अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:36

रोहन नितिन की इस बात पर हँसे बिना नही रह सका.. नितिन ने ग़लत नही कहा था.. रोहन के नेचर के उलट वो एकदम टी-20 स्टाइल का खिलाड़ी था.. जिस लड़की पर मन आ गया, उसको बिस्तेर पर लाए बिना नही छ्चोड़ा.. और फिर अगले मॅच की तैयारी.. यहीं पर नितिन और रोहन में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ था..

"चल तू जो मर्ज़ी कर लेना.. पर मेरा तो कुच्छ हल कर..."

" अब वो लड़की कहाँ मिलेगी..?" नितिन तुरंत सीरीयस हो गया...

"बतला!" रोहन ने तुरंत जवाब दिया...

"बताता? ये कौनसी जगह है? और वो तुझे कैसे जानती है...?" नितिन ने शायद नाम ढंग से नही सुना था...

"बताता नही बतला.. और हम कभी मिले नही हैं.." रोहन ने बात स्पस्ट कर दी...

"ये ले.. तो क्या सपना आया था?" नितिन ने मज़ाक में कहा..

"सच बताउ की झूठ..?" रोहन ने आँखें खोलकर उसकी और देखा...

"अब भी झूठ बोलेगा तो कान के नीचे दूँगा.. समझा क्या है मुझको..? चल शुरू हो जा..." नितिन ने उसको प्यार से झिड़की दी...

"हां.. सपना आया था...!" रोहन ने बिना रुके कह दिया...

"वॉट..?" नितिन को उसकी बात मज़ाक लगी थी..

"सपना ही आया था भाई.. तुम्हारी कसम...!" रोहन को आख़िरकार किसी ना किसी से तो अपनी विडंबना शे-अर् करनी ही थी.. सो अपने सबसे अच्छे दोस्त से कर ली..

"लगता है तुझे नशा हो गया है.. चल आ.. बियर पीते हैं.. बाद में बात करेंगे.." कहकर हंसते हुए नितिन ने गाड़ी स्टार्ट करके वापस शहर की और घुमा दी...

"ये सब क्या है यार..? तूने मुझे पहले क्यूँ नही बताया? तुझे उस लड़की की नही किसी अच्छे साइकॉलजिस्ट की तलाश करने की ज़रूरत है..." सारी बात चुपचाप सुन'ने के बाद नितिन की यही प्रतिक्रिया थी.. वो और रोहन बार में बैठे बियर पी रहे थे...

"तू ऐसा बोल सकता है भाई.. क्यूंकी तेरे साथ ऐसा हुआ नही है.. तू नही समझ सकता.. अगर ये सब मेरे दिमाग़ का फितूर होता तो बता वही लड़की जो मुझे दिखाई देती थी सपनों में, वो असलियत में कैसे मिल गयी.. जबकि हम दोनो ने कभी एक दूसरे को देखा तक नही है.. फिर अंकल जी ने जो कुच्छ पुराने टीले के बारे में बताया.. उस लड़की ने भी तो मुझे वहीं बुलाया था.. हमारी गाड़ी की अपने आप हवा निकल गयी.. सुबह अपने आप भर गयी.. सपने में उसने मेरे सामने अपनी कमीज़ फाडी.. और सुबह वो भी सच था... सबसे बड़ी बात तो मैने तुम्हारे मुँह से भी नीरू की पुकार सुनी.. जब हम टीले पर गये थे.. क्या अब भी तू कहेगा की ये सब वहाँ है..?" रोहन ने अपनी बात को पुख़्ता तरीके से पेश करने के लिए इन्न बातों को फिर से दोहराया...

"हूंम्म.. तभी तो मुझे लग रहा है की इसमें बाप बेटी की साजिश की बू आ रही है.. हर सपने का इसी लड़की से ताल्लुक है... जिसने कहानी सुनाई.. वो उसका बाप है.. टीला भी उनके गाँव का ही है.. बच्चा वो खड़ा कर सकते हैं वहाँ... और टाइयर्स की हवा भी निकाल सकते हैं.. क्यूंकी उन्हे विश्वास होगा कि वापस आते हुए हम उनका ही दरवाजा खटखटाएंगे... सुबह जागने से पहले टाइयर्स में हवा भी भर सकते हैं.. तुम्हे याद है.. जब हमने उनका दरवाजा खटखटाया तो श्रुति ने क्या कहा था.. 'बापू' वो आ गये....' क्या मतलब था इसका? यही ना की वो हमारा इंतजार कर रहे थे... शर्तिया ये इनकी ही साज़िश है.. तू मान या ना मान.." नितिन ने निष्कर्ष निकाला...

"और तू जो मुझे देव.. देव करके पुकार रहा था.. वो?" रोहन उसकी सारी बात सुन'ने के बाद बोला...

"अब तेरी दिमागी हालत ही ऐसी हो गयी है तो ये तेरा वेहम भी हो सकता है.. मुझे तो यही याद आ रहा है कि पीपल के पेड़ की ठंडी छाया देख कर एक बार लेटने का मॅन हुआ था.. फिर तू मुझे वहाँ से कंधे पर उठाकर भाग लिया...." नितिन अब भी रोहन की पूर्वजनम और आत्मा वाली बात पर विश्वास करने को तैयार नही था...

"तुझसे इस बारे में बात करना ही बेकार है.. इसीलिए तो मैने इतने दिन तक तुझे कुच्छ नही बताया.. सिर्फ़ रॉकी को ही बताया था.. पर वो डर गया और साथ आने से इनकार कर दिया...."कुच्छ रुक कर रोहन ने फिर बोलना शुरू किया," चल तेरी बात मान भी लेता हूँ.. पर एक बार बतला जाकर उस लड़की का पता लगाने में क्या हर्ज़ है.. अगर कोई नीरू वहाँ मिल गयी तो फिर तो तुझे यकीन हो जाएगा ना..." रोहन उसको समझा समझा कर थक चुका था.. पर नितिन इसको अब तक साज़िश ही मान रहा था...

"देख.. अलबत्ता तो कोई लड़की तुझे वहाँ मिलनी नही है.. इन्होने सोचा होगा की बस तू एक बार यहाँ तक आ जाए.. उसके बाद शराफ़त और नज़ाकत का चोला पहन कर श्रुति तुझे अपने आप फँसा लेगी.. पर अगर कोई लड़की वहाँ मिल भी गयी तो कौनसी बड़ी बात है.. इतना बड़ा नाटक करने वालों के लिए.. बोल.. हो सकता है कि वहाँ बैठी नीरू भी इस साज़िश में शामिल हो.."

"पर तू ये क्यूँ भूल रहा है कि सपने तो खुद मुझे आते हैं ना... अब मेरा सपना भी क्या किसी की साज़िश का नतीजा हो सकता है? या तुझे कहीं ये तो नही लग रहा कि मैं भी साजिश में शामिल हूँ.. और झूठ बोल रहा हूँ, सपने के बारे में..." रोहन ने झल्लाते हुए कहा...

"ना.. तू साजिश का हिस्सा कैसे हो सकता है.. अगर ये साज़िश है तो तेरे ही खिलाफ है.. पर मुझे लगता है कि सपना साज़िश का हिस्सा हो सकता है.. हमें किसी नूरॉलजिस्ट से बात करनी पड़ेगी..." नितिन ने एक और तर्क ठोंक दिया...

"शिट यार.. तू बात को बार बार वहीं लाकर छ्चोड़ देता है.. आख़िरी बात ये है की किसी को.. खास तौर से इन्न बाप बेटी को मेरे खिलाफ साज़िश से मिलेगा क्या?" रोहन के सब्र का बाँध टूट'ता जा रहा था...

"तेरी अकूत दौलत.. तुझे प्यार के जाल में फँसाकर ये या वो नीरू तुझसे शादी कर सकती हैं.. और फिर आधी जायदाद की मालिक बन सकती हैं.. इसमें किसी और का हिस्सा भी हो सकता है.. मसलन तेरे किसी खास दोस्त या रिश्तेदार का.. क्यूंकी इन्न लोगों के वश में नही है इतनी बड़ी प्लॅनिंग.. हमें इनकी जड़ें टटॉलनी होंगी.... कोई ना कोई तो ज़रूर है.. इस सब के पीछे... और मैं आज ही पता लगाकर रहूँगा..." नितिन ने बीअर की केन ख़तम करके एक और फैंक दी..

