Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

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007
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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 26 Dec 2014 18:15

ऊर्मि दीदी काफ़ी देर वैसे पड़ी थी और शायद थकान की वजह से उसकी आँख लग गयी थी. में उसके बाजू में सो गया और मेरा चेहरा उसकी बगल के नज़दीक आया. उसके बगल के पसीने की गंध मुझे महसूस हुई. मेरी बहन के पसीने की गंध मुझे बेहद पसंद है और वो अगर उसकी बगल से आ रहा हो तो उस'से मुझे वास'ना का एक अलग ही नशा चढ़ता है. मेरे दिल ने चाहा के उसकी पसीने से भरी बगल चाट लूँ लेकिन वैसा कर के में मुसीबत में नही पड़ना चाहता था इस'लिए मेने उसे उठाने के बारे में सोचा. उसे स्पर्श ना हो इस बात का ध्यान रख'कर में हो सके उतना उसके नज़दीक सरक गया. मेरे एक हाथ पर मेरा वजन देकर में थोड़ा उप्पर उठ गया और दूसरे हाथ से मेने ऊर्मि दीदी की छाती के नीचे छूकर उसे में उठाने लगा.

"ऊर्मि दीदी! उठो अभी!"

"अँ.? क्या.?" ऊर्मि दीदी बौखलाकर उठ गयी.

"मेने कहा. उठ जाओ अभी, रानी सहीबा!" मेने हंस'कर उसे कहा.

"सॉरी, सागर! मेरी आँख लग गयी थी" ऊर्मि दीदी ने अध खुली आँखों से हंस'कर जवाब दिया.

"अरे, दीदी! उस में सारी क्या कह'ना? में समझ सकता हूँ. इतना घूम'ने के बाद तुम थक गयी होगी."

"हाँ! थोड़ी थकान महसूस हो गयी मुझे लेकिन अब में ठीक हूँ" ऊर्मि दीदी ने अब अच्छी तराहा से आँखें खोल दी और मेरी तरफ देख'कर कहा, "आज में बहुत खूस हूँ, सागर. खंडाला जैसी खूबसूरत जगह देख'ने की मेरी बहुत दिन की 'इच्छा' आज पूरी हो गयी. और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ, सागर! थॅंक्स, ब्रदर!"

"दीदी. इस में थॅंक्स कह'ने की क्या ज़रूरत? तुम्हें खूस कर'ने के लिए और तुम्हें सुख देने के लिए में हमेशा तैयार हूँ!"

"ओह ! सागर!. तुम बहन का कित'ना ध्यान कर'ते हो! मुझे तुम पर नाज़ है, ब्रदर!!" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने मुझे अप'ने उप्पर खींच लिया और अप'नी बाँहों में भर'कर कहा,

"तुम'ने मुझे बहुत बहुत खुशियाँ दी है, सागर! और मुझे लग'ता है के में भी तुम्हें उतना ही खूस कर दूं. उसके लिए में कुच्छ भी कर'ने को तैयार हूँ. तो फिर बताओ मुझे. में क्या करूँ जिस'से तुम्हें उत'नी ही खूशी मिले जित'नी मुझे मिली है?"

थोड़ी देर हम दोनो भाई-बहेन वैसे ही चिपक के पड़े रहे. ऊर्मि दीदी मेरी बाँहों में सुरक्षा महसूस कर रही थी और में उसके गदराए बदन का स्पर्श महसूस कर रहा था. उस के मन में ममता थी, प्यार था और मेरे मन में काम वास'ना थी. मेरा लंड ज़्यादा ही कड़क होते जा रहा था और वो उसकी टाँगों को छू रहा था. उसकी समझ में वो ना आए इस'लिए मुझे उस'से दूर होना पड़ा.

"कम ऑन, दीदी! उठो अभी.. हम फ्रेश हो जाते है और आराम से सो जाते है." ऐसा कह'ते में बेड से उठ गया. मेने बॅग में से मेरा रात को पहन'ने का लिबास निकाला. फिर कमर पर टेवेल लपेट कर मेने मेरी जींस निकाल दी और टी-शर्ट भी निकाल'कर बाजू के चेअर पर डाल दिए. फिर में बाथरूम में नहाने के लिए गया. काफ़ी सम'य लेकर मेने जी भर के शावर के नीचे स्नान लिया और मेरा पूरा बदन अच्छी तरह से साफ किया. ख़ास कर के मेरा लंड और जाँघो का भाग मेने अच्छी तरह से घिस के साफ किया इस पागल ख़याल से के मेरी बहन उन भागों को चाट लेगी. मुझे मालूम था वैसे कुच्छ होनेवाला नही था लेकिन फिर भी मन में एक उम्मीद थी.

