raj sharma stories
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -47
गतान्क से आगे...
“ले अब जीभ निकाल कर इनके लिंग को और नीचे लटकते इनके अंडकोषों को छातो” रत्ना ने कहा. मैं अब पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी और खुशी खुशी वही कर रही थी जो रत्ना मुझे करने को कहती. मेरी योनि बुरी तरह गीली हो चुकी थी. उससे निकल कर मेरा रस बहते हुए घुटनो तक जा रहा था. ऐसा लग रहा था कि पूरा बदन ही पिघल कर योनि के रास्ते बह निकलेगा. इतना रस मैने कभी नही देखा था.
मैं बिल्कुल भूल चुकी थी की मैं किसी की ब्यहता बीवी हूँ. सारी लाज हया सब पता नही कहाँ भाप की तरह उड़ गये थे. किसी और मर्द से संभोग तो दूर उसके सामने नग्न होने की बात सोचना भी मैं बुरा मानती थी. लेकिन अब मुझे कुच्छ भी बुरा नही लग रहा था. ऐसा लग रहा था मानो वो मेरे कोई अपने हों. मैं उनके सामने अब बिल्कुल भी नही झिझक रही थी.
मैं अब तो बस एक सेक्स की भूखी रांड़ की तरह हरकतें कर रही थी. जो कुच्छ विरोध शुरू शुरू मे था वो सब उस नशीले शरबत ने ख़त्म कर दिया था. ऐसा लग रहा था मानो मैं हवा मे उड़ती जा रही हूँ. घने बादलों के बीच किसी कल्पना लोक मे. धीरे धीरे उस नशे का असर पूरे बदन पर च्छा गया था और मेरा बदन सेक्स की ज्वाला मे जल रहा था. जी कर रहा था कि ढेर सारे मर्द मिल कर मेरे बदन को नोच डालें. अब तो झुंझलाहट हो रही थी कि सेवकराम मेरी योनि मे मची सिहरन को मिटाने मे इतनी देर क्यों कर रहा है.
मैं अपनी जीभ निकाल कर उसके लिंग को और उसके अंडकोषों को पागलों की तरह चाट रही थी. मैने कभी अपने पति के साथ मुख मैथुन नही किया था लेकिन आज सिर्फ़ रत्ना के एक बार कहते ही मैं तैयार हो गयी थी. मैं किसी एक्सपर्ट की तरह उसके लंबे तने हुए लंड को चूस रही थी. उनका लिंग पूरी तरह तन चुक्का था. उसका साइज़ इतना जबरदस्त था की कोई और वक़्त होता तो उसे अपनी चूत मे लेने की कल्पना से ही डर लगने लगता. उसके सामने तो देव का लिंग कहीं नही लगता था. जितना लंबा था उतना ही मोटा. आधा लिंग भी मेरे मुँह मे नही जा पा रहा था. किसी तरह उसके सूपदे को मुँह मे भर कर चूस रही थी
रत्ना ने मेरे बाल खोल दिए थे. मेरे बाल खुल कर पूरे चेहरे पर बिखर गये थे. सेवक राम जी मेरे चेहरे पर फैले मेरे बालों को पीछे हटा कर मुझे अपने लिंग को चूस्ता हुआ देख रहे थे. मैं उनके लिंग को चूस्ते हुए उनकी आँखों मे ही झाँक रही थी. हमारी आँखें एक दूसरे की आँखों मे बँध गयी थी. वो मुझे देख देख कर मुस्कुरा रहे थे.
कुकछ देर बाद रत्ना ने मुझे खींच कर उनके लिंग से हटाया. मुझे बाँहों से थाम कर अपने पैरों पर उठाया और मेरी चूचियो के नीचे हाथ रख कर उनको उठा कर सेवकराम की ओर किया.
