Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip

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Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip

Unread post by admin » 14 Jan 2016 19:02

मैंने दरवाजा बंद किया और उसकी आँखों में देखते हुए सोचने
लगा.. बेटा राहुल.. तवा गर्म है.. सेंक ले रोटी.. पर मुझे इसके
साथ ही एक तरफ यह भी डर था कि कहीं मैंने जो सोचा है..
वो यदि कुछ गलत हुआ.. तो सब हाथ से फिसल जाएगा..
खैर.. अब सब्र से काम ले शायद तेरी इच्छा पूरी हो जाए।
मैं अभी भी उसकी आँखों को ही देखे जा रहा था और वो
मेरी आँखों को देख रही थी।
तभी उसने मेरे मन में चल रही उथल-पुथल को समझते हुए कहा-
राहुल उधर ही खड़ा रहेगा या बैग भी पैक करेगा.. तुझे जाना
नहीं है क्या?
तो मैंने उसके मुँह से अपना नाम सुनते हुए हड़बड़ाते हुए जवाब
दिया- अरे जाना तो है।
तो वो बोली- फिर सोच क्या रहे हो.. बोलो?
फिर मैंने भी उसके मन को टटोलने के लिए व्यंग्य किया- मैं इस
बात से काफी हैरान हूँ.. कि जो लड़की मुझे कुछ देर पहले गन्दा
और बुरा बोल रही थी.. वही मुझे रोकने का प्लान क्यों बना
रही है?
इस बात को सुन कर उसने मुझे अपने पास बुलाया और अपनी
बाँहों में थाम लिया.. और फिर मुझे बिस्तर पर बैठा कर मेरे
बगल में बैठ गई।
उसकी बाँहों में जाते ही मेरी तो लंका लगी हुई थी..
उत्तेजना के साथ-साथ मन में एक अजीब सा डर भी बसा हुआ
था कि क्या ये सही है? लेकिन कहते हैं न कि वासना के आगे
कुछ समझ नहीं आता.. और न ही अच्छा-बुरा दिखाई देता है।
मैंने बोला- रूचि.. तुम तो मुझे अभी कुछ देर पहले भगा रही थीं
और फिर अब अचानक से ऐसा क्या हो गया?
तो उसने मुझे हैरानी में डाल दिया.. जब वो भैया की जगह
मुझसे ‘राहुल’ कहने लगी- देखो.. मैं नहीं चाहती कोई ड्रामा
हो.. इसलिए जब मैं और तुम अकेले होंगे तो मैं तुम्हें सिर्फ और
सिर्फ राहुल.. जान.. या चार्मिंग बॉय.. ही कह कर
बुलाऊँगी.. देखो राहुल मुझे अभी तक नहीं मालूम था कि तुम
मेरे बारे में क्या सोचते थे.. पर मैं जब से तुमसे मिली हूँ.. पता
नहीं क्यों मेरा झुकाव तुम्हारी तरफ बढ़ता ही चला गया और
न जाने कब मुझे प्यार हो गया। तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो और
सच पूछो तो मैं पता नहीं.. कब से तुम्हें दिल ही दिल में चाहने
लगी हूँ। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ राहुल.. आई लव यू..
ये कहते हुए उसने मेरी छाती को चूम लिया और उसके हाथों की
कसावट मेरी पीठ पर बढ़ने लगी।
