63
भौजी: अच्छा ये बताओ की मूड क्यों खराब है आपका?
मैं: क्या? मेरा मूड बिलकुल ठीक है!
भौजी: हुंह...जिस तरह से आपने मुझे नेहा के कपडे बदलने नहीं दिए उससे साफ़ जाहिर है की कोई बात तो है जो आप छुपा रहे हो|
मैं: छुपा नहीं रहा! बस अभी नहीं कहना चाहता| अभी आप खुश हो... अपने मायके जा रहे हो और ऐसे मैं अगर कोई बेकार का टॉपिक नहीं छेड़ना चाहता|
भौजी चलते-चलते रुक गईं|
भौजी: I Wanna Know…नहीं तो मैं कहीं नहीं जाऊँगी|
मैं: (अब मैं भी दो कदम चल के रुक गया|) क्यों अपना मूड ख़राब करना चाहते हो?
भौजी: आपको मेरी कसम!
अब कसम दी थी...बाँध दिया मुझे ... तो बोलना ही पड़ा और मैंने उन्हें सारी कहानी सुनाई| नेहा आगे भाग के आम के पेड़ पे पत्थर मार रही थी| मेरी बात सुन के भौजी अपनी कमर पे हाथ धार के कड़ी हो गईं और अपने माथे को पीटते हुए बोलीं;
भौजी: हाय राम! ये चुडेल.... काश मैं इसे कोई गाली दे सकती!
मैं: क्यों अपना मुंह गन्दा करते हो| छोडो उसे! चलो चलते हैं..माँ-पिताजी इन्तेजार कर रहे हैं|
भौजी: अब मूड नहीं है मेरा| आप ही चले जाओ!
मैं: इसीलिए नहीं बता रहा था आपको| आपका मन नहीं है तो ना सही पर मेरा और न एह का मन बहुत है माँ-पिताजी से मिलने का| तो हम तो जायेंगे ...आप घर लौट जाओ|
भौजी: मुझे तो लगा की आप मुझे मनाओगे....पर आपने एक भी बार मुझे नहीं मनाया|
मैं: क्योंकि मैं जानता हूँ की आप मेरे बिना वापस जाओगे ही नहीं| अब चलो....वापस भी आना है|
खेर जैसे तैसे मैंने भौजी का मन हल्का किया और हँसी-मजाक करते हुए हम भौजी के मायके पहुँचे|
उनके घर के आँगन में ही भौजी के माँ-पिताजी अर्थात मेरे सास-ससुर चारपाई डाले बैठे थे| हमें देख के ससुर जी खड़े हुए, इधर भौजी जाके सासु जी से गले मिलीं| मैंने सास-ससुर के पाँव हाथ लगाये और उन्होंने बड़े प्यार से मुझे बिठाया| नेहा भी भाग के अपने नानू और नानी के पाँव-हाथ लगा के वापस मेरी गोदी में बैठ गई| ससुर जी की नजरों से लग रहा था की वो मेरे कपडे पहनने के ढंग से बहुत खुश हैं और मन ही मन मेरी तारीफ कर रहे हैं|
ससुर जी: बेटा हमारी बड़ी दिली तमन्ना था की एक बार तुम से भेंट हो| तुमने तो हमारी बेटी पे जादू कर दिया है| जब से इसने होश संभाला है ये अपने आगे किसी की नहीं सुनती और तुमने....तुमने इसे बिलकुल सीधा कर दिया|जब छोटी थी तो इसे भेड़ की तरह जहाँ हाँक दो चुप-चाप चली जाती थी, पर चार किताबें क्या पढ़ीं हमसे बहंस करने लगी| अपने चरण काका के लड़की शादी में आने से मन कर दिया! दो बार लड़के को दौड़ाया तब भी नहीं मानी...पर तुमने इससे पता नहीं क्या कहा, की मान गई|
मैं: जी पिताजी.... आपको बुरा तो नहीं लगा मैंने आपको पिताजी कहा?
ससुर जी: हाँ..हाँ.. बेटा... तुम हमें पिताजी ही कहो|
मैं: जी पिताजी... दरअसल हम दोनों पढ़े लिखे हैं...मतलब मैं तो अभी पढ़ ही रहा हूँ ... तो हम में अच्छा तालमेल है| हम दोनों अच्छे दोस्त हैं...और दोस्ती में दोस्त का कहा तो मन्ना ही पड़ता है ना? रही बात बहस की तो... बुरा मत मानियेगा पर मैंने ये देखा है की यहाँ गाँव में लोग लड़कियों को दबाया जाता है| जब इंसान पढ़-लिख जाता है तो उसमें अन्याय से लड़ने की हिम्मत आ जाती है और वो किसी के भी विरुद्ध खड़ा हो सकता है|हाँ मैं ये मानता हूँ की उन्हें (भौजी को) चरण काका की लड़की की शादी के ले आने से मना नहीं करना चाहिए था| दरसल आपको याद होगा की आज से कुछ साल पहले आपके यहाँ हवन था और उसमें उन्हें यहाँ आन था| उस समय मैं छोटा था...और वो काफी दिन यहाँ रूक गईं| मुझे उस बात पे बहुत गुस्सा आया और मैंने शहर वापस जाने का मन बना लिया| हम लोग यहीं से होक गए थे पर मैं रिक्शे से नहीं उतरा और अपनी अकड़ दिखा रहा था| इसी दर से की कहीं मैं फिर से ना बुरा मान जाऊँ उन्होंने आने से मना कर दिया| पर वो ये भूल गईं की मैं अब छोटा नहीं रहा|
पिताजी: यहाँ गाँव में हम काम पढ़े-लिखे लोग नियम-कानून बनाते रहते हैं और तुम्हारी बात पूरी तरह से सही है| पर अगर तुम्हारे जैसे लोग इस गाँव में रहे और हमें शिक्षित करें तो ये सोच बदली जा सकती है| पर इस बीहड़ में कौन आना चाहेगा?
मैं: आपने बिलकुल सही कहा| पर जब यहाँ भी विकास होगा तो पढ़े-लिखे लोग यहाँ अवश्य आएंगे और ये सोच अवश्य बदलेगी|
(घबराइये मत मित्रों मैं यहाँ "मोदी सरकार" के बारे में कुछ नहीं कहूँगा!!! ही..ही..ही..ही..)
इतने में भौजी और उनकी माँ भी हमारे पास चारपाई डाले बैठ गए|
ससुर जी: वैसे कहना पड़ेगा में बेटा तुम किसी वयस्क की तरह बात करते हो| तुमने जिस तरह से अपनी बात को पेश किया है वो काबिले तारीफ है| ना कोई घमंड...न कोई अकड़...एक दम सरल शब्दों में बात करते हो! और तो और हम तो तुम्हारे ऋणी हैं| जिस तरह तुमने हमारी बेटी और पोती की रक्षा की!
मैं: नहीं पिताजी...मैंने आप पर कोई एहसान नहीं किया! आखिर मेरा भी उनसे कोई रिश्ता है|
मैंने ससुर जी को प्रसाद दिया ...चाय पी और चलने की अनुमति माँगी, तभी वहाँ भौजी की छोटी बहन अपने पति के साथ आ गई!
पिताजी: अरे बेटा रुको... अभी तो आये हो| कम से कम एक दिन तो रुको हमारे साथ| देखो तुम्हारी भौजी की बहन भी आ गई कुछ दिन दोनों बहने भी मिल लेंगी?
मैं: पिताजी अवश्य रुकता परन्तु कल क्या हुआ आप तो जानते ही हैं| ऐसे में माँ-पिताजी कल घबरा गए थे| तो उन्होंने कहा की बेटा रात होने से पहले लौट आना| फिर कभी अवश्य आऊँगा!
(भौजी की ओर देखते हुए) आप एक-दो दिन रुक जाओ...सबसे मिल लो ... मैं घर निकलता हूँ|
पर भौजी का अपनी बहन को देखते ही मुँह बन गया था| यहाँ तक की दोनों गले मिले तो भौजी ने बड़े उखड़े तरीके से व्यवहार किया|
भौजी: नहीं... कल नेहा का स्कूल है|
मैं: कल तो Sunday है|
भौजी: (मुझे घूरते हुए) नहीं..पर नेहा का होमवर्क भी तो है...पहले ही दो दिन छुट्टी मार चुकी है ये|
ससुर जी: बेटी अब तो तुम्हारे "मानु जी" ने भी कह दिया की रूक जाओ, अब तो रुक जा!
भौजी: नहीं पिताजी... आपको तो पता ही है की वहाँ भी सब मुझे ही सम्भालना है| शहर से माँ-पिताजी (मतलब मेरे माँ-पिताजी) भी आये हैं तो उनका ख्याल भी मुझे ही रखना है|
ससुर जी: बेटी रूक जाती तो अच्छा होता|
मैं: (प्यार से) रूक जाओ ना... प्लीज!
भौजी: बोला ना नहीं| (उन्होंने बड़े उखड़े तरीके से जवाब दिया)
मैं: ये नहीं मानने वाली पिताजी| हम चलते हैं! पायलागी!!! पायलागी माँ!
सासु जी: खुश रहो बेटा!
ससुर जी: खुश रहो बेटा!
हम वहाँ से चल पड़े और भौजी की बेरुखी तो देखो, उन्होंने अपनी बहन को बाय तक नहीं कहा ना ही गले मिलीं...और तो और नेहा को भी उनके पास जाने नहीं दिया|
हम घर से कुछ दूर आ गए थे पर हम दोनों में बातचीत बंद थी| मैं नेहा को गोद में उठाय उनके साथ-साथ चल रहा था, आखिर भौजी स्वयं ही मुझ से बोलीं;
भौजी: मुझे माफ़ कर दो| (और भौजी एकदम से रुक गईं)
मैं: ठीक है!
भौजी: नहीं आपने मुझे माफ़ नहीं किया|
मैं: कर दिया|
भौजी: नहीं किया.. (मैं उनसे करीब चार कदम दूर था)
मैं: ये सब क्या हो रहा था? रसिका भाभी का गुस्सा अपने घरवालों पे क्यों उतार रहे थे? और यहाँ तक की मेरी बात भी अनसुनी कर दी!
भौजी: मैं उस बात से परेशान नहीं थी!
मैं: तो किस बात से आपका मुँह फीका पड़ गया?
भौजी की आँखों में आँसू छलक आये! मैंने तुरंत नेहा को गोद से उतरा और उनहीं जाके गले से लगा लिया| मेरी छाती से सर लगा के वो रोने लगीं|
मैं: क्या हुआ...? प्लीज बताओ!
भौजी: उसे देखते ही वो सब बातें याद आ गईं?
मैं: किसे?
भौजी: शगुन...मेरी छोटी बहन!
तब मुझे भौजी की सारी बात याद आई की ये उनकी वही बहन है जिसके साथ चन्दर भैया ने......!!!
मैं: ओह्ह! चुप हो जाओ! मुझे नहीं पता था की ये वही है... मैं सब समझ गया| उसे देखते ही आपके सारे जख्म हरे हो गए| इसीलिए आपका व्यवहार उखड़ा हुआ था|
तब जाके भौजी शांत हुई और हम उसी तरह से सड़क के एक किनारे पे एक दूसरे से लिपटे खड़े थे| दूर से एक साइकल सवार की घंटी की आवाज सुनाई दी तब हम अलग हुए| भौजी का सुबकना बंद था|
मैं: अच्छा मेरी तरफ देखो और भूल जाओ उन बातों को| जो हो गया सो हो गया| मैं हूँ आ आपके लिए अब! तो फिर?
भौजी: जी...अब आपका ही तो सहारा है वरना मैं कब की मर चुकी होती|
मैं: यार आप फिरसे मरने की बात कर रहे हो! कम से कम नेहा के बारे में तो सोचो|
भौजी: सॉरी!
फिर उन्होंने ही बात बदल दी और हम चलते-चलते बातें करने लगे|
भौजी: अच्छा आप रुके क्यों नहीं घर पे?
मैं: वहाँ रुकते तो रात को हम मिलते कैसे? अब तो हाल ये है की बिना आपसे मिले चैन नहीं आता...रात को सोना दुश्वार हो जाता है| नींद ही नहीं आती!
भौजी: मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल है| वो दिन (चरण काका की लड़की की शादी वाला समय) मैंने कैसे निकाले ये मैं ही जानती हूँ| रात को तकिये को अपने सीने से चिपका के सोती थी...ये मान लेती थी की आप मेरे साथ सो रहे हो| जब आँख खुलती तो तकिये को ही Kiss कर लेती पर वो कभी सामने से जवाब नहीं देता था| और कल रात के बाद तो अब जैसे आज आपके बिना नींद ही नहीं आने वाली!
मैं: कम से कम आप सो तो रहे थे... मेरा तो हाल ही बुरा था| ऐसा था मानो मुझे एक जानवर के साथ एक कमरे में बंद कर दिया हो, वो भी ऐसा जनवार जो मुझे नोच के खाने को तैयार हो| इधर मेरी आँख बंद हुई और वो जानवर मेरी छाती पे बैठ मुझे खाने लगा!
भौजी: जानती हूँ.... अगर मैं आपकी जांघ होती तो मर ही जाती...
मैं: फिर आपने.....
भौजी: सॉरी..सॉरी ... अब कभी नहीं बोलूंगी! आपकी कसम !!!
