खानदानी चुदाई का सिलसिला

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rajaarkey
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Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला

Unread post by rajaarkey » 30 Dec 2014 08:21

खानदानी चुदाई का सिलसिला--10

गतान्क से आगे..............



दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी दसवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ

बाबूजी ने थोड़े नीचे झुक के कम्मो के चेहरे को पकड़ा और उसके होंठो को हल्के से चूमा. कम्मो की आँखें मूंद गई, बाबूजी के होंठो का स्प्रश बहुत अच्छा था, उनकी मूच्छों से उसको हल्की सी गुदगुदी उठी. बाबूजी ने हाथ बढ़ा के उसका रिब्बन खोल दिया और उसके रेशमी बाल खुल के उसकी कमर तक लहरा गए. बाबूजी ने उसके बालों मे अपनी उंगली फेरी और माँग के दोनो तरफ उनको सेट किया. माँग में हल्का सिंदूर लगा हुआ था. बाबूजी ने आगे झुक के उसकी माँग को चूमा और फिर उससे थोड़े पिछे हट गए. पता नही शायद दोनो के दिल एक दूसरे की बात सुन रहे थे. कम्मो ने बिना कुच्छ बोले नीचे झुक के बाबूजी के चरण च्छुए और अपनी माँग में हाथ फेरा. जैसे ही वो उठी बाबूजी ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और भींच लिया. बाबूजी को कम्मो पे बहुत प्यार आ रहा था और साथ ही साथ उनकी वासना भी भड़की हुई थी.

कम्मो ने बाबूजी की छाती से लगते हुए उनके कुर्ते के नीचे हाथ लगाया और धोती की गाँठ को टटोला. धोती खुल के पैरों में गिर गई. उसके बाद कम्मो ने बाबूजी का कुर्ता उठना शुरू किया और उतार कर बिस्तर पे फेंक दिया. बाबूजी अब पूरे नंगे खड़े थे और उनका 7 इंच का लंड लोहे की तरह कड़क हुआ पड़ा सलामी दे रहा था. कम्मो ने थोड़े पिछे हट के उनके लंड को निहारा और फिर ज़मीन पे घुटनो के बल बैठ गई. हाइट की वजह से कम्मो का सिर बाबूजी के लंड से थोड़े नीचे था. उसने सिर उठा के पहले उनके सरीखे लंड को अच्छे से निहारा और फिर अपने छ्होटे छ्होटे हाथों से उसे पकड़ लिया. कम्मो के गरम हाथों का स्पर्श मिलते ही बाबूजी का बदन काँप उठा. उनके मूह से कम्मो के नाम की एक सिसकारी निकल गई.

कम्मो के चेहरे पे एक मुस्कान आई और उसने अपनी जीभ निकाल के उसकी नोक बाबूजी के लंड की आँख पे लगा दी. बाबूजी के लंड की आँख से प्री कम की बूंदे निकल रही थी. कम्मो ने लंड की आँख को जीभ की नोके से टटोला और प्री कम की एक लार उसके होंठो पे आ गई. कम्मो पिछे हुई तो प्री कम की तार जैसे उसके होंठो और बाबूजी के लंड को जोड़ रही थी. कम्मो ने अपना राइट हॅंड लंड के टोपे पे घुमाया और प्री कम से टोपे की मालिश की और फिर आगे बढ़ते हुए बड़े ही नर्म होंठो से टोपे को घिसने लगी. देखते ही देखते उसकी उत्तेजना बढ़ने लगी और अब उसके हाथ बाबूजी के टट्टों, गांद और जांघों पे फिरने लगे. कम्मो की जीभ लपलपा रही थी, उसके मूह में थूक भरा हुआ था, कभी वो लंड को चूस्ति तो कभी टट्टों को चूमती. उसने सपने में भी नही सोचा था कि घर के मालिक का लंड कभी उसको नसीब होगा. वो हमेशा इस लंड की गुलाम बन के रहना चाहती थी. उससे पता था कि इस लंड की गुलामी से उसकी चूत के भाग खुल जाएँगे और साथ ही उसके परिवार के भी. उसके परिवार का सुख उस लंड के ज़रिए हो के जाता था और कम्मो चाहती थी कि वो ऐसा कुच्छ करे पहली बार में कि बाबूजी मरते दम तक उसे ना छोड़ें.

