गर्ल'स स्कूल compleet

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rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 08:14

अब शरद का लंड उसके चूतदों के बीच फँसा हुआ था और शरद उसकी बाँह के नीचे से सिर निकाल कर उसकी चूची को चाट रहा था.. लड़की पागल सी हो चुकी थी... रह रह कर उसके मुँह से कामुक सिसकी निकल जाती.. मज़ा बढ़ने के साथ ही वा अपने चूतदों को नीचे ढकने की कोशिश करने लगी... अपनी चूत पर उसके लंड को ज़्यादा से ज़्यादा महसूस करने के लिए... शरद का हाथ उसके पेट से होता हुआ उसकी पनटी के अंदर उसकी चूत के दाने को कुरेदने लगा... हद से ज़्यादा उत्तेजित हो चुकी लड़की हाए हाए करने लगी... अपनी एक खाली छाती को अपने ही हाथ से दबाने लगी.. आँख बंद करके... कसमसने लगी... शरद ने उसको अपने घुटनो के बीच नीचे बिता लिया और उसको तगड़े मोटे लंड का दीदार करा कर उसका काम समझाया.. लड़की तो आज प्यार का हर पाठ सीख लेना चाहती थी.. बेझिझक, बेहिचक... उसने लंड को अपने होंटो से रगड़ा.. होन्ट अपने आप खुलते चले गये..'हॉट आइस्क्रीम' खाने को.... कुछ देर सूपड़ा मुँह में रखने के बाद शरद ने उसको नीचे से चटकार उपर आने को कहा.. अपनी गोलियों से सूपदे तक.. "तुम्हारा नाम ही भूल गया.. क्या बताया था?" शरद ने उसके होंटो को अपने लंड से सटा तेहुए पूछा... "प्रिया!" "हां प्रिया! ये होन्ट क्यूँ रग़ाद रही है.. अपनी जीभ बाहर करके चाट इसको..... ..".... हााआअँ आआहह.. ऐसेयययययययी... और दूसरी का क्या नाम है.. उफफफफफफफफफ्फ़.." "स्नेहा!" कहकर उसने फिर से सूपदे पर जीब घुमा दी...... "आआआआः मार दियाआ तूने तो ... मेरी जाअन... और ले.. नीचे से उपर तक..." शरद अपने बचे खुचे होश भी खो बैठा... प्रिया को भी खूब आनद आ रहा था.. अपनी जिंदगी की पहली नोन-वेज कुलफी को चूस्ते... चाट-ते... उसकी स्पीड लगातार बढ़ रही थी.. पर कुलफी पिघलने की बजाय सख़्त होती जा रही थी.. "ले अब मुँह में डाल ले... पूरा लेने की कोशिश करना.." ज्यूँ ही प्रिया ने अपना मुँह खोल कर... उसके सूपदे को मुँह में लिया.. शरद ने उपर से अपने हाथो का दबाव डाल दिया... प्रिया खाँसती हुई पीछे जा गिरी... उसकी आँखों में पानी आ गया... "कोई बात नही जान धीरे धीरे सब सीख जाएगी..." शरद ने उसकी पनटी पकड़ कर जांघों से नीचे खींच दी... क्या खूबसूरत फ़िज़ा थी.. उसकी जांघों के बीच.. लाल हो चुकी, गीली हो चुकी, फूल चुकी और तपाक रही चूत... शरद ने खुद उठाने की जहमत ना की.. उसके घुटने सोफे पर टिकवाए और थोड़ा सा नीचे सरक कर उसकी चूत से मुँह लगा दिया.. प्रिया ने आनंद सहन ना कर पाने की वजह से पिछे हटने की कोशिश की पर शरद ने उसकी गांद के दोनो उभारों को कसकर पकड़ लिया और अपनी जीभ से उसकी चूत में हुलचल मचा दी... "आआआआअ ईईईईईईई एयेए माआआ रीइ... ज़ाराआ आआराआामा से... प्लीज़ ज्जज्ज!" पर इसी सिसकारी को सुन'ने का तो मज़ा लेना था... शरद ना माना बुल्की जीभ उसकी चूत की फांको में घुस कर उसके छेद को कुरेदने लगी... "आआह आआह आअह आआह... मर गयी... शरद्द्दद्ड.. प्लीज़ सस्स्स्सहन नही हो रहा.. आआह"


शरद उसकी गांद के छेद को अपनी उंगली से सहला रहा था.. वह चूत के रस में उसको गीला करता और जब तक सूख ना जाती उसकी गांद के छेद पर घूमता रहता... प्रिया का आनंद काई गुना बढ़ गया... वह बरस पड़ी... अपनी चूत में से... झार झार रस का दरिया बहने लगा.. प्रिया ने शरद के सिर को ज़ोर से वहाँ पर ही दबा लिया.. और शरद ने अपने होंटो से बाँध बना दिया.. उसकी चूत के मुहाने पर...... रस का एक भी कतरा बाहर ना जाने दिया.. सब पी गया.. शरद को कुँवारा रस अमृत से भी प्रिय था... शरद ने उसको छोड़ा तो वह धदाम से सोफे पर गिर पड़ी... जैसे उसका सब कुछ निकल गया हो.. "ऐसे नही मेरी जान! अभी तो शुरुआत है... सारी रात बाकी है.. ऐसे गिर पड़ोगी तो काम कैसे चलेगा... प्रिया की वासना का नशा उतर चुका था.. पर शराब का नशा अभी बाकी था... शरद ने उसको प्यार से उठाया और फार्स पर घुटने टिकवा कर सोफे पर उल्टा कर दिया... प्रिया ने कोई विरोध ना किया.. शरद ने उसकी गांद को हाथों से फैलाकर देखा.. चूत अभी भी चिकनी थी.. सही टाइम था... शरद को पता था एक बार ये ज़रूर कूदेगी... चूत का बंद छेद इसकी पुस्ती कर रहा था.... वा पूरी तरह से प्रिया के उपर आ गया.. उसकी कमर को अपनी कमर से दबा लिया और उसके हाथो को ज़ोर से पकड़ लिया.. लंड सही जगह टीका हुआ था.. शरद ने दबाव डालना शुरू किया... प्रिया चिहुनकि पर हिल ना सकी.. वा भयभीत हो गयी.. अपने को फट-ता देख.. उसने गांद को इधर उधर किया.. पर लंड को रास्ता दिख चुका था.. वह चूत के मुँह पर चिपका हुआ ही इधर उधर होता रहा.. ज्यों ज्यों दबाव बढ़ता गया.. प्रिया की चीख तेज होती गयी.. पर 10000 वॉट के म्यूज़िक सिस्टम के आगे उसकी चीख कौन सुनता... "बस.. थोड़ा सा और... बस थोडा सा और.. करते करते शरद ने सूपड़ा ज़बरदस्ती अंदर फिट कर दिया.. लग रहा था जैसे पहले लंड डालकर फिर उसका साइज़ बढ़ाया है.. इतनी पतली चूत में इतना मोटा लंड घुस कैसे सकता है.. खुद शरद को हैरत थी.. पर अब उसने और घुसाना छोड़ कर प्रिया की कमर को चाटना शुरू कर दिया था.. ुआकी चूचियों को सहलाना और धीरे धीरे मसलना शुरू कर दिया था... प्रिया की चेखें कम होने लगी.. धीरे धीरे उसकी चीत्कार सिसकियों में बदलने लगी.. शरद ने उसके गालों पर चुंबन दिया तो वा भी उसको काट खाने को लालायित हो गयी.. अब चूत में आराम था.. उसने अपनी टाँगों को थोड़ा चौड़ा कर लिया ताकि दर्द में और आराम आ सके... पर टाँगों का चौड़ा होना प्रिया के लिए आराम देह भले ही साबित ना हुआ हो.. शरद के लिए आसान ज़रूर हो गया.. उसके और अंदर घुस जाना.. एक बार फिर प्रिया रो उठी.. एक बार फिर सिसकियाँ चीत्कार में बदल गयी.. पर इश्स बार पूरा काम हो गया.. और चीत्कार भी कम हो गयी.. प्रिया ने सुना था की पहली बार तो दर्द होता ही है.. लेकिन ये भी सुना था की बाद में मज़े भी आते हैं... दर्द को भूल चुकी प्रिया अब मज़े लेने के इंतज़ार में थी.. करीब 2 मिनिट बाद उसकी ये तमन्ना भी पूरी हो गयी... जैसे ही शरद ने अंदर बाहर करना शुरू किया.. प्रिया पागल हो उठी... ये चूत तो मज़े की ख़ान है.. उसने पहले क्यूँ नही लिए... वह बदहवासी और नशे की हालत में कुछ का कुछ बके जा रही थी..," सोचा था... आ... मेरा.. हुस्स्स्बंद.. चोदेगा... पर .. क्या..... आआह .. क्या पता था की... यहाँ.. ये मज़े मिलेंगे... पैसों के बदले... आअह... शरद... ... जब चाहे बुला लेना... पर... मेरी.. ज़रूरत ... पूरी .. कर देना..... मुझे... बहुत ... पैसों की.. ज़रूरत... है... अपने भाई को.... कोचैंग दिलानी है... प्लीज़... उसके .... पैसे/.. देते रहना.... उसमें... बहुत... आआएकमाआ... टॅलेंट ... हाईईईईईईईईय्ाआआआआआईयईईईई इमाआआआआ मररर्र्रर्ड गाइिईई... बुसस्स्स बुसस्स निकाल लो... मर गयी.... जलन हो रही है.... शरद ने बाहर लंड निकाल कर उसको पलटा और मुँह खोलने को कहा... ना चाहते हुए भी प्रिया ने अपना मुँह खोल दियाअ... और 2-4 बार हाथ आगे पीछे करने पर शरद अकड़ गया.. उसने लंड पूरा मुँह खोले बैठी.. प्रिया के मुँह में लंड थूस कर अपनी सारी मेहनत का फल अंदर निकाल दिया.. और लंड बाहर निकाल लिया... प्रिया ने नीचे मुँह करके होन्ट खोल दिए.. सारा रस ज़मीन पर गिर पड़ा...



शरद उठा और बेडरूम के दरवाजे के पास जाकर ज़ोर से बोला," अरे भाई बदलनी है क्या..?" "नहिी.. यही ठीक है... मुझे.. पतली पसंद नही.." टफ की आवाज़ आई.. "अरे थोड़ा साँस भी लेने दे... उसको.. बाहर आजा एक एक पैग पीते हैं.. टफ दरवाजा खोलकर अपनी पॅंट की जीप बंद करते हुए बाहर आया..... "कैसी लगी..?" विकी ने पूछा..... "एकद्ूम मस्त आइटम है यार... पहली बार था पर क्या चुदाई करवाई है..." टफ ने पैग बनाते हुए कहा.. "चल तू तब तक पैग बना और इससे मुलाक़ात कर.. मैं 20 मिनिट में आया, स्नेहा से मिलकर.." टफ ने उसका हाथ पकड़ लिया..," रहने दे यार... अभी चोद कर हटा हूँ... कुछ तो दया कर.." "क्या बात है.. क्या बात है.. लगता है तुझे तो प्यार हो गया है उससे..." शरद ने मज़ाक किया.... प्यार शब्द सुनते ही टफ की आँखों के सामने सीमा का चेहरा घूम गया... वह खुद पर ही शर्मिंदा हो गया और नज़रें धरती में गाड़ ली... "ठीक है दोस्त.. मैं एक बार और इसको लपेट लूँ... फिर आराम से नींद आ जाएगी....." शरद ने टफ से कहा... टफ उठा और बेडरूम में जाकर दरवाजा बंद कर लिया... शरद ने प्रिया को उठाया और उसको फिर से तैयार करने लगा.... टफ अंदर जाते ही बिना स्नेहा से बात किए... सीमा की यादों में खोया खोया.. आँखों में आँसू लिए सो गया..... स्नेहा टफ की और देखती रही... उसकी आँखों में नींद नही थी... सुबह टफ उठा तो स्नेहा वहाँ नही थी, अपनी अड़खुली आँखों को मालता हुआ वह बाहर आया; देखा शरद अभी भी सो रहा है.. उसने हाथ मारकर उसको उठाया," उठ जा भाई!" शरद ने एक ज़ोर की अंगड़ाई ली..," ओवाआआ! साली सुबह सुबह भाग गयी... एक बात और लेनी थी यार... स्नेहा को तो मैं चोद ही नही पाया.. कैसी थी?" टफ ने वॉश बेसिन के सामने अपनी आँखों पर छीते मारे... आँखें शायद शराब के कारण लाल हो चुकी थी...," ठीक थी.. कुछ खास कोपरेशन नही किया..." "अगली बार मैं सिख़ावँगा उसको साथ देना..." शरद सोफे से ही उठते ह बोला... "यार तू उनको यहाँ लाया कैसे?.. दिखती तो दोनो शरीफ ही थी.." "सबको ये चाहिए होता है बेटे!" शरद ने अपने अंगूठे को अपनी उंगली पर चलाया...," यहीं पढ़ती हैं यूनिवर्सिटी में.. घर से पूरा खर्च मिलता नही.. तो अयाशी और मौज मस्ती के लिए ऐसे ही रातों को आती जाती रहती हैं.. हम जैसे ज़रूरतमंदों के पास..." "यार! इतनी पढ़ी लिखी होकर भी... कैसे कर लेती हैं ये सब...." टफ सीमा को याद करके बेचैन हो गया... उसको यहाँ नही आना चाहिए था.. ये सोचकर वो रह रह कर परेशन हो रहा था... "आबे साले! तू अंबिया चूस कर गुठली गिन'ने में लग गया... चल आ चाय पी ले...!" नौकर अभी अभी टेबल पर चाय रखकर गया था...


