Bhoot bangla-भूत बंगला

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raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 13 Dec 2014 07:31

भूत बंगला पार्ट--4

गतान्क से आगे.....................

मैं अंदर घुसते ही फ़ौरन दूसरी तरफ पलट गया.

"क्या हुआ? उधर क्या देख रहे हो?" उसने मेरी तरफ पीठ किए किए ही पुचछा

"उधर कुच्छ नही देख रहा. तेरी तरफ ना देखने की कोशिश कर रहा हूँ" मैने जवाब दिया

"क्यूँ?" प्रिया भोलेपन से बोली

"क्यूंकी तू इस वक़्त मेरे सामने आधी नंगी खड़ी है इसलिए" मैने जवाब दिया और फिर बाहर जाने लगा

"अरे कहाँ जा रहे हो? इधर आओ" वो मुझे रोकते हुए बोली. अब भी उसकी पीठ मेरी तरफ थी

"क्या?" मैं रुक गया. पर अब भी मैने दूसरी तरफ चेहरा किया हुआ था.

"अरे यार अब ये फ़िज़ूल की नौटंकी छ्चोड़ो" वो थोड़ा सा चिड़के बोली "ज़रा मेरे पिछे आकर ये हुक्स बंद करो. मुझसे हो नही रहे"

मुझे समझ नही आ रहा था के हो क्या रहा है. या तो ये लड़की बिल्कुल बेवकूफ़ है या मुझपर कुच्छ ज़्यादा ही भरोसा करती है.

"कुच्छ पहेन ले प्रिया" मैने कहा

"हाँ पहेन लूँगी पर ज़रा ये हुक्स तो बंद करो. जल्दी करो ना" वो खुद ही थोड़ा सा मेरी तरफ सरक गयी.

जब मैने देखा के उसके दिल में कुच्छ नही है और ना ही वो मुझसे ज़रा भी शर्मा रही है तो मैं भी उसकी तरफ घूम गया और उसके नज़दीक गया. स्कर्ट उसने सरका कर काफ़ी नीचे बाँध रखा था और उसकी पॅंटी उपेर से दिखाई दे रही थी. मैने एक नज़र उसकी नंगी कमर पर डाली तो अंदर तक सिहर उठा. आख़िर था तो एक लड़का ही ना. भले वो लड़की कोई भी थी पर सामने एक लड़की आधी नंगी हालत में खड़ी हो तो असर तो होना ही था. मेरा लंड मेरी पेंट में झटके मारने लगा. मैने आगे बढ़कर उसकी ब्रा के दोनो स्ट्रॅप्स पकड़े और हुक लगाने की कोशिश करने लगा. मेरे दोनो हाथ की उसकी उंगलियाँ उसकी नंगी कमर पर लगी तो हटाने का दिल नही किया. मैने 2-3 बार कोशिश की पर हुक बंद नही कर पाया. एक बार मैने ज़ोर से कोशिश की तो थोड़ा सा हिली और पिछे को मेरे और करीब हो गयी. वो मुझसे हाइट में छ्होटी थी इसलिए उसके पिछे खड़े हुए मेरी नज़र सामने सीधा उपेर से उसके क्लीवेज पर पड़ी और नज़र जैसे वहीं जम गयी. ब्रा में उसकी चूचिया मुश्किल से क़ैद हो पा रही थी. मेरा दिल किया के अपने हाथ आगे करके उन दोनो चूचियो को मसल डालूं.

फाइनली मैं हुक बंद करने में कामयाब हो गया. प्रिया ने जब देखा के हुक लग गया तो वो आगे को हुई और मेरे सामने ही घूम गयी और मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी.

"तुम कह रहे थे ने के मुझसे लड़की बन कर रहना चाहिए इसलिए मैने सोचा के ये भी ले ही लूँ" उसने कहा

पर मुझे तो जैसे उसकी आवाज़ आ ही नही रही थी. वाइट कलर के ब्रा में उसकी हल्की सावली चूचिया जैसे मुझपर कहर ढा रही थी. आधी से ज़्यादा चूचिया ब्रा के उपेर और साइड से लग रहा था मानो अभी गिर पड़ेंगी. मेरी नज़र वहीं जमकर रह गयी थी. मैने जब जवाब नही दिया तो प्रिया ने महसूस किया के मैं क्या देख रहा हूँ. उसने शर्मा कर अपने दोनो हाथ आगे कर लिए और फिर से दूसरी तरफ घूमकर खड़ी हो गयी.

