Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
फिर मैंने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो मैं माया को देखकर एक
पल के लिए घबरा सा गया था कि पता नहीं कहीं इन्होंने कुछ
सुन या देख तो नहीं लिया?
पर दरवाजा खुलते ही उन्होंने जो बोला, उससे मेरा डर एक पल
में ही छू हो गया क्योंकि दरवाज़ा खुलते ही माया बोली-
अरे राहुल, तुम अभी तक तैयार होकर गए नहीं? क्या इरादा ही
नहीं जाने का?
मैं बोला- अरे नहीं ऐसा नहीं है, मेरी कुछ चीज़ें नहीं मिल रही
थी तो उन्हें खोजने में समय लग गया… खैर अब सब मिल चुका है।
तो वो बोली- यह क्या? ऐसे ही जायेगा क्या? तुम्हारी माँ
देखेगी तो बोलेगी मेरा लड़का आवारा हो गया है।
तो मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी ओर देखा तो वो मेरा
हाथ पकड़कर कमरे में लगे बड़े शीशे की ओर लाई और खुद कंघा
उठा कर मेरे बाल सही करने लगी।
तो मैंने बोला- आप रहने दें, मैं कर लूंगा। और रूचि अभी बाथरूम
से निकलेगी तो यह देखकर मुझे चिढ़ाएगी जो मुझे अच्छा नहीं
लगेगा।
तो वो मेरे गालों पर चुम्बन करके कंघे को मुझे देती हुई बाथरूम
की ओर चल दी, और जैसे ही दरवाज़े के पास पहुंची कि रूचि
खुद ही बाहर आ गई।
और उसे देखते ही माया ने कहा- अरे मेरा बच्चा, तुम्हारी
तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है… क्या डॉक्टर के पास चलें?
तो रूचि बोली- नहीं माँ, मैंने अभी दवाई ली है, देखते हैं अगर
मुझे अब लगता है कि अभी सही नहीं हुआ तो मैं बता दूंगी।
फिर मैं भी बोला- अरे आंटी, बेकार की टेंशन मत लो, होता
है!
और मैं रूचि की चुहुल लेते हुए बोला- अभी इसका पेट साफ़ हो
रहा है, आप देखती जाओ, इन दो दिनों में इसकी सारी
शिकायत दूर हो जाएगी।
तो आंटी बोली- ऐसे कैसे?
तो मैं बोला- अरे मैं हूँ ना… इसे इतना खुश रखूँगा कि इसकी
बिमारी दूर हो जायेगी। डॉक्टर भी बोलते है कि हंसने से कई
बिमारियों का इलाज़ अपने आप हो जाता है। तो वो भी
मेरी बात से सहमत होते हुए हम्म बोली।
फिर मैंने कंघा रखा और प्लान के मुताबिक मैंने आंटी से कहा-
अच्छा, मैं अब चल रहा हूँ। और रूचि तुम ठीक समय पर फ़ोन कर
देना।
‘ठीक है…’
पर यह साला क्या? बोल तो मैं रूचि से रहा था, पर मेरी नज़रें
रूचि के चेहरे की ओर न होकर उसके चूचों पर ही टिकी थी,
क्या मस्त लग रही थी यार… शायद क्या बिल्कुल यक़ीनन…
उसने टॉप के नीचे कुछ न पहना था जिससे उसके संतरे संतरी रंग
के ऊपर से ही नज़र आ रहे थे जिसे माया और रूचि दोनों ही
जान गई थी कि मेरी निगाह किधर है।
माया ने मेरा ध्यान तोड़ने के लिए ‘अच्छा अब जल्दी जा,
नहीं तो आएगा भी देर में…’ और रूचि इतना झेंप गई थी कि
पूछो ही मत!
