रिचा ने कहा "अच्छा वो यार परशु का भाई है... उसने मुझसे बिन्ति करी थी कि आज वो अपने भाई के साथ रहना
चाहता है जोकि कल वापस हरयाणा चले जाएगा तो मैने उसको हां केहदी"
ललिता मन ही मन रिचा को गालिया देने लग गयी थी..रिचा बोली "सुन ना हम वैसे भी दरवाज़ा लॉक करके सोएंगे तो
कोई दिक्कत नहीं है और वैसे भी ये बंदा कई बारी आ चुका है यहाँ तो ऐसी घबराने वाली कोई बात नहीं है.."
कुच्छ देर बाद दोनो लड़कियों ने बत्ती बंद करी और सोने लग गयी..
कुच्छ देर रात ललिता की नींद टूट गयी.. अपनी नींद से भरी आवाज़ में उसने बड़बड़ाया "रिचा यार अपनी रज़ाई ओढ़ ना"
फिर उसके कुच्छ देर बाद उसने रिचा का हाथ अपनी कमर पे पाया.. इधर से उधर ललिता की कमर पे हाथ हिले
जा रहा था.. ललिता काफ़ी नींद में थी इसलिए उसने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया... मगर उसके बाद ललिता के
टॉप के अंदर जैसी ही वो हाथ गया और ललिता को अपने पेट वो महसूस हुआ उसने वो हाथ को तेज़ी से पकड़ा और उस हाथ की मोटाई और बाल महसूस करके उसे पता चला कि वो रिचा का नही बल्कि एक आदमी का हाथ है शायद परशु या फिर उसका भाई का.. ललिता को समझ नही आ रहा था कि वो क्या करें.. वो चुप चाप बिस्तर पे पड़ी रही.. वो हाथ फिर बढ़ा और
इस बार ललिता के पेट को सहलाने लगा.. ललिता के पतले से टॉप में से वो हाथ ललिता की गर्माहट महसूस करने लगा था.. गुस्से में ललिता ने अपने उपर से हाथ हटा दिया और बिस्तर से उठ के टाय्लेट की तरफ भागी..
उस आदमी ने ललिता को पीछे से जकड़ा और उठाकर कर वापस बिस्तर पे फेंक दिया.. वो आदमी कोई और नहीं परशु था..
जैसी ही ललिता ने चिल्लाना चाहा परशु ने उसके मुँह पर अपना बड़ा सा हाथ रख दिया.. परशु ने दूसरा हाथ ललिता की स्कर्ट और पैंटी में घुसा दिया और उसकी चूत पे चींटी मारने लग गया... ललिता ने हार नही मानी और गुस्से में परशु
को लात मारने लगी... परशु पर उन्न लातो का कुच्छ असर नहीं हुआ और आहिस्ते बोला "आए शहर की लड़की कितना तड़पाएगी....
अब लड़ ना" फिर अपना हाथ वो ललिता की चूत पे लेजाके बोला " एक भी बाल नहीं है चूत पर... मज़ा आ गया"..
परशु का हाथ चूत को छुते ही ललिता काप उठी..
परशु की उंगलिओ की वजह से उसकी चूत गीली होने लग गयी और परशु बोला "लगता है मज़ा आ रहा है तुझे"
ललिता अब लड़ने की भी कोशिश नहीं कर रही थी और ये देख कर परशु ने उसके मुँह से अपना हाथ हटा लिया..
परशु ने ललिता को साँस लेने का मौका दिया और उसके बिस्तर पे बिठा कर अपने हाथो से उसका टॉप उतार फेका और
उसकी काली ब्रा को भी उसके जिस्म से हटा दिया.. मम्मो को देखकर ही परशु उनसे खेलने लगा.. मज़े लेता लेता बोला
"तेरे मम्मे बड़े कमाल के है... इतने बड़े बड़े और टाइट हर मर्द को ऐसे मम्मे पसंद है"
फिर परशु ने अपने होंठो से ललिता को होंठो जमके चूम लिया.. परशु ललिता की ज़ुबान होंठो को चाते जा रहा था..
