घर का बिजनिस --6
मैं- “देखो बुआ, आप इस माहौल से गुजर चुकी हो। मुझे नहीं लगता कि वो आदमी जो कि दीदी की सील खोलने के पैसे दे रहा है, उस वक़्त वहाँ किसी का रुकना पसंद करेगा और अगर उसने कुछ नहीं कहा तो हो सकता है कि दीदी ही बुरा मान जाये…”
अम्मी- “अंजली भला क्यों बुरा मानेगी? वो तो मेरी अच्छी बेटी है…”
मैं- “देखो अम्मी, मैं मानता हूँ कि वो आपकी बेटी है, आपकी किसी बात से इनकार नहीं करेगी। लेकिन ये भी तो सोचो कि दीदी का पहली बार होगा और वो एक तो एक अंजान आदमी के साथ होंगी और फिर हममें से वहाँ कोई होगा तो उसे कितनी शरम आएगी…”
बापू- “लेकिन बेटा, फिर भी वहाँ उसके पास किसी ना किसी का होना तो जरूरी है ना… चाहे बाहर ही सही…”
मैं- बापू, पहले तो आप ये बताओ कि दीदी को हमने भेजना कहाँ है?
बापू- “यार कहीं बाहर नहीं जाना है… वो जो मैंने तुम्हें फ्लैट की चाबी दी है ना वहाँ अंजली ही पहला काम करेगी…”
मैं- तो फिर परेशानी किस बात की है? मैं तो वहाँ हूँगा ही… आप लोग ऐसे ही परेशान हो रहे हैं…”
अम्मी- “ठीक है बेटा, तुम ऐसा करो कि सुबह अंजली को अपने साथ ही ले जाना। मैं उसे समझा दूँगी कि वो तुम्हारे साथ जाने से पहले थोड़ा तैयार हो जाये और एक अच्छा सा सूट भी साथ में ले जाये जो कि वहाँ जाकर पहन ले। क्योंकि यहाँ से जाते हुये अंजली को ऐसे कपड़ों में अगर किसी ने देख लिया तो तरह-तरह की बातें बनाता फिरेगा…”
अम्मी की बात से सबने इत्तेफाक किया और फिर बुआ उठी और मेरा हाथ पकड़कर बोली- “चलो आलोक तुम्हारे रूम में चलते हैं…”
अम्मी- क्यों? जो करना है यहाँ ही कर लो ना? हमसे कौन सा परदा है तुम्हें?
बापू- “हाँ भाई आलोक, ऐसा करो कि आज यहाँ हमारे रूम में ही सो जाओ तुम दोनों…”
अम्मी बापू की तरफ देखते हुये बोली- “मैं तो आज काफी थक गई हूँ। मैं आलोक के रूम में जाकर सो जाती हूँ और आप लोग यहाँ सो जाओ…”
अम्मी के जाते ही बापू ने बुआ की तरफ देखा और बोले- “चलो भाई, दरवाजा तो लाक कर दो…”
बुआ उठी और जाकर दरवाजा लाक करके मेरे पास आ गई और मुझे हाथ से पकड़कर बापू के पास बेड पे ले गई और बोली- “आलोक, दिन में तुमने पूछा था ना कि मुझे किसके साथ मजा आता है तो आ जाओ आज दिखाती हूँ तुम्हें…”
बुआ के इतना बोलते ही बापू ने बुआ को हाथ से पकड़ लिया और अपनी तरफ खींच लिया जिससे बुआ बापू के ऊपर गिर सी गई और फिर दोनों बहन-भाई किस करने लगे और बापू ने किस करने के साथ ही अपना एक हाथ पीछे करके बुआ की गाण्ड पे रख दिया। ये नजारा देखकर मेरा लण्ड भी शलवार में खड़ा हो गया और मैंने भी अपना हाथ आगे बढ़ा दिया और बुआ की कमर को सहलाने लगा। कुछ देर किस करने के बाद बापू ने बुआ को थोड़ा पीछे किया और बुआ की कमीज पकड़कर उतार दी।
और मेरी तरफ देखकर कहा- “आलोक, मेरी बहन की शलवार भी निकाल दो…”
बापू की बात ने मेरे लण्ड में आग सी लगा दी और मैंने अपने हाथ आगे बढ़ा दिए और बुआ की इलास्टिक वाली शलवार खींचकर नीचे गिरा दी और बुआ को नीचे से भी नंगा कर दिया और अपने होंठ बुआ की नंगी और गोरी गाण्ड पे रखकर एक चुम्मा ले लिया।
मेरे इस तरह चूमने से बुआ सिहर उठी और आअह्ह… भाई तेरा बेटा तो बड़ा हरामी है। देखो मेरी गाण्ड को चूम रहा है।
बापू ने हँसते हो बुआ की ब्रा से उसकी चूचियां को बाहर निकाल दिया और हाथों में पकड़कर बोले- आखिर बेटा किसका है?
