kamuk kahaani-जवानी की मिठास compleet

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rajaarkey
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Re: kamuk kahaani-जवानी की मिठास

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 16:10

गुड़िया- मेरा कर रहा हो या नही तू तो अपने भाई का लंड ले चुकी है ना,

चंपा- उसके दूध को दबाती हुई, अरे रानी ले चुकी हू और बड़ा मज़ा भी आता

है अपने भाई के मोटे लंड से चुदवाने मैं

इसीलिए तो तुझे भी कहती हू, एक बार अपने भैया के मोटे लंड पर बैठ जाएगी

ना तो फिर जिंदगी भर उठने का मन नही

करेगा,

गुड़िया- अपने घाघरे के अंदर हाथ डाल कर अपनी चूत को खुजलाती हुई, अरे

चंपा मेरी ऐसी किस्मत कहाँ

चंपा- गुड़िया के घाघरे से उसका हाथ निकालते हुए, अरे महरानी तुम क्यो

कष्ट कर रही हो जब तुम्हारी गुलाम तुम्हारे

पास बैठी है और फिर चंपा अपने हाथ से गुड़िया की चूत को सहलाते हुए, खूब

मन कर रहा है ना अपने भैया के

मोटे लंड को लेने का, लगता है यह पायल भी तेरे भैया ने ही तुझे पहनाई है,

गुड़िया- हा उन्होने अपने हाथो से मेरे पैरो मे पायल पहनाई है,

चंपा- तो थोड़ा घाघरा उठा कर उन्हे अपनी इस गुलाबी चूत के दर्शन भी करवा देती

गुड़िया- अरे कहाँ से करवा दू कही भैया गुस्सा हो गये तो

चंपा- लगता है तू अपने भैया से ज़्यादा चिपकती नही है, एक बार अपनी इस

गदराई जवानी का एहसास उन्हे करा दे, तेरी

जवानी की महक पाते ही देख लेना तेरे भैया का मोटा लंड खड़ा ना हो जाए तो फिर कहना,

गुड़िया- तुझे एक बात तो बताना भूल ही गई भैया मुझे अपने साथ शहर ले जाना चाहते है,

चंपा- मुस्कुरकर लगता है तेरे भैया को तेरी पकी जवानी की महक आ चुकी है

तभी तो वह तुझे शहर ले जाकर

आराम से चोदना चाहते है,

दोनो बाते मैं मगन थी तभी रुक्मणी की आवाज़ आई

गुड़िया ओ गुड़िया देख तेरे भैया बुला रहे है और फिर गुड़िया फुदक कर

अपने घर मे आ जाती है,

रुक्मणी- दोनो भाई बहन सो जाओ और मैं ज़रा पड़ोस मैं जमुना के यहा से हो कर आती हू,

अपनी मा के जाने के बाद विजय अपनी खटिया बिच्छा कर लेट जाता है और

गुड़िया उसके पास जाकर बैठ जाती है

विजय-गुड़िया की पीठ सहलाता हुआ, मेरी बहना अब बड़ी हो गई है, है ना

गुड़िया- अपना मूह फूला कर हा बड़ी हो गई हू इसीलिए आप मुझसे अब पहले

जैसा प्यार नही करते,

विजय- अरे किसने कहा मैं तुझे प्यार नही करता

गुड़िया- उसे आँखे दिखाती हुई और नही तो क्या पहले तो आप मुझे चाहे जब

अपनी गोद मे बैठा कर कितना मुझे चूमते

थे और कितनी देर तक मुझे सहलाते हुए प्यार करते थे लेकिन अब पता नही क्यो

मुझसे दूर-दूर रहते हो

विजय ने मन मे सोचा उसकी बहन कितनी भोली है क्यो ना मैं इसकी गदराई जवानी

का मज़ा ले लू और फिर उसकी ऐसी बाते सुन कर विजय का लंड अपनी लूँगी मे

खड़ा हो चुका था,

विजय- अच्छा भाई आज हम अपनी बहन को पहले जैसा ही प्यार करेगे, चल आजा मैं

तुझे अपनी गोद मे बैठा कर प्यार

करूँगा और फिर विजय अपने दोनो पेर चारपाई से नीचे झूला कर गुड़िया को

अपनी लूँगी मे खड़े लंड पर बैठा लेता है