ये समझ लो दोस्तों की हमारे घर से भौजी के घर का रास्ता हद्द से हद्द बीस मिनट का होगा जिसे हमने आधा घंटे का बना दिया बातों-बातों में|हम घर पहुँचे...कपडे बदले मैंने पिताजी को सारा हाल सुनाया और खाना खाने बैठ गए| खाना अम्मा और माँ ने मिलके बनाया था और खाना वाकई में बहुत स्वादिष्ट था| सब इन माँ और अम्मा की बहुत तारीफ की और खास कर मैंने| खाने के बाद सोने का प्रोग्राम वही था पर मन आज जानबूझ के अपनी पुरानी जगह सोना चाहता था पर भौजी मान नहीं रही थी|
मैं: यार प्लीज मान जाओ...जब से आया हूँ आपके साथ ही सो रहा हूँ| और ऐसा नहीं है की मेरा मन नहीं है आपके पास रहने का परन्तु घर में लोग क्या सोचते होंगे? की मैं हमेशा आपके पास ही रहता हूँ|
भौजी: ठीक है पर एक शर्त है?
मैं: बोलो
भौजी: आप मुझे सुलाने के बाद सोने जाओगे वरना मैं सारी रात यहीं तड़पती रहूँगी|
मैं: ठीक है, इतना तो मैं अपनी जानेमन के लिए कर ही सकता हूँ|
भौजी: क्या कहा आपने?
मैं: जानेमन!
भौजी: हाय...दिल खुश कर दिया आपने! अब से मैं आपको जानू कह के बुलाऊंगी|
मैं: ठीक है पर सब के सामने नहीं|
भौजी: Done!
अच्छा जानू, अब मुझे सुलाओ!
मैं: सुलाऊँ? अब क्या आपको गोद में ले के सुलाऊँ?
भौजी: मैं नहीं जानती...जबतक सुलाओगे नहीं मैं नहीं जाने दूँगी!
मैं: अच्छा बाबा!
(मैंने नेहा को आवाज मारी, वो दूसरी चारपाई पे लेटी थी और वरुण उसके पास बैठा था| दोनों खेल रहे थे| )
नेहा: जी पापाजी!
मैं: बेटा आपको कहानी सुननी है?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
मैं: चलो आप मेरी गोदी में आ जाओ|
नेहा उचक के मेरी गोदी में लेट गई| मेरे सीधे हाथ को उसने अपना तकिया बना लिया और बाएं हाथ पे उसकी टांगें थी| भुजी ने अपना हाथ नीचे से ले जाके मेरा बाहिना हाथ पकड़ लिया और उसे प्यार से मसलने लगीं| मैं कहानी सुनाता रहा और दोनों सुनती रहीं| नेहा तो सो गई पर भौजी की मस्ती जारी थी| उन्होंने अपना हाथ ले जाके मेरे लंड के ऊपर रख दिया और अब उसे दबाने लगीं| इतने में वहां बड़की अम्मा, माँ और रसिका भाभी आ गईं| उन्हें देख भौजी ने अपना हाथ धीरे से सरका लिया| रसिका भाभी डरी हुई लग रहीं थीं और उन्हें देख भौजी ने ऐसे मुँह बना लिया जैसे वो अभी गुर्राने वाली हैं|
माँ: तू सोया नहीं अभी तक?
मैं: जी नेहा को कहानी सुना रहा था|
माँ: चल जल्दी सो जा...सुबह बिना किसी के उठाये उठता नहीं है|
मैं: जी पर मैं आज पिताजी के पास सोऊँगा|
भौजी ने मुझे आँख बड़ी कर के दिखाई और बिना आवाज निकाले होठों को हिलाते हे कहा; "पहले मुझे तो सुला दो|" मैं कुछ बोला नहीं बस हाँ में सर हिलाया| अब तक माँ और बड़की अम्मा लेट चुके थे और कुछ बात कर रहे थे| रसिका भाभी तो चादर सर तक ओढ़ के भौजी के डर के मारे सो गईं थीं| अब हम बातें तो नहीं कर सकते थे बस खुसफुसा रहे थे;
भौजी: बहुत मन कर रहा है...
मैं: मेरा भी...पर जगह कहाँ है?
भौजी: आप ही कुछ सोचो? घर के पीछे चलें?
मैं: माँ और अम्मा से क्या कहोगे की हम कहाँ जा रहे हैं?
भौजी:प्लीज ...
मैं: अभी कुछ नहीं हो सकता! आप सो जाओ!
भौजी: ठीक है...तो मेरी Good Night Kiss?
मैं: कैसी Good Night Kiss? ये तो कभी तय नहीं हुआ हमारे बीच?
भौजी: अब हो गया|
मैं: आप ना... बहुत बदमाश हो... सो जाओ! Good Night !
और मैंने नेहा को उनकी बगल में सुलाया और मैं उठ के चला आया| भौजी भी उठ के मेरे साथ चल पड़ीं और मैं फिर से खुसफुसाया;
मैं: आप कहाँ जा रहे हो?
भौजी: (मुँह बनाते हुए) दरवाजा बंद करने!
जैसे ही भौजी ने दरवाजा बंद करने को दोनों हाथ दरवाजे पे रखे मैंने मौके का फायदा उठाया और अपने दोनों हाथों से उनका चेहरा थाम और उनके होठों पे जोर दार Kiss किया!
मैं: Good Night जानेमन!
भौजी: Good Night जानू!!!
मैं आके अपनी चारपाई पे लेट गया| समय देखा तो रात के नौ बजे थे| करीब दस बजे मेरी नींद खुली तो देखा भौजी मेरे सामने खड़ीं थीं!
मुझे आँख बंद किये ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरी ओर टकटकी बांधे देख रहा हो, जब आँखें खुलीं और भौजी के देखा तो मैं सकपका के उठा|देखा तो भौजी की गोद में नेहा थी और वो सुबक रही थी|
मैं: (खुसफुसाते हुए) क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?
मुझे उठ के बैठे देख नेहा उनकी गोद से मेरी तरफ आने को मचलने लगी| इतने में बड़के दादा की नींद नेहा की आवाज सुन के खुल गई और उन्होंने पूछा;
बड़के दादा: कौन है वहाँ?
भौजी: मैं हूँ पिताजी|
बड़के दादा: क्या हुआ? और ये लड़की क्यों रो रही है|
भौजी: वो पिताजी.... नेहा रो रही थी और इनके (मेरे पास) पास आन के जिद्द कर रही थी तो उसे यहाँ ले आई|
बड़के दादा: कम से कम मुन्ना को चैन से सोने तो दो| जब देखो उसके पीछे पड़े रहते हो दोनों के दोनों!
भौजी को ये बात छुभि...और चुभनी भी थी, क्योंकि जिस तरह से बड़के दादा ने उन्हें झिड़का था वो ठीक नहीं था| मैंने नेहा को गोद में लेने के लिए हाथ आगे बढाए और नेहा भी मेरी गोद में आना चाहती थी परन्तु भौजी उसे जाने नहीं दे रही थीं|
मैं: Aww मेरा बच्चा!!!
भौजी: नहीं रहने दो...मैं इसे सुला दूंगी| आप सो जाओ!
मैं: दो! (मैंने हक़ जताते हुए कहा|)
मैंने खुद ही आगे बढ़ के जबरदस्ती उनकी गोद से नेहा को ले लिया| फिर मैं उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे सुलाने लगा| नेहा का सुबकना जारी था... फिर मैं उसे अपनी छाती से चिपकाए लेट गया|
मैं: Aww मेरी गुड़िया ने बुरा सपना देखा?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
मैं: बेटा... सपने तो सपने होते हैं..वो सच थोड़े ही होते हैं| चलो छोडो उन बातों को... आप कहानी सुनोगे?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया और उसका सुबकना कुछ कम हुआ| मैंने उसे हलकी सी हसने वाली कहानी सूना दी और वो सुनते-सुनते सो गई| कुछ देर बाद मुझे नींद सी आने लगी पर सोचा की एक बार मूत आऊँ|मैं मूत के हाथ धो के लौटा तो मन में एक अजीब सा एहसास हुआ...जैसे कोई मेरे बिना उदास है| मन ने कहा की एक बार भौजी को देख आऊँ, इसलिए मैं दबे पाँव बड़े घर की ओर चल दिया|वहाँ पहुँच के देखा तो भौजी दरवाजे की दहलीज पे बैठी हुईं थीं|
एक अनोखा बंधन
-
- Platinum Member
- Posts: 1803
- Joined: 15 Oct 2014 22:49
Re: एक अनोखा बंधन
64
मैं: Hey ! आप सोये नहीं अभी तक?
भौजी ने ना मैं सर हिलाया| मैं भी उकड़ूँ हो के उनके सामने बैठ गया|
मैं:OK बाबा! अब छोडो ना!
भौजी अब भी कुछ नहीं बोलीं|
मैं: अच्छा बाबा अब मैं ऐसा क्या करूँ की आप खुश हो जाओ|
भौजी: कुछ नहीं...आप सो जाओ... मैं भी जाती हूँ|
उनका जवाब बड़ा उकड़ा हुआ था, मानो वो मुझे नींद से जगाने के लिए खुद को कोस रहीं हों| भौजी उठीं और पलट के जाने लगीं तो मैंने उनका हाथ थाम लिया और उनको अपनी ओर खींचा| अब वो मुझसे बिलकुल सट के खड़ीं थीं|
मैं: देखो...बड़के दादा ने जो कहा उसे दिल से मत लगाओ| वो नहीं जानते की मेरी रूह पर सिर्फ ओर सिर्फ आपका ही हक़ है|
भौजी: नहीं... मुझे आपको नहीं उठाना चाहिए था|
मैं: हमारे बीच में कब से फॉर्मेल्टी आ गई? इसका मतलब की अगर मुझे रात को कुछ हो जाए तो मैं आपको उठाऊँ ही ना... क्योंकि आपकी नींद टूट जायेगी|
भौजी: नहीं.. नहीं... आपको जरा सी भी तकलीफ हो तो आप मुझे आधी रात को भी उठा सकते हो|
मैं: वाह! मैं आपको आधी रात को भी उठा सकता हूँ और आप मुझे रात दस बजे भी नहीं उठा सकते? Doesn’t make sense!
भौजी मेरी बात समझ चुकीं थीं और उन्होंने मुझे आगे बढ़ के kiss किया! पर मन जानता था की उनका मन अभी भी शांत नहीं है| इसलिए मैंने उनका हाथ पकड़ा और एक बार बहार से अंदर झाँका और देखा की कोई हमारी बातें सुन तो नहीं रहा| फिर मैंने उनका हाथ पकड़ा और खींच के बड़े घर के पीछे ले गया| कुछ देर पहले उनका भी मन था और मेरा भी... !! वहां ले जाके मैंने उन्हें दिवार के सहारे खड़ा किया और उन्हीने ताबड़तोड़ तरीके से चूमने लगा| भौजी की सांसें एज हो चलीं थीं परन्तु मेरा खुद पे काबू था| उन्हें चूमने के बाद मैंने उनकी साडी उठाई और मैं उसके अंदर घुस के घुटनों के बल बैठ गया और उनकी योनि को अपनी जीभ से कुरेदने लगा| जैसे ही मेरी जीभ की नोक ने उनकी योनि के कपालों को छुआ, भौजी के मुँह से लम्बी सी सिसकारी छूट गई; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स..अह्ह्हह्ह्ह्ह"| हाथों का प्रयोग न करते हुए मैंने उनकी योनि के द्वारों को अपनी जीभ की मदद से कुरेद के खोला और उनकी योनि में अपनी जीभ घुसा दी| भौजी की योनि अंदर से गर्म थी और उनका नमकीन रस जीभ पर घुलने लगा| मैं बिना जीभ को हिलाय ऐसे ही उनकी योनि में जीभ डाले मिनट भर बैठा रहा और इधर भौजी ने अपनी कमर हिलाके मेरी जीभ को अपनी योनि में अंदर बाहर करना शुरू का दिया; और “अह्ह्ह...अह्ह्ह..अंह्ह्ह” का शोर मचा दिया| परन्तु वो थकीं हुई थीं और ज्यादा देर तक कमर न हिला सकीं| करीब दस बार में ही वो थक गईं और फिर से दिवार की टेक लेके खड़ी हो गईं| अब मेरी बारी थी, मैंने जीभ को जितना अंदर दाल सकता था उतना अंदर डाला और जीभ को रोल करके बाहर लाया| इस हरकत ने भौजी को पंजों पे खड़ा कर दिया और उन्होंने अपने हाथ के बल से मेरा सर अपनी योनि पे दबा दिया| साफ़ संकेत था की उन्हें बहुत मजा आ रहा है| मैंने उसी प्रकार उनकी योनि के रस को पीना शुरू कर दिया| मैं अपनी जीभ को रोल करके खोलता हुआ उनकी योनि में प्रवेश करा देता और फिर से अंदर से बाहर की ओर रोल करता हुआ बाहर ले आता| भौजी बार-बार अपने पंजों पे उछलने लॉगिन थीं और अब ज्यादा समय नहीं था मेरे पास वरना घरवाले हम पे शक करते! इसलिए मैंने ये खेल छोड़ दिया और जीभ को तेजी से अंदर बाहर करने लगा..उनके "Clit" को चाटने-चूसने लगा..हलका-हल्का दाँतों से दबाने लगा| उनकी योनि के कपालों को मुँह में भर के खींचने लगा और भौजी चरमोत्कर्ष पर पहुँच ने ही वालीं थीं की मैंने अपनी जीभ को उनकी योनि में फिर से प्रवेश करा के अंदर से उनकी योनि को गुदगुदाने लगा| भौजी ने पूरी कोशिश की कि वो अपनी योनि से मेरी जीभ पकड़ लें पर जीभ इतनी मोती नहीं थी कि उनकी योनि कि पकड़ में आ जाए और इसी आनंद में भौजी ने अपना हाथ मेरे सर पे रखा और अपनी कमर को हिलाते हुए झड़ने लगीं| भौजी ने अपने रास को बिना रोके छोड़ दिया और वो मेरे मुँह में समाने लगा और काफी कुछ तो मेरे होठों से बाहर छलक के नीचे भी गिरने लगा| जब उनका झरना बंद हुआ तब मैं उनकी साडी के अंदर से निकला और वापस खड़ा हुआ| मेरे होठों के इर्द-गिर्द भौजी के रास कि लकीरें अब भी बानी हुई थीं जिसे भौजी ने अपने पल्लू से साफ किया| मैंने एक लम्बी सांस छोड़ी और भौजी कि ओर देखा तो वो संतुष्ट लग रहीं थीं|
जब दोनों कि साँसें ओर धड़कनें सामान्य हुईं तब मैंने उनसे कहा;
मैं: अब तो आप खुश हो?
