मज़ेदार अदला-बदली compleet

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: मज़ेदार अदला-बदली

Unread post by The Romantic » 10 Dec 2014 13:35

मज़ेदार अदला-बदली--7

गतांक से आगे..........................
रवि को जैसे ही सारा माज़रा समझ में आया उसने पिंकी को जोर से अपनी और खींचा बोला साली, पहले नहीं बता सकती थी, डराना जरूरी था क्या, अब देख इसकी कैसी सजा मिलती है तुझे........... और फिर उसे कस के अपने आलिंगन में लिया और फिर इसी अवस्था में वो पलट गया.....अब पिंकी नीचे और रवि ऊपर....अपना मुंह पूरा पिंकी के मुंह में घुसा दिया और दोनों हाथों से उसके दोनों बोबे बुरी तरह से कुचलने लगा.......मैंने राहत की साँस ली....और रवि को उस पर से हटाते हुव़े बोली.....अरे, तुम्हारी तो आज लोटरी लग गई है, इतनी हड़बड़ी भी क्या है, अब तो सारी रात पड़ी है जीजा-साली के पास.......वो एक दुसरे को छोड़ने को तैयार ही नहीं हो रहे थे........

जब मैंने डपट कर बोला तब बड़े अनमने मन से रवि उठा और मेरी गांड पर एक जोर से चपत लगा कर बोला-
साली, कवाब में हड्डी......,
फाड़ डालूँ तेरी चड्डी........,
इस खता का बस यही है दंड.....,
कि चोदे तुझे कोई गधे का लंड........

उसकी इस बेहूदी तुकबंदी पर मैं उसे मारने दौड़ी और वो फिर पिंकी से पलंग पर लिपट गया और उसे अपने ऊपर करके मुझसे बचने कि कोशिश करने लगा.....

थोड़ी देर की इन छेड़छाड़ के बाद मैं और रवि जल्दी जल्दी फ्रेश हुवे और पिंकी ने भी जल्दी से हमारे लिए खाना बना दिया.....सब डायनिंग टेबल पर रखे खाने पर टूट पड़े....बहुत भूखे थे हम सभी.......खाते खाते ही आगे की प्लानिंग बनी कि चूँकि रवि और पिंकी बहुत दिनों के बाद मिल रहे हैं और अब फिर पता नहीं कब चांस हाथ लगे तो मैंने ही ये तय करवाया कि मैं वाकई कवाब में हड्डी न बनू और दोनों को भरपूर चुदाई करने दूं....मैंने आज रात आराम करने की सोची......मेरा दिमाग बहुत तेज़ी के साथ एक योजना पर काम कर रहा था और इसलिए भी थोडा एकांत चाहिए ही था............

मैं दुसरे कमरे में आकर लेट गई और अपनी योजना के बारे में सोचने लगी. कुछ ही देर में पिंकी के बेडरूम उन दोनों की छेड़छाड़ की आवाजें आने लगीं. पिंकी बहुत ही सेक्सी आवाजें निकल रही थी. फिर कुछ देर के बाद पिंकी जैसे रवि से गिडगिडा कर उसे छोड़ने के लिए मन रही थी और शायद रवि उसे तडपा रहा था. मुझे उन दोनों की आवाजें सुनने में बहुत मज़ा आने लगा तो मैंने थोड़ी देर उधर ध्यान लगाया. वे बिना किसी डर के जोर जोर से बातें करते करते काम क्रीडा में लिप्त थे.

" तेरे ये मम्मे इन्हें मसलने और चूसने में मुझे बहुत मज़ा आता है रे मेरी साली"

" जीजू, आज ३ महीने बाद तुम्हारा लंड मिलेगा मुझे, चूत में बहुत सनसनाहट हो रही है मेरे राजा"

फिर कुछ देर पिंकी के बोबे चूसने की आवाज़ और साथ ही साथ पिंकी की जोर जोर से कराहने की आवाजें.

"जीजू, ये दूसरी वाली चूची भी चूसो ना, हाय आज तो क्या जान ही ले लेगा राजा"

"ऐ पिंकी, यार तेरी चूचियां तो और मोटी मोटी हो गई है, और ये टिप के नीचे का काला घेरा और भी बड़ा और कितना फूला फूला लग रहा है, लगता है किसी ने तेरे बोबों पर इन्हें ऊपर से चिपका दिया हो, इनको उँगलियों से छेड़ने में ही कितना मज़ा आरहा है, हालांकि चूस चूस कर तो मैं पागल हुआ ही जा रहा हूँ"

"जीजू, अमित इन चूचियों का बहुत दीवाना है, वो जब तक आधे घंटे इनसे खिलवाड़ न करले वो अपना लंड मेरी चूत में घुसता ही नहीं हैं. पिछले तीन महीनो की उसकी चुसाई और मसलाई से देखो ये कितनी फूली फूली लगने लगी है, अब तो मुझे भी इन्हें छूने और मसलने में बहुत मज़ा आने लगा है."

फिर कुछ देर बोबों के जोर जोर से चूसने की आवाजें. पिंकी इस तरह से कराह रही थी जैसे एकसाथ कई लोग उसके शरीर के साथ खिलवाड़ कर रहे हों.
"आआ आआआआआअअ"

"क्या हुआ पिंकी, इतनी जोर से चीखी"

"वो जीजू, तुमने एकदम से मेरी नाभि में अपनी जीभ घुसेड दी न, मैं समझी थी कि तुम नीचे की तरफ मेरी पेंटी उतारने गए हो"

अभी भी वो आह आह की आवाजें निकल रही थी.

"जीजू, कब डालोगे अन्दर, मेरी चूत बहे जा रही है बहुत दिनों के बाद बदले हुवे लंड का स्वाद चखने के लिए, क्या यार जीजू मेरी तो सुन ही नहीं रहा है, क्या छक्का हो गया है क्या मेरा जीजा, लंड खड़ा नहीं होता क्या तेरा रे भड़वे. क्या मेरी रंडी बहन ने चूस चूस के तेरा सारा पानी सुखा दिया है रे मादरचोद." पिंकी अब पूरी बहक चुकी थी और गालियाँ ही निकल रही थी उसके मुंह से.

