वो तो उत्तेजना में कांपने ही लगी। उसने अपने पैर ऊपर उठा लिए और मेरी गर्दन के चारों ओर लपेट लिए। उसने एक किलकारी और मारी और वो एक बार फिर झड़ गई। उसकी बुर ने कामरज की 2-3 चम्मच मुझे अर्पित कर दी। उसके मदन जल से मेरा मुंह भर गया। मैं एक हाथ से उसके उरोज मसलता जा रहा था और एक हाथ उसके ऊपर उठे नितम्बों पर फेरता जा रहा था। अचानक मेरी एक अंगुली उसकी गांड के छेद से टकराई। दरदरी (कंघी के दांतों जैसी) सिलवटें महसूस करके मैं तो रोमांच से भर गया। ये सोच कर तो मेरा पप्पू निहाल ही हो गया कि ये गांड तो बिल्कुल कोरी झकास है। मैंने जैसे ही अपनी अंगुली उसकी गांड के छेद पर फिराई वो एक बार फिर झड़ गई। मैं तो चटखारे लेकर उसके काम रज़ को पीता जा रहा था।
कुछ देर बाद वो निढाल सी हो गई। अब मैंने उसकी बुर चूसना बंद कर दिया। और थोड़ा सा ऊपर आया और उसके होंठों को चूम लिया। वो अचनाक खड़ी हुई और झुक कर मेरे पप्पू से खेलने लगी। मेरे शेर ने एक झटका लगाया तो उसके हाथों से फिसल गया। अब तो उसने उसे ऐसे दबोचा जैसे बिल्ली किसी कबूतर या मुर्गे की गर्दन पकड़ लेती है। मैं अधलेटा सा था। उसने अपने दोनों पैर मोड़कर मेरे सिर के दोनों ओर कर दिए। अब मैं नीचे चित लेटा था और वो लगभग मेरे ऊपर 69 की पोजिसन में हो गई। उसने पहले मेरे सुपाडे को जीभ से चाटा और फिर एक चटखारा सा लिया और फिर गप्प से आधा लंड अपने मुंह में ले लिया।
मैंने भी उसकी गांड के सुनहरे छेद पर अपनी जीभ लगा दी। उसकी खुरदरी सिलवटें तो कमाल की थी। मैंने ऊपर से नीचे तक 3-4 बार अपनी जीभ फेरी। उसकी गांड का छेद अब कभी खुल रहा था कभी बंद हो रहा था। जब गांड का छेद खुलता तो वो अन्दर से गुलाबी नजर आता। मेरा अनुमान है इस गांड की चुदाई तो क्या लगता है साली ने कभी अंगुली भी नहीं डाली होगी। वो मस्ती में आकर मेरा पूरा लंड अपने मुंह में लेने की कोशिश करने लगी तो उसे खांसी आ गई। मैंने झट से उसकी चूत को अपने मुंह में भर लिया और उसकी जाँघों को कस कर पकड़ लिया। मुझे डर था कहीं खांसी के चक्कर में मेरा लंड चूसना न बंद कर दे। एक दो मिनट के बाद फिर उसने पहले मेरे अण्डों पर जीभ फिराई उन्हें चूमा और फिर मेरा लंड चूसना चालु कर दिया अबकी बार उसने कोई हड़बड़ी नहीं की प्यार से धीरे धीरे कभी जीभ फिराती कभी मुंह में लेती कभी थोड़ा सा दांतों से दबाती। पप्पू महाराज तो अपना आप ही खोने को तैयार हो गए। मैंने मिक्की और निशा के मुंह में अपना वीर्य नहीं छोड़ा था। मैं चाहता था कि उसे चोदने से पहले एक बार उसे अपना अमृत जरूर पिलाना है। तभी तो मेरी और मिक्की की तड़फती आत्मा को संतोष मिलेगा।
अब मैंने एक अंगुली धीरे से उसकी बुर में डालनी शुरू कर दी। छेद तो कमाल का टाइट था। मुझे तो लगा साले डॉक्टर ने सुहागरात ही नहीं मनाई है ? इतनी टाइट बुर तो कुंवारी अनचुदी लड़कियों की होती है। मैं तो रोमांच से भर गया। मुझे लगने लगा था कि मेरा पप्पू हथियार डालने वाला है तो मैंने उससे कहा- जानू मैं तो जाने वाला हूँ।
उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और बोली “चिंता मत करो इस अमृत की एक भी बूँद इधर उधर नहीं जा सकती।”
और उसके साथ ही उसने फिर मेरा लंड गप्प से अन्दर ले लिया जैसे एक बिल्ली चूहे को गप्प से अन्दर ले लेती है। और उसे फिर चूसने लगी। मैंने भी उसकी बुर को पूरा मुंह में भर लिया और चूसने लगा। और फिर एक … दो … तीन। चार ना जाने कितनी पिचकारियाँ मेरे पप्पू ने छोड़ी। इस बेचारे का क्या दोष पिछले 8-10 दिन का भरा बैठा था (मधु के जयपुर जाने वाली रात को सिर्फ एक बार उसकी गांड मारी थी। उसकी चुत को तो लाल बाई ने पकड़ रखा था) वो गटागट मेरा सारा कामरस पी गई और फिर जीभ चाटती हुई एक ओर लुढ़क गई।
अब वो पेट के बल लेटी थी। उसने अपना मुंह तकिये पर लगा रखा था। उसके नितम्ब तो कमाल के थे। मोटे मोटे दो खरबूजे हों जैसे। रंग एकदम गुलाबी। इतने नाजुक कि अगर गलती से नाखून भी लग गया तो खून निकल आएगा। दोनों गोलाइयों के नीचे चाँद (आर्क) बना था। संगमरमर जैसी चिकनी कसी हुई जांघें। मैंने धीरे धीरे उसके नितम्बों और जांघों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। वो सीत्कार करने लगी। अचानक वो उठी और मेरी गोद में आकर बैठ गई और अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दी और मेरी नाक पर एक चुम्बन ले लिया और हंसने लगी। “एक बात बोलूँ?”
