संघर्ष

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rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 22 Dec 2014 14:53

संघर्ष--33

गतान्क से आगे..........

फिर सावित्री अपनी टाँगों को जैसे ही फैलाई की धन्नो ने अपनी तीन उंगलिओ को बुर मे घुसाने लगी और पूरी तरह से गीली बुर मे तीनो उंगलियाँ आसानी से घुस गई. इतना देख कर धन्नो ने सावित्री से कही ...

"तू मेरे साथ घूमेगी तो ऐसे ही खूब मज़ा पाएगी और तुझे दूसरे हर उमर के मर्दों से भी चुदवा दूँगी..समझी "

सिस्कार्ति हुई सावित्री ने मस्ती मे हामी भरते हुए बोली "घूमूंगी चाची ...आप के साथ ही रहूंगी..आप जैसे बोलॉगी वैसे ही करूँगी...और तेज करो आहह ..."

धन्नो अपनी तीनो उंगलिओ से सावित्री की बुर चोदने लगी और उसको आगे फुसलाते हुए उसी बात को दोहराते बोली

"जब तक गाओं मे खूब घूमेगी नही तब तक गाओं के मर्द तेरे पीछे पड़ेंगे कैसे....चल तुम मेरे साथ घुमा करना और देख की गाओं के मर्द तेरी जवानी के लिए कैसे पीछे पड़ते हैं...मेरे साथ गाओं मे घूम कर देखना की कितने लंड तेरी बुर मे घुसने लगेंगे....ठीक..!"

सावित्री के बुर मे धन्नो की उंगलियाँ तेज़ी से चल रही थी और सावित्री पूरी तरह मस्ती से कांप रही थी और आँखें एक दम बंद हो चुकी थी और जबाव मे बोली

"आ ससस्स हाँ चाची खूब घूमूंगी दिन भर तेरे साथ ही रहूंगी ..आ और तेज़ करो ...हमेशा तेरे साथ रहूंगी...आअहह सस्स अर्र सस्स्सरर.र्र्र्ररर.र.र.र.र."

इतना कहते ही सावित्री काँपने लगी और झड़ने लगी. धन्नो की उंगलियाँ पूरी तरह से भीग गयीं और हाथ भी दर्द करने लगा. झदाने के बाद सावित्री हाँफने लगी थी. धन्नो ने अपनी उंगलिओ को अपने पेटिकोट मे पोंच्छ दिया फिर सावित्री की बुर भी अपनी पेटीकोत से पोन्छि. फिर सावित्री अपने कपड़े ठीक की और उसके बाद धन्नो अपनी झोली (समान) को ली और दोनो खंडहर से बाहर आने लगे.

धन्नो आगे आगे चल रही थी और सावित्री उसके पीछे पीछे. खंडहर से जैसे ही दोनो बाहर निकलने वाले थे ही ठीक सामने ही गाओं का एक शराबी नशे मे धुत हो कर लड़खड़ा रहा था. और वह शराबी जैसे ही दोनो को देखा की अपनी लड़खड़ाती ज़ुबान से गंदी गंदी गालियाँ देना सुरू कर दिया

"क्या री रॅंडियो ...दोपहर मे इस खंडहर मे क्या कर रही थी....आएँ बोल चुदवायेगी तुम सब तो ले मेरा लंड...ले ले कहाँ जा रही है ले मेरा लंड.."

और उसने लड़खड़ते कदमो से किसी तरह खड़ा होता हुआ अपने पैंट की चैन खोल कर काला लंड बाहर निकाल कर दीखाने लगा. सावित्री तो घबरा कर तेज़ी से रश्ते पर चलने लगी तब धन्नो ने सावित्री का हाथ पकड़ ली और बोली "अरे घबरा मत ये अपने ही गाओं का तेजू है .....काफ़ी नशे मे है....रुक भाग मत इस दोपहर मे देख चारो ओर कोई दीखाई नही दे रहा है.और इतना बड़ा खंडहर भी एक दम खाली है. घबरा मत थोड़ा रुक देख तुझे बताउ की नशे मे शराबिओं से कैसे मज़े लेते हैं..तू बस चुप चाप देख और सुन.."

