मेने उसकी टांगो को थोड़ा फैलते हुए अपनी जीब उसकी चूत के मुँह पर रख दी, "ओह आआआअहह ओह." उसके मुँह से सिसकारी निकल पड़ी.
मैं अपनी ज़ुबान उसकी चूत के चारों तरफ फिरा रही थी कि बबिता ने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपनी ओर उठाते हुए पूछा, "दीदी तुम सही मे ये करना चाहती हो?"
"हां मैं तो करना चाहती हूँ, क्या तुम भी करना चाहती हो?" मेने उसकी चूत पर जीभ फिराते हुए कहा.
बबिता ने मेरे सिर को अपनी चूत पर दबा दिया और बोली, "ःआआआआण मीयेयिन कायर्नायये चाहती हूओन ऊहह प्रीईएटी मुझे प्याअर कारू."
उसकी चूत से उठ रही सुगंध मुझे बहोत अछी लग रही थी, में उसकी चूत का स्वाद भी लेना चाहती थी. मेने अपनी जीब उसकी चूत मे घुसाइ और चाटने लगी. उसकी चूत का स्वाद उसकी सुगंध से भी बेहतर था.
मेने अपने आपको ठीक उसकी टाँगो के बीच कर लिया और उसकी चूत को चाटने और चूसने लगी. चूत चूस्ते मेने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत के अंदर डाल दी और अंदर बाहर करने लगी.
बबिता जोरों से सिसक रही थी, "ओह डीईईईड्डी चूऊवसो हाआँ और ज़ोर से ओह अया आआआआज़ तक किसीस ने मेरी चूओत को आईसीई नही चूवसा."
बबिता उत्तेजना मे अपने कूल्हे उपर को उठा मेरी जीब को और अंदर तक घुसाने की कोशिश करने लगी. उसने नीचे से खुल्हे उठाए और उपर से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबा दिया, मुझे लगा कि मेरी जीब उसकी बच्चेदानि को छू रही थी.
बबिता ज़ोर से चीखी, "हाआँ ख़ाा जाओ मेरी चूऊत को ओह हाां ऑश मेराअ चूऊओटा." कहकर उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया.
बबिता की चूत भी मेरी चूत की तरह धार मार कर पानी छोड़ती थी. मैं अपने होठों से उसकी चूत को मुँह में भर लिया और उसका रस का स्वाद लेने लगी. मैं एक एक बूँद चूस चूस कर पी रही थी. मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरी जन्मों की प्यास बुझ रही थी.
बबिता निढाल होकर लेटी थी. मैं भी लेट कर अपनी उंगलियाँ अपनी चूत मे डाल अब अंदर बाहर कर रही थी. मेरे बदन मे आग लगी हुई थी और में भी झड़ने को बेताब थी.
बबिता ने जब मुझे मुठियाते देखा तो पूछा, "दीदी क्या में तुम्हारी चूत को छू सकती हूँ?'
मेने अपनी गर्दन हां मे हिलाई और बबिता अब मेरी टाँगो के बीच आ गयी. उसने धीरे से मेरी चूत पर हाथ फिराना शुरू किया.
मेने कई औरतों के साथ समय बिताया था पर ऐसा लग रहा था कि बबिता की उंगलियों मे जादू था. उसके हाथ लगाते ही एक अजीब नशा मेरे शरीर मे छा गया.
बबिता मेरे बदन को चूमते हुए नीचे की ओर आई और मेरी चूत को मुँह मे भर चूसने लगी. वो अपनी जीब को मेरी चूत के चारों और फिराते तो मुझे बड़ा अछा लगता. मैं भी उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके चुतताड मसल रही थी.
बबिता ने मेरी जांघों को थोड़ा उठा कर अपने कंधे पर रख लिया जिससे मेरी चूत उपर को उठ गयी. उसने दोनो हाथों से मेरे कूल्हे पकड़ रखे थे और मेरी चूत मे अपनी ज़ुबान अंदर बाहर कर रही थी.
मैं उत्तेजना मे पागल हुए जा रही थी. मेने अपनी टाँगो को उसकी गर्दन मे फँसा लिया था और अपनी चूत को उँचा उठा उसके मुँह मे दबा रही थी.
मुझसे सहन नही हो रहा था, मेरे सारे शरीर मे मानो चीटियाँ रेंग रही थी, में चिल्ला रही थी, "ओह हाआअँ चूऊवसूओ ओह आअहह जूऊर सीई ओह."
बबिता अब और जोरों से मेरी चूत मे अपनी जीब और होठों का कमाल दिखा रही थी. मेरा झड़ने का वक़्त आ गया था मेने अपनी चूत को और दबाते हुए पानी छोड़ दिया, जैसे कोई बाँध टूट गया हो मेरी चूत पानी पर पानी छोड़ रही थी.
