गतान्क से आगे……………………………………
घर पहूचकर जब उसने घंटी बजाई तो दरवाज़ा किसी ने नही खोला... शन्नो को लगा कि चेतन सो ना गया हो तो उसने
उसके मोबाइल पर कॉल करा मगर उसने फोन भी नहीं उठाया... कुच्छ 10 सेक बाद दरवाज़ा खुला और दरवाज़ा खोलकर
ही वो सीधा अपने कमरे में चला गया.... शन्नो ने दरवाज़ा बंद करा और चेतन को प्यार से पुकारती हुई उसके
पीछे पीछे गयी और कमरे के दरवाज़े के पास पहूचकर ही उसके पाओ रुक गये....
चेतन के बिस्तर पे उसकी बहन आकांक्षा बैठी हुई थी और वो भी उपर से नंगी... उसके स्तनो को मसलता हुआ चेतन
आकांक्षा की चुचिओ से उसके मम्मो का दूध पीने लगा.... आकांक्षा ने उस वक़्त अपनी आँखें बंद कर रखी थी
लेकिन उसके चेहरे से सॉफ अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि चेतन अपना काम बहुत अच्छे से कर रहा था...
शन्नो की नज़रे उसकी बहन के हाथ पे पड़ी जो चेतन के बदन पे लहराता हुआ उसके लंड तक पहुच गया...
चेतन का लंड उसकी जीन्स में था मगर आकांक्षा उससे तब भी खेल रही थी... चेतन फिर अपनी मौसी के स्तनो को
छोड़कर उसके होंठो की तरफ बढ़ा और दोनो एक दूसरे को चूमने लगे... शन्नो वही खड़ी ये सब देख रही थी...
जब चुंबन टूटा आकांक्षा ने आँखे खोली तो शन्नो को देख कर बोली " चेतन यहा बड़ी दखलंदाज़ी हो रही है...
तुम मेरे साथ चलो"
आकांक्षा ने चेतन का हाथ थामा और शन्नो की आँखों के सामने से उसे अपने साथ लेकर घर से चली गयी....
ये देख कर शन्नो फर्श पे गिर के मन ही मन रोने लगी....
उधर नारायण की हालत बहुत ज़्यादा खराब थी... उसे रश्मि की बातों में बहुत ज़्यादा दम लग रहा था और अगर
वो वाली बात सबके सामने आ गयी तो उसकी ज़िंदगी तबाह हो जाएगी... नौकरी के साथ साथ बीवी बच्चे पूरा समाज
उसपे थू थू करेगा... ऑफीस में रश्मि नारायण के काम में ज़रा सा भी अड़ंगा नहीं लगाती मगर उसको किसी ना किसी
तरह एहसास दिलाती रहती कि वो कितनी बड़ी मुसीबत में फसा हुआ था... कल रात रश्मि ने बना हुआ म्मस क्लिप नारायण के मोबाइल पे भेजा था जिसको देख कर वो हक्का बक्का रह गया था.... और आज ही डर के कारण उसने रश्मि को 20000 रुपय कॅश में दे दिए थे ताकि उसका मुँह बंद रहे.... उसे एक बात समझ नही आ रही थी कि वो स्कूल की लड़की रीत भी इस प्लान में शामिल थी या फिर उसको भी रश्मि ने इस्तेमाल करा था... स्कूल ख़तम होने के पहले रश्मि
एक बार फिर से नारायण के कॅबिन में आई... वो नारायण की तरफ चलकर गयी और अपने सीधे हाथ से उसका
लंड बड़ी क्रूरता सा दबोच लिया और हंस पड़ी... उसी वक़्त उसका मोबाइल बज गया और रश्मि वहाँ से चली गयी....
नारायण ने फोन पे नाम देखा तो वो उसकी बीवी शन्नो का था.....