कम्मो ने अपने हाथों से बाबूजी की गांद पकड़ ली और उनकी गांद के छेद से खेलने लगी. बाबूजी का लंड उसके हलक तक उतरा हुआ था और अब बाबूजी उसे चोदे जा रहे थे. मुख चोदन का इतना बढ़िया एहसास कम्मो को पहले नही मिला था. बाबूजी अपने लंड को उसके मूह और गले की गहराईयो में उतारते और उसका सिर पकड़ लेते. जब कम्मो की साँस घुटने लगती तो छोड़ देते और कम्मो अपना सिर पिछे करती तो ढेर सारा थूक बाहर निकल आता. उसका नया सूट थूक से गीला हो चुका था पर उसे परवाह नही थी क्योंकि उसे पता था कि उसे ऐसे कई सूट और मिलेंगे. थूक की लंबी लंबी लार उसके मम्मो को भी भिगो रही थी. बाबूजी अपनी स्पीड चेंज करते हुए उसके मूह को चोद्ते रहे और 3 - 4 मीं में वो छूटने को तैयार हो गए. कम्मो ने बाबूजी की गांद के छेद में एक उंगली फँसाई हुई थी और उसे एहसास हुआ कि उनकी गांद अब टाइट हो रही है. एन मौके पे कम्मो ने एक हाथ से बाबूजी का गीला लंड मुठियाना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ की उंगली उनकी गांद में 1 इंच तक घुसेड दी.

''' ऊऊहह कममू राणियीई ये ले अपने बाबूजी का वीर्यहह और पीईइ ज़ाआाआ......'' बाबूजी चिल्लाए और उनकी गांद ने पहला झटका खाया. 1 सेकेंड के लिए कम्मो ने उन्हे मुठियाना रोका और लंड को सही जगह पे अड्जस्ट किया. लंड की आँख से निकली वीर्य की पहली पिचकारी ठीक उसकी लाल सिंदूर सजी माँग के बीचों बीच पड़ी. वीर्य की सफेद धार से बाबूजी ने उसकी माँग सज़ा दी और अब कम्मो और बाबूजी का उमर भर का चुदाई का रिश्ता पक्का हो गया. बाबूजी के लंड के झटके जारी रहे और कम्मो लंड को मुठियाते हुए उसे अड्जस्ट करती रही. उसकी आँखें, गाल, होंठ, नाक सब जगह पे वीर्य की धाराएँ बहने लगी. बाबूजी 10 - 15 सेकेंड तक वीर्य पात करते रहे और फिर जैसे ही रुकने को हुए तो कम्मो ने लंड को मूह में भर लिया. लंड उसके हलक तक पहुँचा और बाबूजी ने पूरी ताक़त लगा के 2 - 3 पिचकारियाँ और छोड़ी.

rajaarkey
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Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला

Unread post by rajaarkey » 30 Dec 2014 08:22


बाबूजी का लंड मूह में रखते हुए और नमकीन वीर्य पीते पीते कम्मो ने अपने दूसरे हाथ से उसके वीर्य को चेहरे से सॉफ करना शुरू किया और उंगली से खिसका खिसका के सारा वीर्य अपने होंठो तक ले आई. मूह को और चौड़ा कर के लंड के उपर उसने वीर्य की धारें गिराना शुरू किया और फिर से उसे चूसने लगी. बाबूजी हैरान थे कि लंड चूसने की इतनी महारत कम्मो को कहाँ से मिली. खैर जो भी हो उनका काम आधा बन चुका था. कम्मो की माँग में वीर्य भरने का जो काम हुआ था उससे उन्हे एक अजीब सी तस्सली मिल रही थी. बाबूजी घुटनो के बल बैठी कम्मो को देखे जा रहे थे कि किस तरह से वो उनके लंड को पूज रही थी. देखते ही देखते कम्मो ने उनका सारा रस पी लिया. उनके लंड को जीभ से चाट चाट के अच्छे से सॉफ कर दिया. उनके टटटे भी अच्छे से चूस चूस के सॉफ हो चुके थे. बाबूजी ने झुक के कम्मो को उठाया और उसे प्यार से देखा. उसकी माँग में लगी वीर्य की धार पे उन्होने उंगली फेराई और जितना उसकी माँग में समा सकता था उतना छोड़ के बाकी उसके हठों पे लगा दी. कम्मो ने बहुत मादक अंदाज़ में उनकी उंगली को लेके चाट लिया.

