मदन वर्षा को बाहों में भरना चाहता है लेकिन डर रहा है कि कहीं वर्षा को फिर से कुछ बुरा ना लग जाए
“तुम मेरे सब कुछ हो, मेरा तुम्हारे शिवा कोई और नही है, मुझे कहीं ले चलो मदन, यहा से बहुत दूर जहा हम शांति से रह सकें”
“तो तुम अब मेरे साथ चलने को तैयार हो”
“मैने मना कब किया मदन, मैं तो….”
तभी मदन हाथ का इशारा करके वर्षा को टोक देता है
“रूको”
“क्या हुवा मदन”
“श्ह्ह…… थोड़ी देर चुप रहो”
वर्षा बिल्कुल चुप हो जाती है और मदन को हैरानी भरी नज़रो से देखती है
“तुम्हे कुछ सुनाई दे रहा है” ---- मदन ने धीरे से पूछा
“ह्म्म…. हाँ किसी के चीखने की आवाज़ आ रही है”
“मुझे लगा मुझे वहाँ हो रहा है”
“मुझे डर लग रहा है मदन ये आधी रात को कौन चीन्ख रहा है, ऐसा लग रहा है जैसे कोई रोते हुवे चीन्ख रहा है”
“कुछ समझ नही आ रहा ?”
“तुमने क्या पहले भी यहा ऐसी आवाज़ सुनी है”
“नही वर्षा, वैसे भी मैं पीछले 3 दिन से ही रात को खेत में रुक रहा हूँ, पहले पिता जी ही रुकते थे, क्या मैं देख कर आउ ?”
“मदन मुझे बहुत डर लग रहा है, मुझे घर जाना है”
“अरे डरने की क्या बात है, मैं तो तुम्हारे साथ हूँ ना”
तभी उन्हे इतनी ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है कि मदन भी घबरा जाता है. वर्षा बैठे बैठे मदन को जाकड़ लेती है
“ये क्या हो रहा है यहा मदन ? मुझे बहुत डर लग रहा है”
“प…प…पता नही वर्षा, मैं खुद हैरान हूँ, 3 दिन से तो मैने कुछ नही सुना आज ना जाने क्या हो रहा है, चलो मैं तुम्हे घर तक छ्चोड़ आता हूँ, बाद में आकर देखूँगा कि क्या चक्कर है”
“कोई ज़रूरत नही है मदन कुछ देखने की ऐसा करो तुम भी घर जाओ, सुबह आकर देखना जो देखना हो”
“अरे नही वर्षा खेतो को छ्चोड़ कर मैं कहीं नही जा सकता मेरे अलावा यहा कोई नही है”
इधर खेत के दूसरे कोने में 3 घंटे पहले का दृश्या………….
“किशोर ये सब क्या है ?”
“क्या हुवा अब”
“मुझे ये सब अछा नही लगता, तुम कब पिता जी से मिल कर हमारी शादी की बात करोगे”
“अरे शादी भी कर लेंगे रूपा, इतनी जल्दी क्या है, अभी इन उभारों को थोड़ा दबा लेने दो ?”
“मेरी शादी जब कहीं और हो जाएगी ना तब तुम्हे पता चलेगा, जल्दी क्या है….. हा, दूर रखो अपने हाथ” ---- रूपा ने किशोर के हाथो को दूर झटक कर कहा
“अरे छ्चोड़ो ना रूपा… हम क्या आज लड़ाई करने के लिए मिले हैं ?, देखो कितनी प्यारी चाँदनी रात है, चलो कुछ करते हैं”
“क्या करते हैं, शादी से पहले मैं अब कुछ और नहीं करूँगी समझे”
“कैसी बाते करती हो रूपा जब हमें शादी करनी ही है तो क्या शादी से पहले, क्या शादी के बाद. वैसे भी तुम्हारे उभारो को दबाने के अलावा मैने अब तक किया ही क्या है और मुस्किल से 3-4 बार तुम्हारे होंटो का चुंबन लिया है, अब तुम ही बताओ कितना कुछ हुवा है हमारे बीच जो ऐसी बाते कर रही हो”
“मुझे कुछ नही पता, तुम जल्दी पिता जी से मिल कर शादी की बात करो वरना”
“वरना क्या रूपा ?”