जब में बाथरूम से बाहर आया तब मेने देखा के ऊर्मि दीदी पूरे बदन'पर बेड शीट ओढ़ के चेर पर बैठी थी. वैसे बैठ के वो मेरी तरफ देख रही थी और शरार'ती अंदाज में हंस रही थी. मुझे थोड़ा अजीब सा लगा के वो ऐसी क्यों बैठी है और मेरी तरफ देख के ऐसे क्यों हंस रही है.

"क्या हुआ, दीदी? तुम्हें ठंड लग रही है क्या?" मेने परेशान होकर उसे पुछा.

"ना.. ही ..! !" उस'ने बड़े लाड से जवाब दिया.

"तो फिर तुम ऐसी बदन पर बेडशीट ओढ़ कर क्यों बैठी हो?" मेने आश्चर्य से पुछा.

"क्योंकी.. क्योंकी.." ऐसे कह'ते ऊर्मि दीदी उठ खड़ी हुई और अप'ने बदन से बेडशीट पिछे धकेल के खुद को मेरे साम'ने पेश कर'ते बोली,

"क्योंकी इस'लिए, सागर." जब मेने उसे देखा तो में दंग रहा गया. ऊर्मि दीदी ने मेरी जींस और टी-शर्ट पहन लिया था.


007
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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 26 Dec 2014 18:15

"कैसी लग रही हूँ में, सागर?" दोनो हाथ कमर'पर रख के, सीना तान के खड़ी होकर ऊर्मि दीदी ने मुझे पुछा, "अब में मॉडर्न लग'ती हूँ के नही, बोलो?" ऊर्मि दीदी गोल घूम के मुझे दिखा रही थी के वो कैसी लग रही थी. इस में कोई गुंजाइश नही थी के वो अलग और ख़ास नज़र आ रही थी क्योंकी आज तक मेने उसे सिर्फ़ पंजाबी लिबास और साऱी पह'ने हुए देखा था. उस'ने जींस और टी-शर्ट कभी नही पह'ने थे. उसके कॉलेज के दिनो में उस'ने ज़्यादा से ज़्यादा स्कर्ट और फूल टॉप पह'ने थे. इस'लिए पहिली बार में ऊर्मि दीदी को इन कपडो में देख रहा था और मुझे वो इन कप'डो में पसंद आई थी.

मेरा टी-शर्ट बड़ी फिटींग का था और ऊर्मि दीदी का बदन मेरे से भारी था इस'लिए वो मेरा टी-शर्ट उस'को छोटा हो रहा था. अब बड़ी तो ठीक है लेकिन छाती का क्या?? मेरी छाती और उसकी छाती में ज़मीन-आसमान का फरक था. इस'लिए वो टी-शर्ट उसके बदन पर दूसरी चमड़ी की तरह चिपक गया था. उस'ने पह'नी हुई काली ब्रेसीयर उस क्रीम कलर के टी-शर्ट में से साफ साफ नज़र आ रही थी और ऐसा लग रहा था के उस'ने सिर्फ़ ब्रेसीयर पह'नी थी. टी-शर्ट की लंबाई छोटी थी इस'लिए वो बड़ी मुश्कील से जींस के बेल्ट तक आ रहा था. उस'ने अगर हाथ उपर किया तो उस'का गोरा गोरा चिकना पेट नज़र आ जाएगा.

"तुम्हें कुच्छ कर'ने की ज़रूरत नही है, दीदी!" मेने अपना चह'रा उपर किया और ऊर्मि दीदी की नज़र से नज़र मिलाकर कहा, "तुम खूस हो तो में खूस हूँ. तुम सुखी हो तो में सुखी हूँ. तुम हमेशा खूस रहो यही में चाहता हूँ, दीदी!"