“हूँ ” मैंने भी उसके होंठों पर एक चुम्बन लेते हुए हामी भरी।
“आप का उदास चेहरा बिलकुल अच्छा नहीं लगता। आप ऐसे ही खुश रहा करो !” और उसने एक बार मुझे फिर चूम लिया। मैं जानता हूँ मेरी जान अब तुम चुदवाने को तैयार हो पर मैं तो उसकी चूत नहीं पहले गांड मारना चाहता था। मुझे अभी थोड़ी सी एक्टिंग और करनी थी।
मैंने कहा, “मिक्की भी ऐसा ही बोलती थी !”
“ओह … अच्छा …? एक बात बताओ … क्या आपने मिक्की के साथ …?” वो बोलते बोलते रुक गई।
“नहीं हमारा प्रेम बिलकुल सच्चा था” मैं साफ़ झूठ बोल गया।
“ओह … क्या आपकी कोई फंतासी थी मिक्की के साथ ?”
“उन … हाँ …”
“क्या बताओ … ना … प्लीज”
“नहीं शायद तुम्हें अच्छा नहीं लगे …?”
“ओह। मेरे प्रेम दीवाने तुम्हारे लिए मैं सब कुछ करने कराने को तैयार हूँ आज की रात तुम हुक्म तो करो मेरे शहजादे !” उसने तड़ से एक चुम्बन मेरे होंठों पर ले लिया और कस कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। मैं सोच रहा था कि कैसे कहूँ कि मैं तो सबसे पहले तुम्हारी गांड मारना चाहता हूँ। फिर मैंने कहा “क्या तुम्हारी भी कोई फंतासी है ?”
ईशशशस … वो इतना जोर से शरमाई कि मैं तो निहाल ही हो गया। “मेरी … ओह … पता नहीं तुम क्या समझोगे …?”
“प्लीज बताओ ना ?” मैंने पूछा
“मैं तो बस यही चाहती हूँ कि बस आज की रात मुझे प्यार ही करते रहो। ऊपर से नीचे से आगे से पीछे से हर जगह। कोई अंग मत छोडो। मैं तो जन्म जन्मान्तर की प्यासी हूँ तुम्हारे प्रेम के लिए मेरे प्रेम देव, मेरे प्रथम पुरुष !” वो मुझे चूमती जा रही थी।
हे भगवान् ये क्या लीला है तेरी। ये तो मिक्की की ही आवाज और भाषा है।
“ओह प्रेम अब मुझे और अपने आप को मत तड़फाओ जो मन की अधूरी इच्छा है पूरी कर लो” और उसके साथ ही वो अपने घुटनों और कोहनियों बे बल हो गई। जैसे उसने मेरे मन की बात जान ली हो। और मैं सब कुछ भूल कर उसके नितम्बों की ओर देखने लगा। दो पहाड़ियो के बीच एक मोटी सी खाई हो जैसे और गुलाबी रंग की छोटी सी गुफा जिसका द्वार बंद था। मैंने फिर अपनी जीभ उसपर लगा दी और उसे अपने थूक से गीला कर दिया।
“वैसलीन लगाना मत भूलना … मैंने अब तक किसी को …”
“ओह थैंक्यू मेरी मैना ! तुम चिंता मत करो।”
“ओह मुझे मिक्की बोलो ना ?”
मैंने उसकी गांड के छेद पर वैसलीन लगाईं और एक अंगुली का पोर अन्दर डाल दिया। छेद बहुत टाइट था। वो थोड़ा सा चिहुंकी “ओह गुदगुदी हो रही है … धीरे !”
मैंने उसकी कोई परवाह नहीं की और धीरे धीरे अपनी अंगुली अन्दर बाहर करने लगा। फिर थोड़ी सी क्रीम लेकर अन्दर तक लगा दी। इस बार उसने एक हलकी सी किलकारी मारी “ऊईई … माँ … ओह प्रेम जल्दी करो ना …!”
अब मैंने जल्दी से अपने लंड पर भी वैसलीन लगाईं और ……………
मेरा पप्पू जैसे छलाँग ही लगाने वाला था। ऐसी मस्त गांड देखकर तो वो काबू में कहाँ रहता है। मैंने धीरे से अपना सुपाड़ा उसकी गांड के खुलते बंद होते छेद पर टिका दिया। उसने एक जोर का सांस लिया और मुझे लगा कि उसने भी बाहर की ओर थोड़ा सा जोर लगाया है। मैंने उसकी कमर कस कर पकड़ ली और अपने पप्पू को आगे बढ़ाया। छेद बहुत टाइट था पर मेरा सुपाड़ा चूँकि आगे से थोड़ा पतला है धीरे धीरे एक इंच तक बिना दर्द के चला गया। अब मैंने दबाव लगाना शुरू कर दिया। ऐसी नाजुक गांड मारने में जोर का धक्का नहीं मारना चाहिए नहीं तो गांड फटने का डर रहता है।
जैसे ही उसकी गांड का छल्ला चौड़ा हुआ उसके मुंह से एक हल्की सी चीख निकल ही गई। “ओईई माँ आ अ …” पर उसने अपना मुंह जोर से बंद कर ऐसी अवस्था में कोई और होता तो एक धक्का जोर से लगाता और लंड महाराज जड़ तक अन्दर चले जाते पर मैं तो मिक्की से प्यार करता था और ये मोनिशा भी मेरे लिए इस मिक्की ही बनी थी। मैं उसे ज्यादा कष्ट कैसे दे सकता था मैं थोड़ी देर ऐसे ही रहा। 3 इंच तक लंड गांड में चला गया था।
मिक्की दर्द के मारे काँप रही थी पर दर्द को जैसे तैसे बर्दाश्त कर रही थी। कोई 2-3 मिनट के बाद वो कुछ नोर्मल हुई और अपना मुंह मेरी ओर मोड़ कर कहने लगी। “अब रुको मत मुझे तुम्हारी खुशी के लिए सारा दर्द मंजूर है मेरे प्रियतम !”
हे भगवान् ये तो मिक्की की ही आवाज है इसमें कोई संदेह नहीं। ये कैसे संभव है। कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा। मैंने अपना अंगूठा दांतों के बीच दबाया। मेरा अंगूठा थोड़ा सा छिल सा गया और दर्द की एक लहर सी दौड़ गई। अंगूठे से थोड़ा खून भी निकल आया। ये सपना तो नहीं हो सकता। पता नहीं क्या चक्कर है !
“ओह … प्रेम अब क्या सोच रहे हो क्यों इन खूबसूरत पलों को जाया (बर्बाद) कर रहे हो। ओह मैं कब की प्यासी हूँ प्लीज कुछ मत सोचो बस मुझे प्रेम करो मेरे प्रेम दीवाने !”
लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मैंने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए। क्या मस्त गांड थी। लंड बिना परेशानी के अन्दर बाहर होने लगा। इस तरह से तो मेरा लंड मधु की गांड में भी नहीं जाता। मेरा पप्पू तो मस्त ही हो गया। उसने एक बार जोर से अपनी गांड अन्दर की ओर सिकोड़ी। मैं तो उसे मना करता ही रह गया। उसके ऐसा करने से मुझे लगा कि मेरा लंड और सुपाड़ा अन्दर कुछ फूल सा गया है। अब तो इसे बिना पानी निकाले बाहर नहीं निकाला जा सकता है। अब मैंने धक्कों कि रफ्तार (गति) बढ़ानी शुरू कर दी। वो तो बस मस्त हुई आह। उईई … करने लगी। उसने अपना एक अंगूठा अपने अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगी। मैंने उसका एक उरोज अपने हाथ में ले लिया और उसे मसलने लगा। उसका गांड का छल्ला (ऐनल रिंग) अन्दर बाहर होता साफ़ नजर आ रहा था। बिलकुल लाल रंग का। जैसे कोई पतली सी गोल ट्यूब लाईट जल और बुझ रही हो जैसे ही मेरा लंड अन्दर जाता छल्ला भी अन्दर चला जाता और जैसे ही लंड बाहर निकालता छल्ला बाहर आ जाता। मैंने देखा उसकी गांड से थोड़ा खून भी निकल रहा है पर वो तो दर्द की परवाह किये बिना मेरे धक्कों के साथ ताल मिला रही थी। उसके मुंह से सीत्कार निकल रही थी।
मुझे नहीं पता कितनी देर मैं अपने लंड को उसकी गांड में अन्दर बाहर करता रहा। मुझे तो लगा जैसे वक़्त रुक सा गया है। एक उचटती सी निगाह मैंने दीवाल घडी पर डाली। घडी की सुई अब भी 11:59 ही दिखा रही थी। पता नहीं ये कोई चमत्कार है या घडी या समय बंद हो गया है। मेरी धड़कने तेज होती जा रही थी और मोनिशा तो मस्त हुई बस आह उईई … येस … हाँ … या … करती जा रही थी। मैंने उसके नितम्बों पर एक थपकी लगाईं तो उसने मेरी ओर मुड़कर देखा और फिर हंसने लगी। जैसे उसे मेरी मनसा समझ लग गई हो। मैं कुछ समझा नहीं। अगर ये मधु या अनारकली होती तो बात समझ आती पर ये तो … कमाल ही होता जा रहा था।
मेरे थपकी लगाने का मतलब होता है कि मैं झड़ने वाला हूँ। ऐसी अवस्था में मधु और अनारकली धीरे धीरे अपने पैर पीछे करके पेट के बल लेटना शुरू कर देती है और मैं उनके ऊपर लेट सा जाता हूँ और फिर धीरे धीरे धक्के लगा कर अपना वीर्य उनकी गांड में छोड़ता हूँ। पानी निकलने के बाद भी इसी अवस्था में कोई 10 मिनट तक हम लेटे रहते हैं।
वो धीरे धीरे नीचे होने लगी और अपनी जांघें चोड़ी करके पेट के बल लेट गई। मेरा लंड अन्दर फूल सा गया था इसलिए बाहर तो निकल ही नहीं सकता था। मैं भी उसके ऊपर ही पसर गया। अब मैंने एक हाथ में उसके एक उरोज को पकडा और दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली उसकी चूत में घुसेड़ दी। और उसके कान की लोब को मुंह में लेकर चूसने लगा। “ओह …उईई … मा …” इसके साथ ही उसने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठाये मैंने एक धक्का दिया और उसके साथ ही मेरे लंड ने पिचकारियाँ छोड़नी शुरू कर दी। मैंने उसे जोर से अपनी बाहों में जकड़ लिया और उस के ऊपर ही लेट गया। पता नहीं कितनी देर ……
धीरे धीरे मेरा लंड सिकुड़ने लगा और बाहर फिसलने लगा। एक पुच की आवाज के साथ पप्पू (लंड) हँसता हुआ बाहर आ गया। हँसे भी क्यों नहीं आज पप्पू पास जो हो गया था। वो भी उठ खड़ी हुई। उसने अपनी गांड के छेद पर हाथ लगा कर देखा। उसका हाथ मेरे वीर्य से भर गया। उसने उछल कर एक चुम्बन मेरे लंड पर लिया और बोली “बदमाश कहीं का ! अब तो खुश है ना ? एक नंबर का बदमाश है मिट्ठू कहीं का ?”
“हाँ … अब तो ये तुम्हारा मिट्ठू बन ही गया है !”
“ओह जिज्जू मुझे गुदगुदी सी हो रही है मुझे बाथरूम तक ले चलो देखो मेरी जांघें कैसे गीली हो गई है। उई इ… इ …………”
मैंने उसे गोद में उठा लिया। उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और आँखें बंद करके अपनी टाँगे मेरी कमर से लपेट ली। बिलकुल मिक्की की तरह। साफ़ सफाई के बाद हम फिर बेड पर आ गए। मैं बेड पर टेक लगा कर बैठ गया। वो मेरी गोद में अपना सिर रख कर लेट गई। उसकी आँखें बंद थी। वो धीरे से बोली “मेरे प्रियतम अब तो मिक्की की याद नहीं आएगी ना ?”
“मिक्की तो नहीं पर अब मैं मोना मेरी मोनिशा के बिना कैसे रह पाऊंगा !” मैंने नीचे झुक कर उसके गाल और होंठ चूम लिए। उसने थोड़ा सा ऊपर उठकर अपनी बाहें फिर फैला दी। मैंने उसे फिर अपने आगोश में ले लिया। इस बार वो मेरे ऊपर आ गई। उसने एक चुम्बन मेरी नाक और होंठों पर लिया और बोली “तुम पुरुष हम स्त्री जाति के मन को कभी नहीं समझोगे तुम तो स्त्री को मात्र। कोमल सी देह ही समझते हो तुम्हें उस कोमल मन के अन्दर प्रेम की छुपी परतों का कहाँ आभास है। तुम तो फूलों के रसिये भंवरों की तरह होते हो। जानते हो जब एक लड़की या औरत किसी से सच्चे दिल से प्रेम करती है तो दुनिया का कोई बंधन उसे नहीं रोक पाता। तुम नहीं समझ पाओगे। पर मिक्की की याद में अब रोना नहीं वरना तुम्हारे प्रेम में बुझी मेरी आत्मा को कभी शान्ति नहीं मिलेगी। समझे मेरे प्रथम पुरुष ?”