चूमता चूमता वो अपने हाथो से ललिता की चुचियाँ को मसल्ने लग गया.....
जब उसने ललिता के होंठो आज़ाद करा तो उसके बदन को उसने पलट दिया और अब उसकी गान्ड परशु के सामने पेश हुई थी.... अपनी उल्टे हाथ की एक मोटी उंगली उसने ललिता की गान्ड में डाल दी और ललिता दर्द के मारे चीख दी....
जिस्म की प्यास compleet
Re: जिस्म की प्यास
उसकी अंगली अंदर बाहर अंदर बाहर ललिता की गान्ड में होती रही...अपने सीधे हाथ से वो ललिता के
नितंबो को चाँटा मारने लग गया.... 4-5 बारी तेज़ी से चाँटा लगाया और ललिता के नितंबो पे परशु के
हाथ चिपक गये... हर चाँते के बाद ललिता को 2 सेकेंड के लिए दर्द होता और फिर मस्ती छाने लगती...
परशु ने ललिता को बिस्तर पे बिठा दिया और अपनी पतलून को नीचे उतारके अपना मोटा लंड उसको चूसने के लिए दिया....
वो बदतीमीज़ी से बोला "चल मेरी छमिया चूसना शुरू कर.." ललिता ने लंड को पकड़ा और हल्के हल्के चूमने लग गयी..
फिर अपना मुँह खोलके उसको अंदर लेने लग गयी.. आहिस्ते आहिस्ते उसने उस लंबे मोटे लंड को चूसना शुरू किया..
परशु सिसकिया लेके बोले जा रहा था "ऐसी ही मेरी जान.. चूस्ति रह.. जितना अच्छा चूसेगी उतनी अच्छी तरह तेरी बजाउँगा भी"
ललिता का मुँह नमकीन हो गया था... परशु के लंड के बालो में से अजीब सी बू आ रही थी जो ललिता को
पहले काफ़ी गंदी लग रही थी फिर उसे मदहोश कर रही थी.. ललिता को अंधेरे में लग रहा था कि परशु का लंड
शायद सबसे बड़ा लंड होगा जिसको अभी तक उसने अपने मुँह में लिया होगा... परशु ने ललिता को रोकके कहा
"बस रुकजा रानी नहीं तो पहले की तरह तेरे मुँह में ही पानी छोड़ देगा"
परशु ने अपनी बनियान उतारी और ललिता की स्कर्ट को नीचे उतार दिया.. उसने पैंटी को कोने से पकड़ा और मज़े लेते हुए
उसको उपर की तरफ खीच दिया.. ललिता की चूत और गान्ड पे बेहद दर्द होने लगा.. वो देख कर परशु और मचल गया..
. परशु ने फिर उसकी कच्छि को उतार फेका और बिस्तर पे लिटा कर उसकी चूत को चाटने लग गया...
उसकी ज़ुबान कुत्ते की तरह ललिता की चूत पर चल रही थी.. ललिता मज़े में सिसकियाँ लेने लगी...
बार बार परशु कहता "मज़े आ रहे है ना कुतिया... मज़े आ रहे है ना कुतिया" जिसका जवाब ललिता कुच्छ नहीं देती....
फिर परशु ने अपना लंड पे थुका और उसपे मला और ललिता को उसको और गीला करने को कहा.. ललिता ने फिर से लंड को रॅंडियो की तरह चूसना शुरू कर दिया
"बस बस कर कुतिया अब तुझे चोद्ता हूँ" ये कहकर परशु ने ललिता की टाँगें चौड़ी करी और अपना लंड एक झटके
में चूत में घुसेड दिया.. पूरा लंड तो चूत में नहीं गया मगर ललिता की चीख निकल गयी...
