कितनी सैक्सी हो तुम compleet

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The Romantic
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Re: कितनी सैक्सी हो तुम

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:29

कितनी सैक्सी हो तुम --7

“व्‍व्वो मैं क्‍्क्कु…छ…नहींईईइ…” बस इतना ही फूटा मुकुल के मुंह से…

मैं हंसने लगी।

मुकुल मुझसे नजरें नहीं मिला पा रहा था।

मुझे लगा कि अभी शायद यह कुछ नहीं करेगा पर मैं यह भी जानती थी कि यदि आज मुकुल मेरे हाथ से निकल गया तो फिर जल्दी से मौका नहीं मिलेगा, मैं तेजी से अपना दिमाग दौड़ाने लगी।

मैंने ही आगे बढ़ने की ठानी, मैंने वहीं बिस्तर पर पड़ी अपनी पैन्टी को हाथ में उठाकर जानबूझ कर मुकुल की तरफ करके खोला और खड़े-खड़े ही नीचे झुककर पैन्टी को अपनी पैरों में डालने लगी।

इतना झुकने के कारण मेरे गोरे सुन्दर स्तनों की पूरी गोलाई मुकुल के सामने थी और मुकुल मुझसे नजर बचाकर लगातार मुझे ही घूर रहा था, मैं भी मुकुल को पूरा मौका देना चाहती थी इसीलिये जानबूझ कर उसकी तरफ नहीं देख रही थी।

मैंने पूरी तसल्ली से एक एक पैर में पैन्टी पहनकर ऊपर चढ़ाना शुरू कर दिया। मैं मुकुल की हर हरकत पर नजर रख रही थी पर उससे नजरें जानबूझ कर नहीं मिला रही थी।

मुकुल तो बेचारा एसी रूम में भी पसीने से तरबतर हो गया था।

तभी मैंने देखा कि मुकुल का एक हाथ उसकी पैन्ट के ऊपर आया, मेरी निगाह वहाँ गई, वो हिस्सा बहुत मोटा होकर फूल गया था।

मुकुल वहाँ धीरे धीरे हाथ फिराने लगा, मेरे हाथों पर मुस्कुकराहट आने लगी।

अचानक मुकुल वहाँ से उठा और बाथरूम की तरफ दौड़ा पर मै आराम से अपना काम कर रही थी।

मुकुल के बाथरूम जाने के बाद मैं भी दबे पांव उस तरफ घूमी, मुकुल शायद इतनी तेजी में था कि उसने दरवाजा बन्द भी नहीं किया।

मैंने अन्दर झांका- अन्दर का दृश्य बहुत ही मनोहारी था।

मुकुल टायलेट सीट के सामने खड़ा था उसकी पैंट पैरों में नीचे पड़ी थी और वह अपना लिंग पकड़कर बहुत जोर-जोर से आगे पीछे करके हिला रहा था।

मैं समझ गई कि मुकुल खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाया।

अभी मुझे कुछ और खेल भी खेलना था, मैं वापस घूम कर टावल हटाकर अपनी ब्रा पहनने लगी।

तभी मुकुल बाथरूम से बाहर आया और बोला- यह क्या कर रही हो नयना… कपड़े बाथरूम के अन्दर नहीं पहन सकती थी?

“कितना छोटा सा बाथरूम है… सारे कपड़े गीले हो जाते, और तू कोई गैर थोड़ा ही है।” मैंने जवाब दिया।

मेरे गोरे बदन पर काले रंग की ब्रा और पैंटी कहर ढा रही थी, मुकुल लगातार मुझे ही घूर रहा था पर उससे ज्यादा हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

मैंने ही दोबारा बातचीत शुरू की- गर्मी बहुत है ना, देख तुझे तो एसी में भी पसीना आ रहा है।

कहकर मैं फिर से शीशे की तरफ देखकर खुद को संवारने लगी।

मुकुल मेरी तरफ से ध्यान हटाते हुए बोला- नयना, भूख लगी है कुछ खाने को मंगा लेते हैं।

“हाँ, सैंडविच मंगवा ले।” मैंने कहा, मैं तो आज खुद मुकुल को सैडविच बनाना तय कर चुकी थी।

उसने सैंडविच आर्डर किया और फिर से कनखियों से मुझे घूरने लगा।

“कमीना, सिर्फ घूरेगा ही या कुछ और भी करेगा।” मैं मन ही मन सोच रही थी कि अचानक मुकुल बोला- नयना, मैंने कभी तुमको इतने गौर से नहीं देखा पर तुम सच में सुन्दर हो।

मेरी आँखों में तो जैसे चमक ही आ गई, मैंने मुकुल को और उकसाया- ओहहो, क्या-क्या सुन्दुर लग रहा है मुझमें?