रोहन ने अपना माथा पीट लिया," अच्च्छा.. आज ही पता कर लेगा? पूच्छ सकता हूँ कैसे?" रोहन ने व्यंग्य सा किया...

"क्या टाइम हुआ है?" नितिन ने पूचछा...

"1:30 हो गये.. क्यूँ?"

"श्रुति आते हुए बोल रही थी कि वो 4 बजे तक आएगी.. घर बस से जाने में उसको 1:30 घंटा तो लगता ही होगा.. जल्दी से एक एक और मंगवा ले.. फिर कॉलेज के सामने चलते हैं?" नितिन ने वेटर को इशारा किया...

"आख़िर क्या करने की सोच रहा है भाई तू?" रोहन अजीब तरीके से उसको देखता हुआ बोला...

" श्रुति को सब कुच्छ बताना ही पड़ेगा..." फिर वेटर की और मुँह करके बोला," 2 चिल्ड और......."

“तू क्या फिर से श्रुति को ज़बरदस्ती गाड़ी में डालने की सोच रहा है?” रोहन ने आस्चर्य से पूचछा…

“श्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..” नितिन ने अपने होंटो पर उंगली रख दी…

रोहन के सोचकर ही रोंगटे खड़े हो गये,” और अगर वो बेकसूर निकली तो?”

“तो क्या? सुबह उसको वापस कॉलेज छ्चोड़ देंगे.. हमें कौन जानता है?” नितिन ने सहजता से कह दिया.. मानो कोई बात ही ना हो..

“तेरी गाड़ी का नंबर.?” रोहन किसी तरह उसको इस खुरापात से दूर करना चाहता था..

“मैने आज तक अपनी गाड़ी पर ओरिजिनल नंबर. प्लेट लगाई है क्या?” नितिन शैतानी से मुस्कुराने लगा………

"मैं आज ही चला जाउ घर? मम्मी भी चिंता कर रही होंगी.." रोहन उसके खुरापाति दिमाग़ की कारस्तानियों के चक्कर में नही पड़ना चाहता था...

"ये तो और भी अच्च्छा रहेगा.. वैसे भी मुझे आज तुझे वापस भेजना ही था... गाड़ी देकर.. पर अब तो तुझे टॅक्सी करनी पड़ेगी..." नितिन ने खुश होते हुए कहा....

"वो कोई प्राब्लम नही है... बस तू ध्यान रखना.. उसका नाजायज़ फ़ायदा उठाने की कोशिश मत करना.. बेचारी बहुत मासूम है.." रोहन ने गाड़ी से निकलते हुए कहा...

"तू चुप रह ना यार.. मैं कौनसा उसका बलात्कार करने वाला हूँ.. कुच्छ पूच्छना ही तो है.. हाँ.. अपनी मर्ज़ी से देगी तो फिर तुझे कोई प्राब्लम नही होनी चाहिए.. ठीक है ना..." नितिन हंसते हुए बोला...

"मैं आज ही चला जाउ घर? मम्मी भी चिंता कर रही होंगी.." रोहन उसके खुरापाति दिमाग़ की कारस्तानियों के चक्कर में नही पड़ना चाहता था...

"ये तो और भी अच्च्छा रहेगा.. वैसे भी मुझे आज तुझे वापस भेजना ही था... गाड़ी देकर.. पर अब तो तुझे टॅक्सी करनी पड़ेगी..." नितिन ने खुश होते हुए कहा....

"वो कोई प्राब्लम नही है... बस तू ध्यान रखना.. उसका नाजायज़ फ़ायदा उठाने की कोशिश मत करना.. बेचारी बहुत मासूम है.." रोहन ने गाड़ी से निकलते हुए कहा...

"तू चुप रह ना यार.. मैं कौनसा उसका बलात्कार करने वाला हूँ.. कुच्छ पूच्छना ही तो है.. हाँ.. अपनी मर्ज़ी से देगी तो फिर तुझे कोई प्राब्लम नही होनी चाहिए.. ठीक है ना..." नितिन हंसते हुए बोला...

रोहन ने कोई जवाब नही दिया.. वो चुपचाप नितिन की और देखता रहा... बेशक नितिन ने कोई ग़लत काम ना करने का वादा किया था.. पर उसको ज़बरदस्ती रात भर रोके रखना भी तो बलात्कार से कम नही था.. कितनी नाज़ुक और कमसिन है बेचारी.. सोच कर ही रोहन का मॅन रह रह कर गाड़ी से उतर जाने को कर रहा था.. पर 'नीरू' की सच्चाई जान'ने की उत्सुकता उसको कुच्छ भी करने या कहने से रोक रही थी.. नितिन ने जो तर्क उसको इस मायवी रहस्य को साज़िश साबित करने के लिए दिए थे.. कहीं ना कहीं उसके मॅन में भी कहीं कोई गड़बड़ी होने की आशंका घर करने लगी थी....

"फिर भी यार.." रोहन अब भी नितिन की ज़िद के खिलाफ था...

"चिंता मत कर यार.. तुझे पता है.. मैं दिल का बुरा नही हूँ..." नितिन ने रोहन से हाथ मिलाया और गाड़ी स्टार्ट कर दी....

----------------------------

कॉलेज के गेट पर घंटा भर इंतजार करने के बाद उस्स्को श्रुति बाहर आती दिखाई दी....

"ओये.. आ गयी...." नितिन ने मंन ही मंन कहा और गाड़ी स्टार्ट कर दी...

"चख ले बेटा.." बड़बड़ाते हुए नितिन ने गाड़ी थोड़ा और आगे करके उसी तरफ ले गया जहाँ श्रुति रोड क्रॉस करके आने वाली थी...

श्रुति ने गेट से बाहर निकलते हुए ही उनकी गाड़ी पहचान ली थी और नितिन को भी अपनी और ताकते देख लिया था.. उसने अपना सिर झुकाया और उसको नज़रअंदाज सा करके कॉलेज से थोड़ा आगे गयी ही थी की नितिन ने गाड़ी उसकी बराबर में रोक दी,"हाई श्रुति!"

श्रुति ने तिर्छि नज़र से नितिन को देखा और बिना कुच्छ बोले आगे बढ़ गयी.. नितिन ने एक पल भी नही गँवाया.. फटाफट गाड़ी से उतरा और तेज़ी से चलकर उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो गया," मैं भी गाँव ही जा रहा हूँ.. आओ ना.. बैठ जाओ.."

"श्रुति ने नज़रें उठाकर नितिन को घूरा," मुझे जाने दो.. मैं बस में ही चली जवँगी.. हटो मेरे रास्ते से.."

"तुम तो बेवजह उस बात को दिल पर ले रही हो.. वो सिर्फ़ हल्का सा मज़ाक था.. अगर मैं सीरीयस होता तो तुम्हे यहाँ क्यूँ छ्चोड़ता.. मान भी जाओ.. मैं वहीं जा रहा हूँ.. गाँव में.." नितिन ने उसको प्यार से मना'ने की कोशिश की..

नितिन की बात का हल्का सा असर उसको श्रुति पर होता दिखाई दिया.. उसकी आँखों के झुक जाने से ..

"तुम समझ क्यूँ नही रहे हो? ये मेरा कॉलेज है.. यहाँ सब मुझे जानते हैं.. कोई क्या सोचेगा..? प्लीज़ हट जाओ और जहाँ जाना है चले जाओ.. मैं बस में जा सकती हूँ.. रोज़ ही जाती हूँ... प्लीज़ मुझे जाने दो.." कहते हुए श्रुति ने अनुनय की मुद्रा में हाथ बाँध लिए...

