सीता --एक गाँव की लड़की--7
श्याम कुछ देर लेटे लेटे ही चूमते रहे। मैं एक नागिन की तरह मचल रही थी। अगले ही पल श्याम के हाथ मेरी साड़ी खोलने लगे और चंद घड़ी में ही साड़ी अलग पड़ी हुई थी।ब्लॉउज कब निकली ये तो मुझे भी नहीं मालूम।सिर्फ पेन्टी में पड़ी मस्ती के सागर में लगातार गोते लगा रही थी।
श्याम के होंठ मेरी नाभी को कुरेदने लगे थे।श्याम के बाल पकड़ मैं अपने सिर को बाएँ दाएँ करते हुए तड़प रही थी।कुछ देर मेरी नाभी से खेलने के पश्चात श्याम नीचे की तरफ बढ़ने लगे। उनकी गर्म साँसें अब मेरी भीँगी हुई चूत से टकरा रही थी।श्याम के मुँह से मदहोश सी आह निकल पड़ी। वे अपनी उँगली पेन्टी में फँसाते हुए नीचे करते हुए मुझे जन्मजात नंगी करने लगे। अगले ही पल श्याम अपनी दो उँगली मेरी चूत की छोटी सी फाँक पर नीचे की तरफ हौले से चलाने लगे। मैं गुदगुदी और उत्तेजना से मचल उठी। मैं सहन नहीं कर पा रही थी, तेजी से उनके हाथ पकड़ के उन्हें रोक दी।
हाथ रुकते ही वे अगले हमले करते हुए अपने होंठ मेरी चूत में चिपका दिए। मेरी चीख छूटने लगी।पर वे रुकने के मूड में नहीं थे। जीभ से मेरी चूत को कुरेदने लगे थे। मैं अब उनके हमले सहन नहीं कर पा रही थी। उनके बाल पकड़ती हुई बोली," प्लीज श्याम, अब और नहीं वर्ना मैं मर जाऊंगी।" और मैं लगभग रोने सी लगी थी।
श्याम भी मेरी हालत शायद समझ गए। उन्होंने मेरे दोनों पैर उठा बेड पर रखते हुए मेरी गर्दन पकड़ते हुए किनारे में सीधी लिटा दिए। अपना अंडरवियर अलग करते हुए मेरे पास आते हुए बोले,"जान प्लीज आज मेरा भी चुस दो ना" कहते हुए अपना लण्ड मेरे नाक के निकट ला दिए।
"नहीं,क्रीम लगा लीजिए ना प्लीज।"
"प्लीज, चुस नहीं पाएगी तो कम से कम अपने मुँह में एक बार भर लो सिर्फ। थोड़ी भी गीली हो जाए तो क्रीम लगाने की जरूरत नहीं होगी।"
मैं उनके तरफ देखी तो काफी तड़पे हुए लग रहे थे। फिर मेरी नजर उनके लण्ड पर पड़ीं जो कि प्रीकम से चमक रही थी, मैंने अगले ही पल अपने होंठ खोलते हुए लण्ड को मुँह में भर ली।उनके मुँह से एक तड़प से भरी आहहहह निकल गई। मुझे कुछ ही क्षण में उबकाई सी आने लगी पर किसी तरह उनके आधे लण्ड को मुँह में भर चूसती रही। चंद घड़ी चुसने के पश्चात लण्ड निकालते हुए बोली,"प्लीज, अब और नहीं।"
श्याम ओके कहते हुए मुझे एक बार फिर जांघो के नीचे हाथ रखते हुए पहले वाली पोजीशन में कर दिए।
फिर अपना लण्ड मेरी चूत से सटाते हुए रगड़ने लगे। मैं अब पूरी तरह से मचल गई। मैं अपने पैर उनके कमर में कसते हुए उनका लण्ड चूत के अंदर करने की कोशिश करने लगी।
मेरे इस प्रयास से उनका सुपाड़ा मेरी चूत में फँस गई। अगले ही क्षण वे मेरी दोनों चुची को अपने हाथों में भरते हुए जोरदार धक्का दे दिए। मैं आहह.ह.ह.ह.ह.ह.ह.ह करती हुई जोर से चिल्ला पड़ी। उनका पूरी लण्ड मेरी चूत में जा समाई थी। अगर वे मेरी चुची को नहीं पकड़ते तो शायद मैं पीछे दीवार से जा टकराती।
कई बार चुदी होने के बावजूद मेरी चूत में अभी भी दर्द हो रही थी। ऊपर से मेरी चुची को कस के पकड़ने से मेरी दर्द दुगुनी हो रही थी। पर आज मैं दर्द को पूरी तरह से लेना चाहती थी ताकि आगे इतनी दर्द ना हो।
तभी उन्होंने अपना लण्ड पूरी तरह से बाहर निकालते हुए पुनः धक्का दे दिए। मेरी कराह निकल पड़ी। अब वे मेरी तरफ झुकते हुए मेरी होंठों को चूमते हुए बोले,"थैंक्स सीता, इसी तरह दर्द सहना सीख लो और पूरी मजे लो"
मैं मन ही मन सोचने लगी कि आप ठीक कह रहे हैं क्योंकि मुझे तो अंकल के विशाल लण्ड से चुदना जो है।
अगले ही पल वो सीधी होते हुए अपना लण्ड धीमे से अंदर बाहर करने लगे। मेरी दर्द से आहेँ अभी भी निकल रही थी। कुछ ही देर में मेरी आहेँ सिसकारियाँ में बदल गई। इतना सुनते ही वे अब तेजी से मुझे पेलने लगे। मेरी आहेँ अब हर धक्के के साथ तेज होने लगी थी। उनके हर धक्के के साथ मेरे पाँव में पायल सुर से सुर मिला रही थी।उनका लण्ड हर बार जड़ तक मेरी चूत में अंदर होती और बाहर निकलती। अब मैं मजे के सागर में डुबकी लगा रही थी। दर्द काफी कम हो रही थी चूत में। चुची की दर्द चूत के मजे में मालूम ही नहीं पड़ रही थी। कमरे में तेजी से चल रही पंखे हम दोनों की गर्मी को नहीं हटा पा रही थी। वो तो हम दोनों की मधुर व सेक्सी आवाजें को कम करने का काम कर रही थी बस।
कोई 10 मिनट तक लगातार धक्के पे धक्के लगाते रहे और मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ाते रहे। इस दौरान मैं दो बार पानी छोड़ चुकी थी जिसका मुझे आभास तक नहीं हुआ। तभी उनके मुँह से तेज आवाज निकलने के साथ धक्के भी तेज होने लगे। शायद अब वे भी अपने मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे।उनके साथ साथ मैं भी तीसरी बार पानी छोड़ने के कगार पर थी।
तभी उनकी एक तेज चीख निकली और मेरे शरीर पर गिर पड़े।
नीचे उनका लण्ड लगातार झटके लेते हुए मेरी चूत को अपने पानी से सरोबार किए जा रहा था।मेरी चूत भी ठीक उसी पल पानी छोड़ दी। बेड पर तो बाढ़ सी आ गई थी।मैं तो कुछ होश में थी पर श्याम को तो कुछ भी होश नहीं था। मैं उनके माथे पर प्यार से किस करती हुई उनके बालों को सहलाने लगी। उनका लण्ड अभी भी मेरी चूत में ही पड़ी थी।
कुछ देर बाद जब वे होश में आए तो उठ के बाथरुम की तरफ जाने लगे। मैं भी नंगी ही उनके पीछे फ्रेश होने चल दी। अच्छी तरह फ्रेश हो के वापस रूम में आई और बचे जेवर खोलने लगी तो वो तुरंत टोकते हुए बोले,"एक मिनट जान...."
फिर वो कैमरा उठाते हुए बोले,"कुछ ऐसी फोटो भी रहनी चाहिए।"
मेरी तो हँसी निकल पड़ी, पर मना नहीं कर पाई। वे मुझे नंगी सिर्फ जेवर से लदी एक से बढ़ एक फोटो उतारने लगे। मैं अपनी हँसी रोक नहीं पा रहे थी इनकी शरारत देख। मेरी चुची,चूत,जांघोँ,चूतड़, बगलेँ आदि की अलग अलग फोटो लिए। फिर मैं गहने हटा दूसरी साड़ी पहन के उनके गले से लगती हुई चिपक के सो गई।
सुबह जब मेरी नींद खुली तो पूरा बदन टूट रहा था। बगल में श्याम भी पूरी नींद में सो रहे थे।उनका एक हाथ अभी भी मेरी चुची पर थी। धीरे से हाथ हटाते हुए मैं बेड से उतरी और फ्रेश होने बाथरुम की तरफ बढ़ गई। फ्रेश होने के बाद मैं किचन में गई। तब तक मम्मी पापा भी जग गए थे।जल्दी से चाय बनाई और मम्मी पापा को देने के बाद श्याम को देने के बढ़ गई।अभी भी वे बेसुध हो कर सो रहे थे।मैं मुस्कुराती हुई उनके होंठों पर Morning Kiss जड़ दी। वे तुरंत ही नींद से जग गए। फिर मैंने उनकी तरफ चाय बढ़ा दी।वे चाय लेते हुए बोले,"थैंक्स डॉर्लिँग, काश पहले भी इतनी अच्छी Morning Kiss देने वाली कोई होती!"
"झूठ क्यों बोलते हैं? आज कल तो अधिकांश लड़कों की प्रेमिका रहती है। आप थोड़े ही सन्यासी हैं।"मैं भी मजाक करते हुए जवाब दी।
"अगर प्रेमिका रहती तो मुझे इतना प्यार करने वाली बीबी थोड़े ही मिलती। वैसे मैं भी चाहता था कि कोई Girlfriend हो पर समय की कमी और पापा के डर की वजह से कभी हिम्मत नहीं हुई।"
मैं हँसती हुई जाने के मुड़ते हुए बोल पड़ी,"अच्छा ठीक है, आप अपनी प्रेम कहानी बाद में सुनाईएगा। जल्दी से फ्रेश हो जाइए, मैं नाश्ता बनाने जा रही हूँ।"
"जैसी आज्ञा आपकी"कहते हुए वे भी बेड से नीचे उतर गए। मैं उनकी बातें सुन हँसती हुई किचन की तरफ चल दी। तब तक पूजा भी नीचे आ गई थी और चाय पी रही थी। हम दोनों की नजर मिलते ही एक साथ हम दोनों मुस्कुरा दिए। फिर मैं किचन के काम में लग गई। पूजा और मम्मी भी हमारी सहायता करने आ गए। मम्मी के सामने पूजा से किसी तरह की बात संभव नहीं थी।
फ्रेश होने के बाद श्याम नाश्ता कर बाहर चले गए। सारे काम निपटा मैं भी नाश्ता की और आराम करने चली गई। पूजा भी नाश्ता करने के बाद अपने रूम में चली गई थी।
दिन के करीब 12 बजे श्याम आए।आते ही पूछे,"मोबाइल दो तो अपना।"
मैं फोन उनके तरफ बढ़ा दी। कुछ देर छेड़छाड़ करने के वापस देते हुए बोले," कल रात वाली सारी फोटो गजब की आई है। देख लेना फोन में डाल दिया हूँ।"
मैं हँसते हुए फोन ले ली। उन्हें खाने के लिए पूछी तो वे मना करते हुए बाहर निकल गए। शायद मुझे ये तस्वीर देने के लिए ही आए थे।
उनके जाते ही मैं तकिया के सहारे औँधे मुँह लेट गई और फोटो देखने लगी।
वाकई मेरी सभी तस्वीरें काफी सुंदर लग रही थी। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मुझ पर अंकल के गहने और कपड़े इतने अच्छे लगेंगे। मैं हर एक तस्वीर देख आराम आराम से देख रही थी।
तभी मेरी नंगी चुची की तस्वीरें आ गई।मैं देख के शर्मा गई, पर फिर गौर से देखने लगी। सच में काफी सेक्सी थी मेरी चुची। चुची के ठीक ऊपर लटकी नेकलेस और मंगलसूत्र, और भी सुंदरता में चार चाँद लगा रही थी।
अगली फोटो देखते ही मैं पानी पानी हो गई। मैं बेड पर लेटी एक हाथ से चुची दबा रही थी और दूसरी हाथ चूत पर रखी थी। फिर अगली फोटो में अपनी चुची को खुद ही चुसने की कोशिश कर रही थी।
इसी तरह ढेर सारी तस्वीरें आती गई और मैं कब अपनी पानी छोड़ती चूत सहलाने लगी,मालूम नहीं।
अब मुझे साड़ी के ऊपर से सहलाने में दिक्कत हो रही थी तो बिना किसी डर के साड़ी कमर तक कर ली और पेन्टी में हाथ डाल चूत में 2 उँगली घुसेड़ दी।
मैं तस्वीरें देखने में पूरी तरह से मग्न चूत को शांत करने की प्रयास कर रही थी।
मैं शायद पहली लड़की होऊँगी जो खुद की नंगी तस्वीरें देख अपनी चूत से पानी छोड़ दी। पर क्या करती तस्वीर थी ही इतनी गर्म।
अचानक ही मेरे हाथ पर किसी ने पकड़ लिए। मैं मोबाइल फेंकते हुए पलटी तो ये पूजा थी। मैं गेट के उल्टी तरफ सोई थी जिस वजह से पूजा को आते नहीं देख पाई।मैं जल्दी से साड़ी ठीक करने के लिए उठना चाहती थी कि पूजा दूसरे हाथ से धक्का दे कर लिटा दी और अगली वार करती हुई मेरी एक पैर को बेड से बाहर की तरफ खींच दी। फिर तेजी से मेरे दोनों पैरों के बीच आती हुई अपने होंठ मेरी गीली चूत पर भिड़ा दी। मैं पहले ही फोटो देख गर्म थी ही, अब पूजा आग में घी डालने का काम कर रही थी। मैं पूजा को हटाने का भरपूर प्यार की पर वो तो चुंबक की तरह चिपकी थी। मैं ज्यादा देर तक विरोध नहीं कर पाई और खुद को पूजा के हवाले कर दी।
दोनों भाई बहन की क्या पसंद मिलती थी, रात में श्याम इसी अवस्था में चोद रहे थे और दिन में पूजा मेरी चूत चुस रही है।
अचानक मैं चीखते-2 बची। पूजा मेरी दाने को अपने दाँतों से पकड़ खींच रही थी। मैं अपनी चीख को दबाए पूजा के बाल नोँच कर हटाने का प्रयास कर रही थी,पर मेरे हाथों में इतनी ताकत नहीं थी कि सफल हो पाती।
मैं ज्यादा देर तक पूजा के इस वार को नहीं सह पाई और एक हल्की चीख के साथ झड़ने लगी। पूजा पुच्च-2 करती हुई सारा पानी गटकने लगी। मैं उल्टे हाथों से बेडसीट पकड़े लगातार पानी बहाए जा रही थी।नीचे पूजा आनंदमय मेरी चूत सोखने में लगी हुई थी।
कुछ पल के बाद पूजा उठी और मुझे बेड पर बैठा दी। फिर मेरी आँखों में देखते हुए मुस्कुराते हुए पूछी," क्यों री कुतिया, अकेले ही चुदाई देख मजे लेती रहती है। कम से कम मुझे भी बुला तो लेती।"
