उसका दर्द लगभग बंद हो गया.... अब तो लंड उसकी गंद में सटाक से जा रहा था और फटाक से आ रहा था.... फिर तो दोनों जैसे दूध में नहा रहे हो.... सारा वातावरण असभ्य हो गया था.... लगता ही नही था वो पढ़े लिखे हैं.... आज तो उन्होने मज़े लेने की हद तक मज़ा लिया..... मज़े देने की हद तक मज़ा दिया.... और आख़िर आते आते दोनों टूट चुके थे....... हाई राम!
फिर ललिता उठी और उसको बोली… सुनील शाम हो गयी है… प्लीज़ उठो जल्दी जल्दी तैय्यार हो जाओ और घर पर भागो… मेरे मम्मी डॅडी आते ही होंगे… सुनील उठ गया और फ्रेश होकर चला गया… वो मन ही मन बोला मेरा काम तो हो गया है... अब में फिर कभी नही आउन्गा इधर ऐसा मन ही मन सोचता वो घर की तरफ निकल पड़ा...
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रात को जब सुनील वहाँ से निकला अपने घर के लिए तब उसे याद आया कि अरे मेरा फोन तो स्विच ऑफ…. तब उसे याद आया कि हाँ चुदाई के दरमियाँ किसी का तो फोन आया था और ललिता ने उसे काट के फोन स्विच ऑफ कर दिया था.
सुनील ने फोन स्विच ऑन किया और नंबर देखा… नंबर उसके एक फ्रेंड का था… उसने वो फोन मिलाया और उससे बाते करने लगा… बाते करते करते उसके चेहरे का मानो जैसे रंग ही उड़ गया था… उसने फिर इधर उधर की बाते की और फोन काट दिया…
वह अपने जड़े, मुलायम, रेशमी गद्दी पर वैसा ही जड़ा, मुलायम, रेशमी तकिया सीने से लिपटा कर बराबर करवट बदल रहा था. शायद वह डिस्टर्ब होगा… उसे रह रह कर यही ख़याल आ रहे थे कि किसने चंदन को मारा होगा… काफ़ी समय तक उसने सोने का प्रयास किया लेकिन उसे नींद नही आ रही थी. आख़िर करवट बदल बदल कर भी नींद नही आ रही थी इसलिए वह बेड के नीचे उतर गया. पैर मे स्लिपर चढ़ाई.
क्या किया जाय…?
ऐसा सोच कर सुनील किचेन की तरफ चला गया. किचन मे जाकर किचन का लाइट जलाया. फ्रिड्ज से पानी की बॉटल निकाली. बड़े बड़े घूँट लेकर उसने एक ही झटके मे पूरी बॉटल खाली कर दी. फिर वह बॉटल वैसी ही हाथ मे लेकर वह किचन से सीधा हॉल मे आया. हॉल मे पूरा अंधेरा छाया हुआ था. सुनील अंधेरे मे ही एक कुर्सी पर बैठ गया.
चलो थोड़ी देर टीवी देखते है…
ऐसा सोच कर उसने बगल मे रखा हुआ रिमोट लेकर टीवी शुरू किया. जैसे ही उसने टीवी शुरू किया डर के मारे उसके चेहरे का रंग उड़ गया, सारे बदन मे पसीने छूटने लगे और उसके हाथ पैर काँपने लगे…. डर के मारे उसका दिल मुँह को आगेया था… उसके सामने अभी अभी शुरू हुए टीवी की स्क्रीन पर एक खून की लकीर बहते हुए उपर से नीचे तक आई थी. हड़बड़ा कर वो एक दम खड़ा ही हुआ, और वैसे ही घबराई हुए हालत मे उसने कमरे का बल्ब जलाया.
कमरे मे तो कोई नही है….
उसने टीवी की तरफ देखा. टीवी के उपर एक माँस का टूटा हुआ टुकड़ा था और उसमे से अभी भी खून बह रहा था.
चलते, लड़खड़ाते हुए वह टेलिफोन के पास गया और अपने कपकपाते हाथ से उसने एक फोन नंबर डाइयल किया.
