एक अनोखा बंधन

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The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 15:10

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सबने खाने को प्रणाम किया और उनके कमेंट्स कुछ इस तरह थे;

बड़के दादा: मुन्ना..खुशबु तो बहुत अच्छी आ रही है!

पिताजी: लाड-साहब ये तो बातो की बनाया क्या है?

बड़की अम्मा: जो भी है...पर खुशबु इतनी अच्छी है तो स्वाद लाजवाब ही होगा|

मैं: जी पंचरंगी दाल और ये मानु स्पेशल गोभी है!

अजय भैया: भई पहले तो मैं ये गोभी चख के देखता हूँ| म्म्म्म...बढ़िया है!

चन्दर भैया: वाकई में खाना बहुत स्वाद है! (मैं हैरान था की इनके मुंह से मेरे लिए तारीफ निकली?)

बड़के दादा: मुन्ना...ये लो (उन्होंने अपनी जेब से सौ रूपए निकाल के दिए)

मैं: जी (मैं पिताजी की तरफ देखने लगा) पर...

पिताजी: रख ले बेटा...भाई साहब खुश हो के दे रहे हैं|

बड़के दादा: अपने बाप की तरफ मत देख..और रख ले...मैं ख़ुशी से दे रहा हूँ| खाना बहुत स्वादिष्ट है...सच में ऐसा खाना खाए हुए अरसा हुआ|

बड़की अम्मा: मुन्ना ये खाना बनाना तुमने अपनी माँ से सीखा?

माँ: कहाँ दीदी...अपने-आप पता नहीं क्या-क्या बनाता रहता है| कभी ये मिला...कभी वो मिला...पता नहीं इसमें इसने क्या-क्या डाला होगा?

मैं: जी गोभी को दही में Merinate किया था|

बड़की अम्मा: वो क्या होता है?

मैंने बड़े प्यार से उन्हें सारा तरीका समझाया और Recipe के इंग्रेडिएंट्स और विधि सुन के तो अम्मा का मुंह खुला का खुला रह गया?

बदकिा अम्मा: अरे मुन्ना...और क्या-क्या बना लेते हो?

मैं: अम्मा ...मुझे Experiment Cooking पसंद है| मुझे ये दाल-रोटी पकाना सही नहीं लगता| कुछ हट के करता हूँ मैं! (और सही भई था...आखिर मेरी पसंद अर्थात भौजी भई तो हट की ही थीं!!!)

अब चूँकि अम्मा को Experiment Cooking का मतलब नहीं पता था तो मैंने उन्हें विस्तार में सब समझाया|

पिताजी: तू भी बैठ जा बेटा और खाना खा ले!

मैं: जी मैं परधान रसोइया हूँ..सब के खाने के बाद ही खाऊँगा!

अजय भैया: अगर हमसे कुछ बच गया तो ना!

उनकी बात सुन के सब ठहाके मारके हँसने लगे| इधर भौजी मेरी तारीफ सुन के बहुत खुश थीं पर इस बातचीत के दौरान कुछ बोलीं नहीं बस रसोई में बैठीं गर्म-गर्म रोटियाँ सेंक रहीं थीं|

जब सब का भोजन हो गया तब उन्होंने एक थाली में हमारे दोनों के लिए भोजन परोसा और मुझे खाने के लिए पूछा;

भौजी: चलिए जानू...खाना खाते हैं|

मैं: मेरा मन नहीं है| (भौजी जानती थीं की मेरी नारजगी का कारन वही लड़का है|)

भौजी: क्यों नहीं खाना? नाराज हो मुझसे?

मैं: नाराज तो रमेश होगा... की आपने उससे मेरे चक्कर में बात नहीं की| (मैंने सीधा कटाक्ष किया)

भौजी: O .... समझी... अच्छा मेरी बात सुनो?

मैं: नहीं सुन्ना मुझे कुछ...

और मैं उठ के जाने लगा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया और मुझे अपनी और घुमाया| और इससे पहले वो कुछ कहतीं मैंने ही कहा;

मैं: Answer me, Did you had a crush on him?

भौजी: No खुश?

पर मैं संतुष्ट नहीं था...

भौजी: अपने बच्चे की कसम! (उन्होंने अपनी कोख पे हाथ रखते हुए कहा|) मेरे मन में सिवाय आपके और किसी का विचार ना कभी आया और ना आएगा| स्कूल के दिनों में मैं इन चीजों से दूर ही रहती थी और वो समय भई ऐसा था की लड़के-लड़कियां इतने Frank नहीं होते थे| वैसे भी मेरा मन पढ़ाई में ज्यादा लगता था| घर से स्कूल और स्कूल से घर...बस यही दुनिया थी मेरी|

अब तो मैं 100% संतुष्ट हो गया था| मैं मुस्कुराया और इस ख़ुशी को जाहिर करने के लिए मैंने उनके चेहरे को अपने दोनों हाथों से थाम लिया और उन्हें Kiss करने ही वाला था की मेरी नजर उनके चेहरे पे पड़ी...उन्हें देखते ही याद आया की वो ये सब नहीं चाहतीं| मैंने उनके चेहरे को छोड़ दिया और उनसे नजरें चुराई और इधर-उधर देखने लगा|

मैं: Sorry ! मैं...वो... भूल गया था!

भौजी: No .....I'm Sorry !

मतलब वो भी मन ही मन खुद को कोस रहीं थीं की आखिर क्यों वो मुझे बार-बार Kiss करने से रोक रहीं हैं! खेर हमने खाना खाने के लिए आसन ग्रहण किया और नेहा आके मेरी गोद में बैठ गई|

आज सबसे पहला कौर भौजी ने मुझे खिलाया और फिर जब खुद खाने लगीं तो पहला कौर खाते ही बोलीं;

भौजी: Delicious !!! इसके आगे तो Resturant का खाना फीका है| अगर पहले पता होता तो....मैं आपसे ही खाना बनवाती!

मैं: Thanks पर मैं शौक केलिए कुकिंग करता हूँ...जब भी मैं उदास होता हूँ या बहुत ज्यादा प्रसन्न होता हूँ तो कुकिंग करता हूँ|

भौजी: तो आज आप किस मूड में थे?

मैं: खुश भी और उदास भी..... खुश इसलिए की आज आप मुस्कुरा रहेहो! और उदास इसलिए की कल कल से मैं आपको मुस्कुराता हुआ नहीं देख पाउँगा!

भौजी चुप हो गईं और मुझे भी लगने लगा की यार तुझे ये कहने की क्या जर्रूरत थी| फिर बात को संभालते हुए मैंने कहा;

मैं: आपने दाल तो टेस्ट ही नहीं की?

भौजी: ओह! मैं तो भूल ही गई थी!

फिर जब भौजी ने दाल टास्ते की तो बोलीं;

भौजी: WOW !!! Seriously ! Amazing .... घी का फ्लेवर और महक बिलकुल ....उम्म्म Awesome ! अब तो आप मुझे complex दे रहे हो! अब तो घर वालों को मेरे हाथ का खाना अच्छा नहीं लगेगा... ही..ही..ही..

मैं: यार टांग मत खींचो...

भौजी: अरे जानू अगर मैं जूठ बोल रही हूँ तो आप ही बताओ की आपके बड़के दादा ने आपको खुश हो के पैसे क्यों दिए?

मैं: अच्छा याद दिलाया आपने| ये आप रखो... (मैंने पैसे उनको दे दिए)

भौजी: पर किस लिए?

मैं: आप अपने पास रखो...मेरी निशानी के तौर पे!

भौजी: पर ये तो आपको ....

मैं: आईडिया आपका था की खाना मैं बनाऊँ! और प्लीज अब बहंस मत करो|

भौजी: ठीक है...आप कहाँ मानते हो मेरी!