"ओह ! सागर!. मेरे प्यारे भाई.!" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने मुझे ज़ोर से आलींगन दिया. अचानक मुझे आह'सास हुआ के में ऊर्मि दीदी की बाँहों में तकरीबन उसके बदन पर लेट गया हूँ. मेरा सर उसकी भारी हुई छाती के दोनो उभारों के बीच था और मेरा दायां हाथ उसकी कमर पर था. मुझे उसकी कड़ी फिर भी उत'नी ही मुलायम छाती का स्पर्श महसूस हो रहा था. मेरी जाँघो का भाग और मेरा लंड उसके घुट'ने के उप्परी टाँगों पर सटा हुआ था.

जब मेने उसकी कमर के नीचे देखा तो मुझे हँसी आई. हमारी कमर में फरक होने की वजह से मेरी जींस उसे कमर पर हो नही रही थी. जींस के बटन की जगहा पर तकरीबन दो ढाई इंच का गॅप पड़ गया था और इस'लिए वो बटन नही लगा सकी. लेकिन जींस नीचे ना सरके इस'लिए उस'ने बेल्ट लगाया था. बटन की जगहा गॅप होने की वजह से वो ज़ीप पूरी ना लग के आधी ही लग स'की. इस वजह से आधी खुली ज़ीप के उपर और बेल्ट के नीचे एक त्रिकोण बन गया था जो खुला था. और उस खुले त्रिकोण में के उपर के आधे भाग में उसकी गोरी गोरी

चमड़ी नज़र आ रही थी और नीचे के आधे भाग में उसकी नीले रंग की पैंटी नज़र आ रही थी. काफ़ी देर तक में बिना जीझक मेरी बहन को उपर से नीचे निहार रहा था और वो आगे, पिछे से खुद को मुझे दिखा रही था.

"सिर्फ़ देख क्या रहे हो, सागर. कुच्छ बोलो भी तो. कैसी लग रही हूँ में?" ऊर्मि दीदी ने बेसब्री से कहा.

"एक'दम झकास, दीदी!! लेकिन मेरी जींस छोटी पड़ गयी आपको. वारना उस त्रिकोण का प्रदर्शन नही होता." उसके खुले त्रिकोण की तरफ बीना जीझक उंगली दिखा के मेने कहा.

"नालायक, लड़के! बेशरामी मत करो. और वहाँ पर देख'ना नही! सिर्फ़ मुझे इतना बता दे के में कैसी दिख'ती हूँ?" ऐसा कह'कर वो ड्रेसंग टेबल के साम'ने गई और खुद को आईने में निहार'ने लगी.

मेने सप'ने में तो कई बार कल्पना की थी के ऊर्मि दीदी ने जींस और टी-शर्ट पहना है लेकिन आज में पह'ली बार उसे हक़ीक़त में इन कप'डो में देख रहा था. अब में उसे क्या बताऊ के वो कैसी दिख रही थी?

मेने मन ही मन कहा के मेरे लंड को पुच्छ लो तुम कैसी दिख रही हो, जो तुम्हे देख'कर पागल हो रहा है और कड़ा होते जा रहा है. में ऊर्मि दीदी के पिछे जा के खड़ा हो गया और बिना शर'माए उसकी कमर पर हाथ रख दिए. फिर आईने में से उसकी तरफ देख'कर मेने कहा,

"तुम एक'दम आकर्षक लग रही हो, दीदी!"

"सिर्फ़ आकर्षक?. और कुच्छ नही??" ऊर्मि दीदी ने तिरछी नज़र से आईने से ही मुझे देख'कर वापस सवाल किया.

"और बोले तो. तुम आकर्षक दिख रही हो. और ग्रेट दिख रही हो. और. और." में आगे बोल ना सका और दीदी ने मुझे चुप कर'ते कहा,

"और. सेक्सी भी. बराबर ना, सागर?"

"ओह ! येस!!" मेने झट से कहा, "तुम सेक्सी भी दिख रही हो. उलटा इस लिबास में तुम किसी और लिबास से ज़्यादा सेक्सी दिख'ती हो!"