"भेन की लवड़ी, खानदान की सबसे बड़ी लूज़ करेक्टर, चुदक्कड़ रांड...... मेरे को नामर्द बोलती है, ले मेरा लवड़ा चूस के देख पता चलेगा की कितना तगड़ा मूसल है, अरे तेरे जैसी दसियों बाजारू रांडो को एक लाइन से सुला कर चोद सकता हूँ, मेरे को छक्का बोली, ये ले चूस, भर ले अपने मुंह में.....हाँ ले पूरा का पूरा घुसेड दूंगा, तेरे गले को फाड़ डालेगा ये"

"गूं गूं गूं ................"

कुछ देर बाद............"अरे क्या मार डालेगा मुझे, नीचे वाले छेद में क्यों नहीं पेलता है इसे, ऊपर तो मेरी सांस ही रोक दी थी तुने भड़वे."

"जा नहीं डालता तेरी चूत में इसे"

"अरे मेरे राजा, नखरे क्यों करता है, देख कैसा तड़प रहा है मेरी चूत में जाने के लिए."

और ऐसे मौके पर पिंकी ने एक बहुत ही मौजूं वीर रस में चार लाइने सुना मारी जिसे सुन कर मुझे भी जोर से हंसी आगे.........वो कुछ इस तरह से थी.....

"पकड़ के टांग खीच दो"
"पकड़ के टांग खींच दो"
"के चूं हो ना चंड हो"
"भूसंड लंड ठूंस दो "
"कि चूत खंड खंड हो"

रवि कि भी सुन कर हंसी छूट गई, और कुछ देर कि शान्ति के बाद पिंकी की एक जोर की कराह सुनाई आई, ये निश्चित रूप से लंड को चूत में घुसाए जाने की प्रतिक्रिया स्वरुप उपजी होगी. और फिर धप्प धप्प धप्प धप्प की आवाजें आने लगी, हर धप्प के साथ एक नारी स्वर "आई" भी जुगलबंदी कर रहा था. पिंकी की तेज़ी से बदती चुदास को देखते हुवे रवि ने प्रथम चक्र की चुदाई शायद जल्दी से शुरू कर दी थी, इतने दिनों के बाद दोनों जीजा-साली को अपने पुराने भरचक चुदाई वाले दिनों की याद ताज़ा करने का मौका मिला था, वो भी यकायक, तो वे बहुत ही कम प्राथमिक गरमाऊ प्रक्रिया किये ही चुदाई में उतर गये थे. एक दुसरे को देखते ही तो एक का नल और दुसरे की नदियाँ बहने लगी थी, क्या खाक गरम करने कराने की जरूरत थी दोनों को.

"गपागप...गपागप....गपागप......
गपागप" पिंकी की चूत रवि का लंड खाए जा रही थी, कुछ ही देर में इन आवाजों के अंतराल कम होते चले गए और दोनों के कराहने की आवाजें तेज़ होने लगी थी............और फिर दोनों की एकसाथ जोर से चीखने की आवाज़ आई और फिर पिंकी हचक हचक के कांपते हुवे कराह रही थी, चुदाई के चरम को फतह कर लेने के बाद ढलान से उतरते हुवे रह रह कर हलके हलके झटके लिए कंपकंपाहट और तड़पन, शायद रवि अभी भी हौले हौले लंड अन्दर बाहर कर रहा है, हर घस्से पर उछाला और आह, में समझ सकती हूँ ये स्थिथि......मैं दम साधे उधर हुई चुदाई के माहौल में खो गई थी............

बहरहाल, उधर चुदाई का तूफान गुज़र चूका था तो मैंने उधर से अपना ध्यान हटाया.एक गहरी सांस ली और करवट बदल कर अपनी योजना पर विचार करना शुरू किया...

अगले एक घंटे मैंने अपनी योजना पर काम किया, तब तक पिंकी और रवि की चुदाई का एक और दौर ख़तम हो चूका था. मैं उठी और उनके कमरे की ओर बढ चली. कमरे की लाईटें जली हुई थी. पलंग पर पिंकी पीठ के बल लेटी हुई थी, उसका एक हाथ अपने सर के नीचे था और दूसरा पास में करवट लेकर सो रहे रवि की पीठ पर था, एक टांग लम्बी कर रखी थी और दुसरी मोड़ कर रवि के पैरों पर टिकाई हुई थी कुछ इस तरह से की उसकी चूत पूरी तरह से खुली हुई थी और चूत से रवि का वीर्य उसके खुद के रस के साथ हौले हौले रिस रहा था. रवि ने अपना एक हाथ पिंकी के बोबे पर रखा हुआ था और उसका लंड पिंकी के पैर की ओट में छुपा हुआ था, दोनों की आँखे बंद थी और चेहरे पर अपार संतोष के भाव थे.

मेरी नज़र यकायक ही पिंकी के उन निप्पल की और पड़ी जिनकी रवि अभी थोड़ी देर पहले चूसने के समय तारीफ करते नहीं थक रहा था. मैं उसके बेड पर झुकी और पेट के बल लेट गई. अब उसकी चूचिन ठीक मेरी आँखों के सामने थी. सच में रवि ने कुछ गलत नहीं कहा था. उसकी चूंची ठीक काले घेरे की जगह से काफी फूली फूली लग रही थी जैसे कि वो एरोला ही अपने आप में एक मोटी चूंची हो और उस पर एक काली और कड़क निप्पल अलग से जड़ दी गई हो बहुत ही सुन्दर दृश्य था. मेरी उंगलियाँ उनसे खेलने के लिए बढ चली और जैसे ही मैंने उसे अपनी उँगलियों से हलके हलके कुरेदना चालू किया उसकी आँख खुल गई. उसने मुझे देखा और फिर बिना हिले वो मुस्कुराई और फिर शांति से आँख बंद कर ली. मैंने अपनी ठोड़ी हौले से उसके बड़े उभार के किनारे पर टिका दी कोहनी उसके पेट पर टिका कर उँगलियों से निप्पल से खेलने लगी. मेरी सांसे ठीक उसकी चूचियों पर पड़ रही थी. कुछ देर के बाद मैं थोडा सा आगे हुई और उसकी गदराई और सूजी हुई चूची अपने मुंह में भर ली और चूसने लगी. उत्तेजना के कारण उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी. उसके हिलने डुलने के कारण रवि की नींद में बाधा आई और उसने अपना मुंह उठा कर चल रहे कार्यक्रम का जायजा लिया. फिर वो कोहनी के बल थोडा उठा और झुक कर दूसरा चुच्चा अपने मुंह में भर लिया और फिर हम दोनों उसको भचक भचक चूसने लगे. कुछ ही देर में पिंकी के मुंह से आन्हे निकलने लगी और उसने एक हाथ मेरे सर से हटा कर रवि के सर पर चिपका लिया.

