गर्ल'स स्कूल compleet

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rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 08:08

गर्ल्स स्कूल--20

पूरे 24 घंटे बीत जाने पर भी कोई जवाब ना आने पर टफ बेचैन हो गया था.. उसकी बेचैनी का ये आलम था की हर 15 मिनिट के बाद आज वो सिग्गेरेट निकल लेता... शमशेर ने उसके हाथ से सिग्गेरेट छीन ली," यार! क्या हो गया है तुझे; और कोई काम नही बचा क्या, खुद को जलाने के अलावा... "यार तू तो समझता है ना प्यार की तड़प! कुछ बता ना... ऐसे तो मैं मर ही जवँगा यार!" टफ ने दूसरी सिगरेट जलाते हुए कहा. शमशेर ने उसको गुरुमन्त्र देते हुए कहा," भाई, इशक़ आग का दरिया है... और अगर इसके पार उतरना है तो डूब कर ही जाना पड़ेगा... अगर तुझे लगता है की उसको गालियाँ निकालने के बाद तू एक लव लेटर उसके मुँह पर मारेगा, और वो हमेशा के लिए तेरी हो जाएगी; तो तुझसे बड़ा उल्लू पूरी दुनिया में नही है..." "तो भाई! तू ही बता ना, मैं क्या करूँ की मेरी लाइफ झक्कास हो जाए!" टफ ने शमहेर का हाथ पकड़ कर कहा. "मैं कुछ भी करूँगा यार, उसको पाने के लिए!" "तू तो कहता था तेरी लाइफ झकास है... ऐसे ही घुमक्कड़ बनकर यार दोस्तों में पड़े रहना और रोज़ नयी सुहाग्रात मानना! उसका क्या?" शमशेर ने उस्स पर कॉमेंट किया.. "नही यार! मुझे तो पता ही नही था अब तक की प्यार के बिना इस हसिनाओ के सागर में रहकर भी प्यास कभी नही बुझती... मेरी प्यास तो अब सीमा ही बुझा सकती है.." " तो फिर इंतज़ार काहे को करता है... पहुँच जा ना उधर ही उसके घर पे! बोल दे दिल की बात...!" फिर आगे भगवान की मर्ज़ी!" शमशेर ने उसके साथ मज़ाक किया. "यार तू मेरी बची कूची भी लुटवाएगा. कैसा भाई है रे तू!" टफ की हिम्मत ही ना हो रही थी सीमा के सामने जाने की. "फिर तो तेरे लिए ऐसे ही ठीक है... कोई बात नही.. साल छे महीने मैं भूल जाएगा.. पता है मुझे तेरा" "यार तू मेरे प्यार को गली दे रहा है... मैं सच में ही पहुँच जाउन्गा उसके घर...." टफ ने निर्णायक दाँव ठोका... "तो फिर रोका किसने है...? चल आजा खाना तैयार होगया होगा..." टफ ने घर की तरफ चलते हुए कहा....

अंदर दिशा और वाणी उनका ही वेट कर रही थी.... दिशा शादी के बाद गुलाब के फूल की तरह खिल सी गयी थी.. शमशेर के प्यार से उसका अंग अंग जैसे निखार गया था.. उसकी छातियों का कसाव और बढ़ गया था.. उसके नितंबों में थिरकन पहले से भी कामुक हो गयी थी... कल की स्वर्ग की राअजकुमारी अब महारानी बन चुकी थी.. शमशेर की महारानी.. हां, पहले जैसा उसका गुस्सा अब उतना नही रहा था.. उसके शरीर की दबी हुई कामवासना उसके नाकचॅढी होने के लिए ज़िम्मेदार थी और जब वो शमशेर ने जगा दी तो अब वो खुलकर मज़ा लेती थी, सेक्स का; प्यार का... इसीलिए अब वा बहुत ही सन्तुस्त दिखने लगी थी... पर उसने ग्रॅजुयेशन से पहले खुद को मा ना बनाने का फ़ैसला किया था और शमशेर को भी इश्स-से कोई ऐतराज ना था... वाणी... दीनो दिन जवानी के करीब आती जा रही वाणी अब समझदार होती जा रही थी और ये समझदारी उसके अंगों में भी सॉफ देखी जा सकती थी... उसके चेहरे और बातों की मासूमियत का उसके अंग विरोध करते दिखाई देते थे.. सहर में रहने के कारण उसको पहनावे का सलीका भी जल्दी ही आ गया.. अब दिशा उसकी वो तमाम हसरतें पूरी कर देना चाहती थी.. जो वो शादी से पहले खुद पूरी नही कर पाई.. ग़रीबी के कारण.. उसको जी भर कर अपनी पसंद के कपड़े खरीद वाती... सज़ा संवार कर रखती... वाणी अक्सर उसको टोक देती," दीदी! मैं क्या बच्ची हूं, आप मुझे 'ऐसे रहना! वैसे रहना!' समझाती रहती हैं..." "तू चुप कर! और जैसे मैं कहती हूँ, वैसे ही रहा कर... समझी.. कितनी प्यारी है तू.. राजकुमारी जैसी" और दिशा उसको अपने गले से लगा लेती. कल की गाँव की राजकुमारी... आज शहर की राजकुमारी को सारे शहर की धड़कन बना कर रखती थी.. और वाणी बन चुकी थी.. धड़कन, युवा दिलों की... जिधर से भी वा निकलती थी.. मानो कयामत आ जाती.. मानो समय रुक सा जाता... पर लड़कों के हर इशारे को समझने के बावजूद वो उनकी अनदेखी कर देती... उसको पता था.. समय आने पर उसको भी उसका राजकुमार मिल जाएगा... दिशा ने वाणी को बता दिया था की आजकल अजीत भी प्यार के जाल में उलझा हुआ है.. जब अजीत खाना खा रहा था तो वाणी रह रह कर उसके मुँह की और देखती और दिशा को हाथ लगाकर खिलखिला कर हंस पड़ती.. "क्या बात है? क्या मिल गया है तुझे वाणी" टफ ने वाणी को अपनी तरफ देख कर इस तरह हँसती पाकर पूछा. "भैया! ये टॉप सीक्रेट है..." वाणी ने उससे चुहल बाजी की... "देख भाई, पहले तो अपनी साली को समझा दे; मुझे भैया ना बोले.." टफ ने वाणी की शिकायत शमशेर से की.. "वाणी! ऐसे नही बोलते... तू अंकल भी तो कह सकती है.." और तीनो खिलखिला कर हंस पड़े... टफ का चेहरा देखने लायक था," भाई! यहाँ तो आना ही पाप है.. एक बार मेरा टाइम आने दे, देखना 'उससे' रखी ना बँधवाई तो मेरा भी नाम नही... कल ही जाता हूँ..

"उससे किस-से भैया! सीमा दीदी से, उसको तो मैने पहले ही दीदी बना लिया है..." टफ अपनी अंदर की बात का सबको पता लगे देख खीज गया," यार, तू तो बड़ा घनचक्कर है.. तूने तो मुनादी ही कर दी..." शमशेर ने वाणी की और देखकर इशारा किया और एक बार फिर से ठहाका गूँज उठा.. एक सुखी परिवार में... अगले दिन सुबह 11 बजे से ही टफ यूनिवर्सिटी के ईको देपारटमेंट के बाहर खड़ा था... वो बड़ी हिम्मत करके वहाँ आया था.. अपने दिल का हाल सुनने, उसका दिल हर लेने वाली सीमा को.. करीब 3 घंटे के सालों लंबे इंतज़्ज़ार के बाद टफ को सीमा दिखाई दी... डिपार्टमेंट से बाहर आते... टफ आज डंडा नही लाया था.. सीमा की नज़र टफ पर पड़ी.. पर वो अपनी सहेलियों के साथ थी.. उसने टफ को इग्नोर कर दिया और सीधी चली गयी.. टफ को अपने 3 घंटे पानी में जाते दिखाई दिए," सीमा जी!" टफ ने सीमा को पुकारा. "जी!" सीमा उसके पास आ गयी.. साथ ही सहेलियाँ भी थी. "वववो.. आपने जवाब नही दिया!" टफ की साँसे उखाड़ रही थी... जाने कितनो को पानी पीला पीला कर रुलाने वाला टफ आज प्यार की पतली डोर से ही अपने आपको जकड़ा हुआ सा महसूस कर रहा था..