“ गुरुजी इनका स्वाद तो ग्रहण करो. देखो कितना रस खीर के रूप मे बह कर बाहर निकल रहा है. इसे चख कर तो देखो कैसी है ये..” सेवकराम जी को कहते हुए मुझे अपने स्तनॉ को सेवकराम से चुसवाने को कहा, “ ले गुरु जी को अपने फूल से बदन की भेंट तो चढ़ा.”
मैं अब तक तो निर्लज्जता से परे हो चुकी थी मगर फिर भी किसी गैर मर्द को अपने साथ प्रण निवेदन करने से हिचकिचा रही थी. मेरे वैवाहित जीिवान मे सेंध लगने वाली थी. आज पहली बार किसी गैर मर्द के साथ सेक्स की बात सोच कर ही मेरा बदन सिहर रहा था. मैं अपने सूखते होंठों पर जीभ फिरा रही थी.
उसने मेरे हाथों को स्तनो पर रखा और कहा, “ ले इन्हें उनको अर्पण कर. बोल कि गुरु जी मेरे इन फलों का रसोस्स्वादन करें. इनमे इतना रस भर दें कि ये आपकी भरपूर सेवा के काबिल हो जाए.”
मैने झिझकते हुए अपने स्तनो को अपनी हथेली मे थमा. फिर उनको उपर करते हुए सेवक राम के होंठों से च्छुअया. मेरे निपल एकदम सख़्त हो चुके थे. उनके होंठों पर अपने निपल रगड़ने लगी तो ऐसा लगा मानो बिजली के झटके उनके होंठों से निकल कर मेरे पूरे जिस्म मे फैल रहे हैं.
“ प्लीईज़…..” बस इतना ही मुँह से निकल पाया. सेवकराम मेरी झिझक को समझ गये सो उनके होंठों पर मुस्कुराहट च्छा गयी.
सेवकराम ने झुक कर मेरे एक बूब पर अपने होंठ रख दिए. वो एक स्तन को चूस रहे थे और अपनी हथेलियों से दूसरे स्तन को बुरी तरह मसल रहे थे. मेरे निपल को खींच कर उन्हे उमेथ रहे थे. मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी.
“ उम्म्म्ममम…..आआअहह….सीईईईईईई…….” मैं अपनी उंगलियों को उनके बालों मे फिरा रही थी. मैने झुक कर उनके माथे को चूम लिया. फिर उनके चेहरे को अपने स्तनो पर दबाने लगी. वो मेरे एक निपल को अपने मुँह मे भर कर चूस रहे थे. उन्हों ने भी उत्तेजना मे मेरे स्तनो पर दाँत गढ़ा दिए.
रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
उनके मसल्ने के कारण पहले से ही मेरे निपल खड़े हो चुके थे, मेरे बूब्स भी उनकी हरकतों से सख़्त हो गये. उन्हों ने मेरे एक निपल को चूस चूस कर सूजा दिया. फिर उनके होंठ मेरे दूसरे निपल को अपनी गिरफ़्त मे ले लिए. मैने सेवकराम का सिर दोबारा अपनी बाहों से चूचियो पर दबा दिया. वो मेरे निपल्स को चूस्ते हुए बीच बीच मे अपने दाँतों से उन्हे काट भी लेते या कुरेदने लगते.
मेरी उत्तेजना अपने चरम पर थी. मेरे मुँह से “आआआअहह…… उम्म्म्ममम” जैसी आवाज़ें निकल रही थी. रत्ना उस वक़्त मेरी योनि मे अपनी उंगलियाँ अंदर बाहर कर रही थी. कभी वो मेरी क्लाइटॉरिस को नाख़ून से कुरेदने लगती तो कभी मेरी योनि की फांकों को उंगलियों मे भर कर मसल्ने लगती. वो मुझे लगातार उत्तेजित किए जा रही थी. मैं इतनी उत्तेजना सम्हाल नही पाई और बिना किसी के कुच्छ किए ही मेरा पहला वीर्यपात हो गया. मेरा रस योनि से बहता हुया घुटनो तक बह रहा था.