“वरना मैं तुमसे मिलना बंद कर दूँगी”
“उफ्फ कैसी बाते करती हो तुम, छ्चोड़ो ना ये सब, मैं क्या शादी से मना कर रहा हूँ, देखो आज मुस्किल से तन्हाई मिली है वो भी इसलिए की आज वो बेवकूफ़ मदन खेत में है, उसका बापू होता तो आज ये पल हमें नसीब नही हो पता, वो तो रात भर खेत में घूमता रहता है”
“तुम्हे ये सब कैसे पता, क्या तुम पहले भी यहा आए हो”
“अरे नही आज पहली बार ही आया हूँ, लोगो से सुना है कि मदन का बापू खेतो की बड़े आछे से रखवाली करता है”
“पर किशोर पता नही क्यों मुझे यहा कुछ अजीब सा लग रहा है”
“पहली बार रात को खेत में आई हो ना इसलिए, और कुछ नही है…..अछा छ्चोड़ो ये सब आज इन उभारो का रस पीला दो ना”
“चुप रहो मैने कहा ना अब शादी से पहले कुछ और नही”
“छ्चोड़ो ये मज़ाक रूपा, आओ ना ऐसे ज़िद मत करो”
ये कह कर किशोर रूपा के उभारो को थाम लेता है और उन्हे मसालने लगता है
“तुम बहुत बदमास हो”
“जैसा भी हूँ तुम्हारा हूँ रूपा, अछा एक बात बताओ आज मेरा वो देखोगी”
“धत्त…. मैं पागल नही हूँ”
“क्या वो बस पागल ही देखते हैं”
“मुझे नही पता मुझ से ऐसी बाते मत करो”
“अरे तुम तो शर्मा रही हो, शादी के बाद भी तो देखोगी”
“तब की तब देखेंगे, छ्चोड़ो मुझे”
“अभी तो दबाना सुरू किया है, बाहर निकाल लो ना, एक बार इनका रस तो पी लेने दो, मुझे कब तक प्यासा रखोगी ?”
“जिस दिन पिता जी से शादी की बात करोगे उस दिन तक”
प्यार हो तो ऐसा compleet
Re: प्यार हो तो ऐसा
“अरे तब ये तन्हाई ना मिली तो, रोज रोज ऐसा मोका कहा मिलता है”
“मुझे कुछ नही पता”
“अछा चलो मैं अपना बाहर निकाल रहा हूँ, मैं तुम्हारी तरह डरता नही हूँ”
“नहीं ऐसा मत करो वरना मैं चली जाउन्गि”
“पागल हो क्या ? ऐसा कब तक चलेगा”
“तभी तो कहती हूँ कि शादी कर लो”
“शादी भी कर लेंगे रूपा समझती क्यों नही…. अछा ठीक है मैं कल ही तुम्हारे पिता जी से मिलता हूँ”
“सच कह रहे हो”
“और नही तो क्या, आज तक क्या मैने कभी झूठ बोला है ?”
“वो तो है पर…”
“पर क्या ?….चलो ना कुछ करते हैं कब तक यू ही तड़पेंगे”
“किशोर नहीं यहा मुझे डर लग रहा है… फिर कभी देखेंगे”
“अरे डरने की क्या बात है, पूर्णिमा की रात है चारो तरफ रोशनी है, अंधेरा हो तो डरे भी, ऐसी रोशनी में कैसा डर, लो पाकड़ो इसे”
किशोर रूपा का हाथ खींच कर अपने लिंग पर रख देता है और रूपा उसे डरते डरते हाथ में थाम लेती है
“इसे पहली बार छू रही हो, कुछ कहो तो सही कैसा है”
“ये ऐसा ही होता है क्या”
“हाँ रूपा ऐसा ही होता है, आचे से उपर से नीचे तक छुओ ना, शरमाती क्यों हो ?. शादी से पहले इसे आछे से जान लो ताकि शादी के बाद आराम से मज़े कर सको”
“धत्त… बेसराम कहीं के”
“चलो रूपा कुछ करते हैं”
“क्या करते हैं ?”
किशोर रूपा को बाहों में भर लेता है और उसके कान में कहता है, चलो आज संभोग करते हैं
“पागल हो गये हो क्या, मुझे यहा इतना डर लग रहा है और तुम्हे ये सब सूझ रहा है, मुझे लगता है हूमें यहा ज़्यादा देर नही रुकना चाहिए, चलो यहा से”
“अरे पगली ऐसा मोका रोज रोज कहाँ मिलता है आओ ना”
ये कह कर किशोर रूपा को बाहों में लिए लिए ज़मीन पर लेटा देता है और झट से उसका नाडा खोल कर उसकी सलवार नीचे सरका देता है
“किशोर नही”
“चुप रहो अब, वरना में कल तुम्हारे पिता जी से नही मिलूँगा, करनी है ना शादी तुमने मुझ से या फिर…”
“करनी है किशोर पर..”