सुबह का वक्त राज अपने घर मे चाइ पी रहा था, तभी उसके सेल पर पवन का फोन आया. पवन की बातें सुन कर एक पल को तो राज के चेहरे पर गुस्सा आ गया. लेकिन खुद को संभाल कर राज ने कहा 10 मिनट. मे मुझे पिक अप करने आओ.
बाहर एक कॉलोनी के प्ले ग्राउंड पर छोटे बच्चे खेल रहे थे. इतने मे ज़ोर ज़ोर से साइरन की आवाज़ बजाती हुई एक पोलीस की गाड़ी वहाँ से, बगल के रास्ते से तेज़ी से गुजरने लगी. साइरन का आवाज़ सुनते ही कुछ खेल रहे छोटे बच्चे घबरा कर अपने अपने मा-बाप की तरफ दौड़ पड़े. पोलीस की गाड़ी आई उसी गति मे वहाँ से गुजर गयी और सामने एक मोड़ पर दाई तरफ मूड गयी.
पोलीस की गाड़ी साइरन बजाती हुई एक मकान मे सामने आकर रुक गयी. गाड़ी रुकी बराबर इंस्पेक्टर राज के नेत्रत्व मे एक पोलीस का दल गाड़ी से उतर कर मकान की तरफ दौड़ पड़ा.
“तुम लोग ज़रा मकान मे आसपास देखो…” राज ने उनमे से अपने दो साथियों को हिदायत दी. वे दोनो बाकी साथियों को वहीं छोड़ कर एक दाई तरफ से और दूसरा बाई तरफ से इधर उधर देखते हुए मकान के पिछवाड़े दौड़ने लगे. बाकी के पोलीस पवन और राज दौड़ कर आकर मकान के मुख्य द्वार के सामने इकट्ठा हो गये.
उसमे के एक ने, पवन ने बेल का बटन दबाया. बेल तो बज रही थी लेकिन अंदर कुछ भी आहट नही सुनाई दे रही थी. थोड़ी देर राह देख कर पवन ने फिर से बेल दबाई, इसबार दरवाजा भी खटखटाया.
“हेलो…. दरवाजा खोलो…” उन्ही मे से किसी ने दरवाजा खटखटा ते हुए अंदर आवाज़ दी.
क्रमशः…………………..
Thriller -इंतकाम की आग compleet
Re: Thriller -इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--5
गतान्क से आगे………………………
लेकिन अंदर कोई हलचल या आहट नही थी. आख़िर चिढ़कर राज ने आदेश दिया, “दरवाजा तोडो…”
पवन और और एक दो साथी मिल कर दरवाजा ज़ोर ज़ोर से ठोंक रहे थे.
“अरे इधर धक्का मारो…”
“नही अंदर की कुण्डी यहाँ होनी चाहिए… यहाँ ज़ोर से धक्का मारो…”
“और ज़ोर से….”
“सब लोग सिर्फ़ दरवाजा तोड़ने मे मत लगे रहो… कुछ लोग हमे गार्ड भी करो..”
सब गड़बड़ मे आख़िर दरवाजा धक्के मार मार कर उन्होने दरवाजा तोड़ दिया.
दरवाजा तोड़ कर दल के सब लोग घर मे घुस गये. इंस्पेक्टर राज हाथ मे बंदूक लेकर सावधानी से अंदर जाने लगा. उसके पीछे पीछे हाथ मे बंदूक लेकर बाकी लोग एक दूसरे को गार्ड करते हुए अंदर घुसने लगे. अपनी अपनी बंदूक तान कर वे सब लोग तुरंत घर मे फैल ने लगे. लेकिन हॉल मे ही एक विदारक द्रिश्य उनका इंतेज़ार कर रहा था. जैसे ही उन्होने वह द्रिश्य देखा, उनके चेहरे का रंग उड़ गया था.
उनके सामने सोफे पर सुनील गिरा हुआ था, गर्दन कटी हुई, सब चीज़े इधर उधर फैली हुई, उसकी आँखें बाहर आई हुई थी और सर एक तरफ धूलका हुआ था. बहुत की दर्दनाक मंज़र था. वहाँ पर खड़े सभी लोगो के रोंगटे खड़े हो गये थे ये द्रिश्य देख कर. राज ने तो अपने पूरे पोलीस और इंस्पेक्टर कॅरियर मे भी ऐसा खून नही देखा था. ऐसा दिल दहला देनेवाला मंज़र था. उसका भी खून उसी तरह से हुआ था जिस तरह से चंदन का. सारी चीज़े इधर उधर फैली हुई थी इससे ये प्रतीत हो रहा था कि यह भी मरने के पहले बहुत तडपा होगा.
