बदनाम रिश्ते

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rajaarkey
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Re: बदनाम रिश्ते

Unread post by rajaarkey » 02 Nov 2014 17:41



"हाये मेरा भाई,देखो तो बहिन की लेने के लिये कैसे तडप रहा है? आजा मेरे प्यारे, मैं तुझे सब सिखा दुन्गी। तेरे जैसे लंडवाले भाई को तो, कोई भी बहिन सिखाना चाहेगी। तुझे तो मैं सिखा-पढा के चुदाई का बादशाह बना दुन्गी। आजा, पहले अपनी बहिन की चुचियों से खेल ले, जी भरा के। फिर तुझे चुत से खेलना सिखाती हुं, भाई ।" मैं राखी की कमर के पास बैठ गया।राखी पुरी नंगी तो पहले से ही थी, मैने उसकी चुचियों पर अपना हाथ रख दिया और उनको धीरे-धीरे सहलाने लगा। मेरे हाथ में शायद दुनिया की सबसे खूबसुरत चुचियां थी। ऐसी चुचियां, जिनको देख के किसी का भी दिल मचल जाये। मैं दोनो चुचियों की पुरी गोलाई पर हाथ फेर रह था। चुचियां मेरी हथेली में नही समा रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मैं जन्नत में घुम रहा हुं। राखी की चुचियों का स्पर्श गजब का था। मुलायम, गुदाज, और सख्त गठीलापन, ये सब एहसास शायद अच्छी गोल-मटोल चुचियों को दबा के ही पाया जा सकता है। मुझे इन सारी चीजो का एक साथ आनंद मिल रह था। ऐसी चुंची दबाने का सौभाग्य नसीब वालों को ही मिलता है। इस बात का पता मुझे अपने जीवन में बहुत बाद में चला, जब मैने दुसरी अनेक तरह की चुचियों का स्वाद लिया।

राखी के मुंह से हल्की हल्की आवाजे आनी शुरु हो गई थी और उसने मेरे चेहरे को अपने पास खींच लिया और अपने तपते हुए गुलाबी होंठो का पहला अनुठा स्पर्श मेरे होंठो को दिया। हम दोनो के होंठ एक दुसरे से मिल गये और मैं राखी कि दोनो चुचियों को पकडे हुए, उसके होंठो का रस ले रह था। कुछ ही सेकन्ड में हमारी जीभ आपस में टकरा रही थी। मेरे जीवन का ये पहला चुम्बन करीब दो-तीन मिनट तक चला होगा। राखी के पतले होंठो को अपने मुंह में भर कर मैने चुस-चुस कर और लाल कर दिया। जब हम दोनो एक दुसरे से अलग हुए तो दोनो हांफ रहे थे। मेरे हाथ अब भी उसकी दोनो चुचियां पर थे और मैं अब उनको जोर जोर से मसल रह था।