मैं तो मुंह बाए उसे देखता ही रह गया। मुझे लगा उसकी आवाज कुछ भारी सी होती जा रही है और कहीं दूर सी होती जा रही है। मुझे लगा कि जैसे मुझे नींद सी आने लगी है। पता नहीं ये नींद है या मैं बेहोशी हो रहा हूँ। मैंने कुछ बोलना चाहा पर मेरे मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। पर मोना की दूर होती सी आवाज अब भी सुनाई दे रही थी “मेरे प्रियतम अलविदा …” और मैं गहरी नींद या बेहोशी में खोता चला गया ………
***
अचानक मुझे लगा मोबाइल की घंटी बज रही है। मैंने अपनी जेब टटोली। जैसे ही मैंने अंगूठे से बटन दबाने की कोशिश की मुझे लगा कि उस पर खून सा लगा है और दर्द कर रहा है। “ओह…। हेलो … कौन ?”
“ओह … तुम फ़ोन क्यों नहीं उठा रहे थे। रात से ट्राई कर रही हूँ अब 6 बजे जाकर तुम्हारा फ़ोन मिला है।”
ओह…। ये तो मधु की आवाज थी। “पर वो … पर वो … ”
“ओह मेरे मिट्ठू सपने छोड़ो मैं स्टेशन से बोल रही हूँ। तुम्हारे बिना दिल नहीं लगा इसलिए जल्दी ही वापस आ गई ”उसने फ़ोन पर ही एक चुम्बन ले लिया। “तुम आ रहे हो ना मुझे लेने स्टेशन पर ?”
“ओह … हाँ … हाँ … आ रहा हूँ” और मैंने फ़ोन काट दिया। अब मैंने चारों ओर देखा। मैं तो उसी मील-पत्थर (माइल स्टोन-भरतपुर 13 कि. मी. के पास बैठा था। अरे ? वो बारिश ? … बंगला ? वो मोनिशा… वो गाड़ी ? … वो नेम प्लेट ? वहाँ तो कोई नहीं था। तो क्या मैं सपना देख रहा था। ये कैसे हो सकता है। मेरे अंगूठे पर तो अब भी खून जमा था। वो नेम प्लेट ओह। “मो-निशा पी.जी.एम। नहीं प्रेम गुरु माथुर” हे भगवान् ये क्या चमत्कार था। मैं उठकर गाड़ी की ओर गया। चाबी लगाते ही इंजिन गाड़ी चालू हो गया। इंडिकेटर बता रहा था फ्यूल टेंक तो पूरा भरा है ?
“ओह … मेरी मिक्की … तूने अपना वादा निभा दिया !” मेरी आँखों में आंसू उमड़ पड़े। मैं उन अनमोल कतरों को भला नीचे कैसे गिरने देता मैंने अपनी जेब से वोही रेशमी रुमाल एक बार फिर निकाला और अपनी आँखों पर रख लिया।
मिक्की ने तो अपना वादा निभा दिया
मुझे नहीं पता कितनी देर मैं अपने लंड को उसकी गांड में अन्दर बाहर करता रहा। मुझे तो लगा जैसे वक़्त रुक सा गया है। एक उचटती सी निगाह मैंने दीवाल घडी पर डाली। घडी की सुई अब भी 11:59 ही दिखा रही थी। पता नहीं ये कोई चमत्कार है या घडी या समय बंद हो गया है। मेरी धड़कने तेज होती जा रही थी और मोनिशा तो मस्त हुई बस आह उईई … येस … हाँ … या … करती जा रही थी। मैंने उसके नितम्बों पर एक थपकी लगाईं तो उसने मेरी ओर मुड़कर देखा और फिर हंसने लगी। जैसे उसे मेरी मनसा समझ लग गई हो। मैं कुछ समझा नहीं। अगर ये मधु या अनारकली होती तो बात समझ आती पर ये तो … कमाल ही होता जा रहा था।
मेरे थपकी लगाने का मतलब होता है कि मैं झड़ने वाला हूँ। ऐसी अवस्था में मधु और अनारकली धीरे धीरे अपने पैर पीछे करके पेट के बल लेटना शुरू कर देती है और मैं उनके ऊपर लेट सा जाता हूँ और फिर धीरे धीरे धक्के लगा कर अपना वीर्य उनकी गांड में छोड़ता हूँ। पानी निकलने के बाद भी इसी अवस्था में कोई 10 मिनट तक हम लेटे रहते हैं।
वो धीरे धीरे नीचे होने लगी और अपनी जांघें चोड़ी करके पेट के बल लेट गई। मेरा लंड अन्दर फूल सा गया था इसलिए बाहर तो निकल ही नहीं सकता था। मैं भी उसके ऊपर ही पसर गया। अब मैंने एक हाथ में उसके एक उरोज को पकडा और दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली उसकी चूत में घुसेड़ दी। और उसके कान की लोब को मुंह में लेकर चूसने लगा। “ओह …उईई … मा …” इसके साथ ही उसने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठाये मैंने एक धक्का दिया और उसके साथ ही मेरे लंड ने पिचकारियाँ छोड़नी शुरू कर दी। मैंने उसे जोर से अपनी बाहों में जकड़ लिया और उस के ऊपर ही लेट गया। पता नहीं कितनी देर ……
धीरे धीरे मेरा लंड सिकुड़ने लगा और बाहर फिसलने लगा। एक पुच की आवाज के साथ पप्पू (लंड) हँसता हुआ बाहर आ गया। हँसे भी क्यों नहीं आज पप्पू पास जो हो गया था। वो भी उठ खड़ी हुई। उसने अपनी गांड के छेद पर हाथ लगा कर देखा। उसका हाथ मेरे वीर्य से भर गया। उसने उछल कर एक चुम्बन मेरे लंड पर लिया और बोली “बदमाश कहीं का ! अब तो खुश है ना ? एक नंबर का बदमाश है मिट्ठू कहीं का ?”