धन्नो के इस तरह की बात सुनकर सावित्री को डर लग रहा था क्योंकि वह शराबी जो 35 साल के आस पास था अपनी चैन खोल चुका था और काले काले झांतों से घिरा हुआ काले रंग का लंड बाहर निकल कर लटक रहा था और वह शराबी उसे अपने हाथ मे ले कर दोनो को दिखाते हुए अपने लड़खड़ाते कदमो पर खड़ा रहने की कोशिस करता और दूसरे हाथ से खंडहर की दीवार को भी पकड़ कर सहारा लेते हुए खंडहर के अंदर उन दोनो के तरफ आते हुए बोला

"आई ..ई...ले ले रे ले मेरा लंड ले...ए लड़की कौन है रे ...किसकी लड़की है ये ..ले चुदवा ले रे हमसे "

धन्नो जो कुच्छ दूरी पर खड़ी थी, सावित्री का हाथ पकड़ कर खंडहर मे अंदर की ओर खिसकने लगी और सावित्री से धीरे से बोली

"तुम चिंता मत कर वो खूद बहुत नशे मे है की हम लोगो तक आ नही सकता बस जो कर रहा है और बोल रहा है उससे ज़्यादा कुच्छ नही कर सकता..."

फिर धन्नो ने सावित्री को आँख मारते हुए बोली

"देख शराबी से कैसे मज़ा लेते हैं"

इतना कह कर धन्नो ने शराबी की ओर देखते हुए गुस्से का भाव बनाती हुई उसे डाँटते हुए बोली....

"औरतों को अकेले मे पा कर ये क्या कर रहा है हरामी कहीं का."

इतना सुनकर उस शराबी खूद को संभालते हुए बोला

"त त त त त तू इस खंडहर मे इस दोपहर मे क्या करने आई है अएइन बोल रे कुती.."

फिर धन्नो अपनी आँखे बड़ी बड़ी करके डाँटते हुए बोली

"पहले तुम ज़बान संभाल के बोल कुत्ता हरामी.....हम दोनो यहा पेशाब करने आई थी समझे कमीने.....हम लोगो से बट्मीज़ी से बात मत कर.."

शराबी को ये बात बर्दाश्त नही हुई और उसने कहा

"त त ते तेरी मा मा की चोदु...इस खंडहर मे ही तेरी ब ब ब बुर से मूत निकलता है ..चल ठीक है अब तो ..मूत ली है तो हमसे चुदवा ले"

इतना सुनते ही धन्नो ने लगभग झगड़ा करते हुए बोली

" ..तेरी मा बहन नही हैं क्या...जा कर उन्ही को चोद ...हरामी साला ...देख इस कुत्ते को ये औरतों को अकेले मे पा कर कैसे बट्मीज़ी कर रहा है.."

इतना सुन कर शराबी ने काफ़ी गुस्से मे बोला

"त त त तेरी मा को चोदु..और तेरी ब ब बेटी को चोदु..और तुम्हे चोदु...तू मुझे गाली देती है...र र र रंडी कहीं की .....तू तेजू को गाली देती है..तू जानती है इसका अंजाम क्या होगा ...मैं नशे मे भले हूँ.....ल ल लेकिन मैं तुम दोनो को खूब अच्छि तरह से पहचानता हूँ रंडी साली ..."

इतना सुनते ही सावित्री सहम गयी और धन्नो से धीरे से बोली ...

"चाची चलो यहाँ से इस शराबी के मुँह लगना ठीक नही है.."