राखी के मुंह से अब और ज्यादा तेज सिसकारियां निकलने लगी थी। राखी ने सिसयाते हुए मुझसे कहा,
"ओह,,,, ओह,,,,, सिस,,सिस,,सि,सि,,,,,,,,,,शाबाश, ऐसे ही प्यार करो मेरी चुचियों से। हल्के-हल्के आराम से मसलो बेटा, ज्यादा जोर से नही, नही तो तेरी बहिन को मजा नही आयेगा। धीरे-धीरे मसलो।" मेरे हाथ अब बहिन कि चुचियों के निप्पल से खेल रहे थे। उसके निप्पल अब एकदम सख्त हो चुके थे। हल्का कालापन लिये हुए गुलाबी रंग के निप्पल खडे होने के बाद ऐसे लग रहे थे, जैसे दो गोरी, गुलाबी पहाडियों पर बादाम की गीरी रख दी गई हो। निप्पल के चारो ओर उसी रंग का घेरा था। ध्यान से देखने पर मैने पाया कि, उस घेरे पर छोटे-छोटे दाने से उगे हुए थे। मैं निप्पलों को अपनी दो उन्गलियों के बीच में लेकर धीरे-धीरे मसल रहा था, और प्यार से उनको खींच रहा था। जब भी मैं ऐसा करता तो बहिन की सिसकीयां और तेज हो जाती थी। बहिन की आंखे एकदम नशिली हो चुकी थी और वो सिसकारीयां लेते हुए बडबडाने लगी,
"ओह, भाई ऐसे ही,,,,,, ऐसे ही,,,,, तुझे तो सिखाने की भी जुरुरत नही है, रे। ओह क्या खूब मसल रहा है, मेरे प्यारे। ऐसे ही कितने दिन हो गये, जब इन चुचियों को किसी मर्द के हाथ ने मसला है या प्यार किया है। कैसे तरसती थी मैं कि, काश कोई मेरी इन चुचियों को मसल दे, प्यार से सहला दे, पर आखिर में अपना भाई ही काम आया। आजा मेरे लाल।"
कहते हुए उसने मेरे सिर को पकड कर अपनी चुचियों पर झुका लिया। मैं राखी का इशारा समझ गया और मैने अपने होंठ राखी की चुचियों से भर लिये। मेरे एक हाथ में उसकी एक चुंची थी और दुसरी चुंची पर मेरे होंठ चिपके हुए थे। मैने धीरे-धीरे उसकी चुचियों को चुसना शुरु कर दिया था। मैं ज्यादा से ज्यादा चुंची को अपने राखी में भर के चुस रहा था। मेरे अंदर का खून इतना उबाल मारने लगा था कि, एक-दो बार मैने अपने दांत भी चुचियों पर गडा दिये थे। जिस से राखी के मुंह से अचानक से चीख निकल गई थी। पर फिर भी उसने मुझे रोका नही। वो अपने हाथों को मेरे सिर के पिछे ले जा कर, मुझे बालो से पकड के मेरे सिर को अपनी चुचियों पर और जोर-जोर से दबा रही थी, और दांत से काटने पर एकदम से घुटी-घुटी आवाज में चीखते हुए बोली,
"ओह, धीरे भाई, धीरे-से चुसो चुंची को। ऐसे जोर से नही काटते है।"

फिर उसने अपनी चुंची को अपने हाथ से पकडा और उसको मेरे मुंह में घुसाने लगी। ऐसा लग रहा था, जैसे वो अपनी चुंची को पुरी की पुरी मेरे मुंह में घुसा देना चाहती हो, और सिसयाई,
"ओह राजा मेरे निप्पल को चुसो जरा, पुरे निप्पल को मुंह में भर लो और कस-कस के चुसो राजा।
मैने अब अपना ध्यान निप्पल पे कर दिया और निप्पल को मुंह में भर कर अपनी जीभ, उसकी चारो तरफ गोल-गोल घुमाते हुए चुसने लगा। मैं अपनी जीभ को निप्पल के चारो तरफ के घेरे पर भी फिरा रहा था। निप्पल के चारो तरफ के घेरे पर उगे हुए दानो को अपनी जीभ से कुरेदते हुए, निप्पल को चुसने पर राखी एकदम मस्त हुए जा रही थी और उसके मुंह से निकलनेवाली सिसकीयां इसकी गवाही दे रही थी।मैं उसकी चीखे और सिसकीयां सुन कर पहले-पहल तो डर गया था। पर राखी के द्वारा ये समझाये जाने पर कि, ऐसी चीखे और सिसकीयां, इस बात को बता रही है कि, उसे मजा आ रहा है। तो फिर मैं दुगुने जोश के साथ अपने काम में जुट गया था। जिस चुंची को मैं चुस रहा था, वो अब पुरी तरह से मेरी लार और थुक से भीग चुकी थी और लाल हो चुकी थी। फिर भी मैं उसे चुसे जा रहा था, तब राखी ने मेरे सिर को वहां से हटा के अपनी दुसरी चुंची की तरफ करते हुए कहा,
"हाये, खाली इसी चुंची को चुसता रहेगा, दुसरी को भी चुस, उसमे भी वही स्वाद है।"

फिर अपनी दुसरी चुंची को मेरे मुंह में घुसाते हुए बोली,
"इसको भी चुस चुस के लाल कर दे मेरे लाल, दुध निकल दे मेरे सैंया। एकदम आम के जैसे चुस और सारा रस निकाल दे, अपनी बहिन की चुचियों का। किसी काम की नही है ये, कम से कम मेरे लाल के काम तो आयेगी।"

