एक अनोखा बंधन

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The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:38

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अब आगे...

बाहर आके मैंने भौजी से कहा;

मैं: चलो लगे हाथ आपको दूसरी किश्त, भी दे दूँ|

भौजी: यहाँ?

मैं: हाँ .. अब हम लंच पे जायेंगे|

भौजी: क्या? पर क्यों? और कहाँ?

जब मैं पिछली बार अजय भैया के साथ बाजार आया था, चाट लेने तभी मैंने एक दूकान देखी थी| तो मैंने उसी दूकान की ओर ऊँगली की ओर उसी दिशा में बढ़ने लगा| चूँकि बाजार में ज्यादातर दुकानें ढाबे जैसी थीं और वो एक अकेली ऐसी दूकान थी जिसमें बैठने के लिए टेबल कुर्सियां थी| गाँव के लोगों के अनुसार सोचें तो वो दूकान महंगी थी परन्तु हम शहर में रहने वाले लोग जानते हैं की जब खाना खाने की बात आती है तो सबसे अच्छी दूकान ही देखी जाती है| इधर भौजी के चेहरे से झिझक साफ़ नजर आ रही थी और मैं अपनी जिद्द में आगे बढे जा रहा था| दूकान के बाहर पहुँच के भौजी रूक गईं;

भौजी: सुनिए ना, ये तो बड़ी महंगी दूकान है| हम चाट खाते हैं ना|

मैं: मेरी बेटी को भूख लगी है और आप उसे चाट खिला के भूखा रखोगी| चलो चुप-चाप नहीं तो मैं फिर से आप से बात नहीं करूँगा|

मजबूरी में भौजी मेरे साथ चल दीं, मैंने भी बिना डर उनका हाथ पकड़ा और दूकान में घुस गया| कोने की टेबल पे हम तीनों बैठ गए, भौजी मेरे सामने बैठीं थी और नेहा मेरे बगल में| आर्डर लेने के लिए बैरा आया, मैंने उसे निम्नलिखित आर्डर दिया:

दो प्लेट चना मसाला
दो प्लेट दाल तड़का
दो प्लेट चावल
छः तंदूरी रोटी
और अंत में दो रस मलाई

भौजी मेरी और आँखें फायदे देख रहीं थी| एक बात मैं आप सभी को बताना चाहूंगा, जब मैं अजय भैया के साथ चाट लेने आया था तब मैंने बातों-बातों में अजय भैया से पूछा था की यहाँ खाने में अधिकतर क्या मिलता है| ऐसा नहीं है की मैं उस समय ही लंच के बारे में प्लान कर रहा था बल्कि मैं तो ये जानना चाहता था की इस गरीब गाँव में लोग खाते क्या हैं? तब भैया ने बताया की यहाँ ज्यादातर दुकानों में आपको आलू परमल, भिन्डी की सब्जी, समोसे, सीताफल और पूड़ी ही मिलेगी| और मुझे इनमें से एक भी चीज नहीं पसंद! अब भौजी ने जब मेरे मुँह से चना मसाला, दाल तड़का और तंदूरी रोटी जैसे शब्द सुने तो उनका हैरान होना लाज़मी था|

भौजी: आप क्यों इतने पैसे खर्च कर रहे हो? इतना खाना कौन खायेगा?

मैं: पहली बात आप पैसों की चिंता ना करो| स्कूल जाने के समय पिताजी मुझे जेब-खर्ची दिया करते हैं| वही जोड़-जोड़ के मैंने पैसे इकट्ठे किये हैं| आप बताओ क्या मैं रोज आपको लंच या डिनर के लिए ले जाता हूँ? नहीं ना... तो फिर? और हाँ अगर रोज ले जा सकता तो भी आप चिंता ना करो| और रही बात खाना आर्डर करने की तो ये बहुत ज्यादा नहीं है| हमारे लिए काफी है, क्यों हैं ना नेहा बेटा|

नेहा: जी पापा!

मैं: Awww मेरा बच्चा!!! (मैंने नेहा के सर पे हाथ फेरा|)

कुछ ही देर में बैरा आर्डर लेके आ गया, उसने एक-एक कर खाना परोस दिया और चला गया| टेबल जरा ऊँचा था इसलिए नेहा बैठ-बैठे नहीं खा सकती थी, उसे खड़ा होना पड़ता|

भौजी: बेटा मेरे पास आओ|

मैं: नहीं रहने दो आप खाना शुरू करो मैं नेहा को खिला दूँगा|

भौजी जिद्द करने लगीं पर मैं अपने हाथों से नेहा को खाना खिलाने लगा| ऐसा नहीं था की नेहा खुद नहीं खा सकती थी, ये तो आज मुझे नेहा पर कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था| मैं उसे रोटी के छोटे-छोटे कौर बना के खिलाने लगा| नेहा भी बड़े चाव से खा रही थी| और मुझे उसे खिलाने में बहुत मज़ा आ रहा था| और इधर भौजी को मुझे इस तरह खाना खिलाते देख के बहुत मज़ा आ रह था और उनकी ख़ुशी उनके चेहरे से झलक रही थी| अचानक उन्होंने मुझे खाना खिलाने के लिए चमच मसे चावल उठाये और मेरी ओर चमच बढ़ा दी| मैं एक दम से हैरान था क्योंकि ऐसा नहीं था की मैं उनके हाथ से खाने के लिए संकुचा रह था, बल्कि वो एक सार्वजानिक स्थान था| हमारे आलावा वहां दो परिवार और बैठे थे और वो भी बीच-बेच में हमें देख रहे थे| मैंने भौजी से कहा; "आप खाओ मैं खा लूंगा|" पर भौजी अपनी जिद्द पे अड़ीं थी; "नहीं मेरे हाथ से खाओ!" अब मैं उनके इस भोलेपन का ही तो कायल था| मैंने आखिर उनके हाथ से खा लिया और फिर से नेहा को खिलाने लगा| भौजी एक कौर खुद खाती तो दूसरा कौर मुझे खिलाती| मैं अब भी बीच-बीच में बाकी लोगों की ओर देखता तो लोग हमें देख के जलते-भूनते नजर आये| भौजी ओर नेहा रस मलाई खा रहे थे तो मैं टेबल से उठा ओर भौजी को कह गया की मैं अभी आता हूँ| मैं पहले काउंटर पे गया ओर काउंटर पे खड़ा आदमी कुछ ज्याद ही मुस्कुरा रहा था|

मैं: क्या हुआ क्यों हँस रहा है?

आदमी: अरे कुछ नहीं|

मैं: काम में ध्यान दिया कर समझा!

