Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
007
Platinum Member
Posts: 948
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 28 Dec 2014 08:58

बहन की इच्छा—8

गतान्क से आगे…………………………………..

ऐसा कह'ते ऊर्मि दीदी ने अपना दायां हाथ उप्पर किया और अप'ने सर के नीचे रखा. फिर अप'नी जांघों का अंतर थोड़ा बढ़ा के वो बिल'कुल रिलक्स हो कर पड़ी रही. उस की आँखें बंद थी, चेह'रे पर लज्जा थी. उसकी छाती का अरोला उत्तेजना से कड़क हो गया था और उसके उप्पर का निप्पल और भी लंबा हो गया है ऐसा मुझे लग रहा था. उस की साँसों की रफ़्तार बढ़ गयी थी जिस'से उसकी भरी हुई छाती उप्पर नीचे हो रही थी. उस'का पेट भी साँसों के ताल पर उप्पर, नीचे हो रहा था और नीचे होते सम'य उसके गोल नाभी में और भी गहराई महेसूस होती थी.

मेरी बहन के नंगेपन को निहार'ते हुए मेरा लंड पह'ले से ही कड़क हो गया था और जब मेने उसके जांघों के बीच मेरी नज़र जमा दी तब में काम वास'ना से पागल हो गया. उसकी चूत के इर्दगीर्द भूरे रंग के बालो का जंजाल था. मेने थोड़ा नीचे झुक के जब उसकी चूत को गौर से देखा तो उस बालो के जंगल से मुझे उसकी चूत का छेद और छेद के उप्पर का चूत'दाना चमकते नज़र आया. मेने उसके जांघों के नीचे नज़र सरकाई तो मुझे उसकी केले के खंबे जैसी गोरी गोरी और लंबी टाँगें नज़र आई.

ना जा'ने कित'नी देर तक में ऊर्मि दीदी का नन्गपन उपर से नीचे, नीचे से उप्पर निहार'ता रहा था. उस सम'य मेरी नंगी बहन मुझे स्वर्ग की अप्सरा लगा रही थी!

"क्या फिर, सागर!. तुम्हारी जिग्यासा कब पूरी होंगी?" काफ़ी देर बाद ऊर्मि दीदी ने मुझे पुछा.

"किसको मालूम, दीदी?"

"क्या मत'लब, सागर?"

"मतलब ये के मेरा जी ही नही भरता तुम्हें नंगी देख'ते. ऐसा लग'ता है जिंदगी भर में तुम्हें ऐसे ही देख'ते रहूं!"

"अच्च्छा!. भाड़ा चुका सकते हो क्या इस रूम का. जिंदगीभर??" उस'ने मज़ाक में कहा.

"मेरी बात को प्रक्तीकली मत लो, दीदी!. उसके पिछे का अर्थ समझ लो!"

"अरे वो, शहज़ादे!!.. बहुत हो गया तुम्हारा उसके पिछे का अर्थ अब. मुझे ठंड लग'ने लगी है उस एर कंडीशन की वजह से!"

"सच, दीदी? सॉरी हाँ. मेरे ध्यान में ही नही आया यह. में अभी बंद करता हूँ ए.सी.." ऐसा कह'कर मेने झट से बेड से छलान्ग लगाई और तूरन्त जाकर एर कंडीशन बंद किया.

फिर आकर में ऊर्मि दीदी के दाई तरफ लेट गया और उसकी तरफ घूम के मेरे बाएँ हाथ के सहारे अपना सर उप्पर करके उसके चह'रे को देख'ने लगा. उस'को ये महेसूस हुआ के में उसके बाजू में लेट गया हूँ. उस'ने सर घुमा के आँखें खोल दी और मेरी तरफ देखा. में उसकी तरफ देख'कर हंसा. उस'ने झट से अप'नी आँखें बंद कर ली. में मेरा मूँ'ह उसके कान के नज़दीक ले गया और मेने धीरे से उस'को पुछा,

"दीदी! में तुम्हारे होठों का एक चुंबन ले लूँ?"

