"यानी, दीदी.. में तुम्हारे कपड़े निकालू???" मेने बड़े उत्साह से उसे पुछा और उस'ने अपना सर हिलाके मुझे 'हां' कहा.
"ठीक है, दीदी.. तुम अगर यही चाह'ती हो तो में करता हूँ ये काम!"
"अरे नालायक!. ये में नही. तुम चाहते हो."
"हां, दीदी. हां !! में चाहता हूँ. तो फिर में चालू करू अभी??"
"अगर तुम्हें चाहिए तो. कर चालू!!." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने रिमोट से टीवी बंद किया और नीचे सरक के वो अप'नी पीठ'पर सीधा लेट गयी. उसके चह'रे पर शरारती हँसी थी. में थोड़ा आगे सरक गया और मेरे दोनो हाथ मेने उसके पाँव के पंजो के आगे, उसके गाउन'पर रख दिए. धीरे धीरे दोनो हाथों से में ऊर्मि दीदी का गाउन उप्पर सरकाने लगा.
मेने गाउन ऊर्मि दीदी के घुट'ने तक उप्पर किया. आगे का गाउन उसके पैरो तले अटका हुआ था इस'लिए उस'ने अप'ने घुट'ने थोड़े उप्पर लिए और मेने गाउन उसके घुटनो के उप्पर सर'काया. फिर में उठा के उसकी कमर के यहाँ बैठ गया. में ऊर्मि दीदी का गाउन उप्पर कर रहा था और वो आँखें बंद करके पड़ी थी. मेने उसे कहा,
"दीदी! तुम'ने अप'नी आँखें क्यों बंद रखी है?"
"क्योंकी.. में तुम्हारी तरह बेशरम नही हूँ." उस'ने आँखें बंद रख के ही जवाब दिया.
"यानी क्या, दीदी?"
"यानी ये के.. में कैसे देख सकूँगी के मेरा छोटा भाई मुझे नंगी कर रहा है? मुझे ये बात बिल'कुल शर्मनाक लग रही है."
"ओह ! दीदी! अगर ऐसा है तो मुझे नही कुच्छ देख'ना." ऐसे कह'ते मेने मेरे हाथ पिछे लिए. उस पर ऊर्मि दीदी ने आँखें खोल'कर मेरी तरफ देख'कर कहा,
"तुम चालू रखो, सागर!. अब मुझे थोड़ा बहुत अट'पटा तो लगेगा ही ना?. इस'लिए मेने आँखें बंद रखी है. तुम अपना काम चालू रखो." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने अप'नी आँखें वापस बंद कर ली. मेने मेरे हाथ वापस उसके गाउन के उप्पर रख दिए और में उसे और उप्पर सरकाने लगा.
मेने जान बूझ'कर मेरे पूरे पंजे उसकी टाँगों पर फैलाए थे जिस'से गाउन सरकाते सम'य में उसकी मुलायम टाँगों का स्पर्शसूख ले सकू. फिर मेने उप्पर सर'काया पूरा गाउन उसकी कमर के उप्पर धकेल दिया.
अब ऊर्मि दीदी कमर के नीचे खुली पड़ी थी. उस'ने आँखें बंद की थी इस'लिए में उसे अच्छी तराहा से आँखें भर के (कह'ने की बजाए आँखें फाड़'कर) देख सकता था. मुझे उसकी गोरी गोरी टाँगे और टाँगों के बीच का त्रिकोण भाग दिख रहा था. उस'ने डार्क नीले रंग की पॅंटीस पहनी थी जो कुच्छ देर पह'ले मुझे उसके गाउन के उपर से काली नज़र आई थी. उसकी चूत का उभार उसके पॅंटीस के उपर से साफ दिखाई दे रहा था. चूत के बीच के छेद में पॅंटीस थोड़ी घुसी थी जिस'से उसकी चूत का छेद भी समझ में आ रहा था. पॅंटीस के साइड से चूत के भूरे रंग के बाल बाहर आए थे. में उसे और थोड़ी देर निहारना चाहता था लेकिन मेरा अन्तीम 'लक्ष्य' और ही था.