“घर मे बाकी जगह ढुंढ़ो…” राज ने आदेश दिया.
टीम के तीन चार मेंबर्ज़ मकान मे कातिल को ढूँढ ने के लिए इधर फैल गये.
“बेडरूम मे भी ढुंढ़ो…” राज ने जाने वालों को हिदायद दी.
इंस्पेक्टर राज ने कमरे मे चारो तरफ एक नज़र दौड़ाई. राज को टीवी के स्क्रीन पर बहकर नीचे की और गयी खून की लकीर और उपर रखा हुआ माँस का टुकड़ा दिख गया. राज ने इन्वेस्टिगेशन टीम के एक मेंबर को इशारा किया. वह तुरंत टीवी के पास जाकर वह सबूत इकट्ठा करने मे जुट गया. बाद मे राज ने हॉल की खिड़कियों की तरफ देखा. इसबार भी सारी खिड़कियाँ अंदर से बंद थी. अचानक सोफे पर गिरी किसी चीज़ ने राज का ध्यान खींच लिया. वह वहाँ चला गया.
जो था वह उठाकर देखा. वह एक बालों का गुच्छा था, सोफे पर बॉडी के बगल मे पड़ा हुआ. वे सब लोग आस्चर्य से कभी उस बालों के गुच्छे की तरफ देखते तो कभी एक दूसरे की तरफ देखते. इन्वेस्टिगेशन टीम के एक मेंबर ने वह बालों का गुच्छा लेकर प्लास्टिक के बॅग मे आगे की तफ़तीश के लिए सील बंद किया.
पवन गड़बड़ाया हुआ कभी उस बालों के गुच्छे को देखता तो कभी टीवी पर रखे उस माँस के टुकड़े की तरफ. उसके दिमाग़ मे… उसके ही क्यों बाकी लोगों के दिमाग़ मे भी एक ही समय काफ़ी सारे सवाल मंडरा रहे थे. लेकिन पूछे तो किस को पूछे?
इंस्पेक्टर राज और पवन केफे मे बैठे थे. उनमे कुछ तो गहन चर्चा चल रही थी. उनके हावभाव से लग रहा था कि शायद वे हाल ही मे हुए दो खून के बारे मे चर्चा कर रहे होंगे. बीच बीच मे दोनो भी कॉफी के छोटे छोटे घूँट ले रहे थे. अचानक केफे मे रखे टीवी पर चल रही खबरों ने उनका ध्यान आकर्षित किया.
इंस्पेक्टर राज ने जी तोड़ कोशिश की थी कि प्रेस हाल ही मे चल रहे खून को ज़्यादा ना उछाले. लेकिन उनके लाख कोशिश के बाद भी मीडीया ने जानकारी हासिल की थी. आख़िर इंस्पेक्टर राज की भी कुछ मर्यादाए थी. वे एक हद तक ही बाते मीडीया से छुपा सकते है और कभी कभी जिस बात को हम छुपाना चाहते है उसी को ही ज़्यादा उछाला जाता है.
गतान्क से आगे………………………
लेकिन अंदर कोई हलचल या आहट नही थी. आख़िर चिढ़कर राज ने आदेश दिया, “दरवाजा तोडो…”
पवन और और एक दो साथी मिल कर दरवाजा ज़ोर ज़ोर से ठोंक रहे थे.
“अरे इधर धक्का मारो…”
“नही अंदर की कुण्डी यहाँ होनी चाहिए… यहाँ ज़ोर से धक्का मारो…”
“और ज़ोर से….”
“सब लोग सिर्फ़ दरवाजा तोड़ने मे मत लगे रहो… कुछ लोग हमे गार्ड भी करो..”
सब गड़बड़ मे आख़िर दरवाजा धक्के मार मार कर उन्होने दरवाजा तोड़ दिया.