"किस बात का जवाब इनस्पेक्टर साहब?" सीमा ने अंजान बनते हुए पूछा... "क्या? क्या पीयान ने आपको कुछ नही दिया कल?" "हाँ! दिया तो था.. तो?" सीमा जी भर कर बदला लेना चाहती थी.. उसकी हर हरकत का "तो.. ट्त्तू... क्क्क.. कुछ नही... मतलब.. वो.. मैं.. " टफ को अब पता चला था की सही कहते हैं.. प्यार का इज़हार ही कर सको तो बहुत बड़ी बात है.. सारी लड़कियाँ उसकी हालत देखकर हंस पड़ी.. और चली गयी.. हंसते हुए ही.. सीमा को अपने से फिर दूर जाता देख टफ तड़प उठा.. आख़िर वो क्या मुँह दिखाएगा शमशेर को! उसने तो उसकी मुनादी ही करवा दी थी..," सीमा जी!" अब की बार सीमा अकेली आई.. उसकी सहेलियाँ दूर खड़ी होकर उसका इंतज़ार करने लगी... "बोलो इनस्पेक्टर साहब!" सीमा ने उसके पास आकर पूछा.. "सीमा जी! मेरा नाम अजीत है.. आप नाम से बुलाइए ना!" "पर मैं तो आपको एक बहुत ही अच्छे इनस्पेक्टर के रूप में जानती हूँ. मैं इतने बड़े आदमी का नाम कैसे लूँ?" "ज्जजई.. मैं बड़ा नही हूँ... 25 का ही हूँ..!" टफ ने अपनी उमर बताई.. सीमा उसके चेहरे पर जाने कहाँ से आई हुई मासूमियत देखकर हँसने को हुई पर उसने जैसे तैसे खुद को रोके रखा!"

"इट्स ओके! आप काम की बात पर आइए..." सीमा ने टफ से कहा. "जी आपने उस्स खत का जवाब नही दिया" टफ अपना धीरज खोता जा रहा था. "हुम्म.. तो आपको लगता है की मुझे जवाब देना चाहिए था!" सीमा उसकी शहनशीलता की हद देखना चाहती थी.. "जी.. वो... मैने रात भर भी इंतज़ार किया.." टफ अपने घुटने टेक चुका था.. सीमा के प्यार में.. "वैसे आपको क्या लगता था.. मैं जवाब दूँगी!" "पता नही.. पर... मुझे अब भी उम्मीद है..!" सीमा ने उसको और तड़पाना ठीक नही समझा... आख़िर वो भी तो सारी रात बार बार लेटर पढ़ती रही थी... पर प्यार के बेबाक इज़हार की उसमें हिम्मत नही थी," हम दोस्त बन सकते हैं...!" सीमा ने अपना हाथ टफ की और बढ़ा दिया... "सिर्फ़ दोस्त?" टफ तो जैसे जिंदगी भर आज से ही उसके पहलू में रहना चाहता था... "अभी तो.... सिर्फ़ दोस्त ही..! मैं आपको रात को फोने करती हूँ...." टफ ने उसके वापस जाते हाथ को दोनो हाथों से पक्क़ड़ लिया...," सीमा जी! मैं इंतज़ार करूँगा!" "अब ये सीमाजी कौन है? मैं सीमा हूँ... आपकी दोस्त.. अब चलूं.." टफ कुछ ना बोल पाया.... जाते हुए सीमा अचानक पलट कर बोली," मैने सारी रात वो लेटर पढ़ा... बार बार.. और हूल्का सा शर्मा कर चली गयी..... टफ प्यार की पहली सीधी चढ़ चुका था..........! शिवानी और राज दो दिन से बिना बोले रह रहे थे.. रात को शिवानी से ना रहा गया.. उसने मुँह फेरे लेट राज को अपनी बाहों में भर लिया...," आइ लव यू राज!" राज के लिए ये शब्द उसके घान्वो पर नमक जैसे थे..," मुझे हाथ लगाने की जुर्रत मत करना हरमज़ड़ी..." राज ने शिवानी को अपने से परे धकेल दिया.. "एक छोटी सी ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा मत दो राज.... प्लीज़.. मेरा दम निकला हुआ है तीन दिन से..." राज हद से ज़्यादा दूर कर चुका था शिवानी को... अपने दिल से...," साली कुतिया... दम निकल रहा है तो वहाँ जा.. जहाँ तू अपनी गांद मरवा कर आई है... साली... दम निकला जा रहा है तेरा.. अरे ये सब करने से पहले तूने ज़रा भी नही सोचा... अपने बारे में.... मेरे बारे में...."

"जान वो ज़बरदस्ती थी... तुम्हे नही पता.. मैं पल पल कैसे रोई हूँ... वो एक हादसा था... रेप था मेरा! और तुमने उसकी तो रिपोर्ट भी करनी ज़रूरी नही समझी... जिसने तुम्हारी बीवी की धज्जियाँ उड़ा दी... क्या उसके लिए मैं दोषी हूँ..." "मैं उसकी बात नही कर रहा कुतिया! जान बूझ कर अंजान मत बन... मुझे झूठ बोल कर अपने यार के पास रहकर आई... भूल गयी तू..." "कौन यार! तुम किसकी बात कर रहे हो?" राज से शिवानी का ये नाटक शहान नही हुआ.. वो बैठ कर शिवानी को ताबड़तोड़ मारने लगा.. शिवानी बेजान की तरह मार खाती रही," साली! ये ले.. मैं बतावँगा नाम भी तेरे यार का... बता कहाँ गयी थी... बता साली बता!!!" शिवानी कुछ ना बोली... राज की अपराधी तो वो थी ही.. उससे इसकी जिंदगी का एक अहम राज छिपा कर रखने की... पर जो इल्ज़ाम राज ने उसस्पर लगाया.. उसने तो उसको अंदर तक तोड़ दिया... वा विकी के पास गयी थी.. अपने प्यारे विकी के पास... पर लाख चाहकर भी राज को वो कुछ नही बता सकती थी.. पर ये इल्ज़ाम लगने के बाद उस-से छुपा कर रखना भी मुश्किल हो गया... आख़िर किसी के लिए ही क्यूँ ना हो.... वो अपने घर की खुशियों को आग कैसे लगा सकती थी.... जब राज मार मार कर थक गया और बेड से खड़ा होकर जाने लगा तो शिवानी धीरे से बोली," तुम विकी से मिलना चाहते हो?" "क्या यही नाम है तेरे यार का? साली कितनी बेशर्म से नाम ले रही है... साली!" राज ने शिवानी की और देखकर ज़मीन पर थूक दिया... "हाँ यही नाम है, जिसके लिए मैने तुमसे झूठ बोला.. और सिर्फ़ अभी नही... मैं पहले भी काई बार उससे मिलने गयी हूँ... अपनी शादी के बाद... पर आप मिलकर सब समझ जाओगे! अब मैं इस राज को राज रखकर तुम्हारी नफ़रत शहन नही कर पाउन्गि.... मिलोगे ना... विकी से... राज ने कुछ ना बोला और बेड पर गिरकर चादर औधली... उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था.....