“तो पर क्या ? .. चलो अछी पत्नी बन कर दीखाओ”
“नहीं किशोर रूको ना, मुझे डर लग रहा हैं यहा, फिर कभी करेंगे, आज ही करना क्या ज़रूरी है”
पर किशोर रूपा की एक नही सुनता और अपने लिंग को उसकी योनि पर रख कर ज़ोर लगा कर लिंग को उसके अंदर धकैल देता है
“आआईयईईईईईई” --- रूपा चील्ला उठती है
“रुक जाओ किशोर दर्द हो रहा है”
“एक मिनूट, मैं तोड़ा थूक लगाता हूँ, फिर आराम से होगा”
“किशोर मुझे यहा बहुत डर लग रहा है, तुम किशी और दिन कर लेना, मैं तुम्हे नही रोकूंगी, अभी चलो यहा से”
“इतनी प्यारी चाँदनी रात में कोई डरता है क्या, देखो अब चिकना हो गया है, अब आराम से अंदर जाएगा”
ये कह कर किशोर खुद को फिर से रूपा के अंदर धकैल देता है
“मुझे कुछ नही पता”
“अछा चलो मैं अपना बाहर निकाल रहा हूँ, मैं तुम्हारी तरह डरता नही हूँ”
“नहीं ऐसा मत करो वरना मैं चली जाउन्गि”
“पागल हो क्या ? ऐसा कब तक चलेगा”
“तभी तो कहती हूँ कि शादी कर लो”
“शादी भी कर लेंगे रूपा समझती क्यों नही…. अछा ठीक है मैं कल ही तुम्हारे पिता जी से मिलता हूँ”
“सच कह रहे हो”
“और नही तो क्या, आज तक क्या मैने कभी झूठ बोला है ?”
“वो तो है पर…”
“पर क्या ?….चलो ना कुछ करते हैं कब तक यू ही तड़पेंगे”
“किशोर नहीं यहा मुझे डर लग रहा है… फिर कभी देखेंगे”
“अरे डरने की क्या बात है, पूर्णिमा की रात है चारो तरफ रोशनी है, अंधेरा हो तो डरे भी, ऐसी रोशनी में कैसा डर, लो पाकड़ो इसे”
किशोर रूपा का हाथ खींच कर अपने लिंग पर रख देता है और रूपा उसे डरते डरते हाथ में थाम लेती है
“इसे पहली बार छू रही हो, कुछ कहो तो सही कैसा है”
“ये ऐसा ही होता है क्या”
“हाँ रूपा ऐसा ही होता है, आचे से उपर से नीचे तक छुओ ना, शरमाती क्यों हो ?. शादी से पहले इसे आछे से जान लो ताकि शादी के बाद आराम से मज़े कर सको”
“धत्त… बेसराम कहीं के”
“चलो रूपा कुछ करते हैं”
“क्या करते हैं ?”
किशोर रूपा को बाहों में भर लेता है और उसके कान में कहता है, चलो आज संभोग करते हैं
“पागल हो गये हो क्या, मुझे यहा इतना डर लग रहा है और तुम्हे ये सब सूझ रहा है, मुझे लगता है हूमें यहा ज़्यादा देर नही रुकना चाहिए, चलो यहा से”
“अरे पगली ऐसा मोका रोज रोज कहाँ मिलता है आओ ना”
ये कह कर किशोर रूपा को बाहों में लिए लिए ज़मीन पर लेटा देता है और झट से उसका नाडा खोल कर उसकी सलवार नीचे सरका देता है
“किशोर नही”
“चुप रहो अब, वरना में कल तुम्हारे पिता जी से नही मिलूँगा, करनी है ना शादी तुमने मुझ से या फिर…”
“करनी है किशोर पर..”
“तो पर क्या ? .. चलो अछी पत्नी बन कर दीखाओ”
“नहीं किशोर रूको ना, मुझे डर लग रहा हैं यहा, फिर कभी करेंगे, आज ही करना क्या ज़रूरी है”
पर किशोर रूपा की एक नही सुनता और अपने लिंग को उसकी योनि पर रख कर ज़ोर लगा कर लिंग को उसके अंदर धकैल देता है
“आआईयईईईईईई” --- रूपा चील्ला उठती है
“रुक जाओ किशोर दर्द हो रहा है”
“एक मिनूट, मैं तोड़ा थूक लगाता हूँ, फिर आराम से होगा”
“किशोर मुझे यहा बहुत डर लग रहा है, तुम किशी और दिन कर लेना, मैं तुम्हे नही रोकूंगी, अभी चलो यहा से”
“इतनी प्यारी चाँदनी रात में कोई डरता है क्या, देखो अब चिकना हो गया है, अब आराम से अंदर जाएगा”
ये कह कर किशोर खुद को फिर से रूपा के अंदर धकैल देता है
Re: प्यार हो तो ऐसा
“आअहह” --- रूपा फिर दर्द से कराह उठती है
“इतनी ज़ोर से चील्लाने की क्या ज़रूरत है, कोई सुन लेगा”
“मैं कब चील्लाइ किशोर अब दर्द में क्या कोई कराह भी नही सकता ?”
