प्यार हो तो ऐसा compleet

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rajaarkey
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Re: प्यार हो तो ऐसा

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 08:27

प्यार हो तो ऐसा पार्ट--18

गतान्क से आगे......................

इधर साधना अभी तक बिस्तर पर पड़ी थी. उठना बहुत मुश्किल हो रहा था उसके लिए. सारी रात नींद तो आई नही थी. बहुत ज़्यादा थॅकी हुई थी. “क्या बात है साधना? आज कुछ खाने को नही दोगि क्या?” गुलाब चंद ने पूछा. साधना धीरे से बिस्तर से उठती है और कहती है, “अभी तैयार करती हूँ पिता जी.” “बात क्या है. बहुत थॅकी थॅकी सी लग रही है तू.” “कुछ नही पिता जी बस यू ही.” “बहुत भूक लगी है मुझे.” “बस अभी लाती हूँ पिता जी आप बैठिए.” साधना अपने पिता के लिए तो खाना बना देती है लेकिन वो अब भी खुद कुछ नही खाती. कुछ भी खाने का मन ही नही है उसका. प्यार का घाव कुछ ऐसा ही होता है. जखम भरने में कुछ वक्त तो लगता ही है. वक्त के साथ साथ साधना संभालने लगती है. धीरे धीरे एक हफ़्ता बीत जाता है. अब जबकि गाँव में ठाकुर की सत्ता ख़तम हो चुकी थी तो मदन वर्षा को लेकर अपने घर ही आ गया. “ह्म्म तो तुम हो साधना. बहुत तारीफ़ करते हैं तुम्हारे भैया तुम्हारी. नज़र ना लग जाए मेरी तुम्हे बहुत सुंदर हो तुम तो.” साधना वर्षा की बात सुन कर हल्का सा मुश्कुरा दी. “मैं भी आपको पहली बार देख रही हूँ. भैया रहते तो थे खोए खोए पर ये नही पता था कि आपके प्यार में खोए है. भगवान आपके प्यार को सलामत रखे.” “मैने सुना की तुमने उस दरिंदे पिशाच को मार दिया. कैसे किया तुमने ये सब.” वर्षा ने कहा. “मुझे खुद नही पता. बस हो गया.” साधना ने कहा. ये तो साधना के प्यार की ताक़त थी जिसने प्रेम को बचा लिया. इसको किसी को समझाया नही जा सकता था. मदन ने साधना को बाहों में भर लिया और बोला, “बड़ी अनोखी है मेरी बहना. ये कुछ भी कर सकती है.” वर्षा बहन भाई का प्यार देख कर मुश्कुरा पड़ती है. “कब शादी कर रहे हो आप दोनो?” साधना ने पूछा. “जब तुम कहोगी साधना…बताओ कब करें, सारी तैयारी तो तुम्हे ही करनी है.” मदन ने कहा. “मैं आप दोनो के साथ हूँ भैया. बहुत खुश हूँ मैं आप दोनो के लिए. जो भी मुझसे बन पड़ेगा मैं करूँगी.” “अभी शादी नही कर सकते हम कुछ दिन, ठाकुर साहिब का निधन हुवा है अभी अभी. वर्षा भी थोड़ा गम में है. थोड़ा रुक कर करेंगे. लेकिन तब तक वर्षा यही रहेगी तुम्हारे साथ.” “बिल्कुल रहे यही. मुझे बहुत अछा लगेगा. वैसे भी बहुत अकेली महसूस करती हूँ मैं यहा. मैं चाय लाती हूँ. ” साधना ने कहा. साधना चाय लेने चली गयी. साधना के जाते ही मदन ने वर्षा को बाहों में भर लिया. “आज रात अपने घर में मज़े करेंगे.” मदन ने कहा. “शादी होने तक तुम्हे पास भी नही फटकने दूँगी मैं अब. वाहा किशोरे के घर तुम्हारा मन नही भरा. रोज रात को मुझे परेशान करते थे.” “क्या करू मेरा दिल ही नही भरता तुमसे. जितनी बार तुम-मे समाता हूँ और इच्छा होती है करने की. शायद संभोग ऐसा ही जादू करता है.” “अब तुम्हे कुछ नही मिलने वाला जनाब. वैसे भी मैं यहा साधना के साथ लेटुंगी. तुम्हारे साथ नही.” “क्यों?” “पागल हो क्या. शादी से पहले सब के सामने अछा लगेगा क्या?” “सब सो जाएँगे तभी ना करेंगे हम. तुम भी कैसी बात करती हो. वैसे भी कुछ दिनो से तो तुम गम में डूबी हो. कहा नज़दीक आने दिया तुमने मुझे.” साधना कमरे में आती है तो मदन और वर्षा को देख कर खाँसती है, “उः..उः..चाय तैयार है.” मदन फ़ौरन वर्षा को अपनी बाहों से आज़ाद कर देता है. वर्षा मदन को चुटकी काट-ती है. “करा दी ना मेरी बेज़्जती तुमने? क्या सोचेगी साधना.” वर्षा ने धीरे से कहा. साधना ने ये सुन लिया. “मैं कुछ नही सोचूँगी भाबी. ग़लती मेरी ही थी. मैं बिना दरवाजा खड़काए अंदर आ गयी मैं कुछ खाने को बनाती हूँ. आप दोनो तब तक बाते करो.” “हां साधना बहुत अछा सा खाना बना दे आज. पहली बार आई है वर्षा घर. इसको पता चलना चाहिए कि मेरी बहना बहुत अछा खाना बनाती है.” साधना मुश्कूराते हुवे बाहर आ जाती है और चूल्हा तैयार करती है. बहुत बिज़ी रखती है वो खुद को घर के काम काज में लेकिन फिर भी रह-रह कर प्रेम की याद आ ही जाती है. ………………………………………………………………. प्रेम अब बिल्कुल ठीक हो चुका है और अब वो गाँव से जाने की तैयारी में है. केशव पंडित उसे रोकने की कोशिस तो करता है पर वो नही मानता. “मुझे मेरे गुरु के पास जाना होगा पिता जी. आपको पता ही है कि मैने सन्यास ले लिया है. यहा मेरे अध्यातम का विकास नही हो पाएगा. तरह तरह के भटकाव हैं यहा. जब से यहा आया हूँ क्रोध, घृणा पता नही क्या क्या आ गया है मेरे अंदर. यहा थोड़े दिन और रुका तो मेरा अध्यात्मिक विकास रुक जाएगा. मुझे यहा से जाना ही होगा.” “जैसी तुम्हारी मर्ज़ी बेटा. रोकुंगा नही तुम्हे. लेकिन कभी कभी अपने बूढ़े बाप को देखने आते रहना. अकेला हूँ यहा, तेरे शिवा मेरा कौन है.” “आता रहूँगा पिता जी. ज़रूर आता रहूँगा. ये भी क्या कोई कहने की बात है.” प्रेम घर से बाहर निकलता है और चारो तरफ देखता है. “भगवान इस गाँव में सुख शांति बनाए रखे. पिता जी ठीक है मैं चलता हूँ. सफ़र थोड़ा लंबा है, मुझे अभी निकलना होगा.” “ठीक है बेटा अपना ख्याल रखना.” प्रेम चलने लगता है. लेकिन तभी उसे पीछे से आवाज़ आती है. “स्वामी जी!” प्रेम मूड कर देखता है. “भीमा कहा थे तुम. मिलने भी नही आए एक बार भी.” भीमा दौड़ कर प्रेम के पास आता है और कहता है, “आया था स्वामी जी लेकिन मुझे आपसे मिलने नही दिया गया.” “जाओ बेटा. तुम्हे देर हो रही है. इन गाँव वालो से इतना मूह मत लगो.” केशव पंडित ने कहा. “कैसी बात करते है आप पिता जी. ये सब अछा नही लगता मुझे….हां भीमा बताओ कैसे हो तुम. अब तो गाँव में शांति है ना.” प्रेम ने कहा. “कह नही सकता स्वामी जी, बहुत ख़ुसी हुई आपको बिल्कुल ठीक ठाक देख कर. रही गाँव की बात, जिसमे देवी समान साधना रहती हो वाहा अशांति ज़्यादा दिनो तक टिक नही सकती.” “ये क्या बोल रहे हो साधना ने क्या कर दिया ऐसा?” प्रेम ने हैरानी में पूछा. “क्या आपको पंडित जी ने कुछ बताया नही. ये तो धूर्त पने की हद पार कर दी पंडित जी ने.” “बेटा तुम जाओ यहा से ये पागलो जैसी बाते कर रहा है.” केशव पंडित ने कहा. “रुकिये पिता जी…भीमा ये सब क्या है. कहना क्या चाहते हो तुम.” “स्वामी जी पिशाच आपको जंगल में उठा ले गया था. गाँव के सारे लोग घरो में घुस्स गये थे. किसी ने कोई मदद नही की. आपके पिता श्री भी कुछ करने का विचार नही रखते थे. इन्होने तो आपको मरा मान लिया था.” “ऐसा कुछ नही है प्रेम ये झूठ बोल रहा है.” केशव पंडित बीच में बोल पड़ा. “रुकिये पिता जी कहने दीजिए इसे.” प्रेम बहुत उत्शुक था सब कुछ जान-ने के लिए. “मैं झूठ नही बोल रहा स्वामी जी. झूठ बोल कर मुझे क्या कोई इनाम मिलेगा?. स्वामी जी ये तो साधना थी जिसने हिम्मत नही हारी थी. उसी ने पंडित जी से प्रार्थना करके कुछ उपाय पूछा. इन्होने बताया की भोले नाथ के त्रिशूल से ख़ात्मा हो सकता है पिशाच का. बस फिर क्या था. साधना त्रिशूल ले कर अकेले ही निकल पड़ी जंगल की ओर.” “मैं नही गया था क्या.” केसव पंडित गुस्से में बोला. “आपने तो और मुसीबत ही बढ़ाई थी. रास्ते पर ढोता रहा मैं आपको. साधना अकेली रह गयी थी. आपके साथ होने की बजाए मुझे साधना के साथ होना चाहिए था.” “हां आगे बताओ फिर क्या हुवा.” प्रेम ने कहा. “स्वामी जी पता नही साधना ने कैसे किया ये सब लेकिन वो जंगल में पिशाच के ठीकाने तक पहुँच ही गयी. ना केवल उसने पिशाच को मारा बल्कि अपनी पीठ पर ढो कर आपको गाँव तक लाई. सीधा वैद्य के पास ले गयी थी वो आपको. मुझे तो साधना किसी देवी से कम नही लगी. ऐसा काम कोई आम इंसान नही कर सकता.” पूरी कहानी सुन कर प्रेम की आँखे भर आई और उसकी आँखे टपकने लगी. प्रेम की आँखो में आँसू देख कर भीमा ने पूछा, “क्या हुवा स्वामी जी आपकी आँखो में आँसू. मैने कुछ ग़लत कह दिया क्या?” “नही भीमा तुमने बहुत अछा किया जो ये मुझे बता दिया. मैं तो खुद पे रो रहा हूँ. साधना सही कहती थी ‘इतना भी उपर नही उठा मैं’. बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है मुझसे.” भीमा को कुछ समझ नही आ रहा था. समझता भी कैसे उसे बिल्कुल नही पता था कि प्रेम और साधना के बीच क्या चल रहा है. “बेटा तुझे जो समझना है तू समझ. बस इतना ध्यान रखना कि मैं तेरा पिता हूँ और ये गाँव वाले तेरे कुछ नही लगते.” “पिता जी बस कुछ और ना कहें मेरा दिल बहुत व्यथित है. जो पाप मुझसे हुवा है मैं उसके लिए खुद को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा.” “ऐसा क्यों बोल रहे हो बेटा. ऐसा क्या हो गया?” केसव पंडित ने पूछा. “हाँ स्वामी जी ऐसा क्यों कह रहे हैं.” भीमा ने भी पूछा. “आप लोग नही समझेंगे. मुझे अभी साधना से मिलना होगा…वरना भगवान मुझे कभी माफ़ नही करेंगे.” प्रेम ने कहा और साधना के घर की तरफ चल पड़ा. “पागल मत बनो वो कोई देवी-वेवी नही है. तुम्हे देर हो जाएगी…कहा जा रहे हो?” “जाने दो उन्हे पोंगे पंडित…क्यों हमेशा बेकार की बाते करते हो.” भीमा ने कहा. “तू दफ़ा हो जा यहा से. मैं तेरी शकल भी नही देखना चाहता मक्कार कही का.” “हा..