"ओह ! कम ऑन, सागर! कभी तुम कह'ते हो में साऱी में एक'दम सेक्सी दिख'ती हूँ तो कभी तुम कह'ते हो में पंजाबी लिबास में एक'दम सेक्सी दिख'ती हूँ. और अब तुम कह रहे हो में इस जींस, टी-शर्ट में एक'दम सेक्सी दिख रही हूँ. तुम अच्छी तरह से सोच'कर तय कर लो और मुझे बताओ के में कौन से लिबास में सेक्सी लग'ती हूँ." ऊर्मि दीदी ने शरारत से हंस'ते हुए मज़ाक में मुझ'से पुछा.

उसके सवाल से पह'ले तो में बौखला गया लेकिन उसे क्या जवाब देना है ये मुझे अच्छी तराहा से मालूम था. मन ही मन मेने खुद को वो जवाब हज़ारो बार कहा था.

"सच बताउ, दीदी?. सेक्सीनेस तुम्हारी साऱी में नही तुम्हारे पंजाबी ड्रेस में नही तुम्हारे कोई भी लिबास में नही है. अगर है तो. वो.. तुम्हारे अंदर है. तुम्हारे बदन में है. इस'लिए तुम'ने कोई भी लिबास पहन लिया तो तुम सेक्सी दिख'ती हो. और इसी वजह से कभी मुझे तुम साऱी में सुंदर नज़र लग'ती हो तो कभी पंजाबी लिबास में. और अभी तुम मुझे इस मॉडर्न जींस में अच्छी लग रही हो" मेने एक ही साँस में ये सब कह डाला.

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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 26 Dec 2014 18:16

"ओह ! सागर! तुम इत'नी अच्छी बातें कर'ते हो के सुन'ने में बहुत प्यारा लग'ता है!" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने मेरे दोनो हाथ पकड़ लिए, जो उसकी कमर पर थे और मुझे नज़दीक खींच लिया. फिर मेरे हाथ उस'ने अप'ने पेट पर लपेट लिए जो बिल'कुल उसके छाती के उभारों के नीचे थे और उन'को हलका सा स्पर्श कर रहे थे.

ऊर्मि दीदी की उस 'प्यारभरी' नज़दीकीयों का पूरा फ़ायदा उठाते मेने उसे ज़ोर से अप'नी बाँहों में भर लिया और उसके पिछे से चिपक गया. मेरा चह'रा मेने उसके कंधोपर रखा था जो उसके गालो को हलके से छू रहा था. मेरे हाथों से मेने उसके पेट को ज़ोर से आलींगन किया था जिस'से उसकी भरी हुई छाती मेरे हाथों से थोड़ी उपर उठ गयी थी. मेरे जांघों का भाग उसके गोला मटोल चुत्तऱ पर दब गया था.

"ओह ! सागर!" ऊर्मि दीदी ने मेरी पकड़ और मजबूत कर के और खुद को और पिछे धकेल कर कहा, "तुम्हें तो मालूम है शादी से पह'ले अप'ने घर में मेने कभी ऐसा लिबास नही पहना क्योंकी पिताजी को ऐसा लिबास पसंद नही था. और शादी के बाद तो सवाल ही नही क्योंकी मेरे पति मुझे पंजाबी लिबास भी पहन'ने नही देते है. इस'लिए जींस और टी-शर्ट पहन'ने की मेरी बहुत दिन की 'इच्छा' आज पूरी हो गई. थॅंक्स, ब्रदर! तुम्हारी वजह से मेरा और एक 'इच्छा' पूरी हो गई."

"मेने तुम्हें कहा है ना, दीदी! तुम्हारी सभी 'इच्छाए' पूरी कर'ने के लिए में हमेशा तुम्हारे साथ हूँ. सिर्फ़ मुझे बताओ! तुम्हारी और कौन सी 'इच्छाए' पूरी कर'ना बाकी है" ऐसे कह'ते मेने और ज़ोर से उसे पिछे से कस लिया.

"अब और कोई 'इच्छा' बाकी नही है, सागर! तुम'ने मेरे लिए बहुत कुच्छ किया है. अब तुम मुझे बताओ.. में तुम्हारे लिए कुच्छ कर सक'ती हूँ क्या? तुम्हारी कोई 'इच्छा' में पूरी कर सक'ती हूँ क्या? बता मुझे कि में तुम्हारा कोई सपना पूरा कर सक'ती हूँ क्या?"

क्रमशः……………………………


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