गतान्क से आगे……………………………………
उधर भोपाल में नारायण की ज़िंदगी काफ़ी रंगीन हो गयी थी... छुप छुप के मस्तिया करने में मज़ा ही कुच्छ और होता है और वो ही मज़ा नारायण को आने लगा था... रीत के वापस स्कूल आने के बाद नारायण से उसकी कोई ख़ास मुलाकात नहीं हुई क्यूंकी वो रश्मि के साथ ही लगा रहता था.... नारायण के कयि बारी कहने पर रश्मि ने स्कूल में थोड़े मॉडर्न कपड़े पहेन ने शुरू कर दिए थे और उसको ऐसे देख कर कयि स्कूल के टीचर्स/पीयान और यहाँ तक बच्चे भी मचल चुके थे..... कभी कबार जब वो स्कर्ट में होती तो नारायण उससे उसकी पैंटी उतरवा देता और खुली हवा का एहसास करवाता....
एक बारी कुच्छ दोपहर के 1 बज रहे थे और नारायण के कमरे में माहौल बड़ा रंगीन हो गया था....
रश्मि अपने बॉस को खुश करने के लिए उसके कॅबिन में गयी और उसकी कुर्सी के सामने और डेस्क के पीछे छुप के वो आराम से बैठके नारायण के लंड को चूस रही थी... नारायण को मस्ती तो बड़ी आ रही थी मगर असली मज़ा तब आया था जब सुधीर उसके कमरे में आया था.... एक आशिक़ के सामने उसकी महबूबा की बेशर्मी को देख कर नारायण पागल हुआ जा रहा था... सुधीर के कमरे में आने पर ही रश्मि ने भी अपना रॅनडिपना बढ़ा दिया था....
वो और मज़े लेके नारायण के लंड को चूसे जा रही और बिचारा नारायण किसी तरह अपने मज़े को च्छुपाने की
कोशिश कर रहा था... सुधीर ने नारायण से रश्मि के बारे में भी पूछा और उसने कुच्छ ना कुच्छ झूठी कहानी बना दी.... जैसी ही सुधीर वहाँ से निकला नारायण को राहत की साँस मिली और फिर अपना वीर्य अपनी नयी कुत्ति पे डाल दिया...
उसके अगली सुबह दिल्ली में दोनो बहनो का एग्ज़ॅम था और वो मौका था शन्नो और चेतन के पास माहॉल हसीन बनाने का मगर
वो सब चौपट हो गया जब उसकी शन्नो ने चेतन को बताया "आज मेरी बहन यानी के तुम्हारी आकांक्षा मासी आ रही है
तो प्लीज़ उसके रहने तक तुम कुच्छ हरकत नहीं करना" ये बात भी चेतन को काफ़ी देर में पता चली जिस वजह
से वो शन्नो से सुबह अपना लंड नहीं चुस्वा पाया और उस वजह से वो काफ़ी खफा भी था...
शन्नो की 2 बहने और भाई थे और उनमें से सबसे छ्होटी बहन आकांक्षा थी जोकि देहरादून में रहती थी....
वो दिल्ली आई हुई थी कुच्छ काम के सिलसिले में और ताकि वो अपनी बहन के जाने से पहले एक बारी मिल ले....
वैसे भी काफ़ी अरसे से उनकी मुलाकात नहीं हुई थी और शन्नो नही चाहती थी ये मुलाकात किसी भी तरह खराब हो जाए
तो इसलिए वो चेतन को समझा रही थी.... चेतन का भी यहाँ रुकने मैं कोई फ़ायदा नहीं था और उसने शन्नो की
परेशानी हल कर दी और वो चंदर से मिलने चला गया...
जिस्म की प्यास compleet
Re: जिस्म की प्यास
फिर शन्नो ने जल्दी से खाना चढ़ाया और नहा के तैयार हो गयी....उसने सारा खाना अपनी बहन की पसंद का बनाया
और वो बस उसके आने का इंतजार कर रही थी.... कुच्छ 11 बजे घर की घंटी बजी और चेहरे पे बड़ी मुस्कान लिए
वो दरवाज़ा खोलने गयी... अपनी बहन आकांक्षा को देख कर वो काफ़ी खुश हो गयी थी... आकांक्षा का असली नाम कौशल था
मगर उसने शादी के बाद अपना नाम बदल लिया था.... शन्नो आकांक्षा से गले मिली और उसको घर के अंदर लेके आई.... आकांक्षा आके सोफे पे बैठी और पूछा "दीदी बच्चे कहाँ है?? कितना समय हो गया उन्हे देखे हुए...