इतना सुनते ही वो चुपचाप वहाँ से अपने बेड पर आराम करने का
बोल कर लेट गई और मैं वहाँ से बाहर आने के लिए चल दिया।
साथ ही साथ माया भी मुझे छोड़ने के लिए बाहर आते समय
पहले रूचि के दरवाज़े को बाहर से बंद करते हुए बोली- बेटा, तू
आराम कर ले थोड़ी देर, अभी तुमने दवाई ली है, मैं दरवाज़ा
बाहर से बंद कर लेती हूँ।
बोलते हुए दरवाज़ा बंद किया और इधर मैं भी मन ही मन खुश
था कि आंटी को तो पता ही नहीं चल पाया कि रूचि ने
आज मेरी ही टॉनिक पी है जिसके बाद अच्छा आराम
मिलता है।
तभी आंटी ने मेरा हाथ पकड़ा और किचेन की ओर चल दी, जब
तक मैं कुछ समझ पाता, उसके पहले ही उन्होंने फ़्रिज़ से बोतल
निकाली और मेरे हाथों में देते हुए बोली- अब विनोद अगर
बीच में उठता है तो तुम बोलना कि मैं पानी पीने आया था।
तो मैं बोला- फिर आप?
तो उन्होंने कुछ बर्तन उठाये और सिंक में डाल दिए और धीमा
सा नल का पानी चालू कर दिया।
मैं उनसे बोला- जान क्या इरादा है? जाने का मन तो मेरा
भी नहीं है, पर जाना पड़ेगा और वैसे भी अभी थोड़ी देर में ही
फिर आता हूँ।
पल के लिए घबरा सा गया था कि पता नहीं कहीं इन्होंने कुछ
सुन या देख तो नहीं लिया?
पर दरवाजा खुलते ही उन्होंने जो बोला, उससे मेरा डर एक पल
में ही छू हो गया क्योंकि दरवाज़ा खुलते ही माया बोली-
अरे राहुल, तुम अभी तक तैयार होकर गए नहीं? क्या इरादा ही
नहीं जाने का?
मैं बोला- अरे नहीं ऐसा नहीं है, मेरी कुछ चीज़ें नहीं मिल रही
थी तो उन्हें खोजने में समय लग गया… खैर अब सब मिल चुका है।
तो वो बोली- यह क्या? ऐसे ही जायेगा क्या? तुम्हारी माँ
देखेगी तो बोलेगी मेरा लड़का आवारा हो गया है।
तो मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी ओर देखा तो वो मेरा
हाथ पकड़कर कमरे में लगे बड़े शीशे की ओर लाई और खुद कंघा
उठा कर मेरे बाल सही करने लगी।
तो मैंने बोला- आप रहने दें, मैं कर लूंगा। और रूचि अभी बाथरूम
से निकलेगी तो यह देखकर मुझे चिढ़ाएगी जो मुझे अच्छा नहीं
लगेगा।
तो वो मेरे गालों पर चुम्बन करके कंघे को मुझे देती हुई बाथरूम
की ओर चल दी, और जैसे ही दरवाज़े के पास पहुंची कि रूचि
खुद ही बाहर आ गई।
और उसे देखते ही माया ने कहा- अरे मेरा बच्चा, तुम्हारी
तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है… क्या डॉक्टर के पास चलें?
तो रूचि बोली- नहीं माँ, मैंने अभी दवाई ली है, देखते हैं अगर
मुझे अब लगता है कि अभी सही नहीं हुआ तो मैं बता दूंगी।
फिर मैं भी बोला- अरे आंटी, बेकार की टेंशन मत लो, होता
है!
और मैं रूचि की चुहुल लेते हुए बोला- अभी इसका पेट साफ़ हो
रहा है, आप देखती जाओ, इन दो दिनों में इसकी सारी
शिकायत दूर हो जाएगी।
तो आंटी बोली- ऐसे कैसे?
