रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -33
गतान्क से आगे...
“ देवी क्या तुम मेरे लिंग को अपनी योनि मे समा लेना चाहती हो?”
“हाआँ हाां.” मैने उनके सवाल के जवाब मे किसी उत्तेजित रांड़ की तरह हरकत की,” मैं भूखी हूँ देव…….मैं आप की शरण मे आई हूँ. मेरी भूख मिटाना अब आपका काम है.”
“लेकिन देवी….ये भूख तो कोई भी मर्द मिटा सकता है. तुम यहाँ मौजूद किसी के भी पास जा सकती थी. मैं ही क्यों?” गुरुजी मुझे आज सताने के मूड मे थे. मुझे नही मालूम था कि मेरी एक एक बात रेकॉर्ड हो रही है.
“ गुरु जी मेरी ये भूख सिर्फ़ और सिर्फ़ आप मिटा सकते हो. आपके आगे तो सब फैल हैं. आपका लिंग जब अंदर जाता है तो लगता है मानो मुझे चीर कर आधा कर देगा. गुरुजी जो संतुष्टि आपके साथ सहवास से मिलती है वो किसी और के साथ कहाँ.”
“ठीक है देवी लेकिन तुम्हे जो चाहिए वो खुद लेना पड़ेगा. अगर तुम मेरे लिंग को अपनी योनि मे चाहती हो तो इसे अपने हाथों से अंदर कर लो.” गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा. मैने उनके लिंग को अपने एक हाथ मे थाम कर दो बार सहलाया फिर दूसरे हाथ की उंगलियो से अपनी योनि के मुँह को चौड़ा कर के उनके लिंग को अपनी योनि के मुँह से सटाया और फिर अपने बदन को आगे की ओर बढ़ा कर उनके लिंग को अपनी योनि मे घुस जाने दिया. उनका लिंग एक जोरदार झटके मे मेरी योनि को चीरता हुया अंदर घुसने लगा.
"ओफफफफफफ्फ़…….उम्म्म्ममम गुरुजी धीरे धीरे अंदर करो. मैं आपके इस खंबे को अंदर जाते हुए महसूस करना चाहती हूँ. मैं चाहती हूँ कि ये सीधे मेरी कोख मे जाकर अपने रस की बोछार करे." मैने अपने हाथों से अपनी चूत की फांकों को और फैलाते हुए कहा.
गुरुजी ने अपने लिंग को एक बार वापस बाहर निकाला फिर मेरी योनि के उपर उसे रख कर धीरे धीरे अंदर करने लगे. उनका लिंग अंदर जाता ही जा रहा था. ऐसा लग रहा था की मेरी योनि को उनका लिंग छील कर रख देगा. मैं भी इस दर्द को जीना चाहती थी इसलिए मैने अपनी योनि के मुस्सलेस सख्ती से भींच रखे थे जिससे उनके लंड को आगे बढ़ने के लिए मेरी योनि को बुरी तरह रगड़ना पड़े.
"उउफफफ्फ़ कितना अंदर जाएगा ये. अब तो गले से निकलने की बारी है" मैने उनके सीने पर हाथ फेरते हुए कहा. धीरे धीरे उनका पूरा लिंग मेरी योनि मे समा गया. उनके अंडकोष मेरे अशोल को च्छू रहे थे.
“घुस गया पूरा?” मैने उनसे पूछा जिसके उत्तर मे वो बस एक बार मुस्कुरा दिए. मैने अपने हाथ नीचे ले जाकर उनके लिंग को छ्छू कर देखा. उनका लिंग पूरा मेरी योनि के अंदर था.
“ ये होता है लंड. ओफ्फ कितना बड़ा है आपका. आपको दूसरी औरतें कैसे झेलती होंगी? जब अंदर जाने लगता है तो लगता है गले के रास्ते बहांर निकल जाएगा.ऊऊओफफ्फ़ कितनी अंदर तक चोट करता हाईईईई…..म्म्म्माआ…….लगता है बस यूँ ही घंटो मुझे ठोकते रहो. हमारा ईईए संभोग कभी ख़त्म ना हूऊओ” मैने उनके होंठों को एक बार प्यार से चूम लिया.
