लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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The Romantic
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 04 Nov 2014 21:33

जब मैं फ्रेश होकर बाहर आया तो सभी मेरा खाने की मेज़ पर इंतजार कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद रमेश मार्केट और मधु और सुधा हमारे बेडरूम में गप्प लगाने चली गई। मैं और मिक्की अब दोनों अकेले रह गए। जैसे ही मधु और सुधा गई मिक्की झट से उठ कर मेरे पास सोफे पर बैठ गई और मेरी आँखों में झांकते हुए बोली,”जिज्जू ! क्या आप मुझे कंप्यूटर सिखा सकते हो ?”

जिज्जू…….. ? आप चौंक गए ना !

ओह….!

मैं बताना ही भूल गया ! मिक्की जब मुझे फूफाजी बुलाती तो मुझे लगता कि मैं कुछ बूढ़ा हो गया हूँ। मैं अपने आप को बूढा नहीं कहलवाना चाहता था तो हमारे बीच ये तय हुआ घरवालों के सामने वो मुझे फूफाजी कह सकती है पर अकेले में या घर के बाहर जीजाजी कहकर बुलाएगी।

“ओह…. येस….येस….! हाँ हाँ ! क्यों नहीं !” मैं हकलाता हुआ सा बोला क्योंकि मेरी निगाहें तो उसके स्तनों पर थी। पतले शर्ट में उसके बूब्स की छोटी छोटी घुन्डियाँ चने के दाने की तरह साफ़ नजर आ रही थी।

“चलो स्टडी-रूम में चलते हैं !” मैं उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे स्टडी-रूम की ओर ले जाने लगा।

उसकी लम्बाई मेरे कन्धों से थोड़ी ही ऊपर थी। उसके नाजुक बदन की कुंवारी खुशबू और चिकना स्पर्श मुझे मदहोश किये जा रहा था। मैं तो उसके साथ चूमने चिपटने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ ही रहा था। उसे भी कोई परवाह नहीं थी। इस उम्र में इन बातों की परवाह वैसे भी नहीं की जाती। मैं तो बस किसी तरह उसे चोदना चाहता था। पर ये इतना जल्दी कहाँ संभव था। खैर मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी।

मेरे मस्तिष्क में कई योजनाएँ घूम रही थी। एक प्लान तो मैं काफी देर से सोच रहा था। मिक्की को कोल्ड ड्रिंक्स और फ़्रूटी पीने का बहुत शौक है उसमें नींद की गोलियाँ डाल दी जाएँ और रात में ? पर घर में इतने सब मेहमानों के होते यह प्लान थोड़ा मुश्किल था। काश कुछ ऐसा हो कि मैं और सिर्फ मेरी प्यारी मिक्की डार्लिंग अकेले हों, हमें डिस्टर्ब करने वाला कोई नहीं हो। काश किसी टापू या महल में हम दोनों अकेले हों और नंगधड़ंग बिना रोकटोक घूमते रहें। काश इस शहर में कोई जलजला या तूफ़ान ही आ जाए सब कुछ उजड़ जाए और बस हम दोनों ही अकेले रह जाए…. ओह्ह्ह्ह्…. पर यह कहाँ संभव है ….!

खैर कोई न कोई रास्ता तो भगवान् जरूर निकालेगा।

मैं मिक्की को अपनी बाहों में लिए स्टडी रूम में आ गया जिसमे मैंने कंप्यूटर, प्रिंटर और अपनी बहुत सी फाइल्स और पुस्तकें रखी हुई हैं। स्टडी-रूम में सामने की दीवार पर एक सीनरी लगी है जिसमें एक तेरह-चौदह साल की बिल्लौरी आँखों वाली लड़की तितली पकड़ रही है, बिलकुल मिक्की जैसी।

मिक्की ने गौर से पेंटिंग को देखा पर कोई कमेन्ट नहीं किया। मैंने उसे कन्धों से पकड़ते हुए अपने साथ वाली कुर्सी पर इस तरीके से बैठाया कि मेरे हाथ उसके उरोजों को छू गए।

वाह ! क्या मस्त चिकना अहसास था !

