रेल यात्रा compleet

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raj..
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Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: रेल यात्रा

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 21:35



रानी बेचारी करती भी तो क्या करती। फिर से चुप हो गयी!
आशीष ने पैन्ट में से मोबाइल निकाला और उसको चालू करके उससे रोशनी कर ली।
आशीष ने देखा रानी डर से काँप सी रही है और उसके गाल गीले हो चुके थे।
थोड़ी देर पहले रोने की वजह से।
आशीष ने परवाह न की। वो रोशनी की किरण नीचे करता गया। गर्दन से नीचे
रोशनी पड़ते ही आशीष बेकाबू होना शुरू हो गया। जो उसकी जाँघों तक जाते
जाते पागलपन में बदल गया।
आशीष ने देखा रानी की चूचियां और उनके बीच की घाटी जबरदस्त सेक्सी लग रहे
थे। चूचियों के ऊपर निप्पल मनो भूरे रंग के मोती चिपके हुए हो। चुचियों
पर हाथ फेरते हुए बहुत अधिक कोमलता का अहसास हुआ। उसका पेट उसकी छातियों
को देखते हुए काफी कमसिन था। उसने रानी को घुमा दिया। गांड के कटाव को
देखते ही उससे रहा न गया और उन पर हलके से काट खाया।
रानी सिसक कर उसकी तरफ मुढ़ गयी। रोशनी उसकी चूत पर पड़ी। चूत बहुत छोटी
सी थी। छोटी-छोटी फांक और एक पतली सी दरार। आशीष को यकीन नहीं हो रहा था
की उसमें उसकी उंगली चली गयी थी। उसने फिर से करके देखा। उंगली सुर से
अन्दर चली गयी। चूत के हलके हलके बाल उत्तेजना से खड़े हो गए। चूत की
फांकों ने उंगली को अपने भीतर दबोच लिया। उंगली पर उन फाकों का कसाव आशीष
साफ़ महसूस कर रहा था!
उसने रानी को निचली सीट पर लिटा दिया। और दूसरी एकल सीट को एक तरफ खींच
लिया। रानी की गांड हवा में थी। वो कुछ न बोली!
आशीष ने अपनी पैंट उतार फैंकी। और रानी की टांगो को फैलाकर एक दूसरी से
अलग किया। उसने रोशनी करके देखा। चूत की फांके चौड़ी हो गयी थी!
आशीष का दिल तो चाहता था उसको जी भर कर चाटे। पर देर हो रही थी। और आशीष
का बैग भी तो होटल में ही था। उसने लंड को कच्छे से बहार निकाला। वो तो
पहले ही तैयार था। उसकी चूत की सुरंग की सफाई करके चौड़ी करने के लिए।
आशीष ने चूत पर थूक-थूक कर उसको नहला सा दिया। फिर अपने लंड की मुंडी को
थूक से चिकना किया। और चूत पर रखकर जोर से दबा दिया। एक ही झटके में लंड
की टोपी चूत में जाकर बुरी तरह फंस गयी। रानी ने जोर की चीख मारी। आशीष
ने डर कर बाहर निकालने की कोशिश की पर रानी के चुतड़ साथ ही उठ रहे थे।
उसको निकलने में भी तकलीफ हो रही थी। उसका सारा शरीर पसीने से भीग गया।
पर वो कुछ नहीं बोली। उसको अपने बापू के पास जाना था।
आशीष का भी बुरा हाल था। उसने रानी को डराया जरूर था पर उसको लगता था की
रानी उसका लंड जाते ही सब कुछ भूल जाएगी। ऐसा सोचते हुए लंड नरम पड़ गया
और अपने आप बहार निकल आया।

रानी की चूत तड़प सी उठी। पर वो कुछ न बोली। हाँ उसको मजा तो आया था। पर
लंड निकलने पर।

जाने क्या सोचकर आशीष ने उसको कपड़े डालने को कह दिया! उसने झट से ब्रा और
कमीज डाला और अपनी कच्छी ढूँढने लगी। उससे डर लग रहा था पूछते हुए। उसने
पूछा ही नहीं और ऐसे ही सलवार डाल ली। जिसके नीचे से रास्ता था।

आशीष भी अब जल्दी में लग रहा था- "जल्दी चलो!"