नारायण ने घबराकर पूछा " हेलो... हां बोलो शन्नो"
शन्नो भी घबराकर बोली "अच्च्छा सुनिए ऐसा हो सकता कि मैं बच्चो का टिकेट कर्वादु और खुद थोड़ा लेट आ जाउ"
"क्यूँ?? क्या हो हो गया" नारायण ने पूछा
शन्नो बहुत सोच समझकर बोली "नहीं हुआ कुच्छ नहीं... वो मेरी बहन आकांक्षा है ना वो आएगी देहरादून से कुच्छ दिन के लिए मुझसे मिलने के लिए तो इसलिए लेट हो जाउन्गि.. और बच्चे आपके पास आना चाह रहे है"
ये सुनके नारायण को भी राहत मिली की उसको भी थोड़ा समय मिल जाएगा रश्मि का इलाज करने के लिए और वो बोला
"ठीक है मगर एक काम करो कि चेतन को वही रोक लो ताकि तुम यहाँ अकेली ना आओ... और ललिता और डॉली का टिकेट करदो"
दोनो ने फोन रखा और शन्नो को हद्द से ज़्यादा खुशी हुई कि नारायण ने बिना गुस्सा करें उसकी बात मान ली....
उसने तुर्रंत दोनो बेटिओ का टिकेट बुक करवा दिया जोकि परसो की ट्रेन का ही मिल गया था... नारायण भी अब सोचने लग गया था
कि इस रश्मि वाली बात को जड़ से उखाड़ना ही पड़ेगा...
ललिता का आखरी एग्ज़ॅम था ये और जैसे कि सभी दोस्तो में होता है सबने एग्ज़ॅम के बाद ही एक आखरी बारी कुच्छ वक़्त साथ गुज़ारने का प्रोग्राम बनाया... ललिता को इस बात की खुशी थी कि वो आखरी बारी अपने दोस्तो के साथ मज़े करेगीमगर झिझक इस बात की थी कि उन्न दोस्तो में एक रिचा भी थी...
सभी दोस्तो ने मिलके मूवी देखने का प्लान बनाया और एक साथ रोक्क्स्टार पिक्चर देखने चले गये... बीच में रिचा4 ने ललिता से बात करने की कोशिश भी करी मगर ललिता ने उसको एक बार भी कुच्छ भी जवाब नहीं दिया...
हारकर वो भी अब ललिता से दूर दूर रहने लगी... पिक्चर कुच्छ 5:30 बजे तक ख़तम हो गयी थी और एक-दो को
छोड़कर बाकी सबको पिक्चर बहुत ही ज़्यादा बकवास लगी... सब पिक्चर का मज़ाक बनाने लगे थे... मगर सारे लड़के
नरगिस की आदाओ के दीवाने हो चुके थे,... फिर अचानक एक लड़के ने बोला " यारो मुझे जनपथ की तरफ कुच्छ काम है
तो अगर चाहो हम CP घूम सकते है साथ में"
जिस्म की प्यास compleet
Re: जिस्म की प्यास
रिचा ने ये सुनकर ही सॉफ इनकार कर दिया कि उसे घर जाना होगा और यही सुनके ललिता ने एक दम से हां कर दी...
रिचा को समझ आ गया था कि ललिता ने हां क्यूँ करी थी और रूठ कर वो अपने घर के लिए चली गयी...
साथ ही साथ एक और लड़की और दो लड़के उनके भी अपने घर चले गये थे.... अब सिर्फ़ ललिता के साथ उसकी दोस्त पायल,
अमित, सुमित सिद्धार्थ (सिड) बचे थे.... सबने दिल्ली मेट्रो पकड़ी और राजीव चोव्क के लिए रवाना हो गये...
ललिता ने कयि बारी सुना था कि मेट्रो में लड़कियों के साथ छेड़ छाड़ होती है मगर उसको ऐसा कुच्छ भी नहीं लगा... शायद उसके साथ 3 लड़के खड़े थे तो शायद किसी ने हिम्मत नही करी होगी... खैर मेट्रो से उतरते वक़्त ललिता
को उसकी कमर पर एक हाथ ज़रूर महसूस हुआ जिसका उसने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया... पाँचो दोस्त राजीव चोव्क से निकले
और जनपथ की तरफ बढ़े... सिड का काम पूरा होकर ही अमित बोला "यार पालिका बेज़ार भी चलो मैं कपड़े ले लूँगा अपने लिए"
ललिता बोली "हां बेटा मेरे जाने से पहले मुझे दिल्ली दर्शन करवा दो पूरा" ये सुनके सब हंस पड़े और सिड के साथ
पालिका बाज़ार चले गये...
ललिता पालिका बाज़ार काई सालो के बाद आई थी.. पहले वो अपने पापा और शायद भाई के साथ आई थी मगर अकेले कभीनहीं आई थी क्यूंकी यहा का माहौल ही बड़ा ख़तरनाक हुआ करता था लड़कियों के लिए...
