रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -36
गतान्क से आगे...
हमे लगातार नग्न अवस्था मे अपने पास पाकर अब उनके लिंग शिथिल हो गये थे.
वैसी ही कुच्छ हालत हमारी भी थी. हमारे निपल्स भी पराए मर्दों को देख कर पहले पहले तन गये थे, चुचियाँ कड़ी हो गयी थी और हमारी योनि से चिप चिपा प्रदार्थ बहने लगा था वो अब धहेरे धीरे ख़त्म हो गया था. अब हम बिना किसी सेक्षुयल डिज़ाइर के नग्न हो कर काम कर रहे थे. सेवक राम जी की नज़रें बराबर मेरे और दिशा के योवन को निहार रही थी.
जब देवताजी का स्नान ख़तम हुआ तब उन्हों ने हमे वापस कपड़े पहनने का आदेश दिया. हमने अपने कपड़े पहन लिए.
फिर देवता का फूलों से शृंगार किया गया . देवता जी के स्नान के बाद सारा दूध, सहद, मेवा इत्यादि को एक चाँदी के पात्र मे इकट्ठा किया गया . उसमे कुच्छ पानी भी मिला हुआ था. एवं कुच्छ गुलाब की पंखुड़ीयाँ भी थी. उसे लेकर सेवक राम जी ने हम सबको एक एक चम्मच प्रसाद दिया. फिर सेवकराम जी वो पात्र लेकर बाहर चले गये. शायद सबको प्रसाद देने.
इसके बाद देवता के भोग की तैयारी करनी थी. इस काम का जिम्मा भी हम दोनो के साथ जीत और मोहन को मिला. स्वामी जी के आदेश देते ही हम चारों वहाँ से रवाना हुए. वहीं मंदिर के अंदर पीछे की तरफ एक कमरा बना हुआ था जिसे भोग प्रसाद बनाने के लिए काम मे लिया जाता था. हम दोनो उन दोनो शिष्यों के साथ उस कमरे के द्वार तक पहुँचे.
“ ठहरो.” मोहन ने हम दोनो को दरवाजे पर रोक दिया. हम उसके अगले आदेश का इंतेज़ार करने लगे.
“ ये पवित्र कमरा है. इसमे किसी तरह के कपड़े पहन कर प्रवेश का अधिकार स्वामीजी को भी नही है. हम सबको अपने वस्त्र यहाँ बाहर त्यागने पड़ेंगे.” कह कर उसने अपने जिस्म पर लिपटे गाउन को अलग कर दिया. उसे देख जीत ने भी अपना वस्त्र उतार दिया. दोनो हमारे सामने बिल्कुल नंगे खड़े थे. उनके बलिष्ठ नंगे शरीर हमारी आँखों मे चुभ रहे थे. फिर दोनो ने हमारे कपड़ों की ओर हाथ बढ़ाया. अगले ही पल हम दोनो भी उनकी तरह ही हो गये थे. उस हालत मे हम उस कमरे मे प्रवेश कर गये.
हम अंदर जा कर काम मे व्यस्त हो गये. थोड़ी देर मे रजनी भी हमारी मदद को आ गयी. उसे स्वामीजी ने भेजा था हमारी मदद के लिए. वो भी हमारी तरह बिल्कुल नंगी अवस्था मे थी.
काम करते हुए कई बार अंजाने मे और कई बार जान बूझ कर एक दूसरे के नग्न शरीर को छ्छू लेते या रगड़ देते. तब हल्की सी तरंग बदन मे दौड़ जाती. हम पाँचों मिल कर खिचड़ी के अलावा कई तरह के व्यंजन बनाने लगे.
कुच्छ देर बाद सेवक राम जी भी नंगी हालत मे वहाँ आ गये. सेवक राम जी भोग के लिए इन्स्ट्रक्षन दे रहे थे. वो वहीं हमारे पास बैठ गये और बीच बीच मे हमारे नग्न बदन पर हाथ फेर रहे थे. जब भोग बनाने का काम पूरा हुया तो तीनो मर्द उस भोग को थाली और कटोरियों मे सज़ा कर देवता जी के पास ले गये.