बस उसको थोड़ा अकड़ से डांटते हुए मैं वहां से बहार आया और इधर-उधर दूकान देखने लगा| अब मुझे तीसरे सरप्राइज की तैयार जो करनी थी| करीब बीस कदम की दुरी पे एक सुनार की दूकान थी| मैं तेजी से उसकी ओर लपका| दूकान पे एक बुजुर्ग सा आदमी था, जो कपड़ों से सेठ यानी दूकान का मालिक लग रहा था| वो मेरी ओर बड़े प्यार से देखते हुए बोला;

सेठ: आओ..आओ बेटा!

एक पल के लिए तो मैं ठिठक गया क्योंकि मुझे लगा की कहीं ये मुझे पहचान तो नहीं गया| पर मैं तो इसे नहीं जानता...

मैं: अरे काका मुझे एक "मंगलसूत्र" दिखाओ|

सेठ: अभी लो बेटा... ये देखो|

मैं बड़ी उत्सुकता से देखता रहा परन्तु मेरे पास समय ज्यादा नहीं था| मैंने आखिर में पड़े एक पीस को उठाया| पेन्डेन्ट दिखने बहुत आकरशक लग रहा था उसमें छोटे-छोटे लाल रंग के नग जड़े थे, और मेरे मन उसपे ही आ गया|

मैं: काका ये वाला दे दो| कितने का है?

सेठ: बस 500/- का|

मैं: (बिना भाव-ताव किये) ठीक है इसे पैक कर दो|

सेठ: अरे बेटा इस्पे सोने का पानी चढ़ा है| अंदर से ये चांदी का है, तुम सोने का क्यों नहीं ले लेते? बहु खुश हो जाएगी|

मैं समझ गया की काका यही सोच रहे हैं की मैं शादी-शुदा हूँ और देखा जाए तो उनका अनुमान लगाना गलत नहीं था| हमारे गाँव में मेरी उम्र के लड़के-लड़कियों का ब्याह कर दिया जाता था|

मैं: जी नहीं... अभी कमाता नहीं हूँ| जब कमाऊँगा तो आपसे ही सोने का ले जाऊँगा|

सेठ: ठीक है बेटा... ये लो|

काका ने मंगलसूत्र एक पतले लम्बे से लाल रंग के केस (Case) में पैक कर के दिया था| मैंने एक बार उसे खोला और चेक किया की चीज़ तो वही है ना|

फिर मैं तुरंत वहाँ से वापस रेस्टुरेंट आया| देखा तो भौजी परेशान हो रहीं थी क्योंकि मुझे गए हुए करी पंद्रह मिनट होने को आये थे| मैं वापस आया तो भौजी पूछने लगीं;

भौजी: कहाँ रह गए थे आप?

मैं: कुछ नहीं... बस बहार कुछ देख रहा था|

इतने में बैरा बर्तन उठाने आया तो मैंने उसे दस रुपये का नोट टिप (Tip) में दिया, जिसे पाके वो बहुत खुश हो गया और भौजी तो जैसे हैरान हो के मुझे देख रहीं थी| मैंने कुछ चाट भी घरवालों के लिए पैक कराई और दुबारा भौजी के पास आगया|

भौजी: आपने उसे पैसे क्यों दिए?

मैं: वो टिप (टिप) थी| शहर में खाना खाने के बाद बैरा को टिप देना रिवाज है|

भौजी: तो कितने पैसे कर्च किये खाने पे?

मैं: क्यों? (मैंने गुस्से में कहा)

भौजी: सॉरी बाबा| अब ये बताओ की बहार आप क्या देख रहे थे?

मैं: बस वापस जाने के लिए जीप देख रहा था| (मैंने भौजी से मंगलसूत्र की बात छुपाते हुए झूठ कहा|)

हम बस स्टैंड पहुंचे और वहाँ कड़ी जीप में बैठने लगे| इस बार मैं भौजी के साथ नहीं बैठ पाया क्योंकि एक लाइन में महिलाएं बैठी थीं और दूसरी लाइन में पुरुष यात्री| मैं ठीक भौजी के सामने बैठा और नेहा मेरी गोद में बैठी थी| भौजी ने फिर से घूँघट काढ़ा, और हम हिलते डुलते घर पहुंचे| अब हमें फिर से मुख सड़क छोड़ के कच्ची सड़क पकड़ के घर जाना था| नेहा फिर से आगे-आगे भाग रही थी और मैं और भौजी एक साथ चल रहे थे| घडी में शाम के चार बजे थे और हम तिराहे पे पहुंचे| तिराहे से हमारा घर दिख रहा था, एक रास्ता सीधा दूसरे गाँव जाता था और उसी रास्ते पे स्कूल भी पड़ता था| दूसरा रास्ता हमारे घर की ओर जाता था| तीसरा रास्ता वो था जो मुख्य सड़क की ओर जाता था| अब वो हुआ जिसकी आशंका मुझे तनिक भी नहीं थी; सामने स्कूल के पास हाथ बंधे माधुरी खड़ी थी| जैसे ही माधुरी ने मुझे देखा वो मेरी ओर बढ़ी और इधर भौजी ने जैसे ही माधुरी को देखा उनका गुस्सा सातवें आसमान पे था| जब माधुरी हमारे नजदीक आई तो भौजी उसपे बरस पड़ीं;

भौजी: अब क्या लेने आई है तू यहाँ? जो तुझे चाहिए था वो तो मिल गया न तुझे! अब भी तेरा मन नहीं भरा इन से?
माधुरी चुप-चाप नजरें झुकाये नीचे देखती रही और भौजी का बरसना जारी था|
भौजी: मुझे सब पता है की कैसे तूने इन्हें ब्लैकमेल किया! इनका दिल सोने का है और तुझे जरा भी शर्म नहीं आई ऐसे इंसान के साथ धोका करते? तू ने इनका इस्तेमाल किया और इन्होने सिर्फ तेरा भला चाहा और अब तू फिर इनके पीछे पड़ी है| छोटी (रसिका भाभी) के हाथों पैगाम भिजवाती है की मुझे स्कूल पे मिलो, क्यों? वो तेरी नौकर है? तू साफ़-साफ़ बता क्या चाहिए तुझे?

भौजी के बात करने के ढंग से साफ़ था की वो मुझपे कितना हक़ जताती हैं, और अगर मैं उनकी जगह होता तो मैं भी यही हक़ जताता! जब भौजी ने उसकी साड़ी पोल-पट्टी खोल दी तो माधुरी मेरी और सवालिया नज़रों से देखते हुए बोली;

माधुरी: आपने.....
(उसकी बात पूरी होने से पहले ही भौजी ने उसे टोक दिया)
भौजी: हाँ मुझे सब पता है, उसदिन जब तू इनसे बात कर रही थी तब मैंने दोनों की बात सुन ली थी|

माधुरी: मैं वो...

भौजी: तू रहने दे! मुझे सब पता है तू क्या चाहती है, एक बार और....