"क्या???" वो लग'भाग चिल्लाई.

"प्लीज़, दीदी! सिर्फ़ एक बार."

"तुम'ने कहा था के तुम्हें सिर्फ़ नग्न स्त्री देख'नी है. उस'का चुंबन भी लेना है ऐसा कब कहा था?"

"हां ! नही कहा था. लेकिन अभी मेरे मन में ये इच्छा पैदा हुई है के में तुम्हारा एक चुंबन ले लूँ!"

007
Platinum Member
Posts: 948
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 28 Dec 2014 08:59

"तुम पागल तो नही हो गये हो, सागर? कभी तुम्हारे मन में स्त्री को नंगी देख'ने की जिग्यासा पैदा होती है तो कभी तुम्हारे मन से आवाज़ आती है के उस'का चुंबन ले लूँ. ये क्या लगा रखा है तुम'ने??"

"अब तुम्हें देख के मुझे वैसा लगा, दीदी! इस'लिए में कह रहा हूँ."

"मुझे ये बता, सागर. मुझे देख'कर तुम्हें ऐसा क्यों लगा??"

"क्योंकी.. में थोडा उत्तेजीत हो गया हूँ!"

"ऊत्तेजीत हो गये हो?. खुद के बहन की तरफ देख'कर तुम उत्तेजीत हो गये हो??"

"हां !. क्यों नही होऊँगा, दीदी? तुम इत'नी सुंदर और सेक्सी दिख'ती हो के कोई भी उत्तेजीत हो सकता है. तुम्हारा भाई हूँ तो क्या हुआ. आखीर एक पुरूष जो हूँ. तुम भी तो उत्तेजीत हो गई हो."

"में??. ऊत्तेजीत. कौन कह रहा है के में उत्तेजीत हो गई हूँ?"

"कह'ने की क्या ज़रूरत है, दीदी. मुझे समझ है सब."

"समझ है?? क्या समझ है तुम्हें?? किस बात से तुम'ने ये मतलब निकाला के में उत्तेजीत हो गई हूँ???"

"मेने तुम्हारी पॅंटीस देखी है, दीदी. वो 'उस' भाग पर गीली हो गई थी."

"पॅंटीस?? गीली हो गई?? क्या कह रहे हो तुम, सागर???"

"मुझे मालूम है, दीदी. स्त्री जब उत्तेजीत होती है तो उसके 'उस' भाग से पानी छूटता है."

"अरे बेशरम!!. किस'ने कहा ये तुझे?"

"किस'ने कहा ये जाने दो. लेकिन में जो कुच्छ कह रहा हूँ ये सच है ना, दीदी?"

"क्या सच है, सागर? किस'ने कहा तुम्हें ये?"

"मेने पढ़ा है एक किताब में."

"किताब में?. कौन सी किताब में??"

"एक काम-जीवन की किताब की कहानियों में."

"अरे बेशरम.. तुम ऐसी किताबे पढ़ते हो हां क्या नाम बताया था ?? ये धन्दे कर'ते थे तुम पढ़ाई के सम'य?"

"दीदी! में जब पढ़ता था तब नही पढ़ी मेने वो किताब. वो तो आज कल में पढ़ी है. में भी बड़ा हो गया हूँ अब! इस'लिए मेरी जान'करी बढ़ाने के लिए मेने वो किताब पढ़ी थी."

"और क्या लिखा था उस किताब में ?"

"यही के. स्त्री जब काम-उत्तेजीत हो जाती है तब उसकी योनी से काम रस बाहर निकलता है.."

"वाह. बहुत अच्छे. क्या शब्द सीख लिए है तुम'ने. काम- उत्तेजीत. योनी. काम रस.. में तो धन्य हो गई, सागर!. अरे पगले. ऐसा सफेद पानी हमारी 'उस' जगह से हमेशा निकलता रहता है. तो फिर वो 'काम-सलील' कैसे हो सकता है?"

