लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 04 Nov 2014 21:48

ट्रेन कोई शाम को सात बजे की थी। सीट आराम से मिल गई थी। जब गाड़ी ने सीटी बजाई तो मैं उठकर चलने लगा। मिक्की के प्यार में भीगी मेरी आत्मा, मेरा हृदय, मेरा मन तो वहीं रह गया था।

मैं अभी डिब्बे से नीचे उतरने वाला ही था कि पीछे से मिक्की की आवाज आई,”फूफाजी…! आप अपना मोबाइल तो सीट पर ही भूल आये !”

मिक्की भागती हुई आई और मुझ से लिपट गई। उसने अपने भीगे होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और किसी की परवाह किये बिना एक मेरे होंठों पर ले लिया। मैंने अपने आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक पाया।

मिक्की ने थरथरती हुई आवाज में कहा,”मेरे प्रथम पुरुष ! मेरे कामदेव ! मेरी याद में रोना नहीं। अच्छे बच्चे रोते नहीं ! मैं फिर आउंगी, मेरी प्रतीक्षा करना !”

मिक्की बिना मेरी और देखे वापस अपनी सीट की और चली गई। मेरी अंगुलियाँ मेरे होंठों पर आ गई। मैं मिक्की के इस तीसरे चुम्बन का स्पर्श अभी भी अपने होंठो पर महसूस कर रहा था।

मैं डिब्बे से नीचे उतर आया। गाड़ी चल पड़ी थी। खिड़की से मिक्की का एक हाथ हिलाता हुआ नज़र आ रहा था। मुझे लगा कि उसका हाथ कुछ धुंधला सा होता जा रहा है। शायद मेरी छलछलाती आँखों के कारण। इस से पहले कि वो कतरे नीचे गिरते मैंने अपनी जेब से वोही रेशमी रुमाल निकाला जो मिक्की ने मुझे गिफ्ट किया था और हमारे मधुर मिलन के प्रेम रस से भीगा था, मैंने अपने आंसू पोंछ लिए।

मेरे आंसू और मिक्की के होंठो का रस, हमारे मधुर मिलन के प्रेम रस से सराबोर उस रस में मिल कर एक हो गए। मैं बोझिल कदमों और भारी मन से प्लेटफार्म से बाहर आ गया। मेरा सब कुछ तो मिक्की के साथ ही चला गया था।

दोस्तों सच बताना क्या अब भी आपको यही लगता है कि ये महज़ एक कहानी है ?


The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 04 Nov 2014 21:50

rajsharma wrote:क्या बात है भाई बड़ी मेहनत कर रहे हो वेरी गुड लगे रहो

kyo nahi bro promise jo kiya hai

he he he he he he he he

The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 04 Nov 2014 22:24

नन्दोईजी नहीं लण्डोईजी

मैंने लोगों से सुना था कि किसी लड़की या औरत की खूबसूरती उसके उरोजों और नितम्बों से जानी जा सकती है। पर गुरूजी तो कुछ और ही फरमाते हैं। वो कहते हैं “चूत की सुन्दरता उसकी चौड़ाई से, गांड की सुन्दरता उसकी गहराई से और लंड की सुन्दरता उसकी लम्बाई से जानी जाती है। एक बार मैंने विशेष प्रवचन में गुरूजी से पूछा था कि चूत तो दो अंगुल की सुन्दर मानी जाती है तो फिर चूत की चौड़ाई से क्या अभिप्राय है तो गुरूजी ने डांटते हुए कहा था, “अरे भोले इसके लिए दोनों अंगुलियों को आड़ी नहीं सीधी यानि कि लम्बवत देखा जाता है और ये अंगुलियों जैसी, जितनी लम्बी होगी, उतनी ही सुन्दर होगी। इसीलिए चूत दो अंगुल की सुन्दर मानी जाती है। मैं जिस चौड़ाई की बात कर रहा हूँ वो चूत के नीचे दोनों जाँघों की चौड़ाई की बात है.”