मैंने भौजी के कंधे पे हाट रख के उन्हें वो बोलने से रोक दिया|

मैं: आप प्लीज शांत हो जाओ! प्लीज यहाँ सीन मत बनाओ|
(क्योंकि आते जाते लोग अब इक्कट्ठा होने लगे थे| दूसरा कारन ये था की मैं नहीं चाहता था की नेहा वो सब सुने...)

माधुरी की आँखों से आंसुओं की धरा बह रही थी, और मेरे दिल पे थोड़ा पसीज गया था| पर मैं वहाँ सब के सामने बात नहीं कर सकता था| मैंने भौजी के दोनों कन्धों पे पीछे से हाथ रखा और उन्हें अपनी ओर मोड़ा ताकि हम घर वापस जा सकें और उधर माधुरी अब भी खड़ी मुझे जाता देख रही थी| नेहा तो अपनी मम्मी का रोद्र रूप देख के मेरी टांगें पकड़े पीछे छुप गई थी| जब हम वहाँ से चले आये तो जो दो-चार लोग वहाँ इकठ्ठा हुए थे वो चले गए और बस माधुरी अकेली खड़ी मुझे देख रही थी| घर बस पाँच मिनट की दूरी पे था, भौजी एक डैम से रुकीं और मेरी ओर मुड़ीं

भौजी: आप मुझसे एक वादा कर सकते हो?

मैं: हाँ बोलो

भौजी: आप चाहे मुझे मार लो, डाँट लो, काट दो पर मुझसे कभी बात करना बंद मत करना... मुझसे नाराज मत होना, वरना मैं सच में मर जाऊँगी!

मैं: आप ऐसा मत बोलो... मैं वादा करता हूँ कभी आपसे नाराज़ नहीं हूँगा!

जहाँ हम खड़े थे वहाँ हलकी से झाड़ियाँ थी, जिसका फायदा मैंने उठाया और भौजी को अपने गले लगा लिया| भौजी ने मुझे बहुत कस के जकड लिया जैसे मुझसे अलग ही ना होना चाहती हों और मुझमें समा जाना चाहती हों| करीब पाँच मिनट बाद जब नेहा हमें इस तरह गले लगा देख के छटपटाने लगी तब जाके हमारा आलिंगन टूटा| अब भौजी का गुस्सा समाप्त हो चूका था और दिल भर आया था, पर मैंने उनकी पीठ सहला के उन्हें शांत किया पर नेहा मेरी ऊँगली पकडे चल रही थी और भौजी से बात करने में भी कतरा रही थी और बार मेरी आड़ ले के छुप जाती थी| मैंने नेहा को गोद में उठा लिया और उसने बड़े भोलेपन से पूछा;

नेहा: पापा ... माँ गुस्से में क्यों थी?

मैं: बेटा मम्मी को माधुरी ज़रा भी अच्छी नहीं लगती और जब वो अचानक सामने आ गई तो मम्मी को गुस्सा आ गया|

भौजी: बेटा आप भी माधुरी से दूर रहा करो और उससे कभी बात मत करना और ना ही कोई चीज लेना| ठीक है?

नेहा अब भी डरी हुई थी और उसने बस हाँ में सर हिलाया पर बोली कुछ नहीं|

मैं भौजी से उनके इस व्यवहार के लिए बहुत कुछ पूछना चाहता था परन्तु ये समय ठीक नहीं था| खेर हम घर पहुंचे तो .....


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:39

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अब आगे...

घर भरा-भरा लग रहा था ... चन्दर भैया और अजय भैया दोनों वापस आ गए थे| पिताजी और बड़के दादा कुऐं के पास बैठे बात कर रहे थे और बड़की अम्मा और माँ आचार के लिए आम इकठ्ठा कर रहे थे| रसिका भाभी घूँघट काढ़े जानवरों को पानी पिला रही थीं| मतलब सब के सब अांगन में ही मौजूद थे और हमें देखते ही सबसे पहले पिताजी ने सवाल दागा;

पिताजी: क्यों भई कहाँ से आरहे हैं तीनों, देवर-भाभी और भतीजी?

जैसे ही भौजी की नजर घूँघट के अंदर से पिताजी और बड़के दादा पे पड़ी तो वो अपने घर में घुस गईं|

मैं: जी वो... पिक्चर देखने गए थे?

पिताजी: तो नालायक घर में बताना जर्रुरी नहीं था?

मैं: जी पूछ के गया था|

पिताजी: हम से तो नहीं पूछा?

मैं: जी आप खेत पे थे|

पिताजी: सभी सवालों के जवाब रट के आया है! अगर पिक्चर देखने जाना ही था तो सारे चलते? तुम तीनों ही क्यों गए?

मैं: जी मैंने प्लान बनाया था अम्मा, माँ, भाभी, भौजी और नेहा को एक साथ ले जाने का| परन्तु अम्मा ने मना कर दिया की वो और माँ नहीं जायेंगे| अब बचे मैं, नेहा, भाभी और भौजी| तो भाभी की तबियत सुबह से खराब थी और ये बात उन्होंने ही मुझे बताई थी| उन्होंने कहा था की मैं आज सारा दिन सोना चाहती हूँ| तो मैंने अम्मा से कहा की क्यों न मैं, नेहा और भौजी ही पिक्चर देख आएं| अम्मा ने इज्जाजत दी तभी हम गए वार्ना हम नहीं जाते| वैसे भी आप सभी के कहने के अनुसार, भौजी मेरी वजह से ही शादी में नहीं गई तो मैंने सोचा इसी बहाने इनका दिल बहाल जायेगा|

पिताजी: ठीक है, अगर भाभी (बड़की अम्मा) से पूछ के गए थे तो ठीक है|

मैं: पिताजी मैं आप सभी के लिए खाने के लिए कुछ लाया हूँ|

पिताजी: ये की न अकल मंदी वाली बात! शाबाश! ये खाने पीने का सामान अपनी माँ को दे दे|

मैं अपने कपडे बदल के आया पर भौजी मुझे ना तो प्रमुख आँगन में मिली और ना ही रसोई में| आखिर मैं उनके घर में पहुँचा तो भौजी मुझे दरवाजे की ओर पीठ कर के खड़ी दिखाई दी| मैंने भौजी को पीछे से बाँहों में भर लिया और उनकी गर्दन पे अपने होंठ रख दिए| भौजी के मुख से सिसकारी फूट पड़ी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स" मैंने उनका मुख तो नहीं देखा था पर ये एहसास हो गया था की माधुरी की वजह से उनका मूड खराब है|

मैं: जानता हूँ आपका मूड खराब है ... पर प्लीज मेरे लिए अपना मूड ठीक कर लो| अभी तो आखरी सरप्राइज बाकी है!

भौजी: उस माधुरी ने.....
(भौजी के कुछ कहने से पहले ही मैंने उनके होठों पे ऊँगली रख के उन्हें चुप होने का इशारा किया|)

मैं: shhhhhhhhh बस अब मूड मत ख़राब करो|
(भौजी मेरी ओर पलटीं ओर मेरी आँखों में देखने लगीं....)