दरवाजा तोड़ कर दल के सब लोग घर मे घुस गये. इंस्पेक्टर राज हाथ मे बंदूक लेकर सावधानी से अंदर जाने लगा. उसके पीछे पीछे हाथ मे बंदूक लेकर बाकी लोग एक दूसरे को गार्ड करते हुए अंदर घुसने लगे. अपनी अपनी बंदूक तान कर वे सब लोग तुरंत घर मे फैल ने लगे. लेकिन हॉल मे ही एक विदारक द्रिश्य उनका इंतेज़ार कर रहा था. जैसे ही उन्होने वह द्रिश्य देखा, उनके चेहरे का रंग उड़ गया था.
उनके सामने सोफे पर सुनील गिरा हुआ था, गर्दन कटी हुई, सब चीज़े इधर उधर फैली हुई, उसकी आँखें बाहर आई हुई थी और सर एक तरफ धूलका हुआ था. बहुत की दर्दनाक मंज़र था. वहाँ पर खड़े सभी लोगो के रोंगटे खड़े हो गये थे ये द्रिश्य देख कर. राज ने तो अपने पूरे पोलीस और इंस्पेक्टर कॅरियर मे भी ऐसा खून नही देखा था. ऐसा दिल दहला देनेवाला मंज़र था. उसका भी खून उसी तरह से हुआ था जिस तरह से चंदन का. सारी चीज़े इधर उधर फैली हुई थी इससे ये प्रतीत हो रहा था कि यह भी मरने के पहले बहुत तडपा होगा.
“घर मे बाकी जगह ढुंढ़ो…” राज ने आदेश दिया.
टीम के तीन चार मेंबर्ज़ मकान मे कातिल को ढूँढ ने के लिए इधर फैल गये.
“बेडरूम मे भी ढुंढ़ो…” राज ने जाने वालों को हिदायद दी.
इंस्पेक्टर राज ने कमरे मे चारो तरफ एक नज़र दौड़ाई. राज को टीवी के स्क्रीन पर बहकर नीचे की और गयी खून की लकीर और उपर रखा हुआ माँस का टुकड़ा दिख गया. राज ने इन्वेस्टिगेशन टीम के एक मेंबर को इशारा किया. वह तुरंत टीवी के पास जाकर वह सबूत इकट्ठा करने मे जुट गया. बाद मे राज ने हॉल की खिड़कियों की तरफ देखा. इसबार भी सारी खिड़कियाँ अंदर से बंद थी. अचानक सोफे पर गिरी किसी चीज़ ने राज का ध्यान खींच लिया. वह वहाँ चला गया.
जो था वह उठाकर देखा. वह एक बालों का गुच्छा था, सोफे पर बॉडी के बगल मे पड़ा हुआ. वे सब लोग आस्चर्य से कभी उस बालों के गुच्छे की तरफ देखते तो कभी एक दूसरे की तरफ देखते. इन्वेस्टिगेशन टीम के एक मेंबर ने वह बालों का गुच्छा लेकर प्लास्टिक के बॅग मे आगे की तफ़तीश के लिए सील बंद किया.
पवन गड़बड़ाया हुआ कभी उस बालों के गुच्छे को देखता तो कभी टीवी पर रखे उस माँस के टुकड़े की तरफ. उसके दिमाग़ मे… उसके ही क्यों बाकी लोगों के दिमाग़ मे भी एक ही समय काफ़ी सारे सवाल मंडरा रहे थे. लेकिन पूछे तो किस को पूछे?
इंस्पेक्टर राज और पवन केफे मे बैठे थे. उनमे कुछ तो गहन चर्चा चल रही थी. उनके हावभाव से लग रहा था कि शायद वे हाल ही मे हुए दो खून के बारे मे चर्चा कर रहे होंगे. बीच बीच मे दोनो भी कॉफी के छोटे छोटे घूँट ले रहे थे. अचानक केफे मे रखे टीवी पर चल रही खबरों ने उनका ध्यान आकर्षित किया.
इंस्पेक्टर राज ने जी तोड़ कोशिश की थी कि प्रेस हाल ही मे चल रहे खून को ज़्यादा ना उछाले. लेकिन उनके लाख कोशिश के बाद भी मीडीया ने जानकारी हासिल की थी. आख़िर इंस्पेक्टर राज की भी कुछ मर्यादाए थी. वे एक हद तक ही बाते मीडीया से छुपा सकते है और कभी कभी जिस बात को हम छुपाना चाहते है उसी को ही ज़्यादा उछाला जाता है.