गुरूजी की बातें सब के समझ में इतनी जल्दी नहीं आती। खैर अगर ऐसी चूत और गांड की बात की जाए तो मधु से भी ज्यादा सुन्दर तो सुधा है। सुधा मेरी सलहज है। अरे भई मेरी पत्नी मधु के भैय्या की प्यारी पत्नी। वो पंजाब से है ना। उन्होंने रमेश से प्रेम विवाह किया है। उम्र ३६ साल, रंग गोरा, ३८-२८-३६ ।

आप सोच रहे होंगे नितम्बों में २” की कंजूसी क्यों? पूरे ३८’ क्यों नहीं ? इसका कारण साफ़ है वो बेचारी गांड मरवाने के लिए तरसती रही है। आप तो जानते हैं गांड मरवाने से नितम्बों का आकार और सुन्दरता बढ़ती है। रमेश का जब से एक्सीडेंट हुआ है और सेक्स-क्षमता कुछ कम हुई है, वो बेचारी तो लंड के लिए तरस ही रही थी। वैसे भी रमेश को गांड मारना बिल्कुल पसंद नहीं है।

गुरूजी कहते हैं जिस आदमी ने अपनी खूबसूरत पत्नी की गांड नहीं मारी समझो वो जीया ही नहीं। उसका ये जन्म तो व्यर्थ ही गया। ऐसे ही आदमियों के लिए शायद ये गाली बनी है ‘साला चूतिया !’

सुधा मुझे नन्दोईजी कहकर बुलाती थी। लगता था जैसे उसके मुंह से लन्दोईजी ही निकल रहा हो। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया पर जब भी मैं अकेला होता तो पता नहीं वो जानबूझ कर ऐसा बोलती थी या उसकी बोली ही ऐसी थी मैंने गौर नहीं किया।

एक बार जब मैं और मधु उनके यहाँ गए हुए थे मैंने बातों ही बातों में उसे मज़ाक में कह दिया,“भाभी आप मुझे नन्दोईजी मत बुलाया करो !”

“क्यों क्या आपको लन्दोईजी कहना अच्छा नहीं लगता ?” उसके चेहरे पर कोई ऐसा भाव नहीं था जिससे मैं समझ सकता कि उसके मन में क्या है। यही तो कुदरत ने इन औरतों को ख़ास अदा दी है।

“नहीं ऐसी बात नहीं है, दरअसल मैं आप से छोटा हूँ और आप मुझे जी लगाकर बुलाती है तो मुझे लगता है कि मैं कोई ६० साल का बूढा हूँ। ” मैंने हंसते हुए कहा कहा।

“तो फिर कैसे … किस नाम से बुलाऊं लन्दोईजी ?”

“आप मुझे प्रेम ही बुला लिया करो !”

“ठीक है प्रेम प्यारे जी !” सुधा ने हंसते हुए कहा।

जिस अंदाज में उसने कहा था उस फिकरे का मतलब तो मैं पिछले चार पांच महीनों से सोचता ही रहा था। अब भी कभी कभी मजाक में वो लंदोईजी कह ही देती है पर सबके सामने नहीं अकेले में.

बात कोई मेरी शादी के डेढ़ दो साल के बाद की है। इतने दिनों तक तो मैं मधु की चूत पर ही मोर (लट्टू) बना रहा पर जब उसकी चूत का छेद कुछ चौड़ा हो गया तो मेरा ध्यान उसकी नाजुक कोरी नरम मुलायम गांड पर गया। वो पट्ठी गांड के नाम से ही बिदक गई। उसने अपनी कॉलेज की किसी सहेली से सुना था कि गांड मरवाने में बहुत दर्द होता है और उसकी सहेली की तो पहली ही रात में उसके पति ने इतनी जोर से गांड मारी थी कि वो खून-ओ-खून हो गई थी और डॉक्टर बुलाने की नौबत आ गई थी।

अब भला वो मुझसे इतनी जल्दी गांड कैसे मरवाती। मुझे उसे गांड मरवाने के लिए तैयार करने में पूरे ३ साल लग गए। खैर ये किस्सा अभी नहीं, बाद में अभी तो सिर्फ सुधा की बात ही करेंगे।

कहते है जहां चाह वहाँ राह। लंड और पानी अपना रास्ता खुद बना लेते हैं। मधु को पहली डिलिवरी होने वाली थी। कभी भी हॉस्पिटल ले जाना पड़ सकता था। डॉक्टरों ने चुदाई के लिए मना कर दिया था और वो गांड तो वैसे भी नहीं मारने देती थी। घर पर देखभाल के लिए सुधा (मेरी सलहज) आई हुई थी।