"कल से बोर्ड के एग्ज़ॅम शुरू हो रहे हैं..! आपको नही लगता की बच्चों की तैयारी कुछ खास नही है?" अंजलि ने ऑफीस में बैठे स्टाफ से पूछा. "नही मेडम! ऐसी तो कोई बात नही है.. आप खुद क्लास में चलकर बच्चों की तैयारी का जायजा ले सकती हैं!" एक मेडम ने अंजलि से कहा. "इट्स ओके! मैं बस यही जान'ना चाहती हूँ की आप लोग संत्ुस्त हैं या नही... और एक और मॅत टीचर शायद अगले हफ्ते तक जाय्न कर लेंगे.. न्यू अपायंटमेंट है.. उम्मीद है.. अब स्टाफ की कोई समस्या नही रहेगी...नेक्स्ट सेशन के लिए..मिस्टर. वासू को अपायंटमेंट लेटर मिल चुका है... बस मेडिकल वैईगारह की फॉरमॅलिटी बाकी है... राज जी आज नही आएँगे... उन्हे कहीं जाना है.. वैसे भी कल किसी भी क्लास का साइन्स का पेपर नही है... आप चाहें तो उनकी क्लास ले सकती हैं.... राज और शिवानी बस में बैठे जा रहे थे... शिवानी उसको विक्ककी से मिलाने लेकर जा रही थी... उस्स राज से परदा हटाने के लिए जो उसने शादी के 6 महीने बाद तक भी अपने राज से छिपाए रखा था... पानीपत आर्या नगर जाकर शिवानी ने एक घर का दरवाजा खटखटाया... अंदर से कोई पागल सी दिखने वाली महिला निकली...," तुम फिर आ गयी.. हूमें नही चाहिए कुछ.. अपना अपने पास रखो... चाहो तो जो है वो भी ले जाओ... मैं अब जीकर क्या करूँगी... तुम तो पागल हो गयी हो... यहाँ मत आया करो.. उस्स औरत की बातों का कोई मतलब नही निकल रहा था.. शिवानी ने कुछ ना कहा और अंदर चली गयी... पीछे पीछे राज भी अंदर घुस गया और वहाँ पड़े पुराने सोफे पर बैठ गया... घर काफ़ी पहले का बना हुआ लगता था... उसकी देख रेख भी लगता था होती ही नही है... जगह जगह दीवारों से रोगन उतरा हुआ था... राज के लिए सब कुछ असचर्या करने जैसा था... इश्स औरत और इश्स घर से शिवानी का क्या संबंध हो सकता है..भला!" वा मूक बैठा कभी उस्स औरत को कभी शिवानी को देखता रहा.. तभी एक 5-6 साल का प्यारा सा बच्चा बाहर से अंदर आया..," नमस्ते मम्मी.. और वो शिवानी से लिपट गया...

rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 08:10

"विकी तो तेरे बिना जी नही सकता... जब साथ नही रख सकती तो क्यूँ लाई थी इश्स दुनिया में... क्यूँ पैदा किया था उसको" बुढ़िया की बात सुनकर राज के पैरों तले की ज़मीन खिसाक गयी... शिवानी ने बेटा पैदा किया है... राज को लगा जैसे घर की दीवारें गिरने वाली हैं.. उसको चक्कर सा आ गया.. उसने अपना सिर पकड़ लिया... वो एक बच्चे की मा का पति है... विकी की मा का पति.... शिवानी अंदर से पानी का गिलास लेकर आई और राज को दे दिया.. पागल सा हो चुका राज गिलास को हाथ में लेकर देखता रहा.. उसने जितना सोचा था.. शिवानी तो उस्स-से कहीं गिरी हुई निकली... वो तो सिर्फ़ ये सोच रहा था की उसने बाहर कोई यार पाल रखा है, और उससे गुलचर्रे उड़ाने जाती है... पर यहाँ तो मामला उससे भी भयानक निकला.. 5-6 साल का बेटा... राज के जी में आया वहीं सब को काट कर रख दे पर उसका शरीर जवाब दे चुका था.. उसमें तो कुछ पूछने तक की हिम्मत ना बची थी... वो टुकूर टुकूर शिवानी की गोद में बैठे विकी को देखता रहा,"मम्मी! ये अंकल कौन हैं.." शिवानी ने अपने साथ लाए कुछ खिलौने और खाने पीने की चीज़े विकी को दी," ये लो बेटा! मम्मी जुल्दी ही वापस आएगी..." "मम्मी आप मुझे साथ लेकर क्यूँ नही जाते! मेरा यहाँ पर दिल नही लगता!" शिवानी की आँखों में आँसू आ गये...,"जवँगी बेटा! तू थोड़ा सा बड़ा हो जा... हुम्म... फिर तू मेरे साथ ही रहना...जा अपनी दादी के साथ खेल ले दूसरे कमरे में..""अच्छा मम्मी!" अच्छे बच्चे की तरह विकी दूसरे कमरे में चला गया..राज शिवानी को आँखें फाड़कर देख रहा था.. पता नही अब अपने बेटे से मिलकर ये अपने आपको क्या शबित करना चाहती है...शिवानी अब और ज़्यादा सस्पेनस बनाकर नही रखना चाहती थी,"राज!ये मेरा बेटा नही है.. मेरी बेहन का बेटा है...."

"व्हाट? तुम्हारी बेहन कहाँ है?" "है नही थी..." शिवानी ने लंबी साँस लेते हुए कहा.. "प्लीज़ शिवानी! मेरा सिर फटा जा रहा है... तुम सेधे सीधे बताओ.. क्या चक्कर है विकी और तुम्हारा.. जहाँ तक मुझे पता है तुम तो अपने मा बाप की अकेली लड़की हो... और ये औरत कौन है? "ये मेरी बेहन की सास है...! मैं शुरू से बताती हूँ... शिवानी राज को फ्लेश बॅक में ले गयी... करीब 7 साल पहले...... मेरी एक बड़ी बेहन थी.. मुझसे 2 साल बड़ी... मीनू नाम था उसका... वह 17 साल की थी. उसको संजय से प्यार हो गया.. संजय राजपूत.. इश्स औरत का लड़का.. उसकी क्लास में ही पढ़ता था.. दोनो ने प्यार करने की हद लाँघते हुए एक दूसरे से शारीरिक संबंध बना लिए... मेरी बेहन को गर्भ ठहर गया... जमाने का डर और साथ जीने के सपने को साकार करने के लिए दोनो घर से भाग गये... एक दूसरे के भरोसे.... घर से कहीं दूर जाकर उन्होने शादी कर ली और मीनू ने घर पर फोने करके सूचना दी... पर मेरे घर वालों को ये शादी मंजूर नही हुई... मीनू नाबालिग थी... घर वालों ने एफ.आइ.आर. कर दी.. संजय को मीनू से प्यार का आरोपी बना दिया गया.. पोलीस उन्हे ढूँढने लगी... यहाँ आकर संजय की मा को पोलीस ने इतना सताया की ये बेचारी पागल हो गयी.. एक तो बेटे के जाने का गुम और दूसरे रोज़ रोज़ पोलीस की गाली गलोच... इसके पति तो पहले ही नही थे... संजय और मीनू ने खूब कोशिश की घरवालों और पोलीस से बचने की पर पैसे की तंगी और कम उमर के चलते वो जहाँ भी जाते.. लोगों को उन्न पर शक हो जाता और उन्हे वहाँ से भागना पड़ता... करीब 6 महीने बाद पोलीस ने दोनो को पकड़ लिया.. अदालत ने संजय को जैल भेज दिया. पर मेरी बेहन ने घर आने से माना कर दिया... वो नारी निकेतन चली गयी... वहीं पर मीनू ने विकी को जनम दिया... संजय मीनू की जुदाई और जैल में कदियो के ताने सहन ना कर सका और उसने जैल में ही फाँसी लगा ली... प्यार करने की सज़ा उसको समाज के हाथों से मंजूर नही थी.... मेरी बेहन को पता लगा तो उसके होश उड़ गये.. मैं उससे घरवालों से छिप कर मिलने जाती थी... उसकी तबीयत हर रोज़ बिगड़ने लगी.. उसको अपने अंत का अहसास हो गया था," शिवानी! मेरे बेटे को लावारिस मत होने देना... मैने प्यार किया था.. पाप नही... " ये उसके आखरी शब्द थे जो मैने सुने थे... कुछ दिन बाद में गयी तो पता चला मीनू नही रही.. मैने सभी जारूरी कागजात पुर किए और विकी को अपने साथ ले आई... पर घर वालों ने सॉफ मना कर दिया," इस पाप को हम अपने सिर पर नही धोएंगे... हूमें तुम्हारी शादी भी करनी है..." मैं क्या करती.. विकी को लावारिस तो नही छोड़ सकती थी.. सो इसको यहाँ ले आई.. पागल हो चुकी इसकी दादी के पास.. तब से लेकर अब तक.. मैं लगभग हर महीने घर वालों से और बाद में तुमसे झूठ बोलकर यहाँ आती रही.. काई बार सोचा.. तुम्हे बता दूं.. पर 6 महीने के बाद भी मुझे विस्वास नही होवा था की तुम मेरी बेहन के इश्स 'पाप' को अपने साथ रख लोगे.. बस अच्छे दिनों के इंतज़ार में थी......" राज ने शिवानी की आँखों से आँसू पोंछे और उसको सीने से लगा लिया," पगली! क्या मैं इतना बुरा हूँ..." राज ने विकी को पुकारा.. विकी के हाथ में हवाई जहाज़ था..," हां! अंकल!" राज ने उसको गोद में उठा लिया.. उसके गाल पर एक प्यार भरी पुचि दी," बेटा! मैं तुम्हारा अंकल नही पापा हूँ... मम्मी से बोलो... चलो अपने घर चलते हैं... शिवानी उठकर राज से चिपक गयी," आइ लव यू जान!... आइ लव यू..............

