मैं भी झट-पट बिस्तर समेटने लगा, और हम दोनो जल्दी से नीचे की ओर भागे। नीचे पहुंच कर राखी, अपने कमरे में घुस गई। मैं भी उसके के पिछे-पिछे उसके कमरे में पहुंच गया । राखी ने खिडकी खोल दी, और लाईट जला दी। खिडकी से बडी अच्छी, ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी। राखी जैसे ही पलंग पर बैठी, मैं भी बैठ गया । और राखी से बोला,
" अब दिखा दो ना। अब तो घर में आ गये है, हम लोग।" इस पर राखी मुस्कुराते हुए बोली,
"लगता है, आज तेरी किसमत बडी अच्छी है। आज तुझे मालपुआ खाने को तो नही, पर देखने को जुरुर मिल जायेगा।"
फिर राखी ने अपना सिर पलंग पे टीका के, अपने दोनो पैर सामने फैला दिये और अपने निचले होंठो को चबाते हुए बोली,
"इधर आ, मेरे पैरो के बीच में, अभी तुझे दिखाती हुं। पर एक बात जान ले, तु। पहली बार देख रहा है, देखते ही तेरा पानी निकल जायेगा, समझा।"
फिर राखी ने अपने हाथो से पेटिकोट के निचले भाग को पकडा और धीरे-धीरे उपर उठाने लगी। मेरी हिम्मत तो बढ ही चुकी थी, मैने धीरे-से राखी से कहा,
"राखी, ऐसे नही।"
"तो फिर कैसे रे, कैसे देखेगा ?"
"राखी, पुरा खोल के दिखाओ ना ?"
"पुरा खोल के से, तेरा क्या मतलब है ?"
"हाय, पुरे कपडे खोल के। मेरी बडी तमन्ना है कि, मैं तुम्हारे पुरे बदन को नंगा देखुं, बस एक बार।"
इतना सुनते ही राखी ने आगे बढ के मेरे चेहरे को अपने हाथो में थाम लिया और हसते हुए बोली,
"वाह बेटा, अंगुली पकड के पुरा हाथ पकडने की सोच रहे हो, क्या ?"
"राखी छोडो ना ये सब बात, बस एक बार दिखा दो। दिन में तुम कितने अच्छे से बातें कर रही थी, और अभी पता नही क्या हो गया है तुम्हे ? सारे रास्ते सोचता आ रहा था मैं कि, आज कुछ करने को मिलेगा और तुम हो कि,,,,,,,,,,,"
"अच्छा बेटा, अब सारा शरमाना भुल गया। दिन में तो बडा भोला बन रहा था, और ऐसे दिखा रहा था, जैसे कुछ जानता ही नही। पहले कभी किसी को किया है, क्या? या फिर दिन में झुठ बोल रहा था ?"
"हाये कसम से राखी, कभी किसी को नही किया। करना तो दूर की बात है, कभी देखा या छुआ तक नही।"
"चल झुठे, दिन में तो देखा भी था और छुआ भी था।"
"कहां राखी, कहां देखा था ?"
"क्यों, दिन में मेरा तुने देखा नही था, क्या ? और छुआ भी था तुमने तो।"
, हां देखा था, पर पहली बार देखा था। इससे पहले किसी का नही देखा था। तुम पहली हो जिसका मैने देखा था।"
"अच्छा, इससे पहले तुझे कुछ पता नही था, क्या ?"
"नही राखी थोडा बहुत मालुम था।"
"क्या मालुम था ? जरा मैं भी तो सुनु।",
कह कर राखी ने मेरे लंड को फिर से अपने हाथो में पकड लिया और मुठीयाने लगी। इस पर मैं बोला,
"ओह छोड दो राखी, ज्यादा करोगी तो अभी निकल जायेगा।"
"कोई बात नही, अभी निकाल ले। अगर पुरा खोल के दिखा दुन्गी, तो फिर तो तेरा देखते ही निकल जायेगा। पुरा खोलके देखना है ना, अभी ?"
इतना सुनए ही मेरा दिल तो बल्लीयों उछलने लगा। अभी तक तो राखी नखरें कर रही थी, और अभी उसने अचानक ही, जो दिखाने की बात कर दी। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे लंड से पानी निकल जायेगा।
"राखी, सच में दिखाओगी, ना ?"