मैं पल भर को कुच्छ ठंडी हुई मगर दूसरे ही पल वापस उनकी हरकतों से जिस्म मे आग भरने लगी. कुच्छ देर तक दोनो निपल्स को चूसने के बाद जैसे ही सेवकराम जी ने अपना चेहरा हटाया, मैने बिना किसी के कहने का इंतेज़ार किए उनके होंठों पर अपने होंठ रख दीए और उनके निचले होंठ को अपने दाँतों के बीच लेकर काटने लगी. मैं उनके सीने पर अपने स्तनो को रगड़ रही थी. मैं उत्तेजना मे फुंफ़कार रही थी.
उन्हों ने मुझे अपनी बाँहों मे जाकड़ लिया. मेरा नाज़ुक बदन उनके पत्थर के समान सख़्त सीने पर पिसा जा रहा था. उनका लिंग मेरी योनि के सामने ठोकर मार रहा था. मैं अपनी झांतों से भरी योनि को उनके लिंग पर रगड़ रही थी. रत्ना आकर मेरे बगल मे खड़ी हो गयी उसने मेरी एक टांग को अपने हाथों से उठा कर मेरी योनि को सेवकराम के लिंग के लिए खोज पाना आसान बना दिया. मेरी एक टांग को उसने ज़मीन से उठा रखा था.
सेवक राम जी ऑलमोस्ट मेरी हाइट के हैं इसलिए उनका लिंग मेरी योनि के होंठों को रगड़ रहा था. उन्हों ने थोड़ा अपने शरीर को झुकाया और अपने लिंग को मेरी योनि मे धक्का दे दिया. उनका लिंग सरसरता हुया मेरी योनि के भीतर घुस गया. मेरी नज़रें रत्ना से मिली. वो मुस्कुरा रही थी. मेरे होंठों पर भी एक संतुष्टि भरी मुस्कुराहट छा गयी थी.
“ दिशा आज तुम्हारा भी जीवन सेवकराम जी की छत्र्चाया मे आकर धन्य हो गया. “ वो मेरे सिर पर हाथ फेर रही थी. मैने खुश होकर उनके हाथ को चूम लिया. मेरी हरकत ये दिखाने के लिए काफ़ी थी कि सेवकराम जी के साथ सेक्स मे मेरी पूरी रजा मंदी है.
सेवकराम खड़े खड़े मुझे चोदने लगे. वो मेरे बदन को अपनी बाँहों मे जाकड़ कर अपनी कमर को तेज तेज आगे पीछे कर रहे थे. उनका लिंग काफ़ी मोटा ताज़ा था लेकिन उस आंगल से ज़्यादा अंदर नही जा पा रहा था. उनकी मोटाई तो मैं महसूस हल्के हल्के दर्द के रूप मे महसूस कर रही थी. कुच्छ देर तक यूँ ही चोदने के बाद उन्हों ने अपने लिंग को मेरी योनि से बाहर निकाला. उनका लिंग मेरे रस से लिकडा हुया चमक रहा था.
“ ले इसे सॉफ कर क्योंकि अब ये तेरी योनि के दूसरे छ्होर तक भर देगा. ये अब तेरी चूत को फाड़ कर चौड़ा करेगा.” रत्ना ने कहा. मैने उसका आशय स्मझ कर वापस उनके लिंग को अपनी जीभ से चाट कर सॉफ किया. सेवकराम जी का चेहरा अब उत्तेजना मे तप कर लाल हो गया था. अगर मैं अब ना रुकती तो उनका लिंग अपनी उत्तेजना मेरे चेहरे पर उधेल कर शांत हो जाता. मगर मैं इतनी जल्दी उन्हे शांत नही होने देना चाहती थी. मैं तो उनके बदन की आग को इतना हवा देना चाहती थी कि वो आग मुझे भी जला कर राख कर दे.