हम भी अपने कपड़े पहन कर वहाँ पहुँचे. वहाँ जीवन भी आ गया था. वहाँ जीवन समेत सारे मर्द मंदिर की सॉफ सफाई मे जुटे थे.
कुच्छ ही देर मे स्वामी जी आ गये. स्वामी जी देवता की मूर्ति के सामने अपने आसान पर बैठ कर पूजा पाठ मे व्यस्त हो गये थे. उन्हों ने मुझे पूजा की सामग्री का इंतेज़ाम करने को कहा. मैने सेवक राम के साथ मिलकर सारा समान एक थाली मे सज़ा कर स्वामीजी के पास रख दी. उस तली मे फूल, सिंदूर, चंदन, अगरबत्ती नारियल इत्यादि के अलावा
एक छ्होटी सी कटोरी मे मेरे स्तनो से निकाला हुआ थोड़ा सा दूध था. जो थोड़ा बहुत कुच्छ देर मे बना था सेवकराम जी ने मसल मसल का सारा निकाल लिया था. उसके लिए वो पहले मुझे वापस किचन मे ले गये. वहाँ हम दोनो को ही वापस नग्न होना पड़ा. इस बार वहाँ हमारे सिवा और कोई तीसरा नही था. वो मुझसे कुच्छ ज़्यादा ही प्रभावित नज़र आ रहे थे.
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
पहले उन्हों ने मुझे अपने नग्न सीने मे भींच लिया और मेरे रसीले होंठों को चूम लिए. कुच्छ देर तक तो वो मेरे बदन को सहलाते रहे. मैं अपने जांघों के बीच मे उनके लिंग की ठोकर महसूस कर रही थी. लेकिन ऐसे मौकों मे अपनी तरफ से किसी तरह की उत्तेजना से भरी हरकत करना अलोड नही था. पता नही मेरे नग्न बदन का आकर्षण या वहाँ के एन्वाइरन्मेंट का असर की सेवकराम जी जैसे आदमी को भी विचलित कर दिया था.
उन्हों ने इस दौरान एक बार मेरे स्तनो को भी मसला और पल भर के लिए मेरी योनि पर भी हाथ फिराया. वो शायद मेरी रज़ामंदी का इंतेज़ार कर रहे थे.
" सेवकरंजी अभी नही. अभी मैं पूजा मे हूँ. शरीर जूठा हो जायगा. अभी ये उचित नही है. स्वामी जी नाराज़ होंगे." ये सुनते ही वो एक दम से सकपका गये और एक झटके से मेरे शरीर से अलग हो गये. अब वो सिर झुकाए मेरे स्तनो से दूध निकालने लगे.
मैं सारा समान लेकर उसी हालत मे स्वामी जी के पास पहुँची. सारा समान स्वामी जी के हाथों मे देकर वापस आकर अपने कपड़े पहने. फिर जा कर उनके पास ही एक आसान पर अल्ति-पालती मार कर बैठ गयी और हाथ जोड़ कर आँखें मूंद ली. पूजा शुरू करने से पहले स्वामीजी ने शंख से ध्वनि निकाली और फिर एक बड़ा घंटा बजाया. आश्रम के सारे शिष्य वहाँ एकत्रित हो चुके थे. इस पूजा मे सिर्फ़ आश्रम के शिष्य या वहाँ मौजूद स्वामी जी के गेस्ट ही उपस्थित हो सकते थे. बाहर वालों का आना अलोड नही था.
सारे मर्द और औरत स्वामीजी के मंत्रोच्चारण को दोहराते हुए झूम रहे थे. कोई पंद्रह बीस मर्द और दस पंद्रह औरतें वहाँ मौजूद थी. कुच्छ देर बाद उन्होने पूजा की सामग्री से चंदन लेकर अपने माथे पर लगाया. उन्हे ऐसा करते देख सारी महिलाएँ अपने अपने वस्त्र ढीले करने लगी. मैने भी उनकी देखा देखी अपने गाउन को खोल दिया.