तभी बाहर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और मैं समझ गया के दुकान की मलिक वो औरत आ गयी है. प्रिया ने फ़ौरन आगे बढ़कर एक टॉप उठाया और मैं दरवाज़ा खोलकर स्टोर रूम से बाहर आ गया

थोड़ी देर बाद हम कपड़े उठाकर दुकान से निकल गये और बस स्टॉप की तरफ बढ़े जहाँ से प्रिया बस लेकर घर जाती थी. स्टोर रूम में मुझे अपनी तरफ यूँ देखता पाकर वो शायद थोडा शर्मा गयी थी इसलिए कुच्छ कह नही रही थी और मुझे भी बिल्कुल समझ नही आ रहा था के बात कैसे शुरू करूँ. हम दोनो चुप चाप चलते रहे.

थोड़ी ही देर में वो अपनी बस में बैठकर जा चुकी थी. मैने एक ठंडी आह भारी और अपनी कार की तरफ बढ़ गया.

शाम को तकरीबन 7 बजे मैं घर पहुँचा और ये देखकर राहत की सास ली के देवयानी घर पर नही थी.

"बाहर वॉक के लिए गयी है" रुक्मणी ने मुस्कुराते हुए मुझे बताया.

वो किचन में खड़ी खाना बना रही थी. मैने जल्दी से अपना समान वहीं सोफे पर रखा और किचन के अंदर दाखिल हुआ और रुक्मणी के पिछे जा खड़ा हुआ. मेरे हाथ उसकी कमर से होते हुए सीधा सामने उसकी चूचियो पर जा पहुँचा और मैं उसके गले को चूमते हुए उसकी चूचिया दबाने लगा. लंड पिछे से उसकी गांद से सॅट चुका था.

"क्या बात है बड़े मूड में लग रहे हो?" रुक्मणी आह भरते हुए बोली

मैं उसको कैसे बताता के प्रिया को यूँ ब्रा में देखकर लंड तबसे ही खड़ा हुआ है.

"कल रात तो आई नही थी ना" मैने लंड उसकी गांद पर रगड़ते हुए कहा

"वो देवयानी ..... "रुक्मणी कुच्छ कहना ही चाह रही थी के मैने उसको अपनी तरफ घुमाया और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. मैने पागलों की तरह उसको चूमने लगा और वो भी उसी गर्मी से मेरा जवाब दे रही थी.

"बेडरूम में चलो" मैने रुक्मणी से कहा

"नही" उसने फ़ौरन जवाब दिया "देवयानी काफ़ी देर की गयी हुई है. आती ही होगी"

मैं समझ गया के वो कह रही थी के जो करना है जल्दी निपटा लें वरना कहीं ऐसा ना हो के देवयानी आ जाए और मामला अधूरा रह जाए. उसने उस वक़्त एक टॉप और नीचे पाजामा पहेन रखा था. उसको चूमते हुए मैने उसका टॉप उपेर उठाया और उसकी दोनो चूचिया हाथों में पकड़ ली. ब्रा उसने अंदर पहेन नही रखा था इसलिए टॉप उठाते ही चूचिया नंगी हो गयी. बहुत जल्द उसका एक निपल मेरे मुँह में था और दूसरा मेरे हाथ की उंगलियों के बीच.

"आआहह " रुक्मणी ने अपनी गर्दन पिछे झटकते हुए अपना हाथ सीधा मेरे लंड पर रख दिया और पेंट के उपेर से दबाने लगी.

आग काबू के बाहर हो रही थी. मैने उसके दोनो कंधे पकड़े और नीचे की और दबाया. वो मेरा इशारा समझकर फ़ौरन अपने घुटनो पर बैठ गयी और मेरी पेंट खोलने लगी. पेंट खोलकर उसने नीचे घुटनो तक खींची और मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया.

उसकी इस अदा का मैं क़ायल था. वो जिस तरह लंड चूस्ति थी वो मज़ा उसको चोदने में भी नही था. जो मज़ा वो अपने मुँह और हाथ से देती थी उसके चलते कई बार तो मेरा दिल करता था के मैं बस उससे लंड चुस्वता रहूं, चोदु ही ना. और उस वक़्त भी वो वही कर रही थी. मेरे सामने बैठी वो मेरा लंड पूरा का पूरा अपने मुँह में ले लेती और अंदर उसपर जीभ फिराती. उसका एक हाथ मेरी बॉल्स सहला रहा था और दूसरे हाथ से वो लंड चूसने के साथ साथ मसल भी रही थी.