रत्ना मेरी बाँह पकड़ कर बिस्तर तक ले आई. मैं बिना किसी विरोध के चुपचाप उस बिस्तर पर लेट गयी. रत्ना ने मेरी टाँगों को पकड़ कर फैला दिया. वो आकर मेरे दोनो पैरों के बीच बैठ गये. रत्ना ने अपनी उंगलियों से मेरी योनि को उनके सामने फैला दिया.
“ देखो गुरुजी कितनी भूखी है इसकी चूत. इस की भूक मिटा दो. ये पता नही कब से प्यासी है. इसे आपके लिंग से अमृत वर्षा का इंतेज़ार है.” रत्ना ने कहा. सेवकराम जी अपना चेहरा मेरी योनि के एकदम पास ले गये और अपनी नाक से कुच्छ देर तक मेरी योनि को सूँघा फिर अपनी जीभ से मेरी योनि के चारों ओर फैली झाग को चाट कर सॉफ किया. मेरे हज़्बेंड ने भी कभी मेरी योनि को अपनी जीभ से स्पर्श नही किया था. मुझे पहली बार पता चला था कि योनि मे लंड डाल कर धक्का मारने के अलावा भी कई तरह के खेल होते हैं सेक्स मे.
सेवकराम जी उठ कर मेरी टाँगों के बीच बैठ गये.
“ दिशा कैसा लग रहा है?” रत्ना ने मेरे बालों को सहलाते हुया पूछा. मैने हामी मे सिर हिलाया. मेरे मुँह से सिर्फ़ “उम्म्म्मम…..आआअहह” के अलावा कुच्छ नही निकला.
“ बोलो बनोगी इस आश्रम की शिष्या? बनोगी इनकी चेली? इस लिंग को अपनी योनि मे बार बार लेना चाहोगी?”
“ हां हाआँ …..” मेरे मुँह से निकला.
“मुझे नही इनसे रिक्वेस्ट करो. इनसे कहो अपने मन की बात. प्यासी हो तो अपनी प्यास इनके सामने जाहिर करो. जो तुम्हारी बदन की प्यास को बुझा सकें.”
“ ःआआन ….हाां….प्लीई….प्लीज़ मुझे अपनी शरण मे ले लो. मुझे अपने मे समा लो मेरे वजूद आपके वजूद मे खो जाने के लिए तड़प रहा है. मेरी प्यास बुझा दो.” मैने सेवकराम जी से कहा.
क्रमशः............
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -48
गतान्क से आगे...
“ देवी आपने अपने पति देव से पर्मिशन लिया था?” सेवक राम जी ने मेरी रिक्वेस्ट पर मुस्कुराते हुए पूछा. उन्हों ने मेरे होंठो पर अपने होंठ रखते हुए कहा,
“ एक बार और सोच लो जब भी कहूँगा जिससे कहूँगा तुम्हे चुदवाना होगा. “
ऐसे समय मे मैं क्या किसी की भी सोचने समझने की छमता ख़त्म हो जाती है. मेरा जिस्म सेक्स की आग मे जल रहा था. निपल्स एग्ज़ाइट्मेंट मे खड़े खड़े दुखने लगे थे. योनि के दोनो होंठ उत्तेजना मे खुल बंद हो रहे थे. योनि के अंदर सिहरन खुजली का रूप ले ली थी. ऐसे समय मे तो बस एक ही चीज़ मुझे याद थी वो था उनका किसी खंबे की तरह खड़ा लंड. मेरी योनि तो बस एक चीज़ ही माँग रही थी…. जम कर ठुकाई, जिससे जिस्म की आग बुझ सके, चूत की खुजली मिटे. मेरा पति मेरा ग्यान मेरा परिवार सब धुंधले हो चुके थे दिमाग़ से. सेक्स मे तड़प्ते किसी जानवर जैसी हालत थी मेरी.