मेने गाउन और उप्पर सर'काने की कोशीष की लेकिन वो ऊर्मि दीदी के चुत्तऱ के नीचे अटका हुआ था. इस'लिए मेने सिर्फ़
"दीदी" इतना कहा और उसकी समझ में आया.! उस'ने अप'नी कमर थोड़ी उप्पर उठाई और मेने झट से गाउन उसके चुत्तऱ के नीचे से सर'काया. फिर वैसे ही में गाउन उसके नाभी और पेट से उप्पर करता गया. अब तक में उस'का गाउन सरका रहा था और वो लेटी हुई थी लेकिन अब बाकी गाउन उठा'ने के लिए उसे उठ के बैठना ज़रूरी था. ये बात उसके भी ध्यान में आई क्योंकी उस'ने अप'ने दोनो हाथ उप्पर मेरी तरफ किए. उसकी आँखें बंद थी और चह'रे पर लज्जा मिश्रीत, शरारती हँसी थी. मेने भी हंस'ते हुए उसके हाथ पकड़ लिए और उसे उप्पर खींच लिया.
Bahan ki ichha -बहन की इच्छा
Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा
अब ऊर्मि दीदी पाँव पसारे बैठी थी और गाउन उसके कमर'पर गिर गया था. मेने दोनो बाजू से गाउन पकड़ लिया और उसके छाती के उभारों से उप्पर खींच लिया. उस'ने अप'ने दोनो हाथ उप्पर किए और एक झटके में मेने उसके सरीर से गाउन निकाल दिया और बाजू के कुर्सी'पर डाल दिया.
अप'नी आँखें बंद रख के वो वापस पिछे लेट गयी. अब ऊर्मि दीदी सिर्फ़ ब्रेसीयर और पॅंटीस में मेरे साम'ने पड़ी थी. उसके गोरे गोरे बदन पर वो काले रंग की ब्रेसीयर और नीले रंग की पॅंटीस खुल के दिख रही थी. इस तरह से बीना रोक टोक उसे देख'ने का ये मेरा पह'ला मौका था और इस मौके का में पूरी तरह से फ़ायदा ले रहा था. काफ़ी देर में मेरी बहन के अध नंगे बदन को वासानभारी निगाह से देख रहा था.
"क्या हुआ, सागर?. तुम रुक क्यों गये??" ऊर्मि दीदी ने बंद आँखों से मुझे पुछा.
"कुच्छ नही, दीदी! तुम्हें इन अंतर्वस्त्रो में थोड़ा निहार रहा हूँ. इस काली ब्रेसीयर और नीली पॅंटीस में तुम बहुत सेक्सी दिख'ती हो!"
"मुझे लग'ता है. इन अंतर्वस्त्रो के नीचे 'क्या' छुपा है उसे देख'ने में तुम्हें ज़्यादा दिलचस्पी है. है ना, सागर?"
"हाँ. हाँ. दीदी! ज़रूर!"
"तो फिर टाईमपास क्यों कर रहे हो, सागर? निकाल दो उन्हे. और पूरी कर लो अप'नी 'जिग्यासा'!" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी घूम गयी और अप'ने पेट'पर लेट गयी. अब मुझे उसके पिछले भाग का दर्शन हो रहा था. वो पिछे से भी काफ़ी सेक्सी नज़र आ रही थी. उसके दूध जैसे गोरी गोरी पीठ पर उसके ब्रेसीयर की तीन काली पट्टी नज़र आ रही थी. दो पट्टी उसके कंधे से आकर एक आधी पट्टी पर रुक रही थी. उसकी ब्रेसीयर काफ़ी टाइट थी जिस'से उसकी ब्रा की पट्टी के बाजू से उसकी त्वचा उभर'कर आई थी. नीचे उसके गोल गोल मांसल चुत्तऱ उसके पॅंटीस में से बिल'कुल भरे हुए नज़र आ रहे थे. और उसके नीचे उसकी गोरी लंबी टाँगें और भी बेहतरीन नज़र आ रही थी.
मेने मेरा हाथ ऊर्मि दीदी की पीठ'पर, ब्रा के हुक'पर रख दिया. जैसे ही मेरी उंगलीयों का स्पर्श उसे हुआ वैसे उसके बदन'पर रोंगटे खड़े हो गये. मेने मेरे दोनो हाथों की उंगलीया उसके ब्रा के हुक के दोनो बाजू से पट्टी के नीचे घुसा दी और में उस'का हुक निकाल'ने लगा. ब्रेसीयर टाइट थी इस'लिए मुझे हुक निकाल'ने में परेशानी हो रही थी लेकिन फिर भी में हुक निकाल'ने में काम'याब हो गया. हुक खुलते ही ब्रा की पट्टी छिटक गयी और उसकी बगल में जाकर गीर गई.