जैसे जैसे हम कड़क चुसाई करते जा रहे थे वैसे वैसे पिंकी के हाथों की पकड़ हमारे सरों पर मज़बूत होती जा रही थी और वो उन्हें अपने बोबों पर खिंच रही थी.........

"चूसो और जोर से चूसो, काट डालो सालियों को बहुत परेशान करती है, खा जाओ इन्हें कच्चा ही , चबा डालो..... हाँ ऐसे ही.... जोर से..... और जोर से" उत्तेजीत होकर वो बडबडाने लगी.
हमें भी वो फूली फूली चून्चिया चूसने में इतना मज़ा आ रहा था कि हम बस उन्हें चूसे ही जा रहे थे और वो हम दोनों के सरो को अपनी ओर ठेलते हुए मसले जा रही थी....पांच सात मिनट तक कोई हटने हटाने को तैयार ही नहीं था.

तभी पिंकी चीखी - अरे मेरा कुछ करो यारों, मैं तो बस झड़ने के करीब पहुँच चुकी हूँ....हम रुके तो उसने हमें झिंझोड़ा और कहा- रुको मत, रुको मत चूसते चूसते ही कुछ करो. हमने फिर चुसाई चालू कर दी. रवि चूसते चूसते ही थोडा ऊपर उठा और अपने शरीर को पिंकी के ऊपर खिसकाने लगा और बिना उसका निप्पल छोड़े वो उसके पुरे शरीर पर आ गया. पिंकी ने अपने पैर दूर दूर फैला दिए और रवि का लौड़ा पिंकी की चूत पर आ गया. मैंने भी बिना निप्पल छोड़े थोडा सा खिसक कर रवि के लिए थोड़ी जगह बना दी. अब उसने अपने लौड़े से पिंकी कि चूत में घस्से मरने चालू कर दिए. पिंकी उछल उछल कर रवि के लंड को और अन्दर खाने का प्रयास कर रही थी.

"तेज़...और तेज़....जोर से .....हाँ ऐसे ही ....और अन्दर .....पूरा घुसेड दे.....मार मार और जोर से मार .....आआआआआ......मैं गई ईईईईईईईईईई" निप्पल की अबाधित दोनों ओर की चुसाई और रवि की फटाफट चुदाई के चलते पिंकी भड-भड़ा के बुरी तरह से झड गई. एकदम लुस्त हो गई. हम दोनों ने उसके बोबे छोड़े. उसने अपना लंड बाहर निकाला और अपने हाथ से मुठियाने लगा क्योंकि वो भी आधे रास्ते तक पहुँच चूका था और अब रुकना मुश्किल था.
क्रमशः................................

The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: मज़ेदार अदला-बदली

Unread post by The Romantic » 10 Dec 2014 13:36

मज़ेदार अदला-बदली--8
गतांक से आगे..........................
मैंने पिंकी को छोड़ा और रवि के लंड की ओर लपकी. उसे धक्का देकर गिराया और उसकी टाँगे चौड़ी करके अपने हाथों से उसका लौड़ा थाम लिया और उसे अपने मुंह में गप्प से गायब कर दिया. अब मैं बड़े ही कड़क तरीके से उसका लंड चूसने लगी. रवि ने अपना एक हाथ पिंकी के थूक से सने बोबे पर रख दिया और उनसे खेलने लगा और मैंने उसको अगले दो मिनट में ही झडा दिया. उसका माल मेरे मुंह से रिस रिस कर पुनह: उसके लंड के सहारे बहने लगा. मैंने अब अपना सर उसकी जांघ पर टिका दिया और अगले दो तीन मिनट उसके लंड को चूसती ही रही.....रवि का लंड थोडा ढीला हो गया था और मैंने सारा का सारा माल चट कर डाला.

कुछ देर के आराम के बाद रवि उठा....साथ ही साथ पिंकी भी उठ गई. रवि ने मेरे पीठ पर हाथ फिराने चालू किये और पूछा कि तू तो रह गई. चल हम दोनों मिल कर तेरी चूत का पानी निकाल देते है तो मैं बोली अभी थोड़ी देर बाद देखते हैं, परन्तु पहले मेरी बात सुनो. एक बहुत ही जरूरी बात करनी है.

और फिर मेरी बात सुनते सुनते दोनों की आँखे फैलती चली गई..

सुबह मेरी ९ बजे आँख खुली. रवि मेरी बगल में सोया पड़ा था. रात में जब उन दोनों को अपनी योजना बताई तब वे दोनों एकदम रोमांचित हो उठे थे. फिर हमने मिलकर सब कुछ तय किया और फिर मैं अपने कमरे में सोने आ गई. रवि ने कहा कि पिंकी के साथ एक और राउण्ड निपटाकर तुम्हारे कमरे में सोने आ रहा हूँ.

बाहर से पिंकी और अमित की आवाजें आ रही थी. मैं तुरंत बाथरूम में घुस गई. तैयार होकर मैंने रवि को उठाया और बाहर चली गई.

दोपहर में खाने की टेबल पर-

अमित: तो रवि, खाने के बाद का क्या प्रोग्राम है.

