जिस्म की प्यास compleet

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raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 28 Oct 2014 08:34

गतान्क से आगे……………………………………

डॉली ने फिर किताब खोली और राज को पढ़ाना शुरू कर दिया... उसने राज से कहा 'इसमें तुम्हे ज़्यादा कुच्छ नही पढ़ना बस कौन कौन से रिप्रोडक्टिव ऑर्गन्स होते है, वो कैसे दिखते है और क्या क्या काम करते है ये पता होना चाहिए"

मॅम वोही तो मुझे बनाने में बहुत दिक्कत होती है.. डॉली परेशान होके कुर्सी से उठी और चॉक पकड़के बोर्ड पे बनाने लगी... राज बिल्कुल सामने बैठके उसकी गान्ड को हिलते हुए देख रहा... "लो ऐसा बनाते है" डॉली ने कहा

राज ने नादान होके पूछा "ये है क्या मॅम"

डॉली मॅम ये सुनके हल्की सी मुस्करा दी और बोली "अर्रे ये लड़कियों का ऑर्गन है"

राज बोला "वो कभी देखा नहीं ना मॅम तो इसलिए पता नहीं"

ये सुनके डॉली ने बोला "देखो ज़्यादा स्मार्ट ना बनो और उठ कर मेल का ऑर्गन बनाओ और वो देखा है या वोभी नहीं देखा??"

राज ने चॉक उठाके चित्र बना दिया... राज ने बोला "मॅम ये वाला स्कूल आने के वक़्त ऐसा होता है (गिरा हुआ) मगर आपको देख कर ये ऐसा हो जाता है (सख़्त खंबे की तरह)" डॉली हड़बड़ा के बोली "देखो राज तुम ज़्यादा बनो नहीं.. ये सब सुनने के लिए मैं तुम्हे पढ़ा नहीं रही हूँ"

ये सुनके डॉली की चूत हल्की सी गीली हो गयी और उसने राज को ये गेम खेलने से मना कर्दिआ.. राज बोला "क्यूँ क्या हुआ.. सच्ची बताओ मज़े आ रहे थे ना"

डॉली बोली "नहीं आ रहे थे और अब मैं फोन काट रही हूँ" ये कहके डॉली ने फोन काट दिया... फिर उसने अपने पाजामे में हाथ डालके महसूस किया की उसकी पैंटी हल्की सी नम हो गई है.. तभी राज का फोन पे मैसेज आया " फोन क्यूँ काट दिया.. ??" डॉली ने लिखा "बस काफ़ी बात करली थी तुमसे"

राज ने लिखा "अच्छा ये तो बताओ कि तुमने आज पहेन क्या रखा है??"

डॉली लिखती "क्यूँ क्या करना है तुम्हे??"

राज ने लिखा "अर्रे मैं तुम्हे सोचूँगा ना.. बताओ ना डॉली"

डॉली जवाब दिया "मैने सफेद रंग का नूडल स्ट्रॅप वाला टॉप पहना है और नीचे काले रंग का पाजामा"

राज मज़ाक में लिखता "और अंदर क्या पहना है??"

डॉली मज़ाक में लिखती "बदतमीज़ शर्म नहीं आती :"

राज ने बोला "मेरे ख़याल से तुमने कुच्छ नहीं पहेन रखा अंदर"

डॉली ने लिखा "अच्छा आके खुद देख लो अगर शक़ हो रहा है मुझपे"

राज का लंड ये सुनके जाग गया और उसने लिखा

"अगर पहना होगा तो पिच्छली बार की तरह उतार दूँगा"

ये पढ़के डॉली शरम के मारे लाल हो गयी थी... इससे पहले वो कुच्छ लिखती घर की घंटी बजने लगी और उसने दरवाज़ा खोलके देखा तो शन्नो खड़ी थी.... डॉली को नज़ाने क्यूँ शन्नो की हालत थोड़ी खराब सी लग रही थी... शन्नो ने डॉली से कुच्छ बात भी नही करी और सीधा अपने कमरे में जाके लेट गयी... शन्नो को राहत इस बात की थी कि उसका बेटा घर पर नहीं था... डॉली ने राज को बादमें बात करने के लिए और शन्नो के पास जाके बैठके बात करने लगी...


raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 28 Oct 2014 08:35

उधर दूसरी ओर ललिता बिल्कुल भी परशु से नज़र नहीं मिल पा रही थी और परशु किसी ना किसी बात की वजह से ललिता के सामने आए जा रहा था.. उसे ये भी समझ नहीं आ रहा था कि परशु को उस खिलौने के बारे में कैसे पता है और रिचा और उसके बीच क्या खिचड़ी पक रही है.. वो पूरी तरह परेशान थी.. कुच्छ दोपहर के 3 बज रहे थे और रिचा को काफ़ी नींद आ रही थी.. ललिता ने पूरी कोशिश करी कि वो उसको सोने ना दे मगर वो फिर सो गई.. ललिता सोचने लग गयी कि अब वो क्या करें.. उसका दिमाग़ चल ही नहीं रहा था.. उसने किताब उठाई और पढ़ना शुरू कर दिया और उसमें भी उसका बिल्कुल भी मन नहीं था.. कमरे के बाहर भी काफ़ी शांति छाई हुई थी,.. वो देखना चाहती थी कि आख़िर कार परशु कर क्या रहा है.. ललिता ने धीरे से दरवाज़ा खोला और कमरे के बाहर निकली.. घर में हल्का हल्का अंधेरा सा था क्यूँ कि सारी खिड़किया पर्दे से धकि थी.. जब वो किचन तक पहुचि तो परशु उसे देख कर बोला "क्या है" ललिता घबराकर बोली "नहीं कुच्छ नहीं पानी लेने आई थी"

