मुझे सब कुछ अजीब लग रहा था मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर वो करना क्या चाहता है ?
मेरी समझ से सब कुछ बाहर था. उष्का बर्ताव कुछ बदला बदला सा लग रहा था.
पर मुझे इस बात का सकुन था कि अब वो मुझे परेशान नही करेगा.
मुझे लग रहा था कि मुझे संजय को सब कुछ बता कर उनसे माफी माँग लेनी चाहिए.
पर उन्हे सब कुछ कैसे बताउ समझ नही पा रही थी.
मैं बहुत सोचने के बाद भी कोई फ़ैसला नही कर पाई.
मुझे नही लगता था कि संजय सब कुछ जान-ने के बाद मुझे माफ़ कर पाएँगे.
मुझे पता नही क्यो बिल्लू की बात पर विस्वास था कि वो मुझे ब्लॅकमेल नही करेगा. और ऐसा हुवा भी.
इश्लीए मैने संजय को सब कुछ बताना ठीक नही समझा. मैं अपने परिवार को हर हाल में बचाना चाहती थी.
अगले कुछ दिन शांति से बीत गये. मैं फिर से अपने परिवार में खो गयी.
एक दिन सुबह की बात है मैं अख़बार पढ़ रही थी.
एक खबर देख कर मैं चोंक गयी.
साइकल वाला जो मुझे परेशान करता था उसकी फोटो छपी थी और उसके नीचे लिखा था कि उसकी किसी ने हत्या कर दी, कातिल का अभी पता नही चल पाया है पोलीस की जाँच चल रही है. उसकी लाश एक शुन्सान गली में खून से लत-पथ मिली थी.
एक पल को लगा कि चलो अछा हुवा उस कामीने की यही सज़ा थी. पर फिर ख़याल आया कि कहीं ये सब बिल्लू ने तो नही किया ?
तभी अचानक संजय की आवाज़ सुनाई दी, अरे ऋतु इतने ध्यान से क्या पढ़ रही हो, आज नास्ता मिलेगा कि नही.
मैने कहा, कुछ नही बस यू ही. मैं अभी नास्ता तैयार करती हू.
किचन में, मैं बस यही सोच रही थी की बिल्लू उसकी अकल ठीकने लगाने को बोल तो रहा था, कहीं ये उसी का काम तो नही.
फिर मैने सोचा, जाने दो मुझे इस सब से क्या लेना देना.
संजय और चिंटू के जाने के बाद कोई 10:30 बजे का वक्त था. मैं बेडरूम में थोडा आराम कर रही थी.
अचानक फोन की घंटी बजी. ना जाने क्यो मुझे ख़याल आया कि कहीं ये बिल्लू का तो नही. शायद ये अख़बार की खबर के कारण था.
मैने झट से फोन उठाया, ये बिल्लू का ही था.
वो बोला, अब वो साइकल वाला तुझे परेशान नही करेगा.
मैने जान बुझ कर उस से पूछा, तुमने क्या किया उसके साथ ?
वो बोला, उस से तुझे क्या मतलब बस इतना समझ ले कि वो अब कभी तुझे परेशान करने नही आएगा.
मैने पूछा, आख़िर तुम साब्बित क्या करना चाहते हो ?
वो बोला, कुछ नही बस तेरी एक छोटी सी समशया दूर की है.
मेरे मूह से अचानक निकल गया तो तुमने उसे मार दिया.
छोटी सी भूल compleet
Re: छोटी सी भूल
वो बोला, चुप कर फोन पर ऐसी बात नही करते.
मैने कहा, पर तुमने ये सब ठीक नही किया.
वो बोला, क्या हम मिल कर बात कर सकते है ?
मैने कहा, नही मैं तुमसे नही मिलना चाहती.
वो बोला, प्लीज़ एक बार मिल ले तुझे देखने का मन कर रहा है, तू कहे तो मैं तेरे घर के पीछे आ जाता हूँ.
मैने कहा, तुम यहा मत आओ,
वो बोला, तो तू मुझ से उसी गार्डेन में मिलने आजा जहाँ हम पहले मिले थे.