रवि: यार अमित, यहाँ आये हैं तो मिंटू का नया फर्म हाउस भी देख आयें, उसे पता चला तो बहुत नाराज़ होगा. रोमा को साथ ले जा रहा हूँ, वो एक बार जा चुकी है वहां.

अमित: ठीक है यार पर वहां ज्यादा रुकना मत, शाम को कहीं चलेंगे साथ.

खाने के बाद सब वाश बेसिन हाथ धोने चले जाते हैं. मैं पास ही बाथरूम की तरफ हाथ धोने बढ जाती हूँ और गिले फर्श पर पैर रखते ही में पेट के बल गिरने का नाटक करते हुए एक जोरदार चीख मारती हूँ. रवि मुझे उठा कर बाहर बेड पर लिटा देते हैं. थोड़ी देर बाद मैं बताती हूँ कि अब मैं काफी ठीक हूँ. रवि बोलता है कि चलो मैं अकेला ही मिंटू से मिलकर आ जाता हूँ परन्तु तभी पिंकी बोलती है कि वो रवि के साथ चली जाती है दीदी तब तक आराम कर लेगी. अगले पंद्रह मिनट में दोनों जल्दी ही लौट कर आने का बोल कर निकल जाते हैं.

अभी तक सब कुछ हमारी योजनानुसार ठीक चल रहा था.

अब मैं अमित को बोलती हूँ कि मैं कमरे में जाकर आराम करना चाहती हूँ और उठ कर जैसे ही कमरे की तरफ चलने लगती हूँ, उईईइ की आवाज़ के साथ पैर पकड़ लेती हूँ. अमित कहता है कि मेरे कंधे का सहारा ले लो और फिर एक हाथ उसके कंधे पर रख कर धीरे धीरे रूम में जाकर लेट जाती हूँ. अमित परदे लगाकर बोलता है कि दीदी आप आराम करो मैं हॉल में टी वी देख रहा हूँ, कुछ काम हो तो आवाज़ लगा देना.

अब योजना के दुसरे चरण के लिए मुझे एक घंटे इंतज़ार करना था.

एक घंटे बाद मैं कराहते हुए अमित को आवाज़ लगाती हूँ. वो आकर पूछता है क्या हुआ.

मैं: लगता है गिरने के कारण नाभि फिर सरक गई है, बड़ा तेज़ पेट में दर्द हो रहा है.

अमित: डॉक्टर को लेकर आता हूँ अभी.

मैं: नहीं ये डॉक्टर वाली प्रॉब्लम नहीं है, मुझे अक्सर ऐसा होता है और रवि ये देसी तरीके से ठीक कर देता है.

और फिर मैं जोर जोर से कराहने लगती हूँ. और अमित की कोई बात नहीं सुनती हूँ बस पेट पकड़ कर कराहने लगती हूँ.

अमित घबरा कर रवि को फ़ोन लगा कर उसे सब बताता है. कुछ देर बात करके आखिर में वो बोलता है....... ओके मैं देखता हूँ ........

फिर फ़ोन कट करके बाहर चला जाता है......२ मिनट बाद वापिस आता है. मैं कराहते हुवे पूछती हूँ क्या हुआ.

अमित मेरे पास आकर मेरी सर पर हाथ फेर कर चिंतित स्वर में कहता है कि रवि को तो वापिस आने में बहुत वक़्त लगेगा क्योंकि वो होशंगाबाद रोड पर जाम में फंस गए हैं तो पिंकी ने सुझाव दिया कि पास वाली निधि भाभी को बुला लाओ उन्हें फ़ोन पर समझा कर बता देंगे कि क्या और कैसे करना है.

मैं: तो फिर?

अमित: निधि भाभी के यहाँ तो ताला लगा है.

पिंकी तो पता था कि भाभी आज बाहर गई हुई है तो वहां अमित को ताला ही तो मिलना था.

मैं: तो और कोई भाभी या आंटी को बुला दो.

अमित: और तो कोई नहीं रहता आस पास.

मैं फिर से थोडा तड़पने का नाटक करती हूँ. अमित बेचारा डर के फिर रवि को फ़ोन लगता है. इस बार वो स्पीकर चालू कर देता है. उधर से पिंकी की हेल्लो की आवाज़ आती है और वो पूछती है कि निधि भाभी को फ़ोन दो मैं समझाती हूँ क्या करना है.

अमित: पिंकी, निधि के यहाँ तो ताला लगा है.

पिंकी: मर गए, अमित तुम्हे पता है दीदी का दर्द बढ गया तो बहुत तकलीफ होती है उन्हें. हमें तो अभी भी २ घंटे से काम नहीं लगेंगे बहुत लम्बा जाम लगा है.

फिर वो रवि से पूछती है कि अब क्या करें. रवि उससे पूछता है कि तुम्हे और अमित को एतराज़ ना हो तो अमित ही हेल्प कर दे रोमा की.

पिंकी: पर जीजू उसमे तो.........मुझे पता है आप दीदी का कैसे इलाज़ करते हैं........कैसे कर पाएंगे अमित वो सब......और शायद दीदी तो राज़ी ही न हो उस सब के लिए..........हाँ, हालात को देखते हुए, मुझे कोई एतराज़ नहीं है.........मैं दीदी की ऐसी हालत बर्दाश्त नहीं कर पा रही हूँ.

रवि: तो जल्दी जल्दी बताओ अमित को कि क्या करना है, रोमा बेचारी तड़प रही होगी......हे भगवान् हमें भी अभी जाम में फँसना था.

पिंकी: अमित, जरा फ़ोन को स्पीकर पे तो करना दीदी की रजामंदी लेनी हैं.

अमित: फ़ोन स्पीकर पे ही है और दीदी तुम्हारी बात सुन रही है......तो जल्दी बताओ क्या करना है. दीदी बहुत दर्द में है.

पिंकी: अमित, ये इतना आसान नहीं होगा तुम्हारे लिए और दीदी के लिए तो जरा भी नहीं, इसलिए पहले उनसे तो पूछ लूं ......दीदी, अमित कर देगा तुम्हारा इलाज़, तुम्हे कोई आपत्ति तो नहीं.