मेरी बातें सुन कर गुरुजी मुस्कुरा रहे थे. वो इस पोज़िशन मे कुच्छ देर रुके. उनके बदन का सारा बोझ अब उनकी बाँहों पर और उनके लिंग पर था. अब उन्हों ने अपने लिंग को बाहर खींचना शुरू किया. पूरे लिंग को मेरी योनि से बाहर खींच लिया. उनके लिंग पर मेरे योनि रस के कुच्छ कतरे लगे हुए थे.
“ऊऊफफफफफ्फ़…..इतना लंबा खंबा मेरी योनि मे घुस गया था. वो भी पूरा.” मैने उनके लिंग को अपने हाथ से दोबारा सहलाया.
“ देवी तुम बहुत सेक्सी हो. तुमने मुझ जैसे सन्यासी के गर्व को भी चकना चूर कर दिया है. मुझे बहुत गर्व था अपने संय्याम पर अपनी ताक़त अपनी मर्दानगी पर मगर तूने मुझे भी अपने सामने झुकने पर मजबूर कर दिया है.” मैं उनके मुँह से अपनी बधाई सुनकर फूल कर कुप्पा हो गयी.
उनका लिंग वापस मेरी योनि मे घुसने लगा. खुशी और संतुष्टि से मेरी आँखें फट गयी थी और मुँह खुला का खुला रह गया था. उत्तेजना मे मेरा मेरी आँखें उलट रही थी. मेरे बदन मे अकड़न सी आ गयी. और उनके लिंग को चूमने के लिए मेरी योनि से गर्म लावा बह निकला. उनके दो बार अंदर करते ही मेरा पहला डिसचार्ज हो गया.
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
जब वीर्य का बहाव रुका तो मैने अपनी आँखों को बंद कर ली और उनके लिंग की रगड़ अपनी योनि मे महसूस करने लगी. मैने उनके लिंग को च्छुकर दोबारा तसल्ली की की उसके अब और अंदर जाने की कोई गुंजाइश नही है.
गुरुजी अपने लिंग को वापस धीरे धीरे पूरा बाहर तक खींच लिए. उन्हों ने लिंग को पूरा बाहर निकाल कर अगले ही पल एक जोरदार झटके मे पूरा लिंग वापस मेरी योनि मे डाल दिया. उनका धक्का इतना जोरदार था कि मैं मचलते हुए उठ बैठी. मेरे मुँह से "ऊऊऊओंम्म्माआआअ " जैसी आवाज़ निकल पड़ी.
गुरुजी अब ज़ोर जोए से धक्के मारने लगे. हर धक्के के साथ मेरे मुँह से "अयाया" "ऊवू", “हंफफ्फ़…..हूंफफफ्फ़” जीसी आवाज़ें निकलती थी. कुच्छ ही देर मे वापस मेरे पूरे बदन मे सिहरन सी होने लगी. अब आसपास की सारी घटनाओ से मैं अन्भिग्य हो गयी थी. मुझे सिर्फ़ अपनी तड़पति योनि और उसकी प्यास बुझाता गुरुजी का लंड याद था. मैं पूरी तरह बेख़बर थी की बगल मे जीवन और उन दोनो लड़कियों के बीच क्या चल रहा है.
गुरुजी मुझे चोद्ते हुए मेरे बूब्स बुरी तरह मसल रहे थे. मैने अपने नाख़ून उनके मांसल बाहों मे गढ़ा दिए और अपना वजन अपने कंधे और टाँगो पर डाल कर अपनी कमर को उचकाने लगी जिससे कहीं उनके लिंग का कोई पोर्षन बाहर ना रह जाए. मैं ज़ोर ज़ोर से अपने सिर को झटकने लगी और मेरे योनि मे वापस रस की फुहार होने लगी.