“सर से पैर तक बिल्कुल अप्सरा हो… तुम्हारे बाल, तुम्हारी आँखें, तुम्हारी गोरी काया, तुम्हारी…” बोलते बोलते अचानक मुकुल रूक गया।

“मेरी क्याॽ” मैंने पूछा।

तभी रूम सर्विस वाला सैन्डविच ले आया। मैं दरवाजे की खटखटाहट सुनकर बाथरूम में चली गई।

मुकुल ने भी सैंडविच लेकर तेजी से दरवाजा बन्द कर दिया।

दरवाजा बन्द होने की आवाज सुनकर मैं बाहर आई, आते ही पूछा- हाँ तो मुकुल बता मेरी क्या…?

अब मुकुल बिल्कुल शरमा नहीं रहा था, मुझसे नजरें मिलाकर भी मुझे घूर रहा था।

मैं समझ गई कि वो थोड़ा बढ़ा है पर अब मुझे भी थोड़ा आगे बढ़ना पडेगा पर अब उसकी नजरें देखकर मुझे भी कुछ शर्म आने लगी थी, मैंने वहीं पड़ी चादर को ओढ़ लिया।

मुकुल बोला- गर्मी बहुत है, और नयना बिना चादर के ज्यादा अच्छी लग रही है।

कहते कहते मुकुल ने खुद ही मेरी चादर हटा दी, मैं अब मुकुल से नजरें नहीं मिला पा रही थी, मैंने हिम्मत करके फिर पूछा- मेरी और क्या चीज अच्छी लगीॽ

मुकुल मेरे बहुत करीब आ चुका था, उसकी गर्म सांसें सीधे मेरे कन्धों पर पड़ रही थी- तुम्हारी से खूबसूरत…

इतना ही बोला मुकुल ने, मेरी टांगें कांपने लगी, थोड़ी देर पहले मैं खुद को शेरनी समझ रही थी अब मुकुल जैसे शेर के सामने किसी बकरी की तरह खड़ी थी।

मुकुल ने मुझे अपनी तरफ खींचा। इधर मुकुल का हाथ मेरे बदन को छुआ… उधर मुझे महसूस हुआ कि शायद मेरी कच्छी भी किसी अनजाने स्राव से गीली हो रही है, मुझे अपनी टांगों के सहारे कुछ टपकता हुआ सा महसूस हुआ।

उफ्फ्फ… कितना सुखद अहसास था।

पर शायद मेरे अन्दर की नारी अब जाग चुकी थी जो मुझे यह सब करने से रोकने लग रही थी। मेरे दिमाग से अब काम करना बिल्कुल बन्द कर दिया था कि मुकुल ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया।

“मम्मुकु…ल… स्‍स्‍स्‍स्‍स्सैंडविच… खा…ले…ठण्‍…ठण्डा हो जायेगा।” हकलाते हुए मेरे मुंह से निकला।

बस इतना ही बोल पाई थी मैं कि उसके होंठों ने मेरे होंठों को कैद कर लिया, मुकुल की बांहों के बीच फंसी मैं छटपटा रही थी कि मुकुल मेरे गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठों को जैसे चूसने लगा।

मेरे मुंह से बस गग्‍ग्‍्ग्‍… की आवाज निकल पा रही थी।

मुकुल पूरी तसल्ली से मेरे रस भरे होंठों का रस पी रहा था। मुझ पर पता नहीं कैसे नशा सा छाने लगा, अब दिल कर रहा था कि मुकुल मुझे ऐसे ही चूसता रहे। पर चूंकि मुझे विश्वास हो गया था कि अब मुकुल मुझे नहीं छोड़ने वाला तो उससे बचने का नारी सुलभ ड्रामा को करना ही था।

मैं मुकुल को दूर धकेलने का प्रयास करने लगी, पता ही नहीं चला कब मुकुल ने पीछे से जकड़कर मेरी ब्रा का हुक खोल दिया। जैसे ही मैंने मुकुल को दूर हटाने को धक्का दिया, वो दूर तो हुआ पर साथ ही ब्रा भी निकल कर हाथों में आ गई और मेरे दोनों भरे-भरे गुब्बारे उछलकर बाहर निकल गये।

मैं अपने हाथों से उनको छुपाने का प्रयास करने लगी पर मुकुल ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिये, वो एकटक मेरे दोनों स्तनों को देखे जा रहा था। हाययय…माँऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ… कितनी शर्म महसूस हो रही थी अब मुझे।

कमीना एकटक मेरे दोनों अमृत कलश ऐसे घूर रहा है जैसे खा ही जायेगा।

मुझमें अब उससे नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं थी। मैंने लज्जा़ से नजरें नीची कर ली।

मुकुल बिस्तर पर बैठ गया और मुझे अपने पास खींच लिया, अपने सामने खड़ा करके वो मेरे दोनों चुचुकों से खेलने लगा। अजीब सी मस्ती मुझ पर छाने लगी, मेरा अंग-अंग थरथरा रहा था, टांगों में खड़े होने की हिम्मत नहीं बची थी।