मैने कहा, मैं तुम से कहीं भी नही मिलना चाहती.
वो बोला, मैं तेरा इंतेज़ार करूँगा. और फोन रख दिया.
मुझे नही पता कि ऐसा क्यो था पर मैं एक बार बिल्लू से मिलना चाहती थी. शायद ये अख़बार की खबर के कारण ही था.
पर मैं फिर से किसी मुसीबत में नही फँसना चाहती थी, इश्लीए मैने फ़ैसला किया कि मुझे कही नही जाना, वो इंतेज़ार करता है तो करता रहे.
मैं अपने बेडरूम में लेट गयी. पर अख़बार की खबर बार, बार मेरे दीमाग में घूम रही थी. मेरे मन में इस बात का सकुन था कि अब मुझे दुबारा उस आदमी से जॅलील नही होना पड़ेगा. पर मैं ये विश्वास नही कर पा रही थी कि बिल्लू ने उसे मार दिया.
सारा दिन मैं इन्ही विचारो में खोई रही.
अगले दिन संजय और चिंटू के जाने के बाद मैं फिर से इन्ही विचारो में खो गयी.
घर के सभी काम करने के बाद मैं नहाने चली गयी. मैं नहा कर निकली ही थी कि डोर बेल बज उठी.
मैने झट से कपड़े पहने और दरवाजे की और बढ़ गयी.
दरवाजा खोलते ही मैं चोंक गयी.
मेरे सामने बिल्लू खड़ा था.
वो धीरे से बोला, पहली बार तेरे घर आया हू क्या अंदर नही बुलाओगी ?
मैने पूछा, तुम यहा क्या कर रहे हो कोई देख लेगा.
वो बोला, तभी तो कह रहा हू मुझे अंदर आने दो.
ये कह कर वो मुझे एक तरफ हटा कर अंदर आ गया.
मुझे ना जाने क्या हो गया था. मैं वाहा खड़े खड़े तमाशा देखती रही.
मैने हिम्मत जुटा कर कहा, बिल्लू ये क्या मज़ाक है कोई तुम्हे देख लेगा तो मैं मुसीबत में पड़ जाउन्गि, तुमने वादा किया था कि तुम मुझे ब्लॅकमेल नही करोगे.
वो बोला, फिर वही बात मैं बस तुझसे मिलने आया हू. कल मैं सारा दिन गार्डेन में तेरा इंतेज़ार करता रहा पर तू नही आई. मैं बस अभी चला जाउन्गा, रही किसी के देखने की बात मैं एलेकट्रेसियन हू मैं अक्सर लोगो के घर आता जाता रहता हू. किसी को कुछ पता नही चलेगा.
ये कह कर वो दरवाजे की ओर बढ़ा और उसे बंद कर दिया, और बोला, आराम से बैठ कर बात करें.
मैने कहा बिल्लू तुम समझते क्यो नही मैं मुसीबत में फँस जाउन्गि, प्लीज़ अभी यहा से चले जाओ.
वो बोला चला जाउन्गा, जब आ ही गया हू तो थोड़ी देर रुक तो जाने दे. ये कह कर वो सामने पड़े एक सोफे पर बैठ गया.
मैने कहा, पर तुमने ये सब ठीक नही किया.
वो बोला, क्या हम मिल कर बात कर सकते है ?
मैने कहा, नही मैं तुमसे नही मिलना चाहती.
वो बोला, प्लीज़ एक बार मिल ले तुझे देखने का मन कर रहा है, तू कहे तो मैं तेरे घर के पीछे आ जाता हूँ.
मैने कहा, तुम यहा मत आओ,
वो बोला, तो तू मुझ से उसी गार्डेन में मिलने आजा जहाँ हम पहले मिले थे.
मैने कहा, मैं तुम से कहीं भी नही मिलना चाहती.
वो बोला, मैं तेरा इंतेज़ार करूँगा. और फोन रख दिया.