परशु ने फिर चोद्ना शुरू करा और ललिता को काफ़ी दर्द होने लगा.. ललिता की टाँगें परशु के कंधो पर थी और
परशु उसकी चुचियाँ को भी ज़ोर ज़ोर से नौचने लग गया... कुच्छ देर बाद परशु ने अपना लंड निकाला और ललिता को कुतियाकी तरह बिस्तर पे बिठा दिया..
2-3 बारी चूत पे धुकने के बाद उसने अपना लंड डाल दिया.. उसने ललिता के बालो को पकड़ लिया और उन्हे खीचने लग गया..
नितंबो को चाँटा मारने लग गया.... 4-5 बारी तेज़ी से चाँटा लगाया और ललिता के नितंबो पे परशु के
हाथ चिपक गये... हर चाँते के बाद ललिता को 2 सेकेंड के लिए दर्द होता और फिर मस्ती छाने लगती...
परशु ने ललिता को बिस्तर पे बिठा दिया और अपनी पतलून को नीचे उतारके अपना मोटा लंड उसको चूसने के लिए दिया....
वो बदतीमीज़ी से बोला "चल मेरी छमिया चूसना शुरू कर.." ललिता ने लंड को पकड़ा और हल्के हल्के चूमने लग गयी..
फिर अपना मुँह खोलके उसको अंदर लेने लग गयी.. आहिस्ते आहिस्ते उसने उस लंबे मोटे लंड को चूसना शुरू किया..
परशु सिसकिया लेके बोले जा रहा था "ऐसी ही मेरी जान.. चूस्ति रह.. जितना अच्छा चूसेगी उतनी अच्छी तरह तेरी बजाउँगा भी"
ललिता का मुँह नमकीन हो गया था... परशु के लंड के बालो में से अजीब सी बू आ रही थी जो ललिता को
पहले काफ़ी गंदी लग रही थी फिर उसे मदहोश कर रही थी.. ललिता को अंधेरे में लग रहा था कि परशु का लंड
शायद सबसे बड़ा लंड होगा जिसको अभी तक उसने अपने मुँह में लिया होगा... परशु ने ललिता को रोकके कहा
"बस रुकजा रानी नहीं तो पहले की तरह तेरे मुँह में ही पानी छोड़ देगा"
परशु ने अपनी बनियान उतारी और ललिता की स्कर्ट को नीचे उतार दिया.. उसने पैंटी को कोने से पकड़ा और मज़े लेते हुए
उसको उपर की तरफ खीच दिया.. ललिता की चूत और गान्ड पे बेहद दर्द होने लगा.. वो देख कर परशु और मचल गया..
. परशु ने फिर उसकी कच्छि को उतार फेका और बिस्तर पे लिटा कर उसकी चूत को चाटने लग गया...
उसकी ज़ुबान कुत्ते की तरह ललिता की चूत पर चल रही थी.. ललिता मज़े में सिसकियाँ लेने लगी...
बार बार परशु कहता "मज़े आ रहे है ना कुतिया... मज़े आ रहे है ना कुतिया" जिसका जवाब ललिता कुच्छ नहीं देती....
फिर परशु ने अपना लंड पे थुका और उसपे मला और ललिता को उसको और गीला करने को कहा.. ललिता ने फिर से लंड को रॅंडियो की तरह चूसना शुरू कर दिया
"बस बस कर कुतिया अब तुझे चोद्ता हूँ" ये कहकर परशु ने ललिता की टाँगें चौड़ी करी और अपना लंड एक झटके
में चूत में घुसेड दिया.. पूरा लंड तो चूत में नहीं गया मगर ललिता की चीख निकल गयी...
परशु ने फिर चोद्ना शुरू करा और ललिता को काफ़ी दर्द होने लगा.. ललिता की टाँगें परशु के कंधो पर थी और
परशु उसकी चुचियाँ को भी ज़ोर ज़ोर से नौचने लग गया... कुच्छ देर बाद परशु ने अपना लंड निकाला और ललिता को कुतियाकी तरह बिस्तर पे बिठा दिया..