रात के कुच्छ 7 बजे जब वो पालिका पहुचे तो ललिता वहाँ लगे मेटल डिटेक्टर को देख कर चौक गयी...
उसे नहीं लगता कि पालिका बाज़ार में भी सेक्यूरिटी चेक होने लग गयी है.... जब वो अपने पर्स को चेक करवाकर
निकली तो तीनो को लड़को ने 2 मिनट माँगे और साथ में लड़को के टाय्लेट में चले गये.... पायल और ललिता वही खड़े
थे और जो भी आदमी वहाँ से आता जाता उन दो लड़कियों पे नज़र पड़ते ही मचल जाता.... फिर पायल भी टाय्लेट जाने के
लिए ललिता को कहने लगी शायद वो इन्न गंदे आदमियो की वजह से परेशान हो गयी थी तो ललिता और वो दोनो लड़कियों
के टाय्लेट चले गये.... ललिता जब पायल के साथ वाले टाय्लेट में घुसी तो उसे बड़ा अचम्बा हुआ कि उस दरवाज़े पे
कयि सारे फोन नंबर. और गंदी चीज़े लिखी हुई थी.... ललिता को अचम्बा इसलिए हुआ कि ये सारी चीज़े लड़को ने यहाँ
घुसकर कैसे लिख दी क्यूंकी ये तो लड़कियों का टाय्लेट है..... उधर एक चित्र भी बनाया हुआ था जिसमे एक लंबा सा लंड एक लड़की की चूत में घुसा हुआ था और इसके नीचे लिखा हुआ था "अगर ऐसा लंड चाहिए तो कॉल करें इस नंबर. पर"
इन चीज़ो को पढ़कर ललिता को हल्की सी नमी महसूस होने लगी.... ना चाहते हुए भी उसने अपनी जीन्स का बटन खोला और अपनी
चड्डी समैत उसको उतारा और एक गंदे से हुक में टाँग दिया.... उस इंडियन टाय्लेट के उधर बैठ गयी जिसका आलसी रंग
तो सफेद था मगर पेशाब की वजह से पीला हो पड़ा था... उसकी चूत में से धार की तरह पानी आने लगा और
उस सफेद टाय्लेट पर पड़ कर शोर मचने लगा.... ललिता पूरी कोशिश कर रही थी कि ज़्यादा आवाज़ ना आए मगर
उसका कोई फरक नही पड़ रहा था.... उस तरह बैठने में भी उसकी टाँगो में दर्द होने लगा क्यूंकी कयि साल हो गये
थे उसे इंडियन टाय्लेट इस्तेमाल करें हुए.... उसने अपने पर्स में से टिश्यू निकाला और अपनी चूत को सॉफ करते
हुए अपनी जीन्स को पहना और वहाँ से निकल गयी.... जब वो टाय्लेट के बाहर आई तो तीनो लड़को के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी... जब वो पालिका के अंदर की तरफ गयी तो इतने सालो के बाद कुच्छ बदलाव नहीं आया था...
हां थोड़ा सॉफ सुथरा लग रहा था, एस्कलाटेर्स लगा रखके थे मगर वहाँ की जनता वैसी की वैसी ही थी...
मुँह में पान गंदे कपड़े, दाढ़ी बढ़ी हुई अपनी पॅंट को खुजाते हुए जितनी भी लड़किया थी उनको कुत्तो की तरह ललचा रहे
थे... ललिता को हँसी इस बात पे आ रही थी कि उसकी दोस्त पायल और उसने जीन्स और टी-शर्ट पहेन रखी थी तब भी
वहाँ के लोग आँखो से उन दोनो का बलात्कार कर रहे थे...
खैर कपड़े लेते हुए अमित को कयि साल लग गये और बाकी दोनो लड़के भी उसकी मदद करने लग गये...