भौजी: तो अगला सरप्राइज क्या है?

मैं: जल्दी पता चल जायेगा, पर पहले आप को मेरी एक इच्छा पूरी करनी होगी|

भौजी: हाँ बोलिए... आपका हुक्म सर आँखों पे|

मैं: मैं आज रात आपको, आपके शादी के जोड़े में देखना चाहता हूँ|

भौजी: बस? इतनी सी बात| ठीक है और कुछ हुक्म करिये?

मैं: नहीं... मैं रात को साढ़े ग्यारह बजे आऊँगा|

भौजी: और मेरा सरप्राइज का क्या?

मैं: वो कल मिलेगा|

भौजी: कल? इतना इन्तेजार करवाओगे मुझसे?

मैं: हाँ.... इन्तेजार करने में जो मजा है वो किसी और किसी बात में नहीं|

भौजी: आप भी न सच्ची बहुत तड़पाते हो!

मैं: अच्छा ये तो बात हुई सरप्राइज की, अब मैं कुछ और बात भी करना चाहता हूँ?

भौजी: हाँ बोलो?

मैं: नहीं अभी नहीं... बाद में!

भौजी: नहीं कहिये ना?

मैं: नहीं... बड़ी मुश्किल से आपका मूड ठीक हुआ है, और मैं उसे दुबारा ख़राब नहीं करूँगा|

ये कहके मैंने उनके होठों को अपने होठों से छुआ और हलकी सी Kiss देके बहार निकल आया| बहार नेहा बहुत खुश दिख रही थी और आज मुझसे कुछ ज्यादा ही दुलार कर रही थी| जब से मैं आया था tab से मैंने नेहा को चन्दर भैया के साथ बहुत कम ही देखा था| और जब से वो बेल्ट से पिटाई वाला हादसा हुआ तबसे तो नेहा चन्दर भैया से एक दम कट गई थी| मुझे तो लगता था की वो उन्हें अपना बाप ही नहीं मानती... खेर ये मेरी सोच थी पर मैंने कभी भी नेहा से इस बारे मैं बात नहीं की| रात को भोजन खाके मैं अपनी चारपाई पे लेटा था और तभ कूदती हुई नेहा भी मेरे पास आके लेट गई| मैंने नेहा को हमेशा की तरह कहानी सुनाई और वो सुनते-सुनते वो सो गई|

जैसे ही घडी में रात के साढ़े ग्यारह बजे मैं मूतने के लिए उठा और चेक करने लगा की सब सो रहे है ना| फिर मैं वापसी में सीधा भौजी के घर की ओर बढ़ गया| दरवाजा खुला था और मैंने अंदर जा के दरवाजा बंद किया| जैसे ही मैं पलटा तो देखा भौजी आँगन में अपनी शादी का लाल जोड़ा पहने, घूँघट काढ़े मेरे सामने कड़ी हैं| मैं हाथ बंधे उन्हें देखता ही रहा.... करीब पांच मिनट तक मैं बस उन्हें निहारता रहा और भौजी भी कुछ नहीं बोलीं| मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या कहूँ| फिर मैं धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ा और उनके सामने खड़ा हो गया| मैंने उनका घूँघट उठाया तो उनके हुस्न ने मेरा क़त्ल कर दिया| चाँद की रौशनी में ऐसा लग रहा था जैसे चाँद का एक टुकड़ा कट के मेरी झोली में आ गिरा हो! भौजी की आँखें झुकी हुई थीं... पर मेरी आँखें उनके चेहरे पे टिकी हुई थी| मैंने भौजी की ठुड्डी को अपनी उँगलियों से ऊपर उठाया और तब हमारी आँखें चार हुई!

मैं: प्लीज अपनी आँखें बंद करो|

भौजी ने बड़ी नजाकत से अपनी आँखें बंद की| मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और ट्रैक पेंट से मंगलसूत्र का CASE निकला| उसे खोला... और CASE को चारपाई पे रख दिया| मंगलसूत्र हाथ में लेके मैंने भौजी के गले में हाथ डालके गर्दन के पीछे उसे लॉक किया| अब भौजी को कुछ तो समझ आ गया था, क्योंकि जैसे ही मैंने मंगलसूत्र को लॉक किया और अपने हाथ वापस खींचे तो भौजी ने अपनी आँखें उसी नजाकत से खोलीं जिस नजाकत से बंद की थी|

भौजी: ये... आपके पास....
(मैंने आगे उन्हें कुछ भी बोलने नहीं दिया और उनके होठों पे अपनी ऊँगली रख दी|)

मैं: shhhhh ये आपके लिए है| मैंने कहीं से चुराया नहीं है.... कल जब मैं आपसे माँ का मंगलसूत्र वापस लेने आया था तब मुझे बड़ा बुरा लगा| मेरे दिल में एक ख्वाइश हुई की क्यों न मैं आपको एक मंगलसूत्र पहनाऊँ, जो मैंने खरीदा हो| इसलिए आज जब आप खाना खा रहे थे तब मैं दुकाने से बहार निकल के सुनार से खरीद लाया था| मुझे स्कूल जाते समय पिताजी जेब खर्ची के लिए पैसे देते हैं उन्ही पैसों से मैंने आपके लिए ये लिया|

भौजी ने मेरी बातें बड़े इत्मीनान से सुनी और बातें सुन के उनकी आँखों में आंसूं छलक आये और वो कुछ ना बोलीं बस मेरे गले लग गईं| रोने से उनके गले से आवाज भी नहीं निकल रही थी, बस इतना ही बोल पाईं; "आज आपने मुझे पूर्ण कर दिया!!!" और मुझे से लिपट के सुबकने लगी|

“बस..बस... चुप हो जाओ| मैंने आपको ये तौफा आपको रुलाने के लिए नहीं दिया था!"
तब जाके भौजी चुप हुईं, अब मैंने उनके कंधे पे हाथ रख के उन्हें अपने से थोड़ा दूर किया और फिर उनके आँसूं पोछे|

मैं: अब कभी मत रोना?

भौजी ने हाँ में अपना सर हिलाया| मैं पलट के जाने लगा तो भौजी बोलीं;

भौजी: आप कहाँ जा रहे हो?

मैं: सोने

भौजी: क्या? पर अभी? आजतो हमारी सुहागरात है!

मैं: क्या? सुहागरात तो उस दिन थी ना?

भौजी: पर मंगलसूत्र तो आपने आज पहनाया है ना? एक तरफ तो आप मुझे रोने के लिए मन करते हो और दूसरी तरफ मुझे यूँ अकेला छोड़के जारहे हो?

मैं: मैं आपको छोड़के कहीं नहीं जा रहा, मेरा मकसद आज आपको सिर्फ मंगलसूत्र पहनाने का था बस और कुछ नहीं|

भौजी: वाह जी वाह, आपने तो कहा था की तीसरा सरप्राइज आप कल दोगे?