अक्टूबर का महीना चल रहा था। गुलाबी ठण्ड शुरू हो चुकी थी और मैं अपने लंड को हाथ में लिए मुठ मारने को मजबूर था। हमारे घर में गेस्ट-रूम के साथ लगता एक कोमन बाथरूम है। एक दिन जब मैं उस बाथरूम में मुठ मार रहा था तो मैं जोर जोर से सीत्कार कर रहा था। ‘हाईई… शहद रानीई… तुम ही अपनी चूत दे दो ! क्या अचार डालोगी हाईई … ! चूत नहीं तो गांड ही दे दो …!” अचानक मुझे लगा कि कोई चाबी-छिद्र से देख रहा है। मैं झड़ तो गया पर मैंने सोचा कौन हो सकता है। मधु तो अपने कमरे में है फिर ….। नौकरानी है या कहीं मेरी शहद रानी (सुधा) तो नहीं थी। सुधा शहद की तरह मीठी है मैं उसे शहद रानी ही कह कर बुलाता हूँ।

जब मैं बाहर निकला तो सुधा तो मधु के पास बैठी गप्प लगा रही थी। नौकरानी अभी नहीं आई थी। मैं समझ गया ये जरूर सुधा ही थी। जैसे कि आप तो जानते ही हैं कि मैं एक नंबर का चुद्दकड़ हूँ पर मेरी पत्नी और ससुराल वालों के सामने मेरी छवि एकदम पत्नी भक्त और शरीफ आदमी की है। मधु तो मुझे निरा मिट्ठू ही समझती है। हे भगवान् सुधा ने क्या समझा होगा। उसके बाद तो दिन भर मैं उससे नजरें ही नहीं मिला सका।

संयोग से दो तीन दिनों बाद ही करवा-चोथ का व्रत था। मधु की हालत ऐसी नहीं थी कि वो व्रत रख सकती थी। मैंने उसकी जगह व्रत रख लिया। सुधा का भी व्रत था। इस व्रत में दिन भर भूखा रहना पड़ता है। चाँद को देखकर ही अपना व्रत तोड़ते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ उत्तरी भारत में इस व्रत का बड़ा महत्व है। ख़ासकर राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में तो औरतें दिन में पानी तक नहीं पीती।

मेरा दोस्त गोटी (गुरमीत सिंह) बताता है कि उसकी पत्नी तो बिना लंड चूसे और चूत चुसवाये अपना व्रत तोड़ती ही नहीं है। ऐसी मान्यता है कि करवा का व्रत रखने से और लंड का पानी पीने से पहला बच्चा लड़का ही पैदा होता है। पता नहीं कहाँ तक सच है पर जिस हिसाब से पंजाब और हरियाणा में लड़के ज्यादा पैदा होते है इस बात में दम जरूर नजर आता है। अगले प्रवचन में गुरूजी से ये बात जरूर पूछूँगा।

एक खास बात तो बताना ही भूल गया। मधु भले ही उन दिनों गांड न मारने देती हो पर लंड चूसने में कोई कोताही नहीं करती थी। और मेरा वीर्य तो जैसे उसके लिए अमृत है। वो कहती है कि पति का वीर्य पीने से उनकी उम्र बढ़ती है और उसे शहद के साथ चाटने या पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। वैसे तो ये गोली भी उसे मैंने ही पिलाई थी। पर इसी लिए तो मैं उसका मिट्ठू बना हुआ हूँ। करवाचोथ की रात चाँद देखने के बाद वो मेरा लंड चूसती है और पूरा पानी पीकर ही अपना व्रत तोड़ती है। मैं अपना व्रत उसका मधु रस (चूत रस) पीकर तोड़ता हूँ। पर मैं आज सोच रहा था कि आज तो मुझे सादा पानी पीकर और मधु को दवाई लेकर ही अपने व्रत तोड़ने पड़ेंगे।