जब वो पानी पीके जा रही थी तब परशु ने बोला "कल मज़ा आया था तेरे को??" ललिता ये सुनके और भी ज़्यादा घबरा गई..

परशु ने फिर से बोला मगर इस बार थोड़ा ज़ोर से "कल रात मज़ा आया??" ललिता के मुँह से सिर्फ़ "जी" निकला और वो वहाँ से चली गयी.. कमरे में जाके ललिता ने सबसे पहले अपना माथा पौच्छा और घबराकर बिस्तर पे लेट गयी और अपने आपको चादर से धक लिया..

कुच्छ देर चैन से सोने के बाद जब ललिता की आँख खुली तो रिचा बिस्तर पे नहीं थी.. ललिता जल्दी से बिस्तर से उठी और दबे पाओ कमरे के बाहर गयी.. जब पूरी घर में रिचा नहीं मिली तब उसकी नज़र परशु के कमरे के तरफ बढ़ी जोकि बंद पड़ा था.... ललिता दरवाज़ा पे कान रखे सुनने लगी.. कमरे में से हल्की हल्की आवाज़ आ रही थी.. आवाज़ फिर सिसकीओ में बदल गयी... ललिता के दिमाग़ में परशु का मोटा लंड रिचा की चूत को चोद्ता हुआ नज़र आ रहा था.. उन्न सिसकिओं ने ललिता को काफ़ी मदहोश कर दिया था और अपने आप ही उसका हाथ उसके जिस्म से खेलने लगा था... फिर कुच्छ सेकेंड के लिए आवाज़ बंद हो गई और कमरे का दरवाज़ा अचानक से खुल गया.. परशु ने ललिता को घूरके पूछा "क्या हो गया??" ललिता कुच्छ नहीं बोल पाई..

परशु ने उसको बोला "रिचा बाहर बाल्कनी में है उसके पास जाओ मुझे अभी परेशान ना करो.." ये बोलकर उसने दरवाज़ा ललिता के मुँह पे दे मारा... ललिता धीरे धीरे बाल्कनी की तरफ बढ़ी और जैसी उसने रिचा को वहाँ पाया उसका दिमाग़ पूरी तरह परेशान हो चुका था........

भोपाल में शाम के कुच्छ 5:30 बज रहे थे नारायण आराम से सफेद कुर्ते पाजामे में बैठा

एफ टी वी देख रहा था.. सुधीर आज रात को अपने घर का कुच्छ काम ख़तम करके आएगा तो इसलिए वो अकेले चैन

से बैठा हुआ था.. फिर घर की घंटी बजी और नारायण ने चॅनेल चेंज कर दिया और बाहर देखने गया..

उसके सामने रश्मि एक गुलाबी सूट में खड़ी थी और उसके साथ वो लड़की थी जिसको आज शराब पीते हुए

पीयान ने पकड़ा था.. रश्मि ने बात शुरू करते हुए कहा "सर अंदर आके बात करें?"

नारायण ने दोनो को अंदर बुलाया और दोनो अंदर जाके सोफे पे बैठ गयी और नारायण उनके सामने वाले सोफे पे..

"हां बोलो रश्मि तुम यहाँ कैसे और इन मेडम को क्यूँ लाई हो" नारायण ने पूछा

रश्मि नारायण की आँखों में आँखें डालके बोली "सर ये वोई लड़की है जिसको पीयान आपके पास लाया था...

इसका नाम नवरीत कौर है.. सर उस पीयान ने आपसे झूठ बोला था रीत को फसाने के लिए"

नारायण रीत को देख कर बोला जोकि अपना सिर झुकाके बैठी थी "रश्मि तुम्हे ये कैसे पता??

रश्मि बोली "सर आपके जाने के बाद रीत ने मुझे सब कुच्छ बताया इसलिए मैं आपके पास आई हूँ"

नारायण ने कहा "रश्मि तुम हमारे ऑफीस की ही एक अच्छी करम्चारि हो और मैं तुम्हारी बात मान भी

लेता हूँ मगर वो ऐसा क्यूँ करेगा"

रश्मि बोली "सर ये बात ही कुच्छ ऐसी थी जो आपको नही बताई जा सकती थी मगर फिर भी आपको बताना पड़ेगा....