पायल और ललिता इतना बोर हो गये थे कि अब और वहाँ रुकना उनके बॅस की नहीं थी.... लड़को को बताकर वो वहाँ से
चले गये... दोनो ने सोचा तो यही था कि वो पालिका से निकलके बाहर घूमेंगे मगर कुच्छ देर में ही पायल ने ललिता
को रोक लिया.... ललिता को बिना कुच्छ बताए पायल उसे फर्स्ट फ्लोर पे ले गयी जाहान नीचे से कुच्छ कम भीड़ थी
मतलब कुच्छ कम आदमी थे... अब दो लड़कियों के देखकर कुच्छ लड़के उनके आगे पीछे मंडराने लगे थे और
काफ़ी आदमी उनके पास कुच्छ ना कुच्छ बेचने के समान ला रहे थे... पायल ललिता को लेके चलती रही और फिर
एक खाली दुकान में जाके रुक गयी... वो दुकान काफ़ी छोटी सी थी और वहाँ एक 30-35 साल का हरयान्वी आदमी बैठा हुआ था... एक साधारण सी शर्ट और पॅंट में में एक कुर्सी पे बैठा हुआ न्यूसपेपर पढ़ रहा था...
"हेलो" पायल की आवाज़ सुनकर ही उसने न्यूसपेपर झट से हटाया और दो जवान और खूबसूरत लड़कियों के देखकर
एक बड़ी सी मुस्कान उसके चेहरे पे छा गयी... ललिता की नज़र उस आदमी के पेट पर पड़ी जोकि उसके दुकान के
कोने कोने पर टक्कर खा रहा था...
रिचा को समझ आ गया था कि ललिता ने हां क्यूँ करी थी और रूठ कर वो अपने घर के लिए चली गयी...
साथ ही साथ एक और लड़की और दो लड़के उनके भी अपने घर चले गये थे.... अब सिर्फ़ ललिता के साथ उसकी दोस्त पायल,
अमित, सुमित सिद्धार्थ (सिड) बचे थे.... सबने दिल्ली मेट्रो पकड़ी और राजीव चोव्क के लिए रवाना हो गये...
ललिता ने कयि बारी सुना था कि मेट्रो में लड़कियों के साथ छेड़ छाड़ होती है मगर उसको ऐसा कुच्छ भी नहीं लगा... शायद उसके साथ 3 लड़के खड़े थे तो शायद किसी ने हिम्मत नही करी होगी... खैर मेट्रो से उतरते वक़्त ललिता
को उसकी कमर पर एक हाथ ज़रूर महसूस हुआ जिसका उसने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया... पाँचो दोस्त राजीव चोव्क से निकले
और जनपथ की तरफ बढ़े... सिड का काम पूरा होकर ही अमित बोला "यार पालिका बेज़ार भी चलो मैं कपड़े ले लूँगा अपने लिए"
ललिता बोली "हां बेटा मेरे जाने से पहले मुझे दिल्ली दर्शन करवा दो पूरा" ये सुनके सब हंस पड़े और सिड के साथ
पालिका बाज़ार चले गये...
ललिता पालिका बाज़ार काई सालो के बाद आई थी.. पहले वो अपने पापा और शायद भाई के साथ आई थी मगर अकेले कभीनहीं आई थी क्यूंकी यहा का माहौल ही बड़ा ख़तरनाक हुआ करता था लड़कियों के लिए...
रात के कुच्छ 7 बजे जब वो पालिका पहुचे तो ललिता वहाँ लगे मेटल डिटेक्टर को देख कर चौक गयी...
