नौकरी हो तो ऐसी

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The Romantic
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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 21 Dec 2014 17:08

नौकरी हो तो ऐसी--3 गतान्क से आगे......
मैने अब बहू की चूत को नज़दीक से देखना शुरू किया और उसपे ज़ोर से थुका. डेलिवरी के कारण चूत के बाल थोड़े थोड़े ही उगे थे पूरे घने नही थे इसलिए चूत के बालो मे उसकी गुलाबी रंग की चिड़िया सुंदर लग रही थी. मैने अब बहू को एक बर्त पे बिठा दिया और सेठानी को बहू की चुचिया चूसने के लिए कह दिया. वो चुचिया चूसने लगी. और इधर बहू की तड़प और बढ़ गयी. रात के 12 बज चुके थे परंतु यहा समय की फ़िक्र थी किसे. मैने नीचे बैठकर बहू की टाँगो के बीच अपना मूह घुसेड दिया. और बहू के गुलाबी रंग के दाने को हल्के से चबा दिया. वो तिलमिला उठी. मैने अपनी जीभ को सीधे करते हुए सीधे चूत के होल मे डाल दिया और मेरी जीभ होल के अंदर जाते ही बहू तड़पने लगी और मैने ज़ोर्से जीभ को अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.

बहू ज़ोर्से चिल्लाई "मा के लव्दे ….मेरी भूक तेरी जीभ से नही लंड से जाएगी …तेरी जीभ को निकाल और लंड को अंदर डाल" मैं बोला "हा रानी….क्यू नही ज़रूर …. परंतु बाद मे बाहर निकालने के लिए नही कहना नहितो तेरी गांद फाड़ के रख दूँगा इसी लंड से ….." अब मुझसे रहा नही जा रहा था. मैने अपने लंड पे थुका और सेठानी के मूह मे देते हुए कहा "माजी आपकी बहू की चुदाई होनेवाली है…… इस हथियार को ज़रा अच्छे तैय्यार कीजिए …." और वो थोड़ी मुस्कुराइ.

अब मैने सेठानी के मूह से लंड निकाला और बहू की गुलाबी चूत पर रख दिया मेरा गदाड़ रंग का लंड और उसकी गुलाबी की रंग की चूत. वाह क्या मिलाप था!!!!!! सेठानी ने लंड के सूपदे को थूक लगाई और बहू के चूत के छोटेसे नन्हे से होल के उपर सूपड़ा रख दिया. और मैने हर बार की तरह पूरे बल के साथ एक ज़ोर का झटका मारा. और बहू चीख उठी."आअए..ईयीई.उउईईईई माआ…..आआऐईईईईई उउउउईइ" उसकी मूह से चीत्कार निकली और अब सेठानी की बारी थी उसने वोही कपड़ा उठाया और बहू के मूह मे घुसेड दिया और हस्ने लगी. अब मैने अपनी गति को बढ़ाया. इधर बहू के मूह से आवाज़ आ रही थी. मुझे लगा था कि डेलिवरी के कारण बहू की चूत बहुत ही ढीली पड़ गयी होगी, परंतु 4 महिने के अंतर मे उसकी चूत फिर पहले के जैसे टाइट बन गयी. मेरा हर धक्का मुझे असीम आनंद दे रहा था. और मैं बहू की चूत का हर 1 पल अपने जहेन मे रखने की कोशिश कर रहा था. वाह क्या दिन निकल पड़े थे मेरे.

2-2 चूत, एक लाल और एक गुलाबी और वो भी इतनी हसीन की पूछो मत, लंड डालो उनमे तो बस 1 ही चीज़ याद आती है….स्वर्ग कैसा होता होगा…….मैने अब रफ़्तार बढ़ाई और ज़ोर के झटको के कारण बहू सहेम सी गयी और उसका हिलना अचानक बंद हो गया. तो सेठानी ने उसके मूह पे बोतल से निकाल कर पानी मारा, वैसे वो फिरसे चिल्लाने लगी और मेरे लंड को निकालने की मिन्नते करनी लगी. मैं बोला "बस हो गया दो मिनिट बहू रानी " कहते हुए ऐसा झटका लगाया की बहू के होश ठिकाने पे आ गये. टाइट चूत की बजह से मेरा अभी वीर्यपत होनेवाला ही था कि इतने मे बहू भी झड़ी .और मैने अपने वीर्य की फुव्वारे उसकी चूत के अंदर छोड़ दिए ….असीम आनंद का क्षण थॉ वो मेरे लिए …..अब मैं बर्त पे बैठ गया और अपनी सांसो को नियंत्रणा मे लाने की कोशिश करने लगा …उधर सेठानी ने बहू की चूत से निकलने वाले वीर्य को चाटना शुरू कर दिया.