नितिन को भी उसकी बातों से बात बन'ती दिखाई दी..," मुझे पता नही था कि तुम इतनी कोमल हृदय हो कि ज़रा से मज़ाक से तुम आहत हो जाओगी.. मैने तो सिर्फ़ 'अपना' मानकर मज़ाक किया था.. यूँही.. तुम्हारे स्वीट से चेहरे पर गुस्सा बिल्कुल भी अच्च्छा नही लगता.. कहो तो मैं यहाँ सबके सामने कान पकड़ने को तैयार हूँ.. पर प्लीज़.. माफ़ कर दो.. और मान जाओ.. आइन्दा कभी ऐसी ग़लती नही करूँगा.. तुम्हारी कसम...!" और नितिन सच में ही अपने कानो को हाथ लगाकर खड़ा हो गया...

श्रुति शर्मिंदा सी हो गयी.. हालाँकि नितिन की कही बातों ने उसका दिल छू लिया था.. फिर भी.. वहाँ सबके सामने गाड़ी में बैठना असंभव था.. पहले ही उसको अपना तमाशा बनता नज़र आ रहा था.. जाने क्या सोचकर श्रुति के मुँह से निकल गया," थोड़ी आगे आ जाओ प्लीज़.. यहाँ मेरा यूँ तमाशा ना बनाओ.. कहकर वो उसकी बगल से निकलकर आगे बढ़ गयी..

नितिन खुशी से उच्छलता हुआ गाड़ी की और बढ़ा..

नितिन धीरे धीरे करके गाड़ी आगे बढ़ा रहा था...

बस-स्टॅंड करीब आते ही श्रुति की चाल धीमी पड़ गयी थी.. शायद उसने मन बना ही लिया था, गाड़ी में बैठने का.. उसके नितिन के पक्ष में फ़ैसला करने में इस बात ने अहम प्रभाव डाला कि उन्होने सुबह उसको सही सलामत कॉलेज छ्चोड़ दिया था...

"आ जाओ अब!" नितिन ने गाड़ी उसकी बराबर में रोक दी...

श्रुति ने झिझकते हुए सड़क पर मौजूद लोगों पर निगाह डाली.. किसी को भी जान कार ना पाकर उसने फट से खिड़की खोली और अंदर आ बैठी..

"जल्दी चलो प्लीज़... " एक लंबी साँस लेते हुए श्रुति ने कहा और आगे वाली सीट से सिर लगाकर बैठ गयी....

नितिन ने मौका देखते ही आगे से यू-तुर्न लिया और अपने पहले से निर्धारित ठिकाने की और गाड़ी दौड़ा दी, बदक़िस्मती से सिर को सीट से लगाए आँखें बंद किए बैठी श्रुति उस दिशा परिवर्तन की भनक नही पा सकी....

"कौनसा साल चल रहा है तुम्हारा?" नितिन ने श्रुति के साथ बातों का सिलसिला शुरू कर दिया...

कुच्छ देर तक श्रुति बिन बोले बैठी रही.. पर जब काफ़ी देर तक नितिन की तरफ से दूसरा सवाल नही दागा गया तो उसने मुँह खोल ही दिया," 20वा..."

"हा हा हा हा... मैं तुम्हारी उमर नही पूच्छ रहा था.. फिर भी धन्यवाद.. वैसे कौन्से ईयर में हो कॉलेज में...?"

"जी, फर्स्ट ईयर...!" श्रुति ने नज़रें झुकाए हुए ही जवाब दिया...

"शादी कब कर रही हो..?" नितिन ने पहले सवाल का जवाब मिलते ही दूसरा दाग दिया.. पर श्रुति ने इसका जवाब देना ज़रूरी नही समझा....

"कोई लड़का देख रखा है या मैं अपने लिए कोशिश करूँ...?" नितिन ने रोमॅंटिक लहजे में अगला सवाल किया...

श्रुति इस तरह की बातें सुनकर लजा सी गयी.. उसको इस तरह की बातों की आदत ही नही थी शायद...

"क्या बात है? अभी तक नाराज़ हो क्या?" नितिन की अगली बात भी सवाल ही थी...

"कितना टाइम लगेगा घर तक पहुँचने में..." श्रुति ने इस बार पलटकर सवाल किया.. वह नितिन के बेढंगे सवालों का रुख़ मोड़ देना चाहती थी.. बेशक वह अपनी मर्ज़ी से गाड़ी में बैठ गयी थी.. पर अभी तक भी अपने इस निर्णय को लेकर वो असमन्झस में लग रही थी.. पता नही किस मानसिक दबाव ने उसको नितिन की बात मान'ने पर मजबूर कर दिया था... उसके गोरे चित्ते चेहरे पर शिकन इस बात का सबूत थी कि वो अपने आप से खुश नही थी...

"बस उतना ही जितना तुम्हे बस से लगता है...." कुच्छ रुकते हुए नितिन ने अधूरी बात पूरी की...," अगर सब कुच्छ सही तरीके से हो गया तो....!"

श्रुति का माथा ठनका.. उसने तुरंत चेहरा उठाकर बॅक्कव्यू मिरर से उसकी ही और देख रहे नितिन से नज़रें मिलाई," क्क्या मतलब?"

"तुम घबरा बहुत जल्दी जाती हो.. कभी कुच्छ ऐसा वैसा किया नही है क्या?" नितिन के चेहरे पर शरारती मुस्कान उभर आई...

श्रुति को अहसास भी नही था कि वो उसके गाँव से उल्टी दिशा में किसी अग्यात स्थान की और जा रही है..," प्लीज़ ऐसी बातें मत करो.. मुझे बहुत डर लगने लगता है.. जल्दी से मुझे घर पहुँचा दो..." सच में वह डरी हुई थी.. बार बार अपने रुमाल से चेहरा पोंछती हुई वह मन ही मन खुद को कोस रही थी...

"कौन्से घर..? पुराने टीले पर...?" नितिन ने अबकी बार तो उसकी जान ही निकाल दी.. " ऐसे मज़ाक ना करें.. मुझे रोना आ जाएगा..."

"पहली बार तो हर लड़की रोती है.. ख़ासकर तुम्हारी तरह कच्ची उमर में सेक्स करना पड़ जाए तो.." नितिन ठहाका लगाकर हंस पड़ा...

श्रुति के चेहरे पर भय की बूंदे छलक उठी," ययए.. ये क्या... बकवास कर रहे हैं आप..? मैने आप पर विस्वास करके बहुत बड़ी ग़लती की.. मुझे किसी भी स्टॅंड पर नीचे उतार दो.. मैं अपने आप चली जाउन्गि बस पकड़ कर..." श्रुति के शब्दों में गुस्सा था.. पर ज़ुबान उसकी डर के मारे लड़खड़ा रही थी...

"डोंट वरी स्वीट हार्ट.. ग़लती तो हमने की तुम पर विस्वास करके... रोहन के साथ तुमने जो करने की कोशिश की.. अब क्या उसका बदला ही ना लें.. आज रात तुम मेरे बिस्तेर की शोभा बनोगी.. और तुम्हारी कसम.. तेरे जैसी लड़की बिस्तेर में कितना मज़ा देगी.. मेरा तो सोच सोच कर ही बुरा हाल है... दम निकला जा रहा है.. मेरा" नितिन बात बात पर अश्लील बाते करने से बाज नही आ रहा था..

श्रुति की हालत सुबह के जैसी ही हो गयी.. पहली बार उसने नज़रों को खिड़की के पार किया.. सब कुच्छ अंजाना था.. अंजान रास्ते.. अंजान मर्द.. और अंजान भविश्य.. श्रुति अंदर तक काँप गयी...," कहाँ जा रहे हो तुम ?.. मुझे उतार दो प्लीज़.. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ..." अब उसकी आवाज़ में रूखापन और कठोरता नही बुल्की दयनीय और कंपकँपता हुआ लहज़ा था...

"अब तुम्हे हमारा मकसद जान'ने में ज़्यादा समय नही लगेगा जानेमन.. मंज़िल बहुत करीब है..." नितिन के चेहरे पर कड़वी सी मुस्कान लगातार श्रुति के लिए माहौल को और भी भयावह बना रही थी...