इस बार जब मेरा सारा रस निकल गया तो मैं निढाल होकर उस बर्त पर पसर गयी. लेकिन उनके धक्कों मे कोई अंतर नही आया. कुच्छ देर तक तो मैं अपनी उखड़ी सांसो को कंट्रोल करती रही. बस के हिचकॉलों से पहले से ही हिलता बदन अब उनके हर धक्के से आगे पीछे हो रहा था. मेरे बड़े बड़े उरोजो उनके धक्कों से इधर उधर उछल रहे थे.
जब भी मैं स्वामी जी के साथ होती थी मेरे बदन मे कामग्नी इतनी तीव्र हो जाती थी कि उसे बुझा पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता था. मई किसी सेक्स मे आँधी निंफो की तरह घंटो तक उनसे लगातार छुड़वा सकती थी. मैं इस बार भी बस पाँच मिनिट मे वापस पहले की तरह कमातूर हो गयी और उनके झटकों का जवाब देने लगी.
उन्हों ने मुझे उठा कर बर्त के साइड मे बिठाया और खड़े होकर मेरी टॅनजेंट उठा कर अपने कंधों पर ले ली. मैने सहारे के लिए पीछे बर्त पर अपने हाथ रख दिए. वो मुझे वापस ठोकने लगे. इस पोज़िशन मे मैं अपनी योनि के अंदर बाहर होते अपने गुरु के मोटे लंड को साफ साफ देख रही थी. उत्तेजना मे मेरी योनि से रस झाग के रूप मे बाहर आ रहा था. उनके लंड के जड़ के पास सफेद झाग की एक रिंग बन गयी थी.
कुच्छ देर तक इस तरह चोदने से मैं वापस झाड़ गयी. अब उन्हों ने वापस मुझे बर्त पर लिटा दिया और मेरे ऊपर लेट कर चोदने लगे. उनकी टाँगें बाहर की ओर फैली हुई थी. मैने अपनी टाँगों को एक दूसरे पर सख्ती से दाब रखा था. इस तरह से मैने
उनके लिंग को अपनी योनि के मुस्सलेस से जाकड़ लिया था. मैं उनके लिंग का सारा रस आज अपनी योनि मे निचोड़ लेना चाहती थी. वो मुझे चोद्ते हुए मेरी छातियो को अपने मुँह मे लेकर चूस रहे थे. साथ साथ अपने हाथों से मेरी छातियो को नेचोड़े भी जा रहे थे. उनके मसालने से मेरी छातियो मे जो कुच्छ एक दूध के कतरे बच गये थे वो मोती की तरह मेरे निपल्स पर उभर आते. वो अपनी जीभ से उनको चाट कर साफ कर देते थे. जांघों तक मेरा रस फैल कर एक चिपचिपा अहसास दे रहा था.
बिना रुके लगभग आधे घंटे तक मेरी योनि को ठोकते रहे इस दौरान मैं दो बार और झाड़ गयी थी. मैं उनकी चुदाई से अब हाँफने लगी थी. मगर उनका जोश घटने की जगह बढ़ता ही जा रहा था.
अचानक मैने महसूस किया कि मेरी योनि मे उनका लिंग फूल रहा है. मैं समझ गयी कि अब और ज़्यादा देर वो रुक नही सकेंगे.
“हां….हां… गुरुजी….भर दो मेरी योनि को….मेरी कोख आपके रस के लिए तड़प रही है….. मुझे अपना आशीर्वाद देदो……मैं आपको अपनी कोख मे भर लेना चाहती हूँ…” मगर उन्हों ने मेरी एक ना सुनी. उन्हों ने एक झटके से अपने लिंग को मेरी योनि से बाहर निकाल लिया.
ये देख कर रंजन मेरे दूध के बचे हुए ग्लास को उनके लिंग के सामने ले आया. उनके लिंग से तेज़ गरम वीर्य निकल कर उस ग्लास मे भरने लगा. मैं किसी पागल की तरह रंजन का हाथ सामने से हटा कर अपने मुँह को उनके लंड के सामने ले आई. उनके रस की बूंदे अब मेरे खुले हुए मुँह मे गिरने लगी. मैं उनके लंड के नीचे लटकती उनकी गेंदों को अपनी मुट्ठी मे भर कर मसल्ति जा रही थी. मैं भी निचोड़ लेना चाहती थी उन्हे.
