नीतू भाभी का कामशास्त्र

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The Romantic
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Re: नीतू भाभी का कामशास्त्र

Unread post by The Romantic » 19 Dec 2014 08:39


अब तो मस्ती ऐसी कि मुझ से सहा नही जा रहा था. अभी तक मैं ने इतने देर तक कभी भी अपने आप को काबू मे नही रख पाया था, ऐसी मस्ती का तो कभी अंदाज़ा भी नही किया था. अब मुझे समझ मे आने लगा कि नीतू भाभी मूज़े क्या सीखाना चाहती हैं. उनकी चूत का हर बार लौदे के उपर आना, और हर बार लौदे को बिल्कुल चूत के गहराई तक लेना, उनका हर ताप मुझे नशे से झकझोड़ देता था.

मेरे होंठ सूख रहे थे. बिल्कुल सूख गये थे. हमारी आँखें अभी भी मिली थी. मैं ने धीरे से कहा, `भाभी…..थोरा आहिस्ते!"

भाभी के भौंह थोरे उपर उठे, और उनकी मुस्कुराहट में अब एक हूर या अप्सरा की सी मादकता थी. वो कुच्छ रुकी, अपनी कमर को सीधा करते आधे लौदे तक चूत को उठाया, मुझे शरारत और प्यार से देखा, और फिर कुच्छ और धीरे से अपनी चक्की चलाने लगी, धीरे, ….धीरे, …..और धीरे से. उनके चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रही. उन्होने फिर अपने चूतड़ को उपर उठाया, बिल्कुल सूपदे के नोक तक, नोक को थोडा अपने चूत के पट्टियों से रगड़ दिया, और फिर अपने पुरानी रफ़्तार से चक्की चल पड़ी. उनकी आँखें मुझसे बातें करती दिखी. कह रही थी: "अब समझे, मज़े कैसे किए जाते हैं!" उनकी चूत जब नीचे मेरे लौदे के जड़ तक आती थी तो वो अपने चूत से लौदे को चारो तरफ घूमाकर रगड़ती थी, पर जब उपर उठती तो अपनी चूत से लौदे को इस तरह जाकड़ लेती की मेरे लौदे को खींचती जाए और छ्चोड़े ही नही. पूरी गहराई तक लौदे को लेती थी, फिर सूपदे के नोक तक उठा लेती थी. मेरी हालत देख कर उनकी मुस्कुराहट रुकती ही नही थी. उनकी चूत मेरे लौदे को निचोड़ती जा रही थी, और उनकी मुस्कुराहट, उनके आँखों की शरारत, मेरे दिमाग़ से हर ख्याल को निचोड़ कर कहीं बाहर फेक चुकी थी. उनका हर थाप लगता था कि एक नयी तरह की मस्ती लाता था, हर थाप में एक नयापन. जैसे समुद्रा के बीच पर हर लहर का अपना ही नयापन होता है, नीतू भाभी की चूत में मेरा लोहे सा तप्ता हुआ लौदा उनकी चुदाई के हर एक लहर का नयापन, हर एक लहर की अपनी ख़ास मस्ती से जन्नत का मज़ा ले रहा था. उनकी रफ़्तार अब कुच्छ बढ़ गयी, वो मुझे गौर से देख रही थी, और मेरा लौदा चूत के अंदर और अकड़ गया, और लगा कि उनकी आँखों ने मुझे कहा हो कि उसे अच्छी तरह से महसूस कर रही हैं….फिर उन्होने आँखों से ही पूचछा कि क्या मैं अब झरने वाला हूँ.

मैं ने धीरे से कहा, "नाहह….अभी नही!"

उनके चेहरे पर खिलकर हँसी आ गई, चुदाई मे लड़कियों की अपनी ख़ास, शरारती हँसी, वो खुशी से बोली, "हान्न्न!" अब मुझे समझ मे आने लगा कि यह भी बहुत ज़रूरी सीख नीतू भाभी ने अभी दी है कि चुदाई में बातें आँखों
से ही होती हैं …..चुदाई का असली मज़ा तभी है जब आँख में आँख बिल्कुल लीन हो जाए! सब से बड़ी बात तो यह कि दुनिया के सभी ख्याल छ्चोड़कर मज़े को पहचाने, उसको समझे, उसको आराम से महसूस करना सीखें. उनके चूत की गहराई में गिरफ़्त मेरा लौदा फिर एक बार ज़ोर्से थिरकने लगा. नीतू भाभी मेरी आँखों में देखकर मुस्कुराने लगी, और इशारे से बताया की ठीक है, वो समझ रही हैं कि मेरी मस्ती किस लेवेल पर पहुँच रही है. अब हम दोनो एक दूसरे के आँखों से ही बातें कर रहे थे, एक दूसरे को बिल्कुल अच्छी तरह से समझ
रहे थे. दो जिस्म, पर ऐसी मस्ती की चुदाई मे दोनो एक होते जा रहे थे!