उसे नहीं लगता कि पालिका बाज़ार में भी सेक्यूरिटी चेक होने लग गयी है.... जब वो अपने पर्स को चेक करवाकर
निकली तो तीनो को लड़को ने 2 मिनट माँगे और साथ में लड़को के टाय्लेट में चले गये.... पायल और ललिता वही खड़े
थे और जो भी आदमी वहाँ से आता जाता उन दो लड़कियों पे नज़र पड़ते ही मचल जाता.... फिर पायल भी टाय्लेट जाने के
लिए ललिता को कहने लगी शायद वो इन्न गंदे आदमियो की वजह से परेशान हो गयी थी तो ललिता और वो दोनो लड़कियों
के टाय्लेट चले गये.... ललिता जब पायल के साथ वाले टाय्लेट में घुसी तो उसे बड़ा अचम्बा हुआ कि उस दरवाज़े पे
कयि सारे फोन नंबर. और गंदी चीज़े लिखी हुई थी.... ललिता को अचम्बा इसलिए हुआ कि ये सारी चीज़े लड़को ने यहाँ
घुसकर कैसे लिख दी क्यूंकी ये तो लड़कियों का टाय्लेट है..... उधर एक चित्र भी बनाया हुआ था जिसमे एक लंबा सा लंड एक लड़की की चूत में घुसा हुआ था और इसके नीचे लिखा हुआ था "अगर ऐसा लंड चाहिए तो कॉल करें इस नंबर. पर"
इन चीज़ो को पढ़कर ललिता को हल्की सी नमी महसूस होने लगी.... ना चाहते हुए भी उसने अपनी जीन्स का बटन खोला और अपनी
चड्डी समैत उसको उतारा और एक गंदे से हुक में टाँग दिया.... उस इंडियन टाय्लेट के उधर बैठ गयी जिसका आलसी रंग
तो सफेद था मगर पेशाब की वजह से पीला हो पड़ा था... उसकी चूत में से धार की तरह पानी आने लगा और
उस सफेद टाय्लेट पर पड़ कर शोर मचने लगा.... ललिता पूरी कोशिश कर रही थी कि ज़्यादा आवाज़ ना आए मगर
उसका कोई फरक नही पड़ रहा था.... उस तरह बैठने में भी उसकी टाँगो में दर्द होने लगा क्यूंकी कयि साल हो गये
थे उसे इंडियन टाय्लेट इस्तेमाल करें हुए.... उसने अपने पर्स में से टिश्यू निकाला और अपनी चूत को सॉफ करते
हुए अपनी जीन्स को पहना और वहाँ से निकल गयी.... जब वो टाय्लेट के बाहर आई तो तीनो लड़को के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी... जब वो पालिका के अंदर की तरफ गयी तो इतने सालो के बाद कुच्छ बदलाव नहीं आया था...
हां थोड़ा सॉफ सुथरा लग रहा था, एस्कलाटेर्स लगा रखके थे मगर वहाँ की जनता वैसी की वैसी ही थी...
मुँह में पान गंदे कपड़े, दाढ़ी बढ़ी हुई अपनी पॅंट को खुजाते हुए जितनी भी लड़किया थी उनको कुत्तो की तरह ललचा रहे
थे... ललिता को हँसी इस बात पे आ रही थी कि उसकी दोस्त पायल और उसने जीन्स और टी-शर्ट पहेन रखी थी तब भी
वहाँ के लोग आँखो से उन दोनो का बलात्कार कर रहे थे...
खैर कपड़े लेते हुए अमित को कयि साल लग गये और बाकी दोनो लड़के भी उसकी मदद करने लग गये...
पायल और ललिता इतना बोर हो गये थे कि अब और वहाँ रुकना उनके बॅस की नहीं थी.... लड़को को बताकर वो वहाँ से
चले गये... दोनो ने सोचा तो यही था कि वो पालिका से निकलके बाहर घूमेंगे मगर कुच्छ देर में ही पायल ने ललिता
को रोक लिया.... ललिता को बिना कुच्छ बताए पायल उसे फर्स्ट फ्लोर पे ले गयी जाहान नीचे से कुच्छ कम भीड़ थी
मतलब कुच्छ कम आदमी थे... अब दो लड़कियों के देखकर कुच्छ लड़के उनके आगे पीछे मंडराने लगे थे और
काफ़ी आदमी उनके पास कुच्छ ना कुच्छ बेचने के समान ला रहे थे... पायल ललिता को लेके चलती रही और फिर
एक खाली दुकान में जाके रुक गयी... वो दुकान काफ़ी छोटी सी थी और वहाँ एक 30-35 साल का हरयान्वी आदमी बैठा हुआ था... एक साधारण सी शर्ट और पॅंट में में एक कुर्सी पे बैठा हुआ न्यूसपेपर पढ़ रहा था...
"हेलो" पायल की आवाज़ सुनकर ही उसने न्यूसपेपर झट से हटाया और दो जवान और खूबसूरत लड़कियों के देखकर
एक बड़ी सी मुस्कान उसके चेहरे पे छा गयी... ललिता की नज़र उस आदमी के पेट पर पड़ी जोकि उसके दुकान के
कोने कोने पर टक्कर खा रहा था...