तभी उन्हे बहुत ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है जिसे सुन कर दोनो घबरा जाते हैं
किशोर ये कोई और चील्ला रहा है, वो मैं नही थी
“स्श्ह्ह्ह चुप रहो”
वो चील्लाहत उन्हे अपने करीब आती महसूस होती है और दोनो थर थर काँपने लगते हैं
“किशोर ये क्या है, मुझे बहुत डर लग रहा है, मैं कह रही थी ना कि यहा मुझे कुछ अजीब लग रहा है, चलो जल्दी यहा से”
तभी उन्हे किसी के भागने की आहट सुनाई देती है
“किशोर…” --- रूपा कुछ कहना चाहती है लेकिन किशोर उसके मूह पर हाथ रख देता है
“पागल हो क्या ? थोड़ी देर चुप नही रह सकती, बिल्कुल चुप रहो” --- किशोर रूपा के मूह पर हाथ रखे हुवे उसके कान में धीरे से कहता है
लेकिन तभी उन्हे फिर से बहुत ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है
“रूपा अपने कपड़े ठीक करो, पर आराम से, शांति से, कोई आवाज़ मत करना”
“ठीक है” --- रूपा अपनी गर्दन हिला कर इशारा करती है
किशोर भी अपने कपड़े ठीक करने लगता है
तभी उन्हे अपने बहुत करीब किसी के कदमो की आहट सुनाई देती है. उन्हे ऐसा लगता है जैसे कोई उनकी तरफ आ रहा है
“रूपा मेरी बात ध्यान से सुनो, चाहे कुछ हो जाए पीछे मूड कर मत देखना और जितना हो सके उतनी ज़ोर से भागना, ठीक है, और हाँ मेरा हाथ मत छोड़ना” --- किशोरे रूपा के कान में कहता है
और ये कह कर वो रूपा का हाथ पकड़ कर उसे वाहा से भगा ले चलता है, दोनो बिना पीछे देखे भागते चले जाते हैं
भागते भागते किशोर एक पत्थर से टकरा जाता है और लड़खड़ा कर गिर जाता है, रूपा गिरते गिरते बचती है
रूपा तुम भागो में आ रहा हूँ, मेरा अंगूठा चिल गया है, ये रास्ता सीधा खेतो से बाहर जा रहा है, तुम जल्दी यहा से निकलो
“मैं तुम्हे छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि किशोर, तुम्हारे साथ ही जाउन्गि जहा जाना है”
चीखने की आवाज़ बढ़ती ही जा रही है
किशोर मुस्किल से खड़ा होता है और रूपा का हाथ थाम कर फिर से भागने लगता है
इधर वर्षा, मदन को समझा रही है कि वो आज रात घर चला जाए, पर वो नही मान रहा
“ऐसे डर कर भागना अछा नही लगता वर्षा, क्या पता ये किसी का मज़ाक हो”
“ये बहुत भयानक आवाज़ है मदन, ये मज़ाक नही हो सकता”
“जो भी हो पर मैं यहीं रहूँगा, चलो तुम्हे घर छ्चोड़ आता हूँ”
तभी वर्षा को कुछ ऐसा दीखता है जिसे देख कर वो सहम जाती है
“मदन पीछे मूड कर देखो” --- वर्षा डरी हुई आवाज़ में कहती है
मदन पीछे मूड कर देखता है
“उसे बहुत दूर 2 साए दीखाई देते हैं”
“वर्षा तुम इस पेड़ के पीछे चुप जाओ मैं देखता हूँ कि बात क्या है”,
“नही मदन मुझे अकेला मत छ्चोड़ो मुझे बहुत डर लग रहा है”
“ठीक है फिर, चलो हम दोनो पेड़ के पीछे चलते हैं”
दौनो पेड़ के पीछे छुप जाते हैं
2 साए जब करीब आते हैं तो मदन मन ही मन कहता है
“अरे ये तो किशोर और रूपा हैं, ये इस वक्त यहा क्या कर रहे हैं ? क्या इन्होने ही यहा ये तूफान मचा रखा है”
जब वो बहुत करीब आ जाते हैं तो मदन वर्षा को वहीं पेड़ के पीछे रुकने का इशारा कर के उन दोनो के सामने आ जाता है
“इतनी ज़ोर से चील्लाने की क्या ज़रूरत है, कोई सुन लेगा”
“मैं कब चील्लाइ किशोर अब दर्द में क्या कोई कराह भी नही सकता ?”