हा..हा मक्कारी खुद करते हो और मक्कार मुझे बोलते हो…पोंगे पंडित.” भीमा कह कर चल दिया. केशव दाँत भींच कर रह गया. प्रेम जब साधना के घर पहुँचा तो वो अपने घर के बाहर चूल्‍हे के सामने बैठी खाना बना रही थी. उसकी पीठ प्रेम की ओर थी इश्लीए उसे पता ही नही चला की प्रेम उसके पीछे खड़ा है. कुछ देर तक प्रेम साधना को चुपचाप खड़े हुवे देखता रहा. उसे समझ नही आ रहा था कि साधना को क्या कहे. स्वामी लोग भी कभी कभी अजीब दुविधा में पड़ जाते हैं. साधना तो अपने काम में खोई थी. चूल्‍हे में आग ठीक से जल नही रही थी इश्लीए वो फूँक मार रही थी चूल्‍हे में. धुंवा ही धुंवा हो रखा था. हाथो में उसके राख लगी थी. धुनवे के कारण बार बार आँखो में आँसू आते थे और वो हाथ से आँसू पोंछने की कोशिस करती थी. चेहरे पर भी राख लग गयी थी उसके. “बहुत व्यस्त हो काम में. मेरी तरफ मूड कर नही देखोगी क्या.” अचानक अपने पीछे आवाज़ सुन कर साधना घबरा गयी और फ़ौरन खड़ी हो गयी. वो एक शब्द भी नही बोली. शायद बोल ही नही पाई. उसने बस अपने दिल पर हाथ रख लिया. बहुत जोरो से धड़क रहा था दिल उसका. उसे विश्वास ही नही हो रहा था की प्रेम वाहा खड़ा है. “दिन में भी सपने देखने लगी हूँ मैं अब” साधना ने कहा और मूड कर वापिस चूल्‍हे के सामने बैठ गयी. “मैं सपना नही हूँ साधना, मैं तुमसे मिलने आया हूँ.” प्रेम ने कहा. अब तो साधना को विश्वास करना ही पड़ा. वो खड़ी हुई और बोली, “प्रेम तुम्हे बिल्कुल ठीक देख कर मुझे जो ख़ुसी मिल रही है मैं शब्दो में नही कह सकती. बिल्कुल ठीक हो ना तुम अब. कही कोई तकलीफ़ तो नही है.” “बस अब रुलाओगि क्या तुम मुझे. क्यों करती हो इतना प्यार मुझे तुम. मैं तुम्हारे प्यार के लायक नही हूँ साधना. नही हूँ मैं लायक तुम्हारे प्यार के.” प्रेम भावुक हो उठा. “मेरे हाथ में नही है प्रेम… नही है मेरे हाथ में. और तुम्हे प्यार करना तो शोभाग्य है मेरा.” “मैने तुम्हे डाँट कर भगा दिया था उस दिन. आज मुझे भीमा ने बताया कि कैसे तुम मुझे जंगल से लेकर आई. क्या करूँ मैं अब मैं जा रहा था अपने गुरु के पास. लेकिन अब ये जींदगी तो तुम्हारी हो गयी. कैसे जाउन्गा मैं अब. ” “तुम जाओ प्रेम. ख़ुसी ख़ुसी जाओ मेरा प्यार तुम्हारे पाँव की बेड़िया नही है. मैं शायद स्वार्थी हो गयी थी जो हर वक्त बस अपना ही सोचती थी. पर अब नही. प्यार सिर्फ़ मिलन का नाम नही है. बिछड़ना भी प्यार ही है. तुम हमेसा मेरे दिल में रहोगे. तुम्हे निकाल नही पाउन्गि दिल से. तुम ख़ुसी ख़ुसी जा सकते हो प्रेम. अब मैं समझ गयी हूँ की मुझे तुम्हारे मकसद में रोड़े नही अटकाने चाहिए. मुझसे जो भी भूल हुई उसके लिए मैं तुमसे माफी चाहती हूँ.” “क्या तुम सच कह रही हो?” “क्या कभी झूठ बोला है मैने तुमसे. तुम्हारे सर की कसम. जाओ तुम अपनी मंज़िल को हाँसिल करो. तुम्हारे लिए मेरा प्यार हमेसा बना रहेगा. मुझे तुमसे कोई गिला शिकवा नही है.” “मैं जा ही रहा था. अछा हुवा जो भीमा ने मुझे सब कुछ बताया और मैं तुमसे मिलने आ गया. अब मैं दिल पर बिना कोई बोझ लिए जा सकता हूँ. मुझे देर हो रही है क्या मैं निकलु.” “अगर ऐसा है तो तुरंत निकलो प्रेम वरना मुझे तुम्हारी चिंता रहेगी. बस जहा भी रहना अपना ख्याल रखना. भगवान तुम्हे वो सब दे जो तुम पाना चाहते हो.” “मैं किस मूह से तुम्हारा शुक्रिया करूँ.” “उसकी कोई ज़रूरत नही है प्रेम. मेरी जगह तुम होते तो तुम भी यही करते. जाओ अब देर मत करो.” “हां मैं चलता हूँ साधना. तुम भी अपना ख्याल रखना.” प्रेम मूड कर चल देता है. साधना उसे जाते हुवे देखती रहती है. प्रेम पीछे मूड कर देखता है तो दोनो प्यार भरी मुश्कान से देखते हैं एक दूसरे को. धीरे धीरे प्रेम साधना की आँखो से ओझल हो जाता है. ना चाहते हुवे भी साधना की आँखे भर आती है. “खुस रहना प्रेम. जहा भी रहो खुस रहना” साधना आँसुओ को पोंछते हुवे कहती है. …………………………………………………………………. जैसे जैसे दिन चढ़ता है मौसम करवट बदलने लगता है. आसमान में घने बादल छा जाते हैं. भीमा अपने खेतो में कुछ बो रहा था. “पहले तो अकेला था मैं. अब मेम्साब भी हैं. खूब मेहनत करनी होगी मुझे खेतो में.” भीमा आसमान की तरफ देखता है. “अफ लगता है बड़े जोरो की बारिश आने वाली है. जल्दी से घर चलता हूँ वरना मेम्साब के लिए जो तोहफा लिया है वो भीग जाएगा.” भीमा घर की तरफ भागता है. लेकिन रास्ते में ही जोरो की बारिश शुरू हो जाती है. लेकिन फिर भी वो खुद तो भीग जाता है लेकिन किसी तरह से तोहफे को भीगने से बचा लेता है. “आ गये तुम कहा रह गये थे?” भीमा ने तोहफा अपने पीछे छुपा रखा था. “पहले आँखे बंद कीजिए.” “क्या बात है?” “कीजिए तो मेम्साब.” रेणुका आँखे बंद कर लेती है. “अब हाथ आगे कीजिए.” रेणुका हैरत में हाथ भी आगे कर लेती है. भीमा रेणुका के हाथ में एक सुंदर सी साड़ी रख देता है. “इतनी प्यारी साड़ी…कहा से लाए.” “खरीद कर लाया हूँ मेम्साब.” रेणुका ख़ुसी से भीमा के गले लग जाती है. “मेरे कपड़े गीले हैं मेम्साब और मौसम भी खराब है. ऐसे में गले लगेंगी आप तो कही मैं उत्तेजित ना हो जाउ.” “घबराओ मत डंडा तैयार है.” “फिर ठीक है.” दोनो ठहाका लगा कर हँसने लगते हैं. “बहुत प्यार करने लगी हूँ मैं तुम्हे पता नही क्यों” रेणुका ने कहा. “मेरी भी कुछ ऐसी ही हालत थी. खेतो में हर पल आपका ही ख्याल आ रहा था. मेम्साब मीटा दो ना ये दूरिया. कब तक हम शादी का इंतेज़ार करेंगे.” भीमा के लिंग में उत्तेजना होने लगी थी और वो अब रेणुका को चुभ रहा था. “नही भीमा अभी नही. मैं तब तक तुम्हे खुद को समर्पित नही कर सकती जब तक हम पति पत्नी ना बन जाए. बुरा मत मान-ना लेकिन मेरे विचार में अभी ये सब ठीक नही है.” “क्या मैं आपको चूम सकता हूँ…होंटो पर.” “रोकूंगी नही तुम्हे पर बात तो वो भी वही रहेगी. क्या तुम थोड़ा और इंतेज़ार नही कर सकते. मैं बिना किसी ग्लानि के खुद को तुम्हे समर्पित करना चाहती हूँ. और ये तभी होगा जब तुम मेरी माँग में सिंदूर भर दोगे.” “माफ़ कीजिए मेम्साब…मैं उत्तेजित हो कर ये सब बोल बैठा. ये उत्तेजना बहका देती है मुझे. पर हम जैसे अब हैं वैसे तो रह सकते हैं. बड़ा सुकून मिलता है आपके करीब मेम्साब.” “हां इतना तो ठीक है. लेकिन दिक्कत यही है कि तुम्हारा वो बार बार तन जाता है मेरी तरफ और मुझे डर लगता है की कही हम बहक ना जायें. अगर उसे थाम लो तो हम एक दूसरे के करीब रह सकते हैं.” “वो तो मेरे बस में है ही नही आप जान ही गयी होगी अब तक. आप बस डंडा रखो हाथ में शायद कुछ बात बन जाए.” “नही अब मैं अपने होने वाले पति पर डंडा नही बर्साउन्गि.” “ऐसा है क्या मेम्साब. मुझे तो ऐसा लगता था कि मुझे पीटाई के लिए तैयार रहना होगा हर वक्त.” “ये मेम्साब कहना कब छोड़ोगे तुम. अब तुम्हारी मेम्साब नही हूँ मैं बीवी बन-ने वाली हूँ तुम्हारी.” “छूट जाएगी धीरे धीरे मेम्साब आओ थोडा यू ही बिस्तर पर लेट-ते हैं.” भीमा रेणुका को बाहों में लिए हुवे बिस्तर की तरफ बढ़ता है. रेणुका तुरंत भीमा की बाहों से आज़ाद हो जाती है और कहती है “ना बाबा बिस्तर पर नही जाउन्गि तुम्हारे साथ. मौसम बेईमान है और तुम्हारा वो तना हुवा है. तुम्हारे बस में कुछ है नही. कुछ ऐसा वैसा हो गया तो……ऐसे में तुमसे दूर ही रहना ठीक है.” “देखता हूँ कब तक बचेंगी आप. कभी तो आपको आना ही होगा मेरे बहुत…बहुत…बहुत करीब.” “ये शादी के बाद ही हो पाएगा.” “अफ कब होगी ये शादी” भीमा सर खुजाता हुवा बिस्तर पर गिर गया. “अरे गीला मत करो मेरा बिस्तर…उठो कपड़े बदलो पहले.” “आप वो साड़ी पहन के दीखाओ ना.” “उसके लिए तुम्हे बाहर जाना होगा और बाहर बारिश हो रही है.” “मैं आँखे बंद कर लेता हूँ आप पहन लो.” “नही नही तुम्हारी आँखे खुल गयी तो…बाद में पहनूँगी…चलो तुम कपड़े बदल लो.” “मैं कैसे बदलू आप हो ना यहा.” “ओह हां ये तो दिक्कत हो गयी.” “दिक्कत की कोई बात नही है. आप दूसरी तरफ घूम जाओ मैं अभी बदल लेता हूँ कपड़े.” “ठीक है लो मैं घूम गयी…हे..