बुआ ने कहा- “हाँ, जैसा मेरा हरामी भाई है, वैसा ही उसका बेटा भी होगा ना हेहेहेहेहे…”
अब मैं उठा और अपने कपड़े उतार दिए और बुआ की तरह नंगा हो गया और बुआ जो कि बापू के ऊपर झुकी उनसे अपनी चूचियां चुसवा रही थी, पीछे से उनकी टाँगों को थोड़ा खोला और अपना मुँह घुसाकर बुआ की फुद्दी पे अपनी जुबान घुमाने लगा। ऐसा करते वक़्त मेरा मुँह तो बुआ की फुद्दी को चाट रहा था लेकिन मेरी नाक बुआ की गाण्ड के सुराख के ऊपर थी और उसमें से आने वाली महक मुझे और भी दीवाना कर रही थी। मेरे इस तरह बुआ की फुद्दी चाटने से बुआ और भी गरम हो गई।
बुआ सिसकी- आअह्ह… आलोक, ये क्या कर रहा है बेटा? उन्म्मह… भाई देखो तुम्हारा बेटा क्या कर रहा है?
बापू ने बुआ की चूचियों से मुँह हटाकर मेरी तरफ देखा और मुझे इस तरह बुआ की गाण्ड में घुसा देखकर बापू भी खुश हो गये और बोले- “शाबाश बेटा, ये हुई ना बात… खा जा अपनी बुआ की फुद्दी को… साली की फुद्दी में बड़ी गर्मी है…”
कुछ देर इसी तरह चाटने के बाद पता नहीं मेरे दिल में क्या आई कि मैंने अपना मुँह थोड़ा ऊपर किया और अपनी जुबान को बुआ की गाण्ड के सुराख पे घुमा दिया जिससे मुझे तो बड़ा अजीब सा महसूस हुआ लेकिन बुआ तड़प ही उठी।
बुआ की गाण्ड पे जुबान लगते ही बुआ- “ऊओ… आलोक उन्म्मह… हाँ बेटा, यहाँ ही चाटो… बड़ा अच्छा लगा है बेटा आअह्ह…”
बापू ने कहा- क्या हुआ साली? इतना क्यों चिल्ला रही है? आज हम बाप बेटा तेरी फुद्दी में लगी आग को इतना ठंडा करेंगे कि तुझे नानी याद आ जायेगी हरामजादी कुतिया…”
अब मैं बड़े जोरों से बुआ की गाण्ड और फुद्दी पे अपनी जुबान घुमाने लगा था जिससे बुआ और भी मचल रही थी- “और आअह्ह… आलोक, खा जाओ अपनी बुआ की फुद्दी और गाण्ड को… उन्म्मह… भाई मैं जाने वाली हूंन… आअह्ह… म्माआ… मैं गई…” और इसके साथ ही बुआ के जिश्म को झटका सा लगा और बुआ की फुद्दी से मनी का फावरा सा निकला जो कि कुछ तो बापू के ऊपर गिरा जो कि बुआ के नीचे लेटे हुये थे और बाकी को मैं अपनी जुबान से लप्पर-ललप्पर करके चाट गया।
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Re: Hot stori घर का बिजनिस
बुआ फारिग़ होने के बाद निढाल सी हो गई तो बापू ने बुआ को बगल में लिटा दिया और खड़े होकर अपने कपड़े उतार दिए और मेरे सामने नंगे हो गये। बापू का लण्ड मुझसे काफी छोटा कोई 5½ और पतला भी था। अब बापू ने बुआ को बालों से पकड़कर उठा लिया और बुआ के मुँह में अपना लण्ड घुसा दिया और मुझसे कहा- “चल बेटा, घुसा दे अपनी इस गश्ती बुआ की फुद्दी में अपने लण्ड को…”
मैंने बापू की बात सुनी और बुआ की टांगें खोलकर बीच में आ गया और अपने लण्ड को बुआ की फुद्दी पे सेट किया और एक जोरदार झटके से लण्ड को बुआ की फुद्दी की गहराई में उतार दिया। मैंने बड़ी बुरी तरीके से बुआ की फुद्दी में लण्ड घुसाया था जिससे बुआ के मुँह से घूंन… घूवन्न… की आवाज ही निकल सकी। क्योंकि बापू ने बुआ को सर से पकड़कर उसके मुँह में अपना लण्ड घुसा रखा था और पकड़ा हुआ था जिससे बुआ के मुँह से कोई आवाज नहीं निकल सकी।
अब मैंने एक बार फिर से अपने लण्ड को सुपाड़े तक बुआ की फुद्दी से बाहर खींचा और एक तेज झटका दिया जिससे मेरा लण्ड बुआ की बच्चेदानी से जाकर जोर से टकराया क्योंकि मैंने बुआ की टाँगों को उसके कंधों के साथ दबा रखा था जिससे कि मेरा लण्ड जड़ तक बुआ की फुद्दी में घुस रहा था और बुआ तकलीफ से मचलने लगीं।
मेरे इन जोरदार धक्कों की वजह से बुआ अपने मुँह से बापू के लण्ड को बाहर निकालने की कोशिश करने लगी और घूंन… घूंन… ऊवन्न… की आवाज करने लगीं।
अब बापू ने बुआ के मुँह से अपना लण्ड निकाल लिया।
तो बुआ के मुँह से- आअह्ह… आसस्सीफफ्फ़ आराम से… फाड़नी है क्या? आराम से करो प्लीज़्ज़…”