पर मुकुल जो आनन्द दे रहा था मैं उससे वंचित भी तो नहीं होना चाहती थी और तभी सीईईईईईईई… कमीने ने मुझे और नजदीक खींच कर मेरे दायें चुचूक को मुंह में दबा लिया।

“हाय्य्य्य्य… यह क्या कर दिया जालिम ने… मेरा बदन बिल्कुल भी खुद के काबू में नहीं था, निढाल सी होकर मुकुल के ऊपर ही गिर पड़ी।

मुकुल ने मुझे फिर से बांहों में जकड़ लिया और सहारा देकर बिस्तर पर गिरा दिया।

मेरी आँखें नशे से बन्द हो रही थी।

मुकुल मेरे ऊपर आ गया।

अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने भी लता की तरह मुकुल को जकड़ लिया, मुकुल की गर्म-गर्म सांसें मेरे बदन की कामाग्नि को और बढ़ा रही थी। मैं बुरी इस कामाग्नि में जल रही थी।

मुकुल मेरे गुदाज बदन को अपने होंठों से सींचने लगा, मेरे कन्धे, स्तनों, नाभि और पेड़ू को चूसते-चूसते वो नीचे की ओर बढ़ने लगा।

आहहहह… इसने तो एक झटके में मेरी कच्छी भी मेरी टांगों से निकाल फैंकी ! दैय्या रेएएए… जान लेगा क्या यह मेरी?

मैंने कस के चादर को पकड़ लिया, अब रुकना मुश्किल हो रहा था, मेरी टांगें अभी भी बैड से नीचे लटकी थी, वो मेरी दोनों को खोलकर उनके बीच में बैठ गया।

और…आह… मेरी…योनि…हाय…मेरी…मक्खन… जैसी…उफ्फ्फ्… चिकनी…योनि…चाटने लगा।

मैं अपने नितम्ब जोर जोर से हिलाने लगी।

मेरा रस बस टपकने ही वाला था।

उसने तो हद तब कर दी जब योनि के भगोष्ठों को खोलकर जीभ से अन्दर तक कुरेदने की कोशिश कर रहा था पर कामयाब नहीं हो पा रहा था। “आहहह… मैं गई…मार…डाला…” मेरे मुंह से इतना ही निकला और मेरा सारा कामरस निकलकर भगोष्ठों पर चिपक गया।

पर वो तो इसको भी मजे ले लेकर चाट रहा था।

हाँ… मैं जरूर अपने होशोहवास में आने लगी, उसका इस तरह चाटना मुझे अब बहुत अच्छा लग रहा था, उसने दोनों हाथों से मेरे दूधिया स्तनों को दबाकर जीभ की कर्मस्थली मेरी योनि को बना रखा था।

वो एक सैकेण्ड को सांस लेने को भी अपना मुंह वहाँ से हटाता तो मुझे अच्छा नहीं लगता था। मैंने पर शायद उसको भी आभास हो गया कि एक बार मेरा रस निकल चुका है।

वो पूरा निपुण खिलाड़ी था, कोई भी जल्द बाजी नहीं दिखा रहा था, उसने फर्श पर बैठकर मेरी दोनों टांगों को अपने कंधों पर रख लिया और मेरी दोनों मक्खन जैसी चिकनी जांघों को एक एक करके चाटने लगा।

अब मैं भी उसका साथ दे रही थी, कुछ सैकेण्ड तक जांघों को चाटने के बाद वो खड़ा हुआ और फिर मेरी टांगों को उठाकर मुझे घुमा कर पूरा बिस्तर पर लिटा दिया।

मैं आँखें बन्द किये पड़ी उसकी अगली क्रिया का इंतजार करने लगी।

पर यह क्या… उसका स्पर्श तो कहीं महसूस ही नहीं हो रहा था… कहाँ चला गया?


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Re: कितनी सैक्सी हो तुम

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:30

कितनी सैक्सी हो तुम --8

वो पूरा निपुण खिलाड़ी था, कोई भी जल्द बाजी नहीं दिखा रहा था, उसने फर्श पर बैठकर मेरी दोनों टांगों को अपने कंधों पर रख लिया और मेरी दोनों मक्खन जैसी चिकनी जांघों को एक एक करके चाटने लगा।

अब मैं भी उसका साथ दे रही थी, कुछ सैकेण्ड तक जांघों को चाटने के बाद वो खड़ा हुआ और फिर मेरी टांगों को उठाकर मुझे घुमा कर पूरा बिस्तर पर लिटा दिया।