पूजा द्वारा दी गई गाली सहित प्रश्न से मेरी हँसी निकल पड़ी। पूजा हमें गाली भी देती है तो पता नहीं मुझे तनिक भी बुरी नहीं लगती। मैं हँसती हुई बोली,"नहीं फिल्म नहीं थी। कुछ और थी।"
"कुछ और.....? दिखा तो फोन क्या है कुछ।"पूजा आश्चर्य से पूछते हुए बोली।
मैं मना करती हुई बोली,"नहीं तुम किसी को बता देगी।"
"पागल, इतना कुछ होने के बाद भी डरती हैं कि बता दूंगी।चल दे जल्दी फोन।"पूजा मेरी फोन की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोली।
मैं भी मुस्कुरा के फोन लेने दी पूजा को। फिर हम दोनों साथ बैठ गए और पूजा तस्वीरें निकालने लगी।
मेरी नंगी तस्वीरें देखते ही पूजा तो बेहोश होते होते बची। उसकी नजरें तो हमसे पूछे जा रही थी कि भैया भी इतने हॉट हैं क्या, पर बोल कुछ नहीं रही थी।
"रात में सेक्स के बाद बोले मुझे ऐसा करने और फोटो खिँचवाने तो खिँचवाई। अब मुझे देखना बंद करो और ये बताओ कैसी लगी तस्वीरें?" पूजा को चुप देख मैं अपनी सफाई देते हुए बोली।
"Wowwww! भाभी, मैं नहीं जानती थी कि आप नंगी किसी मॉडल से कम नहीं लगोगी। ऐसी रूप में देख के तो बड़े से बड़े हिरोईन भी पानी नहीं माँगेगी।"पूजा चहकते हुए तारीफ करने लगी।
मैं उसकी बात सुन झेँप सी गई।फिर वो एक एक तस्वीरें देखने लगी। देखने के क्रम में उसके हाथ अपनी सलवार में धँस सी गई। वो भी शायद गर्म होने लगी थी। अनायास ही पूजा बोली," भाभी, एक बात बोलूँ।"
मैं "हम्म" करती हुई उसकी तरफ देखने लगी।
"मेरी प्यारी भाभी, ऐसी फोटो देख तो तुम कहीं से भी मेरी शरीफ भाभी नहीं लगती। बिल्कुल जिला टॉप रण्डी लग रही हो।"कहते हुए पूजा अपने चूत को मसलते हुए हँस दी।
मैंने पीछे से एक चपत लगाते हुए बोली,"कुतिया तेरे से कम ही रण्डी लगती हूँ।"
"पता है पर इस रेस में बहुत जल्द ही तुम हमसे भी आगे निकल जाएगी।"पूजा थोड़ी सी चिढते हुए बोली। पूजा की उँगली अब चूत से हट गई थी, पर झड़ी नहीं थी।
पूजा की बात सुन मेरी दिल के किसी कोने में ये बात समा गई।शायद कुछ हद तक सही कह रही थी क्योंकि 3 दिन की चुदाई में ही मैं Once More.... कहने लगी थी।
तब तक पूजा सारा तस्वीरें देख चुकी थी। फिर उसने सारी तस्वीरें अपने फोन में भेजने लगी। मैं कुछ कहना चाहती थी पर रुक गई क्योंकि वो बिना लिए तो मानती नहीं।
सिर्फ इतना ही कह सकी,"पूजा, किसी को वो वाली फोटो दिखाना मत प्लीज।"
पूजा हाँ में सिर हिलाती हुई फोटो भेजती रही। जैसी ही सारी फोटो सेन्ट हुई कि पूजा की फोन बज उठी।
पूजा नम्बर देखते ही मुस्कुरा दी, फिर जल्दी से इयरफोन अपने कान में लगाने लगी। अचानक ही इयरफोन की एक स्पीकर मेरे कान में लगा दी और बोली,"अंकल है, कुछ बोलना मत सिर्फ सुनना।"
मैं दबी हुई आवाज में हँसती हुई हाँ में सिर हिला दी। अंकल का नाम सुनते ही मेरी शरीर भी रोमांचित हो गई थी। तभी अंकल की आवाज आई।
"हैल्लो...."
"हाँ अंकल, कहाँ हैं आप? मैं आपको घर गई थी देखने आज सुबह।"
"अरे पूजा वो अचानक ही मुझे पटना निकलना पड़ा। चुनाव की वजह से दौड़-धूप तो लगी ही रहती है।"अंकल अपनी सफाई देते हुए बोले।
"अच्छा आना कब है?"तब पूजा एक समझदार बच्ची की तरह पूछी।
"फुर्सत मिलते ही आ जाऊँगा। अच्छा अभी तुम क्या कर रही हो।"
पूजा बुरी सी सूरत बनाते हुए बोली,"आपके बिना ज्यादा कुछ क्या करूँगी। बस अपनी चूत में उँगली कर गर्मी निकाल रही थी।"
मेरी तो हँसी निकलते-2 बची।
"हा.हा.हा.हा. रात में 2 बार तो पेला था फिर प्यास नहीं गई।"अंकल की हँसती हुई आवाज आई। मुझे तो शर्म के साथ मजे भी आ रही थी जिस वजह चुपचाप सुनी जा रही थी।
पूजा बात को बढ़ाते हुए बोली,"अंकल, रात में आप चोद तो मुझे रहे थे पर मैं दावे से कहती हूँ कि आपके मन में कोई और थी। कौन थी वो.....?"
पूजा की बात सुन तो मैं भी अचरज में पड़ गई। कितनी शातिर दिमाग रखती है।
"हा.हा.हा. अब तुमसे क्या छुपाना पूजा। कल रात मैं सीता को याद कर तुम्हें चोद रहा था।" अंकल सीधे अपने हथियार रखते हुए बोले। मैं तो एक बार अपना नाम सुन शर्मा गई, पर उससे ज्यादा हमें पूजा की तेज दिमाग देख दंग रह गई।
पूजा मुझे आँख मारते हुए बोली,"Wowww! अंकल, एक तीर दो निशाने। तभी तो मैं सोच रही थी कि इतनी धमाके से मेरी चुदाई क्यों हो रही है।
पूजा की बात सुन अंकल सिर्फ हँस दिए,साथ मैं भी मुस्कुरा दी। तभी पूजा बोली,"वैसे आपको पता है मैं अभी कहाँ से आई हूँ।"
मैं भी सोच में पड़ गई कि पूजा आखिर कहाँ गई थी।उधर अंकल भी उत्सुकता से भरी आवाज में बोले,"कहाँ गई थी?"
पूजा तभी मेरी साड़ी के ऊपर से चूत दबाते हुए बोले," आज एक मस्त चूत का रसपान करके आई हूँ।"
पूजा के इतना कहते ही मेरी तो घिघ्घी बँध गई। तुरंत ही कान पकड़ते हुए मेरा नाम नहीं बोलने के लिए पूजा से आग्रह करने लगी।
तभी अंकल की सिसकारि भरी आवाज सुनाई दी,"आहहहहह पूजा! कौन थी वो जल्दी बता ना। मेरा लण्ड तो पूरा उफान पर आ गया है।"
पर पैदाइशी हरामिन पूजा मेरी एक ना सुनी और बोली," मैं अपनी जान सीता भाभी की चूत का भोग लगा के आई हूँ। आपको यकीन नहीं होगा अंकल कि कितनी स्वादिष्ट थी चूत। आहहहहह.... मजा आ गया आज।" अपना नाम सुनते ही मैं पूजा के गले दबाने लगी। पर फुर्ति से पूजा हाथ हटा मेरे बाल पीछे से पकड़ी और सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत की तरफ गिरा दी और केहुनी मेरी पीठ पर गड़ा दी। मैं छटपटा के उसकी चूत पर मुँह रख पड़ी रही और गीली चूत की महक लेते हुए अंकल की बातों से मजे लेने की कोशिश करने लगी।
"ओफ्फ सीता। छिनाल,कुतिया खुद मजे लेती है। हमें भी तो एक बार सीता की चूत दिला दे। आह. बर्दाश्त नहीं होती अब।"
मैं नीचे पड़ी चूत की गंध पा मदहोश होने लगी थी। अगले ही पल मैं सलवार के नाड़े खोलने की कोशिश करने लगी। पूजा मेरी स्थिति को समझते हुए तेजी से बोली," अंकल, आप के लिए ही तो जुगाड़ कर रही हूँ। अच्छा ठीक है, मैं अभी फोन रखती हूँ। बाद में बात करूँगी।" इतना कह पूजा फोन काट दी और सलवार पूरी खोल दी और चूत मेरे मुँह से चिपका दी। मैं भी उसकी चूत पर टूटते हुए जोरदार चुसाई शुरू कर दी। कुछ ही देर में पूजा एक अंगड़ाई लेती चीखते हुए झड़ गई। ढेर सारी पानी पूरे चेहरे पर आ गई थी। पूजा लगभग बेहोश हो आँखें बंद कर चुकी थी।
जिंदगी में आज पहली बार चूत चूसी थी।
इसी तरह पूजा के साथ दिन भर हँसी मजाक और फिर रात में श्याम से चुदाई चलती रही। जैसा कि गाँवों में ये एक रिवाज है कि नई दुल्हन 3 या 9 दिन के बाद वापस अपने मायके चली जाती है। मैं भी जिंदगी के हसीन पल अपनी यादों में समेट वापस अपने मायके चली आई थी। जिंदगी में इतनी हसीन यादें फिर कभी नहीं आती है, ये एक कटु सत्य है। समय मिलते ही श्याम और पूजा से अच्छी बुरी बातें फोन पर शुरू कर देती थी। अंकल तो अभी तक व्यस्त ही थे। उनसे मिले बिना ही मैं आ गई थी, इसका मुझे काफी मलाल था।
आते वक्त पूजा बोली थी कि जब तक आप अंकल को एक बार फोन नहीं करोगी, तब तक अंकल आपको फोन नहीं करेंगे। मैं अंकल से भी बात करना चाहती थी पर शर्म की वजह से हिम्मत नहीं कर पा रही थी फोन करने की।
उधर श्याम की छुट्टी भी समाप्त हो चुकी थी तो वे वापस ड्यूटी पर चले गए थे। कुछ दिन पूजा का भी रिजल्ट आ गया और वो भी अच्छे नम्बरोँ से पास हो गई थी। पूजा सबसे पहले हमें ही ये खुशखबरी सुनाई। और साथ में ये भी बताई कि भाभी,दो दिन बाद मैं भैया के जाऊंगी और वहीं रह आगे की पढ़ाई करूँगी। मैं ये सुन पूजा से कहीं ज्यादा खुश हुई। खुश क्यों नहीं होती आखिर कुछ दिन बाद तो मैं भी वहीं जाऊंगी।
दो दिन बाद पूजा श्याम के पास चली गई थी। पूजा वहाँ जाते ही फोन से ही वहाँ के बारे में बताती रही।
इधर मैं अपने मायके में जब से आई हूँ, भाभी तो रोज ही सताती रहती है।
हमेशा कहती रहती है कि जब से ससुराल से आई है, हमेशा वहीं का गुणगान करती रहती है। आखिर क्यों नहीं करती, ढेर सारी चुदाई जो मिल रही थी।
ससुराल से आने के बाद तो मेरी हवस इतनी बढ़ गई कि मैं सभी को सेक्स भरी नजरों से देखने लगी थी। यहाँ तक कि मैं खुद के सगे भैया से भी चुदने की इच्छा रखने लगी थी।
एक दिन मैं घर में बोर हो रही थी। तभी मेरी नजर भैया पर पड़ी जो कि देहाती रूप में लुँगी और गंजी पहने, हाथ में बड़ी सी खाली थैली रखे बाहर जाने वाले थे। मेरे मन में अचानक शरारत सुझी और भैया को पीछे से आवाज दी,"भैया,कहीं जा रहे हो क्या?"
भैया मेरी तरफ पलटे और बोले,"हाँ सीता, वो आम अब पकने लग गए हैं, वहीं बगीचे जा रहा हूँ। कुछ खाने लायक हुआ तो लेते आऊँगा।"
"भैया,काफी दिन से बगीचे नहीं गई हूँ।हमें भी ले चलो ना।" मैं आग्रह करती हुई बोली। तब तक भाभी भी बाहर आ गई थी। आते ही बोली,"हाँ हाँ ले जाइए ना। घर में बैठी बोर हो रही है, बाहर घूम लेगी तो मन बहल जाएगा। ससुराल जाएगी तो पता नहीं कब मौका मिलेगा।"
भाभी के कहते ही भैया हँस पड़े और जल्दी तैयार हो चलने के लिए बोल बाहर इंतजार करने लगे। मैं झटपट अंदर गई और जल्दी से नाइटी खोली। फिर सफेद रंग की चोली-घाँघरा पहनी और चुन्नी डालते हुए निकल गई। भैया की नजर मुझ पर पड़ते ही उनका मुँह खुला सा रह गया। उनकी नजर मेरी चोली में कसी हुई चुची पर अटक सी गई। अगले ही पल जब उनकी नजर ऊपर उठी तो वे शर्म से झेँप से गए। मेरी शैतान नजर उनकी चोरी जो पकड़ ली थी। मैं हल्की ही मुस्कान देते हुए उनके पास जाते हुए बोली,"अब चलो भैया।"
भैया बिना कुछ कहे बाईक स्टॉर्ट किए और मेरे बैठने का इंतजार करने लगे। मैं भी बैठी और चलने के हाँ कह दी।
बगीचा घर से करीब 3 किमी दूर थी। इनमें 1 किमी तो गाँव थी और बाकी के सुनसान सड़क,जिसके दोनों तरफ बड़ी बड़ी वृक्ष थी। सड़क उतनी अच्छी नहीं थी पर वृक्षों के रहने से कम से कम धूप से राहत तो मिलती है। गाँव भर तो मैं ठीक से बैठी रही पर जैसे ही गाँव खत्म हुई, मैं भैया की तरफ सरक गई।
अचानक ही बाईक गड्ढे में पड़ी और पूरी तरह से भैया के शरीर पर लद गई। मैं संभलती हुई सीधी हुई तो भैया बोले,"सीता,अब सड़क अच्छी नहीं है सो तुम मुझे पकड़ के बैठो वर्ना अगर गिर गई तो तुम्हें चोट तो लगेगी ही, साथ में हमें भी खाना नहीं मिलेगा।"
भैया के बोलते ही मैं जोर से हँस पड़ी और ओके कहते हुए उनके कमर पकड़ती हुई चिपक के बैठ गई। मेरी एक चुची अब भैया के पीठ में धँस रही थी। जैसे ही बाईक किसी गड्ढे में पड़ती तो मेरी चुची पूरी तरह रगड़ जाती। भैया को भी अब मेरी इस शैतानी खेल में मजा आने लगा था। वो तो अब जान बूझकर गड्ढे होकर चल रहे थे। मैं ये देख हल्के से मुस्कुराते हुए और कस कर अपनी चुची रगड़वाने लगी।
तभी सामने से एक लड़का साइकिल से आता हुआ दिखाई दिया। मुझे तो पहले थोड़ी शर्म हुई पर अगले ही क्षण बेशर्म बनते हुए ऐसे ही चिपके रही। पास आते ही वो लड़का लगभग चिल्लाते हुए बोला,"ओढनी गाड़ी में फँसेगा!"