2-3 बारी चूत पे धुकने के बाद उसने अपना लंड डाल दिया.. उसने ललिता के बालो को पकड़ लिया और उन्हे खीचने लग गया..
Re: जिस्म की प्यास
बीच बीच में उसकी कमर पे भी चाते लगाने लग गया.. ललिता ने दीवार के सहारे अपने आप को संभालने
की कोशिश करी और उसी वजह से उसका हाथ लाइट के स्विच पे पड़ गया और कमरे का बल्ब ऑन हो गया....
रोशनी में ललिता का बदन को देख कर परशु कुत्तो की तरह ललिता की चूत को चोद्ने लग गया... अब फिर से लाइट
बंद करने का कुच्छ फ़ायदा नहीं था और ललिता भी उस चुदाई का मज़ा लेने लग गई....
फिर कमरे के दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और ललिता ने अपनी नज़रे उसकी तरफ करी.... परशु का भाई वहाँ खड़ा हो
गया जोकि ललिता के मम्मो को झूलते हुए देख रहा था.... परशु ने अपने भाई को जलाने के लिए ललिता के हाथो को
जाकड़ लिया और पीछे खिच कर उसकी चूत बजाने लग गया... इस वजह से अब ललिता मस्ती में और चिल्लाने लग
गयी क्यूंकी परशु का लंड और अंदर घुस गया था.... परशु का सामने खड़ा देखा अपना लंड सहलाता हुआ बोला
"भाई उस साली का तो काम कर दिया लगे हाथो इसको भी चान्स दो ना"
परशु ने ललिता के बाल खीचे और बोला "बोल कुतिया चुद्वाएगि मेरे भाई से" ललिता कुच्छ नहीं बोली और परशु का
भाई बिस्तर पे चढ़ा और ललिता के मुँह में अपना लंड डाल दिया.. उसका लंड किसी भी तरह परशु के आकार का
नहीं था मगर ललिता सॉफ तौर से रिचा की चूत के पानी को चख पा रही थी..
ललिता सोचने लग गयी कि नज़ाने उसकी दोस्त कितनी देर से इस लंड से चुद रही होगी और अब भी ये इतने तना हुआ है...
परशु के लंड नेललिता की चूत की जान निकालके रख दी थी... ललिता का दर्द इतना बढ़ गया था कि वो परशु के लंड को
झेल नहीं पाई और वहीं बेहोश हो गयी...
जब सुबह उसकी आँख खुली तो वो बिस्तर पे नंगी लेटी हुई थी और उसके जिस्म में से वीर्य की बू आ रही थी...
वो जल्दी भागके टाय्लेट गयी और अपने आपको अच्छी तरह सॉफ करके बाहर निकली.. उसे उस वक़्त बस वहाँ से जल्दी से
भागना ही सबसे अच्छा उपाए लगा... उसने कपड़े पहने और अपना बक्सा लेकर वहाँ से चली गयी....
वो पूरे दिन सोचती रही कि कितनी देर तक दोनो गवार भईओ ने उसकी चूत को जमके चोदा होगा और कहीं उसकी
चूत में तो उन्होने अपना वीर्य तो नही डाल दिया होगा??
ललिता की ज़िंदगी में लंड की ऐसी बारिश होगी ये तो उसने सपने में भी नही सोचा था... भले ही उसे अभी इस बात पे रोना आ रहा हो मगर चुदाई के वक़्त उसे एक बारी भी इस बात के पछतावा नही होता... अब से उसके एग्ज़ॅम शुरू होने वाले थे और वहाँ रिचा से मिलना लिखा हुआ था.. तो क्या रिचा उसे सच सच सारी बातें बता देगी या फिर एक और फरेब होगा??
आने वाले दिनो में शन्नो के अंदर की सारी झिझक और शरम ख़तम हो गयी थी.... हर दिन चेतन उसको किसी ना
किसी तरह खुश कर देता था और जब वो नही होता था तो शन्नो उसको याद करते हुए खुश हो जाती...