करीब सुबह 9 बजे टफ यूनिवर्सिटी के गेट नंबर. 2 पर खड़ा था.. सीमा को सर्प्राइज़ देने के लिए... ऑटो से उतारकर प्रिया को अपनी और आते देख टफ भौचक्का रह गया.. वह दूसरी तरफ घूम गया ताकि अगर प्रिया ने उसको ना देखा हो तो वो उस'से बच सके.. पर प्रिया तो उसको देखकर ही उतरी थी.. वरना तो उसको अगले गेट पर जाना था..," हे फ्रेंड! कैसे हो?" प्रिया उसके आगे आकर खड़ी हो गयी.. टफ ने अब और तब में उसमें बहुत फ़र्क देखा.. तब वह पैसों की खातिर बिकने वाली एक वेश्या लग रही थी और अब अपने करियर के लिए यूनिवर्सिटी आने वाली एक सभ्या लड़की...," ठीक हूँ... जाओ यहाँ से...!" "हां हां! जा रही हूँ.. एक रिक्वेस्ट करनी थी.." प्रिया ने टफ की तरफ प्यासी निगाहों से देखा.. "जल्दी बोलो.. मुझे यहाँ पर ज़रूरी काम है.." टफ ने अपनी बेचैनी दर्शाई... "वो... सर आप बड़े लोग हैं... आपके लिए पैसा कोई मायने नही रखता होगा... मेरे जैसी घरों की लड़कियों को पैसे की बहुत ज़रूरत होती है.... अपने और परिवार के सपनो को जिंदा रखने के लिए... उम्मीद है आप समझ रहे होंगे... बदले में हमारा शरीर ही होता है.. आप बड़े लोगों का दिल बहलाने के लिए......" "अपनी चौन्च बंद करो और भागो यहाँ से..!" टफ गुस्से से दाँत पीस रहा था... सीमा के आने का टाइम हो चुका था... "सॉरी टू डिस्टर्ब... बट कभी आप अपनी सेवा का मौका दे सकें तो... प्लीज़ आप अपना नंबर. दे दीजिए......." तभी मानो टफ पर आसमान टूट पड़ा...," अरे प्रिया! तुम इनको कैसे जानती हो? ... और आप यहाँ कैसे..?" सीमा की आवाज़ सुनकर टफ पलटा... उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया... "मैं तो बाद में बतावुँगी.. पहले तुम बताओ.. तुम इनको कैसे जानती हो?" प्रिया ने सीमा के गले मिलते हुए कहा... "बस यूँही... आप यहाँ कब आए... बताया भी नही... अच्छा मैं अभी आती हूँ.. 1 घंटे में... मुझे ज़रूरी एषाइनमेंट्स जमा करना हैं... मिलेंगे ना..! मैं जल्द से जल्द अवँगी..." अपने सपनो के राजकुमार को देखकर उसने लाइब्ररी जाने का प्लान कॅन्सल कर दिया था... "सीमा.. एक मिनिट! सुनो तो सही...!" टफ का गला भर आया.. "मैं बस अभी आई.." कहती हुई सीमा प्रिया का हाथ पकड़ कर खींचती हुई ले गयी.. टफ अपने माथे पर हाथ लगा वहीं घुटनों के बाल बैठ गया... सीमा और प्रिया के गले मिलने को देखते हुए ये अंदाज़ा लगाना बिल्कुल आसान था की दोनो पक्की सहेलियाँ थी.... सीमा ने अंजलि से पूछा," तूने बताया नही.. अजीत को कैसे जान'ती है..?" प्रिया ने टालने की कोशिश की," यार.. बस ऐसे ही एक फ्रेंड के दोस्त के पास मुलाक़ात हो गयी थी..." "चल छोड़! ये बता.. कैसा लगा तुझे ये.." सीमा ने अपनी पसंद पर मोहर लगवानी चाही... "रॉकिंग मॅन! कुछ भी तो कमी नही है... पर तू ये बता तू ऐसा क्यूँ पूच रही है..?" प्रिया ने शंकित निगाहों से सीमा की और देखा... "बस ऐसे ही.. चल छोड़.. जल्दी चल.. लेट हो रहे हैं!" अब की बार सीमा ने टालने की कोशिश करी.... "नहिी ! तुम्हे बताना पड़ेगा... मेरी कसम!" प्रिया को दाल में कुछ काला सा लगा.. "वो.. ये.. अजीत मुझसे प्यार करता है..." "Wहाआआआआत?" प्रिया ने ऐसे रिक्ट किया मानो 'प्यार' शब्द प्यार ना होकर कोई बहुत बड़ी गाली हो... "क्या हुआ?" प्रिया का रिएक्शन देखकर सीमा की धड़कन बढ़ गयी.... "तू बहुत ग़लत कर रही है सीमा! तू एक बहुत अच्छी लड़की है.. और ये प्यार व्यार तेरे लिए नही बना." प्रिया ने लुंबी साँस लेते हुए कहा.... "अच्छी हूँ तो इसका ये मतलब तो नही की मैं शादी के सपने भी ना देख सकूँ!..." सीमा ने प्रिया से सवाल किया... "तो तू ये समझती है की ये लड़का तुझसे शादी करेगा... है ना?" प्रिया उसको इशारों में समझना चाहती थी... टफ जैसों की तासीर. "तू पहेलियाँ क्यूँ बुझा रही है... खुल कर बता ना.. क्या बात है?" प्रिया बताती भी तो क्या बताती.. वो सीमा के पड़ोस में रहती थी.. उनकी भी कॉलोनी में उतनी ही इज़्ज़त थी.. जितनी सीमा और उसकी मा की.. पर वो सीमा को इश्स दलदल में नही जाने देना चाहती थी... और सीमा पर भरोसा भी कर सकती थी.. उसका काला 'सच' छुपा कर रखने के लिए...," तू एषाइनमेंट दे आ सीमा.. मैं तुझे सब बताती हूँ..." "ओ.के... मैं अभी आई" सीमा ने बेचैन निगाहों से प्रिया को देखते हुए कहा.. उसका दिल बैठा जा रहा था.. जाने.. प्रिया उसको क्या बताएगी.... सीमा जितनी जल्दी हो सका; वापस आ गयी.. प्रिया के पास.. उसके कॉमेंट ने सीमा के दिल की धड़कन बढ़ा दी थी..," हाँ प्रिया.. जल्दी बता दे.. तू कहना क्या चाहती है..?" प्रिया उसका हाथ पकड़ कर रोज़ पार्क में ले गयी... "देख सीमा! मैं तुझको जो बताने जा रही हूँ.. वो बताने लायक नही है.. हम दोस्त हैं.. इसीलिए मैं तुझे इश्स प्यार के गटर में ढकेले जाने से बचना चाहती हूँ.. और जो कुछ मैं बतावुँगी.. सुनकर तुझे एक नही दो झटके लगेंगे... प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना.. और मेरी मजबूरी समझने की कोशिश करना.." "यार तू डरा मत प्लीज़.. मेरी जान निकली जा रही है..." सीमा सुन'ने से पहले ही कुछ कुछ समझने लगी थी.. "मुझे पता है.. पर तुझे सुन ही लेना चाहिए...!.. तरुण पढ़ाई में बहुत अच्छा है.. तुझे पता है.. पर कॉंपिटेशन के जमाने में सिर्फ़ इंटेलिजेन्सी से काम नही चलता... उसकी कोचैंग के लिए 50000 रुपए चाहियें... घर वालों ने उसको बी.एस सी. करने को कहकर अपने हाथ उठा लिए हैं..." "तू सीधी सीधी असली बात पर क्यूँ नही आती?" सीमा ना चाहकर भी वो सुन'ने के लिए बेचैन थी... क्या पता उसका अंदाज़ा ग़लत ही निकल जाए... प्रिया ने थूक गटकते हुए अपनी बात जारी रखी," बता तो रही हूँ... मेरा भाई डॉक्टर बन'ना चाहता है.. और मैं जान'ती हूँ वो बनेगा..." प्रिया का गला भर आया... आँखों में आँसू आ गये," और मैने फ़ैसला किया की उसको डॉक्टर बना'ने के लिए मैं अपना जिस्म बेच दूँगी!" कह कर वो फुट फुट कर रोने लगी.. सीमा की छाती पर सिर रखकर वो झार झार बरसने लगी... "ये क्या कह रही है तू प्रिया" सीमा ने कसकर उसको अपने सीने से भींच लिया... पर उसको पता था ये बेहन का प्यार है... कुछ भी कर गुजरेगा.. अपने भाई के सपने को पूरा करने की खातिर... करीब पाँच मिनिट तक दोनो में चुप्पी छाई रही.. सीमा की हिम्मत ना हुई; प्रिया के बलिदान की आँच पर अपनी जिगयसा की रोटियाँ सेकने की... प्रिया ने खुद ही अपने आपको संभाला और आगे बोलना शुरू किया..," मैने एक डील करी... 5 रातों के बदले 50000... ... और कल में पहली रात बिता कर आ चुकी हूँ..." "क्या? ... किसके साथ..?" "तुम्हारे इश्स अजीत के साथ.... सीमा सुनते ही सब कुछ भूल गयी... बस याद रहा तो टफ का वो खत जिसने उसको सपना दिखाया था.. जिसने उसको जीना सिखाया था.. सपने के साथ.. सीमा को लगा जैसे पार्क में खिले गुलाब उसकी हँसी उड़ा रहे हैं.. उसको सब कुछ घूमता सा लगा... सपनें पिघल कर लुढ़क आए... उसके गालों पर.. प्रिया उसको एकटक देखे जा रही थी... सीमा को अब भी विस्वास सा नही हुआ.. क्या आदमी की जात इतनी घटिया भी हो सकती है..," क्या सच में इसने तुम्हारे साथ...." "नही.. इसने नही.. पर ये भी था किसी दूसरी के साथ.. नाम बताना नही चाहती... खुद पर लांछन लगा कर तुमको रास्ता दिखाने से मुझे कोई हर्ज़ नही.. पर हुमने एक दूसरी को वादा किया है.. नाम ना बताने का.. सॉरी..!" प्रिया ने अपने आँसू पोछते हुए कहा... सीमा के पास अब जैस उसका कहने को कुछ बचा ही ना था... वह प्रिया का धन्यवाद करना भी भूल गयी... उसको इस गर्त में गिरने से बचाने के लिए...... उसके मनमोहक चेहरे पर चाँदी सी नफ़रत तैरने लगी.. वह उठी और टफ के पास जाने लगी... पीछे पीछे उसकी सहेली प्रिया चल दी... हर बात के सबूत के तौर पर...... टफ अपनी गाड़ी से कमर लगाए खड़ा था... सीमा की सूरत देखकर ही वो समझ गया... सीमा ने पास आते ही भर्रय हुई आवाज़ में उसको जाने क्या का कहना शुरू कर दिया," तुमको तो जीना आ गया है ना.. तुम तो मुझे देखकर ही पागल हो गये थे.. तुमने.... कहा था ना... कहा था ना तुमने की... मेरे बिना जी नही पाओगे... ये जीना है तुम्हारा.." टफ कुछ बोल नही पा रहा था.. और ना ही कुछ सुन पा रहा था.. बस जैसे सब कुछ लूट चुका हो.. और वो चुपचाप खड़ा अपनी बर्बादी के जनाज़े में शामिल हो.. सीमा की बड'दुआयं जारी थी," तुम बड़े लोग.. लड़की को समझते क्या हो.. सिर्फ़ सेक्स पूर्ति का साधन.. मुझमें तुम्हे कौनसी बात लगी की मुझे भी खिलौना समझ बैठे... क्यूँ दिखाए मुझे सपने.. क्यूँ रुला मुझे... बोलते क्यूँ नही..!" आँखों में आँसू लिए सीमा ने टफ के कंधे को पकड़ कर हिलाया और सिसकती हुई नीचे बैठ गयी... उसमें खड़ा रहने की हिम्मत ही ना बची थी... टफ ने बड़ी कोशिश के बाद अपने मुँह से शब्द टुकड़ो के रूप में निकले..," सी..मा ( गला सॉफ करके)... उससे एक बार पूछ तो लो.. सीमा!" प्रिया पास खड़ी सब सुन रही थी... "क्या पूछ लूँ... की कैसे तुमने उस्स बेचारी की मजबूरी का फयडा उठाया होगा.. की कैसे तुमने उसको रौंदा होगा... क्या पूछ लू हां.... सीमा खड़ी हुई और अपनी बहती आँखों से एक बार देख कर पलट कर जाने लगी.. प्रिया का हाथ पकड़ कर.. धीरे धीरे! टफ का रोम रोम काँप उठा... उस्स'से ये क्या हो गया... अपने ही अरमानो के तले उस्स'ने अपने सपनो का गला घोंट दिया... वह गाड़ी में बैठ गया.. और अपने मर्दाना आँसू निकालने लगा.. जी भर कर... प्रिया को टफ की एक बात बार बार कौंध रही थी.. " उस्स'से एक बार पूछ तो लो.. सीमा!" "सीमा! मैं अगर तुम्हे उस्स लड़की से मिलवा दू तो तुम उसकी बात को राज रख सकती हो ना?" "क्या करना है अब मिलकर..? बचा ही क्या है मिलने को.." "नही प्लीज़.. एक बार.. मैं उसको फोन लगती हूँ.. प्रिया ने अपना फोन निकाला और स्नेहा का नंबर. डाइयल कर दिया... लाउडस्पिकर ऑन करके.. "हेलो!" "स्नेहा?" "हां प्रिया बोलो....." स्नेहा शायद घर पर ही थी.... "यार कल रात से रिलेटेड एक बात पूछनी थी..." "मैं तुम्हे दो मिनिट में फोन करती हूँ..." स्नेहा ने कहकर फोन काट दिया... प्रिया और सीमा एक दूसरी को देखने लगी.. मानो उम्मीद की कोई किरण नज़र आ ही जाए.. 2 मिनिट से कम समय में ही स्नेहा का फोन आ गया," हां प्रिया! बोलो.." "यार वो जो कल दूसरा लड़का नही था.. शरद के साथ.. वो आज रात के लिए बुला रहा है.. क्या करूँ?.. जाऊं क्या?" प्रिया ने सही तरीका अपनाया था बात शुरू करने का... सीमा साँस रोके सब सुन रही थी..... "कौन? अजीत जी!" स्नेहा ने प्रिया से पूछा.. "हां हां.. ज़्यादा तंग तो नही करता ना?" प्रिया ने उसको उकसाया.. "तुम अब 4 दिन बाद एप्रिल फूल बना रही हो क्या.. या मुझे जला रही हो!" स्नेहा ने स्टीक उत्तर दिया.. "क्या मतलब?" प्रिया ने चौंकते हुए से पूछा.. "मतलब क्या? उनके जैसा देवता इंसान तो मैने आज तक देखा ही नही... वो किसी की मजबूरी का फयडा उठाने वालों में से नही है... जाने कैसे वो शरद के साथ आ गया.." सीमा की आँखें चमक उठी..