वो तेज़ी से होटल की और चल पड़े!

रानी मन ही मन सोच रही थी की बापू के पास जाते ही इस हरामजादे की सारी
करतूत बताउंगी।

पर जब वो होटल पहुंचे तो झटका सा लगा। न बापू मिला और न ही कविता!

आशीष ने बैरे को बुलाया- "वो कहाँ हैं। जो अभी यहाँ बैठे थे?"

" वो तो जनाब आपके जाने के पांच मिनट बाद ही खाना खाए बगैर निकल गए थे! "
बैरे ने कहा

raj..
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Re: रेल यात्रा

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 21:35



रानी भी परेशान थी- "अब क्या करेंगे?"
"करेंगे क्या उनको ढूंढेगे!" आशीष ने बढ़बढ़ाते हुए कहा।
आशीष को याद आया उसके सारे कपड़े बैग में ही चले गए! अच्छा हुआ उसने छोटे
बैग में अपना पर्स और मोबाइल रखकर अपने पास ही रख लिया था।
वो स्टेशन तक देखकर आये। पर उन्हें बापू और बेटी में से कोई न दिखाई दिया।
सुबह हो चुकी थी पर उन दोनों का कोई पता न चला। थक हार कर उन्होंने चाय
पी और मार्केट की तरफ चले गए!
एक गारमेंट्स की दुकान पर पहुँचकर आशीष ने देखा। रानी एक पुतले पर टंगी
ड्रेस को गौर से देख रही है।
"क्या देख रही हो?"
"कुछ नहीं!"
"ड्रेस चाहिए क्या?"
रानी ने अपनी सलवार को देखा फिर बोली "नहीं। "
"चलो! " और वो रानी को अन्दर ले गया।
रानी जब दुकान से बहार निकली तो शहर की मस्त लौंडिया लग रही थी। सेक्सी!
रानी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
आशीष ने उसको फिर से डराकर होटल में ले जाकर चोदने की सोची।
"रानी!"
"हम्म!"
"अगर तुम्हारे बापू और कविता न मिले तो!"
"मैं तो चाहती हूँ वो मर जायें।" रानी कड़वा मुंह करके बोली।
आशीष उसको देखता ही रह गया।।
"ये क्या कह रही हो तुम? " आशीष ने हैरानी से पूछा।
रानी कुछ न बोली। एक बार आशीष की और देखा और बोली- "ट्रेन कितने बजे की है।?"
आशीष ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, "रानी तुम वो क्या कह रही थी।
अपने बापू के बारे में...?"
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जबकि दूसरी तरफ़-
बूढ़ा और कविता कहीं कमरे में नंगे लेटे हुए थे।

"अब क्या करें? " बूढ़े ने कविता की चूची भीचते हुए कहा।

"करें क्या? चलो स्टेशन! " कविता उसके लंड को खड़ा करने की कोशिश कर रही
थी- "बैग में तो कुछ मिला नहीं।"

"उसने पुलिस बुला ली होगी तो!" बूढ़ा बोला।

"अब जाना तो पड़ेगा ही। रानी को तो लाना ही है। " कविता ने जवाब दिया।

उन्होंने अपने कपड़े पहने और स्टेशन के लिए निकल गए!
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जबकि इधर-

उधर आशीष के चेहरे की हवाईयां उड़ रही थी- "ये क्या कह रही हो तुम?"

"सच कह रही हूँ, किसी को बताना नहीं प्लीज..." रानी ने भोलेपन से कहा।

फिर तुम इनके पास कैसे आई...?" आशीष का धैर्य जवाब दे गया था।

"ये मुझे खरीद कर लाये हैं। दिल्ली से!" रानी आशीष पर कुछ ज्यादा ही
विश्वास कर बैठी थी- " 50,000 में।"

"तो तुम दिल्ली की हो!" आशीष को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

"नहीं। वेस्ट बंगाल की!" रानी ने उसकी जानकारी और बढाई।

"वहां से दिल्ली कैसे आई!?" आशीष की उत्सुकता बढती जा रही थी!