लेकिन उसे मैंने थोड़ा और खोलने और तड़पाने के लिए अपने से
दूर किया और उसकी गिरफ्फ्त से खुद को छुड़ाया.. तो वो
तुरंत ही ऐसे बोली.. जैसे किसी चिड़िया के उड़ते वक़्त पर टूट
गए हो और वो नीचे गिर गई हो।
‘क्या हुआ राहुल तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या.. या फिर तुम मुझे
नहीं चाहते.. सिर्फ आकर्षित हो गए थे मुझसे?’
मैंने भी उसके दर्द भरे स्वर को भांपते हुए कहा- नहीं रूचि.. ऐसा
नहीं है.. जब पहली बार तुमको देखा था.. मैं तो उसी दिन से
ही तुम्हें चाहने लगा था.. मेरी सोच तो तुम पर ही ख़त्म हो गई
थी और सोच लिया था.. कैसे भी करके तुम्हें अपना बना लूँगा।
तो वो बोली- फिर मुझे अपने से अलग क्यों किया?
मैंने बोला- आज जब तुमने मुझे बहुत खरी-खोटी सुनाई.. तो मुझे
बहुत बुरा लगा.. मैं अपनी ही नजरों में खुद को नीच समझने
लगा था और मेरा सपना टूटा हुआ सा नज़र आने लगा था। मेरे
मन में कई बुरे ख्याल घर करने लगे थे।
तो वो तुरंत ही बोली- कैसे ख्याल?
मैंने अपनी बात सम्हालते हुए जबाव दिया- तुमने मेरे बारे में
बिना कुछ जाने ही मेरे सम्बन्ध अपनी माँ से जोड़ दिए.. जो
कि मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।
तो वो बोली- तुमने हरकत ही ऐसी की थी.. तुम मेरी माँ की
चड्डी लिए सोते थे.. तो भला तुम ही बोलो.. मैं क्या
समझती? और जब से तुम हमारे घर आ रहे थे.. मैं तब से ही ध्यान दे
रही थी कि तुम और माँ एक-दूसरे के काफी करीब नज़र आते थे।
इस बात पर मैंने तुरंत ही उसको डाँटते हुए स्वर में कहा- रूचि..
तुम पागल हो क्या? तुम्हारी माँ तो तुम्हारे भाई के जैसे ही
मुझे प्यार देती थी और मैं भी बिल्कुल विनोद के जैसे ही
तुम्हारी माँ का ख्याल रखता था। तुम ऐसा सोच भी कैसे
सकती हो? और रही चड्डी की बात.. तो तुम ही बताओ कि
तुम्हारे और तुम्हारी माँ के शरीर की बनावट में कोई ख़ास
अंतर है क्या?
तो वो थोड़ा सा लजा गई और मुस्कान छोड़ते हुए बोली-
सॉरी राहुल.. अगर तुम्हें मेरी वजह से कोई दुःख हुआ हो तो..
और वैसे भी जब तुमने सच मुझे बताया था.. तो मैं खुद भी अपने
आपको कोस रही थी.. अगेन सॉरी..
अब मैंने भी अपनी लाइन क्लियर देखते हुए बोला- फिर अब
आज के बाद ऐसा कभी नहीं बोलोगी।
वो तपाक से बोली- पर एक शर्त पर..
तो मैंने पूछा- कैसी शर्त?
बोली- मेरी माँ की चड्डी तुम अपने पास नहीं रखोगे।
तो मैं बोला- जब विनोद कमरे में आया था.. मैंने तो उसी वक़्त
उसको यहाँ फेंक कर बाथरूम में चला गया था.. और प्रॉमिस..
आज के बाद ऐसी गलती नहीं होगी.. क्योंकि..