दिल फिर से धड़क उठा.. अपने अजीत के लिए..... "तुम थोड़ा खुलकर नही बता सकती क्या?" प्रिया सबकुछ जान'ना चाहती थी... "यार उस्स आदमी से तो मुझे प्यार सा हो गया है.. अगर कहीं मिल गया तो... पर यार मैं अब इश्स लायक कहाँ हूँ... खैर.. तुम्हे याद होगा जब शरद ने उसको कहा था.... "यार! तुम्हारा मूड खराब लग रहा है.. कोई इचा भी है या दोनो को मैं ही संभालू" ऐसा करके कुछ!" "हां हां! याद है.." प्रिया ने याद करते हुए बताया... "तो वो मुझे उठाकर बेडरूम में ले गया था.. क्यूंकी शरद ने कहा था की उसको तुम पसंद हो.." "हां हां.." "अंदर जाते ही उसने मुझे चादर औधा दी थी.. और सॉरी बोला था.. और ये भी कहा था की मुझे वहाँ ना लाता तो तुम भी बर्बाद हो जाती..... उसने सारी रात मेरी और देखा तक नही.. छूना तो दूर की बात है यार... सच ऐसे आदमी भी होते हैं दुनिया में..." सीमा का हर शक़ दूर हो गया था.. पर प्रिया के मॅन में संशय बाकी था," पर यार मैने देखा था.. जब वो बाहर आया था तो उसने अपनी ज़िप बंद करी थी.." प्रिया ने सीमा से शरमाते हुए से ये बात कही.. "हो सकता है.. इसका मुझे नही पता.. हां शायद उसने मुझको कहा था की अगर शरद पूछे तो उसको ये नही बताना है की मैने कुछ नही किया... वरना वो मुझको बाहर ले जाएगा... शायद शरद को दिखाने के लिए ऐसा कहा हो... उसने तो यार अपना नंबर. भी नही दिया... भगवान बस एक बार उससे मिलवा दे..." "ठीक है स्नेहा! मैं तो एप्रिल फूल ही बना रही थी.. पर मुझे क्या पता था.. एनीवेस थॅंक्स...." स्नेहा हँसने लगी.. और फोन कट गया......

rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 08:16


गर्ल'स स्कूल --22

सीमा फोने काटते ही बाद हवस सी होकर भाग ली गेट की तरफ.. अपने प्यार के लिए.. उसको नही पता था टफ वहाँ मिलेगा या नही.... पर उसको भगवान पर भरोसा था.. फोन करना भी ज़रूरी नही समझा.....
गेट पर आते ही उसको टफ की गाड़ी दिखाई दे गयी.. वह भागती हुई ही ड्राइवर सीट के बाहर पहुँची.. उसने देखा टफ की बंद आँखों में आँसू थे... उसने शीशे पर नॉक किया.. टफ ने देखा सीमा बाहर खड़ी है.. उसकी भी आँखों में आँसू थे.. दोनो के आँसू एक रंग के हो चुके थे.. प्यार के आँसू.. मिलन की तड़प के आँसू..
टफ गाड़ी से नीचे उतरा.. सीमा उससे लिपट गयी.. बिना उसकी इजाज़त लिए... कभी ऐसा भी होता है क्या.. पहल तो लड़का करता है... पर कहानी उलट गयी थी.. सीमा रोड पर ही उसके अंदर घुस जाना चाहती थी.. हमेशा के लिए....," तुमने बताया क्यूँ नही?"
टफ ने उसकी कमर पर हाथ लगाकर और अंदर खींच लिया," कहा तो था जान; उससे पूछ तो लो.."
"फिर तुम इतने घबराए हुए क्यूँ लग रहे थे.." सीमा ने अपने आँसू टफ की शर्ट पर पोंछ दिए...
"वहाँ जाने की ग़लती के कारण सीमा... सॉरी.. सच में मैं तुम्हारे बिना नही रह सकता.."
"मैं भी अजीत... आइ लव यू" सीमा अपना सिर उठाकर टफ की आँखों में अपने लिए मंडरा रहा बेतहाशा प्यार ढूँढने लगी.......

दोनो गाड़ी में बैठे और चल दिए... पीछे प्रिया खड़ी अपने आँसू पॉच रही थी... काश उसकी भी ऐसी किस्मत होती..

"कहाँ चलें?" टफ ने गाड़ी रोड पर चढ़ा कर सीमा से पूछा.
"जहाँ तुम्हारी मर्ज़ी!" सीमा सीट से कमर लगाए आँखें बंद किए बैठी थी.. जाने कैसे वो यूनिवर्सिटी के बाहर टफ के सीने से जा चिपकी थी.. उस्स वक़्त उसको कतई अहसास नही हुआ की वो एक मर्द का सीना है.. उसकी ठोस छाती की चुभन अब जाकर वो अपने दिल में महसूस कर रही थी.. उसकी छातियाँ मर्द का संसर्ग पाकर उद्वेलित सी हो गयी थी... यह उसका पहला प्यार था, पहली कशिश थी.. पहली चुभन थी और पहली बार वो अपने आपको बेचैन पा रही थी; दोबारा उसके सीने में समा जाने के लिए.. उसका दिल उछल रहा था, पहले मिलन को याद करके भविस्या के सपनो में खोया हुआ!
"कहीं का क्या मतलब है? अपने घर ले चलूं क्या?" टफ ने मज़ाक में कहा..
सीमा ने अपनी मोटी आँखें खोल कर टफ की और देखा," तो क्या सारी उमर बाहर ही मिलने का इरादा है?"
"अरे मैं अभी की पूछ रहा हूँ.."
"अभी तो मंदिर मैं चलते हैं.. देल्ही रोड पर थोड़ी ही दूर सई बाबा का मंदिर है.. चलें?" सीमा ने टफ से पूछा...
"क्यूँ नही! " और टफ ने गाड़ी देल्ही की और बढ़ा दी...

करीब 15 मिनिट के बाद दोनो मंदिर के पार्क में बैठे थे," सीमा! मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ..!"
"कहो!" सीमा भी अब कुछ ना कुछ सुनना ही चाहती थी... कुछ प्यारा सा, रोमॅंटिक सा..
"सीमा! मैं अपनी बीती जिंदगी में निहायत ही आवारा टाइप का रहा हूँ.. केर्लेस और थोड़ा वल्गर भी... जैसा मैने कहा था.. तुमने मेरी जिंदगी में आकर उसको बदल दिया.. मैं मंदिर में बैठा हूँ.. आज जो चाहो पूछ लो; प्लीज़ आइन्दा कभी कोई बात सुनकर मुझसे यूँ दूर ना चली जाना जैसे आज..... मैं मर ही गया था सीमा.." टफ ने सीमा का हाथ अपने हाथों में ले लिया..
"अजीत! कल रात वाली बात का खुलासा होने पर कोई भी बहुत बड़ी बेवकूफ़ होगी जो तुम पर कभी शक करेगी... मैं तुम्हारी शुक्रगुज़ार हूँ की तुमने मुझ में प्यार ढूँढा.. तुमने मुझे अपनाया... मुझसे मिलने से पहले तुमने क्या किया है, ये मेरे . कतई मायने नही रखता... बस अब मुझे मंझदार में ना छोड़ देना... मैने बहुत सारे सपने देख लिए हैं..उनको बिखरने मत देना प्लीज़...

दोनो लगातार एक डसरे की आँखों में देखे जा रहे थे... शायद दोनो ही अपने देखे सपनो को एक दूसरे की आँखों में ढूँढ रहे थे... टफ के हाथों की पकड़ सीमा के मूलाम हाथों पर कास्ती चली गयी...

"आऔच! अब क्या मसल दोगे इनको." सीमा ने अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश करी..
"ओह सॉरी! मैं कहीं खो गया था.." टफ ने सहम्ते हुए उसका हाथ छोड़ दिया..
"अब ये अपना पुलिसिया अंदाज छोड़ दो.. मेरे साथ नही चलेगा.. अंदर कर दूँगी हां!" सीमा ने अपना हक़ जताना शुरू कर दिया था..

"कहाँ अंदर करोगी!" खिलाड़ी टफ अपने आपको रोक ही ना पाया.. द्वि- अर्थी कॉमेंट करने से...
गनीमत था सीमा उसकी बात का 'दूसरा' मतलब नही समझी... वरना वहाँ पर झगड़ा हो जाता... या क्या पता...? प्यार ही हो जाता! ," घर लेजाकार बाथरूम मे. रोक दूँगी... हमेशा के लिए!"
"अगर तुम भी मेरे साथ बंद हो जाओ तो में बाथरूम में उमर क़ैद काटने के लिए भी तैयार हूँ..." टफ ने फिर शरारत की..
"धात!.. बेशरम.." सीमा ने अपनी नज़रें झुका ली.. उसका दिल कर रहा था अजीत उसको अपनी छाती से वैसे ही चिपका ले जैसे वो रोड पर जा चिपकी थी.... उस्स मिलन की ठंडक अब तक उसकी छातियों में थी....
"चलें..... मुझे पढ़ाई करनी है.." सीमा चाह रही थी.. वो उसको कहीं ले जाए, अकेले में..!

टफ तो जैसे जोरू का गुलाम हो गया था.. ना चाहते हुए भी वो उठ गया," चलो! जैसी तुम्हारी मरजी"

अब सीमा क्या कहती.. वो उसके पीछे पीछे चल दी........

आज 10+2 के एग्ज़ॅम का तीसरा दिन था... सुबह सुबह गौरी निशा के घर पहुँच गयी," निशा! आज तू लेट कैसे हो गयी? तेरा इंतज़ार करके आई हूँ.. चल जल्दी!"
"सॉरी गौरी! मैं तुझे बताना ही भूल गयी... मेरे भैया के एग्ज़ॅम ख़तम हो गये हैं.. वो कल रात को घर आ गये थे... मैं तू बाइक पर उसी के साथ जाउन्गि.. सॉरी!" निशा गौरी को साथ लेकर नही जाना चाहती थी.. इतने में संजय बाथरूम से बाहर निकला.. उसने कमर के नीचे तौलिया बाँध रखा था.. चंडीगड़ में वह लगातार जिम जाता रहा था.. कपड़ों के उपर से गौरी उसकी मांसपेशियों के कसाव को नही देख पाई थी.. कपड़ों में वा इतना सेक्सी नही लगता था जितना आज नंगे बदन.. गौरी ने शर्मा कर नज़रें नीची कर ली...

"तो क्या हुआ निशा? ये चाहे तो हमारे साथ चल सकती है.. तीन में कोई प्राब्लम नही है" संजय ने बनियान पहनते हुए कहा..

निशा ने एक बार घूर कर संजय की और देखा फिर पलट कर निशा की और प्रेशन शूचक निगाहों से देखा...
"हां ठीक है.. अगर तीन में प्राब्लम नही है तो मैं भी चल पड़ती हूँ... तुम्हारे साथ.." गौरी को आज सच में ही संजय बहुत स्मार्ट लगा.. वह रह रह कर तिरछी निगाहों से संजय को देख रही थी....

"ठीक है.. चलो!" निशा ने बनावटी खुशी जताई.. सच तो ये था की वो संजय और गौरी को आमने सामने तक नही देखना चाहती थी.. उसको पता था की उसका भाई गौरी पर फिदा है... पर वा मजबूर हो गयी...

संजय ने बाइक बाहर निकली तो झट से निशा संजय के पीछे बैठ गयी.. संजय ने निशा की और देखा," निशा! दोनो तरफ पैर निकालने होंगे.. ऐसे नही बैठ पावगी दोनो.."
"तुम तो कह रहे थे की तीनो आराम से बैठ जाएँगे!" निशा ने मुँह बनाया और दोनो तरफ पैर करके संजय से चिपक कर बैठ गयी.. गौरी निशा के पीछे बैठ गयी.. तीनो एक दूसरे से चिपके हुए थे... संजय ने बाइक चला दी...

सलवार कमीज़ में होने के कारण निशा की चूत संजय की कमर से नीचे बिल्कुल सटी हुई थी.. संजय उसमें से निकल रही उष्मा को महसूस करके गरम होता जा रहा था.. निशा ने अपने हाथ आगे लेजकर उसकी जांघों पर रख लिए.. संजय के लंड में तनाव आने लगा...
गौरी संजय के बारे में सोच कर गरम होती जा रही थी.. उसकी जांघों की बीच की भट्टी भी सुलग रही थी.. धीरे धीरे...
अचानक रोड पर ब्रेकर आने की वजह से गौरी लगभग उछल ही गयी, उसने घबराकर निशा को पकड़ने की कोशिश करी... पर उनके बीच में तो जगह थी ही नही.. गौरी के हाथ संजय के पेट के निचले हिस'से पर जाकर जम गये..