दोनो बेटिओ के घर पे रहने की वजह से शन्नो को चेतन के साथ वक़्त बिताने का ज़्यादा मौका नहीं मिल रहा था...
कभी कभी चेतन उसको एक दम से डरा देता जैसे कि अचानक से नितंब पे चींटी नौच ना या उसके स्तनो को मसलना...
एक बारी तो वो रात में उसके कमरे में भी आ गया था मगर उसको चोद नहीं पाया था...
शन्नो को उस रात चेतन की उंगलिओ के जादू ने ही काफ़ी खुश कर दिया था और चेतन को अपनी मम्मी के मुँह ने...
डॉली और चेतन के बीच अब सब शांत हो गया था जिससे डॉली काफ़ी खुश थी मगर साथ ही साथ उसको अपने बॉय फ्रेंड
राज की कमी भी खल रही थी....वो जल्द से जल्द भोपाल जाके उसे मिलना चाहती थी मगर ये एग्ज़ॅम ने उसे रोक रखा था...
जब उससे वो बात करती वो खुशी के मारे पागल सी हो जाती और जब उससे बात ना हो पाती तो उसका मन एक दम
चिड़चिड़ा सा हो जाता.. वो बस जल्द से जल्द भोपाल जाने के लिए टिकेट करवाना चाहती थी ताकि वो अपने प्यार को देख पाए...
उसकी बहन ललिता की ज़िंदगी एक दम से रुक गयी थी.... गुज़रे हुए कुच्छ महीनो में उसने काफ़ी कुच्छ झेल लिया था...
परशु से चुद्ने के बाद उसने रिचा से ढंग से बात तक नहीं करी थी.... जब एग्ज़ॅम देने जाती तो वो रिचस से दूर दूर
रहती जिससे रिचा काफ़ी परेशान थी.... ललिता ने पूरे मन से सोच लिया था कि वो सिर्फ़ पढ़ाई और पढ़ाई पे ध्यान देगी मगर इसको ये एहसास होता रहता था कि कहीं उसके दिल के कोने में उसकी असली ख्वाहिशे जाग रही है जिनको वो ज़्यादा दिनो तक रोक नहीं पाएगी.....
क्रमशः…………………..
की कोशिश करी और उसी वजह से उसका हाथ लाइट के स्विच पे पड़ गया और कमरे का बल्ब ऑन हो गया....
रोशनी में ललिता का बदन को देख कर परशु कुत्तो की तरह ललिता की चूत को चोद्ने लग गया... अब फिर से लाइट
बंद करने का कुच्छ फ़ायदा नहीं था और ललिता भी उस चुदाई का मज़ा लेने लग गई....
फिर कमरे के दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और ललिता ने अपनी नज़रे उसकी तरफ करी.... परशु का भाई वहाँ खड़ा हो
गया जोकि ललिता के मम्मो को झूलते हुए देख रहा था.... परशु ने अपने भाई को जलाने के लिए ललिता के हाथो को
जाकड़ लिया और पीछे खिच कर उसकी चूत बजाने लग गया... इस वजह से अब ललिता मस्ती में और चिल्लाने लग
गयी क्यूंकी परशु का लंड और अंदर घुस गया था.... परशु का सामने खड़ा देखा अपना लंड सहलाता हुआ बोला
"भाई उस साली का तो काम कर दिया लगे हाथो इसको भी चान्स दो ना"
परशु ने ललिता के बाल खीचे और बोला "बोल कुतिया चुद्वाएगि मेरे भाई से" ललिता कुच्छ नहीं बोली और परशु का
भाई बिस्तर पे चढ़ा और ललिता के मुँह में अपना लंड डाल दिया.. उसका लंड किसी भी तरह परशु के आकार का
नहीं था मगर ललिता सॉफ तौर से रिचा की चूत के पानी को चख पा रही थी..
ललिता सोचने लग गयी कि नज़ाने उसकी दोस्त कितनी देर से इस लंड से चुद रही होगी और अब भी ये इतने तना हुआ है...