rajaarkey
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Re: बदनाम रिश्ते

Unread post by rajaarkey » 02 Nov 2014 17:41

मैं फिर से अपने काम में जुट गया और पहलीवाली चुंची दबाते हुए, दुसरी को पुरे मनोयोग से चुसने लगा। बहिन सिसकीयां ले रही थी और चुसवा रही थी। कभी-कभी अपना हाथ मेरी कमर के पास ले जा के, मेरे लोहे जैसे तने हुए लंड को पकड के मरोड रही थी। कभी अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चुचियों पर दबा रही थी। इस तरह काफि देर तक मैं उसकी चुचियों को चुसता रहा। फिर बहिन ने खुद अपने हाथों से मेर सिर पकड के अपनी चुचियों पर से हटाया और मुस्कुराते मेरे चेहरे की ओर देखने लगी। मेरे होंठ मेरे खुद के थुक से भीगे हुए थे।बहिन की बांयी चुंची अभी भी मेरे लार से चमक रही थी, जबकि दाहिनी चुंची पर लगा थुक सुख चुका था पर उसकी दोनो चुचियां लाल हो चुकी थी, और निप्पलों का रंग हल्के काले से पुरा काला हो चुका था (ऐसा बहुत ज्यादा चुसने पर खून का दौर भर जाने के कारण हुआ था)।

राखी ने मेरे चेहरे को अपने होंठो के पास खींच कर मेरे होंठो पर एक गहरा चुम्बन लिया और अपनी कातिल मुस्कुराहट फेंकते हुए मेरे कान के पास धीरे से बोली,
"खाली दुध ही पीयेगा या मालपुआ भी खायेगा ? देख तेरा मालपुआ तेरा इन्तजार कर रह है, राजा।"

मैने भी राखी के होंठो का चुम्बन लिया और फिर उसके भरे-भरे गालो को, अपने मुंह में भर कर चुसने लगा और फिर उसके नाक को चुम और फिर धीरे से बोला,
"ओह राखी, तुम सच में बहुत सुंदर हो।"

इस पर राखी ने पुछा,
"क्यों, मजा आया ना, चुसने में ?"

"हां राखी, गजब का मजा आया, मुझे आजतक ऐसा मजा कभी नही आया था।"

तब राखी ने अपने पैरो के बीच इशारा करते हुए कहा,
"नीचे और भी मजा आयेगा। यह तो केवल तिजोरी का दरवाजा था, असली खजाना तो नीचे है। आजा , आज तुझे असली मालपुआ खिलाती हुं।" मैं धीरे से खिसक कर राखी के पैरो पास आ गया। राखी ने अपने पैरो को घुटनो के पास से मोडे कर फैला दिया और बोली,
"यहां बीच में। दोनो पैरो के बीच में आ के बैठ। तब ठीक से देख पायेगा, अपनी राखी का खजाना।"

मैं उठ कर राखी के दोनो पैरो के बीच घुटनो के बल बैठ गया और आगे की ओर झुका। मेरे सामने वो चीज थी, जिसको देखने के लिये मैं मरा जा रहा था। मां ने अपनी दोनो जांघे फैला दी, और अपने हाथों को अपनी चूत के उपर रख कर बोली,
"ले देख ले, अपना मालपुआ। अब आज के बाद से तुझे यही मालपुआ खाने को मिलेगा।"

मेरी खुशी का तो ठीकाना नही था। सामने बहिन की खुली जांघो के बीच झांठो का एक त्रिकोण सा बन हुआ था। इस त्रिकोणिय झांठो के जंगल के बीच में से, बहिन की फुली हुए गुलाबी बुर का छेद झांख रहा था, जैसे बादलों के झरमट में से चांद झांखता है। मैने अपने कांपते हाथों को बहिन की चिकनी जांघो पर रख दिया और थोडा सा झुक गया। उसकी चूत के बाल बहुत बडे-बडे नही थे। छोटे-छोटे घुंघराले बाल और उनके बीच एक गहरी लकिर से चीरी हुई थी। मैने अपने दाहिने हाथ को जांघ पर से उठा कर हकलाते हुए पुछा,
"राखी, मैं इसे छु,,,,,लुं,,,,,?"

"छु ले, तेरे छुने के लिये ही तो खोल के बैठी हुं।"

मैने अपने हाथों को राखी की चुत को उपर रख दिया। झांठ के बाल एकदम रेशम जैसे मुलायम लग रहे थे। हालांकि आम तौर पर झांठ के बाल थोडे मोटे होते है, और उसके झांठ के बाल भी मोटे ही थे पर मुलायम भी थे। हल्के-हल्के मैं उन बालों पर हाथ फिराते हुए, उनको एक तरफ करने की कोशिश कर रह था। अब चुत की दरार और उसकी मोटी-मोटी फांके स्पष्ट रुप से दिख रही थी। राखी की चूत एक फुली हुई और गद्देदार लगती थी। चुत की मोटी-मोटी फांके बहुत आकर्षक लग रही थी। मेरे से रहा नही गया और मैं बोल पडा,
" ये तो सच-मुच में मालपुए के जैसी फुली हुई है। "