जिस वक़्त गौरी को वो झटका लगा था.. उससे थोड़ी देर पहले ही निशा संजय का ध्यान गौरी से हटाने के लिए उसकी पॅंट के उपर से उसके लंड को सहलाने लगी थी.. संजय कोई रिक्षन नही दे पाया हालाँकि उसके लंड ने तुरंत आक्षन लिया.. ट्राउज़र के पतले कपड़े में से वो अपना सिर उठाने लगा.. निशा ने पॅंट के उपर से ही उसको मजबूती से पकड़ लिया.. संजय बेकाबू हो रहा था.. निरंतर.. निशा ने सोने पर सुहागा कर दिया.. अपनी उंगलियों से ज़िप को पकड़ा और नीचे खींच दी.. अंडरवेर का सूती कपड़ा लंड के दबाव मे. पॅंट से बाहर निकल आया... निशा उस्स पर उंगलियाँ घुमाने लगी..
सब कुछ संजय की बर्दास्त के बाहर था.. तभी अचानक निशा की बदक़िस्मती कहें या संजय की खुसकिस्मती.. अचानक वो झटका लगा और गौरी के हाथ निशा की कलाईयों के उपर से होते हुए संजय के पेट से जा चिपके..
अचानक गौरी से अंजाने में हुई इस हरकत से निशा सकपका गयी.. उसने तुरंत अपने हाथ पीछे खींच लिए...
गौरी के दिल की धड़कन बढ़ गयी.. गौरी को अहसास था की उसकी उंगलियाँ संजय के गुप्ताँग से कुछ ही इंच उपर हैं.. उसने अपने हाथ हटा लेने की सोची; पर संजय को छूने का अहसास उसको इश्स कदर रोमांच से भर गया की उसके हाथों की पकड़ वहाँ कम होने की बजाय बढ़ती चली गयी..
निशा कसमसा कर रह गयी; पर कर क्या सकती थी... उसने हाथ अपनी जांघों पर ही रख लिए...
अचानक गौरी को ध्यान आया; निशा के हाथ तो वहाँ से भी नीचे थे जहाँ से वो संजय को पकड़े हुए थी.. उसकी नाभि के भी नीचे से.. तो क्या निशा के हाथ..
ये सोचते ही गौरी को अपनी पनटी पर कुछ टपकने का अहसास हुआ.. उधर संजय का भी बुरा हाल था.. उससने एक हाथ से अपने हथियार को जैसे तैसे करके पॅंट में अंदर थूसा पर वो ज़िप बंद ना कर पाया... ऐसा करते हुए उसके हाथ गौरी के कोमल हाथों से रग़ाद खा रहे थे.. गौरी अंदाज़ा लगा सकती थी की उसके हाथ कहाँ पर हैं और वो क्या कर रहा है...

जैसे तैसे वो भिवानी एग्ज़ॅमिनेशन सेंटर पर पहुँचे.. गौरी का ध्यान उतरते ही संजय की पॅंट के उभार पर गया.. संजय की काली ट्राउज़र में से सफेद अंडरवेर चमक रहा था.. उसकी ज़िप खुली थी...
गौरी का बुरा हाल हो गया.. वह भागती हुई सी बाथरूम में गयी.. अपने रुमाल से पसीना पोछा और सलवार खोल कर रुमाल उसकी पनटी और चिकनी टपक रही चूत के बीच फँसा लिया.. ताकि सलवार भीगने से बच जाए..
जैसे ही वह बाहर आई निशा ने पैनी निगाहों से देखते हुए पूछा," क्या हो गया था; गौरी?"
"कुछ नही.. वो.. पेशाब...!" गौरी ने अपनी नज़रें झुका ली...
निशा को एक अंजान डर ने आ घेरा.. गौरी अब संजय में इंटेरेस्ट लेने लगी है.. संजय तो पहले दिन से ही उसका दीवाना था....," चल अपनी सीट पर चलते हैं.."
कुछ ही देर में पेपर शुरू हो गया.. दोनो सब कुछ भूल कर अपना पेपर करने में जुट गयी..

बाहर संजय का बुरा हाल था... गौरी के हाथों का कामुक स्पर्श अब भी उसके पाते पर चुभ रहा था.. उसकी शराफ़त जवाब देने लगी थी.. बाइक से उतरते ही उसकी पॅंट की और देखती गौरी उसकी नज़रों से हटाने का नाम नही ले रही थी.. वह अपना ध्यान हटाने के लिए इधर उधर घुमा पर उसके 'यार' का कदकपन जा ही नही रहा था... कैसे उसको अपने पीछे चिपका कर बैठाया जाए, सारा टाइम वो इसी उधेड़बुन में लगा रहा.....
कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह.. उसकी आँखें चमक उठी... अपना प्लान सोचकर.......

पेपर ख़तम होते ही निशा और गौरी दोनो बाहर आई..
संजय ने दोनो से मुखातिब होते हुए पूछा," कैसा पेपर हुआ?"
"बहुत अच्छा" निशा ने गौरी को ना बोलता देख बात कुछ और बढ़ा दी," दोनो का...!"
संजय ने गौरी को देखते हुए बाइक स्टार्ट की और बैठने का इशारा किया.. निशा लपक कर बीच में आ बैठी.. गौरी उसके पीछे बैठ गयी... चिपक कर!"

वो लोहरू रोड पर मुड़े ही थे की अचानक संजय ने बाइक रोक दी..," हवा कुछ कम लग रही है.. देखूं तो!"
संजय ने पिछले टाइयर की हवा आधी निकल दी थी.. तीनों बैठने पर टाइयर पिचक सा गया था...," ओहो! पंक्चर हो गया लगता है.. अब क्या करें..?"
निशा ने झुक कर टाइयर को देखा और बोली," पंक्चर लगवा लाओ; और क्या करोगे!"
"नही लग सकता ना! तभी तो परेशान हूँ..." संजय ने प्लान तैयार कर रखा था.
"क्यूँ?" निशा हैरानी से बोली...
"यहाँ किसी ऑटोपार्ट्स वाले को पोलीस ने कल बेवजह पीट दिया.. इसीलिए सभी हड़ताल पर गये हैं.. कोई भी नही मिलेगा.. अब तीन तो बैठ नही सकते.. देर मत करो.. चलो पहले गौरी को छोड़ आता हूँ.. फिर तुम्हे ले जवँगा.." संजय को लग रहा था ये तरीका काम करेगा..," हो सका तो गाँव से पंक्चर भी लगवाता आउन्गा.."
निशा उसके बिछाए जाल में फँस गयी.. उसने आव देखा ना ताव.. झट से बिके पर बैठ गयी," पहले मुझे छोड़ कर आओ" पागल ने ये नही सोचा की कोई पहले जाए या बाद में.. पर गौरी अकेली तो होगी ना उसके साथ...

"ठीक है, गौरी! मैं यूँ गया और यूँ आया.." कहकर संजय ने बाइक स्टार्ट कर दी...
तभी निशा को ध्यान आया; वो भी कितनी मूर्ख है..," संजय! तुम जान बूझ कर तो ऐसा नही कर रहे... वो जीप में भी तो आ सकती थी.."
"पागल मत बनो, निशा! क्या सोचती वो" संजय ने सपास्टीकरण दिया..
"नही! मुझे लग रहा है तुम उसके साथ अकेले आना चाहते हो.."
"ऐसा कुछ नही है निशा.. बेकार की बहस मत करो.." और संजय ने बाइक की स्पीड बढ़ा दी...
निशा ने अपना हाथ आगे लेजाकार उसके लंड को पकड़ कर भींच दिया.....

वापस आते हुए संजय ने बाइक मैं हवा भरवा ली.. वह अकेला था और उसका दिल और लंड दोनो ही गौरी को सोच सोच कर उछाल रहे थे.....

गौरी के पास पहुँच कर उसने स्टाइल से बाइक मोडी और एकद्ूम ब्रेक लगाकर गौरी के पास रोक दी," बैठो!"
गौरी मन ही मन बहुत खुश थी पर बाहर से वो शरमाई हुई लग रही थी...
वह एक ही तरफ दोनो पैर करके बैठ गयी...
"ये क्या है गौरी! आजकल की लड़किया.. दोनो और पैर करके बैठती हैं.. ये पुराना फॅशन हो गया है.. और तुम तो वैसे भी शहर से हो....
'अँधा क्या चाहे दो आँखें' गौरी झट से उतरी और अपनी एक टाँग उठाकर बाइक के उपर से घुमा कर बाइक के बीचों बीच बैठ गयी.. लेकिन संजय से दूरी बना कर..........

संजय ने सब कुछ प्लान कर रखा था.. उसने बाइक की स्पीड तेज की और अचानक ही ब्रेक लगा दिए," संभालना गौरी!"
संभालने का टाइम मिलता तब ना.. झटके के साथ ही गौरी की चूचियाँ तेज़ी के साथ संजय की कमर से टकराई.. संजय तो मानो उस्स एक पल में ही स्वर्ग की सैर कर आया.. गौरी की मस्त चूचियाँ बड़ी बहरहमी से संजय की कमर से लग कर मसली सी गयी.. अचानक हुए इश्स दिल को हिला देने वेल 'हादसे' से गौरी की साँसे उखाड़ गयी..
"सॉरी गौरी! आगे गढ़ा था.." संजय ने बाइक रोक कर गौरी की और देखा....
गौरी की शकल देखने लायक हो गयी थी.. उसकी समझ में नही आ रहा था वा दर्द के मारे रो पड़े; या आनंद के मारे झूम उठे.. उसने नज़रें झुका ली..
"बहुत दर्द हुआ क्या?" संजय ने गौरी को लगभग छेड़ते हुए कहा....
गौरी क्या बोलती.. उसने नज़रें झुकाई.. मिलाई और फिर झुककर अपनी गर्दन हिला दी.. गर्दन का इशारा भी कुछ समझ में आने वाला नही था.. ना तो हां थी.. और ना ही ना..
"तुम आगे होकर मुझे कसकर पकड़ लो! सारा रास्ता ही खराब है.." संजय ने आँखों से झूठी सराफ़ात टपकाते हुए कहा...
"गौरी का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.. एक ही रास्ता था उसकी धड़कन को कम करने का... और उसने ऐसा ही किया.. अपनी छाती को संजय की कमर से सटकर बैठ गयी.. अपने हाथ उसकी छाती पर कस दिए.....

दोनो एक ही बात सोच रहे थे.. अब कंट्रोल होना मुश्किल है.. पर दोनो ही ये बात एक दूसरे के लिए सोच रहे थे.. किसी में भी पहल करने की हिम्मत ना थी..
संजय धीरे धीरे बाइक चला रहा था.. गौरी की मस्टाई गड्राई और गोलाई वाली छातियाँ अपनी कमर से सटा देख संजय ने खुद को पीछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया.. गौरी एक बार तो पिछे की और हुई.. फिर संजय को जानबूझ कर ऐसा करते देख उसने भी आगे की तरफ दबाव डालना शुरू कर दिया.. आलम ये था की चूचियों की ऊँचाई आधी रह गयी थी.. दोनो की ज़िद के बीच में पीस कर..
कोई हां नही कर रहा था, कोई ना नही कर रहा था.. कोई हार नही मान रहा था... गौरी को असहनीया आनंद की प्राप्ति होने लगी... गौरी नीचे से भी संजय के कमर के निचले हिस्से से सॅट गयी.. उसकी जांघें भींच गयी.. संजय धन्य हो गया...पर जब तक बात और आगे बढ़ती.. उनका गाँव आ गया...
गौरी का हाल संजय से भी बुरा था.. किसी मर्द के इतने करीब वा पहली बार आई थी.. वो भी उस्स मर्द के करीब जो उसको बेहद पसंद था...
"संजय उसके दिल का हाल उसके गुलाबी हो चुके गालों से जान गया था...," कल मैं तुम्हे अकेला लेकर जाउ क्या? पहले जल्दी से निशा को छोड़ आउन्गा.. उसको बोल देना तुम अलग आओगी... क्या कहती हो?"

गौरी नीचे उतरी; नीचे गर्दन करके मुस्कुराइ और घर भाग गयी... संजय गौरी के भागते हुए नितंबों की थिरकन देखकर मदहोश हो गया... उसने किक लगाई और घर की और चल दिया..," हँसी मतलब........!"

गौरी जैसे सेक्स करके थक गयी हो.. उसकी साँसे अभी भी उखड़ी हुई थी... उसका दिल अब भी धड़क रहा था.. ज़ोर से...!

संजय के घर पहुँचते ही निशा ने उसको घूरा," क्या चक्कर है? उसको लाने में इतनी देर कैसे?"
"तुम भी ना निशा... वो मैं पंक्चर लगवाने लग गया था गाँव में....
निशा ने उसको धक्का देकर बेड पर गिरा दिया और उसके उपर सवार हो गयी......

अगले दिन वही हुआ... संजय कहीं जाने की बात कहकर करीब 2 घंटे पहले ही निशा को सेंटर पर छोड़ आया.. निशा गौरी को जाते हुए बता आई थी की आज मैं जल्दी जा रही हूँ....
निशा भी खुश थी.. उसकी जान; उसका भाई गौरी को आज लेकर नही गया.....
अंजलि और राज स्कूल जा चुके थे.. गौरी टाइम का अंदाज़ा लगा कर घर से निकल पड़ी.... जब संजय निशा को छोड़ कर वापस आया तो गौरी सड़क पर खड़ी थी...
संजय के उसके पास बिके रोकते ही वा उस्स पर बैठ गयी... दोनो तरफ पैर करके...

गौरी ने सारी रात जाने का क्या सोचा था और संजय ने भी जाने क्या क्या! पर दोनो ही प्यार के कच्चे खिलाड़ी थे.. अपने मान की बेताबी को तो समझ रहे थे.. पर दूसरी और क्या चल रहा है.. उससे अंजान थे...
समय निकलता देख संजय ने पहल कर ही दी," आज मुझे पाक्ड़ोगी नही क्या?"
गौरी ने हल्क हाथों से उसको थाम लिया...
"बस?" संजय धीरे धीरे उसके मान की थाः ले रहा था...
"हूंम्म्म!" गौरी को शर्म आ रही थी; बिना झटका लगे अपनी छाती मसलवाने की, उसकी कमर से दबा कर..
"क्यूँ?" संजय बेचैन हो गया...

गौरी कुछ ना बोली... उस्स गढ़े को समझ लेना चाहिए था.... की हेरोइन तैयार है...
"तुम्हे पता है... तुमसे सुन्दर लड़की मैने आज तक नही देखी..." संजय ने प्रशंसा के फूल उस्स पर न्योछावर कर दिए.. गौरी मन ही मन खिल उठी...