वो अपने होठों से मेरा सारा पानी पी गयी फिर ज़ुबान चारों ओर फिरा मेरे रस को चाट रही थी.
मैं निढाल हो अपनी सांसो पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. बबिता मेरे बगल मे लेटते हुए बोली, "प्रीति मुझे नही पता था कि तुम इतनी गरम औरत हो?"
"हां और मुझे भी नही पता थी कि इतनी अच्छी तरह से चूत चूस्ति और चाट्ती हो?' मेने उसके होठों को चूमते हुए कहा.
"मुझे औरतों के साथ सेक्स करने में माज़ा आता है, क्या तुम्हारे पास कोई खिलोने है मज़े के लिए?" बबिता ने पूछा.
"हां दो है जो शायद तुम्हे पसंद आएँगे, वही जो उन लेज़्बीयन लड़कियों ने मुझे मनाली मे दिए थे." मेने उसे याद दिलाते हुए कहा.
"तब तो मज़्ज़ा आ जाएगा, में तो रुक नही सकती, और में रश्मि को भी अछी तरह से जान लेना चाहती हूँ." बबिता बोली.
"ज़रूर तुम्हारे जाने से पहले तुम्हे हर चीज़ का मज़ा मिलेगा ये मेरा वादा है." मेने कहा.
उसके बाद पूरे दिन हम बातें करते रहे. दोपहर को हमारा खेल एक बार फिर चला. शाम को प्रशांत अपने काम से वापस आया और हम दोनो को रात के खाने के लिए बाहर ले गया.
मैं और मेरी बहू compleet
Re: मैं और मेरी बहू
राज, रश्मि और रवि ने घर पर ही रहना चाहा. मुझे नही मालूम था कि उन तीनो के दिमाग़ मे क्या था, में तो बस यही प्रार्थना कर रही थी कि जब हम वापस आएँ तो वो अपने कमरे मे हों.
प्रशांत रवि के बारे मे जानने के लिए बहोत उत्सुक था. मेने उसे बता दिया कि रवि राज का जिगरी दोस्त है और कुछ दिनो के लिए हमारे साथ रह रहा है. बबिता मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दी.
मेने देखा कि प्रशांत मेरी तरफ कुछ ज़्यादा ही आकर्षित हो रहा था. मेने ध्यान दिया कि जब हम रेस्टोरेंट मे खाने की लिए घुसे तो प्रशांत ने मेरे कूल्हे हल्के से सहला दिए थे. पर उस रात ये हरकत उसने कई बार की पर हर बार अंजान बना रहा.
जब हम तीनो घर पहुँचे तो मेने चैन की सांस ली. राज रश्मि और रवि अपने कमरे मे थे, वरना मेने तो सोचा था कि वो तीनो यही हॉल मे चुदाई कर रहे होंगे.
हम तीनो ने एक दूसरे से विदा ली और में अपने कमरे मे आ गयी. प्रशांत और बबिता गेस्ट बेडरूम मे चले गये. थोड़ी ही देर मे मुझे उनके सिसकने और मादकता के शब्द सुनाई देने लगे. मेने चुप चाप सो गयी, किसी को मेरे और मेरी बेहन के रिश्तों के बारे मे पता नही चला था.
शुक्रवार की शाम मेरी बेहन के नाम
शुक्रवार की सुबह प्रशांत अपने काम से चला गया. मैं और बबिता दोनो दोपहर को खाने के टेबल पर बैठे थे कि रश्मि भी हमारे साथ आ बैठ गयी. शाम तक हम सब बातें करते रहे. बबिता रश्मि के साथ काफ़ी घुलमिल गयी थी.
शाम को मैं सब के लिए चाइ बनाने किचन मे चली गयी. वापस लौटती हूँ तो देखती हूँ कि रस्मी और बबिता नंगे हो सोफे पर 69 की मुद्रा मे हो एक दूसरे की चूत चूस रहे थे.
दोनो एक दूसरे की चूत चूस रहे थे और साथ एक दूसरे की गंद मे उंगली डाल अंदर बाहर कर रहे थे, जब वो दोनो झड़कर अलग हुए तो मेने कहा, "चलो चाइ तय्यार हो पी लो. मुझे तुम दोनो को एक मिनिट के लिए भी अकेले नही छोड़ना चाहिए था." मेने हंसते हुए कहा.
बबिता पहले बोली, "तुम सही कहती थी प्रीति, रश्मि से अछी चूत कोई नही चूस्ता, तभी मैं सोचूँ कि ये इतनी अछी टीचर कैसे बन गयी."