मैंने वो पैसे भौजी की किसी और मकसद से दिए थे| दरअसल मेरी ख्वाइश थी की मैं अगर पैसे कामों तो सबसे पहले उन्हें दूँ...मतलब मेरी कमाई के पैसे! शायद उस दिन मुझे आगा की मुझे ये मौका न मिले...इसलिए मैंने उन्हें वो पैसे दिए... हालाँकि वो मेरी कमाई नहीं थी पर फिर भी....

शायद भौजी भी ये बात समझ चुकीं थीं क्योंकि आगे चलके हमारी इस बारे में बात हुई थी|

खाना खाने के बाद भौजी ने बर्तन रख दिए और हम तीनों हाथ-मुंह धो के भौजी के घर में वापस बैठ गए| मुझे बोला गया था की मैं, नेहा और भौजी तीनों छप्पर के पास नहीं भटकेंगे...कारन ये की आज सभी बड़े वहां बैठ के रसिका भाभी के मुद्दे पे बात कर रहे थे| नेहा सो चुकी थी और हम भी इसी बात पे चर्चा कर रहे थे;

भौजी: आप क्या कहते हो?

मैं: मेरे कहने से क्या होता है? करेंगे तो सब वही जो उन्हें ठीक लगेगा|

भौजी: पर फिर भी आपका opinion क्या है?

मैं: मेरा ये कहना है की वो जो भी निर्णय लें उससे पहले वो मेरी तीन बातों के बारे में सोच लें;

१. मुझे नहीं पता की रसिका के माँ-बाप किस तरह के लोग हैं...क्या उन्हें पता भी था की उनकी बेटी पेट से है? अगर था और ये जानते हुए भी उन्होंने जान-बुझ के शादी की तो...ऐसे में अगर Divorce की नौबत आती है तो वो लोग हमें परेशान करने से बाज नहीं आएंगे?

२. इस सारे फसाद में बिचारे वरुण की कोई गलती नहीं है| वो तो मासूम है! उसे थोड़े ही पता है की उसकी माँ कैसी है? तो घर के बड़े कोई भी निर्णय लें उसका बुरा असर वरुण पे ना पड़े|

३. तीसरी बात थोड़ी अजीब है..और मैं उस बात पे यकीन नहीं कर सकता पर अनदेखा भी नहीं कर सकता| वो ये की उसदिन जब अजय भैया और रसिका में झगड़ा हुआ था और मैं बीच में पद गया था तब बातों-बातों में रसिका ने कहा की अजय भैया उसे शारीरिक रूप से खुश नहीं कर पाते| या तो उसके अंदर की आग इतनी बड़ी है की कोई भी उसे शांत...

(आगे की बात मैंने पूरी नहीं की क्योंकि उसे कहने मुझे भी शर्म आ रही थी|)

भौजी: हम्म्म.... उस जैसी ..... (भौजी ने उसके लिए अपशब्द कहने से खुद को रोका) औरत का विश्वास कोई कैसे करे? रही बात उसके घरवालों की, तो मैं भी उनके बारे में कुछ नहीं जानती| शादी के बाद ये बात सामने आई की वो इतनी जल्दी घरभवति कैसे हो गई, तो घरवालों ने उसके घर वालों को बुलाया था और उन्हें बहुत बुरी तरह जलील किया था| तब से ना वो लोग यहाँ आते हैं और ना ही कोई उनके घर जाता है| पैसे तौर पे देखा जाए तो वो काफी अमीर हैं...मतलब काफी जमीन है उनके पास| सुनने में आया था के वरुण के नाना ने अपनी सारी जमीन-जायदाद वरुण के नाम कर दी है| खेर उसेन शादी से पहले जो भी किया मुझे उससे कोई सरोकार नहीं, मुझे तो गुस्सा इस बात का है जो उसने मेरी गैरहाजरी में किया| अगर उसने आप साथ किया वो किया होता...तो मैं उसे जान से मार डालती!

मैं: Hey ! शांत हो जाओ! कुछ नहीं हुआ ऐसा...और अपना वादा भूलना मत...मेरे जाने के बाद एक दिन भी आप यहाँ नहीं रुकोगे! उस उलटी खोपड़ी की औरत को मैं आपके आस-पास भी नहीं चाहता|

भौजी: मैंने आपको Promise किया है..उसे कैसे तोड़ सकती हूँ!

मैं: अच्छा इससे पहले मैं भूल जाऊँ...मुझे आप अपने घर का नंबर दे दो| ताकि मैं पहुँचते ही आपको फ़ोन कर सकूँ! और आप मेरा नंबर भी लिख लो...पर ये नम्बर पिताजी के पास होता है| तो आप मुझे या तो सुबह छ बजे तक या फिर रात में सात बजे के बजे बाद कभी फ़ोन कर लेना|

भौजी ने मुझे अपना नंबर दे दिया और मेरा नंबर भी लिख लिया|

करीब आधा घंटे बाद मुझे पिताजी ने बुलाया और भौजी भी मेरे साथ आईं और मेरे साथ खड़ी हो गईं;

पिताजी: बेटा...तुम हमे ये बातें पहले क्यों नहीं बताई? तुम्हें पता है की मुझे कितना दुःख हुआ जब भाभी (बड़की अम्मा) ने मुझे सारी बात बताई| मुझे बहुत ठेस पहुंची की मैंने अपने बेगुनाह बच्चा पे हाथ उठाया|

पिताजी मुझे गले लगाने को हाथ खोल दिए और मैं भी उनके गले लग गया|

मैं: पिताजी...मैं नहीं जानता था की मैं आपसे ये बात कैसे कहूँ? मुझे बहुत शर्म आ रही थी| इसलिए मैंने ये बात सिर्फ इन्हें (भौजी की तरफ इशारा करते हुए) बताई| इन्होने भी कहा की मैं ये बात सब को बता दूँ...पर मेरी हिम्मत नहीं पड़ी!

पिताजी: बेटा..तुम बड़े हो गए...और कहते हैं की जब बेटे का जूता बाप के पाँव आने लगे तो वो बेटा नहीं रहता.. दोस्त बन जाता है| वादा करो आगे की तुम मुझसे कोई बात नहीं छुपाओगे?

मैं: जी!

मैंने ‘जी’ कहा था...वादा नहीं किया था!!! वरना मुझे उन्हें अपने और भौजी के बारे में सब बताना पड़ता! खेर शाम हुई..सब ने चाय पी, किसी ने भी फैसले के बारे में नहीं बताया और ना ही मुझे उसकी कोई पड़ी थी| मैं तो बस ये मना रहा था की कैसे भी कल का दिन कभी ना आये! रात का भोजन मुझे बने के लिए नहीं बोला गया था तो मैं नेहा के साथ बैठ के खेल रहा था... और इधर रसिका से सब ने किनारा कर लिया था..और मुझे थोड़ा बुरा भी लग रहा था... ! क्यों ये मैं नहीं जानता पर मेरे मन में उसके प्रति सिर्फ सहनुभूति थी ....और कुछ नहीं| ये सब नहीं होता अगर उसने ये जानने के बाद के मैं उसके साथ कुछ नहीं करना चाहता वो मुझसे दूर रहती और मुझसे जबरदस्ती नहीं करती| रात का भोजन मैंने सब के साथ किया...क्योंकि कल तो जाना था...पर मैंने पूरा भोजन नहीं किया...ताकि मैं थोड़ा सा भोजन भौजी के साथ भी कर सकूँ| सभी पुरुष सदस्य उठ के चले गए मैं फिर भी अपनी जगह बैठा रहा;

पिताजी: बेटा सोना नहीं है क्या? या अभी और भूख लगी है?

मैं:जी आप सब के साथ तो भोजन कर लिया पर बड़की अम्मा के साथ भोजन करना तो रह गया ना| इसलिए आप सोइये मैं अम्मा के साथ भी बैठ के थोड़ा खा लेता हूँ...फिर सोजाऊंगा|

पिताजी: बेटा ज्यादा देर जागना मत... सुबह जाना भी है?