"मैने निशा से कुछ कहा था; तुम्हारे बारे में.. क्या उसने नही बताया..?" संजय उस्स'से कुछ ना कुछ तो आज सुन ही लेना चाहता था....
"उम्म्म!" गौरी का फिर वही जवाब....
"उम्म्म्म क्या?" संजय ने कहा..
"बताया था!" गौरी मानो हवा में ऊड रही हो.. वो अपने आपे में नही थी.. संजय को पहल करते देख...
"क्या बताया था?" संजय ने पूछा..
गौरी कुछ ना बोली.. अपने गाल संजय की कमर पर टीका दिए.. हाथों का संजय की छाती पर कसाव थोडा सा बढ़ गया.. पर छातियों की कमर से दूरी अभी बाकी थी...
"बताओ ना प्लीज़... क्या बताया था...?" संजय को मामला फिट होता लग रहा था....
"यही की...... की तुम मुझसे ... प्प्पयार करते हो.." गौरी ने आँखे बंद करके लरजते गुलाबी होंटो से कहा...
"और तुम?" संजय ने प्यार का जवाब माँगा...
गौरी इससे बेहतर जवाब क्या देती.. अपने आपको आगे करके संजय से सटा लिया.. हाथों का घेरा उसकी छाती पर कस दिया और अपनी छातियों को जैसे संजय के अंदर ही घसा दिया..... ये कच्ची उमर के प्यार की स्वीकारोक्ति थी... सीमा और टफ के प्यार से बिल्कुल अलग... गौरी बाइक पर संजय से चिपकी हुई काँप रही थी..
उसके रोम रोम में लहर सी उठ गयी... भिवानी आ गया था.. संजय ने गौरी को कहा," पेपर के बाद किसी भी तरह से यहीं रुक जाना.. निशा बस में जाएगी.....

गौरी तो संजय के प्रेम की दासी हो चुकी थी... कैसे उसका कहा टालती.....

पेपर ख़तम होने के करीब आधे घंटे बाद संजय सेंटर पर गया... उसकी प्रेम पुजारीन वहीं खड़ी थी.. अकेली......

निसचिंत होकर वह संजय के पीछे बैठ गयी... अंग से अंग लगाकर....
"होटेल में चलें...!" संजय ने गौरी से पूछा...
"लेट हो जाएँगे...!" हालाँकि इस बात में 'ना' बिल्कुल नही थी... संजय भी जानता था...
" कुछ नही होता... कुछ बहाना बना देंगे..." संजय ने बाइक हाँसी रोड पर दौड़ा दी...
कुछ हो या ना हो... जो दोनो की मर्ज़ी थी वा तो हो ही जाएगा.....
एक घटिया से टाइप के होटेल के आगे संजय ने बाइक लगा दी.. गौरी बाहर ही खड़ी रही...
"रूम चाहिए!" संजय ने वहाँ बैठे आदमी से कहा..
आदमी ने बाहर खड़ी बाला की सेक्सी गौरी को देखकर अपने होंटो पर जीभ फिराई," कितनी देर के लिए?" होटेल शायद इन्ही कामो के लिए उसे होता था...
"2 घंटे!"
"हज़ार रुपए!" इस वक़्त का फयडा कौन नही उठाता...
संजय ने पर्स से 1500 रुपए निकल कर उसको दिए..," हूमें डिस्टर्ब मत करना"
"सलाम साहब!"
संजय ने गौरी के हाथ में हाथ डाला और उनको दिए कमरे में घुस गया...

होटेल का कमरा कुछ खास नही था, अंदर जाते ही संजय को कॉंडम की सी गंध आई.. गद्दों पर बेडशीट तक नही थी.. पर ये वक़्त इंटीरियर डिज़ाइनिंग के बारे में सोचने का नही था...
उसने पलट कर गौरी की और देखा.. अपने राइटिंग बोर्ड से अपना सीना छिपाए खड़ी गौरी नज़रें झुकायं जाने क्या सोच रही थी..
"इधर आओ गौरी!" संजय ने मदहोश आवाज़ में हाथ फैलाकर गौरी को अपनी बाहों में आने को कहा...
जाने किस कसंकस में एक कदम पीछे हटकर दीवार से सटकार खड़ी हो गयी.. उसकी पलकों ने शरमाती आँखों को धक लिया..

संजय खुद ही 4 कदम चलकर उसके करीब, उसके सामने जाकर खड़ा हो गया... उसने गौरी के बेमिसाल शरीर पर एक नज़र डाली...

सच में गौरी किसी हसीन कयामत से कम नही थी.. उसका सुंदर मासूम सा लगने वाला गौरा चेहरा हर तरह से सौंदर्या की कसौटी पर नंबर 1 था.. उसकी पतली लंबी सुरहीदार गर्दन उसके ऊँचे ख्वाबों को दर्साति थी.. गर्दन से नीचे प्रभु की कला की 2 अनुपम कृतियाँ; किसी भी मर्द को उसके कदमों में सबकुछ लूटा देने को बद्धया कर सकती थी.. छातियों से नीचे पेट का पटलापन और नाभि से नीचे शुरू होने वाला उठान उसकी मस्त चिकनी जांघें उसके नितंबों के बीच की अंतहीन गहराई को बरबस ही उजागर कर देती थी....
संजय तो पहले से ही बेकाबू था.. वह थोड़ा सा झुका और एक हाथ से गौरी के कानो पर गिरी उसकी लट को पीछे करके गालों पर अपने होन्ट रख दिया..
"आआह!" इश्स आवाज़ से गौरी के समर्पण का बोध संजय को हुआ..
उसने गौरी के हाथों को पकड़ा और उन्हे उसकी छातियों से हटा दिया.. हुल्की सी हिचकिचाहट के साथ गौरी अपने हाथों को अपने मोटे कुल्हों के पास ले गयी...
संजय उससे सटकार खड़ा हो गया.. गौरी की चूचियाँ संजय की छाती के निचले हिस्से को छू रही थी; हूल्का हूल्का.. गौरी की साँसे गरम होती जा रही थी.. संजय अपने गले से उन्न सांसो की गरमाहट महसूस कर रहा था...
संजय झुका और अपने होन्ट गौरी के पतले मुलायम होंटो पर बिछा दिए.. और थोड़ा सा आगे होकर उसकी छातियों को अपने भर से दबा दिया.. गौरी के हाथ उपर उठकर संजय के बालो में अपनी उंगलियाँ फँसा दी.. उसके होन्ट संजय का सहयोग करने लगे..
संजय ने गौरी की कमर में हाथ डाल दिया और सहलाने लगा.... उसके हाथ धीरे धीरे नीचे की और जा रहे थे.
गौरी के नितंब को मजबूती से पकड़कर संजय ने अपनी और खींच लिया... गौरी बहाल सी हो गयी.. उसने अपने होंटो को अलग किया और ज़ोर ज़ोर से हाँफने लगी.. उसकी छातियाँ अब भी संजय के सीने में गाड़ी हुई थी..
गौरी को अपनी चूत से थोडा सा उपर संजय का लंड गड़ता हुआ महसूस हुआ.. वा अपने आपको पीछे हटाने लगी.. डर से..
पर संजय ने उसके नितंब को पूरी सख्ती से अपनी और खींच कर रखा था.. गौरी को अपनी चूत में जलन सी होने लगी... उसने अपना हाथ अपनी चूत और संजय के लंड के बीच में फँसा दिया.. संजय ने थोड़ा पीछे हटकर अपनी चैन खोली और अंडरवेर में से ताना हुआ अपना लंड निकाल कर गौरी के हाथों में दे दिया...
गौरी, नारी के लिए बेमिशाल उफार यूयेसेस लंड को अपने हाथ में पकड़ कर अपनी चूत को बचा रही थी...
संजय ने गौरी की गांद के नीचे से अपना हाथ लेजकर उसकी चूत की पत्तियॉं पर रख दिया.. गौरी उछाल पड़ी... उसका मौन टूट गया," याइयीई... ये क्या कर रहे हो?"
उसकी साँसे किसी भट्टी से निकली आँच की तरह गरम थी....
"जान वही कर रहा हूँ; जिसके लिए हम यहाँ आए हैं... प्यार!"
"नही! मैं ऐसा नही कर सकती.." गौरी ने पूरी तरह खुद को संजय से छुड़ा लिया..
"क्क्या? क्या कह रही हो तुम... जो अभी तक कर रही थी.. वो क्या था?" संजय के साथ कलपद हो गयी..( क्यूँ??)
गौरी पूरी तरह अपने आपको संभाल चुकी थी..," ये सच है संजय की मुझे तुम बहुत अच्छे लगते हो... जब तुमने कहा की तुम मुझसे प्यार करते हो तो मैं तुम्हारे करीब आकर तुम्हे जान'ने को मचल उठी.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ.. बट मैं नही जान'ती हमारा प्यार किसी मुकाम तक पहुँचेगा या नही...
सॉरी! संजय; मैं शादी से पहले अपना शरीर तुम्हे नही सौंप सकती.. किसी भी हालत में.. गौरी ने एक बार फिर अपनी नज़रें झुका ली थी.."
संजय सुनकर हक्का बक्का रह गया.. उसका दिल किया की उसका रेप कर डाले.. पर वह इतनी प्यारी थी की कूम से कूम कोई इंसान तो उसको घायल कर ही नही सकता था.. और संजय शैतान नही था...
बेचारे का लोडेड हथियार बगैर अनलोड हुए ही क्रॅश हो गया..
संजय के चेहरे से बे-इंतहा गुस्सा झलक रहा था... उसने फाटक से दरवाजा खोला और बाहर निकल गया... गौरी उसके पीछे दौड़ी....
संजय ने बाइक स्टार्ट कर दी.. गौरी जाकर उसके पीछे बैठ गयी....
"एक तरफ पैर करो!" संजय की हालत सब समझ सकते हैं....
सहमी हुई गौरी उतरी और उसके कहे अनुसार बैठ गयी... वह लज्जित थी... उसने संजय को हर्ट किया था......

संजय ने गौरी को गाँव के अड्डे पर ही उतार दिया..," यहाँ से पैदल चली जाओ... लोग सोचेंगे.. इज्ज़ात गावा कर आई है.." संजय ने व्यंगया कसा!
बेचारी गौरी क्या करती... उसका क्या मालूम था की प्यार में इंटेरवाल नही होता... जब भी होता है.. पूरा ही करना होता है... उसका चेहरा उतार गया था.. संजय ने बाइक आगे बढ़ा दी... गौरी थके हुए से कदमों से घर की और बढ़ गयी.

गौरी अजीब कसमकस में थी.. सच था की वो मन ही मन संजय को बहुत चाहने लगी थी.. आख़िर लड़की को चाहिए क्या होता है किसी लड़के में, अच्छा करेअर, सुंदर चेहरा, और तगड़ा बदन. ये सभी कुछ उसको संजय में मिल सकता था. बहुत कम लोग होते हैं जिनमें ये सारी खूबियाँ एक साथ मिल जायें.. पर गौरी को एक चीज़ और चाहिए थी.. जीवन भर साथ निभाने का विस्वास. वो कहाँ से लाती, विस्वास किसी की शकल से नही टपकता;, साथ रहने से, एक दूसरे को जान'ने से आता
है.. गौरी भी अपने हर अंग में सिहरन महसूस कर रही थी, जब संजय ने उसको जगह जगह हाथ लगाया.. एक लड़के के हाथ में और खुद के हाथ में कितना फ़र्क होता है, ये गौरी जान गयी थी.. और संजय के हाथ ने अब तक उसके दिमाग़ में खलबली मचा रखी थी.. वह जल्द से जल्द संजय को जान लेना चाहती थी... ताकि... उसको हां कर दे... उस्स पर क़ब्ज़ा जमाने के लिए... ताकि उसको हां कर दे... अपने हर अंग को झकझोरने के लिए..

जब गौरी से रुका ना गया तो वो निशा के घर जा पहुँची... करीब 6 बजे शाम को...

निशा गौरी को देख कर भुन सी गयी," क्या बात है गौरी? आजकल..."
"कुछ नही.. बस घर पर दिल नही लग रहा था... और सुना.. कल के पेपर की तैयारी कैसी है?"
तभी संजय अपने रूम से बाहर आ गया.. उसने तिरछी नज़र से गौरी को देखा.. गौरी ने नेजरें झुका ली...
"चल तू मेरे कमरे में आ जा!" निशा जितना हो सकता था, गौरी को संजय से दूर रखना चाहती थी..
"निशा! मैं तुझसे एक बात बोलना चाहती हूँ...!" गौरी ने उसका हाथ पकड़ कर कहा..
"क्या?" निशा को गौरी का अंदाज कुछ राज बताने वाला सा लगा....
"वो.. तू कह रही थी.. की संजय.... मुझसे प्यार करता है.... क्या घर वाले.. हमारी शादी को मान जाएँगे?"
"नही! घर वाले तो दूर की बात है.. संजय ही नही मानेगा..!" निशा की बात सुनकर गौरी को सदमा सा लगा..
"क्यूँ?"
"क्यूँ क्या! मैं अपनने भाई को नही जानती क्या.. उसने चंडीगड़ भी एक लड़की से चक्कर चला रखा है... पर मुझे पता है.. वो शादी तो उसी से करेगा....!"
गौरी अवाक रह गयी.. उससे फिर वहाँ रुका ना गया.. वो तुरंत अपने घर वापस आ गयी..

rajaarkey
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Re: गर्ल'स स्कूल

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 08:18


घर आते आते गौरी का संजय के ख़यालों में उलझे उलझे बुरा हाल हो गया था.. पहली बार उसने किसी को दिल दिया था.. पहली बार उसको किसी ने शारीरिक और मानसिक तौर पर अंदर तक छुआ था.. और पहली बार में ही उसका दिल चलनी हो गया, ना वा संजय को देखती, ना संजय से दिल लगाती और ना ही ऐसा होता.. गौरी बाथरूम में जाकर अपने आप को शीशे में देखने लगी.. क्या वा ऐसी नही है की सारी उमर किसी को अपने से बँधसके... संजय को! क्या वो सिर्फ़ उससे खेलना चाहता था.. उसके साथ जीना नही.. ऐसा कैसे हो गया? उसने तो जब भी देखा,, संजायकी आँखों में प्यार ही देखा था.. उसके लिए.. या फिर ये मेरा भ्रम है... ख़यालों में खोए खोए ही वो होटेल के कमरे में जा पहुँची.. कैसे संजय ने उसके रोम रोम को आहलादित कर दिया था.. कैसे संजय के होंटो ने उसके होंटो को पहली बार मर्दाना गर्मी का अहसास कराया था.. पहली बार वो पागल सी हो गयी थी.. जाने कैसे वो खुद को काबू में कर पाई.. नही तो संजय उसके दिल के साथ उसके सरीर को भी भोग चुका होता...
गौरी के हाथ अपनी जांघों के बीच वहीं पहुँच गये जहाँ कल संजय पहुँच गया था.. उसने अपनी पट्टियों को वैसे ही कुरेड कर देखा... पर अब वो मज़ा नही था जो पहले आता था गौरी को," संजय ने ये क्या कर दिया... नही... मैं ऐसा नही होने दूँगी... मैं संजय को अपने पास लेकर अवँगी.. जिंदगी भर के लिए.. चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े..."
सोचते सोचते गौरी बाहर आई और किताबें उठा ली.. पर आज उस'से पढ़ा ही नही जा रहा था.. उसके दिल में ख़ालीपन सा घर कर गया.. शरीर में भी...