"मुझे नही चलना तुम्हारे साथ.. जहाँ भी अभी मैं हूँ.. यहीं उतार दो.. मेरा बापू मर जाएगा.. अगर मैं समय पर नही पहुँची तो....!" श्रुति ने गिड-गिडाते हुए नितिन के कंधे पर हाथ रख दिया..

"आआहा.. कितना मीठा टच है तेरे हाथों का.. तेरी ये जवानी तो सच में... हाए.. क्या चीज़ है तू..? मेरे ऑफीस में नौकरी करेगी..? दोनो को रख लूँगा साथ में.. और तो कोई तुम्हारा है नही.. बाप बेटी का... सोच ले..."

श्रुति फफक फफक कर रोने लगी... उसको अहसास हो चुका था कि वो बहुत बड़े ख़तरे में आ गयी है.. कम से कम उसकी जवानी और इज़्ज़त तो ख़तरे में थी ही.. ये उसको विस्वास था...

नितिन ने गाड़ी को छ्होटे रास्ते पर दौड़ा दिया.. हाइवे से उतार कर.. श्रुति के हाथ में कुच्छ नही था.. सिवाय सुबकने के.. उसको मालूम था की अगर वो चिल्लाने की कोशिश भी करती है तो गाड़ी के तेज म्यूज़िक में ही उसकी आवाज़ घुट कर रह जाएगी.. और फिर उसको नितिन के और ज़्यादा क्रूर होने का भी डर था.. फिलहाल अपनी नासमझी पर आँसू बहाने के अलावा उसके पास कोई रास्ता ही नही था.. सो वह कर ही रही थी....

अचानक ही गाड़ी तेज़ी से मूडी और हल्की सी चढ़ाई चढ़ कर एक पुरानी जर्जर सी इमारत में घुस गयी... श्रुति की छातिया उसके दिल के धड़कने के साथ साथ खराब रास्ते पर बड़े ही कामुक अंदाज में उच्छल रही थी....

गाड़ी इमारत में काफ़ी अंदर जाकर बने गैराज सी दिखने वाली जगह पर जाकर रुकी.. नितिन तुरंत गाड़ी से उतर गया.. उतरने के साथ ही उसने अपनी पॅंट में आ चुके उभार को छुपाने के लिए ठीक किया...

" आजा मेरी जान.. शर्मा क्यूँ रही है...? कहते हुए नितिन ने खिड़की खोलकर श्रुति को गाड़ी से बाहर खींच लिया....

"आओ.. नीचे चलते हैं...!" नितिन श्रुति के हाथ को पकड़े हुए आगे बढ़ गया.. बेचारी निरीह मासूम जानवर की तरह उसके हाथों की कठपुतली बनी उसके साथ साथ खींचती चली गयी...

बहुत ही तंग और बिना रोशनी वाले छ्होटे से टुकड़े को पार करके नितिन श्रुति का हाथ पकड़े नीचे की ओर जा रहे एक जीने पर उतरने लगा.. करीब करीब 13-14 घुमावदार पैडियो से होते हुए वो दोनो एक लॉबी में आ गये.. जिसके दोनो ओर कमरे बने हुए थे... आसचर्यजनक रूप से उस जर्जर इमारत के नीचे बनी ये जगह काफ़ी नयी प्रतीत होती थी.. उसका हर कोना कृत्रिम प्रकाश से दमक रहा था...

"तुम्हे जो चाहिए मैं दे दूँगी.. जो पूछोगे, सब बता दूँगी.. प्लीज़.. मुझे हाथ मत लगाना..." साथ चलते हुए श्रुति रह रह कर गिड-गिडा रही थी.. पर नितिन को उस वक़्त बात करने में इंटेरेस्ट नही था.... लॉबी पार करके वो दाई तरफ मुड़ा और सबसे आख़िर में जाकर एक विशाल और अद्भुत रूप से सुसज्जित शयनकक्ष सी दिखने वाली जगह पर आ गया..

"किसी बात की चिंता मत करो.. जब तक तुम मेरा कहा मनोगी.. तुम्हे कुच्छ नही होगा... लेकिन चालाक बन'ने या नखरे करने की कोशिश की तो तुम्हारा भी यही हाल होगा, जो इनका हुआ था... कहते हुए नितिन ने एक जगह चाबी फँसाई और बेडरूम के अंदर बनी दीवार के एक खास हिस्से को खिसककर आराम से खोल दिया..

"एयेए...आआआ!" बदहवास सी आँखें फैलाए श्रुति सिर्फ़ इतना ही बोल पाई थी कि बेहोश हो गयी.. उसने तो कमरे के अंदर पड़ी 5 लड़कियों की नंगी लाशों को ढंग से देखा भी नही था.. उनके शरीर से निकल कर कमरे में फैली हुई तेज दुर्गंध ने ही उसको इतना लचर कर दिया कि वह अपने पैरों पर खड़ी ना रही सकी और नितिन की बाहों में झूल गयी.....

"बहुत मज़ा आएगा... तेरे अंग अंग में इतना रस भरा हुआ है कि तेरा कतरा कतरा पीने में मुझे महीने लग जाएँगे..." नितिन ने उसको बाहों में उठाया और बेड पर लेजाकर पटक दिया.... और उसके पास बैठकर उसके नाज़ुक गुलाबी होंटो पर अपनी उंगली फिराने लगा.....


raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:37

अधूरा प्यार--4 एक होरर लव स्टोरी

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

कुच्छ ऐसा ही रोहन के साथ कहानी में हुआ.. हमेशा अपनी मस्ती में ही मस्त रहने वाला एक करोड़पति बाप का बेटा अचानक अपने आपको गहरी आसमनझास में घिरा महसूस करता है जब कोई अंजान सुंदरी उसके सपनों में आकर उसको प्यार की दुहाई देकर अपने पास बुलाती है.. और जब ये सिलसिला हर रोज़ का बन जाता है तो अपनी बिगड़ती मनोदशा की वजह से मजबूर होकर निकलना ही पड़ता है.. उसकी तलाश में.. उसके बताए आधे अधूरे रास्ते पर.. लड़की उसको आख़िरकार मिलती भी है, पर तब तक उसको अहसास हो चुका होता है कि 'वो' लड़की कोई और है.. और फिर से मजबूरन उसकी तलाश शुरू होती है, एक अनदेखी अंजानी लड़की के लिए.. जो ना जाने कैसी है...

इस अंजानी डगर पर चला रोहन जाने कितनी ही बार हताश होकर उसके सपने में आने वाली लड़की से सवाल करता है," मैं विस्वाश क्यूँ करूँ?" .. तो उसकी चाहत में तड़प रही लड़की का हमेशा एक ही जवाब होता है:

'' मुर्दे कभी झूठ नही बोलते "

दोस्तों कहानी का ये पार्ट पढ़ने के बाद कमेन्ट जरूर देना इस कहानी को आगे भी पोस्ट करू या नही

गतांक से आगे .........................

नितिन हुश्न की बेपनाह दौलत को अपने कमसिन अनच्छुए बदन में समेटे बिस्तेर पर अचेत अवस्था में लेती श्रुति को देख अपने होंटो को अपनी ही जीभ से बार बार तर करता रहा.. वह उसके पास ही बैठा उसकी यौवन प्रकाश्ठा का पर्याय मदमस्त छातियो को एकटक देखे जा रहा था... पर आसचर्यजनक ढंग से उन्हे छ्छूने की कोई कोशिश उसने नही की... अचानक वह उठा और कमरे से बाहर निकल गया...

कमरा बंद किए जाने की आवाज़ आते ही भय से चरमरा सी उठी श्रुति ने धीरे से अपनी आँखें खोल दी.. अपनी साँसों पर काबू पाने की असफल कोशिश करती हुई श्रुति ने गर्दन घूमाकर कमरे में देखा.. वहाँ कोई नही था... पर वहाँ पसरा सन्नाटा ही वहाँ किसी की मौजूदगी से भी भयानक था.. श्रुति की आँखों के सामने कुच्छ ही मिनिट पहले का अमानुषिक मंज़र रह रह कर कौंध रहा था.. उस दीवार की तरफ देखने तक की हिम्मत नही कर पा रही श्रुति अचानक उठी और बाहर निकलने के दरवाजे की और लपकी.. पर उसकी ये तेज़ी व्यर्थ ही थी; दरवाजा बाहर से बंद था...