टफ शमशेर के पास ही था जब उसके फोने पर सीमा की कॉल आई. टफ ख़ुसी से नाच उठा," ये लो बेटा... अब तुम बन गये ता उ... मेरी तो निकल पड़ी भाई.." "क्या हुआ भैया?" "तू चुप हो जा बस.. घुस जा अंदर... बहुत हंस रही थी ना दिन में.." टफ ने वाणी को प्यार से दुतकारा... वाणी मायूस होकर अंदर जाने लगी... तो टफ ने उसको पकड़ लिया," मेरी छोटी बहना.. तेरी भाभी आने वाली है... गुस्सा मत हो.. तू मुझे भैया बोल लिया कर... ठीक है?" "नही! मुझे नही बोलना आपसे!" वाणी नाराज़ होकर चली गयी.... एक बार फिर से फोने बज उठा... टफ फोने लेकर छत पर जा चढ़ा.. उसने फोने काटा और खुद डाइयल किया," हेलो!" टफ की आवाज़ इतनी मधुर थी जैसे वो कड़क इनस्पेक्टर नही, कोई गवैया हो. "मैं बोल रही हूँ; सीमा!" "हां हां! मुझे पता है.. थॅंक्स फॉर कॉलिंग!" "वाडा जो किया था!" सीमा की आवाज़ में ले थी, मधुरता थी... और हूल्का हूल्का प्यार भी मानो छान कर आ रहा था.. "थॅंक्स!" "अब सारे थॅंक्स बोल लिए हों तो....." सीमा बीच में ही रुक गयी... "सॉरी!" मैं कुछ ज़्यादा ही एग्ज़ाइट हो रहा हूँ......" फिर चुप हो गया.. "तुम लेटर बहुत अच्छा लिखते हो...." "थॅंक्स" "फिर थॅंक्स... अभी तक तुमने थॅंक्स और सॉरी के अलावा कुछ नही बोला है...." सीमा उसको उकसा रही थी.. उस बात के लिए जो उसने लेटर मैं पढ़ी थी और खुद भी कहना चाहती थी... "आइ लव यू सीमा!" "मैं कैसे मान लूँ?" "मैं वेट कर सकता हूँ... तुम्हारे मान लेने तक.." "बहुत देर हो गयी तो?" "मार जाउन्गा.." "क्यूँ... मेरे बिना?" "नही! तुम्हे साथ लेकर..." पता नही इतनी हाज़िर जवाबी कहाँ से आई टफ को... सीमा हन्स पड़ी... टफ फोने के अंदर से आ रही उस्स वीना के तारों की खनक सुनकर मंतरा मुग्ध सा हो गया. उसने पहली बार सीमा को हुंस्ते देखा था..," आपकी हुनसी बहुत प्यारी है.." "क्या तुम सच में सारी उमर मुझे झेल सकते हो!" सीमा ने गॅरेंटी माँगी.. अगर पहले वाला टफ होता तो यक़ीनन यही कहता," पेल (चोद) सकता हूं; झेल नही सकता," आजमा कर देखना!" "क्या मैं मम्मी को बता दूं?" "क्यूँ नही! तुम हां कर दो! मम्मी को तो मैं ही बता दूँगा.." "वैसे पूच सकती हूँ की ये प्यार मुझ पर कैसे लूटा रहे हो..?" "सच बोलता हूँ सीमा! तुमने मुझे इंसान बना दिया है... शायद अगर तुम ना मिलती तो मैं वैसा ही रहता.. पर मुझे लगता है भगवान ने तुम्हे मुझे सुधारने के लिए ही भेजा था....." "सुनो!" सीमा ने टफ को बीच में ही रोक दिया.... "क्या?" "मैं मम्मी को बता दूं और उन्होने मना कर दिया तो..?" टफ कुछ बोल ही ना पाया... .... "मज़ाक कर रही हूँ.... मैने मम्मी को बोल दिया है और उन्हे तुम पसंद हो..." टफ खिल उठा," और तुम्हे!" "देखती हूँ..... अच्छा मेरे एग्ज़ाम नज़दीक हैं... अब मुझे पढ़ाई करनी है.. ओ.के.?" टफ ने एक लुंबी साँस ली.... उस्स साँस में जुदाई की कशिश थी..," ओके.. गुड नाइट.." "गुड नाइट! स्वीट ड्रीम्स!"" कह कर सीमा ने फोने काट दिया.... राज शिवानी और विकी के साथ घर पहुँचा तो ओम वहाँ आ चुका था.. राज का खून खौल उठा... शिवानी की आत्मा पर लगे घाव राज को अब उसके पाक सॉफ साबित होने पर चुभने लगे थे. राज ने ओम का गला पकड़ लिया," हररंजड़े! तू भेड़ की शकल में भेड़िया है कुत्ते.. " राज ने ओम को झकझोर दिया... तभी अंजलि बीच में आ गयी," प्लीज़ राज! अपने आपको संभलो, जो कुछ हुआ; इसमें इनका दोष नही है.. इन्होने मुझे सबकुछ बता दिया है... चाहो तो शिवानी से पूछ लो... इन्होने तो उल्टा शिवानी की जान बचाई है... शिव इसको नदी में फैंकने जा रहा था...!" "पर सबकुछ इश्स हरमजड़े की वजह से ही हुआ है.. ये चाहता तो उसको पहले ही रोक सकता था.." राज को शिवानी बीच रास्ते सब बता चुकी थी...

ओम राज के पैरों में गिर गया.. ," मुझे माफ़ कर दो भाई.. मैं नशे में था और मुझे समय से पहले होश नही आया... बाद में जब मुझे अहसास हुआ तो सभ कुछ खो चुका था..." ओम की आँखों में पासचताप के आँसू थे.. "तू मुझे उस्स कुत्ते का नाम पता बता... उसको तो में ऐसे छोड़ूँगा नही..." ओम शिव के बारे में जितना जानता था.. सब बक दिया.. राज ने टफ के पास फोन किया," दोस्त! मैं अपनी शिवानी को इंसाफ़ दिलाना चाहता हूँ... मैं ग़लत था... उसके साथ बहुत ही बुरा हुआ है.." "मेरे यार! मुझे जानकार बहुत खुशी हुई की देर से ही सही; तुम्हारा विस्वास, तुम्हारा प्यार तुम्हे वापस मिल गया... अब तुम मुझ पर छोड़ दो... और बीती बात को भुला कर अपनी खुशियाँ वापस ले आओ... मैं कल ही आकर शिवानी की स्टेट्मेंट दिलवा देता हूँ... उनको कोई नही बचा सकता... अब चैन से खा पीकर सो जाओ.." टफ को जानकार बड़ी खुशी हुई की राज का अपनी बीवी पर शक ग़लत था... दिशा और वाणी बैठी पढ़ाई कर रही थी... शमशेर ने दिशा को बेडरूम में बुलाया," दिशा! एक बार आना तो सही..!" दिशा अपनी किताब खुली छोड़ कर बेडरूम में गयी," क्या है!" शमशेर ने उसको पकड़ लिया और अपनी छाती से लगाने की कोशिश करने लगा... इश्स प्यार को देखकर कौन नही पिघल जाएगा पर दिशा ने उसको तड़पाने के इरादे से अपनी कोहनियाँ अपनी छतियो और शमशेर के सीने के बीच फँसा दी.. और मुँह एक और कर लिया," छोड़ो ना! मुझे पढ़ाई करनी है...!" "जान! ये पढ़ाई तो मेरी जान की दुश्मन बन गयी है... पता है आज तीसरा दिन है...! प्लीज़... बस एक बार.. 30 मिनिट में क्या होता है..? मान जाओ ना.." "नही! मुझे प्यार करने के बाद नींद आ जाती है... छोड़ो ना.. वाणी क्या सोचेगी.. पढ़ने भी नही देता...!" शमशेर ने उसकी हथेलियों को अपने हाथों में लेकर दोनो और दीवार से चिपका दिया.. अब दिशा कुछ नही कर सकती थी.. शमशेर को अपने उपर छाने से रोकने के लिए.. उसने आत्मसमर्पण कर दिया.. जब दिशा की छातियाँ शमशेर के चौड़े सीने से डब कर कसमसाई तो वो जन्नत में पहुँच गयी... उसको कुछ याद ना रहा.. ना वाणी, ना पढ़ाई.. अपने रसीले होन्ट भी उसने शमशेर के सुपुर्द कर दिए.. चूसने के लिए..