अगले दिन जब वा एग्ज़ॅम सेंटर पहुँची तो संजय गेट पर ही खड़ा था.. निशा अंदर जा चुकी थी..
"संजय!" गौरी ने उसके पास खड़ी होकर दूसरी और देखते हुए उसको आवाज़ लगाई..
"अब क्या रह गया है!" संजय अभी तक उस 'से नाराज़ था..
"मैं तुमसे बात करना चाहती हूँ! अपने बारे में.. नही... हम दोनो के बारे में..." गौरी ने आ रही एक लड़की को देखते हुए कहा..
"बोलो!" बाहर से संजय रूखा होने की भरपूर कोशिश कर रहा था... पर उसके दिल की खुशी उसकी आवाज़ से झलक उठी थी... वो भी तो हमेशा के लिए गौरी को अपना बना लेना चाहता था...
"अभी नही! कल हमारे पेपर्स ख़तम हो जाएँगे... तुम कल रात 11 बजे हमारे घर आना.. चुप चाप.. फिर बात करेंगे.." कहने के बाद गौरी ने ज्वाब का इंतज़ार नही किया... वो जान'ती थी.. संजय ज़रूर आएगा...

संजय जाती हुई गौरी के कुल्हों की लचक को देखकर तड़प गया.. रात को बुलाने का मतलब! .... अपने आप ही मतलब निकल कर उसकी आँखें चमक उठी...." बस अब सिर्फ़ कल का इंतज़ार है.. कल रात 11 बजे का...

दिशा और वाणी के दो दिन बाद पेपर ख़तम होने वाले थे.. वो उसके बाद घर जाने वाली थी... महीने भर के लिए.. यूँ तो उनकी मम्मी पापा से लगभग रोज़ ही बात हो जाती थी... पर फोन पर वो लाड प्यार कहाँ था जो वाणी को और दिशा को घर पर मिलता था.. उसकी मम्मी उनसे बात करते करते काई बार रो उठी थी.. वाणी को अब जल्द से जल्द घर जाना था.. बस एक बार पेपर ख़तम हो जायें.," दीदी! मैं अपनी हाफ पॅंट बॅग में रख लूँ..."
"ना वाणी! गाँव में बुरी लगेगी..."
"लेने दो ना दीदी.. मुझे बहुत अच्छी लगती है.. अपनी सहेलियों को दिखावँगी..!"
"मुझे पढ़ने दे.. जो मर्ज़ी कर ले, मेरा दिमाग़ मत खा बस.."

"दीदी! मैं भी तो रात को पढ़ती हूँ.. तुम भी पढ़ लेना. रात को ही..." वाणी ने गर्दन नीची करके.. अपनी आँखों को शरारती ढंग से उपर उठा कर दिशा को देखते हुए कहा!
"बताऊं क्या तुझे?" और दिशा की हँसी छूट गयी.. वाणी को मालूम था.. आज तीसरा दिन था और रात को शमशेर दिशा को पढ़ने नही देगा... वैसे भी 2 दिन बाद दिशा शमशेर को अकेला छोड़कर गाँव जा रही है...
वाणी ने दिशा को चिडाने वाला वही पुराना तराना छेड़ दिया...," तुम्हारे सिवा कुछ ना..."
दिशा चप्पल उठा कर वाणी को सबक सिखाने दौड़ी.. पर वो कहाँ हाथ आने वाली थी.. दरवाजा खोल कर जैसे ही वाणी बाहर निकालने को हुई बाहर से आ रहे टफ से टकरा गयी... भिड़ंत जबरदस्त थी.. वाणी सहम गयी," देखो भैया दिशा... नही! मैं तो आपसे बात ही नही करती.." वाणी अब संभाल गयी थी..
"क्यूँ बात नही करती वाणी.. और दिशा को क्या देखूं.." टफ ने अंदर आते हुए वाणी से पूछा....
"कुछ नही.. वाणी शरारती हो गयी है.." दिशा ने पानी के गिलास वाली ट्रे टफ की और बढ़ते हुए कहा.....
वाणी ने ब्लॅकमेलिंग चालू कर दी," मुझे सबका पता है.. कौन शरारत करता है.. मैं कुछ नही बोलती तो इसका मतलब मुझे ही शरारती साबित करदोगे सब.. मैं सबका रेकॉर्ड रखती हूँ.. हां!"
"जा वाणी चाय बना ले.. तुझे पढ़ना तो है नही.." टफ ने कहा और वाणी चाय बनाए किचन में चली गयी.. शमशेर के आने का समय हो गया था...

"मम्मी! मैं ज़रा विनय के पास जा रहा हूँ" अगर ज़्यादा लेट हो गया तो शायद वहीं सो जवँगा... चिंता मत करना!" अगले दिन रात के करीब 9:00 संजय ने नहा धोकर तैयार होते हुए कहा.

"खाना तो खा जा!" मम्मी की किचन से आवाज़ आई...
"नही! मम्मी, मैं वही खा लूँगा" संजय को पता था; अगर उसके पापा आ गये तो इश्स वक़्त उसको निकलने नही देंगे..
"भैया! ज़रा ये क़ुईसचन तो समझाना एक बार!" निशा ने अपने बेडरूम से आवाज़ दी..
"आता हूँ.." संजय उसके रूम की और बढ़ा...
निशा दरवाजे के पीछे खड़ी हो गयी... जैसे ही संजय कमरे में घुसा.. निशा ने दरवाजा बंद किया और उस 'से चिपक गयी... उसने ब्रा नही पहनी हुई थी.... उसकी चूचियों के निप्पल संजय को अपनी कमर में तीर की भाँति लग रहे थे," छोड़ो निशा! ये क्या हर वक़्त पागलपन सवार रहता है तुम पर.. प्लीज़.. मुझे जाना है....
निशा ने उसकी एक ना सुनी.. अपनी पकड़ और मजबूत करते हुए निशा ने अपने दाँत संजय की कमर में ज़ोर से गाड़ा दिए..
"आ.. मार गयाआ!" संजय ने घूम कर अपने को चुडवाया..," निशा हद होती है.. बेशर्मी की.. तुम्हे पता है.. ये ग़लत है.. फिर भी!"
निशा ने उस पर ताना कसा..," उस्स दिन ग़लत नही था; जब तुमने पहली बार मुझको
नंगा किया था और...."
"मत भूलो निशा.. उस्स दिन तुमने मुझे उकसाया था.." संजय ने अपना बचाव करने की कोशिश की....
निशा ने गुस्से में अपनी नाइटी उतार फैंकी.. उसका एक एक अंग' प्यार की आग में झुलस रहा था.. उसकी चूचियाँ पहले से कुछ मोटी और सख़्त हो गयी थी.. उसके भाई के प्यार से खिली वो काली अब गुलाब से भी मादक हो चुकी थी..," लो आज फिर उकसा रही हूँ... आज क्यूँ नही करते!" उसने दरवाजे की और देखा.. कुण्डी उसने लगा दी थी.. उसकी चूचियाँ उसकी आवाज़ की ताल से ताल मिला कर नाच रही थी..
"पर अब मुझे अहसास हो गया है निशा.. मैं ग़लत था.. मुझे माफ़ कर दो.. मुझे जाना है.." संजय ने अपने हाथ जोड़ कर निशा से कहा..
"ये क्यूँ नही कहते की अब तुम्हे तुम्हारी 'गौरी' मिल गयी है.... मैं किसके पास जाउ.. बोलो.. मेरे यहाँ आग लगती है.. मेरे यहाँ आग लगती है...." निशा ने अपनी पनटी और अपनी छातियों पर हाथ रखकर कहा...," तुमने ही मुझे ये सब सिखाया है.. अब वापस कैसे आ सकते हैं संजय!.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ..." निशा की आँखें भर आई....
"निशा.. प्लीज़.. हम इस बारे में कल बात करते हैं.. अभी मुझे जाने दो प्लीज़.." संजय भी जानता था की वो बराबर का.. बुल्की निशा से कहीं ज़्यादा इस हालत के लिए दोषी है..
निशा ने सुबक्ते हुए अपनी आँखों से आँसू पोंछे और अपनी नाइटी उठा कर संजय को रास्ता दे दिया....
संजय ने बेचारी निगाहों से एक बार निशा को उपर से नीचे देखा और बाहर निकल गया......

संजय के बाहर जाते ही निशा फफक फफक कर रो पड़ी.. आख़िर उसके भाई ने ही उसको इश्स आग में झोंका था.. उसने रह रह कर फेडक रही अपनी चूचियों को अपने हाथ से ही गुस्से से मसल दिया.. पर चैन कहाँ मिलता.. इनकी आग तो कोई मर्द ही बुझा सकता था.. उसके दिमाग़ में हलचल मची हुई थी.. अपनी आग बुझाने के लिए.." मैं क्या कर सकती हूँ..." उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई.. टेबल पर 10 रुपए वाली मोटी मोमबत्ती रखी थी.. उसने मोमबत्ती उठा कर अपनी उंगलियों का घेरा उस्स मोमबत्ती पर बनाया.. मोटी तो उसके भाई के लंड से ज़्यादा ही थी..," क्या ये
काम कर सकती है..?" उसको उस्स पल के लिए वही बेहतर लगा.. पढ़ाई गयी भाड़ में.... वा बाहर गयी," मम्मी मैं सो रही हूँ.. सुबह जल्दी उतूँगी.."
"ठीक है बेटी.. मैं उठा दूँगी.. 4 बजे.. ठीक है?"
"अच्छा मम्मी.." निशा ने अंदर आते ही दरवाजा लॉक कर लिया.. अपनी निघट्य और पनटी उतार दी.. ड्रेसिंग टेबल को खींच कर बेड के सामने कर दिया.... एक रज़ाई को गोल करके उससे अपनी कमर सटा कर मिरर के सामने बैठ गयी..
निशा ने अपनी टाँगों को खोल कर ड्रेसिंग टेबल पर मिरर के दोनो और रख लिया....
उसकी नज़र अपनी आज तक 2 बार ही शेव की गयी चूत पर पड़ी... चूत तो पहले ही जलते कोयले की तरह गोरी से लाल हो चुकी थी.. उसकी खूबसूरती देखकर उसका चेहरा भी लाल हो गया...
मोमबत्ती कुछ जली हुई थी.. वा उठी और टेबल के ड्रॉयर से ब्लेड निकल लाई.. बड़ी मेहनत से उसने मोमबति के अगले भाग को तराश कर सूपदे जैसा सा बना लिया.. वासना की आती देखिए की उसने उस 'सूपदे' में आगे एक प्यारा सा छेद भी बना दिया, मानो उस्स छेद में से रस निकल कर उसकी चूत को ठंडक देगा.... उसने उसके इस कामचलू लंड को गौर से देखा... ऐसा वो पहली बार कर रही थी..
निशा मोम के लंड को अपनी टाँगों के बीच ले आई और चूत के उपर लगाकर शीशे में देखने लगी.... "ये चिकना कैसे हो?..
निशा ने अपनी उंगलियों पर ढेर सारा थूक लगाया और उसको मोम्लंड पर लगाने लगी.. उसकी चूत उसी को देख कर पिघलने लगी.... मोमबत्ती के लंड को उसने अपनी छातियों पर रगड़ा.... मज़ा आया.. वो फीलिंग ले रही थी.. जैसे उसने अपने भाई का लंड उधार ले लिया हो..
निशा उठी और घूम कर अपनी गांद की रखवाली कर रहे अपने मोटे मोटे चूतदों और उनके बीच में कसी हुई गहरी घाटी को देखने लगी.. ये लंड सिर्फ़ उसी का था.. उसने अपने चूतदों के बीच 'लंड' फसा दिया और अपना हाथ हटाकर उसको देखने लगी.. लंड कसी हुई फांकों के बीच में टंगा रह गया.. निशा खुद पर मुश्कुराइ.. वा बेड के उपर झुक कर कुतिया बन गयी.. उसकी चूत की रस भारी पत्तियाँ उभर आई.. बाहर की और...
शीशे में देखते हुए ही उसने अपनी चूत के मुँह पर उसका अपना लंड रखा और उसको रास्ता बताने लगी.. चूत की पत्तियाँ उसके स्वागत में खुल गयी.. निशा ने अपने हाथ से दबाव डाला.. चूत एक बार हुल्की सी बरस कर तरीदार हो चुकी थी... दबाव डालने के साथ साथ वो अंदर होता चला गया.. निशा ने अपने मुँह से हुल्की सी सिसकी निकाली.. ताकि चूत को बेवकूफ़ बना सके.. की लंड ओरिजिनल है.. पर कहाँ.. उसमें वो मज़ा कहाँ था.. चूत ने कोई खास खुशी नही जताई.. पर काम तो पूरा करना ही था... निशा सीधी हो गयी..
फिर से रज़ाई के साथ अपनी कमर लगा कर उसने टांगे खोली और कामचलू हथियार अपनी चूत में फँसा दिया..
निशा ने अपनी आँखें बंद की और अपने भाई को याद करके वो खिलौना अंदर बाहर करने लगी.. ज़ोर ज़ोर से... सिसकियाँ लेलेकर... अब उसको शीशे की ज़रूरत नही थी.. अब उसके सामने उसका भाई था.. उसकी बंद आँखों से वो देख रही थी..
निशा की स्पीड बढ़ती चली गयी.. और करीब 3 मिनिट बाद उस लंड को अपनी चूत में पूरा फँसा कर अकड़ कर सीधी लेट गयी.. आख़िर कार उसने चूत को आज तो बेवकूफ़ बना ही दिया.. पर उसको ओरिजिनल लंड की सख़्त ज़रूरत थी.. चाहे किसी का भी मिले...
रस बहने के काफ़ी देर बाद उसने मोमबत्ती को बाहर निकाला.. और किताबों के पीछे रख दिया... अब वो कम से कम आज तो चैन से सो ही सकती थी.......