पिताजी के जाने के बाद भौजी अपना और मेरा खाना एक ही थाली परोस लाईं और अम्मा और माँ भी हमारे पास आके बैठ गईं|

अम्मा ने मेरी बात सुन ली थी तो वो बोलीं;

अम्मा: बेटा.. ये तुमने सही किया की हमारे साथ भी बैठ के भोजन कर रहे हो| अरे बहु वो दोपहर की गोभी वाली सब्जी बची है? बहुत स्वाद थी!

भौजी: जी अम्मा...ये रही| ( भौजी ने अम्मा को सब्जी परोस दी)

अम्मा: वाह....बेटा...क्या स्वाद बनाई है!

माँ मेरी तारीफ सुन के खुश हो रहीं थी...

मैं: सुन लो माँ...अम्मा आपको पता है माँ को मेरा खाना बनाना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता|

अम्मा: क्यों छोटी?

माँ: दीदी ...पता नहीं क्या-क्या अगड़म-बगड़म डालता रहता है| हमें आदत है सादा खाना खाने की और ये है की पता नहीं ...शाही पनीर...कढ़ाई पनीर...और पता नहीं क्या-क्या बनाने को कहता है| अब पनीर हो या कोई भी सब्जी हो...बनती तो कढ़ाई में है तो उसे कढ़ाई पनीर कहेंगे!!

माँ की बात सुन हमसब हँस पड़े! अब थी सोने की बारी तो आज गर्मी ज्यादा होने के कारन सभी स्त्रियां बड़े घर के आँगन में सोने वालीं थीं| मेरी और भौजी की चारपाई आस-पास ही थी| पर मुझे नींद नहीं आ रही थी...और इधर भौजी चारपाई पर लेट चूंकिं थीं| नेहा को मैंने पहले ही सुला दिया था| मैं चुप-चाप उठा और छत पे जाके एक कोने पे दिवार का टेक लगा के नीचे बैठ गया| टांगें बिलकुल सीढ़ी पसरी हुईं थीं और हाथ बंधे थे| कुछ देर बाद वहां भौजी आ गईं;

भौजी: जानती थी आप यहीं मिलोगे? क्या हुआ नींद नहीं आ रही?

मैं: नहीं

भौजी: मुझे भी नहीं आ रही|

और भौजी आके मेरी दोनों टांगों के बीच आके बैठ गईं और अपना सर मेरे सीने पे रख दिया| मैंने अपने हाथ उठा के उनको अपनी आगोश में ले लिया| मेरा मुंह ठीक उनकी गर्दन के पास था और मेरी गर्म सांसें उन्हें अपनी गर्दन पे महसूस हो रही थी|

भौजी: आपने मुझे वो पैसे क्यों दिए थे मैं समझ गई.... आप उसे अपनी कमाई समझ के मुझे दे रहे थे ना?

मैं: हाँ

भौजी: I Love You !

मैं: I Love You Too !

भौजी: जानू...मैंने आज सारा दिन आपके साथ सही नहीं किया?

मैं: अरे...यार आपने कोई पाप नहीं किया...कुछ गलत नहीं था... मुझे जरा भी बुरा नहीं लगा| हाँ बस आपने जब जलाने की कोशिश की तब...थोड़ा बुरा लगा था...मतलब मैं जल गया था!

भौजी: मैं सारा दिन आपको अभी के लिए रोक रही थी....

उनकी बात सुन के मेरी आँखें चौड़ी हो गईं? मतलब ये सब उन्होंने प्लान किया था?

भौजी: जितना मन आपका था...उतना ही मेरा भी...पर मैं चाहती थी की बस एक बार...एक आखरी बार हम दिल से प्यार करें ना की वहशियों की तरह सारा दिन एक दूसरे के बदन से लिपटे रहे|

मैं: यार ...मेरे पास शब्द नहीं हैं ...कहने को... आप इतना ...इतना प्यार करते हो मुझसे?

भौजी मेरी तरफ मुड़ीं और मैंने उनके रसभरे होठों को चूम लिया| भौजी मेरा पूरी तरह से साथ दे रहीं थीं और जब हमारे होंठ एक दूसरे से मिले तो लगा जैसे बरसों की प्यास बुझा दी हो किसी ने| मन ये भी जानता था की आज आखरी दिन है...आखरी कुछ घंटे...आखरी कुछ लम्हें....किन्हें हम दोनों एक साथ... बिता पाएंगे!

मैं बड़े प्यार से अपनी जीभ को उनके होठों पे फिराने लगा...फिर उन्होंने भी अपनी जीभ बहार निकली और हम दोनों की जीभ एक दूसरे को प्यार से छेड़ने लगी..पीयर करने लगी| मैंने उनके होठों को बारी-बारी से चूसना शुरू कर दिया और भौजी ने अपना डायन हाथ मेरे बालों में फिरना शूरु कर दिया| दस मिनट तक हम ऐसे ही एक दूसरे के होठों का रसपान करते रहे| फिर हम अलग हुए तो दोनों की आँखों में प्यास थी... चाहा थी...परन्तु हमारे पास जगह नहीं थी| नीचे सब सो रहे थे और ऊपर छत पे कोई बिस्तर था नहीं! तो अब करें तो करें क्या?

मैंने देखा की छत पे अम्मा ने आम सुखाने को रखे थे| वो आम दो छद्रों पर बिछे हुए थे| मैंने एक चादर के आम उठा के दूसरी पे रख दिए और भौजी को अपने पास बुलाया| भौजी को उस चादर पे लिटा के मैं उनकी दोनों टांगों के बीच अ गया और उनके होठों को फिर से चूमने लगा| भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम हुआ था और वो अपनी गार्डन ऊपर उठा-उठा के मुझे चूम रहीं थीं| फिर मैंने स्वयं वो चुम्बन तोडा और नीचे खिसकता हुआ उनकी योनि के ऊपर पहुँच गया| उनकी साडी उठाई और कमर तक उठा दी| मैंने उनकी योनि छटनी शुरू ही की थी की मुझे याद आया की हम 69 की पोजीशन try करते हैं| मैंने भौजी को सब समझाया और वो ख़ुशी-ख़ुशी मान भी गईं| मैं नीचे लेता था और वो मेरे ऊपर| जैसे ही उनके होठों ने मेरे लंड को छुआ मेरे शरीर में करंट दौड़ गया| भौजी ने एक ही बारी में पूरा लंड अंदर भर लिया और उनके मुंह से निकलती गर्म सांसों से सुपाड़े को सुरक लाल कर दिया| इधर मुझे इतनी तेजी से जोश आया की मैंने उनकी योनि को पूरा अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा| मैंने उँगलियों की सहायता से उनकी योनि के कपालों को खोला और अपनी जीभ अंदर घुसा दी और गर्दन को आगे पीछे करते हुए अपनी जीभ को लंड की तरह उनकी योनि में अंदर-बहार करने लगा| इधर भौजी ने मेरे सुपाड़े पे अपने होंठ रख दिए और जीभ की नोक से सुपाड़े के छेद को कुरेदने लगीं| जोश में आके मैंने कमर को उसकाना शुरू कर दिया| अब मैंने भी उनकी योनि पे अपना प्रहार किया और उनके Clit को अपने मुंह में भर के जीभ की नोक से छेड़ने लगा| भौजी ने अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया क्योंकि वो अब मेरे इस हमले से मचलने लगीं थीं|