तो मैं बोला- अरे मैं हूँ ना… इसे इतना खुश रखूँगा कि इसकी
बिमारी दूर हो जायेगी। डॉक्टर भी बोलते है कि हंसने से कई
बिमारियों का इलाज़ अपने आप हो जाता है। तो वो भी
मेरी बात से सहमत होते हुए हम्म बोली।
फिर मैंने कंघा रखा और प्लान के मुताबिक मैंने आंटी से कहा-
अच्छा, मैं अब चल रहा हूँ। और रूचि तुम ठीक समय पर फ़ोन कर
देना।
‘ठीक है…’
पर यह साला क्या? बोल तो मैं रूचि से रहा था, पर मेरी नज़रें
रूचि के चेहरे की ओर न होकर उसके चूचों पर ही टिकी थी,
क्या मस्त लग रही थी यार… शायद क्या बिल्कुल यक़ीनन…
उसने टॉप के नीचे कुछ न पहना था जिससे उसके संतरे संतरी रंग
के ऊपर से ही नज़र आ रहे थे जिसे माया और रूचि दोनों ही
जान गई थी कि मेरी निगाह किधर है।
माया ने मेरा ध्यान तोड़ने के लिए ‘अच्छा अब जल्दी जा,
नहीं तो आएगा भी देर में…’ और रूचि इतना झेंप गई थी कि
पूछो ही मत!
इतना सुनते ही वो चुपचाप वहाँ से अपने बेड पर आराम करने का
बोल कर लेट गई और मैं वहाँ से बाहर आने के लिए चल दिया।
साथ ही साथ माया भी मुझे छोड़ने के लिए बाहर आते समय
पहले रूचि के दरवाज़े को बाहर से बंद करते हुए बोली- बेटा, तू
आराम कर ले थोड़ी देर, अभी तुमने दवाई ली है, मैं दरवाज़ा
बाहर से बंद कर लेती हूँ।
बोलते हुए दरवाज़ा बंद किया और इधर मैं भी मन ही मन खुश
था कि आंटी को तो पता ही नहीं चल पाया कि रूचि ने
आज मेरी ही टॉनिक पी है जिसके बाद अच्छा आराम
मिलता है।
तभी आंटी ने मेरा हाथ पकड़ा और किचेन की ओर चल दी, जब
तक मैं कुछ समझ पाता, उसके पहले ही उन्होंने फ़्रिज़ से बोतल
निकाली और मेरे हाथों में देते हुए बोली- अब विनोद अगर
बीच में उठता है तो तुम बोलना कि मैं पानी पीने आया था।
तो मैं बोला- फिर आप?
तो उन्होंने कुछ बर्तन उठाये और सिंक में डाल दिए और धीमा
सा नल का पानी चालू कर दिया।
मैं उनसे बोला- जान क्या इरादा है? जाने का मन तो मेरा
भी नहीं है, पर जाना पड़ेगा और वैसे भी अभी थोड़ी देर में ही
फिर आता हूँ।
Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
वो बोली- वो मुझे पता है, पर कितनी देर हो गई कम से कम एक
पप्पी ही ले ले !
कहते हुए उन्होंने मेरे होठों को अपने होठों में भर लिया और
किसी प्यासे पथिक की तरह मेरे होठों के रस से अपनी प्यास
बुझाने लगी।
और मैंने भी प्रतिउत्तर मैं अपने एक हाथ से उनकी पीठ
सहलाना और दूसरे हाथ से उनके एक चुच्चे की सेवा चालू कर दी
और मन में विचार करने लगा कि माँ और बेटी दोनों मिलकर
मेरे लिए इस घर को तो स्वर्ग ही बना देंगी आने वाले दिनों में।
इतना सोचना था कि नहीं मेरे लौड़े ने भी मेरे विचार को
समर्थन देते हुए खुद खड़ा होकर माया की नाभि में हलचल मचा
दी जिसे माया ने महसूस करते ही मेरे जींस के ऊपर से मेरे लौड़े
को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे दबाते हुए बोलने लगी-
क्यों राहुल, अभी रूम में तुम्हारी नज़र किधर थी?