फिर में उठ गया और वापस ऊर्मि दीदी के पैरो तले बैठ गया. मेने मेरी उंगलीया उसकी कमर'पर पॅंटीस के इलास्टीक में घुसा दी और में उसकी पॅंटीस नीचे खींच'ने लगा. जैसे जैसे में पॅंटीस नीचे खींच रहा था वैसे वैसे उसके चुत्तऱ मेरी आँखों को नज़र आते गये. वो! क्या मस्त दिख रहे थे मेरी बहन के भरे हुए चुत्तऱ!! में जल्दी जल्दी पॅंटीस नीचे खींचता गया और फिर उसके पैरो से मेने उसे निकल दिया.
अब ऊर्मि दीदी. मेरी लाडली बड़ी बहन. मेरे साम'ने. पूरी नंगी. अप'ने पेट'पर लेटी हुई थी..
वो मुझे देख नही रही थी इस'लिए मेने उसकी पॅंटीस, जो पैरो से निकालते सम'य लपेट के उल'टी हुई थी, उसे सीधी की और में उस'को गौर से देख'ने लगा. जब मेने पॅंटीस का चूत का भाग देखा तो वहाँ मुझे गीला स्पॉट नज़र आया. वो स्पॉट देख'कर मुझे आश्चर्य लगा. क्योंकी थोड़ी देर पह'ले जब मेने देखा था तब वो स्पॉट वहाँ पर नही था. मेने उस स्पॉट को उंगली लगा'कर चेक किया तो मुझे पता चला के वो ऊर्मि दीदी की चूत का रस था. इसका मतलब ये था के वो उत्तेजीत हो गयी थी.
में ऊर्मि दीदी को नंगी कर रहा था और उस'से अगर वो उत्तेजीट हो रही थी तो मेरा आगे का काम आसान था. अगर मेने कोशीष की तो उसकी उत्तेजना का फ़ायदा उठाकर में उसके साथ बहुत कुच्छ कर सकता था ये जान'कर में खूस हो गया. एक पल के लिए मुझे लगा के में उसकी चूत रस का वो गीला स्पॉट चाट लू लेकिन फिर मेने सोचा के उस'का चूत रस उसकी पॅंटीस से चाट'ने की क्या ज़रूरत है अगर वो 'सोमरस' सीधा मुझे जहाँ से पैदा हुआ है वहाँ से पीने को मिले तो?? यानी के ऊर्मि दीदी की चूत अगर मुझे चाट'ने को मिल'नेवाली होगी तो..??
अप'नी आँखें बंद रख के वो वापस पिछे लेट गयी. अब ऊर्मि दीदी सिर्फ़ ब्रेसीयर और पॅंटीस में मेरे साम'ने पड़ी थी. उसके गोरे गोरे बदन पर वो काले रंग की ब्रेसीयर और नीले रंग की पॅंटीस खुल के दिख रही थी. इस तरह से बीना रोक टोक उसे देख'ने का ये मेरा पह'ला मौका था और इस मौके का में पूरी तरह से फ़ायदा ले रहा था. काफ़ी देर में मेरी बहन के अध नंगे बदन को वासानभारी निगाह से देख रहा था.
"क्या हुआ, सागर?. तुम रुक क्यों गये??" ऊर्मि दीदी ने बंद आँखों से मुझे पुछा.
"कुच्छ नही, दीदी! तुम्हें इन अंतर्वस्त्रो में थोड़ा निहार रहा हूँ. इस काली ब्रेसीयर और नीली पॅंटीस में तुम बहुत सेक्सी दिख'ती हो!"
"मुझे लग'ता है. इन अंतर्वस्त्रो के नीचे 'क्या' छुपा है उसे देख'ने में तुम्हें ज़्यादा दिलचस्पी है. है ना, सागर?"
"हाँ. हाँ. दीदी! ज़रूर!"
