Badla बदला compleet

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rajaarkey
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Re: Badla बदला

Unread post by rajaarkey » 04 Nov 2014 13:05

गतान्क से आगे...

शिवा अपनी माशूका के ख़यालो से तब बाहर आया जब उसका वाइर्ले अचानक
खड़खड़ाने लगा.एस्टेट की पूरी सेक्यूरिटी टीम & बाकी वर्कर्स वाइर्ले के
ज़रिए ही 1 दूसरे के कॉंटॅक्ट मे रहती थी.वैसे इन वल्क्य-टॉकईस का
इस्तेमाल ज़्यादातर ये बताने के लिए ही होता था कि फलाना गाड़ी खराब हो
गयी है या डेरी वालो ने शाम का दूध दूह लिया है मगर पस्ट्राइसिंग सिस्टम
मे कुच्छ परेशानी है वग़ैरह-2.(दोस्तो ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग
कामुक-कहानिया पर पढ़ रहे है)शिवा ने वाइर्ले उठाया,एस्टेट की 1 जगह की
टूटी बाड़ की मरम्मत हो गयी थी,उसी का जायज़ा लेने के लिए वाहा के
गार्ड्स उसे बुला रहे थे.उसने आह भरी & अपनी जीप की चाभी उठा के अपने
कॅबिन से निकल गया.

देविका के लिए शिवा 1 नौकर से ज़्यादा कुच्छ नही था & उसने उसे थप्पड़ भी
इसीलिए लगाए थे मगर उन चांटो का जवाब जिस अंदाज़ मे शिवा ने इसे दिया था
उसने उसके दिल मे उसके लिए कुच्छ और ही जगह बना दी थी.देविका के दिल मे
भी अब उसके लिए प्यार पैदा हो गया था & उसके जिस्म की बेचैनी उसके दिल की
बेसब्री की परच्छाई ही थी.
अपने पति के लिए अभी भी उसके दिल मे प्यार था & उसकी चिंता भी थी मगर
शिवा वो शख्स था जिसके साथ वो बहुत महफूज़ महसूस करती थी & उसके पास उसे
बहुत सुकून मिलता था.

जीप चलाकर जाते शिवा के दिल मे अभी भी सुरेन सहाय के एस्टेट मे ना होने
का फ़ायदा ना उठाने का मलाल था.उसे अपने बॉस पे & उस वक़्त बाकी लोगो की
मौजूदगी पे बड़ी खिज आई..इन्ही लोगो की वजह से वो अभी अपनी जानेमन के
जिस्म की गोलैईयों मे नही खो पा रहा था.(दोस्तो ये कहानी आप राज शर्मा के
ब्लॉग कामुक-कहानिया पर पढ़ रहे है)उसे अपनी बेबसी पे भी बहुत गुस्सा आ
रहा था & इसी बेबसी & गुस्से ने अचानक 1 ऐसा ख़याल उसके दिमाग़ मे पैदा
किया जिसके आते ही शिवा को खुद से घिन आई & ग्लानि भी महसूस हुई-उसके खिज
भरे दिल से निकली वो बात थी कि सुरेन सहाय मर क्यू नही जाता!शिवा ने 1 पल
को आँखे बंद की & खुद को होश मे लाया.वो 1 ईमानदार & नमकहलाल इंसान था &
ऐसी बातो की उसके दिलोदिमाग मे कोई जगह नही होनी चाहिए थी.उसने
अककलेराटोर पे पाँव दबाया & जीप फ़र्राटे से आगे बढ़ गयी.

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"ये लीजिए मिस्टर.सहाय..",कामिनी ने मुकुल के हाथो से स्टंप पेपर्स लिए &
सुरेन जी को थमाए,"..आप दोनो भाइयो से बात करने के बाद मैने ये काग़ज़ात
तैय्यार किए हैं.",मुकुल ने दूसरी कॉपी वीरेन सहाय को दी.

"..पहले वो करारनामा है जिसमे लिखा है कि वीरेन जी को इस बात से कोई
ऐतराज़ नही की आप एस्टेट & बिज़्नेस के फ़ैसले कैसे & क्या लेते हैं.बाकी
काग़ज़ात मे उन सुरतो के बारे मे लिखा है जब आपकी या आपकी पत्नी की या
फिर दोनो की या फिर वीरेन जी की या सभी की मौत हो जाने की सुरतो मे
प्रसून का क्या होगा.",दोनो भाई गौर से पेपर्स पढ़ रहे थे.