भौजी ने अपने दांत मेरे सुपाड़े पे गड़ा दिए और मैं एकदम से चरमोत्कर्ष पे पहुँच गया और उनके मुंह में ही झड़ गया| जब मैं थोड़ा शांत हुआ तो मई भौजी की योनि में अपनी ऊँगली और जीभ दोनों से दुहरा वार किया और भौजी इस वार को सह नहीं पाइन और वो भी स्खलित हो गईं| उनका सारा रस बहता हुआ मेरे मुंह में आ गया और मैं वो नमकीन काम रस पी गया| पाँच मिनट तक हम दोनों ऐसे ही रहे...लंड अब सिकुड़ चूका था...पर मन ....मन अब भी प्यासा था| भौजी मेरे साथ लिपट के लेट गईं...कुछ देर बाद मैंने उनके होठों को फिरसे चूसना शुरू कर दिया| हमदोनों के मुख में एक दूसरे का कामर्स था...और ये उत्तेजना हम दोनों को बहुत उत्तेजित कर रही थी| मैं भौजी के ऊपर आ गया और उनसे ओनका ब्लाउज उतारने का आग्रह किया| भौजी ने अपना ब्लाउज उतार दिया...और स्वयं ही अपनी साडी भी उतार दी| पेटीकोट का नाड़ा मैंने अपने दाँतों से खोल दिया और उसे निकाल के अलग रख दिया| अब मैंने बिना उनके कुछ कहे अपने कपडे स्वयं उतार दिए और हम दोनों अब पूरी तरह नग्न अवस्था में थे और एक दूसरे के जिस्म से लिपटे हुए एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे| जब मैंने भौजी की आँखों में झनका तो मुझे एक तड़प महसूस हुई! भौजी समझ गईं की मैं क्या चाहता हूँ;

भौजी: आप क्यों पूछ रहे हो?

मैंने अपना सिकुड़ा हुआ लंड जो की अब थोड़ा सख्त हो चूका था उसे उनकी योनि के अंदर पिरो दिया! उस समय उन्हें ज्यादा कुछ मसहूस नहीं हुआ..पर जसिए ही लंड को अंदर की गर्मी और तड़प का एहसास हुआ तो वो सख्त होता चला गया| भौजी योनि जो बही स्खलित होने से सिकुड़ चुकी थी उसमें जब लंड के अकड़ने से तनाव पैदा हुआ तो भौजी की मुंह से चीख निकली; "आह" इसके पहले की वो आगे कुछ कहतीं मैंने उनके होठों को अपने होठों से ढक दिया और उनकी चीख मेरे मुंह में दफन हो गई| मैंने नीचे से धीरे-धीरे push करना शुरू कर दिया| लंड पूरा जड़ तक उनकी योनि में समा रहा था और भौजी की योनि मेरे लंड को गपा-गप निगले जा रही थी| मैंने थोड़ा ज्यादा Push किया तो लंड उनकी बच्चेदानी से टकराया| जैसे ही लंड टकराया भौजी एक दम से ऊपर को उचक गईं|


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 15:13

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मैंने उनके होंठ अब भी अपने मुंह से ढके हुए थे| मैंने जब अपना मुंह हटाया तो भौजी की सिसकारी निकलने लगी..."स्स्स्स....जानू....स्स्स्स्स" मैंने रफ़्तार बढ़ा दी.... और भौजी के साथ-साथ मेरी हालत भी ख़राब होने लगी|

रफ़्तार बढ़ने से भौजी की सिस्कारिया और तेज होने लगी... "स्स्स..अह्ह्हह्ह...म्म्म्म्म...जानू....."

मैं: प्लीज ज्यादा जोर से मत चिल्लाना...वरना कोई ऊपर आ जायेगा?

भौजी ने हाँ में सर हिलाया और फिर उनके मुंह से सिस्कारियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी| उन्होंने अपनी टांगें उठा के मेरे कमर पे लॉक कर ली और मेरे चेहरे को हाथ में थाम के मुझे अपने होठों से लगा लिया और मेरे होठों को चूसने लगी और मैं अब भी नीचे से धक्के लगाय जा रहा था|

भौजी: जानू....आज....स्स्स्स्स.... मुझे पूरा कर दो.... आज आखरी रात है हमारी साथ.....स्स्स्स्स अम्म्म्म्म्म ... (मस्ती में उनके मुंह से शब्द भी ठीक से नहीं निकल रहे थे)

इसी के साथ भौजी दुबारा स्खलित हो गईं और उनके रस की गर्म फुवार जब मेरे लंड पे पड़ी तो मैं भी झड़ गया| हाँफते हुए मैं उनके ऊपर जा गिरा| सांसें तो भौजी की भी तेज थीं| उनके गोर-गोर स्तन मेरी छाती में धंसे हुए थे| भौजी की योनि में जो रस था वो अब बाह के बहार आना चाहता था परनतु भौजी जैसे एक बूँद भी बाहर नहीं गिरना चाहती थीं| उन्होंने अपनी कमर ऊपर उठा ली और जैसे चाहा रहीं हों की सारा रास उनकी बच्चेदानी में भर जाए! मैं उनके ऊपर से उत्तर के उनकी बगल में लेट गया| दो मिनट बाद भौजी ने कमर नीचे की;

मैं: ये आप क्या कर रहे थे?

भौजी: आपका रस अपने अंदर समा रही थी!

मैं: (उनकी बचकानी बात सुन के मैं हँस पड़ा) ही...ही... ही... ही...

भौजी: हँस क्या रहे हो...सच कह रही हूँ|

मैं: अच्छा बाबा!

फिर उन्होंने लेटे-लेटे अपनी साडी उठाई;

मैं: क्या हुआ? जा रहे हो? अभी? प्लीज...मत जाओ ना.... मेरे पास बैठो ना|

भौजी: किसने कहा मैं जा रही हूँ? मैंने साडी में कुछ गाँठ लगा के रखा है उसे निकाल रही हूँ|

मैं: क्या है?

भौजी ने गाँठ खोल के उसमें से स्ट्रॉबेरी वाली लोलीपोप निकाली!

मैं: आप सब प्लान कर के रखते हो?

भौजी: जानू आप से ही सीखा| वैसे भी ये आपकी FARFEWELL पार्टी है! इसे Special तो होना ही है|

और भौजी लोलीपोप अपने मुंह में लेके चूसने लगी| भौजी ने मेरी तरफ करवट ली और अपनी दायीं टांग मोड़ के मेरे लंड के पास रख दी और अपने घुटने से मेरे लंड को सहलाने लगीं| लोलीपोप चूसने के बाद उन्होंने मुझे दी और मैं उसे चूसने लगा;

भौजी: So you must be exhausted!

मैं: Are you?

भौजी: नहीं...

मैं: तो मैं कैसे हो सकता हूँ...वैसे भी ये आखरी रत है हमारी..इसके बाद तो हम कुछ महीने बाद ही मिलेनेगे और तब तो मैं आपको छू भी नहीं पाउँगा?

भौजी: वो क्यों?

मैं: मैंने सुना है की Pregnancy के दिनों में सम्भोग नहीं करते!

भौजी: हाय ...आपको मेरी कितनी फ़िक्र है...पर एक चीज तो कर ही सकते हैं?
(उनका मतलब था Anal Sex से)

मैं: (उनका मतलब समझते हुए) ना...कभी नहीं.... मुझे वो वहशी पना लगता है| Anal तो जानवर करते हैं...और मैं आपसे प्यार करता हूँ...आपके जिस्म का भूखा नहीं हूँ|

भौजी; जानती हूँ...अगर आप जिस्म के ही भूखे होते तो आज मेरे इतनी बार मन अकरने पे या तो मुझसे रूठ जाते या फिर जबरदस्ती सब करते! मैं तो बस आपका मन जानना चाहती थी| अगर आप उसके लिए कहते भी तो मैं मन नहीं करती!

मैं: आपका मन करता है Anal करने का?

भौजी: नहीं...मुझे नाम से ही चिढ़ है...पर आपकी ख़ुशी के लिए कुछ भी!

मैं: Thanks but No Thanks !

मैंने लोलीपोप निकाल के भौजी को दी जो अब लघभग खत्म हो गई थी|

मैं: Oops मैं सारी चूस गया!