उन्हों ने आगे बढ़ कर सबसे पहले मेरे माथे पर फिर मेरे गले पर फिर उन्हों ने मेरे दोनो निपल्स पर चंदन लगाया. फिर अपने दाएँ हाथ की उंगली से चंदन लेकर
मेरी नाभि से योनि के कटाव जहाँ से शुरू होता है वहाँ तक लगाया. इसी तरह एक के बाद एक सारी महिलाओं के निपल्स और योनि के उपर टीका लगाया और मर्दों के लिंग पर.
उसके बाद उन्हों ने अपना हाथ धोया और पूजा मे लीन हो गये. सारे अश्रमवसी वहीं बैठे रहे जब तक ना उनकी पूजा ख़त्म हुई.
आधे घंटे तक वो ध्यान मे लीन रहे. वो पूजा के वक़्त अपने शरीर पर धारण किया वस्त्र त्याग चुके थे. वहाँ आसान पर एक दम नग्न बैठे थे. उनकी पूजा ख़त्म होने के बाद वो उठे.
उसके बाद स्वामी जी ने देवता के स्नान के बाद बचे दूध, शह्द और मेवों का मिश्रण वहाँ मौजूद सारे लोगों मे बाँटा.
फिर स्वामी जी वहाँ मौजूद एक तखत पर बैठ गये. रजनी ने आगे बढ़ कर पानी से उनके लिंग को धोया और उस पानी को पी लिया. उसके बाद वहाँ मौजूद सारी औरतों
ने एक एक कर वैसा ही किया. एक एक कर सबने उनके लिंग को धोया और उस पानी को अपने चुल्लू मे लेकर पहले सेवन किया फिर माथे पर लगा लिया.
तब तक भोग तैयार हो चुक्का था. देवता के भोग लगाने के वक़्त चारों ओर से देवता जी की मूर्ती को रेशमी पर्दों से धक दिया और स्वामी जी ने अकेले देवता को भोग लगाया.
सेवक राम ने उसके बाद भोग वितरण के लिए हॉल मे सबको इकट्ठा होने को कहा. वहाँ मौजूद भीड़ धीरे धीरे ख़त्म हो गयी.
रजनी ने मुझे और दिशा को वहीं रोक लिया. स्वामी जी को लेकर हम एक कमरे मे गये. फिर जैसा देवता जी का स्नान किया गया था ठीक उसी तरह एक विशाल टब मे आसन लगा कर कर स्वामी जी का दूध, दही, शहद मेवा, इत्र इत्यादि से स्नान करवाया गया. फिर गुलाब की पंखुड़ियों से और सबसे आख़िर मे स्वच्च्छ पानी से नहलाया गया. हम तीनो महिलाएँ उनके बदन को रगड़ रगड़ कर नहला रहे थे. उनका स्नान ख़त्म होने के बाद हमने उनके बदन को पोंच्छ कर उनको वस्त्र पहनाया. वो तैयार होकर उस कमरे से निकल गये. उनके जाने के बाद हम तीनो उस टब मे उतर कर एक दूसरे को खूब नहलाए.
दोबारा स्नान ख़त्म होने के बाद हॉल मे पहुँचे. हमने करिश्मा को इंतेज़ार करते हुए पाया. हम चारों मिल कर एक साथ ही भोजन ग्रहण किया.
भोजन ख़त्म होने के बाद. स्वामी जी ने हम चारों को पास बुलाया और कहा, " पूजा के दौरान तुम चारों गर्म हो गये होगे. जाओ पहले एक दूसरे के बदन को ठंडा करो. रश्मि तुम और दिशा दोपहर को कुच्छ देर आराम कर लेना. आज शाम को एक कार्यक्रम है. उसमे तुम को शामिल होना है. रात भर जागना पड़ सकता है. इससे तुम दोनो को काफ़ी थकान हो जाएगी."