मुझे नही पता कि ऐसा क्यो था पर मैं एक बार बिल्लू से मिलना चाहती थी. शायद ये अख़बार की खबर के कारण ही था.
पर मैं फिर से किसी मुसीबत में नही फँसना चाहती थी, इश्लीए मैने फ़ैसला किया कि मुझे कही नही जाना, वो इंतेज़ार करता है तो करता रहे.
मैं अपने बेडरूम में लेट गयी. पर अख़बार की खबर बार, बार मेरे दीमाग में घूम रही थी. मेरे मन में इस बात का सकुन था कि अब मुझे दुबारा उस आदमी से जॅलील नही होना पड़ेगा. पर मैं ये विश्वास नही कर पा रही थी कि बिल्लू ने उसे मार दिया.
सारा दिन मैं इन्ही विचारो में खोई रही.
अगले दिन संजय और चिंटू के जाने के बाद मैं फिर से इन्ही विचारो में खो गयी.
घर के सभी काम करने के बाद मैं नहाने चली गयी. मैं नहा कर निकली ही थी कि डोर बेल बज उठी.
मैने झट से कपड़े पहने और दरवाजे की और बढ़ गयी.
दरवाजा खोलते ही मैं चोंक गयी.
मेरे सामने बिल्लू खड़ा था.
वो धीरे से बोला, पहली बार तेरे घर आया हू क्या अंदर नही बुलाओगी ?
मैने पूछा, तुम यहा क्या कर रहे हो कोई देख लेगा.
वो बोला, तभी तो कह रहा हू मुझे अंदर आने दो.
ये कह कर वो मुझे एक तरफ हटा कर अंदर आ गया.
मुझे ना जाने क्या हो गया था. मैं वाहा खड़े खड़े तमाशा देखती रही.
मैने हिम्मत जुटा कर कहा, बिल्लू ये क्या मज़ाक है कोई तुम्हे देख लेगा तो मैं मुसीबत में पड़ जाउन्गि, तुमने वादा किया था कि तुम मुझे ब्लॅकमेल नही करोगे.
वो बोला, फिर वही बात मैं बस तुझसे मिलने आया हू. कल मैं सारा दिन गार्डेन में तेरा इंतेज़ार करता रहा पर तू नही आई. मैं बस अभी चला जाउन्गा, रही किसी के देखने की बात मैं एलेकट्रेसियन हू मैं अक्सर लोगो के घर आता जाता रहता हू. किसी को कुछ पता नही चलेगा.
ये कह कर वो दरवाजे की ओर बढ़ा और उसे बंद कर दिया, और बोला, आराम से बैठ कर बात करें.
मैने कहा बिल्लू तुम समझते क्यो नही मैं मुसीबत में फँस जाउन्गि, प्लीज़ अभी यहा से चले जाओ.
वो बोला चला जाउन्गा, जब आ ही गया हू तो थोड़ी देर रुक तो जाने दे. ये कह कर वो सामने पड़े एक सोफे पर बैठ गया.
Re: छोटी सी भूल
मैं समझ नही पा रही थी कि क्या करूँ.
वो बोला, आ ना थोड़ी देर बात करते है फिर मैं चला जाउन्गा.
मैने पूछा, तो तुमने उस साइकल वाले को मार दिया ?
वो बोला, यहा पास तो आ फिर बात करते है.
मैं उशके पास वाले सोफे पर जा कर बैठ गयी.
मैने पूछा, हा अब बताओ.
वो बोला, मेरा इरादा उसे मारने का नही था, पर वो तेरे घर और तेरे पति के बारे में जान गया था.
मैं जब उसे समझाने गया था तो वो कह रहा था कि या तो उस परी की मुझे दिला दे वरना उशके पति को सब कुछ बता कर तुम लोगो का खेल ख़तम करवा दूँगा.
ये सब सुन कर मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी.
मैने पूछा, उसे मेरे घर और पति के बारे में कैसे पता चला.
वो बोला, ये छोटा सा सहर है कोई भी कुछ भी जान सकता है.