"बहुत आसान काम है बबिता, जब तुम्हारी जैसी गरम और मुलायम चूत सामने हो तो कोई भी चूस सकता, सही बोलू तो चाइ के स्वाद से तुम्हारी चूत का स्वाद मुँह से चला गया, मैं तो एक बार फिर तुम्हारी चूत चूसना चाहूँगी." रश्मि अपने होठों पर ज़ुबान फेरते हुए बोली.
"आज से ये चूत तुम्हारी है, तुम जब चाहो इसे चूस सकती हो काट सकती हो." बबिता ने अपनी चूत पे हाथ फेरते हुए कहा.
"ज़रा आराम से बबिता, तुम्हारे और प्रशांत के सामने अभी तो पूरी रात बाकी पड़ी है." मेने बबिता को याद दिलाते हुए कहा.
"बबिता तुम लोग एक काम क्यों नही करती, दो तीन दिन रुकने के बजाए पूरा हफ़्ता क्यों नही रुक जाते, साथ मे मौज मस्ती करेंगे बहोत मज़ा आएगा." रश्मि ने कहा.
"पता नही, प्रशांत को वहाँ ऑफीस मे काम है और फिर मेरा बेटा सन्नी भी तो सोमवार को घर आने वाला है." बबिता ने बताया.
"बबिता ये घर तुम्हारा है, तुम लोग जितने दिन चाहो यहाँ रह सकते हो. फिर तुम प्रशांत से बात करके तो देखो, शायद कोई रास्ता निकल आए, फिर तुम सन्नी को यही बुला लेना." मेने कहा.
"सुनकर तो अच्छा लग रहा है, में प्रशांत से बात करके देखूँगी." बबिता थोड़ा खुश होते हुए बोली.
"बबिता घड़ी देख लो, आज तुम्हे प्रशांत के साथ बाहर भी तो जाना है, चलो तय्यार हो जाओ?" मेने बबिता को एक बार फिर याद दिलाया.
"हां तुम सही कह रही हो, मुझे अभी नहाना भी है और फिर बाल भी तो बनाना है." कहकर बबिता बाथरूम की ओर जाने लगी.
"अगर तुम्हे ऐतराज़ ना हो तो क्या में तुम्हारे साथ शवर ले लूँ?" रश्मि ने बबिता से कहा.
"मुझे क्या ऐतराज़ होगा, बल्कि मुझे तो मज़ा आएगा." बबिता ने रश्मि का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ बाथरूम मे ले गयी.
"घड़ी पर नज़र रखना, प्रशांत टाइम का पाबंद है, मस्ती मे कहीं तुम समय को ही भूल जाओ." मेने पीछे से चिल्ला कर कहा.
करीब आधे घंटे बाद रश्मि बाथरूम से एक पारदर्शी गाउन पहने आई और सोफे पर बैठ गयी. दस मिनिट के बाद प्रशांत भी आया और पूछा, "बबिता कहाँ है?"
"वो गेस्ट रूम मे तय्यार हो रही है." मेने जवाब दिया. मेने गौर किया कि प्रशांत की नज़रें रश्मि के बदन पर गढ़ी हुई थी. वो उसके पारदर्शी गाउन से झलकते नंगे जिस्म को अपनी आँखों से नाप तौल रहा था.
"मैं भी जाकर तय्यार हो जाता हूँ." प्रशांत ने कहा.
प्रशांत रवि के बारे मे जानने के लिए बहोत उत्सुक था. मेने उसे बता दिया कि रवि राज का जिगरी दोस्त है और कुछ दिनो के लिए हमारे साथ रह रहा है. बबिता मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दी.
मेने देखा कि प्रशांत मेरी तरफ कुछ ज़्यादा ही आकर्षित हो रहा था. मेने ध्यान दिया कि जब हम रेस्टोरेंट मे खाने की लिए घुसे तो प्रशांत ने मेरे कूल्हे हल्के से सहला दिए थे. पर उस रात ये हरकत उसने कई बार की पर हर बार अंजान बना रहा.
जब हम तीनो घर पहुँचे तो मेने चैन की सांस ली. राज रश्मि और रवि अपने कमरे मे थे, वरना मेने तो सोचा था कि वो तीनो यही हॉल मे चुदाई कर रहे होंगे.
हम तीनो ने एक दूसरे से विदा ली और में अपने कमरे मे आ गयी. प्रशांत और बबिता गेस्ट बेडरूम मे चले गये. थोड़ी ही देर मे मुझे उनके सिसकने और मादकता के शब्द सुनाई देने लगे. मेने चुप चाप सो गयी, किसी को मेरे और मेरी बेहन के रिश्तों के बारे मे पता नही चला था.