"हां भाई, यही तो तेरा असली मालपुआ है। आज के बाद जब भी मालपुआ खाने का मन करे, यही खाना।"

"हां बहिन, मैं तो हंमेशा यही मालपुआ खाउन्गा। ओह बहिन, देखोना इस से तो रस भी निकल रहा है।"
(चुत से रिसते हुए पानी को देख कर मैने कहा।)

"भाई, यही तो असली माल है, हम औरतो का। ये रस, मैं तुझे अपनी चूत की थाली में सजा कर खिलाउन्गी। दोनो फांको को खोल के देख कैसी दिखती है ? हाथ से दोनो फांक पकड कर, खींच कर चूत को चिरोड कर देख।" सच बताता हुं दोनो फांको को चीर कर, मैने जब चुत के गुलाबी रस से भीगे छेद को देखा, तो मुझे यही लगा कि मेरा तो जनम सफल हो गया है। चुत के अंदर का भाग एकदम गुलाबी था और रस भीगा हुआ था जब मैने उस छेद को छुआ तो मेरे हाथों में चिप-चिपा-सा रस लग गया । मैने उस रस को वहीं बिस्तर की चद्दर पर पोंछ दिया और अपने सिर को आगे बढा कर राखी की चूत को चुम लिया। राखी ने इस पर मेरे सिर को अपनी चुत पर दबाते हुए हल्के-से सिसकाते हुए कहा,
"बिस्तर पर क्यों पोंछ दिया, उल्लु ? यही बहिन का असली प्यार है, जोकि तेरे लंड को देख के चुत के रस्ते छलक कर बाहर आ रहा है। इसको चख के देख, चुस ले इसको।"

rajaarkey
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Re: बदनाम रिश्ते

Unread post by rajaarkey » 02 Nov 2014 17:42



"हाये बहिन , चुसु मैं तेरी बुर को ? चाटु इसको ?"

"हां भाई चाट ना, चुस ले अपनी बहिन की चुत के सारे रस को। दोनो फांको को खोल के उसमे अपनी जीभ डाल दे, और चुस। और ध्यान से देख, तु तो बुर की केवल फांको को देख रहा है। देख मैं तुझे दिखाती हुं।"

और राखी ने अपनी चुत को पुरा चिरोड दिया और अंगुली रख कर बताने लगी,
"देख, ये जो छोटा वाला छेद है ना, वो मेरे पेशाब करने वाला छेद है। बुर में दो-दो छेद होते है। उपर वाला पेशाब करने के काम आता है और नीचेवाला जो ये बडा छेद है, वो चुदवाने के काम आता है। इसी छेद में से रस निकलता है, ताकि मोटे से मोटा लंड आसानी से चुत को चोद सके। और भाई ये जो पेशाब वाले छेद के ठीक उपर जो ये नुकिला सा निकला हुआ है, वो क्लीट कहलाता है। ये औरत को गर्म करने का अंतिम हथियार है। इसको छुते ही औरत एकदम गरम हो जाती है, समझ में आया ?"

"आ गया समझ में। हाय, कितनी सुंदर है, ये तुम्हारी चूत। मैं चाटु इसे बहिन ?"

"हां भाई, अब तु चाटना शुरु कर दे। पहले पुरी बुर के उपर अपनी जीभ को फिरा के चाट, फिर मैं आगे बताती जाती हुं, कैसे करना है ?"