"राजकुमार भैया लाये थे!"

"घरवालों ने भेज दिया?"

"हाँ!" वह गाँव से और भी लड़कियां लाता है।
"क्या काम करवाता है "
"मुझे क्या पता। कहा तो यही था। की कोठियों में काम करवाएँगे। बर्तन सफाई वगैरह!"
"फिर घरवालों ने उस पर विश्वास कैसे कर लिया??"
रानी- वह सभी लड़कियों के घरवालों को हजार रुपैये महीने के भेजता है!
आशीष- पर उसने तो तुम्हे बेच दिया है। अब वो रुपैये कब तक देगा।
रानी- वो हजार रुपैये महीना देंगे! मैंने इनकी बात सुनी थी.....50,000 के अलावा।
आशीष- तो तुम्हे सच में नहीं पता ये तुम्हारा क्या करेंगे?
रानी- नहीं।
"तुम्हारे साथ किसी ने कभी ऐसा वैसा किया है ", आशीष ने पूछा
रानी- कैसा वैसा?
आशीष को गुस्सा आ गया - "तेरी चूत मारी है कभी किसी ने।
रानी- चूत कैसे मारते हैं।
आशीष- हे भगवान! जैसे मैंने मारी थी रेल में।
रानी- हाँ!
आशीष- किसने?
रानी- "तुमने और...." फिर गुस्से से बोली- "उस काले ने.."
आशीष उसकी मासूमियत पर हंस पड़ा। ये चूत पर लंड रखने को ही चूत मारना कह रही है।
आशीष- तू इन को बापू और भाभीजी क्यूँ कह रही थी।
रानी- इन्होने ही समझाया था।
आशीष- अच्छा ये बता। जैसे मैंने तेरी चूत में लंड फंसाया था। अभी स्टेशन
के पास। समझी!
रानी- हाँ। मेरी कच्छी नम हो गयी। उसने खुली हुयी टांगो को भीच लिया।
आशीष- मैं क्या पूछ रहा हूँ पागल!
रानी- क्या?
आशीष- किसी ने ऐसे पूरा लंड दिया है कभी तेरी चूत में?
रानी- "नहीं, तुम मुझे कच्छी और दिलवा देते। इसमें हवा लग रही है।" कह कर
वो हंसने लगी।
आशीष- दिलवा दूंगा। पर पहले ये बता अगर तेरी चूत मुंबई में रोज 3-3 बार
लंड लेगी तो तुझसे सहन हो जायेगा?
रानी- "क्यूँ देगा कोई?" फिर धीरे से बोली- "चूत में लंड..." और फिर हंसने लगी!
आशीष- अगर कोई देगा तो ले सकती हो।
रानी ने डरकर अपनी चूत को कस कर पकड़ लिया - "नहीं "

तभी वो बूढ़ा और कविता उन दोनों को सामने से आते दिखाई दिए।

raj..
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Re: रेल यात्रा

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 21:37



रानी- उनको मत बताना कुछ भी। उन्होंने कहा है किसी को भी बताया तो जान से
मार देंगे!

बूढ़े ने जब रानी को नए कपड़ों में देखा तो वो शक से आशीष की और देखने लगा।

रानी- बापू, मेरे कपड़े गंदे हो गए थे। इन्होंने दिलवा दिए। इनके पास
बहुत पैसा हैं।

बापू- धन्यवाद बेटा। हम तो गरीब आदमी हैं।

कविता इस तरह से आशीष को देखने लगी जैसे वो भी आशीष से ड्रेस खरीदना चाहती हो।

आशीष- अब क्या करें? किसी होटल में रेस्ट करें रात तक!