तब तक उस शराबी की नज़र सावित्री के इस फुसफुसाहट पर पड़ गयी और आगे वह बोला

"आई रंडी साली ...क्या इस धन्नो से कह रही है ...तू तो सीता की बेटी है मैं तुझे खूब पहचान रहा हूँ...अब तक तो तेरा कुच्छ पता नही था अब तू भी इस धन्नो के साथ.......अयीन....साली...धन्नो के साथ ...घूम रही है...ये तो साली पुरानी....र्र...रंडी है और अब तू भी....रंडी बन ...रही ...ह है ...तो .ले मेरा लंड ले ले.."

सावित्री की नज़र जैसे ही उस शराबी लंड पर पड़ी डर गयी क्योंकि अब उसका लंड कुच्छ मोटा हो कर हवा मे लहराने लगा था.

धन्नो ने फिर सावित्री से कहा

"डर मत हरजाई..देख चारो ओर कोई दीख नही रहा है..इस सन्नाटे मे कोई देखने सुनने वाला थोड़ी है और ये तो नशे मे है.....कोई देख भी लेगा तो बोल देंगे की ये नशे मे है और ग़लती इसी की है...समझी...डर मत ...और अब तू कुच्छ उल्टी सीधी बोल... देख कैसे चिड़ेगा और गुस्साएगा..बोल उसे कुच्छ.."

धन्नो ने सावित्री को ऐसा कहते हुए उसकी बाँह पकड़ कर अपने आगे कर ली. लेकिन सावित्री ने कुच्छ बोला नही और धीरे से फुसफुसा

"धात्त मैं क्या बोलूं..मैं कुच्छ नही बोलूँगी..आप ही बोलो"

फिर धन्नो ने सावित्री को डाँटते हुए धीरे से बोली

" ..तू डर मत..उसे डाँटते हुए गाली दे ..किसी शराबी को तो लोग ऐसे ही गाली देते फिरते हैं और ये तो हमलोगों से बदतमीज़ी कर रहा है..."

rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 22 Dec 2014 14:53

फिर भी सावित्री की हिम्मत नही हुई की उस शराबी को गाली दे जिसे देखकर डन्नो फिर बोली

"चल बोल तो हरजाई बड़ा मज़ा आएगा बोल के देख ..चल गाली दे उस हरामी को...."

इतना सुनकर सावित्री एकदम सनसना गयी इसके बावजूद उसकी हिम्मत नही हो रही थी की उस शराबी को कुच्छ बोले इस लिए चुप रही, इतना देखकर धन्नो ने सावित्री के गांद मे चिकोटी काटते बोली

"इतनी डरेगी तो झाँत मज़ा लूटेगी मर्दों से..बोल हरजाई बोल..चल बोल..बोल..गाली दे कमीने को..."

धन्नो के दबाव और उकसाव से सावित्री उस शराबी को कुच्छ बोलने और गाली देने की हिम्मत इकट्ठा की और काँपते होंठो के बीच से घबराई आवाज़ निकली

"सीसी क क कमीना...क सीसी क्या है..हरामी...क क कुत्ता .."

इतना बोल कर सावित्री चुप हो गयी और धन्नो सावित्री के ठीक पीछे खड़ी थी और उसे पकड़ी थी ताकि सावित्री पीछे ना हटे. सावित्री के मुँह से गाली सुनते ही शराबी तेजू का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया. वह गुस्से से तमतमाते हुए लगभग चिल्ला उठे

"एयेए आ रे तेरी मा की बुर चोदु साली ...कल की लड़की मुझे गाली दे रही है...मैं आज तेरी बुर फाड़ कर दम लूँगा...भोसड़ी साली तू मेरे को गाली दे दी...त त त त्तेरी मा की तो हिम्मत ना हुई कि मेरी तरफ देखे और तू गाली दे दी....अब देख..तेरी बुर को चोद डालूँगा...ले मेरा लंड..ले आ चल आज मैं तेरी बुर चोदुन्गा..."