“हाँ … अब तो ये तुम्हारा मिट्ठू बन ही गया है !”
“ओह जिज्जू मुझे गुदगुदी सी हो रही है मुझे बाथरूम तक ले चलो देखो मेरी जांघें कैसे गीली हो गई है। उई इ… इ …………”
मैंने उसे गोद में उठा लिया। उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और आँखें बंद करके अपनी टाँगे मेरी कमर से लपेट ली। बिलकुल मिक्की की तरह। साफ़ सफाई के बाद हम फिर बेड पर आ गए। मैं बेड पर टेक लगा कर बैठ गया। वो मेरी गोद में अपना सिर रख कर लेट गई। उसकी आँखें बंद थी। वो धीरे से बोली “मेरे प्रियतम अब तो मिक्की की याद नहीं आएगी ना ?”
“मिक्की तो नहीं पर अब मैं मोना मेरी मोनिशा के बिना कैसे रह पाऊंगा !” मैंने नीचे झुक कर उसके गाल और होंठ चूम लिए। उसने थोड़ा सा ऊपर उठकर अपनी बाहें फिर फैला दी। मैंने उसे फिर अपने आगोश में ले लिया। इस बार वो मेरे ऊपर आ गई। उसने एक चुम्बन मेरी नाक और होंठों पर लिया और बोली “तुम पुरुष हम स्त्री जाति के मन को कभी नहीं समझोगे तुम तो स्त्री को मात्र। कोमल सी देह ही समझते हो तुम्हें उस कोमल मन के अन्दर प्रेम की छुपी परतों का कहाँ आभास है। तुम तो फूलों के रसिये भंवरों की तरह होते हो। जानते हो जब एक लड़की या औरत किसी से सच्चे दिल से प्रेम करती है तो दुनिया का कोई बंधन उसे नहीं रोक पाता। तुम नहीं समझ पाओगे। पर मिक्की की याद में अब रोना नहीं वरना तुम्हारे प्रेम में बुझी मेरी आत्मा को कभी शान्ति नहीं मिलेगी। समझे मेरे प्रथम पुरुष ?”
मैं तो मुंह बाए उसे देखता ही रह गया। मुझे लगा उसकी आवाज कुछ भारी सी होती जा रही है और कहीं दूर सी होती जा रही है। मुझे लगा कि जैसे मुझे नींद सी आने लगी है। पता नहीं ये नींद है या मैं बेहोशी हो रहा हूँ। मैंने कुछ बोलना चाहा पर मेरे मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। पर मोना की दूर होती सी आवाज अब भी सुनाई दे रही थी “मेरे प्रियतम अलविदा …” और मैं गहरी नींद या बेहोशी में खोता चला गया ………
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अचानक मुझे लगा मोबाइल की घंटी बज रही है। मैंने अपनी जेब टटोली। जैसे ही मैंने अंगूठे से बटन दबाने की कोशिश की मुझे लगा कि उस पर खून सा लगा है और दर्द कर रहा है। “ओह…। हेलो … कौन ?”
“ओह … तुम फ़ोन क्यों नहीं उठा रहे थे। रात से ट्राई कर रही हूँ अब 6 बजे जाकर तुम्हारा फ़ोन मिला है।”
ओह…। ये तो मधु की आवाज थी। “पर वो … पर वो … ”
“ओह मेरे मिट्ठू सपने छोड़ो मैं स्टेशन से बोल रही हूँ। तुम्हारे बिना दिल नहीं लगा इसलिए जल्दी ही वापस आ गई ”उसने फ़ोन पर ही एक चुम्बन ले लिया। “तुम आ रहे हो ना मुझे लेने स्टेशन पर ?”
“ओह … हाँ … हाँ … आ रहा हूँ” और मैंने फ़ोन काट दिया। अब मैंने चारों ओर देखा। मैं तो उसी मील-पत्थर (माइल स्टोन-भरतपुर 13 कि. मी. के पास बैठा था। अरे ? वो बारिश ? … बंगला ? वो मोनिशा… वो गाड़ी ? … वो नेम प्लेट ? वहाँ तो कोई नहीं था। तो क्या मैं सपना देख रहा था। ये कैसे हो सकता है। मेरे अंगूठे पर तो अब भी खून जमा था। वो नेम प्लेट ओह। “मो-निशा पी.जी.एम। नहीं प्रेम गुरु माथुर” हे भगवान् ये क्या चमत्कार था। मैं उठकर गाड़ी की ओर गया। चाबी लगाते ही इंजिन गाड़ी चालू हो गया। इंडिकेटर बता रहा था फ्यूल टेंक तो पूरा भरा है ?