अब बापू ने मेरे कंध पे हाथ रखा और मुझे रुकने का इशारा किया। मेरे रुकते ही बापू ने मुझे बुआ के ऊपर से हटा दिया और मुझे बेड पे लेटने को कहा। जैसे ही मैं लेटा तो बापू ने बुआ से कहा- “चल अब बैठ जा इसके लण्ड पे…”
और बुआ मेरे लण्ड पे बैठ गई तो मैंने बुआ को अपनी तरफ खींच लिया और किस करने लगा। बापू ने बुआ की गाण्ड पे थूक लगाकर अपने लण्ड को बुआ की गाण्ड पे रखकर और घुसाने लगे। तो बुआ ने मेरे साथ किस करना छोड़ दिया और सर को घुमाकर बापू की तरफ देखा और बोली- “नहीं भाई, प्लीज़्ज़… इस तरह बहुत दर्द होगा ऊओफफ्फ़…”
बापू ने बुआ की कोई बात नहीं सुनी और बार-बार अपने लण्ड को बुआ की गाण्ड में घिसते गये जिसका मुझे भी अपने लण्ड पे रगड़ से पता चल रहा था कि बापू रुक नहीं रहे हैं। बुआ का मुँह उस वक़्त लाल हो रहा था और आँखों से भी पानी निकल रहा था- “आऐ… भाईई नहीं प्लीज़्ज़ …निकालो बाहर… मेरी गाण्ड फट जायेगी भाई जान…” बापू ने बुआ की किसी बात पे कान नहीं धरा और अपने लण्ड को बुआ की गाण्ड में घुसा दिया और आहिस्ता से अंदर-बाहर करने लगे।
जिससे कि मुझे भी उतना ही मजा आने लगा जितना बापू को अंदर-बाहर में आ रहा होगा।
अब बापू बोले- “हाँ साली… अब बोल, मजा आ रहा है या माँ चुद गई है तेरी? हाँ बोल कुतिया…”
बुआ की आँखों से आँसू निकल रहे थे और बुआ- “भाईई प्लीज़्ज़… बड़ा दर्द हो रहा है मुझे… और नहीं करो… थोड़ा रुक जाओ भाईई… फट जायेगी मेरी गाण्ड…”
कुछ देर तक बापू आहिस्ता से बुआ की गाण्ड मारते रहे जिससे बुआ को थोड़ी राहत मिली और बुआ को भी मजा आने लगा जिससे बुआ बापू को- “हाँ भाईई, अब कुछ अच्छा लग रहा है। बस इसी तरह आराम से करना भाईई…”
मेरा इस तरह बुआ की फुद्दी में लण्ड घुसाकर लेटे रहने के बावजूद मजे से भी बुरा हाल था और मेरा लण्ड फटा जा रहा था और अब बापू भी फारिग़ होने के करीब ही थे तो बापू ने अब अपनी स्पीड को थोड़ा बढ़ा दिया और क्योंकि अब मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था जिसकी वजह से मैंने भी नीचे से अपने लण्ड को बुआ की फुद्दी में हिलाना शुरू कर दिया।
बुआ भी अब मजे से पागल हो रही थी- “हाँ भाईई… और तेज़्ज़ करो… ऊओ… भाई मैं गई… उन्हं… फाड़ दो मेरी गाण्ड और फुद्दी को कमीनो…”
बुआ की इन गालियों और सिसकियों ने हम बाप बेटे को भी पागल कर दिया था और बापू अब- “हाँ साली, ये ले… आज मैं अपने बेटे के साथ मिलकर तेरी गाण्ड और फुद्दी को फाड़ ही डालूंगा… ऊओ नीलम… मेरी बहना मैं गया…” और इसके साथ ही बापू बुआ की गाण्ड में ही फारिग़ हो गये और बगल में होकर लेट गये।
बापू के बाद मैं भी 5-6 झटके ही लगा सका और बुआ के साथ ही फारिग़ हो गया। फारिग़ होते ही बुआ मुझसे बुरी तरह लिपट गई और किस करने लगी और फिर इसी तरह मेरे ऊपर लेटकर लंबी-लंबी सांसें लेने लगी।
फारिग़ होने के कुछ देर के बाद बापू ने कहा- “चलो बेटा, अभी सो जाते हैं। काफी टाइम हो गया है सुबह तुमने अपनी बहन के साथ भी तो जाना है…”
बापू की बात सुनकर मैंने हाँ में सर हिला दिया और बुआ को अपने लण्ड से उतार दिया जो कि बुआ की फुद्दी में ही सो गया था। फिर मैं उठा और बाहर जाने के लिए कपड़े पहनने लगा तो बापू ने कहा- “आलोक कहाँ जा रहे हो? यहाँ ही सो जाओ…”
मैंने बापू की तरफ देखा और बोला- “बापू जरा नहाने जा रहा हूँ अभी आ जाऊँगा…”
बापू ने कहा- “यार सुबह ही नहा लेना। चलो अभी नींद पूरी कर लो…”
बापू की बात सुनकर मैं भी वहीं लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा।
सुबह अम्मी के उठाने से मेरी आँख खुली तो 8:00 बज चुके थे। मैं उठा और सीधा बाथरूम में घुस गया और नहाकर बाहर निकला तो बुआ ने मुझे नाश्ता लाकर दिया। अभी मैं नाश्ते से फारिग़ ही हुआ था कि अम्मी मेरे पास आकर बैठ गई और बोली- हाँ तो बेटा रात कैसी गुजरी तुम्हारी?