मेरा लौदा फिर काबू के बाहर होने लगा. ऐसा लगने लगा कि अब और नही रोक पाउन्गा अपने आप को. फिर भी मैं ने कोशिश की, अपने मुँह को सख्ती से बंद किया, दाँत पर दाँत बिठाया, और भाभी की कमर को ज़ोर्से पकड़ने की कोशिश की. भाभी ने मुझे अपने आपको झरने से रोकते हुए देखकर, फिर अपनी मादक अंदाज़ मे मुस्कुराइ, और उनकी आँखें मे उनकी समझदारी, नशा और थोरा थोरा छिनल्पन की मिली-जुली नज़र मुझे तो एक दूसरी दुनिया में ले जा रही थी. मेरी गर्दन कड़ी हो रही थी, और जब भाभी को यह एहसास हो गया कि मैं भी इतनी आसानी से हार नही माननेवाला हूँ, तो उनकी आँखें चमकने लगी, और अब हम दोनो अपनी अलग अलग प्यास को छ्चोड़कर आगे बढ़ चुके थे….हमारी प्यास अब एक हो गयी थी. मेरे चेहरे पर भी अब एक चोदु की मुस्कुरात थी, जैसे कोई पहलवान कुश्ती के मुक़ाबले में दूसरे को चुनौती दे रहा हो, " आ जाओ…,. देखें कि कितनी ताक़त है तुम में."

मैं ने अब अपने पेट को सटका कर बिल्कुल अंदर कर लिया, साँस रोक ली, और पेट को उसी तरह सटा रखा: मेरा लौदा और भी कड़क गया चूत के अंदर, लोहार के हथौरे की तरह गरम और सख़्त, और जैसे ही नीतू भाभी ने महसूस किया कि मेरा लौदा अकड़ने लगा है, पर अभी भी काबू में है, उनकी मुस्कुराहट हँसी मे बदल गयी. कमरे में तो अंधेरा था, पर उस चाँदनी रात की रोशनी में, उनके दाँत खिल रहे थे. चुचियों पर झूलता हुआ उनका "मंगलसूत्रा" चमक रहा था. अब उनकी चूत अच्छी रफ़्तार में चक्की चलाते जा रही थी, उपर से नीचे, नीचे से उपर, और मेरे मुँह से "अहह," सिर्फ़ आहें. कुच्छ मुस्कुराते हुए, कुच्छ शरारती अंदाज़ में, अब उन्होने पूचछा, "क्यूँ…. अब मज़ा आ रहा है? …ह्म?"

"हाआअन्णन्न्… ……!!!!!….ह्म्‍म्म्मम…….और आपको?!!!"

"हाआंणन्न्….. ….. पूच्छो मत!!! ………… असली चुदाई का मज़ा!!!….. ह्म्‍म्म्मम!"