ये कार्तिक माह का चाँद भी साला (बच्चो का मामा मेरा साला ही तो हुआ ना) रात को देर से ही उगता है बेचारी औरतों को सताने में पता नहीं इसको क्या मजा आता है। यार कम से कम हम जैसों के लिए तो पहले उग जाया करो। खैर कोई रात के ९.३० या १० बजे के आस-पास मैं छत पर चाँद देखने गया। पूर्व दिशा में चाँद ने अपनी लाली कब की बिखेरनी शुरू कर दी थी नीचे पेड़ पोधों और मकानों के कारण पता ही नहीं लगा। मैं जल्दी से सीढ़ियों से नीचे आया। मधु तो ऊपर जा नहीं सकती थी सुधा एक थाली में कुछ फूल, रोली, करवा (मिटटी का बना छोटा सा लोटा), चावल, शहद, गुड़, मिठाई आदि रख कर मेरे साथ ऊपर आ गई। हमारे घर की छत पर एक छोटा सा स्टोर बना है उसके पीछे जाकर चाँद देखा जा सकता था। हम दोनों उसके पीछे चले गए। अगर कोई सीढ़ियों से आ भी जाए तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता। सुधा ने छलनी के अन्दर से चाँद को देखकर उसे करवे से पानी अर्पित किया और फिर खड़ी खड़ी अपनी जगह पर दो बार घूम गई। इस दौरान उसका पैर थोड़ा सा डगमगाया और उसके नितम्ब मेरे पाजामे में खड़े ७” के लंड से टकरा गए। मैंने अन्दर चड्डी नहीं पहनी थी। उसने एक बार मेरी ओर देखा पर बोली कुछ नहीं। उसने चाँद के आगे अपनी मन्नत मांगनी शुरू की :

“हे चाँद देवता मेरे पति की उम्र लम्बी हो उनका स्वास्थ्य ठीक रहे…। ”

फिर थोड़ी धीमी आवाज में आगे बोली “और उनका वो सदा खड़ा और रस से भरा रहे !”

‘वो’ का नाम सुनकर मैं चोंका। मैंने जानता था ‘वो’ क्या होता है पर मैंने सुधा से पूछ ही लिया “भाभी ‘वो’ क्या हुआ ?”

“धत् …” वो इतना जोर से शरमाई जैसे १६ साल की नव विवाहिता हो।

“प्लीज बताओ ना भाभी ‘वो’ क्या ?”

“नहीं मुझे शर्म आती है !”

“प्लीज भाभी बताओ ना !”

“क्या मधु ने नहीं बताया ?”

“नहीं तो !” मैं साफ़ झूठ बोल गया।

“इतने भोले तो आप और मधु नहीं लगते ?”

“सच भाभी वो तो वो तो … मेरा मतलब है …” मेरा तो गला ही सूखने लगा और मेरा लंड तो पहले से ही १२० डिग्री पर खड़ा था पत्थर की तरह कड़ा हो गया।

“मैं सब जानती हूँ मेरे लन्दोईजी … मुझे इतनी भोली भी मत समझो !” और उसने मेरे खड़े लंड पर एक प्यारी सी चपत लगा दी। “ हाय राम ये तो बड़ा दुष्ट है !” वो हंसते हुए बोली।

अब बाकी क्या बचा रह गया था। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया। वो भी मुझ से लिपट गई। मैंने अपने जलते हुए होंठ उसके होंठों पर रख दिए। उफ्फ्फ …। गुलाब की पंखुड़ियों जैसे नरम मुलायम होंठ। पता नहीं मैं कितनी देर उनका रस चूसता रहा। सुधा ने पजामे के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़ रखा था और धीरे धीरे सहला रही थी। मैंने भी एक हाथ से उसकी साड़ी के ऊपर से ही उसकी चूत सहलानी शुरू कर दी, शायद उसने भी पेंटी नहीं पहनी थी। उसकी झांटों को मैं अच्छी तरह महसूस कर रहा था।

कोई ५ मिनट के बाद एक झटके के साथ वो अपने घुटनों के बल बैठ गई और मेरे पजामे का नाड़ा खोल कर मेरे पप्पू को बाहर निकाल लिया। मेरा लंड तो पिछले २ महीनों से प्यासा था। उसने बिना कोई देरी किये मेरा लंड एक ही झटके में अपने मुंह में ऐसे ले लिया जैसे कोई बिल्ली किसी मुर्गे की गर्दन पकड़ लेती है। मैं उसका सिर सहला रहा था। पता नहीं वो दिन भर की प्यासी थी या कई बरसों की।