मैने पूछा, पर तुम्हे उसे मारने की क्या ज़रूरत थी.
वो बोला, तो क्या करता, मैं उसे तुझे और परेशान करने देता ? वो तुझे ब्लॅकमेल करता तो ?
मैने कहा, अगर तुम पकड़े गये तो.
वो बोला, इस सहर में रोज कुछ ना कुछ होता है, वैसे भी किसी ने मुझे नही देखा, और फिर एक साइकल वाले की कोन परवाह करेगा.
मैने कहा, पर मुझे ये सब ठीक नही लग रहा, तुम्हे ऐसा नही करना चाहिए था.
वो बोला, क्या तुझे अछा नही लगा कि उसे उसके किए की सज़ा मिली.
मैने पूछा, तो फिर तुम्हारी और अशोक की सज़ा का क्या.
वो बोला, हमने तुम्हारे साथ कोई ज़बरदस्ती नही की, ना ही तुझे लोगो के सामने जॅलील किया. आख़िर तू समझती क्यो नही ?
मैं खामोश हो गयी.
मैने कहा बस अब तुम यहा से जाओ, बहुत हो गयी बाते.
वो उठा और बोला ठीक है मैं भी लेट हो रहा हू क्या मैं तुम्हारा टाय्लेट यूज़ कर सकता हू.
मैने झीज़कते हुवे कहा, हा उधर सामने है चले जाओ.
वो बोला, तुम भी आ जाओ ना, क्या आज मुझे करते हुवे नही देखोगी.
ना चाहते हुवे भी मैं शर्मा गयी.
मैने कहा, जल्दी करो और जाओ.
वो टाय्लेट चला गया.
मैं वही उसका इंतेज़ार करने लगी.
कोई 2 मिनूट बाद उसने आवाज़ लगाई, अरे ये दरवाजा अटक गया है, ये कैसे खुलेगा.
हमारा दरवाजा कभी नही अटका था, फिर भी मैं वाहा जा कर उसे खोलने की कोशिस करने लगी.
दरवाजा झट से खुल गया.
जो मैने देखा उसे देख कर मेरे होश उड़ गये.
वो मेरे सामने खड़ा था और उसकी ज़ीप खुली थी जिसमे से उसका लिंग मेरी आँखो के सामने झूल रहा था.
वो हंसते हुवे बोला, ओह सॉरी मैं दरवाजे के चक्कर में ज़िप बंद करना भूल ही गया.
मैं फॉरन वाहा से हट गयी और घर के मुख्य दरवाजे पर आ गयी.
मैने उसे आवाज़ लगाई, जल्दी करो.
वो चुपचाप वाहा आ गया.
वो मेरी आँखो में देख कर बोला, सच बता क्या तुझे मेरी याद आती है ?
मैने पूछा, तुम्हे क्या लगता है इतना बड़ा धोका खा कर में तुम्हे याद करूँगी.
वो बोला, शायद तू ठीक कह रही है, क्या तू सब भुला कर फिर से मेरे साथ एंजाय नही कर सकती.
मैने कहा, मैने कभी तुम्हारे साथ एंजाय नही किया.
उसने मेरे नितंबो पर हाथ रखा और बोला, जब मैं उस दिन तेरी गांद मार रहा था, तूने ही कहा था ना कि बहुत मज़ा आ रहा है.
मैने उसका हाथ अपने नितंबो पर से हटाया और हड़बड़ते हुवे बोली, व……व……वो तो मैं बहक गयी थी. पर वो भी तुम्हारी चालाकी के कारण था.
वो बोला, आ ना थोड़ी देर बात करते है फिर मैं चला जाउन्गा.
मैने पूछा, तो तुमने उस साइकल वाले को मार दिया ?
वो बोला, यहा पास तो आ फिर बात करते है.
मैं उशके पास वाले सोफे पर जा कर बैठ गयी.
मैने पूछा, हा अब बताओ.
वो बोला, मेरा इरादा उसे मारने का नही था, पर वो तेरे घर और तेरे पति के बारे में जान गया था.