मैंने अम्मी की तरफ देखा और कहा- “अम्मी, अगर आप भी हमारे साथ होती तो ज्यादा मजा आता…”
अम्मी- अच्छा ज्यादा बातें ना बना, जवान औरत की जगह मेरा भला क्या काम?
मैं- “अम्मी आप तो अभी जवान लड़कियों से भी ज्यादा प्यारी और मस्त हो…”
अम्मी- अच्छा जी, तो लगता है कि मेरे बेटे को अब मक्खन लगाना भी आ गया है…”
मैं- नहीं अम्मी, भला मैं आपको मक्खन कैसे लगा सकता हूँ? और हाँ बापू कहीं नजर नहीं आ रहे, कहाँ हैं?
अम्मी- “वो तेरे बापू जरा काम से गये हैं अभी आ जाते हैं तो तुम अंजली को लेकर निकल जाना…”
मैं- ठीक है अम्मी, दीदी कहाँ हैं? वो भी नजर नहीं आ रही?
अम्मी- “वो जरा साथ के मुहल्ले में गई है जरा बाल वगैरा सेट करवाने के लिए…”
फिर बुआ के आने के बाद हमारे बीच इधर-उधर की बातें होने लगी कि तभी बापू भी आ गये। उनके हाथ में एक पैकेट था जो कि बापू ने मुझे पकड़ा दिया और कहा- “इसे अपने साथ ले जाना…”
मैंने पैकेट पकड़ लिया और बापू से पूछा- बापू, इसमें क्या है?
बापू ने कहा- इसमें (ब्लैक डाग) है जो कि आज तुम्हें अपने साथ ले जानी है और अगर अरविंद साहब मांगें तो दे देना, ठीक है (अरविंद उस आदमी का नाम था जिसने आज मेरी बड़ी बहन को कली से फूल बनाना था)
मैंने कहा- ठीक है बापू, और कुछ?
तो बापू ने कहा- “नहीं बेटा, लेकिन देखो वहाँ जो भी हो अपने कान बंद रखना ओके…”
मैंने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “जी बापू, मैं जानता हूँ कि दीदी का पहली बार है और उसे दर्द भी होगा, आप टेंशन नहीं लो…”
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घर का बिजनिस --7
मैंने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “जी बापू, मैं जानता हूँ कि दीदी का पहली बार है और उसे दर्द भी होगा, आप टेंशन नहीं लो…”
अभी हम ये बातें ही कर रहे थे कि घर का बाहर के दरवाजे पर खटखट होने लगी। बुआ उठी और जाकर दरवाजा खोला तो दीदी अंदर आ गई जिसे देखकर एक बार तो मैं भी आँखें बंद करना ही भूल गया। अम्मी दीदी को देखकर उठी और और दीदी की गर्दन पे एक काला टिका सा लगा दिया और कहा- “नजर ना लगे मेरी बच्ची को बड़ी प्यारी लग रही है…”
दीदी अम्मी की बात से थोड़ा शर्मा गई तो बापू ने कहा- चलो आलोक, तुम भी तैयार हो जाओ और अंजली बेटी, तुम भी अपने कपड़े साथ ले लो। वहाँ ही तैयार हो जाना। ठीक है?
दीदी ने बापू की बात सुनकर हाँ में सर हिला दिया और रूम की तरफ चल पड़ी और मैं भी अपने रूम में आ गया और कपड़े चेंज करने लगा। अम्मी मेरे पीछे ही रूम में आ गईं और मुझे कपड़े बदलता देखकर बोली- “आलोक, अपनी बहन का ध्यान रखना बेटा… वो बड़ी नाजुक है…”
मैंने कहा- “अम्मी आप पेरशान ना हूँ मैं हूँगा ना वहाँ… दीदी को कुछ भी नहीं होगा…” और कपड़े पहनकर अम्मी का हाथ पकड़ लिया और बाहर आ गया।
दीदी भी जल्दी ही कपड़े बदलकर आ गई तो अम्मी और बुआ ने दीदी को अपने साथ लिपटाकर प्यार किया और फिर हम दोनों बहन-भाई एक साथ घर से बाहर निकल आए। दीदी को अपने साथ लेकर जाते हुये मेरे अहसासात बड़े अजीब से थे और एक बार तो मेरा दिल किया कि मैं दीदी को वापिस ले जाऊँ और इस गंदगी में गिरने से बचा लूं। लेकिन फिर अपने घर के और अपने हालात देखकर दीदी को अपने साथ फ्लैट की तरफ ले गया।
फ्लैट में आकर मैंने दीदी की तरफ देखा और कहा- “जाओ दीदी, आप रूम में और तैयार होकर आ जाओ…”
दीदी ने बड़ी अजीब नजरों से मुझे देखा और रूम में चली गई। जब दीदी को रूम में गये हुये 15 मिनट से ज्यादा हो गये तो मैंने दरवाजा खटखटाया और कहा- दीदी, क्या आप तैयार हो गई हो?