दिशा के वापस आने की राह देख रही वाणी को जब गड़बड़ का अहसास हुआ तो वा ज़ोर ज़ोर से गाने लगी..," तुम्हारे शिवा हम कुछ ना करेंगे जब तक जियेंगे जब तक रहेंगे उन दोनो को पता था.. वाणी उनको छेड़ने के लिए गाना गा रही है..," ज़रा एक मिनिट छोड़ दो.. मैं उसको सबक सीखा कर आती हूँ.." दिशा को वाणी पर गुस्सा आ रहा था.. उसने तो जैसे सपने से जगा दिया.. "मुझे पता है.. तुम कल की तरह मुझे चकमा देकर भाग जाओगी.. " शमशेर पागल हो उठा था.. उसमें डूब जाने के लिए.. "नही..! मैं अभी आआए.. दिशा ने खुद को चुडवाया और बाहर भाग आई," बनाउ क्या तुझे.. लता मंगेशकर..?" दिशा ने प्यार भरे गुस्से से वाणी को झिड़का.. "नही दीदी! मैं तो बस.. बॅक ग्राउंड म्यूज़िक दे रही थी.. अंदर चल रही पिक्चर के लिए..!" वाणी ने खिलखिला कर हंसते हुए अपनी बेहन पर तीर मारा.. "तू है ना! बहुत शैतान हो गयी है... अब जब तक मैं आऊँ.. सोना मत.. ये चॅप्टर कंप्लीट मिलना चाहिए.. समझी..." दिशा ने बात को टालते हुए कहा.. "दीदी! आपका कोई भरोसा नही है.. आप तो क्या पता सारी रात ही कमरे से बाहर ना निकलो.. तो क्या मैं आपका सारी रात वेट करूँगी?... मैं तो एक घंटे से ज़्यादा नही जागूंगी..." "ठीक है बाबा! एक घंटे में सो जाना. ओक?" कहकर दिशा ने अपनी किताब बंद करके रखी और अंदर चली गयी... अंदर से दिशा की सिसकारी सुनकर वाणी को अपने अंदर गीलापन महसूस हुआ......

rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 08:12

गर्ल्स स्कूल--21

अंदर शमशेर तैयार हो चुका था.. दिशा अंदर गयी तो वह सिर्फ़ अंडरवेर में बेड पर बैठा था... "बहुत जल्दबाज़ी करते हो.. मैं अगर ना आती तो.." "उठा लाता तुम्हे.. ज़बरदस्ती.. आज नही रुकता; किसी भी कीमत पर.. दिशा अपनी नाइटी निकाल कर शमशेर के उपर जा गिरी... और उसके छाती के बालों को सहलाने लगी...," तुम जब यूँ ज़बरदस्ती सी करते हो तो मज़ा और बढ़ जाता है.." "इसका मतलब तुम्हारा रेप करना पड़ेगा.." शमशेर ने दाई और पलट कर उसको अपने नीचे ले आया.. और उसकी छातियों को मसालने लगा.. उसके होंटो से खेलने लगा.. 5 मिनिट में ही सब कुछ दिशा की बर्दास्त के बाहर था.. वह अपनी चूत पर हाथ फिरा रहे शमशेर के लंड को अपनी मुति में भींच कर बोली..," अब और मत तद्पाओ जान अंदर कर दो... मुझसे सहन नही हो रहा.. उसने आँखें बंद कर ली.. शमशेर ने सीधा लेट कर दिशा की दोनो टाँगों को अपनी कमर के गिर्द करके उपर बिठा लिया.. दिशा की चूत का मुँह शमशेर के लंड के ठीक उपर रखा था.. शमशेर ने उसकी चूचियों को दोनो हाथों से संभाला हुआ था.. "ऐसे मज़ा नही आता जान.. आ.. मुझे नीचे लिटा लो ना..!" दिशा लंड की मोटाई अपनी चूत के मुहाने पर महसूस करती हुई बोली... "मेरी जान.. प्यार आसन बदल बदल कर करना चाहिए.. " कहते हुए शमशेर ने दिशा को थोड़ा उपर उठाया और अपना सूपड़ा सही जगह पर रख दिया...

दिशा अपने आपको उसमें फाँसती चली गयी," आआअहहााआहहाा..आइ लव यू जाआआआआन!" उसने शमशेर की छाती से चिपकने की कोशिश की.. पर शमशेर उसकी चूचियों को अपने हाथों से मसलता; दबाता.. उसको धीरे धीरे उपर नेचे करने लगा..... दोनो सबकुछ भूल चुके थे.. वाणी को बाहर ढेरे धीरे आ रही उनकी आवाज़ सुनाई दे रही थी.. उसका मन पढ़ाई में नही लगा.. वा अपने बेडरूम में गयी और बेड पर लेट कर स्कर्ट ऊँचा उठा कर अपनी गीली हो चुकी चूत से खेलने लगी... जाने कब शमशेर दिशा की बेस्ट पोज़िशन.. में उसको ले आया था.. दिशा टाँगें उठाए सिसक रही थी.. शमशेर दनादन धक्के मार रहा था...... दिशा के 2 बार झड़ने पर भी शमशेर ने उसको नही छ्चोड़ा.. वह सारी कसर निकाल लेना चाह रहा था... जब तीसरी बार भी दिशा ने जवाब दे दिया तो शमशेर ने अपना लंड बाहर निकाला और अपने हाथ से ही स्ट्रोक चालू कर दिए... दिशा आँखें बंद किए... उसकी गोलियों को सहला रही थी... अचानक एक तेज झटकेदार धार ने दिशा की छाती को प्यार के रस से बुआर दिया.. दोनो निहाल हो उठे........ दिशा जब अपने आपको सॉफ करके बाहर आई तो वाणी सो चुकी थी... अपनी भूख अपने हाथों से शांत करके... दिशा वापस शमशेर के पास गयी और बेड पर उससे लिपट गयी... "का बात है..? पढ़ाई नही करनी क्या?" शमशेर ने उससे मज़ाक किया..! "हुम्म... इतना तक जाने के बाद पढ़ाई हो सकती है भला... दिशा ने शमशेर की छाती पर सिर रखा और अपनी आँखें बंद कर ली...... अगले दिन टफ ने सदर थाने ले जाकर शिवानी की स्टेट्मेंट रेकॉर्ड की और फिर कोर्ट ले जाकर अंडर सेक्षन 64 के तहत सी जे एम कोर्ट में पेश कर दिया... शिवानी ने अपनी स्टेट्मेंट में शिव के साथ ही ओम पर भी आरोप लगाए.. शिव को शाह देने और उकसाने के लिए.. जज साहब ने दफ़ा 363, 366, 373 और 506 की धारायें शिव पर लगाई और शिव और ओम की गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया.... इंक्वाइरी ऑफीसर ए.एस.आइ. अभिषेक ने उन्हे 3 दिन के अंदर गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया जहाँ से दोनो को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जैल भेज दिया गया...... अंजलि को सुनकर धक्का सा लगा.. पर उसने ये सोचकर संतोष कर लिया की करनी का फल तो उसको भुगतना ही पड़ेगा... और फिर राज तो साथ था ही... उसकी तन की आग शांत करने के लिए... गौरी यह सब जान कर उद्वेलित सी हो गयी और मन ही मन शिवानी और राज से खार खाने लगी... आख़िर जैसा भी था.. उसका बाप था... फिर उसने कुछ किया भी तो नही था....!