हे..हे.” भीमा कपड़े बदलने लगा. “क्यों ना मैं भी तुम्हे देख लू जैसे तुमने मुझे देखा था.” “नही मेम्साब ऐसा मत करना…बस थोड़ी देर रूको….हां बस हो गया. घूम जाओ आप अब.” “बड़ी जल्दी पहन लिए कपड़े.” “आपने डरा जो दिया था.” इश् तरह छोटी छोटी सुंदर सी घटनाए हो रही थी रेणुका और भीमा के बीच जिनसे उनका रिश्ता और प्यार दोनो और ज़्यादा निखरते जा रहे थे. एक अद्भुत प्यार पनप रहा था उनके बीच जो की बहुत ही सुंदर और अनमोल था. …………………………………………………………………………. प्रेम बारिश के कारण गाँव के बाहर एक बड़े से वृक्ष के नीचे बैठा था. रह रह कर उसे साधना का ख़याल आ रहा था. “साधना मुझसे बहुत उपर उठ गयी प्यार में. मैने उसे क्या कुछ नही कहा और वो बस अपने प्यार का दामन थामे रही. आज तो हद ही कर दी उसने. मुझे यकीन नही था की वो इस तरह मुझे अपने प्यार के बंधन से आज़ाद कर देगी. जा तो रहा हूँ मैं साधना को छोड़ कर अपने अध्यातम की ओर. पर क्या सच में अध्यातम साधना के प्यार से ज़्यादा अनमोल है. मैं क्या करूँ कुछ समझ नही आ रहा. ये किस दुविधा में डाल दिया भगवान ने मुझे. साधना ने मुझे आज़ाद तो कर दिया लेकिन अब लग रहा है कि मैं और ज़्यादा जाकड़ गया हूँ उसके प्यार में. प्यार बहुत अनमोल है उसका. वैसा प्यार शायद ही कोई कर पाएगा किसी को. मैं ऐसा प्यार छोड़ के जा रहा हूँ अध्यातम की और. पता नही कितना सही हूँ मैं. मगर ना जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि कुछ बहुत ही अनमोल चीज़ पीछे गाँव में ही रह गयी. हे प्रभु मुझे माफ़ करना अगर मैं कुछ ग़लत सोच रहा हूँ. मुझे रास्ता दीखायें प्रभु मुझे कुछ समझ नही आ रहा कि मैं क्या करूँ.” क्रमशः......................... gataank se aage...................... Idhar sadhna abhi tak bistar par padi thi. Uthna bahut mushkil ho raha tha ushke liye. Saari raat neend to aayi nahi thi. Bahut jyada thaki huyi thi. “kya baat hai sadhna? Aaj kuch khaane ko nahi dogi kya?” gulaab chand ne pucha. Sadhna dheere se bistar se uthti hai aur kahti hai, “abhi taiyaar karti hun pita ji.” “baat kya hai. Bahut thaki thaki si lag rahi hai tu.” “kuch nahi pita ji bas yu hi.” “bahut bhook lagi hai mujhe.” “bas abhi laati hun pita ji aap baithiye.” Sadhna apne pita ke liye to khana bana deti hai lekin vo ab bhi khud kuch nahi khaati. Kuch bhi khaane ka man hi nahi hai ushka. Pyar ka ghaav kuch aisa hi hota hai. Jakham bharne mein kuch vakt to lagta hi hai. Vakt ke saath saath sadhna sambhalne lagti hai. Dheere dheere ek hafta beet jaata hai. Ab jabki gaanv mein thakur ki satta khatam ho chuki thi to madan varsha ko lekar apne ghar hi aa gaya. “hmm to tum ho sadhna. Bahut taarif karte hain tumhaare bhaiya tumhaari. Nazar na lag jaaye meri tumhe bahut shunder ho tum to.” Sadhna varsha ki baat shun kar halka sa mushkura di. “main bhi aapko pahli baar dekh rahi hun. Bhaiya rahte to the khoye khoye par ye nahi pata tha ki aapke pyar mein khoye hai. Bhagvaan aapke pyar ko salaamat rakhe.” “maine shuna ki tumne ush darinde pishaach ko maar diya. Kaise kiya tumne ye sab.” Varsha ne kaha. “mujhe khud nahi pata. Bas ho gaya.” Sadhna ne kaha. Ye to sadhna ke pyar ki taakat thi jishne prem ko bacha liya. Ishko kishi ko samjhaaya nahi ja sakta tha. Madan ne sadhna ko baahon mein bhar liya aur bola, “badi anokhi hai meri bahna. Ye kuch bhi kar sakti hai.” Varsha bahan bhaayi ka pyar dekh kar mushkura padti hai. “kab shaadi kar rahe ho aap dono?” sadhna ne pucha. “jab tum kahogi sadhna…bataao kab karein, saari taiyaari to tumhe hi karni hai.” Madan ne kaha. “main aap dono ke saath hun bhaiya. Bahut khuss hun main aap dono ke liye. Jo bhi mujhse ban padega main karungi.” “abhi shaadi nahi kar sakte hum kuch din, thakur saahib ka nidhan huva hai abhi abhi. Varsha bhi thoda gam mein hai. Thoda ruk kar karenge. Lekin tab tak varsha yahi rahegi tumhaare saath.” “bilkul rahe yahi. Mujhe bahut acha lagega. Vaise bhi bahut akeli mahsus karti hun main yaha. Main chaaye laati hun. ” Sadhna ne kaha. Sadhna chaaye lene chali gayi. Sadhna ke jaate hi madan ne varsha ko baahon mein bhar liya. “aaj raat apne ghar mein maje karenge.” Madan ne kaha. “shaadi hone tak tumhe paas bhi nahi phatakne dungi main ab. Vaha kishore ke ghar tumhaara man nahi bhara. Roj raat ko mujhe pareshaan karte the.” “kya karu mera dil hi nahi bharta tumse. Jistni baar tum-me samaata hun aur icha hoti hai karne ki. Shaayad sambhog aisa hi jaadu karta hai.” “ab tumhe kuch nahi milne wala janaab. Vaise bhi main yaha sadhna ke saath letungi. Tumhaare saath nahi.” “kyon?” “paagal ho kya. Shaadi se pahle sab ke saamne acha lagega kya?” “sab sho jaayenge tabhi na karenge hum. Tum bhi kaisi baat karti ho. Vaise bhi kuch dino se to tum gam mein dubi ho. Kaha nazdeek aande diya tumne mujhe.” Sadhna kamre mein aati hai to madan aur varsha ko dekh kar khaansti hai, “uh..uh..chaaye taiyaar hai.” Madan fauran varsha ko apni baahon se azaad kar deta hai. Varsha madan ko chutki kaat-ti hai. “kara di na meri bejati tumne? Kya sochegi sadhna.” Varsha ne dheere se kaha. Sadhna ne ye shun liya. “main kuch nahi sochungi bhabi. Galti meri hi thi. Main bina sarvaaja khadkaaye ander aa gayi main kuch khaane ko banaati hun. Aap dono tab tak baate karo.” “haan sadhna bahut acha sa khaana bana de aaj. Pahli baar aayi hai varsha ghar. Ishko pata chalna chaahiye ki meri bahna bahut acha khaana banaati hai.” Sadhna mushkuraate huve baahar aa jaati hai aur chulha taiyaar karti hai. Bahut busy rakhti hai vo khud ko ghar ke kaam kaaj mein lekin phir bhi rah-rah kar prem ki yaad aa hi jaati hai. ………………………………………………………………. Prem ab bilkul theek ho chuka hai aur ab vo ghaanv se jaane ki taiyaari mein hai. Kesav pandit ushe rokne ki koshis to karta hai par vo nahi maanta. “mujhe mere guru ke paas jaana hoga pita ji. Aapko pata hi hai ki maine sanyaas le liya hai. Yaha mere adhyaatam ka vikaas nahi ho paayega. Tarah tarah ke bhatkaav hain yaha. Jab se yaha aaya hun krodh, ghrina pata nahi kya kya aa gaya hai mere ander. Yaha thode din aur ruka to mera adhyaatmik vikaas ruk jaayega. Mujhe yaha