दीदी.............दीदी.........
...सुन रही हो क्या.........

अमित: पिंकी, शायद दर्द बहुत ज्यादा है वो सुन तो रही है पर बोल नहीं पा रही है.

पिंकी: अमित ............बस तुम सुनो और समझ कर ठीक तरह से करना............अब वक़्त गंवाने का कोई फायदा नहीं.......तुम बस ये सोचना कि तुम डॉक्टर हो और तुम्हारे सामने जो है वो तुम्हारी मरीज़ है और तुम्हे उसे ठीक करना है. जरा भी मत शर्माना.

अमित: ऐसा क्या करना है मुझे.

पिंकी: अभी बताती हूँ............

तभी मैं बोलती हूँ................अमित, दर्द बर्दाश्त नहीं होता अब तो........... आआआआआआ ..............समझ लो पिंकी से कैसे करना है........आआआआआआआआ.......

मेरी हरी झंडी देख कर अमित तेज़ी से फ़ोन पर क्या करना है वो पिंकी के मुंह से सुनता है.............सुनते सुनते उसे इतनी शर्म आने लगती है कि वो स्पीकर ऑफ करके कान में लगाकर सुनने लगता है. उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ती साफ़ नज़र आ रही थी और पसीना पसीना हो रहा था........मैं बेसुध सी होने का नाटक करते हुए कनखियों से उसे देखती जा रही थी...........हमारी योजना एकदम सही जा रही थी.


अमित: (धीरे से), ये सब मैं कैसे कर पाउँगा, तुम एक बार और सोच लो कोई और रास्ता है क्या...........

अरे मेरे भोंदू महाराज और कोई रास्ता नहीं है, आज तुझे मुझसे कोई नहीं बचा पायेगा..........मुझे ये सोचते हुए मुस्कराहट सी आने लगती है पर मैं दबा जाती हूँ. अभी तो मुझे बहुत कुछ दबाना है, पुरे इलाज़ के दौरान कंट्रोल रखना है और मैं कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थी.

अमित: ठीक है पिंकी, मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता हूँ, दीदी ठीक हो जाये बस.....................ओके, बाय.

फ़ोन बंद करके वो एक मिनट मुझे देखता है और जैसे ये निश्चय करने का प्रयास कर रहा था कि वो करे या न करे...........पर और कोई रास्ता नहीं था उसके पास, उसकी प्यारी और पतिव्रता बीवी ने उसे ऐसा करने का बोला है. वो जल्द ही अपने अपराध बोध को झटक कर मेरे पास आया और सर पे हाथ फेरा कर बोला दीदी धीरज रखो मैं जल्दी ही कुछ करता हूँ. और फिर वो पिंकी के बताये अनुसार गरम तेल और घिसा चन्दन लाने के लिये किचन में घुस गया.

मेरी योनी ने अभी से पनियाना शुरू कर दिया. देखती हूँ ये भोंदू महाराज आज मेरे से कैसे बचेगा.

जब से पिंकी की सुहागरात हुई है पिंकी ने अपने इस भोंदू की चुदाई के ऐसे गुण गान किये कि मैं पिंकी से जलने लगी थी. दीदी ऐसे चोदता है, वैसे चोदता है. गोद में उठा के चोदता है, हवा में निचे लटका के चोदता है, गर्दन में उल्टा लटका कर चूसता चुसवाता है, इतनी ताक़त है मेरे दारा सिंग में. और जब मैंने पिंकी से पूछा कि यार मेरी चूत का भी भुरता बनवा ना अपने पहलवान से तो पिंकी गंभीरता से बोली थी कि ये हनुमान भक्त भोंदू महाराज बहुत स्ट्रोंग केरेक्टर वाले हैं, मेरे अलावा किसी और को चोदना तो बहुत दूर, हाथ तक नहीं लगायेंगे किसी को. मैं अमित से चुदने के लिए बहुत आतुर हो उठी. और उसपे तुर्रा ये कि हर रोज़ दोपहर फ़ोन पर पिंकी, पिछली रात की चुदाई के किस्से सुना सुना कर, सुना सुना कर, पागल करती रही. अमित बॉडी बिल्डिंग और कराटे का चेम्पियन था और देखने में बहुत ही आकर्षक. उसकी सेक्स पॉवर से पिंकी बहुत ज्यादा संतुष्ट थी और कभी कभी तो उसे ही खुद अमित के हाथ जोड़ने पड़ते थे कि मेरे बाप अब तो सोने दे, कितना चोदेगा, थकता ही नहीं है, रुकता ही नहीं है, सांड जैसी पॉवर और खिलोने जैसा उठा कर हर तरह के पोज़ में बेहतरीन चुदाई. लंड भी उसका सांड जैसा . जब पिंकी ने इस मामले में मेरी कोई भी मदद करने में अपनी लाचारी जताई थी तभी से मैंने ठान लिया था कि मैं पिंकी के पिंकू का धर्म भ्रष्ट करके ही रहूंगी चाहे जो हो और आज वो मौका हाथ लग गया था . कल रात जब मैंने रवि और पिंकी को ये योजना सुनाई तो वो दोनों फटाक से तैयार हो गए.
क्रमशः................................

The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: मज़ेदार अदला-बदली

Unread post by The Romantic » 10 Dec 2014 13:37

मज़ेदार अदला-बदली--9
गतांक से आगे..........................
तभी अमित कमरे में प्रवेश करता है

अमित: लो दीदी मैं तेल गरम कर लाया हूँ.

मैं बस बेसुध होने का नाटक कर के पेट को पकड़ के आँखे बंद किये धीमे धीमे कराह रही थी जैसे दर्द ने मेरे कराहने की भी शक्ति ख़तम कर दी हो. मेरी कोई प्रतिक्रिया न होते देख वो थोडा सहज हुआ कि उसे जल्दी ही अपना काम निपटाना है.......अब मैं भी देखना चाहती थी कि जेसा बताया गया होगा इसे सिर्फ उतना उतना ही करेगा या मुझे बेसुध सा देख कर कुछ कमीनापन भी सूझेगा इसे.