सारा वीर्य निकल जाने के बाद वो मेरे ऊपर निढाल होकर लेट गये. मैने उनके होंठों को चूम लिया और उनके बालों मे अपनी उंगलियाँ फेरने लगी.
अचानक मुझे अपने बगल मे चल रहे सेक्स के खेल का अहसास हुया. मैने देखा की जीवन भी करिश्मा को चोद्कर उस से लिपट कर बर्त पर लेटा हुआ था. करिश्मा जीवन के सीने पर लेटी हुई थी. तीनो पसीने से लथपथ बुरी तरह हाँफ रहे थे. उनका भी खेल कुच्छ ही देर पहले ख़तम हुया होगा.
रंजन ने वो ग्लास जिसमे उसने गुरु जी के वीर्य को मेरे दूध के साथ मिलाया था जीवन को पीने के लिए दिया.
मेरे दूध और गुरुजी के वीर्य से मिश्रित उस पेय को जीवन ने एक बार अपने माथे
से लगाया और फिर अपने होंठों से लगा कर एक घूँट मे खाली कर दिया. मैने मुस्कुराते हुए गुरुजी की तरफ देखा. गुरुजी ने मेरे दुख़्ते बूब्स को और मसल्ते हुए
कहा,
" देवी अब तुम्हारे पति देव भी हमारे आश्रम मे शामिल होने लायक हो गये हैं. मैं उन्हे भी दीक्षा देकर अपने आश्रम का एक अंग बनाना चाहूँगा. अब तो उन्हे भी दीक्षा देनी पड़ेगी.” कह कर उन्हों ने अपना हाथ बढ़ा कर जीवन के सिर पर फेरा.
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -34
गतान्क से आगे...
मैने देखा जीवन भी मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे. मैने उनकी मुस्कान का जवाब और अपनी सहमति एक बार अपनी आँखों को बंद कर जताया. मैने बर्त पर लेटे लेटे ही जीवन के बर्त की तरफ अपना हाथ बढ़ाया. जीवन ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख कर हल्के से दबाया.
ये उनकी तरफ से एक तरह से सहमति थी की जो कुच्छ भी हो रहा है उन्हे उससे किसी तरह का एतराज नही है. होंठों को हमे किसी तरह का कष्ट देने की ज़रूरत नही पड़ी. मूक रह कर भी हमने एक दूसरे को समझा दिया. अब जब दोनो ने एक दूसरे को अपनी सहमति जता दी तो फिर किसी तरह की झिझक या नाराज़गी के लिए कोई जगह नही बची थी.
मुझे लगा मानो मेरे सीने पर रखा कोई बोझ उतर गया हो. अब तक जितनी भी चुदाई की थी गैर मर्दों से वो सब जीवन के पीठ के पीछे की थी. उनके बारे मे जीवन कुच्छ भी नही जानता था. इसलिए अपने हज़्बेंड से करती आ रही बेवफ़ाई कभी कभी मुझे चुभने लगती थी. आज उनकी रज़ामंदी से दिल पर लगा वो फाँस निकल गया.
मैने गहरी गहरी साँसे लेते हुए अपनी आँखों को बंद कर लिया. मैं खुश हो कर गुरुजी के नग्न बदन से लिपट गयी और उनके चेहरे को चूमने लगी.
उसके बाद तो पूरी बस का ही महॉल बदल गया. उन्मुक्त सेक्स का खेल तबतक चलता रहा जब तक हम सब थक के चूर नही हो गये.
हम लोग सुबह तक आश्रम मे पहुँच गये. तब सुबह के पाँच बज रहे थे. रात भर मैं सो नही पाई थी. ना ही जीवन ने कोई झपकी ली थी. अब महॉल ही ऐसा था की मज़ाल किसिको झपकी भी आ जाए. पूरी रात ग्रूप सेक्स मे बीत गयी. तरह तरह के आसनो से पार्टनर बदल बदल कर हमने सेक्स का आनंद लिया. मैने अपने तीनो होल्स मे मर्दों से जी भर के वीर्य भरवाया. इस दौरान मुझे चोदने की बारी एक बार जीवन की भी आइ.