इस लम्हे मे लगा कि वाक़ई हम दोनो एक हो गये हैं, हमारे बदन जुड़े हुए थे, हमारी ख्वाहिश एक थी, एक ही प्यास. हमारे आँखों में एक ही चाह थी! नीतू भाभी ने अब अपने मुँह में दाँतों को कड़ा कर लिया और लौदे को चूत के बिल्कुल अंदर दबोच लिया, उनकी जंघें मेरे कमर को बिल्कुल जाकड़ चुकी थी. उनकी आँखें बता रही थी की उनको महसूस हो रहा है कि झरने से पहले मेरा लौदा अब बिल्कुल फूल कर तैयार है, सख़्त, बिल्कुल अकड़ कर उनके बच्चेदनि के मुँह पर सूपड़ा
तैयार है फुहारा छ्चोड़ने के लिए. मेरे मुँह से "आअरर्रघह" की आवाज़ निकली और मेरा लौदा झरने लगा, और भाभी की थाप अब चक्की नही, बिल्कुल सीधी और आहिस्ते हो गयी, सूपदे से लेकर जड़ तक, फिर जड़ से सूपड़ा तक. मई झाड़ता गया, झाड़ता गया,….नीतू भाभी की चूत भरती गयी, और नीतू भाभी मेरी तरफ मुस्कुराते हुए अपने रस भरी चूत से मुझे निचोड़ती रही, निचोड़ती रही, बार बार. लग रहा था जैसे मेरे अंदर अब एक भी बूँद नही बचेगी, भाभी की चूत हर बूँद को निचोड़ कर छ्चोड़ेगी. मेरी आँखें बंद हो गयी थी, मेरा लौदा फूला हुआ तो अभी भी था, पर उसकी गर्मी अब भाभी की चूत में कुच्छ कम होती जा रही थी….भाभी अभी भी आहिस्ते से, हौले हौले उसको निचोड़ रही थी.

"आआआहह…..," बस मैं इतना ही कह पाया. लगा जैसे मुझ में एक भी बूँद नही बची है, जैसे मेरे बदन में एक हड्डी नही, दिमाग़ में एक भी ख्याल नही. बिल्कुल खलाश. …..और नीतू भाभी के सिखाए हुए चुदाई के मस्ती
का एहसास!

उस रात मैं नीतू भाभी को देखता रहा. हम एक पार्टी से अभी लौटे थे. रात काफ़ी हो रही थी. भाभी की सहेली के घर एक बच्चे के बिर्थडे के मौके पर उनके जान-पहचान के कुच्छ दोस्तों की पार्टी थी. कुच्छ अकेले मर्द, कुच्छ अकेली औरतें, और कुच्छ कपल्स. सभी कोई आछे नौकरियों में थे. भाभी ने उन सभी लोगों से मेरा परिचय कराया. उन लोगों से मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई. और वे लोग
भी मुझसे बहुत प्यार से मिले.

पार्टी से लौटने के बाद भाभी अपने कपड़े उतार रही थी. अपनी खूबसूरत रेशमी सारी को उन्होने उतार कर ठीक से अलमारी में रखा. फिर अपने रेशमी ब्लाउस को. अब वो सिर्फ़ अपनी ब्रा और पेटिकोट मे. पार्टी वाला मेक-अप, बेहद सुंदर जोड़ा, मन
को बिल्कुल मोहने वाला टीका, लिपस्टिक, और बेली के माला के साथ बँधा हुआ जूड़ा.

मेरा लौदा कसक रहा था. मैं ने कपड़े पहले ही उतार लिए थे, और सिर्फ़ अपने अंडरवेर मे था. पार्टी मे 6-7 बहुत खूबसूरत औरतें थी, और भाभी की एक सहेली तो मुझे बहुत ही नमकीन लगी थी, पर उन सारी औरतों में मेरी नीतू भाभी किसी से कम नही लगी. भाभी अभी पार्टी की बात कर रही थी. अब अपनी अच्छी वाली लेस ब्रा के हुक्स को अपने हाथ पीछे कर के खोल रही थी. जैसे ही हुक्स खुले, उनकी मस्ती भरी चुचियाँ आज़ाद होकर खिलने लगी, और अब मैं अपने आपको काबू मे नही रख सका. कमरे में सिर्फ़ बेडसाइड लॅंप जल रही थी, मैं ने जाकर
उसको बंद कर दिया, और सिर्फ़ खिड़कियों से आती रोशनी में उनको देखता रहा.

भाभी अचानक लाइट बंद हो जाने कुच्छ चौंकी, पर तब तक मैं उनकी चुचियों के पास अपने मुँह को नीचा करके एक निपल को मुँह मे लेकर चाटने लगा. दूसरा निपल मेरे हाथ में, उसको सहला रहा था, धीरे धीरे मसल रहा था. दोनो निपल्स को मैं बारी बारी चूसने लगा.