मैने कहा, “हाआँ हाआँ….आप जो कहोगे मैं करूँगी……जिससे कहोगे मैं कार्ओौनगी प्लीईससस्स मुझ पर रहम करो…..प्लीईसए इस अवस्था मे मुझे मत छ्चोड़ो. आअहह…… रतनाआआ……..ईनसीए कहूऊऊ मेरी चुउत पर चींतियाअँ चल रहिी हैं. ” मैं अपनी टाँगे मोड़ कर बार बार अपनी कमर को उनके लिंग को छ्छूने के लिए उचकाने लगी. अपने हाथों से उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि मे डालने को छॅट्पाटा रही थी. मैने अपनी टाँगों को अपने सीने से चिपका लिया जिससे मेरी योनि उनके सामने हो गयी. मैने अपने ही हाथों से अपनी योनि की फांकों को फैला कर उनकी आँखो मे झाँका. हम दोनो की नज़रें एक दूसरे से चिपक गयी थी. मैने आँखो ही आँखो मे उनसे निवेदन किया कि अब और ना तरसाएँ.
सेवकराम ने मेरी योनि पर अपना लिंग रखा. रत्ना ने एक हाथ से उनके लिंग को थामा और दूसरे हाथ से मेरी चूत को खोल कर उनके लिंग को मेरी योनि के मुँह पर रखा. सेवकराम ने एक मजबूत धक्के मे अपना पूरा लिंग जड़ तक मेरी योनि मे पेल दिया. मेरी योनि रस से चुपड़ी हुई थी. उनका लिंग भी मेरे रस से गीला था लेकिन फिर भी उनके लिंग का साइज़ ऐसा था कि मेरे मुँह से “ आआआआआआआहह……….माआआ……..मर गइईईईईई” जैसी आवाज़े निकल पड़ी.
मैं छॅट्पाटा उठी. उनके अंडकोष मेरी योनि के नीचे मेरे जिस्म से चिपके हुए थे. फिर उन्हों ने एक झटके मे पूरा लिंग बाहर निकाला. ऐसा लगा मानो मेरे पेट से सब कुच्छ निकल कर बाहर आ गया और मेरी योनि एक दम खाली हो गयी हो. फिर उन्हों ने दोबारा अपने लिंग को एक झटके मे अंदर घुसा दिया. इस बार उन्हे अपने लिंग को योनि के मुँह पर सेट करने की ज़रूरत नही पड़ी. दोनो के बीच सामंजस्या ऐसा हो चुक्का था की धक्का मारते ही लिंग अपनी जगह ढूँढ कर अंदर चला गया.
मैने अपनी टाँगों को अपने सीने से चिपका कर अपनी कमर को उपर की ओर उठा रखा था इसलिए अपनी योनि मे प्रवेश करता हुआ उनका मोटा लिंग मुझे साफ साफ दिखा रा था. मैने जी भर कर अपनी ठुकाई देखने के बाद अपनी टाँगे नीचे कर के फैला दी.
उन्होने मेरे नग्न जिस्म पर लेट कर मेरे होंठों पर वापस अपना होंठ रख दिए. मैने अपने हाथों से उनके सिर को थाम कर उनके मुँह मे अपनी जीभ डाल दी और उनकी जीभ से अठखेलिया करने लगी. उनकी जीभ भी मेरी जीभ को सहला रही थी. उस वक़्त उनके हाथ मेरे दोनो स्तनो को बुरी तरह मसल रहे थे.
उसके बाद लगातार ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे. हर धक्के मे पूरे लिंग को टोपे समेत बाहर निकालकर वापस जड़ तक पेल देते थे. मैं उनके हर धक्के से उच्छल उच्छल जा रही थी. काफ़ी देर तक इसी तरह करने के बाद मुझे पीछे घुमाया और मेरी कमर को खींच कर उपर कर लिया. मेरा सिर तकिये मे धंसा हुआ था. वो पीछे से मेरी योनि मे धक्के मारने लगे.
