हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
Re: हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
अब तो माया मैडम का सर्वेंट क्वार्टर तय जगह बन गई थी. हर दूसरे दिन शाम को दो या तीन वहाँ आ जाती और मैं एक के बाद एक सभी को बारी बारी से अपनी पूरी मेहनत से उनकी प्यास को बुझाता. कभी कभी जब माया मैडम के पति रात के ड्यूटी पते तो शाम से देर रात तक यह कार्यक्रम चलता रहता. सीमा माया मैडम की पड़ोसन थी इसलिए सीमा मैडम कई बार रात के बारह बारह बजे तक रुक जाती. वो अपने पति से यह कहती कि माया अकेली है. इसलिए वो उसके यहाँ जा रही है. इस तरह की रात मेरे लिए जन्नत हो जाती. एक ही बिस्तर पर माया और सीमा मैडम मेरा साथ होती और मुझे लगातार हर तरह से इस्तेमाल करती.
एक दिन की घटना बताये बगैर ये कहानी खत्म नहीं कर सकता. उस दिन मैं माया मैडम के उसी क्वार्टर में था. माया मैडम के साथ चित्रा मैडम भी थी. चित्रा मैडम कोटि थी इसलिए हम तीनों बहुत ही मुश्किल से उस बिस्तर पर आ पा रहे थे. मैं लगातार दोनों के बीच फंसा हुआ एक एक की इच्छा उरी कर रहा था. तभी माया मैडम के पति आ गए. माया मैडम तुरंत कपडे पहनकर चली गई. अब मैं और चित्रा मैडम उस कमरे में रह गए. आवाजों से यह पता चल गया कि उनके पति के साथ और भी तीन चार लोग है. अब हम बाहर जा ही नहीं सकते थे. क्यूंकि सभी बगीचे में बैठे थे. दोनों रास्ते बगीचे से ही होकर बाहर जाते थे. मैं बुरी तरह गहरा गया. लेकिन चित्रा मैडम ने मेरा हौसला बढाया. चित्रा मैडम ने मुझे अपने से लिपटा लिया. चित्रा मैडम ने मुझे लगातार आजमाया. मैंने अपने लिंग को उनके जननांग में आगे से ; पीछे से, कभी खड़े होकर तो कभी उनके ऊपर बैठ कर ; हर तरह से उनके जनांग को भिगोये रखा. कि कभी ऐसा अगता जैसे चित्रा मैडम का जननांग एकदम ढीला और बड़ा हो गया है. मैं थोडा भी हिलता तो मेरा लिंग बाहर आ जाता.
शायद किसी को भी विश्वास नहीं होगा. उस दिन मैंने चित्रा मैडम के जननांग में मेरा लिंग लगातार दो घंटों तक रखा था. बीच बीच में एकाध मिनट के लिए निकालता और फिर डाल देता. चित्रा मैडम मेरी हिम्मत से बहुत खुश हो गई. बाहर से आवाजें अब भी आ रही थी. अब हम दोनों ही थक चुके थे. हम दोनों को नींद आ गई. मेरा लिंग अभी भी चित्रा मैडम के जनांग में था और उसी तरह हम दोनों सो गए. जब वे लोग चले गए और माया के पति उन्हें छोड़ने गए तब माया अन्दर आई. उन्होंने जब हमें इस हालत में सोते देखा तो उन्हें बड़ा अच्छा लगा. उन्होंने हमें जगाया और हम अपने अपने घर लौट आये.
इस घटना के बाद अब करीब सात महीने बीत चुके हैं. आज भी मेरा यह मसाज और संभोग का काम बिना किसी रोक टोक के जारी है. मेरी क्लब कि तनख्वाह तीन हजार है और मुझे इन पाँचों से कभी चार तो कभी कभी छह हजार तक मिल जाता है. मैं मेरी जन्नत में बहुत खुस हूँ.