पूरा दिन ना तो सीमा का फोन आया था और ना ही उसने उठाया.. टफ बेचैन हो गया.. सुबह से करीब 50वा फोन था जो अब जाकर सीमा ने उठाया..," हेलो!" सीमा की आवाज़ सुनकर टफ की जान में जान आई.. ," कहाँ थी आप.. सारा दिन?" "मैं लाइब्ररी में थी.. एग्ज़ॅम की तैयारी घर पर नही होती.. कोई ना कोई आया ही रहता है दुकान पर... " "पर कम से कम फोने उठा कर बता तो देती.. मैं कितना परेशान रहा सारा दिन..!" "सच में.." सीमा के चेहरे पर उसके प्यार में पागल आशिक की तड़प की चमक तेर उठी.." लगता है आपको किसी से प्यार हो गया है.." सीमा ने इठलाते हुए कहा.. "प्यार की तो... बताओ ना क्यूँ नही उठाया फोन?" टफ के मुँह से कुछ उल्टा पुल्टा निकालने वाला था... "अरे ये साइलेंट पर रखा हुआ था... टेबल पर.. मैने देखा ही नही.. अब घर फोन करने के लिए निकाला तो आपकी कॉल आती हुई देखी... "कब से हैं आपके एग्ज़ॅम?" "तीन तो अभी हैं इसी हफ्ते में.. एक 28 एप्रिल को है..." सीमा ने पूरी डटे शीट ही बता डाली... " क्या हम नेक्स्ट सनडे मिल सकते हैं..?" टफ उसको देखने के लिए बेचैन हो उठा था... " नेक्स्ट सनडे क्यूँ.. कभी भी मिल लो घर आकर..! तुम्हे तो वैसे भी कोई नही रोक सकता.. पोलीस इनस्पेक्टर हो!" सीमा ने कहा!"



"सीमा जी प्लीज़.. मुझे बार बार शर्मिंदा ना करें.. और मैं घर की बात नही कर रहा.. कहीं बाहर...?" "कभी नही...!" सीमा हँसने लगी.. "क्या कभी भी नही...?" टफ को झटका लगा.. "अच्छा जी.. सॉरी! अभी नही.. बस!" सीमा ने अपना वाक़्या सुधारा.. "अभी नही तो कब? देख लो मैं सीधा घर आ जवँगा..!" "क्यूँ.. उठाकर थाने ले जाने..!" सीमा ने फिर चोट की.. "आप क्यूँ बार बार मेरे जले पर नमक छिड़क रही हैं.... उठाकर तो अब मैं आआपको डॉली में ही लेकर अवँगा.." "देखते हैं.." खुद की शादी की सोच कर सीमा चाहक पड़ी... तभी टफ के फोन पर शमशेर की कॉल वेटिंग आने लगी..," अच्छा! शमशेर का फोन है.... मैं बाद में करता हूँ..बाइ!" बाइ कहकर सीमा ने फोन काट दिया... टफ ने शमशेर की कॉल रिसीव की," हां भाई!" "अबे कितनी देर से फोन कर रहा हूँ.. तेरे लिए एक इन्विटेशन आया है..!" "कैसा इन्विटेशन भाई?" "वो मेरे एक पुराने यार का फोन आया था.. कोई चिड़िया फँसाई है.. कह रहा था मस्त आइटम है... साथ एंजाय करेंगे... अब मैने तो; तुझे पता ही है.... मस्ती छोड़ दी है.. सो सोचा तुझे बता दूं...!" शमशेर ने टफ को इन्विटेशन के बारे में बताया.. टफ का माइंड 50-50 हो गया.. कभी उसको सीमा का चेहरा याद आता कभी नयी चिड़िया के साथ हो सकने वाली मस्ती... "अबे कुछ बोल.. क्या कहता है.." "ठीक है भाई.. एक पाप और सही.. बोल किधर आना है.... पर ये आखरी; हां!" "उसके बाद क्या सन्यासी बन'ने का इरादा है..?" शमशेर ने उसके मन को टटोला.. "सन्यासी नही भाई.... घरवासी.. सीमा का पति.. और पत्निवर्ता पति...!" "छोड़ साले! इस जानम में तो तू सुधार नही सकता.. लिख कर ले ले.." "बता ना भाई.. किधर आना है..?" "आना नही है.. जाना है.. रोहतक!" शमशेर ने बताया.. "अरे वाह.. एक तीर से दो शिकार.. सुबह सीमा से भी मिलता आउन्गा..... थॅंक यू बिग ब्रदर.. थॅंक यू.." टफ उछल पड़ा.. "जा ऐश कर साले!" शमशेर ने मज़ाक किया.... "भाई तूने गाली देनी सीख ली..?" टफ ने 'साले' पर ऐतराज किया.. "गाली नही है साले.. अपना रिश्ता बता रहा हूँ.. तूने वाणी को बेहन बोला था की नही...!" "आब्बी यार! तू तो मेरा फालूदा करवा कर मानेगा... चल ठीक है जीजा जी.. अब उस्स दोस्त का नंबर. तो लिखवाओ!" शमशेर ने टफ को उस्स दोस्त का नंबर बताया..," और हां तुम एक दूसरे को जानते हो!" "कौन है मदारचोड़!" टफ के दिल में उतार आई रंगीनियत उसके बोल में झलकने लगी... "शरद..!" "शरद कौन?" "अरे शरद ओला यार... कॉलेज में जो मुझसे जूनियर था.. प्रेसीडेंट बनवाया था जिसको हुमने...." शमशेर ने "अरे शरद यार! कॉलेज में जो मुझसे जूनियर था और हमने जिसको प्रेसीडेंट का एलेक्षन लॅड्वेया था.." शमशेर ने टफ को याद दिलाने की कोशिश की... "अर्रे शरद... भाई, वो मेरा दोस्त था पहले... अब आपका कोई अहसान नही है.... आपने तो हद कर दी यार... उसको कहाँ से ढूँढ निकाला.. क्या जिगर वाला लड़का था.." टफ शरद को याद करके खुश हो गया... "चल ठीक है..... कल शाम का प्रोग्राम कह रहा था.. तू उससे बात कर लेना..." "पर भाई उसको बताना नही की अजीत आ रहा है... मैं सर्प्राइज़ दूँगा.. तो उससे फोन करके पूछ लेना, वो कहाँ वेट करेगा... मैं अचानक एंट्री मारूँगा..." "ठीक है... ! ओक, बाइ..." "बाइ भाई... थॅंक युउउउउउउउउउउउ....." टफ बहुत खुश था अपने दोस्त को दोबारा पाकर... पर वो उस'से कयि साल बड़ा था.. करीब 4 साल.... टफ बेशबरी से अगले दिन का वेट करने लगा..