भौजी: हाँ...
मैं: तो चलें?
भौजी: कहाँ?
मैं: सोने... और कहाँ|
भौजी: नहीं...आपने मुझे तो संतुष्ट कर दिया पर आप अभी संतुष्ट नहीं हो!
मैं: आप खुश तो मैं खुश! अब चलो जल्दी वरना कोई हमें ढूंढता हुआ यहाँ आ जायेगा!
भौजी: आप हमेशा ऐसा क्यों करते हो? मेरी ख़ुशी पहले देखते हो पर मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है आपके प्रति?
मैं: जर्रूर बनता है...पर इस समय आपको प्यार कि ज्यादा जर्रूरत थी| आपका मन उदास था इसलिए मैंने.... (मैं बात को अधूरा छोड़ दिया|)
भौजी: पर इन जनाब का क्या? (उन्होंने मेरी पेंट में उठे उभार की ओर इशारा करते हुए कहा|)
मैं: ये थोड़ी देर में शांत हो जायेगा|
भौजी: पर मुझे ये अच्छा नहीं लगता की आप मेरी ख़ुशी के लिए इतना कुछ करते हो ओर बदले में अगर मैं आपको कुछ देना चाहूँ तो आप कुछ भी नहीं लेते?
मैं: मैं कोई सौदागर नहीं हूँ जो आपकी ख़ुशी के बदले आपसे कुछ माँगू|
भौजी: हाय! कितनी खुश नसीब हूँ मैं जिसे आप जैसा पति मिला| ओर एक बात कहूँ जानू...जब आप इस तरह से पेश आते हो ना तो मन करता है की आपके साथ कहीं भाग जाऊँ|
मैं: मैं तो कब से तैयार हूँ....आप ही नहीं मानते| खेर.. अब चलो रात बहुत हो रही है ओर सुबह आपको उठना भी है|
भौजी: पर प्लीज let me try once!
मैं: देखो अभी समय नहीं है हमारे पास| इतनी जल्दी कुछ नहीं हो पायेगा आपसे!
भौजी: मैं कर लूँगी (इतना कह के उन्होंने मेरे लंड को पेंट की ऊपर से पकड़ लिया|
मैं: अगर नेहा जाग गई और मुझे अपने पास नहीं पाया तो फिर से रोने लग जाएगी|
भौजी: Next time आपने ऐसा किया ना तो मैं आपसे कभी बात नहीं करुँगी|
मैं: ठीक है ... बाबा अब जल्दी से मुस्कुरा दो ताकि मैं चैन से सो सकूँ|
भौजी मुस्कुराईं और आगे बढ़ के मुझे Kiss किया और फिर मैंने उन्हें बड़े घर के दरवाजे पे छोड़ा और वहीँ खड़ा रहा जबतक उन्होंने दरवाजा अंदर से बंद नहीं कर लिया| फिर मैंने हाथ-मुँह धोया और अपनी जगह आके नेहा के पास लेट गया|
सुबह मैं जान बुझ के जल्दी उठ गया वरना बड़के दादा भौजी को मेरी नींद तोड़ने के लिए फिर से डांटते|
भौजी: आप इतनी जल्दी क्यों उठ गए?
मैं: ऐसे ही.. माँ कह रहीं थी की जल्दी उठना चाहिए|
भौजी: जानती हूँ आप जल्दी क्यों उठे हो, ताकि मुझे पिताजी से डाँट न पड़े| आप सो जाओ...कोई कुछ नहीं कहेगा|
मैं: नहीं...अब नींद नहीं आएगी|
भौजी: क्यों जूठ बोल रहे हो आप| आपकी आँखें ठीक से खुल भी नहीं रही|
मैं: वो नहाऊँगा तो अपने आप खुल जाएगी... और रही बात नींद पूरी करने की तो वो मैं दोपहर में कर लूँगा|
खेर आज का दिन कुछ अलग ही था...सुबह से ही घर में बहुत चहल कदमी थी| पता नहीं क्या कारन था...मेरे पूछने पर भी किसी ने कुछ नहीं बताया| यहाँ तक की भौजी को भी इस बारे में कुछ नहीं पता था| मैं नाहा-धो के तैयार हुआ..और चूँकि आज संडे था तो नेहा मेरे पास अपनी किताब लेके आ गई|
उसकी किताब में बहुत से रंग-बिरंगे चित्र थे जैसे की छोटे बच्चों की किताबों में होते हैं| उसकी alphabets (वर्णमाला) की किताब सबसे ज्यादा रंगीन थी| मैं नेहा को A B C D पढ़ाने लगा, दरअसल मैं और नेहा बड़े घर के आँगन में बैठे थे और हमारी पीठ दरवाजे की ओर थी| इतने में भौजी चाय ले के आईं और मेरी ओर ट्रे बढ़ाते हुए बड़ी उखड़ी आवाज में बोलीं;
भौजी: आपसे मिलने कोई आया है!
मैंने आँखों की इशारे से पूछा की कौन है तो उन्होंने आँखों के इशारे से ही पीछे मुड़ने को कहा| जब मैं पीछे मुड़ा तो देखा वहां सुनीता खड़ी है| आज उसने पीले रंग का सूट पहना था ओर हाथ में किताबें थीं|
सुनीता: जब मेरे घर आये थे तो मुझे पड़ा रहे थे... और यहाँ इस छोटी सी बच्ची को पढ़ा रहे हो! क्या पढ़ाना आपकी हॉबी है?
मैं: (हँसते हुए) यही समझ लो ... अब आपकी हॉबी है गाना और गाना किसे पसंद नहीं पर पढ़ाना सब को पसंद नहीं है| कुछ तो चीज uncommon है हम में!
भौजी ने अपनी भौं को चाढ़ाते हुए मुझे देखा जैसे पूछ रही हो की ये सब क्या चल रहा है और मैं सुनीता की हॉबी के बारे में कैसे जानता हूँ|
मैं: ओह.. मैं तो आप दोनों का परिचय कराना ही भूल गया| ये हैं ....
सुनीता: (मेरी बात काटते हुए) आपकी प्यारी भौजी.. हम मिल चुके हैं... यही तो मुझे यहाँ लाईं....
मैं: ओह...
एक तरह से अच्छा हुआ की किसी ने दोनों का पहले ही परिचय करा दिया| क्योंकि मैं अब भौजी को भौजी नहीं कहता था...
मैं: तो बताइये कैसे याद आई हमारी?
इसके जवाब में उन्होंने एकाउंट्स की किताब उठा के मुझे दिखा दी| अब मेरा मन बहुत कर रहा था की मैं भौजी को थोड़ा चिडाऊं..तड़पाऊँ..जलाऊँ इसलिए मने आग में थोड़ा घी डाला|
मैं: (भौजी से) इनके लिए भी चाय लो दो!
भौजी ने मुझे घूर के देखा जैसे कह रहीं हो की क्या मैं इनकी नौकर हूँ पर जब उन्होंने मुझे मुस्कुराते हुए देखा तो मुझे जीभ चिढ़ा के चली गईं|
सुनीता मेरे सामने कुर्सी कर के बैठ गई और नेहा तो अपनी किताब के पन्ने पलट के देखने में लगी थी| सुनीता ने आगे बढ़ के उसके गालों को प्यार से सहलाया और बोली; "So Sweet !"| नेहा एक दम से मुझसे चिपट है और सुनीता से आँखें चुराने लगी|
मैं: बेटा... मैंने आपको क्या सिखाया था? चलो हेल्लो बोलो?
नेहा ने आँखें चुराते हुए हेल्लो कहा और फिर से मुझसे लिपट गई|
मैं: She’s very shy!
सुनीता: Yeah..I can understand that.
कुछ देर बाद भौजी आ गईं और सुनीता को चाय दे के जाने लगीं तभी उन्होंने देखा की हम पढ़ रहे हैं तो उन्होंने नेहा को अपने साथ चलने को कहा| मैं इस्पे भी चुटकी लेने से बाज नहीं आया;
मैं: कहाँ ले जा रहे हो नेहा को?
भौजी:खाना पकाने! (उन्होंने चिढ़ के जवाब दिया)
मैं: क्यों? बैठे रहने दो यहाँ...आपके पास होगी तो खेलती रहेगी|
भौजी: और यहाँ रहेगी तो आप दोनों को "अकेले: में पढ़ने नहीं देगी!
भौजी ने अकेले शब्द पे कुछ ज्यादा ही जोर डाला था| मतलब साफ़ था...वो भी मुझसे चुटकी लेने से बाज नहीं आ रहीं थीं| हमारी बात सुन सुनीता हंसने से खुद को रोक ना पाई और उसे हँसता देख भौजी जल भून के राख हो गईं और वहाँ से चली गईं|
सुनीता ने मुझे किताब खोल के दिखाई और अपने सवाल पूछने लगी|
हम पढ़ाई कर रहे थे...वाकई में पढ़ाई ही कर रहे थे ..तभी वहाँ बड़की अम्मा और माँ आ गए|
बड़की अम्मा: अरे बेटा... भोजन का समय होने वाला है तो भोजन कर के ही जाना|
सुनीता: आंटी... मतलब अम्मा...वो मैं...
माँ: नहीं बेटा...खाना खा के ही जाना|
सुनीता: जी!
अब खाने का समय हुआ तो हम दोनों का खाना परोस के बड़े घर ही भेज दिया गया, और सबसे बड़ी बात खाना परोस के लाया कौन, "भौजी"!!! अब तो भौजी अंदर से जल के कोयला हो रहीं थीं और मुझे भी बहुत अटपटा से लग रहा था की आखिर मेरे घरवाले इस लड़की की इतनी खातिर-दारी क्यों कर रहे हैं?
सुनीता: अरे भाभी...आप क्यों भोजन ले आईं, हम वहीँ आ जाते|
मैं जानता था की यार अब अगर तूने आग में घी डाला तो तेरा तंदूरी बनना पक्का है, इसलिए मैं चुप-चाप था|
भौजी: (बड़े प्यार से बोलीं..हालाँकि मुझे ऐसा लगा की ये प्यार बनावटी था) आप हमारी मेहमान हैं और मेहमान की खातिरदारी की जाती है|
सुनीता उनकी बातों से संतुष्ट थी पर ना जाने क्यों मेरा मन भौजी की बातों का अलग ही मतलब निकाल रहा था| खेर हम खाना खाने लगे और अभी हमने शुरू ही किया था की नेहा वहाँ आ गई और मेरे पास बैठ गई| अक्सर मैं और नेहा साथ ही भोजन करते थे या फिर मैं उसे भोजन करा कर खता था, इसलिए उसे इस बात की आदत थी| मैंने एक कौर नेहा की ओर बढ़ाया ओर भौजी उसे आँख दिखा के मना करने लगी| मैंने उनकी ये हरकत पकड़ ली;
मैं: क्यों डरा रहे हो मेरी बेटी को?
भौजी: नहीं तो..आप खाना खाओ, इसे मैं खिला दूँगी|
मैं: कल तक तो ये मेरे साथ खाती आई है तो आज आप इसे खिलाओगे? आओ बेटा...चलो मुँह खोलो... और मम्मी की तरफ मत देखो|
भौजी: क्यों बिगाड़ रहे हो इसे?
मैं: मैं इसे बिगाड़ूँ या कुछ भी करूँ...आपको इससे क्या?
भौजी कुछ नहीं बोलीं पर सुनीता को ये बात अवश्य खटकी;
सुनीता: भाभी..आप बुरा ना मानो तो मैं एक बात पूछूं?
भौजी: हाँ पूछो!
सुनीता: बेटी ये आपकी है...और दुलार इसे मानु जी करते हैं ...वो भी इस परिवार में सब से ज्यादा| जब से आई हूँ मैं देख रही हूँ की नेहा इन से बहत घुल-मिल गई है... मतलब आमतौर पे बच्चे चाचा से या किसी से इतना नहीं घुल्ते०मिल्ते जितना नेहा घुली-मिली है| प्लीज मुझे गलत मत समझना ...मैं कोई सज=हिकायत नहीं कर रही बस पूछ रही हूँ|
भौजी: दरअसल....
मैं: प्लीज.... Leave this topic here ! I don’t want to you guys to chit-chat on it.