मैं आँखें बन्द किये पड़ी उसकी अगली क्रिया का इंतजार करने लगी।

पर यह क्या… उसका स्पर्श तो कहीं महसूस ही नहीं हो रहा था… कहाँ चला गया।

यह सोचकर मैंने अपनी आँखें खोली तो पाया वो तो बिल्कुल मेरे सामने ही था।

शायद मेरी आँखें खुलने का ही इंतजार कर रहा था।

आँखें खुलते ही हमारी नजरें चार हुईं, मैंने झट से दुबारा अपनी आँखें बन्द कर दी।

“नयना…कैसा लग रहा हैॽ” मुकुल बोला।

मैं चुप रही आखिर बोलती भी तो क्याॽ

“अगर इससे ज्यादा का मूड है तो मेरे कपड़े तो उतार दो, नहीं तो मैं समझ जाऊंगा कि तुम्हारा मूड नहीं है और आगे नहीं बढ़ूँगा।” मुकुल फिर से बोला।

“खुद उतार ले कमीने…” मैंने बन्द आँखों से ही जवाब दिया।

“नहीं जी, तुझे उतारने हैं तो बता… वरना मना कर दे…” मुकुल बोला।

अब मैं क्या करतीॽ मैंने हिम्मत करके अपनी आँखें खोली और मुकुल की शर्ट के बटन खोलने लगी।

इस बीच उसके हाथ लगातार मेरे कामुक गुदाज बदन को नापने में लगे थे।

मैंने शर्ट के बटन खोले तो मुकुल ने बनियान और शर्ट एक साथ अलग कर दी। अब वो दोनों टागें मेरे दोनों ओर फैलाकर मेरे ऊपर सरक गया तो मैंने देर ना करते हुए उसकी पैंट का हुक भी खोल ही दिया।

वो वहीं खड़ा हुआ और पैंट के साथ अण्डरवीयर भी अलग कर दिया, उसका तना हुआ लिंग कूद कर बाहर आ गया, उसकी नसें भी फूल कर मोटी हो रही थी, लिंग का अग्र भाग गुलाबी पड़ रहा था।

पहली बार मेरे बिल्कुल इतने करीब इस तरह तना हुआ मासूम सा लिंग महसूस हो रहा था।

उससे निकलने वाली गंध मुझे और अधिक मदहोश कर रही थी।

तभी मुकुल ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने उस माँसल आग्नेयास्त्र पर रख दिया।

उफ्फ इतना गर्म !

मैंने तो डरकर अपना हाथ ही छुड़ा लिया।

मुकुल अपने पैर पसार कर वहीं मेरे स्तनों पर बैठ गया, अब उसका वो सांवला सलोना प्रेमशस्त्र मेरे दोनों स्तनों के बीच की घाटी में जम गया। मुकुल ने दोबारा मेरा हाथ उठाकर उसके अपने लिंग पर रख दिया… और मेरे हाथ से उसको सहलाने लगा।

मैं अब समझ गई कि मुकुल मुझसे क्या चाहता है, मैंने खुद ही अपना हाथ उस पर चलाना शुरू कर दिया। अब शायद मुकुल को भी मजा आने लगा।

इसी बीच मुकुल लगातार मेरे गुलाबी होंठों को अपनी उंगली से सहला रहा था। कुछ देर ऐसे सहलाते रहने के बाद मुकुल उठकर कुछ आगे हुआ… और अपना लिंग मेरे होंठों पर सटा दिया।

छीईईईई… यह क्या किया कमीने ने ! मैंने उसको दूर छिटक दिया। मुकुल दोबारा कोशिश करने लगा पर जब मैंने उसको घूरा तो वो पीछे हट गया।

पता नहीं उसके मन में क्या आया कि वो मेरे ऊपर से उठकर पीछे की तरफ मुंह करके बैठ गया… और मेरी योनि की तरफ झुक गया। ओह…तो अब समझ में आया मेरी। उईईईई…माँ…ये तो फिर से मेरी योनि को चाटने लगा पर इस बार मैंने उसको नहीं रोका, उसका इस तरह चाटना मुझे सुखदाई लग रहा था।

पर उसके मन में तो कुछ और ही चल रहा था उसने पास में रखे सैडविच की प्लेट से टोमैटो सॉस का एक पाउच उठाया और उसको खोलकर मेरी योनि के चारों तरफ फैला लिया।

आहह… हायय… ये तो अब वो सॉस अपनी जीभ से चाटने लगा। मार डालेगा क्या कमीना !ऐसा अहसास पहले कभी भी नहीं हुआ।

उईईई… हम्‍म्‍म्‍म‍… उसका यूं चाटना तो मुझे पागल बनाये जा रहा था, मैं चाह रही थी कि वो लगातार ऐसे ही चाटता रहे पर वो एकदम रूक गया, मैं ऊचक-ऊचक कर अपनी योनि उसके मुंह तक पहुँचाने का कोशिश करने लगी।

उसने प्लेट से सॉस का दूसरा पाऊच उठा लिया। अब उसने इस पाऊच को खोलकर अपने लिंग पर फैला लिया। अब वो दोबारा से मेरी योनि के मुंहाने पर पहुँचा और सॉस चाटने लगा।