एक…..दो…..तीन….. इस चुदाई के दौरान मैं तीन बार स्खलित हो चुकी थी. मगर उनकी रफ़्तार मे अभी तक कोई कमी नही आई थी. मेरी टाँगे थकान से काँपने लगी. मेरा मुँह खुल गया था और आँखे भी थकान से बंद हो गयी थी. घंटे भर तक बिना रुके, बिना रफ़्तार मे कोई कमी करे इसी तरह मुझे चोद्ते रहे.
“आआहह…गुउुुरुउुजिइीइ बुसस्स्स……बुसस्स्स..गुरुजिइइई बुसस्स…..अब मुझ पर्र्र्ररर रहम करूऊऊ”
लेकिन सेवकराम ने मेरी मिन्नतों पर कोई ध्यान नही दिया. करीब घंटे भर बाद उन्हों ने अपने लिंग को मेरी योनि से निकाला. रत्ना ने मुझे खींच कर सीधा किया और मेरे चेहरे को उनके लिंग के सामने ले आई. फिर उन्हों ने ढेर सारा वीर्य मेरे चेहरे पर मेरे स्तनो पर और मेरे बालों मे भर दिया. कुच्छ वीर्य मेरे मुँह मे भर गया था. मेरी नाक पर भी वीर्य लगा होने की वजह से मैं साँस नही ले पा रही थी. मैने अपनी हथेली से उनके वीर्य को सॉफ कर उसे अपनी जीभ से चाट लिया.
मैं अपने हाथों से पेट के नीचे अपनी दुखती कोख को दबाते हुए वहीं बिस्तर पर लुढ़क गयी. करीब पंद्रह मिनूट तक मैं इसी तारह बिना हीले दुले पड़ी रही. मानो अब शरीर मे कोई जान नही बची हो. पंद्रह मिनूट बाद जब आँखें खोली तो पाया कि सेवक राम जी जा चुके हैं. रत्ना मेरे सिरहाने पर बैठ कर मेरे बालों को सहला रही है.
“ कैसा लगा? मज़ा आया?” रत्ना ने पूछा.
“हाआँ डीडीिई……..बहुत मज़ा आया.” मैं अब तक उत्तेजना मे अपनी कमर उच्छाल रही थी. मगर अब अपनी नग्नता का अहसास और किसी गैर मर्द के साथ सहवास याद आते ही मैने शर्म से अपना चेहरा अपनी हथेलियों मे छिपा लिया.
“ कभी किसी और के साथ ऐसी खुशी ऐसी शांति ऐसा पूर्णता का अहसास हुया है क्या?”
“ नही…. रत्ना. आज तक मैने इतना सुख कभी हासिल नही किया था. दीदी मेरी सेक्स की भूख इन्होंने ऐसी मिताई कि मैं दीवानी हो गयी हूँ इनकी.”
“ मैं कहती थी ना कि एक बार इनके संपर्क मे आओगी तो जिंदगी भर की गुलाम बन जाओगी इनकी.” रत्ना ने मुस्कुरा कर कहा.
मैने उनकी सहायता से किसी तरह अपने कपड़े पहने और वहाँ से उठकर उनके बदन का सहारा लेकर लड़खड़ाते कदमो से घर आई.
आज मुझे इतना मज़ा आया था जितना मैने कभी महसूस नही किया था. मेरे बदन रोम रोम खुशी से काँप रहा था. मेरे बदन पर जगह जगह से मीठी मीठी कसक उठ रही थी. रात को पता नही कब तक मैं जागती रही अपने इस संभोग के बारे मे सोच सोच कर करवटें बदलती रही. जब तक ना मैने अपनी उत्तेजना को अपने ही हाथों से निकाल नही दिया मुझे नींद नही आई.
दो दिन तक मेरा बदन दुख़्ता रहा लेकिन मैं इस दर्द से बहुत खुश थी. ऐसी चुदाई के लिए अब हमेशा मन तड़पने लगा. अब तो शाम को मैं खुद हमारे बीच की डॉली को कूद कर सेवकराम जी के पास चली जाती थी. देव जब घर पर होता तो हम बहुत सांय्याम बरतते थे. जिसे उसके मन मे शक़ के बीज नही पैदा हों.