मैं जब उसे समझाने गया था तो वो कह रहा था कि या तो उस परी की मुझे दिला दे वरना उशके पति को सब कुछ बता कर तुम लोगो का खेल ख़तम करवा दूँगा.
ये सब सुन कर मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी.
मैने पूछा, उसे मेरे घर और पति के बारे में कैसे पता चला.
वो बोला, ये छोटा सा सहर है कोई भी कुछ भी जान सकता है.
मैने पूछा, पर तुम्हे उसे मारने की क्या ज़रूरत थी.
वो बोला, तो क्या करता, मैं उसे तुझे और परेशान करने देता ? वो तुझे ब्लॅकमेल करता तो ?
मैने कहा, अगर तुम पकड़े गये तो.
वो बोला, इस सहर में रोज कुछ ना कुछ होता है, वैसे भी किसी ने मुझे नही देखा, और फिर एक साइकल वाले की कोन परवाह करेगा.
मैने कहा, पर मुझे ये सब ठीक नही लग रहा, तुम्हे ऐसा नही करना चाहिए था.
वो बोला, क्या तुझे अछा नही लगा कि उसे उसके किए की सज़ा मिली.
मैने पूछा, तो फिर तुम्हारी और अशोक की सज़ा का क्या.
वो बोला, हमने तुम्हारे साथ कोई ज़बरदस्ती नही की, ना ही तुझे लोगो के सामने जॅलील किया. आख़िर तू समझती क्यो नही ?
मैं खामोश हो गयी.
मैने कहा बस अब तुम यहा से जाओ, बहुत हो गयी बाते.
वो उठा और बोला ठीक है मैं भी लेट हो रहा हू क्या मैं तुम्हारा टाय्लेट यूज़ कर सकता हू.
मैने झीज़कते हुवे कहा, हा उधर सामने है चले जाओ.
वो बोला, तुम भी आ जाओ ना, क्या आज मुझे करते हुवे नही देखोगी.
ना चाहते हुवे भी मैं शर्मा गयी.
मैने कहा, जल्दी करो और जाओ.
वो टाय्लेट चला गया.
मैं वही उसका इंतेज़ार करने लगी.
कोई 2 मिनूट बाद उसने आवाज़ लगाई, अरे ये दरवाजा अटक गया है, ये कैसे खुलेगा.
हमारा दरवाजा कभी नही अटका था, फिर भी मैं वाहा जा कर उसे खोलने की कोशिस करने लगी.
दरवाजा झट से खुल गया.
जो मैने देखा उसे देख कर मेरे होश उड़ गये.
वो मेरे सामने खड़ा था और उसकी ज़ीप खुली थी जिसमे से उसका लिंग मेरी आँखो के सामने झूल रहा था.
वो हंसते हुवे बोला, ओह सॉरी मैं दरवाजे के चक्कर में ज़िप बंद करना भूल ही गया.
मैं फॉरन वाहा से हट गयी और घर के मुख्य दरवाजे पर आ गयी.
मैने उसे आवाज़ लगाई, जल्दी करो.
वो चुपचाप वाहा आ गया.
वो मेरी आँखो में देख कर बोला, सच बता क्या तुझे मेरी याद आती है ?
मैने पूछा, तुम्हे क्या लगता है इतना बड़ा धोका खा कर में तुम्हे याद करूँगी.
वो बोला, शायद तू ठीक कह रही है, क्या तू सब भुला कर फिर से मेरे साथ एंजाय नही कर सकती.
मैने कहा, मैने कभी तुम्हारे साथ एंजाय नही किया.
उसने मेरे नितंबो पर हाथ रखा और बोला, जब मैं उस दिन तेरी गांद मार रहा था, तूने ही कहा था ना कि बहुत मज़ा आ रहा है.
मैने उसका हाथ अपने नितंबो पर से हटाया और हड़बड़ते हुवे बोली, व……व……वो तो मैं बहक गयी थी. पर वो भी तुम्हारी चालाकी के कारण था.