उसका लिंग लगातार मेरे मुंह से टकरा रहा था, सारी सॉस मेरे होंठों को छू रही थी। मैंने जीभ को हल्का सा बाहर निकालकर सॉस को चखा।

मुझे भी सॉस का स्वाद अच्छा लगने लगा, अब मैं भी पूरा स्वाद और मजा लेने के मूड में आ गई।

पता ही नहीं चला कब मेरा मुंह खुल गया… और सॉस लगा लिंग का अगला हिस्सा खुद ही मेरे मुंह में सरक गया। मैं उस पर जीभ फेर कर सॉस का स्वाद लेने लगी।

अब तो वो मेरी मक्खनी योनि को पूरा मुंह में भरकर चाटने लगा, मेरी तो सांस ही रूकने लगी, इतना मजा जीवन में कभी नहीं आया…

ऐसा…लग…रहा…था… जैसे मुकुल मुझे स्वर्ग की सैर करवा रहा हो।

मेरी योनि अन्दर से गीली गीली महसूस हो रही थी, उसके अन्दर जबरदस्त खुजली हो रही थी।

अब तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मेरी समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूं… मेरा पूरा बदन अकड़ने लगा…

मैंने दोनों हाथों से चादर को पकड़ लिया, पैर बहुत जोर-जोर से पटकने लगी, मेरे नितम्ब खुद-ब-खुद ही थिरकने लगे।

कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मुझे क्या होने लगाॽ

पर मुकुल को शायद अंदाजा था वो आराम से मेरे ऊपर से उतरकर मेरे सामने दोनों मेरी दोनो टांगों को चौड़ा करके उनके बीच में बैठ गया… बराबर में पड़ा तकिया उठाकर मेरे नितम्बों के नीचे लगाया… चादर से मेरी योनि और अपने लिंग को बिल्कुल साफ किया… फिर अपने घुटने मोड़कर लिंग आगे किया… मेरी दोनों टांगें उठाकर अपने घुटनों पर रखीं और अपना शिश्नुमुण्ड मेरी योनि के द्वार पर रख दिया।

हाय्य्य्य्य… य्य्य…मर ही गई मैं तो… वो अपने एक हाथ की दो उंगलियों से मेरी योनिद्वार को खोलकर शिश्नमणि अन्दर करने की कोशिश करने लगा पर मेरी योनि शायद बहुत छोटी होगी जो प्रयास करने पर भी वो कामयाब नहीं हो पा रहा था।

पता नहीं उसके दिमाग में क्या आया… उसने वहीं पड़े मेरे हैण्ड बैग को टटोला और उसमें से कोल्ड क्रीम निकाल ली… मेरी योनिद्वार पर क्रीम की ट्यूब रखकर दबा दी, क्रीम योनि के अन्दर तक चली गई, बची हुई क्रीम उसने अपने लिंग को लपेट दी ओर फिर से उसको मेरे योनिद्वार पर टिका दिया।

मुझे समझ नहीं आया कि यह क्या करना चाहता है।

वो एकदम मुझ पर झुका उसकी छाती मेरी छाती से टकराई और होंठ मेरे होंठों से… एक हाथ उसने मेरे सिर पर रखा और दूसरे से अपने लिंग को पकड़ कर ‘हुह…’ की आवाज के साथ एक जोरदार झटका मारा।आहहह… हहह… हहह…हहह…मररररर… गईई… मैं…

उसका आधे से ज्यादा लिंग मेरी योनि में जा चुका था।

मेरी आँखों से आँसू निकलने लगे।

वो मेरे होंठों को फिर से चूसने लगा, अपनी छाती से मेरे स्तनों पर दबाव बना रहा था, हौले-हौले लिंग आगे पीछे करने लगा।

मैं भी अब कुछ नियंत्रण में थी, दर्द कुछ कम हुआ तो मेरे नितम्ब भी उसकी ताल से ताल मिलाने लगे।

अब उसने मेरे होंठों को छोड़ दिया और सीधा होकर मेरे स्तनों को अपने दोनों हाथों से मर्दन करने लगा।

अचानक उसकी गति बढ़ने लगी… मुझे भी महसूस हुआ जैसे मेरी योनि में कोई तूफान आने वाला है।

तभी अचानक मेरी योनि से एक गुबार सा छूटता महसूस हुआ… और मैं वीरगति को प्राप्त हो गई।

उसकी तेज थाप अभी भी जारी थी।

अभी मैं सम्भल भी नहीं पाई थी कि मुकुल ने मुझे जोर से जकड़ लिया… उसके नितम्ब बहुत तेजी से चलने लगे और मुझे ऐसा लगा कि एक दूसरा जल सैलाब मेरे अन्दर आ गया…

बस इतना हुआ और मुकुल निढाल सा मेरे ऊपर ढह गया।

अब मुझे अपनी योनि के आसपास कुछ गिलगिला सा महसूस हुआ।

मैंने मुकुल को ऊपर से हटने का इशारा किया।

जैसे ही वो खड़ा हुआ मैंने देखा मुकुल का लिंगप्रदेश खून से सना हुआ बिल्कुल लाल था।

मेरी तो जान ही निकल गई।

मुकुल की निगाह भी तभी मेरी योनिप्रदेश पर गई सारा खून-खून दिखाई दिया।

मुकुल एकदम बोला- नयना… यह क्या है, तुम्हारी शादी तो मुझसे भी पहले हुई थी… क्या अभी तक…???????????????

