संघर्ष--37
गतान्क से आगे..........
रमिया को ये बात पसंद नही थी कि उसकी भाभी को सुक्खु चोदे." इतनी बात सुनकर सावित्री पुछि "लेकिन चाची ..वो गुलाबी चाची तो एक दुल्हन थी तो कैसे सुक्खु के साथ कैसे तैयार हो गई..?" तब धन्नो बोली " अरी वो गुलाबो भी शादी से पहले अपने मायके मे खूब खेली खाई थी, और सुक्खु का तो रामदीन का दोस्त होने के कारण घर के अंदर आना जाना भी लगा था. और एक खेली खाई औरत रंगीन मर्द को भला कैसे नही पहचानती. और यही हुआ.. सुक्खु रामदीन की बीबी यानी गुलाबी को पटाना सुरू कर चुका था. और सच्चाई भी है री कि ...वो कुच्छ ही हफ्ते मे फँस गयी..." तब सावित्री पुछि "लेकिन चाची तुम्हे कैसे एक एक बात मालूम है...?" तब धन्नो बोली "..तू हरजाई.....तू बात समझती नही...मैं पहले ही बोली कि वो मेरी बहुत अच्छी सहेली है .. और हम दोनो कुच्छ छुपाते नही...." फिर आगे बात जारी रखते बोली "तो सुन....., और गुलाबी अपने मुँह से ही बताती है कि, गर्मी के दिन थे और दोपहर मे रामदीन कहीं गया था, और रमिया भी कहीं गाँव मे गई थी, और उसी समय सुक्खु रामदीन को खोजते आया और गुलाबी को अकेले पा कर चोद्ने के फिराक मे पड़ गया. गुलाबी भी अंदर से तैयार तो थी लेकिन डर भी रही थी." धन्नो किसी कहानी की तरह सुना रही थी. बगीचे मे मद्धम मद्धम हवा भी चल रही थी. सावित्री भी पूरे मन से सुनती जा रही थी. धन्नो अपनी सहेली गुलाबी की बाते सुनती आगे बोली "फिर क्या था, वो सुक्खु गुलाबी की कोठरी मे घुस गया और इधेर उधेर पकड़ने लगा, और गुलाबी तो फँसी ज़रूर थी सुक्खु से, लेकिन लाज़ तो लग ही रही थी...जो दुल्हन ठहरी.." फिर एक सांस छोड़ते हुए आगे बोली "कोठरी के कोने मे सुक्खु गुलाबी को कस के मसलता रहा और कुच्छ ही देर मे गुलाबी गरम हो गयी, फिर तो सुक्खु के कहने पर दुल्हन की तरह सजी सन्वरि गुलाबी ने अपने हाथ से साड़ी और पेटिकोट को कमर तक उठा कर खड़ी हो गयी...और सुक्खु अपने मोटा तगड़ा लंड बुर के मुँह पर रख के खड़े खड़ा ही पेल दिया....गुलाबी बताती है कि रामदीन से मोटा लंड सुक्खु का था और एक ही धक्के मे आधा से ज़यादा लिसलिसा चुकी बुर मे घुस गया..लेकिन....!" सावित्री भी कुच्छ गहरी सांस लेते बोली "लेकिन क्या चाची.." तब धन्नो आगे बोली "आरीए.....वो उसकी ननद हरजाई कहीं से आ गयी .. और जैसे ही आने की आहट लगी ....