इससे पहले के मैं उसके मुँह में ही पानी गिरा देता, मैने उसको पकड़कर फिर से खड़ा किया और घूमकर हल्का सा झुका दिया. वो इशारा समझते हुए किचन में स्लॅब के उपेर झुक गयी और अपनी गांद उठाकर मेरे सामने कर दी. मैने उसका पाजामा और पॅंटी खींचकर उसको घुटनो तक कर दी और उसकी गांद को हाथों में थाम कर लंड चूत पर रखा.

"आआहह जल्दी करो" वो भी अब मेरी तरह जिस्म की आग में बुरी तरह झुलस रही थी और लंड चूत में लेने को मरी जा रही थी.

मैने लंड पर हल्का सा दबाव डाला और लंड के आगे का हिस्सा उसकी चूत के अंदर हो गया.

"पूरा घुसाओ" उसने झुके झुके ही कहा

मैने लंड थोडा बाहर खींचा और इस बार धक्का मारा तो रुका नही. लंड उसकी चूत में अंदर तक घुसता चला गया. वो कराह उठी. मैने उसका टॉप उपेर खींचा और पिछे से उसकी कमर सहलाते हुए फिर से हाथ आगे लाया और उसकी छतिया पकड़ ली.

"ज़ोर से दबाओ" रुक्मणी बोली तो मैं उसकी चूत पर धक्के मारता हुआ उसकी चूचिया ऐसे रगड़ने लगा जैसे उनसे कोई दुश्मनी निकल रहा था. पीछे उसकी चूत पर मेरे धक्के पूरी ताक़त के साथ पड़ रहे थे. हवा में एक अजीब सी वासना की खुसबु फेल गयी थी और हमारी आअहह की आवाज़ों के अलावा सिर्फ़ उसकी गांद पर पड़ते मेरे धक्को की आवाज़ सुनाई दे रही थी. मेरी खुद की आँखें भी बंद सी होने लगी थी और लग रहा था के किसी भी पल मेरा लंड पानी छ्चोड़ देगा. एक बार आँखें बंद हुई तो ना जाने सामने कैसे प्रिया का नंगा जिस्म फिर से आँखों में घूमने लगा और इस ख्याल ने मेरे मज़े को कई गुना बढ़ा दिया. मैने यूँ ही आँखें बंद किए प्रिया की चूचियो के बारे में सोचने लगा और पूरी तेज़ी के साथ रुक्मणी को चोदने लगा. मैं प्रिया के हर अंग के बारे में सोच रहा था. उसकी नंगी कमर, ब्रा में बंद चूचिया और उठी हुई गांद.

गांद का ख्याल आते ही मेरे हाथ अपने आपं रूमानी की गांद पर आ गये और मैं उसकी गांद सहलाने लगा. धक्को की रफ़्तार अब काफ़ी बढ़ चुकी थी और मैं जानता था के अब किसी भी वक़्त मैं ख़तम हो जाऊँगा. मैने रुक्मणी से गांद मारने के बारे में पुच्छने की सोची और उसकी एक अंगुली उसकी गांद में घुसाने की कोशिश की. अंगुली गांद पर महसूस होते ही वो फ़ौरन आगे को हो गयी और मना करने लगी. एक बार गांद मरवाने की कोशिश से वो इतनी डर गयी थी के अब अंगुली तक नही घुसाने देती थी.

"अंदर मत निकालना" वो मेरे धक्को की रफ़्तार से समझ गयी के मैं ख़तम होने वाला हूँ "बाहर गिराना"

मैने हाँ में गर्दन हिलाई और फिर से उसको चोदने लगा

थोड़ी ही देर बाद देवयानी आ गयी और हम सब खाना खाकर अपने अपने रूम्स में चले गये.

अगले दिन सॅटर्डे था और सॅटर्डे सनडे को मैं काम नही करता था. चाय पीते हुए मैने न्यूसपेपर खोला तो फ्रंट पेज पर ही मनचंदा के बारे में छपा हुआ था के पोलीस को उसके बारे में कोई जानकारी नही है और अगर कोई कुच्छ जनता है तो पोलीस से कॉंटॅक्ट करे.

raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 13 Dec 2014 07:32

मेरे पास करने को आज कुच्छ ख़ास नही था. आम तौर पर मेरे सॅटर्डे और सनडे रुक्मणी के साथ बिस्तर पर गुज़रते थे पर देवयानी के घर में होने की वजह से अब ये मुमकिन नही था. मैं काफ़ी देर तक बैठा न्यूसपेपर पढ़ता रहा. थोड़ी देर बाद रुक्मणी मुझे ब्रेकफास्ट के लिए बुलाने आई. उसको देखने से लग रहा था के वो कहीं जाने के लिए तैय्यर थी.