मेरी आँखें बरबस ही छलछला गई ‘हम्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍‍…’ बस इतना ही निकला मेरे मुख से।


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Re: कितनी सैक्सी हो तुम

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:31

कितनी सैक्सी हो तुम --9

जैसे ही वो खड़ा हुआ मैंने देखा मुकुल का लिंगप्रदेश खून से सना हुआ बिल्कुल लाल था।

मेरी तो जान ही निकल गई।

मुकुल की निगाह भी तभी मेरी योनिप्रदेश पर गई सारा खून-खून दिखाई दिया।

मुकुल एकदम बोला- नयना… यह क्या है, तुम्हारी शादी तो मुझसे भी पहले हुई थी… क्या अभी तक…?????????

मेरी आँखें बरबस ही छलछला गई ‘हम्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म…’ बस इतना ही निकला मेरे मुख से।

“कोई बात नहीं, मैं समझ सकता हूँ पर अब तुम पूरी औरत बन चुकी हो। मैं तुमको पूरा सुख दूँगा यदि तुमको कोई ऐतराज नहीं हो तो !” मुकुल बोला।

मैंने जवाब दिया, “आज तूने मुझे जो सुख दिया मैं तो इसे भी कभी नहीं भूल पाऊँगी। जीवन में कामसुख का क्या महत्व है इसका अन्दाजा आज हुआ मुझे।”

उसने तुरन्त मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और बोला- अभी तो पूरी रात बाकी है जानेमन।

वो मुझे गोदी में उठाकर बाथरूम में ले गया और शावर के नीचे खड़ा करके शावर चला दिया।

मेरी योनि का दर्द अब बहुत कम हो गया था, उसकी बातों से तो दर्द महसूस ही नहीं हो रहा था। ठण्डा ठण्डा पानी बदन पर गिरना मुझे अच्छा लग रहा था। सबसे पहले उसने हम दोनों का सारा खून सना हिस्सा साफ किया, साबुन लगाकर अच्छी तरह धोया।

अब वो आराम से मुझे नहलाने लगा। मुझे उसका इस तरह अपने बदन पर हाथ फिराना बहुत अच्छा लगने लगा। ऊपर से ठण्डा-ठण्डा पानी माहौल में गर्मी पैदा करने लगा।

मुझे पता ही नहीं चला कब मेरे हाथ भी मुकुल के बदन पर चलने लगे। उसकी चौड़ी छाती पर मैंने अपने गीले होंठों से एक चुम्ब‍न जड़ दिया।

मुकुल ने मुझे जकड़ लिया, मेरे दोनों रसीले खरबूजे मुकुल की छाती में दबने लगे, मेरे हाथ अब मुकुल की पीठ पर चल रहे थे।

मैंने अपने हाथ नीचे सरकाकर उसके गीले नितम्बों पर फेरने शुरू कर दिये।

अचानक मुझे बदमाशी सूझी और मैंने अपने बांये हाथ की तर्जनी ऊंगली मुकुल की गुदा में घुसाने की कोशिश की।

मुकुल कूदकर पीछे हटते हुए बोला- बदमाशी कर रही हो…?

हम दोनों एक साथ हंसने लगे। मुकुल ने मेरे गीले बदन को पुन: चाटना शुरू कर दिया। मेरी दोनों गोलाईयों को प्यार से सहलाते सहलाते वो मेरे चुचुक उमेठ देता…सीईईईई…मेरे मुंह से अचानक सिसकारी निकल जाती।

मुकुल का तो पता नहीं पर पानी में ये अठखेलियाँ मुझे बहुत अच्छी लग रही थी।

तभी मैंने महसूस किया कि मेरी जांघ पर कुछ टकरा रहा है। मैंने नीचे देखा मुकुल का काला नाग फिर से जाग गया था और युद्ध के लिये तैयार था।

उसको देखकर ही मेरी योनि के अन्दर तरावट होने लगी, मैं वहीं फर्श पर घुटनों के बल बैठ गई और मुकुल के उस बहादुर नाग को अपने होंठों में दबोच लिया।

‘उम्‍म्‍म्‍म… वाह…’ कितना स्वादिष्ट लग रहा था।

मेरे होंठ उसके लिंग पर आगे पीछे सरकने लगे।

सीईईईई… इस बार सिसकारी मुकुल की थी, उसने अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और अपने नितम्बों को हौले हौले हिलाने लगा।