भैया तेजी से ब्रेक लगाते हुए रुके। बाईक से मैं भी उतरी तो सच में मेरी चुन्नी बिल्कुल चक्के के पास लहरा रही थी। अगर कुछ और देर हो जाती तो पता नहीं क्या होता। तब तक वो लड़का भी जा चुका था। मेरी नजर भैया पर पड़ी तो देखी वो मुस्कुरा रहे थे। मैं भी हल्की ही हँसी हँस दी। अगले ही पल वे मेरी चुन्नी एक झटके से सीने से हटाते हुए बोले,"जान बचे तो लाख उपाय। अब देखने वाला कौन है जो तुम्हें शर्म आएगी। चलो ऐसे ही चलते हैं। वापस गाँव आने से पहले फिर ओढ लेना।"
फिर भैया चुन्नी को डिक्की में बंद कर दिए। मैं भैया की मस्ती वाली सलाह सुन शर्माती हुई मुस्कुरा दी। अगले ही क्षण बाईक स्टॉर्ट हो चुकी थी। मैं भी बेहया बनते हुए भैया के शरीर पर लगभग चढती हुई चिपक के बैठ गई।
और अब मैं अपने दोनों हाथ से भैया की कमर कसते हुए जकड़ ली। अब तो मेरी दोनों चुची उनकी पीठ में धँस गई थी और मैं अपना चेहरा उनके कंधे पर टिका दी थी।
अचानक बाईक एक गहरी गड्ढे में गई और मेरी चीख निकल गई। चीख चुची के दर्द की वजह से आई थी क्योंकि मेरी चुची काफी जोर से रगड़ा गई थी। साथ में भैया के मुँह से भी आह निकल गई। ये आह मेरे हाथ उनके लण्ड पर घिसने की वजह से आई थी। हम दोनों हल्की हँसी हँसते हुए बिना कुछ बोले बगीचे की तरफ बढ़ने लगे।
सीता --गाँव की लड़की शहर में compleet
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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में
सीता --एक गाँव की लड़की--8
कुछ ही देर में अपने भैया के साथ बगीचे पहुँच गई थी। मैं उतरी और अपनी गांड़ पूरब पश्चिम करती आगे बढ़ गई। सिर्फ चोली में मेरी चुची मानो दो बड़े-2 पर्वत जैसी लग रही थी।पीछे भैया भी जल्दी से बाईक खड़ी की और लगभग दौड़ते हुए पीछे-2 चलने लगे। भैया की हालत देख मेरी तो हँसी निकल रही थी पर किसी तरह खुद को रोक रखी थी। एक पेड़ के पास रुकते हुए मैं तेजी से पलटी।
ओह गॉड! भैया अपनी जीभ होंठ पर फेरते हुए लुँगी के ऊपर से लण्ड सहलाते हुए आ रहे थे। मुझ पर नजर पड़ते ही भैया हड़बड़ा कर हाथ हटा लिए। मैं भी बिना शर्म किए हल्की ही मुस्कान देते हुए बोली," भैया, अब जल्दी से आम खिलाओ।"
भैया हाँ कहते हुए एक पेड़ की तरफ बढ़े और चढ़ गए। कुछ ही दूर चढ़े थे कि तभी उनकी लुँगी हवा में लहराती हुई नीचे आ गई।ऊपर देखी तो भैया सिर्फ अंडरवियर में नीचे की तरफ देख रहे थे और उनका लण्ड तो मानो कह रहा कि ये अंडरवियर भी निकालो;मुझे घुटन हो रही है। फिर मैं जोर से हँसते हुए लुँगी उठा के पेड़ पर रखते हुए पूछी,"क्या हुआ भैया?"
"ओफ्फ। मेरी लुँगी खुल के गिर गई।"
"कोई बात नहीं भैया। वैसे यहाँ कोई नहीं आने वाला जिससे आपको शर्म आएगी। अब जल्दी से पके आम नीचे करो।" मैं मुस्काती हुई बोली। मेरी बात सुन भैया भी मुस्कुरा दिए और आम तोड़ने लग गए। जल्द ही ढेर सारी आम जमा हो गई नीचे। कुछ ही देर में भैया भी नीचे आ गए। तुरंत ही मेरी नजर भैया के लण्ड की तरफ घूम गई।
अरे! ये तो अभी भी खड़ा ही है। इतनी देर तक ध्यान बँटे रहने के बावजूद भी ठुमके लगा रहा था। फिर मैं दो पके हुए आम लिए और एक भैया को देते हुए खाने बोली। भैया भी अब शर्म नहीं कर रहे थे। आम लेते हुए वहीं पास में एक झुकी हुई टहनी के सहारे खड़े हो खाने लगे। मैं भी उनके बगल में खड़ी हो खाने लगी। आम खत्म होते ही भैया आगे बढ़े और दो आम और उठा लिए।
जैसे ही उन्होंने मुँह लगाया जोर से थू-थू करते हुए चीख पड़े। मेरी तो जोर से हँसी निकल पड़ी क्योंकि मेरी वाली खट्टे नहीं थे।
"सीता, तुम्हारे आम कितने मीठे थे और ये....." भैया मेरी तरफ देखते हुए बोले। भैया की द्विअर्थी शब्द सुन मैं कुटीली मुस्कान देते हुए बोली,"अच्छा......"
भैया मेरी इस अदा देखते हुए शायद कुछ याद करने की कोशिश करने लगे। अचानक वे बिल्कुल झेँप से गए और सिर झुका लिए। शायद उन्हें अपनी गलती का आभास हो गया था कि वे क्या बोल दिए।
तभी मैं आगे बढ़ी और भैया के काफी करीब जाकर खड़ी हो गई। फिर हाथ वाली आम अपने दोनों आम के बीचोँ बीच लाते हुए हल्के से बोली,"जब मेरे आम इतने मीठे हैं तो खाते क्यों नहीं?"
इतना सुनते ही भैया की नजरें ऊपर उठ गई और अचरज से मेरी तरफ देखने लगे। मैं मुस्कुराते हुए अपनी एक आँखें दबा दी।
तभी भैया मुझे अपनी बाँहों में जोर से भीँचते हुए जकड़ लिए। मेरी दोनों आमों के बीच ये आम भी फँस गई थी। मैं तो सिर्फ गले लगने से ही पानी छोड़ने लगी थी। तभी भैया मेरे चेहरे को पकड़ते हुए अपने गर्म होंठ मेरी होंठ पर रख दिए। मैं तो आकाश में उड़ने लग गई थी। मेरे हाथ भैया को पीछे से जकड़ ली थी। भैया भी मुझे कसते हुए होंठों का रसपान करने लगे। हम दोनों की पकड़ इतनी गहरी हो गई थी कि बीच में फँसी आम भी अपनी पानी छोड़ने लगी थी और मेरी चोली को गीली करने लगी। पर मैं बेफिक्र हो भैया के होंठ का स्वाद चख रही थी। कुछ ही पल में भैया की जीभ मेरी जीभ से टकराने लगी। मैं अब पूरी तरह से मचल रही थी।तभी भैया मुझे घुमाते हुए टहनी के सहारे झुका दिए और अपना लण्ड मेरी चूत पर टिकाते हुए ताबड़तोड़ किस करने लगे। कभी होंठ पर,कभी गाल पर,कभी गर्दन पर,कभी चुची की उभारोँ पर। इतनी तेजी से चुम्मी ले रहे थे कि कहना मुश्किल था कब कहाँ पर चूम रहे हैं।
मेरी हालत अब पस्त होने लगी थी। मेरे पाँवोँ की ताकत बिलकुल खत्म हो गई थी। मेरी सफेद चोली पीले रंग में बदल गई थी और भैया जीभ से पीलेपन दूर करने की कोशिश कर रहे थे।
अचानक मैं तेजी से उठते हुए भैया से लिपटती हुई चीख पड़ी। मेरी चूत से मानो लावा फूट पड़ी। मैं सुबकते हुए पानी छोड़ रही थी।
तभी एक और ज्वालामुखी फूटी और भैया भी "आहहहहह सीता" कहते हुए झटके खाने लगे। उनका तोप अंडरवियर में अपने अँगारेँ बरसाने लगी। हम दोनों झड़ चुके थे।
कुछ देर तक यूँ ही हम दोनों चिपके रहे। फिर भैया मेरी चूतड़ पर पकड़ बनाते हुए नीचे जमीन पर लिटा दिए। मैं अपनी आँखें बंद किए चेहरे पर मुस्कान लाते हुए लेट गई। फिर भैया भी मेरे ऊपर लेटते हुए मेरे होंठ को चूमने लगे। कुछ ही देर में मैं गर्म होने लगी थी। अचानक से भैया मेरी चोली खोलने लगे और कुछ ही देर में मेरी चुची भैया के सामने नंगी थी। गोरी-2 चुची देखते ही भैया के मुँह से लार टपकने लगी। अगले ही पल भैया अपना आपा खोते हुए अपने दाँत गड़ा दिए। मैं जोर से चीख पड़ी जिसकी गूँज बगीचे में काफी देर तक सुनाई देती रही। भैया अब एक हाथ से मेरी चुची की मसल रहे थे और दूसरी हाथ से मेरी चुची ऐंठते हुए चूसे जा रहे थे।
कुछ ही देर भैया का एक बार फिर से अपने शबाब पर था और मेरी चूत में ठोकरे लगा रहा था। जिससे मेरी चूत में छोटी नदी बहने लगी थी। मैं अब कसमसाने लगी और खुद पर नियंत्रण खोने लगी थी।
अगले ही क्षण मैं सिसकते हुए बोली,"आहहहहहह भैया, नीचे कुछ हो रही है। जल्दी कुछ करो। ओफ्फ ओह!" भैया अभी भी और तड़पाने के मूड में थे। वे नीचे की ओर चूमते हुए खिसकने लगे। जैसे ही उनकी जीभ मेरी नाभी में नाची, मैं पीठ उचकाते हुए तड़प उठी। भैया लगातार मेरी नाभी को जीभ से कुरेदने में लग गए। मेरे दोनों हाथ भैया के बालों को नोँचने लग गए थे और उन्हें हटाने की कोशिश कर रही थी। भैया भी अब पूरे रंग में आ गई थी। भैया के इस रूप को देख मैं हैरान रह गई कि सब दिन गाँव में रहने वाले सेक्स को इतने अच्छे से कैसे खेल रहे हैं।
तभी भैया उठे और मेरे पैरों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए मेरी लहँगा को ऊपर करने लगे। कुछ ही पल में पूरी लहँगा मेरे पेट को ढँक चुकी थी और नीचे सिर्फ पेन्टी मेरी चूत की रखवाली कर रही थी। मैं इतनी देर से तो बेशर्म बन रही थी पर अब तो शर्म से मरने लगी थी और अपने हाथों से मुँह को ढँक ली थी। भैया पेन्टी के ऊपर से ही चूत पर उँगली नचाने लगे और अचानक उँगली फँसाते हुए एक जोरदार झटके दे दिए। मेरी भीँगी हुई पेन्टी चरचराती हुई कई टुकड़े में बँट गई। भैया की नजर मेरी चूत पर पड़ते ही बोल पड़े,"ओफ्फ। क्या संगमरमर सी चूत है सीता तुम्हारी। कसम से अगर पहले जानता तो मैं कब का चोद चुका रहता।" और अपने होंठ मेरी गीली चूत में भिड़ा दिए। मैं कुछ बोलना चाहती थी पर भैया के होंठ लगते ही मेरी आवाज एक आहहहह में बदल के गूँजने लगी। भैया मेरी चूत को ऐसे चुसने लगे कि मानो वो मेरी चूत नहीं, मेरी होंठ हो। मैं उल्टे हाथ से जमीन की घास नोँच नोँच के फेंकने लगी थी। अचानक मैं चिहुँक उठी। भैया मेरी चूत के दाने को अपने दाँतो से पकड़ काट रहे थे। मेरी शरीर में खून की जगह पानी दौड़ने लगी थी। मैं लगातार चीखी जा रही थी। भैया बेरहम बनते हुए मुझे तड़पाने लगे। मैं ज्यादा देर तक टिक नहीं पाई और शरीर को जमीन पर रगड़ते हुए फव्वारे छोड़ने लगी। भैया बिना मुँह हटाए मेरी चूतरस तेजी से पीने लग गए। मैं भी लगातार भैया को अपनी रस सीधे गले में उतार रही थी। कुछ ही पल में भैया सारा रस चट कर गए थे। सारा रस चुसने के बाद भी भैया मेरी चूत को छोड़ने के मूड में नहीं थे। वे अब अपनी जीभ डालकर कुरेदने लगे। मैं झड़ने के बाद थोड़ी सुस्त पड़ गई थी। पर भैया की जीभ से मैं तुरंत ही अपने रंग में रंग गई और मचलने लगी। खुरदरे जीभ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सकी। मैं तड़पते हुए भैया के बाल पकड़ते हुए बोली,"आहहहहहह भैया, अब मत तरसाओ। जल्दी कुछ करो वर्ना मैं मर जाऊंगी। ओफ्फ......"