सुक्खु ने अपने आधे घुसे लंड को झट से खींच लिया और गुलाबी भी हड़बड़ा कर कमर तक उठाई हुई साड़ी और पेटिकोट को नीचे गिरा ली मानो कुच्छ हुआ ही ना हो. फिर गुलाबी कोठरी के दूसरे कोने मे छुप्ने की असफल कोशिस कर रही थी. और सुक्खु कोठरी से बाहर निकले की सोच रहा था लेकिन उसका लंड अभी भी लूँगी मे खड़ा था. तभी उसकी ननद उस कोठरी मे दाखिल हो गई. उसे माजरा समझते देर नही लगी. रमिया ने एक नज़र अपनी भौजाई पर डाली जो लाज़ के मारे पानी पानी हो चुकी थी, और डर से कांप रही थी. और दूसरी नज़र सुक्खु पर डाली जो नज़रे मिलाने की स्थिति मे नही था. फिर रमिया ने दोनो को वहीं खूब गलिया दी. गुलाबी तो रो पड़ी. और रमिया के सामने हाथ भी जोड़ी, लेकिन रमिया ने मानो ठान ली कि वो रामदीन से ज़रूर बोलेगी. तब सुक्खु ने रमिया को धमकाते अंदाज़ मे बोला कि तू भी तो उससे चुदति है..." इतना सुनकर सावित्री आगे पुछि "फिर क्या हुआ " तब धन्नो बोली "अरे ...वो रमिया की गंद फट गयी...जब सुक्खु ने बोला कि वो भी छिनार है..और तबसे रमिया अपनी इज़्ज़त को ले कर डरने लगी.." "कुच्छ दिनो तक तो सब कुच्छ ठीक रहा लेकिन गुलाबी के आखों के सामने सुक्खु का मोटा और हलब्बी लंड घूमता रहता था. कुच्छ दिनो बाद मौका देखकर सुक्खु गुलाबी को फिर कोठरी मे पकड़ लिया ....लेकिन..!" सावित्री के मुँह से अचानक निकल पड़ा"लेकिन क्या..?" तब धन्नो बिना रुके बोली "लेकिन इसबार गुलाबी को खड़े खड़े ही पूरा का पूरा चोदा ..." सावित्री को समझ मे नही आई और कहानी मे खो चुकी थी सो तुरंत पुछि "पूरा?" तब धन्नो बोली "हाँ हाँ ...इस बार पूरा चोदा मतलब खड़े खड़े ही इतना चोदा कि गुलाबी भी झाड़ गयी और उसकी बुर मे सूखू भी अपना लंड झाड़ दिया...समझी.." फिर धन्नो आगे बोली "अरी ये कहानी बड़ी लंबी है...गुलाबी की....सुनेगी तो दिन बीत जाएगी.." ना जाने क्यों सावित्री को गुलाबी के बारे मे जानने की बहुत इच्च्छा हो रही थी. इस वजह से आगे पुछि "उसके बाद क्या हुआ ..?" तब धन्नो बोली "होगा क्या...फिर वो सुक्खु अक्सर रामदीन की बहन रमिया की तरह उसकी बीबी गुलाबी को भी चोद्ने लगा और रमिया को कभी कभी चोद्ता..." फिर आगे बोली "लेकिन एक औरत दूसरे से कितना दाह रखती है तुझे क्या पता....जब रमिया को उसके बुर का पानी काटने लगा तब अपनी भौजाई से लड़ने लगी...सुक्खु को ले कर..." "लेकिन ये लड़ाई बस दोनो के ही बीच होती...तीसरा कोई नही जानता था. " "लेकिन सुक्खु गुलाबी की गुदाज़ बुर के आगे रमिया को पसंद नही करता..क्यों कि रमिया थी तो जवान लेकिन बुर उतनी गुदाज़ नही थी...क्योंकि वो कुच्छ इकहरे शरीर की थी जैसे उसका भाई रामदीन है दुबला पतला..."
