रश्मि एक सेक्स मशीन compleet

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 10 Nov 2014 22:23


रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -40

गतान्क से आगे...

मैं उनकी बातें सुन कर हँसने लगी. कहती भी क्या. ये तो मैं खुद भी महसूस करती थी कि मर्दों को अगर मौका मिल जाता तो मुझे नोच खाते.



“ देख लेना तुम नही रहते हो किसी दिन मुझे पकड़ कर कोई रेप कर देगा.” मैने भी उनको छेड़ते हुए कहा.



“ उसमे खराबी क्या है. इससे तुम्हारे जिस्म की आग भी शांत हो जाएगी. तुम किसी पार्ट टाइम मर्द को ढूँढ लो जो मेरी अनुपस्थिति मे तुम्हारी प्यास बुझा दिया करे.” वो हंसते हुए कहने लगे.

“ अरे जाओ जाओ, किसी दिन कोई जोश मे आकर मुझे भगा ले गया ना तो जिंदगी भर अपनी किस्मेत को कोसते रहोगे क्यपंकि दोबारा मुझ जैसी खूबसूरत बीवी तो मिलने से रही.” मैने कभी भी उनकी इस तरह की उल्जलूल फरमाइश पर ज़्यादा ध्यान नही दिया.



उनका बस चलता तो घर पर ही किसी मर्द को इन्वाइट कर देते मुझे चोदने के लिए. पति पत्नी का संबंध इतना नाज़ुक होता है कि हल्का सा शक का झटका इस रिश्ते को तार तार कर सकता है. मैं किसी तीसरे को हमारी जिंदगी मे कभी शामिल नही करना चाहती थी. मगर होना तो कुच्छ और था. होनी को कौन टाल सका है भला. आज मैं शुक्र मानती हूँ की देव इतने खुले विचारों वाले थे इसलिए हम दोनो के बीच कोई दीवार पैदा नही हुई और आज हम दोनो पूरे दिल से इस आश्रम के शिष्य हैं.



इसी तरह मैं अपने हुश्न पर इठलाती हुई घूमती रहती थी. ज़्यादा तर वक़्त मैं घर मे ही रहती थी. मगर देव के अक्सर बाहर रहने की वजह से मार्केट का काम भी मुझे ही करना पड़ता था. आस पास हर तरह की दुकाने थी इसलिए ज़्यादा दूर नही जाना पड़ता था.



सुबह 6 बजे से पहले दूध वाला आ जाता था. उसके आने पर ही मैं बिस्तर छ्चोड़ती थी. इसलिए उस वक़्त मैं अक्सर नाइटी मे ही रहती थी. जिसमे से मेरा जिस्म साफ नज़र आता था. यहाँ तक की काली काली झांतों का और मेरे बड़े बड़े निपल्स का सामने से आभास हो जाता था.



दूधवाला अक्सर मुझे दूध देते हुए अपने लिंग को सेट करता रहता था. क्योंकि मुझे अर्ध नग्न हालत मे देख कर उसका अक्सर उसका लंड खड़ा हो जाता था. शुरू शुरू मे वो अपनी उत्त्ज्ना को मेरी नज़रों से छिपाने की भरसक कोशिश करता था. लेकिन जब उसने देखा कि मैं उसकी नज़रों से अपना बदन छिपाने की ही कोई कोशिश नही कर रही तो उसकी झिझक ख़तम हो गयी. वो अब मेरे संग तरह तरह की बातें करने लगा. बातों बातों मे वो अक़्स्र द्वियार्थी बातें करके मेरे मन की थाह लेने की कोशिश करता.



जब मैने उसे कुच्छ नही कहा और अंजान बनी रही तो उसकी हिम्मत बढ़ने लगी. मैने कई बार तो उसकी धोती मे खड़े होते उसके लिंग को भी महसूस किया था. जितनी देर वो दूध देता था उतनी देर उसकी आँखें दूध के बर्तन पर कम और मेरे दूध की बोतलों पर ज़्यादा रहती थी. मैं धीरे धीरे इन सब भूखी आँखों की अभ्यस्त हो गयी. अब मुझे इन मर्दों को जलाने मे मज़ा आता था. लेकिन इतना भी नही की कोई सीधे मेरे उपर ही सवार हो जाए.



मैने कभी किसी भी गैर मर्द को रोका नही तो अपनी ओर से भी कभी हद से ज़्यादा किसी को लिफ्ट नही दी. आस पड़ोस के सारे मर्द मुझे लाइन मारते थे और मुझे खुले विचारों वाली महिला समझते थे.मुझे भी उनकी आँखों मे मेरे प्रति वासना की खुमारी देख कर मज़ा आता था. देव के दोस्त काफ़ी कम थे मगर वो भी मेरे संग चिपकने की कोशिश करते थे.



एक तो मेरा एक्सपोसिंग कपड़े पहनना और दूसरा उनकी हरकतों से बेपरवाह रहना उन्हे बहुत एग्ज़ाइट करता था. कई बार लोगों ने किसी ना किसी बहाने मेरे बदन को छूने की और मसल्ने की भी कोशिश की. उनके कुच्छ दोस्तों ने एक दो बार अंजान बनते हुए मेरे स्तनो को भी दबाया था.