"कहाँ जा रही हो?" मैने उसको देखते हुए पुचछा

"कुच्छ काम है. थोड़ी देर में वापिस आ जाऊंगी. ब्रेकफास्ट टेबल पर मैने लगा दिया है खा लेना" उसने मुझसे कहा तो मैं हां में सर हिलाता खड़ा हो गया.

मैं नाहकार ब्रेकफास्ट के लिए टेबल पर आ बैठा. अभी मैं खा ही रहा था के देवयानी के कमरे का दरवाज़ा खुला और वो बाहर निकली. मैं उसको घर पर देखकर हैरान रह गया क्यूंकी मुझे लगा था के शायद वो भी रुक्मणी के साथ बाहर गयी होगी. पर शायद उसको देर तक सोने की आदत थी इसलिए रुक्मणी उसके बिना ही चली गयी थी.

"गुड मॉर्निंग" उसने मुझको देखते हुए कहा

मैने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए जवाब दिया. वो अपने कमरे के दरवाज़े पर खड़ी थी और उसके कमरे की खिड़की ठीक उसके पिछे खुली हुई थी. उसने एक सफेद रंग की नाइटी पहेन रखी थी. खिड़की से सूरज की रोशनी पिछे से कमरे के अंदर आ रही थी जिसके वजह से उसकी नाइटी पारदर्शी हो गयी थी और उसकी दोनो टाँगो का आकर नाइटी के अंदर सॉफ दिखाई दे रहा था. मैने एक पल के लिए उसको देखा और फिर नज़र हटाकर नाश्ता करने लगा.

"रुक्मणी कहाँ है?" उसने वहीं खड़े खड़े पुचछा

"कहीं बाहर गयी है. थोड़ी देर में आ जाएगी" मैने जवाब दिया

"वैसे आपकी रात कैसी गुज़री ?" वो मेरे सामने टेबल पर बैठते हुए बोली

"ठीक ही थी" मैने मुस्कुरा कर जवाब दिया

"नही मेरा मतलब के रात अकेले कैसे गुज़री? मेरे आने से काफ़ी प्राब्लम हो रही होगी आपको, नही?" उसने सामने रखा एक एप्पल उठाया और बड़ी मतलबी निगाह से मेरी तरफ देखते हुए एप्पल खाने लगी.

"क्या मतलब?" मैने सवाल किया

"मतलब सॉफ है आहमेद साहब. पहले हर रात मेरी बहेन आपके साथ बिस्तर पर होती थी और अब आपको मेरी वजह से अकेले सोना पड़ रहा है" उसने जवाब दिया

मेरा मुँह का नीवाला मेरे मुँह में ही रह गया और मैं चुपचाप उसकी तरफ देखने लगा. जबसे वो आई थी तबसे मैने उससे कोई बात नही की थी इसलिए इस बात का सवाल ही नही उठता के उसको मेरी बातों से मेरे और रुक्मणी के रिश्ते पर कोई शक उठा हो और ऐसा भी नही हो सकता था के रुक्मणी ने उससे कुच्छ कहा हो.

"क्या कह रही हैं आप?" मैने धीरे से कहा

"ओह कम ऑन इशान" उसने हस्ते हुए कहा "तुम्हें क्या मैं छ्होटी बच्ची लगती हूँ? जिस तरह से तुमने मुझे पिछे से किचन में आकर पकड़ा था ये सोचकर के मैं रुक्मणी हूँ उससे इस बात का सॉफ अंदाज़ा लग जाता है के तुम्हारे और मेरी बहेन के बीच क्या रिश्ता है"

मेरे सामने उसकी बात सॉफ हो गयी. मैने उस दिन किचन में उसको पकड़ लिया था ये सोचकर के वो रुक्मणी है और ये बात सॉफ इशारा करती थी के मेरे और रुक्मणी के शारीरिक संबंध थे. मैं खामोशी से उसको देखता रहा

"अरे क्या हुआ?" वो उठकर मेरे करीब आते हुए बोली "रिलॅक्स. मुझे कोई प्राब्लम नही है यार. तुम दोनो की अपनी ज़िंदगी है ये और मुझे बीच में दखल अंदाज़ी का कोई हक नही. मुझे कोई फरक नही पड़ता"

उसने कहा तो मेरी जान में जान आई वरना मुझे लग रहा था के कहीं ये इस बात पर कोई बवाल ना खड़ा कर दे. वो अब मेरे पिछे आ खड़ी हुई थी और दोनो हाथ मेरे कंधे पर रख दिए