सर वो रीत को गंदी नज़रो से देखता था और कई बारी उसको उल्टा सीधा भी बोला है उसने और जब रीत ने शिकायत

करनी चाही तो वो पीयान सीधा उसको लेके आपके पास आ गया और आपको ये झूठी कहानी सुना दी"

raj..
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Re: जिस्म की प्यास

Unread post by raj.. » 28 Oct 2014 08:35

नारायण मुस्कुराकर बोला "मुझे नहीं पता था कि हमारे स्कूल की सबसे ज़्यादा काम करने वाली लड़की एक लड़की

को बचाने के लिए इतना झूठ भी बोल सकती है.. वैसे तुम दोनो की जानकारी के लिए मैं बता दू कि उस पीयान

ने मुझे वो बॉटल भी दिखा दी थी और जहाँ वो शराब गिरी वो जगह भी"

ये सुनके रीत की आँखों में से आँसू टपकने लगे मगर रश्मि फिर भी नारायण से रीत की तरफ से

माफी माँगने लगी.. जब नारायण ने दोनो लड़कियों को जाने के लिए कहा तब रश्मि ने पलट कर कहा

"ठीक है सर वैसे आप भी कम नहीं हो जो लड़कियों को खेलते हुए खिड़की से देखते रहते हो.."

ये सुनके नारायण थोड़ा आश्चर्य चकित हो गया.. रश्मि ने आगे बढ़के और कहा "आपको क्या लगता है कि आप बहुत चालाक हो जो आपकी हर्कतो के बारे में किसी को पता नही चलेगा.... मैने एक नही कयि बारी आपको देखा है... वैसे आपको स्कूल के कपड़ो में लड़किया पसंद है ना इसलिए तो मैं रीत को स्कूल के कपड़ो में ही लेके आई हूँ"

रश्मि के बड़बोले अंदाज़ को देख कर नारायण तो हैरान परेशान ही रह गया.. उसी दौरान रीत ज़ोर ज़ोर से रोने का नाटक करने लगी... नारायण रस्मी को देख कर बोला "अपनी दोस्त को बोले नाटक बंद करें और मेरे पास आए.."

रीत ये सुनके नारायण के पास जाके खड़ी हो गयी.. ऊपर से नीचे रीत को देखने के बाद नारायण ने रीतको

उसकी टाइ पकड़के उसको खीचता हुआ अपने कमरे ले गया और उसको बिस्तर पे फेंक दिया.. रश्मि को लगा उसका

काम हो गया है और जब वो घर के बाहर जाने लगी तो नारायण बोला "तुम्हे जाने के लिए किसने कहा"

नारायण के इस निराले अंदाज़ को देख कर रश्मि पीछे नही हटी और अंदर कमरे के अंदर आ गई....

नारायण एक कूसरी पे बैठा हुआ था और उसने रस्मी को बोला "अगर तुम्हे माफी चाहिए तो जैसा मैं कहु वैसा

करना पड़ेगा" रीत और रश्मि ने मंज़ूरी दी.. फिर नारायण बोला "रश्मि रीत के पास जाओ और

उसके रसीले होंठो को जाके चूम लो" रश्मि रूपाल के पास गयी और 2 सेकेंड उसके गोर सेचेहरे को देख कर

उसने अपने होंठो को उसके होंठो पर टीका दिया.. रीत को पहले झिझक हुई मगर फिर वो भी रश्मि को चूमने लगी.. दोनो के हाथ एक दूसरे के बदन पे चल रहे थे.... नारायण को यकीन नही हुआ कि रश्मि उस छोटी उम्र

की लड़की को चूम रही है... वो नही जानता था कि रश्मि के ऐसे करने की वजह क्या है और उसको इस बात से कुच्छ

फरक भी नही था...

नारायण ने धौस जमाते हुए बोला "चलो अब दोनो एक दूसरे को उपर से नंगा करो

" जैसे कि पहले बताया था कि रश्मि एक शरीफ रिया सेन लगती थी मगर अब नारायण का नज़रिया बदल गया था...

दिखने में वो रिया सेन जैसी ही दुबली थी मगर अब शरीफ बिल्कुल भी नही थी....

नारायण की एक आवाज़ पर रश्मि ने रीत की शर्ट को उस नीली स्कर्ट के बाहर निकाला और बारी बारी उसके बटन्स

खोलने लगी.... रीत की शर्ट उतरते ही रश्मि के हाथ उसके मम्मो पे पड़े....

हर स्कूल गर्ल की तरह रीत ने भी सफेद ब्रा पहेन रखी थी.... रीत काफ़ी गोरी और लंबी थी..

उसका बदन सही सही जगह पर फूला हुआ था और उसके बाल काले घने थे...

ये मानलो कि पक्की पंजाबन थी रीत.... और उसके मुक़ाबले में रश्मि भी गोरी थी मगर काफ़ी पतली और लंबी थी..

. तो नारायण की किस्मत इतनी अच्छी थी कि उसको दो एकदम अलग तरह की लड़कियों को आज चोद्ने का मौका मिल रहा था....

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