कुछ देर बाद मुकुल ने मुझे खड़ा होने का इशारा किया, मैं खड़ी हुई तो मुकुल ने मुझे कमोड की तरफ मुंह करके आगे की ओर झुका दिया।

मैं दोनों हाथ से कमोड को पकड़ कर नीचे की ओर झुक गई, अब मेरे नितम्ब मुकुल की तरफ थे ओर आगे की ओर नीचे झुकने के कारण मेरी योनि पीछे की ओर बाहर दिखने लगी।

मुकुल वहीं से मेरी उस रामप्यारी पर जीभ रखकर चाटने लगा। 2-4 बार चाटने के बाद मुकुल ने अपना लिंग पीछे से मेरी योनि पर लगाया ओर एक हाथ से मेरी कमर को पकड़कर जोर लगाया, इस बार हल्के से सहारे से ही लिंग का अगला हिस्सा अन्दर सरक गया।

मेरी चम्पा चमेली तो जैसे उसके नाग को अपने अन्दर लेने को तैयार बैठी थी, बहुत टाईट जरूर लग रहा था पर ऐसा लग रहा था जैसे वो खुद-ब-खुद ही अन्दर घुसा चला आ रहा हो।

अब मुकुल ने दोनों हाथों से मेरी कमर को पकड़ कर जोर का धक्का मारा और उसका पूरा का पूरा शेर मेरी माँद में घुस गया।

मेरे दोनों स्तन आगे पीछे झूलने लगे।

‘वाह ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ…’ उनका यूं झूलना भी तो गजब ढा रहा था पर शायद मुकुल को उनका यों झूलना पसन्द नहीं आया।

अब उसने मेरे ऊपर झुककर मेरे दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में कैद कर लिया और पीछे से अपने नितम्ब आगे पीछे हिलाने लगा।

हाययययय…क्या अहसास था… मैं भी अपने नितम्ब… आगे पीछे करके मुकुल का साथ देने लगी।

इस बार भी मैं ही पहले धराशायी हुई, मुकुल तो जैसे हर बार जीतने की ठान चुका था पर फिर भी उसको मेरे सामने झुकना ही था, मेरे पीछे-पीछे ही उसका शेर भी बेचारा निढाल हो कर बाहर आ गया।

मैंने उठकर पीछे मुड़ कर देखा हाययययय…रे.ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ…कितना क्यूट लग रहा था ना सच्ची…।

अब मैंने तुरन्त पानी लेकर अपने और मुकुल के शरीर को साफ किया।

थकान इतनी हो रही थी कि खड़ा होना भी मुश्किल था, आखिर पहली बार मैंने ये खेल खेला था, तौलिये से बदन साफ कर मैं बाहर आई तो ध्यान आया कि सारी चादर खून से सनी हुई थी।

मैंने मुकुल को आवाज लगाकर कहा तो उसने बाहर आकर वेटर को बुलाया। उसको 100 का नोट पकड़ाया वेटर तुरन्त बिस्तर बदल कर दूसरा दे गया।

अब तो नींद बहुत जबरदस्त थी, मैं तुरन्त ही बिस्तर में आ गई, मुकुल भी आ गया।

हम दोनों एक दूसरे को चिपक कर सो गये।

सुबह मेरी आँख पहले खुली, मैंने देखा मेरे मोबाइल में पापा की 9 मिस काल थी, मैंने तुरन्त पापा को फोन किया तो पापा ने बताया कि रात को आशीष का एक्सीडेन्ट हो गया, अब वो हास्पीटल में है।

मेरी आँखों से तो तभी आँसुओं की धारा बहने लगी, मैंने फोन काटते ही मुकुल को जगाया तेजी से तैयार होकर जयपुर के लिये निकल गये।

मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि मैं क्याँ करूंॽ मुझे लगा कि रात को मैंने जो किया भगवान ने मुझे ये उसी की सजा दी, मेरे पति का एक्सीडेन्ट हो गया।

शायद मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी।

मुझे खुद पर बहुत शर्मिन्दगी महसूस हो रही थी दिल कर रहा था कि चुल्लू भर पानी में डूब मरूं। क्या इतना भी कंट्रोल नहीं है मेरा खुद परॽ

दिल्ली से जयपुर तक मुकुल लगातार ड्राइव करता रहा और मैं लगातार सिर्फ आँसू ही बहाती रही।

सीधे उस नर्सिंग होम में पहुँची जहाँ आशीष भर्ती थे, उनको सामने देखा तो जान में जान आई।

आशीष भी जैसे मेरी ही राह देख रहे थे, दरवाजे पर ही मुझे देखकर उन्होने मुझे पुकारा। उनके मुख से अपना नाम इतना दिनों बाद सुनकर पुन: मेरी अश्रुधारा बह निकली पर आशीष ठीक थे उनके सिर और एक पैर में कुछ चोट आई थी।