"और वैसे भी" वो नीचे को झुकी और मेरे कान के पास मुँह लाकर बोली "तुम यहाँ मेरी बहेन के घर में फ्री में रहो तो उसके बदले उसको कुच्छ तो देना ही पड़ेगा ना. और ठीक भी तो है, उस बेचारी की भी अपनी ज़रूरत है जिसका ध्यान तुम रख लेते हो. फेर डील"

वो पिछे से मुझसे सटी खड़ी थी और उसके दोनो हाथ मेरे कंधो से होते हुए अब मेरी छाती सहला रहे थे. उसकी दोनो चूचिया मेरे सर के पिछे हिस्से पर दबे हुए थे.

"वैसे एक बात कहूँ इशान" उसने वैसे ही झुके झुके कहा "जिस तरह से उस दिन तुमने मुझे पकड़ा था, उससे मुझे अंदाज़ा हो गया था के तुम मेरी बहेन को काफ़ी खुश रखते होंगे. और इसलिए ही शायद वो तुम पर इतनी मेहरबान है"

मेरी समझ में नही आ रहा था के क्या करूँ. वो जिस तरह से मेरे साथ पेश आ रही थी उससे ये बात ज़ाहिर हो गयी थी के वो क्या चाहती है.

"मैं तो सिर्फ़ ये कहना चाह रही थी के मर्दानगी की कदर करना मैं भी चाहती हूँ" उसने अपने होंठ अब मेरे कानो पर रख दिए थे.

उसके दोनो हाथ अब भी मेरी छाती सहला रहे थे और धीरे धीरे नीचे को जा रहे थे. जो करना था वो खुद ही कर रही थी. मैं तो बस बैठा हुआ था. उसके हाथ मेरे पेट से होते हुए मेरे लंड तक पहुँचे ही वाले थी के ड्रॉयिंग रूम में रखे फोन की घंटी बजने लगी और जैसे हम दोनो को एक नींद से जगा दिया. वो फ़ौरन मेरे से हटकर खड़ी हो गयी और मैं भी उठ खड़ा हुआ. एक नज़र मैने उसपर डाली और ड्रॉयिंग रूम में आकर फोन उठाया.

फोन के दूसरी तरफ इनस्पेक्टर मिश्रा था

"यार तेरी बात तो एकदम सही निकली" फोन के दूसरी तरफ से उसकी आवाज़ आई

"कौन सी बात"" मैने एक नज़र देवयानी पर डाली जो मुझे खड़ी देख रही थी.

"वो अड्वर्टाइज़्मेंट वाली" मिश्रा ने जवाब दिया

"मतलब? कुच्छ पता चला क्या?" मेरा ध्यान देवयानी से हटकर मिश्रा की तरफ आया

"हाँ और अड्वर्टाइज़्मेंट का इतनी जल्दी जवाब आएगा ये तो मैने सोचा ही नही था. आज सुबह ही तो छपा था" मिश्रा की आवाज़ से ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी कोई जुंग जीत कर आया हो

"किसका जवाब दिया?" मैने पुचछा

"मनचंदा की बीवी का. फोन आया थे मुझे. वो कहती है के जिस आदमी का डिस्क्रिप्षन हमने अख़बार में छापा है वो उसके पति का है जो पिछले 8 महीने से गया है" मिश्रा ने कहा

"कहाँ से आया था" मैने पुचछा

"मुंबई से" मिश्रा बोला "और तेरी दूसरी बात भी सही थी"

"कौन सी?" मैने पुचछा

"मनचंदा उसका असली नाम नही था. उसका असली नाम विपिन सोनी था. और उसकी बीवी का नाम है भूमिका सोनी" मिश्रा बोला

"गुजराती?" मैने सोनी नाम से अंदाज़ा लगाते हुए कहा

"नही राजस्थानी" मिश्रा ने कहा "वो मंडे को आ रही है बॉडी देखने के लिए. फिलहाल तो वो ऐसा कह रही है. पक्का तो बॉडी देखने के बाद ही कह सकती है"

"ह्म्‍म्म्म" मैने सोचते हुए कहा "चलो केस में कुच्छ तो आगे बढ़े"

"हाँ अब कम से कम उस बेचारे की लाश लावारिस तो नही बची" मिश्रा बोला

"पर एक बात समझ नही आई" मेरे दिमाग़ में अचानक एक ख्याल आया "ये अड्वर्टाइज़्मेंट तो हमने यहाँ के अख़बार में दिया था. उसको मुंबई में खबर कैसे लग गयी?"