संघर्ष
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धन्नो आगे बोली "धीरे धीरे रमिया और गुलाबी के बीच के झगड़े कोठरी से बाहर भी आने लगी और एक दिन रामदीन के कान सुक्खु का नाम पड़ा तो वह आग बाबूला हो गया" "रामदीन को कुच्छ ऐसा समझ मे आया कि उसकी बहन रमिया उसके दोस्त सुक्खु से फँसी है....और वह अपनी बहन को खा जाने वाली नज़रों से देखते हुए सुक्खु के बारे मे पुछा तो दोनो ननन भौजाई चुप तो हो गई लेकिन रामदीन को ऐसा महसूस हुआ कि उसकी बहन सुक्खु से फँसी है. " "इसी शक़ मे रामदीन मानो रात दिन सुख़्ता जा रहा था. पहले से ही दुबले पतले शरीर के रामदीन को समझ मे नही आ रहा था कि सुक्खु से कैसे निपटे. " धन्नो आगे बोली "रामदीन के जी मे आता कि सुक्खु की जान लेले और खून पी जाए जो उसकी बहन पर बुरी नज़र रख रहा है.. और जिसपर उसने भरोसा किया और दोस्त की तरह अपने घर मे आने की छ्छूट दिया था. .." सावित्री मानो एक एक बात जानने के लिए व्याकुल थी "तो आगे क्या हुआ चाची...?" तब धन्नो कहानी बताती बोली "रामदीन गुस्से मे तो था लेकिन सुक्खु को अपने घर आने से मना करने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था. " इतना सुनकर सावित्री बोली "अरी चाची ...उसे तो डरना नही चाहिए था....और मना कर देता....उसके घर भला उसके मर्ज़ी के बिना कोई कैसे आ सकता है...?" इस मासूमियत भारी बात सुनकर धन्नो बोली "अरी हरजाई.....कहने और करने मे बड़ा अंतर होता है रे...सुक्खु उसके बचपन का दोस्त था और रामदीन जहाँ दुबला पतला डरपोक और दब्बु था वहीं सुक्खु किसी पहलवान की तरह हॅटा कॅटा और गथीला, शरीर की बनावट मानो राक्षस की तरह, अंधेरे मे देखो तो किसी शैतान से कम नही...और वो भी गाँव के ठाकुर साहेब का पित्ठू यानी चेला था...सुक्खु.." धन्नो के मुँह से सुक्खु के सुडौल और ताकतवर शरीर के बारे मे सुनकर सावित्री का चेहरा मानो सहम सा गया था. फिर धन्नो बोली "रामदीन भी ताक मे था कि कब वह सुक्खु को रंगे हाथ पकड़े..और इसी चक्कर मे एक दिन दोपहर को रामदीन को लगा सुक्खु उसके घर मे जाने के फिराक मे इधेर उधेर घूम रहा है. ऐसा देख कर रामदीन अपने घर से कुच्छ दूर पर छिप गया. तभी उसे लगा कि उसकी बहन पड़ोस मे ही घूम रही है तो रामदीन सोचा कि उसकी बहन जब अभी घूम ही रही है तो सुक्खु भी कहीं इधेर ही होगा...लेकिन अचानक रामदीन को लगा कि सुक्खु कहीं चला गया है और उसकी बहन अभी भी पड़ोस मे ही थी. यही सोच कर रामदीन कुच्छ देर इधर उधेर घुमा फिर अपने घर चल दिया. घर पर देखा कि कोठरी का एक दरवाजा हल्का सा खुला था और कोई इधेर उधेर नही दिख रहा था. रामदीन सोचा कि उसकी बीबी सो रही होगी. यही सोच कर रामदीन धीमे कदमो से अंदर जाने ही वाला था कि उसे लगा कि गुलाबी मानो सिसकार रही थी. इतना सुनकर उसने धीरे से थोड़ा सा खुले दरवाजे से अंदर जैसे ही झाँका कि उसके होश