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Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip

Unread post by admin » 14 Jan 2016 19:02

तो वो मेरी बात काटते हुए बोली- क्योंकि क्या?
मैं बोला- क्योंकि अपनी चड्डी तुम खुद ही मुझे दिया
करोगी।
तो वो हँसने लगी और मेरे गालों पर चिकोटी काटते हुए
बोली- बहुत शैतान और चुलबुला है.. ये मेरा आशिक यार..
उसकी इस अदा पर मैं इतना ज्यादा मोहित हो गया कि
उसको शब्दों में पिरो ही नहीं पा रहा हूँ।
फिर वो मेरी ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए बोली- जान..
अब तो मेरी माँ की चड्डी दे दो।
तो मैंने बोला- मेरे पास नहीं है.. यहीं तो फेंककर गया था।
वो बोली- तुमने अभी नीचे कुछ नहीं पहना है क्या?
तो मैंने बोला- नहीं.. पर तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो?
वो बोली- फिर क्या तुम ऐसे ही नहाए और ऐसे ही बाहर भी
आ गए?
मैंने उसे थोड़ा और खोलने के लिए शरारत भरे लहज़े में बोला-
थोड़ा खुलकर बोलो न.. क्या ‘ऐसे..ऐसे..’ लगा रखा है।
तो वो बोली- बेटा.. तुम समझ सब रहे हो.. पर अपनी बेशर्मी
दिखा रहे हो.. पर मुझे शर्म आ रही है।
अब मैंने तुरंत ही उसका हाथ पकड़ा और बोला- यहाँ हम दोनों
के सिवा और है ही कौन.. और मुझसे कैसी शर्म?
तो वो बोली- अरे जाने दो..
मैंने उसे आँख मारते हुए बोला- ऐसे कैसे जाने दो..
तो वो मुस्कुराते हुए बोली- मेरे ‘ऐसे-ऐसे’ का मतलब था कि तुम
नंगे-नंगे ही नहा लेते हो.. तुम्हें शर्म नहीं आती?
तो मैंने उससे बोला- खुद से कैसी शर्म..? क्या तुम ‘ऐसे..ऐसे..’
नहीं नहातीं?
वो बोली- न बाबा.. मुझे तो शर्म आती है।
मैंने उसकी जांघों पर हाथ रखते हुए बोला- एक बार आज़मा कर
देखो.. कितना मज़ा आता है।
यह सुनते ही उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया और मैंने उसके
शरीर पर एक अजीब सी फुरकन जैसी हरकत महसूस की..
क्योंकि मेरा हाथ उसकी जाँघों पर था।
फिर वो मेरी बात काटते हुए बोली- देखेंगे कभी करके ऐसे..
लेकिन जो चड्डी तुम ले गए थे.. वो है कहाँ?
तो मैंने भी लोअर की जेब में हाथ डाला और झटके से उसकी
आँखों के सामने लहराने के साथ-साथ बोला- लो कर लो
तसल्ली.. मेरी ही है कि नहीं?
वो एकदम से बोली- अरे मेरे भोले राजा.. अब तो खुद भी तो
देख लो.. या फिर नज़र कमजोर हो चली।
मैंने जैसे ही उसके चेहरे से नज़र हटाई और चड्डी की ओर देखा..
तो वो बोली- क्या है ये?
मैंने शर्मा कर सॉरी बोलते हुए बोला- मैंने ध्यान ही नहीं
दिया यार.. उस समय हड़बड़ाहट में कुछ समझ ही नहीं आया..
खैर.. ये लो.. पर मेरी चड्डी कहाँ है?
तो उसने बोला- तुम्हें मेरी खुश्बू अच्छी लगती है न.. तो मैंने उसे
पहन लिया.. वैसे भी तुम्हारी ‘वी-शेप’ की चड्डी बिल्कुल
मेरी ही जैसी चड्डी की तरह दिखी.. तो मैंने पहन ली..
ताकि मैं तुम्हें अपनी खुश्बू दे सकूँ और उसे अपने पास रखने में तुम्हें
शर्म भी न आए..
ये सुनकर पहले तो मुझे लगा कि ये मज़ाक कर रही है, तो मैंने
बोला- यार मज़ाक बाद मैं. मुझे अभी जल्दी से तैयार होकर घर
के लिए भी निकलना है।
बोली- अरे.. मज़ाक नहीं कर रही मैं.. अभी खुद ही महसूस कर
लेना..
ये कहती हुई वो बाथरूम में चली गई और जब निकली तो उसके
हाथ में मेरी ही चड्डी थी।
पर जब तक मैं उसे पहने हुए देख न लेता.. तो कैसे समझता कि उसने
पहनी ही थी।
फिर वो मेरे पास आकर खड़ी हुई और मेरी चड्डी देते हुए बोली-
लो और अब कभी भी ऐसी खुश्बू की जरुरत हो.. तो मुझे अपनी
ही चड्डी दे दिया करना।
मैंने उसके हाथों से लेते ही उसको देखा तो उसके अगले भाग पर
मुझे उसके चूत का रस महसूस हुआ और मैंने सोचा.. लगता है रूचि
कुछ ज्यादा ही गर्म हो गई थी। इसे क्यों न और गर्म कर दिया
जाए ताकि ये भी अपनी माँ की तरह ‘लण्ड..लण्ड..’
चिल्लाने लगे।
तो मैंने उसकी ओर ही देखते हुए बिना कुछ सोचे-समझे ही उसके
रस को सूंघने और चाटने लगा और अपनी नजरों को उसके चेहरे
पर टिका दीं।
मैंने उसके चेहरे के भावों को पढ़ते हुए महसूस किया कि वो कुछ
ज्यादा ही गर्म होने लगी थी। उसके आँखों में लाल डोरे
साफ़ दिखाई दे रहे थे। उसके होंठ कुछ कंपने से लगे थे.. मुझे ऐसा
लग रहा था जैसे मैं उसकी चूत का रस अपनी चड्डी से नहीं..
बल्कि उसकी चूत से चूस रहा होऊँ।

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Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip

Unread post by admin » 14 Jan 2016 19:03

मैंने उसे ज्यादा न तड़पाने की सोचते हुए अपनी चड्डी से
मुँह को हटा लिया और उसकी ओर मुस्कुराते हुए बोला- वाह
यार.. क्या महक थी इसकी.. इसे मैं हमेशा अपने जीवन में याद
रखूँगा.. आई लव यू रूचि..
तो वो भी मन ही मन में मचल उठी और शायद उसे भी अपने रस
को अपने होंठों पर महसूस करना था.. इसलिए उसने कहा-
अच्छा.. इतनी ही मादक खुश्बू और स्वाद था ये.. तो मुझे
मालूम ही नहीं.. कि मेरी वेजिना किसी को इतना पागल
कर सकती है?
मैं उसके मुँह से ‘वेजिना’ शब्द सुनकर हँसने लगा.. तो वो बोली-
मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो न..
मैं बोला- ऐसा नहीं है..
तो उसने भी प्रतिउत्तर मैं कहा- फिर कैसा है?
‘तुम्हें क्या यही मालूम है.. या बन कर बोली थीं..?’
तो वो बोली- क्या?
मैंने फिर से हँसते हुए कहा- वेजिना..
तो वो बोली- उसे यही कहते हैं.. मैं और कुछ नहीं जानती..
मैंने बोला- क्या सच मैं?
तो वो बोली- क्या लिखकर दे दूँ.. पर मुझे तुम बताओ न.. इसे
और क्या कहते हैं?
मैं बोला- फिर तुम्हें भी दोहराना होगा..
तो वो तैयार हो गई.. फिर मैंने उसकी वेजिना को अपनी
गदेली में भरते हुए कामुकता भरे अंदाज में बोला- जान.. इसे
हिंदी में बुर और चूत भी बोलते हैं।
मेरी इस हरकत से वो कुछ मदहोश सी हो गई और उसके मुख से
‘आआ.. आआआह..’ रूपी एक मादक सिसकारी निकल पड़ी।
मैंने उसकी चूत पर से हाथ हटा लिया इससे वो और बेहाल हो
गई.. लेकिन वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती थी कि मैं उसकी
चूत को छोड़ दूँ.. जो कि उसने मुझे बाद में बताया था।
लेकिन स्त्री-धर्म.. लाज-धर्म पर चलता है.. इसलिए उस समय
वो मुझसे कुछ कह न सकी और मुझसे धीरे से बोली- राहुल..
क्या इतनी अच्छी खुश्बू आती है मेरी चू… से..
ये कहती हुई वो ‘सॉरी’ बोली.. तो मैं तपाक से बोला- मैडम
सेंटेंस पूरा करो.. अभी तुमने बोला कि दोहराओगी और वैसे
भी अब.. जब तुम भी मुझे चाहती हो.. तो अपनी बात खुल कर
कहो।
तो बोली- नहीं.. फिर कभी..
मैं बोला- नहीं.. अभी के अभी बोलो.. नहीं तो मैं आज शाम
को नहीं आऊँगा।
ये मैंने उसे झांसे में लेने को बोला ही था कि उसने तुरंत ही मेरा
हाथ पकड़ा और लटका हुआ सा उदास चेहरा लेकर बोली-
प्लीज़ राहुल.. ऐसा मत करना.. तुम जो कहोगे.. वो मैं करूँगी।
मैंने बोला- प्रॉमिस?
तो वो बोली- गॉड प्रोमिस..
शायद वो वासना के नशे में कुछ ज्यादा ही अंधी हो चली
थी.. क्योंकि उसके चूचे अब मेरी छाती पर रगड़ खा रहे थे और
वो मुझे अपनी बाँहों में जकड़े हुए खड़ी थी। उसके सीने की
धड़कन बता रही थी कि उसे अब क्या चाहिए था।
तो मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- तो क्या कहा था.. अब बोल भी
दो?
तो वो बोली- क्या मेरी चूत की सुगंध वाकयी में इतनी
अच्छी है…
तो मैंने बोला- हाँ मेरी जान.. सच में ये बहुत ही अच्छी है।
वो बोली- फिर सूंघते हुए चाट क्यों रहे थे?
तो मैंने बोला- तुम्हारे रस की गंध इतनी मादक थी कि मैं ऐसा
करने पर मज़बूर हो गया था.. उसका स्वाद लेने के लिए..
ये कहते हुए एक बार फिर से अपने होंठों पर जीभ फिराई.. जिसे
रूचि ने बड़े ही ध्यान से देखते हुए बोला- मैं तुमसे कुछ बोलूँ..
करोगे?
तो मैंने सोचा लगता है.. आज ही इसकी बुर चाटने की इच्छा
पूरी हो जाएगी क्या?
ये सोचते हुए मन ही मन मचल उठा।

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