रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -39
गतान्क से आगे...
मेरे सास ससुर पहले ही स्वरगवसी हो चुके थे. पति देवेंदर गुजराँवाल का ट्रांसपोर्ट का बिज़्नेस है. हमारा मकान लुधियाना से कोई 25 किमी दूर सहर के बाहरी हिस्से मे बना है. शादी के बाद मैं इस मकान मे रहने आ गयी. बस हम दोनो ही रहते थे उस मकान मे. आस पास काफ़ी खाली जगह पड़ी थी. उस इलाक़े मे बस्ती काफ़ी कम थी इसलिए जब अकेले रहना पड़ता था तो काफ़ी डर महसूस होता था.
देव अक्सर बाहर रहते थे. मैं अकेली ही उस घर मे रहती थी. घर मे रोकने टोकने वाला कोई नही था. इसलिए मैं अपने हिसाब से ही रहती थी. शुरू से ही मैं कुच्छ खुले विचारों की थी उपर से शादी के बाद पहली पहली सेक्स की खुमारी. जब वो नही रहते थे तो मुझे अक्सर अपनी उंगलियों से ही काम चलाना पड़ता था. कभी कभी तो इतनी खुजली होती थी योनि मे की मैं अपने बाल नोचने लग जाती थी. जो भी मर्द मिले उससे अपनी वासना शांत कर लूँ.
तूने तो देख ही रखा है कि उपर वाले ने कोई संकोच नही किया है मुझे बनाने मे. जी भर कर खूबसूरती लुटाई है मुझ पर. जो भी देखता बस दीवाना बन जाता है मेरा. मुझे पाने के लिए मर्दों की लार टपकती रहती थी.
जब मैं पढ़ रही थी तो कॉलेज के काफ़ी लड़के मेरे पीछे पड़े रहते थे लेकिन मैने कभी किसी को पास आने नही दिया. मैने अपने जिस्म की आग को काफ़ी कंट्रोल कर रखा था. कई बार बस मे या भीड़ भाड़ मे कई लोगों ने किसी ना किसी बहाने से मेरे जिस्म को मसल दिया था. कई बार कोई मेरे नितंबों पर चिकोटी काट देता तो कभी कोई किसी बहाने मेरे स्तनो को दबा देता. मैं लोगों की ज़्यादतियाँ चुप चाप सह लेती थी.
तभी मेरी शादी तय हो गयी. देव लंबा चौड़ा और खूबसूरत आदमी है.
हम दोनो खूब संभोग किया करते थे. शादी के बाद तो काफ़ी दिनो तक हम दिन भर मे कुच्छ ही देर के लिए बेडरूम से निकलते थे. उनके ज़्यादा दोस्त नही थे. इसलिए किसी तरह की कोई बाधा नही थी. हम दोनो अपनी दुनिया मे ही मस्त रहते थे.
लेकिन धीरे धीरे हमारे संबंधों मे बासी पन आता गया. जो कि किसी भी रिश्ते मे धीरे धीरे आ ही जाता है. अब हमारे संभोग की फ्रीक्वेन्सी भी कम होती गयी. देव अक्सर काम के सील सिले मे बाहर ही रहने लगे. हमारा अभी तक कोई बच्चा नही हुया था.
देव जब घर मे रहते तो मुझे घर मे लगभग नंगी हालत मे रखते थे. ज़्यादा कपड़े पहनो तो वो नाराज़ हो जाते थे. कपड़े भी वो मुझे कुच्छ इस तरह के सिल्वा कर दिए थे जिससे आधा बदन दिखता रहता था.
उनको कपड़ों के अंदर से झँकता मेरा नग्न बदन निहारने मे मज़ा आता था. मुझे भी उन्हे सताने मे मज़ा आने लगा.
हम अपने संभोग क्रिया को गर्मी देने के लिए कई तरह की कोशिश करने लगे. हम अक्सर ब्लू फिल्म देखते. और जब उत्तेजित हो जाते तो जम कर संभोग करते. अक्सर हम तरह तरह के सिचुयेशन की कल्पना करते.
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
देव अक्सर मुझे किसी और मर्द के बारे मे सुना सुना कर मुझे चोद्ता. कई बार उसने इच्छा भी व्यक्त की हमारे बीच किसी तीसरे को शामिल किया जाय. इससे हमारे सेक्षुयल लाइफ मे एक नयी ताज़गी आ जाएगी. लेकिन मैं इस बारे मे उन्हे ज़्यादा लिफ्ट नही देती.
मैने एक बार उन्हे ये भी कह दिया की किसी महिला को सेट कर लो और हम तीनो एक साथ सेक्स का मज़ा लें. मगर देव की दिलचस्पी उसमे नही बल्कि किसी मर्द को शामिल करने मे थी. वो मुझे किसी और से चुदते हुए देखना चाहता था.
उसने अपने कई दोस्त के नाम भी सजेस्ट किए मगर मैने सॉफ इनकार कर दिया. जान पहचान मे इस तरह का संबंध जिंदगी मे जहर घोल देता है. देव ने मुझे किसी अपरिचित को हमारे बीच लाने की छ्छूट दे दी थी. मगर मैने उसके इस सजेशन को कभी सीरियस्ली नही लिया.