बूढ़ा- देख लो बेटा, अगर पैसे हों तो।

आशीष- पैसे की चिंता मत करो ताऊ जी। पैसा बहुत हैं।
बूढ़ा इस तरह से आशीष को देखने लगा जैसे पूछना चाहता हो। कहाँ है पैसा।
और वो एक होटल में चले गए। उन्होंने 2 कमरे रात तक के लिए ले लिए। एक
अकेले आशीष के लिए। और दूसरा उस 'घर परिवार' के लिए।
थोड़ी ही देर में बूढ़ा उन दोनों को समझा कर आशीष के पास आ गया।
बेटा मैं जरा इधर लेट लूं। मुझे नींद आ रही है। तुझे अगर गप्पे लड़ाने हों
तो उधर चला जा। रानी तो तेरी बहुत तारीफ़ कर रही थी।
आशीष- वो तो ठीक है ताऊ। पर आप रात को कहाँ निकल गए थे?
बूढ़ा- कहाँ निकल गए थे बेटा। वो किसी ने हमें बताया की ऐसी लड़की तो शहर
की और जा रही है इसीलिए हम उधर देखने चले गए थे।

आशीष उठा और दूसरे कमरे में चला गया। योजना के मुताबिक। कविता दरवाजा
खुला छोड़े नंगी ही शीशे के सामने खड़ी थी और कुछ पहनने का नाटक कर रही
थी। आशीष के आते ही उसने एक दम चौकने का नाटक किया। वो नंगी ही घुटनों के
बल बैठ गयी। जैसे अपने को ढकने का नाटक कर रही हो!
रानी बाथरूम में थी। उसको बाद में आना था अगर कविता असर न जमा पाए तो!

कविता ने शरमाने की एक्टिंग शुरू कर दी!
आशीष- माफ़ कीजिये भाभी!
कविता- नहीं तुम्हारी क्या गलती है। मैं दरवाजा बंद करना भूल गयी थी।
कविता को डर था वो कहीं वापस न चला जाये। वो अपनी छातियों की झलक आशीष को
दिखाती रही। फिर आशीष को कहाँ जाना था? उसने छोटे कद की भाभी को बाँहों
में उठा लिया।
कविता- कहीं बापू न आ जायें।
आशीष ने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। उसको बेड पर लिटा दिया। सीधा।
दरवाजा तो बंद कर दो।
आशीष ने दरवाजा बंद करते हुए पूछा- "रानी कहाँ है?"
कविता- वो नहा रही है।
आशीष- वो बूढ़ा तुम्हारा बाप है या ससुर।
कविता- अ! अ! ससुर!
"कोई बच्चा भी है?"
कविता- ह! हाँ
आशीष- "लगता तो नहीं है। छोटा ही होगा।" उसने कविता की पतली जाँघों पर
हाथ फेरते हुए कहा!
कविता- हाँ! 1 साल का है!
आशीष ने उसकी छोटी पर शख्त छातियों को अपने मुंह में भर कर उनमें से दूध
पीने की कोशिश करने लगा। दूध तो नहीं निकला। क्यूंकि निकलना ही नहीं था।
अलबत्ता उसकी जोरदार चुसाई से उसकी चूत में से पानी जरूर नकलने लगा!
आशीष ने एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत को जोर से मसल दिया। कविता ने आनंद
के मारे अपने चुतड़ हवा में उठा लिए।
आशीष ने कविता को गौर से देखा। उसका नाटक अब नाटक नही, असलियत में बदलता
जा रहा था। कविता ने आशीष की कमर पर अपने हाथ जमा दिए और नाख़ून गड़ाने
लगी।
आशीष ने अपनी कमीज उतर फैंकी। फिर बनियान और फिर पैंट। उसका लंड कच्छे को
फाड़ने ही वाला था। अच्छा किया जो उसने बाहर निकाल लिया।

उसने बाथरूम का दरवाजा खोला और नंगी रानी को भी उठा लाया और बेड पर लिटा
दिया! आशीष ने गौर से देखा। दोनों का स्वाद अलग था। एक सांवली। दूसरी
गोरी। एक थोड़ी लम्बी एक छोटी। एक की मांसल गुदाज जान्घें दूसरी की पतली।
एक की छोटी सी चूत। दूसरी की फूली हुयी सी, मोटी। एक की चूचियां मांसल
गोल दूसरी की पतली मगर सेक्सी। चोंच वाली। आशीष ने पतली टांगों को ऊपर
उठाया और मोड़कर उसके कान के पास दबा दिया। उसको दर्द होने लगा। शायद इस
आसन की आदत नहीं होगी।

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