भौजी: कोई बात नहीं...अभी तो एक आम वाली और एक ऑरेंज वाली बची है|

उन्होंने आम वाली खोली और उसे चूसने लगीं ...और इधर मेरी नजर उनके स्तनों पे पड़ी| जो अपनी नाराजगी जाता रहे थे की आखिर मैंने उन्हें अभी तक क्यों नहीं छुआ? मैंने उनके दायें स्तन को अपने मुंह में लिया और जीभ की नोक से उनके निप्पल को कुरेदने लगा| भौजी ने अपने दायें हाथ से मेरा सर अपने स्तन पे दबा दिया| मैंने जितना हो सकता था उतना बड़ा मुंह खोला और उनके स्तन को अपने मुंह में भरना चाहा परन्तु असफल राहा पर मेरे दाँतों ने उनके स्तन पे अपनी छाप छोड़ दी थी| पाँच मिनट तक उनके स्तन का पान करने के बाद मैंने उनके बाएं स्तन को पीना चाहा परन्तु उसके लिए मुझ फिर से उनकी दोनों टांगों के बीच आना पड़ा| मैंने उनके निप्पल को अपनी जीभ से छेड़ा तो भौजी ने "स्स्स" की सिटी बज दी| फिर मैंने उनके स्तन को मुंह में लेके चूसने लगा और इतनी तेज सुड़का मार जैसे उसमें से सच में दूध निकलेगा| "प्लीज...स्स्स्स्स " कहते उन्होंने मेरे सर को अपनी छाती पे दबा दिया! मैंने अपने दांत उनके स्तन पे गड़ा दिए और वो चिहुंक उठी!

भौजी: ये निशान मेरे दिल पे पड़ चुके हैं!

मैं उनकी आँखों में देखते हुए मुस्कुरा दिया! अब तो लंड तनतना गया था ...पर मुझे लगा की शायद तीसरी बार.....ये ठीक नहीं होगा!!

भौजी: क्या हुआ?

मैं: ये ठीक नहीं है... (मैं उनके उपरसे हट के उनकी बगल में पीठ के बल लेट गया|)

भौजी: (मेरी तरफ करवट लेते हुए) क्यों क्या हुआ?

मैं: मैं आपसे प्यार करता हूँ...दो बार तक करना ठीक था...परन्तु तीसरी बार...ये ...ऐसा लगता है जैसे मेरे अंदर आपके जिस्म की भूख है.... पर मैं आपसे प्यार करता हूँ... आपके जिस्म से नहीं!

भौजी: समझी... आप की सोच गलत नहीं है पर जैसा आपका दिमाग कह रहा है वैसे नहीं है...ये कोई शरीर की भूख नहीं है...ये आपका प्यार है! भूख तब होती जब मैं इसके लिए राजी नहीं होती..आप मुझसे जबरदस्ती करते..या मुझे जूठ बोल के ..Emotional ब्लैकमेल कर के करते...आपका शरीर अंदर से आपको ये करने को विवश करता| पर आप खुद देखो...आप ने खुद को रोक लिया...शर्रेरिक भूख होती तो आप खुद को कभी रोक ना पाते...और तो और आप रसिका के साथ कब का सब कुक कर चुके होते! आपको तो माधुरी के साथ करने के बाद भी ग्लानि हुई... रसिका के छूने भर से आपको अपवित्र जैसा लगा और आधी रात को नह बैठे...वो भी दो दिन... और क्या हालत हो गई थी आपकी? इसलिए आप कुछ भी गलत नहीं कर रहे...तीन बार क्या ...अगर सारी रात भी आप करना चाहो तो ना तो ये अनैतिक है ना ही मैं आप[को मना करुँगी| जबतक होगा...आपका साथ देती रहूंगी! अब चलो... Finish what you started? Or do you expect me to….

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई| मैं समझ चूका था की जो भौजी कह रहीं हैं वो बिल्कु सही है! भौजी मेरे लंड पे अपनी दोनों टांगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द रखते हुए बैठ गईं और ऊपर-नीचे होने लगीं| उनकी योनि अंदर सेपोरी तरह हमदोनों के रास से नह चुकी थी और अब तो भौजी को ज्यादा जोर भी नहीं लगाना पड़ रहा था..और लंड फिसलता हुआ सररर से अंदर जाता और उनकी बच्चेदानी से टकराता| भौजी के ऊपर-नीचे होने से उनके स्तन भी ऊपर-नीचे उछल रहे थे| भौजी के मुंह से सिस्कारियां छूटने लगीं थीं "स्स्स्स्स...म्मा ..माआ म्म्म्म्म्म...आह...म्म्म्म्म्म...स्स्स्स्स...आह...स्स्स्स...म्म्म्म...हम्म्म्म...स्स्स्स....हाय्य्य !!" अब तो मैंने भी उनकी कमर से ताल मिलाना शुरू कर दिया और उनके हर धक्के के साथ मैं भी अपनी कमर उचकाने लगा था|

भौजी: हाँ....स्स्स्सस्स्स्स......इसी तरह.....आअह.....लगता है आज तो आप मेरी बच्चेदानी के....आह !! ...स्स्स्स....मम्म.... अंदर घुसा दोगे...स्स्स्स्स्स!!!

मैं: Sorry ...आह...मुझे नहीं पता...मुझे क्या हो रहा है|

भौजी: प्लीज...रुकना मत ...स्स्स्सस्स्स्स....अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ...ऐसे ही..... मेरे साथ ताल मिल्लते रहो!

अब मेरे अंदर जोश और भी बढ़ गया मैंने भौजी को झटके से अपने नीचे लिटाया और मैंने उनकी टांगें अपने कंधे पे रखीं और उनके ऊपर आ गाय और तेजी से लंड अंदर-बाहर करने लगा| अब तो भौजी स्खलित होने ही वालीं थीं, उन्होंने अपने हाथों की सारी उँगलियाँ मेयर पीठ में धंसा दी और उनके नाखूनों ने मेरी पीठ को कुरेद दिया जैसे कोई बिल्ली के पंजे किसी गद्दे को कुरेद देते है| मेरे मुंह से "आह!" की सीत्कार निकली.... उनके कुरेदने से जख्म हो गया पर बहुत छोटा सा...बस नाख़ून के निशान थे|

.अगले दो मिनट में वो स्खलित हो गईं; "स्स्स्स्स...अह्ह्हह्ह्ह्ह....जानू...उउउउउउ म्म्म्म्म्म" और चूँकि मैंने उनकी कमर उठा राखी थी उनका रस बहार छलक नहीं पाया और मेरे लंड अंदर-बहार करने से फच-फच की आवाजें आने लगीं| अब मैंने उनकी अक्मर वापस नीचे राखी और उनकी दायीं टांग छोड़ दी पर बाईं टांग को सीधा हवा में खड़ा कर दिया और उनकी योनि में अपना लंड पेलता रहा| लंड पूरा नादर जा रहा था और अब मुझ में और शक्ति नहीं बची थी की मैं और खुद को संभाल पाऊँ| अपने आखरी धक्के के साथ मैं उनकी योनि में झड़ गया और सारा रस उनकी योनि में उड़ेल दिया और उनके ऊपर गिर पड़ा| पसीने से पीठ तरबतर थी और ऊपर से भौजी के नाखूनों से पीठ छिल गई थी तो उनमें पसीने की बूंदें पड़ते ही जलन मचने लगी|

दोनों में ही ताकत नहीं बची थी... दोनों हाँफ रहे थे... और अब तो नीचे जाके अपने बिस्तर में सोना जैसे आफत थी दोनों के लिए!

भौजी: आज...तो.....आपने मुझे....पूर्ण कर दिया! (भौजी ने अपनी सामनसों को नियंत्रित करते हुए कहा)

मैं कुछ नहीं बोल पाया .... अब तो मन कर रहा था की बस ये संमा यहीं थम जाए और मैं उनसे लिपट के यहीं सो जाऊँ!

मैं: यार...अभी तो कपडे भी पहनने हैं...और मुझ में बिलकुल ताकत नहीं बची है!

भौजी: जानू...पहले बताओ तो सही की टाइम क्या हुआ है?

मैं: एक बज रहा है!