भैया होंठ हटाते हुए मेरी तरफ देखने लगे। मैं लगभग रुआंसी सी हो गई थी। भैया भी सोचे कि लगता है कि चूल्हा अब पूरी तरह से गर्म है, अब जल्दी ही भुट्टे सेंक लेना चाहिए। वे उठे और आगे बढ़ते हुए अपना 8 इंची लण्ड मेरी होंठ से सटाते हुए बोले,"जान, अब थोड़ा इसकी भी सेवा कर दो।"
मैं तो जल्द से जल्द चुदना चाहती थी। बिना कुछ कहे मैं गप्प से लण्ड को अपने होंठों में फँसा ली। भैया के मुख से एक जोर से सिसकारि निकल गई। उनके अंडोँ को पकड़े अपने होंठ आगे पीछे करने लगी। पूरे बगीचे में अब भैया की आवाजें गूँजने लगी थी। कुछ ही देर में मेरी रसीली होंठ अपने जलवे दिखा दी। भैया तड़पते हुए मेरी बाल पकड़े और अपने लण्ड को पीछे कर लिए। मेरी एक छोटी आह निकल गई। फिर मैं अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए नशीली आँखों से देखने लगी। भैया नीचे झुकते हुए मेरी होंठों को चूमे और बोले,"अब दिलाता हूँ असली मजा।" और नीचे मेरी दोनों पैरों को ऊपर करते हुए बीच में आ गए। फिर झुकते हुए अपने लंड को मेरी चूत पर घिसने लगे। मेरी नाजुक चूत भैया के गर्म लोहे को सह नहीं पाई और पानी छोड़ने लगी। दो बार झड़ने के बाद भी मेरी वासना की तुरंत ही भड़क गई। मैं अपनी गांड़ ऊपर करती हुई लण्ड को अपने चूत में लेने की कोशिश करने लगी। अचानक ही मेरी चूत पर एक जोरदार हमले हुए। मैं जोर से चीखते हुए तड़पने लगी।
"आहह.ह.ह.ह..भैयाआआआआआआआ. मर गईईईईईईईईईईईई"
जोर मुझे अपनी मजबूत बाँहो से जकड़े थे।मैं चाह कर भी खुद को छुड़ा नहीं सकती थी। तभी मैं अपनी चूत की नजर घुमाई तो होश उड़ गई मेरी। भैया का 8 इंची लंड जड़ तक चूत में उतर चुकी थी। मेरी चूत में काफी दर्द हो रही थी।
तभी भैया मेरे कानों को चूमते हुए पूछे,"सीता,ज्यादा दर्द हो रहा है क्या?"
मैं रोनी सूरत बनाते हुए हाँ में सिर हिला दी।
"लगता है शाले श्याम 5 इंच का लंड लिए घूम रहा है। अगर पहले पता होता तो कतई नहीं तुम्हें चुदने के लिए उसके पास जाने देता।"
भैया की बातें सुनते ही मैं दर्द को भूलते जोर से हँस पड़ी। भैया को लगा कि मेरी दर्द कम हो गई है तो अपना लंड पीछे खींचते हुए धक्का लगा दिए। मैं आउच्च्च्च्च्च करते हुए उछल पड़ी।
"जानू, असली लंड से चुदने पर थोड़ा दर्द तो सहना ही पड़ेगा।" और मुस्कुरा दिए।
"भैया, उनका भी असली ही था पर आपसे थोड़ा छोटा था।"कहते हुए मैं मुस्कुराते हुए अपनी नजर घुमा दी।
"हाहाहा..अच्छा..!" कहते हुए भैया मेरी चुची मसलते हुए चुसने लगे। अपने लंड की तारीफ सुन और गर्मजोशी से चुसने लग गए थे।कुछ ही देर में मैं दर्द से मुक्त हो अपनी चूत ऊपर की तरफ धकेलने लगी। ये देखते ही भैया मुँह मेरी चुची से हटा लिए। और फिर अपना लंड खींचते हुए अंदर कर दिए और आगे पीछे करने लगे। मेरी चीख अब सेक्सी आवाजें में बदल गई थी। भैया अपने हर धक्के पर याहहहहहह करते और साथ में मैं भी आहहहहह करती हुई उनका साथ दे रही थी।
कुछ ही देर में भैया किसी मशीन के पिस्टन की तेजी से चोदने लगे। खुले में चुदने के मजे मैं पूरी तरह से ले रही थी। भैया पूरे रफ्तार से मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ा रहे थे।
कोई 15 मिनट तक लगातार पेलने के बाद भैया चीखते बोले,"आहहहह सीता! मेरी प्यारी बहन, मैं आने वाला हूँऊँऊँऊँ.. अंदर ही डाल दूँ?"
"हाँ भैयायायायाया... मैं भी आने वाली हूँ। अपना सारा पानी अंदर ही डाल दो।"मैं भी लगभग चीखते हुए बोली।
तभी भैया का पूरा शरीर अकड़ते हुए झटके खाने लगा और नीचे मैं भी अकड़ने लगी। भैया अपने लंड से अपनी बहन की गहरी चूत को नहला रहे थे। एक दूसरे को इतनी जोर से जकड़े हुए थे कि मेरी नाखून उनकी पीठ को नोँच रही थी। भैया के दाँत मेरी चुची में गड़ गई थी। काफी देर तक झटके खाने के बाद हम दोनों शांत यूँ ही एक दूसरे के शरीर पर चिपके थे। मैं मस्ती में अपनी आँखें बंद किए खो सी गई थी। फिर भैया मुझ पर से हटते हुए बगल में हाँफते हुए लुढक गए।
कुछ देर बाद जब होश में आई तो उठ के बैठ गई और अपनी हालत देख मैं मुस्कुराने लगी। पूरी चोली आम के रस और भैया के थूक से सनी हुई थी। और लहँगा तो पूरी मिट्टी से भरी हुई थी। पास ही मेरी पेन्टी फटी पड़ी थी। इस वक्त अगर कोई देख ले उसे समझते देर नहीं लगेगी कि अभी-2 दमदार चुदाई हुई है। बगल में नजर दौड़ाई तो देखी भैया बेसुध से अभी भी पड़े हुए थे मानो लम्बी रेस दौड़ के आए हों। उनका लंड अभी भी मेरी चूत की रस से सनी हुई थी। मैं मुस्कुराते हुए फटी हुई पेन्टी उठाई और आहिस्ते से उनका लंड साफ करने लग गई। लंड पर हाथ पड़ते ही भैया आँखें खोल दिए और मुस्कुराने लगे। जवाब में मैं भी शर्मिली हँसी हँसते हुए बोली,"अब उठो भी भैया! जल्दी घर चलो वर्ना ज्यादा देर हुई तो भाभी मुफ्त में डांटेगी।"
"ऐसी माल के बदले अगर कोई 100 डंडे भी मारे तो मैं मार खाना मंजूर करूँगा मेरी रानी। मुआहहह" भैया उठ के बैठते हुए बोले।
मैं उनकी बात सुन हँसते हुए बोली,"ठीक है,ठीक है। अब बातें बनाना कम करो और जल्दी से कपड़े ठीक करो; और जल्दी चलो।" भैया हँसते हुए अपने कपड़े ठीक किए और सारे आम थैली में डाल बाईक पर लाद दिए। फिर मैं भी चुन्नी निकाल शॉल की तरह ओढ ली और बाईक पर भैया से चिपकते हुए बैठ घर की तरफ चल दी।
घर आते ही मैं तेजी से अपने रूम में गई और कपड़े लेकर बाथरुम में घुस गई। करीब 1 घंटे बाद फ्रेश हो बाथरुम से निकली तो भाभी हमें देख मंद-2 मुस्कुरा रही थी। मैं भी धीरे से मुस्कुरा कर भाभी की मुस्कान को समझने की कोशिश करते हुए अपने रूम की तरफ बढ़ गई।
रूम में आते ही फोन की याद आ गई जो कि मैं यहीं भूल गई थी। मेरे दिमाग में भाभी की हँसी बिजली की तरह कौँध गई। कहीं अंकल या पूजा कमीनी पूजा कुछ भाभी से बोल तो नहीं दी। मैं तेजी से अपने पर्स में से फोन निकली। देखी तो फोन में 15 Missed Call पूजा की थी और 1 Message अंकल की थी।
मन ही मन भगवान को थैंक्स दी कि भाभी ने फोन Recieved नहीं की थी। मैंने अंकल के संदेश को खोल के पढ़ने लगी। थैंक्स गॉड! अंकल को विधायक की टिकट मिल गई और अंकल ने उसी की बधाई संदेश भेजे थे। मुझे तो खुशी पे खुशी मिली जा रही थी। मैंने भी जल्दी से बधाई संदेश लिखी और अंकल को भेज दिए।
फिर मैं पूजा को Call Back की। फोन उठाते ही पूजा के सुंदर होंठों ने गाली की तो बारिश कर दी। मैंने हँसते हुए फोन भूल जाने की बात काफी कोशिश के बाद बता पाई, क्योंकि वो बिना कुछ सुने गाली दिए जा रही थी। फिर पूजा शांत होते हुए बोली," भाभी, आपकी बहुत याद आ रही है। जब तक बाहर रहती तो ठीक रहती है, जैसे ही घर आती हूँ तो आपकी यादें बहुत सताने लगती है।"
पूजा एक प्रेमी की तरह बोले जा रही थी। मेरी तो हँसी निकल रही थी पर सच कहूँ तो मैं भी पूजा से मिलने के लिए तड़प रही थी।
"भाभी, इस रविवार को भैया को किसी तरह आपको लाने भेजूँगी। प्लीज आप आ जाना।" पूजा अपनी छोटी सी योजना हमें समझाते हुए बोली।
मैं भी तुरंत हाँ कह दी और पूछी,"पूजा, अंकल से पार्टी मिली या नहीं। आज तो उन्हें टिकट मिल गई है।"
"अरे भाभी, जिस काम में पूजा अपनी टांगेँ अड़ा देगी, वो काम भला कौन रोक सकता। अंकल अगर पहले मेरी हेल्प लेते तो इतनी बाधा नहीं आती उन्हें।"पूजा चहकते हुए अपनी जीत का बखान करने लगी। मैं तो पूजा की बातें सुन चौंक ही पड़ी।
"मतलब......?" मैं इसे और जानने के ख्याल से सिर्फ यही पूछ सकी।
"मेरी सीता डॉर्लिँग, पहले आप पटना तो फिर सारी कहानी बताती हूँ। अभी तो बस इतनी जान लो कि कल पूरी रात अंकल के पार्टी अध्यक्ष समेत 3 मर्द मेरी धज्जियाँ उड़ाते रहे। और अगली सुबह अंकल को टिकट मिल गई।" और कहते हुए पूजा हँस दी।
"क्या...?"पूजा की संक्षेप में कही बातें सुन मेरी मुँह से सिर्फ इतनी ही निकल पड़ी। तभी पूजा तेजी से कुछ बोलती हुई फोन रख दी जो कि ठीक से सुन नहीं पाई। मैं तो पूजा की हुई 3 मर्द के साथ चुदाई में खो सी गई। कैसे छोटी सी पूजा उनका लंड अपने छोटी सी चूत में रात भर ली होगी। दिल में पूजा द्वारा की पूरी रात चुदाई की कहानी छपने लगी थी। इन्हीं लाइव चलचित्र को देखते और भैया द्वारा दी गई दर्द से कब मेरी आँख लग गई, पता नहीं।
शाम के 5 बजे मेरी आँख खुली, जब भाभी मुझे उठाई। मैं उठते हुए भाभी की तरफ देखते हुए मुस्कुरा दी। तभी भाभी बोली,"लगता है हमारी रानी सपने में अपने राजा जी के संग धूम मचा रही थी।"
मैं भाभी की मजाक से हँसते हुए बेड से नीचे उतर खड़ी हुई कि मैं आह करते हुए गिरते-2 बची। मेरी चूत में अब काफी दर्द महसूस हो रही थी। भाभी भी तुरंत ही मेरी बाँहेँ पकड़ ली।
ये कैसी चुदाई थी, मजे पहले ले लो और दर्द 4 घंटे बाद। मैं तो भैया की इस अदा की कायल हो गई और मुस्कुरा दी। तभी भाभी मेरी गालोँ पर हाथ फेरते हुए बोली,"क्या बात है? राजा जी पटना में हैं तो ये दर्द किस महाशय ने दिए।"
"भाभी,आप तो हर वक्त मजाक ही करते रहते हैं।" मैं शर्माते हुए मन में भैया को याद करते झूठ बोल दी। "मजाक मैं नहीं आप कर रही हैं। जल्दी से आप बताओगी या फिर मैं उसका नाम बोलूँ।" भाभी एक बार फिर जोर देते हुए पूछी।
"कोई नहीं भाभी। वो बगीचे में गिर गई थी जिससे चोट आ गई है।" मैं किसी तरह भाभी को मनाने की कोशिश करने लगी।
तभी भाभी बोली," सीता, हर दर्द को अच्छी तरह से पहचानती हूँ। अब सीधे से नाम बोलो वर्ना मैं बोल दूंगी।" और भाभी मुस्कुरा के देखने लगी।
मैं बार बार भाभी की ऐसी धमकी से जोश में आते हुए बोली,"अब आप जानती है उसका नाम तो जरा मैं भी तो सुन लूँ कि कौन है आपकी नजरों में जो मेरी ये हालत कर सकता है।"
भाभी अपने होंठों पर शरारती मुस्कान लाते हुए मुझसे सटते हुए कान में धीरे से बोली," इस पूरे गाँव में ऐसा दर्द मेरे पति यानी आपके भैया के सिवाय कोई नहीं दे सकता।"
मैं तो सन्न रह गई। मेरे हाथ पाँव कांपने लगे और बूत सी बनी खड़ी थी। कुछ ही पल में मेरी आँखों से आँसू छलक पड़ी।
कुछ ही देर में अपने भैया के साथ बगीचे पहुँच गई थी। मैं उतरी और अपनी गांड़ पूरब पश्चिम करती आगे बढ़ गई। सिर्फ चोली में मेरी चुची मानो दो बड़े-2 पर्वत जैसी लग रही थी।पीछे भैया भी जल्दी से बाईक खड़ी की और लगभग दौड़ते हुए पीछे-2 चलने लगे। भैया की हालत देख मेरी तो हँसी निकल रही थी पर किसी तरह खुद को रोक रखी थी। एक पेड़ के पास रुकते हुए मैं तेजी से पलटी।
ओह गॉड! भैया अपनी जीभ होंठ पर फेरते हुए लुँगी के ऊपर से लण्ड सहलाते हुए आ रहे थे। मुझ पर नजर पड़ते ही भैया हड़बड़ा कर हाथ हटा लिए। मैं भी बिना शर्म किए हल्की ही मुस्कान देते हुए बोली," भैया, अब जल्दी से आम खिलाओ।"
भैया हाँ कहते हुए एक पेड़ की तरफ बढ़े और चढ़ गए। कुछ ही दूर चढ़े थे कि तभी उनकी लुँगी हवा में लहराती हुई नीचे आ गई।ऊपर देखी तो भैया सिर्फ अंडरवियर में नीचे की तरफ देख रहे थे और उनका लण्ड तो मानो कह रहा कि ये अंडरवियर भी निकालो;मुझे घुटन हो रही है। फिर मैं जोर से हँसते हुए लुँगी उठा के पेड़ पर रखते हुए पूछी,"क्या हुआ भैया?"