अगले दिन स्कूल से छुट्टी के वक़्त वाणी ने अपनी सहेली को कहा," मानसी! तुम आज भी मेरी बुक लेकर नही आई ना... कल से एग्ज़ॅम शुरू हैं.. अब क्या करूँ.." मानसी अपने माथे पर हाथ लगाकर बोली," ओहो! यार.. तू फोन पर याद दिला देती!" "अरे मुझे भी तो अब्भी याद आई है... चलो मैं तुम्हारे घर होते हुए निकल लेती हूँ." वाणी ने अपना बॅग उठाते हुए कहा... "व्हाट ए ग्रेट आइडिया! इसी बहाने तुम मेरा घर भी देख लॉगी... चलो!" मानसी खुस हो गयी... जल्दी ही दोनो घर पहुँच गयी.. दरवाजा मानसी के भाई ने खोला..," इनसे मिलो! ये हैं मेरे भैया, मनु! और भैया ये हैं मेरी प्यारी सहेली, वाणी! जिसके बारे में घर में हमेशा बात करती हूँ.. मनु वाणी को गौर से देखने लगा... वाणी तो थी ही गौर से देखने लायक... आँखों में चमक, होंटो पर अंत हीन मुस्कान और शरीर में कमसिन लचक.... मनु वाणी को देखता ही रह गया... अचानक वाणी अपने मुँह पर हाथ रखकर ठहाका लगा कर हंस पड़ी.. वो लगातार मनु की और देखे जा रही थी... और हंस रही थी.. बुरी तरह... "क्या हुआ वाणी?" मानसी ने वाणी को इश्स तरह बिना वजह ज़ोर ज़ोर से हुंस्ते देखकर पूछा... मनु की हालत खराब होने लगी...," अंदर आ जाओ.. बाहर क्यूँ खड़े हो..?" वाणी ने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी," मानी! सच में यही तुम्हारा भाई है..?" "हां क्यूँ?" मानसी को सहन नही हो रहा था.. "वाणी अपना बॅग टेबल पर रखते हुए सोफे पर बैठ गयी और फिर हंसते हंसते लोटपोट हो गयी...! "बात क्या है वाणी.. बताओ भी.." मानसी ने रूखे स्वर में कहा... "मानी! तुम तो कहती थी.. तुम्हारा भाई बहुत इंटेलिजेंट है..आइ आइ टी की तैयारी कर रहा है... इसकी शर्ट तो देखो.." कहते हुए वाणी फिर खिलखिला पड़ी.. अब दोनो का ध्यान शर्ट पर गया.. मनु ने शर्ट उल्टी पहन रखी थी.. मनु देखते ही झेंप गया.. वो झट से अंदर चला गया... जिस वाणी के बारे में अपनी बेहन से सुनसून कर उससे एक बार मिलवा देने की भगवान से दुआ करता था... उसने आते ही उसको 'बकरा' साबित कर दिया..... "तो क्या हो गया वाणी.. तुम भी ना.. मौका मिलते ही इज़्ज़त उतार लेती हो बस... ये भोला ही इतना है... इसको पढ़ाई के अलावा कुछ नही आता...! हां पढ़ाई में इसका कोई मुकाबला कर नही सकता... वाणी अब तक बात को भुला चुकी थी," अच्छा मानी! अब बुक दे दो! मैं चलती हूँ... इतने में मनु एक ट्रे में चाय और नमकीन ले आया... बकायडा शर्ट सीधी पहन कर..," चाय लेती जाओ.." मानसी मनु का ये रूप देखलार चौंक पड़ी..," अरे भैया! आज कहीं सूरज पस्चिम से तो नही निकला था... क्या बात है.. इतनी सेवा! चिंता मत करो.. मेरी बेस्ट फ्रेंड है.. शर्ट वाली बात स्कूल में लीक नही होगी.. है ना वाणी.." "चाय पीकर बतावुँगी... क्या पता इसमें भी कुछ!" कहकर वाणी फिर हँसने लगी.. उसने चाय का कप उठा लिया.... मनु वाणी को चाय पीते एकटक देखता रहा.. हालाँकि जब वा देखती तो नज़रें हटा लेता... पहली नज़र में ही वा उसको अपना दिल दे बैठा था... चाय पीकर वाणी जाने लगी तो मनु को लगा.. दिन ढाल गया! पता नही यह कयामत फिर कक़्ब दर्शन देगी.



उधर टफ शमशेर के बताए ठिकाने पर ठीक 6 बजे पहुँच गया.. उसको वाइट सिविक गाड़ी की पहचान बताई गयी थी.. टफ को गाड़ी डोर से ही दिखाई दे गयी.. टफ जान बूझ कर वर्दी में आया था.. उसने गाड़ी काफ़ी दूर पार्क की.. और उतर कर वाइट सिविक की और चल दिया.. गाड़ी के शीशे ज़्-ब्लॅक थे.. पर अगला शीशा खुला होने की वजह से उसको शरद बैठा दिखाई दे गया.. वो शमशेर की राह देख रहा था... टफ ने उसको देखते ही पहचान लिया पर शरद के द्वारा टफ को पहचान'ना मुश्किल काम था.. एक तो उस्स वक़्त और अब में डील डौल में काफ़ी फ़र्क आ गया था.. दूसरे शरद को अहसास भी नही था की कभी उसका खास दोस्त रहा अजीत अब उसको टोकने ही वाला है... "आए मिसटर... नीचे उतरो और कागज दिखाओ!" टफ ने उसके कंधे पर हाथ मार कर कहा... "कौन है बे तू? दिखाओ क्या कागज? चल मूड ऑफ मत कर... अपना रास्ता नाप.. नही तो अभी बेल्ट ढीली कर दूँगा.." शरद शुरू से ही दिलेर था.. और अब तो उसने पॉलिटिक्स में भी पैर जमा लिए थे.. उसकी पार्टी की ही हरयाणा में सरकार थी और नेक्स्ट एलेक्षन में उसका टिकेट भी पक्का था... टफ भी मान गया उसकी दिलेरी को.. पर उसने अपना रुख़ कड़क बने रखा....," नीचे उतार कर चुप चाप कागज दिखा वरना घुसेड दूँगा अंदर.... सफेद कपड़े पहन कर ये मत समझ की नेता बन गया है... नेता गीली कर देते हैं यहाँ....." शरद को सब सहन नही हुआ," तेरी तो..." उसने गाड़ी से उतरते ही अपना हाथ सीधा टफ के चेहरे की और किया... पर बिना एक पल गँवाए.. टफ ने उसका हाथ हवा में ही रोक लिया...," अबबे साले! शरद होगा अपने घर में... तेरे को बॉडी नही दिखती क्या सामने वाले की... रहम कर अपनी हड्डियों पर वरना भाभी जी....!" शरद अचंभे में पड़ गया," कौन है बे तू?... यानी तू मुझको जानता है... शरद गाड़ी के आगे जाकर खड़ा हो गया और उसको गौर से देखने लगा...," चल बता ना यार तू है कौन... बता दे चल..!" "साले तेरी 'कुतिया' वाली बात आज तक पेट में दबाए बैठा हूँ.. और तू है .... "आब्बी.. तेरी तो... अजीत... सुकड़े.. साले... तू इतना तगड़ा हो गया बे.." शरद ने भागकर टफ को अपनी छाती से लगा लिया.. उसकी आँखों में आँसू आ गये...," यार कितना प्यारा दिन है...,"अपने शमशेर भाई साहब भी आने वाले हैं... उनसे मिला है क्या तू.. कॉलेज के बाद!" "उन्होने ही तो भेजा है तेरे पास... झटका देने को... वो नही आ रहे... वो सुधर गये हैं ना..." "चलो अच्छा है.. चल आ बैठ गाड़ी में... आज तेरा अहसान चुका दूँगा.. कुतिया वाली बात पाते में रखने का.." दोनो ठहाका लगाकर हंस पड़े.. गाड़ी में बैठे और गाड़ी चल दी. टफ ने गाड़ी में बैठते ही पीछे की और देखा, 21-22 साल की लगने वाली दो हसीन लौंडिया पिछली सीट पर आराम से बैठी थी... ," इनमें से चिड़िया कौनसी है शरद...?" "अरे दोनो ही चिड़िया हैं मेरी जान... जा पीछे बैठ जा.. जी भर कर देख परख ले.. साली मस्त लड़कियाँ हैं दोनो.. किसी को हाथ तक नही लगाने देती थी... मैं रास्ते पर लेकर आया हूँ... दोनो की सील तोड़नी है आज! जा पीछे जा.." "क्या जल्दी है शरद.. पूरी रात ही अपने पास है..." "जैसी तेरी मर्ज़ी भाई...!" शरद ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी... सेक्टर वन में एक आलीशान कोठी के सामने गाड़ी रुकी.. गेट कीपर ने दरवाजा खोल दिया और गाड़ी सीधी अंदर चली गयी.... "यार! ये तेरा ही घर है क्या?" टफ ने आसचर्या से पूछा... "नही भाई! एक मंत्री का है... पर इसको यूज़ में ही करता हूँ... दिन में ये पार्टी का ऑफीस हो जाता है और रात को अयाशी का अड्डा.." शरद हंसते हुए बोला... "सही है बॉस! क्या अंदाज है; जनता की सेवा करने का.." टफ ने कॉमेंट किया.. "अरे आजकल तो पॉलिटिक्स ऐसे ही चलती है... अगर बिना घोड़े (रिवाल्वेर) और घोड़ी ( लड़की) के पॉलिटिक्स करने निकलोगे तो कोई वोट मिलना तो दूर की बात है.. टिकेट ही नही मिलेगा...." बात करते करते दोनो एक बड़े हॉल में पहुँच गये... उनके जाते ही सर्वेंट जॉनी वॉकर की 2 बोतलें और कुछ खाने पीने का सामान रखकर जाने लगा.. "जब तक कोई ना बुलाए, अपनी तशरीफ़ मत लाना..बहादुर!" "ठीक है शाब! वेटर ने बोला और चला गया.. "अरे मेरी अनारकलियो! अंदर आ जाओ.. काहे शर्मा रही हो... वो दोनो अंदर आकर उनके सामने सोफे पर बैठह गयी... "पैग बनाने आते हैं क्या?" शरद ने उनसे पूछा.. दोनो ने नज़रें झुका कर ना में सिर हिला दिया... "यार शरीफ लड़कियाँ चोदने का यही मज़ा है.. शरमाने की हद करती हैं... आखरी साँस तक.. अंदर डलवाकर भी शरमाती रहेंगी. ज़रा करीब आ जाओ मेरी तितलियो.. तुम्हे भी पीनी पड़ेगी.. हमारे साथ.. तभी तो महफ़िल का रंग जमेगा.." एक ने बोलने का साहस किया," नही सर! हम पी नही सकते.. हमें आदत नही है.." "अरे हम सीखा देंगे पीना भाई! ये कौनसी बड़ी बात है... और भूलो मत... आज की रात तुमपर मेरा हक़ है.. यही डील हुई थी ना! अगर जाना चाहो तो जा सकती हो... आइ हेट रेप!" और शरद ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा... बातों बातों में वो पहला पैग ले चुके थे.. पर टफ खामोश था... दोनो लड़कियों ने एक दूसरी को देखा और दोनो आकर शरद और टफ के बीच में बैठ गयी..... "ये लो! जल्दी खाली करो.. और पैग भी बनाने हैं..." शरदने दोनो को पैग थमा दिए.. दोनो जैसे तैसे कड़वी दवाई समझ कर पहले पैग को अपने गले से नीचे उतार गयी... एक बार झुरजुरी सी आई.. और फिर नॉर्मल हो गयी.. शरद ने अपने सहारे बैठी लड़की की जांघों पर हाथ मार कर कहा..," देख भाई.. मुझे तो वो तेरी तरफ बैठी पतली जांघों वाली ज़्यादा पसंद है.. वैसे तेरी इच्छा..." शरद ने दूसरे पैग तैयार कर दिए थे.. टफ ने दोनो को उपर से नीचे तक देखा.. उसकी तरफ वाली हद से जाड़ा पतली थी.. हां छातियाँ देखकर उसकी उमर का अंदाज़ा हो जाता था.. पर बाकी तो वो सोलह से उपर की ही नही दिखती थी... दूसरी उसकी बजाय.. सारी गदराई हुई अच्छे जिस्म वाली थी.. जैसी टफ को पसंद होती हैं... रंग दोनो का सॉफ था और जीन्स टॉप में कमाल की सेक्सी लग रही थी.. एक से बढ़कर एक..... "टफ ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ दूसरा पैग भी गले से नीचे उतार लिया.. दोनो लड़कियाँ अब भी अपने हाथ में लिए गिलासों को देख रही थी... शरद के कहते ही उन्होने गिलास खाली कर दिए... दोनो लड़कियों पर शराब का असर सॉफ दिख रहा था.. अभी तक चुपचाप और चिंतित दिखाई दे रही दोनो अब कभी कभार एक दूसरी को देखकर मुश्कुरा जाती... अरे प्रिया.. ज़रा म्यूज़िक तो ऑन कर दे... वहाँ गेट की तरफ से दूसरा स्विच है... पतले वाली लड़की उठी और म्यूज़िक चल पड़ा... "शाम को दारू... रात को लड़की.... आए गनपत...."