"उसकी कोई दोस्त है जो इसी शहेर में रहती है. उसने पेपर देखा तो फोन करके सोनी बताया और उसके बाद उसने मुझे फोन किया"

"ह्म्‍म्म्म" मैने फिर हामी भारी

"तू आएगा?" मिश्रा बोला

"कहाँ?" मैने पुचछा

"यार मैं सोच रहा थे के जब वो आइडेंटिफिकेशन के लिए आए तो तू भी यहाँ हो. अब तक तेरी ही कही बात से ये केस थोड़ा आगे बढ़ा है. हो सकता है आगे भी तेरी सलाह काम आए" मिश्रा ने कहा

"ठीक है. मुझे टाइम बता देना" मैने जवाब दिया


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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 13 Dec 2014 07:32

उस दिन और उसके अगले दिन और कुच्छ ना हुआ. रुक्मणी और देवयानी दोनो साथ ही घर पर रही और बाहर गयी भी तो साथ. ना तो मैं देवयानी से कुच्छ बात कर सका और ना ही रुक्मणी को चोदने का मौका मिला. उपेर से दिमाग़ में मनचंदा यानी विपिन सोनी के खून का किस्सा घूमता रहा.

मंडे सुबह ही मेरे पास मिश्रा का फोन आ गया और उसने मुझे पोलीस स्टेशन पहुँचने को कहा. सोनी की बीवी सुबह ही उससे मिलने आने वाली थी. मेरी भी उस दिन कोर्ट में कोई हियरिंग नही थी इसलिए मैं भी तैय्यर होकर पोलीस स्टेशन जा पहुँचा.

तकरीबन सुबह 10 बजे मैं और मिश्रा बैठे भूमिका सोनी का इंतेज़ार कर रहे थे. वो अपने बताए वक़्त से आधा घंटा लेट आई.

"सॉरी इनस्पेक्टर. मैं ट्रॅफिक में फस गयी थी" उसने पोलीस स्टेशन में आते ही कहा.

भूमिका सोनी कोई 35 साल की गोरी चित्ति औरत थी. वो असल में इस क़दर गोरी थी के उसको देखने वाला या तो ये सोचता के वो कोई अँग्रेज़ है या उसको कोई बीमारी है जिसकी वजह से उसकी स्किन इतनी गोरी है. वो तो उसका बात करने का अंदाज़ था जो उसके हिन्दुस्तानी होने की गवाही दे रहा था वरना पहली नज़र में तो शायद मैं भी यही सोचता के वो कोई अँग्रेज़ औरत है. वो एक प्लैइन काले रंग के सलवार सूट में थी. ना कोई मेक उप और ना ही कोई ज्यूयलरी उसके जिस्म पर थी. तकरीबन 5"5 लंबी, काले रंग के बॉल और हल्की भूरी आँखें. उसके साथ एक कोई 60 साल का आदमी भी था जो खामोशी से बैठा उसके और मिश्रा के बीच हो रही बातें सुन रहा था.

मरनेवाला, यानी विपिन सोनी, तकरीबन 50 से 60 साल के बीच की उमर का था इसलिए मैं उम्मीद कर रहा था के जो औरत खुद को उसकी बीवी बता रही है वो भी उतनी ही उमर के आस पास होगी पर जब एक 35 साल की औरत पोलीस स्टेशन में आई तो मैं हैरान रह गया. और औरत भी ऐसी जो अगर बन ठनके गली में निकल जाए तो शायद हर नज़र उसकी तरफ ही हो. और अपनी बातों से तो वो 35 की भी नही लग रही थी. हमें लग रहा था जैसे हम किसी 16-17 साल की लड़की से बात कर रहे हैं. वो बहुत ही दुखी दिखाई दे रही थी और आवाज़ भी जैसे गम से भरी हुई थी जो मुझे बिल्कुल भी ज़रूरी नही लगा क्यूंकी अब तक ये साबित होना बाकी था के मरने वाला उसका पति ही थी. पर शायद ये उसका 35 साल की उमर में भी एक बचपाना ही था के उसने अपने आपको विधवा मान भी लिया था.