बस इतना कह के मैं खाने से उठ गया| भौजी और सुनीता दोनों ने बहुत मानाने की कोशिश की पर मन नहीं माना और बाहर चला गया| एक तो पहले से ही सुनीता को स्पेशल ट्रीटमेंट दिए जाने से दिम्माग में उथल-पुथल मची थी और ऊपर से उसे भी यही टॉपिक छेड़ना था? मैंने हाथ-मुँह धोये और कुऐं की मुंडेर पर बैठ गया| कुछ समय बाद नेहा, भौजी और सुनीता तीनों बाहर निकले...मैं नहीं जानता दोनों क्या बात कर रहे थे पर तीनों मेरी ही ओर आ रहे थे| इससे पहले वो लोग मेरे पास पहुँचते मैं अकड़ दिखाते हुए खेतों की ओर चला गया| हमारे खेतों की मेढ पर एक आम का पेड़ था मैं उसी के नीचे बैठा सोच रहा था|
तभी वहाँ सुनीता आ गई और मेरे सामने खड़ी हो गई|
सुनीता: Wow! You actualy Love her (Neha)!
मैं: What?
सुनीता: आपकी भाभी ने मुझे सब बता दिया है|
मैं: सब?
सुनीता: हाँ... की आप नेहा को कितना प्यार करते हो? घर में कोई नहीं जो उसे इतना प्यार करे...यहाँ तक की उसके अपने पापा भी उसे वो प्यार नहीं देते जो आप देते हो| इसीलिए वो आपसे वही दुलार पाती है जो उसके पापा को करना चाहिए था| सच कहूँ तो जब मुझे पता चला की आप और आपकी भाभी अयोध्या में फंस गए हैं तो मैं घबरा गई थी| फिर पता चला की आप लोग सही सलामत घर आ गए हैं, तब जाके दिल को ठंडक पहुँची| इस सब का असली श्रेय आपको जाता है|
मैं: ऐसा कुछ भी नहीं है... अभी ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो आपको नहीं पता| मैंने कोई हीरो बनने वाला काम नहीं किया...बस वही किया जो मुझे करना चाहिए था|
सुनीता: But for us you’re a Hero.
मैं: That’s the worst part. Anyways… I don’t wanna talk about this. Let’s continue our studies.
सुनीता: आप में यही तो खूबी है की आप अपनी बढ़ाई नहीं सुन्ना चाहते|
मैं: शायद|
मैंने बात को वहीँ छोड़ दिया और हम वापस पढ़ाई करने बैठ गए| मन ही मन मुझे ऐसा लगा की भौजी ने खाना नहीं खाया होगा और इसलिए मैं सुनीता को बाथरूम जाने का बहाना मार के बाहर आ गया| भौजी को ढूंढा तो वो अपने घर में चारपाई पर लेटीं थीं|
मैं: आपने खाना खाया?
भौजी ने ना में सर हिलाया|
मैं: क्यों?
भौजी: क्योंकि आपने नहीं खाया|
मैं: ओके मुझे माफ़ कर दो... दरअसल मैं नहीं चाहता ता की आप उस बात का कोई जवाब दो, और फिर फिर भी आपने उसे सारी बात दी|
भौजी: हाँ पर आपके और मेरे रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बताया?
मैं: पर आपको बताने की क्या जर्रूरत थी.. वो शहर में पढ़ी है और जर्रूरत से ज्यादा समझदार भी ऐसे में आपका उसे ये सब कहना ठीक नहीं था और मैं नहीं चाहता की कोई मेरी बेटी पे तरस खाए|
भौजी: मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा|
मैं: (कुछ देर छुप रहने के बाद) आपका मूड क्यों खराब है? मैं आपसे बस थोड़ा मजाक कर रहा था...आपको जल रहा था..बस| हम दोनों के बीच में कछ भी नहीं है|
भौजी: जानती हूँ!... इतना तो भरोसा है मुझे आप पर| मगर...
मैंने मन ही मन सोचा की जो डर मुझे सता रहा था वो कहीं सही न निकले और सस्पेंस तब और बढ़ गया जब भौजी ने बात आधी छोड़ दी|
मैं: Hey ! आप सोये नहीं अभी तक?
भौजी ने ना मैं सर हिलाया| मैं भी उकड़ूँ हो के उनके सामने बैठ गया|
मैं:OK बाबा! अब छोडो ना!
भौजी अब भी कुछ नहीं बोलीं|
मैं: अच्छा बाबा अब मैं ऐसा क्या करूँ की आप खुश हो जाओ|
भौजी: कुछ नहीं...आप सो जाओ... मैं भी जाती हूँ|
उनका जवाब बड़ा उकड़ा हुआ था, मानो वो मुझे नींद से जगाने के लिए खुद को कोस रहीं हों| भौजी उठीं और पलट के जाने लगीं तो मैंने उनका हाथ थाम लिया और उनको अपनी ओर खींचा| अब वो मुझसे बिलकुल सट के खड़ीं थीं|
मैं: देखो...बड़के दादा ने जो कहा उसे दिल से मत लगाओ| वो नहीं जानते की मेरी रूह पर सिर्फ ओर सिर्फ आपका ही हक़ है|
भौजी: नहीं... मुझे आपको नहीं उठाना चाहिए था|
मैं: हमारे बीच में कब से फॉर्मेल्टी आ गई? इसका मतलब की अगर मुझे रात को कुछ हो जाए तो मैं आपको उठाऊँ ही ना... क्योंकि आपकी नींद टूट जायेगी|
भौजी: नहीं.. नहीं... आपको जरा सी भी तकलीफ हो तो आप मुझे आधी रात को भी उठा सकते हो|
मैं: वाह! मैं आपको आधी रात को भी उठा सकता हूँ और आप मुझे रात दस बजे भी नहीं उठा सकते? Doesn’t make sense!
भौजी मेरी बात समझ चुकीं थीं और उन्होंने मुझे आगे बढ़ के kiss किया! पर मन जानता था की उनका मन अभी भी शांत नहीं है| इसलिए मैंने उनका हाथ पकड़ा और एक बार बहार से अंदर झाँका और देखा की कोई हमारी बातें सुन तो नहीं रहा| फिर मैंने उनका हाथ पकड़ा और खींच के बड़े घर के पीछे ले गया| कुछ देर पहले उनका भी मन था और मेरा भी... !! वहां ले जाके मैंने उन्हें दिवार के सहारे खड़ा किया और उन्हीने ताबड़तोड़ तरीके से चूमने लगा| भौजी की सांसें एज हो चलीं थीं परन्तु मेरा खुद पे काबू था| उन्हें चूमने के बाद मैंने उनकी साडी उठाई और मैं उसके अंदर घुस के घुटनों के बल बैठ गया और उनकी योनि को अपनी जीभ से कुरेदने लगा| जैसे ही मेरी जीभ की नोक ने उनकी योनि के कपालों को छुआ, भौजी के मुँह से लम्बी सी सिसकारी छूट गई; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स..अह्ह्हह्ह्ह्ह"| हाथों का प्रयोग न करते हुए मैंने उनकी योनि के द्वारों को अपनी जीभ की मदद से कुरेद के खोला और उनकी योनि में अपनी जीभ घुसा दी| भौजी की योनि अंदर से गर्म थी और उनका नमकीन रस जीभ पर घुलने लगा| मैं बिना जीभ को हिलाय ऐसे ही उनकी योनि में जीभ डाले मिनट भर बैठा रहा और इधर भौजी ने अपनी कमर हिलाके मेरी जीभ को अपनी योनि में अंदर बाहर करना शुरू का दिया; और “अह्ह्ह...अह्ह्ह..अंह्ह्ह” का शोर मचा दिया| परन्तु वो थकीं हुई थीं और ज्यादा देर तक कमर न हिला सकीं| करीब दस बार में ही वो थक गईं और फिर से दिवार की टेक लेके खड़ी हो गईं| अब मेरी बारी थी, मैंने जीभ को जितना अंदर दाल सकता था उतना अंदर डाला और जीभ को रोल करके बाहर लाया| इस हरकत ने भौजी को पंजों पे खड़ा कर दिया और उन्होंने अपने हाथ के बल से मेरा सर अपनी योनि पे दबा दिया| साफ़ संकेत था की उन्हें बहुत मजा आ रहा है| मैंने उसी प्रकार उनकी योनि के रस को पीना शुरू कर दिया| मैं अपनी जीभ को रोल करके खोलता हुआ उनकी योनि में प्रवेश करा देता और फिर से अंदर से बाहर की ओर रोल करता हुआ बाहर ले आता| भौजी बार-बार अपने पंजों पे उछलने लॉगिन थीं और अब ज्यादा समय नहीं था मेरे पास वरना घरवाले हम पे शक करते! इसलिए मैंने ये खेल छोड़ दिया और जीभ को तेजी से अंदर बाहर करने लगा..उनके "Clit" को चाटने-चूसने लगा..हलका-हल्का दाँतों से दबाने लगा| उनकी योनि के कपालों को मुँह में भर के खींचने लगा और भौजी चरमोत्कर्ष पर पहुँच ने ही वालीं थीं की मैंने अपनी जीभ को उनकी योनि में फिर से प्रवेश करा के अंदर से उनकी योनि को गुदगुदाने लगा| भौजी ने पूरी कोशिश की कि वो अपनी योनि से मेरी जीभ पकड़ लें पर जीभ इतनी मोती नहीं थी कि उनकी योनि कि पकड़ में आ जाए और इसी आनंद में भौजी ने अपना हाथ मेरे सर पे रखा और अपनी कमर को हिलाते हुए झड़ने लगीं| भौजी ने अपने रास को बिना रोके छोड़ दिया और वो मेरे मुँह में समाने लगा और काफी कुछ तो मेरे होठों से बाहर छलक के नीचे भी गिरने लगा| जब उनका झरना बंद हुआ तब मैं उनकी साडी के अंदर से निकला और वापस खड़ा हुआ| मेरे होठों के इर्द-गिर्द भौजी के रास कि लकीरें अब भी बानी हुई थीं जिसे भौजी ने अपने पल्लू से साफ किया| मैंने एक लम्बी सांस छोड़ी और भौजी कि ओर देखा तो वो संतुष्ट लग रहीं थीं|
जब दोनों कि साँसें ओर धड़कनें सामान्य हुईं तब मैंने उनसे कहा;
मैं: अब तो आप खुश हो?
भौजी: हाँ...
मैं: तो चलें?
भौजी: कहाँ?
मैं: सोने... और कहाँ|
भौजी: नहीं...आपने मुझे तो संतुष्ट कर दिया पर आप अभी संतुष्ट नहीं हो!
मैं: आप खुश तो मैं खुश! अब चलो जल्दी वरना कोई हमें ढूंढता हुआ यहाँ आ जायेगा!
भौजी: आप हमेशा ऐसा क्यों करते हो? मेरी ख़ुशी पहले देखते हो पर मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है आपके प्रति?
मैं: जर्रूर बनता है...पर इस समय आपको प्यार कि ज्यादा जर्रूरत थी| आपका मन उदास था इसलिए मैंने.... (मैं बात को अधूरा छोड़ दिया|)
भौजी: पर इन जनाब का क्या? (उन्होंने मेरी पेंट में उठे उभार की ओर इशारा करते हुए कहा|)
मैं: ये थोड़ी देर में शांत हो जायेगा|
भौजी: पर मुझे ये अच्छा नहीं लगता की आप मेरी ख़ुशी के लिए इतना कुछ करते हो ओर बदले में अगर मैं आपको कुछ देना चाहूँ तो आप कुछ भी नहीं लेते?
मैं: मैं कोई सौदागर नहीं हूँ जो आपकी ख़ुशी के बदले आपसे कुछ माँगू|
भौजी: हाय! कितनी खुश नसीब हूँ मैं जिसे आप जैसा पति मिला| ओर एक बात कहूँ जानू...जब आप इस तरह से पेश आते हो ना तो मन करता है की आपके साथ कहीं भाग जाऊँ|
मैं: मैं तो कब से तैयार हूँ....आप ही नहीं मानते| खेर.. अब चलो रात बहुत हो रही है ओर सुबह आपको उठना भी है|
भौजी: पर प्लीज let me try once!
मैं: देखो अभी समय नहीं है हमारे पास| इतनी जल्दी कुछ नहीं हो पायेगा आपसे!
भौजी: मैं कर लूँगी (इतना कह के उन्होंने मेरे लंड को पेंट की ऊपर से पकड़ लिया|
मैं: अगर नेहा जाग गई और मुझे अपने पास नहीं पाया तो फिर से रोने लग जाएगी|
भौजी: Next time आपने ऐसा किया ना तो मैं आपसे कभी बात नहीं करुँगी|
मैं: ठीक है ... बाबा अब जल्दी से मुस्कुरा दो ताकि मैं चैन से सो सकूँ|
भौजी मुस्कुराईं और आगे बढ़ के मुझे Kiss किया और फिर मैंने उन्हें बड़े घर के दरवाजे पे छोड़ा और वहीँ खड़ा रहा जबतक उन्होंने दरवाजा अंदर से बंद नहीं कर लिया| फिर मैंने हाथ-मुँह धोया और अपनी जगह आके नेहा के पास लेट गया|
सुबह मैं जान बुझ के जल्दी उठ गया वरना बड़के दादा भौजी को मेरी नींद तोड़ने के लिए फिर से डांटते|
भौजी: आप इतनी जल्दी क्यों उठ गए?