"ओफ्फ। मेरी लुँगी खुल के गिर गई।"
"कोई बात नहीं भैया। वैसे यहाँ कोई नहीं आने वाला जिससे आपको शर्म आएगी। अब जल्दी से पके आम नीचे करो।" मैं मुस्काती हुई बोली। मेरी बात सुन भैया भी मुस्कुरा दिए और आम तोड़ने लग गए। जल्द ही ढेर सारी आम जमा हो गई नीचे। कुछ ही देर में भैया भी नीचे आ गए। तुरंत ही मेरी नजर भैया के लण्ड की तरफ घूम गई।
अरे! ये तो अभी भी खड़ा ही है। इतनी देर तक ध्यान बँटे रहने के बावजूद भी ठुमके लगा रहा था। फिर मैं दो पके हुए आम लिए और एक भैया को देते हुए खाने बोली। भैया भी अब शर्म नहीं कर रहे थे। आम लेते हुए वहीं पास में एक झुकी हुई टहनी के सहारे खड़े हो खाने लगे। मैं भी उनके बगल में खड़ी हो खाने लगी। आम खत्म होते ही भैया आगे बढ़े और दो आम और उठा लिए।
जैसे ही उन्होंने मुँह लगाया जोर से थू-थू करते हुए चीख पड़े। मेरी तो जोर से हँसी निकल पड़ी क्योंकि मेरी वाली खट्टे नहीं थे।
"सीता, तुम्हारे आम कितने मीठे थे और ये....." भैया मेरी तरफ देखते हुए बोले। भैया की द्विअर्थी शब्द सुन मैं कुटीली मुस्कान देते हुए बोली,"अच्छा......"
भैया मेरी इस अदा देखते हुए शायद कुछ याद करने की कोशिश करने लगे। अचानक वे बिल्कुल झेँप से गए और सिर झुका लिए। शायद उन्हें अपनी गलती का आभास हो गया था कि वे क्या बोल दिए।
तभी मैं आगे बढ़ी और भैया के काफी करीब जाकर खड़ी हो गई। फिर हाथ वाली आम अपने दोनों आम के बीचोँ बीच लाते हुए हल्के से बोली,"जब मेरे आम इतने मीठे हैं तो खाते क्यों नहीं?"
इतना सुनते ही भैया की नजरें ऊपर उठ गई और अचरज से मेरी तरफ देखने लगे। मैं मुस्कुराते हुए अपनी एक आँखें दबा दी।
तभी भैया मुझे अपनी बाँहों में जोर से भीँचते हुए जकड़ लिए। मेरी दोनों आमों के बीच ये आम भी फँस गई थी। मैं तो सिर्फ गले लगने से ही पानी छोड़ने लगी थी। तभी भैया मेरे चेहरे को पकड़ते हुए अपने गर्म होंठ मेरी होंठ पर रख दिए। मैं तो आकाश में उड़ने लग गई थी। मेरे हाथ भैया को पीछे से जकड़ ली थी। भैया भी मुझे कसते हुए होंठों का रसपान करने लगे। हम दोनों की पकड़ इतनी गहरी हो गई थी कि बीच में फँसी आम भी अपनी पानी छोड़ने लगी थी और मेरी चोली को गीली करने लगी। पर मैं बेफिक्र हो भैया के होंठ का स्वाद चख रही थी। कुछ ही पल में भैया की जीभ मेरी जीभ से टकराने लगी। मैं अब पूरी तरह से मचल रही थी।तभी भैया मुझे घुमाते हुए टहनी के सहारे झुका दिए और अपना लण्ड मेरी चूत पर टिकाते हुए ताबड़तोड़ किस करने लगे। कभी होंठ पर,कभी गाल पर,कभी गर्दन पर,कभी चुची की उभारोँ पर। इतनी तेजी से चुम्मी ले रहे थे कि कहना मुश्किल था कब कहाँ पर चूम रहे हैं।
मेरी हालत अब पस्त होने लगी थी। मेरे पाँवोँ की ताकत बिलकुल खत्म हो गई थी। मेरी सफेद चोली पीले रंग में बदल गई थी और भैया जीभ से पीलेपन दूर करने की कोशिश कर रहे थे।
अचानक मैं तेजी से उठते हुए भैया से लिपटती हुई चीख पड़ी। मेरी चूत से मानो लावा फूट पड़ी। मैं सुबकते हुए पानी छोड़ रही थी।
तभी एक और ज्वालामुखी फूटी और भैया भी "आहहहहह सीता" कहते हुए झटके खाने लगे। उनका तोप अंडरवियर में अपने अँगारेँ बरसाने लगी। हम दोनों झड़ चुके थे।
कुछ देर तक यूँ ही हम दोनों चिपके रहे। फिर भैया मेरी चूतड़ पर पकड़ बनाते हुए नीचे जमीन पर लिटा दिए। मैं अपनी आँखें बंद किए चेहरे पर मुस्कान लाते हुए लेट गई। फिर भैया भी मेरे ऊपर लेटते हुए मेरे होंठ को चूमने लगे। कुछ ही देर में मैं गर्म होने लगी थी। अचानक से भैया मेरी चोली खोलने लगे और कुछ ही देर में मेरी चुची भैया के सामने नंगी थी। गोरी-2 चुची देखते ही भैया के मुँह से लार टपकने लगी। अगले ही पल भैया अपना आपा खोते हुए अपने दाँत गड़ा दिए। मैं जोर से चीख पड़ी जिसकी गूँज बगीचे में काफी देर तक सुनाई देती रही। भैया अब एक हाथ से मेरी चुची की मसल रहे थे और दूसरी हाथ से मेरी चुची ऐंठते हुए चूसे जा रहे थे।
कुछ ही देर भैया का एक बार फिर से अपने शबाब पर था और मेरी चूत में ठोकरे लगा रहा था। जिससे मेरी चूत में छोटी नदी बहने लगी थी। मैं अब कसमसाने लगी और खुद पर नियंत्रण खोने लगी थी।
अगले ही क्षण मैं सिसकते हुए बोली,"आहहहहहह भैया, नीचे कुछ हो रही है। जल्दी कुछ करो। ओफ्फ ओह!" भैया अभी भी और तड़पाने के मूड में थे। वे नीचे की ओर चूमते हुए खिसकने लगे। जैसे ही उनकी जीभ मेरी नाभी में नाची, मैं पीठ उचकाते हुए तड़प उठी। भैया लगातार मेरी नाभी को जीभ से कुरेदने में लग गए। मेरे दोनों हाथ भैया के बालों को नोँचने लग गए थे और उन्हें हटाने की कोशिश कर रही थी। भैया भी अब पूरे रंग में आ गई थी। भैया के इस रूप को देख मैं हैरान रह गई कि सब दिन गाँव में रहने वाले सेक्स को इतने अच्छे से कैसे खेल रहे हैं।
तभी भैया उठे और मेरे पैरों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए मेरी लहँगा को ऊपर करने लगे। कुछ ही पल में पूरी लहँगा मेरे पेट को ढँक चुकी थी और नीचे सिर्फ पेन्टी मेरी चूत की रखवाली कर रही थी। मैं इतनी देर से तो बेशर्म बन रही थी पर अब तो शर्म से मरने लगी थी और अपने हाथों से मुँह को ढँक ली थी। भैया पेन्टी के ऊपर से ही चूत पर उँगली नचाने लगे और अचानक उँगली फँसाते हुए एक जोरदार झटके दे दिए। मेरी भीँगी हुई पेन्टी चरचराती हुई कई टुकड़े में बँट गई। भैया की नजर मेरी चूत पर पड़ते ही बोल पड़े,"ओफ्फ। क्या संगमरमर सी चूत है सीता तुम्हारी। कसम से अगर पहले जानता तो मैं कब का चोद चुका रहता।" और अपने होंठ मेरी गीली चूत में भिड़ा दिए। मैं कुछ बोलना चाहती थी पर भैया के होंठ लगते ही मेरी आवाज एक आहहहह में बदल के गूँजने लगी। भैया मेरी चूत को ऐसे चुसने लगे कि मानो वो मेरी चूत नहीं, मेरी होंठ हो। मैं उल्टे हाथ से जमीन की घास नोँच नोँच के फेंकने लगी थी। अचानक मैं चिहुँक उठी। भैया मेरी चूत के दाने को अपने दाँतो से पकड़ काट रहे थे। मेरी शरीर में खून की जगह पानी दौड़ने लगी थी। मैं लगातार चीखी जा रही थी। भैया बेरहम बनते हुए मुझे तड़पाने लगे। मैं ज्यादा देर तक टिक नहीं पाई और शरीर को जमीन पर रगड़ते हुए फव्वारे छोड़ने लगी। भैया बिना मुँह हटाए मेरी चूतरस तेजी से पीने लग गए। मैं भी लगातार भैया को अपनी रस सीधे गले में उतार रही थी। कुछ ही पल में भैया सारा रस चट कर गए थे। सारा रस चुसने के बाद भी भैया मेरी चूत को छोड़ने के मूड में नहीं थे। वे अब अपनी जीभ डालकर कुरेदने लगे। मैं झड़ने के बाद थोड़ी सुस्त पड़ गई थी। पर भैया की जीभ से मैं तुरंत ही अपने रंग में रंग गई और मचलने लगी। खुरदरे जीभ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सकी। मैं तड़पते हुए भैया के बाल पकड़ते हुए बोली,"आहहहहहह भैया, अब मत तरसाओ। जल्दी कुछ करो वर्ना मैं मर जाऊंगी। ओफ्फ......"
भैया होंठ हटाते हुए मेरी तरफ देखने लगे। मैं लगभग रुआंसी सी हो गई थी। भैया भी सोचे कि लगता है कि चूल्हा अब पूरी तरह से गर्म है, अब जल्दी ही भुट्टे सेंक लेना चाहिए। वे उठे और आगे बढ़ते हुए अपना 8 इंची लण्ड मेरी होंठ से सटाते हुए बोले,"जान, अब थोड़ा इसकी भी सेवा कर दो।"
मैं तो जल्द से जल्द चुदना चाहती थी। बिना कुछ कहे मैं गप्प से लण्ड को अपने होंठों में फँसा ली। भैया के मुख से एक जोर से सिसकारि निकल गई। उनके अंडोँ को पकड़े अपने होंठ आगे पीछे करने लगी। पूरे बगीचे में अब भैया की आवाजें गूँजने लगी थी। कुछ ही देर में मेरी रसीली होंठ अपने जलवे दिखा दी। भैया तड़पते हुए मेरी बाल पकड़े और अपने लण्ड को पीछे कर लिए। मेरी एक छोटी आह निकल गई। फिर मैं अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए नशीली आँखों से देखने लगी। भैया नीचे झुकते हुए मेरी होंठों को चूमे और बोले,"अब दिलाता हूँ असली मजा।" और नीचे मेरी दोनों पैरों को ऊपर करते हुए बीच में आ गए। फिर झुकते हुए अपने लंड को मेरी चूत पर घिसने लगे। मेरी नाजुक चूत भैया के गर्म लोहे को सह नहीं पाई और पानी छोड़ने लगी। दो बार झड़ने के बाद भी मेरी वासना की तुरंत ही भड़क गई। मैं अपनी गांड़ ऊपर करती हुई लण्ड को अपने चूत में लेने की कोशिश करने लगी। अचानक ही मेरी चूत पर एक जोरदार हमले हुए। मैं जोर से चीखते हुए तड़पने लगी।
"आहह.ह.ह.ह..भैयाआआआआआआआ. मर गईईईईईईईईईईईई"
जोर मुझे अपनी मजबूत बाँहो से जकड़े थे।मैं चाह कर भी खुद को छुड़ा नहीं सकती थी। तभी मैं अपनी चूत की नजर घुमाई तो होश उड़ गई मेरी। भैया का 8 इंची लंड जड़ तक चूत में उतर चुकी थी। मेरी चूत में काफी दर्द हो रही थी।
तभी भैया मेरे कानों को चूमते हुए पूछे,"सीता,ज्यादा दर्द हो रहा है क्या?"
मैं रोनी सूरत बनाते हुए हाँ में सिर हिला दी।
"लगता है शाले श्याम 5 इंच का लंड लिए घूम रहा है। अगर पहले पता होता तो कतई नहीं तुम्हें चुदने के लिए उसके पास जाने देता।"
भैया की बातें सुनते ही मैं दर्द को भूलते जोर से हँस पड़ी। भैया को लगा कि मेरी दर्द कम हो गई है तो अपना लंड पीछे खींचते हुए धक्का लगा दिए। मैं आउच्च्च्च्च्च करते हुए उछल पड़ी।
"जानू, असली लंड से चुदने पर थोड़ा दर्द तो सहना ही पड़ेगा।" और मुस्कुरा दिए।
"भैया, उनका भी असली ही था पर आपसे थोड़ा छोटा था।"कहते हुए मैं मुस्कुराते हुए अपनी नजर घुमा दी।
"हाहाहा..अच्छा..!" कहते हुए भैया मेरी चुची मसलते हुए चुसने लगे। अपने लंड की तारीफ सुन और गर्मजोशी से चुसने लग गए थे।कुछ ही देर में मैं दर्द से मुक्त हो अपनी चूत ऊपर की तरफ धकेलने लगी। ये देखते ही भैया मुँह मेरी चुची से हटा लिए। और फिर अपना लंड खींचते हुए अंदर कर दिए और आगे पीछे करने लगे। मेरी चीख अब सेक्सी आवाजें में बदल गई थी। भैया अपने हर धक्के पर याहहहहहह करते और साथ में मैं भी आहहहहह करती हुई उनका साथ दे रही थी।
कुछ ही देर में भैया किसी मशीन के पिस्टन की तेजी से चोदने लगे। खुले में चुदने के मजे मैं पूरी तरह से ले रही थी। भैया पूरे रफ्तार से मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ा रहे थे।
कोई 15 मिनट तक लगातार पेलने के बाद भैया चीखते बोले,"आहहहह सीता! मेरी प्यारी बहन, मैं आने वाला हूँऊँऊँऊँ.. अंदर ही डाल दूँ?"