तभी उन्हे बहुत ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है जिसे सुन कर दोनो घबरा जाते हैं
किशोर ये कोई और चील्ला रहा है, वो मैं नही थी
“स्श्ह्ह्ह चुप रहो”
वो चील्लाहत उन्हे अपने करीब आती महसूस होती है और दोनो थर थर काँपने लगते हैं
“किशोर ये क्या है, मुझे बहुत डर लग रहा है, मैं कह रही थी ना कि यहा मुझे कुछ अजीब लग रहा है, चलो जल्दी यहा से”
तभी उन्हे किसी के भागने की आहट सुनाई देती है
“किशोर…” --- रूपा कुछ कहना चाहती है लेकिन किशोर उसके मूह पर हाथ रख देता है
“पागल हो क्या ? थोड़ी देर चुप नही रह सकती, बिल्कुल चुप रहो” --- किशोर रूपा के मूह पर हाथ रखे हुवे उसके कान में धीरे से कहता है
लेकिन तभी उन्हे फिर से बहुत ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है
“रूपा अपने कपड़े ठीक करो, पर आराम से, शांति से, कोई आवाज़ मत करना”
“ठीक है” --- रूपा अपनी गर्दन हिला कर इशारा करती है
किशोर भी अपने कपड़े ठीक करने लगता है
तभी उन्हे अपने बहुत करीब किसी के कदमो की आहट सुनाई देती है. उन्हे ऐसा लगता है जैसे कोई उनकी तरफ आ रहा है
“रूपा मेरी बात ध्यान से सुनो, चाहे कुछ हो जाए पीछे मूड कर मत देखना और जितना हो सके उतनी ज़ोर से भागना, ठीक है, और हाँ मेरा हाथ मत छोड़ना” --- किशोरे रूपा के कान में कहता है
और ये कह कर वो रूपा का हाथ पकड़ कर उसे वाहा से भगा ले चलता है, दोनो बिना पीछे देखे भागते चले जाते हैं
भागते भागते किशोर एक पत्थर से टकरा जाता है और लड़खड़ा कर गिर जाता है, रूपा गिरते गिरते बचती है
रूपा तुम भागो में आ रहा हूँ, मेरा अंगूठा चिल गया है, ये रास्ता सीधा खेतो से बाहर जा रहा है, तुम जल्दी यहा से निकलो
“मैं तुम्हे छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि किशोर, तुम्हारे साथ ही जाउन्गि जहा जाना है”
चीखने की आवाज़ बढ़ती ही जा रही है
किशोर मुस्किल से खड़ा होता है और रूपा का हाथ थाम कर फिर से भागने लगता है
इधर वर्षा, मदन को समझा रही है कि वो आज रात घर चला जाए, पर वो नही मान रहा
“ऐसे डर कर भागना अछा नही लगता वर्षा, क्या पता ये किसी का मज़ाक हो”
“ये बहुत भयानक आवाज़ है मदन, ये मज़ाक नही हो सकता”
“जो भी हो पर मैं यहीं रहूँगा, चलो तुम्हे घर छ्चोड़ आता हूँ”
तभी वर्षा को कुछ ऐसा दीखता है जिसे देख कर वो सहम जाती है
“मदन पीछे मूड कर देखो” --- वर्षा डरी हुई आवाज़ में कहती है
मदन पीछे मूड कर देखता है
“उसे बहुत दूर 2 साए दीखाई देते हैं”
“वर्षा तुम इस पेड़ के पीछे चुप जाओ मैं देखता हूँ कि बात क्या है”,
“नही मदन मुझे अकेला मत छ्चोड़ो मुझे बहुत डर लग रहा है”
“ठीक है फिर, चलो हम दोनो पेड़ के पीछे चलते हैं”
दौनो पेड़ के पीछे छुप जाते हैं
2 साए जब करीब आते हैं तो मदन मन ही मन कहता है
“अरे ये तो किशोर और रूपा हैं, ये इस वक्त यहा क्या कर रहे हैं ? क्या इन्होने ही यहा ये तूफान मचा रखा है”
जब वो बहुत करीब आ जाते हैं तो मदन वर्षा को वहीं पेड़ के पीछे रुकने का इशारा कर के उन दोनो के सामने आ जाता है