मगर फ़िर अचानक रॉकी का लंड सही ठिकाने पर टकराया और तेजी से मेरी चूत में करीब दो इंच तक घुस गया। उसका लंड मेरी चूत की दीवारों से ऐसे टकराया जैसे कोई तेज धार वाला चाकू मेरी चूत में घुस गया हो। इस वार ने मेरा तो बैलेंस ही बिगाड़ कर रख दिया। मैंने जल्दी से लंड को छोड़ा और अपना हाथ आगे ज़मीन पर लगा कर गिरते-गिरते बची। उधर रॉकी भी मुझे अपनी ओर खींच रहा था तो उसका भी सहारा मिल गया। मगर इतनी देर में रॉकी का एक और धक्का लगा और उसका लंड दोबारा मेरी चूत की दीवारों से रगड़ता हुआ पहले से भी ज्यादा अंदर घुस गया। मेरे मुँह से फ़िर ‘आह’ की आवाज़ निकल गयी।
मैं समझ गयी कि कुत्ता तो मुझे कुत्ते की तरह ही चोदेगा। इसलिये मैं झट से संभल गयी और अगले वार के लिये तैयार भी हो गयी। रॉकी ने लंड को थोड़ा सा बाहर निकाल के फ़िर से लंड को मेरी चूत में घुसेड़ दिया। मैंने भी अपनी चूत को हिला कर लंड के धक्के सहने के लिये अड्जस्ट कर लिया। रॉकी के हर वार से मुझे मीठा-मीठा एहसास होने लगा था। रॉकी की ज़ुबान बाहर थी और वो मेरे कंधे के ऊपर से अपना मुँह आगे को निकाले हुए था और अपने अगले दोनों पैरों से मेरी कमर को इस तरह से पकड़े हुए था कि मेरी कमर उसके धक्के से आगे ना जा सके। अब ज़रा भी दर्द बाकी नहीं रहा था, बस मज़ा ही मज़ा था। रॉकी के लंड का आगे वाला पतला नोकीला हिस्सा जब मेरी चूत के अंदर तक जाता तो एक अजीब सा नशा मेरी चूत में घुल जाता था।
मगर अब फ़िर एक दर्दनाक हमला होने वाला था। रॉकी का लंड फूल कर अब मुझे कुछ ज्यादा ही मोटा महसूस होने लगा। मैंने इंटरनेट पे कुत्ते से चुदाई वाली फिल्मों में देखा तो था कि कुत्ते का लंड पीछे से एक गेंद कि तरह फूल जाता है और जो चूत में घुस जाता है। मगर इस हिस्से को चूत में लेने से अब मैं घबरा रही थी। मैंने पीछे हाथ लगा कर देखा तो सच में रॉकी का लंड एक गेंद के जैसे गोल फूला हुआ था और मोटा भी काफी था। रॉकी तो लगातार अपने धक्के तेज कर रहा था, ताकि उसका वो मोटा हिस्सा भी मेरी चूत में घुस जाये। मगर मैं जानबूझ कर उसका झटका लगते ही अपने आप को आगे ढकेल देती ताकि उसका वो मोट हिस्सा मेरी चूत में ना जाये।
पर रॉकी को ये सब मंज़ूर नहीं था। वो अपना काम अधूरा नहीं छोड़ने वाला था। उसने मुझे अपने अगले पैरों से कस के जकड़ लिया और अपने पीछे वाले पैर भी और आगे कर लिये। अब उसकी टाँगें मेरी जाँघों के साथ चिपकी हुई थीं। मुझे एहसास हो गया था कि अब रॉकी मेरे बलात्कार पर उतर आया है। रॉकी फ़िर से अपने मोटे लंड का प्रहार मेरी चूत पर करने लगा था और हर एक धक्के से मुझे एहसास होता कि उसका मोटा गेंद वाला हिस्सा मेरी चूत में घुस रहा है।
मैंने एक बार कोशिश भी कि के रॉकी के आगे वाले पैरों से छूट जाऊँ, मगर उसने मुझे इतनी मजबूती से जकड़ रखा था कि मैं डर गयी कि उसके नाखून मेरे बदन में न लग जायें। अब मैंने मोटे गेंद जैसे हिस्से को चूत में घुसवा लेना ही ठीक समझा। मेरी चूत मुझे फैलती हुई महसूस होने लगी और इससे दर्द भी होने लगा था। मेरे मुँह से ‘आह-आह’ की आवाजें निकलने लगी थी। मगर रॉकी को तो मज़ा आ रहा था। वो हर धक्के के साथ मुझे अपनी ओर खींच लेता और पीछे से जोरदार झटका लगा देता।