अब तो काफ़ी बड़े भी हो गये होंगे"
शन्नो ने कहा "बस स्कूल गये है... डॉली और ललिता का तो एग्ज़ॅम है और बेटा भी एग्ज़ॅम के सिलसिले में दोस्त के पास
गया है...अच्छा है ना हम दोनो को बात करने का समय मिल गया"
दोनो ने ढेर सारी बात करी और फिर शन्नो ने फिर से वोई बात छेड़ दी जिसको उसकी बहन सुनना नहीं चाहती थी "
आकांक्षा अभी भी तूने उस बारे में नही सोचा है"
"किस बारे में दीदी" आकांक्षा अंजान बनके बोली
शन्नो ने कहा "तू जानती है मेरा क्या मतलब है... शादी के बारे में"
आकांक्षा बोली "दीदी आप प्लीज़ फिर से ये बात शुरू ना करो"
शन्नो गुज़ारिश करते हुए बोली " मैं मानती हू जो हुआ वो ग़लत हुआ... रोहित (उसका पति) तुम्हे छोड़के गया उसमें
तुम्हारी कोई ग़लती नहीं थी मगर देखो तुम्हारा एक छोटा बेटा है जिसको बाप की ज़रूरत है... तुम अगर नहीं
भी करना चाहती तो कम से कम उसका तो सोचो... उसको भी बाप क्या प्यार चाहिए होता होगा "
(हुआ ऐसा था कि आकांक्षा की शादी रोहित नाम के शक़्स से हुई थी.... दोनो ने एक अपने परिवार से लड़ झगदके शादी
करी थी .... शादी के बाद रोहित ने आकांक्षा के साथ बहुत एंजाय
करा मगर बच्चे होने के कुच्छ महीने बाद ही वो उसे दूसरी औरत के लिए छोड़ कर भाग गया और इसी वजह
आकांक्षा ने दूसरी शादी नहीं करी...)
आकांक्षा चिढ़ के बोली "इसलिए मैं आप में से किसी से भी नहीं मिलना चाहती... जब देखो शादी शादी करते रहते हो...
नहीं मुझे करनी शादी किसी से भी"
शन्नो आकांक्षा को गुस्से में देख कर चुप हो गयी और उसको शांत करने में लग गयी... कुच्छ देर बाद आकांक्षा का
गुस्सा शांत हो गया जिससे शन्नो को काफ़ी राहत मिली...
फिर कुच्छ 12:15 बजे घर की घंटी बजी और शन्नो को लगा कि ये उसका बेटा चेतन ही होगा... शन्नो के दिल में हल्की
घबराहट छाई हुई थी...
और वो बस उसके आने का इंतजार कर रही थी.... कुच्छ 11 बजे घर की घंटी बजी और चेहरे पे बड़ी मुस्कान लिए
वो दरवाज़ा खोलने गयी... अपनी बहन आकांक्षा को देख कर वो काफ़ी खुश हो गयी थी... आकांक्षा का असली नाम कौशल था
मगर उसने शादी के बाद अपना नाम बदल लिया था.... शन्नो आकांक्षा से गले मिली और उसको घर के अंदर लेके आई.... आकांक्षा आके सोफे पे बैठी और पूछा "दीदी बच्चे कहाँ है?? कितना समय हो गया उन्हे देखे हुए...
अब तो काफ़ी बड़े भी हो गये होंगे"
शन्नो ने कहा "बस स्कूल गये है... डॉली और ललिता का तो एग्ज़ॅम है और बेटा भी एग्ज़ॅम के सिलसिले में दोस्त के पास
गया है...अच्छा है ना हम दोनो को बात करने का समय मिल गया"
दोनो ने ढेर सारी बात करी और फिर शन्नो ने फिर से वोई बात छेड़ दी जिसको उसकी बहन सुनना नहीं चाहती थी "
आकांक्षा अभी भी तूने उस बारे में नही सोचा है"
"किस बारे में दीदी" आकांक्षा अंजान बनके बोली
शन्नो ने कहा "तू जानती है मेरा क्या मतलब है... शादी के बारे में"
आकांक्षा बोली "दीदी आप प्लीज़ फिर से ये बात शुरू ना करो"
शन्नो गुज़ारिश करते हुए बोली " मैं मानती हू जो हुआ वो ग़लत हुआ... रोहित (उसका पति) तुम्हे छोड़के गया उसमें
तुम्हारी कोई ग़लती नहीं थी मगर देखो तुम्हारा एक छोटा बेटा है जिसको बाप की ज़रूरत है... तुम अगर नहीं
भी करना चाहती तो कम से कम उसका तो सोचो... उसको भी बाप क्या प्यार चाहिए होता होगा "
(हुआ ऐसा था कि आकांक्षा की शादी रोहित नाम के शक़्स से हुई थी.... दोनो ने एक अपने परिवार से लड़ झगदके शादी
करी थी .... शादी के बाद रोहित ने आकांक्षा के साथ बहुत एंजाय
करा मगर बच्चे होने के कुच्छ महीने बाद ही वो उसे दूसरी औरत के लिए छोड़ कर भाग गया और इसी वजह
आकांक्षा ने दूसरी शादी नहीं करी...)