“ओह … मेरी मिक्की … तूने अपना वादा निभा दिया !” मेरी आँखों में आंसू उमड़ पड़े। मैं उन अनमोल कतरों को भला नीचे कैसे गिरने देता मैंने अपनी जेब से वोही रेशमी रुमाल एक बार फिर निकाला और अपनी आँखों पर रख लिया।
मिक्की ने तो अपना वादा निभा दिया
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
एक खड़े लंड की करतूत
मेरा एक ई-मित्र है तरुण ! बस ऐसे ही जान पहचान हो गई थी। वो मेरी कहानियों का बड़ा प्रशंसक था। उसे किसी लड़की को पटाने के टोटके पता करने थे। एक दिन जब मैं अपने मेल्स चेक कर रहा था तो उस से चाट पर बात हुई थी। फिर तो बातों ये सिलसला चल ही पड़ा। यह कहानी उसके साथ हुई बातों पर आधारित है। लीजिये उसकी जबानी सुनिए :
दोस्तों मेरा नाम तरुण है। 20 साल का हूँ। कॉलेज में पढता हूँ। पिछले साल गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने नानिहाल अमृतसर घूमने गया हुआ था। मेरे मामा का छोटा सा परिवार है। मेरे मामाजी रुस्तम सेठ 45 साल के हैं और मामी सविता 42 के अलावा उनकी एक बेटी है कनिका 18 साल की। मस्त क़यामत बन गई है अब तो अच्छे-अच्छो का पानी निकल जाता है उसे देख कर। वो भी अब मोहल्ले के लौंडे लपाडों को देख कर नैन मट्टका करने लगी है।
एक बात खास तौर पर बताना चाहूँगा कि मेरे नानाजी का परिवार लाहोर से अमृतसर 1947 में आया था और यहाँ आकर बस गया। पहले तो सब्जी की छोटी सी दूकान ही थी पर अब तो काम कर लिए हैं। खालसा कॉलेज के सामने एक जनरल स्टोर है जिसमें पब्लिक टेलीफ़ोन, कंप्यूटर और नेट आदि की सुविधा भी है। साथ में जूस बार और फलों की दूकान भी है। अपना दो मंजिला मकान है और घर में सब आराम है। किसी चीज की कोई कमी नहीं है। आदमी को और क्या चाहिए। रोटी कपड़ा और मकान के अलावा तो बस सेक्स की जरुरत रह जाती है।
मैं बचपन से ही बहुत शर्मीला रहा हूँ मुझे अभी तक सेक्स का ज्यादा अनुभव नहीं था। बस एक बार बचपन में मेरे चाचा ने मेरी गांड मारी थी। जब से जवान हुआ था अपने लंड को हाथ में लिए ही घूम रहा था। कभी कभार नेट पर सेक्सी कहानियां पढ़ लेता था और ब्लू फिल्म भी देख लेता था। सच पूछो तो मैं किसी लड़की या औरत को चोदने के लिए मरा ही जा रहा था। मामाजी और मामी को कई बार रात में चुदाई करते देखा था। वाह… 42 साल की उम्र में भी मेरी मामी सविता एक दम जवान पट्ठी ही लगती है। लयबद्ध तरीके से हिलते मोटे मोटे नितम्ब और गोल गोल स्तन तो देखने वालों पर बिजलियाँ ही गिरा देते हैं। ज्यादातर वो सलवार और कुरता ही पहनती है पर कभी कभार जब काली साड़ी और कसा हुआ ब्लाउज पहनती है तो उसकी लचकती कमर और गहरी नाभि देखकर तो कई मनचले सीटी बजाने लगते हैं। लेकिन दो दो चूतों के होते हुए भी मैं अब तक प्यासा ही था।
जून का महीना था। सभी लोग छत पर सोया करते थे। रात के कोई दो बजे होंगे। मेरी अचानक आँख खुली तो मैंने देखा मामा और मामी दोनों ही नहीं हैं। कनिका बगल में लेटी हुई है। मैं नीचे पेशाब करने चला गया। पेशाब करने के बाद जब मैं वापस आने लगा तो मैंने देखा मामा और मामी के कमरे की लाईट जल रही है। मैं पहले तो कुछ समझा नहीं पर हाईई ओह … या … उईई … की हलकी हलकी आवाज ने मुझे खिड़की से झांकने को मजबूर कर दिया। खिड़की का पर्दा थोड़ा सा हटा हुआ था।
अन्दर का दृश्य देख कर तो मैं जड़ ही हो गया। मामा और मामी दोनों नंगे बेड पर अपनी रात रंगीन कर रहे थे। मामा नीचे लेटे थे और मामी उनके ऊपर बैठी थी। मामा का लंड मामी की चूत में घुसा हुआ था और वो मामा के सीने पर हाथ रख कर धीरे धीरे धक्के लगा रही थी और आह… उन्ह…। या … की आवाजें निकाल रही थी। उसके मोटे मोटे नितम्ब तो ऊपर नीचे होते ऐसे लग रहे थे जैसे कोई फ़ुटबाल को किक मार रहा हो। उनकी चूत पर उगी काली काली झांटों का झुरमुट तो किसी मधुमक्खी के छत्ते जैसा था।
वो दोनों ही चुदाई में मग्न थे। कोई 8-10 मिनट तक तो इसी तरह चुदाई चली होगी। पता नहीं कब से लगे थे। फिर मामी की रफ्तार तेज होती चली गई और एक जोर की सीत्कार करते हुए वो ढीली पड़ गई और मामा पर ही पसर गई। मामा ने उसे कस कर बाहों में जकड़ लिया और जोर से मामी के होंठ चूम लिए।
“सविता डार्लिंग ! एक बात बोलूं ?”
“क्या ? “
“तुम्हारी चूत अब बहुत ढीली हो गई है बिलकुल मजा नहीं आता ?”
“तुम गांड भी तो मार लेते हो वो तो अभी भी टाइट है ना ?”
“ओह तुम नहीं समझी ?”
“बताओ ना ?”
“वो तुम्हारी बहन बबिता की चूत और गांड दोनों ही बड़ी मस्त थी ? और तुम्हारी भाभी जया तो तुम्हारी ही उम्र की है पर क्या टाइट चूत है साली की ? मज़ा ही आ जाता है चोद कर”
“तो ये कहो ना कि मुझ से जी भर गया है तुम्हारा ?”
“अरे नहीं सविता रानी ऐसी बात नहीं है दरअसल मैं सोच रहा था कि तुम्हारे छोटे वाले भाई की बीवी बड़ी मस्त है। उसे चोदने को जी करता है ?”
“पर उसकी तो अभी नई नई शादी हुई है वो भला कैसे तैयार होगी ? “
“तुम चाहो तो सब हो सकता है ?”
“वो कैसे ?”
“तुम अपने बड़े भाई से तो पता नहीं कितनी बार चुदवा चुकी हो अब छोटे से भी चुदवा लो और मैं भी उस क़यामत को एक बार चोद कर निहाल हो जाऊं !”
“बात तो तुम ठीक कह रहे हो, पर अविनाश नहीं मानेगा ?”
“क्यों ?”
“उसे मेरी इस चुदी चुदाई भोसड़ी में भला क्या मज़ा आएगा ?”
“ओह तुम भी एक नंबर की फुद्दू हो ! उसे कनिका का लालच दे दो ना ?”
“कनिका … ? अरे नहीं. वो अभी बच्ची है !”
“अरे बच्ची कहाँ है ! पूरे अट्ठारह साल की तो हो गई है ? तुम्हें अपनी याद नहीं है क्या ? तुम तो केवल सोलह साल की ही थी जब हमारी शादी हुई थी और मैंने तो सुहागरात में ही तुम्हारी गांड भी मार ली थी !”
“हाँ ये तो सच है पर ….”
“पर क्या ?”
“मुझे भी तो जवान लंड चाहिए ना ? तुम तो बस नई नई चूतों के पीछे पड़े रहते हो मेरा तो जरा भी ख़याल नहीं है तुम्हें ?”