मैं: घडी देख लो, बारह बजके एक मिनट हो चूका है! मैं कभी झूठ नहीं बोलता!

भौजी: ठीक है बाबा, आप जीते पर मैं आज आपको नहीं जाने दूँगी|

इतना कहके भौजी तेजी से मेरी ओर चलती हुई आई और मुझसे कस के लिपट गई|

भौजी: आपको पता भी है की मेरा हाल क्या है? मैं कितना अकेला महसूस करती हूँ.... आपको नेहा का अकेलापन दीखता है पर मेरा नहीं! पिछले 5 - 6 दिनों से आपने मुझे छुआ भी नहीं? कल भी सारा दिन आप मेरे साथ खेल खेलते रहे और ऐसे जताया की जैसे मैं यहाँ हूँ ही नहीं| आप जब खाना ले के आये तो मुझे लगा की आपका गुस्सा शांत हो गया है और आप रात में आओगे पर नहीं.....मेरा कितना मन है आप के साथ ... पर आप हैं की ....

मैं: Awwwww !!! O.K. बाबा नहीं जाऊँगा! बस खुश!!!

भौजी कुछ नहीं बोलीं बस अपने नीचे वाले होंठ को अपने दाँतों तले दबाया और मुस्कुरा दीं| पता नहीं क्या हुआ, वो मुझे एक टक देखने लगीं..... और फिर एक कदम पीछे गईं और नीचे घुटनों के बल बैठ गईं| पर मुझे बहुत ही अजीब लगा... एक अलग सी फीलिंग हुई और इधर भौजी का हाथ मेरे पजामे के ऊपर था| इसे पहले की भौजी मेरे पजामे को नीचे खींचे मैंने उन्हें कंधे से पकड़ा और वापस खड़ा किया| भौजी अपनी दोनों भौएं सिकोड़ के सवालिया नजरों से देखने लगीं| मैंने कुछ नहीं कहा और बस ना में सर हिला के उन्हें रोका| भौजी ने अपने हाथ आगे बढ़ा के मेरी टी-शर्ट उतारी और इस बार मैंने उनका जरा भी विरोध नहीं किया| भौजी ने अपने सीधे हाथ को मेरी नंगी छाती पे फिराया ...मेरा शरीर गर्म था! उन्होंने आगे बढ़ के मेरे दिल के ऊपर अपने होठों से चुम्बन किया| मानो ये जता रहीं हों की ये मेरा है! फिर धीरे से वो एक कदम पीछे हो गईं| मैं धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगा ओर वो पीछे होती गई... आखिर हम चारपाई तक पहुंचे| मैंने उनको बिठाया .... और फिर धीरे-धीरे उन्हें लेटा दिया| मैं अब उनके ऊपर चढ़ गया और उनके होठों पे अपने होंठ टिका दिया| मैंने अपना पूरा वजन उनपे नहीं डाला था मैं बिलकुल Push Ups मारने वाली स्थिति में था|

मैंने सीधा अपने जीभ उनके मुंह में प्रवेश कर दी और भौजी ने बड़ी गर्म जोशी से उसका स्वागत किया| मेरी जीभ उनके मुंह में भ्रमण कर रही थी और इधर भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द अपनी गिरफ्त बना ली थी| वो अब भी मुझे अपने ऊपर खींच रहीं थी... पर मैं उनके निचले होंठ को चूसने में व्यस्त था| वो मधुर सुगंध मुझे फिर से पागल किये जा रही थी| मैं उन्हें बेतहाशा चूमे जा रहा था| पर अब बारी थी भौजी की,,, जैसे ही मैंने अपनी जीभ उनके मुंह में दुबारा प्रवेश कराई उन्होंने अपने मोती से सफ़ेद दाँतों से मेरी जीभ को पकड़ लिया| अब मेरी जीभ उनके मुंह के अंदर छटपटाने लगी जैसे किसी छिपकली की पूँछ काट देने पे उसकी पूँछ कुछ देर के लिए छटपटाने लग जाती है| ये तो साफ़ था की दोनों जिस्म वासना और प्यार की मिलीजुली अग्नि में झुलस रहे हैं! अब भौजी ने मेरी जीभ को दाँतों से दबाये हुए ही चूसना शुरू कर दिया था| इधर मेरा लंड पाजामा फाड़ के बहार आने को तैयार था| मैंने धीरे से अपने लंड को उनकी योनि पे दबाना शुरू कर दिया था| पर भौजी मेरी जीभ को अपने दाँतों की गिरफ्त से छोड़ना ही नहीं चाहती थीं| मैं चूँकि Push Ups मारने वाली स्थिति में उनके ऊपर लेटा था इसलिए मैं धीरे-धीरे ऊपर उठाने लगा जिससे की मेरी जीभ बहार निकलने को तड़पने लगी| पर भौजी कहाँ मानने वाली थीं... उन्होंने मेरी जीभ को तो आजाद किया पर मेरे निचले होंठ को अपने होठों में भर लिया और लगीं उसे चूसने| अब मैंने भी सोचा की चलो जो ये चाहें वही सही और मैंने भी उनका पूरा सहयोग देना शुरू कर दिया| मैं भी उनके ऊपर के होठ को चूसने लगा और ये सिलसिला करीब पंद्रह मिनट तक चलता रहा| ना तो उनका मन था मेरे होंट छोड़ने का और ना ही मेरा मन था उनके होठों को छोड़ने का!

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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:39

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अब आगे...