अब बाबूजी की बारी थी. कम्मो को देखते हुए वो बिस्तर पे लेट गए. बाबूजी का लंड अभी भी आधा खड़ा था. कम्मो अब पूरी उत्तेजित थी. पर उसके मन में भी कुच्छ चल रहा था. उसने बाबूजी को थोड़ी तिर्छि नज़रों से देखा. बाबूजी की नज़र उसके उरोजो पे गढ़ी हुई थी. ऊरोजो पे वीर्य की कुच्छ बूँदें पड़ी हुई थी. कम्मो थोड़ी सी मूडी जिससे कि उसके मम्मे और खड़े निपल साइड से दिखने लगे और उसने वीर्य की बूँदों को एक एक करके अपनी उंगली पे समेटा और चाट लिया. बाबूजी का आधा झुका लंड उसकी ये मादक अदा देख के एक बार फिर तनने लगा. बाबूजी को उसी तरह से देखते और दिखाते हुए कम्मो ने अपने सूट का टॉप नीचे की तरफ उतार दिया. अब उसकी ब्रा की बारी थी. मम्मे तो खुले ही हुए थे. अपनी पीठ के पिछे हाथ बढ़ाते हुए कम्मो ने अपनी पैनी चूचिओ को पूरा बाहर को निकाला और खुले बालों को झटकते हुए ब्रा का हुक खोल दिया. उसी मादक अंदाज़ में उसने ब्रा को अपने मम्मो पे हल्के हल्के रगड़ा और बाबूजी के चेहरे की तरफ उच्छाल दिया.

बाबूजी ने ब्रा को सूँघा और उसका लेबल देखा. उनका अंदाज़ा बिल्कुल सही था. 38सी की ब्रा थी, दिखने में सिंपल कॉटन. बाबूजी के दिमाग़ में एक और ख़याल आ गया. उन्होने ब्रा को एक बार और सूँघा. उसमे से कम्मो के पसीने की खुश्बू आ रही थी. कम्मो का बदन एक मेहनतकश औरत का था और उसका पसीना भी उसी तरह का था. बाबूजी ने ब्रा को सरकाते हुए अपने लंड पे लपेट लिया और धीरे धीरे उसको सहलाने लगे. उनके लंड पे अभी भी थूक और वीर्य का चिपचिपापन था जो कि ब्रा से वो सॉफ करने लगे. उनको ये सब करते हुए देखते हुए कम्मो ने अपनी चूचिओ को दबोच लिया और अपनी जीभ निकाल के रंडी की तरह अपने होंठो पर फेर दी. अब उसके हाथ चूचिओ को छोड़ के अपने पेट और कमर पर रेंगते हुए पाजामे के नाडे की तरफ बढ़ चले. नाडा खोले हुए उसने अपनी पॅंटी में भी हाथ डाल दिया और चूरिदार पाजामी और पॅंटी एक साथ उतारना शुरू कर दिया.