"हां दिखाउन्गी मेरे राजा भाई , जुरुर दिखाउन्गी। अब तो तु पुरा जवान हो गया है और, काम करने लायक भी हो गया है। अब तो तुझे ही दिखाना है, सब कुछ। और तेरे से अपना सारा काम करवाना है, मुझे।"
बदनाम रिश्ते
Re: बदनाम रिश्ते
राखी और तेजी के साथ मेरे लंड को मुठीया रही थी, और बार-बार मेरे लंड के सुपाडे को अपने अंगुठे से दबा भी रही थी। राखी बोली,
"अभी जल्दी से तेरा निकाल देती हुं, फिर देख तुझे कितना मजा आयेगा। अभी तो तेरी ये हालत है कि, देखते ही झड जायेगा। एक पानी निकाल दे, फिर देख तुझे कितना मजा आता है।"
,,,,,,,,,,,,,,,,,,"ठीक है राखी, निकाल दो एक पानी। मैं तुम्हारा दबाउं ?"
"पुछता क्या है, दबाना ? पर क्या दबायेगा, ये भी तो बता दे ?"
ये बोलते वक्त राखी के चेहरे पर, एक शैतानी भरी कातिल मुस्कुराहट खेल गई।
" वो तुम्हारी छातियां राखी, हाय।"
"छातियां, ये क्या होती है ? ये तो मर्दो की भी होती है, औरतो का तो कुछ और होता है। बता तो सही, नाम तो जानता ही होगाना।"
"चु,,,,,,चु,,,,,, मेरे से नही बोला जायेगा, छोडो नाम को।"
"बोलना, शरमाता क्यों है ? बहिन को खोल के दिखाने के लिये बोलने में नही शरमाता है, पर अंगो के नाम लेने में शरमाता है।"
" तुम्हारी,,,,,,,"
"हां हां, मेरी क्या,,,,,,,,बोल ?"
"तुम्हारी चु उ उ उंची।"
ये शब्द बोल के ही इतना मजा आ गया कि, लगा जैसे लौडा पानी फेंक देगा।
"हां, अब आयाना लाईन पर। दबा मेरी चुचियों को, इससे तेरा पानी जल्दी निकलेगा। हाय, क्या भयंकर लौडा है ? पता नही जब इस उमर में ये हाल है इस छोकरे के लंड का, तो पुरा जवान होगा तो क्या होगा ?"
मैने अपनी दोनो हथेलियों में बहिन की चुचियां भर ली और, उन्हे खूब कस-कस के दबाने लगा। गजब का मजा आ रहा था। ऐसा लगा रहा था, जैसे कि मैं पागल हो जाउन्गा। दोनो चुचियां किसी अनार की तरह सख्त और गुदाज थी। उसके मोटे-मोटे निप्पल भी ब्लाउस के उपर से पकड में आ रहे थे। मैं दोनो निप्पल के साथ-साथ पुरी चुंची को ब्लाउस के उपर से पकड कर दबाये जा रहा था। बहिन के मुंह से अब सिसकारियां निकलने लगी थी, और वो मेरा उत्साह बढाते जा रही थी शाबाश ! ऐसे ही दबा, मेरी चुचियों को। हाय क्या लौडा है ? पता नही, घोडे का है, या सांढ का है ? ठहर जा, अभी इसे चुस के तेरा पानी निकालती हुं।"
कह कर, वो नीचे की ओर झुक गई। जल्दी से मेरा लंड, अपने होंठो के बीच कैद कर लिया और सुपाडे को होंठो के बीच दबा के खूब कस-कस के चुसने लगी। जैसे कि पाईप लगा के, कोई कोका-कोला पीता है। मैं उसकी चुचियों को अब और ज्यादा जोर से दबा रह था। मेरी भी सिसकारीयां निकलने लगी थी, मेरा पानी अब छुटने वाला ही था।
"हाये रे, निकाल रे निकाल मेरा,,,,, निकल गया,,, ओह बहिन,,,, सारा,,,, सारा का सारा पानी, तेरे मुंह में ही निकल गया रे।"
राखी का हाथ, अब और तेज गती से चलने लगा। ऐसा लगा रहा था, जैसे वो मेरे पानी को गटा-गट पीते जा रही है। मेरे लंड के सुपाडे से निकली एक-एक बुंद चुस जाने के बाद राखी ने अपने होंठो को मेरे लंड पर से हटा लिया और मुस्कुराती हुई, मुझे देखने लगी और बोली,
"कैसा लगा ?"