se jaana hi hoga.” “jaisi tumhaari marji beta. Rokunga nahi tumhe. Lekin kabhi kabhi apne budhe baap ko dekhne aate rahna. Akela hun yaha, tere shiva mera kaun hai.” “aata rahunga pita ji. Jaroor aata rahunga. Ye bhi kya koyi kahne ki baat hai.” Prem ghar se baahar nikalta hai aur charo taraf dekhta hai. “bhagvaan ish gaanv mein sukh shaanti banaaye rakhe. Pita ji theek hai main chalta hun. Safar thoda lamba hai, mujhe abhi nikalna hoga.” “theek hai beta apna khyaal rakhna.” Prem chalne lagta hai. Lekin tabhi ushe peeche se awaaj aati hai. “swami ji!” Prem mud kar dekhta hai. “bhima kaha the tum. milne bhi nahi aaye ek baar bhi.” Bhima daud kar prem ke paas aata hai aur kahta hai, “aaya tha swami ji lekin mujhe aapse milne nahi diya gaya.” “jaao beta. Tumhe der ho rahi hai. In gaanv walo se itna muh mat lago.” Kesav pandit ne kaha. “kaisi baat karte hai aap pita ji. Ye sab acha nahi lagta mujhe….haan bhima bataao kaise ho tum. ab to gaanv mein shaanti hai na.” Prem ne kaha. “kah nahi sakta swami ji, bahut khusi huyi aapko bilkul theek thaak dekh kar. Rahi gaanv ki baat, jishme devi samaan sadhna rahti ho vaha ashaanti jyada dino tak tik nahi sakti.” “ye kya bol rahe ho sadhna ne kya kar diya aisa?” prem ne hairaani mein pucha. “kya aapko pandit ji ne kuch bataaya nahi. ye to dhurt paney ki had paar kar di pandit ji ne.” “beta tum jaao yaha se ye paaglo jaisi baate kar raha hai.” Kesav pandit ne kaha. “rukiye pita ji…bhima ye sab kya hai. Kahna kya chaahte ho tum.” “swami ji pishaach aapko jungle mein utha le gaya tha. gaanv ke saare log gharo mein ghuss gaye the. Kishi ne koyi madad nahi ki. Aapke pita shri bhi kuch karne ka vichaar nahi rakhte the. Inhone to aapko mara maan liya tha.” “aisa kuch nahi hai prem ye jhut bol raha hai.” Kesav pandit beech mein bol pada. “rukiye pita ji kahne dijiye ishey.” Prem bahut utshuk tha sab kuch jaan-ne ke liye. “main jhut nahi bol raha swami ji. Jhut bol kar mujhe kya koyi inaam milega?. Swami ji ye to sadhna thi jishne himmat nahi haari thi. Ushi ne pandit ji se prathna karke kuch upaay pucha. Inhone bataaya ki bhole naath ke tirsul se khaatma ho sakta hai pishaach ka. Bas phir kya tha. sadhna tirsul ley kar akele hi nikal padi jungle ki aur.” “main nahi gaya tha kya.” Kesav pandit gusse mein bola. “aapne to aur musibat hi badhaayi thi. Raaste par dhota raha main aapko. Sadhna akeli rah gayi thi. Aapke saath hone ki bajaaye mujhe sadhna ke saath hona chaahiye tha.” “haan aage bataao phir kya huva.” Prem ne kaha. “swami ji pata nahi sadhna ne kaise kiya ye sab lekin vo jungle mein pishaach ke theekaane tak pahunch hi gayi. Na keval ushne pishaach ko maara balki apni peeth par dho kar aapko gaanv tak laayi. Seedha vaidh ke paas le gayi thi vo aapko. Mujhe to sadhna kishi devi se kam nahi lagi. Aisa kaam koyi aam insaan nahi kar sakta.” Puri kahaani shun kar prem ki aankhe bhar aayi aur ushki aankhe tapakne lagi. Prem ki aankho mein aansu dekh kar bhima ne pucha, “kya huva swami ji aapki aankho mein aansu. Maine kuch galat kah diya kya?” “nahi bhima tumne bahut acha kiya jo ye mujhe bata diya. Main to khud pe ro raha hun. Sadhna sahi kahti thi ‘itna bhi upar nahi utha main’. Bahut bada anarth ho gaya hai mujhse.” Bhima ko kuch samajh nahi aa raha tha. samajhta bhi kaise ushe bilkul nahi pata tha ki prem aur sadhna ke beech kya chal raha hai. “beta tujhe jo samajhna hai tu samajh. Bas itna dhyaan rakhna ki main tera pita hun aur ye gaanv waale tere kuch nahi lagte.” “pita ji bas kuch aur na kahein mera dil bahut vyathit hai. Jo paap mujhse huva hai main ushke liye khud ko kabhi maaf nahi kar paaunga.” “aisa kyon bol rahe ho beta. Aisa kya ho gaya?” kesav pandit ne pucha. “haan swami ji aisa kyon kah rahe hain.” Bhima ne bhi pucha. “aap log nahi samjhenge. Mujhe abhi sadhna se milna hoga…varna bhagvaan mujhe kabhi maaf nahi karenge.” Prem ne kaha aur sadhna ke ghar ki taraf chal pada. “paagal mat bano vo koyi devi-vevi nahi hai. Tumhe der ho jaayegi…kaha ja rahe ho?” “jaane do unhe ponge pandit…kyon hamesha bekaar ki baate karte ho.” Bhima ne kaha. “tu dafa ho ja yaha se. main teri shakal bhi nahi dekhna chaahta makkaar kahi ka.” “ha..ha..ha makkaari khud karte ho aur makkaar mujhe bolte ho…ponge pandit.” Bhima kah kar chal diya. Kesav daant bheench kar rah gaya. Prem jab sadhna ke ghar pahuncha to vo apne ghar ke baahar chulhe ke saamne baithi khana bana rahi thi. Ushki peeth prem ki aur thi ishliye ushe pata hi nahi chala ki prem ushke peeche khada hai. Kuch der tak prem sadhna ko chupchaap khade huve dekhta raha. Ushe samajh nahi aa raha tha ki sadhna ko kya kahe. Swami log bhi kabhi kabhi ajeeb duvidha mein pad jaate hain. Sadhna to apne kaam mein khoyi thi. Chulhe mein aag theek se jal nahi rahi thi ishliye vo phoonk maar rahi thi chulhe mein. Dhunva hi dhunva ho rakha tha. haato mein ushke raakh lagi thi. Dhunve ke kaaran baar baar aankho mein aansu aate the aur vo haath se aansu ponchne ki koshis karti thi. Chehre par bhi raakh lag gayi thi ushke. “bahut vyasth ho kaam mein. Meri taraf mud kar nahi dekhogi kya.” achaanak apne peeche awaaj shun kar sadhna ghabra gayi aur fauran khadi ho gayi. Vo ek shabd bhi nahi boli. Shaayad bol hi nahi paayi. Ushne bas apne dil par haath rakh liya. Bahut joro se dhadak raha tha dil ushka. Ushe vishwaas hi nahi ho raha tha ki prem vaha khada hai. “din mein bhi sapne dekhne lagi hun main ab” sadhna ne kaha aur mud kar vaapis chulhe ke saamne baith gayi. “main sapna nahi hun sadhna, main tumse milne aaya hun.” Prem ne kaha. Ab to sadhna ko vishwaas karna hi pada. Vo khadi huyi aur boli, “prem tumhe bilkul theek dekh kar mujhe jo khusi mil rahi hai main shabdo mein nahi kah sakti. Bilkul theek ho na tum ab. Kahi koyi takleef to nahi hai.” “bas ab rulaaogi kya tum mujhe. Kyon karti ho itna pyar mujhe tum. main tumhaare pyar ke laayak nahi hun sadhna. Nahi hun main laayak tumhaare pyar ke.” Prem bhaavuk ho utha. “mere haath mein nahi hai prem… nahi hai mere haath mein. Aur tumhe pyar karna to shobhagya hai mera.” “maine tumhe daant kar bhaga diya tha ush din. Aaj mujhe bhima ne bataaya ki kaise tum mujhe jungle se lekar aayi. Kya karun main ab main ja raha tha apne guru ke paas. Lekin ab ye jeendagi to tumhaari ho gayi. Kaise jaaunga main ab. ” “tum jaao prem. Khusi khusi jaao mera pyar tumhaare paanv ki bediya nahi hai. Main shaayad svaarthi ho gayi thi jo har vakt bas apna hi sochti thi. Par ab nahi. Pyar sirf milan ka naam nahi hai. Bichadna bhi pyar hi hai. Tum hamesa mere dil mein rahoge. Tumhe nikaal nahi paaungi dil se. tum khusi khusi ja sakte ho prem. Ab main samajh gayi hun ki mujhe tumhaare maksad mein rodey nahi atkaane chaahiye. Mujhse jo bhi bhool huyi