भौजी: पिछले तीन घंटों से आप मुझे प्यार कर रहे हो तो थको गए ही ना! चलो आप लेटो मैं दूध बनाके ले आती हूँ!

मैं: कोई जर्रूरत नहीं...आप भी थके हुए हो...मेरे पास ही लेटो!

भौजी: पर आप थके हुए हो... सुबह कैसे जाओगे दिल्ली?

मैं: अच्छा है...कल जाना बच जायेगा| कल का दिन भी मैं आपके साथ गुजारूँगा!

भौजी: सच?

मैं: मुच..

भौजी: अच्छा पहले कपडे तो पहन लो ...

हमने जैसे-तैसे कपडे पहने ... फिर छत की Perapet Wall के साथ पीठ लगा के दोनों बैठ गए| और अब तो दोनों को बड़ी जोरों की नींद आने लगी थी| भौजी ने मेरी गोद में सर रखा और सो गईं| मैं भी कुछ देर तक उनके सर को सहलाता रहा और फिर मुझे भी नींद आ गई|


The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 25 Dec 2014 22:46

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अब आगे ....

सुबह की पहली किरण जैसे ही मुख पे पड़ी तो मेरी आँख खुली|आमतौर पे लोग सुयभ उठते हैं..भगवान को शुक्रिया देते हैं..माँ-बाप के पाँव षहु के आशीर्वाद लेते हैं ...पर उस दिन...उस दिन सुबह होते ही मुझे लगा की मेरी जिंदगी की शाम ढल गई हो| मन ही मन कोस रहा था की क्यों...क्यों ये सुबह आई! क्या ये रात और लम्बी नहीं हो सकती थी? आखिर क्यों..........?

खेर अपना होश संभालते हुए मैंने देखा तो भौजी मेरे पास नहीं थीं| घडी में साढ़े पाँच बजे थे.... और मुझे पे एक चादर पड़ी हुई थी| साफ़ था ये भौजी ने ही डाली थी| मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं थी की मैं नीचे जाके भौजी का सामना करूँ वरना मैं फफफ़क के रो पड़ता| इसलिए मिअन छत पर दिवार का टेक लेके उकड़ूँ होक बैठा रहा और अपना मुंह अपने घुटनों में छुपा लिया| करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी आइन...उनकी पायल की छम-छम आवाज मेरे कानों में मधुर संगीत की तरह गूंजने लगी| वो मेरे सामने अपने घुटनों पे बैठते हुए बोलीं;

भौजी: जानू........जानू.......उठो?

पर मैंने अपना मुंह अब भी छुपा रखा था| मैं जानता था की वो मुझे इतनी जल्दी इसीलिए उठा रहीं हैं ताकि जो कुछ घंटे बचे हैं हमारे पास..कम से कम वो तो हम एक साथ गुजार लें|

भौजी: जानू....मैं जानती हूँ...मुझे आपको अभी नहीं उठाना चाहिए....पर आप का दीदार करने को ये आँखें तरस रहीं हैं!

अब उनकी ये बातें मेरे दिल को छू गईं और मैंने अपना मुंह घुटनों की गिरफ्त से छुड़ाया और मैं भौजी से गले लग गया| बहुत....बहुत रोक खुद को...संभाला.....अपनी आवाज तक को गले में दफन कर दिया ...क्योंकि जानता था की अगर मैंने कुछ बोलना चाहा तो मेरे आंसूं बाह निकलेंगे और भौजी का मनोबल आधा हो जाएगा| वो टूट जाएँगी.... चूँकि वो मुझे इतना प्यार करती थीं तो उन्हें पता तो अवश्य ही लग गया होगा की मेरी मनोदशा क्या है?

भौजी: मैं.....जानती हूँ.......(सुबकते हुए) आप पर क्या ....बीत रही है|

भौजी इतना भावुक हो गईं थीं की अपना दर्द...अपनी तड़प छुपा नहीं पा रहीं थीं और खुद को रोने से रोकने की बेजोड़ कोशिश कर रहीं थीं| इसी करन वो शब्दों को तोड़-तोड़ के बोल रहीं थीं| मैं उन्हें रोने से रोकना चाहता था ...

मैं: प्लीज......कुछ मत कहो!

बस इतना ही कह पाया क्योंकि इससे आगे कहने की मुझ में क्षमता नहीं थी| अगर आगे कुछ बोलता तो....खुद को रोक नहीं पाता| पाँच मिनट तक हम चुप-चाप ऐसे ही गले लगे रहे| फिर हम दोनों नीचे आये और मैं फ्रेश होने लगा| फ्रेश होते समय भी मन कह रहा था की जल्दी से काम निपटा और उनकी आँखों के सामने पहुँच जा...आखरी बार देख ले...फिर अगला मौका दशेरे की छुटियों में ही मिलेगा| मैं जल्दी से तैयार हो गया और इतने में पिताजी आ गए;

पिताजी: बेटा दस बजे निकलना है| अपना सामान पैक कर लो|

मैं: जी...वो ...माँ कर देगी...मैं एक बार नेहा से मिल लूँ ...फिर उसने स्कूल चले जाना है|

पिताजी: नेहा कहीं नहीं जा रही ...सुबह से रोये जा रही है| तू ऐसा कर उसे चुप करा...तबतक मैं सामान पैक कर देता हूँ|

इतने में बड़की अमा चाय लेके आ गईं| मैंने उनके पाँव हाथ लागए और चाय का कप उठाते हुए पूछा;

मैं: अम्मा...आप चाय लाय हो?

बड़की अम्मा: हाँ बेटा...वो बहु कुछ काम कर रही थी तो ....

अम्मा कुछ बात छुपाने की कोशिश करने लगीं| रोज तो भौजी ही मुझे चाय दिया करती थीं और आज वो चाय नहीं लाईं हैं तो कुछ तो गड़बड़ है| मैंने चाय का कप रखा और उनके घर के पास भगा| दरवाजा अंदर से लॉक था.... मैंने दरवाजा खटखटाया तो दो मिनट तक कोई अंदर से नहीं बोला| मैंने आस-पास नजर दौड़ाई तो पाया की नेहा भी बाहर नहीं है| अब तो मुझे घबराहट होने लगी! मैं तुरंत भौजी के घर की साइड वाली दिवार फांदने के लिए भगा| और उस वक़्त इतना जोश में था की ये भी नहीं देखा की वो दिवार आठ-नौ फुट ऊँची है!

मैंने अपने जूते उतारे और दिवार की तरफ भगा और किसी तरह दिवार का ऊपरी किनारा पकड़ा और खुद को खींच के दूसरी तरफ भौजी के घर के आँगन में कूद पड़ा| देखा तो भौजी नेहा को गोद में ले के अपने कमरे के दरवाजे पे बैठीं थीं| नेहा भौजी के सीने से लगी हुई थी और उसके सुअब्कने की आवाज मैं साफ़ सुन सकता था| मैं जहाँ कूड़ा था वहीँ अपने घुटनों के बल बैठ गया और भौजी ने मुझे जब ये स्टंट मारते हुए देखा और मेरे कूदने की आवाज नेहा ने सुनी तो वो भौजी की गोद से छिटक के अलग हुई और आके मेरे गले लग गई| दोस्तों मैं आपको बता नहीं सकता उस वक़्त मेरे दिल पे क्या गुजरी थी.... एक छोटी सी बच्ची जिसका उसकी माँ के अलवबा कोई ख्याल नहीं रखता...जो मुझे पापा कहती थी... जिसक ख़ुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता था ....वो बच्ची ...मुझसे लिपट के रोने लगी तो मेरा क्या हाल हुआ इसी बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं| ऐसी स्थिति में चाहे जैसा भी इंसान हो...वो खुद को रोने से नहीं रोक पाता...पर मैं खुद कोकिसिस तरह रोके हुए था...आंसूं आँखों की दहलीज तक पहुँच के रूक गए थे...जैसे वो भ जानते थे की अगर वो बाहर आ गए तो यहाँ दो दिल और हैं जो टूट जायंगे| मैं फिर भी उस बच्ची को गोद में ले के पुचकारने लगा... की वो कैसे भी चुप हो जाए...