शायद उन्हें लगा की इससे से हम दोनों को वो संतुष्टि नहीं मिल पायेगी जो हमें आगे मिलती| या फिर उनके अंदर अग्नि अब ज्वाला का रूप ले चुकी थी की उन्होंने मेरे होठों को आजादा किया और उसके बाद मैंने भी उन्हें आजाद किया| हम दोनों के ही होंठ पूरी तरह से गीले थे और ..... उस दृश्य को बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं! हम अलग तो हुए पर आँखें अब भी एक दूसरे से मिली हुईं थी और जैसे अलग ही ना होना चाहती हों! इस तरह से एक दूसरे को देखने से शरीर में लगी अग्नि अब प्रगाढ़ रूप धारण कर चुकी थी पर फिर भी कुछ था जिसने हमें जंगली होने से रोका हुआ था| मैंने दुबारा पहल की और अपनी आँखों से उनके ब्लाउज की ओर इशारा किया, और दुबारा टकटकी लगाए उन्हें देखता रहा| भौजी ने भी बिना अपनी नजरें हटाये अपने ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए और जैसे ही ब्लाउज खुला मेरे सामने दूध से सफ़ेद एक दम सही गोलाकार स्तन थे| मैं थोड़ा सा नीचे खिसका और उनके बाएं स्तन पे अपने होंठ रख दिए| ये मेरा तरीका था उन्हीने बताने का की आपके दिल पे अब बस मेरा राज है! भौजी ने मेरी इस प्रतिक्रिया का जवाब अपने दोनों हाथों को मेरे सर पे रख के दबा के दिया| मैंने उनके स्तन का पान करना शुरू कर दिया| हालाँकि नमें दूध नहीं था पर दोष की महक जर्रूर आ रही थी| मैं उनके निप्पल को अपनी जीभ से छेड़ना लगा और भाजी के मुंह से सिस्कारियां फूटने लगीं थी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ... म्म्म्म्म्म्म्म .... आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ज़्ज़्ज़्ज़"| अपने बाएं हाथ से मैंने भौजी के दाहिने स्तन का मर्दन शुरू कर दिया था और भौजी के शरीर ने प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी थी| वो बहुत कसमसा रहीं थी... उनके दिल की धड़कनें मुझे माथे पे महसूस होने लगी थी| भौजी अपने हाथों का दबाव मेरे सर पे डाले जा रहीं थी जैसे कह रहीं हो की खा जाओ... काट लो इन्हें! एक बात कहूँ मित्रों आप जब भी सेक्स करें तो कोशिश करें की आप बोलें ना| मैं आपको गारंटी देता हूँ की आपको जो सैटिस्फैक्शन मिलेगा उसकी आप किसी भी चीज से तुलना नहीं कर सकते बशर्ते आपका पार्टनर बिना कहे आपके मन की बातें समझ सकता हो!

मैंने अपने दांतों से भौजी के निप्पलों को काटना शुरू कर दिया था, और जैसे ही मेर दाँत उनके निप्पल को छूटे वो चिहुक उठती और उनके मुंह से "आअह्ह्ह..स्स्स्स्स्स" निकल पड़ता| बहुत मजा आ रहा है और रुकने का मन भी नहीं कर रहा था पर मैं भौजी के दाहिने स्तन के साथ तो ज्यादती नहीं कर सकता था| इसलिए मैंने भौजी के बाएं स्तन को छोड़ा ... एक नजर उसे देखो और देखता रहा वो बिलकुल लाल हो चूका था और उसमें मेरे दांतों के निशाँ पड़ चुके थे| दायाँ स्तन जैसे मेरे होठों से शिकायत कर रहा हो की आखिर मेरे साथ ही सौतेला व्यवहार क्यों! आखिर मैंने उसे (दायें स्तन) को अपने मुंह में भर लिया और उसे भी वही प्यार दिया जो बायें वाले को दिया था| भौजी का कसमसाना अब भी जारी था और उनके मुंह से "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...... उम्म्म अन्न्न्ह्ह्ह्ह " की सिसकारियाँ जारी थी| मैंने अपनी जीभ से उनके निप्पल को बार बार छेड़ता ... कभी उनके निप्पल को दांतों से दबाता और भौजी के मुंह से आह निकल पड़ती; "आअह्हह्हह म्म्म्म"... फिर मैंने अपना मुंह जितना हो सकता था उतना खोला और उनके स्तन को अपने मुंह में भर के काट लिया! भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर में उँगलियाँ फिराना चालु कर दिन और मुझे महसूस हुआ की उन्हिएँ कितना आन्नद आ रहा है! अब मैंने दायें वाले को भी चूस-चूस के लाल कर दिया था| अब मैं सीधा नीचे की ओर बढ़ा... उनकी नाभि को KISS किया और फिर उनकी साडी खोली और जो पल्ला उन्होंने अपनी कमर में खोंसा हुआ था उसे निकाल दिया|साडी खुल गई .. अब बचा पेत्तिसोअत तो मैंने उसका नाद खोल दिया और उसे नीचे ना उतार के ऊपर की ओर सरका दिया और उनकी योनि पे अपने होंठ टिका दिए| भौजी ने अपनी दोनों टांगें पूरी खोल ली जिससे उनकी योनि ओर उभर के सामने आ गई|

अब मैंने एक नजर भौजी को देखा तो जैसे वो इन्तेजार कर यहीं हों की कब मैं अपना मुंह उनकी धधकती योनि पे लगाउँगा|

मैंने जैसे ही अपनी जीभ उनकी योनि पे लगा के एक सुड़का मारा (क्योंकि उनकी योनि पहले से ही पनिया चुकी थी|) भौजी का बदन कमान की तरह उठ गया| मैं फिर भी रुका नहीं ओर अपनी जीभ से उनकी योनि ऊपर-ऊपर से कुरेदने लगा| मैंने धीरे से भौजी के भगनासा को अपने जीभ से छेड़ा तो भौजी तड़प उठीं; "स्स्स्स्स्स्स्स्स ...उम्म्म"| मैंने उनके भगनासा को अपने मुँह में भर लिया ओर उसे चूसने लगा| भौजी विचलित होने लॉगिन ओर उनकाबदन फिर से कमान की तरह खिंच गया| केवल उनकी गर्दन तकिये पे थी बाकी का सारा शरीर कमान की तरह ऊपर की ओर मुड़ चूका था| मैंने उनके भगनासा को छोड़ा और धीरे-धीरे उनका शरीर पुनः सामान्य हो गया| मुझे महसूस हुआ की अब भी उनका मन नहीं भरा इसलिए करीब 5 - 7 सेकंड सांस लेने के बाद मैंने पुनः डुबकी लगाईं और भौजी की योनि में अपनी जीभ प्रवेश करा दी और भौजी तो छटपटाने लगीं| उन्होंने तकिये को दोनों हाथों से पकड़ लिया और बार-बार अपनी कमर हवा में उठा लेतीं| मैंने उनकी योनि की खुदाई जारी रखी और इधर भौजी ने अपना हाथ मेरे सर के ऊपर रखा और मेरे बालों में उँगलियाँ फिराने लगीं| उनकी उँगलियाँ मेरे सर पे जादू करने लगीं और मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैं और भी ज्यादा जोश से उनकी योनि को चाटने-चूसने लगा| कभी-कभी तो मैं भौजी की योनि की कपालों को अपने दाँतों से हल्का दबा देता और भौजी चिहुंक उठती; "आह!"!!! दस मिनट तक उनकी योनि को अपने मुँह से भोगने के बाद मुझे लगा की भौजी अब स्खलित होने वाली हैं इसलिए मैं पूरी तरह तैयार था| अगले दो सेकंड में भौजी ने अपनी कमर हवा में उठाई और उनकी योनि से रस मेरे मुँह में जाने लगा| बिना रुके भौजी स्खलित होती रहीं और मुझे उनका नमकीन रस अपने मुँह में भरता महसूस होने लगा| अब उनकी योनि से एक मादक खुशबु ने मेरे दिल में हलचल मचा दी और मैं रह-रह के उनके भगनासा को छेड़ देता| रस निकलना अब भी नाद नहीं हुआ... करीब बीस सेकंड तक वो स्खलित होती रहीं और मैं जीभ से उनके रस को पीता रहा|