"मिस्टर.सहाय,मैने ट्रस्ट का फॉर्मॅट & उसके काम करने के बारे मे भी सभी
बाते इन काग़ज़ो मे लिख दी हैं.आप दोनो इनको पढ़ के अगर कोई बदलाव चाहते
हैं तो मुझे बता दें.उसके बाद आप इंपे दस्तख़त कर दीजिएगा & आपका काम
ख़त्म."

कोई पौन घंटे तक दोनो भाई सारे पेपर्स पढ़ते रहे & उनमे लिखी बातो पे 1
दूसरे से सलाह-मशविरा करते रहे.उसके बाद दोनो कुच्छ मामूली सी बाते
जोड़ने को कहा & फिर उनपे दस्तख़त कर दिए.कामिनी ने सभी काग़ज़ात मुकुल
को दिए जिसने उसे ऑफीस की तिजोरी मे बंद कर दिया.दोनो भाइयो के पास सारे
काग़ज़ो की 1-1 कॉपी थी.आगे जाके अगर सुरेन जी या फिर वीरेन इनमे कोई
बदलाव चाहते तो तीनो कॉपीस-सुरेन जी की वीरेन की & कामिनी की-को इकट्ठा
करके ही कामिनी के हाथो ही उनमे बदलाव हो सकता था.ऐसा कामिनी ने करारनामे
भी लिख दिया था जिसपे अब दोनो भाइयो के दस्तख़त थे. (दोस्तो ये कहानी आप
राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानिया पर पढ़ रहे है)

"थॅंक यू,कामिनी जी.आपने हमारी बहुत बड़ी मुश्किल आसान की है.",सुरेन जी
जाने के लिए उठ खड़े हुए.

"मिस्टर.सहाय,यही तो मेरा काम है & मेरा काम करने के लिए आपको मुझे
शुक्रिया कहने की ज़रूरत नही.आप अच्छी-ख़ासी फीस दे रहे हैं इस काम के
लिए!",कामिनी की बात पे तीनो हंस पड़े,"..अच्छा,अब इजाज़त चाहूँगा.",हाथ
जोड़ के सुरेन जी उसके कॅबिन से निकालने लगे की कामिनी को कुच्छ याद
आया,"मिस्टर.सहाय,1 मिनिट रुकिये,प्लीज़."

उसके इशारे पे मुकुल कुच्छ और काग़ज़ उनके पास ले आया,"ये प्री-नप्षियल
कांट्रॅक्ट का 1 फॉर्मॅट है.आपने उस दिन प्रसून की शादी के बारे मे बात
की थी ना तो मैने सोचा की आप & मिसेज़.सहाय 1 बार इसे देख लें आपको भी
थोडा अंदाज़ा हो जाएगा."

rajaarkey
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Re: Badla बदला

Unread post by rajaarkey » 04 Nov 2014 13:05

"शुक्रिया,कामिनी जी.ये आपने बहुत अच्छा काम किया.",सुरेन जी ने दोबारा
हाथ जोड़े & बाहर चले गये.कामिनी ने आँखो के कोने से देखा की वीरेन को
उसे ये बात कुच्छ अच्छी नही लगी..आख़िर वो प्रसून की बात पे ऐसे संजीदा &
थोड़ा टेन्स सा क्यू हो जाता था?

"अच्छा,मैं भी चलता हू,कामिनी जी.",वीरेन ने अपने चेहरे के भाव बदल लिए
थे & अब वही दिलकश मुस्कान उसके होंठो पे खेल रही थी,"आपने कुच्छ सोचा
मेरी गुज़ारिश के बारे मे?"

"हां वीरेन जी,मैने सोचा.आप कैसे पेंटर हैं अब इसके बारे मे कुच्छ कहना
तो सूरज को दिया दिखाने के बराबर होगा..",तारीफ सुन वीरेन ने हंसते हुए
नज़रे झुका ली,1 बड़े विनम्रा इंसान की तरह.कामिनी बहुत गौर से उसे देख
रही थी,"..लेकिन..",वीरेन के चेहरे से हँसी गायब हो गयी,"..लेकिन मैं
आपकी बात नही मान सकती.प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिए."

"नही कामिनी जी,इसमे माफी की क्या बात है?..इतना ज़रूर कहूँगा की आपकी
तस्वीर ना बना पाने का मलाल मुझे उम्र भर रहेगा."