तीसरा पैग लेते लेते लड़कियाँ बैठी बैठी ही गानो की धुन पर थिरकने सी लगी थी.... वो पूरी तरह अपने आपको भुला चुकी थी.. और शरद की बातो. पर ज़ोर ज़ोर से हुँसने लग जाती..... "चलो भाई.. एक मुज़रा हो जाए.. चलो दिखाओ अपनी नृत्या प्रतिभा.... मुझे पता है तुम दोनो ने यूनिवर्सिटी के यौथ फेस्टिवल में इनाम जीता था... मैं सी.एम. साहब के साथ वहीं था... तभी से तो मैं तुम्हारे पीछे पड़ा था....." लड़कियाँ अपना आपा खो चुकी थी.. और उनमें भी पतले वाली... अपने प्राइज़ की याद करके वो दोनो अपने आपको ना रोक सकी और गाना बदल कर थिरकने लगी....... टफ दोनो लड़कियों के लहराते, बलखते बदन को गौर से देख रहा था.. वास्तव में ही उनके डॅन्स में क्वालिटी थी.. शरीर की लचक तारीफ़ के लायक थी.. टफ का ध्यान निरंतर उनके नितंबों की ताल पर ही थिरक रहा था.. कभी इश्स पर; कभी उस्स पर... नाचने की वजह से दोनो लड़कियों के खून का प्रवाह ज्यों ज्यो तेज होता जा रहा था.. वैसे वैसे उन पर शराब हावी होती जा रही थी.. अब उनके चेहरे से मजबूरी नही बुल्की उनकी अपनी इच्छा झलक रही थी.. समय बीतने के साथ दोनो के डॅन्स में कला कम और वासना अधिक होती गयी.. तभी शरद ने एक का नाम लेकर बोला और दोनो ने अपना टॉप उतार कर हवा में उछाल दिया.. अब उनकी चूचियाँ मस्ती से लरज रही थी, उछाल रही थी और बहक रही थी.. ब्रा से बाहर आने को... शरद ने काम आसान कर दिया.. वो सोफे से उठा और एक एक करके दोनो को अपने सीने से दबोच कर उनकी ब्रा के हुक खोल दिया.. एक बार दोनो हिचकी.. अपनी ब्रा संभालने की कोशिश की. पर हुक ना डाल पाने पर पतले वाली ने अपनी ब्रा निकाल कर फैंक दी... मोटी कहाँ पीछे रहती.. टफ का कलेजा मुँह को आने लगा.. उसका तो जैसे नशा ही उतर गया.. उसने एक पैग और बनाया और तुरंत खाली कर दिया... दोनो की छातियों में अद्भुत रूप से एक जैसी ही गति थी.. नशे में भी शर्म के चलते उनके निप्पल कड़क हो गये.. उनकी छातियाँ अचानक ही भारी और सख़्त लगने लगी... पेट दोनो का ही पतला और अंदर को धंसा हुआ था.. नाभि से नीचे जांघों के बीच जा रही हड्डियाँ इशारा कर रही थी.. अंदर क्या माल है... बहुत हो गया था... शरद ने टफ को कहा..," तू कुछ सीरीयस लग रहा है यार... एंजाय नही कर रहा महफ़िल को... तू मूड में भी है या मुझे ही दोनो उसे करनी पड़ेंगी..." "बेडरूम किधर है?" टफ ने शरद से पूछा.. "अरे हम दोनो में कैसी शरम यार.. यहीं चोद डालते हैं ना दोनो को बारी बारी... वैसे अगर तुझे एकांत चाहिए तो वो रहा बेडरूम का दरवाजा.. पतले वाली मेरी फॅवुरेट है.. वैसे जो तू चाहे ले जा.. ऐश कर... टफ ने मोटी को अपने कंधे पर उठाया और बेडरूम में ले जाकर बेड पर पटक दिया...... उधर शरद ने इशारे से पतले वाली को अपने पास बुलाया.. उसका सिर चकरा रहा था.. वह आई और सोफे पर बैठ गयी.. उसकी छातियों से पसीना चू रहा था.. जम कर नाची थी वो... शरद ने बारी बारी से उसकी दोनो चूचियों को हाथों में लेकर देखा," हाए! क्या चीज़ है तू जाने-मन!" और एक चूची को ज़ोर से दबा दिया.. "ऊई मा.." लड़की के मुँह से निकला.. "कितनी प्यारी चूचियाँ है तेरी.. जानेमन..!" लड़की शर्मा कर उसकी छाती से लग गयी.. "ज़रा मेरे भी तो बटन खोल दे..." शरद ने उसके निप्पल पर उंगली घूमाते हुए कहा.. चल आजा मेरी गोद में बैठ जा.. शरद ने अपनी पॅंट निकालते हुए कहा.. लड़की बेहिचक उसके अंडरवेर के उभार पर बैठ गयी.. उसको अजीब सा अहसास हुआ... उसने अपनी कमर शरद के सीने से लगा ली और हाथ पीछे लेजकर उसका सिर पकड़ लिया.. शरद ने अपने हाथ आगे ले जाकर उसकी जीन्स का बटन खोल दिया.. चैन नएचए सर्कायि और लड़की ने अपनी कमर उचका ली.. जीन्स निकलवाने के लिए...

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