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Re: नीतू भाभी का कामशास्त्र

Unread post by The Romantic » 19 Dec 2014 08:40


भाभी हंसते हुए बोली, "अच्छा?!! …… लगता है कि पार्टी में तुमको खूब मज़ा आया ……. खूब गरम हो गये ……… क्यूँ?" वो अपनी चुचि को थोरा उठाकर मेरे मुँह में दे रही थी, और मैं धीरे धीरे, प्यार से चूस रहा था. मैं सर
उठाकर उनके छाती और गर्दन और कंधों पर चूमने लगा, और अपने हाथों में उनकी चुचियों को दबाता रहा. भाभी भी आहें भरने लगी, पर मैं तो उनके सुरहिदार गर्दन को हर जगह चूमता रहा, चाटते रहा. उनके बदन की अपनी खुसबू, और उसके उपर चंदन की खूबसूरत इत्र की खुसबू से मैं मस्ती मे आ रहा था. मैं ने उनकी तरफ देखा और फिर चूमने लगा, इस बार उनके कान को. भाभी खिलखिलती हुई बोली, " ह्म ……. वाहह ……. बहुत अच्छी तरह से चूम रहे हो …… … लगता है वाक़ई तुम बहुत गरम हो गये……. क्यूँ?!" भाभी
की आँखों में फिर वोही शरारत वाली मुस्कुराहट.

मैं ने उनको कंधो से पकड़े हुए उनको बिस्तर पर लिटा दिया. उनके पैर नीचे फर्श को छ्छू रहे थे. उन्होने ने अपने पैर फैलाए रखे, और मुस्कुराती रही. मैने उनपने अंडरवेर उतारा, और उनके पेटिकोट को उपर खींचकर कमर के पास
लपेट कर छ्चोड़ दिया. मेरा लौदा खड़ा हो रहा था, पर अभी उसकी सख्ती बहुत बढ़ने वाली थी. उनके टाँगों के बीच मैं घुटनों पर बैठ गया. अब भाभी नेअपने घुटनों को उपर उठाकर अपनी चूत को खोल दिया. मैं ने गर्दन झुका कर अपना
मुँह उनकी चूत पर रख दिया, उंगलियों से उनकी चूत को प्यार से खोला, और मुँह में कुच्छ थूक बनाते हुए, उनकी चूत के पंखुरे को उपर से नीचे चाता, अच्छी तरह से थूक लगाते हुए, फिर नीचे से उपर, दोनो पंखुरीओं को, और उनके दाने तक जाकर रुका.

भाभी का बदन मस्ती से थोड़ा सिहर उठा, और वो बोली, "तो आज तुम इधर उधर की बातों में बिल्कुल वक़्त नही बर्बाद करना चाहते हो….. क्या? …… बिल्कुल पॉइंट पर आ गये ….. हनन्न?" मैं उसी तरह उनकी चूत को चट रहा था, आहिस्ते से, थूक को
जीभ से ही चारो तरफ मलते हुए. चूत के चारो तरफ जीभ को घुमाता रहा, एक बार चूत के कुच्छ अंदर, फिर चूत के उपर, धीरे धीरे चूत का स्वाद लेता रहा. भाभी अपनी "आहह", "एम्म्म", "ऊऊहह" से बता रही थी मेरे चाटने का उनपर
असर हो रहा था.