धन्नो ने सावित्री को फिर फुसफुससते हुए ललकारा

"चल गाली दे दे आगे बोल ...देख कितना चिड रहा है..दे गाली"

फिर सावित्री गाली देते हुए बोली "तू अपनी मा को छोड़"

इतना कहते ही सावित्री का बदन झंझणा गया. किसी मर्द को गंदी गाली बकते ही एक अजीब सी मस्ती आ गयी. सावित्री को विश्वास हो गया की धन्नो चाची सच ही कह रही थी की गाली देने मे बहुत मज़ा आएगा. यह सावित्री का पहला अनुभव था. सावित्री को लगा की थोड़ी देर पहले ही झाड़ चुकी बुर मे एक मस्ती उठने लगी थी और अब शायद उसी मस्ती के वजह से आगे बोली...

"अपनी बहन को चोद चोद...ल ल ल ल लंड से चोद..प प प्पेल बुर पेल ...मा को पेल..."

इतना कह कर सावित्री मस्ती और डर दोनो वजह से कांप रही थी उसकी साँस तेज चल रही थी. फिर उस शराबी ने गालियाँ देते हुए आगे बढ़ने लगा...

"क क क कुती कामिनी आज...देख की मैं किसको चोद्ता हूँ...आ अब त त तेरे को बिना चोदे नही छ्चोड़ूँगा.."

उसके लड़खड़ाते कदम अब धीरे धीरे उन दोनो की ओर बढ़ने लगे. ऐसा देख कर सावित्री घबडा गयी तो धन्नो ने सावित्री के बाँह को कस कर पकड़े हुए खंडहर के अंदर की ओर जाने लगी जिधर काफ़ी सन्नाटा था और उसी तरफ वो शराबी भी धीरे धीरे आ रहा था और सावित्री को गालिया देते हुए रोक रहा था. उसका लंड पॅंट के बाहर अब एकदम खड़ा था और वो शराबी बार बार यही कह रहा था

"आज मैं तेरी बुर फाड़ कर ही दम लूँगा..आज तेरी बुर फाड़ कर ही छोड़ूँगा ...आज मैं तेरी बुर का भरता बना दूँगा...तेरी मा को चोदु रुक अब भाग मत रुक साली रुक तेरी बुर को चोदु"

धन्नो सावित्री को लेकर खंडहर के काफ़ी अंदर आ गयी सावित्री को बहुत डर लग रहा था. वह घबरा कर धन्नो की ओर देखी तब धन्नो ने उससे काफ़ी धीरे से पुछि

"क्यों गाली देने मे मज़ा आया की नही..."

तब सावित्री ने कहा "चलो यहाँ से वो इधेर ही आ रहा है...चलो "

फिर धन्नो ने कुच्छ कस के बोली

"अरे मैं जो पुच्छ रही हूँ वो बता...मज़ा आया की नही..."

इस पर सावित्री ने धीरे से कही

"हूँ"

धन्नो ने सावित्री की बाँह को कस के पकड़ रखी थी और उस शराबी की ओर ही देखते हुए धीरे से बोली

"चल अब मैं तुझे बताउन्गि की जब कोई शराबी बदमाशी करता है तो एक लड़की या औरत को कैसे बचना चाहिए...तू डर मत ......"

ऐसी बात सुनकर सावित्री घबदाती हुई बोली

"रहने दो चाची ..अब घर चलो..."

फिर धन्नो गुस्साती हुई सावित्री की बाँह पकड़ कर झकझोरते हुए बोली..

'..ज ज्ज झाँत मज़ा लोगि ..जब इतनी गांद फट रही है...इतना डरेगी तब बुर झंघों के बीच मे सूख कर बेकार हो जाएगी ...और लंड सपने मे ही मिलेंगे...रुक मैं जैसा कह रही हूँ बस वैसा ही कर..."

धन्नो के गुस्से भरे चेहरे को देखकर सावित्री एकदम चुप हो गयी.