देव बहुत खुले विचारों का था. लेकिन मैं डर की वजह से उनको बता नही पाई. मैने सेवकराम जी से उनकी मुलाकात करवाई. सेवकराम जी ने उनके साथ मेलजोल बढ़ाना शुरू कर दिया. फिर धीरे धीरे उन्हे भी आश्रम बुलाया. उनकी वहाँ की औरतों ने इतनी आवभगत की कि वो भी उस आश्रम से बँध कर रह गये. आश्रम की शिष्याओं का जादू ही ऐसा होता है कि किसी साधु महात्मा भी उनके प्रेम पाश मे फँसे बिना नही रह सकता.
रत्ना मुझे बाद मे चटखारे ले लेकर सुनाती थी. किस तरह उसने भी देव के साथ सेक्स किया. हम दोनो मे एक मूक समर्थन सा बन गया. दोनो साथ साथ आश्रम मे जाते फिर अंदर दोनो अलग अलग हो जाते. दोनो को पता ही नही रहता कि दूसरा कहा और किससे अपनी जिस्मानी भूख मिटा रहा है. धीरे धीरे हम अपने आपस के सेक्स के गेम के दौरान आश्रम मे घटी घटनाओ को फॅंटिज़ करने लगे. जब हम दोनो साथ बिस्तर पर होते तो एक दूसरे के साथ हुए सेक्स के गेम का वर्णन सुनते हुए सेक्स का आनंद लेते थे.
मैं तो सेवकरम की गुलाम बन ही चुकी थी. बिना उनके साथ संभोग किए मेरे बदन की आग नही बुझ पाती थी. उन्हों ने मुझे काम्सुत्र मे एक्सपर्ट बना दिया था. उन्हों ने मुझे ऐसे ऐसे आसान सिखाए जिनकी मैने कभी कल्पना भी नही की थी. लेकिन एक बात मुझे हमेशा कचोटती थी. उन्हों ने कभी मेरी योनि के अंदर डिसचार्ज नही किया था. वो हमेशा मेरे चेहरे पर मेरे मुँह मे मेरे स्तनो पर यहाँ तक की कई बार मेरे गुदा मे भी डिसचार्ज किया था मगर मेरी योनि मे डिसचार्ज के अहसास से मुझे हमेशा मरहूम रखा था.
एक दिन हम तीनो लंबी चुदाई के बाद नग्न बैठे बातें कर रहे थे तो मैने सेवकराम जी से पूछा, “ एक बात बताएँ गुरुजी, आप मेरी योनि के अंदर अपना रस क्यों नही भर देते. मेरी बहुत तमन्ना है कि आप ये ढेर सारा रस मेरी योनि मे डालें जिससे मेरी योनि की प्यास बुझ जाए. मैं चाहती हूँ कि आपका रस मेरी योनि से छलक छलक कर बाहर रिसे.”
“ नही दिशा हम ऐसा नही कर सकते. जब तक स्वामी जी का रस तुम्हारी कोख को भर नही देता और वो तुम्हे दीक्षा नही देदेते उनका कोई भी शिष्य ये काम नही कर सकता. हम सबसे पहले सब महिलाओं पर उनका अधिकार है. पहले उनका प्रसाद तुम्हे ग्रहण करना पड़ेगा. तुम्हारी योनि मे डिसचार्ज करने का पहला अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ उनका है. फिर हम सबका.” सेवकराम जी ने कहा
रत्ना दीदी ने बताया कि कुच्छ दिनो मे आश्रम के सबसे बड़े गुरु श्री श्री त्रिलोकनंद जी पधार रहे हैं. वो ही मुझे दीक्षा देकर आश्रम मे शामिल करेंगे. मैं ये सुनकर बहुत खुश हुई.
क्रमशः............