ushke liye main tumse maafi chaahti hun.” “kya tum sach kah rahi ho?” “kya kabhi jhut bola hai maine tumse. Tumhaare sar ki kasam. Jaao tum apni manjik ko haansil karo. Tumhaare liye mera pyar hamesa bana rahega. Mujhe tumse koyi gila shikva nahi hai.” “main ja hi raha tha. acha huva jo bhima ne mujhe sab kuch bataaya aur main tumse milne aa gaya. Ab main dil par bina koyi bojh liye ja sakta hun. Mujhe der ho rahi hai kya main niklu.” “agar aisa hai to turant niklo prem varna mujhe tumhaari chinta rahegi. Bas jaha bhi rahna apna khyaal rakhna. Bhagvaan tumhe vo sab de jo tum paana chaahte ho.” “main kish muh se tumhaara shukriya karun.” “ushki koyi jaroorat nahi hai prem. Meri jagah tum hote to tum bhi yahi karte. Jaao ab der mat karo.” “haan main chalta hun sadhna. Tum bhi apna khyaal rakhna.” Prem mud kar chal deta hai. Sadhna ushe jaate huve dekhti rahti hai. Prem peeche mud kar dekhta hai to dono pyar bhari mushkaan se dekhte hain ek dusre ko. Dheere dheere prem sadhna ki aankho se ojhal ho jaata hai. Na chaahte huve bhi sadhna ki aankhe bhar aati hai. “khus rahna prem. Jaha bhi raho khus rahna” sadhna aansuvo ko ponchte huve kahti hai. …………………………………………………………………. Jaise jaise din chadhta hai mausam karvat badalne lagta hai. Aasmaan mein ghane baadal chaa jaate hain. Bhima apne kheto mein kuch bo raha tha. “pahle to akela tha main. Ab memsaab bhi hain. Khub mehnat karni hogi mujhe kheto mein.” Bhima aasmaan ki taraf dekhta hai. “uff lagta hai bade joro ki baarish aane waali hai. Jaldi se ghar chalta hun varna memsaab ke liye jo tohfa liya hai vo bheeg jaayega.” Bhima ghar ki taraf bhaagta hai. Lekin raaste mein hi joro ki baarish shuru ho jaati hai. Lekin phir bhi vo khud to bheeg jaata hai lekin kishi tarah se tohfe ko bheegne se bacha leta hai. “aa gaye tum kaha rah gaye the?” Bhima ne tohfa apne peeche chupa rakha tha. “pahle aankhe band kijiye.” “kya baat hai?” “kijiye to memsaab.” Renuka aankhe band kar leti hai. “ab haath aage kijiye.” Renuka hairat mein haath bhi aage kar leti hai. Bhima renuka ke haath mein ek shunder si sari rakh deta hai. “itni pyari sari…kaha se laaye.” “khareed kar laaya hun memsaab.” Renuka khusi se bhima ke gale lag jaati hai. “mere kapde gile hain memsaab aur mausam bhi kharaab hai. Aise mein gale lagengi aap to kahi main uttejit na ho jaaun.” “ghabraao mat danda taiyaar hai.” “phir theek hai.” Dono thahaaka laga kar hansne lagte hain. “bahut pyar karne lagi hun main tumhe pata nahi kyon” renuka ne kaha. “meri bhi kuch aisi hi haalat thi. Kheto mein har pal aapka hi khyaal aa raha tha. memsaab meeta do na ye duriya. Kab tak hum shaadi ka intezaar karenge.” Bhima ke ling mein uttejna hone lagi thi aur vo ab renuka ko chubh raha tha. “nahi bhima abhi nahi. main tab tak tumhe khud ko samarpit nahi kar sakti jab tak hum pati patni na ban jaaye. Bura mat maan-na lekin mere vichaar mein abhi ye sab theek nahi hai.” “kya main aapko chum sakta hun…honto par.” “rokungi nahi tumhe par baat to vo bhi vahi rahegi. Kya tum thoda aur intezaar nahi kar sakte. Main bina kishi glani ke khud ko tumhe samarpit karna chaahti hun. Aur ye tabhi hoga jab tum meri maang mein shindur bhar doge.” “maaf kijiye memsaab…main uttejit ho kar ye sab bol baitha. Ye uttejna bahka deti hai mujhe. Par hum jaise ab hain vaise to rah sakte hain. Bada sukun milta hai aapke karib memsaab.” “haan itna to theek hai. Lekin dikkat yahi hai ki tumhaara vo baar baar tan jaata hai meri taraf aur mujhe dar lagta hai ki kahi hum bahak na jaayein. Agar ushe thaam lo to hum ek dusre ke karib rah sakte hain.” “vo to mere bas mein hai hi nahi aap jaan hi gayi hogi ab tak. Aap bas danda rakho haath mein shaayad kuch baat ban jaaye.” “nahi ab main apne hone waale pati par danda nahi barsaaungi.” “aisa hai kya memsaab. Mujhe to aisa lagta tha ki mujhe peetaayi ke liye taiyaar rahna hoga har vakt.” “ye memsaab kahna kab chodogey tum. ab tumhaari memsaab nahi hun main biwi ban-ne waali hun tumhaari.” “chut jaayegi dheere dheere memsaab aao thoda yu hi bistar par late-te hain.” Bhima renuka ko baahon mein liye huve bistar ki taraf badhta hai. Renuka turant bhima ki baahon se ajaad ho jaati hai aur kahti hai “na baba bistar par nahi jaaungi tumhaare saath. Mausam beyimaan hai aur tumhaara vo tana huva hai. Tumhaare bas mein kuch hai nahi. kuch aisa vaisa ho gaya to……aise mein tumse dur hi rahna theek hai.” “dekhta hun kab tak bachengi aap. Kabhi to aapko aana hi hoga mere bahut…bahut…bahut karib.” “ye shaadi ke baad hi ho paayega.” “uff kab hogi ye shaadi” bhima sar khujaata huva bistar par gir gaya. “arey gila mat karo mera bistar…utho kapde badlo pahle.” “aap vo sari pahan ke deekhaao na.” “ushke liye tumhe baahar jaana hoga aur baahar baarish ho rahi hai.” “main aankhe band kar leta hun aap pahan lo.” “nahi nahi tumhaari aankhe khul gayi to…baad mein pahnungi…chalo tum kapde badal lo.” “main kaise badlu aap ho na yaha.” “oh haan ye to dikkat ho gayi.” “dikkat ki koyi baat nahi hai. Aap dusri taraf ghum jaao main abhi badal leta hun kapde.” “theek hai lo main ghum gayi…he..he..he.” Bhima kapde badalne laga. “kyon na main bhi tumhe dekh lu jaise tumne mujhe dekha tha.” “nahi memsaab aisa mat karna…bas thodi der ruko….haan bas ho gaya. Ghum jaao aap ab.” “badi jaldi pahan liye kapde.” “aapne dara jo diya tha.” Ish tarah choti choti shunder si ghatnaaye ho rahi thi renuka aur bhima ke beech jeense unka rishta aur pyar dono aur jyada nikharte ja rahe the. Ek adbhut pyar panap raha tha unke beech jo ki bahut hi shunder aur anmol tha. …………………………………………………………………………. Prem baarish ke kaaran gaanv ke baahar ek bade se vriksh ke neeche baitha tha. rah rah kar ushe sadhna ka khayaal aa raha tha. “sadhna mujhse bahut upar uth gayi pyar mein. Maine ushe kya kuch nahi kaha aur vo bas apne pyar ka daaman thaame rahi. Aaj to had hi kar di ushne. Mujhe yakin nahi tha ki vo ish tarah mujhe apne pyar ke bandhan se azaad kar degi. Ja to raha hun main sadhna ko chod kar apne adhyaatam ki aur. Par kya sach mein adhyaatam sadhna ke pyar se jyada anmol hai. Main kya karun kuch samajh nahi aa raha. Ye kish duvidha mein daal diya bhagvaan ne mujhe. Sadhna ne mujhe azaad to kar diya lekin ab lag raha hai ki main aur jyada jakad gaya hun ushke pyar mein. Pyar bahut anmol hai ushka. Vaisa pyar shaayad hi koyi kar paayega kishi ko. Main aisa pyar chod ke ja raha hun adhyaatam ki aur. Pata nahi kitna sahi hun main. Magar na jaane kyon aisa lag raha hai ki kuch bahut hi anmol cheez peeche gaanv mein hi rah gayi. He prabhu mujhe maaf karna agar main kuch galat soch raha hun. Mujhe raasta deekhaayein prabhu mujhe kuch samajh nahi aa raha ki main kya karun.” kramashah.........................