दीदी ने कहा- “जी भाई…”
तो मैं दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। देखा तो दीदी टाइट जीन्स और शर्ट में कोई इंडियन ऐक्ट्रेस ही लग रही थी। मैं आँखें फाड़े दीदी की तरफ देखने लगा।
तो दीदी ने कहा- “भाई, खड़े क्यों हो? आ जाओ यहाँ बैठ जाओ…”
मैं जाकर दीदी के पास ही एक चेयर पे बैठ गया और दीदी से कहा- दीदी, आप खुश तो हो ना?
दीदी- भाई, आप खुश हो क्या?
मैं- दीदी, मैंने आपसे पूछा था और उल्टा मुझसे ही पूछने लगी हो?
दीदी- हाँ भाई, मैं खुश हूँ और आप?
दीदी का जवाब दीदी की आँखों का साथ नहीं दे रहा था इसलिए मैंने कहा- “दीदी, अगर आपके साथ कोई जबरदस्ती कर रहा है तो आप अभी भी वक़्त है मना कर दो मैं आपका साथ दूँगा…”
दीदी की आँखों से मेरी बात सुनकर दो आँसू निकल गये और दीदी ने कहा- “नहीं भाई, ये सब मैं अपनी मर्ज़ी और घर की खुशी के लिए कर रही हूँ किसी के जोर देने से नहीं…”
मैं- दीदी, अगर आप अपनी मर्ज़ी से कर रही हो तो फिर आपकी आँखों में आँसू कैसे हैं?
दीदी- “भाई, ये तो इसलिए आ गये कि मेरा भाई मुझे कितना चाहता है…”
मैं- “दीदी, सच कहूं तो मैंमें आपको सच में प्यार करता हूँ…”
दीदी- “पता है मुझे…” और सर झुका के बैठ गई और फिर हमारे बीच और कोई बात नहीं हुई।
तो मैं उठा और बाहर हाल में आकर बैठ गया कि तभी बाहर की बेल होने लगी। मैं उठा और जाकर दरवाजा खोला। देखा तो कोई 40 या 45 साल का आदमी था।
वो मुझे देखकर बोला- आप ही आलोक हो?
मैंने हाँ में सर हिलाया।
तो उसने कहा- अरे भाई, अंदर नहीं आने दोगे क्या? मेरा नाम अरविंद है और मेरा ख्याल है कि तुम्हें मेरा नाम बता दिया हो गया होगा…”
मैंने बगल में होकर अरविंद साहब को अंदर आने का रास्ता दिया और उसके अंदर आते ही दरवाजे को फिर से लाक कर दिया और उसे हाल में लाकर बिठा दिया।
तो उसने पूछा- कहाँ है भा, जिसने हमारा दिल चुरा लिया है?
मैं उसकी बात को समझ गया और उठकर दीदी को रूम से बुला लाया और अरविंद साहब के पास बिठा दिया। दीदी उस वक़्त बुरी तरह शर्मा रही थी।
अरविंद ने मेरी तरफ देखा और कहा- यार, यहाँ कोई पीने का इंतजाम नहीं है क्या?
मैंने कहा- “जी मैं अभी लता हूँ… और बगल से बोतल निकाली, जो कि बापू ने मुझे लाकर दी थी, टेबल पे रखा और किचेन से एक गिलास भी ले आया।
अरविंद ने कहा- यार, एक गिलास और ले आओ…
मैं लेकर आया तो उसने कहा- इसके साथ खाने के लिए कुछ नहीं है क्या?