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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 21 Dec 2014 17:09


"मेरी चूत फाड़ के रख दी तुमने"
मैं बोला "अभी कहा…अभी तो शुरूवात है..आगे आगे देखो होता है क्या…"

सेठानी मेरे लंड को चट के सॉफ कर रही थी. और उसकी चुचिया लंड को आगे पीछे करते वक़्त हिल रही थी. मैने 1 चुचि को दबाना शुरू किया. और उसके गुलाबी काले निपल की हल्की सी चिमती ले ली.
सेठानी बोली "बड़े शैतान हो तुम…."
मैं बोला "हां वो तो मैं हू ही….परंतु शैतान तो आपने बनाया मुझे …हा कि नही…??"

सेठानी कुछ नही बोली. और बहू हस्ने लगी. सेठानी के मूह मे मेरा लंड फिरसे फूलने लगा. और थोड़ी ही देर मे वो अपनी पूर्व स्थिति मे आ गया. मैने अब अपना लंड सेठानी मूह के अंदर ज़ोर से अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. जैसे मेरी गति बढ़ रही थी. सेठानी के मूह से "गुगुगु गुग्गू……उूउउ" आवाज़े आना बढ़ गयी. इतने मे सेठ जी बर्त पे हीले. हम सब की सासे जगह पे ही रुक गयी. परंतु फिरसे बुड्ढ़ा वैसेके वैसेही सो गया. अब मैने फिरसे मूह मे धक्के मारना शुरू किया और लंड को अंदर तक घुसाने लगा. और सेठानी की आँखे लाल हो गयी. चेहरा पूरा लाल- लाल हुए जा रहा था. थोड़ी देर बाद मैने अपना लंड बाहर निकाला. अभी मेरा 10 इंच का हठोड़ा फिरसे गुर गुर करने लगा था. और उसके सूपदे से पानी निकल रहा था. बहू ने उसपे अपनी थूक डालके उसे मूह मे लिया और चूसने लगी. थोड़ी देर बाद मैने सेठानी को बर्त पे लिटा दिया और उसकी चूत चूसने लगा. इधर बहू मेरा लंड अपने मूह अंदर डाले जा रही थी. अब मैने अपनी लंबी जीभ सेठानी के छोटेसे लाल रंग के चूत के छोटेसे होल मे डालना शुरू किया. मैं 1 दिन मे ही चूत के अंदर जीभ डालने मे बहुत ही माहिर हो गया था.

सेठानी उधर फिरसे गरम हो रही थी. मैने अभी उसके चूत पे थूक दिया. और वो थूक उसकी चूत के अंदर के होल मे घुसा दी. चूत अभी एकदम गीली और रसीली हो गयी थी परंतु 2 बार जबरदस्त ठुकाई के कारण चूत बहुत ही लाल लाल हो गयी थी. मैने अब सेठानी के चूत के दाने पे अपनी जीभ रख दी और उसे चूसने लगा सेठानी ज़ोर से तड़पने लगी और मेरा सिर पकड़ के अपने टाँगो के बीच मे दबाने लगी वैसे मैने और ज़ोर्से चूसना शुरू किया अब सेठानी बहुत ज़्यादा तड़पने लगी और कुछ देर बाद झाड़ गयी.

उसकी चूत से निकल रहा वो निर्मल जल मैने अपने मुँह मे कर लिया वाह क्या मजेदार स्वाद था उसका. एकदम मस्त अब मैं बहुत ही गरम और मदमस्त हो गया था अभी मुझे चोदने की बहुत ही इच्छा हो रही थी. परंतु उससे पहले मुझे लगा क्यू ना थोड़ा सा जलपान करले, मैने बहू को अपने बाजू मे बैठने का इशारा किया. और उसकी एक चुचि पकड़ के उसका निपल अपने मूह मे डालके दुग्ध पान करने लगा.
बहू बोली "ये क्या करते हो "
मैं बोला "प्यार"
बहू बोली "ये कैसा प्यार …..ये तुम्हारे लिए थोड़ी ही है"
मैं बोला "मेरी प्यारी रानी यही मेरा प्यार है …..और जो तुम्हारा है वो अब सब हमारा है…." और उसकी दूसरे चुचि पे हाथ रख के सहलाने लगा.