मैने कहा,
"बहुत अच्छा।"
और बिस्तर पर एक तरफ लुढक गया । मेरे साथ-साथ राखी भी लुढक के मेरे बगल में लेट गई और मेरे होंठो और गालो को थोडी देर तक चुमती रही।
थोडी देर तक आंख बंध कर के पडे रहने के बाद, जब मैं उठा तो देखा की राखी ने अपनी आंखे बंध कर रखी है और अपने हाथो से अपनी चुचियों को हल्के-हल्के सहला रही थी। मैं उठ कर बैठ गया और धीरे-से राखी के पैरो के पास चला गया । राखी ने अपना एक पैर मोडे रखा था और एक पैर सीधा कर के रखा हुआ था। उसका पेटिकोट उसकी झांघो तक उठा हुआ था। पेटिकोट के उपर और नीचे के भागो के बीच में एक गेप सा बन गया था। उस गेप से उसकी झांघ, अंदर तक नजर आ रही थी। उसकी गुदाज झांघो के उपर हाथ रख के, मैं हल्का-सा झुक गया अंदर तक देखने के लिये। हांलाकि अंदर रोशनी बहुत कम थी, परंतु फिर भी मुझे उसके काले-काले झांठो के दर्शन हो गये। झांठो के कारण चुत तो नही दिखी, परंतु चुत की खुश्बु जुरुर मिल गई। तभी राखी ने अपनी आंखे खोल दी और मुझे अपनी झांघो के बीच झांखते हुए देख कर बोली,
"हाये दैया, उठ भी गया तु ? मैं तो सोच रही थी, अभी कम से कम आधा घंटा शांत पडा रहेगा, और मेरी झांघो के बीच क्या कर रहा है ? देखो इस लडके को,चूत देखने के लिये दिवाना हुआ बैठा है।"
फिर मुझे अपनी बांहो में भर कर, मेरे गाल पर चुम्मी काट कर बोली,
"मेरे भाई को अपनी बहिन की चूत देखनी है ना, अभी दिखाती हुं मेरे छोरे। हाय मुझे नही पता था कि, तेरे अंदर इतनी बेकरारी है,चूत देखने की।"
मेरी भी हिम्मत बढ गई थी।
" जल्दी से खोलो और दिखा दो।"
"अभी दिखाती हुं, कैसे देखेगा, बताना ?"
"कैसे क्या, खोलोना बस जल्दी से।"
"तो ले, ये है मेरे पेटिकोट का नाडा। खुद ही खोल के बहिन को नंगा कर दे, और देख ले।"
" मेरे से नही होगा, तुम खोलोना।"
"क्यों नही होगा ? जब तु पेटिकोट ही नही खोल पायेगा, तो आगे का काम कैसे करेगा ?"
" आगे का भी काम करने दोगी क्या ?"मेरे इस सवाल पर, बहिन ने मेरे गालो को मसलते हुए पुछा,
"क्यों, आगे का काम नही करेगा क्या ? अपनी बहिन को ऐसे ही प्यासा छोड देगा ? तु तो कहता था कि तुझे ठंडा कर दुन्गा, पर तु तो मुझे गरम कर के छोडने की बात कर रह है।"
" मेरा ये मतलब नही था। मुझे तो अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा की, तुम मुझे और आगे बढने दोगी।"
"गधे के जैसा लंड होने के साथ-साथ, तेरा तो दिमाग भी गधे के जैसा ही हो गया है। लगता है, सीधा खोल के ही पुछना पडेगा, 'बोल चोदेगा मुझे, चोदेगा अपनी बहिन को, बहिन की चूत चाटेगा, और फिर उसमे अपना लौडा डालेगा', बोलना।"
" सब करुन्गा, सब करुन्गा। जो तु कहेगी वो सब करुन्गा। हाये, मुझे तो विश्वाश ही नही हो रहा है कि, मेरा सपना सच होने जा रहा है। ओह, मेरे सपनो में आनेवाली परी के साथ सब कुछ करने जा रहा हुं।"
"क्यों, सपनो में तुझे और कोई नही, मैं ही दिखती थी, क्या ?"