उसके बाद धन्नो ने उस शराबी को लल्कार्ते हुए बोली

"तू अपनी बाप की असली औलाद है तो इस लड़की पर हाथ लगा कर देख..."

धन्नो की इस तरह की बात से सावित्री एक दम घबरा गयी और आगे बढ़ रहे शराबी से बचने के लिए धन्नो की पकड़ से हटने की कोशिस करने लगी. धन्नो ने सावित्री को कस के पकड़ी रही और डाँटती हुई बोली

"तू डरती क्यों है..ये तेरा कुच्छ नही कर सकता...ये तो हिजड़ा है..."

इतना सुन कर शराबी बोला

"ले मेरा लंड ले साली मैं हिजड़ा हूँ..देख ले मेरा लंड ...तेरी बुर चोद कर फाड़ दूँगा..."

इतना कहते हुए उसने अपनी पैंट निकालने लगा. इतना देखकर धन्नो ने सावित्री के उपर आग बाबूला होते धीरे कान मे डाँटते हुए बोली

"....तेरी जैसे तो डरपोक लड़की मैने आज तक नही देखी........ज़्यादे इधेर उधेर करेगी तो सब गड़बड़ हो जाएगा...इसी लिए कह रही हूँ की डर मत ...थोड़ी देर और हिम्मत से काम ले ...बस आज तेरा काम बन जाएगा...हिम्मत रख..."

rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 22 Dec 2014 14:54

सावित्री के कान मे धन्नो की ऐसी बात पड़ते ही लगा की वो बेहोश हो जाएगी. अब धन्नो की चाल समझ मे आ रही थी शायद इसी लिए धन्नो ने सावित्री के पीछे खड़ी हो कर उसे कस के पकड़ रखी थी. सावित्री इस स्थिति के लिए तैयार नही थी. लेकिन सावित्री ने आज धन्नो का सबसे गुस्सा वाला चेहरा देख कर विरोध करने की हिम्मत नही हो पा रही थी. अब शराबी पैंट निकाल कर लंड लहराते हुए लड़खड़ाते हुए कदमो से आगे बढ़ रहा था.

और अब सावित्री के ठीक सामने आ गया था, उसका लंड पूरा खड़ा हो कर लहरा रहा था. धन्नो के काफ़ी गुस्से का वजह यह था की आज उसे एक बहुत बढ़िया मौका था अपने आँख के सामने सावित्री को दूसरे मर्द से जबर्दाश्ती चुदवाने का. धन्नो यह सोच चुकी थी की सावित्री को किसी तरह इस शराबी से ज़बरदस्ती चुदवा कर खूद देखेगी की कैसे सावित्री छटपटाती है. धन्नो के मन मे यह गुस्सा ज़रूर था की पंडितने यदि सावित्री की सील नही तोड़ी होती तो आज इस शराबी से अपने आँख के सामने ही सील टूटते हुए देखती और ये भी देखती की अपनी कुँवारीपन को लूटवाते हुए कैसे रोती और सिसकती है.

धन्नो को उस पल अपनी जवानी के दिन याद आ गये जब उसकी चुचियाँ किसी नीबू की तरह ही थे. जवानी चढ़ना सुरू ही की थी और एकदम से कोरी और कुँवारी थी, जब उसके मायके मे ही पड़ोस की एक औरत ने अपने रिश्तेदार से कमसिन और कुँवारी धन्नो की सील जबर्दाश्ती अपने सामने ही तोड़वा दी थी, धन्नो को खूब याद है की खूब खून निकला था और धन्नो खूब रोई थी. बाद मे वह औरत धन्नो को अपने घर मे बुला बुला कर कई बार अपने उस रिश्तेदार से धन्नो को चुदवाइ. अगले पल यह छनिक सोच धन्नो के मन से हवा की तरह गायब हो गयी लेकिन धन्नो की इच्च्छा थी की वह अपने आँखों के सामने सावित्री को इस तरह से मजबूर करे जिससे उसकी लाज़ और हया ख़त्म हो जाय और एक सीधी साधी लड़की से पक्की छिनार बन जाय. किसी जवान लड़की के चरित्रा को खराब करने या दूसरे से चुदवा देने मे धन्नो को इस उम्र मे बहुत मज़ा आता था और इतना मज़ा तो उसे खूद चुदवाने मे भी नही आता था.