"हे भगवान.. मैं क्या करूँ?" घुटनो के बल वहीं बैठकर सुबकने लगी श्रुति के पास और कोई चारा भी नही था...

"अभी आया मेम'साब!" अचानक कमरे में गूँजी एक मर्दानी आवाज़ ने लगभग उसको उच्छाल ही दिया..,"क्क्कौन.. कौन है?" भय के मारे श्रुति का कलेजा और आँखें दोनो बाहर निकलने को हो गये.. पर उसके बाद कोई आवाज़ उसको सुनाई नही दी...

इन्न हालत में तो बड़े से बड़े तीस्मारखा भी थर्रने को मजबूर हो जाते.. श्रुति तो फिर भी एक लड़की थी.. बदहवास सी कमरे में इधर उधर देखती वो एक दीवार के साथ चिपक कर खड़ी होकर हाँफने लगी...

अचानक दरवाजा खुला और करीब 35-40 साल का भद्दी सी शकल का लंबा तगड़ा आदमी कमरे में दाखिल हुआ.. श्रुति दह्सत के मारे सिमट कर कोने में जा खड़ी हुई...

"कुच्छ चाहिए मेम'शाब!" आदमी की आवाज़ में अत्यधिक विनम्रता थी.. पर श्रुति के लिए उस पल कोई भी आवाज़ किसी यमराज की दहाड़ से कम नही थी...

"कौन हो तुम?.. मुझे यहाँ से जाने दो प्लीज़.." श्रुति कोने में चिपके हुए ही अपने दोनो हाथ प्रार्थना की मुद्रा में आगे ले आई..

"मैं भगवान हू मेम'शाब.. भगवानदास.. साहब का सेवक हूँ.. और उनके मेहमानो का भी.. अभी साहब यहाँ नही हैं.. कुच्छ चाहिए तो फिर से मुझे आवाज़ लगा देना.. कुच्छ चाहिए क्या आपको अभी..?"

"मुझे जाने दो प्लीज़.. मुझे जाना है यहाँ से...!" श्रुति गिड-गिडाते हुए बोली...

"पर यहाँ से तो कोई जाता ही नही वापस.. जब साहब का काम हो जाएगा तो वो आपको मुझे गिफ्ट कर देंगे.. हे हे हे.. तब तक आप मेरी मालकिन हैं.. पर मेरे सामने दोबारा जाने का जीकर मत करना मेम'शाब.. साहब ने बता रखा है मुझे क्या करना है, अगर आप जाने की कोशिश करो तो.. हे हे हे.." भगवानदास ने कहा और बाहर निकल गया.. दरवाजे की कुण्डी लगाकर...

श्रुति कोने में खड़ी खड़ी सूखे पत्ते की तरह काँप रही थी.. आतंक के मारे उसका गोरा चेहरा पीला पड़ने लगा था.. रह रह कर उसको घर में उसका इंतज़ार कर रहे अपने बापू की याद आ जाती और वा सिसकने लगती.. अब तक तो उसके लिए चिंता भी करने लग गये होंगे...

"मेम'शाब खाना!" दरवाजा खोलकर अंदर आए भगवान दास ने टेबल पर एक थाली रखते हुए कहा.. एक बार श्रुति के मन में आया कि वह भागने की कोशिश करे.. पर उसके कदमों ने उसका साथ नही दिया.. उसको भगवान दास की बात याद आ गयी.. 'साहब ने मुझे बता रखा है कि आप भागनेकी कोशिश करें तो मुझे क्या करना है...'

सहमी हुई श्रुति ने खाने की और देखा तक नही.. भगवान दास के वापस जाते ही वा अपने आँसू पोन्छ्ते हुए बिस्तर पर जाकर बैठ गयी...

-----------------------------------------

"तो क्या बात हुई उस लड़की से?" रोहन नितिन के पास अकेले में बैठा था...

"कुच्छ खास हासिल नही हो पाया... उसको घर जाने की जल्दी थी और वो गिड-गिडाने लगी.. मुझे उस'पर दया आ गयी और मैने उसको जाने दिया... फिर मिलने का वादा लेकर..." नितिन ने बड़ी सफाई से झूठ बोला...

"मुझसे अब और इंतज़ार नही होता भाई.. मैं कल सुबह ही पंजाब जा रहा हूँ.. चल ना मेरे साथ.. मैने मम्मी पापा से भी पूच्छ लिया है..." रोहन ने नितिन से साथ चलने का आग्रह किया...

"क्या बताया तूने उनको? तुझे सपने में उनकी बहू मिल गयी है?" नितिन कहकर ज़ोर से हंसा...

"मैं पागल हूँ क्या?"रोहन ने नितिन की बात खारिज़ की..

"तो?"

"बस बोल दिया ऐसे ही कुच्छ.. तू बता ना.. साथ चल रहा है ना?" रोहन ने नितिन से फिर पूचछा....

"क्यूँ? वहाँ भी भूत वूत मिलने के चान्स हैं क्या?" नितिन फिर से हंसा..

"मेरा मज़ाक मत बना यार.. तुझे पता है मुझसे इतनी लंबी ड्राइविंग नही होगी.. और ड्राइवर को मैं लेकर जाना नही चाहता... चल पाडो ना भाई..." रोहन ने असली वजह बताई...

"देख मेरे पास एक दिन से ज़्यादा का टाइम नही है.. तुझे खुद ही कुच्छ करना पड़ेगा...." नितिन ने सॉफ मना कर दिया...

"वैसे तो मैने रविंदर को साथ चलने के लिए मना रखा है.. पर जाना पड़ेगा बस या ट्रेन में...." रोहन ने सपस्ट किया...

"तो कौनसा पहाड़ टूट जाएगा.. चला जा.. ड्राइविंग का झंझट ही ख़तम.. चल अभी मैं चलता हूँ.. सुबह जल्दी उठकर एक काम निपटाना है..." नितिन कहते हुए उठ गया...

रोहन उसको दरवाजे तक छ्चोड़ कर आया और वापस आकर अपने बिस्तेर में दुबक गया....

रात के करीब 9 बज चुके थे, इस दौरान जानने कितनी ही बार श्रुति दिल पकड़ कर रोई थी. जाने कितनी ही बार उसका कलेजा मुँह को आने को हुआ था.. जाने कितनी ही बार अपने बापू के बारे में सोचकर वह सिसक उठी थी.. इतना तो उसका मन भी मन चुका था कि उसकी इज़्ज़त तार तार होने से अब कोई करिश्मा ही उसको बचा सकता है, उसके बाद वह जिंदा वापस चली जाए; गनीमत है...

जान बचाने के लिए नितिन की हर बात मान लेने के लिए वह खुद को मानसिक रूप से तैयार कर चुकी थी.. यही सोच सोच कर बार बार उसका कलेजा फट पड़ता था और आँसू रह रह कर उसके गालों पर निशान छ्चोड़ जाते थे..

यूँही लेटी लेटी अपनी किस्मत को कोस रही श्रुति ने जैसे ही बाहर से नितिन की आवाज़ सुनी तो उसने अपने आँसू पौन्छे और आँखें बंद करके दम साधकर सोने का नाटक कर लिया...

नितिन दरवाजा खोलकर जैसे ही अंदर आया, उसने श्रुति को बिखरे हुए बलों में बिस्तेर पर सोते हुए पाया.. टेबल पर दोपहर का खाना ज्यों का त्यों पड़ा था.. वह मुड़कर बाहर निकलने को हुआ तो भगवान दास दरवाजे पर प्रकट हो गया..

"इसने खाना नही खाया?" नितिन ने भगवान दास से पूचछा...