शुक्रवार की शाम मेरी बेहन के नाम
शुक्रवार की सुबह प्रशांत अपने काम से चला गया. मैं और बबिता दोनो दोपहर को खाने के टेबल पर बैठे थे कि रश्मि भी हमारे साथ आ बैठ गयी. शाम तक हम सब बातें करते रहे. बबिता रश्मि के साथ काफ़ी घुलमिल गयी थी.
शाम को मैं सब के लिए चाइ बनाने किचन मे चली गयी. वापस लौटती हूँ तो देखती हूँ कि रस्मी और बबिता नंगे हो सोफे पर 69 की मुद्रा मे हो एक दूसरे की चूत चूस रहे थे.
दोनो एक दूसरे की चूत चूस रहे थे और साथ एक दूसरे की गंद मे उंगली डाल अंदर बाहर कर रहे थे, जब वो दोनो झड़कर अलग हुए तो मेने कहा, "चलो चाइ तय्यार हो पी लो. मुझे तुम दोनो को एक मिनिट के लिए भी अकेले नही छोड़ना चाहिए था." मेने हंसते हुए कहा.
बबिता पहले बोली, "तुम सही कहती थी प्रीति, रश्मि से अछी चूत कोई नही चूस्ता, तभी मैं सोचूँ कि ये इतनी अछी टीचर कैसे बन गयी."
"बहुत आसान काम है बबिता, जब तुम्हारी जैसी गरम और मुलायम चूत सामने हो तो कोई भी चूस सकता, सही बोलू तो चाइ के स्वाद से तुम्हारी चूत का स्वाद मुँह से चला गया, मैं तो एक बार फिर तुम्हारी चूत चूसना चाहूँगी." रश्मि अपने होठों पर ज़ुबान फेरते हुए बोली.
"आज से ये चूत तुम्हारी है, तुम जब चाहो इसे चूस सकती हो काट सकती हो." बबिता ने अपनी चूत पे हाथ फेरते हुए कहा.
"ज़रा आराम से बबिता, तुम्हारे और प्रशांत के सामने अभी तो पूरी रात बाकी पड़ी है." मेने बबिता को याद दिलाते हुए कहा.
"बबिता तुम लोग एक काम क्यों नही करती, दो तीन दिन रुकने के बजाए पूरा हफ़्ता क्यों नही रुक जाते, साथ मे मौज मस्ती करेंगे बहोत मज़ा आएगा." रश्मि ने कहा.
"पता नही, प्रशांत को वहाँ ऑफीस मे काम है और फिर मेरा बेटा सन्नी भी तो सोमवार को घर आने वाला है." बबिता ने बताया.
"बबिता ये घर तुम्हारा है, तुम लोग जितने दिन चाहो यहाँ रह सकते हो. फिर तुम प्रशांत से बात करके तो देखो, शायद कोई रास्ता निकल आए, फिर तुम सन्नी को यही बुला लेना." मेने कहा.
"सुनकर तो अच्छा लग रहा है, में प्रशांत से बात करके देखूँगी." बबिता थोड़ा खुश होते हुए बोली.
"बबिता घड़ी देख लो, आज तुम्हे प्रशांत के साथ बाहर भी तो जाना है, चलो तय्यार हो जाओ?" मेने बबिता को एक बार फिर याद दिलाया.
"हां तुम सही कह रही हो, मुझे अभी नहाना भी है और फिर बाल भी तो बनाना है." कहकर बबिता बाथरूम की ओर जाने लगी.
"अगर तुम्हे ऐतराज़ ना हो तो क्या में तुम्हारे साथ शवर ले लूँ?" रश्मि ने बबिता से कहा.
"मुझे क्या ऐतराज़ होगा, बल्कि मुझे तो मज़ा आएगा." बबिता ने रश्मि का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ बाथरूम मे ले गयी.
"घड़ी पर नज़र रखना, प्रशांत टाइम का पाबंद है, मस्ती मे कहीं तुम समय को ही भूल जाओ." मेने पीछे से चिल्ला कर कहा.
करीब आधे घंटे बाद रश्मि बाथरूम से एक पारदर्शी गाउन पहने आई और सोफे पर बैठ गयी. दस मिनिट के बाद प्रशांत भी आया और पूछा, "बबिता कहाँ है?"
"वो गेस्ट रूम मे तय्यार हो रही है." मेने जवाब दिया. मेने गौर किया कि प्रशांत की नज़रें रश्मि के बदन पर गढ़ी हुई थी. वो उसके पारदर्शी गाउन से झलकते नंगे जिस्म को अपनी आँखों से नाप तौल रहा था.
"मैं भी जाकर तय्यार हो जाता हूँ." प्रशांत ने कहा.