मैं: नेहा...बेटा बस...बस बेटा! चुप हो जाओ...देखो पापा अभी आपके पास हैं! बस बेटा...चुप हो जाओ! देखो...मैं बस कुछ दिनों के लिए जा रहा हूँ...और आपसे मेरी बात फोन पे होती रहेगी! प्लीज बेटा...

पर नहीं...मेरी सारी कोशिशें उस बच्ची को चुपकराने में व्यर्थ थीं| भौजी दरवाजे पे खड़ीं हम दोनों को देख रहीं थीं...अब तो उनसे बी कंट्रोल नहीं हुआ और वो भी भाग के मेरे पास आइन और मेरे गले लग गईं| गले लगते ही उन्होंने फुट-फुट के रोना शुरू कर दिया| इधर गोद में नेहा पहले ही रो रही थी और अब भौजी.....अब मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं थी की मैं खुद को रोने से रोकूँ| आखिरकर मेरे आंसूं भी छलक आये.... आज मैं सच में टूट छुका था....दिल ने भावनाओं के आगे हार मान ली थी! अब खुद पे कोई काबू नहीं रहा...ऐसा लगा की भौजी और नेहा के बिना... मैं पागल हो जाऊँगा! मन नहीं कह रहा था की मैं उन्हें बिलखता हुआ छोड़ के दिल्ली चला जाऊँ ऊपर से जब भौजी ने बिलखते हुए हाथ जोड़ के मिन्नत की तो;

भौजी: प्लीज.....I beg of you ...प्लीज..... मत जाओ!

मेरा दिल चकना चूर हो गया| उनकी हर एक ख्वाइश पूरी करने वाला आज उनके आगे लाचार होगया....कोई जवाब नहीं था..मेरे पास.... क्या करता मैं...क्या कहता मैं....मेरे बस में कुछ नहीं था|

मैं: (सुबकते हुए) प्लीज....ऐसा मत कहो.....मैं मजबूर हूँ! मुझे माफ़ कर दो!!! प्लीज !!!

भौजी फिर से मुझसे लिपट गईं ....आधा घंटा...दोस्तों आधा घंटे तक हम रोते रहे.... नेहा तो रोते-रोते सो गई थी..पर हम दोनों की हहलात ऐसी थी जैसे कोई जिस्म से रूह को अलग कर रहा हो! मैंने नेहा को चारपाई पे लिटाया पर उसने मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द अपनी बाँहों से लॉक कर लिया था| भौजी ने मेरी मदद की तब जाके हमने उसके हाथों की पकड़ से मेरी गर्दन छुड़ाई| भौजी फिर से मेरे सीने पे सर रख के सुबकने लगीं|

मैं: देखो...I Promise मैं वापस आऊँगा... !!

भौजी ने हाँ में सर हिलाया और तब जाके उनका सुबकना बंद हुआ|

मैं: अब दरवाजा खोलो ...और बाहर चलो| (मैंने उनके आँसूं पोंछते हुए कहा|)

भौजी: आप सच में आओगे ना?

मैं: हाँ...वादा करता हूँ| दशेरे की छुटियों में अवश्य आऊँगा| बस कुछ महीनों की ही तो बात है...

भौजी ने हाँ में सर हिलाया और वो मुझे आशवस्त दिखीं| मैं बहार आया और बड़े घर की ओर चल दिया और भौजी हमारे लिए रास्ते में खाने को कुछ पैक करने लगीं| मेरी आँख सुर्ख लाल हो गईं थीं... कोई भी देख के बता सकता था की मैं कितना रोया हूँगा!

पिताजी: क्यों...जाने का मन नहीं हो रहा है?

मैंने कुछ जवाब नहीं दिया...देता भी तो उन्होंने मेरी क्लास लगा देनी थी| मैं बिना कुछ कहे अंदर चला गया और मन ही मन प्रार्थना करने लगा की कैसे भी जाना रूक जाए| इधर पिताजी ने अजय भैया को रोइक्क्षव लेने के लिए भेज दिया| ये रिक्शा हमें Main रोड तक छोड़ने वाला था और वहाँ से हमें लखनऊ की बस मिलती ...वहां से रात दस बजे की लखनऊ मेल हमें सीधा दिल्ली छोड़ती| अब मैं मन ही मन मना रहा था की भैया को रिक्शा ना मिले! और मेरा बचपना तो देखिये...जैसे रिक्शा ना मिलने पे पिताजी जाना कैंसिल कर देंगे जब की हमारे पास कन्फर्म टिकट है! इधर माँ और बड़की अम्मा जो साथ में बैठे बात कर रहे थे उन्होंने मेरी लाल आँखें देखीं तो बिना कहे ही सारी बात समझ गए|

बड़की अम्मा: मुन्ना...तुम्हारी बड़ी याद आएगी! और तुम चिंता ना करो...हम लोग हैं यहाँ...तुम्हारी भौजी का ध्यान रखने को!

मैंने उन्हें कुछ कहा नहीं पर मन ही मन कहा की आप तो हो पर उस चुडेल(रसिका) का क्या और उस दैत्य (चन्दर भैया) का क्या? पर मन ही मन खुद को धन्यवाद दिया की कम से कम तूने भौजी को अपने मायके जाने को तो बोल दिया है ना! वो वहाँ सुरक्षित रहेंगी! इतने में भौजी नाश्ता ले आईं. और उन्होंने एक प्लेट मेरी ओर बढ़ाई;

भौजी: लीजिये

मैं: आपकी प्लेट कहाँ है? और नेहा कहाँ है?

भौजी: नेहा सो रही है ...आप खा लो...मैं बाद में खा लुंगी!

मैं: आजतक कभी हुआ है की मैंने आपके पहले खाया हो? कम से कम मुझे पता तो होता था की आपने खाया जर्रूर होगा...आखरी बार ही सही मेरे हाथ से खा लो.... (मैंने पराठे का एक टुकड़ा उन्हें खिलाने को उठाया)

ये बात मैंने बड़की अम्मा और माँ के सामने बिना डरे कह दी थी| पर मैं उस वक़्त इतना भावुक था की मुझे कोई फर्क नहीं था की मेरे आस-पास कौन है और मुझे क्या कहना चाहिए और क्या नहीं? मुझे चिंता थी...बल्कि पता था की मेरे जाने के बाद मेरे गम में भौजी खाना नहीं खायेंगी|

बड़की अम्मा: खा ले बहु...प्यार से खिला रहा है ... सच कहूँ छोटी (माँ) इन दोनों का प्यार बड़ा अद्भुत है! जब से मानु आया है...दोनों एक पल के लिए भी अलग नहीं हुए| और जब हुए तो दोनों का क्या हाल था ये तो सब को पता है| जब मानु तुम्हारे साथ वाराणसी गया तब बहु ने खाट पकड़ ली...खाना-पीना बंद कर के| और जब बहु को मानु ने शादी में भेजा तो इसने खाट पकड़ ली...अपर खेर उस समय बात कुछ और थी|

माँ: हाँ दीदी... पता नहीं दोनों कैसे रहेंगे...एक दूसरे के बिना?

बड़की अम्मा: अरे छोटी...जैसे-जैसे दिन बीतेंगे...दोनों भूल जायेंगे ...आखिर दूर रहने से रिश्तों में दूरियाँ तो आ ही जाती हैं| फिर मानु की शादी हो.....

मैं नहीं जानता की अम्मा क्या सोच के वो सब कह रहीं थीं| मेरा और भौजी का रिश्ता कोई कच्चे धागे की गाँठ नहीं थी जिसे दूरियाँ तोड़ दें! ये तो एक बंधन था...एक अनोखा बंधन...जो तोड़े ना टूटे! और जब उन्होंने शादी की बात की तो मैं नाश्ता छोड़ के उठ गया और बाहर आ गया|

भौजी मेरी प्लेट ले के मेरे पास आईं;

मैं: क्या जर्रूरत थी अम्मा को वो सब कहने की?