"नही साहब.. मैने तो आपके कहे अनुसार बड़ी शिद्दत से बनाया था, मेम'शाब की खातिर.. हे हे हे.." भगवान दास ने बत्तीसी निकालते हुए कहा..

"इधर आओ.. "कहते हुए नितिन ने बाहर निकल कर दरवाजा बंद कर दिया.. और कमरे से दूर जाने लगा.. भगवान दास उसके पिछे पिछे ही था..

"इसको कुच्छ शक तो नही हुआ?" नितिन ने भगवान दास से पूचछा...

"नही साहब.. डर के मारे इसकी तो जान ही निकली जा रही थी.. आपके कहे अनुसार मैने रटे रताए डाइलॉग बोलने शुरू किए ही थे कि इसका बुरा हाल हो गया.. मुझे इसकी दया आ गयी साहब.. मुझसे सारी बातें बोली नही गयी..!" भगवानदास सिर झुका कर बोला...

"कोई बात नही.. डर तो पूरी तरह गयी है ना..?"

"डरने की छ्चोड़ो साहब.. ये तो मर ही जाती अगर थोड़ी देर और मैं यहाँ रहता..."

"कोई बात नही.. वो लाशों वाला प्रोग्राम तुमने बहुत अच्च्छा किया था.. एक दम असली लग रही थी.. माँस किस चीज़ का था..?" नितिन ने मुस्कुराते हुए पूचछा...

"हे हे हे.. बकरे का कच्चा माँस था साहब.. आपका फोन आते ही मैं बकरा ले आया था.. और काट कर डाल दिया था अंदर.."

"हुम्म.. गुड.. अब दूसरी तरफ से जाकर वो रब्बर के पुतले भी वहाँ से हटा दो और कमरा अच्छि तरह सॉफ कर दो..."

"जी अच्च्छा साहब...." भगवान दास ने अदब से सिर झुकाया और वहाँ से चला गया...

नितिन जैसे ही कमरे में घुसा.. उसने श्रुति को तेज़ी से अपनी आँखें बंद करते देख लिया..,"अच्च्छा.. तो अब मेरे चेहरे से इतनी नफ़रत हो गयी है कि देखना भी नही चाहती..." कहता हुआ नितिन बिस्तेर के पास जाकर खड़ा हो गया..

सिर से लेकर पाँव तक डर के मारे श्रुति काँपने लगी.. उसकी आँखें बंद थी..

नितिन का हर शब्द उसको अपने सीने में चुभता हुआ महसूस हो रहा था.. वह चुपचाप लेती रही..

"मैं सिर्फ़ तीन तक गिनूंगा...." नितिन ने अपनी बात पूरी भी नही कि थी कि श्रुति अचानक आँखें खोल कर उठ बैठी और नितिन से सबसे दूर वाले कोने पर जाकर उसको बेबसी से देखने लगी...

"बड़ी समझदार हो जाने-मॅन... अब क्या इरादा है?" नितिन ने बचकाने अंदाज में उसको और डराने की कोशिश की...

श्रुति कुच्छ नही बोली.. चुपचाप किसी मासूम मेम्ने की तरह उसको आँखें फाड़कर देखती रही जैसे खुद पर रहम करने की भीख माँग रही हो.. हालाँकि चेहरे के उड़े हुए रंग से सॉफ था की उसको रहम की उम्मीद थी नही...

"जिंदा रहना चाहती हो?" नितिन ने उसी रूखे स्वर में पूचछा...


raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:38

श्रुति ने तुरंत अपना चेहरा हिलाया.. अब तो बस जिंदगी बचने की ही आस थी.. इज़्ज़त के साथ तो वो कब का समझौता कर चुकी थी...

"शाबाश.. लेकिन उसके लिए बहुत ज़रूरी है की मैं जो कुच्छ भी कहूँ.. जो कुच्छ भी पूच्छू.. आगया का तुरंत पालन होना चाहिए.. यदि एक बात भी तुमने नही मानी.. या एक बार भी झूठ बोला.. तो समझ लेना.. कमरे में पड़ी लाशों की तरह तुम्हे भी दूसरा मौका नही मिलेगा..."

"जी.." बड़ी मुश्किल से घुटि हुई आवाज़ श्रुति के गले से निकली...

"जाओ.. जाकर नहा लो.. तब तक मैं तुम्हारे लिए कपड़े निकालता हूँ.." नितिन ने शरारती आँखों से उसको उपर से नीचे घूरा..

"ज्जई.. यही ठीक हैं.." श्रुति ने हकलाते हुए कहा...

"क्या कहा था मैने? इतनी जल्दी भूल गयी..." नितिन ने उसको याद दिलाया की उसको उसकी हर बात मान'नि ही पड़ेगी...

"जी.. जी.. जाती हूँ.." कंपकँपति आवाज़ में बोलते हुए श्रुति ने तुरंत बाथरूम का रुख़ कर लिया... बाथरूम में घुसते हुए उसने मुड़कर नितिन की आँखों में देखा.. उसको विस्वास नही हो रहा था की अत्यंत सभ्य दिखने वाले उस इंसान की चमड़ी के पिछे एक घिनौना जंगली जानवर छिपा हुआ है....

अंदर जाकर उसने दरवाजा बंद कर लिया...

करीब 15 मिनिट बाद बाथरूम के दरवाजे पर खटखट हुई.. श्रुति सहम गयी.. वह अभी नहा ही रही थी..,"ज्जई.."

"नहाई नही हो क्या अब तक..?" बाहर से नितिन की आवाज़ उसके कानो में पड़ी....

"जी.. नहा ली.." पानी का नाल बंद करते हुए श्रुति ने मरी सी आवाज़ में कहा...

"दरवाजा खोलो..!" नितिन के स्वर में सहज आदेश था जिसे श्रुति तुरंत समझ गयी.. उसकी आँखों से आँसू लुढ़क कर उसके नंगे बदन पर मोतियों की तरह दमक रही पानी की बूँदों में समाहित हो गये.. अब हो ही क्या सकता था.. उसने दरवाजे के पास आकर एक बार अपने मजबूर बेपर्दा हुश्न को मायूसी से देखा और चिताकनी खोल कर नितिन के अंदर आने का इंतज़ार करने लगी...

"अपने कपड़े मुझे दो..." नितिन ने बाहर खड़े खड़े ही रूखे स्वर में कहा..

"जी.. एक मिनिट.." श्रुति ने काँपते हाथों से अपनी कमीज़ और सलवार हाथ बाहर निकाल कर उसको पकड़ा दी...

"और?" नितिन अभी कपड़ों की गिनती से संतुष्ट नही था...

"जी.. क्या?" श्रुति उसका मतलब समझ नही पाई....

"नाम लेने पड़ेंगे क्या?" बाकी कपड़े भी दो..." नितिन ने अपनी मंशा को विस्तार से प्रकट किया....

श्रुति की रूह तक काँप गयी.. कुँवारी जवान लड़कियाँ अपनी ब्रा और पॅंटी को तो अपनी बेशक़ीमती अमानत की तरह छुपा कर रखती हैं.. पर जान बचने की हल्की सी उम्मीद लिए श्रुति उसकी हर बात मान'ने को मजबूर थी..."जी.."

श्रुति ने कहा और सुबक्ते हुए अपने वो आख़िरी वस्त्र भी हाथ बढ़कर बाथरूम से बाहर निकल दिए... उसको विस्वास हो चुका था कि आज वो किसी हालत में कुँवारी नही रहने वाली है...

"बाहर आ जाओ.." नितिन पॅंटी को नाक से लगाकर उसमें से आ रही खट्टी मीठी गंध का आनंद लेते हुए बोला...

"जी.. तौलिया..?" कुच्छ देर उसके नायाब हुश्न को शर्मसार होने से बचाने के लिए अब टवल ही एकमत्रा सहारा हो सकता था...

"बाहर आकर ले लो..." नितिन ने उसको तड़पने में कोई कसर नही छ्चोड़ी थी...