मैं बोला- किधर?
वो बोली- मैंने देखा था जब तुम रूचि के स्तनों को देख रहे थे।
तो मैं बोला- अरे ऐसा नहीं है…
तो बोली- अच्छा ही है अगर ऐसा न हो तो !
मैंने उनके विचारों को समझते हुए उन्हें कसके बाँहों में जकड़
लिया मानो उन्हें तो मन में गरिया ही रहा था पर फिर भी
मैंने उनके होठों को चूसते हुए बोला- जब इतनी हॉट माशूका
हो तो इधर उधर क्या ताड़ना, और वैसे भी तुमने मेरे लिए अनछुई
कली का इंतज़ाम करने का वादा किया है, तो मुझे और क्या
चाहिए।
तो वो बोली- उसकी फ़िक्र मत करो पर मेरी बेटी का दिल
मत तोड़ना अगर पसंद हो तो जिंदगी भर के लिए ही पसंद
करना।
मैंने उनके माथे को चूमा और स्तनों को भींचते हुए बोला-
अच्छा, अब मैं चल रहा हूँ, वरना मैं शाम को जल्दी नहीं आ
पाऊँगा।
कहते हुए मैं उनके घर से चल दिया और आंटी भी मुस्कुराते हुए
बोली- चल अब जल्दी जा, और आराम से जाना और तेरी माँ
को बिल्कुल भी अहसास न होने देना।
पप्पी ही ले ले !
कहते हुए उन्होंने मेरे होठों को अपने होठों में भर लिया और
किसी प्यासे पथिक की तरह मेरे होठों के रस से अपनी प्यास
बुझाने लगी।
और मैंने भी प्रतिउत्तर मैं अपने एक हाथ से उनकी पीठ
सहलाना और दूसरे हाथ से उनके एक चुच्चे की सेवा चालू कर दी
और मन में विचार करने लगा कि माँ और बेटी दोनों मिलकर
मेरे लिए इस घर को तो स्वर्ग ही बना देंगी आने वाले दिनों में।
इतना सोचना था कि नहीं मेरे लौड़े ने भी मेरे विचार को
समर्थन देते हुए खुद खड़ा होकर माया की नाभि में हलचल मचा
दी जिसे माया ने महसूस करते ही मेरे जींस के ऊपर से मेरे लौड़े
को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे दबाते हुए बोलने लगी-
क्यों राहुल, अभी रूम में तुम्हारी नज़र किधर थी?
मैं बोला- किधर?
वो बोली- मैंने देखा था जब तुम रूचि के स्तनों को देख रहे थे।
तो मैं बोला- अरे ऐसा नहीं है…
तो बोली- अच्छा ही है अगर ऐसा न हो तो !
मैंने उनके विचारों को समझते हुए उन्हें कसके बाँहों में जकड़
लिया मानो उन्हें तो मन में गरिया ही रहा था पर फिर भी
मैंने उनके होठों को चूसते हुए बोला- जब इतनी हॉट माशूका
हो तो इधर उधर क्या ताड़ना, और वैसे भी तुमने मेरे लिए अनछुई
कली का इंतज़ाम करने का वादा किया है, तो मुझे और क्या
चाहिए।
तो वो बोली- उसकी फ़िक्र मत करो पर मेरी बेटी का दिल
मत तोड़ना अगर पसंद हो तो जिंदगी भर के लिए ही पसंद
करना।
मैंने उनके माथे को चूमा और स्तनों को भींचते हुए बोला-
अच्छा, अब मैं चल रहा हूँ, वरना मैं शाम को जल्दी नहीं आ
पाऊँगा।
कहते हुए मैं उनके घर से चल दिया और आंटी भी मुस्कुराते हुए
बोली- चल अब जल्दी जा, और आराम से जाना और तेरी माँ
को बिल्कुल भी अहसास न होने देना।
Re: Family sex -दोस्त की माँ और बहन को चोदने की इच्छा-xossip
मैं उनके घर से जैसे तैसे निकला और रास्ते भर अपने खड़े लण्ड को
दिलासा देता रहा कि ‘प्यारे अभी परेशान न कर, दुःख रहा
है, तू बैठ जा, तेरा जुगाड़ जल्दी ही होगा…’ क्योंकि माया
की हरकत ने मेरे लौड़े को तन्ना कर रख दिया था, उसके हाथों
के स्पर्श से मेरा लौड़ा इतना झन्ना गया था कि बैठने का
नाम ही नहीं ले रहा था।
जैसे तैसे मैं घर पहुँचा, दरवाज़ा खटखटाया तो माँ ने ही
दरवाज़ा खोला और मुझे देखते ही बोली- अरे राहुल बेटा, तुम
आ गए।
मैंने बोला- हाँ माँ!