"चलो मान लिया, दीदी!. के स्त्री के 'उस' जगह से ये पानी हमेशा निकलता रहता है लेकिन तुम'ने तो थोड़ी देर पह'ले स्नान किया था तब तुम्हारी 'वो' जगहा सुखी तो होंगी? और थोड़ी देर पह'ले जब मेने तुम्हारा सिर्फ़ गाउन निकाला था तब तुम्हारी पॅंटीस पर वो गीला स्पॉट नही था. लेकिन जब मेने तुम्हारी पॅंटीस निकाल दी तब उस'पर वो गीला स्पॉट था. इसका मतलब में जब तुम्हारे कपड़े उतार रहा था तब तुम उत्तेजीत हो रही थी. बराबर है ना, दीदी?"

"हे भगवान!. तुम धन्य हो, सागर!!" ऊर्मि दीदी ने अप'ने हाथ जोड़'कर मुझे कहा, "क्या मतलब निकाला तुम'ने इस बात का!! "

"में सही कह रहा हूँ के नही ये बता दो, दीदी. तुम उत्तेजीत हो गई थी ना? सच सच बताओ!'

"हां !. में हो गई थी थोड़ी उत्तेजीत!!" आखीर ऊर्मि दीदी ने कबूल कर के कहा, "अब थोड़ी बहुत उत्तेजना तो बढ़ेगी ही ना."

"एग्ज़ॅक्ट्ली!!. जैसे तुम थोड़ी बहुत उत्तेजीत हो गई थी वैसे में भी थोडा बहुत उत्तेजीत हो गया हूँ. इस'लिए, दीदी. प्लीज़!. मुझे तुम्हारा एक चुंबन लेने दो ना?? सिर्फ़ एक!. झट से!!"

"क्या है ये, सागर?. तुम्हारी माँगे तो बढ़'ती जा रही है."

"ऐसे भी क्या, दीदी!. सिर्फ़ एक चुंबन.. उस'से तुम्हारा क्या नुकसान होने वाला है? इत'ने में तो हो भी जाता मेरा चुंबन लेना."

"अच्च्छा ठीक है, सागर. ले लो एक चुंबन. लेकिन झट से हाँ." आखीर ऊर्मि दीदी नाखुशी से तैयार हो गई.

"थॅंक्स, दीदी! थकयू वेरी मच!"

"पहेले ले तो सही चुंबन!! फिर बोल'ना. थॅंक्स और थन्क्यू."

007
Platinum Member
Posts: 948
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 28 Dec 2014 08:59

ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने वापस अप'नी आँखें बंद कर ली और वो चुप'चाप पड़ी रही. मेरी खुशीयों का तो कुच्छ ठिकाना ही ना रहा और मेरी उत्तेजना भी बढ़'ती गई. मेरी सग़ी बड़ी बहन के साथ नाजायज़ काम-संबंध रख'ने के सप'ने तो मेने सैकड़ो बार देखे थे लेकिन आज पह'ली बार उसके साथ हक़ीकत में में कुच्छ कर'ने जा रहा था. में थोड़ा आगे झुक गया. अब मेरे होंठ उसके होंठो से एक दो इंच ही दूर थे. उसे मेरी गरम साँसों का अह'सास हुआ. में दावे के साथ तो नही कह सकता लेकिन मुझे ऐसा लगा के ऊर्मि दीदी ने अपना चेह'रा थोड़ा सा उप्पर कर के अप'ने होंठ मेरे चुंबन के लिए तैयार रखे.