“अरे तुमने भी तो अपने जीजा और भाई से चुदवाया था ना और गांड भी तो मरवाई थी ना ?”
“पर वो नए कहाँ थे मुझे भी नया और ताजा लंड चाहिए बस कह दिया ?”
“ओह… तुम तरुण को क्यों नहीं तैयार कर लेती ? तुम उसके मज़े लो और मैं कनिका की सील तोड़ने का मजा ले लूँगा !”
“पर वो मेरे सगे भाई की औलाद हैं क्या यह ठीक रहेगा ?”
“क्यों इसमें क्या बुराई है ?”
“पर वो… नहीं ..। मुझे ऐसा करना अच्छा नहीं लगता !”
“अच्छा चलो एक बात बताओ जिस माली ने पेड़ लगाया है क्या उसे उस पेड़ के फल खाने का हक नहीं होना चाहिए ? या जिस किसान ने इतने प्यार से फसल तैयार की है उसे उस फसल के अनाज को खाने का हक नहीं मिलना चाहिए ? अब अगर मैं अपनी इस बेटी को चोदना चाहता हूँ तो इसमें क्या गलत है ? “
“ओह तुम भी एक नंबर के ठरकी हो। अच्छा ठीक है बाद में सोचेंगे ?”
और फिर मामी ने मामा का मुरझाया लंड अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। मैं उनकी बातें सुनकर इतना उत्तेजित हो गया था कि मुट्ठ मारने के अलावा मेरे पास अब कोई और रास्ता नहीं बचा था। मैं अपना 7 इंच का लंड हाथ में लिए बाथ रूम की ओर बढ़ गया। फिर मुझे ख़याल आया कनिका ऊपर अकेली है। कनिका की ओर ध्यान जाते ही मेरा लंड तो जैसे छलांगें ही लगाने लगा। मैं दौड़ कर छत पर चला आया।
कनिका बेसुध हुई सोई थी। उसने पीले रंग की स्कर्ट पहन रखी थी और अपनी एक टांग मोड़े करवट लिए सोई थी। स्कर्ट थोड़ी सी ऊपर उठी थी। उसकी पतली सी पेंटी में फ़सी उसकी चूत का चीरा तो साफ़ नजर आ रहा था। पेंटी उसकी चूत की दरार में घुसी हुई थी और चूत के छेद वाली जगह गीली हुई थी। उसकी गोरी गोरी मोटी जांघें देख कर तो मेरा जी करने लगा कि अभी उसकी कुलबुलाती चूत में अपना लंड डाल ही दूँ।
मेरा एक ई-मित्र है तरुण ! बस ऐसे ही जान पहचान हो गई थी। वो मेरी कहानियों का बड़ा प्रशंसक था। उसे किसी लड़की को पटाने के टोटके पता करने थे। एक दिन जब मैं अपने मेल्स चेक कर रहा था तो उस से चाट पर बात हुई थी। फिर तो बातों ये सिलसला चल ही पड़ा। यह कहानी उसके साथ हुई बातों पर आधारित है। लीजिये उसकी जबानी सुनिए :
दोस्तों मेरा नाम तरुण है। 20 साल का हूँ। कॉलेज में पढता हूँ। पिछले साल गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने नानिहाल अमृतसर घूमने गया हुआ था। मेरे मामा का छोटा सा परिवार है। मेरे मामाजी रुस्तम सेठ 45 साल के हैं और मामी सविता 42 के अलावा उनकी एक बेटी है कनिका 18 साल की। मस्त क़यामत बन गई है अब तो अच्छे-अच्छो का पानी निकल जाता है उसे देख कर। वो भी अब मोहल्ले के लौंडे लपाडों को देख कर नैन मट्टका करने लगी है।
एक बात खास तौर पर बताना चाहूँगा कि मेरे नानाजी का परिवार लाहोर से अमृतसर 1947 में आया था और यहाँ आकर बस गया। पहले तो सब्जी की छोटी सी दूकान ही थी पर अब तो काम कर लिए हैं। खालसा कॉलेज के सामने एक जनरल स्टोर है जिसमें पब्लिक टेलीफ़ोन, कंप्यूटर और नेट आदि की सुविधा भी है। साथ में जूस बार और फलों की दूकान भी है। अपना दो मंजिला मकान है और घर में सब आराम है। किसी चीज की कोई कमी नहीं है। आदमी को और क्या चाहिए। रोटी कपड़ा और मकान के अलावा तो बस सेक्स की जरुरत रह जाती है।
मैं बचपन से ही बहुत शर्मीला रहा हूँ मुझे अभी तक सेक्स का ज्यादा अनुभव नहीं था। बस एक बार बचपन में मेरे चाचा ने मेरी गांड मारी थी। जब से जवान हुआ था अपने लंड को हाथ में लिए ही घूम रहा था। कभी कभार नेट पर सेक्सी कहानियां पढ़ लेता था और ब्लू फिल्म भी देख लेता था। सच पूछो तो मैं किसी लड़की या औरत को चोदने के लिए मरा ही जा रहा था। मामाजी और मामी को कई बार रात में चुदाई करते देखा था। वाह… 42 साल की उम्र में भी मेरी मामी सविता एक दम जवान पट्ठी ही लगती है। लयबद्ध तरीके से हिलते मोटे मोटे नितम्ब और गोल गोल स्तन तो देखने वालों पर बिजलियाँ ही गिरा देते हैं। ज्यादातर वो सलवार और कुरता ही पहनती है पर कभी कभार जब काली साड़ी और कसा हुआ ब्लाउज पहनती है तो उसकी लचकती कमर और गहरी नाभि देखकर तो कई मनचले सीटी बजाने लगते हैं। लेकिन दो दो चूतों के होते हुए भी मैं अब तक प्यासा ही था।
जून का महीना था। सभी लोग छत पर सोया करते थे। रात के कोई दो बजे होंगे। मेरी अचानक आँख खुली तो मैंने देखा मामा और मामी दोनों ही नहीं हैं। कनिका बगल में लेटी हुई है। मैं नीचे पेशाब करने चला गया। पेशाब करने के बाद जब मैं वापस आने लगा तो मैंने देखा मामा और मामी के कमरे की लाईट जल रही है। मैं पहले तो कुछ समझा नहीं पर हाईई ओह … या … उईई … की हलकी हलकी आवाज ने मुझे खिड़की से झांकने को मजबूर कर दिया। खिड़की का पर्दा थोड़ा सा हटा हुआ था।
अन्दर का दृश्य देख कर तो मैं जड़ ही हो गया। मामा और मामी दोनों नंगे बेड पर अपनी रात रंगीन कर रहे थे। मामा नीचे लेटे थे और मामी उनके ऊपर बैठी थी। मामा का लंड मामी की चूत में घुसा हुआ था और वो मामा के सीने पर हाथ रख कर धीरे धीरे धक्के लगा रही थी और आह… उन्ह…। या … की आवाजें निकाल रही थी। उसके मोटे मोटे नितम्ब तो ऊपर नीचे होते ऐसे लग रहे थे जैसे कोई फ़ुटबाल को किक मार रहा हो। उनकी चूत पर उगी काली काली झांटों का झुरमुट तो किसी मधुमक्खी के छत्ते जैसा था।
वो दोनों ही चुदाई में मग्न थे। कोई 8-10 मिनट तक तो इसी तरह चुदाई चली होगी। पता नहीं कब से लगे थे। फिर मामी की रफ्तार तेज होती चली गई और एक जोर की सीत्कार करते हुए वो ढीली पड़ गई और मामा पर ही पसर गई। मामा ने उसे कस कर बाहों में जकड़ लिया और जोर से मामी के होंठ चूम लिए।
“सविता डार्लिंग ! एक बात बोलूं ?”