करीब 10:50 पर गौरी धीरे से उठी और लिविंग रूम की लाइट ऑन कर दी... उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.... जाने क्या होने वाला था.. पर गौरी फाइनल कर चुकी थी.. संजय को अपनी दुनिया में लाकर रहेगी.. चाहे उसको कुछ भी करना पड़े...
गौरी ने दोनो बेडरूम्स के दरवाज़ों पर कान लगा कर देखा.. कोई आवाज़ नही आ रही थी.... कुछ निसचिंत होकर गौरी ने जाली वाले दरवाजे से अपने दोनों हाथों को सेटाकर उनके बीच से बाहर देखने की कोशिश की...

करीब 1 घंटे से दीवार फाँद कर चारदीवारी के अंदर आ चुका संजय लाइट ऑन होते ही चौकस हो चुका था.. वह कार के पीछे अंधेरे में बैठा था और जैसे ही उसने गौरी को दरवाजे से झँकते देखा.. उसने आगे उजाले में अपना हाथ हिलाया..
"संजय आया हुआ है.. ये देखकर गौरी का दिल और ज़ोर से धड़कने लगा... अभी तक उसको पूरा विस्वास नही था की संजय आएगा भी या नही....
वा बिना आवाज़ किए दरवाजा खोल कर बाहर निकली और घर की दीवार के साथ साथ थोड़ा आगे अंधेरे में जाकर खड़ी हो गयी...
हरी झंडी मिलते ही संजय झुक कर बाउंड्री के साथ साथ गौरी की और बढ़ गया.. और उससे करीब एक फुट जाकर खड़ा हो गया," हां! क्यूँ बुलाया था..?"
गौरी ने मुड़कर दरवाजे की और देखा," मुझे डर लग रहा है संजय.."
"तो वापस जाओ ना.. जाओ?" संजय अब की बार अपनी तरफ से पहल नही करना चाह रहा था........
"क्या हुआ? अभी तक नाराज़ हो क्या.." रात के सन्नाटे में सिर्फ़ कानो तक पहुँचने वाली आवाज़ भी ऐसी लग रही थी मोनो सबको जगा देगी...
"सुनो! .. वो.. क्या घफ़ के पीछे वाली साइड में चलें... वहाँ एक कमरा सा है.." गौरी ने संजय को जी भर कर देखते हुए कहा..
संजय उसकी और देखता रहा.. गौरी ने उसका हाथ पकड़ा और अपने पीछे खींचा...
चोरों की तरह चूपते छुपाते घर के पीछे वाले एक बेकार से कमरे में पहुँच गये.. शायद ये कमरा पहले जानवरों के लिए प्रयोग किया जाता होगा... अब वो पहले से अधिक सेफ थे.. और घर वालों से दूर भी...
संजय ने फिर सवाल किया..," जल्दी बोलो! क्यूँ बुलाया था.. या मैं जाउ..." गौरी को बाहों में लपेटने की इच्छा वो जाने कैसे दबा पा रहा था...
"वो चंडीगड़ वाली कौन है..?" गौरी ने संजय की आँखों में देखते हुए अपने नाख़ून कुतरने शुरू कर दिए..
"चंडीगड़ वाली..?... कौन चंडीगड़ वाली..." संजय की कुछ समझ में ना आया..
"मुझे उल्लू ना बनाओ.. निशा ने सब बता दिया है..." गौरी ने अपना गुस्सा दिखाया..


क्याअ?.! निशा ने तुमको ऐसा कहा.." असचर्या की लकीरें संजय के माथे पर छा गयी.. अपनी वफ़ा दिखाने के लिए संजय ने गौरी के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया...
"क्यूँ क्या ये झूठ है?.. उसने तो मुझे ये भी बताया था की तुम मुझसे शादी करने के बारे में सोच भी नही सकते..!" गौरी ने संजय को थोड़ा और झटका दिया...
"तुम्हे क्या लगता है गौरी.. मेरी आँखों में एक बार देखो तो सही..!" पिछे वाली गली में लगी स्ट्रीट लाइट की रोशनी उनको एक दूसरे की आँखों में झाँकने का मौका दे रही थी...
"मुझे तो नही लगता.. की.. निशा को मुझसे झूठ बोल कर कोई फयडा होगा..!" गौरी की बात में तो डम था.. पर संजय समझ चुका था की निशा ऐसा क्यूँ कर रही है.......
संजय के हाथो से अनायास ही गौरी के हाथ फिसल गये.. कुछ ना बोल कर वा सोचता ही रहा की उसकी ग़लती उसको आज कितनी महनगी पड़ रही है.. बेहन से संबंध बनाने की ग़लती....
"सोच क्या रहे हो.. क्या तुम सिर्फ़ मेरे शरीर से प्यार करते हो..?" गौरी अपनी बात का जवाब हर हालत में चाहती थी...
"गौरी...! अगर मुझे सिर्फ़ तुम्हारे शरीर से प्यार होता तो मैं आज यहाँ ना आता.. ये जानते हुए भी की तुम मुझे हाथ तक नही लगाने दोगि... मैं तुमसे प्यार करता हूँ गौरी.. इसीलिए एक घंटे से यहाँ बैठा हुआ हूँ.. 11 बजने का इंतज़ार मुझसे नही हो सका..
"क्या सच में?" गौरी के चेहरे पर संतोष और प्यार के भाव आसानी से पढ़े जा सकते थे...," पर निशा ने ऐसा क्यूँ कहा?"
गौरी की बात का जवाब संजय के पास था.. पर वह बोलता भी तो क्या बोलता...
"मैं तुम्हे कुछ देना चाहती हूँ.. संजय! इश्स वादे के साथ की अगर तुम हर हालत में मेरे साथ जीने की कसम खाओ तो मैं अपने आपको दुनिया की सबसे ख़ुसनसीब लड़की समझूंगी..."
"मुझे नही पता ऐसा क्यूँ है.. पर मैं तुमको पाने के लिए दुनिया से भीड़ सकता हूँ... दुनिया को झुका सकता हूँ या दुनिया छोड़ सकता हूँ.. मैं तुमसे प्यार करता हूँ गौरी..! दिल से....
गौरी भावुक हो गयी.. उसने अपने गुलाब की पंखुड़ी जैसे सुर्ख लाल होन्ट संजय के गाल पर टीका दिए.. संजय ने कुछ नही किया.. बस आँखें बंद कर ली...
"क्या आज मुझे गले से नही लगाओगे..?" गौरी ने संजय को अपनी बाहों में आने का निमंत्रण दिया..
"नही.. गौरी.. मैं तुम्हे यकीन दिलाना चाहता हूँ की मैं तुम्हारे शरीर से नही.. बुल्की तुम्हारे कोमल दिल से प्यार करता हूँ..."
"आ जाओ ना..!" कहते हुए गौरी ने संजय को अपनी छातियों से चिपका लिया.. संजय ने अपनी बाहें गौरी की कमर में डाल दी.... और उसको अपनी और खींच लिया..
आज गौरी को शरीर में अजीब सी बेचैनी का अहसास हो रहा था.. वह मन ही मन संजय को अपना सब कुछ सौप देना चाहती थी..
"मुझे परसों की तरह पकड़ लो ना... संजू!" गौरी की साँसों से मदहोशी की बू आ रही थी..
"कैसे?"
"जैसे होटेल में..." गौरी ने अपनी छातियों का दबाव बढ़ा दिया....
"पर वो तो तुम्हे पसंद ही नही है.." संजय अपना हाथ गौरी की कमर में फिरा रहा था.. पर कमर से नीचे जाने की उसकी हिम्मत नही हो रही थी....
"मुझे कुछ नही पता.. तुम करो... जैसा तुम चाहते हो तुम करो... मुझे हर जगह से छू लो संजू.. मुझे पूरी कर दो..." गौरी निस्चय कर चुकी थी.. उसको संजय को अपना सब कुछ देकर उसका सब कुछ सिर्फ़ अपने लिए रख लेना है..
"काबू करने की भी तो कोई हद होती है.. और अब तो गौरी का ही निमंत्रण मिल गया था....
संजय के हाथ उसके कमाल से भी ज़्यादा सेक्सी चूटरों की दरार पर अपनी दस्तक देने लगे...
"आ संजू..." गौरी ने अपनी एडियीया उठा ली, ताकि संजय के हाथ जहाँ जाना चाहें वहाँ तक जा सकें... उसने संजय के होंटो को अपने होंटो की तपिश का अहसास कराया....
संजय ने जीभ उसके मुँह में डाल दी.. और उंगलियाँ उसकी गांद में.. उसकी चूत के द्वार तक..
"गौरी मदहोशी में उछाल पड़ी... उसकी आइडियान और उपर उठ गयी.. उसकी टाँगें और ज़्यादा खुल गयी....
"कौन है?" अचानक राज ने पिछे से आकर दोनो के होश उड़ा दिए... राज ने संजय का गला पकड़ लिया.....
"गौरी की घिग्गी बाँध गयी.. संजय ने एक ज़ोर का झटका राज के हाथों को दिया.. और एक ही झटके में दीवार कूद कर भाग गया........

राज ने गौर से गौरी को देखा.. उस्स प्यार की प्यासी गौरी के लाल चहरे का रंग.. अचानक ऊड गया... वह नज़रें झुका कर नीचे देखने लगी.......
"वह उतनी शर्मिंदा नही थी.. जितना राज उसको करने की सोच रहा था.....
"शरम नही आई तुझे रात को..... ऐसे बाहर आकर.." राज ने अपना दाँव लगाने की सोची..
"नही.. मुझे उतनी शर्म नही आई.. जितनी आपको आनी चाहिए.. अपनी बीवी के होते हुए अंजलि दीदी के साथ ग़लत होने के लिए.." गौरी ने नहले पर दहला मारा और वहाँ से बाहर निकल गयी.......
पर उसको अचंम्बुआ था... दुनिया से भिड़ने की कसम खाने वाला संजय.. एक आदमी के सामने भी ठहर ना पाया....
"निशा सही कह रही थी... वो ऐसा ही है... गौरी को रोना सा आ गया... वह अपने बिस्तेर पर गिरकर सोचने लगी..

मनु 2 दिन बाद भी वाणी की खुमारी को अपने दिमाग़ से नही निकल पा रहा था.. रह रह कर उसकी हँसी उसके कानो में गूँज उठती.. और इसके साथ ही अकेले बैठे मनु के होंटो पर मुस्कान तेर जाती.. क्या बकरा बना था वो उस्स दिन..
मनु किताब बंद करके चेर से अपना सिर सटा कर बैठ गया.. आज तक उसने कभी किसी लड़की में रूचि नही दिखाई थी.. स्कूल की लगभग सभी लड़कियाँ उसके लिए दीवानी थी.. उसका दिमाग़ जो इतना तेज था.. यहाँ तक की स्कूल के टीचर उसको मिस्टर.
माइंड बुलाते थे... उसके चेहरे से भोलापन और शराफ़त एक राह चलते को भी दिख जाती थी... सुंदर गोल चेहरा.. गोरा रंग.. मोटी मोटी आँखें और हर दिल अज़ीज स्वाभाव उसकी विशेषतायें थी जो हर किसी को उसका दोस्त बना देती थी.. पहली नज़र में ही हर लड़की उसको देखकर उसको हेलो बोलने को तरस जाती थी.. फिर. स्कूल की तो बात ही कुछ और थी.. सब उसके ईईटिअन बन'ने की बात ज़ो रहे थे....
कोई लड़की उसके पढ़ाई के प्रति जुनून को नही डिगा सकी थी.. सिवाय वाणी के...
"मानी!" मनु ने मानसी को पुकारा.
"आई भैया!" मानी अगले मिनिट ही उसके कमरे में थी..
"यहाँ बैठहो, मेरे पास!" मनु ने साथ रखी चेर की तरफ इशारा किया..
मानसी कुर्सी पर बैठ कर मनु के चेहरे को देखने लगी," क्या है भैया?"
"मानी! क्या ... वो कल सच में ही मैं बहुत बुरा लग रहा था.. उल्टी शर्ट में..
"नही तो.. मुझे तो नही लगे.. क्यूँ?" मानसी की समझ ना आया.. मनु कल की बात आज क्यूँ उठा रहा है..
"नही.. बस ऐसे ही..... फिर वो लड़की ऐसे क्यूँ हंस रही थी.. घर में तो किसी से भी चूक हो सकती है.. आक्च्युयली मैने रूम में वो शर्ट..."
"ओह! छोड़ो भी.. वो तो ऐसे ही है.. स्कूल में भी सारा दिन ऐसे ही खुश रहती है.. वो तो मौका मिलने पर टीचर्स तक को नही बक्षति.. पर पता नही.. फिर भी उससे सभी इतना प्यार करते हैं.. कोई भी बुरा नही मानता उसकी बात का..." मानसी पता नही वाणी का गुणगान कर रही थी या उसकी आलोचना... पर मनु उसके बारे में सब जान लेना चाहता था..," कहाँ रहती है.. वाणी..?"
"अरे यही तो रहती है.. सेक. 1 में ही... अगले रोड पर 1010 उन्ही का तो घर है.. वो कोने वाला! पर क्यूँ पूछ रहे हो?" मानसी ने अपने कमीज़ के कोने को मुँह से चबाते हुए तिरछी नज़र से मनु को देखा.. उसकी समझ में कुछ कुछ आ रहा था...
"नही.. कुछ नही.. मुझे क्या करना है उसके घर का.. मैं तो बस ऐसा ही पूछ बैठा था.." मनु अपनी बेहन को अपने दीवानेपन से रूबरू कैसे करता..