मैं: ऐसे ही.. माँ कह रहीं थी की जल्दी उठना चाहिए|
भौजी: जानती हूँ आप जल्दी क्यों उठे हो, ताकि मुझे पिताजी से डाँट न पड़े| आप सो जाओ...कोई कुछ नहीं कहेगा|
मैं: नहीं...अब नींद नहीं आएगी|
भौजी: क्यों जूठ बोल रहे हो आप| आपकी आँखें ठीक से खुल भी नहीं रही|
मैं: वो नहाऊँगा तो अपने आप खुल जाएगी... और रही बात नींद पूरी करने की तो वो मैं दोपहर में कर लूँगा|
खेर आज का दिन कुछ अलग ही था...सुबह से ही घर में बहुत चहल कदमी थी| पता नहीं क्या कारन था...मेरे पूछने पर भी किसी ने कुछ नहीं बताया| यहाँ तक की भौजी को भी इस बारे में कुछ नहीं पता था| मैं नाहा-धो के तैयार हुआ..और चूँकि आज संडे था तो नेहा मेरे पास अपनी किताब लेके आ गई|
उसकी किताब में बहुत से रंग-बिरंगे चित्र थे जैसे की छोटे बच्चों की किताबों में होते हैं| उसकी alphabets (वर्णमाला) की किताब सबसे ज्यादा रंगीन थी| मैं नेहा को A B C D पढ़ाने लगा, दरअसल मैं और नेहा बड़े घर के आँगन में बैठे थे और हमारी पीठ दरवाजे की ओर थी| इतने में भौजी चाय ले के आईं और मेरी ओर ट्रे बढ़ाते हुए बड़ी उखड़ी आवाज में बोलीं;
भौजी: आपसे मिलने कोई आया है!
मैंने आँखों की इशारे से पूछा की कौन है तो उन्होंने आँखों के इशारे से ही पीछे मुड़ने को कहा| जब मैं पीछे मुड़ा तो देखा वहां सुनीता खड़ी है| आज उसने पीले रंग का सूट पहना था ओर हाथ में किताबें थीं|
सुनीता: जब मेरे घर आये थे तो मुझे पड़ा रहे थे... और यहाँ इस छोटी सी बच्ची को पढ़ा रहे हो! क्या पढ़ाना आपकी हॉबी है?
मैं: (हँसते हुए) यही समझ लो ... अब आपकी हॉबी है गाना और गाना किसे पसंद नहीं पर पढ़ाना सब को पसंद नहीं है| कुछ तो चीज uncommon है हम में!
भौजी ने अपनी भौं को चाढ़ाते हुए मुझे देखा जैसे पूछ रही हो की ये सब क्या चल रहा है और मैं सुनीता की हॉबी के बारे में कैसे जानता हूँ|
मैं: ओह.. मैं तो आप दोनों का परिचय कराना ही भूल गया| ये हैं ....
सुनीता: (मेरी बात काटते हुए) आपकी प्यारी भौजी.. हम मिल चुके हैं... यही तो मुझे यहाँ लाईं....
मैं: ओह...
एक तरह से अच्छा हुआ की किसी ने दोनों का पहले ही परिचय करा दिया| क्योंकि मैं अब भौजी को भौजी नहीं कहता था...
मैं: तो बताइये कैसे याद आई हमारी?
इसके जवाब में उन्होंने एकाउंट्स की किताब उठा के मुझे दिखा दी| अब मेरा मन बहुत कर रहा था की मैं भौजी को थोड़ा चिडाऊं..तड़पाऊँ..जलाऊँ इसलिए मने आग में थोड़ा घी डाला|
मैं: (भौजी से) इनके लिए भी चाय लो दो!
भौजी ने मुझे घूर के देखा जैसे कह रहीं हो की क्या मैं इनकी नौकर हूँ पर जब उन्होंने मुझे मुस्कुराते हुए देखा तो मुझे जीभ चिढ़ा के चली गईं|
सुनीता मेरे सामने कुर्सी कर के बैठ गई और नेहा तो अपनी किताब के पन्ने पलट के देखने में लगी थी| सुनीता ने आगे बढ़ के उसके गालों को प्यार से सहलाया और बोली; "So Sweet !"| नेहा एक दम से मुझसे चिपट है और सुनीता से आँखें चुराने लगी|
मैं: बेटा... मैंने आपको क्या सिखाया था? चलो हेल्लो बोलो?
नेहा ने आँखें चुराते हुए हेल्लो कहा और फिर से मुझसे लिपट गई|
मैं: She’s very shy!
सुनीता: Yeah..I can understand that.
कुछ देर बाद भौजी आ गईं और सुनीता को चाय दे के जाने लगीं तभी उन्होंने देखा की हम पढ़ रहे हैं तो उन्होंने नेहा को अपने साथ चलने को कहा| मैं इस्पे भी चुटकी लेने से बाज नहीं आया;
मैं: कहाँ ले जा रहे हो नेहा को?
भौजी:खाना पकाने! (उन्होंने चिढ़ के जवाब दिया)
मैं: क्यों? बैठे रहने दो यहाँ...आपके पास होगी तो खेलती रहेगी|
भौजी: और यहाँ रहेगी तो आप दोनों को "अकेले: में पढ़ने नहीं देगी!
भौजी ने अकेले शब्द पे कुछ ज्यादा ही जोर डाला था| मतलब साफ़ था...वो भी मुझसे चुटकी लेने से बाज नहीं आ रहीं थीं| हमारी बात सुन सुनीता हंसने से खुद को रोक ना पाई और उसे हँसता देख भौजी जल भून के राख हो गईं और वहाँ से चली गईं|
सुनीता ने मुझे किताब खोल के दिखाई और अपने सवाल पूछने लगी|
हम पढ़ाई कर रहे थे...वाकई में पढ़ाई ही कर रहे थे ..तभी वहाँ बड़की अम्मा और माँ आ गए|
बड़की अम्मा: अरे बेटा... भोजन का समय होने वाला है तो भोजन कर के ही जाना|
सुनीता: आंटी... मतलब अम्मा...वो मैं...
माँ: नहीं बेटा...खाना खा के ही जाना|
सुनीता: जी!
अब खाने का समय हुआ तो हम दोनों का खाना परोस के बड़े घर ही भेज दिया गया, और सबसे बड़ी बात खाना परोस के लाया कौन, "भौजी"!!! अब तो भौजी अंदर से जल के कोयला हो रहीं थीं और मुझे भी बहुत अटपटा से लग रहा था की आखिर मेरे घरवाले इस लड़की की इतनी खातिर-दारी क्यों कर रहे हैं?
सुनीता: अरे भाभी...आप क्यों भोजन ले आईं, हम वहीँ आ जाते|
मैं जानता था की यार अब अगर तूने आग में घी डाला तो तेरा तंदूरी बनना पक्का है, इसलिए मैं चुप-चाप था|
भौजी: (बड़े प्यार से बोलीं..हालाँकि मुझे ऐसा लगा की ये प्यार बनावटी था) आप हमारी मेहमान हैं और मेहमान की खातिरदारी की जाती है|
सुनीता उनकी बातों से संतुष्ट थी पर ना जाने क्यों मेरा मन भौजी की बातों का अलग ही मतलब निकाल रहा था| खेर हम खाना खाने लगे और अभी हमने शुरू ही किया था की नेहा वहाँ आ गई और मेरे पास बैठ गई| अक्सर मैं और नेहा साथ ही भोजन करते थे या फिर मैं उसे भोजन करा कर खता था, इसलिए उसे इस बात की आदत थी| मैंने एक कौर नेहा की ओर बढ़ाया ओर भौजी उसे आँख दिखा के मना करने लगी| मैंने उनकी ये हरकत पकड़ ली;
मैं: क्यों डरा रहे हो मेरी बेटी को?
भौजी: नहीं तो..आप खाना खाओ, इसे मैं खिला दूँगी|
मैं: कल तक तो ये मेरे साथ खाती आई है तो आज आप इसे खिलाओगे? आओ बेटा...चलो मुँह खोलो... और मम्मी की तरफ मत देखो|
भौजी: क्यों बिगाड़ रहे हो इसे?
मैं: मैं इसे बिगाड़ूँ या कुछ भी करूँ...आपको इससे क्या?
भौजी कुछ नहीं बोलीं पर सुनीता को ये बात अवश्य खटकी;
सुनीता: भाभी..आप बुरा ना मानो तो मैं एक बात पूछूं?
भौजी: हाँ पूछो!
सुनीता: बेटी ये आपकी है...और दुलार इसे मानु जी करते हैं ...वो भी इस परिवार में सब से ज्यादा| जब से आई हूँ मैं देख रही हूँ की नेहा इन से बहत घुल-मिल गई है... मतलब आमतौर पे बच्चे चाचा से या किसी से इतना नहीं घुल्ते०मिल्ते जितना नेहा घुली-मिली है| प्लीज मुझे गलत मत समझना ...मैं कोई सज=हिकायत नहीं कर रही बस पूछ रही हूँ|
भौजी: दरअसल....
मैं: प्लीज.... Leave this topic here ! I don’t want to you guys to chit-chat on it.
बस इतना कह के मैं खाने से उठ गया| भौजी और सुनीता दोनों ने बहुत मानाने की कोशिश की पर मन नहीं माना और बाहर चला गया| एक तो पहले से ही सुनीता को स्पेशल ट्रीटमेंट दिए जाने से दिम्माग में उथल-पुथल मची थी और ऊपर से उसे भी यही टॉपिक छेड़ना था? मैंने हाथ-मुँह धोये और कुऐं की मुंडेर पर बैठ गया| कुछ समय बाद नेहा, भौजी और सुनीता तीनों बाहर निकले...मैं नहीं जानता दोनों क्या बात कर रहे थे पर तीनों मेरी ही ओर आ रहे थे| इससे पहले वो लोग मेरे पास पहुँचते मैं अकड़ दिखाते हुए खेतों की ओर चला गया| हमारे खेतों की मेढ पर एक आम का पेड़ था मैं उसी के नीचे बैठा सोच रहा था|
तभी वहाँ सुनीता आ गई और मेरे सामने खड़ी हो गई|
सुनीता: Wow! You actualy Love her (Neha)!
मैं: What?
सुनीता: आपकी भाभी ने मुझे सब बता दिया है|
मैं: सब?
सुनीता: हाँ... की आप नेहा को कितना प्यार करते हो? घर में कोई नहीं जो उसे इतना प्यार करे...यहाँ तक की उसके अपने पापा भी उसे वो प्यार नहीं देते जो आप देते हो| इसीलिए वो आपसे वही दुलार पाती है जो उसके पापा को करना चाहिए था| सच कहूँ तो जब मुझे पता चला की आप और आपकी भाभी अयोध्या में फंस गए हैं तो मैं घबरा गई थी| फिर पता चला की आप लोग सही सलामत घर आ गए हैं, तब जाके दिल को ठंडक पहुँची| इस सब का असली श्रेय आपको जाता है|
मैं: ऐसा कुछ भी नहीं है... अभी ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो आपको नहीं पता| मैंने कोई हीरो बनने वाला काम नहीं किया...बस वही किया जो मुझे करना चाहिए था|
सुनीता: But for us you’re a Hero.
मैं: That’s the worst part. Anyways… I don’t wanna talk about this. Let’s continue our studies.
सुनीता: आप में यही तो खूबी है की आप अपनी बढ़ाई नहीं सुन्ना चाहते|
मैं: शायद|
मैंने बात को वहीँ छोड़ दिया और हम वापस पढ़ाई करने बैठ गए| मन ही मन मुझे ऐसा लगा की भौजी ने खाना नहीं खाया होगा और इसलिए मैं सुनीता को बाथरूम जाने का बहाना मार के बाहर आ गया| भौजी को ढूंढा तो वो अपने घर में चारपाई पर लेटीं थीं|
मैं: आपने खाना खाया?
भौजी ने ना में सर हिलाया|
मैं: क्यों?
भौजी: क्योंकि आपने नहीं खाया|
मैं: ओके मुझे माफ़ कर दो... दरअसल मैं नहीं चाहता ता की आप उस बात का कोई जवाब दो, और फिर फिर भी आपने उसे सारी बात दी|
भौजी: हाँ पर आपके और मेरे रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बताया?
मैं: पर आपको बताने की क्या जर्रूरत थी.. वो शहर में पढ़ी है और जर्रूरत से ज्यादा समझदार भी ऐसे में आपका उसे ये सब कहना ठीक नहीं था और मैं नहीं चाहता की कोई मेरी बेटी पे तरस खाए|
भौजी: मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा|
मैं: (कुछ देर छुप रहने के बाद) आपका मूड क्यों खराब है? मैं आपसे बस थोड़ा मजाक कर रहा था...आपको जल रहा था..बस| हम दोनों के बीच में कछ भी नहीं है|
भौजी: जानती हूँ!... इतना तो भरोसा है मुझे आप पर| मगर...
मैंने मन ही मन सोचा की जो डर मुझे सता रहा था वो कहीं सही न निकले और सस्पेंस तब और बढ़ गया जब भौजी ने बात आधी छोड़ दी|
-
- Platinum Member
- Posts: 1803
- Joined: 15 Oct 2014 22:49
Re: एक अनोखा बंधन
65
मैं: मगर क्या? Oh No..No..No… ये सब मेरी शादी का चक्कर तो नहीं?
भौजी कुछ नहीं बोलीं बस उनकी आँख से आंसूं की एक बूँद छलक के बाहर आई और बहती हुई उनके कानों तक चली गई|
मैं: मैं अभी पिताजी से बात करता हूँ|
भौजी: (सुबकते हुए) नहीं... प्लीज आपको ....