मैंने इनकार में सर हिला दिया तो उसने किसी को काल की और कुछ खाने के लिए बोल दिया तो कुछ ही देर में एक आदमी जो कि ड्राइवर कि वर्दी में था खाने पीने का सामान लाकर दे गया। सामान के आते ही अरविंद ने बोतल खोली और दो गिलास बनाकर एक दीदी की तरफ बढ़ा दिया और दूसरा खुद पकड़ लिया।
दीदी का चेहरा उस वक़्त रोने वाला हो रहा था।
तो अरविंद ने कहा- “पी लो जान, इससे दिल बड़ा हो जाता है और शरम भी खतम हो जाती है…”
मैंने भी दीदी की तरफ देखा और इशारा किया कि वो बात मान ले और शराब पी ले।
दीदी ने आहिस्ता से एक घूँट लगाया और बुरा सा मुँह बना लिया जिससे अरविंद हाहाहाहा करके हँसने लगा और बोला- “अरे यार पी लो, शुरू में ऐसा ही होता है। बाद में ये अपना जादू दिखाती है…”
दीदी ने अरविंद की बात सुनकर एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया।
तो अरविंद ने कहा- “ये नमकीन वगैरा भी लो ना साथ में, मजा आएगा…”
अरविंद की बात सुनकर दीदी ने नमकीन भी ले ली और खाने लगी। तभी अरविंद ने एक गिलास और दीदी की तरफ बढ़ा दिया और बोला- “यहाँ आ जाओ और मेरी गोदी में बैठकर पियो…”
दीदी ने एक बार मेरी तरफ देखा और मैंने हाँ में सर हिला दिया।
तो दीदी उठकर उसकी गोदी में बैठ गई और इस बार बड़े आराम से गिलास खतम किया और साथ नमकीन भी खाती रही।
अब अरविंद शराब भी पी रहा था और साथ दीदी की रानों को भी सहला रहा था जिस पे दीदी ने उसे मना नहीं किया। दीदी का चेहरा शराब पीने की वजह से अब काफी लाल हो रहा था और दीदी को हल्का सा पसीना भी आने लगा था। तो अरविंद ने कहा- “चलो जान, अब रूम में चलते हैं…” और दीदी को अपने साथ रूम में ले गया लेकिन दरवाजा बंद नहीं किया।
कोई 10 मिनट तक रूम में से बस से आअह्ह… की आवाजें ही आती रहीं क्योंकि पता नहीं रूम में क्या हो रहा था? मैंने नहीं देखा। मुझे हिम्मत ही नहीं हो रही थी।
तभी अरविंद ने आवाज दी और कहा- “अरे यार, क्या नाम है तेरा? जरा बाहर से बोतल ही ला दे यार…”
मैं गिलास और बोतल के साथ जब रूम में गया तो दीदी वहाँ जमीन पे बिल्कुल नंगी बैठी हुई थी और उसके मुँह में अरविंद का लण्ड था जिसे दीदी चूस रही थी।
अरविंद ने कहा- “यहाँ रखो और जरा एक गिलास बनाकर मुझे पकड़ा दो…”
मैंने गिलास बनाकर उसे दिया।
तो उसने गिलास पकड़ लिया और बोला- यार, जरा इसको रंडी बनाने से पहले लौड़ा चूसना तो सिखा देते?
मैंने कहा- जी बस अभी नहीं आता है ना इसलिए आप ही सिखा लो… जो कहोगे, आपको मना नहीं करेगी…”
अरविंद ने कहा- हाँ यार, ये तो सच कहा तू ने…” और मुझे कहा- “तू भी अपने लिए एक गिलास बना ले…”
मैं वहाँ से हटा और एक गिलास अपने लिए भी बना लिया कि तभी अरविंद ने जोर से कहा- साली लण्ड पे काटती क्यों है? और दीदी को बालों से पकड़कर उठा लिया और बेड पे फेंक दिया और दीदी की टाँगों को उठा दिया और बोला- “अब देख कि मैं कैसे तेरी फुद्दी को चाटता हूँ…”
मैं गिलास पकड़कर वहीं खड़ा रहा और दीदी की क्लीन और कुँवारी फुद्दी का नजारा लेता रहा और दीदी भी मेरी ही तरफ देख रही थी कि तभी अरविंद ने कहा- चल अब जा यहाँ से कि यहाँ ही खड़ा रहेगा?
मैं अरविंद की बात सुनकर चुपचाप वहाँ से बाहर आ गया और बैठकर शराब पीने लगा। कुछ ही देर हुई थी कि मुझे रूम में से दीदी की दर्द में डूबी हुई- “आऐ रुको भाईई…” की आवाज सुनाई दी।
लेकिन मैं जानता था कि दीदी की आवाज क्यों आ रही है इसलिए मैं वहाँ ही बैठा रहा। कुछ देर तक दीदी- “नहीं प्लीज़्ज़… बाहर निकालो… मैं मर गई… ऊओ भाईई… मुझे बचा लो भाईई…” लेकिन उसके कोई 2-3 मिनट के बाद दीदी की मजे से- “आअह्ह… सस्स्सीई… आहिस्ता करो… उन्म्मह…” की आवाजें फ्लैट में गूँजती रही और फिर पूरे फ्लैट में सकून सा छा गया।
मैंने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “जी बापू, मैं जानता हूँ कि दीदी का पहली बार है और उसे दर्द भी होगा, आप टेंशन नहीं लो…”
अभी हम ये बातें ही कर रहे थे कि घर का बाहर के दरवाजे पर खटखट होने लगी। बुआ उठी और जाकर दरवाजा खोला तो दीदी अंदर आ गई जिसे देखकर एक बार तो मैं भी आँखें बंद करना ही भूल गया। अम्मी दीदी को देखकर उठी और और दीदी की गर्दन पे एक काला टिका सा लगा दिया और कहा- “नजर ना लगे मेरी बच्ची को बड़ी प्यारी लग रही है…”
दीदी अम्मी की बात से थोड़ा शर्मा गई तो बापू ने कहा- चलो आलोक, तुम भी तैयार हो जाओ और अंजली बेटी, तुम भी अपने कपड़े साथ ले लो। वहाँ ही तैयार हो जाना। ठीक है?