रजनी ने स्वामी जी से पूछा की ऐसा क्या कार्यक्रम है शाम को तो स्वामी जी ने कहा,
" हमारी संस्था का एक आश्रम साउत आफ्रिका मे खुल रहा है वहाँ से दो रेप्रेज़ेंटेटिव आज शाम को आ रहे हैं. उनकी सेवा करने का जिम्मा रश्मि और दिशा पर होगा दोनो के उपर रहेगी. ठीक है?" हम दोनो ने हामी मे सिर हिलाया. "अच्च्छा अब तुम लोग जाओ."
हम चारों वहाँ से निकल कर अपने अपने कमरे मे पहुँचे. रजनी और करिश्मा हम से अलग हो चुके थे. हमारा कमरा ए/सी ऑन होने के कारण एकदम ठंडा हो रहा था. हम दोनो ने सबसे पहले कमरे मे प्रवेश करते ही दरवाजे को बंद किया. किसी भी कमरे मे कोई कुण्डी नही लगी हुई थी लॉक करने के लिए. दरवाज़ों को बस भिड़ा सकते थे लेकिन लॉक नही कर सकते थे.
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -37
गतान्क से आगे...
तभी दरवाजा खोल कर मोहन और जीत अंदर आए. दोनो अपने बदन पर सिर्फ़ एक पतली धोती लप्पेट रखे थे. उनका उपरी बदन नग्न ही था. फिर मोहन ने मुझे अपनी बाहों
मे ले लिया और जीतराम ने दिशा को. एक झटके मे दोनो ने अपने बदन पर पहने एक मात्र वस्त्र अपनी धोती को नोच फेंका. दोनो सुबह के कार्य क्रम के बाद से ही काफ़ी उतावले हो रहे थे. हम दोनो उन दोनो के उतावलेपन को देख कर मुस्कुरा रहे थे. उनके लिंग हम पहली बार नही देख रहे थे. अभी घंटे भर तो हम नग्न ही एक दूसरे के साथ बिताए थे. लेकिन अब इस बार किसी दूसरे सन्दर्भ मे हम एक दूसरे के सामने नग्न थे. उनके लिंग वापस तन कर खड़े हो गये थे. इसे देख कर दिशा ने
मुझे इशारा करते हुए अपनी एक आँख दबाई. दोनो हम दोनो को अपनी बाहों मे लेकर हमारे गाउन को बदन से अलग कर दिया. दोनो इस वक़्त इतने उतावले हो रहे थे कि अगर उन्हे कोई रोकता तो वो पागल हो जाते.
हम चारों वापस उसी अवस्था मे आ गये थे. दोनो हम दोनो को खींचते हुए बिस्तर पर ले गये. बिस्तर पर हम दोनो को पास पास हाथो और पैरों के बल पर झुका कर चोपाया बनाया. दोनो एक साथ हमारी योनि को पीछे से चाटने लगे. उन्हों ने अपनी उंगलियों से हमारी योनि की फांकों को अलग कर के उन्हे चाटने लगे. हम दोनो भी सुबह से ही उत्तेजित थे. उनकी हरकतों से मैं गर्म हो गयी और मेरे मुँह से सीयसकारियाँ फूटने लगी. मैने अपने निचले होंठ को दाँतों के बीच भींचते हुए दिशा की ओर देखा तो पाया की वो अपने सिर को उत्तेजना मे झटक रही थी. उसका चेहरा पूरी तरह बालों मे ढँक गया था. हम दोनो ही एक साथ स्खलित हो गये.
मोहन मेरी योनि मे अपनी जीभ डाल कर उसका रस चूस रहा था तो जीत राम अपनी जीभ को बाहर निकाल कर दिशा की योनि की फांकों को चाट रहा था. दोनो ने हमारी योनि के रस को चाट चाट कर सॉफ कर दिया.