पता नही कैसे, पर शायद मेरी भूखी नज़रें और मेरे चाटने और चूसने से नीतू भाभी बहुत जल्दी गरम हो गयी. मैं ने सर उठाकर देखा तो उनकी खूबसूरत चूत झांतों के बीच फूल गयी थी, थूक और अपने रस से चमकती हुई, अपने
फूली हुए पत्तियों को आधी खिली हुई फूल के तरह. कुच्छ ही देर के चूसने के बाद उनका दाना बाहर निकल चुका था, फूलकर तैयार. भाभी अपने आपको बिल्कुल ढीली छ्चोड़कर, घुटनों को उसी तरह उठाए हुए, मुझे देख रही थी. मैं ने अब
अपनी जीभ को काफ़ी बाहर निकालकर, उंगलियों से उनके चूत को फैलाए हुए, उनके दाने पर जीभ के नोक को घुमाने लगा, चाटने लगा. वो धीरे से, पर पूरी मज़े लेती हुई बोली, "आहह!", और अपने दाँतों को कासके बंद कर लिया. उन्होने
देखा कि मेरी नज़र उनके चेहरे पर है. उनकी पलकें अब बंद हो गयी, उनकी गर्दन तन गयी, अपनी जांघों को उन्होने और भी फैला दिया, उनकी चूत और भी खुल गयी थी, और मेरे अपने कंधों और गर्दन पर भाभी के जकड़ते जांघों से मैं सॉफ महसूस कर था कि भाभी के में कितनी गर्मी आ गयी है. मैं ने अब उनके दाने को चाटना छ्चोड़कर, उनके चूत के चारो तरफ उसी तरह से जीभ को नोकिला बनाकर घूमता रहा. उपर से नीचे नही, खुली हुई, फूली हुई चूत के बाहरी पट्टी के
चारो तरफ, फिर उसी तरह से चूत के अंदर की पत्तियॉं के चारो तरफ, चारो तरफ जीभ के नोक से थूक मालता रहा, चारो तरफ पर दाने को नही!. इसी तरह कुच्छ देर तक जीभ घुमाने के बाद, मैं ने देखा कि भाभी उतावली हो रही हैं अपनी चूत के दाने को चटवाने के लिए. वो अपने चूतड़ को उठाने की कोशिश कर रही थी कि दाना मेरी जीभ से रगड़ा खाए, पर मई भी उनको इतनी जल्दी छ्चोड़नेवाला नही था! चारो तरफ घूम आकर, छत कर, पर अब मई ने फिर एक बार दाने को जीभ के नोक से चटा, धीरे धीरे, और फिर दाने के चारो तरफ उसी तह से घूमने लगा.

भाभी को कुच्छ राहत मिली. बॉई, "अहह ……..वाअहह!"

अब मैने भाभी की चूत पर अपना मुँह ठीक से डाल दिया. और उनके दाने को उसी तरह से चूसने लगा जैसे कि चुचि के घुंडी चूस्ते हैं. अ पने होंठों को गीला करके उनको भाभी के फूले हुए दाने के उपर डालकर दाने को अंदर ले लेता, फिर जीभ से चट कर उसके बाहर आ जाता. भाभी की जंघें अब मेरे कंधों पर कड़क होने लगी. भाभी ने कुच्छ अस्चर्य से "ओह्ह्ह?!!" किया, और उन्होने अपने सर को ढीला छ्चोड़कर अपनी चूतड़ को अब उठाने लगी. उनकी साँस तेज हो गयी. पर मैं रुका नही. अपने होंठों को उसी तरह से दाने को प्यार से चट रहा था, उसके चारो तरफ जीभ घुमाता रहा, एक अच्छे रफ़्तार से. भाभी की चूत इस तरह मेरे मुँह में रगड़ रही थी कि मैं उसके हर भाग को एक हद तक रगड़ रहा था. उनकी चूतड़ अब कुच्छ घूमने लगी थी, पर मेरा मुँह उन की चूत से बिल्कुल सटा हुआ, उसका दाना मेरे होंठों के बीच, मेरे जीभ के नोक पर सटा हुआ. भाभी अब ज़ोर्से सिसकारी लेते हुए बोली, " हाई दैयाआआ, …………..म्‍म्म्मह ………….ऊऊहह ……कितना मज़ा दे रहे हो……. ऊऊहह!" मुझे लग गया कि अब भाभी कुच्छ देर में झड़ने लगेगी. उनका पूरा बदन सिहरने लगा था, जांघें और भी खुलकर मुझको ज़ोर्से जाकड़ ली थी, और हू अपने कमर को इस तरह घुमाने लगी जैसे
मेरे मुँह को चोद रही हो. मैं ने चूसना जड़ी रखा, उसी तरह, जिस से की रफ़्तार ना टूटे, और कुच्छ ही देर में उनकी साँस, उनके जाँघ और कमर सॉफ बता रहे थे कि वो काबू से बाहर हो रही है. अब वो ठहड़ने वाली नही. मैं ने एक उपाय सोचा.