“क्या ? “
“तुम्हारी चूत अब बहुत ढीली हो गई है बिलकुल मजा नहीं आता ?”
“तुम गांड भी तो मार लेते हो वो तो अभी भी टाइट है ना ?”
“ओह तुम नहीं समझी ?”
“बताओ ना ?”
“वो तुम्हारी बहन बबिता की चूत और गांड दोनों ही बड़ी मस्त थी ? और तुम्हारी भाभी जया तो तुम्हारी ही उम्र की है पर क्या टाइट चूत है साली की ? मज़ा ही आ जाता है चोद कर”
“तो ये कहो ना कि मुझ से जी भर गया है तुम्हारा ?”
“अरे नहीं सविता रानी ऐसी बात नहीं है दरअसल मैं सोच रहा था कि तुम्हारे छोटे वाले भाई की बीवी बड़ी मस्त है। उसे चोदने को जी करता है ?”
“पर उसकी तो अभी नई नई शादी हुई है वो भला कैसे तैयार होगी ? “
“तुम चाहो तो सब हो सकता है ?”
“वो कैसे ?”
“तुम अपने बड़े भाई से तो पता नहीं कितनी बार चुदवा चुकी हो अब छोटे से भी चुदवा लो और मैं भी उस क़यामत को एक बार चोद कर निहाल हो जाऊं !”
“बात तो तुम ठीक कह रहे हो, पर अविनाश नहीं मानेगा ?”
“क्यों ?”
“उसे मेरी इस चुदी चुदाई भोसड़ी में भला क्या मज़ा आएगा ?”
“ओह तुम भी एक नंबर की फुद्दू हो ! उसे कनिका का लालच दे दो ना ?”
“कनिका … ? अरे नहीं. वो अभी बच्ची है !”
“अरे बच्ची कहाँ है ! पूरे अट्ठारह साल की तो हो गई है ? तुम्हें अपनी याद नहीं है क्या ? तुम तो केवल सोलह साल की ही थी जब हमारी शादी हुई थी और मैंने तो सुहागरात में ही तुम्हारी गांड भी मार ली थी !”
“हाँ ये तो सच है पर ….”
“पर क्या ?”
“मुझे भी तो जवान लंड चाहिए ना ? तुम तो बस नई नई चूतों के पीछे पड़े रहते हो मेरा तो जरा भी ख़याल नहीं है तुम्हें ?”
“अरे तुमने भी तो अपने जीजा और भाई से चुदवाया था ना और गांड भी तो मरवाई थी ना ?”
“पर वो नए कहाँ थे मुझे भी नया और ताजा लंड चाहिए बस कह दिया ?”
“ओह… तुम तरुण को क्यों नहीं तैयार कर लेती ? तुम उसके मज़े लो और मैं कनिका की सील तोड़ने का मजा ले लूँगा !”
“पर वो मेरे सगे भाई की औलाद हैं क्या यह ठीक रहेगा ?”
“क्यों इसमें क्या बुराई है ?”
“पर वो… नहीं ..। मुझे ऐसा करना अच्छा नहीं लगता !”
“अच्छा चलो एक बात बताओ जिस माली ने पेड़ लगाया है क्या उसे उस पेड़ के फल खाने का हक नहीं होना चाहिए ? या जिस किसान ने इतने प्यार से फसल तैयार की है उसे उस फसल के अनाज को खाने का हक नहीं मिलना चाहिए ? अब अगर मैं अपनी इस बेटी को चोदना चाहता हूँ तो इसमें क्या गलत है ? “
“ओह तुम भी एक नंबर के ठरकी हो। अच्छा ठीक है बाद में सोचेंगे ?”
और फिर मामी ने मामा का मुरझाया लंड अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। मैं उनकी बातें सुनकर इतना उत्तेजित हो गया था कि मुट्ठ मारने के अलावा मेरे पास अब कोई और रास्ता नहीं बचा था। मैं अपना 7 इंच का लंड हाथ में लिए बाथ रूम की ओर बढ़ गया। फिर मुझे ख़याल आया कनिका ऊपर अकेली है। कनिका की ओर ध्यान जाते ही मेरा लंड तो जैसे छलांगें ही लगाने लगा। मैं दौड़ कर छत पर चला आया।
कनिका बेसुध हुई सोई थी। उसने पीले रंग की स्कर्ट पहन रखी थी और अपनी एक टांग मोड़े करवट लिए सोई थी। स्कर्ट थोड़ी सी ऊपर उठी थी। उसकी पतली सी पेंटी में फ़सी उसकी चूत का चीरा तो साफ़ नजर आ रहा था। पेंटी उसकी चूत की दरार में घुसी हुई थी और चूत के छेद वाली जगह गीली हुई थी। उसकी गोरी गोरी मोटी जांघें देख कर तो मेरा जी करने लगा कि अभी उसकी कुलबुलाती चूत में अपना लंड डाल ही दूँ।