प्रशांत मूड कर गेस्ट रूम की ओर जाने लगा, मेने देखा कि उसका लंड खड़ा होकर पॅंट मे एक तंबू सा बन गया था. में सोच रही थी कि उसका लंड दिखने मे कितना बड़ा होगा? जिस हिसाब से सब कुछ हो रहा है, इससे ये सब मुझे जल्द ही पता लग जाएगा.
एक घंटे के बाद प्रशांत और बबिता तय्यार होकर आए. दोनो ही आज खूब सज धज कर आए थे. इन दोनो की जोड़ी वाकई मे बहोत ही सुन्दर लग रही थी. दोनो बाहर चले गये.
राज, रश्मि और रवि अपने दोस्तों के साथ बाहर चले गये. वो लोग रात को देरी से आने वाले थे, मैने खाना खाया और एक पतला सा गाउन बिना कुछ अंदर पहने सोफे पर बैठ पिक्चर देखने लगी. कब मुझे नींद आ गयी मुझे पता ही नही चला. मेरी आँख तब खुली जब प्रशांत और बबिता घर आए.
मेने उठ कर दरवाज़ा खोला और बबिता को अपनी बाहों मे ले लिया. उसकी सांसो से शराब की महक आ रही थी. उसने भी मुझे बाहों मे लेते हुए मेरी पीठ सहलाई और फिर नीचे की ओर अपने हाथ लेजाकार मेरे कूल्हे सहलाने लगी. प्रशांत के सामने वो ऐसा कर रही थी ये देख में चौंक गयी थी.
"प्रीति क्या तुम मेरी ड्रेस उतार दोगि प्लीज़?" बबिता ने मुझसे कहा.
प्रशांत अभी भी कमरे मे ही था और वो मुझसे खुद के कपड़े उतारने को कह रही थी. प्रशांत हॉल मे पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गया और हमे देखने लगा. मेने आगे बढ़ कर उसकी ड्रेस को उतार दिया. उसकी नंगी पीठ पर में अपने हाथ फिराने लगी, उसके बदन को स्पर्श करते ही मुझे महसूस हुआ की मेरी चूत गीली हो गयी है.
"प्रीति प्लीज़ रुकना नही, तुम्हारा हाथ काफ़ी गरम है और मुझे अपने शरीर पर तुम्हारा हाथ काफ़ी अच्छा लग रहा है." बबिता उत्तेजना भरे स्वर मे बोली.
में अपने हाथों से उसके बदन को सहलाने लगी. में ये भूल चुकी थी प्रशांत कमरे मे ही मौजूद था. मैं उसके भरे भरे मम्मो को अपने हाथों मे ले मसल्ने लगी. उसके निपल तन कर खड़े हो चुके थे. मेने अपने होठ उसके होंठ पर रख दिए. फिर उसकी गर्दन को चूमते हुए मेने उसके कान की लाउ पर अपनी जीब फिराई फिर नीचे होते हुए उसकी चुचियों को चूसने लगी.
बबिता ने मेरा गाउन उठा उसे उतार दिया. फिर अपना हाथ मेरी चूत फिराते हुए उसने अपनी दो उंगली मेरी गीली चूत मे डाल दी. मेने अपने पावं को थोडा फैला उसकी उंगलियों को अपनी चूत मे जगह दी.
हम दोनों नंगे ही एक दूसरे से चिपते हुए खड़े थे, बबिता ने मेरे चेहरे को अपने हाथों मे लिया और मेरे होठों को चूसने लगी, मेने कनखियों से प्रशांत की ओर देखा. प्रशांत अपनी पॅंट और शर्ट उतार चुक्का था. कुर्सी पर बैठे अपनी अंडरवेर नीचे घुटनो तक खिसकाए वो अपने तने लंड को मसल रहा था. उसका लंड रवि जितना लंबा और मोटा तो नही थी फिर भी दिखने मे काफ़ी अच्छा लग रहा था.
बबिता ने मेरे चेहरे को एक बार फिर अपनी ओर घुमाया और मेरे होठों पर अपने होठ रखते हुए अपनी जीब मेरे मुँह मे घुसा दी. फिर अपने पावं की मदद से उसने मेरे पावं को थोडा फैलाया और एक बार फिर अपनी उंगलिया मेरी चूत मे डाल दी.
बबिता अब घुटनो के बल मेरे सामने बैठ गयी, पहले उसने मेरे पेट को चूमा फिर मेरी नाभि को और अब मेरी चूत के उपर अपनी ज़ुबान घूमाने लगी. मेने अपने हाथों से उसके सिर को अपनी चूत पर दबा दिया. बबिता ने अपनी उंगलियों से मेरी चूत को थोड़ा फैलाया कि मेरी चूत से पानी टपक कर उसकी उंगलियों पर गिर पड़ा, वो उस पानी को अपनी जीब से चाटने लगी.