मैने अपनी जीभ निकाल ली, और राखी की बुर पर अपनी जुबान को फिराना शुरु कर दिया। पुरी चुत के उपर मेरी जीभ चल रही थी। मैं फुली हुई गद्देदार बुर को अपनी खुरदरी जुबान से, उपर से नीचे तक चाट रहा था। अपनी जीभ को दोनो फांको के उपर फेरते हुए, मैने ठीक बुर की दरार पर अपनी जीभ रखी और मैं धीरे-धीरे उपर से नीचे तक चुत की पुरी दरार पर जीभ को फिराने लगा। बुर से रिस-रिस कर निकलता हुआ रस, जो बाहर आ रहा था उसका नमकीन स्वाद मुझे मिल रहा था। जीभ जब चुत के उपरी भाग में पहुंच कर क्लीट से टकराती थी, तो राखी की सिसकीयां और भी तेज हो जाती थी। राखी ने अपने दोनो हाथों को शुरु में तो कुछ देर तक अपनी चुचियों पर रख था, और अपनी चुचियों को अपने हाथ से ही दबाती रही। मगर बाद में उसने अपने हाथों को मेरे सिर के पिछे लगा दिया और मेरे बालों को सहलाते हुए मेरे सिर को अपनी चुत पर दबाने लगी।मेरी चुत चुसाई बादस्तुर जारी थी और अब मुझे इस बात का अंदाज हो गया था कि,राखी को सबसे ज्यादा मजा अपनी क्लीट की चुसाई में आ रहा है। इसलिये मैने इस बार अपनी जीभ को नुकिला कर के, क्लीट से भिडा दिया और केवल क्लीट पर अपनी जीभ को तेजी से चलाने लगा। मैं बहुत तेजी के साथ क्लीट के उपर जीभ चला रहा था और फिर पुरी क्लीट को अपने होंठो के बीच दबा कर, जोर-जोर से चुसने लगा। राखी ने उत्तेजना में अपने चुतडों को उपर उछाल दिया और जोर से सिसकीयां लेते हुए बोली,
"हाये दैया, उईई मां,,,,,,, शी शी,,,,, चुस ले, ओह,,,,,, चुस ले,,,, मेरे भगनशे को। ओह, शीश,,,, क्या खुब चुस रहा है रे तु ???? ओह म,,मैने तो सोचा भी नही थाआआआ,,,, कि तेरी जीभ ऐसा कमाल करेगी। हाये रे,,,,, भाईआ,,,,, तु तो कमाल का निकला,,,,,,,, आह, ओओओह,,,,, ऐसे ही चुस,,, अपने होंठो के बीच में भगनशे को भर के,,,, इसी तरह से चुस ले, ओह भाई चुसो, चुसो भाई,,,,,,,"

राखी के उत्साह बढाने पर मेरी उत्तेजना अब दुगुनी हो चुकी थी। मैं दुगुने जोश के साथ, एक कुत्ते की तरह से लप-लप करते हुए, पुरी बुर को चाटे जा रहा था। अब मैं चुत के भगनशे के साथ-साथ पुरी चुत के मंस (गुद्दे) को अपने मुंह में भर कर चुस रहा था, और राखी की मोटी फुली हुई चुत अपने झांठो समेत मेरे मुंह में थी। पुरी राखी को एक बार रसगुल्ले की तरह से मुंह में भर कर चुसने के बाद, मैने अपने होंठो को खोल कर चुत के चोदनेवाले छेद के सामने टिका दिया, और बुर के होंठो से अपने होंठो को मिला कर मैने खूब जोर-जोर से चुसना सुरु कर दिया। बुर का नशिला रस रिस-रिस कर निकल रहा था, और सीधा मेरे मुंह में जा रहा था। मैने कभी सोचा भी नही था कि, मैं चुत को ऐसे चुसुन्गा, या फिर चुत की चुसाई ऐसे कि जाती है। पर शायद चुत सामने देख कर चुसने की कला अपने आप आ जाती है। फुद्दी और जीभ की लडाई अपने आप में ही इतनी मजेदार होती है कि, इसे सिखने और सिखाने की जुरुरत नही पडती। बस जीभ को फुद्दी दिखा दो, बाकी का काम जीभ अपने आप कर लेती है। राखी की सिसकीयां और शाबाशी और तेज हो चुकी थी। मैने अपने सिर को हल्का-सा उठा के राखी को देखते हुए, अपने बुर के रस से भीगे होंठो से राखी से पुछा,
"कैसा लग रहा है राखी , तुझे अच्छा लग रहा है ना ?"

राखी ने सिसकाते हुए कहा,
"हाये,भाई मत पुछ, बहुत अच्छा लग रहा है, मेरे भाई । इसी मजे के लिये तो तेरी बहिन तरस रही थी। चुस ले मेरी बुर कोओओओओओओ,,,,, और जोर से चुस्स्स्स्स्स्स्,,,,, सारा रस पी लेएएएएए मेरे सैंया, तु तो जादुगर है रेएएएएएएएए, तुझे तो कुछ बताने की भी जुरुरत नही। हाये मेरी बुर की फांको के बीच में अपनी जीभ डाल के चुस भाई , और उसमे अपनी जीभ को लबलबाते हुए अपनी जीभ को मेरी चुत के अंदर तक घुमा दे। हाये घुमा दे, राजा भाई घुमा दे,,,,,,,"

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