और गुड़िया को जैसे ही अपनी मोटी गंद मे घाघरे के उपर से अपने भैया के

मोटे लंड का एहसास होता है उसकी चूत पानी

छ्चोड़ने लग जाती है और वह कस कर विजय से चिपक जाती है, विजय अपनी बहन के

रसीले होंठो और गालो को खूब ज़ोर-ज़ोर से चूमते हुए कभी उसके कसे हुए दूध

को हल्के हल्के दबाता है और कभी उसके चिकने पेट पर हाथ फेरता है, विजय का

मोटा लंड गुड़िया की गंद मे फसा रहता है और गुड़िया अपने भैया के लंड की

मोटाई और लंबाई का एहसास करते हुए उसके लंड पर इधर उधर अपनी गंद मारने

लगती है,

विजय- उसके गालो को चूमता हुआ एक हाथ से उसके मोटे-मोटे दूध को हल्के

हाथो से दबाते हुए, बोल गुड़िया चलेगी

मेरे साथ शहर

गुड़िया- हा भैया वैसे भी मुझे तुम्हारे बिना यहा अच्छा नही लगता है,

विजय- पर वहाँ जाकर तुझे इसी तरह रोज मेरी गोद मे बैठना पड़ेगा क्यो कि

वाहा लेजा कर मैं तुझे बहुत प्यार करूँगा

गुड़िया- मैं भी तो यही चाहती हू भैया कि तुम मुझे दिन भर अपनी गोद मे

बैठा कर प्यार करो, जानते हो जब तुम मुझे

अपनी गोद मे बैठा कर प्यार करते हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है और जहा भी

शरीर मे दर्द होता है वह ख़तम

हो जाता है,

विजय- अच्छा तुझे कहाँ पर ज़्यादा दर्द रहता है

गुड़िया- भोली बनते हुए अपने भैया का हाथ पकड़ कर अपने मोटे-मोटे कसे हुए

दूध पर रख कर, यहा बहुत दर्द

रहता है भैया,

विजय का लंड गुड़िया की बात सुन कर झटके मारने लगता है और, वह गुड़िया के

होंठो को चूमता हुआ, मेरी रानी मैं अभी

तेरा सारा दर्द दूर कर देता हू और फिर विजय बेफिकर होकर अपनी बहन के

मोटे-मोटे खूब कसे हुए दूध को पागलो की

तरह खूब कस-कस कर मसल्ने लगता है, गुड़िया पूरी मस्ती मे आकर ओह भैया ओह

भैया ऐसे ही आ हा भैया थोड़ा

धीरे आह ओह भैया बहुत अच्छा लग रहा है,

विजय अपनी बहन के दोनो दूध को पूरी तबीयत से मसलता रहता है, करीब आधे

घंटे तक गुड़िया के दूध को मसल-

मसल कर विजय लाल कर देता है तभी दरवाजे पर दस्तक होती है और गुड़िया

जल्दी से उठ कर दरवाजा खोलने के लिए जाती है और विजय चादर डाल कर चारपाई

पर लेट जाता है, कुछ देर बाद दोनो मा बेटी वही नीचे अपना बिस्तेर लगा कर

लेट जाती है

rajaarkey
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Re: kamuk kahaani-जवानी की मिठास

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 16:11

कमरे मे एक हल्की रोशनी वाला बल्ब जल रहा था और विजय की आँखो मे नींद नही

थी वह करवट लेकर लेटा हुआ था

और उसकी नज़रे अपनी मा के गदराए बदन पर टिकी हुई थी, रुक्मणी ने गर्मी

होने की वजह से केवल पेटिकोट और ब्लौज पहना हुआ था और हल्की रोशनी मे

विजय को अपनी मा की गदराई मोटी-मोटी जंघे उठा हुआ गहरी नाभि वाला पेट और

खूब चौड़े-चौड़े विशाल चूतड़ साफ नज़र आ रहे थे उसका लंड लोहे की तरह

अपनी मस्तानी मा के शरीर को देख-देख कर

तना हुआ था और उसका दिल कर रहा था कि वह अभी उठ कर अपनी मा के गदराए शरीर

के उपर चढ़ जाए और उसकी उफनती जवानी को खूब कस-कस कर चोदे.