Re: जिस्म की प्यास
पायल ने भी मुस्कुरकर बोला "मुझे कुच्छ मूवीस की सीडीज़ चाहिए"
वो आदमी बोला "जी कौनसी चाहिए मेडम हिन्दी वाली या अँग्रेज़ी"
पायल बोली "फिलहाल हिन्दी दिखा दो"
वो आदमी ने एक बड़ा सा बंड्ल निकाला और उसमें काई सारी पिक्चरो की सीडीज़ दिखाने लग गया....
ललिता भी पायल के साथ उनको देखने लगी... ललिता की नज़र कयि सारी बी-ग्रेड मूवीस पर पड़ी और उनके नाम
पढ़कर मन ही मन हंस पड़ी... उनमें से एक का नाम पढ़कर वो हंस ही पड़ी वो नाम था "खेत में गुटार गू"
पायल ने दो-तीन मूवीस रखली और बोली "और भी है क्या"
वो आदमी बोला "नहीं और तो हिन्दी में नहीं होगी... साउत इंडियन ही होंगी"
पायल अपना सिर हिलाके बोली "नहीं वो नहीं चाहिए और कुच्छ"
ललिता को क्यूँ लग रहा था कि वो आदमी बार बार उसके मम्मो पे नज़रे घूमाए जा रहा था...
पायल के मम्मो उससे छोटे थे शायद इस बात का मज़ा ललिता को मिल रहा था... वो आदमी बोला
"बाकी तो भोज पुरी ही होंगी... या फिर डबल क्ष या ट्रिपल क्ष" ये बोलने में वो आदमी काफ़ी झिझक रहा था मगर
जब उसने पायल के मुँह से सुना "हां वो दिखाना" उसकी तो हवा ही निकल गयी... वो ही हाल ललिता का भी था..
उसे नहीं पता था कि उसकी दोस्त उसको खीचकर अडल्ट मूवी खरीदने आई है... ललिता भी अब उसको छोड़के
जा नहीं सकती थी या फिर जाना नहीं चाहती थी...
उस आदमी ने अपनी ड्रॉयर में काई सारी मूवीस निकालके दोनो लड़कियों के सामने रख दी... उसके चेहरे से
सॉफ ज़ाहिर हो गया कि मुश्किल से ही कभी लड़किया ऐसी मूवी खरीदने आती होंगी और वो शाम के सात बजे तो
नामुमकिन ही था... हर एक सीडी के कवर पे गंदी सी लड़किया आधे आधे कपड़ो में थी... पायल सीडीज़ को छाँटने लग
गयी और वो आदमी बड़ा उत्सुक्त होकर उसको बताने लगा कि "मेडम ये वाली अच्छी है.. इसको लीजिए आप...
इससे बेहतर तो पिच्छली वाली थी"
दोनो लड़किया समझ गयी थी कि ये हर रोज़ नयी पॉर्न देखता होगा घर लेजाकर तभी साले को इतना पता है...
पायल भी अब उस आदमी से काफ़ी खुल के बात कर रही थी जिससे ललिता को भी जोश आ गया... रिचा के घर इतनी
सारी पॉर्न देखने के बाद वो भी उन्हे पसंद करने लग गयी थी और उसने भी 2-3 सीडीज़ अपने लिए अलग से निकाल ली...
उस बंदे ने सीडीज़ को एक पोलिथीन में डालके एक भूरा पेपर बॅग में डालते हुए कहा 'मेडम एक बात बोलू...
बुर्रा ना मानना.. इन सीडीज़ में ज़्यादा कुच्छ रखा नहीं है... असली में करने में जो बात है वो इनमे नही है"
उस आदमी की इस बात को सुनके दोनो लड़कियों ने एक शर्मिंदगी वाली मुस्कुराहट मारी मगर अंदर ही अंदर वो
हंस पड़े थे... ज़्यादा समय बर्बाद ना करते हुए ललिता और पायल ने उन्न सीडीज़ को अपने पर्स में डाला और
अपने दोस्तो के पास चले गये...
ललिता को छोड़के बाकी सारे एक साथ एक मेट्रो में चढ़ गये... ललिता अपने घर जाने के लिए मेट्रो में
चढ़ गयी और खड़ी रहकर उस बंदे की गंदी बात पे ध्यान देने लगी की असली में जो करने में मज़े है वो
इन्न सीडीज़ में नहीं है.... अगला स्टेशन बारहखंबा था और ललिता ने एक बहुत अजीब सा काम कर दिया...