सबसे पहले तो उसने मेरे दोनों पैरों के अंगूठों पर रबर-बेन्ड चढ़ा दिए. अब उसने मेरी नाभि से मेरा हाथ हटाया और पूछा दीदी, बहुत दर्द है, तो मैंने बस हूँ कहा, फिर उसने बहुत कुछ पूछा तो मैंने कोई जवाब नहीं दिया.......कुछ कुछ देर में बस कराह रही थी........

वो बेचारा अब बहुत परेशान हो रहा था क्योंकि मैंने नाइटी पहन रखी थी और अब उसे मेरी नाभि को बेपर्दा करना था. कांपते हाथों से उसने मेरो नाइटी ऊपर करनी शुरू की, घुटनों के ऊपर लाकर वो रुक गया, फिर उसने ऊपर की परन्तु नीचे से फँसी होने कि वजह से वो जांघो से ऊपर नहीं हो पा रही थी. मैं आँखों में थोड़ी सी झिरी बना कर उसके चेहरे की रंगत देख रही थी. उसने अपना एक हाथ मेर पुट्ठे के नीचे फसांया और फिर दुसरे हाथ से जांघ ऊँची करके वो नाइटी ऊपर खींचने लगा. उसकी पूरी हथेली मेरी जांघो और पुट्ठों से रगड़ खा रही थी. इसी तरह से उसने दूसरी तरफ से भी मेरे पुट्ठो से नीचे फँसी नाइटी को ऊपर किया.

और जैसे ही आगे से ऊपर सरकाई वो शाक्ड रह गया. मैंने पेंटी नहीं पहन रखी थी और मेरी खुली चूत उसकी आँखों के सामने थी, उसने मेरी तरफ देखा, मैंने आँखों की झिरी में से उसे देखा, उसने चूत से परे मुंह घुमा कर नाभि को खोला. अब तेल की आठ दस बुँदे नाभि पर गिराई और बड़ी हिम्मत करके अपने होंठ का अंदरूनी भाग पेट पर रखा और हलके से मालिश देने लगा. बेचारा.....मान गया की हाथ से मालिश मत करना वो कड़क होते हैं....शरीर के सबसे मुलायम अंग से हलकी मालिश देना.

उसने दोनों हाथ दूसरी और टिकाये और झुक कर मेरी नाभि की अंदरूनी होंठो से मालिश करने लगा. इतनी मुलायम मालिश से मेरी उत्तेजना बड़ने लगी परन्तु जाहिर नहीं कर सकती थी सो मैंने फिर कराहना चालू कर दिया. वो रुका फिर जब मैं चुप हुई तो उसने फिर शुरू कर दी.....वो मालिश क्या...एकदम चटाई थी होंठो से..... थोड़ी ही देर में वो कामुक मालिश में तब्दील हो गई और मैं अपने को जज़्ब किये इस स्थिति का घोर आनंद लेने लगी. ५ मिनट बाद अमित हटा वहां से.

अब वो मेरी ओर पीठ करके खड़ा हो गया. मुझे पता था कि अब उसे अपना लंड निकाल कर घोट घोट के खड़ा करना है ताकि वो मेरी नाभि को अपनी उर्जा दे सके. इस रामबाण रेकी की विधि का आविष्कार कल रात इसी कमरे में हुआ था. काफी देर लगा रहा था, शायद उसके संस्कार उसके आड़े आ रहे थे, पर मेरे जाल में फँस कर वो फडफडा तो सकता है परन्तु बच नहीं सकता.

फिर उसके हाथ हिलते देखे मैंने, हाँ लंड की घुटाई शुरू कर दी थी उसने, मैं उसके पहलवानी लंड के प्रथम दर्शन की प्रतीक्षा में रोमांचित हुई जा रही थी. लंड तो बहुतेरे देखे जीवन में परन्तु, मेरे से भी ज्यादा चुदक्कड़ मेरी रांड बहन को जिस लंड ने अस्थाई तौर पर पतिव्रता नारी बना दिया उस लंड में कुछ ना कुछ तो बात होगी ही.

कुछ देर की लंड घुटाई के बाद वो जैसे ही पलटा, मेरी नज़र एक श्वेत-वर्ण , झांट विहीन, काफी उभरे मुख वाले, स्वस्थ, तेजस्वी और विशालकाय दंड रूपी स्त्री-चुदाई यंत्र पर पड़ी तो मेरी फुद्दी के कोने कोने में मौजूद सनसनी मचने वाले हर एक पाइंट में जोरो से खुजली मचने लगी. चूत का हर एक तंतु इस मूसल से अपने आप को रगड़वाने को होड़ में पसीना पसीना हो रहा था और वो सारा पानी मेरी बुर की झिरी में से तेज़ बहाव के साथ बाहर आने लगा.

अब उसे अपने खड़े लंड को नाभि के छेद से सटा कर अपनी उर्जा देते हुवे होले होले मालिश करना थी.....वो मेरी चूत के ठीक ऊपर बैठ गया और अपने भीमकाय अस्त्र को अपनी दोनों हथेलियों से थमा और आगे से निचे झुकाते हुवे अग्र भाग को नाभि के छेद पर टिका दिया और आँख बंद करके वो उर्जा हस्तांतरण करने लगा. फिर वो मेरी नाभि को घोटने लगा, फिर नाभि के चारो और सुपाड़े से मसलने लगा. उसकी इस लंड घिसी से जहाँ में सातवे आसमान पर पहुँच गई थी तो काम से काम पांचवे आसमान तक तो वो भी पहुँच गया होगा क्योंकि उसे भी काम ज्वर चड़ने लगा था.

साले ने बहुत नाभि चुदाई कर डाली. जैसे तैसे वो वहां से हटा और फिर उसने एक प्याली उठाई जिसमें वो चन्दन घिस कर लाया था. अब थोडा चन्दन अपनी जीभ पर लिया और उसे सीधा नाभि में घुसेड दिया .... मैं सिहर उठी.........कुछ देर जीभ छेद के अन्दर घुमाई और फिर चन्दन में डूबी जीभ पुन: मेरे छेद में आ गली. ऐसा उसने बराबर ९ बार किया. थोडा रुका वो. शायद अपनी उत्तेजना को काबू में करने का प्रयत्न कर रहा था.