स्वामी जी ने मेरे साथ दो बार संभोग किया और एक बार उन्हों ने मेरे योनि को अपनी जीभ से चाट ते हुए मेरे सामने ही रजनी को चोदा. तब मेरे मुँह मे शेखर का लंड धक्के मार रहा था.
कुच्छ देर बाद जब पोज़िशन चेंज हुई तो मैं चौपाया हो कर अपनी योनि मे दिवाकर से धक्के लगवाते हुए रजनी की चूचियो को चूस रही थी. उस वक़्त रजनी जीवन के लिंग पर उपर नीचे हो रही थी.
पाँचों मर्दों ने तो मेरे एक एक अंग को तोड़ कर रख दिया. पाँचों क्यों च्चः कहना चाहिए. मेरे हज़्बेंड जीवन ने भी मौका मिलते ही मुझे जम कर ठोका और काफ़ी देर तक चोदने के बाद उसने योनि से निकाल कर मेरे मुँह मे अपना लिंग डाल दिया. मैं अपने चेहरे को मोड़ कर जीवन का लिंग चूस रही थी. उसने अपने दोनो हाथों से मेरे सिर को थाम रखा था.
काफ़ी देर तक मेरे मुँह मे अपने लिंग को पेलने के बाद उसने अपना डिसचार्ज कर दिया. उनके लिंग के बाहर आते ही दिवाकर जो बर्त पर लेट गया था उसने मुझे खींच कर अपने उपर ले लिया और मैं दिवाकर के लिंग पर अपनी योनि को ऊपर नीचे कर रही थी. जीवन मेरे मुँह मे इतना वीर्य भरा की मैं उसे समहाल नही पाई और मैने सारे वीर्य को अपनी चूचियो पर उलीच दिया. उस वक़्त तरुण मेरी दोनो चूचियो को थाम कर उसके बीच अपने लिंग को रख कर मेरी चूचियो को उस पर दाब रखा था. उस अवस्था मे वो अपने लिंग को आगे पीछे कर रहा था. मैने उसके लिंग को भी जीवन के वीर्य से नहला दिया.
सारी रात ऐसे ही एक दूसरे को संभोग करते हुए कब बीत गयी कुच्छ पता ही नही चला. सुबह पाँच बजे हम देल्ही के आश्रम मे उतरे. आश्रम देल्ही हरयाणा हाइवे पर सहर से दूर बना हुआ था. काफ़ी बड़े एरिया मे आश्रम फैला हुया था. चारों तरफ से पेड पौधों से घिरा हुआ आश्रम बहुत शांति प्रदान करने वाला लग रहा था. चारों ओर हरियाली से घिरी वो जगह मन को बहुत भा गयी.
बस के वहाँ रुकते ही वहाँ के आश्रम के इंचार्ज सेवक राम जी ने आकर दूध और शहद से गुरुजी के पैर धोए और हमे पूरे आवभगत से आश्रम मे ले गये.
" सेवकराम... ." गुरु जी ने कहा, “बहुत अच्छा मेनटेन कर रखा है आश्रम.”
“ सब आपका आशीर्वाद है प्रभु” सेवक राम ने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा.
" बाकी सब को तो तुम जानते ही हो. अब इनसे परिचय करा दूं. ये हमारी सबसे खास शिष्या है रश्मि और ये इनके पति जीवन जी हैं. ये और इनके पति इस आश्रम के सबे नये मेंबर हैं. इनकी पूरी तरह से आवभगत होनी चाहिए." फिर उन्हों ने आगे बढ़ कर सेवकराम के कानो मे कुच्छ कहा. जिसके जवाब मे सेवक राम ने मुस्कुरा कर सिर्फ़ अपने सिर को हिलाया.