परशु के लंड नेललिता की चूत की जान निकालके रख दी थी... ललिता का दर्द इतना बढ़ गया था कि वो परशु के लंड को
झेल नहीं पाई और वहीं बेहोश हो गयी...
जब सुबह उसकी आँख खुली तो वो बिस्तर पे नंगी लेटी हुई थी और उसके जिस्म में से वीर्य की बू आ रही थी...
वो जल्दी भागके टाय्लेट गयी और अपने आपको अच्छी तरह सॉफ करके बाहर निकली.. उसे उस वक़्त बस वहाँ से जल्दी से
भागना ही सबसे अच्छा उपाए लगा... उसने कपड़े पहने और अपना बक्सा लेकर वहाँ से चली गयी....
वो पूरे दिन सोचती रही कि कितनी देर तक दोनो गवार भईओ ने उसकी चूत को जमके चोदा होगा और कहीं उसकी
चूत में तो उन्होने अपना वीर्य तो नही डाल दिया होगा??
ललिता की ज़िंदगी में लंड की ऐसी बारिश होगी ये तो उसने सपने में भी नही सोचा था... भले ही उसे अभी इस बात पे रोना आ रहा हो मगर चुदाई के वक़्त उसे एक बारी भी इस बात के पछतावा नही होता... अब से उसके एग्ज़ॅम शुरू होने वाले थे और वहाँ रिचा से मिलना लिखा हुआ था.. तो क्या रिचा उसे सच सच सारी बातें बता देगी या फिर एक और फरेब होगा??
आने वाले दिनो में शन्नो के अंदर की सारी झिझक और शरम ख़तम हो गयी थी.... हर दिन चेतन उसको किसी ना
किसी तरह खुश कर देता था और जब वो नही होता था तो शन्नो उसको याद करते हुए खुश हो जाती...
दोनो बेटिओ के घर पे रहने की वजह से शन्नो को चेतन के साथ वक़्त बिताने का ज़्यादा मौका नहीं मिल रहा था...
कभी कभी चेतन उसको एक दम से डरा देता जैसे कि अचानक से नितंब पे चींटी नौच ना या उसके स्तनो को मसलना...
एक बारी तो वो रात में उसके कमरे में भी आ गया था मगर उसको चोद नहीं पाया था...
शन्नो को उस रात चेतन की उंगलिओ के जादू ने ही काफ़ी खुश कर दिया था और चेतन को अपनी मम्मी के मुँह ने...
डॉली और चेतन के बीच अब सब शांत हो गया था जिससे डॉली काफ़ी खुश थी मगर साथ ही साथ उसको अपने बॉय फ्रेंड
राज की कमी भी खल रही थी....वो जल्द से जल्द भोपाल जाके उसे मिलना चाहती थी मगर ये एग्ज़ॅम ने उसे रोक रखा था...
जब उससे वो बात करती वो खुशी के मारे पागल सी हो जाती और जब उससे बात ना हो पाती तो उसका मन एक दम
चिड़चिड़ा सा हो जाता.. वो बस जल्द से जल्द भोपाल जाने के लिए टिकेट करवाना चाहती थी ताकि वो अपने प्यार को देख पाए...
उसकी बहन ललिता की ज़िंदगी एक दम से रुक गयी थी.... गुज़रे हुए कुच्छ महीनो में उसने काफ़ी कुच्छ झेल लिया था...
परशु से चुद्ने के बाद उसने रिचा से ढंग से बात तक नहीं करी थी.... जब एग्ज़ॅम देने जाती तो वो रिचस से दूर दूर
रहती जिससे रिचा काफ़ी परेशान थी.... ललिता ने पूरे मन से सोच लिया था कि वो सिर्फ़ पढ़ाई और पढ़ाई पे ध्यान देगी मगर इसको ये एहसास होता रहता था कि कहीं उसके दिल के कोने में उसकी असली ख्वाहिशे जाग रही है जिनको वो ज़्यादा दिनो तक रोक नहीं पाएगी.....
क्रमशः…………………..