स्टडी-रूम में आने के बाद मैंने उसे कंप्यूटर के बारे में बताना शुरू किया। वो थोड़ा-बहुत कंप्यूटर के बारे में पहले से जानती थी। सबसे पहले उसे कंप्यूटर चालू करने ओपरेट करने और बंद करने के बारे में बताया। जब स्क्रीन ऑन हुई तो पासवर्ड डालना बताया। मैंने उसे ये पासवर्ड याद रखने के लिए बोला ताकि जब वो इस पर प्रेक्टिस करे तो कोई परेशानी न हो। वो सारी बातें एक कागज़ पर लिखती जा रही थी। फिर मैंने उसे इन्टरनेट और ई-मेल आदि के बारे में भी बताया। फाइल्स खोलना और देखना भी उसे समझाया। हमें कोई एक घण्टा तो इस चक्कर में लग ही गया।

ऐसा नहीं है कि मैं उसे सिर्फ कंप्यूटर ही समझा रहा था। मैंने तो उसके हाथ, गाल, कंधे, होंठ, सिर के बाल और बूब्स को छूने और दबाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। कई बार तो मैंने उसकी जाँघों पर भी हाथ साफ़ किया, वो कुछ नहीं बोली। एक दो बार तो मैंने उसके गालों पर प्यार भरी चपत भी लगा दी। मेरे लतीफों से तो वो हंसते हंसते उछल ही पड़ती थी।

एक बार जब उसने अपना एक हाथ ऊपर किया तो उसकी ढीले शर्ट के अन्दर कांख में उगे छोटे छोटे सुनहरे रेशम से रोएँ नजर आ ही गए। हे भगवान् ! उसकी बुर पर भी ऐसी ही सुनहरी केशर-क्यारी बन गई होगी। उसकी थोड़ी खुली और ढीली शर्ट में कैद छोटे छोटे चीकू ? अमरुद? संतरे ? मुझे नजर आ ही गए। उनके उपर मूंग के दाने जितने चूचुक और अट्ठन्नी के आकार का गुलाबी रंग का एरोला।

मेरी आँखें तो फटी की फटी ही रह गई।

मेरा पप्पू तो अब पैन्ट के अन्दर घमासान मचाने पर तुला हुआ था। मुझे लगा कि आज ये मार खाए बिना नहीं मानेगा। मैंने जल्दी से एक किताब अपनी गोद में रख ली। एक दो बार तो मैंने उसकी जांघों पर हाथ रखने के बहाने उसकी पुस्सी को भी टच कर दिया। पता नहीं वो मेरे मन के अन्दर की बात जानती होगी या नहीं ? हाँ मैंने देखा कि उसकी पिक्की के सामने वाला हिस्सा कुछ फूल सा गया है और पिक्की के छेद वाली जगह एक रुपये के सिक्के जितनी जगह गीली हो गई है।

हमें कंप्यूटर पर बैठे हुए डेढ़ दो घंटे तो हो ही गए थे। मैं भी निरा बेवकूफ हूँ इस डेढ़ दो घंटे में मतलब की बात तो भूल ही गया। अचानक मेरे दिमाग में एक प्लान घूम गया और मेरी आँखें तो नए प्लान के बारे में सोच कर चमक ही उठी।

आप जानते होंगे कि अगर किसी चीज को देखने या जानने के लिए मना किया जाए तो उस चीज के प्रति उत्सुकता ज्यादा बढ़ जाती है, ख़ास कर छोटे बच्चों में। और मिक्की भले ही मेरी नजरों में जवान मस्त प्रेमिका हो लेकिन थी तो अभी बच्ची ही। मैंने कुछ हिरोइनों की नंगी फोटो, पिक्चर, फिल्म्स और कहानियाँ एक फोल्डर में सेव कर रखी हैं। इस से अच्छा मौका और क्या हो सकता था मैंने बातो बातों में उस फोल्डर और फाइल्स का पासवर्ड हटा दिया। अब मैंने मिक्की से कहा- तुम इस फोल्डर को मत खोलना !