आकांक्षा चिढ़ के बोली "इसलिए मैं आप में से किसी से भी नहीं मिलना चाहती... जब देखो शादी शादी करते रहते हो...
नहीं मुझे करनी शादी किसी से भी"
शन्नो आकांक्षा को गुस्से में देख कर चुप हो गयी और उसको शांत करने में लग गयी... कुच्छ देर बाद आकांक्षा का
गुस्सा शांत हो गया जिससे शन्नो को काफ़ी राहत मिली...
फिर कुच्छ 12:15 बजे घर की घंटी बजी और शन्नो को लगा कि ये उसका बेटा चेतन ही होगा... शन्नो के दिल में हल्की
घबराहट छाई हुई थी...
Re: जिस्म की प्यास
.चेतन को देख कर शन्नो ने कोशिश करी कि सब कुच्छ साधारण सा लगे...
उसने दरवाज़ा खोला तो चेतन घर में आया और आकांक्षा को देखा... आकांक्षा उसको देख कर सोफे से खड़ी हो
गयी और बड़ी खुशी से उसे मिली... आकांक्षा ने चेतन के गाल को हल्के से चूम लिया जिसको देख कर शन्नो को अच्छा
नहीं लगा... आकांक्षा अब पूरी तरह शन्नो से हुई उस बहस को भूल गयी थी और चेतन से खुश होकर
बातें करने लगी... चेतन भी दोनो बहनो को देखकर काफ़ी सोच में पड़ा हुआ था... उसकी मा शन्नो और आकांक्षा
में कुच्छ ख़ास अंतर नहीं था... दोनो के चेहरा सफेद और खूबसूरत था.. उसके बाल शन्नो के बालो से काफ़ी छोटे
थे यानी कंधे तक आते थे...जिस्म काफ़ी हद तक एक जैसे थे बेसक आकांक्षा थोड़ी पतली थी मगर उसके मम्मो और
नितंब का साइज़ शन्नो के मुक़ाबले का ही था... आकांक्षा की उम्र वैसे तो 38 थी मगर वो कुच्छ 34-35 तक लग रही थी
क्यूंकी उसका पहनावा भी आंटिओ वाला नहीं था.... आकांक्षा ने एक गहरे ब्राउन रंग का टॉप पहेन रखा था उसका अंदर
एक सफेद रंग की नूडल स्टाप बनियान और नीचे घुटनो से लंबी काली स्कर्ट थी.... चेतन को नही लगता था कि उसकी मासी इतनी मॉडर्न है...
शन्नो अपनी बहन को चेतन के साथ अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी मगर बार बार उठ कर प्रेशर कुक्कर की सीटी
बंद करने के लिए उठ रही थी क्यूंकी वो अपने आप बंद नही हो रही थी.... चेतन शन्नो के साथ लंबे वाले सोफे पे
बैठा था और उसके सीधे हाथ वाले छोटे सोफे पर उसकी मासी आकांक्षा थी... आखरी में जब शन्नो गॅस बंद
करके आई तो चैन की साँस लेके सोफे पे बैठी.... चेतन आकांक्षा से बात करकरके काफ़ी बोरा हो चुका था तो उसने अपना
सीधा हाथ अपनी मम्मी की कमर की तरफ रख दिया... धीरे धीरे वो अपना हाथ उसपे फेरने लगा... आकांक्षा को
वो हाथ दिखाई नही देने वाला था जिसका फ़ायदा चेतन उठा रहा था... शन्नो के काले कुर्ते पीछे से थोड़ा उठाकर
चेतन ने अपना हाथ उसकी पीठ के निचले हिस्से पे रख दिया..... शन्नो के चेहरे पे हल्की सी शिक्कन छा गयी थी जोकि
आकांक्षा को ज़ाहिर हो रही थी.... चेतन को उससे कोई मतलब नहीं था वो अपना हाथ शन्नोकी नंगी कमर पे
फेरे जा रहा था... फिर एक कदम और आगे बढ़ के चेतन ने अपना हाथ शन्नो की सलवार में घुसाने की कोशिश करी...