आगे होकर धीरे से मेने मेरे होंठ अप'नी बहन के होंठो पर रख दिए. और मेरे बदन में जैसे आग लगा गई. अप'ने आप मेरे होठों का दबाव उसके होठों पर बढ़'ने लगा और में उस'का चुंबन लेने लगा. कुच्छ पल के लिए तो ऊर्मि दीदी शांत थी लेकिन जैसे जैसे मेरे होंठो का दबाव उसके होठों पर बढ़'ने लगा वैसे उसके भी होठ हिल'ने लगे.

कुच्छ पल सिर्फ़ होठों से होठों को चूम'ने के बाद मेने धीरे से मेरे होंठ अलग किए और उसके होठों को मेरी जीभ लगा दी.

ऊर्मि दीदी के लिए ये एक अचानक सी बात थी क्योंकी मेने अनुभव किया के वो थोड़ा चौंक गई थी. मेने मेरे होठों का दबाव वैसे ही रखा और मेरी जीभ मैं उसके होठोंपर घुमाने लगा. पह'ले तो उस'ने कुच्छ नही किया और शांत पड़ी रही लेकिन जैसे जैसे में ज़्यादा ही जीभ घुमाने लगा वैसे वैसे उसके होठों का फासला बढ़ता गया. आख़िर उसके होंठ अलग हो गये और मुझे मेरे होंठो पर उसकी जीभ का स्पर्श अनुभव हुआ.

याहू!! !.. मेने ऊर्मि दीदी की चुप्पी को तोड़ दिया!! आख़िर उसे भी उत्तेजना से होठ अलग कर'ने पड़े. मेने बेसब्री से मेरी जीभ वापस उसके होंठो को लगा दी. उस'ने अप'ने अलग हो गये होंठ बंद नही किए. उसे एक इशारा समझ'कर मेने मेरी जीभ उसके होठों के बींच डाल दी. एक पल के लिए मुझे उसके विरोध का आभास हुआ लेकिन अगले ही पल उसकी जीभ ने मेरी जीभ को स्पर्श किया. तो फिर क्या.. में धीरे धीरे मेरी जीभ से उसके जीभ के साथ खेल'ने लगा. इस दौरान मेरे होठों का दबाव उसके होठोंपर कायम था.

अब हम बहेन-भाई के उस पह'ले चुंबन ने एक ऐसा मोड़ ले लिया कि लग'ने लगा जैसे चुंबन लेने के लिए ही हम दोनो का जन्म हो गया हो. कुच्छ अलग ही धुन में ऊर्मि दीदी मुझे चुंबन में साथ दे रही थी. रुक'ने का तो मेरा दिल नही कर रहा था लेकिन जैसे उसे ज़बान दी थी वैसे वो चुंबन जल्दी ख़त्म कर'ना चाहिए था वरना आगे वो किसी भी बात के लिए तैयार होने की संभावना नही थी. बड़ी मुश्कील से मेने मेरे होंठ अप'नी बहन के होठों से अलग किए.

ऊर्मि दीदी अब भी उस चुंबन के धुन में थी शायद क्योंकी उस'ने अभी तक आँखें बंद रखी थी. में उसके चह'रे को पागल की तरह देख रहा था. कुच्छ देर बाद उस'ने आँखें खोल दी. में उसे देख रहा था ये जान'कर वो शरम के मारे चूर चूर हो गई.

"अब तो में थॅंक्स कह सकता हूँ ना, दीदी?" मेने उसे पुछा लेकिन वो कुच्छ ना बोली सिर्फ़ अपना सर हिला के उस'ने 'हां' का इशारा किया. "कैसा लगा तुम्हें, दीदी?"

"सच बता दूं या झूठ बता दूं?"

"तुम्हें जो सही लगे वो बता दो!"

"तो फिर में सच बताती हूँ. पह'ले मुझे अजीब सा लगा. लेकिन बाद में में बहेक'ती गई. सच्ची! तुम'ने बहुत ही अच्छा चुंबन लिया, सागर!. में बहन होकर मेरा मन पिघल गया. तुम अगर हटाते नही तो आगे ना जा'ने क्या हो जाता??"

Post Reply