भौजी हाँफने लगीं और मैं उन्हें और तंग ना करते हुए उनकी बगल में लेट गया| करीब एक मिनट बाद उनकी सांसें सामान्य हुईं और वो मेरी और करवट लेके लेट गेन| उनका सर मेरी छाती पे था और उनका बायां हाथ मेरे पेट पे था| मुझे उनके हाव भाव से लगा की वो संतुष्ट हैं और मैं मन ही मन बहुत खुश था| मैं उनके साथ सम्भोग नहीं करना चाहता था क्योंकि ऐसा करना ऐसा होता जैसे मैं उनसे दिन में दिए सभी सुरप्रीज़ों के बदले में उनसे कुछ माँग रहा हूँ| मैं उनसे कोई सौदा नहीं करना चाहता था बल्कि उन्हें खुश देखना चाहता था | मेरा मन अवश्य कह रहा था की आगे बढूँ पर आत्मा मना कर रही थी| इसलिए मैं शांत पड़ा रहा..... पर पता नहीं कैसे उन्हें हमेशा मेरे दिल की बात बिना कहे ही पता चल जाती थी? भौजी उठ के कड़ी हुईं और अपना पैटीकोट निकाल फेंका और वापस आके मेरे बगल में उसी तरह लेट गईं| उनका नंगा बदन मेरे अंदर आग लगा चूका था पर मैं बहुत झिझक रहा था| उन्होंने अपनी बायीं टांग उठा के मेरे लंड पे रख दिया| मैं हल्का सा मुस्कुरा दिया और वो अपने आप ही मेरे ऊपर चढ़ गईं ... उनके मेरे मुँह से अपने रस की महक आ रही थी और उन्होंने बिना कुछ कहे मेरे होठों पे Kiss किया| वो मेरे होठों को मदहोश होके चूसने लगीं और ये सिलसिला करीब तीन मिनट तक चलता रहा| जब तक उन्हें ये संतोष नहीं हो गया की मेरे मुंख में अब उनके योनि रस की महक खत्म नहीं हो गई वो मेरे होठों को चूसती रहीं| अब वो धीरे-धीरे नीचे हुईं और मेरे निप्प्लेस को अपने दांतों से काट लिया, मेरे मुँह से पीड़ा से भरी चीख निकल पड़ी; "आह! स्स्स" फिर उन्होंने मेरे निप्पल के इर्द-गिर्द भूरे हिस्से को निप्पल समेत अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगीं| शायद उन्हें लगा की इसमें से कुछ निकलेगा? पर जहाँ से निकलना था वो तो उनकी नंगी योनि और मेरे पजामे के बीच फँसा हुआ था| भौजी की योनि की गर्मी मुझे अपने लंड पे साफ़ महसूस होने लगी थी और वो बेचारा बहार आके सांस लेने के लिए तड़प रहा था! भौजी ने मेरे दोनों निप्पलों को चूसना... चबाना जारी रखा| और मैं बस सिसकियों के सागर में गोता लगा रहा था|

अब वो नीचे की ओर बढ़ीं ओर मेरी नाभि को चूमा और फिर मेरे पजामे के नाड़े को खोला और उसे और कच्छे को एक साथ पकड़ा और नीचे खींच के उतार दिया| अब मेरे फैन फनाता हुआ लंड उनके सामने खड़ा था और वो उसे प्यासी नजरों से क्षण भर देखती रहीं| इधर मेरे लंड ने एक तेज सांस ली क्योंकि बेचारे का दम क्षण भर पहले जो घुट रहा था| भौजी ने दाहिने हाथ से उसे पकड़ा और उसकी चमड़ी नीचे की और सुपाड़ा बहार आ गया| भौजी ने धीरे-धीरे अपना मुँह खोला और उसे अपने मुँह में भर के सहज हो गईं| मैं तो जैसे अव में उड़ने लगा... उनके मुँह से निकल रहीं गरम सांसें मुझे अपने लंड पे महसूस होने लगी थी| भौजी ने अपने दाँतों से सुपाड़े को धीरे-धीरे दबाने लगी| "स्स्स्स्स्स्स आह!" और मैं बस इतना ही कह पाया.... भौजी ने एक लम्बा सुड़पा मारा और लंड को पूरा अंदर ले लिए! पूरा लंड उनके गर्म-गर्म मुँह में और ऊपर से उस पे धोंकनी जैसी लग राय उनकी गर्म सांसें मेरी हालत ख़राब करने लगी थी| फिर उन्होंने अपना मुँह ऊपर-नीचे करना शुरू किया और लंड को पूरा चूसने लगीं| अंदर का ज्वलमुखी उबाल रहा था और बहार आने को तैयार था.... मैंने उनके गालों को अपने हाथ से छुआ और रुकने का इशारा किया| फिर उन्हें अपने ऊपर खींच लिया और अपनी बगल में लिटा लिया| क्षण भर हम एक दूसरे को देखते रहे और इसका ये फायदा भी था की जवालानुखी शांत होने लगा था| जब वो बिलकुल ठंडा हो गया तब मैं भौजी के ऊपर आगया और अपने लंड को उनकी योनि पे सेट किया पर फिर मन किया की क्यों ना इन्हें और तड़पाऊँ? इसलिए मैं लंड को ऊपर-ऊपर से उनकी योनि पे रगड़ने लगा परन्तु अंदर नहीं धकेल रहा था| भौजी तड़प उठीं और अपने हाथ से मेरे लंड को पकड़ने की कोशिश करने लगीं पर मैंने उन्हें पकड़ने नहीं दिया, उसके बाद जो हुआ उसे सुन के मेरे होश उड़ गए!