“क्यों ऐसा क्या है इसमें ?” मिक्की ने हैरानी से पूछा।

“अरे, इसमें डरावनी फोटो हैं, तुम डर जाओगी !”

“क्या जंगली छिपकलियाँ हैं ?”

मैं जानता था उसे छिपकलियों से बहुत डर लगता है।

मैंने कहा,”हाँ हाँ ! ना ! असली छिपकलियाँ नहीं, पर वैसी ही है !”

मैं अपने मकसद में कामयाब हो चुका था। मैंने कंप्यूटर ऑफ करते समय कनखियों से देखा था कि मिक्की ने पेंसिल से फोल्डर का नाम नोट कर लिया है। हे भगवान् ! तेरा लाख लाख शुक्र है। मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा अब मंजिल नजदीक आ गई है।

शाम के चार बज चुके थे। मधु ने कहा मिक्की को बाजार घुमा लाओ। मैं और मिक्की बाजार जाने की तैयारी करने लगे। मुझे तो क्या तैयारी करनी थी मिक्की ने जरूर अपने कपड़े बदल लिए। हलके पिस्ता रंग की टी-शर्ट और सफ़ेद जीन मेरे कत्ल का पूरा इंतजाम किया था उसने। आप तो जानते है जीन पहने गोल गोल कूल्हे मटकाती लड़कियां मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है।

हम लोग मोटरसाइकल पर बाजार के लिए निकल पड़े। मैंने उसे यहाँ का किला, गणेशस्थान मंदिर और लोहागढ़ फोर्ट आदि दिखाया। हमने एक रेस्तरां में पिज्जा और मटके वाली कुल्फी भी खाई। कुल्फी खाते हुए मैंने उसे मजाक में कहा कि इसे पूरा मुंह में लेकर चूसो बहुत मजा आएगा। मैं तो बस ये देखना चाहता था कि उसे अंगूठे के अलावा भी कुछ चूसना आता है या नहीं। एक स्टाल पर हमने गोलगप्पे भी खाए। गोलगप्पों का साइज़ थोड़ा बड़ा था। जिस अंदाज में पूरा मुंह खोलकर वो गोलगप्पे खा रही थी मैं तो बस यही अंदाजा लगा रहा था कि अगर मेरा डेढ़ इंच मोटा लण्ड ये मुंह में ले ले तो कोई परेशानी नहीं होगी।

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 04 Nov 2014 21:34

आते समय हमने चॉकलेट के चार-पाँच पैकेट, चुइंगम के दो पैकेट, वीडियो गेम्स की सीडी, २ कॉमिक्स, एक रिस्ट वाच, नाइके की एक टोपी और न जाने क्या क्या अल्लम-गल्लम चीजें खरीदी। मैं तो आज उसे तोहफों से लाद देना और हर तरीके से खुश कर देना चाहता था।

हाँ ! एक खास बात- मिक्की के लिए मैंने दो फोम वाली पेंटीज, पैडेड ब्रा और एक झीनी सी नाइटी भी खरीदी। मैंने उसे समझाया कि इसके बारे में अपनी बुआजी या मम्मी से न बताये। उसने मेरी और प्रश्नवाचक निगाहों से देखा पर बोली कुछ नहीं और हाँ में सिर हिला दिया।

मैंने जब उससे कहा कि ये पहनकर भी मुझे दिखानी होगी तो उसने मेरी ओर भोलेपन से देखा पर जब बात का मतलब उसके समझ में आया तो वो शरमा गई। ईईश्श्श….ऽऽ

हायऽऽ …. इस अदा पर कौन न मर जाये ए खुदा !

मैंने उस से कहा, “देखो मैंने तुम्हारे लिए कितने गिफ्ट खरीदे हैं तुम मुझे क्या गिफ्ट दोगी ?”

तो वो बड़े ही भोले अंदाज में बोली “मेरे पास क्या है गिफ्ट देने के लिए ?”

मैंने अपने मन में कहा, “अरे तुम्हारे पास तो कारूं का खजाना है मेरी बुलबुल !”