मैं: आपको पता है ना क्या होने जा रहा है और आप मुझे कसम देके रोक रहे हो?
भौजी: ये कभी न कभी तो होना ही था ना!
मैं: कभी होना था...अभी नहीं!
भौजी: क्या कहोगे पिताजी से? की मैं अपनी भौजी से प्यार करता हूँ और उनसे शादी करना चाहता हूँ|
मैं: हाँ
भौजी: और उसका अंजाम जानते हो ना?
मैं: हाँ ... वो हमें अलग कर देंगे|
भौजी: यही चाहते हो?
मैं: नहीं... पर अगर मैं उनसे सच नहीं बोल सकता तो कम से कम उन्हें कुछ सालों के लिए टाल अवश्य सकता हूँ| प्लीज मुझे अपनी कसम मत देना...आप नहीं जानते वो लड़की भी मुझसे शादी नहीं करना चाहती|
भौजी: क्या?
मैं: हाँ.. अयोध्या जाने से एक दिन पहले हम ठाकुर साहब के घर मिले थे और तब बातों-बातों में मुझे शक हुआ की कहीं यहाँ मेरे रिश्ते की आत तो नहीं चल रही और अपना शक मिटाने के लिए मैंने सुनीता से पूछा तो उसने मुहे कहा की वो ये शादी कतई नहीं करेगी|
भौजी मेरी बात से कुछ संतुष्ट दिखीं .... और मैंने ये सोचा की अभी मामला गर्म है और ऐसे में अगर मैंने हथोड़ा मारा तो कहीं बात बिगड़ ना जाये और वैसे भी मेरा मकसद था की पहले भौजी खाना खाएं क्योंकि व पेट से हैं| शायद भौजी को पता था की मैं उन्हें खाने के लिए अवश्य बोलने आऊंगा इसलिए उन्होंने पहले से ही खाना परोसा हुआ था जो खिड़की पर ढक के रखा हुआ था| मैंने थाली उठाई और उन्हें खाना खिलने लगा|भौजी ने मुझे भी खाना अपने हाथ से खिलाया और हुमा खाना खत्म होने ही जा रहा था की वहाँ नेहा और सुनीता आ गए|
सुनीता: हम्म्म … I knew there was something between you guys!
भौजी: Maybe you’re right. There’s something between us but that depends on who’s commenting on it. If you’re jealous you’ll call it an extra marital affair and you’ll go out screaming that these two are in relationship. But if you’re a true friend, which I think you’re then for you we’re just Good Friends!
भौजी की बात सुन के सुनीता एकदम से अवाक खड़ी उन्हें और मुझे घूरती रही| शायद उसने ये उम्मीद नहीं की थी की जो स्त्री साडी पहनती है और पहनावे में बिलकुल गाँव की गावरान लगती है वो इतनी फर्राटे दार अंग्रेजी कैसे बोल लेती है?
सुनीता: क्या आपने इन्हें अंग्रेजी बोलना.....
मैं: (उसकी बात काटते हुए) नहीं .. ये दसवीं तक पढ़ीं हैं उसके आगे नहीं पढ़ पाईं क्योंकि इनकी पढ़ाई छुड़ा दी गई|
सुनीता: भाभी I gotta say, I’m impressed!
भौजी: Thank You!
सुनीता: मैं वादा करती हूँ ये बात किसी को पता नहीं चलेगी|
भौजी: Appreciated !!!
खेर बात खत्म हुई और कुछ देर बाद सुनीता अपने घर चली गई|
शाम के पांच बजे ...और आज चाय रसिका भाभी ने बनाई थी| अब चूँकि मैं उनके हाथ का बना कुछ भी नहीं खाता था तो जब वो चाय लेके आईं तो भौजी का गुस्सा जिसे मैंने अपने प्यार से दबा रखा था फुट ही पड़ा;
भौजी: (गरजते हुए) तू....
मैं: (उनकी बात बीच में काटते हुए) प्लीज शांत हो जाओ .... आपको मेरी कसम!
भौजी: निकल जा और ले जा ये चाय... इन्होने अपनी कसम दे दी वरना आज तेरी खेर नहीं थी|
मैं कुछ नहीं बोला और सर झुका के बैठा हुआ था|
भौजी: आप क्यों सर खुका के बैठे हो?
मैं: मैं एक अच्छा पति नहीं साबित हो सका|
भौजी: क्या? ये आप क्या कह रहे हो?
मैं: मेरा फ़र्ज़ है की मैं आपको खुश रखूँ ... पर मेरी वजह से तो आप और तनाव में घिरते जा रहे हो|
भौजी: नहीं .... नहीं... ऐसा कुछ नहीं है| आप ने तो सच बता के मेरा भरोसा कायम रखा है|
मैं: खेर छोडो इस बात को... क्योंकि आप कभी भी नहीं मानोगे|
भौजी: इसलिए नहीं मानती क्योंकि आप गलत कह रहे हो| मेरी नजर में आप सबसे बेस्ट Father हो! नेहा आपका खून नहीं फिर भी उसे आप अपने बच्चे के जैसा ही चाहते हो!
मैं: ओह प्लीज! अब मेरा गुणगान बंद करो| मैं उसे प्यार करता हूँ पर शायद आपसे कम|
भौजी: आपको नहीं पता की आपकी इन्हीं आदतों से लोग मेरी किस्मत पर जलने लगते हैं|
मैं: ऐसा कौन है जो आपसे जलता है| सिवाय रसिका भाभी के!!!
भौजी: मेरी अपनी बहन शगुन! उसे हमारे बारे में ज्यादा तो नहीं पता पर हाँ जितना कुछ भी उसे भाई से पता चला उससे वो जली हुई है और उसे कहीं-कहीं बड़ा मजा भी आया|
मैं: तो आपको मेरे जरिये लोगों को जलाने में बड़ा मजा आता है?
भौजी: हाँ कभी-कभी!!! ही..ही..ही... लोगों को लगता है की कोई मुझे इतना प्यार करता है...
आग भौजी के कुछ कहने से पहले ही मैंने उनके होठों को चूम लिया|
भौजी: उम्म्म ...
मैं: अच्छा बस! अब मुझे पिताजी से बात करने जाने दो|
भौजी: प्लीज सम्भल के बात करना! कुछ ऐसा-वैसा मत बोलना.... और अगर वो जोर दें तो बात मन लेना!
मैं: वो तो नहीं हो सकता|
भौजी मुँह बनाने लगीं और मैं बाहर आके पिताजी को ढूंढने लगा| पिताजी भूसे वाले कमरे के बाहर चारपाई पे अकेले बैठे थे| मैं उनके पास पहुँचा और उनका चेहरा ख़ुशी से चमक रहा था| मन तो नहीं किया की उनकी ख़ुशी उनसे छें लूँ पर मैं भौजी के साथ धोका नहीं करना चाहता था| पता नहीं क्यों पर मेरे दिमाग में बस यही बात चल रही थी| हालाँकि हमारे रिश्ते की परिभाषा ही इतनी अनोखी है की उसे सुनने वाला उसका कुछ अलग ही मतलब निकलेगा| जब मैं पिताजी के सामने चुप-चाप खड़ा अपने विचारों में गुम था तो पिताजी ने स्वयं ही मुझसे पूछा;
पिताजी: अरे भई लाड-साहब .. आओ-आओ बैठो!
मैं: जी आपसे कुछ पूछना था|
पिताजी: यही ना की आज सुनीता आई थी और..... (पिताजी ने बात अधूरी छोड़ दी)
मैं: जी... क्या आप लोग मेरी शादी की सोच रहे हैं?
पिताजी: हाँ बेटा... ठाकुर साहब ने तुम्हारी बड़ी तारीफ सुनी है और उन्होंने ही ये रिश्ता भेजा है| उस दिन जब तुम आये थे तब उन्होंने हमें इसी बात के लिए बुलाया था|
मैं: पर आप जानते हैं ना की मैं अभी और पढ़ना चाहता हूँ|
पिताजी: हाँ बेटा...और सुनीता भई अभी और पढ़ना चाहती है| ठाकुर साहब का कहना है की अभी रोका कर देते हैं! शादी जब दोनों की पढ़ाई पूरी हो जाएगी तब करेंगे|
मैं: पर आप जानते हैं की सुनीता भी शादी नहीं करना चाहती|
पिताजी: क्या?
मैं: जी... उस दिन मुझे शक हो गया था इसलिए मैंने सोचा की एक बार सुनीता से पूछूं की उसके मन में क्या है? कहीं वो भी तो माधुरी जैसी नहीं!
पिताजी: पर ठाकुर साहब ने तो हमें ये कहा की सुनीता इस शादी के लिए तैयार है और जबतक मानु हाँ नहीं कहता शादी नहीं होगी|
मैं: पिताजी...अब आप ही सोचिये की ये हमारे साथ ये दोहरा मापदंड क्यों अपना रहे हैं! उनकी खुद की लड़की शादी के लिए तैयार नहीं है और वो उसके साथ जबरदस्ती कर रहे हैं| और आप ये बताइये की आप उनके घर क्यों गए रिश्ते के लिए?
पिताजी: बेटा उन्होंने हमें एक खेत बेचने के लिए बुलाया था| बातों-बातों में उन्होंने शादी की बात छेड़ दी| पर हमने साफ़ कह दिया की लड़का अभी पढ़ रहा है और उसकी मर्जी के खिलाफ हम कुछ नहीं कर सकते| हालाँकि वो कह रहे थे की लड़का आपका है और ऐसे में मेरी मर्जी चलेगी पर इन दिनों में जो कुछ हुआ उससे हमें यकीन हैं की तुम कोई गलत फैसला नहीं करोगे| खेर हम घर में बात करते हैं इस मुद्दे पे|
प्याजी इतना कह के बड़के दादा को ढूंढते हुए खेतों की ओर चले गए|
मैंने अपनी तरफ से सारी बातें साफ़ कर दीं थीं और अब मन चैन की रहत ले सकता था परन्तु कहीं तो कुछ था जो अभी भी सही नहीं था..भौजी अब भी उतनी खुश नहीं थीं जितना मैं उन्हें पिछले कुछ दिनों से देख रहा था| आखिर किस की नजर लग गई थी हमारे प्यार को? ऐसा क्या करूँ की वो पहले की तरह खुश रहे?
रात होने लगी थी और भौजी रात्रि भोज का प्रबनध करने में लगीं थीं| खाना बन गया र जब खाने की बारी आई तो हालांकि मेरा मन नहीं था खाने का परन्तु पिताजी के दबाव में भोजन करने बैठ ही गया| जब भोजन के दौरान सुनीता और मेरी शादी के मसले पर ही बात चल रही थी| आखरी फैसला ये हुआ की अबकी बार ठाकुर साहब यहाँ आएंगे और सारी बातें साफ़ करेंगे जिसमें सुनीता का मर्ज़ी शामिल होगी| आखरी फ़ासिला मुझ पे छोड़ा गया की जैसा मैं ठीक समझूँगा वही होगा| भोजन करके उठा तो दिल ने कहा की भौजी खाना नहीं खानेवाली और हुआ भी यही| मैं भोजन के उपरान्त तख़्त पे बैठ हुआ था और नेहा मेरे पास ही बैठी हुई थी| भौजी सब का खाना परोस के चली गईं, जब अम्मा ने उनसे खाने को कहा तो उन्होंने कह दिया की वो बाद में खा लेंगी| आखिर मुझे उनको कैसे भी खाना खिलाना था तो मैं ही उनके पास उनके घर में गया;
मैं: तो मलिकाय हुस्न .. आज खाना नहीं खाना है? (मैंने माहोल को थोड़ा हल्का करना चाहा|)
भौजी: भूख नहीं है!
मैं: अब आप क्यों दुखी हो? मैं शादी नहीं कर रहा!
भौजी: आज नहीं तो कल तो होगी ही!
मैं: कल की चिंता में आप अपना आज खराब करना चाहते हो? कम से कम हम आज तो खुश हैं...
भौजी: पर कल का क्या?
मैं: अगर आपको कल की ही चिंता करनी थी तो क्यों नजदीक आय मेरे? आप जानते थे न की हमारे रिश्ते में हम कल के बारे में नहीं सोच सकते? क्यों आने दिया मुझे खुद के इतना नजदीक की आपके खाना ना खाने से मुझपे क़यामत टूट पड़ी है|
मेरी बातें उन्हें चुभी अवश्य होंगी पर भौजी कुछ नहीं बोलीं और ना ही रोईं|
मैं: ठीक है...जैसी आपकी मर्जी हो वैसा करो... पर हाँ ये याद रखना की एक जिंदगी और भी आपसे जुडी है!
मैं जानता था की अगर मैंने इन्हें कसम से बाँध भी दिया तो भी ये बेमन से खाना तो खा लेंगी पर इनके चेहरे पे वो ख़ुशी कभी नहीं आएगी जो मैं देखना चाहता था| पर दिल कह रहा था की भौजी खाना खा लेंगी! मैं बाहर आया और अम्मा से कहा;
मैं: अम्मा...आप खाना परोस दो! मैं रख आता हूँ अगर मन किया तो खा लेंगी|
बड़की अम्मा: मुन्ना... तुम बोलो उसे वो जर्रूर मान जाएगी| तुम्हारी बात नहीं टालेगी!