घडी भर के विश्राम के बाद अब वो मेरे उभारों कि ओर आया. फिर उसने मेरी नाईटी ऊपर सरकाना चालू की और थोड़ी जद्दोजहद के बाद पूरी निकाल दी. मैंने ब्रा नहीं पहनी थी.....उसकी नज़र दो मोटे मोटे मम्मो पर पड़ी. उसका लंड जो अभी थोडा मुरझा गया था वो पुन: स्पंदित होकर तरंगित होने लगा और झटके से लहू-गुंजीत होकर उर्ध्व-अधोगति करने लगा. पिंकी के बताये अनुसार उसने फिर चन्दन जीभ पर लिया और अबकी बार मेरे एक निप्पल पर लथेड दिया. फिर ऐसे ही दुसरे पर भी लगाया. फिर पहले पर. .........और हाँ लगाते समय वो जीभ को घुंडी की परिधि पर पूरा राउण्ड राउण्ड घुमा रहा था. ऐसा उसने दोनों दानो पर ९-९ बार किया. मेरी घुन्डिया एकदम कड़क हो गई.

उसने चन्दन की प्याली निचे रख दी. अब जो वो करने जा रहा था, बेचारा उसे भी इलाज़ का हिस्सा ही समझ रहा था जबकि मेरी तो उसके बाद जान ही निकल जानी थी.

अब उसने अपने दोनों हाथों में मेरे एक कबूतर को कस के भरा, भींच कर ऊपर कि और उभारा और कंचनजंगा की चोटी सद्रश्य आसमान की और मुंह ताकते मेरे नुकीले छोर को अपने मुंह में गहराई तक भर लिया. अब उसे चूचीं पर लगे चन्दन को चूस चूस कर अपने मुंह में इकट्ठा करना था. पिंकी ने बताया होगा कि चन्दन और मुख-लार, स्तन के संपर्क में आकर दर्दनिवारक अमृत बन जाती है सो वो भी कुछ देर तक अपनी लार को चन्दन लिपटी घुंडी को चूस चूस कर अपने मुख में अमृत इकट्ठा करता रहा.....

फिर उसे पूरा नाभि में भर दिया. गरमा गरम द्रव की अनुभूति अपनी नाभि में पाकर मेरी चूत में एक बार फिर बिजली कौंध गई....................... फिर इसी तरह से वो दूसरी चूचीं को चूसने लगा ....और फिर चूसता ही चला गया....कोई पांच मिनट हो गए वो भोंदू हटा ही नहीं............. और इधर मैं उसके बेलगाम दुग्ध-पान से उपजे अवर्णनीय आनंद में लिपटी मदहोश सी हुई जा रही थी............ पर किसी भी तरह से, अपने को प्रतिक्रिया विहीन बनाये रखना, मेरी प्लानिंग का अहम् हिस्सा था........ वो मग्न हो कर चुसाई के मज़े लेने लगा .....और देखो तो..... वो, मेरे दूध्दू का भुक्कड़....... मदहोशी के आलम में, भूलवश सारा चन्दन ही गटक गया. ............ उसे जब इस बात का अहसास हुआ तो उसने अपना माथा ठोका......... क्या करा मैंने? परन्तु.....लेकिन.....but ......मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना होता देख, उसने थोड़ी राहत महसूस की.......वो क्या था कि , अब डाक्टर बाबु को भी इलाज करने में मज़ा आने लगा था और ये उसके बात चेहरे से साफ पता चल रही थी.

अब उसने मुझे धीरे से पेट के बल लिटाया. दोनों अंगूठो में तेल लगा कर एक साइड बैठ गया और गर्दन के नीचे रीड की हड्डी के दोनों और अंगूठे टिकाये और हलके हाथ से नीचे की ओर मालिश करते हुए सरकाने लगा. जैसे ही नाभि के पिछले भाग के एक खास पॉइंट पर दबाव पड़ा, मैं जोर से चीख कर झटके से उछली और पीठ के बल दूर जा गिरी और फिर बेहोश हो गई. योजना आयोग की प्रवक्ता पिंकी रानी से उसे हिदायत मिली ही हुई थी कि, अगर मैं इस तरह से जोर का झटका खा कर बेहोश हो जाती हूँ, इसका मतलब......... मतलब......यानि कि नाभि ठीक जगह बैठ गई है और उसका इलाज़ सफल.

मेरे शरीर का अब नज़ारा कुछ इस तरह था कि मेरे दोनों पैर चौड़े थे........ चूत, पहलवान के लंड की आस में एकदम मुंह खोले हुई थी. मेरा मुंह, कन्धा, एक ओर का चुच्चा और एक हाथ बिस्तर के छोर से नीचे की ओर ढुलके हुवे थे............... अब वो उठा, मेरी तरफ आया और अपने कटी-प्रदेश के मध्य स्थित झुला झूलते मुलायम चर्म से आच्छादित मांस के सख्त दंड को एक हाथ में थामा और दुसरे हाथ से मेरे ढुलके पड़े यौवन-उभार को नोंचते हुवे, कुछ जल्दी जल्दी घस्से मारे........ कुछ देर पश्चात् उसने मेरे लटके शरीर को उठाया......एकदम फूल जैसे...... क्या मज़बूत पकड़ थी.........वाह........ और फिर आराम से बिस्तर के बीचो बीच रख दिया.