"तो फिर टाईमपास क्यों कर रहे हो, सागर? निकाल दो उन्हे. और पूरी कर लो अप'नी 'जिग्यासा'!" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी घूम गयी और अप'ने पेट'पर लेट गयी. अब मुझे उसके पिछले भाग का दर्शन हो रहा था. वो पिछे से भी काफ़ी सेक्सी नज़र आ रही थी. उसके दूध जैसे गोरी गोरी पीठ पर उसके ब्रेसीयर की तीन काली पट्टी नज़र आ रही थी. दो पट्टी उसके कंधे से आकर एक आधी पट्टी पर रुक रही थी. उसकी ब्रेसीयर काफ़ी टाइट थी जिस'से उसकी ब्रा की पट्टी के बाजू से उसकी त्वचा उभर'कर आई थी. नीचे उसके गोल गोल मांसल चुत्तऱ उसके पॅंटीस में से बिल'कुल भरे हुए नज़र आ रहे थे. और उसके नीचे उसकी गोरी लंबी टाँगें और भी बेहतरीन नज़र आ रही थी.
मेने मेरा हाथ ऊर्मि दीदी की पीठ'पर, ब्रा के हुक'पर रख दिया. जैसे ही मेरी उंगलीयों का स्पर्श उसे हुआ वैसे उसके बदन'पर रोंगटे खड़े हो गये. मेने मेरे दोनो हाथों की उंगलीया उसके ब्रा के हुक के दोनो बाजू से पट्टी के नीचे घुसा दी और में उस'का हुक निकाल'ने लगा. ब्रेसीयर टाइट थी इस'लिए मुझे हुक निकाल'ने में परेशानी हो रही थी लेकिन फिर भी में हुक निकाल'ने में काम'याब हो गया. हुक खुलते ही ब्रा की पट्टी छिटक गयी और उसकी बगल में जाकर गीर गई.
फिर में उठ गया और वापस ऊर्मि दीदी के पैरो तले बैठ गया. मेने मेरी उंगलीया उसकी कमर'पर पॅंटीस के इलास्टीक में घुसा दी और में उसकी पॅंटीस नीचे खींच'ने लगा. जैसे जैसे में पॅंटीस नीचे खींच रहा था वैसे वैसे उसके चुत्तऱ मेरी आँखों को नज़र आते गये. वो! क्या मस्त दिख रहे थे मेरी बहन के भरे हुए चुत्तऱ!! में जल्दी जल्दी पॅंटीस नीचे खींचता गया और फिर उसके पैरो से मेने उसे निकल दिया.
अब ऊर्मि दीदी. मेरी लाडली बड़ी बहन. मेरे साम'ने. पूरी नंगी. अप'ने पेट'पर लेटी हुई थी..
वो मुझे देख नही रही थी इस'लिए मेने उसकी पॅंटीस, जो पैरो से निकालते सम'य लपेट के उल'टी हुई थी, उसे सीधी की और में उस'को गौर से देख'ने लगा. जब मेने पॅंटीस का चूत का भाग देखा तो वहाँ मुझे गीला स्पॉट नज़र आया. वो स्पॉट देख'कर मुझे आश्चर्य लगा. क्योंकी थोड़ी देर पह'ले जब मेने देखा था तब वो स्पॉट वहाँ पर नही था. मेने उस स्पॉट को उंगली लगा'कर चेक किया तो मुझे पता चला के वो ऊर्मि दीदी की चूत का रस था. इसका मतलब ये था के वो उत्तेजीत हो गयी थी.
में ऊर्मि दीदी को नंगी कर रहा था और उस'से अगर वो उत्तेजीट हो रही थी तो मेरा आगे का काम आसान था. अगर मेने कोशीष की तो उसकी उत्तेजना का फ़ायदा उठाकर में उसके साथ बहुत कुच्छ कर सकता था ये जान'कर में खूस हो गया. एक पल के लिए मुझे लगा के में उसकी चूत रस का वो गीला स्पॉट चाट लू लेकिन फिर मेने सोचा के उस'का चूत रस उसकी पॅंटीस से चाट'ने की क्या ज़रूरत है अगर वो 'सोमरस' सीधा मुझे जहाँ से पैदा हुआ है वहाँ से पीने को मिले तो?? यानी के ऊर्मि दीदी की चूत अगर मुझे चाट'ने को मिल'नेवाली होगी तो..??
Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा
ऊर्मि दीदी के नंगे बदन को आगे से देख'ने के लिए मेने धीरे से उसे पेट से पीठ'पर घुमा लिया. वो घूम गयी और मेने देखा के उस'ने अप'नी आँखें ज़ोर से बंद की थी. जैसे ही वो घूम गई उस'ने अपना एक हाथ अप'नी चूत'पर रख'कर उसे छुपाने की कोशीष की. उसके ब्रा के पत्ते अब भी उसके कन्धोपर थे इस'लिए घूम'ने के बाद भी वो ढीली ब्रेसीयर उसके छाती के उभारो पर थी. और फिर भी उस'ने अपना दूसरा हाथ अप'ने उभारोपर आढा रख'कर उन्हे मेरी नज़ारो से च्छुपाने की कोशीष की.
ऊर्मि दीदी की ब्रेसीयर निकाल'ने के लिए मेने उसके पत्ते दीदी के कंधो से खींच लिए. उसे अप'ने हाथ उठाने पड़े और फिर मेने पूरी ब्रेसीयर निकाल के बाजू में डाल दी. उस'ने वापस अपना हाथ अप'नी छाती पर आढा रख दिया. मेने उस'का हाथ पकड़ा और खींचा लेकिन वो ज़ोर से अपना हाथ छाती पर रखे हुए थी. मेने दो तीन बार खींच'ने की कोशीष की लेकिन उस'का हाथ हटा नही. आखीर मेने ज़ोर लगा के उस'का हाथ खींचा और उसकी छाती से हटा दिया. बड़ी मुश्कील से उस'ने हाथ हटाया और ले जाकर अप'नी चूत पर रख'कर दोनो हाथों से चूत छुपा ली.
अब मुझे ऊर्मि दीदी के गदराई छाती के उभार साफ साफ नज़र आ रहे थे. वो लेटी थी इस'लिए वो बाजू में थोड़े गिरे हुए थे लेकिन फिर भी उनमें अच्च्छा ख़ासा उभार था. उसके छाती पर डार्क चाकलेटी रंग का गोल अरोला और उसके बीच में उस'का निप्पल उभर के दिख रहा था. उस'का निप्पल तकरीबन एक सेंटीमीटर लंबा हो गया था और अच्छा ख़ासा कड़ा हो गया था. उसे देख'कर मुझे तो यकीन हो गया के मेरी बहन उत्तेजीत हो गयी थी. आखीर क्यों नही होंगी?? किसी मर्द के साम'ने नंगी होने के बाद कौन उत्तेजीत नही होंगी? भले वो मर्द खुद का सगा भाई क्यों ना हो.!
अब मेने मेरा ध्यान ऊर्मि दीदी की जांघों के बीच लाया. मेने उसके हाथ उसकी चूत से निकाल'ने की कोशीष की लेकिन यहाँ भी उस'ने ज़ोर से पकड़ के रखे थे. एक दो बार उसके हाथ निकाल'ने की कोशीष कर'ने के बाद मेने उसे कहा,
"कम ऑन, दीदी! देख'ने दो ना. मुझे ये तुम्हारा 'मुख्य' भाग.. औरत का यही तो 'ख़ास' भाग देख'ने के लिए में तरस रहा हूँ." उस'पर ऊर्मि दीदी मूँ'ह से कुच्छ ना बोली लेकिन उस'ने अपना सर हिला के 'नही' का इशारा किया. उस'का चेह'रा शरम से लाल हो गया था और होंठो पर शरारती हँसी थी. मेने फिर ज़ोर लगा के उस'का हाथ चूत से हटा दिया. इस बार उस'ने चूत को च्छुपाया नही और वैसे ही पड़ी रही. फिर मेरी बहन के नंगे बदन पर में अप'नी वास'ना से भरी नज़र उप्पर नीचे घुमाने लगा और उसे निहार'ने लगा. उसके जवाना अंगो को देख'कर अप'ने आप मेरे मूँ'ह से निकल गया,
"वो.! ब्यूटीफूल.! बिल'कुल सेक्सी..!"
"नालायक, कही का!! " ऊर्मि दीदी ने झुटे गुस्से से कहा, "तुम्हें शरम नही आती अप'नी सग़ी बहन को नंगी देख'ते हुए??"
"उस में शरमाना क्या, दीदी?" मेने बेशरामी से हंस के जवाब दिया, "अगर तुम्हें शरम नही आ रही है अप'ने भाई के साम'ने नंगी होने में तो फिर भाई को क्यों शरम आएगी बहन को नंगी देख'ने में??"