स्तानो से निकल रहे दूध का स्वाद तो एकदम ही बढ़िया था. मैं 1 निपल चूसे जा रहा था और दूसरी चुचि को सहला रहा था और नीचे सेठानी मेरे लंड कोअपने मूह मे लेके फिरसे अंदर बाहर कर रही थी. तभी मेरे दिमाग़ मे एक आइडिया आया. क्यू ना सेठानी की गांद मार दी जाए. मैं इस कल्पना से बहाल हो गया पर मुझे पता था सेठानी मुझे कभी अपनी गांद मारने नही देगी. तो इसलिए मैने अभी बहू को किस करते हुए उठाया. और उसके कानो को किस करना शुरू किया. और किस करते करते मैने अपनी इच्छा सेठानी की गांद मारने की बहू से बोल दी. बहू ने भी मुझे किस करने का बहाना करते हुए मेरे एक कान को अपने मूह मे लिया और चबाने लगी और चूसने लगी. और हल्केसे मेरे कान मे बोल दिया कि तुम सासू मा को उठाके बर्त पे नीचे मुंदी करके डाल दो आगे का मैं संभाल लूँगी. ये सुनते ही मेरे अंदर का जानवर जाग गया.

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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 21 Dec 2014 17:11


मैने हल्के से सेठानी के मूह से अपना लंड बाहर निकाला और जैसे सेठानी पीछे की तरफ देखने लगी मैने उसे उठाके बर्त पे उलटा पटक दिया और उसपे घोड़े जैसा सवार हो गया. उधर बहू ने सेठानी के मूह मे बड़ा सा कपड़ा डाल दिया. और सेठानी के कुछ समझने से पहले ही हाथ अपने हाथो मे दबा दिए और एक कपड़े से हल्केसे बाँध दिए.

अब सेठानी ज़ोर्से हिलने लगी पर हमने उसे उस तरह बर्त पे दबाए रखा. अब बहू ने संदूक निकाला और उसमे से तेल की एक बोतल निकाली और अपनी सासू मा के गांद के होल के अंदर उंगली डाल के तेल डालने लगी. पहले छोटा सा दिखने वाला सेठानी की गांद का होल तेल के मालिश से मेरी थूक से एकदम आकर्षक और बढ़िया दिखने लगा, परंतु मेरे लंड के सामने पता नही वो टिक पाने वाला था की नही.

मेरा लंड पहले से ही बहुत टाइट था अब बहू ने उसपे ठुका और उसपे भी बोतल से निकाल के तेल डाल दिया. तेल डालने से मेरा लंड बहुत चमकने लगा. अब मैने अपने लंड का सूपड़ा सेठानी की गांद के छोटेसे होल पे रख दिया. सेठानी अंदर डालने से पहले ही बहुत तड़प रही थी.. अब मैने लंड को अंदर घुसाना शुरू किया परंतु कुछ फ़ायदा नही हुआ, वो अंदर घुस ही नही पा रहा था. गांद टाइट होने के बजाह से वो थोड़ा ही अंदर जा रहा था और थोड़ाही अंदर जाते हुए ही सेठानी उउउ…अयू.एम्म…..उूउउ.आवाज़े निकाल देती थी. मुझे नही लग रहा था कि मेरा लंड इस गांद मे घुस पाएगा. अब बहू ने मेरा लंड अपने हाथ मे लेके उसपे बहुत सारी थूक डाली और उसे और चिकना बना दिया और सेठानी के गांद पे भी थूक डाल दी. और मुझे कान मे धीरे धीरे अंदर गांद के अंदर लंड डाल ने को बोला और कुछ भी हो जाए पीछे खिचने के लिए मना कर दिया.

अब मैने अपना सूपड़ा सेठानी की गांद मे धीरे धीरे घुसाना शुरू किया. गांद बहुत ही टाइट थी. अब मैने ज़ोर लगाया और लंड का सूपड़ा गांद के अंदर चला गया. और सेठानी के पाव काँपने लगे सेठानी की आवाज़ो की तीव्रता और बढ़ गयी परंतु अब मैं पीछे हटनेवाला नही था अब मैने गति ली और ज़ोर से अपना लंड आगे पीछे करने लगा अभी तक पूरा लंड अंदर नही गया था और सेठानी के हाथ पैर काप रहे थे और मेरे लंड को उसकी गांद अंदर जकड़े जा रही थी किसी भी क्षण मेरा वीर्यपात हो जाए इतनी वो टाइट थी. अब मैने धीरे धीरे झटके मार के पूरा लंड अंदर डाल दिया. सेठानी के हाथ बँधे होते हुए भी वो मुझे दर्द के कारण पीछे धकेलने की कोशिश कर रही थी.

मैने अब अपनी गति नॉर्मल कर दी और लंड को आगे पीछे करने लगा वैसे सेठानी की आवाज़े बढ़ गयी मैं बोला "सेठानी जी मेरी प्यारी सेठानी जी अब तो आपकी गांद की खैर नही" और ज़ोर्से कस्के धक्के मारने लगा. सेठानी की गांद मे आग लग चुकी थी. उसका मूह पूरा लाल हो गया बल्कि पूरा शरीर लाल हो गया था. पहली बार गांद चुदाई के कारण उनसे सहा नही जा रहा था. अब मैं अपनी चरम सीमा तक पहुच गया था सेठानी इस दरम्यान तीन बार झड़ी थी. मैने अभी गति और तेज़ कर दी. और ज़ोर्से मेरे मूह से आवाज़ निकल पड़ी मैने मेरा वीर्य सेठानी की गांद मे अंदर तक घुसेड दिया था. गांद के अंदर वीर्य के फुव्वारे की गर्मी के कारण अब शेतानी के चेहरे पे एक पूर्णतया और खुशी की झलक दिख रही थी.