मेरी नज़र उसके साथ बैठे उस बूढ़े आदमी पर पड़ी जिसने अब तक कुच्छ नही कहा था और चुप बैठा हुआ था. थोड़ी देर बाद भूमिका ने बताया के वो आदमी उसका बाप था जो उसके साथ लाश को आइडेंटिफाइ करने के लिए आया था. सुरेश बंसल, जो की उसका नाम था, देखने से ही एक बहुत शांत और ठहरा हुआ इंसान मालूम पड़ता था. उसके चेहरे पर वो भाव थे जो उस आदमी के चेहरे पर होते हैं जिसने दुनिया देखी होती है, अपने ज़िंदगी में ज़िंदगी का हर रंग देखा होता है.

मिश्रा ने शुरू से लेकर आख़िर तक की कहानी भूमिका को बताई के किस तरह विपिन सोनी यहाँ रहने आया था और किस तरह घर के अंदर उसकी लाश मिली थी. इसी कहानी में उसने मुझे भूमिका से इंट्रोड्यूस कराया और बताया के मरने से पहले मैं ही वो आखरी आदमी था जिससे विपिन सोनी मिला था. वो मेरी तरफ घूम और मुझे देखते हुए बोली

"चलिए मुझे ये जानकार खुशी हुई के यहाँ कोई तो ऐसा था जो मेरे हज़्बेंड को जानता था"

"जी नही" मैने उसकी बात का जवाब दिया "मैं उन्हें आपके हज़्बेंड के तौर पर नही बल्कि मनचंदा के नाम से जानता था"

"उनका असली नाम विपिन सोनी था" कहते कहते भूमिका रो पड़ी "पर शायद अब तो उन्हें किसी नाम की ज़रूरत ही नही"

"दिल छ्होटा मत करो बेटी" भूमिका के बाप यानी सुरेश बंसल ने उसकी तरफ रुमाल बढ़ाया "वो अब भगवान के पास हैं और उससे अच्छी जगह एक भले आदमी के लिए कोई नही है"

थोड़ी देर तक सब खामोश बैठे रहे. जब भूमिका ने रोना बंद किया तो मिश्रा ने उससे फिर सवाल किया

"म्र्स सोनी आप ये कैसे कह सकती हैं के मरने वाला आपका पति था?"

"मैं जानती हूँ इनस्पेक्टर साहब" वो बोली "मनचंदा हमारे मुंबई के घर के ठीक सामने एक कपड़ो के दुकान का नाम है, मनचंदा गारमेंट्स. वहाँ से मिला था उन्हें ये नाम"

"और कुच्छ?" मिश्रा ने सवाल किया

"और मेरे पति के चेहरे पर बचपन से एक निशान था, स्कूल में लड़ाई हो गयी थी और किसी दूसरे बच्चे ने एक लोहे की रोड मार दी थी जिससे उनका चेहरा कट गया था. और उनके एक हाथ के छ्होटी अंगुली आधी है. एक बार शिकार पर उनके अंगुली कर गयी थी. और कोई सबूत चाहिए आपको?" भूमिका बोली

"जी नही इतना ही काफ़ी है" मिश्रा बोला "वैसे आपके पति कब्से गायब थे?"

"यही कोई एक साल से" भूमिका बोली

"नही बेटी" उसकी बात सुनकर उसके पास बैठा उसका बाप बोला "8 महीने से"

"यहाँ वो 6 महीने से रह रहे हैं. बीच के 2 महीने कहाँ थे आपको पता है?" मिश्रा ने पुचछा

भूमिका ने इनकार में सर हिलाया

"वो घर से गये क्यूँ थे? आपसे कोई झगड़ा?" मिश्रा ने फिर सवाल किया

इस बार जवाब भूमिका ने नही मैने दिया

"मिश्रा तुझे नही लगता के ये सारे सवाल बॉडी को आइडेंटिफाइ करने के बाद होने चाहिए?"

"सही कह रहा है" मिश्रा ने मुकुरा कर जवाब दिया "पहले म्र्स सोनी ये कन्फर्म तो कर दें के मरने वाला विपिन सोनी ही है"

वो थोड़ी देर बाद भूमिका और उसके बाप को जीप में बैठाकर हॉस्पिटल ले गया आइडेंटिफिकेशन के लिए. मुझसे उसने चलने के लिए कहा पर मुझे हॉस्पिटल्स से हमेशा सख़्त नफ़रत रही है. वहाँ फेली दवाई की महेक मुझे कभी बर्दाश्त नही हुई इसलिए मैने जाने से मना कर दिया और वापिस अपने ऑफीस की तरफ चला.