दीदी ने बापू की बात सुनकर हाँ में सर हिला दिया और रूम की तरफ चल पड़ी और मैं भी अपने रूम में आ गया और कपड़े चेंज करने लगा। अम्मी मेरे पीछे ही रूम में आ गईं और मुझे कपड़े बदलता देखकर बोली- “आलोक, अपनी बहन का ध्यान रखना बेटा… वो बड़ी नाजुक है…”
मैंने कहा- “अम्मी आप पेरशान ना हूँ मैं हूँगा ना वहाँ… दीदी को कुछ भी नहीं होगा…” और कपड़े पहनकर अम्मी का हाथ पकड़ लिया और बाहर आ गया।
दीदी भी जल्दी ही कपड़े बदलकर आ गई तो अम्मी और बुआ ने दीदी को अपने साथ लिपटाकर प्यार किया और फिर हम दोनों बहन-भाई एक साथ घर से बाहर निकल आए। दीदी को अपने साथ लेकर जाते हुये मेरे अहसासात बड़े अजीब से थे और एक बार तो मेरा दिल किया कि मैं दीदी को वापिस ले जाऊँ और इस गंदगी में गिरने से बचा लूं। लेकिन फिर अपने घर के और अपने हालात देखकर दीदी को अपने साथ फ्लैट की तरफ ले गया।
फ्लैट में आकर मैंने दीदी की तरफ देखा और कहा- “जाओ दीदी, आप रूम में और तैयार होकर आ जाओ…”
दीदी ने बड़ी अजीब नजरों से मुझे देखा और रूम में चली गई। जब दीदी को रूम में गये हुये 15 मिनट से ज्यादा हो गये तो मैंने दरवाजा खटखटाया और कहा- दीदी, क्या आप तैयार हो गई हो?
दीदी ने कहा- “जी भाई…”
तो मैं दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। देखा तो दीदी टाइट जीन्स और शर्ट में कोई इंडियन ऐक्ट्रेस ही लग रही थी। मैं आँखें फाड़े दीदी की तरफ देखने लगा।
तो दीदी ने कहा- “भाई, खड़े क्यों हो? आ जाओ यहाँ बैठ जाओ…”
मैं जाकर दीदी के पास ही एक चेयर पे बैठ गया और दीदी से कहा- दीदी, आप खुश तो हो ना?
दीदी- भाई, आप खुश हो क्या?
मैं- दीदी, मैंने आपसे पूछा था और उल्टा मुझसे ही पूछने लगी हो?
दीदी- हाँ भाई, मैं खुश हूँ और आप?
दीदी का जवाब दीदी की आँखों का साथ नहीं दे रहा था इसलिए मैंने कहा- “दीदी, अगर आपके साथ कोई जबरदस्ती कर रहा है तो आप अभी भी वक़्त है मना कर दो मैं आपका साथ दूँगा…”
दीदी की आँखों से मेरी बात सुनकर दो आँसू निकल गये और दीदी ने कहा- “नहीं भाई, ये सब मैं अपनी मर्ज़ी और घर की खुशी के लिए कर रही हूँ किसी के जोर देने से नहीं…”
मैं- दीदी, अगर आप अपनी मर्ज़ी से कर रही हो तो फिर आपकी आँखों में आँसू कैसे हैं?
दीदी- “भाई, ये तो इसलिए आ गये कि मेरा भाई मुझे कितना चाहता है…”
मैं- “दीदी, सच कहूं तो मैंमें आपको सच में प्यार करता हूँ…”
दीदी- “पता है मुझे…” और सर झुका के बैठ गई और फिर हमारे बीच और कोई बात नहीं हुई।
तो मैं उठा और बाहर हाल में आकर बैठ गया कि तभी बाहर की बेल होने लगी। मैं उठा और जाकर दरवाजा खोला। देखा तो कोई 40 या 45 साल का आदमी था।
वो मुझे देखकर बोला- आप ही आलोक हो?
मैंने हाँ में सर हिलाया।
तो उसने कहा- अरे भाई, अंदर नहीं आने दोगे क्या? मेरा नाम अरविंद है और मेरा ख्याल है कि तुम्हें मेरा नाम बता दिया हो गया होगा…”
मैंने बगल में होकर अरविंद साहब को अंदर आने का रास्ता दिया और उसके अंदर आते ही दरवाजे को फिर से लाक कर दिया और उसे हाल में लाकर बिठा दिया।
तो उसने पूछा- कहाँ है भा, जिसने हमारा दिल चुरा लिया है?
मैं उसकी बात को समझ गया और उठकर दीदी को रूम से बुला लाया और अरविंद साहब के पास बिठा दिया। दीदी उस वक़्त बुरी तरह शर्मा रही थी।
अरविंद ने मेरी तरफ देखा और कहा- यार, यहाँ कोई पीने का इंतजाम नहीं है क्या?
मैंने कहा- “जी मैं अभी लता हूँ… और बगल से बोतल निकाली, जो कि बापू ने मुझे लाकर दी थी, टेबल पे रखा और किचेन से एक गिलास भी ले आया।
अरविंद ने कहा- यार, एक गिलास और ले आओ…
मैं लेकर आया तो उसने कहा- इसके साथ खाने के लिए कुछ नहीं है क्या?