अब रात का 1 बज रहा था और हम सभी बहुत ही थक गये थे. हमने सेठ जी को दूसरे बर्त से उठाके पहले वाली जगह पर सुला दिया. बेचारा सेठ जी नींद की गोलिया के नशे के कारण कुछ समझने की हालत मे नही था और पूरी निद्रा मे सोया हुआ था. अब हम लोग भी अलग अलग बर्त पे सो गये.

दूसरे दिन सबेरे जब आँख खुली, तब सूरज खिड़की से दिखाई दे रहा था. मैं उठ के अपने बर्त पे बैठ गया. चदडार जमा करके अपने संदूक मे डाल दिया. और मैं उठ के कॅबिन के बाहर चला आया. उधर से मुझे सेठानी आते हुई दिखी. वाह क्क्या चिकनी चिकनी लग रही थी वो, परंतु ये क्या…..सेठानी की चाल बदल चुकी थी….सेठानी तो बहुत हल्लू हल्लू चल रही थी. और ऐसा लग रहा था कि रात की ठुकाई से उन्हे अभी भी चलने मे दर्द हो रहा था. सच मे रात मे ज़रा ज़्यादा ही हो गयी सेठानी के साथ, वो जब मेरे बाजू आई तो थोडिसी मुस्कुराइ और मेरे गाल पे एक चुम्मा चिपका के कॅबिन के अंदर चली गयी. अभी भी ट्रेन का लगभग 26 घंटो का सफ़र बाकी था.

मैने नीचे देखा तो मेरे लंड महाराज खड़े थे और आने जाने वालो को सलामी दे रहे थे अब मुझे सेठानी के हस्ने और चुम्मा देने का मतलब पता चला. मेरे लंड को अभी ठुकाई के लिए कोई चाहिए था. परंतु अभी तो ठुकाई का चान्स ना के बराबर दिख रहा था. तभी एक चाइवाला मेरे बाजूसे गुज़रा और मुझे देख के मुस्कुराया. तो मैने उससे बात करना शुरू कर दी. और उससे दोस्ती बना ली. उसका नाम राधे था. और मैने उसे मेरे ठुकाई के लिए कुछ इंतज़ाम करने के लिए कहा. तो वो बोला मैं लड़की तो लाके देता हू परंतु उसे ठुकाई के लिए मनाना और काम कहा करना है ये आपको देखना पड़ेगा. मैने उसको अपना प्लान बता दिया और उसको आधे घंटे के बाद लड़की को कौन से बाथरूम मे लेके आने का है, यह बोल दिया.


मैं फटाफट कॅबिन के अंदर गया. कपड़े लेके बाथरूम के अंदर घुसके स्नान करके 10 मिनिट मे रेडी हो गया. और उतने मे बहू ने चाइ का कप लेक मेरे हाथ मे रख दिया और मेरे से चिपक कर बैठ गयी. सेठ जी ट्रेन के बाहर देखने मे व्यस्त था, और सेठानी बच्चे को अपनी गोदी मे लेके सुला रही थी. बहू ने इतनी देर मे अपनी हरकते शुरू कर दी और अपना घूँघट नीचे गिरा दिया. और अभी बहू की उन्नत छाती मुझे दिखने लगी. उसके ब्लाउस के गले से उसकी चुचिया बहुत ही आकर्षक और पुश्ता लग रही थी. ऐसे लग रहा था कि अभी हाथ डालके एक चुचि बाहर निकालु और उसमे से दूध चूसना शुरू कर डू. परंतु सेठ जी के सामने बैठे होने के कारण ऐसी हरकत मैं कर नही सकता था.

मैने बहू की पीठ पीछे हाथ डालके उसकी सारी के अंदर अंदर हाथ डाल दिया, और गांद की तरफ अपना हाथ बढ़ाने लगा, उसकी त्वचा बहुत ही नाज़ुक थी और मुउलायम भी. अब मैं अंदर अंदर हाथ डाले जा रहा था और इधर सामने से बहू की भारी चुचियो को देख के गरम हो रहा था. सेठानी की नज़रो से ये बात कैसी बचती, उसने अपना पैर मेरे पैरो पे रख दिया और घिसने लगी. मैं पूरा गरम हो गया था. इतने मे मुझे चाइ वाले का राधे का ख़याल आया. कहानी अभी बाकी है दोस्तो

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