मैं: जानता हूँ अम्मा पर मुझे नहीं पता की आखिर उन्हें दुःख क्या है? और मेरे कहने से वो खाना खा लेंगी पर खुश नहीं रहेंगी! और इस समय उनका खुश रहना ज्यादा जर्रुरी है|
मैंने थाली को ढका और उनके कमरे में स्टूल के ऊपर रख दिया और चुप-चाप वापस आ गया| नेहा को कहानी सुनाई और वो सो गई... पर मैं सो ना सका| करवटें बदलता रहा पर दिल को चैन कहाँ?
हार के मैं उठ के बैठ गया और गंभीर मुद्रा में सर झुका के सोचने लगा| दिमाग में केवल भौजी की तस्वीर थी…. वही उदास तस्वीर!!! करीब दस बजे भौजी के घर का दरवाजा खुला और भौजी बाहर निकलीं ... उनके हाथ में थाली थी... को अब खाली थी| मतलब कम से कम उन्होंने खाना तो खा लिया था| भौजी थाली रख के मेरे पास आईं;
भौजी: मैंने खाना खा लिया!
मैं: Good !
भौजी: अब आप क्यों उदास हो?
मैं: "बाहार ने फूल से पूछा की; तू क्यों खामोश है? जवाब में फूल ने बाहार से कहा क्योंकि फ़िज़ा उदास है!"
मेरी इस बात का मतलब भौजी समझ चुकीं थी की मेरी उदासी का कारन उनका उदास रहना है| भौजी खड़ी होक मुझे देखती रहीं और फिर मेरा हाथ पकड़ के अंदर घर में ले आईं और दरवाजा बंद कर दिया|
भौजी: जानू.... आप मुझसे इतना प्यार क्यों करते हो! मेरे खाना ना खाने से...खामोश रहने से आप उखड क्यों जाते हो?
मैं: मैं खुद नहीं जानता की मैं आपको इतना टूट के क्यों प्यार करता हूँ!
मैंने अपनी बाहें फैला के उन्हें गले लगना चाहा और भौजी भी मुझसे लिपट के मेरे सीने में सिमट गईं| उनके गले लगने से जो एहसास हुआ उसे व्यक्त करना संभव नहीं है| पर हाँ एक संतुष्टि अवश्य मिलीं की अब उनके मन में कोई चिंता या द्वेष नहीं है|मैंने उनके सर को चूमा और उन्हें खुद से अलग किया और लेटने को कहा| भौजी लेट गईं और मैं भी उनकी बगल में लेट गया| उन्होंने फिर से मेरे दाहिने हाथ को अपना तकिया बनाया और मुझसे लिपट के बोलीं;
भौजी: कल रात जब मेरा मन खराब था तो आपने मेरा ख़याल रखा था... हालाँकि मेरी उदासी का कारन आप नहीं थे पर फिर भी आपने मेरा ख़याल रखा| पर आज मैं आपकी वजह से उदास नहीं थी बस इस वजह से उदास थी की मैं आपको खो दूँगी... पर आपका कहना की हमें कल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्या इसका मतलब ये है की आपकी शादी के बाद भी आप मुझे उतना ही प्यार करोगे जितना अभी करते हो?
मैं: अगर शादी के बाद भी मैं आपको उतना ही प्यार करूँगा तो क्या ये उस लड़की से धोका नहीं होगा? फिर भला मुझ में और चन्दर भैया क्या फर्क रह जायेगा? हाँ मेरे दिल में जो आपके लिए जगह है वो हमेशा बरक़रार रहेगी| मैं जितना प्यार नेहा से करता हूँ हमेशा करूँगा पर आप और मैं तब उतना नजदीक नहीं होंगे जितना अभी हैं|
भौजी: आपकी ईमानदारी मुझे पसंद आई... और सच कहूँ तो मुझे आपसे इसी जवाब की अपेक्षा थी|
मैं भौजी के बालों में हाथ फिरा रहा था और मुझे ऐसा लगा जैसे वो सो गईं हों| इसलिए मैंने धीरे से अपना हाथ उनके सर के नीचे से निकाला| जब मैं उठ के जाने लगा तो उन्होंने मेरी बांह पकड़ ली और बोलीं;
भौजी: जा रहे हो?
मैं: हाँ....
भौजी: आप कुछ भूल नहीं रहे?
मैं: याद है!
उनका इशारा Good Night Kiss से था| मैंने उनके होठों को चूमा और उठने लगा|
भौजी: नहीं ये नहीं .... और भी कुछ था!
मैं: क्या?
भौजी: अगर आप मेरी उदासी का इलाज कर सकते हो तो मैं क्यों नहीं?
मैं: पर मैं उदास नहीं हूँ|
भौजी: खाओ अपने बच्चे की कसम|
ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरा हाथ अपनी कोख पे रख दिया| मैं जूठी कसम नहीं खा सकता था इसलिए चुप था| मेरी उदासी का कारन शादी था| मैं इस बात को भूल ही गया था की शादी के बाद में उस लड़की के साथ कैसे एडजस्ट करूँगा? कैसे भूल पाउँगा की भौजी अब भी मेरा इन्तेजार कर रहीं हैं? भले ही वो मुंह से ना बोलें पर मैं तो जानता ही हूँ की उनका मन क्या चाहता है? इसका एक मात्र इलाज था की मैं उन्हें भगा के ले जाऊँ! पर क्या मैं उनकी और नेहा की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूँ? और उस बच्चे का क्या जो अभी इस दुनिया में आने वाला है?
मैं: हाँ मैं उदास हूँ!
मैंने हाथ भौजी की कोख से उठाया और मैंने बहुत कोशिश की कि मैं अपनी ये उधेड़-बुन उनसे छुपा सकूँ इसलिए मैंने उन्हें जूठ बोल दिया की आज मेरे उदास रहने का कारन, आपके चेहरे पे वो मुस्कान का ना होना है जो पहले हुआ करती थी|
भौजी: अब आपकी उदासी का कारन मैं हूँ तो मेरा फ़र्ज़ है की मैं आपका ख़याल रखूं|
मैं: नहीं... उसकी जर्रूरत नहीं है| आपकी एक मुस्कान मेरी दासी गायब करने के लिए काफी है|
भौजी: क्यों जर्रूरत नहीं? आप मेरी इतनी चिंता करते हो... मेरे लिए इतना कुछ करते हो तो क्या मेरा मन यहीं करता की मैं भी आपको उतना ही प्यार दूँ|
मैं: पर मैंने कब कहा की...
भौजी: (बीच में बात काटते हुए... और अपना पूरा हक़ जताते हुए) पर वर कुछ नहीं| मैंने आपसे आपकी इज्जाजत नहीं माँगी है| चलिए आप मेरे पास लेटिए?
मैं अब और क्या कहता.... लेट गया उनकी बगल में और जानता था की आगे वो क्या करने वाली हैं|
मैं: मगर क्या? Oh No..No..No… ये सब मेरी शादी का चक्कर तो नहीं?
भौजी कुछ नहीं बोलीं बस उनकी आँख से आंसूं की एक बूँद छलक के बाहर आई और बहती हुई उनके कानों तक चली गई|
मैं: मैं अभी पिताजी से बात करता हूँ|
भौजी: (सुबकते हुए) नहीं... प्लीज आपको ....
मैं: आपको पता है ना क्या होने जा रहा है और आप मुझे कसम देके रोक रहे हो?
भौजी: ये कभी न कभी तो होना ही था ना!
मैं: कभी होना था...अभी नहीं!
भौजी: क्या कहोगे पिताजी से? की मैं अपनी भौजी से प्यार करता हूँ और उनसे शादी करना चाहता हूँ|
मैं: हाँ
भौजी: और उसका अंजाम जानते हो ना?
मैं: हाँ ... वो हमें अलग कर देंगे|
भौजी: यही चाहते हो?
मैं: नहीं... पर अगर मैं उनसे सच नहीं बोल सकता तो कम से कम उन्हें कुछ सालों के लिए टाल अवश्य सकता हूँ| प्लीज मुझे अपनी कसम मत देना...आप नहीं जानते वो लड़की भी मुझसे शादी नहीं करना चाहती|
भौजी: क्या?
मैं: हाँ.. अयोध्या जाने से एक दिन पहले हम ठाकुर साहब के घर मिले थे और तब बातों-बातों में मुझे शक हुआ की कहीं यहाँ मेरे रिश्ते की आत तो नहीं चल रही और अपना शक मिटाने के लिए मैंने सुनीता से पूछा तो उसने मुहे कहा की वो ये शादी कतई नहीं करेगी|
भौजी मेरी बात से कुछ संतुष्ट दिखीं .... और मैंने ये सोचा की अभी मामला गर्म है और ऐसे में अगर मैंने हथोड़ा मारा तो कहीं बात बिगड़ ना जाये और वैसे भी मेरा मकसद था की पहले भौजी खाना खाएं क्योंकि व पेट से हैं| शायद भौजी को पता था की मैं उन्हें खाने के लिए अवश्य बोलने आऊंगा इसलिए उन्होंने पहले से ही खाना परोसा हुआ था जो खिड़की पर ढक के रखा हुआ था| मैंने थाली उठाई और उन्हें खाना खिलने लगा|भौजी ने मुझे भी खाना अपने हाथ से खिलाया और हुमा खाना खत्म होने ही जा रहा था की वहाँ नेहा और सुनीता आ गए|
सुनीता: हम्म्म … I knew there was something between you guys!
भौजी: Maybe you’re right. There’s something between us but that depends on who’s commenting on it. If you’re jealous you’ll call it an extra marital affair and you’ll go out screaming that these two are in relationship. But if you’re a true friend, which I think you’re then for you we’re just Good Friends!
भौजी की बात सुन के सुनीता एकदम से अवाक खड़ी उन्हें और मुझे घूरती रही| शायद उसने ये उम्मीद नहीं की थी की जो स्त्री साडी पहनती है और पहनावे में बिलकुल गाँव की गावरान लगती है वो इतनी फर्राटे दार अंग्रेजी कैसे बोल लेती है?
सुनीता: क्या आपने इन्हें अंग्रेजी बोलना.....
मैं: (उसकी बात काटते हुए) नहीं .. ये दसवीं तक पढ़ीं हैं उसके आगे नहीं पढ़ पाईं क्योंकि इनकी पढ़ाई छुड़ा दी गई|
सुनीता: भाभी I gotta say, I’m impressed!
भौजी: Thank You!
सुनीता: मैं वादा करती हूँ ये बात किसी को पता नहीं चलेगी|
भौजी: Appreciated !!!
खेर बात खत्म हुई और कुछ देर बाद सुनीता अपने घर चली गई|
शाम के पांच बजे ...और आज चाय रसिका भाभी ने बनाई थी| अब चूँकि मैं उनके हाथ का बना कुछ भी नहीं खाता था तो जब वो चाय लेके आईं तो भौजी का गुस्सा जिसे मैंने अपने प्यार से दबा रखा था फुट ही पड़ा;
भौजी: (गरजते हुए) तू....
मैं: (उनकी बात बीच में काटते हुए) प्लीज शांत हो जाओ .... आपको मेरी कसम!
भौजी: निकल जा और ले जा ये चाय... इन्होने अपनी कसम दे दी वरना आज तेरी खेर नहीं थी|
मैं कुछ नहीं बोला और सर झुका के बैठा हुआ था|
भौजी: आप क्यों सर खुका के बैठे हो?
मैं: मैं एक अच्छा पति नहीं साबित हो सका|
भौजी: क्या? ये आप क्या कह रहे हो?
मैं: मेरा फ़र्ज़ है की मैं आपको खुश रखूँ ... पर मेरी वजह से तो आप और तनाव में घिरते जा रहे हो|
भौजी: नहीं .... नहीं... ऐसा कुछ नहीं है| आप ने तो सच बता के मेरा भरोसा कायम रखा है|
मैं: खेर छोडो इस बात को... क्योंकि आप कभी भी नहीं मानोगे|
भौजी: इसलिए नहीं मानती क्योंकि आप गलत कह रहे हो| मेरी नजर में आप सबसे बेस्ट Father हो! नेहा आपका खून नहीं फिर भी उसे आप अपने बच्चे के जैसा ही चाहते हो!
मैं: ओह प्लीज! अब मेरा गुणगान बंद करो| मैं उसे प्यार करता हूँ पर शायद आपसे कम|
भौजी: आपको नहीं पता की आपकी इन्हीं आदतों से लोग मेरी किस्मत पर जलने लगते हैं|
मैं: ऐसा कौन है जो आपसे जलता है| सिवाय रसिका भाभी के!!!
भौजी: मेरी अपनी बहन शगुन! उसे हमारे बारे में ज्यादा तो नहीं पता पर हाँ जितना कुछ भी उसे भाई से पता चला उससे वो जली हुई है और उसे कहीं-कहीं बड़ा मजा भी आया|
मैं: तो आपको मेरे जरिये लोगों को जलाने में बड़ा मजा आता है?
भौजी: हाँ कभी-कभी!!! ही..ही..ही... लोगों को लगता है की कोई मुझे इतना प्यार करता है...
आग भौजी के कुछ कहने से पहले ही मैंने उनके होठों को चूम लिया|
भौजी: उम्म्म ...
मैं: अच्छा बस! अब मुझे पिताजी से बात करने जाने दो|
भौजी: प्लीज सम्भल के बात करना! कुछ ऐसा-वैसा मत बोलना.... और अगर वो जोर दें तो बात मन लेना!