भौजी: छोडो उन्हें... आ नाश्ता करो| देखो बड़े प्यार से मैंने बनाया है! (भौजी ने परांठे का एक कौर मेरी ओर बढ़ाया)

मैं: चलो आपके घर में बैठ के खाते हैं|

फिर हम भौजी के घर में आ गए और आँगन में चारपाई पे दोनों बैठ गए| भौजी मुझे अपने हाथ से खिला रहीं थीं और मैं उन्हें अपने हाथ से खिला रहा था|

भौजी: अच्छा मैं एक बात कहूँ? आप मानोगे?

मैं: आपके लिए जान हाज़िर है...माँग के तो देखो!

भौजी: जाने से पहले एक बार.... (बस भौजी आगे कुछ नहीं कह पाईं|)

पर मैं उनकी बात उनके बिना कहे समझ चूका था|मैं उनकी तरफ बढ़ा और उनके चेहरे को अपने दोनों हाथों के बीच थाम और उनके थिरकते होटों को Kiss किया| ये Kiss शायद Goodbye Kiss था ....आखरी Kiss ... कम से कम कुछ महीनों तक तो आखरी Kiss ही था! Kiss करते समय मैंने उनके होंठों को हलके से अपने मुँह में भर के चूसा बस...इस Kiss में जरा भी वासना...या जिस्म की अगन नहीं थी| केवल प्यार था...पाक प्यार... पवित्र! जब हम अलग हुए तो नेहा उठ चुकी थी और हमें Kiss करते हुए देख रही थी| फिर उसने अपनी बाहें खोल के मेरी गोद में आने की इच्छा प्रकट की| मैंने उसे झट से गोद में उठा लिया और बाहर निकल आया| मैं जानता था की अब किसी भी पल अजय भैया रिक्शा लेके आ जायेंगे और मुझे जाता हुआ देख नेहा फिर रो पड़ेगी| इसलिए मैं उसे गोद में लिए दूकान की ओर चल दिया ओर उसे एक बड़ा चिप्स का पैकेट दिलाया| कम से कम उसका ध्यान इसमें लगा रहेगा और वो रोयेगी नहीं| जब मैं नेहा को लेके वापस आया तब तक रिक्शा आ चूका था और अजय भैया हमारा सामान रिक्क्षे में रख रहे थे| मेरे पाँव जैसे जम गए...वो आगे बढ़ना ही नहीं चाहते थे| सारा बदन साथ छोड़ रहा था...जैसे एक साथ शरीर के सारे अंगों ने बगावत कर दी थी की भैया हम आगे नहीं जायेंगे,हमें यहीं रहना है...

पर दिमाग...वो सब को आगे चलने पे मजबूर करने पे तुला था| बारबार धमका रहा था की अगर पिताजी बरस पड़े तो? मैं भारी-भारी क़दमों से रिक्क्षे की तरफ बढ़ा| अब तक सारा सामान रखा जा चूका था और माँ-पिताजी सबसे विदा ले रहे थे| रिक्क्षे के पास सब खड़े थे; बड़के दादा, चन्दर भैया, अजय भैया, भौजी, रसिका भाभी, बड़की अम्मा, सुनीता और ठाकुर साहब|

मैंने नेहा को गोद से उतार दिया और बड़के दादा के पाँव छुए;

बड़के दादा: जीतो रहो मुन्ना...और अगली बार जल्दी आना|

फिर मैं बड़की अम्मा के पास पहुंचा और उनके पाँव छुए;

बड़की अम्मा: सुखी रहो मुन्ना.... (उन्होंने मेरे माथे को चूम लिया...उनकी आँखें छलक आईं थीं| अम्मा ने मेरे हाथ में कुछ पैसे थम दिए और मेरे मन करने के बावजूद मेरी मुट्ठी बंद कर दी|)

फिर मैं चन्दर भैया के पास पहुंचा और उनके पाँव छूने की बजाय उनसे नमस्ते की, मेरे मन में उनके लिए वो स्थान नहीं था जो पहले हुआ करता था| चन्दर भैया मुझे खुश लगे, शायद मेरे जाने के बाद उनकी पत्नी पर अब कोई हक़ नहीं जताएगा|;

चन्दर भैया: नमस्ते (उन्होंने बस मेरी नमस्ते का जवाब दिया|)

फिर मैं अजय भैया के पास पहुंचा और उनके गले लगा और उनके कान में फुस-फुसाया;

मैं: भैया मेरे एक काम करोगे?

अजय भैया: हाँ भैया बोलो|

मैं: आज अपना फ़ोन उनके (भौजी) पास छोड़ देना...मैं ट्रैन में बैठने पे उन्हें फोन कर के बता दूँगा वरना वो चिंता करेंगी|

अजय भैया: कोई दिक्कत नहीं भैया ....

फिर मैं भौजी और नेहा के पास पहुंचा, नेहा चिप्स खा रही थी पर जैसे ही उसने मुझे देखा वो मुझसे लिपट गई और रोने लगी| मुझे लगा था की वो चिप्स खाने में बिजी रहेगी... पर नहीं... उसने तो वो चिप्स का पैकेट छोड़ दिया और मेरे गाल पे Kiss किया| मानो वो जाता रही हो की मैं आपसे प्यार करती हूँ...चिप्स से नहीं! अब तो मेरी आँखें भी नम हो गेन थीं पर मैं खुद को रोके हुए था| मैंने थोड़ा पुचकार के नेहा को चुप कराया और उसे गोद से निचे उतारा और वो जाके पिताजी के और माँ के पाँव छूने लगी| जब मैं भौजी के पास पहुँचा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने भौजी को सब के सामने गले लगा लिया और भौजी टूट के रोने लगीं| मुझसे अब काबू नहीं हुआ और मेरी आँखों से भी आँसूं बह निकले| खुद को संभालते हुए उनके कान में कहा;

मैं: Hey ....Hey .... बस ...जान मैं ...वापस आऊँगा| और हाँ अजय भैया को मैंने कह दिया है...वो आप को अपना फोन दे देंगे| मैं आपको ट्रैन में बैठते ही फोन करूँगा| अपना ख़याल रखना और हमारे बच्चों का भी?

भौजी ने हाँ में सर हिलाया| और बोलीं;

भौजी: आप भी अपना ख़याल अच्छे से रखना|

फिर मैंने अपने आँसूं पोछे और सुनीता के पास आया

मैं: (गहरी साँस छोड़ते हुए) अब मैं आपको Hi कहूँ या Bye समझ नहीं आता| But anyways it was nice knowing you ! GoodBye !

सुनीता: Same here !!!

फिर मैं ठाकुर साहब के पास पहुंचा और उनके पाँव छुए;

ठाकुर साहब: जीते रहो बेटा! अगली बार कब आओगे?

मैं: जी दशेरे की छुटियों में?

मेरा जवाब सुन के पिताजी हैरान दिखे! और चन्दर भैया का मुँह फीका पड़ गया|

ठाकुर साहब: बहुत अच्छा बेटा...जल्दी मुलाकात होगी|

अब बचीं तो बची रसिका भाभी, जो सबसे पीछे खड़ी थीं| मैं उनकी ओर बढ़ा ओर हाथ जोड़ के उन्हें नमस्ते कहा| जवाब में उन्होंने भी नमस्ते कहा| शायद उन्होंने उम्मीद नहीं की थी की मैं जाने से पहले उनको "नमस्ते" तक कह के जाऊँगा|

पिताजी: चल भई..देर हो रही है|

साफ़ था की कोई नहीं चाहता था की मैं उसे आखरी बार मिलूं...पर मैं उसके पास इस लिए गया था ताकि सब के सामने उस की कुछ तो इज्जत रह जाए!

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