"तुम्ही तो हो मेरे सपनो की परी। पुरे गांव में तुमसे सुंदर कोई नही।"
"हाये, मेरे १६ साल के जवान छोकरे को, उसकी बहिन इतनी सुंदर लगती है, क्या ?"
"हां बहिन, सुच में तुम बहुत सुंदर हो, और मैं तुम्हे बहुत दिनो से चोओ,,,,,,,,,"
"हां हां, बोलना क्या करना चाहता था ? अब तो खुल के बात कर बेटे, शरमा मत अपनी बहिन से। अब तो हमने शर्म की हर वो दिवार गीरा दी है, जो जमाने ने हमारे लिये बनाई है।"
" मैं कब से तुम्हे चोदना चाहता था, पर कह नही पता था।"कोई बात नही भाई, अभी भी कुछ नही बिगडा है। वो भला हुआ कि, आज मैने खुद ही पहल कर दी। चल आ, देख अपनी बहिन को नंगा, और आज से बन जा उसका सैयां।",
कह कर बहिन बिस्तर से नीचे उतर गई, और मेरे सामने आ के खडी हो गई। फिर धीरे-धीरे करके अपने ब्लाउस के एक-एक बटन को खोलने लगी। ऐसा लग रहा था, जैसे चांद बादल में से निकल रहा है। धीरे-धीरे उसकी गोरी-गोरी चुचियां दिखने लगी। ओह गजब की चुचियां थी, देखने से लग रहा था जैसे कि, दो बडे नारियल दोनो तरफ लटक रहे हो। एकदम गोल और आगे से नुकिले तीर के जैसे। चुचियों पर नसो की नीली रेखायें स्पष्ट दिख रही थी। निप्पल थोडे मोटे और एकदम खडे थे और उनके चारो तरफ हल्का गुलाबीपन लिये हुए, गोल-गोल घेरा था। निप्पल भुरे रंगे के थे। बहिन अपने हाथो से अपनी चुचियों को नीचे से पकड कर मुझे दिखाती हुई बोली,
"पसंद आई अपनी बहिन की चुंची, कैसी लगी बेटा बोलना, फिर आगे का दिखाउन्गी।"
"तुम सच में बहुत सुंदर हो। ओह, कितनी सुंदर चु उ उ,,,चियां है। ओह,,,,,"
Re: बदनाम रिश्ते
बहिन ने अपनी चुचियों पर हाथ फेरते हुए और अच्छे से मुझे दिखाते हुए हल्का-सा हिलाया और बोली,
"खूब सेवा करनी होगी, इसकी तुझे। देख कैसे शान से सिर उठाये खडी है, इस उमर में भी। तेरे जीजा के बस का तो है नही, अब तु ही इन्हे सम्भालना।",
कह कर वो फिर अपने हाथो को अपने पेटिकोट के नाडे पर ले गई और बोली,
"अब देख भाई , तेरे को जन्नत का दरवाजा दिखाती हुं। अपनी बहिन का स्पेशियल मालपुआ देख, जिसके लिये तु इतना तरस रहा था।",
कह कर बहिन ने अपने पेटिकोट के नाडे को खोल दिया।
पेटिकोट उसकी कमर से सरसराते हुए सीधा नीचे गीर गया, और बहिन ने एक पैर से पेटिकोट को एक तरफ उछाल कर फेंक दिया और बिस्तर के और नजदिक आ गई, फिर बोली,
" तुने तो मुझे एकदम बेशरम बना दिया।"फिर मेरे लंड को अपनी मुठ्ठी में भर के बोली,
"ओह, तेरे इस सांढ जैसे लंड ने तो मुझे पागल बना दिया है, देख ले अपनी बहिन को जी भर के।"
मेरी नजरें बहिन की झांघो के बीच में टीकी हुई थी। बहिन की गोरी-गोरी चिकनी रानो के बीच में काली-काली झांठो का एक त्रिकोण बना हुआ था। झांठें बहुत ज्यादा बडी नही थी। झांठो के बीच में से, उसकी गुलाबी चुत की हल्की झलक मिल रही थी। मैने अपने हाथो को बहिन की झांघो पर रखा, और थोडा नीचे झुक कर ठीक चुत के पास अपने चेहरे को ले जा के देखने लगा। राखी ने अपने दोनो हाथ को मेरे सिर पर रख दिया और मेरे बालो से खेलने लगी, फिर बोली,