मैं: वो तो नहीं हो सकता|
भौजी मुँह बनाने लगीं और मैं बाहर आके पिताजी को ढूंढने लगा| पिताजी भूसे वाले कमरे के बाहर चारपाई पे अकेले बैठे थे| मैं उनके पास पहुँचा और उनका चेहरा ख़ुशी से चमक रहा था| मन तो नहीं किया की उनकी ख़ुशी उनसे छें लूँ पर मैं भौजी के साथ धोका नहीं करना चाहता था| पता नहीं क्यों पर मेरे दिमाग में बस यही बात चल रही थी| हालाँकि हमारे रिश्ते की परिभाषा ही इतनी अनोखी है की उसे सुनने वाला उसका कुछ अलग ही मतलब निकलेगा| जब मैं पिताजी के सामने चुप-चाप खड़ा अपने विचारों में गुम था तो पिताजी ने स्वयं ही मुझसे पूछा;
पिताजी: अरे भई लाड-साहब .. आओ-आओ बैठो!
मैं: जी आपसे कुछ पूछना था|
पिताजी: यही ना की आज सुनीता आई थी और..... (पिताजी ने बात अधूरी छोड़ दी)
मैं: जी... क्या आप लोग मेरी शादी की सोच रहे हैं?
पिताजी: हाँ बेटा... ठाकुर साहब ने तुम्हारी बड़ी तारीफ सुनी है और उन्होंने ही ये रिश्ता भेजा है| उस दिन जब तुम आये थे तब उन्होंने हमें इसी बात के लिए बुलाया था|
मैं: पर आप जानते हैं ना की मैं अभी और पढ़ना चाहता हूँ|
पिताजी: हाँ बेटा...और सुनीता भई अभी और पढ़ना चाहती है| ठाकुर साहब का कहना है की अभी रोका कर देते हैं! शादी जब दोनों की पढ़ाई पूरी हो जाएगी तब करेंगे|
मैं: पर आप जानते हैं की सुनीता भी शादी नहीं करना चाहती|
पिताजी: क्या?
मैं: जी... उस दिन मुझे शक हो गया था इसलिए मैंने सोचा की एक बार सुनीता से पूछूं की उसके मन में क्या है? कहीं वो भी तो माधुरी जैसी नहीं!
पिताजी: पर ठाकुर साहब ने तो हमें ये कहा की सुनीता इस शादी के लिए तैयार है और जबतक मानु हाँ नहीं कहता शादी नहीं होगी|
मैं: पिताजी...अब आप ही सोचिये की ये हमारे साथ ये दोहरा मापदंड क्यों अपना रहे हैं! उनकी खुद की लड़की शादी के लिए तैयार नहीं है और वो उसके साथ जबरदस्ती कर रहे हैं| और आप ये बताइये की आप उनके घर क्यों गए रिश्ते के लिए?
पिताजी: बेटा उन्होंने हमें एक खेत बेचने के लिए बुलाया था| बातों-बातों में उन्होंने शादी की बात छेड़ दी| पर हमने साफ़ कह दिया की लड़का अभी पढ़ रहा है और उसकी मर्जी के खिलाफ हम कुछ नहीं कर सकते| हालाँकि वो कह रहे थे की लड़का आपका है और ऐसे में मेरी मर्जी चलेगी पर इन दिनों में जो कुछ हुआ उससे हमें यकीन हैं की तुम कोई गलत फैसला नहीं करोगे| खेर हम घर में बात करते हैं इस मुद्दे पे|
प्याजी इतना कह के बड़के दादा को ढूंढते हुए खेतों की ओर चले गए|
मैंने अपनी तरफ से सारी बातें साफ़ कर दीं थीं और अब मन चैन की रहत ले सकता था परन्तु कहीं तो कुछ था जो अभी भी सही नहीं था..भौजी अब भी उतनी खुश नहीं थीं जितना मैं उन्हें पिछले कुछ दिनों से देख रहा था| आखिर किस की नजर लग गई थी हमारे प्यार को? ऐसा क्या करूँ की वो पहले की तरह खुश रहे?
रात होने लगी थी और भौजी रात्रि भोज का प्रबनध करने में लगीं थीं| खाना बन गया र जब खाने की बारी आई तो हालांकि मेरा मन नहीं था खाने का परन्तु पिताजी के दबाव में भोजन करने बैठ ही गया| जब भोजन के दौरान सुनीता और मेरी शादी के मसले पर ही बात चल रही थी| आखरी फैसला ये हुआ की अबकी बार ठाकुर साहब यहाँ आएंगे और सारी बातें साफ़ करेंगे जिसमें सुनीता का मर्ज़ी शामिल होगी| आखरी फ़ासिला मुझ पे छोड़ा गया की जैसा मैं ठीक समझूँगा वही होगा| भोजन करके उठा तो दिल ने कहा की भौजी खाना नहीं खानेवाली और हुआ भी यही| मैं भोजन के उपरान्त तख़्त पे बैठ हुआ था और नेहा मेरे पास ही बैठी हुई थी| भौजी सब का खाना परोस के चली गईं, जब अम्मा ने उनसे खाने को कहा तो उन्होंने कह दिया की वो बाद में खा लेंगी| आखिर मुझे उनको कैसे भी खाना खिलाना था तो मैं ही उनके पास उनके घर में गया;
मैं: तो मलिकाय हुस्न .. आज खाना नहीं खाना है? (मैंने माहोल को थोड़ा हल्का करना चाहा|)
भौजी: भूख नहीं है!
मैं: अब आप क्यों दुखी हो? मैं शादी नहीं कर रहा!
भौजी: आज नहीं तो कल तो होगी ही!
मैं: कल की चिंता में आप अपना आज खराब करना चाहते हो? कम से कम हम आज तो खुश हैं...
भौजी: पर कल का क्या?
मैं: अगर आपको कल की ही चिंता करनी थी तो क्यों नजदीक आय मेरे? आप जानते थे न की हमारे रिश्ते में हम कल के बारे में नहीं सोच सकते? क्यों आने दिया मुझे खुद के इतना नजदीक की आपके खाना ना खाने से मुझपे क़यामत टूट पड़ी है|
मेरी बातें उन्हें चुभी अवश्य होंगी पर भौजी कुछ नहीं बोलीं और ना ही रोईं|
मैं: ठीक है...जैसी आपकी मर्जी हो वैसा करो... पर हाँ ये याद रखना की एक जिंदगी और भी आपसे जुडी है!
मैं जानता था की अगर मैंने इन्हें कसम से बाँध भी दिया तो भी ये बेमन से खाना तो खा लेंगी पर इनके चेहरे पे वो ख़ुशी कभी नहीं आएगी जो मैं देखना चाहता था| पर दिल कह रहा था की भौजी खाना खा लेंगी! मैं बाहर आया और अम्मा से कहा;
मैं: अम्मा...आप खाना परोस दो! मैं रख आता हूँ अगर मन किया तो खा लेंगी|
बड़की अम्मा: मुन्ना... तुम बोलो उसे वो जर्रूर मान जाएगी| तुम्हारी बात नहीं टालेगी!
मैं: जानता हूँ अम्मा पर मुझे नहीं पता की आखिर उन्हें दुःख क्या है? और मेरे कहने से वो खाना खा लेंगी पर खुश नहीं रहेंगी! और इस समय उनका खुश रहना ज्यादा जर्रुरी है|
मैंने थाली को ढका और उनके कमरे में स्टूल के ऊपर रख दिया और चुप-चाप वापस आ गया| नेहा को कहानी सुनाई और वो सो गई... पर मैं सो ना सका| करवटें बदलता रहा पर दिल को चैन कहाँ?
हार के मैं उठ के बैठ गया और गंभीर मुद्रा में सर झुका के सोचने लगा| दिमाग में केवल भौजी की तस्वीर थी…. वही उदास तस्वीर!!! करीब दस बजे भौजी के घर का दरवाजा खुला और भौजी बाहर निकलीं ... उनके हाथ में थाली थी... को अब खाली थी| मतलब कम से कम उन्होंने खाना तो खा लिया था| भौजी थाली रख के मेरे पास आईं;
भौजी: मैंने खाना खा लिया!
मैं: Good !
भौजी: अब आप क्यों उदास हो?
मैं: "बाहार ने फूल से पूछा की; तू क्यों खामोश है? जवाब में फूल ने बाहार से कहा क्योंकि फ़िज़ा उदास है!"
मेरी इस बात का मतलब भौजी समझ चुकीं थी की मेरी उदासी का कारन उनका उदास रहना है| भौजी खड़ी होक मुझे देखती रहीं और फिर मेरा हाथ पकड़ के अंदर घर में ले आईं और दरवाजा बंद कर दिया|
भौजी: जानू.... आप मुझसे इतना प्यार क्यों करते हो! मेरे खाना ना खाने से...खामोश रहने से आप उखड क्यों जाते हो?
मैं: मैं खुद नहीं जानता की मैं आपको इतना टूट के क्यों प्यार करता हूँ!
मैंने अपनी बाहें फैला के उन्हें गले लगना चाहा और भौजी भी मुझसे लिपट के मेरे सीने में सिमट गईं| उनके गले लगने से जो एहसास हुआ उसे व्यक्त करना संभव नहीं है| पर हाँ एक संतुष्टि अवश्य मिलीं की अब उनके मन में कोई चिंता या द्वेष नहीं है|मैंने उनके सर को चूमा और उन्हें खुद से अलग किया और लेटने को कहा| भौजी लेट गईं और मैं भी उनकी बगल में लेट गया| उन्होंने फिर से मेरे दाहिने हाथ को अपना तकिया बनाया और मुझसे लिपट के बोलीं;
भौजी: कल रात जब मेरा मन खराब था तो आपने मेरा ख़याल रखा था... हालाँकि मेरी उदासी का कारन आप नहीं थे पर फिर भी आपने मेरा ख़याल रखा| पर आज मैं आपकी वजह से उदास नहीं थी बस इस वजह से उदास थी की मैं आपको खो दूँगी... पर आपका कहना की हमें कल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्या इसका मतलब ये है की आपकी शादी के बाद भी आप मुझे उतना ही प्यार करोगे जितना अभी करते हो?
मैं: अगर शादी के बाद भी मैं आपको उतना ही प्यार करूँगा तो क्या ये उस लड़की से धोका नहीं होगा? फिर भला मुझ में और चन्दर भैया क्या फर्क रह जायेगा? हाँ मेरे दिल में जो आपके लिए जगह है वो हमेशा बरक़रार रहेगी| मैं जितना प्यार नेहा से करता हूँ हमेशा करूँगा पर आप और मैं तब उतना नजदीक नहीं होंगे जितना अभी हैं|
भौजी: आपकी ईमानदारी मुझे पसंद आई... और सच कहूँ तो मुझे आपसे इसी जवाब की अपेक्षा थी|
मैं भौजी के बालों में हाथ फिरा रहा था और मुझे ऐसा लगा जैसे वो सो गईं हों| इसलिए मैंने धीरे से अपना हाथ उनके सर के नीचे से निकाला| जब मैं उठ के जाने लगा तो उन्होंने मेरी बांह पकड़ ली और बोलीं;
भौजी: जा रहे हो?
मैं: हाँ....
भौजी: आप कुछ भूल नहीं रहे?
मैं: याद है!
उनका इशारा Good Night Kiss से था| मैंने उनके होठों को चूमा और उठने लगा|
भौजी: नहीं ये नहीं .... और भी कुछ था!
मैं: क्या?
भौजी: अगर आप मेरी उदासी का इलाज कर सकते हो तो मैं क्यों नहीं?
मैं: पर मैं उदास नहीं हूँ|
भौजी: खाओ अपने बच्चे की कसम|
ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरा हाथ अपनी कोख पे रख दिया| मैं जूठी कसम नहीं खा सकता था इसलिए चुप था| मेरी उदासी का कारन शादी था| मैं इस बात को भूल ही गया था की शादी के बाद में उस लड़की के साथ कैसे एडजस्ट करूँगा? कैसे भूल पाउँगा की भौजी अब भी मेरा इन्तेजार कर रहीं हैं? भले ही वो मुंह से ना बोलें पर मैं तो जानता ही हूँ की उनका मन क्या चाहता है? इसका एक मात्र इलाज था की मैं उन्हें भगा के ले जाऊँ! पर क्या मैं उनकी और नेहा की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूँ? और उस बच्चे का क्या जो अभी इस दुनिया में आने वाला है?
मैं: हाँ मैं उदास हूँ!
मैंने हाथ भौजी की कोख से उठाया और मैंने बहुत कोशिश की कि मैं अपनी ये उधेड़-बुन उनसे छुपा सकूँ इसलिए मैंने उन्हें जूठ बोल दिया की आज मेरे उदास रहने का कारन, आपके चेहरे पे वो मुस्कान का ना होना है जो पहले हुआ करती थी|
भौजी: अब आपकी उदासी का कारन मैं हूँ तो मेरा फ़र्ज़ है की मैं आपका ख़याल रखूं|
मैं: नहीं... उसकी जर्रूरत नहीं है| आपकी एक मुस्कान मेरी दासी गायब करने के लिए काफी है|
भौजी: क्यों जर्रूरत नहीं? आप मेरी इतनी चिंता करते हो... मेरे लिए इतना कुछ करते हो तो क्या मेरा मन यहीं करता की मैं भी आपको उतना ही प्यार दूँ|
मैं: पर मैंने कब कहा की...
भौजी: (बीच में बात काटते हुए... और अपना पूरा हक़ जताते हुए) पर वर कुछ नहीं| मैंने आपसे आपकी इज्जाजत नहीं माँगी है| चलिए आप मेरे पास लेटिए?
मैं अब और क्या कहता.... लेट गया उनकी बगल में और जानता था की आगे वो क्या करने वाली हैं|