पर फिर मैंने कहा “अगर चाहो तो कोई न कोई गिफ्ट तो दे ही सकती हो !”

वो सोच में पड़ गई, फिर बोली “अच्छा एक गिफ्ट है मेरे पास, पर पता नहीं आपको पसंद आएगा या नहीं?”

“क्या है ? प्लीज बताओ न ?” उसने अपनी जेब से एक रेशमी रुमाल निकाला और बोली, “मेरे पास तो देने को बस यही है।”

“पता है यह रुमाल मैंने पिछले साल आगरा से खरीदा था ?”

“अरे कहीं इस से नाक तो नहीं साफ़ की है ?” मैंने हंसते हुए कहा “नहीं तो पर….! हाँ ! जब मैं मटके वाली कुल्फी चूस रही थी मैंने अपने होंठ जरूर साफ़ किये थे” उसने बड़ी मासूमियत से कहा। मैं तो इस अदा पर दिलो जान से फ़िदा हो गया, मर ही मिटा। मैंने उसके हाथ से रुमाल लेकर उसे चूम लिया। मिक्की जोर से शरमा गई पता नहीं क्यों ?

घर आते समय रास्ते में मैंने उसे बताया कि कल हम सभी लिंग महादेव का मंदिर देखने चलेंगे। शहर से १५-१६ किलोमीटर की दूरी पर एक छोटी सी पहाड़ी पर यह शिव मंदिर है जिसमे पाँच फुट का शिवलिंग बना हुआ है। यहाँ मान्यता है कि कोई पैदल नंगे पाँव आकर शिवलिंग पर सोलह सोमवार कच्चा दूध चढ़ाये तो उसकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। मैंने कभी इसे आजमाया नहीं था पर अब मेरा मन कर रहा था कि एक बार यह टोटका भी आजमा कर देख ही लूँ पर १६ सोमवार यानी ४-५ महीने….। यार थोड़ा कम नहीं हो सकता ?

इन बातों से दूर मिक्की तो मेरी बात सुनकर झूम ही उठी। उसकी आँखों की चमक तो देखने लायक थी। लेकिन फिर उसने थोड़ी मायूसी से पूछा,”क्या आप कल ऑफिस नहीं जाओगे?”

“अरे मेरी बिल्लो रानी तुम्हारे लिए छुट्टी ले लेंगे तुम क्यों चिंता करती हो” मैंने उसके गालों को सहलाते हुए कहा। वो शरमा गई। उसके गाल अचानक लाल हो गए और उसने रस भरी आवाज और कातिलाना अंदाज में कहा,”थैंक यू मेरे प्यारे फ़ूऽऽफा…. अर्ररर जीऽऽ जा जीऽऽ ईईस्स्स्सश्श

आज अगर इसी क्षण मृत्यु भी आ जाये तो कोई गम नहीं।

जब हम घर पहुंचे तो वहाँ बम फूट चुका था। रमेश अपने मार्केटिंग के काम से वापस आ गया था। उसने बताया कि सुधा के चाचा का एक्सीडेंट हो गया है और उन्हें आज ही दिल्ली जाना होगा। खबर सुनकर मेरा तो दिल ही बैठ गया। हे भगवान्। मिक्की ने जब सुना तो वो भी उदास हो गई। उसके चेहरे से लगता था कि वो अभी रो पड़ेगी।

“प्रेम हमें आज रात ही निकलना होगा। क्या दिल्ली के लिए अभी कोई ट्रेन है ? रमेश ने पूछा।

“हाँ ट्रेन तो है रात दस बजे पर… रिज़र्वेशन?”

“कोई बात नहीं मैनेज कर लेंगे। अरे सुधा, जल्दी करो, सामान देख लो ! मिक्की कहाँ है ?” रमेश ने सुधा को आवाज दी।

“भाई साहब क्या सुबह नहीं जा सकते ?” मैंने पूछा।

“अरे यार सुधा और मेरा जाना बहुत जरूरी है !”

मुझे थोड़ी सी आशा बंधी मैंने कहा “पर मिक्की तो यहाँ रह सकती है ?”