"रुक जा, ऐसे नही दिखेगा। तुझे आराम से बिस्तर पर लेट के दिखाती हुं।"
"ठीक है, आ जाओ बिस्तर पर। राखी एक बार जरा पिछे घुमोना।"
"ओह, मेरा राजा मेरा पिछवाडा भी देखना चाहता है, क्या ? चल, पिछवाडा तो मैं तुझे खडे-खडे ही दिखा देती हुं। ले, देख अपनी बहिन के चुतड और गांड को।",
इतना कह कर राखी पिछे घुम गई।
ओह, कितना सुंदर द्रश्य था, वो। इसे मैं अपनी पुरी जिन्दगी में कभी नही भुल सकता। बहिन के चुतड सच में बडे खुबसुरत थे, एकदम मलाई जैसे, गोल-मटोल, गुदाज, मांसल। और उस चुतड के बीच में एक गहरी लकिर-सी बन रही थी, जोकि उसकी गांड की खाई थी। मैने बहिन को थोडा झुकने को कहा तो बहिन झुक गई, और आराम से दोनो मख्खन जैसे चुतडों को पकड के अपने हाथो से मसलते हुए, उनके बीच की खाई को देखने लगा। दोनो चुतड के बीच में गांड का भुरे रंग का छेद फकफका रहा था, एकदम छोटा-सा गोल छेद। मैने हल्के-से अपने हाथ को उस छेद पर रख दिया और हल्के-हल्के उसे सहलाने लगा। साथ में, मैं चुतडों को भी मसल रहा था। पर तभी राखी आगे घुम गई। "चल मैं थक गई खडे खडे, अब जो करना है बिस्तर पर करेन्गे।"
और वो बिस्तर पर चढ गई। पलन्ग कि पुश्त से अपने सिर को टिका कर उसने अपने दोनो पैरो को मेरे सामने खोल कर फैला दिया और बोली,
"अब देख ले आराम से, पर एक बात तो बता तु देखने के बाद क्या करेगा ? कुछ मालुम भी है, तुझे या नही है ?"
"राखी, चो,,,,,,दुन्गाआआ।"
"अच्छा, चोदेगा,,,? पर कैसे, जरा बता तो सही, कैसे चोदेगा ?"
"हाये, मैं पहले तुम्हारी चुं,,,ची चुससस,,,,ना चाहता हुं।"
"चल ठीक है, चुस लेना। और क्या करेगा ?"
"ओह और !!??, औररररर,,,,,,, चुत देखुन्गा और फिरर,,,,,,, ,,, मुझे पता नही।"
"पता नही !! ये क्या जवाब हुआ, पता नही ? जब कुछ पता नही, तो बहिन पर डोरे क्यों डाल रहा था ?"
"ओह राखी, मैने पहले किसी को किया नही हैना, इसलिये मुझे पता नही है। मुझे बस थोडा बहुत पता है, जोकि मैने गांव के लडको के साथ सिखा था।"
"तो गांव के छोकरो ने ये नही सिखाया कि, कैसे किया जाता है। खाली यही सिखाया कि, बहिन पर डोरे डालो।"
"ओह बहिन, तु तो समझती ही नही। अरे, वो लोग मुझे क्यों सिखाने लगे कि, तुम पर डोरे डालो। वो तो,,,,,,, वो तो तुम मुझे बहुत सुंदर लगती हो, इसलिये मैं तुम्हे देखता था।"
"ठीक है। चल तेरी बात समझ गई भाई , कि मैं तुझे सुंदर लगती हुं। पर मेरी इस सुंदरता का तु फायदा कैसे उठायेगा, उल्लु ये भी तो बता देना, कि खाली देख के मुठ मार लेगा ?"
" नही, मैं तुम्हे चोदना चाहता हुं। राखी तुम सिखा देना, सिखा दोगीना ?"
कह कर मैने बुरा-सा मुंह बना लिया।