शन्नो की सलवार नाडे से बँधी हुई थी मगर चेतन रुकने का नाम ही नही ले रहा था... जब भी वो हाथ अंदर घुसाने
की कोशिश करता शन्नो को नाडे की वजह से दर्द होता और वो काप जाती.... चेतन अपने मकसद में कामयाब हो गया
और शन्नो की सफेद पैंटी के अंदर उंगली डालके शन्नो के नितंब के बीच वाले हिस्से की उपरी तरफ अपनी उंगली चलाने लग गया....
उसने दरवाज़ा खोला तो चेतन घर में आया और आकांक्षा को देखा... आकांक्षा उसको देख कर सोफे से खड़ी हो
गयी और बड़ी खुशी से उसे मिली... आकांक्षा ने चेतन के गाल को हल्के से चूम लिया जिसको देख कर शन्नो को अच्छा
नहीं लगा... आकांक्षा अब पूरी तरह शन्नो से हुई उस बहस को भूल गयी थी और चेतन से खुश होकर
बातें करने लगी... चेतन भी दोनो बहनो को देखकर काफ़ी सोच में पड़ा हुआ था... उसकी मा शन्नो और आकांक्षा
में कुच्छ ख़ास अंतर नहीं था... दोनो के चेहरा सफेद और खूबसूरत था.. उसके बाल शन्नो के बालो से काफ़ी छोटे
थे यानी कंधे तक आते थे...जिस्म काफ़ी हद तक एक जैसे थे बेसक आकांक्षा थोड़ी पतली थी मगर उसके मम्मो और
नितंब का साइज़ शन्नो के मुक़ाबले का ही था... आकांक्षा की उम्र वैसे तो 38 थी मगर वो कुच्छ 34-35 तक लग रही थी
क्यूंकी उसका पहनावा भी आंटिओ वाला नहीं था.... आकांक्षा ने एक गहरे ब्राउन रंग का टॉप पहेन रखा था उसका अंदर
एक सफेद रंग की नूडल स्टाप बनियान और नीचे घुटनो से लंबी काली स्कर्ट थी.... चेतन को नही लगता था कि उसकी मासी इतनी मॉडर्न है...
शन्नो अपनी बहन को चेतन के साथ अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी मगर बार बार उठ कर प्रेशर कुक्कर की सीटी
बंद करने के लिए उठ रही थी क्यूंकी वो अपने आप बंद नही हो रही थी.... चेतन शन्नो के साथ लंबे वाले सोफे पे
बैठा था और उसके सीधे हाथ वाले छोटे सोफे पर उसकी मासी आकांक्षा थी... आखरी में जब शन्नो गॅस बंद
करके आई तो चैन की साँस लेके सोफे पे बैठी.... चेतन आकांक्षा से बात करकरके काफ़ी बोरा हो चुका था तो उसने अपना
सीधा हाथ अपनी मम्मी की कमर की तरफ रख दिया... धीरे धीरे वो अपना हाथ उसपे फेरने लगा... आकांक्षा को
वो हाथ दिखाई नही देने वाला था जिसका फ़ायदा चेतन उठा रहा था... शन्नो के काले कुर्ते पीछे से थोड़ा उठाकर
चेतन ने अपना हाथ उसकी पीठ के निचले हिस्से पे रख दिया..... शन्नो के चेहरे पे हल्की सी शिक्कन छा गयी थी जोकि
आकांक्षा को ज़ाहिर हो रही थी.... चेतन को उससे कोई मतलब नहीं था वो अपना हाथ शन्नोकी नंगी कमर पे
फेरे जा रहा था... फिर एक कदम और आगे बढ़ के चेतन ने अपना हाथ शन्नो की सलवार में घुसाने की कोशिश करी...
शन्नो की सलवार नाडे से बँधी हुई थी मगर चेतन रुकने का नाम ही नही ले रहा था... जब भी वो हाथ अंदर घुसाने
की कोशिश करता शन्नो को नाडे की वजह से दर्द होता और वो काप जाती.... चेतन अपने मकसद में कामयाब हो गया
और शन्नो की सफेद पैंटी के अंदर उंगली डालके शन्नो के नितंब के बीच वाले हिस्से की उपरी तरफ अपनी उंगली चलाने लग गया....