उसकी यह अब एक पुरानी आदत हो गयी थी. इसी आदत के वजह से धन्नो अपने जीवन मे कई लड़कियो को ज़बरदस्ती दूसरे मर्दों से चुदवाने के लिए मजबूर कर देती और धन्नो के जाल मे जो भी लड़कियाँ फँसी वी सभी पक्की चुदैल बन चुकी थी. और यह बात गाओं के बहुत लोग जानते भी थे की धन्नो नई उम्र की लड़कियो को खराब करने मे देर नही करती. इसी वजह से सीता भी अपनी बेटी सावित्री को बगल मे ही रहने वाली धन्नो के घर नही जाने देती थी.

तभी उस शराबी तेजू ने सावित्री के ठीक सामने आ कर अपनी लाल लाल आँखों से सावित्री को घूरते हुए पुचछा

"बोल क्या बोल रही थी तेरी बुर चोदु"

इतना बोलना ही था की सावित्री के नाक मे शराब की गंध घुसने लगी. वह भागना चाहती थी लेकिन धन्नो ने सावित्री के दोनो बाँह को उसके पीछे से कस के पकड़ कर उस शराबी को ललकार्ने लगी

"तू असली मर्द है तो इस लड़की पर हाथ लगा..हिजड़ा साला "

अब सावित्री शराबी को अपने इतने करीब देखकर भागने की कोशिस करने लगी लेकिन धन्नो इतनी ज़ोर से पकड़ी थी की सावित्री उससे खूद को छुड़ा नही पा रही थी. सावित्री रोने जैसे मुँह बनाती चिल्ला पड़ी

" मुझे छोड़ दे चाची ..छोड़ मेरी बाँह...आरीए...ये क्या कर रही हो....छोड़..."

लेकिन धन्नो सावित्री को छोड़ने के बजाय कस कर पकड़ी रही. शराबी तेजू को अब बढ़िया मौका था. उसने तुरंत सावित्री की चुचिओ को पकड़ कर मीस दिया जिससे सावित्री छॅट्पाटा गयी और अपने चुचिओ को उसके हाथ से छुड़ाने की जैसे ही कोशिस की, धन्नो ने सावित्री के दोनो हाथों को अपनी ओर पीछे कस कर खींच ली. अब सावित्री की दोनो चुचियाँ शराबी तेजू के सामने निकल आईं. जिसे तेजू ने लपक कर फिर पकड़ लिया और बड़ी बड़ी चुचिओ को मीसने लगा. थोड़ी देर तक जैसे ही मीसा की धन्नो ने तेजू को बोली

"...लगता है दारू पीते पीते चुचि पीना भूल गया है....अरे जवान लौंडिया है...और तू तो पुराना चोदु है...भूल गया की इसकी चुचि चूसना भी है... दारू बाज...चल चुचि चूस..."

इतना सुनते ही तेजू ने नशे की हालत मे बोला

"..मैं जानता था की त्त तुम सब खंडहर मे चुदवाने के लिए ही घूम रही हो...ह हे हे हे ..."

और शायद नशे की हालत के वजह से अभी भी चुचिओ को दोनो हाथों से समीज़ के उपर से ही मसल ही रहा था. जिसे देख कर धन्नो फिर गुस्सा कर बोली

"...अच्च्छा जो कर रहा है जल्दी कर...चुचि चूस..."

"...अरे पहले ये कपड़े तो निकाले...अच्च्छा चल समीज़ उ उ उपर कर..कर ...."

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