बाबूजी की निगाह अब उसके धीरे धीरे नंगे होते हुए चुतडो पे जम गई. उसके चुतडो का उभार काफ़ी दिलकश था. मांसल चूतर गथे हुए जिनमे कुल्हों की मसल्स सॉफ दिख रही थी. धीरे धीरे कम्मो ने अपनी मांसल जांघें भी नंगी कर दी और पैरों में से चूरिदार पाजामी को निकालने के लिए झुकी. उसको ना जाने क्या सूझा और वो पूरी घूम गई और अपने मोटे चूतर बाबूजी को दिखाने लगी. चूरिदार पाजामी को पैरों से निकालने में जो वक़्त लग रहा था उसमे वो अपने चूतर घुमा घुमा के बाबूजी को रिझा रही थी. कम्मो अपनी चूत के बाल सिसर से ट्रिम करके रखती थी पर उसका हाथ चूत और गांद के बीच के हिस्से में ठीक से नही चलता था. वहाँ के कुच्छ बाल लंबे होते तो कुच्छ छ्होटे. वही बाल अब बाबूजी की नज़रों के सामने थे. कम्मो की चूत काली थी और उसकी फांके काफ़ी बाहर को निकली हुई थी. बाबूजी ने कई सालों बाद ऐसी फांकों के दर्शन किए थे. उनसे रहा नही गया और वो बेड के किनारे पे बैठ गए. बाबूजी ने कम्मो की गांद को दोनो साइड से पकड़ लिया. उसे वैसे ही झुके रहने का निर्देश देके वो उसकी चूत और गांद के छेद को निहारने लगे.

बाबूजी ने अपनी लाइफ में 10 - 11 औरतों को चोदा था. हर औरत की चूत का रूप रंग अलग और उसमे से निकलती हुई गंध भी अलग ये सब सोच के बाबूजी को हमेशा उत्तेजना होती थी. आज उनके सामने एक और नई चूत थी जिसकी दरार में उन्हे अपना नया स्वर्ग ढूँढना था. बाबूजी ने आगे बढ़े हुए कम्मो के चूतर बीच से फैला दिए और उसकी चूत में अपना नाक लगा दिया. नाक को उपर से नीचे रगर्ते हुए वो कम्मो की महक को अपनी साँसों में बसाने लगे. वो महक जो शायद उनके मरने तक उनके साथ रहने वाली थी. माँग में वीर्य भरवाने का काम जो कम्मो ने किया था उसका बाबूजी पे बहुत गहरा असर हुआ था. उन्हे कम्मो से मन ही मन प्यार सा होने लगा था. सामाजिक तौर पे वो उसे अपनी पत्नी का दर्जा नही दे सकते थे पर शारीरक और बिस्तर में शायद वो उसे पत्नी का दर्जा दे रहे थे.

यही सोचते हुए उन्होने कम्मो की चूत में अपनी जीभ को पहली बार घुसाया. कम्मो की टांगे कांम्प उठी. उसने अपने चूचे ज़ोर से पकड़ लिए और भींच दिए. बाबूजी के नाम की आह उसके मूह से निकली और उसकी गदराई हुई गांद उनके मूह की तरफ होने लगी. कम्मो को अपनी चूत चटवाने का शौक था. पिछले मालिक की विधवा बहेन, उसकी साली और हरिया काका के बाद से किसी ने उसकी चूत को अच्छे से नही चॅटा था. उसके पति का चोदु दोस्त चूत बजाने में विश्वास रखता था ना की चाटने में. रमेश अभी कच्चा खिलाड़ी था. उसे अभी चूत चटाई में निपुणता नही थी. पर बाबूजी की बात अलग थी. छुदम चुदाई में सर्व गुण संपन्न बाबूजी की जीभ के लपलपाने से कम्मो की चूत के बाँध खुल गए. रस के धारे बहने लगे और उनके साथ साथ बाबूजी की जीभ की रफ़्तार बढ़ने लगी. बड़ी बड़ी फांकों को पूरा मूह में दबोच के कभी वो चूस लेते तो कभी उनपे हल्के हल्के दाँत गढ़ा देते. जीभ रस के धारों को जांघों के अंदर वाले हिस्से से नीचे से समेटते हुए उपर चूत तक ले आती जहाँ नए धाराए पुराने निकले हुए रस से मिलती और फिर जीभ और मूह में समा जाती.

rajaarkey
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Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला

Unread post by rajaarkey » 30 Dec 2014 08:22


बाबूजी की जीभ अपना कमाल कर रही थी तो साथ ही उनके हाथ भी कमाल दिखा रहे थे. कमरे में जहाँ चूत की भीनी भीनी खुश्बू, कम्मो का रह रह के कराहना और बाबूजी के चूत चुंबन की आवाज़ें थी वहीं साथ ही साथ कम्मो की मस्त गांद पे पड़ते थप्पड़ों की आवाज़ें भी गूँज रही थी. बाबूजी हर 3 - 4 सेकेंड में उसकी गांद पे एक थप्पड़ जड़ देते. थप्पड़ की गर्मी से कम्मो की गांद लाल होने लगी थी. दोनो चुतडो में खून उतर आया था और गर्मी बेहद बढ़ गई थी. कम्मो अब इतनी बेतहाशा हो चुकी थी कि उसने बाबूजी को गालियाँ देना शुरू कर दिया और साथ ही अपनी गांद गोल गोल घुमाते हुए उन्हे पेलने के लिए उकसाना शुरू कर दिया.

'' ओह्ह्ह मेरे चोदुउ सैयाँ डाल दे नाआ....क्यों तड़पाता है हराअमी....तेरी रांड़ हूँ अब से..कभी फिर चाट लीजो मेरी बुर को ..अभी तो मूसल दे कुत्ते.....कब से कुत्ति बनी इंतेज़ार कर रही हून्न्न चचोद्द्द्द्दद्ड नाआ सैयाअंन्न...ऊओह...माआअ...कोई इसको बताओ कि चूत में लंड ही अच्छा लगता है...डाअल हराअमी मार जाउन्गी नही तो.....''' कम्मो अब झरने को तैयार थी.

''' ले साली रांड़ ..चल अब दिखाता हू तुझे अपने लंड का जौहर..इधर आ कुत्ति ..अब कुत्ति से घोड़ी बन और ले अपना सवार...चढ़वा मेरे लंड को अपने उपर और निकाल अपनी गर्मी इस्पे..साली छिनाल पता नही कब से लंड की भूखी है...'' बाबूजी ने कम्मो को बिस्तर पे धक्का दिया और उसके चुतडो पे थप्पड़ मारते हुए उसे घुटनो और हाथों पे कर दिया. बाबूजी ने अब अपने पैर बिस्तर पे जमाए और अपने दोनो हाथ कम्मो की पीठ के रख के दबाव डालते हुए अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पे लगाया.

घुटनो को मोडते हुए बाबूजी अब आधे खड़े हुए थे और लंड चूत के मुहाने पे सटा हुआ था. बाबूजी ने थोड़े आगे बढ़ते हुए लंड को सेट किया और स्टॅक से एक गहरा शॉट लगाया. कम्मो की लिसलिसाती चूत में बाबूजी का 7 इंच का लंड एक शॉट में अंदर हो गया और उनके टटटे ठीक उसकी चूत के उपरी हिस्से से जा टकराए. कम्मो के मूह से एक जंगली बिल्ली के जैसी आवाज़ निकल गई और उसने अपना मूह छत की तरफ को कर दिया. बाबूजी ने बिना रुके 3 - 4 लंबे लंबे शॉट और लगा दिए. बाबूजी का लोडा भी लावा उगलने को तैयार था. कम्मो की कामुकता ने उन्हे दीवाना बना दिया था. पर बाबूजी को कम्मो के मूह से कुच्छ निकलवाना था.

'' ले मेरी रानी...ले अपने यार का लोडा...कैसा लगा मेरी जान..लिया है कभी ऐसा लंड अपनी चूत में ?? मेरी जान तेरी चूत को देख के लगता है कि तू लंड खोर है और इस गुफा में कई और लोगों ने रात बिताई है...पर क्या मेरा लोडा तुझे निहाल करता है?? बता मुझे..साली हराम की जनि....???'' बाबूजी अब शॉट पे शॉट लगाए जा रहे थे. उनके कठोर जिस्म में एक एक मसल टाइट हुई पड़ी थी. पोज़िशन पूरी तरह ठीक थी कि वो लंड चूत में पेले हुए कम्मो की पीठ पे सवार थे. कम्मो को उनका लंड अपनी चूत की गहराईयो में घुसता प्रतीत हो रहा था. आज तक उसपे कोई इस तरह से सवार नही हुआ था.