"ओह बाआबबीइता ओह बाआबिता." में बड़बड़ा रही थी.
"क्या रुक जाउ में?" बबिता ने हंसते हुए पूछा.
"नही, अच्छा लग रहा है, पर प्रशांत क्या सोचेगा." मेने कहा.
"प्रशांत को पता है." उसने कहा.
"पता है, क्या पता है?" मेने खुद से पूछा, मेने गर्दन घुमाई तो देखा वो अपने लंड को पकड़े जोरों से मूठ मार रहा था.
बबिता ने अपनी उंगली मेरी चूत से बाहर निकाली और चाट कर एकदम साफ कर दी. उसने एक बार फिर अपनी उंगली मेरी चूत मे डाली और फिर मेरे रस से भीगी अपनी उंगली को बाहर निकाला और मेरे मुँहे मे दे दी.
"लो अपने रस का स्वाद चाखो?" उसने कहा.
लगता था कि शराब का नशा उसे चढ़ा हुआ था. आज वो ज़्यादा उत्तेजित लग रही थी. मेने खूब जोरों से उसकी उंगलियों को चूसने लगी. बबिता ने अपने मुँह को मेरी चूत पर रखा और जोरों से चूसने लगी. उसका चेहरा मेरी गुलाबी चूत मे पूरी तरह से छुपा हुआ था और उसकी तीन उंगलिया मेरी चूत के अंदर बाहर हो रही थी.
बबिता ने मेरे कूल्हे पकड़े और अपने मुँह पर और जोरों से दबा दिए. उसकी जीब मेरी चूत के चारों और घूमाते हुए चाट रही थी. मुझे लगा की मानो आज बबिता पागल हो गयी है, वो इतनी जोरों से मेरी चूत को चूस और चाट रही थी.
मेरी साँसे तेज हो गयी थी, जिसकी वजह से मेरी छातियाँ उपर नीचे हो रही थी. गहरी सांस लेते हुए मेने उसके सिर को और जोरों से अपनी चूत पर दबाया और पानी छोड़ दिया. बाहिता का पूरा चेहरा मेरे पानी से भीग गया था. में थक कर नीचे ज़मीन पर लुढ़क गयी.
मेने प्रशांत की ओर देखा, वो अब भी एक हाथ से अपने लंड को पकड़े मूठ मार रहा था और दूसरे हाथ से अपने अंडकोषों को सहला रहा था.
"क्यों ना हम बेडरूम मे चलते है? बच्चे कभी यहाँ आ सकते है." मेने एक कमज़ोर आवाज़ मे कहा.
वैसे तो राज, रश्मि और रवि को आनंद आता हमे इस हालात मे देखकर पर मे नही चाहती थी कि आज ये सब हो. जैसे हम कमरे में पहुँचे मेने बबिता को पलंग पर धकेल दिया और उसकी टाँगों को फैला दिया. अब में उसकी चूत वैसे ही चूसने जा रही थी जैसे उसने मेरी चूत थोड़ी देर पहले चूसी थी.
बबिता की चूत काफ़ी गीली हो चुकी थी. मैं हल्के से अपनी ज़ुबान उसकी चूत के चारों और घूमाने लगी. में थोड़ी देर उसे तड़पाना और चिढ़ाना चाहती थी. उसने अपनी उंगली अपनी चूत मे डालने की कोशिश पर मेने उसके हाथ को झटक दिया.
बबिता ने एक बार फिर कोशिश की तो मेने उसके हाथों को उसके सिर के पीछे कर दिया और प्रशांत को मदद के लिए बुलाया. प्रशांत अब पूरी तरह नंगा हो चुक्का था, और जब उसने अपनी बीवी के हाथों को कस कर पकड़ा तो उसका तना हुआ लंड बबिता के चेहरे के ठीक सामने था.
में जोरों से अपनी ज़ुबान उसकी चूत पर फिरा रही थी. उसकी चूत और गरम और कड़ी होती जा रही थी. पर मेरे मन में तो आज उसकी चूत के साथ पूरी तरह खेलने का था, में बिस्तर से उठी और अपनी अलमारी से एक डिल्डो निकालने लगी.
"इसे कस के पकड़ के रखना?" मेने प्रशांत से कहा.
"प्रीति तुम क्या कर रही हो? कहाँ जा रही हो, प्लीज़ यहाँ वापस आओ मेरी चूत चूसो मुझे झड़ना है." बबिता सिसक कर बोली.
तभी बबिता ने मुझे अलमारी से वो नकली लंड निकालते देखा, "ये क्या हो रहा है, तुम इसके साथ क्या करने वाली हो?' वो थोड़ा डरते हुए पूछी.