मैंने इनकार में सर हिला दिया तो उसने किसी को काल की और कुछ खाने के लिए बोल दिया तो कुछ ही देर में एक आदमी जो कि ड्राइवर कि वर्दी में था खाने पीने का सामान लाकर दे गया। सामान के आते ही अरविंद ने बोतल खोली और दो गिलास बनाकर एक दीदी की तरफ बढ़ा दिया और दूसरा खुद पकड़ लिया।
दीदी का चेहरा उस वक़्त रोने वाला हो रहा था।
तो अरविंद ने कहा- “पी लो जान, इससे दिल बड़ा हो जाता है और शरम भी खतम हो जाती है…”
मैंने भी दीदी की तरफ देखा और इशारा किया कि वो बात मान ले और शराब पी ले।
दीदी ने आहिस्ता से एक घूँट लगाया और बुरा सा मुँह बना लिया जिससे अरविंद हाहाहाहा करके हँसने लगा और बोला- “अरे यार पी लो, शुरू में ऐसा ही होता है। बाद में ये अपना जादू दिखाती है…”
दीदी ने अरविंद की बात सुनकर एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया।
तो अरविंद ने कहा- “ये नमकीन वगैरा भी लो ना साथ में, मजा आएगा…”
अरविंद की बात सुनकर दीदी ने नमकीन भी ले ली और खाने लगी। तभी अरविंद ने एक गिलास और दीदी की तरफ बढ़ा दिया और बोला- “यहाँ आ जाओ और मेरी गोदी में बैठकर पियो…”
दीदी ने एक बार मेरी तरफ देखा और मैंने हाँ में सर हिला दिया।
तो दीदी उठकर उसकी गोदी में बैठ गई और इस बार बड़े आराम से गिलास खतम किया और साथ नमकीन भी खाती रही।
अब अरविंद शराब भी पी रहा था और साथ दीदी की रानों को भी सहला रहा था जिस पे दीदी ने उसे मना नहीं किया। दीदी का चेहरा शराब पीने की वजह से अब काफी लाल हो रहा था और दीदी को हल्का सा पसीना भी आने लगा था। तो अरविंद ने कहा- “चलो जान, अब रूम में चलते हैं…” और दीदी को अपने साथ रूम में ले गया लेकिन दरवाजा बंद नहीं किया।
कोई 10 मिनट तक रूम में से बस से आअह्ह… की आवाजें ही आती रहीं क्योंकि पता नहीं रूम में क्या हो रहा था? मैंने नहीं देखा। मुझे हिम्मत ही नहीं हो रही थी।
तभी अरविंद ने आवाज दी और कहा- “अरे यार, क्या नाम है तेरा? जरा बाहर से बोतल ही ला दे यार…”
मैं गिलास और बोतल के साथ जब रूम में गया तो दीदी वहाँ जमीन पे बिल्कुल नंगी बैठी हुई थी और उसके मुँह में अरविंद का लण्ड था जिसे दीदी चूस रही थी।
अरविंद ने कहा- “यहाँ रखो और जरा एक गिलास बनाकर मुझे पकड़ा दो…”
मैंने गिलास बनाकर उसे दिया।
तो उसने गिलास पकड़ लिया और बोला- यार, जरा इसको रंडी बनाने से पहले लौड़ा चूसना तो सिखा देते?
मैंने कहा- जी बस अभी नहीं आता है ना इसलिए आप ही सिखा लो… जो कहोगे, आपको मना नहीं करेगी…”
अरविंद ने कहा- हाँ यार, ये तो सच कहा तू ने…” और मुझे कहा- “तू भी अपने लिए एक गिलास बना ले…”
मैं वहाँ से हटा और एक गिलास अपने लिए भी बना लिया कि तभी अरविंद ने जोर से कहा- साली लण्ड पे काटती क्यों है? और दीदी को बालों से पकड़कर उठा लिया और बेड पे फेंक दिया और दीदी की टाँगों को उठा दिया और बोला- “अब देख कि मैं कैसे तेरी फुद्दी को चाटता हूँ…”
मैं गिलास पकड़कर वहीं खड़ा रहा और दीदी की क्लीन और कुँवारी फुद्दी का नजारा लेता रहा और दीदी भी मेरी ही तरफ देख रही थी कि तभी अरविंद ने कहा- चल अब जा यहाँ से कि यहाँ ही खड़ा रहेगा?
मैं अरविंद की बात सुनकर चुपचाप वहाँ से बाहर आ गया और बैठकर शराब पीने लगा। कुछ ही देर हुई थी कि मुझे रूम में से दीदी की दर्द में डूबी हुई- “आऐ रुको भाईई…” की आवाज सुनाई दी।
लेकिन मैं जानता था कि दीदी की आवाज क्यों आ रही है इसलिए मैं वहाँ ही बैठा रहा। कुछ देर तक दीदी- “नहीं प्लीज़्ज़… बाहर निकालो… मैं मर गई… ऊओ भाईई… मुझे बचा लो भाईई…” लेकिन उसके कोई 2-3 मिनट के बाद दीदी की मजे से- “आअह्ह… सस्स्सीई… आहिस्ता करो… उन्म्मह…” की आवाजें फ्लैट में गूँजती रही और फिर पूरे फ्लैट में सकून सा छा गया।