Re: Thriller -इंतकाम की आग
टीवी न्यूज़ रीडर बोल रहा था – “कातिल ने कत्ल किए और एक शख्स की लाश आज तड़के पोलीस को मिली. जिस तरह से और जिस बेदर्दी से पहला खून हुआ था उसी बेदर्दी या यूँ कहिए उससे भी ज़्यादा बेदर्दी से… इस शख्स को भी मारा गया. इससे कोई भी इसी नतीजे पर पहुचेगा कि इस शहर मे एक खुला सीरियल किल्लर घूम रहा है…. हमारे सूत्रों ने दिए जानकारी के हिसाब से दोनो भी शव ऐसे कमरे मे मिले क़ी जो जब पोलीस पहुचि तब अंदर से बंद थे. पोलीस को जब इस बारे मे पूछा गया तो उन्होने इस मसले पर कुछ भी टिप्पणी करने से इनकार किया है. जिस इलाक़े मे खून हुआ वहाँ आस पास के लोग अब भी इस भारी सदमे से उभर नही पाए है…. और शहर मे तो सब तरफ दहशत का मौहाल बन चुक्का है. कुछ लोगों के कहे अनुसार जिन दो शख्स का खून हुआ है उनके नाम पर गंभीर गुनाह दाखिल है. इससे एक ऐसा निष्कर्ष निकाला जा सकता है को जो भी खूनी हो वह गुनहगारों को ही सज़ा देना चाहता है…. इसकी वजह से कुछ आम लोग तो कातिल की वाह वाह कर रहे है…”
“अगर खूनी को मीडीया अटेन्षन चाहिए था तो वह उसमे कामयाब हो चुक्का है… हमने लाख कोशिश की लेकिन आख़िर कब तक हम भी प्रेस से बाते छुपा पाएँगे…” इंस्पेक्टर राज ने पवन से कहा. लेकिन पवन कुछ भी बोला नही. क्यों कि अब भी वह ख़बरे सुन ने मे व्यस्त था.
जो भी हो यह सब जानकारी अपने डिपार्टमेंट के लोगो ने ही लीक की है..
लेकिन अब कुछ भी नही किया जा सकता है…
एक बार धनुष से छूटा तीर वापस नही लिया जा सकता है…
राज सोच रहा था फिर और एक विचार राज के दिमाग़ मे चमका –
कहीं ये उस दिन ज़्यादा मेरा दिमाग़ खराब कर रहा था उस ऑफीसर का तो काम नही… जो सब जानकारियाँ लीक कर रहा हो…
पवन अभी भी टीवी की ख़बरे सुन ने मे व्यस्त था.
शहर मे सब सारी तरफ दहशत फैल चुकी थी.
एक सीरियल किल्लर शहर मे खुला घूम रहा है…
पोलीस अब भी उसको पकड़ने मे नाकामयाब….
वह और कितने कत्ल करनेवाला है…?
उसका अगला शिकार कौन होगा…?
और वह लोगों को क्यों मार रहा है..?
कुछ कारण बस या यूँ ही…?
इन सारे सवालों के जवाब किसी के पास भी नही थे.
शाम हो चुकी थी राज और पवन ने फिर इधर उधर की बातें की और अपने अपने घर की तरफ निकल पड़े.
शाम के 9 बज रहे थे जब राज अपने घर की तरफ बढ़ा अपनी गाड़ी से उतर कर. राज ने बेल बजाई. डॉली ने दरवाजा खोला… डॉली का चेहरा देखते ही राज एकदम फ्रेश महसूस करने लगा.... उसका सवालों से भरा दिमाग़ एक पल तो शांत हो गया.