अपनी मस्ती से भरपूर रसीली मा को चोदने की कल्पना करते-करते ना जाने कब

विजय की नींद लग गई, लेकिन विजय को यह ध्यान नही रहा कि उसका मोटा लंड

उसके कछे से बाहर था और फिर रात को जब रुक्मणी को पेशाब लगी तो वह उठ कर

जैसे ही बैठती है उसकी नज़र अपने बेटे के खड़े मोटे लंड पर पड़ती है तो

उसकी आँखे खुली की खुली रह जाती है, इतना मोटा और विशाल लंड रुक्मणी ने

कभी नही देखा था उसकी चूत से पिशाब की जगह एक अलग ही तरह की चुदास लगने

लगती है,

वह, ना जाने कब अपनी चूत को मसल्ते हुए अपने बेटे के लंड के बिल्कुल पास

पहुच कर उसे बहुत प्यार से देखती है, कुछ देर अपनी चूत रगड़ने के बाद

रुक्मणी चुप चाप लेट जाती है लेकिन उसकी आँखो से नींद गायब हो जाती है,

तभी गुड़िया कसमसा कर करवट लेती है और रुक्मणी जल्दी से उठ कर विजय की

लूँगी उठा कर उसके खड़े लंड पर डाल कर उसे छुपा देती है,

रात भर रुक्मणी की आँखो के सामने उसके अपने बेटे का मोटा तगड़ा लंड घूम

रहा था और उसकी चिकनी चूत गीली हो गई थी, बड़ी मुश्किल मे रात गुजर पाई,

सुबह रुक्मणी और गुड़िया काम धाम मे जुट गई और विजय देर तक सोता रहा,

विजय जब सो कर उठा तो वह उठ कर बैठा ही था कि रुक्मणी हाथ मे चाइ का

प्याला लिए सामने से चली आ रही थी, शायद वह बाथरूम से कोई काम ख़तम करके

लॉट रही थी उसकी साडी उसके मोटे-मोटे दूध से अलग हट गई थी और उसका उभरा

हुआ गोरा मखमली पेट और उस पर एक बड़ी सी गहरी नाभि देखने भर की देर थी और

विजय का मोटा लंड अपनी मा के लिए तन कर खड़ा हो चुका था,

रुक्मणी- विजय के पास बैठते हुए, मुस्कुरकर ले बेटा चाइ पी ले

विजय- मुस्कुरकर चाइ पीते हुए, बहुत काम है क्या मा, मैं कुछ मदद करू

रुक्मणी अरे नही बेटे अब तू एक दो दिनो के लिए आया है तो आराम कर काम तो

चलता ही रहता है, रुक्मणी के मोटे-मोटे भरे हुए दूध उसके दो बटन खुले

होने की वजह से आधे से ज़्यादा बाहर आ रहे थे, रुक्मणी का ध्यान बार-बार

विजय की लूँगी के नीचे छुपे लंड की ओर जा रहा था और उसे ज़रा भी ख्याल

नही था कि वह अपना पल्लू हटाए अपने जवान बेटे के सामने अधनंगी बैठी थी,

विजय अपनी मम्मी के मोटे-मोटे दूध को बड़े प्यार से देखता हुआ चाइ पी रहा

था,

रुक्मणी- विजय के सर पर हाथ फेरते हुए, और वाहा टाइम से खाना खाया कर देख

कितना दुबला हो गया है

विजय- चाइ का प्याला रखते हुए मा तुम मुझे बिल्कुल बच्चो जैसे समझा रही

हो मैं सब टाइम पर कर लेता हू

रुक्मणी - विजय का मूह पकड़ कर तो क्या तू बहुत बड़ा हो गया है, मेरे लिए

तो अभी भी बच्चा ही है और मैं तुझे

हमेशा की तरह अपनी गोद मे बैठा कर प्यार कर सकती हू, और फिर रुक्मणी अपने

बेटे के मूह को अपने सीने से लगा लेती है और विजय अपनी मा के मस्ताने

शरीर की कामुक महक को सूंघते हुए अपनी मा के मोटे-मोटे दूध मे अपना मूह

भर देता है, दोनो मा बेटे चिपके होते है तभी दरवाजे पर जमुना काकी आ जाती है,

जमुना- क्या बात है दोनो मा बेटे बड़ा प्रेम कर रहे है,

रुक्मणी- आ जमुना अंदर आजा

विजय- मा मैं फ्रेश होकर आता हू

विजय वाहा से उठ कर बाथरूम मे घुस जाता है तभी उसका मन होता है कि बाहर

झाँक कर देखे मा और जमुना के

बीच क्या बात हो रही है,

rajaarkey
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Re: kamuk kahaani-जवानी की मिठास

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 16:11

जमुना- रुक्मणी की मोटी गंद मे चुटकी कटती हुई, क्यो रुक्मणी अपने जवान

बेटे को इस उमर मे अपना दूध पिलाते हुए

शरम नही आ रही थी,

रुक्मणी- चुप कर रंडी, ना जाने क्या-क्या बकती रहती है, वो तो मैं अपने

बेटे को प्यार कर रही थी

जमुना- रुक्मणी के दूध को एक दम से दबाती हुई, कोई बाहर का तुम दोनो मा

बेटे को एक साथ ऐसे देखे तो वह यही

सोचेगा कि विजय तेरा आदमी है इतना मुस्टंडा लगता है तेरा बेटा, और तू

कहती है कि तू उसे प्यार कर रही थी, ज़रूर तेरी चूत गीली होगी चल दिखा और

फिर जमुना अपना हाथ एक दम से रुक्मणी की साडी के अंदर चूत मे कर देती है

और अपना हाथ बाहर निकाल कर, हे राम तेरी चूत तो सचमुच बहुत गीली है, सच

बता अपने बेटे के जवान जिस्म से चिपकने से तेरी चूत गीली हुई है ना,

रुक्मणी- मुस्कुरकर मूह बनाते हुए चुप कर जमुना, कही विजय ना सुन ले

जमुना- अरे सुनता है तो सुने उसे भी तो पता चले कि जिस जवान मा के साथ वह

रहता है उसकी चिकनी चूत दिन रात खड़े लंड के लिए पानी छ्चोड़ती रहती है,

विजय का मोटा लंड उनकी बाते सुन कर पूरी तरह तना हुआ था और वहाँ से छुप

कर विजय अपनी मम्मी की गदराई जवानी को देख-देख कर अपना लंड मसल रहा था,

जमुना- अच्छा मैं अब जाती हू, दोपहर को तेरे पास आउन्गि, और हा यह अपना

पल्लू अपने मोटे थनो पर डाल कर रखा कर कही तेरा बेटा ही तुझ पर ना चढ़ने

लगे,

क्रमशः...............

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