"हाँ भैयायायायाया... मैं भी आने वाली हूँ। अपना सारा पानी अंदर ही डाल दो।"मैं भी लगभग चीखते हुए बोली।
तभी भैया का पूरा शरीर अकड़ते हुए झटके खाने लगा और नीचे मैं भी अकड़ने लगी। भैया अपने लंड से अपनी बहन की गहरी चूत को नहला रहे थे। एक दूसरे को इतनी जोर से जकड़े हुए थे कि मेरी नाखून उनकी पीठ को नोँच रही थी। भैया के दाँत मेरी चुची में गड़ गई थी। काफी देर तक झटके खाने के बाद हम दोनों शांत यूँ ही एक दूसरे के शरीर पर चिपके थे। मैं मस्ती में अपनी आँखें बंद किए खो सी गई थी। फिर भैया मुझ पर से हटते हुए बगल में हाँफते हुए लुढक गए।
कुछ देर बाद जब होश में आई तो उठ के बैठ गई और अपनी हालत देख मैं मुस्कुराने लगी। पूरी चोली आम के रस और भैया के थूक से सनी हुई थी। और लहँगा तो पूरी मिट्टी से भरी हुई थी। पास ही मेरी पेन्टी फटी पड़ी थी। इस वक्त अगर कोई देख ले उसे समझते देर नहीं लगेगी कि अभी-2 दमदार चुदाई हुई है। बगल में नजर दौड़ाई तो देखी भैया बेसुध से अभी भी पड़े हुए थे मानो लम्बी रेस दौड़ के आए हों। उनका लंड अभी भी मेरी चूत की रस से सनी हुई थी। मैं मुस्कुराते हुए फटी हुई पेन्टी उठाई और आहिस्ते से उनका लंड साफ करने लग गई। लंड पर हाथ पड़ते ही भैया आँखें खोल दिए और मुस्कुराने लगे। जवाब में मैं भी शर्मिली हँसी हँसते हुए बोली,"अब उठो भी भैया! जल्दी घर चलो वर्ना ज्यादा देर हुई तो भाभी मुफ्त में डांटेगी।"
"ऐसी माल के बदले अगर कोई 100 डंडे भी मारे तो मैं मार खाना मंजूर करूँगा मेरी रानी। मुआहहह" भैया उठ के बैठते हुए बोले।
मैं उनकी बात सुन हँसते हुए बोली,"ठीक है,ठीक है। अब बातें बनाना कम करो और जल्दी से कपड़े ठीक करो; और जल्दी चलो।" भैया हँसते हुए अपने कपड़े ठीक किए और सारे आम थैली में डाल बाईक पर लाद दिए। फिर मैं भी चुन्नी निकाल शॉल की तरह ओढ ली और बाईक पर भैया से चिपकते हुए बैठ घर की तरफ चल दी।
घर आते ही मैं तेजी से अपने रूम में गई और कपड़े लेकर बाथरुम में घुस गई। करीब 1 घंटे बाद फ्रेश हो बाथरुम से निकली तो भाभी हमें देख मंद-2 मुस्कुरा रही थी। मैं भी धीरे से मुस्कुरा कर भाभी की मुस्कान को समझने की कोशिश करते हुए अपने रूम की तरफ बढ़ गई।
रूम में आते ही फोन की याद आ गई जो कि मैं यहीं भूल गई थी। मेरे दिमाग में भाभी की हँसी बिजली की तरह कौँध गई। कहीं अंकल या पूजा कमीनी पूजा कुछ भाभी से बोल तो नहीं दी। मैं तेजी से अपने पर्स में से फोन निकली। देखी तो फोन में 15 Missed Call पूजा की थी और 1 Message अंकल की थी।
मन ही मन भगवान को थैंक्स दी कि भाभी ने फोन Recieved नहीं की थी। मैंने अंकल के संदेश को खोल के पढ़ने लगी। थैंक्स गॉड! अंकल को विधायक की टिकट मिल गई और अंकल ने उसी की बधाई संदेश भेजे थे। मुझे तो खुशी पे खुशी मिली जा रही थी। मैंने भी जल्दी से बधाई संदेश लिखी और अंकल को भेज दिए।
फिर मैं पूजा को Call Back की। फोन उठाते ही पूजा के सुंदर होंठों ने गाली की तो बारिश कर दी। मैंने हँसते हुए फोन भूल जाने की बात काफी कोशिश के बाद बता पाई, क्योंकि वो बिना कुछ सुने गाली दिए जा रही थी। फिर पूजा शांत होते हुए बोली," भाभी, आपकी बहुत याद आ रही है। जब तक बाहर रहती तो ठीक रहती है, जैसे ही घर आती हूँ तो आपकी यादें बहुत सताने लगती है।"
पूजा एक प्रेमी की तरह बोले जा रही थी। मेरी तो हँसी निकल रही थी पर सच कहूँ तो मैं भी पूजा से मिलने के लिए तड़प रही थी।
"भाभी, इस रविवार को भैया को किसी तरह आपको लाने भेजूँगी। प्लीज आप आ जाना।" पूजा अपनी छोटी सी योजना हमें समझाते हुए बोली।
मैं भी तुरंत हाँ कह दी और पूछी,"पूजा, अंकल से पार्टी मिली या नहीं। आज तो उन्हें टिकट मिल गई है।"
"अरे भाभी, जिस काम में पूजा अपनी टांगेँ अड़ा देगी, वो काम भला कौन रोक सकता। अंकल अगर पहले मेरी हेल्प लेते तो इतनी बाधा नहीं आती उन्हें।"पूजा चहकते हुए अपनी जीत का बखान करने लगी। मैं तो पूजा की बातें सुन चौंक ही पड़ी।
"मतलब......?" मैं इसे और जानने के ख्याल से सिर्फ यही पूछ सकी।
"मेरी सीता डॉर्लिँग, पहले आप पटना तो फिर सारी कहानी बताती हूँ। अभी तो बस इतनी जान लो कि कल पूरी रात अंकल के पार्टी अध्यक्ष समेत 3 मर्द मेरी धज्जियाँ उड़ाते रहे। और अगली सुबह अंकल को टिकट मिल गई।" और कहते हुए पूजा हँस दी।
"क्या...?"पूजा की संक्षेप में कही बातें सुन मेरी मुँह से सिर्फ इतनी ही निकल पड़ी। तभी पूजा तेजी से कुछ बोलती हुई फोन रख दी जो कि ठीक से सुन नहीं पाई। मैं तो पूजा की हुई 3 मर्द के साथ चुदाई में खो सी गई। कैसे छोटी सी पूजा उनका लंड अपने छोटी सी चूत में रात भर ली होगी। दिल में पूजा द्वारा की पूरी रात चुदाई की कहानी छपने लगी थी। इन्हीं लाइव चलचित्र को देखते और भैया द्वारा दी गई दर्द से कब मेरी आँख लग गई, पता नहीं।
शाम के 5 बजे मेरी आँख खुली, जब भाभी मुझे उठाई। मैं उठते हुए भाभी की तरफ देखते हुए मुस्कुरा दी। तभी भाभी बोली,"लगता है हमारी रानी सपने में अपने राजा जी के संग धूम मचा रही थी।"
मैं भाभी की मजाक से हँसते हुए बेड से नीचे उतर खड़ी हुई कि मैं आह करते हुए गिरते-2 बची। मेरी चूत में अब काफी दर्द महसूस हो रही थी। भाभी भी तुरंत ही मेरी बाँहेँ पकड़ ली।
ये कैसी चुदाई थी, मजे पहले ले लो और दर्द 4 घंटे बाद। मैं तो भैया की इस अदा की कायल हो गई और मुस्कुरा दी। तभी भाभी मेरी गालोँ पर हाथ फेरते हुए बोली,"क्या बात है? राजा जी पटना में हैं तो ये दर्द किस महाशय ने दिए।"
"भाभी,आप तो हर वक्त मजाक ही करते रहते हैं।" मैं शर्माते हुए मन में भैया को याद करते झूठ बोल दी। "मजाक मैं नहीं आप कर रही हैं। जल्दी से आप बताओगी या फिर मैं उसका नाम बोलूँ।" भाभी एक बार फिर जोर देते हुए पूछी।
"कोई नहीं भाभी। वो बगीचे में गिर गई थी जिससे चोट आ गई है।" मैं किसी तरह भाभी को मनाने की कोशिश करने लगी।
तभी भाभी बोली," सीता, हर दर्द को अच्छी तरह से पहचानती हूँ। अब सीधे से नाम बोलो वर्ना मैं बोल दूंगी।" और भाभी मुस्कुरा के देखने लगी।
मैं बार बार भाभी की ऐसी धमकी से जोश में आते हुए बोली,"अब आप जानती है उसका नाम तो जरा मैं भी तो सुन लूँ कि कौन है आपकी नजरों में जो मेरी ये हालत कर सकता है।"
भाभी अपने होंठों पर शरारती मुस्कान लाते हुए मुझसे सटते हुए कान में धीरे से बोली," इस पूरे गाँव में ऐसा दर्द मेरे पति यानी आपके भैया के सिवाय कोई नहीं दे सकता।"
मैं तो सन्न रह गई। मेरे हाथ पाँव कांपने लगे और बूत सी बनी खड़ी थी। कुछ ही पल में मेरी आँखों से आँसू छलक पड़ी।
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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में
सीता --एक गाँव की लड़की--9
भाभी मुझे रोते देख अपने सीने से चिपकाती हुई बोली,"सीता, मेरी जगह तुम क्यों रो रही हो। रोना तो मुझे चाहिए था कि मेरे पति बाहर भी मुँह मारते फिरते हैं। चलो चुप हो जाओ।"
भाभी की प्यार और दर्द भरी बातें सुन मैंने सुबकते हुए बोली,"सॉरी भाभी, हमसे गलती हो गई। आप नाराज मत होना। पता नहीं कैसे मैं बहक गई। प्लीज आज माफ कर दो, आगे से कभी सोचूँगी भी नहीं।" मैं खुद को काफी गिरी हुई समझने लगी थी। काफी अफसोस हो रही थी कि ऐसी गंदी हरकत क्यों की मैंने। अपने ही परिवार में सेंध लगा बैठी। ऐसे में एक हँसता हुए जिंदगी पल भर में तबाह हो सकती है।
"अरे पगली, मैं नाराज कहाँ हूँ। हाँ नाराज जरूर होती अगर तुम्हारी जगह कोई और होती। मैं अपने प्यारी सी ननद को एक खुशी भी नहीं दे सकती क्या?"
भाभी की बात सुनते ही मैं सीधी होती एकटक भाभी को निहारे जा रही थी। पता नहीं क्यों, भाभी के चेहरे में मुझे भगवान दिखने लगी थी। भाभी अपनी तरफ मेरी नजर देख बोली,"अब क्या हुआ? कसम से कह रही हूँ मैं तनिक भी नाराज नहीं हूँ।"
भाभी की बात सुनते ही मैं एक बार फिर ठुनकती हुई उनके सीने पर सिर रख दी। भाभी जोरों से हँस पड़ी और बोली,"अब नाटक बंद करो और चलो गर्म पानी रखी है बाथरुम में। जल्दी से नहा लो,दर्द कम हो जाएगा।"
ओफ्फ!एक और वार... जब आई थी तो मैं ठीक ही थी; फिर भाभी को कैसे पता मैं चुद के आई हूँ। और भाभी पहले से गर्म पानी कर रखी है। मैं पुनः गहरी सोच में पड़ गई। तभी भाभी मेरी हालत देख मुस्करा दी और बोली,"ज्यादा मत सोचो सीता। जब तुम लोग बगीचे से आई थी, तब मैं सच में तुम्हें देखी भी नहीं थी। लेकिन तुम्हारे भैया मुझसे इस तरह की कोई भी बात नहीं छिपाते। समझी! चलो अब।" और भाभी मुझे खींचते हुए बाथरुम की तरफ चल पड़ी। मेरे कदम तो मानो जमीन से जुड़ गई थी। भाभी को निहारते हुए जबरदस्ती आगे बढ़ी जा रही थी।
बाथरुम में ले जाकर भाभी जल्दी फ्रेश हो निकलने कह बाहर निकल गई। मैं बूत सी बनी यूँ ही करीब आधे घंटे तक बैठी रही। इन आधे घंटे में ना जाने कितने सवाल खुद से पूछ चुकी थी, याद नहीं।
तभी भाभी की आवाज फिर सुनाई दी तो मैं ख्वाबोँ से जगी और जल्दी से आती हूँ कह फ्रेश होने लगी।
फ्रेश होने के बाद देखी भाभी किचन के काम में लग गई थी। मैं भी भाभी के साथ उनके काम में हाथ बँटाने लगी। तभी बाहर बाईक की आवाज आई,शायद भैया आ गए थे। आते ही भैया मुझसे बोले,"सीता, तुम फोन रिसीव क्यों नहीं करती। मेहमान कितनी देर से तुम्हें ट्राई कर रहे हैं।" ओफ्फ ! मैं आज बार- फोन ही भूल जाती हूँ। मैं तेजी से निकल अपने रूम फोन लेने के निकल पड़ी।
गई छूटी कॉलेँ थी श्याम की, मैंने तुरंत ही कॉल-बैक की। फोन रिसीव करते ही श्याम बोल पड़े,"मैं परसों आ रहा हूँ तुम्हें लेने,तैयार रहना। भैया जी को भी बोल दिया हूँ।"
मैं मन ही मन काफी दुःखी हुई क्योंकि अभी तो भैया के साथ ठीक से मजे भी ले नहीं पाई थी। मैं मना तो नहीं कर सकती पर बुझे मन से पूछी,"इतनी जल्दी...?"