तो वो बोली- तुम इतनी देर से क्यों आये?
तो मैं बोला- आ तो जल्दी ही रहा था पर वो लोग अभी तक
नहीं आये और फ़ोन भी नहीं लग रहा था तो आंटी बोली शाम
तक चले जाना। तो मैं अब आ गया।
फिर माँ बोली- वो लोग आ गए?
मैं बोला- नहीं, अभी तक तो नहीं आये थे, आ ही जायेंगे।
वो बोली- अच्छा जाओ मुँह हाथ धो लो, मैं चाय बनाती हूँ।
बस फिर क्या था, मैं तुरंत ही गया और सबसे पहले जींस को
उतार कर फेंका और रूम अंदर से लॉक करके अपने लौड़े को हाथ
से हिलाते हुए बाथरूम की ओर चल दिया, इतना भी सब्र नहीं
रह गया था कि मैं अपने आप पर काबू रख पाता और बहुत तेज़ी
के साथ सड़का मारने लगा।
आँखें बंद होते ही मेरे सामने रूचि का बदन तैरने लगा और कानो
में उसकी ‘अह्ह ह्ह्ह शिइई इइह…’ की मंद ध्वनि गूंजने लगी।
मैं इतना बदहवास सा हो गया था कि मुझे होश ही नहीं था
की मैं सड़का लगा रहा हूँ या उसकी चूत पेल रहा हूँ।
खैर जो भी हो, आखिर मज़ा तो मिल ही रहा था और देखते
ही देखते बहुत तेज़ी के साथ मेरे हाथों की रफ़्तार स्वतः ही
धीमी पड़ने लगी और मेरा वीर्य गिरने लगा।
मैं सोचने लगा ‘जब इन दो पलों में इतना मज़ा आया है, तो मैं
उसे जब चोदूंगा तो कितना मज़ा आएगा!’
‘पर कैसे चोदूँ’ उसे यही उधेड़बुन मेरे अंतर्मन को और मेरी
कामवासना धधकाये जा रही थी कि कैसे करूँगा मैं रूचि के
साथ… अब तो घर में माया के साथ साथ विनोद भी है।
‘क्या करूँ जो मुझे रूचि के साथ हसीं पल बिताने का मौका
मिल जाये!’
इसी के साथ मैंने मुँह पर पानी की ठंडी छींटे मारे और लोअर
पहनकर बाहर आ गया, पर मन मेरा रूचि की ओर ही लगा था,
इन दो दिनों में मुझे हर हाल में उसे पाना ही होगा कैसे भी
करके!
तब तक माँ ने आकर चाय सोफे के पास पड़ी मेज़ पर रख दी थी
जिसे मैं नहीं जान पाया था, मेरी इस उलझन की अवस्था को
देखते हुए माँ ने कहा- क्या हुआ राहुल, तुमने चाय पी नहीं?