"मैं आपको तकलीफ़ नही पहुचाना चाहती मगर प्लीज़ वीरेन जी मैं ये नही अकर
सकती.",कामिनी को पता था की ये कलाकार लोग बड़े संवेदनशील होते
हैं,दिमाग़ से ज़्यादा दिल का इस्तेमाल करते हैं & वीरेन भी इस इनकार को
ना जाने कैसे ले.

"प्लीज़,कामिनी अब आप मुझे शर्मिंदा कर रही हैं.आपकी बात का ज़रा भी बुरा
नही माना मैने,मेरा यकीन कीजिए & अपने दिल से ऐसी सारी बातें निकाल
दीजिए..ओके!बाइ.",1 बार फिर वही दिलकश मुस्कान बिखेरता वीरेन भी वाहा से
चला गया & कामिनी 1 बार फिर से सोच मे पड़ गयी....ये इंसान नाराज़ नही
हुआ थोड़ा सा निराश ज़रूर हुआ था मगर उसे कोई गुस्सा नही आया था.(ये
कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )...अब तो
उसकी आगे की हर्कतो से ही पता चल सकता था की उसके दिल मे असल मे क्या
था-क्या वो सच मे उसकी खूबसूरती का कायल होके उसकी तस्वीर बनाना चाहता था
या फिर उसका शक़ कि वो अपने भाई की वकील के करीब आना चाहता था सही था.

कामिनी थोड़ी देर खड़ी सोचती रही & फिर अपनी कुर्सी पे बैठ अपना काम करने लगी.

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"नमस्ते!नमस्ते!शाम लाल जी,आइए बैठिए.",सुरेन जी ने बड़ी गर्मजोशी से
अपने पुराने मॅनेजर का इस्तेक़्बल किया. (दोस्तो ये कहानी आप राज शर्मा
के ब्लॉग कामुक-कहानिया पर पढ़ रहे है)

"नमस्ते,सुरेन जी..नमस्ते मॅ'म.कैसे हैं आपलोग & अपना प्रसून कहा है?मैं
उसके लिए ये तोहफा लाया था.",शाम लाल जी की उम्र 60 बरस की थी & उनके सर
के सारे बॉल उड़ चुके थे बस पीछे की ओर थोड़े से बाकी थे.उम्र के साथ
उनका पेट भी कुच्छ निकल आया था.वो उम्र मे सुरेन जी से बड़े थे मगर फिर
भी वो उन्हे हमेशा ऐसे इज़्ज़त देते थे जोकि 1 मालिक को अपने मुलाज़िम से
मिलनी चाहिए थी.

"इसकी क्या ज़रूरत थी,शाम लाल जी!",देविका ने उन्हे 1 शरबत का ग्लास
बढ़ाया.उनके बैठते ही रजनी वाहा शरबत के ग्लास & नाश्ते की तश्तरिया लेके
आ गयी थी.उसने भी शाम लाल जी को नमस्ते किया.

"जीती रहो,रजनी.कैसी हो?",उन्होने 1 घूँट भरा.रजनी ने उनकी बात का जवाब
दिया & उनका & उनके परिवार की खैर पुच्छ वाहा से चली गयी.

"ह्म्म..",थोड़ी देर तक तीनो इधर-उधर की बाते करते रहे उसके बाद सुरेन जी
ने असल मुद्दे की बात छेड़ी जो थी प्रसून की शादी,"..आप दोनो ने वकील से
बात करके क़ानूनी तौर पे तो प्रसून के हितो की हिफ़ाज़त कर ली है मगर फिर
भी..",उन्होने अपनी ठुड्डी खुज़ाई.

"मगर क्या शाम लाल जी?",देविका की आवाज़ मे चिंता सॉफ झलक रही थी.

"देखिए मॅ'म,आप 1 औरत के नाते इस बात को ज़्यादा अच्छी तरह से समझेंगी.1
लड़की अपने पति से केवल ना अपने भविष्या की सुरक्षा,आराम की ज़िंदगी की
उम्मीद रखती है बल्कि उसकी कुच्छ और भी आरज़ुएँ होती हैं..कुच्छ अरमान
होते हैं (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है
)जोकि केवल 1 पति ही पूरा कर सकता है.",पति-पत्नी शाम लाल जी का इशारा
समझ गये थे.यही तो उनकी खूबी थी कोई भी बात बड़ी नफ़ासत के साथ बहुत
सोच-विचार के कहते थे.

rajaarkey
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Re: Badla बदला

Unread post by rajaarkey » 04 Nov 2014 13:09

"..& अगर वो आरज़ुए हक़ीक़त मे ना बदले तो औरत बौखला जाती है & 1 बौखलाई
औरत की बौखलाहट का अंजाम कुच्छ भी हो सकता है.ये प्री-नप्षियल अग्रीमेंट
वग़ैरह तो ठीक हैं मगर फ़र्ज़ कीजिए उस औरत को इन काग़ज़ के टुकड़ो की
कोई परवाह ही ना हो तो?..उसे केवल अपनी हसरातो की ही परवाह हो तो?"