"हाँ डॉर्लिँग, अकेले अब रहना बिल्कुल कठिन लग रहा है। और पूजा भी जिद कर रही है कि भाभी को जल्दी लाओ वर्ना मैं भी गाँव चली जाऊंगी। सो प्लीज..." श्याम एक ही सुर में कह डाले।
मैं पूजा का नाम सुनते ही खिल सी गई। फिर मैं भी तुरंत सोच ली कि इन 2 दिन में ही भैया से थोड़ी ही सही मजे ले लुँगी, आगे अगली बार देखी जाएगी। और फिर श्याम को "ठीक है।"कह कुछ प्यार भरी बातें की और फोन रख दी।
रात के करीब 9 बज रहे थे। भैया खाना खा चुके थे। मैं और भाभी भी साथ में खाना खाई। फिर मैं अपने रूम की तरफ बढ़ी थी कि पीछे से भाभी हाथ पकड़ते हुए रोक ली। मैं रुकते हुए भाभी की तरफ नजरों से ही क्यों पूछ बैठी। भाभी बोली,"सीता, मैं तो चाहती थी कि आज रात तुम दोनों एक साथ सो जाओ क्योंकि परसों तुम चली जाएगी। लेकिन अगर मैं ऐसा की तो तुम अगली 3 दिन तक चल भी नहीं पाएगी। सो प्लीज बुरा मत मानना।"
मैं चुपचाप भाभी की बात सुन रही थी। आगे भाभी बोली,"मैं नहीं चाहती कि मेरी प्यारी ननद किसी परेशानी में पड़े। पर हाँ, कल रात मैं नहीं छोड़ने वाली क्योंकि आपके भैया कल सुबह मार्केट से दवा लाने जाएँगे जिससे चुदने के बाद 24 घंटे तक तेज दर्द नहीं होती। मैं भी पहले वो दवा खाती थी, पर अब जरूरत नहीं पड़ती।"
भाभी की पूरी बात सुनते ही मैं मुस्कुराती हुई हाँ में सिर हिला दी।
"ठीक है अब जाओ आराम करो। कल अपने भैया का असली रूप देख लेना कि कैसे और किस तरह बेरहमी से करते हैं।" कहती हुई भाभी हँस पड़ी। मैं भी शर्मा के मुस्कुरा दी और वापस अपने रूम की तरफ चल दी। तभी पता नहीं मुझे क्या सुझी। मैं पीछे से बोली,"भाभी, आज पूरी मत खाना। मेरे वास्ते कल के लिए थोड़ी सी छोड़ देना।"
भाभी सुनते ही हँसती हुई "ठीक है।"कहती हुई चली गई।
रूम में आते ही मैंने अपने सारे कपड़े खोल फेंक पूरी नंगी हो गई। भाभी के मुख से अपने और भैया के बारे में बातें सुन के ही मैं गर्म हो गई थी। मैं बेड पर लेट गई। मैं हाथों से मस्ती में चुची मसलने लगी। मस्ती जब चढ़ने लगी तो मैं अपनी हाथ नीचे ले जाकर चूत पर ज्यों ही रखी, मैं दर्द से चीखते-2 बची। ओफ्फ! अभी भी इतनी तेज दर्द। कैसे शांत करूँ अब इसे। भाभी सच ही कहती थी अगर आज मैं और चुदती तो 3 नहीं 6 दिन तक बेड पर ही पड़ी रहती मैं। फिर तेजी से दिमाग चलाती जल्द ही उपाय खोज ली। श्रृंगार-बॉक्स से ठंडी क्रीम निकाली और पूरी उँगली पर लेप ली। ठंडक की वजह से कुछ तो दर्द कम महसूस होगी। और फिर बेड पर लेट चूत पर उँगली चला कर झड़ने की कोशिश करने लगी। मैं दर्द से कुलबुला रही थी पर किसी तरह उँगली चलाती रही ताकि झड़ सकूँ।
करीब 10 मिनट तक करने के बाद मैं अकड़ने लगी और अगले ही क्षण मेरी चूत पानी छोड़ने लगी। झड़ते हुए मुझे इतनी सुकून मिली कि मैं तुरंत ही नींद के आगोश में चली गई और नंगी ही सो गई।
अगली सुबह मेरी नींद देर से खुली। अंग-अंग टूट रही थी। कल वाली चुदाई की खुमारी अब जा के दूर हुई थी। तभी नजर मेरी नंगी शरीर पर पड़ी पतली सी सफेद चादर पर गई। ओह गॉड! पूरी रात मैं नंगी ही सो रही थी। फिर दिमाग पर जोर देते हुए रात का वाक्या याद करने लगी। रात में झड़ने के बाद तो नंगी ही सो गई थी फिर ये चादर किसने डाल दी। जरूर भाभी आई होगी जगाने। फिर मुझे नंगी ही गहरी नींद में सोती देख चादर डाल दी होगी। मेरे होंठ पर अनायास ही मुस्कान की तरंगेँ रेँगने लगी और मेरी आँखें चादर को देखने लगी।
एक दम पतली सी सूती कपड़ों की थी जिसमें आसानी से आर-पार देखी जा सकती थी। नरम होने के कारण मेरी शरीर से इतनी चिपकी थी कि मानो वो चादर नहीं मेरी त्वचा ही है। मेरी शरीर की हर एक ढाँचा उभर कर दिखाई दे रही थी। मैं अपनी ही शरीर की बनावट देख खो सी गई। कुछ देर बाद मैं उठी और फ्रेश होने के लिए कपड़े ढूँढने लगी। अचानक मेरी शैतानी जाग गई और मन ही मन मुस्काती हुई उसी चादर को ओढते हुए बाथरुम की तरफ चल दी। चादर मेरी जांघ तक ही पहुँच पा रही थी। और जांघ तक ढँकी भी थी तो बस नाम की। मेरी हर अमानत चादर के बाहर बिल्कुल साफ-2 दिखाई पड़ रही थी।
मैं अपने पायल और चूड़ी खनकाती हुई मटक-2 के जा रही थी। अचानक मेरी नजर आँगन के दूसरी तरफ भैया पर नजर गई। भैया नाश्ता कर रहे थे,उनकी नजर मुझ पर पड़ते ही कौर के लिए खोली गई मुँह,खुली ही रह गई। हालाँकि भैया मेरी चूत बजा चुके थे,लेकिन मर्द अगर अपनी पत्नी को ही नए रूप में देख ले तो उसका अंग अंग वासना से तुरंत ही भर जाता है; वैसी ही हालत भैया की इस वक्त थी। मैं तिरछी नजरों से देखते हुए मंद-मंद मुस्कुराती चलती हुई बाथरुम में घुस गई। अंदर मैं इत्मिनान से फ्रेश हुई और अच्छी तरह रगड़ रगड़ कर साथ ही नहा ली।चूत की दर्द अब नहीं के बराबर थी। नहाने के बाद मैं भैया को फिर तड़पाने के ख्याल से मुस्कुराती हुई चादर चुची के उभारोँ पर बाँध ली। चादर शरीर पर पड़ते ही पूरी गीली हो गई। बाहर निकलते ही मैं भैया की तरफ नजर दौड़ाई। ओह , मेरी मंशा पर पूरी तरह पानी फिर गई। ज्यादा देर लगा दी मैंने जिससे भैया मार्केट निकल चुके थे। मन मसोस कर मैं अपने रूम की तरफ बढ़ने लगी। तभी किचन से भाभी की आवाज आई,"सीता, पहले चाय पी लो।बाद में कपड़े पहनना।"
मैं गेट के पास ठिठक के रुक गई। फिर होंठों पर हल्की मुस्कान लाते हुए मुड़ते हुए किचन में आ गई। भाभी मुस्कुराते हुए चाय मेरी तरफ बढ़ा दी।
मैं कप ले चाय पीने लगी। तभी भाभी बोली,"ऐसे तो और भी सुंदर लग रही हो।"
मैं मुस्कुरा के भाभी को थैंक्स बोली। फिर भाभी हँसती हुई बोली,"पता है तुम्हें देखते ही उनका लंड तन के कुतुबमीनार बन गई थी।" मैं भी हँस पड़ी और पूछी,"मार्केट चले गए क्या?"
"हाँ, और जल्द ही आने की कोशिश करेंगे। वैसे एक बार तो चुस के शांत कर दी पर वो तुम्हें याद कर तुरंत ही फिर खड़ा हो गया और उन्हें अपने खड़े लंड में ही जाना पड़ा।" भाभी कहते-2 जोर से हँस दी। मैं भी उनके साथ हँस पड़ी।
"चाय कैसी बनी आज?"भाभी पूछी।
मैं भाभी के ऐसे प्रश्न सुन भौँहेँ सिकुराती हुई बोली,"अच्छी तो है। आपसे कभी किचन में गलती हुई है जो आज पूछ रही हैं।"
"आज चाय में कुछ Extra चीजें डाल दी इसीलिए पूछी।" भाभी होंठों पर कुटील मुस्कान लाती हुई बोली।
मैं एक फिर एक घूँट पी स्वाद मालूम करने की कोशिश की पर नाकाम रही। फिर अपनी भौँहेँ उचका के पूछी,"क्या डाली हो?"
भाभी हँसते हुए बोली,"आज चाय में दूध-शक्कर के साथ उनके लंड का पानी मिलाई हूँ।"और खिलखिला के हँस दी। मैं तो गुस्से से कांप रही थी। फिर बेसिन की तरफ बढ़ते हुए बोली,"रण्डी कहीं की। तुझे और कुछ नहीं सूझती क्या?"
तभी भाभी मुझे पीछे से पकड़ती हुई बोली,"प्लीज सीता, फेंकना मत। मेरी गला अभी भी दर्द कर रही है। इतनी बेरहमी से डाले थे कि पूछो मत। मेरी इस दर्द को यूँ ही बेकार मत करो प्लीज।"
भाभी की याचना करती देख मैं ढीली पड़ गई और सारा गुस्सा रफ्फूचक्कर हो गई। फिर अपने होंठों पर मुस्कान लाई और पलटते हुए बोली,"ऐसी हरकत फिर कभी मत करना वर्ना मैं आपसे कभी नहीं बोलूँगी।"
भाभी हाँ कहती हुई मेरी उभारोँ को चूमते हुए थैंक्स बोल मेरी हाथ की कप को मेरे होंठों से लगा दी। मैं उनकी आँखों में झाँकती लंड के पानी वाली चाय पीने लगी। अब मैं चाय पीते हुए गर्म होने लगी थी। आखिर क्यों नहीं होती; अपने सगे भैया के लंड पानी की चाय भाभी जो पिला रही थी। मैं चाय खत्म की और भाभी को थैंक्स बोल अपने रूम में आ गई।
मैं कपड़े पहनी और भाभी को फ्रेश होने कह बाकी के बचे काम को निपटाने लगी। काम खत्म करने के बाद हम दोनों खाना खा आराम करने चली गई।
दोपहर के 3 बजे करीब मैं और भाभी साथ बैठी इधर-उधर की बातें कर रही थी कि तभी भाभी की फोन बजी। भाभी बात करने लगी। मैं ध्यान से सुन उनकी बातें सुनने लगी। कुछ ही पल में भाभी काफी मायूस सी हो गई। मैं भी कुछ परेशान हो गई भाभी को देख। फिर भाभी फोन रखते हुए बोली,"सीता, आज वो नहीं आएंगें!"
अब मायूस होने की बारी मेरी थी। मेरे सपने टूट कर बिखर रहे थे। कितनी चीजें सोच के रखी थी आज रात के लिए। फिर एक शब्दों में क्यों पूछी।
"वो मामाजी का देहांत हो गया है। वो घर आ रहे थे कि रास्ते में उन्हें फोन आया तो वहीं से लौटना पड़ गया। अब कल शाम तक आएंगें।"
भाभी की बात खत्म होते मैं गुस्से से मन ही मन खूब गाली देने लगी। जो व्यक्ति दुनिया छोड़ चले जाते हैं उन्हें अपशब्द कहना नहीं चाहिए, पर ये चीज मेरी चूत नहीं समझ रही थी तो मैं क्या करती। मैं बिल्कुल ही उदास हो गई थी। भाभी मेरे कंधों पर हाथ रख बोली,"कोई बात नहीं सीता। उदास मत हो अगली बार हम दोनों की ये इच्छा जरूर पूरी होगी।"
ये तो मैं भी जानती थी पर अगली बार मैं कब आऊंगी,खुद नहीं जानती थी। किसी तरह हम दोनों ने शाम में किचन का काम खत्म कर खाना खा सोने चली गई।
भाभी मुझे रोते देख अपने सीने से चिपकाती हुई बोली,"सीता, मेरी जगह तुम क्यों रो रही हो। रोना तो मुझे चाहिए था कि मेरे पति बाहर भी मुँह मारते फिरते हैं। चलो चुप हो जाओ।"
भाभी की प्यार और दर्द भरी बातें सुन मैंने सुबकते हुए बोली,"सॉरी भाभी, हमसे गलती हो गई। आप नाराज मत होना। पता नहीं कैसे मैं बहक गई। प्लीज आज माफ कर दो, आगे से कभी सोचूँगी भी नहीं।" मैं खुद को काफी गिरी हुई समझने लगी थी। काफी अफसोस हो रही थी कि ऐसी गंदी हरकत क्यों की मैंने। अपने ही परिवार में सेंध लगा बैठी। ऐसे में एक हँसता हुए जिंदगी पल भर में तबाह हो सकती है।
"अरे पगली, मैं नाराज कहाँ हूँ। हाँ नाराज जरूर होती अगर तुम्हारी जगह कोई और होती। मैं अपने प्यारी सी ननद को एक खुशी भी नहीं दे सकती क्या?"