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चाची के साथ होटल में मज़े किये
मेरा नाम रवि है. बात उन दिनों की है जब मेरी उम्र 19 साल की थी और मै इंजीनियरिंग के पहले साल में बंगलौर में पढ़ रहा था. मै बनारस का रहने वाला हूँ. मेरे सेमेस्टर के एक्जाम समाप्त हो गए थे. और कुछ दिनों की छुट्टी के लिए घर आया था. मेरा घर संयुक्त परिवार का है. मेरे परिवार के अलावा मेरे चाचा एवं चाची भी साथ में ही रहते थे. मेरे चाचा पेशे से हार्डवेयर के थोक विक्रेता थे. उन्होंने काफी धन कमाया रखा था उन्होंने. उनकी शादी को सात साल हो गए थे लेकिन अभी तक कोई संतान नहीं हुई थी. चाची की उम्र 28 साल की थी. वो बनारस जिले के ही एक गाँव की थी. थी तो देहाती लेकिन देखने में मस्त थी. उनकी जवानी पुरे शवाब पर थी. झक गोरा बदन और कटीले नैन नक्श और गदराये बदन की मालकिन थी. वो लोग ऊपर के मंजिल में रहते थे. जब चाचा दूकान और मेरे पापा अपने कार्यालय चले जाते थे तो मै और चाची दिन भर ऊपर बैठ कर गप्पें हाकां करते थे. चाची का नाम मोना था. सच कहूँ तो वो मुझे अपना दोस्त मानती थी. वो मेरे सामने बड़े ही सहज भाव से रहती थी. अपने कपडे लत्ते भी मेरे सामने ठीक से नहीं पहनती थी. उनकी चूची की आधी दरार हमेशा दिखती रहती थी. कभी कभी तो सेक्स की बात भी कर डालती थी. जब भी मुझे अकेली पाती थी तो हमेशा डबल मीनिंग बात बोलती थी. जैसे बछडा भी दूध देता है. तेरा डंडा कितना बड़ा है? तुझे स्पेशल दवा की जरुरत है. आदी . दिन भर मेरे कालेज और बंगलौर के किस्से सुनते रहती थी. जब मेरे बंगलौर जाने के छः दिन शेष रह गए थे तभी एक दिन चाची ने कहा – वो लोग भी बंगलौर घुमने जाना चाहते हैं.
मैंने कहा – हाँ क्यों नहीं. आप दोनों (चाचा-चाची) मेरे साथ ही अगले शनिवार को चलिए. मै आप दोनों को वहां की पूरी सैर करवा दूंगा.
चाची ने अपना प्लान चाचा को बताया. चाचा तुरंत मान गए. मैंने उसी समय इन्टरनेट से हम तीनो का टिकट एसी फर्स्ट क्लास में कटवाया. अगले शनिवार को हमारी ट्रेन थी. अगले शनिवार को सुबह हम तीनो ट्रेन से बंगलौर के लिए रवाना हुए. अगले दिन रविवार को शाम सात बजे हम सभी बंगलौर पहुच चुके थे. मैंने उनको एक बढ़िया सा होटल में कमरा दिला दिया. उसके बाद मै वापस अपने होस्टल आ गया. होस्टल आने पर पता चला कि कल से कालेज के क्लर्क लोग अपनी वेतन बढाने के मांग को ले कर अनिश्चित कालीन हड़ताल पर जा रहे हैं. और इस दौरान कालेज बंद रहेगा. मेरे अधिकाँश मित्रों को ये बात पता चल गयी थी. इसलिए सिर्फ 25 – 30 प्रतिशत छात्र ही कालेज आये थे.
मै अगले दिन करीब 11 बजे अपने चाचा के कमरे पर गया.वहां दोनों नाश्ता कर रहे थे. चाची ने मेरे लिए भी नाश्ता लगा दिया. मैंने देखा कि चाचा कुछ परेशान हैं. पूछने पर पता चला कि जिस कम्पनी का उन्होंने फ्रेंचाइजी ले रखा है उस कम्पनी ने दुबई में जबरदस्त सेल ऑफ़र किया है . अब चाचा की परेशानी ये थी कि अगर वो वापस चाची को बनारस छोड़ने जाते और वहां से दुबई जाते तो तक तक सेल समाप्त हो जाती. और अगर साथ में ले कर दुबई जा नही सकते थे क्यों कि चाची का कोई पासपोर्ट वीजा था ही नहीं.