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Re: नीतू भाभी का कामशास्त्र

Unread post by The Romantic » 19 Dec 2014 08:41


भाभी को मस्ती की उस उँचाई पर लाने के बाद, मैं रुक गया. बिल्कुल रुक गया. भाभी मज़े में अभी भी छॅट्पाटा रही थी. मैं उठा. कमरे में आती रोशनी मे मेरे लौदा का सूपड़ा चमक रहा था. मैं उठकर भाभी के मुँह के पास अपने कड़े लोड को हिलाने लगा, फिर उनके गुलाबी होंठ पर सूपदे को रगड़ने लगा. भाभी अब शरारती अंदाज़ से मुझे देखती हुई, मेरी आँखों मे देखती हुई, पूछि, "हान्न्न….?!!" वो हाथ पीछे करके अपनी एक तकिया (पिल्लो) को अपने सर के नीचे रख लिया, जिस से उनकी गर्दन को कुच्छ आराम मिले. मेरी तरफ मुस्कुर्ते हुए उन्होने अपने मुँह के अंदर जीभ को थूक से लेपकर मेरे लौदे को आहिस्ते से चटकार गीला करने लगी. वो अपने मुँह से बार बार थूक बनाकर निकलती और फिर प्पोरे लौदे को चूमते हुए, उस पर थूक मालती जा रही थी. फिर सारे थूक को अपनी जीभ से प्यार से चाटने लगी, पूरे लौदे में मले हुए थूक को बिल्कुल साफा कर दिया उन्होने जैसे चॉक्लेट आइस क्रीम के चम्मच को हम चटकार आइस क्रीम के हर बूँद का हम मज़ा लेते हैं. देखनेवाले कोई नही बता सकते कि अभी अभी मेरा लौदा थूक में बिल्कुल डुबोया हुआ था. उन्होने फिर अपने मुँह में थूक बनाकर मेरे लौदे के सूपदे को गीला किया और फिर उसी तरह से चाटना. मुँह मे
लेकर वो मेरे लौदे को इस तरह चाट और चूस रही थी कि वो और भी सख़्त होता गया. मेरा लौदा अब बेहद सख़्त और बेहद गरम! मेरे मुँह से आवाज़ निकलने लगी, हाआंणन्न् …. भाभी ….इसी तरह …….हाआअन्णन्न्!" मेरी मस्ती बहुत ज़ोर्से बढ़ती जा रही थी, अपनी हाथों को ज़ोर्से मुट्ठी बनाए हुए, मैं ने कहा, "
हाआंन्न …….चूऊसो …… हाआन्न …..इसी तरह …. चूवसू…..!"

अब तकिये पर अपने सर को थोड़ा ठीक से सेट करते हुए, भाभी ने अपना मुँह आगे किया, और मेरे पूरे लौदे को अपने मुँह में ले लिया. मुँह की अपनी गर्मी और उसपर गरम थूक, और सबसे बढ़कर भाभी की कॅमाल की जीभ ! थूक मे डुबोया मेरा लौदा अब भाभी के जीभ में बिल्कुल लिपटा हुआ था, और भाभी अपने मुँह को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगी. मेरे पूरे लौदे को चाटती रही, चुस्ती रही, और फिर मेरी चेहरे पर नज़र डाले हुए ही उन्होने सूपदे को ज़ोर्से चुस्कर छ्चोड़ दिया. मेरी मस्ती का पूच्हिए मत! अब वो सिर्फ़ सूपदे को मुँह में लेकर आपने होंठ के अंदर वाले तरफ से चाट रही थी. मेरा लौदा थिरक रहा था, कभी उपर, कभी नीचे, मस्ती में चूर.

`ह्म्‍म्म्म," वो आह भरी. उनके नज़र में फिर वोही शरारत, मेरी तरफ मुस्कुराते हुए बोली, " है…. बहुत मज़ा आ रहा है …..!"

मैं ने धीरे से कहा, " हाआंणन्न् ….. चूसीए ना …….हान्न्न ….. बहुत मज़ा देती हैं आप!" उन्होने मेरी तरफ गौर से देखा, और मेरे लौदे को फिर से मुँह में ले लिया. उनको सर आहिस्ते से आगे पीछे होता रहा, मेरे लौदे को हौले हौले चूस्ते हुए, थूक मलते हुए, चाटते हुए. उनकी गर्दन बहुत नही घूम रही थी, बस एक या 2 इंच, पर उनके होंठ खुलकर अपने उल्टे साइड से मेरे सूपड़ा को थूक मल कर मज़ा दे रहे थे. और साथ में उनकी जीभ मेरे सूपदे के चीड़ के नीचे
की तरफ़ दबाती रही, चाटती रही.