अब उसे आधा घंटा इंतज़ार करना था मेरे होश में आने का. वो मेरे पास बैठ गया. अब उसे अपने गहरे अंतर्मन में दबे कमीनेपन को सतह पर आकर अपना शैतानी रूप दिखाने की, वक़्त ने कुछ लम्हों की आज़ादी प्रदान कर ही दी थी सो वो अपने लंड को कुछ देर मुठियाया और नज़रे मेरे मम्मो पर टिका दी.......तदुपरांत, एक बार मेरी ओर नज़र डाल.......वो मेरे स्तन-अंकुरों पर झुका और झकाझक उन्हें पीने लगा. चूसते वक़्त हाथों से वो दोनों स्तनों की विस्तृत गोलाइंयों को निचोड़ रहा था. शायद पर्वत-शिखर पर उसके अति-व्यस्त मुखारबिंद को 'दो बूँद ज़िन्दगी की' तलाश थी. मेरी घाटी के दोनों ओर गगन की बुलंदियों को स्पर्श करती अट्टालिकाओं पर बारी बारी से आगमित-प्रस्थित होकर उन्हें अपने लबों से बुरी तरह से खंगाल रहा था. पांच पांच मिनट तो दोनों पर्वतों पर गुज़ारे होंगे उसने. उसकी इस अदम्य कारगुजारी के फलस्वरूप दूर नीचे की ओर अवस्थित मेरे दुसरे दर्रे से फिर से एक बार पहाड़ी नाले में घनघना के उफान आया और अविरल तराई की और बह चला.

बहुत देर के बाद वो पहाड़ से उतरा. लेकिन ये क्या ......इस बार तो उसका जानवर मुझे कुछ खतरनाक नज़र आया. उसने अपने लंड को हाथ में पकड़ा और थोडा सा उमेठ कर मेरे होंठो पर फिराया. फिर बड़ी तेज़ी से उसका सुपाडा मेरे लबों पर स्कीइंग करने लगा, चिकनाई स्वयं सुपाडा-प्रदत्त थी इसलिए अठखेलियाँ नजाकत से चल रही थी. अब तो फिर उसने अगला पैंतरा चला और थोडा होंठ खोल कर अपने स्निग्ध शिश्नाग्र को मेरे मुलायम और मखमली अंदरूनी होंठो पर रगड़ने लगा. क्या बताऊँ.........उसके बाद तो मुख-मैथुन की समस्त तकनीकें आजमाने लगा. अचानक उसे समय-बध्धता का कुछ ख्याल आया और फिर वो कुछ अति-विशिष्ठ क्रिया के संपादन के लिए पहाड़ी नाले की और चला गया.

उठ कर वो मेरी चौड़ी टांगो के बीच लेट गया और जांघो को पकड़ कर उन्नत कर दिया. जैसे ही उसने चौड़ाई को बढाया उसे ताज़े निर्मल जल से लबालब भरे, अभी अभी फूट पड़े चश्मे की झलक दिखाई दी. रह रह कर उस चिकनी, गर्म और गीली दरार के एकदम नीचे स्थित छिद्र से कंचन यौवन जल छलके ही जा रहा था.....छलके ही जा रहा था. और नीचे तराई पर नज़र डाली तो दंग रह गया. नीचे पूरा बिस्तर गीला था. उसने नीचे छुआ, फिर मेरे कंपकपाते भगोष्ठों को स्पर्श किया और वहां की नमी को अपनी उंगली से लपेटा. अब उसने उंगली पर लगे गीलेपन को सुंघा. और सूंघते ही शाक्ड हो गया. बेचारा सु सु समझ रहा था परन्तु वो तो मेरा जूस था. वो एकदम कन्फ्यूज़ हो गया था. उसने मुझे झिंझोड़ कर उठाया. शायद उसे कुछ शक हो गया था.

लेकिन जब मैं नहीं उठी तो वो बोला माँ का भौसडा, जो होगा देखा जायेगा. कामदेव के बाणों से आहत उसका दिमाग वो सब कुछ नहीं सोचना चाहता था जो तथ्य अब आईने की तरह बिलकुल साफ़ था. कोई बेहोशी में उत्तेजित होकर गंगा जमना कैसे बहा सकती है.........शायद मेरा प्रतिक्रिया-विहीन शरीर उसे कुछ और ही संकेत दे रहा था...... तो वो फूल्टू कन्फ्यूज़ था. अब वो घुटनों के बल बैठ गया और अपने लंड को हिलाने लगा. बेचारा बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गया था, थोड़ी देर हिलाता रहा फिर एकदम से मेरी चूत पर अपना लंड टिकाया और अन्दर घुसेड़ने लगा. मैं दम साधे पड़ी रही और फिर वो मेरे ऊपर आ गया. उसने अपना पूरा वजन अपने हाथो पर दे रखा था ताकि मैं उठ ना जाऊं .

अभी उसका आधा लंड अन्दर घुसा था अब वो धीरे धीरे घस्से मार मार कर पूरा लंड अन्दर घुसाने लगा. मेरी चूत में आग लग चुकी थी. अब योजना के अनुसार, ऐन इसी वक़्त, मेरे दोनों सह-कलाकारों को मंच पर एंट्री मारना थी, जो कब से बाहर छुपे बैठे रहे होंगे और अन्दर चल रही एकल प्रस्तुति का लुत्फ़ उठाते हुए अपनी रास लीला भी सवस्त्र रचा रहे होंगे. अचानक दोनों ने अन्दर प्रवेश किया और मंच के मतवाले खिलाडी की खोपड़ी को एकदम झन्नाटे से अंतरिक्ष की सैर करा दी. जहाँ एक और अमित उन्हें वहां अचानक देख कर हतप्रभ रह गया वहीँ वे दोनों भी अनहोनी घटना को देखे जाने पर, चेहरे पर आने वाले भावों को, जीवन्तता से उभार कर अपने किरदार का सफलता पूर्वक निर्वहन कर रहे थे.......

पिंकी दोनों हाथों से अपना सर पकड़े अविश्वास की मुद्रा में मंच के समीप आई. रवि ने उसके पीछे आकर कंधे पर अपना हाथ रख दिया. दोनों थानेदारों द्वारा रंगे हाथों पकड़ लिए जाने पर वो एकदम जड़ हो गया. अभी भी उसका आधा लंड मेरी मस्ती में पिनपिनाती संकरी गली में बेशर्मी से आवारागर्दी करने में तल्लीन था.
क्रमशः........................
........

Post Reply