ऐसे ही छेड़ छाड़ मे कैसे साल गुजर गया पता ही नही चला. देव काफ़ी व्यस्त हो गये थे. वो आजकल घर पर कम वक़्त रह पाते थे. हमारी सेक्स लाइफ तो जैसे बासी होने लगी थी. मैं उस बुझती आग को वापस जलना चाहती थी. मैं जानती थी की अगर हमारे बीच तीसरा आ जाए तो इस बुझती हुई लो को फिर ज़ोर मिल जाएगी. मगर मैं उससे होने वाले नुकसान को सोच कर किसी गैर मर्द से सरीरिक संबंध बनाने मे डरी थी.

raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 10 Nov 2014 22:24




हमारे मकान की एक तरफ एक अलुवालिया परिवार रहता था. दोनो मिया बीवी 40-45 के आस पास के थे. घर की मालकिन रत्ना अलुवालिया एक खूबसूरत 40 साल के आस पास की महिला थी. पड़ोसी होने की वजह से कुच्छ ही दिनो मे हम दोनो काफ़ी घुल मिल गये थे. मैं अकेली ही रहती थी उपर से नयी नयी ब्यहता थी इसलिए वो अक्सर ही मेरे घर आ जाती थी और मुझे मेरे काम मे हेल्प करती थी.



इससे मेरा अकेलापन दूर हो जाता था और उससे मैं घर के काम काज भी सीखने लगी थी. जैसे कि मैने बताया की घर के पास ही एक काफ़ी बड़ा आश्रम तैयार हो रहा था. हमारे मकान के दूसरी तरफ उस आश्रम के मठाधीश रहते थे. उनका नाम सेवक राम था. वो कोई 50-55 साल के काफ़ी तंदुरुस्त बदन के मालिक थे. शुरू शुरू मे मुझे उनकी झलक बहुत कम मिलती थी. वो सारे दिन कन्स्ट्रक्षन साइट पर बिज़ी रहते थे और शाम को मुझे घर्से निकलने मे डर लगता था. इसलिए हम एक दूसरे के बारे मे साल भर कुच्छ जान नही पाए.



साल भर बाद मुझे लगा कि कुच्छ दिनो से वो अक्सर मुझे नज़र आने लगे थे. वो हमेशा खाली बदन ही रहते थे. उनके बदन पर एक छ्होटी सी धोती के अलावा कुच्छ नही रहता था. उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट हमेशा रहती थी. उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था की जो भी मिलता उनसे आकर्षित हुए बिना नही रह सकता था. मैं भी एक दो मुलाक़ातों मे ही उनकी ओर आकर्षित होने लगी थी.



उनका दैनिक कार्य क्रम सुबह चार बजे से ही शुरू हो जाता था. रोज सुबह घर के बाहर गार्डेन मे एक चटाई बिच्छा कर दो शिष्य आधे घंटे तक उनके बदन की मालिश करते थे. तेल मालिश करके जब वो कसरत करते थे तो मैं उनके बलिष्ठ शरीर को अपने बेडरूम की खिड़की से छिप छिप कर निहारती थी.



कुच्छ दिनो बाद मैने महसूस किया की सेवकराम जी मुझमे काफ़ी इंटेरेस्ट लेने लगे है. सुबह और शाम को जब मैं अपने मकान के बाहर पौधों को पानी देती या टहलती रहती थी तो अक्सर सेवकराम जी दोनो मकानो के बीच बने बाउंड्री पर आकर मुझसे बातें करने लगते थे. वो तब तक वहाँ खड़े रहते थे जब तक ना मैं अपना काम ख़त्म करके अंदर चली जाती. सुबह वो अब हमारी बाउंड्री के पास ही कसरत करने लगे थे.



सुबह के वक्त मैं अक्सर गाउन मे ही रहती थी. अंदर कुच्छ नही पहने होने के कारण मेरी हर हरकत पर दोनो चूचियाँ हिलने लगती थी. गाउन के बाहर से ही मेरे निपल्स सॉफ दिखते थे. जब मैं पौधों की निराई-गूदाई करती तो गाउन के खुले गले से मेरी चूचियाँ बेपर्दा हो जाती थी. नीचे झुक कर काम करने से सामने वाले की आँखों से कुच्छ भी नही छिप्ता था. ऐसे वक़्त मैं हमेशा उनकी नज़रों की तपिश अपने बदन पर महसूस करती थी. वो मेरे बदन को गहरी नज़रों से निहारते रहते थे. मैने तो कई बार उनकी धोती के अंदर से उनका उभार भी देखा. कई बार धोती को सामने से किसी तंबू की तरह तन जाते हुए भी महसूस किया. ये देख कर शर्म से मेरे गाल सुर्ख हो जाते थे.



कुच्छ ही दिनो मे मैं उनसे खूब हिल मिल गयी थी. वो अक्सर देव के बारे मे पूछ्ते रते थे. मेरे बताने पर उनको धीरे धीरे पता चल गया था कि देव अक्सर बाहर रहते हैं और घर मे मैं अकेली रहती हूँ.