उड़ गये. और कोई नही बल्कि वो सुक्खु ही था जिसके भारी और हत्ते कत्ते शरीर के नीचे उसकी बीबी गुलाबी दबी हुई थी और सुक्खु का मोटा और तननाया लंड गुलाबी की बुर मे पूरा का पूरा घुस चुका था और सुक्खु हुमच हुमच के पेल रहा था और गुलाबी आँखे मुन्दे हुए सिसकार रही थी. रामदीन की ओर दोनो के पीच्छला हिस्सा ही था इस वजह से जब लंड बाहर निकलता तो रामदीन को यकीन नही होता कि सुक्खु का इतना मोटा लंड हो सकता है, जो उसकी बीबी की बुरी तरह से चौड़ी हो चुकी बुर मे कस कर समा जाता और उसकी बीबी की सिसकारी उसके कानो मे पड़ जाती थी.." धन्नो की इस अश्लील कहानी को सुनकर सावित्री भी गरम होने लगी थी लेकिन कुच्छ बोली नही, फिर धन्नो आगे बोली "रामदीन को तो मानो काटो तो खून नही, लेकिन क्या करे बेचारा उसके गंद मे इतना दम नही था कि सुक्खु का ऐसी हालत मे सामना कर सके.." "और चुप चाप उसके मोटे लंड से अपनी बीबी को चुद्ते तब तक देखता रहा जबतक कि सुक्खु ने उसकी बीबी को बिस्तर मे दबोच कर अपने मोटे लंड से पूरा बीज़ अंदर गिरा नही दिया..." "सुक्खु ने जैसे ही समुचा लंड बाहर निकाला कि रामदीन को मानो अपनी मर्दानगी पर शर्म आ गयी ..भले ही गुस्से मे था लेकिन सुक्खु के लंड की मोटाई देखकर उसके सामने खड़े होने की हिम्मत नही हुई और वह तुरंत वहाँ से भाग गया..." "रामदीन को गुस्सा तो बहुत आया क्योंकि खुद के इज़्ज़त की बात थी, और अभी तक तो वह यही सोचता कि उसकी बहन ही सुक्खु से फँसी है लेकिन जब अपनी बीबी को ही उसके नीचे देखा तो भला बर्दाश्त कैसे करे. "
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"जब सुक्खु गुलाबी को चोद कर चला गया तब ..रामदीन अपनी बीबी से सुक्खु और उसके बीच के संबंध के बारे मे पुछा, गुलाबी को तो ऐसा लगा मानो अब वह बर्बाद हो जाएगी, उस दिन तो अपने पति का हाथ पैर पकड़ कर माफी माग ली. लेकिन सुक्खु का घर पर आना जाना बंद नही हुआ था. तब गुलाबी को लगा कि उसका मर्द इतना डरपोक है कि सुक्खु को अपने घर आने से मना नही कर सकता. " धन्नो आगे कहानी सुनाती बोली "और सुक्खु एक दिन फिर दोपहर मे जब गुलाबी को चोद्ने के लिए कोठरी मे पकड़ा तो गुलाबी भी मोटे लंड के लालच मे चुद गई..., और उस दिन तो रामदीन की नज़रों से बच गयी . लेकिन कुच्छ ही दिन बाद सुक्खु जब फिर दोपहर के समय चोद्ने आया तो रामदीन को शक़ हो गया. रामदीन समझ रहा था कि अगर जल्दी वह घर नही पहुँचा तो आज भी उसकी बीबी को सुक्खु चोद देगा. इसी वजह से जल्दी से घर पहुँचा लेकिन देर हो चुकी थी. सुक्खु गुलाबी को अकेले पा कर कोठरी मे दोनो चुचिओ को पी रहा था. लेकिन आज कोठरी का दरवाजा भी अंदर से बंद था. रामदीन के कोठरी से सटे ही छप्पर की कोठरी थी जिसमे एक सुराख था. रामदीन उस छप्पर मे जाकर उस सुराख से अंदर की ओर झाँकने लगा. और सुराख की रोशनी कमरे मे जैसे ही कम हुई कि सुक्खु तिरछि