"..यही मुश्किल आपको सुलझानी है..",देविका ने बोला,"..1 ऐसी लड़की ढूंढीए
जोकि मेरे बेटे की सच्ची हमसफर बने..",शाम लाल जी कुच्छ बोलने वाले थे
मगर उनके बोलने से पहले ही देविका बोली,"..मैं आपकी बात समझ गयी हू & इस
बारे मे हमे वीरेन ने & आड्वोकेट कामिनी शरण ने भी आगाह किया है.शाम लाल
जी,आप मुझे 1 सुशील & सुलझी हुई बहू ला दीजिए,आपको यकीन दिलाती हू.उसके
अरमान,उसकी हसरत कभी भी अधूरे नही रहेंगे(दोस्तो ये कहानी आप राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम पर पढ़ रहे है)..बस 1 ऐसी लड़की ढूंड दीजिए
मेरे प्रसून के लिए!",


देविका की बात इतने भरोसे के साथ कही गयी थी की शाम लाल जी मना नही कर
सके,"ठीक है,मॅ'म.मैं आज से ही आपके काम पे लग जाता हू.यू समझिए की आपकी
चिंता आज से मेरी हो गयी." (दोस्तो ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग
कामुक-कहानिया पर पढ़ रहे है)

"शुक्रिया,शाम लाल जी! बहुत-2 शुक्रिया.",सुरेन जी जज़्बाती होगये &
उन्होने उनके हाथ पकड़ लिए.देविका को अब थोड़ा चैन था,उसे यकीन था की शाम
लाल जी उसके बेटे के लिए 1 अच्छी लड़की ज़रूर ढूंड लेंगे.

"तो मिस्टर.धमीजा जब आपको हमारी सारी शर्ते मंज़ूर हैं तो बस ये तय करना
बाकी रह जाता है की आप कब से हमे जाय्न करते हैं.",सुरेन सहाय
मुस्कुराए.शिवा भी उनके कहने पे आहा चुपचाप बैठा दोनो की बाते सुन रहा
था.उसने इंदर के बारे मे जो मालूमत हासिल की थी उसके मुताबिक वो बिल्कुल
शरीफ,ईमानदार & मेहनती शख्स था मगर ना जाने क्यू शिवा को कुच्छ खटक रहा
था मगर क्या,ये उसके दिमाग़ मे साफ नही हो पा रहा था.

"आप कहें तो मैं कल से ही आ जाता हू,सर."

"ये तो बड़ी अच्छी बात होगी,मिस्टर.धमीजा.",उन्होने इंटरकम उठा के अपने
सेक्रेटरी को बुलाया.

"सर.",सेक्रेटरी फ़ौरन कॅबिन मे आ गया.(दोस्तो ये कहानी आप राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम पर पढ़ रहे है)

"विमल,ये हैं हमारे नये मॅनेजर,मिस्टर.इंदर धमीजा.ज़रा इन्हे सभी से मिला
देना & इनका कॅबिन भी इन्हे दिखा देना.",फिर वो इंदर से मुखातिब
हुए,"मिस्टर.धमीजा,विमल आपको सारे कामो का भी ब्योरा दे देगा & अगर आप
एस्टेट का जायज़ा लेना चाहें तो हमारे सेक्यूरिटी मॅनेजर मिस्टर.शिवा के
साथ जाएँ.इनसे बेहतर तो मैं भी अपनी एस्टेट को नही जानता!",अपनी ही बात
पे सुरेन जी खुद ही हंस दिए तो शिवा भी मुस्कुरा दिया.

"हुंग..!ये मुझे बताएगा एस्टेट के बारे मे!..इस बेचारे को क्या मालूम की
अंधेरी रातो मे इसकी कमाल की सेक्यूरिटी की आँखो मे धूल झोंक के मैने
पूरी एस्टेट के ज़र्रे-2 को पहचाना है!",इंदर के दिल के ख़याल उसके चेहरे
पे नही आए,"..ज़रूर,सर.वैसे भी इन्हे तो मैं अपना सीनियर ही मानता
हू.जितना तजुर्बा इन्हे इस जगह का है उतना मुझे तो नही है.उम्मीद करता हू
मिस्टर.शिवा की आप हमेशा मेरी मदद करेंगे."