उन्होंने कई बार मुझे अपने नये बने आश्रम मे घूमने का न्योता दिया लेकिन मैं उनके प्रस्ताव को नज़रअंदाज कर देती थी.



शाम के वक़्त अक्सर रत्ना जी मेरे घर आ जाती थी. उनके हज़्बेंड दूसरे किसी शहर मे सरकारी नौकरी करते थे. हफ्ते मे सिर्फ़ शनिवार और सनडे ही घर पर रह पाते थे. हम दोनो एक जैसे मिल गये थे तो जाहिर है दोस्ती गाढ़ी होने लगी थी. बहुत जल्दी हमारी झिझक

ख़तम हो गयी. हम एक दूसरे की बातें बेडरूम तक भी जाने लगी. वो अक्सर पूछ्ती थी कि मैं नयी शादी शुदा महिला होकर पति देव की अनुपस्थिति मे अपने बदन की आग कैसे बुझाती हूँ. मैं उसकी बात पर हंस देती और कहती कि कभी कभार जब गर्मी हद से ज़्यादा बढ़ जाती है तो मुझे अपनी उंगलियों से काम लेना पड़ता है.

क्रमशः............

raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 10 Nov 2014 22:24


रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -41

गतान्क से आगे...

वो मुझे छेड़ने लगती. मेरे बदन पर चिकोटी काटने लगती, यहाँ तक की कभी कभार मेरे स्तनो को मसल भी देती.



“ दिशा ये जो बदन की गर्मी है अगर उंगली से ही बुझ जाती तो फिर किसी औरत को शादी करने की ज़रूरत ही नही होती. चूत की खाज तो किसी मरद के मोटे लंड से ही बुझ सकती है.” वो मुझे च्छेदते हुए कहती.



“ दीदी आप भी तो पूरे हफ्ते अकेली ही रहती हो आप बताओ आप अपनी प्यास कैसे बुझाती हो?” मैने पूछा.



“ अब मुझमे और आग कहाँ बची है. अब तो बदन की गर्मी कम हो गयी है.”



“ लेकिन आप तो शादी करके यहीं आई थी. उस वक़्त अपनी आग को कैसे बुझाती थी?”



“ एम्म्म…..एक दो मर्द मैने अपने मयके मे पल रखे थे जो मेरे चचेरे-ममेरे भाई बन कर अक्सर यहाँ चले आते थे और कुच्छ दिन मेरे पास रह कर मेरी चूत की खुजली मिटा देते थे.” उन्हों ने धीमी आवाज़ मे कहा.



“कभी शक़ नही हुआ भैया को की आप…..”



“ अरे नही उन्हे कभी भनक भी नही लगी. अपनी जवानी मे मैने काफ़ी लोगों से चुदाई की है. जवानी होती ही कितने दीनो की है. अगर इसे भी बिना मज़ा लिए ही गँवा दिए तो क्या बुढ़ापे मे जिंदगी का मज़ा लोगि.” उन्हों ने कहा.



“ नही दीदी मुझे बहुत डर लगता है.” मैने उनसे अपने दिल की बात बताई.



“ इसमे डर कैसा. जिस तरह भूख लगने पर आदमी को खाना खाना पड़ता है और प्यास लगने पर किसी के इंतेजार किए बिना ही पानी पी लेता है. उसी तरह ये भी एक ज़रूरत है. इसकी भी भूख लगती है. इसकी भी प्यास लगती है. तब उस ज़रूरत को दबाने से जिस्म कुम्हला जाता है. उस ज़रूरत को भी पूरा करना हमारा धर्म है. इसमे किसी तरह का संकोच या शर्म की कोई बात ही नही है. मर्द अपनी बीवी की जिस्मानी भूख को ख़तम. करने के लिए होता है मगर पति अगर इसे शांत नही कर पता तो बीवी का हक़ है की इसे किसी और तरह से शांत करे. किसी और के द्वारा इसे शांत करे.” उन्हों ने समझाते हुए कहा.



“ दीदी आप किसी बात को बहुत अच्छि तरह समझती हो.”



“ इसीलिए तो तुम्हे भी कहती हूँ अपने इस फूल से बदन का रस भंवरों को पीने दो. देखना कितना मज़ा आता है. ऐसा लगेगा मानो तुम हवा मे उड़ती जा रही हो और सारे बदन से बिजली की तरंगें निकल रही हैं. पाँच दस साल बाद ना तो ये तरंगें रहेंगी ना ये उत्तेजना फिर सेक्स एक बोझ लगने लगेगा. इसलिए आज मे जियो. वर्तमान का मज़ा लो. अपनी जिस्मानी भूख को समझो. उसका आदर करो. और उसकी ज़रूरत पूरी करो.” उन्हों ने कहा.



“ ठीक है दीदी मैं सोचूँगी.” जब उनकी बातें ज़रूरत से ज़्यादा गंभीर होने लगी तो मैने उन्हे टालते हुए कहा.

Post Reply