"अब स्थिति तुम्हारे बस मे नही है बबिता, ये नकली लंड तुम्हे वासना उत्तेजना की उचाइन्यो तक ले जाएगा ये में जानती हू." मेने कहा.
एक घंटे के बाद प्रशांत और बबिता तय्यार होकर आए. दोनो ही आज खूब सज धज कर आए थे. इन दोनो की जोड़ी वाकई मे बहोत ही सुन्दर लग रही थी. दोनो बाहर चले गये.
राज, रश्मि और रवि अपने दोस्तों के साथ बाहर चले गये. वो लोग रात को देरी से आने वाले थे, मैने खाना खाया और एक पतला सा गाउन बिना कुछ अंदर पहने सोफे पर बैठ पिक्चर देखने लगी. कब मुझे नींद आ गयी मुझे पता ही नही चला. मेरी आँख तब खुली जब प्रशांत और बबिता घर आए.
मेने उठ कर दरवाज़ा खोला और बबिता को अपनी बाहों मे ले लिया. उसकी सांसो से शराब की महक आ रही थी. उसने भी मुझे बाहों मे लेते हुए मेरी पीठ सहलाई और फिर नीचे की ओर अपने हाथ लेजाकार मेरे कूल्हे सहलाने लगी. प्रशांत के सामने वो ऐसा कर रही थी ये देख में चौंक गयी थी.
"प्रीति क्या तुम मेरी ड्रेस उतार दोगि प्लीज़?" बबिता ने मुझसे कहा.
प्रशांत अभी भी कमरे मे ही था और वो मुझसे खुद के कपड़े उतारने को कह रही थी. प्रशांत हॉल मे पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गया और हमे देखने लगा. मेने आगे बढ़ कर उसकी ड्रेस को उतार दिया. उसकी नंगी पीठ पर में अपने हाथ फिराने लगी, उसके बदन को स्पर्श करते ही मुझे महसूस हुआ की मेरी चूत गीली हो गयी है.
"प्रीति प्लीज़ रुकना नही, तुम्हारा हाथ काफ़ी गरम है और मुझे अपने शरीर पर तुम्हारा हाथ काफ़ी अच्छा लग रहा है." बबिता उत्तेजना भरे स्वर मे बोली.
में अपने हाथों से उसके बदन को सहलाने लगी. में ये भूल चुकी थी प्रशांत कमरे मे ही मौजूद था. मैं उसके भरे भरे मम्मो को अपने हाथों मे ले मसल्ने लगी. उसके निपल तन कर खड़े हो चुके थे. मेने अपने होठ उसके होंठ पर रख दिए. फिर उसकी गर्दन को चूमते हुए मेने उसके कान की लाउ पर अपनी जीब फिराई फिर नीचे होते हुए उसकी चुचियों को चूसने लगी.
बबिता ने मेरा गाउन उठा उसे उतार दिया. फिर अपना हाथ मेरी चूत फिराते हुए उसने अपनी दो उंगली मेरी गीली चूत मे डाल दी. मेने अपने पावं को थोडा फैला उसकी उंगलियों को अपनी चूत मे जगह दी.
हम दोनों नंगे ही एक दूसरे से चिपते हुए खड़े थे, बबिता ने मेरे चेहरे को अपने हाथों मे लिया और मेरे होठों को चूसने लगी, मेने कनखियों से प्रशांत की ओर देखा. प्रशांत अपनी पॅंट और शर्ट उतार चुक्का था. कुर्सी पर बैठे अपनी अंडरवेर नीचे घुटनो तक खिसकाए वो अपने तने लंड को मसल रहा था. उसका लंड रवि जितना लंबा और मोटा तो नही थी फिर भी दिखने मे काफ़ी अच्छा लग रहा था.
बबिता ने मेरे चेहरे को एक बार फिर अपनी ओर घुमाया और मेरे होठों पर अपने होठ रखते हुए अपनी जीब मेरे मुँह मे घुसा दी. फिर अपने पावं की मदद से उसने मेरे पावं को थोडा फैलाया और एक बार फिर अपनी उंगलिया मेरी चूत मे डाल दी.
बबिता अब घुटनो के बल मेरे सामने बैठ गयी, पहले उसने मेरे पेट को चूमा फिर मेरी नाभि को और अब मेरी चूत के उपर अपनी ज़ुबान घूमाने लगी. मेने अपने हाथों से उसके सिर को अपनी चूत पर दबा दिया. बबिता ने अपनी उंगलियों से मेरी चूत को थोड़ा फैलाया कि मेरी चूत से पानी टपक कर उसकी उंगलियों पर गिर पड़ा, वो उस पानी को अपनी जीब से चाटने लगी.
"ओह बाआबबीइता ओह बाआबिता." में बड़बड़ा रही थी.
"क्या रुक जाउ में?" बबिता ने हंसते हुए पूछा.