भाभी की बात सुनते ही मैं सीधी होती एकटक भाभी को निहारे जा रही थी। पता नहीं क्यों, भाभी के चेहरे में मुझे भगवान दिखने लगी थी। भाभी अपनी तरफ मेरी नजर देख बोली,"अब क्या हुआ? कसम से कह रही हूँ मैं तनिक भी नाराज नहीं हूँ।"
भाभी की बात सुनते ही मैं एक बार फिर ठुनकती हुई उनके सीने पर सिर रख दी। भाभी जोरों से हँस पड़ी और बोली,"अब नाटक बंद करो और चलो गर्म पानी रखी है बाथरुम में। जल्दी से नहा लो,दर्द कम हो जाएगा।"
ओफ्फ!एक और वार... जब आई थी तो मैं ठीक ही थी; फिर भाभी को कैसे पता मैं चुद के आई हूँ। और भाभी पहले से गर्म पानी कर रखी है। मैं पुनः गहरी सोच में पड़ गई। तभी भाभी मेरी हालत देख मुस्करा दी और बोली,"ज्यादा मत सोचो सीता। जब तुम लोग बगीचे से आई थी, तब मैं सच में तुम्हें देखी भी नहीं थी। लेकिन तुम्हारे भैया मुझसे इस तरह की कोई भी बात नहीं छिपाते। समझी! चलो अब।" और भाभी मुझे खींचते हुए बाथरुम की तरफ चल पड़ी। मेरे कदम तो मानो जमीन से जुड़ गई थी। भाभी को निहारते हुए जबरदस्ती आगे बढ़ी जा रही थी।
बाथरुम में ले जाकर भाभी जल्दी फ्रेश हो निकलने कह बाहर निकल गई। मैं बूत सी बनी यूँ ही करीब आधे घंटे तक बैठी रही। इन आधे घंटे में ना जाने कितने सवाल खुद से पूछ चुकी थी, याद नहीं।
तभी भाभी की आवाज फिर सुनाई दी तो मैं ख्वाबोँ से जगी और जल्दी से आती हूँ कह फ्रेश होने लगी।
फ्रेश होने के बाद देखी भाभी किचन के काम में लग गई थी। मैं भी भाभी के साथ उनके काम में हाथ बँटाने लगी। तभी बाहर बाईक की आवाज आई,शायद भैया आ गए थे। आते ही भैया मुझसे बोले,"सीता, तुम फोन रिसीव क्यों नहीं करती। मेहमान कितनी देर से तुम्हें ट्राई कर रहे हैं।" ओफ्फ ! मैं आज बार- फोन ही भूल जाती हूँ। मैं तेजी से निकल अपने रूम फोन लेने के निकल पड़ी।
गई छूटी कॉलेँ थी श्याम की, मैंने तुरंत ही कॉल-बैक की। फोन रिसीव करते ही श्याम बोल पड़े,"मैं परसों आ रहा हूँ तुम्हें लेने,तैयार रहना। भैया जी को भी बोल दिया हूँ।"
मैं मन ही मन काफी दुःखी हुई क्योंकि अभी तो भैया के साथ ठीक से मजे भी ले नहीं पाई थी। मैं मना तो नहीं कर सकती पर बुझे मन से पूछी,"इतनी जल्दी...?"
"हाँ डॉर्लिँग, अकेले अब रहना बिल्कुल कठिन लग रहा है। और पूजा भी जिद कर रही है कि भाभी को जल्दी लाओ वर्ना मैं भी गाँव चली जाऊंगी। सो प्लीज..." श्याम एक ही सुर में कह डाले।
मैं पूजा का नाम सुनते ही खिल सी गई। फिर मैं भी तुरंत सोच ली कि इन 2 दिन में ही भैया से थोड़ी ही सही मजे ले लुँगी, आगे अगली बार देखी जाएगी। और फिर श्याम को "ठीक है।"कह कुछ प्यार भरी बातें की और फोन रख दी।
रात के करीब 9 बज रहे थे। भैया खाना खा चुके थे। मैं और भाभी भी साथ में खाना खाई। फिर मैं अपने रूम की तरफ बढ़ी थी कि पीछे से भाभी हाथ पकड़ते हुए रोक ली। मैं रुकते हुए भाभी की तरफ नजरों से ही क्यों पूछ बैठी। भाभी बोली,"सीता, मैं तो चाहती थी कि आज रात तुम दोनों एक साथ सो जाओ क्योंकि परसों तुम चली जाएगी। लेकिन अगर मैं ऐसा की तो तुम अगली 3 दिन तक चल भी नहीं पाएगी। सो प्लीज बुरा मत मानना।"
मैं चुपचाप भाभी की बात सुन रही थी। आगे भाभी बोली,"मैं नहीं चाहती कि मेरी प्यारी ननद किसी परेशानी में पड़े। पर हाँ, कल रात मैं नहीं छोड़ने वाली क्योंकि आपके भैया कल सुबह मार्केट से दवा लाने जाएँगे जिससे चुदने के बाद 24 घंटे तक तेज दर्द नहीं होती। मैं भी पहले वो दवा खाती थी, पर अब जरूरत नहीं पड़ती।"
भाभी की पूरी बात सुनते ही मैं मुस्कुराती हुई हाँ में सिर हिला दी।
"ठीक है अब जाओ आराम करो। कल अपने भैया का असली रूप देख लेना कि कैसे और किस तरह बेरहमी से करते हैं।" कहती हुई भाभी हँस पड़ी। मैं भी शर्मा के मुस्कुरा दी और वापस अपने रूम की तरफ चल दी। तभी पता नहीं मुझे क्या सुझी। मैं पीछे से बोली,"भाभी, आज पूरी मत खाना। मेरे वास्ते कल के लिए थोड़ी सी छोड़ देना।"
भाभी सुनते ही हँसती हुई "ठीक है।"कहती हुई चली गई।
रूम में आते ही मैंने अपने सारे कपड़े खोल फेंक पूरी नंगी हो गई। भाभी के मुख से अपने और भैया के बारे में बातें सुन के ही मैं गर्म हो गई थी। मैं बेड पर लेट गई। मैं हाथों से मस्ती में चुची मसलने लगी। मस्ती जब चढ़ने लगी तो मैं अपनी हाथ नीचे ले जाकर चूत पर ज्यों ही रखी, मैं दर्द से चीखते-2 बची। ओफ्फ! अभी भी इतनी तेज दर्द। कैसे शांत करूँ अब इसे। भाभी सच ही कहती थी अगर आज मैं और चुदती तो 3 नहीं 6 दिन तक बेड पर ही पड़ी रहती मैं। फिर तेजी से दिमाग चलाती जल्द ही उपाय खोज ली। श्रृंगार-बॉक्स से ठंडी क्रीम निकाली और पूरी उँगली पर लेप ली। ठंडक की वजह से कुछ तो दर्द कम महसूस होगी। और फिर बेड पर लेट चूत पर उँगली चला कर झड़ने की कोशिश करने लगी। मैं दर्द से कुलबुला रही थी पर किसी तरह उँगली चलाती रही ताकि झड़ सकूँ।
करीब 10 मिनट तक करने के बाद मैं अकड़ने लगी और अगले ही क्षण मेरी चूत पानी छोड़ने लगी। झड़ते हुए मुझे इतनी सुकून मिली कि मैं तुरंत ही नींद के आगोश में चली गई और नंगी ही सो गई।
अगली सुबह मेरी नींद देर से खुली। अंग-अंग टूट रही थी। कल वाली चुदाई की खुमारी अब जा के दूर हुई थी। तभी नजर मेरी नंगी शरीर पर पड़ी पतली सी सफेद चादर पर गई। ओह गॉड! पूरी रात मैं नंगी ही सो रही थी। फिर दिमाग पर जोर देते हुए रात का वाक्या याद करने लगी। रात में झड़ने के बाद तो नंगी ही सो गई थी फिर ये चादर किसने डाल दी। जरूर भाभी आई होगी जगाने। फिर मुझे नंगी ही गहरी नींद में सोती देख चादर डाल दी होगी। मेरे होंठ पर अनायास ही मुस्कान की तरंगेँ रेँगने लगी और मेरी आँखें चादर को देखने लगी।
एक दम पतली सी सूती कपड़ों की थी जिसमें आसानी से आर-पार देखी जा सकती थी। नरम होने के कारण मेरी शरीर से इतनी चिपकी थी कि मानो वो चादर नहीं मेरी त्वचा ही है। मेरी शरीर की हर एक ढाँचा उभर कर दिखाई दे रही थी। मैं अपनी ही शरीर की बनावट देख खो सी गई। कुछ देर बाद मैं उठी और फ्रेश होने के लिए कपड़े ढूँढने लगी। अचानक मेरी शैतानी जाग गई और मन ही मन मुस्काती हुई उसी चादर को ओढते हुए बाथरुम की तरफ चल दी। चादर मेरी जांघ तक ही पहुँच पा रही थी। और जांघ तक ढँकी भी थी तो बस नाम की। मेरी हर अमानत चादर के बाहर बिल्कुल साफ-2 दिखाई पड़ रही थी।
मैं अपने पायल और चूड़ी खनकाती हुई मटक-2 के जा रही थी। अचानक मेरी नजर आँगन के दूसरी तरफ भैया पर नजर गई। भैया नाश्ता कर रहे थे,उनकी नजर मुझ पर पड़ते ही कौर के लिए खोली गई मुँह,खुली ही रह गई। हालाँकि भैया मेरी चूत बजा चुके थे,लेकिन मर्द अगर अपनी पत्नी को ही नए रूप में देख ले तो उसका अंग अंग वासना से तुरंत ही भर जाता है; वैसी ही हालत भैया की इस वक्त थी। मैं तिरछी नजरों से देखते हुए मंद-मंद मुस्कुराती चलती हुई बाथरुम में घुस गई। अंदर मैं इत्मिनान से फ्रेश हुई और अच्छी तरह रगड़ रगड़ कर साथ ही नहा ली।चूत की दर्द अब नहीं के बराबर थी। नहाने के बाद मैं भैया को फिर तड़पाने के ख्याल से मुस्कुराती हुई चादर चुची के उभारोँ पर बाँध ली। चादर शरीर पर पड़ते ही पूरी गीली हो गई। बाहर निकलते ही मैं भैया की तरफ नजर दौड़ाई। ओह , मेरी मंशा पर पूरी तरह पानी फिर गई। ज्यादा देर लगा दी मैंने जिससे भैया मार्केट निकल चुके थे। मन मसोस कर मैं अपने रूम की तरफ बढ़ने लगी। तभी किचन से भाभी की आवाज आई,"सीता, पहले चाय पी लो।बाद में कपड़े पहनना।"
मैं गेट के पास ठिठक के रुक गई। फिर होंठों पर हल्की मुस्कान लाते हुए मुड़ते हुए किचन में आ गई। भाभी मुस्कुराते हुए चाय मेरी तरफ बढ़ा दी।
मैं कप ले चाय पीने लगी। तभी भाभी बोली,"ऐसे तो और भी सुंदर लग रही हो।"
मैं मुस्कुरा के भाभी को थैंक्स बोली। फिर भाभी हँसती हुई बोली,"पता है तुम्हें देखते ही उनका लंड तन के कुतुबमीनार बन गई थी।" मैं भी हँस पड़ी और पूछी,"मार्केट चले गए क्या?"
"हाँ, और जल्द ही आने की कोशिश करेंगे। वैसे एक बार तो चुस के शांत कर दी पर वो तुम्हें याद कर तुरंत ही फिर खड़ा हो गया और उन्हें अपने खड़े लंड में ही जाना पड़ा।" भाभी कहते-2 जोर से हँस दी। मैं भी उनके साथ हँस पड़ी।
"चाय कैसी बनी आज?"भाभी पूछी।
मैं भाभी के ऐसे प्रश्न सुन भौँहेँ सिकुराती हुई बोली,"अच्छी तो है। आपसे कभी किचन में गलती हुई है जो आज पूछ रही हैं।"
"आज चाय में कुछ Extra चीजें डाल दी इसीलिए पूछी।" भाभी होंठों पर कुटील मुस्कान लाती हुई बोली।
मैं एक फिर एक घूँट पी स्वाद मालूम करने की कोशिश की पर नाकाम रही। फिर अपनी भौँहेँ उचका के पूछी,"क्या डाली हो?"
भाभी हँसते हुए बोली,"आज चाय में दूध-शक्कर के साथ उनके लंड का पानी मिलाई हूँ।"और खिलखिला के हँस दी। मैं तो गुस्से से कांप रही थी। फिर बेसिन की तरफ बढ़ते हुए बोली,"रण्डी कहीं की। तुझे और कुछ नहीं सूझती क्या?"
तभी भाभी मुझे पीछे से पकड़ती हुई बोली,"प्लीज सीता, फेंकना मत। मेरी गला अभी भी दर्द कर रही है। इतनी बेरहमी से डाले थे कि पूछो मत। मेरी इस दर्द को यूँ ही बेकार मत करो प्लीज।"
भाभी की याचना करती देख मैं ढीली पड़ गई और सारा गुस्सा रफ्फूचक्कर हो गई। फिर अपने होंठों पर मुस्कान लाई और पलटते हुए बोली,"ऐसी हरकत फिर कभी मत करना वर्ना मैं आपसे कभी नहीं बोलूँगी।"
भाभी हाँ कहती हुई मेरी उभारोँ को चूमते हुए थैंक्स बोल मेरी हाथ की कप को मेरे होंठों से लगा दी। मैं उनकी आँखों में झाँकती लंड के पानी वाली चाय पीने लगी। अब मैं चाय पीते हुए गर्म होने लगी थी। आखिर क्यों नहीं होती; अपने सगे भैया के लंड पानी की चाय भाभी जो पिला रही थी। मैं चाय खत्म की और भाभी को थैंक्स बोल अपने रूम में आ गई।
मैं कपड़े पहनी और भाभी को फ्रेश होने कह बाकी के बचे काम को निपटाने लगी। काम खत्म करने के बाद हम दोनों खाना खा आराम करने चली गई।
दोपहर के 3 बजे करीब मैं और भाभी साथ बैठी इधर-उधर की बातें कर रही थी कि तभी भाभी की फोन बजी। भाभी बात करने लगी। मैं ध्यान से सुन उनकी बातें सुनने लगी। कुछ ही पल में भाभी काफी मायूस सी हो गई। मैं भी कुछ परेशान हो गई भाभी को देख। फिर भाभी फोन रखते हुए बोली,"सीता, आज वो नहीं आएंगें!"
अब मायूस होने की बारी मेरी थी। मेरे सपने टूट कर बिखर रहे थे। कितनी चीजें सोच के रखी थी आज रात के लिए। फिर एक शब्दों में क्यों पूछी।
"वो मामाजी का देहांत हो गया है। वो घर आ रहे थे कि रास्ते में उन्हें फोन आया तो वहीं से लौटना पड़ गया। अब कल शाम तक आएंगें।"
भाभी की बात खत्म होते मैं गुस्से से मन ही मन खूब गाली देने लगी। जो व्यक्ति दुनिया छोड़ चले जाते हैं उन्हें अपशब्द कहना नहीं चाहिए, पर ये चीज मेरी चूत नहीं समझ रही थी तो मैं क्या करती। मैं बिल्कुल ही उदास हो गई थी। भाभी मेरे कंधों पर हाथ रख बोली,"कोई बात नहीं सीता। उदास मत हो अगली बार हम दोनों की ये इच्छा जरूर पूरी होगी।"
ये तो मैं भी जानती थी पर अगली बार मैं कब आऊंगी,खुद नहीं जानती थी। किसी तरह हम दोनों ने शाम में किचन का काम खत्म कर खाना खा सोने चली गई।