मैंने कहा – अगर आप दुबई जाना चाहते हैं तो आप चले जाएँ. क्यों कि मेरा कालेज अभी एक साप्ताह बंद रह सकता है. मै चाची को या तो बनारस पहुंचा दूंगा या फिर आपके वापस आने तक यहीं रहेगी. आप दुबई से यहाँ आ जाना और फिर घूम फिर कर चाची के साथ वापस बनारस चले जाना.
चाचा को मेरा सुझाव पसंद आया.
चाची ने भी कहा – हां जी, आप बेफिक्र हो कर जाइए. और वापस यहीं आइयेगा . तब तक रवि मुझे बंगलौर घुमा देगा. आपके साथ मै दोबारा घूम कर वापस आपके साथ ही बनारस चले जाऊंगी. चाचा को चाची का ये सुझाव भी पसंद आया.
लैपटॉप पर इन्टरनेट खोल कर देखा तो उसी दिन के दो बजे की फ्लाईट में सीट खाली थी. चाचा ने तुरंत सीट बुक की और हम तीनो एयरपोर्ट की और निकल पड़े. दो बजे चाचा की फ्लाईट ने दुबई की राह पकड़ी और मैंने एवं चाची ने बंगलौर बाज़ार की. चाची के साथ लंच किया. घूमते घूमते हम मल्टीप्लेक्स आ गए. शाम के सात बज गए थे. चाची ने कहा – काफी महीनो से मल्टीप्लेक्स में सिनेमा नहीं देखा. आज देखूंगी.
मैंने देखा कि कोई नई पिक्चर आयी थी इसलिए सारी टिकट बिक चुकी थी. उसके किसी हाल में कोई एडल्ट टाइप की इंग्लिश पिक्चर की हिंदी वर्सन लगी हुई है. फिल्म चार सप्ताह से चल रही थी इसलिए अब उसमे कोई भीड़ नही थी. मैंने 2 टिकट सबसे कोने का लिया और हाल के अन्दर चला गया. मुझे सबसे ऊपर की कतार वाली सीट दी गयी थी. और उस पूरी कतार में दुसरा कोई भी नही था. हमारी कतार के पीछे सिर्फ दीवार थी. मैंने जान बुझ कर ऐसी सीट मांगी थी. मेरा आगे वाले तीन कतार के बाद कोने पर एक लड़का और लड़की अकेले थे. उस कतार में भी उसके अलावे कोई नही था. उसके अगले कतार में दुसरे कोने पर एक और जोड़ा था. इस तरह से उस समय 300 दर्शकों की क्षमता वाले हाल में सिर्फ 20 – 22 दर्शक रहे होंगे. पता नही इतने कम दर्शकों के लिए फिल्म क्यों लगा रखा था. वो मेरे दाहिने और बैठी. चाची के दाहिने दिवार थी. तुरंत ही फिल्म चालू हो गयी.
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फिल्म शुरू होने के तुरंत बाद ही मेरे बाद के चौथे कतार में बैठे लड़के एवं लड़की ने एक दुसरे के होठों को किस करना चालू कर दिया. हालांकि बंगलोरे के सिनेमा घरों में इस तरह के सीन आम बात हैं. हर शो में कुछ लड़के लड़की सिर्फ इसलिए ही आते हैं.
चाची ने उस जोड़े की तरफ मुझे इशारा कर के कहा – हाय देख तो रवि. कैसे एक दुसरे खुलेआम को चूस रहे हैं .