अब कहने को श्रुति के पास कुच्छ बचा ही नही था.. और ना ही कुच्छ छिपाने को.. बिलखती हुई वो घुटनो के बल वही बैठ गयी और अपनी सिसकियों को नितिन की नाराज़गी से बचने के लिए छिपाने की कोशिश करने लगी..

"मेरे पास ज़्यादा टाइम नही है..?" बाहर उसका इंतजार कर रहे नितिन ने ज़रा ऊँची आवाज़ में कहा....

बेबस श्रुति ने हल्का सा दरवाजा खोला और उसकी आड़ लेकर अपना चेहरा बाहर निकाला.. नितिन उस'से दूसरी तरफ मुँह किए खड़ा था.. उसके कंधे पर तौलिया टंगा हुआ था और एक हाथ में श्रुति की ब्रा और पॅंटी और दूसरे हाथ में कोई हल्की नीली ड्रेस थी..

"बाहर आकर टवल ले लो.." नितिन का स्वर हल्का सा नरम पड़ा...

बाहर निकलने से पहले श्रुति ने आखरी बार अपने कुंवारे बदन को मायूसी से देखा.. उसका अंग अंग इतना प्यारा था कि नितिन की कुत्सित नज़रों से ही मैला हो जाना था.. श्रुति अंदर से टूट चुकी थी.. अपनी जांघों को चिपकाए हुए, जो कुच्छ छुपा सकती थी.. उसको च्छुपाकर; नज़रें झुकाए हुए उसके कदम अपने आप ही बाहर नितिन की और बढ़ गये.. अब वो नितिन के इतना करीब आ चुकी थी कि नितिन उसकी सिसकियाँ महसूस कर सकता था... श्रुति ने अचानक तौलिए पर झपट्टा सा मारा और जितना बदन ढक सकती थी.. ढक लिया...

"अभी वो समय नही आया है.. चिंता मत करो.. आराम से अपना बदन पौंछ लो.." नितिन क़ी ये कुच्छ देर की दरियादिली श्रुति की समझ से बाहर थी.. मन ही मन डरी सहमी शरुति धीरे धीरे तौलिए से अपना बदन पौंच्छने लगी.. इस डर के साथ की ना जाने कब नितिन पलट जाए...

"पौंच्छ लिया...?" नितिन ने पूचछा...

"ज्जई.." मानो श्रुति को 'जी' के अलावा कुच्छ कहना आता ही ना था.. नितिन के बोलते ही उसने झट से तौलिए को अपनी सेब के आकर की छातियो पर लगाकर लटका लिया.. ताकि जितनी हो सकें.. जंघें भी ढक जायें...

"गुड..! ये लो.. पहन लो.." कहते हुए नितिन ने अपना हाथ पीछे करके नीली ड्रेस श्रुति की और बढ़ा दी...

ड्रेस लेते हुए श्रुति का हाथ नितिन के हाथ से टकरा गया और उसके पुर बदन में झंझनाहट सी दौड़ गयी.. कारण था उसका नन्गपन...

श्रुति ने एक हाथ को तौलिए के साथ ही अपनी चूचियो पर चिपकाए हुए दूसरे हाथ से ड्रेस को नीचे लटका कर देखा... निहायत ही खूबसूरत वन पीस स्कर्ट थी वो.. मखमली सी बारीक रेशे की बनी हुई.. एक दम मुलायम.. इस ड्रेस को श्रुति किसी और मौके पर अपने लिए देखती तो शायद उसके चेहरे पर अलग ही नूर होता.. पर अब वैसा नही था.. उसको लगा जैसे ये सब उसकी इज़्ज़त की बलि लेने से पहले की तैयारियाँ हैं... उसने ड्रेस को सीने से उपर लगाकर देखा.. ड्रेस उसके घुटनो तक आ रही थी...

"जी.. वो.." श्रुति को लगा बिना बोले कुच्छ नही होगा...

"वो क्या.." नितिन दूसरी और मुँह किए इस कल्पना में लीन था कि बेपनाह हुषन की मालकिन उस शानदार ड्रेस में कैसी दिखेगी...

"मेरे कपड़े..!" अंजान मर्द से अपनी ब्रा और पॅंटी माँगते हुए श्रुति का चेहरा भय में भी लज्जा से लाल हो गया...

"हां.. पहन लो.. दे तो दी.." नितिन जानता था कि वो क्या माँग रही है.. पर जानते बूझते भी उसने यही जवाब दिया...

"नही.. वो.. अंदर वाले.." श्रुति की जांघों के बीच अजीब सी हुलचल हुई...

"जो तुम्हारे पास है.. वही पहन लो.." नितिन ने शरारत से कहा..

नितिन का लहज़ा नरम होता जान श्रुति ने थोड़ी सी हिमाकत कर ही दी.. और कहते हुए पूरी तरह पिघल सी गयी," सिर्फ़.. वो... पॅंटी दे दो!"

" मैने बोल दिया ना...."

नितिन ने पूरी बात बोली भी नही थी की कठपुतली की माफिक एक दम से श्रुति ने वो ड्रेस अपने गले में डाल ली..," जी.. पहनती हूँ.."

"गुड! पहन ली.." नितिन ने अब तक भी मुड़कर नही देखा था...

"जी!" श्रुति बुदबुदाई... चेहरा झुकाते हुए उसने अपनी छातियो पर मानसिक उत्तेजना की वजह से उभर कर दिख रहे 'दानो' को देखा.. और वह अंदर तक पानी पानी हो गयी.. बिना ब्रा के वो ड्रेस निहायत ही कामुक लग रही थी.. चूचियो और उसकी पेट से चिपकी हुई सी उस ड्रेस ने उसके बदन को सिर्फ़ ढक रखा था.. पर छुपा हुआ मानो कुच्छ भी नही था....

जैसे ही श्रुति ने नितिन को पिछे मुड़ते देखा.. वो उसकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गयी.. नितिन भौचक्का सा श्रुति को देखता रह गया.. ड्रेस में वो उसकी कल्पना से कहीं अधिक कामुक लग रही थी.. नितंबों से चिपका हुआ कपड़ा उनकी दोनो फांकों का एक दम सही सही आकार बता रहा था... उनके बीच की खाई की सौम्यता भी मानो बेपर्दा सी थी.. जाने क्यूँ नितिन अपने उपर काबू किया हुए था.. श्रुति का शर्मीला स्वाभाव नितिन की उत्तेजना को और बढ़ा रहा था.. काप्ते हुए पैरों की खनक कंपन के रूप में नितंबों तक जाकर उसके गदराए हुषन को यौवन प्रकस्था तक ले गयी थी... जैसे उसकी जवानी थिरक उठी हो...

"इधर आकर बैठो.. " नितिन एक कुर्सी के सामने जाकर बेड पर बैठ गया.. सकुचती हुई श्रुति अपने दोनो हाथों को कंधे से लगाकर अपने यौवन फलों को च्छुपाने का प्रयास करती हुई मूडी और नितिन का इशारा समझ कुर्सी पर जाकर बैठ गयी....

"क्या लगता है तुम्हे? तुम वापस जा पाओगी या नही...?" नितिन ने श्रुति से काम की बात शुरू कर दी...

श्रुति कुच्छ नही बोली.. पहले से झुके हुए अपने चेहरे को थोडा सा और झुकाया और आँसू लुढ़का दिए....

"मेरा ये रोज का काम है.. मुझे तुम्हारे आँसू प्रभावित नही कर सकते.. मैने तुम्हे बताया था कि तुम कैसे वापस जा सकती हो..? अब बताओ, क्या इरादा है?" नितिन ने अपनी आवाज़ में यथासंभव क्रूरता लाने की कोशिश करते हुए कहा..

"जी.. मैं... आपकी हर बात मानूँगी..." श्रुति को डराने के लिए किसी और नाटक की ज़रूरत ही ना थी.. अब तक जो कुच्छ हो चुका था.. वह काफ़ी से भी बहुत ज़्यादा था.. उसको अंदर तक हिलाने के लिए...

"शाबाश.. तो शुरू करें..?" नितिन ने उसी अंदाज में कहा...