अनायास ही उनके मुँह से ये बोल फूट पड़े; "Please .... I Can’t take it anymore!" (प्लीज मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता!) ये सुन के मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं| अब मेरा दिमाग एकदम सन्न हो गया क्योंकि मैंने कभी नहीं सोचा था की भौजी अंग्रेजी भी बोल सकती हैं! मुझे उनके अंग्रेजी बोलने से कोई दिक्कत नहीं थी बस एक शिकवा था की उन्होंने कभी बताया नहीं| मैं एक दम से रूक गया और भौजी समझ गईं की क्या कारन है उन्होंने अचानक से मुझे अपने ऊपर खींचा और मुझे नीचे कर के मेरे लंड पे सवार हो गईं और अपने हाथों से लंड को योनि के अंदर धकेल दिया| अब उन्होंने ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया.... इधर मैं हैरान था और मैंने अपनी आँखें बंद कर ली| मैं कुछ नहीं बोला बस चुप-चाप लेटा रहा... अब दिमाग तो संन्न था परन्तु लंड अंदर पूरे मजे ले रहा था| उस बेचारे को इस सब से क्या फर्क पड़ता| उसे तो अंदर से गर्म-गर्म और भौजी के रस का गीलापन दोनों ही मिल रहे थे और वो बस अपनी प्यास बुझाना चाहता था| इधर भौजी की योनि भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रही थी| इधर भौजी कुछ ज्यादा ही उत्साह और मस्ती में बह गईं और उन्होंने अपनी गति बढ़ा दी थी| आँगन में उनकी सिसकारियाँ गूंजने लगीं थी, "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..... उम्म्म्म्म्म्म्म्म" इधर मैं झड़ने की कगार पे आ चूका था| उधर भौजी की हालत भी कुछ ऐसी ही थी, उन्होंने अचानक ही ब्रेक लगा दी और स्थिर हो गईं बस अपनी कमर को गोल घुमा रहीं थी और उनकी योनि ने मेरे लंड को जकड के उसे दबाना चालु कर दिया| आखिर भौजी स्खलित हो गईं और मेरा लंड उनके रस में भीग चूका था और उनका रस बहार मेरे लंड से होता हुआ चारपाई और मेरी गांड तक बह निकला| अब बारी मेरी थी, भौजी ने अपनी कमर को हिलाना बंद नहीं किया था और आखिर मैंने अपना फव्वारा अंदर छोड़ दिया| जैसे ही मेरा फव्वारा अंदर छूटा भौजी ने अपनी गर्दन ऊँची कर के पीछे की ओर मोड़ लिया| मैंने अपने दोनों हाथों से चारपाई पे बिछी चादर को पकड़ लिया था|

करीब बीस सेकंड के बाद मैं शांत हुआ ओर भौजी मेरे ऊपर ही लेट गईं| दोनों ही पसीने से तरबतर थे ओर थक चुके थे| दोनों की सांसें तेज थी... अगर मैं गलत नहीं तो भौजी मेरी धड़कनेंईं सुन पा रहीं होंगी क्योंकि उनका सर मेरी छाती पे था| भौजी हैरान तो होंगी की मैंने आखिर उनसे अंग्रेजी बोलने के बारे में क्यों कुछ बात नहीं की| पर मैं उन्हें वचन दे चूका था की मैं आपसे नाराज कभी नहीं हूँगा|

एक लम्बी सांस लेते हुए भौजी बोलीं;

भौजी: आप मुझसे नाराज हैं?

मैं कुछ नहीं बोला बस आँख बंद किये ना में गर्दन हिला दी|

भौजी: तो आप ने मुझसे मेरे अंग्रेजी बोलने पे कुछ क्यों नहीं कहा?

मैं अब भी कुछ नहीं बोला बस उनकी पीठ पे दोनों हाथ रखे और करवट बदली| अब भौजी का सर मेरे दायें बाजू पे था और हम अब भी नंगे थे और लंड अब भी योनि में शिथिल पड़ा था| मैं उनकी आँखों में देखता हुआ बोला;

मैं: मैंने आपसे वादा किया था की मैं आपसे कभी नाराज नहीं हूँगा…. और हाँ मुझे थोड़ा बुरा लगा की आपने मुझे कभी नहीं बताया की आप कितना पढ़े हो? मैंने तो ये सोचा था की आप भी चन्दर भैया की तरह अनपढ़ हो| पर अगर आपने मुझे इस बारे में कुछ नहीं बताया तो गलती मेरी भी है.... मैंने भी तो कभी इस बारे पे आपसे कुछ नहीं पूछा… और आपका ये सब न बताने के पीछे भी कोई न कोई कारन होगा|

भौजी: कभी-कभी तो लगता है की मैं आपको बिलकुल नहीं समझ पाती! मैं तो डर रही थी की आप मुझसे नाराज होंगे पर आपने कितनी सरलता से इस बात को एक्सेप्ट (accept) कर लिया| मैं सच मैं बहुत लकी (lucky) हूँ की मुझे आप मिले|

मैं: Likewise .... (मैंने उन्हें अपने से कस के चिपका लिया|)

भौजी: दरअसल बचपन से मुझे पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था| पर पिताजी ने कभी पढ़ने नहीं दिया, उन दिनों चरण काका की भतीजी शहर से आई हुई थी और मैंने जीवन में पहली बार किताबें देखी! मैं उन्हें खोल के देखने लगी और चरण काका की भतीजी मुझे वर्णमाला के कुछ अक्षर सिखाने लगी| ये सब चरण काका ने देख लिया और पिताजी से कहा की मुझे पढ़ने दिया जाए| पर मितजी नहीं माने... ऐसा नहीं था की हमारी माली (financial) हालत ख़राब थी पर पिताजी का मानना था की केवल लड़कों को ही शिक्षा का अधिकार है| पर चरण काका के जोर देने पर पिताजी ने मुझे पढ़ने के लिए मेरे मौसी के पास शहर भेज दिया| मौसी ने मेरे एडमिशन अंग्रेजी मध्यम स्कूल में करा दिया और मैं दसवीं के इम्तिहान दे चुकी थी तब मेरे ब्याह करा दिया गया| उसके बाद मैंने अपने मन को मार लिया और चुलह-चौक में अपना मन लगा लिया| (ये कहते हुए भौजी की आँखों से आंसूं छलक आये और मेरी छाती गीली करने लगे|) फिर आप मिले और मेरी जिंदगी बदल गई, सच कहूँ तो मैं रब की शुक्रगुजार हूँ जो आप मेरी जिंदगी में आये| मुझे अब कोई गिला नहीं की मेरी पढ़ाई छूट गई, हाँ शुरू-शुरू में हुई थी पर अब नहीं ... मेरे पास आप हो और मुझे कुछ नहीं चाहिए| (भौजी ने अपने आप ही आंसूं पोछे और फिर से मुझसे चिपक गईं|)

मैं: आप अब भी पढ़ना चाहते हो?

भौजी: नहीं... अब मन नहीं लगता और ना ही आपको इसके बारे में किसी से बात करने की कोई जर्रूरत है| आप के आलावा इस घर में और कोई नहीं जानता की मैं दसवीं तक अंग्रेजी में पढ़ी हूँ|

मैं: यार कितनी शर्म की बात है की घर में अंग्रेजी पढ़ी हुई बहु है और किसी को उसकी कदर ही नहीं| इसलिए मैं कह रहा था की मेरे साथ भाग चलो|

भौजी: छोडो उस बात को.... वैसे एक कारन है जिसकी वजह से मैंने आपको कभी नहीं बताया की मैं अंग्रेजी पढ़ी हूँ|

मैं: वो क्या?

भौजी: जब मैं आपके सामने लड़खड़ाते हुए अंग्रेजी बोलती थी तो जो मुस्कान आपके चहरे पे छलक आती थी उसके लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ|


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