अब हम चारों के लिए और सब्र कर पाना मुश्किल हो गया . दोनो एक साथ ही उठे और अपने अपने लिंग को हम दोनो की भूखी चूत के द्वार पर लगाया. मेरी योनि उत्तेजना मे पहले ही खुल बंद हो रही थी. दोनो की योनि से ही गर्मी के कारण काम रस झाग बन कर
टपाक रहा था. इसलिए उनके लगाए एक धक्के मे ही दोनो के लिंग जड़ तक हमारी चूत मे समा गये. हमने बिस्तर के सिरहाने को थाम कर उनके धक्कों से आगे पीछे झूलने लगे. दोनो अपनी पूरी ताक़त का प्रदर्शन हमे चोदने मे कर रहे थे.
हम दोनो अगल-बगल मे डॉगी स्टाइल मे झुकी हुई ठुकवा रही थीं. दोनो ने अपने धक्कों का राइतम ऐसा रखा था की हम दोनो के शरीर एक साथ आगे बढ़ते और एक साथ पीछे हट रहे थे. हम दोनो एक दूसरे की चुदाई देखते हुए अपनी चुदाई का मज़ा ले रही थी. पूरे कमरे मे हमारी “अया”, “ऊऊओ” और उनकी “हुंग…हुंग” और “फॅक फॅक” की आवाज़े गूँज रही थी.
वो दोनो इतने ज़्यादा उत्तेजित थे कि अपने उपर ज़्यादा देर तक कंट्रोल नही रख पाए और 15-20 धक्कों मे ही सबसे पहले मोहन मेरी योनि मे अपनी पिचकारी छ्चोड़ कर मेरे उपर गिर पड़ा. दो चार धक्के बाद जीतराम भी दिशा की योनि मे अपना रस डाल कर शांत हो गया. दोनो भर भरा कर हमारे बदन पर ढेर हो गये उनके वजन से हम भी बिस्तर पर गिर पड़े. कुच्छ देर पहले ही हमारा स्खलन होने की वजह से इस बार हम दोनो शांत नही हुए थे.
" क्या हुआ आप दोनो इतनी जल्दी शांत कैसे हो गये." दिशा ने झुनझूलाते हुए उनसे कहा.
" हां अब हमारी गर्मी कौन शांत करेगा. ह्म्म्म्मम उूउउफफफफफफ्फ़ तुम दोनो का हो गया है मगर हमारा स्खलन अभी हुया नही है. प्लीज़ इतनी जल्दी मत छोड़ो" मैं
अपनी उंगलियों को ज़ोर ज़ोर से अपनी चूत के अंदर बाहर कर रही थी.
“ प्लीज़ हमारा रस तो निकलवा दो “ दिशा जीतराम के ढीले पड़े लिंग को अपनी योनि मे खींच रही थी. मगर उसके लिंग मे अब कोई जान नही बची थी.
दिशा उससे निराश होकर आगे बढ़ कर मुझसे लिपट गयी और अपने होंठों को मेरी
गर्देन पर फिराने लगी. वो हल्के हल्के से अपने दाँतों के बीच मेरी गर्देन को दबा रही थी. अपने दाँत मेरे जिस्म मे गढ़ा रही थी. मैं भी उत्तेजित होकर उसको अपने उपर खींचने लगी.
“ स्वामी जी ने छक्को की भीड़ इकट्ठी कर रखी है. सालों मे दम तो है नही चले हमारी आग बुझाने. “ दिशा काफ़ी उत्तेजित हो कर बॅड बड़ा रही थी. उसने गुस्से मे जीतराम को एक लात मारी जिसे जीतराम ने पीछे हटकर बेकार कर दिया.
दोनो मर्द अपने कपड़े समेट कर वहाँ से चुप चाप खिसक लिए. हम दोनो की तो इच्छा हो रही थी कि उन दोनो को नोच खाएँ लॅकिन पता ही नही चल पाया कब दोनो भाग गये हैं.
" म्म्म्मम....... दिशा कुच्छ कर उफफफफ्फ़ मेरा बदन जल रहा है." मैने उससे कहा.
" हां ये दोनो नमार्द कर तो कुच्छ पाए नही बस हमारी आग को भड़का कर भाग गये. साले चोदने चले थे. दो चार धक्कों मे ही ठंडे पड़ गये. हाआाईयईईई आब्ब कावउउऊँ बुझाएगा ये आआग "