"छी, सागर! तुम'ने तो मुझे बिल'कुल निर्लज्ज और बेशरम बना दिया." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी लज्जा के मारे घूम गयी और मेरी तरफ पीठ करके लेट गयी. a
ऊर्मि दीदी की ब्रेसीयर निकाल'ने के लिए मेने उसके पत्ते दीदी के कंधो से खींच लिए. उसे अप'ने हाथ उठाने पड़े और फिर मेने पूरी ब्रेसीयर निकाल के बाजू में डाल दी. उस'ने वापस अपना हाथ अप'नी छाती पर आढा रख दिया. मेने उस'का हाथ पकड़ा और खींचा लेकिन वो ज़ोर से अपना हाथ छाती पर रखे हुए थी. मेने दो तीन बार खींच'ने की कोशीष की लेकिन उस'का हाथ हटा नही. आखीर मेने ज़ोर लगा के उस'का हाथ खींचा और उसकी छाती से हटा दिया. बड़ी मुश्कील से उस'ने हाथ हटाया और ले जाकर अप'नी चूत पर रख'कर दोनो हाथों से चूत छुपा ली.
अब मुझे ऊर्मि दीदी के गदराई छाती के उभार साफ साफ नज़र आ रहे थे. वो लेटी थी इस'लिए वो बाजू में थोड़े गिरे हुए थे लेकिन फिर भी उनमें अच्च्छा ख़ासा उभार था. उसके छाती पर डार्क चाकलेटी रंग का गोल अरोला और उसके बीच में उस'का निप्पल उभर के दिख रहा था. उस'का निप्पल तकरीबन एक सेंटीमीटर लंबा हो गया था और अच्छा ख़ासा कड़ा हो गया था. उसे देख'कर मुझे तो यकीन हो गया के मेरी बहन उत्तेजीत हो गयी थी. आखीर क्यों नही होंगी?? किसी मर्द के साम'ने नंगी होने के बाद कौन उत्तेजीत नही होंगी? भले वो मर्द खुद का सगा भाई क्यों ना हो.!
अब मेने मेरा ध्यान ऊर्मि दीदी की जांघों के बीच लाया. मेने उसके हाथ उसकी चूत से निकाल'ने की कोशीष की लेकिन यहाँ भी उस'ने ज़ोर से पकड़ के रखे थे. एक दो बार उसके हाथ निकाल'ने की कोशीष कर'ने के बाद मेने उसे कहा,
"कम ऑन, दीदी! देख'ने दो ना. मुझे ये तुम्हारा 'मुख्य' भाग.. औरत का यही तो 'ख़ास' भाग देख'ने के लिए में तरस रहा हूँ." उस'पर ऊर्मि दीदी मूँ'ह से कुच्छ ना बोली लेकिन उस'ने अपना सर हिला के 'नही' का इशारा किया. उस'का चेह'रा शरम से लाल हो गया था और होंठो पर शरारती हँसी थी. मेने फिर ज़ोर लगा के उस'का हाथ चूत से हटा दिया. इस बार उस'ने चूत को च्छुपाया नही और वैसे ही पड़ी रही. फिर मेरी बहन के नंगे बदन पर में अप'नी वास'ना से भरी नज़र उप्पर नीचे घुमाने लगा और उसे निहार'ने लगा. उसके जवाना अंगो को देख'कर अप'ने आप मेरे मूँ'ह से निकल गया,
"वो.! ब्यूटीफूल.! बिल'कुल सेक्सी..!"
"नालायक, कही का!! " ऊर्मि दीदी ने झुटे गुस्से से कहा, "तुम्हें शरम नही आती अप'नी सग़ी बहन को नंगी देख'ते हुए??"
"उस में शरमाना क्या, दीदी?" मेने बेशरामी से हंस के जवाब दिया, "अगर तुम्हें शरम नही आ रही है अप'ने भाई के साम'ने नंगी होने में तो फिर भाई को क्यों शरम आएगी बहन को नंगी देख'ने में??"
"छी, सागर! तुम'ने तो मुझे बिल'कुल निर्लज्ज और बेशरम बना दिया." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी लज्जा के मारे घूम गयी और मेरी तरफ पीठ करके लेट गयी. a