“वो अकेली यहाँ क्या करेगी ?”

“बच्ची है पहली बार आई है थोड़ा घूम फिर लेगी वापस लौटते समय आप उसे भी साथ ले जाना !” मैंने कहा।

“चलो ठीक है !”

रमेश गेस्टरूम की ओर चला गया जहां सुधा और मधु बैठी थी। मैं भागता हुआ अपने बेडरूम में गया मैंने देखा मिक्की बेड पर ओंधे मुंह लेटी रो रही है। हे भगवान् क्या कयामत के गोल गोल नितम्ब थे। मैंने उसकी जाँघों और नितम्बों पर हाथ फेरा और उसे प्यार से आवाज दी,”अरे मिक्की माउस ! क्या हुआ ?”

“जिज्जू मैं मम्मी-पापा के साथ नहीं जाना चाहती ! प्लीज मम्मी पापा को मना लो ! प्लीज जिज्जू !” उसने लगभग रोते हुए कहा।

“अच्छा ! चलो, पहले अपने आंसू पौंछो ! शाबास ! गुड गर्ल ! अच्छे बच्चे रोते नहीं हैं !” मैंने उसके गालों पर हाथ फेरते हुए कहा। इतना बढ़िया मौका मैं भला कैसे छोड़ सकता था।

“क्या पापा मान जायेंगे ?”

“तुम चिंता मत करो मैंने उन्हें मना लिया है !”

“ओह मेरे अच्छे जिज्जू !”

मिक्की यकायक मुझसे लिपट गई और उसने मेरे गालों पर चूम लिया। मैं तो अवसर की तलाश में था !

मैंने झटसे मिक्की को अपनी बाहों मे जकड़ लिया और अपने लब उसके गुलाबी लबों से मिला दिए। मेरे दोनों हाथ उसकी पीठ पर थे और मेरी जीभ उसके होठों के बीच में अपना रास्ता तलाशते तलाशते उसकी जीभ से जा मिली।

कुछ पलों के लिए तो मैं अपनी सुधबुध ही खो बैठा और शायद वो भी !

लेकिन मिक्की होश में आई और अपने आप को मुझसे छुड़ा कर मेरे गाल पर एक चुम्बन ले कर बाथरूम में भाग गई अपना मुंह धोने। ये सब बहुत जल्दी और अप्रत्याशित हुआ था। मैंने अपने गालों को दो तीन बार उसी जगह सहलाया और फिर अपनी अंगुलियों को चूम लिया।

तो दोस्तो, यह था हमारा दूसरा चुम्बन !

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 04 Nov 2014 21:36

रति-द्वार दर्शन :

जब मैं रमेश और सुधा को स्टेशन छोड़ कर वापस आया तो लगभग साढ़े ग्यारह बज चुके थे। मिक्की गेस्टरूम में सो चुकी थी। मैंने उस रात मधु को दो बार कस कस कर चोदा और एक बार उसकी गांड भी मारी। आज जिस तरीके से मैंने मधु को रगड़ा था मुझे नहीं लगता वो अगले दो दिनों तक ठीक से चल फिर पाएगी।

आज मेरा उतावलापन और बेकरारी देखकर मधु आखिर बोल ही पड़ी, “आज आपको क्या हो गया है ? मुझे मार ही डालोगे क्या ? कहीं आप नशा तो नहीं कर आये हो।”

अब मैं उसे क्या बताता कि मैं तो मिक्की के नशे में अन्दर तक डूबा हुआ हूँ। मैं तो बस इतना ही बोल पाया आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो मेरी जान और तीन चार चुम्बन उसके गालों पर ले लिए तो वो बोली- उन्ह्ह्ह…. हटो परे झूठे कहीं के…. !हम लोगो को रात को सोने में दो बज गए थे।

रात के घमासान के बाद सुबह उठाने में देर तो होनी ही थी। मैं कोई आठ बजे उठा। मधु पहले ही उठ चुकी थी। मधु ने मुझे जगाया और उलाहना देते हुए बोली- रात में तो तुमने मेरी कमर ही तोड़ डाली।