हां उनके ज़ोर देने पर मैं थोड़ा बहुत एक्सपोषर करने लगी. इसमे मुझे किसी तरह की बुराई नज़र भी नही आती थी. मेरा जिस्म सुन्दर और सेक्सी था अगर मैने अपने जिस्म की थोड़ी बहुत नुमाइश कर दी तो कौनसा किसी का बुरा कर दिया.
लोग मेरे उन्मुक्त योवन की एक झलक पाने के लिए लार टपकाते रहते थे. मर्दों का मेरे इर्द गिर्द भंवरों की तरह मंडराना मुझे अच्छा लगने लगा. देव मेरी डिमॅंड देख कर खुश होते थे.
वैसे इसमे कुच्छ दिक्कत भी नही थी मगर असली दिक्कत तो उनके नही रहने पर होती थी. उनकी अनुपस्थिति मे मैं उसी तरह के रिवीलिंग कपड़े पहनती तो कोई भी कहीं मुझे पकड़ कर रेप कर सकता था इसलिए उनके आब्सेन्स मे अपने कपड़ों का चयन बहुत सोच समझ कर करना पड़ता था.
जब वो बिज़्नेस के सिलसिले मे बाहर जाते तो मैं कई कई दिन अकेली घर मे रहती थी. उस वक्त मुझे मर्दों से बहुत डर लगता था और मैं बिना वजह के घर से कम ही निकलती थी. अक्सर घर काटने को दौड़ता था.
पास ही एक काफ़ी लंबा चौड़ा आश्रम बन रहा था. दिन भर उसमे लगे मशीनो की आवाज़ें और आदमियों के शोर को सुनती रहती थी. जब घर पर अकेली बोर होने लगती तो बाहर निकल कर उनके कार्य को देखने लगती.
घर के सामने बाउंड्री के भीतर देव ने एक छ्होटा सा गार्डेन बना कर रखा था. जिसमे तरह तरह के फूल के पौधे लगा रखे थे. खाली समय मे मैं उनके जतन मे लग जाती थी. मुझे भी कुच्छ कुच्छ बागवानी का शौक बचपन से ही था.
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घर के तीनो तरफ चार फुट उन्ही बाउंड्री थी. इसलिए सड़क चलते किसी आदमी की नज़र गार्डेन पर या मुझ पर नही पड़ सकती थी.
मैं अक्सर घर मे गाउन पहने ही रहती थी. देव की वजह से मैं गाउन के अंदर कुच्छ नही पहनती थी. कभी कभी सलवार कमीज़ भी पहन लेती थी बिना ब्रा और पॅंटी के. घर के अंदर देखने वाला कौन था. अक्सर इसी हालत मे मैं गार्डेन मे भी घूमती थी.
मेरे बड़े बड़े बूब्स काफ़ी तने हुए थे. 38 साइज़ के होने के बाद भी वो एक दम तने हुए रहत थे. मेरे निपल्स भी काफ़ी मोटे और लंबे थे. जब वो एग्ज़ाइट हो जाते थे तो कपड़ों के भीतर से सॉफ दिखते थे.
घर मे कोई रहता नही था इसलिए किससे शर्म करना. जब भी बाहर निकलती थी तो अच्छि तरह बन संवर कर ही निकलती थी. शादी को ज़्यादा दिन तो हुए नही थे इसलिए अकेली भी खूब बन संवर कर बाहर निकलती थी. कमीज़ मे हमेशा स्लीव्ले ही पहनती थी जो की काफ़ी खुले गले की होती है. पीठ भी काफ़ी डीप रहती है.
शुरू शुरू मे तो कुच्छ दिन मैं चुनरी के बिना घर से निकलती नही थी. लेकिन जब देव ने ज़ोर डाला तो मैने चुन्नी लेना छ्चोड़ दिया. अपने आसपास भटकते भंवरों को जलाने के लिए मैं बिना चुनरी के ही बाहर निकलने लगी. मेरे गले के कटाव से मेरी आधी छातियाँ और उनके बीच का दिलकश कटाव किसी के भी मन को लुभाने के लिए हमेशा तैयार रहते थे.
आस पास के सारे हम उम्र मर्द मेरी एक झलक पाने के लिए या मेरे बदन को छूने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. सिर्फ़ हम उम्र ही क्यों बुजुर्ग भी मेरे बदन को एक टक निहारते रहते थे. मेरी सुंदरता ही मेरा दुश्मन बनने लगी थी.
मैं जहाँ भी जाती लोग मुझे भूखी नज़रों से घूर्ने लगते. चाहे वो किराने की दुकान हो या सब्जी वाले का ठेला, किसी बस मे हो या राह चलते कोई ना कोई मर्द मुझसे चिपकने की कोशिश करता हुआ मिल ही जाता था. शुरू शुरू मे मुझे अजीब सा फील होता था मगर बहुत जल्दी ही मुझे मज़ा आने लगा. हर मर्द मेरे बदन को घूरता रहता था. एक दिन तो देव ने मुझे छेड़ते हुए कहा,
“दिशा तुम्हे अगर कोई मर्द महीने भर रोज देखता रहे तो पक्का है कि उसे पीलिया हो जाएगा. तुमने सबका खाना पीना बंद करवा दिया है. तुम्हे देखने के बाद पता नही कितने बेचारों को मूठ मारना पड़ता होगा.”
क्रमशः............