मैंने कहा – चाची , यहाँ आधे से अधिक सिर्फ इसलिए ही आते हैं. सिनेमा हाल ऐसे जगह के लिए बेस्ट है. तू उस कोने पर बैठे उस जोड़े को तो देख. वो भी वही काम कर रहा है. अभी तो सिर्फ एक दुसरे को किस कर रहे हैं ना. आगे देखना क्या क्या करते हैं. तू ध्यान मत दे इन सब पर. सब मस्ती करते हैं. यही तो लाइफ है.
चाची – तुने भी कभी मस्ती की या नहीं इस तरह से सिनेमा हाल में.
मैंने कहा – अभी तक तो नहीं की. लेकिन अब के बाद पता नहीं.
तुरंत ही फिल्म में सेक्सी सीन आने शुरू हो गए. मेरी चाची ने मेरे कान में फुसफुसा कर कहा – हाय राम, जरा देखो तो ये कैसी सिनेमा है.
मैंने कहा – चाची, ये बंगलौर है. यहाँ सब इसी तरह की फिल्मे रहती है. अब देखो चुपचाप आराम से . ऐसी फिल्मो के मज़े लो. बनारस में ये सब देखने को नहीं मिलेगी.
वो पूरी फिल्म सेक्स पर ही आधारित थी. मेरी चाची अब गरम हो रही थी. वो गरम गरम साँसे फेंक रही थी. उसका बदन ऐठ रहा था. शायद वो पहली बार किसी हाल में एडल्ट फिल्म देख रही थी. मैंने पूछा – क्यों चाची? पहले कभी देखी है ऐसी मस्त फिल्म?
चाची – नहीं रे. कभी नही देखी.
मैंने धीरे धीरे अपना दाहिना हाथ उनके पीछे से ले जा कर उनके कंधे पर रख दिया. मैंने देखा कि चाची अपने हाथ से अपने चूत को साड़ी के ऊपर से सहला रही है. शायद सेक्सी सीन देख कर उनकी चूत गीली हो रही थी. मेरा भी लंड खड़ा हो गया था. मैंने भी अपना बायाँ हाथ अपने लंड पर रख दिया. मैंने धीरे धीरे चाची के पीठ पर दाहिना हाथ फेरा. उसने कुछ नही कहा . वो अपनी चूत को जोर जोर से रगड़ रही थी. मैंने उनकी पीठ पर से हाथ फेरना छोड़ दाहिने हाथ से उनके गले को लपेटा और अपनी तरफ उसे खींचते हुए लाया. चाची मेरी तरफ झुक गयी.
मैंने पूछा- क्यों चाची, मज़ा आ रहा है फिल्म देखने में?
चाची ने शर्माते हुए कहा – धत ! मुझे तो बड़ी शर्म आ रही है.
मैंने कहा – क्यों ? इसमें शर्माना कैसा? तुम और चाचा तो ऐसा करते होंगे न? तेरे एक हाथ जहाँ हैं न उस से तो लगता है कि मज़े आ रहे हैं तुझे.
चाची – हाय राम, बड़ा बेशरम हो गया है तू रे बंगलौर में रह कर. बड़ा देखता है यहाँ – वहां कि कहाँ हाथ हैं. कहाँ नहीं.
मैंने चाची के कानो को अपने मुह के पास लाया और कहा – जानती हो चाची? ऐसी फिल्मे देख कर मुझे भी कुछ कुछ होने लगता है.
चाची ने अपने होठ को मेरे होठो के पास लगभग सटाते हुए कहा – क्या होने लगता है?
मैंने अपने लंड को घसते हुए कहा – वही, जो तुझे हो रहा है न. मन करता है कि यहीं निकाल दूँ.
चाची – सिनेमा हाल में निकालते हो क्या?
मैंने – कई बार निकाला है. आज तू है इसलिए रुक गया हूँ.
चाची – आज यहाँ मत निकाल. बाद में निकाल लेना.
थोड़ी देर में फिल्म की नायिका ने अपनी चूची मसलवा रही थी. हम दोनों और गर्म हो गए. तो मैंने चाची के कान में अपने होठ सटा कर कहा – देख चाची, साली के चूची क्या मस्त है. नहीं?