उसकी चूसने की लज्जत से मैं तो निहाल ही हो गया। क्या कमाल का लंड चूसती है। हालांकि मधु को मैंने लंड चूसने की पूरी ट्रेनिंग दी है पर सुधा जिस तरीके से मेरा लंड चूस रही थी मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि अगर लंड चुसाई का कोई मुकाबला करवा लिया जाए तो सुधा अव्वल नंबर आएगी।

वो कभी मेरे लंड को पूरा मुंह में ले लेती कभी बाहर निकाल कर चाटती कभी सुपाड़े को ही मुंह में लेकर चूसती कभी उस पर अपने दांत से हौले से काट लेती। एक दो बार उसने मेरे दोनों चीकुओं (अण्डों) को भी मुंह में लेकर चूसा।

मैं तो बस आह्ह … ओईई …। ओह्ह … या …। ही करता जा रहा था। कोई ७-८ मिनट हो गए थे। मैंने उसका सिर पकड़ रखा था और उसका मुंह ऐसे चोद रहा था जैसे वो कोई चूत ही हो। वो तो मस्त हुई जोर जोर से चूसे जा रही थी। अब मुझे लगाने लगा कि मैं झड़ने के करीब हूँ तो मैंने उसे इशारा किया मैं जाने वाला हूँ तो उसने भी इशारे से कहा “कोई बात नहीं !”

मैंने उसका सिर जोर से पकड़ लिया और अपने लंड को उसके मुंह में आगे पीछे करने लगा जैसे उसका मुंह न होकर चूत या गांड हो। और फिर एक दो तीन चार पांच ….। कितनी ही पिचकारियाँ मेरे लंड ने दनादन छोड़ दी। सुधा तो जैसे निहाल ही हो गई उस अमृत को पी कर। उसका व्रत टूट गया था। उसने एक चटखारा लेकर कहा “वह मजा आ गया मेरे लन्दोईजी !”

“आपका व्रत तो टूट गया पर मेरा कैसे टूटेगा ?”

“नहीं..। अभी नहीं … बाद में… ”

पर मैं कहाँ मानने वाला था। मैंने एक झटके में उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर कर दिया। वाह …। चाँद की दुधिया रोशनी में उसकी काले काले घुंघराले झांटों के झुरमुट से ढकी मखमली चूत देखने लायक थी। हालांकि उसकी चूत पर बहुत सारे झांट थे लम्बे लम्बे पर उसमे छुपी हुई मोटे मोटे होंठों वाली चूत साफ़ देखी जा सकती थी। जैसे किसी गुलदस्ते में सजा हुआ एक खिला गुलाब का फूल हो एकदम सुर्ख लाल। उसकी चूत पर उगे लम्बे लम्बे झांट देख कर मुझे पाकीज़ा फिल्म का वो डायलोग याद आ गया :

“आपकी चूत पर उगी काली लम्बी घनी रेशमी झांटें देखी

इन्हें काटियेगा नहीं, चूत बे-परदा हो जायेगी ”

मैंने तड़ से एक चुम्बन उस पर ले लिया और उसके होंठ अपने मुंह में लेकर चूमने लगा। अन्दर वाले होंठ तितली के पंखों की तरह कोई दो ढाई इंच लम्बे तो जरूर होंगे। तोते की चोंच की तरह बने बीच के होंठ बहुत बड़ी चुद्दकड़ औरतों के होते है। मुझे लगा सुधा भी एक नंबर की चुद्दकड़ है। साले रमेश (मेरा साला) ने उसे ढंग से चोदा हो या नहीं पर चूत की फांकों को कमाल का चूसा होगा तभी तो इतनी बड़ी हो गई हैं।

“बस अब चलो बाकी बाद में नहीं तो मधु तुम्हारी जान निकाल देगी मेरे प्यारे नन्दोईजी अ…अरे नहीं लण्डोईजी …!” उसने हंसते हुए कहा। मैं मन मार कर प्यासा ही बिना व्रत तोड़े नीचे आ गया।

Post Reply