"नही, अच्छा लग रहा है, पर प्रशांत क्या सोचेगा." मेने कहा.
"प्रशांत को पता है." उसने कहा.
"पता है, क्या पता है?" मेने खुद से पूछा, मेने गर्दन घुमाई तो देखा वो अपने लंड को पकड़े जोरों से मूठ मार रहा था.
बबिता ने अपनी उंगली मेरी चूत से बाहर निकाली और चाट कर एकदम साफ कर दी. उसने एक बार फिर अपनी उंगली मेरी चूत मे डाली और फिर मेरे रस से भीगी अपनी उंगली को बाहर निकाला और मेरे मुँहे मे दे दी.
"लो अपने रस का स्वाद चाखो?" उसने कहा.
लगता था कि शराब का नशा उसे चढ़ा हुआ था. आज वो ज़्यादा उत्तेजित लग रही थी. मेने खूब जोरों से उसकी उंगलियों को चूसने लगी. बबिता ने अपने मुँह को मेरी चूत पर रखा और जोरों से चूसने लगी. उसका चेहरा मेरी गुलाबी चूत मे पूरी तरह से छुपा हुआ था और उसकी तीन उंगलिया मेरी चूत के अंदर बाहर हो रही थी.
बबिता ने मेरे कूल्हे पकड़े और अपने मुँह पर और जोरों से दबा दिए. उसकी जीब मेरी चूत के चारों और घूमाते हुए चाट रही थी. मुझे लगा की मानो आज बबिता पागल हो गयी है, वो इतनी जोरों से मेरी चूत को चूस और चाट रही थी.
मेरी साँसे तेज हो गयी थी, जिसकी वजह से मेरी छातियाँ उपर नीचे हो रही थी. गहरी सांस लेते हुए मेने उसके सिर को और जोरों से अपनी चूत पर दबाया और पानी छोड़ दिया. बाहिता का पूरा चेहरा मेरे पानी से भीग गया था. में थक कर नीचे ज़मीन पर लुढ़क गयी.
मेने प्रशांत की ओर देखा, वो अब भी एक हाथ से अपने लंड को पकड़े मूठ मार रहा था और दूसरे हाथ से अपने अंडकोषों को सहला रहा था.
"क्यों ना हम बेडरूम मे चलते है? बच्चे कभी यहाँ आ सकते है." मेने एक कमज़ोर आवाज़ मे कहा.
वैसे तो राज, रश्मि और रवि को आनंद आता हमे इस हालात मे देखकर पर मे नही चाहती थी कि आज ये सब हो. जैसे हम कमरे में पहुँचे मेने बबिता को पलंग पर धकेल दिया और उसकी टाँगों को फैला दिया. अब में उसकी चूत वैसे ही चूसने जा रही थी जैसे उसने मेरी चूत थोड़ी देर पहले चूसी थी.
बबिता की चूत काफ़ी गीली हो चुकी थी. मैं हल्के से अपनी ज़ुबान उसकी चूत के चारों और घूमाने लगी. में थोड़ी देर उसे तड़पाना और चिढ़ाना चाहती थी. उसने अपनी उंगली अपनी चूत मे डालने की कोशिश पर मेने उसके हाथ को झटक दिया.
बबिता ने एक बार फिर कोशिश की तो मेने उसके हाथों को उसके सिर के पीछे कर दिया और प्रशांत को मदद के लिए बुलाया. प्रशांत अब पूरी तरह नंगा हो चुक्का था, और जब उसने अपनी बीवी के हाथों को कस कर पकड़ा तो उसका तना हुआ लंड बबिता के चेहरे के ठीक सामने था.
में जोरों से अपनी ज़ुबान उसकी चूत पर फिरा रही थी. उसकी चूत और गरम और कड़ी होती जा रही थी. पर मेरे मन में तो आज उसकी चूत के साथ पूरी तरह खेलने का था, में बिस्तर से उठी और अपनी अलमारी से एक डिल्डो निकालने लगी.
"इसे कस के पकड़ के रखना?" मेने प्रशांत से कहा.
"प्रीति तुम क्या कर रही हो? कहाँ जा रही हो, प्लीज़ यहाँ वापस आओ मेरी चूत चूसो मुझे झड़ना है." बबिता सिसक कर बोली.
तभी बबिता ने मुझे अलमारी से वो नकली लंड निकालते देखा, "ये क्या हो रहा है, तुम इसके साथ क्या करने वाली हो?' वो थोड़ा डरते हुए पूछी.
"अब स्थिति तुम्हारे बस मे नही है बबिता, ये नकली लंड तुम्हे वासना उत्तेजना की उचाइन्यो तक ले जाएगा ये में जानती हू." मेने कहा.