मैं ने एक गहरी साँस ली, उनकी तरफ़ देखता हुआ. फिर से एक बार यह ख्याल आया की नीतू भाभी वाक़ई में लौदे को चुस्ति या चाटती नही है. ये तो लौदे को अपने मुँह से चोदती हैं, ये तो चोदने का पूरा मज़ा अपने होंठ और जीभ से ही दे देती हैं. वो जानती हैं कि किस तरह एक औरत के मन को बिल्कुल एक प्यारी, चुस्ती हुई चूत बनाई जा सकती है, और जल्दी ही मेरा सूपड़ा उनके मुँह के अंदर उसके उपर वाले भाग को थिरक कर रगड़ने लगा.

मैं समझ गया कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो मैं जल्दी ही झड़ने लगूंगा. मैं ने धीरे से अपने लौदे को उनके मुँह से निकाल लिया, मेरे लौदे और उनके होंठ और जीभ पर मले थूक के कारण लोड्‍ा निकलते ही "फच" की आवाज़ निकली.

उनकी आँखों में भोखी नज़रों से देखते हुए, मैं अब नीचे घिसकने लगा, अपने पैर सीधे किए, और भाभी के उपर लेटने लगा. भाभी के चेहरे पर एक ताज़्ज़ूब , पर जब मैं अपने हाथों के बल उठा और अपने लौदे के सूपड़ा को उनके चूत
के मुँह पर निशाना लगाने लगा, तो उनकी ताज़्ज़ूब खुशी में बदल गयी. उनकी आहहें अभी चलती रही, साँसें कुच्छ फूली ही रही, और उनकी आँखें मुझे याद दिला रही थी कि अभी भी वो झड़ने के करीब ही हैं, झड़ी नही. उनकी आँखें मुझे यह बार-बार याद दिलाना चाह रही थी. मेरा सूपड़ा उनके फूले हुए, गीली पट्टियों को रगड़ता रहा, और उनकी जंघें बिल्कुल खुल गयी. उन्होने अपने को कुच्छ उपर उठा दिया, और चूतड़ को हल्के से घूमते हुए, उनके चूत का मुँह मेरे सूपदे को अब चूम रहा था, मेरे सूपदे को चारो तरफ घूमते हुए रगड़ रहा था. मैं थोड़ा आगे खिसका. उनकी आँखों में अब चमक आ गयी, मैं ने भी एक लंबे आआआहह के साथ अपना लौदा नीतू भाभी की मखमली चूत के गहराई में घुसेड़ता गया, बिल्कुल अंदर तक. अंदर पहुँचकर, मेरे सूपदे ने भाभी के चूत के एक ख़ास जगह को अपना सर उठाते हुए, कुच्छ अकड़ कर "नमस्ते" किया, और भाभी की चूत ने भी अपनी सिकास्ती को और भी सिंकुर्ते हुए जवाब में "नमस्ते" किए. मेरे लोड्‍े ने अब धीरे रफ़्तार से ही, पर लंबे, और कुच्छ जोरदार धक्के लगाने शुरू किए. मैं ने अपने गांद को थोड़ा सिंकुर लिया, और जब लौदा बिल्कुल अंदर जाता तो
भाभी और मेरे पेट बिल्कुल मिले होते, पर बराबर एक रफ़्तार से अब मैं भाभी की चूत में लौदा पेलते जा रहा था.

भाभी के चेहरे पर खुशी की चमक थी. अपनी आँखों से मुझे उकसाती हुई, हू बोली, " चोदो …मुझे…… ज़ोर्से … चोदो… इसी तरह… हाआंणन्न्!"

भाभी मेरे एक-एक धक्के का जवाब अपने चूतड़ को घुमा घूमकर मेरे लॉड के जड़ तक चूत के मुँह को उठाकर देती रही. मैं ने उनके चेहरे को देखा, उनके चूत का कुच्छ सिकुरना महसूस किया. मैने अपनने पेट और गॅंड को ज़ोर्से कसने की
कोशिश की, और अब धक्के देते हुए कुच्छ आगे की तरफ घिसकता रहा. आइ से हर धक्के में उनके चूत के दाने को मेरा लौदा रगड़ देता था, घुसेड़ते हुए भी और निकलते हुए भी, और नीतू भाभी के चेहरे पर मुस्कुराहट खिलने लगी.