ऑफीस पहुँचा तो प्रिया खिड़की पर खड़ी बाहर देख रही थी. मैं अंदर आया तो उसने पलटकर मुझे एक नज़र देखा और फिर खिड़की से बाहर देखने लगी. हमेशा की तरह ने तो उसने मुझे गुड मॉर्निंग कहा और ना ही ये पुचछा के मैं देर से क्यूँ आया. उसकी इस हरकत से मुझे उस दिन चेंजिंग रूम में हुई घटना याद आ गयी और जाने मुझे क्यूँ लगने लगा के अब शायद वो रिज़ाइन कर देगी. मैं चुप चाप आकर अपनी डेस्क पर बैठ गया. मैं उम्मीद कर रहा था के शायद वो अब उस दिन खरीदे अपने नये कपड़े पहेनकर आएगी पर उसने फिर से वही अपने पुराने लड़को जैसे कपड़े पहेन रखे थे.

कमरे में यूँ ही थोड़ी देर खामोशी च्छाई रही. आख़िर में कमरे का सन्नाटा प्रिया ने ही तोड़ा.

"तुम उस दिन मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे थे?" वो बिना मेरी तरफ पलते बोली

"मतलब?" मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा

"मतलब उस दिन जब स्टोर रूम में मैने तुम्हें ब्रा का हुक बंद करने को कहा तो तुम्हारी नज़र कही और ही अटक गयी थी. क्यूँ?" इस बार भी वो बिना पलते खिड़की के बाहर देखते हुए बोली

मुझसे जवाब देते ना बना

"बताओ" वो फाइनली मेरी तरफ पलटी और खिड़की पर कमर टीकाकार खड़ी हो गयी

"क्या बताऊं प्रिया?" मैने भी सोचा के खुलके बात करना ही ठीक है. वो एक अच्छी सेक्रेटरी थी और उसको खोना बेवकूफी होती

"यही के क्यूँ देख रहे थे ऐसे" वो आदत के मुताबिक अपनी बात पर आड़ गयी

"अरे यार मैं एक लड़का हूँ और तुम एक लड़की तो ये तो नॅचुरल सी बात है. तुम अचानक मेरे सामने ऐसे आ गयी तो थोड़ा अजीब लगा मुझे. एक लड़का होने की हिसाब से मेरी नज़र तो वहाँ जानी ही थी. नॅचुरल क्यूरीयासिटी होती है यार" मैने एक साँस में कह डाला

कमरे में फिर खामोशी च्छा गयी

"मैने घर जाकर इस बारे में बहुत सोचा" वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ी "और साची कहूँ तो तुम्हारा यूँ देखना अच्छा लगा मुझे. कम से कम इस बात का तो पक्का हो गया के मैं लड़की हूँ और लड़के मेरी तरफ भी देख सकते हैं"

मैने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो मुस्कुरा रही थी. मेरी जान में जान आई

"थॅंक्स यार" वो मेरे सामने बैठते हुए बोली "मुझे तो डाउट होने लगा था के कोई लड़का कभी क्या मेरी तरफ देखेगा पर उस दिन तुम्हारी नज़र ने ये साबित कर दिया के मुझ में वो बात है"

"है तो सही" मैने हस्ते हुए जवाब दिया "बस थोड़ा सा अपना ख्याल रखा करो"

"ह्म्‍म्म्म" वो गर्दन हिलाते हुए बोली

"और आज तुमने वो नये कपड़े नही पहने?" मैने सवाल किया

"नही साथ लाई हूँ" वो खुश होती हुई बोली "सोचा के पहले तुमसे एक बार बात कर लूँ फिर ट्राइ करूँगी. अच्छा बताओ के तुम्हें सबसे अच्छी ड्रेस कौन सी लगी?

"वो स्कर्ट और टॉप" मैने सोचते हुए जवाब दिया

"मुझे भी" वो बच्चो की तरह चिल्ला पड़ी "मैं वही पहेन लेती हूँ"

"ओह नो" मैने कहा "अब फिर उधर घूमना पड़ेगा"

"ज़रूरत नही है" वो खड़ी होते हुए बोली "मैने ब्रा पहेन रखा है आज"

मुझे उसकी बात एक पल के लिए समझ नही आई और जब तक समझ आई तब तक देर हो चुकी थी. वो फिर से मेरे सामने ही कपड़े बदलने वाली थी और मुझे डर था के अगर वो फिर उसी तरह मेरे सामने आई तो मेरी नज़र फिर उसकी चूचियो पर जाएगी. मैने उसको रोकना चाहा ही था पर तब वो अपनी शर्ट के सारे बटन खोल चुकी थी और फिर मेरे देखते देखते उसने एक झटके में अपनी शर्ट उतार दी.

क्रमशः........................


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