मैंने उसे फिर बाहों में भरने कि कोशिश की तो अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली “सुबह सुबह छेड़खानी नहीं ! जाओ मोना को जगा दो ! मैं चाय बनाती हूँ “

मैं बाथरूम से फ्रेश होकर गेस्ट रूम में गया जहां मिक्की सोई हुई थी। मिक्की अभी भी बेसुध पड़ी सो रही थी। उसने अपना अंगूठा मुंह में ले रखा था और दूसरे हाथ से बेबी डॉल को सीने से चिपका रखा था। बालों की एक आवारा लट उसके गालों पर बिखरी पड़ी थी। जिस अंदाज में वो सोई थी मुझे लगा कि वो अभी निरी मासूम बच्ची ही है। मुझ जैसे पढ़े लिखे आदमी के लिए ऐसी भावनाए रखना कदापि उचित नहीं है।

पर मेरा ये ख़याल अगले ही पल हवा में काफूर हो गया। उसने फूलोंवाली फ़्रॉक और गुलाबी रंग की पेंटी पहन रखी थी। वो करवट लेकर लेटी हुई थी। एक टांग थोड़ी सी ऊपर की ओर मुड़ी हुई। उसकी पुष्ट जाँघों को देखकर तो लगा जैसे वो कोई हॉकी की खिलाड़ी हो। पेंटी के अन्दर कसी हुई उसकी बुर एकदम फूली हुई थी। रोम विहीन टाँगे घुटनों से ऊपर उठी उसकी फ़्रॉक से झांकती हुई उसकी जाँघों की रंगत तो शरीर के दूसरे हिस्सों से कहीं ज्यादा गोरी थी। मैं तो बेसाख्ता आँखें फाड़े उस रूप की देवी को देखता ही रह गया। मेरा पप्पू तो बेकाबू होने लगा।

मैं सोच रहा था कि उसे जगाने के लिए उसकी संगमरमरी जाँघों पर हाथ फेरूँ या नितम्बों पर जोर की थप्पी लगाऊं या उसके गालों पर एक पप्पी लेकर उसे जगाऊं। धड़कते दिल से मैंने अपना एक हाथ और मुंह उसकी जाँघों की ओर बढाया ही था कि पीछे से मधु की आवाज आई,”अरे मोना अभी उठी नहीं ? ऑफ।। ये लड़की भी कितना सोती है ?”

मैं तो इस अप्रत्याशित आवाज से हड़बड़ा ही गया। मुझे तो ऐसा लगा जैसे मेरा सारा खून रगों में जम ही गया है। आज तो मेरी चोरी पकड़ी गई है। पता नहीं मेरे मुंह से कैसे निकल गया।

“हाँ हाँ उठ ही रही है !”

मुझे लगा अगर मैंने मधु की ओर देखा तो जरूर वो जान जायेगी और मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगी मैं तो कहीं का नहीं रहूँगा। पर भगवान् का लाख लाख शुक्र है वो रसोई में चली गई थी। अगर एक दो सेकंड की भी देरी हो जाती तो ??

सोच कर मैं तो सूखे पत्ते की तरह काँप गया।

मैं तो तब चौंका जब मिक्की ने आँखे मलते हुए कहा,”गुड-मोर्निंग फूफाजी !”

मैं भला क्या कहता। मिक्की बाथरूम में चली गई। मेरी हालत तो उस निराश शिकारी की तरह हो रही थी जिसके हाथ में आया हुआ शिकार छूट गया हो। मैं बाहर लॉन में पड़ी चेयर पर बैठ कर अखबार पढ़ने लगा।