"ठीक है भैया! अब मैं जाउ..?" मानसी ने खड़े होते हुए पूछा..
"ठीक है.. जाओ.."
"एक मिनिट रूको...! वो आएगी क्या फिर कभी.... यहाँ?"मनु वाणी को एक बार और देखना चाहता था...
"नही तो.. वो तो आज अपने घर जा रही है.. हमारे एग्ज़ॅम ख़तम हो गये ना...!"
"क्या?.." फिर मनु अपने आपको संभालता हुआ बोला," तुम मिलॉगी नही क्या उससे जाने से पहले?"
"क्यूँ?" मानसी समझ रही थी.. वाणी का जादू उसके भाई पर भी छा गया है.."
"अरे हर बात में क्यूँ क्यूँ करती रहती है.. इतने दीनो बाद आएगी वापस.. तुम्हे मिलकर आना चाहिए...
आख़िर तुम्हारी दोस्त है वो..."
"फिर क्या हुआ भैया? हम आज ही तो मिले थे.. हुँने तो एक महीने के लिए एक दूसरे को गुड बाइ बोल भी दिया है... मुझे नही जाना.. अब मैं जाउ..?"
"जा... ख्हम्ख मेरा टाइम वेस्ट कर दिया.." खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे के अंदाज में मनु बड़बड़ा उठा...
मानसी बाहर चली गयी.. बाहर जाते ही उसको वाणी का प्यारा चेहरा याद आ गया... उसका भाई उसका दीवाना हो गया लगता था.. वाणी के बारे में पूछते हुए उसकी आँखों में चमक और चेहरे पर शरम का अहसास इश्स हक़ीकत को बयान कर रही थी की कुछ तो ज़रूर है उसके दिल में...
सोचकर मानसी मुस्कुरा पड़ी.. कितनी अच्छी जोड़ी लगती है दोनो की... वा उल्टे पाँव मनु के कमरे में गयी..," भैया मुझे वाणी से मिलने जाना है.. एक बार साथ चल पड़ोगे क्या??"
"कक्यू..न मैं क्या करूँगा..?" फ्री में लगी जैसे लाखों की लॉटरी के बारे में सोचकर उसकी ज़ुबान फिसल गयी.. जो उसका दिल कहना चाह रहा था, कह नही पाई...
"अकेली तो मैं नही जवँगी.. उनके कुत्ते से मुझे बड़ा दर लगता है... ठीक है रहने दो.. कोई खास काम भी नही था..."
मानसी के मुड़ते ही मनु ने उसको रोका," मैं तोड़ा नही लून... !"
"अरे नहाए धोए तो बैठे हो...!"
"नही प्लीज़.. बस 10 मिनिट लगवँगा.. मुझे उससे बहुत डर लगता है.. जाने क्या कह देगी.."
"ओ.क.!" मानसी हँसने लगी.....

दिशा और वाणी अपना समान पॅक करके बैठी थी...," वाणी! जल्दी से नहा ले नही तो उनके आने के बाद देर लगेगी.. तेरा दिल नही कर रहा क्या घर जाने का?" दिशा ने वाणी के कंधे पर हाथ रखा...
वाणी अपना कंधा उचका कर खड़ी हो गयी..," कर रहा है दीदी... बहुत मन कर रहा है.. पर जीजू अब्भी तक नही आए..!"
"तू नहा तो ले पहले.. और वो अभी आने ही वाले होंगे... आते ही निकल पड़ेंगे..." दिशा ने उसको बाथरूम में धक्का दे दिया....
तभी दिशा का मोबाइल बाज उठा... शमशेर का फोन था..
"क्या बात है आना नही क्या?" दिशा ने मीठा गुस्सा करते हुए बोली..
"आ रहा हूँ ना मेरी जान.. थोड़ा फँस गया हूँ.. एक घंटा लगेगा. वो तुम्हे अपना समान लेना था ना... सॉरी.. अगर बुरा ना मानो तो तुम खुद ही ले आओ तब तक.. नही तो और लेट हो जवँगा.."
"पहले कभी लाए हो.. जो आज लाओगे.. मैं क्या तुम्हारी शेविंग क्रीम नही लाती.. ठीक है.. फोने रखो.. मैं अभी ले आती हूं जाकर.."
"बाइ जान.." कहकर शमशेर ने फोने काट दिया..

दिशा ने दरवाजा खोलही था की दरवाजे पर मानसी और एक लड़के को देखकर चौंक पड़ी..," मानसी तुम!"
"हां दीदी.. मुझे वाणी से मिलना था.. फिर तो ये चल! जाएगी.. ये मेरे भैया हैं..!"
मनु ने दिशा को दोनो हाथ जोड़कर नमस्ते किए.. हालाँकि वो उससे करीब साल भाई छोटी थी.. पर मेक उप में वो कुछ बड़ी लग रही थी...
दिशा ने मनु को गौर से देखा.. बड़ा ही भोला और शकल से ही किताबी कीड़ा लग रहा था..
"मानसी! मेरे साथ एक बार मार्केट तक चलेगी क्या..?"
"क्यूँ नही दीदी.. भैया बाइक लेकर आए हैं.. इनको ले चलें.."
"दिशा ने मानसी का हाथ दबा कर कहा," नही! बस दो मिनिट में आ जायेंगे... आप अंदर बैठो तब तक.. हम अभी आए..." दिशा ने मनु की और देखकर कहा और मानसी का हाथ पकड़ कर खींच ले गयी...
"दीदी.. भैया को ले ही आते..!"
"अरे कुछ पर्सनल सामान लाना है... समझा कर...

मनु की ब्चैन निगाहे कमरे के कोने कोने तक अपने होश उड़ाने वाली की तलाश में भटकने लगी.. पर उसको दीवार पर टाँगे वाणी के 24'' बाइ 36'' के मुस्कुराते हसीन फोटो के अलावा कोई निशान दिखाई ना दिया.. वाणी मनु की और ही देख रही थी.. मानो कह रही हो," मैं तुम्हारी ही तो हूँ..."
मनु उसकी बिल्लौरी आँखों में झँकते हुए सपनों की दुनिया में खो गया," आइ लव यू वाणी!" उसके मुँह से अनायास ही निकल पड़ा.. इसके साथ जिंदगी के हसीन सपनो में खोने को मिल जाए तो कोई कुछ भी खोने को तैयार हो सकता है.. कुछ भी.. वाणी मानो एक खूबसूरत लड़की ही नही थी.. कोयल जैसी आवाज़, अपनी सी लगने वाली आँखें, चिर परिचित मुस्कान, खालिस दूध जैसा रंग और सुबह गुलाब पर पड़ी ओस की बूँदों की रंगत वाले दानेदार लज़ीज़ होंटो की मल्लिका; वाणी सिर्फ़ एक सपनो की राजकुमारी ही नही थी.. एक जादूगरनी थी, जिसका जादू सब पर छाया था; किसी ना किसी रूप में.. सबको अपनी पहली मुस्कुराहट से अपना बना लेने वाली वाणी को अब अजीब नही लगता था जब कोई उसमें यूँ डूब जाता.. उसकी तो आदत सी हो गयी थी.. सबको अपना मान कर मज़ाक करना.. किसी की आँखों का बुरा ना मान'ना; चाहे वो आँखें प्यार की हों या हवस के भूखे सैयार की.. कुछ लड़के तो उसकी उनकी तरफ उछली गयी एक प्यारी मुस्कान को ही अब तक सीने में छिपाए बैठे थे, और मान रहे थे की उनके लिए कोई चान्स है शायद; रास्ते बंद नही हुए हैं.. और बेचारा मनु भी इसी विस्वास की ज्योत मान में जगाए.. यहाँ आया था!
एक और बात वाणी में खास थी.. जाने क्या बात थी की यूयेसेस पर कभी कोई ताना नही मारता था.. आते जाते.. उसका जादू ही ऐसा था की उसके बारे में मान में चाहे कोई कुछ सोच भी लेता.. पर अपनी आरजू को कभी गालियों की शकल दे कर बाहर नही निकल पता था.. सब भीगी बिल्ली बन जाते थे.. ऊस शेरनी को देख कर....
अचानक गोली सी आवाज़ सुनकर वाणी के फोटो के पास खड़ा मनु गिरते गिरते बचा..
" डीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई"

आवाज़ सुनते ही मनु तस्वीर से निकल कर वापस लौट आया.. हक़ीकत की दुनिया में.. पर उसके हलक से आवाज़ ही ना निकली.. आवाज़ कहाँ से आई है वो तभी समझ सका जब आवाज़ ने उसके कानो में मिशरी सी घोल दी...
"दी... टॉवेल दे दो जल्दी.. मैं ले कर आना भूल गयी थी.."
मनु की नज़र कमरे के साथ दूसरे कमरे के दरवाजे पर गयी थी.... आवाज़ शर्तिया उसी हसीना की थी....
पर मनु क्या कहता.. वो क्या करता.. वाणी की आवाज़ सुनते ही उसका गला बैठ गया.. उसको सामने से देखने के एक बार फिर मिले चान्स ने उसको असमंजस में डाल दिया...
"दीदी! देख लो.. मैं ऐसे ही आ जाउन्गि बाहर.. नंगी.. मुझे फिर ये मत कहना की इतनी बड़ी हो गयी.. अककाल नही आई.. मैं आ जाउ.. ऐसे ही..."

ये बात वाणी के मुँह से सुनकर मनु की कमर में पसीने की लहर करेंट के झटके की तरह दौड़ गयी.... क्या वाणी सचमुच ऐसे ही आ जाएगी.. नही नही..! मैं उसको शर्मिंदा होते नही देख सकता..," तुम्हारी दीदी यहाँ नही है वाणी...!"
"कौन?.. दीदी कहाँ है....."
कुछ जवाब ना मिलता देख वाणी शुरू हो गयी..," बचाओ! बचाओ!... चोर... चोर.. चोर!"
मनु को उसकी इश्स बात पर गुस्सा भी आया.. और हँसी भी.."
"मैं हूँ वाणी... मनु.." फिर धीरे से बड़बड़ाया.. तुम्हारा मनु.. वाणी!"
"मनु... कौन मनु.. दीदी कहाँ हैं.." वाणी अभी तक बाथरूम के अंदर ही थी...
मनु दरवाजे के करीब जा कर बोला..," मानसी का भाई! मानसी लेकर आई थी.. वो और तुम्हारी दीदी बाहर गयी हैं..." अपना नाम तक याद ना रखने पर मनु की सूरत रोने को हो गयी...
"मानसी! .... कौन मानसी.?" कहक्र वाणी खिलखिला कर हंस पड़ी....," मुझे पता है बुधहू! मनु.. उल्टी शर्ट पहन'ने वाला मनु.." कहकर फिर वाणी ने मनु पर बिजली सी गिरा दी.. हंस कर...
"बाहर टवल पड़ा होगा.. दे दोगे प्लीज़!" वाणी ने अपना हाथ बाहर निकलते हुए कहा..
"क..क्कऔन?... मैं.." मनु सच में पसीना पसीना हो गया.. क्या मैं उसको टवल दूँगा!
"नही नही.. तुम क्यूँ दोगे? मैं तो अपने कुत्ते हार्डी को बोल रही हूँ.. ज़रा जाकर उसकी चैन खोल दो.. बेचारा आकर टवल दे जाएगा..
बात मनु के दिल पर लगी.. जब वाणी को शरम नही आ रही तो मैं क्यूँ शरमओन.. उसने बालकोने से टवल उतारा और कमरे में घुस गया...
"इधर मत देखना.. इधर मत देखना..!" वाणी ने प्यार भारी वाणी में मनु को निर्देश दिया..
मनु की तो घिग्घी बँधी हुई थी.. ये लड़की है या शैतानी की पूडिया..," लो नही देख रहा.." कहकर उसने अपना मुँह फेरा और बाथरूम के दरवाजे की और अपना हाथ बढ़ा दिया.. वाणी ने अपनी एक आँख से बाहर देखा और झटके के साथ तौलिया अंदर खींच लिया....
पर किस्मत को कहें आ भगवान को.. दोनो को उनकी ये दूरी शायद मंजूर नही थी.. तौलिया बाहर लगी वॉशबेसिन के साथ हॅंगर पर गाड़ि एक कील में उलझ गया था... जैसे ही वाणी ने टवल को अपनी और खींचा वाणी को एक झटका सा लगा और वो पैर फिसल कर बाथरूम में धदाम से गिर पड़ी.. और दर्द के मारे उसकी चीख निकल गयी.. चीख में अत्यंत ही पीड़ा भारी वेदना थी.. लगभग एक मिनिट तक तो वाणी को साँस ही ना आया.. चीख लगातार चालू थी..
मनु का दिमाग़ सुन्न हो गया.. क्या करूँ.. किसको बोलूं... वा दरवाजे के बाहर ही ठिठक कर तड़प्ता हुआ बोला," वाणी.. क्या हुआ?? ठीक तो हो ना....?

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