rajaarkey
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Re: प्यार हो तो ऐसा

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 08:27

प्यार हो तो ऐसा पार्ट--19

गतान्क से आगे......................

साधना भी परेशान थी. उसकी परेशानी का कारण ये था कि बारिश बहुत तेज हो रही थी और उसका प्रेम सफ़र पे निकला हुवा था.

“क्या करूँ मैं भीग जाएगा प्रेम इस बारिश में. ये बारिश भी आज ही होनी थी. कुछ दिन रुक नही सकती थी.” बहुत ही गहरा प्यार था साधना का.

प्रेम के दिमाग़ में अजीब कसम्कश चल रही थी. एक स्वामी उलझा हुवा लग रहा था. ऐसा अन्तेर द्वन्ध उसने अपनी जींदगी में पहले कभी नही देखा था. ये सब स्वाभाविक भी था. प्रेम समझ चुका था कि साधना का प्यार बहुत अनमोल है जिसका कोई मुल्य नही है. लेकिन प्रेम अपने अध्यातम से भटकने के लिए भी कदापि तैयार नही था. पर एक बात ज़रूर थी. पहले साधना का प्यार उसके अध्यातम के आगे कुछ नही था. लेकिन अब वो प्यार अध्यातम के आगे सीना ताने खड़ा था. यही प्रेम की उलझन का कारण था.

साधना तो यही दुवा कर रही थी कि बारिश थम जाए और प्रेम सुख शांति से अपना सफ़र पूरा करे. वो भाग कर प्रेम के सर पर अपना आँचल रख देना चाहती थी ताकि वो बारिश से बचा रहे. पर वो ये सोच ही सकती थी. इश्लीए बारिश के थमने की दुवा कर रही थी बार-बार.

बारिश थम गयी और प्रेम अपने जिगर को कड़ा करके अपने सफ़र पर निकल पड़ा. "यही माया है प्रेम जो इंसान को जीवन मारन के चक्कर में फन्साति है. प्यार के परलोभन को त्याग कर मुझे आगे बढ़ना होगा." प्रेम चलते हुवे सोच रहा था.

प्रेम बढ़ता गया आगे और 2 दिन में अपने गुरु के आश्रम पहुँच गया.

प्रेम के गुरु बहुत ज्ञानी थे. प्रेम ने अध्यातम का सारा ज्ञान उन्ही से सीखा था. उन्ही के साथ वो 3 साल पहले गाँव छोड़ कर आया था. वो केसव पंडित को बिना बताए चल पड़ा था अपने गुरु के साथ क्योंकि वो जानता था कि उसके पिता उसे कभी नही जाने देंगे.

आश्रम पहुच कर प्रेम गाँव की सारी बाते भूल कर ध्यान और स्माधि में लीन हो गया. ज़्यादा तर वक्त उसका मेडिटेशन में ही गुज़रता था.

गाँव में साधना भी अपने जीवन में कुछ अद्भुत कर रही थी. प्रेम के अध्यातम से प्रेरित हो कर उसका भी झुकाव अध्यातम की ओर होने लगा था. ऐसा इस लिए हुवा क्योंकि वो उत्शुक थी ये जान-ने के लिए कि ऐसा क्या है अध्यातम में जो कि उसका प्रेम उसके प्यार को त्याग कर चला गया. वो घर के सभी काम करके रात को जल्दी अपने कमरे में आ जाती थी ताकि स्माधि में लीन हो सके. अपनी चारपाई के पास ही साधना एक चटाई बिछा कर उस पर आँखे बंद करके बैठ जाती थी. सीखा नही था उसने किसी से कुछ भी. बस खुद ही लगी रहती थी. लेकिन उसे ऐसा कुछ ख़ास अहसास नही हुवा, जिसके लिए वो ध्यान और स्माधि को जारी रखे. लेकिन उसकी उत्शुकता ने उसे रुकने नही दिया और वो रोज हर हाल में आँखे बंद करके बैठने लगी.

कहते हैं कि प्यार करने वाले को आँखे बंद करके अपने प्रेमी का चेहरा दीखाई देता है. ऐसा ही रोज होता था साधना के साथ. वो रोज आँखे बंद करती और रोज उसे प्रेम ही दीखाई देता. उसे पता ही नही चला और उसने प्रेम पर ही ध्यान लगाना शुरू कर दिया. एक दिन वो प्रेम में इतनी लीन हो गयी कि स्माधि में बहुत गहरे उतर गयी. ये पहली बार हुवा था. जब उसने आँखे खोली तो उसे अहसास हुवा कि वो जन्नत की सैर करके आई है. बहुत शुकून और शांति का अहसास हुवा था उसे.

फिर क्या था उसे तो रोज ही प्रेम पर ध्यान लगाने का चस्का लग गया. और इस तरह प्रेम-साधना की शुरूवात हुई. ये ऐसी प्रेम-साधना थी जिसने साधना को अध्यातम में प्रेम से भी कही आगे निकाल दिया था. पर साधना को इन बातो का कोई अहसास नही था. वो तो बहुत खुस थी प्रेम-साधना के कारण. अपने प्रेम के करीब जो महसूस करती थी वो खुद को प्रेम-साधना करके.

प्रेम तो साधना की प्रेम-साधना से बिल्कुल अंजान था. लेकिन वो रोज अपने अंदर कुछ अजीब सी हलचल महसूस करता था. जब वो स्माधि में लीन होता था तो उसे ऐसा लगता था कि कोई उसे खींच रहा है…पता नही कहा. आँखे खुलने पर भी उसे इस खींचाव का अहसास रहता था. लेकिन वो इसका कारण नही जान पा रहा था. प्रेम ने अपने गुरु से भी बात की इस बारे में लेकिन वो भी कुछ स्माधान नही बता पाए.

“हर किसी को स्माधि में अलग अहसास होते हैं. तुम अपने ध्यान में लगे रहो ये खींचाव चला जाएगा खुद ही. मन में कोई शंका मत आने तो. शंका ही इंसान को डुबाती है.” प्रेम के गुरु ने कहा.

प्रेम ने एक रात स्माधि में ना बैठने का निर्णय लिया. वो उस रात चैन से सोना चाहता था. दिल व्यथित जो था बेचारे का. सो गया ध्यान व्यान सब छोड़ कर. लेकिन आधी रात को उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस हुवा. उसने आँखे खोली तो दंग रह गया. उसने देखा कि साधना उशके पैरो पर सर टीका कर बैठी है. इतना हैरान हुवा वो कि फ़ौरन अपनी टांगे सिकोड ली उसने. साधना ने उसकी तरफ देखा और मुश्कूराते हुवे वाहा से विलुप्त हो गयी.

“ये क्या था साधना यहा कैसे आई. और वो गायब कहा हो गयी.” प्रेम तो अचंभित रह गया. बात ही कुछ ऐसी थी.

.................................................

मंदिर में शादी हो रही थी. मदन और वर्षा अग्नि के फेरे ले रहे थे. बड़ी मुश्किल से माना था केसव पंडित शादी करवाने के लिए. गाँव में उसकी मोनॉपली थी. इश्लीए ज़्यादा अकड़ थी उसकी. मोटी रकम झाड़ी उसने मदन से तब कही शादी करवाने के लिए तैयार हुवा.

साधना, मदन और वर्षा को फेरे लेते देख बहुत खुस थी. मधाम मधाम मुश्कुरा रही थी हर पल वो उन्हे देख कर.

भीमा और रेणुका भी खड़े थे वही पास ही. रेणुका भी वर्षा के लिए खुस थी. वर्षा का कन्यादान भीमा ने किया.

जब फेरे पूरे हुवे तो रेणुका ने वर्षा को गले लगा लिया.

“भाबी आप यहा आई बहुत अछा लगा मुझे.” वर्षा ने कहा.

“क्यों नही आती मैं. मुझे ख़ुसी है कि तू अपने मन पसंद लड़के से शादी कर रही है.” रेणुका ने कहा.

“मदन ने मुझे बताया कि आप भी शादी कर रही हैं भीमा से.” वर्षा ने कहा.

“हां कर रही हूँ. तुम्हे बुरा तो नही लगेगा ना.” रेणुका ने कहा.

“बुरा क्यों लगेगा भाभी भीमा बहुत अछा है. आप लोग भी अभी निपटा दो ने ये काम यही पर. देर क्यों कर रहे हैं. सब लोग भी हैं यहा.” वर्षा ने कहा.

रेणुका ने भीमा की तरफ देखा.