गर्मियों की छुटियाँ चल रही थी इसलिए मधु को तो वैसे ही स्कूल नहीं जाना था (मधु बच्चों के एक स्कूल में डांस टीचर है) और मैंने आज बंक मारने का इरादा पहले ही कर लिया था वैसे भी आज बुद्ध पूर्णिमा की छुट्टी थी। मैं चाहता था कि मिक्की और मधु पहले नहा धो लें, मैं तो आराम से नहाना चाहता था। मुझे आज अपने पप्पू का मुंडन भी करना था। आप तो जानते ही है मधु को लंड और चूत पर झांटे बिलकुल अच्छी नहीं लगती। उसने कल रात भी उलाहना दिया था। पर मैं तो कुछ इससे आगे भी सोच रहा था। क्या पता कब किस्मत मेरे ऊपर निहाल हो जाये और मेरी मोनिका डार्लिंग मेरी बाहों में आये तो मैं एक हैंडसम चिकने आशिक की तरह लगूं। वैसे एक कारण और भी था। गुरूजी कहते है झांटों की सफाई करने के बाद लंड और चूत दोनों की सुन्दरता बढ़ जाती है और लंड का आकार बड़ा और चूत का छोटा नजर आने लगता है। वैसे तो ये नज़र का धोखा ही है पर चलो इस खुशफहमी में बुरा भी क्या है।

खैर कोई बारह-साढ़े बारह बजे मैं नहा धोकर फारिग हुआ। मिक्की स्टडी रूम से बाहर आ रही थी। उसकी नज़रें झुकी हुई थी और साँसे उखड़ी हुई माथे पर पसीना। वो मुझसे नज़रें नहीं मिला रही थी। वो मेरी और देखे बिना मधु के पास रसोई में चली गई। पहले तो मैं कुछ समझा नहीं पर बाद में मेरी तो बांछें ही खिल गई। ओह मिक्की डार्लिंग ने जरूर वो ही ‘जंगली छिपकलियों’ वाला फोल्डर और फाइल्स देखी होंगी। थैंक गॉड। आईला….। मेरा दिल किया कि जोर से पुकारूं – मोनिका…. ओ।।। माई।। । डार्लिंग”।

कोई आधे घंटे बाद मिक्की नाश्ता लेकर आई। उसकी नज़रें अभी भी झुकी हुई थी। ऊपर से वो सामान्य बनने की कोशिश कर रही थी।

मैंने उसे पूछा,”क्या बात है ?”

तो वो बोली “कुछ नहीं आआन्न…. वो….। वो हम मंदिर कब चलेंगे ?”

मैंने उसके चहरे की और गौर से देखते हुए कहा,”शाम को चलेंगे अभी तो बहुत गरमी है !”

आज कामवाली बाई गुलाबो नहीं उसकी लड़की अनारकली आई थी। मैं सोफे पर बैठा टीवी देख रहा था। जब मिक्की रसोई में जा रही थी तो अनारकली उधर देखते हुए मेरे पास आकर फुसफुसाने वाले अंदाज में आँखें मटकते हुए बोली “ये चिकनी लोंडिया कौन है ?”

मैंने उसके दोनों संतोरों को जोर से दबाते हुए कहा “क्यों लाल मिर्च से जल गई क्या ?”

“जले मेरी जूती !” पैर पटकते हुए वो अपना मुंह फुलाते हुए वो अन्दर चली गई।

आप चौंक गए न ? मैं आपको बताना भूल गया कि अनु हमारे यहाँ काम करनेवाली बाई गुलाबो की लड़की है जिसे मैं कई बार चोद चुका हूँ और उसकी गांड भी मार चुका हूँ। वो तो समझती है कि सारी खुदाई छोड़ कर मैं तो बस उस पर ही मोर हूँ। उसे हम भंवरों की कैफियत का क्या गुमान। वैसे भी भगवान् ने औरतों को दूसरी किसी भी सुन्दर औरत के लिए ईर्ष्यालू बनाया ही है तो इसमें बेचारी अनारकली का क्या दोष है।

शाम को कोई चार बजे मैं और मिक्की लिंग महादेव मंदिर पर जाने के लिए तैयार हो गए। मधु ने वो ही कमर दर्द का बहाना बनाया और साथ नहीं गई। मैं इस कमर दर्द का मतलब अच्छी तरह जानता था। मिक्की को जब ये पता चला कि बुआजी साथ नहीं जा रही तो वो बहुत खुश हुई पता नहीं क्यों। दो जनो के लिए तो कार की जगह बाइक ही ठीक थी।

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