फिर एक और झटका लगा और उसका गेंद वाला हिस्सा भी पुरा मेरी चूत में घुस गया। मेरे मुँह से चींख निकल गयी। मेरी चूत का मुँह जो बुरी तरह फैल कर फट रहा था अब फिर से नॉर्मल हो गया जिससे मुझे कुछ राहत मिली। मगर मुझे अपनी चूत में वो गेंद जैसा हिस्सा ठूँसा हुआ थोड़ा अजीब भी लग रहा था और मज़ा भी आ रहा था। अब रॉकी थोड़ी देर के लिये रुका और फ़िर से झटके लगाने लगा।
मैं भी उसके साथ अपनी कमर हिलाने लगी। मगर अब उसका लंड चूत में फंस चुका था। वो बाहर नहीं आ रहा था और अंदर ही अपना कमाल दिखा रहा था। इतनी देर में रॉकी ने तेज-तेज कमर हिलायी और फ़िर अपनी कमर को ऊपर उठा कर मुझे जोरदार धक्का लगाते हुए कस के जकड़ लिया। मुझे भी अपनी चूत में उसके लंड का तेज झटका लगा, जो अब तक के झटकों से सब से आगे तक पहुँचा था और फ़िर रॉकी के लंड का गरम-गरम पानी मैंने अपनी चूत में महसूस किया। रॉकी के तेज झटकों की वजह से मैंने भी एक बार फ़िर से अपना पानी छोड़ दिया। उधर रॉकी ने मेरी चूत में जितनी भी पिचकारियाँ छोड़ी मुझे सब का बारी-बारी एहसास हुआ। मैं बेहद मज़े और मस्ती में थी और थोड़ी देर ऐसे ही लंड को चूत में रखना चाहती थी। मगर रॉकी जो बुरी तरह से हाँफ रहा था, उसने मेरी कमर को छोड़ दिया और एक साइड को उतरने लगा।
मेरी चूत में उसके लंड का गेंद वाला हिस्सा फंसा हुआ था और रॉकी के नीचे उतरने से मेरी चूत पर बहुत प्रेशर पड़ा और दर्द का एहसास होने लगा। इसलिये मैंने झट से उसकी दोनों टाँगें पकड़ी और उसको उतरने से रोक लिया। मगर रॉकी अब रुकने वाला नहीं था, वो बेतहाशा हाँफ रहा था। रॉकी अपने अगले पाँव मेरे ऊपर से हटा कर नीचे उतर गया और घूम कर खड़ा हो गया लेकिन उसका लंड मेरी चूत में वैसे ही फंसा रहा। मुझे एहसास हुआ कि उसके लंड से मेरी चूत में अब भी काफी रस बह रहा था। मैं ऐसे ही पंद्रह-बिस मिनट तक कुत्तिया की तरह रॉकी से जुड़ी रही जैसे कि अक्सर कुत्ते-कुत्तिया आपस में चिपके दिखायी देते हैं। फिर मुझे अपनी चूत में रॉकी के लंड का गेंद वाला हिस्सा थोड़ा ढीला होता महसूस हुआ तो मैंने एक हाथ से उसके लंड को पकड़ा और पीछे कि तरफ़ खींचा तो उसका मोटा हिस्सा बाहर आने लगा। जैसे ही उसका गेंद जैसा मोटा लंड मेरी चूत में से बाहर आया तो मेरी चूत में से ‘फ़च’ की आवाज आयी जैसे की शैम्पेन की बोतल खोली हो। रॉकी भी शायद इसी के इंतज़ार में था। लंड बाहर निकलते ही वो एक कोने में जाकर बैठ गया।
अब मैंने उसका पूरा लंड लटका हुआ देखा। करीब सात-आठ इंच का होगा और आखिर में वो मोटा गेंद वाला हिस्सा अभी भी काफी फूला हुआ था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी मोटी गेंद मेरी चूत में घुसी थी। मैं उसके लंड की तरफ़ देखती रही और खुद भी सीधी होकर बैठ गयी। मेरी चूत में से मेरा और रॉकी का मिला जुला माल बहने लगा। मैं नीचे ही फ़र्श पर बैठी थी और नीचे ही मेरी चूत में से निकल रहा पानी फ़ैल रहा था। मैं भी निढाल होकर बैठ गयी और रॉकी की तरफ़ देखती रही। रॉकी अपने लंड को चाट रहा था और थोड़ी देर में ही वो अपने पैर पे पैर रख कर सो गया और धीरे धीरे उसका लंड भी छोटा होकर खोल में समा गया।
जब मैं उठ कर खड़ी हुई तो मेरी चूत में से निकलता मेरा और रॉकी का मिला-जुला माल मेरी टाँगों से होता हुआ मेरे पैरों और सैंडलों के बीच में बहने लगा। मैंने बाथरूम में जाकर पेशाब किया। मेरी चूत टाँगें और सैंडलों में मेरे पैर चिपचिपा रहे थे और बेडरूम के फर्श पर भी काफी रस फैला हुआ था मगर उस वक्त मैंने कुछ साफ नहीं किया। बस बेडरूम में आकर धम्म से बेड पर लुढ़क गयी और सो गयी।
!!! समाप्त !!!