'' ब्ब्ब्बाआबब्बुउुउुज्जििीइ ऊऊऊऊहह माआअ.....मररर जाउन्गी आपके लंड पीए हिी....ऊओह हाआँ ...लंडखोर चूत को आज सबसे बढ़िया लोडा मिल गया...ऊओ मैं तो धन्य हो गई..बाबुऊउ...कल शाम को ही खाया था रमेश का लंड पर वो तो सिर्फ़ एक लौंडा है...जो मज़ा आपके इस चोदु लंड में है वो उसके 10 इंच के मूसल में भी नहियिइ.........चूओदुउऊ लंड्ड्ड...मेरे माअलिक...तेरे लंड को धो धो के पीउंगी रोज़ बस ऐसे ही पेला कर मुझे....रमेश क्या, मेरा पति क्या, उसका दोस्त क्या और हरिया काका ..तुम तो सबके बाप हो जाआंन्‍नणणन्.......ऊओह माआआ मैं तो आऐईयइ रजाअ....ऊओह ऊऊहह हाआंन्‍नणणन् चूओद्द्दद्ड...उउम्म्म्मम्मूऊओ''' कम्मो ने अपनी सारी पोल खोलते हुए बाबूजी के लंड पे झरना शुरू कर दिया.

बाबूजी ने सब बातें सुनते हुए अपनी गांद को गोल गोल घुमाया और लंड को जड़ तक जाने दिया और फिर गांद को घुमाते रहे. कम्मो की चूत की गर्मी और उसका रस उनपे नशा कर गया और उन्होने लंड को चूत में झटकना शुरू कर दिया. बाबूजी को खुद पे यकीन नही हो रहा था कि 15 मिनिट में ही दूसरी बार उनके लंड ने इतनी ज़बरदस्त पिचकारियाँ छोड़ी थी. सटाक सटाक की आवाज़ों के साथ उन्होने 10 - 15 धक्के और मारे और कम्मो का एक और मिनी ऑर्गॅज़म करवा के वो उसपे निढाल हो गए. कम्मो उनका बोझ सहेन नही कर पाई और पेट के बल बिस्तर पे गिर गई. उसकी दोनो बाहें उसके सिर के उपर की तरफ सीधी फैली हुई थी. अपने लंड को चूत में रखते हुए बाबूजी उसपे उपर लेटे हुए थे और उन्होने अपनी बाहे बढ़ा के कम्मो की उंगलिओ में अपनी उंगलियाँ फँसा दी.

''आज से तू मेरी हुई कम्मो..इस बिस्तर की रानी बन गई है तू..अब से जब मैं चाहूं और जैसे चाहूं तुझे इस्तेमाल करूँगा और तुझे सब अपनी मर्ज़ी का कर्वाउन्गा. अपने घर के बाहर अब तू सिर्फ़ इसी घर में चुदेगि और कहीं नही. समझ गई मेरी जान और हां अगर कभी बाहर चुदेगि तो मेरे हुकुम से...तुझे अपने लंड की रानी बना दूँगा और तेरे घर को भी खुशिओ से भर दूँगा.'' बाबूजी कम्मो की पीठ, कंधों और गर्दन पे किस करते हुए बोले.

'' बाबूजी आज से आपकी ही हूँ और सच में आपकी ही रहूंगी. कहोगे तो अपने पति से भी नही कर्वाउन्गि..पर तुम मुझे कभी मत छोड़ना बाबूजी ...तुमने मेरी माँग भरी है..दूसरी बार सुहागन हुई हूँ और वो भी तुम्हारे पवित्र रस से...अब जैसा तुम चाहो वैसा ही होगा बस तुम मेरी कामवासना पूरी करते रहना..फिर जब चाहे जिससे चाहे बोलोगे वैसे मज़े लूँगी और दूँगी....और हां मुझे पता है कि अब मैं कभी घर परिवार से दुखी नही रहूंगी...तुम्हारा दिल बड़ा है बाबूजी ...मैं जानती हूँ कि अपनी रखैल के लिए भी इसमे बहुत जगह होगी......''' कम्मो ये कहते हुए थोड़ी रुआंसी हो गई.
क्रमशः............................................


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