वो आदमी बोला "जी कौनसी चाहिए मेडम हिन्दी वाली या अँग्रेज़ी"
पायल बोली "फिलहाल हिन्दी दिखा दो"
वो आदमी ने एक बड़ा सा बंड्ल निकाला और उसमें काई सारी पिक्चरो की सीडीज़ दिखाने लग गया....
ललिता भी पायल के साथ उनको देखने लगी... ललिता की नज़र कयि सारी बी-ग्रेड मूवीस पर पड़ी और उनके नाम
पढ़कर मन ही मन हंस पड़ी... उनमें से एक का नाम पढ़कर वो हंस ही पड़ी वो नाम था "खेत में गुटार गू"
पायल ने दो-तीन मूवीस रखली और बोली "और भी है क्या"
वो आदमी बोला "नहीं और तो हिन्दी में नहीं होगी... साउत इंडियन ही होंगी"
पायल अपना सिर हिलाके बोली "नहीं वो नहीं चाहिए और कुच्छ"
ललिता को क्यूँ लग रहा था कि वो आदमी बार बार उसके मम्मो पे नज़रे घूमाए जा रहा था...
पायल के मम्मो उससे छोटे थे शायद इस बात का मज़ा ललिता को मिल रहा था... वो आदमी बोला
"बाकी तो भोज पुरी ही होंगी... या फिर डबल क्ष या ट्रिपल क्ष" ये बोलने में वो आदमी काफ़ी झिझक रहा था मगर
जब उसने पायल के मुँह से सुना "हां वो दिखाना" उसकी तो हवा ही निकल गयी... वो ही हाल ललिता का भी था..
उसे नहीं पता था कि उसकी दोस्त उसको खीचकर अडल्ट मूवी खरीदने आई है... ललिता भी अब उसको छोड़के
जा नहीं सकती थी या फिर जाना नहीं चाहती थी...
उस आदमी ने अपनी ड्रॉयर में काई सारी मूवीस निकालके दोनो लड़कियों के सामने रख दी... उसके चेहरे से
सॉफ ज़ाहिर हो गया कि मुश्किल से ही कभी लड़किया ऐसी मूवी खरीदने आती होंगी और वो शाम के सात बजे तो
नामुमकिन ही था... हर एक सीडी के कवर पे गंदी सी लड़किया आधे आधे कपड़ो में थी... पायल सीडीज़ को छाँटने लग
गयी और वो आदमी बड़ा उत्सुक्त होकर उसको बताने लगा कि "मेडम ये वाली अच्छी है.. इसको लीजिए आप...
इससे बेहतर तो पिच्छली वाली थी"
दोनो लड़किया समझ गयी थी कि ये हर रोज़ नयी पॉर्न देखता होगा घर लेजाकर तभी साले को इतना पता है...
पायल भी अब उस आदमी से काफ़ी खुल के बात कर रही थी जिससे ललिता को भी जोश आ गया... रिचा के घर इतनी
सारी पॉर्न देखने के बाद वो भी उन्हे पसंद करने लग गयी थी और उसने भी 2-3 सीडीज़ अपने लिए अलग से निकाल ली...
उस बंदे ने सीडीज़ को एक पोलिथीन में डालके एक भूरा पेपर बॅग में डालते हुए कहा 'मेडम एक बात बोलू...
बुर्रा ना मानना.. इन सीडीज़ में ज़्यादा कुच्छ रखा नहीं है... असली में करने में जो बात है वो इनमे नही है"
उस आदमी की इस बात को सुनके दोनो लड़कियों ने एक शर्मिंदगी वाली मुस्कुराहट मारी मगर अंदर ही अंदर वो
हंस पड़े थे... ज़्यादा समय बर्बाद ना करते हुए ललिता और पायल ने उन्न सीडीज़ को अपने पर्स में डाला और
अपने दोस्तो के पास चले गये...
ललिता को छोड़के बाकी सारे एक साथ एक मेट्रो में चढ़ गये... ललिता अपने घर जाने के लिए मेट्रो में
चढ़ गयी और खड़ी रहकर उस बंदे की गंदी बात पे ध्यान देने लगी की असली में जो करने में मज़े है वो
इन्न सीडीज़ में नहीं है.... अगला स्टेशन बारहखंबा था और ललिता ने एक बहुत अजीब सा काम कर दिया...