"जी.." श्रुति के पास और कोई ऑप्षन था ही नही.. सिवाय उसकी हर बात मान'ने के...

"तुम्हे पता है कि तुम कितनी सुन्दर हो?" नितिन ने इस सवाल से शुरुआत की...

क्या कहती श्रुति? पर कुच्छ तो कहना ही था," जी.." कहते हुए उसके दीन हीन चेहरे पर नारी सुलभ गर्व प्रीलक्षित होने लगा...

"कैसे पता?" नितिन ने इस बार निहायत ही बेतुका सवाल किया...

"जी.. !" श्रुति को कोई जवाब नही आया...

"तुम्हारे अंदर ऐसा क्या है कि तुम्हे लगता है तुम औरों से सुन्दर हो..?" नितिन बात को पता नही कहाँ ले जाना चाहता था..

"जी.. कुच्छ नही.. और भी बहुत सुंदर हैं..." श्रुति को यही कहना मुनासिब लगा..

"नही.. मैने दुनिया देखी है.. बहुतों को अपने बिस्तेर पर लाकर देखा परखा है.. पर सच कहता हूँ.. तुम जैसी मैने आज तक नही देखी.. मैं जानता हूँ.. पर बताना तुमको ही है कि तुम्हारे अंदर दूसरों से अलग क्या है?" नितिन ने कहा..

"जी.. पता नही.." श्रुति ने धीरे से कहा..

"मैं बताउ?.. तुम्हारे एक एक अंग को छ्छूकर..?" नितिन ने धमकी दी..

श्रुति अंदर तक सिहर गयी.. सवालों के जवाब देना उसको अपनी इज़्ज़त देने से भी अटपटा लग रहा था.. और वो भी उस हालत में जबकि इज़्ज़त तो जानी ही जानी थी... वो कुच्छ नही बोली...

"खड़ी होकर यहाँ आओ..!"

श्रुति ने अक्षरश: आग्या का पालन किया... खड़ी होते ही उसके हाथ फिर से उसकी छातियों को ढकते हुए कंधों पर टिक गये... नज़रें झुकाए वह नितिन के पास आकर खड़ी हो गयी...

"ये क्या छुपा रही हो?" नितिन ने उसकी आँखों में आँखें डाल कहा...

"ज्जई.. क्या?" श्रुति उसकी बात को भाँप गयी थी..

"यही.. हाथों के नीचे.. हाथ सीधे क्यूँ नही करती.. मैं चाहता तो तुम्हे बिना कपड़ों के भी यहाँ खड़ा कर सकता था.. है ना?" नितिन ने कहा..

"जी.."श्रुति की आँखें दबदबा गयी.. उसने नितिन के दोबारा बोलने से पहले ही हाथ नीचे लटका दिए...

नितिन ने अपने हाथ आगे करके उसकी 28" कमर पर दोनो और टीका दिए.. श्रुति का पेट काँपने सा लगा... भय और उत्तेजजना की लहर तेज़ी से उसके पूरे बदन को कंपकँपति चली गयी..

ना चाहते हुए भी नितिन के मुँह से निकल गया," क्या चीज़ हो तुम..!"

श्रुति की आँखें पहले ही बंद हो चुकी थी...

"अच्च्छा चलो छ्चोड़ो.. आओ.. मेरी गोद में बैठ जाओ.. !" नितिन को अपने आवेगो पर काबू पाना मुश्किल हो रहा था..

श्रुति ने चौंक कर नितिन की आँखों में देखा.. कितनी आसानी से उसने ये बात कह दी.... पर नितिन की आँखों में आदेशात्मक इशारे से वह टूट गयी.. कुच्छ प्रतिक्रिया देने की उसमें हिम्मत ही ना हुई... उसने तुरंत नज़रें वापस झुकाई और मुँह फेर कर खड़ी हो गयी.. उसको यकीन था कि नितिन उसको अपने आप ही खींच लेगा... सोचकर ही उसके नितंबों में खून का संचार हो गया.. नितंबों की थिरकन उसकी स्कर्ट के बारीक रेशों के उपर से ज्यों की त्यों महसूस की जा सकती थी...

"बैठो!" नितिन ने पयज़ामा पहन रखा था.. उसने अपनी जांघों को हल्का सा खोल दिया...

इस बार देर करने की हिम्मत श्रुति की नही हुई.. वह झुकती चली गयी और हल्की सी टीस अपने मुँह से निकलती हुई उसकी जांघों के बीच बैठ गयी," आआअहह!"

"क्या हुआ?" नितिन ने अंजान सा बनते हुए पूचछा...

अब श्रुति बताती भी तो क्या बताती.. नितिन एक साथ उसको दोनो तरह की चोट दे रहा था.. एक तरफ जान लेने का डर लगातार उसको थर्रए हुए था... और दूसरी तरफ उसकी अचेत जवानी की आग में घी डालता हुआ उसको और भड़का कर उसके जज्बातों को जिंदा करने की कोशिश की जा रही थी.. श्रुति को कपड़े के उपर से ही अपने नितंबों के नीचे कुच्छ 'साँस' सा लेता हुआ महसूस हुआ.. तेज़ी से फैल रही इस आग को पूरे शरीर में फैलाकर उसका असर कम करने की कोशिश में श्रुति ने अपनी कमर नितिन की छाती से चिपका दी....

नितिन ने अपने हाथ आगे करके उसकी जांघों पर रख दिए.. श्रुति की पलकें बंद होनी शुरू हो गयी...

"तुम्हे तो कोई भी पसंद कर सकता है.. है ना?" नितिन ने अपनी उंगलियों को उसकी मांसल जांघों पर नचाते हुए पूचछा...

इस हालत में श्रुति के लिए ऐसे सवालों का जवाब देना अपेक्षाकृत आसान था.. पर 'हां' कहते हुए भी उसके गले से 'हां' की बजाय 'अया' ही निकला..

नितिन का एक हाथ अब श्रुति के कमसिन पेट पर आग लगा रहा था...," रोहन को पटा सकती हो...?"

श्रुति के लिए अब उसकी जांघों के बीच लगातार ठोस होते जा रहे मर्दाना औजार की चुभन असहनीय होती जा रही थी... पर जवाब देना भी ज़रूरी था....," ज्जई.. पर्र..क्यूँ?"

"दौलत के लिए.. वो 80 करोड़ का अकेला मलिक है.. पर एक्दुम भोला है.. और तुम्हारे लिए पागल भी... सिर्फ़ तुम्हे उसको ये यकीन दिलाना है कि तुम ही उसकी नीरू हो...."

श्रुति को उसकी आधी बात ही समझ में आई.. उसकी जांघों के बीच बढ़ रही हुलचल के कारण उसकी उत्तेजना लगातार अनियंत्रित होती जा रही थी,"पर.... मैं तो उनको जानती भी नही..." श्रुति ने अपनी जांघें थोड़ी सी और खोल दी..

नितिन का हाथ अब थोडा और उपर होकर श्रुति की गोल और मुलायम छातियो के निचले भाग से जा टकराया था..,"उसकी चिंता मत करो... मैं तुम्हे सब समझा दूँगा.. उस'से मिलवा भी दूँगा.. तुम्हे कुच्छ नही करना.. बस मेरे हाथों का 'मोहरा' बन'ना है.. उस'से शादी करके तलाक़ लेना है बस.. 10 करोड़ तुम्हारे.. और 30 मेरे.. बोलो..."

श्रुति को तो अब तक सुन'ना भी बंद हो गया था.. उसके कानो में अजीब सी सीटियाँ बजने लगी थी... मारे कामुकता के उसने अपनी छातियो पर जा चढ़े नितिन के हाथों को वहीं दबोच लिया.. और छातियों में आ चुकी सख्ती को दबा दबा कर मुलायम करने की चेष्टा करने लगी.. उसकी साँसे अब जोरों से चलने लगी थी... नितंब नितिन की जांघों के बीच आगे पीछे होकर उस अंजानी खुजली को मिटाने का प्रयास करने लगे थे...


Post Reply