मैं बोला- कुछ नहीं माँ, बस यही सोच रहा हूँ कि मेरा दोस्त
घर पहुँचा या नहीं क्योंकि आंटी को बच्चों की तरह डर
लगता है।
दिलासा देता रहा कि ‘प्यारे अभी परेशान न कर, दुःख रहा
है, तू बैठ जा, तेरा जुगाड़ जल्दी ही होगा…’ क्योंकि माया
की हरकत ने मेरे लौड़े को तन्ना कर रख दिया था, उसके हाथों
के स्पर्श से मेरा लौड़ा इतना झन्ना गया था कि बैठने का
नाम ही नहीं ले रहा था।
जैसे तैसे मैं घर पहुँचा, दरवाज़ा खटखटाया तो माँ ने ही
दरवाज़ा खोला और मुझे देखते ही बोली- अरे राहुल बेटा, तुम
आ गए।
मैंने बोला- हाँ माँ!
तो वो बोली- तुम इतनी देर से क्यों आये?
तो मैं बोला- आ तो जल्दी ही रहा था पर वो लोग अभी तक
नहीं आये और फ़ोन भी नहीं लग रहा था तो आंटी बोली शाम
तक चले जाना। तो मैं अब आ गया।
फिर माँ बोली- वो लोग आ गए?
मैं बोला- नहीं, अभी तक तो नहीं आये थे, आ ही जायेंगे।
वो बोली- अच्छा जाओ मुँह हाथ धो लो, मैं चाय बनाती हूँ।
बस फिर क्या था, मैं तुरंत ही गया और सबसे पहले जींस को
उतार कर फेंका और रूम अंदर से लॉक करके अपने लौड़े को हाथ
से हिलाते हुए बाथरूम की ओर चल दिया, इतना भी सब्र नहीं
रह गया था कि मैं अपने आप पर काबू रख पाता और बहुत तेज़ी
के साथ सड़का मारने लगा।
आँखें बंद होते ही मेरे सामने रूचि का बदन तैरने लगा और कानो
में उसकी ‘अह्ह ह्ह्ह शिइई इइह…’ की मंद ध्वनि गूंजने लगी।
मैं इतना बदहवास सा हो गया था कि मुझे होश ही नहीं था
की मैं सड़का लगा रहा हूँ या उसकी चूत पेल रहा हूँ।
खैर जो भी हो, आखिर मज़ा तो मिल ही रहा था और देखते
ही देखते बहुत तेज़ी के साथ मेरे हाथों की रफ़्तार स्वतः ही
धीमी पड़ने लगी और मेरा वीर्य गिरने लगा।
मैं सोचने लगा ‘जब इन दो पलों में इतना मज़ा आया है, तो मैं
उसे जब चोदूंगा तो कितना मज़ा आएगा!’
‘पर कैसे चोदूँ’ उसे यही उधेड़बुन मेरे अंतर्मन को और मेरी
कामवासना धधकाये जा रही थी कि कैसे करूँगा मैं रूचि के
साथ… अब तो घर में माया के साथ साथ विनोद भी है।
‘क्या करूँ जो मुझे रूचि के साथ हसीं पल बिताने का मौका
मिल जाये!’
इसी के साथ मैंने मुँह पर पानी की ठंडी छींटे मारे और लोअर
पहनकर बाहर आ गया, पर मन मेरा रूचि की ओर ही लगा था,
इन दो दिनों में मुझे हर हाल में उसे पाना ही होगा कैसे भी
करके!
तब तक माँ ने आकर चाय सोफे के पास पड़ी मेज़ पर रख दी थी
जिसे मैं नहीं जान पाया था, मेरी इस उलझन की अवस्था को
देखते हुए माँ ने कहा- क्या हुआ राहुल, तुमने चाय पी नहीं?
मैं बोला- कुछ नहीं माँ, बस यही सोच रहा हूँ कि मेरा दोस्त
घर पहुँचा या नहीं क्योंकि आंटी को बच्चों की तरह डर
लगता है।