घर मे आकर राज फ्रेश हुआ और डॉली ने खाना परोसा… खाना परोसने के बाद दोनो ने मिलकर एक दूसरे को खाना खिलाया और राज बेडरूम मे चला गया. डॉली सब काम निपटा कर जब बेडरूम मे घुसी तो राज को सोचता पाया… डॉली ने पूछा कि क्या हाल है जनाब इतना क्या विचार कर रहे हो… राज आज घाटी सारी घटनाए उसको बता दी… और बोला तुम छोड़ो ना ये सब और उसको बाहों मे भर के उसके होंठो पर खुद के होंठ रख दिए और एक गहरा चुंबन लेने लगा…
डॉली ने राज की तरफ देखा इससे पहले के कुछ समझ पाती, राज ने एक हाथ से अपनी पॅंट खोली और उसको एक तरफ फेंक दिया और दूसरे हाथ से डॉली का हाथ अपने लंड पे रख दिया.
डॉली ने हाथ हटाने की कोशिश की पर राज ने उसका हाथ मज़बूती से पकड़ रखा था. कुछ पल दोनो यूँ ही रुके रहे और फिर धीरे से डॉली ने अपना हाथ लंड पे उपेर की ओर किया.
क्रमशः…………………..
“अगर खूनी को मीडीया अटेन्षन चाहिए था तो वह उसमे कामयाब हो चुक्का है… हमने लाख कोशिश की लेकिन आख़िर कब तक हम भी प्रेस से बाते छुपा पाएँगे…” इंस्पेक्टर राज ने पवन से कहा. लेकिन पवन कुछ भी बोला नही. क्यों कि अब भी वह ख़बरे सुन ने मे व्यस्त था.
जो भी हो यह सब जानकारी अपने डिपार्टमेंट के लोगो ने ही लीक की है..
लेकिन अब कुछ भी नही किया जा सकता है…
एक बार धनुष से छूटा तीर वापस नही लिया जा सकता है…
राज सोच रहा था फिर और एक विचार राज के दिमाग़ मे चमका –
कहीं ये उस दिन ज़्यादा मेरा दिमाग़ खराब कर रहा था उस ऑफीसर का तो काम नही… जो सब जानकारियाँ लीक कर रहा हो…
पवन अभी भी टीवी की ख़बरे सुन ने मे व्यस्त था.
शहर मे सब सारी तरफ दहशत फैल चुकी थी.
एक सीरियल किल्लर शहर मे खुला घूम रहा है…
पोलीस अब भी उसको पकड़ने मे नाकामयाब….
वह और कितने कत्ल करनेवाला है…?
उसका अगला शिकार कौन होगा…?
और वह लोगों को क्यों मार रहा है..?
कुछ कारण बस या यूँ ही…?
इन सारे सवालों के जवाब किसी के पास भी नही थे.
शाम हो चुकी थी राज और पवन ने फिर इधर उधर की बातें की और अपने अपने घर की तरफ निकल पड़े.
शाम के 9 बज रहे थे जब राज अपने घर की तरफ बढ़ा अपनी गाड़ी से उतर कर. राज ने बेल बजाई. डॉली ने दरवाजा खोला… डॉली का चेहरा देखते ही राज एकदम फ्रेश महसूस करने लगा.... उसका सवालों से भरा दिमाग़ एक पल तो शांत हो गया.
घर मे आकर राज फ्रेश हुआ और डॉली ने खाना परोसा… खाना परोसने के बाद दोनो ने मिलकर एक दूसरे को खाना खिलाया और राज बेडरूम मे चला गया. डॉली सब काम निपटा कर जब बेडरूम मे घुसी तो राज को सोचता पाया… डॉली ने पूछा कि क्या हाल है जनाब इतना क्या विचार कर रहे हो… राज आज घाटी सारी घटनाए उसको बता दी… और बोला तुम छोड़ो ना ये सब और उसको बाहों मे भर के उसके होंठो पर खुद के होंठ रख दिए और एक गहरा चुंबन लेने लगा…
डॉली ने राज की तरफ देखा इससे पहले के कुछ समझ पाती, राज ने एक हाथ से अपनी पॅंट खोली और उसको एक तरफ फेंक दिया और दूसरे हाथ से डॉली का हाथ अपने लंड पे रख दिया.
डॉली ने हाथ हटाने की कोशिश की पर राज ने उसका हाथ मज़बूती से पकड़ रखा था. कुछ पल दोनो यूँ ही रुके रहे और फिर धीरे से डॉली ने अपना हाथ लंड पे उपेर की ओर किया.
क्रमशः…………………..