“ये तो बहुत अछा रहेगा. एक साथ 2 प्रेम विवाह इस से अछी बात क्या हो सकती है.” भीमा ने कहा.

“मैं पंडित जी से बात करता हूँ…तुम दोनो की शादी के बाद ही हम घर जाएँगे.” मदन ने कहा.

केशव पंडित मदन और वर्षा के फेरे कराने के बाद भोले नाथ की मूर्ति के सामने आरती कर रहा था.

“पंडित जी आपसे कुछ बात करनी है ज़रा आएँगे.” मदन ने कहा.

केशव पंडित बाहर आया और मदन के साथ वही आ गया जहा रेणुका, भीमा, साधना और वर्षा खड़े थे.

“बताओ क्या बात है?” केसव पंडित ने पूछा.

“आप भीमा और रेणुका जी के भी फेरे करवा दीजिए. साथ साथ इनका भी काम निपट जाएगा.” मदन ने कहा.

"शादी और इन दोनो की. मैं इस पाप का भागीदार नही बनूंगा. ठाकुर के घर की बहू होकर ये शादी करने चली है वो भी इस जैसे निर्लज्ज और अधर्मी के साथ. ये पाप मैं नही होने दूँगा." केशव पंडित ने कहा.

रेणुका और भीमा तो ये सुनते ही स्तब्ध रह गये. उनके चेहरे उतर गये ऐसे कठोर शब्द शन कर. वो दोनो ही कुछ बोल नही पाए. उनके प्यार को पाप का नाम दिया गया था. दोनो बहुत व्यथित थे.

साधना उनकी हालत समझ गयी और बोली, “ये क्या बोल रहे हैं आप पंडित जी. ये प्रेम करते हैं आपस में. और प्रेम करना कोई पाप नही है. और रेणुका जी अब ठाकुर के घर की बहू नही हैं. अब ये आज़ाद हैं उस हवेली से. इनकी शादी कराना पुन्य का काम है.”

“अब तू मुझे बताएगी कि क्या पाप है और क्या पुन्य है. दो कौड़ी की लड़की मुझे पाठ पढ़ा रही है.” केशव पंडित चील्लया.

"प्यार करते हैं हम एक दूसरे से कोई पाप नही. ऐसी बाते मत करो पंडित जी. प्रार्थना है आपसे कि ये शादी करवा दे. आप जो दक्षिणा कहेंगे दे दूँगा." भीमा ने कहा.

"अछा ऐसा है क्या जाओ हज़ार किलो सोना ले आओ. करवा दूँगा शादी तुम्हारी. " केसव पंडित बोला.

"हज़ार किलो सोना, क्यों मज़ाक कर रहे हैं पंडित जी. इतनी बड़ी झोली ना फैलाए कि हम भर ना पाए." भीमा ने कहा.

"तुम मेरी बात समझे नही. मेरा कहने का मतलब ये है कि तुम दो पापियों की शादी मैं नही कर्वाउन्गा. दफ़ा हो जाओ यहा से." केसव पंडित ने गुस्से में कहा.

"चलो भीमा इनसे कुछ भी कहने का फ़ायडा नही है." रेणुका ने भीमा का हाथ पकड़ कर कहा.

“हां हां निकल जाओ यहा से.” केसव पंडित ने कहा.

“वर्षा तुम जाओ अपने पिया के घर. हमारी चिंता मत करो. शादी हुई है तुम्हारी आज. सब कुछ भुला कर अपनी गृहस्ती में परवेश करो. भगवान ने चाहा तो हमारी शादी जल्द होगी.”

“कभी नही होगी तुम्हारी शादी. मैं देखता हूँ कौन कराता है शादी तुम्हारी. दूसरे गाँव के पंडित भी नही करेंगे ये पाप. तुम्हारे लिए यही अछा है कि किसी कुवें में जा कर डूब मरो.” केशव पंडित ने कहा.

“आप अपनी हद पार कर रहें हैं पंडित जी. ये आपको सोभा नही देता.” साधना ने कहा.

“दफ़ा हो जाओ तुम सब लोग यहा से. वर्षा और मदन की शादी करा कर भी ग़लती कर ली मैने. निकल जाओ यहा से.” केसव पंडित ने कहा.

भीमा को बहुत गुस्सा आया और वो दाँत भींच कर केसव पंडित की तरफ बढ़ा.

“आज तुझे पटकनी लगानी ही पड़ेगी पोंगे पंडित.” भीमा ने केसव पंडित की तरफ बढ़ते हुवे कहा.

पर रेणुका ने भीमा का हाथ पकड़ लिया, “रहने दो…चलो चलते हैं यहा से.”

"भगवान सब देख रहा है पोंगे पंडित...तुझे छोड़ेंगे नही वो." भीमा ने कहा और वापिस मूड कर चलने लगा मंदिर से बाहर की ओर.

"दफ़ा हो जाओ...निकल जाओ अभी इस मंदिर से." केसव पंडित चील्लया.

"रूको मैं करूँगा क्रिया पाठ तुम्हारी शादी का....और मैं धन्य समझूंगा खुद को." भीमा और रेणुका को अपने पीछे से आवाज़ आई. केशव पंडित तो बोलने वाले को देखता ही रह गया.

"स्वामी जी आप" भीमा की आँखे छलक गयी प्रेम को देख कर.

"हां मैं. तुम दोनो तैयार हो कर आओ अभी. मैं अभी और इसी वक्त कर्वाउन्गा ये शादी. बहुत देर से देख रहा था छुप कर अपने पिता के इस तमासे को. यकीन नही हो रहा था मुझे." प्रेम ने कहा.

"बहुत खूब बेटा. अपने पिता को ना दुवा ना सलाम और इन पापियों के लिए इतना कुछ." केसव पंडित ने कहा.

"ये प्रेमी हैं पिता जी पापी नही हैं. प्यार का अपमान ना करें इस मंदिर में खड़े हो कर. प्यार और भगवान दोनो एक ही हैं. प्यार का अपमान भगवान का अपमान होगा." प्रेम ने कहा.

"मेरे होते हुवे इस मंदिर में ये अनर्थ नही होने दूँगा मैं." केसव पंडित ने कहा.

"फिर मुझे अफ़सोस है कि आपको यहा से जाना पड़ेगा. ये शादी तो मैं करवा कर रहूँगा." प्रेम ने दृढ़ता से कहा.

रेणुका और भीमा के लिए इस से अछा क्या हो सकता था कि प्रेम खुद उनकी शादी करवाए. उनकी तो आँखे ही छलक उठी.

"स्वामी जी आपको देख कर बहुत ख़ुसी हुई है. मेरे पास शब्द नही हैं कुछ कहने को."

"बस भीमा देर मत करो तुम दोनो तैयार हो कर आओ. जितनी जल्दी ये शुभ कार्य संपन्न हो जाए अछा है."

"जैसा आप कहें स्वामी जी हम थोड़ी देर में आते हैं." भीमा ने कहा.

“हम सब यही तुम्हारा इंतेज़ार कर रहें हैं, जल्दी आना तुम दोनो.” साधना ने मुश्कूराते हुवे कहा.

“साधना कैसी हो तुम?”

“मैं ठीक हूँ प्रेम तुम कैसे हो. मुझे तो लगा था कि फिर कभी मुलाकात नही होगी तुमसे. आज तुम्हे देख कर बहुत अछा लगा.” साधना ने मुस्कुराते हुवे कहा

“प्रेम हमसे भी मिलोगे या नही. हमारी शादी हुई है आज.” मदन ने कहा.

“मैं खुस हू तुम दोनो के लिए. काश वक्त पर आ जाता तो तुम्हे फेरे लेते हुवे देख लेता.”

“कोई बात नही आप भीमा और रेणुका की शादी करवा दो बस हमें बहुत ख़ुसी होगी.” वर्षा ने कहा.

“शादी हो ही गयी समझो. जैसे ही वो आते हैं मैं फेरे दिलवा दूँगा. साधना तुमसे कुछ बात करनी थी…ज़रा एक तरफ आओगी.” प्रेम ने कहा.

साधना हैरत में पड़ गयी कि पता नही क्या हो गया.


rajaarkey
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Re: प्यार हो तो ऐसा

Unread post by rajaarkey » 12 Nov 2014 08:28

वो मंदिर के एक कोने में आ गये. केशव पंडित तो पाँव पटक कर मंदिर से निकल गया था.

……………………………………………..

रेणुका और भीमा आँखो में चमक और दिल में ख़ुसी लिए वाहा से चल देते हैं. दोनो बार बार एक दूसरे की तरफ देख कर मुश्कुरा देते हैं.

"ऐसे क्या देख रहे हो भीमा सामने देख कर चलो." रेणुका ने कहा.

"बहुत खुस लग रही हैं आप, विश्वास दिलाता हूँ कि आपको हमेसा खुस रखूँगा."

"मुझे पता है भीमा, पता है..."

बातो-बातो में घर आ जाता है.

"पहले आप तैयार हो जाओ मेम्साब...मैं बाहर इंतेज़ार करता हूँ. मुझे ज़्यादा वक्त नही लगेगा...आपके बाद मैं तैयार हो जाउन्गा. "

"आज तो मेम्साब मत कहो..."

"ज़ुबान पर यही चढ़ा हुवा है. रहने दीजिए ना क्या दिक्कत है."

"मुझे दिक्कत है. बीवी बन-ने जा रही हूँ तुम्हारी अगर तुम मेम्साब-मेम्साब करोगे तो अछा नही लगेगा मुझे."

"ठीक है आप जल्दी तैयार हो जाओ स्वामी जी हमारा इंतेज़ार कर रहे हैं."

"ठीक है...कही से झाँकना मत."

"नही झान्कुन्गा. झाँकने की जगह ही नही है वैसे भी. आप निश्चिंत रहें."