"ज़रूर,मिस्टर.धमीजा.आप बेफ़िक्र रहें.",शिवा खड़ा हो गया,अब उसके भी
जाने का वक़्त हो गया था.

इंदर सबसे इजाज़त लेके विमल के साथ जाने लगा की तभी सुरेन जी ने उन्हे
आवाज़ दी,"अरे विमल,मैं तो भूल ही गया था.भाई ज़रा मॅनेजर साहब के लिए
उनकी कॉटेज सॉफ करवा देना.ये कल से ही हमारे साथ काम शुरू कर रहे हैं."
(दोस्तो ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानिया पर पढ़ रहे है)

"ओके,सर.",विमल ने दरवाज़ा खोला मगर इंदर अभी भी खड़ा था.

"सर."

"यस,मिस्टर.धमीजा."

"सर,प्लीज़.आप मुझे मिस्टर.धमीजा कह के ना बुलाएँ,इंदर बोलिए."

"ओके.",सुरेन जी मुस्कुराए,उन्होने बिल्कुल सही शख्स चुना था.

"..और सर ये कॉटेज,माफ़ कीजिएगा,मगर उसमे कितने कमरे हैं?"

"सर,उसमे 5 कमरे हैं.",सुरेन जी को तो याद भी नही था कि कॉटेज की अंदर की
बनावट कैसी है,ये जबाब इंदर को विमल ने दिया.

"सर,उस से छ्होटा कोई घर नही मिल सकता क्या?"

"छ्होटा!मगर छ्होटा क्यू?",सुरेन जी के माथे पे शिकन थी & होंठो पे इंदर
की बात समझने की कोशिश करती मुस्कान.

"सर,मैं अकेली जान उतने बड़े घर मे क्या करूँगा.प्लीज़ मुझे कोई छोटा घर
दिला दीजिए."

"अरे इंदर ,आप अभी अकेले हैं कल को शादी होगी आपका परिवार होगा या कभी
कोई रिश्तेदार आ गया तो?",ये पहला इंसान था जोकि उतनी बड़ी कॉटेज ठुकरा
के छ्होटा घर माँग रहा था.शिवा भी हैरान था मगर जहा उसके बॉस को इस
हैरानी से खुशी हो रही थी की इंदर लालची नही है वही उसके दिल मे और खटका
होने लगा था..जो भी हो वो इस इंसान पे नज़र रखेगा,उसने तय कर लिया.

"सर,जब परिवार होगा तो मैं आपसे उस कॉटेज को माँग लूँगा लेकिन प्लीज़
सर,अभी मुझे कोई छ्होटा घर दे दीजिए."

सुरेन जी ने विमल की ओर सवालिया निगाहो से देखा,"सर,है तो मगर वो
क्वॉर्टर है.",उसने थोड़ा सकुचाते हुए कहा & जान के क्वॉर्टर के पहले लगा
सर्वेंट्स लफ्ज़ नही बोला..पता नही कही नये मॅनेजर को बुरा लग गया तो!

"नही!मॅनेजर साहब वाहा नही रहेंगे."

"सर,प्लीज़.उसमे कितने कमरे हैं,विमल जी?"

"जी.बस 2."

"तब तो मेरे लिए बिल्कुल सही है सर."

"मगर आप सर्वेंट क्वॉर्टर्स मे कैसे रह सकते हैं?"

"क्यू नही,सर.आख़िर क्या बुराई है उसमे.प्लीज़ सर,मुझे कोई ऐतराज़ नही है
& आगे अगर ज़रूरत महसूस हुई तो मैं आपसे कॉटेज की चाभी माँग लूँगा."

"ठीक है.जैसी आपकी मर्ज़ी."

"थॅंक्स,सर.",इंदर वाहा से निकल गया,उसका काम हो गया था.उसे पता था की
कौन सा क्वॉर्टर खाली है-ठीक रजनी के क्वॉर्टर के उपर वाला.मॅनेजर'स
कॉटेज सहाय जी के बंगल से दूर था मगर क्वॉर्टर बिल्कुल नज़दीक था & वाहा
से वो आसानी से बंगल पे नज़र रख सकता था.

क्रमशः.........



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