डाक्टर ने बताया कि कुछ घंटों के बाद उनको छुट्टी मिल जायेगी।

मैंने वहीं रूकने का फैंसला किया और मुकुल को वापस भेज दिया।

शाम को मैं आशीष को लेकर घर आ गई। मेरी सास का दिमाग भी उस समय बिल्कुल शांत था इसीलिये कोई बात नहीं हुई पर मैं लगातार आत्मग्लानि को आत्मसात कर रही थी, आशीष से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी।

जैसे तैसे रात हुई। सब अपने अपने कमरे में गये मैं भी आशीष के साथ अपने कमरे में आ गई।

अन्द‍र जाते ही आशीष ने मुझे गले से लगा लिया, वो सच में मुझसे बहुत प्यार करते थे, मैं बहुत परेशान थी, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ।

दिल हो रहा था कि आत्मरहत्या कर लूँ पर मेरे अन्दर शायद इतनी भी हिम्मत नहीं थी।

आशीष थे कि मुझे एक पल भी अलग नहीं होने दे रहे थे, उनका प्यार देख-देख कर तो मैं वैसे ही शर्मिन्दा हो रही थी।

अचानक आशीष ने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा- नयना.. तुम्हारा ध्यान किधर है… कुछ परशान लग रही हो? सब ठीक है ना?

कितनी अच्छी तरह जानते थे आशीष मुझे ! उनका सवाल सुनते ही पता नहीं मुझे क्या हुआ, मैं खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाई और फ़ूट पड़ी…

इतनी जोर जोर से मुझे रोता देखकर आशीष बहुत परेशान हो गये। मेरे सिर पर बार बार प्या‍र से हाथ फेरते और बात पूछते।

मेरी आँखें बन्द थी, मैं एक सांस में कल घर से चलने से लेकर दिल्‍ली जाने और वहाँ से जयपुर आने तक पूरी बात आशीष को बताती चली गई।

मेरी बात पूरी होते ही आशीष की पकड़ मुझ पर ढीली हो गई, मैं अपराधबोध से ग्रस्त वहीं पड़ी रही, इतनी हिम्मत नहीं थी कि आशीष ने नजरें मिला सकूँ।

आशीष भी बिल्कुल भावहीन से ऊपर कमरे की छत की तरफ देखते रहे।

कुछ मिनट बात आशीष बोले- नैना.. तुम एक साधारण इंसान नहीं, उससे बढ़कर हो।

मैंने नजरें आशीष की तरफ घुमाई। आशीष फिर बोले- यदि तुम पुरूष होती तो शायद इतने दिन खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाती ! यह जो तुमने कल रात किया, कई साल पहले ही कर जाती। तुम एक नारी हो, मर्यादा में बंधी हो शायद इसीलिये खुद पर कंट्रोल कर पाई, अब तुम भी आखिर हो तो इंसान ही ना, और फिर जो भी हुआ वो तुमने आकर मुझे बता दिया। अगर तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद यह कभी नहीं कर पाता। और हाँ, तुमने जो भी किया उसमें कुछ भी गलत नहीं किया, यह तो हर इंसान के शरीर की जरूरत है। क्योंकि शादी, प्यार और सैक्स, ये सब अलग अलग बातें हैं, ऐसा नहीं है कि तुमने किसी और के साथ सैक्स किया तो तुम्हारा मेरे प्रति प्यार या जिम्‍मेदारी कम हो गई; या मेरा प्यार तुम्हारे प्रति कम हो गया। मैं तो पुरूष हूं, तुमको प्यार भी करता हूं पर जब माँ ने तुमको घर से निकाला तो मैं कुछ भी नहीं कर पाया, और एक तुम हो जो मेरा एक्सीडेन्ट सुनकर सबकुछ भुलाकर भागी चली आई। यह तुम्हारा एहसान मुझ पर आजीवन रहेगा, और हाँ तुम मुकुल साथ कुछ भी करने को मेरी तरफ से आजाद हो। बस इतना ध्या‍न रखना कि वो यहाँ ना आये, तुम उसके लिये महीने में एक-दो बार आगरा जा सकती हो, मुझे कोई एतराज नहीं है। और मुकुल से तुमको जो बच्चा मिलेगा, मैं उसको अपना नाम देना चाहता हूँ ताकि माँ ने तुम्हारे माथे पर जो बांझ का कलंक लगाया, वो मिट सके।

मैं आशीष की बात सुनती रही, मुझे तो जब होश आया जब वो चुप हो गये।

मैंने भावविभोर होकर उनके पैर छू लिये, मैं भी यह समझ चुकी थी कि मुकुल मेरे शरीर की जरूरत थी पर आशीष का साथ जीवन में सबसे प्यारा था।

मुझे पता ही नहीं चला मैं कब नींद की आगोश में चली गई।

पाठकगण अपनी प्रतिक्रिया पर अवश्य दें।


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