मैं ने शरती अंदाज़ में पूचछा, "क्यूँ?…. झड़नेवाली हैं?"

भाभी ने उसी मुस्कुराहट के साथ जल्दी जल्दी सर हिलाया, उनकी आँखें मेरे चेहरे पर टिकी रही, उनकी साँसें वैसी ही चढ़ि रही. अब उनकी आँखें बिल्कुल खुल गयी. और जाइए वो किसी नशे में हों, एन्होने अपने होंठ खोले और कुच्छ कहने की
कोशिश की, पर कुच्छ भी बोल नही सकी. एक गहरी साँस लेते हुए वो अपनी चूत के गहराई में मेरे लौदे को जकड़ी हुई थी. उनकी आँखों में सिर्फ़ चाहत, और वे मेरे आँखों पर टिकी रही. अपने नाख़ून से वे मेरे कंधे को थोड़ी खरॉच रही थी, और उनके बाँहों से मेरे कमर की जाकड़ भी कुच्छ जोरदार हो रही थी. उनको मैं चोद्ते रहा, पर मैं ने अपने बायें हाथ के बल कुच्छ उठकर अपने दाहिने हाथ को नीतू भाभी के कमर के नीचे ले जाकर, उनकी पतली कमर और पीठ के बीच उनको ज़ोर्से पकड़ लिया. मेरी बाँहों और जाँघ और लौदे में उस पार्टी के वक़्त से ही इतनी गर्मी थी नीतू भाभी को बिकुल ही नही छ्चोड़ने का दिल कर रहा था, उनके चूत और चुचियाँ और जांघों को बिल्कुल करीब रखा. उनके झांग में थिरकन हो रही थी, और मैं ने पूचछा, " झड़ेंगी अब?…….. झड़ेंगी?!" उनकी मुँह खुली हुई थी, आँखों में चमक, और वो कुच्छ जवाब तो नही दे पाई, पर उनका कमर, उनके हाथ अकड़ गये! वो अपने दाने को मेरे लौदा मे ज़ोर ज़ोर्से रगड़ती रही. और अब सिसकारी लेती रही, "आआहह …….. हाआआन्न्‍ननणणन्.. ……..मैं झाड़ रही
हूऊंणन्न् ……हाआंन्न…….. उउउइईईईईईई… दैया….रे…..ददाययय्या……..आआआहह … हहााईयइ ….. दैया ….. !!!" मुझे मज़ा तो बहुत आ रहा था, पर मैं अपने आप को बिल्कुल काबू में रखने की कोशिश करता रहा. उनकी आकड़ी हुआ गर्दन और कड़ी हुई कमर देखकर मैं बहुत खुश था, भाभी वाक़ई में बहुत मस्त में थी, और उनको कहता रहा, " और झाड़ीए ………. इसी तरह से ……..मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है……हाआंन्‍णणन्!" उनकी चूत का जाकड़ और बढ़ गया था, और मुँह से कोई सॉफ बात नही, सिर्फ़ "ऊऊओउउउइईईईईई …….. आआआहह ………. डैय्य्याआआआआआ …….डायय्या रे दैययय्याअ ………..ऊऊओउुउउइईईई….. !!!!!" अब मैं ने अपनी चुदाई की रफ़्तार कुच्छ कम कर दी, ताकि भाभी का मज़ा कुच्छ देरी तक रहे, पर पेलता रहा बिल्कुल अंदर तक. कुच्छ देर में भाभी का पूरा बदन अकड़ कर काँपने लगा, जैसे उनको अपने बदन पर कोई काबू नही हो. उनकी आँखें तो खुली थी, पर उन में खुशी ऐसी कि वो कुच्छ और नही देख सकती थी. जब उनके गर्दन की अकड़न कुच्छ कम हुआ, तो वो अपने सर को आगे करके मुझे अपने बाँहों में ज़ोर्से भींच ली, और मेरे कंधे पर अपने मुँह को खोल कर धीरे धीरे दाँत काटने लगी, चूमती रही, उनका एक हाथ मेरे गाल को सहलाता रहा. भाभी ने बहुत कोशिश करके मुझसे कहा, " आओ तुम भी …… तुम भी मेरे अंदर झड़ो ….. हाअन्न्न्न!"

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