रेणुका ने कोई आधा घंटा लगाया तैयार होने में. लाल सारी कुछ ऐसी जच रही थी कि कुछ कहा नही जा सकता. जब रेणुका ने दरवाजा खोला और भीमा अंदर आया तो भीमा की तो आँखे फटी की फटी रह गयी.

"मेरी नज़र ना लग जाए आपको...कितनी सुंदर लग रही हैं आप इस सारी में."

रेणुका तो देख ही नही पाई भीमा को. उसने नज़रे झुका ली. शरमाने लगी थी अब वो भीमा से. वो शरम देखते ही बनती थी.

“अब मैं तैयार हो जाउ. आपको बाहर रुकना होगा थोड़ी देर.” भीमा ने कहा.

“हां बिल्कुल…जल्दी तैयार हो जाओ.”

भीमा भी जल्दी से तैयार हुवा और दोनो मंदिर की तरफ चल दिए. मंदिर की तरफ चलते वक्त पाँव ज़मीन पर नही टिक रहे थे दोनो के. बात ही कुछ ऐसी थी.

……………………………………………….

“क्या बात है प्रेम. तुम कुछ व्यथित से लग रहे हो.” साधना ने पूछा.

“क्या तुम ऐसा कुछ कर रही हो जिस से मैं व्यथित हो सकता हूँ.” प्रेम ने पूछा.

“नही प्रेम. तुम्हे व्यथित कैसे कर सकती हूँ मैं.”

“2 दिन पहले तुम मेरे पास आई थी आश्रम में. मेरे पाँव पर सर रख कर बैठी थी. जब मैं उठा नींद से तो तुम्हे देखा. लेकिन अगले ही पल तुम गायब हो गयी.”

ये सुनते ही साधना के चेहरे का रंग उड़ गया. वो प्रेम के पैरो में बैठ गयी. “क्या सच में ऐसा हुवा था. मुझे लगा वो कोई भ्रम है मेरा. मुझे माफ़ करदो प्रेम. मेरा कोई इरादा नही था तुम्हे व्यथित करने का. मैं बस स्माधि में लीन थी. कब तुम्हारे पास पहुँच गयी पता ही नही चला.” साधना की आँखे टपक रही थी बोलते हुवे.

साधना को यू प्रेम के पैरो में पड़े देख मदन और वर्षा हैरान रह गये. “क्या बात है मदन. साधना स्वामी जी के पैरो में बैठ कर रो क्यों रही है…आओ देखते हैं.”

“नही वाहा मत जाओ. इन दोनो कि लीला यही जाने. बहुत प्यार करती है साधना प्रेम से बचपन से. शायद कोई गंभीर बात है. लेकिन उनके बीच में नही पड़ सकते हम.” मदन ने कहा.

“उठो साधना रो क्यों रही हो.”

“मेरा इरादा तुम्हे दुख देने का नही था. आज तुम वापिस व्यथित हो कर आए हो. इस से बड़ा पाप नही कर सकती मैं.” साधना ने कहा.

“तुमने कोई पाप नही किया पगली. समाधि में तुमने वो उँचाई पाई है जिस से अभी तक मेरे गुरु भी वंचित हैं. मैने सुना था कि लोग स्माधि में एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाते हैं. आज देख भी लिया. क्या बताओगि मुझे कि कैसे किया ये चमत्कार तुमने. उठो और बताओ मुझे.”

साधना उठती है और अपने आँसू पोंछ कर बोलती है, “प्रेम मैं तो तुम में खो जाती थी आँखे बंद करके. बाकी मुझे कुछ पता नही. बहुत शांत हो जाती थी मैं. इस क्रिया को प्रेम-साधना नाम दिया है मैने. ये है भी प्रेम साधना ही क्योंकि प्यार शामिल है इसमें. और कुछ नही कह सकती क्योंकि मुझ अग्यानि को और कुछ नही पता. 2 दिन पहले मैने खुद को तुम्हारे कदमो में बैठे पाया. बहुत ख़ुसी हुई थी मुझे. मुझे लगा स्माधि में ये भाव आ गया है कि मैं तुम्हारे चरनो में बैठी हूँ. लेकिन आज तुमने बताया तो पता चला कि मैं सच में तुम्हारे पास पहुँच गयी थी. ये कैसे हुवा मुझे नही पता.”

“अब मैं समझा कि क्यों मुझे स्माधि के दौरान खींचाव महसूस होता है. तुम यहा गाँव में बैठी प्रेम-साधना जो करती थी.”

“तुम्हे जो दुख और परेशानी हुई उसके लिए मुझे माफ़ कर दो प्रेम. आगे से ऐसा नही होगा. छोड़ दूँगी मैं वो चीज़ जो तुम्हे परेशानी दे.”

“एक मैं हूँ जिसने अध्यातम के लिए तुम्हे छोड़ दिया. एक तुम हो जो मेरे लिए, मेरे सुख के लिए अध्यातम छोड़ देना चाहती हो. क्या कहूँ अब मैं. तुम बहुत आगे निकल गयी अध्यातम में साधना. इतनी आगे कि शायद मैं वाहा तक कभी नही पहुँच पाउन्गा…मुझे अपना शिस्य बना लो साधना अपने गुरु को छोड़ आया हूँ मैं. मुझे भी ये प्रेम-साधना करनी है. मैं आ गया हूँ तुम्हारे पास अपना लो मुझे. मैने बहुत बड़ी भूल की थी जो प्यार को अध्यात्म के आगे कम आँकता था. तुमने दीखा दिया आज की प्यार का रास्ता भी भगवान तक ही ले जाता है. मुझे अपना लो साधना…आ गया हूँ मैं सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास और अब तुम्हारा गुलाम हूँ. मुझे स्वीकार कर लो अपनी जींदगी में.”

साधना तो रो ही पड़ी ये सब सुन कर. उसे समझ ही नही आ रहा था कि प्रेम क्या बोल रहा है. वो समझती भी कैसे. अध्यातम की भासा नही जानती थी वो. वो तो अपने प्रेम की प्रेम-साधना करती थी बस. बाकी उसे कुछ नही पता था.

“क्या हुवा तुम कुछ बोल नही रही. क्या मुझे नही अपनाओगी.”

“नही प्रेम ऐसा मत कहो. मैं तो तुम्हारे चरनो में रहना चाहती हूँ सारी उमर. तुम ही मेरे भगवान हो.”

“शादी करोगी अपने भगवान से.” प्रेम ने पूछा.

साधना कहती भी तो क्या कहती. बस आँखो में आँसू लिए चिपक गयी प्रेम से. उसे ज़रा भी ध्यान नही आया कि उसकी प्रेम-साधना के कारण ही उसका प्यार परवान चढ़ रहा है. वो इन बातो से अंजान थी. उसे प्रेम मिल गया बस इशी में खुस थी.

प्रेम साधना का हाथ पकड़ कर साधना को मदन और वर्षा के पास ले आया.

“तुम लोगो को थोड़ी देर और रुकना होगा.” प्रेम ने कहा.

“क्या हुवा प्रेम, क्या बात है. और साधना रो क्यों रही है.” मदन ने कहा.

“कुछ नही ये प्यार के आँसू है इसके. हम दोनो भी शादी करेंगे आज. तुम्हे रुकना होगा थोड़ी देर और.”

“अचानक ये सब कैसे.” मदन और वर्षा तो हैरान ही रह गये.

“वो हमारे बीच की बात है. तुम बस रूको यहा.” प्रेम ने कहा.

“ पर तुम दोनो की शादी कौन करवाएगा. पंडित जी तो कभी तैयार नही होंगे.” मदन ने कहा.

“उन्हे मैं मना कर लाता हूँ. तुम साधना को तैयार करके लाओ. ये थोडा भावुक हो रही है.”

वर्षा ने साधना का हाथ पकड़ा और कहा, “आओ मैं तैयार करूँगी अपनी ननद को. चलो घर चलते हैं. मदन तुम यही रूको मैं साधना को लेकर अभी आती हूँ.”

वर्षा साधना को लेकर चली गयी और प्रेम अपने पिता से मिलने अपने घर की तरफ निकल लिया.

“आ गये तुम. करवा दी उन दोनो की शादी? मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगा.” केशव पंडित ने कहा.

“शादी करवाई नही है. आपके आशीर्वाद के बिना अधूरी रहेगी शादी पिता जी. चलिए मेरे साथ आपको मेरी शादी भी करवानी है.”

“ये क्या बोल रहे हो?” केसव पंडित हैरानी में पूछता है.

“मेरी जींदगी साधना से जुड़ी हुई है पिता जी. मैं चाह कर भी उसे खुद से अलग नही कर पाया. आज मैं उसके साथ शादी के बंधन में बँध जाना चाहता हूँ. और ये शुभ काम आपको ही करना होगा.”

“बेटा मैं नही कर्वाउन्गा ये शादी. मुझे वो लड़की पसंद नही है. और शादी करनी ही है तो किसी पंडित से करो.”

“मैं शादी साधना से करना चाहता हूँ. मेरी शादी करने में रूचि नही है. बस साधना के साथ बंधना चाहता हूँ प्रेम के बंधन में. आप आशीर्वाद देंगे तो ख़ुसी होगी मुझे. आपके आशीर्वाद के बिना कुछ नही होगा.”

“मैं ऐसा कोई आशीर्वाद नही दूँगा. चले जाओ यहा से.” केसव पंडित ने कहा.

“मैं मंदिर में साधना के साथ आपका इंतेज़ार कर रहा हूँ पिता जी.” प्रेम कह कर घर से निकल जाता है.

भीमा और रेणुका मंदिर पहुँच गये.

क्रमशः.........................


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