नज़र से सुराख की ओर देखा तो समझ गया कि ये रामदीन ही झाँक रहा है. फिर उस सुक्खु ने गुलाबी की बुर को उस सुराख की तरफ कर के देर तक खूब चोदा और अपने लंड का पानी उडेल दिया. रामदीन भी अपनी बीबी को सिसकार सिसकार कर चोदाते देख कर रहा नही गया और उस छप्पर मे ही मूठ मार कर गिरा दिया. और जैसे ही सुक्खु चोद्कर उठा कि रामदीन सुराख के पास से हट कर फिर भाग गया. सुक्खु धीरे से निकल कर उस छप्पर मे उस सुराख के पास गया तो नीचे देखा कि रामदीन मूठ मार कर वीर्य गिरा चुका था. फिर रामदीन ने वापस आ कर फिर अपनी बीबी से खूब झगड़ा किया लेकिन बस कोठरी मे ही. और गुस्से मे आ कर एक दो थप्पड़ भी दिए. लेकिन रामदीन चाहे जितने झगड़े कर ले अपनी बीबी से, गुलाबी को सुक्खु का मोटा लंड भा गया था और अब खूब चुदना चाह रही थी. " "लेकिन रामदीन अपनी इज़्ज़त को ले कर बहुत परेशान भी रहता था. और एक दिन अंधेरे मे गाँव के एक खाली पुराने मकान मे रमिया को जाते देखा तो यह जानने के लिए कि आख़िर उस खाली पुराने मकान के अंदर रमिया क्यों गयी , और वो भी इस अंधेरे मे. जब हिम्मत करके रामदीन उस मकान के अंदर ताक झाँक किया तो हल्के अंधेरे मे देखा कि उसकी बहन रमिया को सुक्खु ही पेल रहा था और रमिया रज़ामंदी से झुक कर पीछे से सलवार ढीली करके पेल्वा रही थी. रामदीन को लगा कि आज वो मर जाएगा चिंता से. अब उसे यकीन हो गया कि उसका दोस्त ना केवल उसकी बीबी बल्कि उसकी बहन को भी फाँस कर चोद्ता है, और रामदीन ने पहली बार महसूस किया कि उसका दोस्त सुक्खु की दोस्ती के पीछे यही राज़ है. उस पुराने मकान मे झाँकते कोई देख ना ले, रामदीन वहाँ से एक पल भी गवाए बिना सरक गया. लेकिन आज फिर उसका पतला लंड खड़ा हो गया. वह चुप चाप घर आ गया. करीब आधे घंटे के बाद रमिया भी आई. रामदीन काफ़ी गुस्से मे था लेकिन डरपोक किस्म के होने की वजह से अपनी बहन से कुच्छ पुच्छा नही. रमिया कुच्छ देर इधेर उधेर की फिर एक लोटे मे पानी ले कर बुर धोने घर के पीच्छवाड़े चली गयी. गुलाबी को चोद्ने के लिए सुक्खु कई दिन से नही आया था , शायद इस वजह से गुलाबी को ऐसा शक़ हुआ कि कही रमिया चोद्वा कर तो नही आ रही है. और जैसे ही लोटे का पानी ले कर रमिया घर के पीच्छवाड़े जाने लगी गुलाबी भी धीरे से उसके पीछे गई. अंधेरा हो चुका था लेकिन फिर भी सब कुच्छ सॉफ सॉफ दीख रहा था. रमिया अपनी सलवार को ढीली कर के बैठ गयी और बुर मे से सुक्खु के गिराए हुए वीर्य को चूहते हुए देखने लगी और यह भूल गयी कि उसकी भौजाई उसके पीछे खड़ी हो कर देख रही है. गुलाबी समझ गयी कि मर्द के लंड का पानी निकाल रही है अपनी बुर मे से. " इतनी बात सुनकर सावित्री गरम होने के साथ साथ एक लंबी सांस ली तो धन्नो समझ गयी कि गुलाबी की कहानी सुनकर सावित्री गरमा रही है.
क्रमशः………………………………………..
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