कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और compleet

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raj..
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Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून

Unread post by raj.. » 08 Nov 2014 08:16

शादी सुहागरात और हनीमून--25

गतान्क से आगे…………………………………..

मेरी फैली खूब खुली जाँघो के बची मेरी कसी योनि मे उनका मोटा लिंग जा रहा था,

सतसट सतसट. और मेरी रसीली योनि उसे मज़े से लील रही थी, गपगाप, और ये देख के मैं इतनी उत्तेजित हुई कि मेने भी अपने नितंबो को उठा के, कस के धक्के लगाने शुरू कर दिए और उन्होने भी मुझे दिखा के कस कस केज़ोर ज़ोर से, कभी वो ऑलमोस्ट बाहर निकाल लेते और फिर पूरी ज़ोर के सता अंदर. मेरी चीखो सिसक़ियो की परवाह किए बिना वो लगातार पेल रहे थे. मेरी आँखो के सामने शाम को पढ़ी उस किताब के दृश्य घूम रहे थे और मैं आँखे बंद कर के बस उसी तरह मज़ा ले रही थी. और वो भी रुक रुक केमेरे कान उन के अस्फुट शब्द सुन रहे थे,

"क्या मस्त रसीली चूचुचिया है तेरी कितना मज़ा आता है चूसने मे. "

"डार्लिंग हहा चूस लो और कस के ओह ओह चूस लो मेरी"मैं भी उनका साथ देने की कोशिश कर रही थी.

"हा लेले घोंट मेरा लंड, घोंट कस कस के. "

"हाँ राजा, हाँ हाँ दो दो ना पेल दो. पूरा"मैं भी कस कस के चूतड़ उछाल के उनका साथ दे रही थी.

"क्या मस्त चूत है तेरी ओह. "वो रुक रुक के बोल रहे थे लेकिन अब उनकी झिझक ख़तम हो रही थी.

जब मेने मूड के शीशे मे देखा, तो कुशन के सहारे मेरे उठे हुए चूतड़ और और मेरी ओर उनका खूब बड़ा, मोटा सख़्त लंड. मेरी चूत मे कच कचाकर घुसता हुआ, मस्ती के मारे मेने उन्हे अपनी बाँहो मे कस के भिच लिया और मेरे नाख़ून उनकी पीठ पे धँस गये. और उनके दाँत मेरे कंधो मे. और फिर तो फूल स्पीड वो पूरी ताक़त से चोद रहे थे.

मैं पूरी ताक़त से चुदवा रही थी.

और आज ना तो चाँदनी थी ना सिर्फ़ नाइट लैंप. उन्होने जो लाइट आन की थी उसकी पूरी रोशनी मे, मैं उनके खुशी मे नहाए चेहरे को, ताकतवर बाँहो और मस्लस को, मेरे जोबन को कुचलते रगड़ते उनके चौड़े सीने को और कभी सामने कभी शीशे मे,

मेरी बुर का मर्दन करते, उनके मोटे काम दंड को.

बहुत देर तक इसी तरह और जब हम झाडे तो साथ साथ लेकिन आज मुझे बहुत आराम नही मिलना वाला था.

थोड़ी देर मे वो फिर तैयार थे और इस बार अपनी बाहों मे उठा के वो मुझे फिर बिस्तर पे ले गये और अधलेता कर दिया. कमर तक मैं बिस्तर पे थी, वो फर्श पे खड़े थे.

उन्होने मेरी दोनो टांगे फैला के अपने कंधो पे रख ली थी और फिर जो उन्होने मेरे कमर को पकड़ के कस कस के धक्के लगाए तो थोड़ी ही देर मे वो अंदर थे. फिर तो कभी कमर पकड़ के कभी मेरे नितंबो को उपर उठा के, कभी दोनो जोबनो का मर्दन करते और कुछ ही देर मे तकी होने पे भी मैं उनका साथ देने की कोशिश करने लगी. वैसे ही अंदर डाले डाले, उन्होने मुझे उठाया और थोड़ी देर मे हम दोनो बिस्तर पे थे. फिर तो जो धक्का पेल मुझे कुछ सोचने का समय नही मिल रहा था. बस जैसे कोई धुनिया रूई धुने वही हालत मेरी थी. मेरी दोनो टांगे पूरी तरह फैली कभी उनके कंधे पे, कभी बिस्तर पे कभी मैं नीचे रहती थी, कभी वो बिना रुके मुझे गोद मे बिठा के, कभी अपने उपरबिना रुके. आज रात वो तीन बार तो झाड़ चुके थे इसलिए अगली बार टाइम लगना ही था. लगातार पिस्तन की तरह वो मेरे अंदर बाहर अंदर बाहर फ़र्क सिर्फ़ दो था.

एक तो वो अब 'खुल के बोल रहे' थे और थोड़ा बहुत मैं भी साथ दे रही थी.

शरम लिहाज, लाज झिझक सब ख़तम हो चुकी थी.

raj..
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Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून

Unread post by raj.. » 08 Nov 2014 08:20

शरम लिहाज, लाज झिझक सब ख़तम हो चुकी थी.

"ले रानी लेमेरा मोटा लंड.. लेओह ओह"

"हा हाँ. . उफहा डार्लिंग दो. . दो डाल दूह' "ओह ओह क्या मज़ा रहा है चोह.. चोदने मे ओह लेले चुदवा कस के. "

"हा राजा ओहचोह मुझे भी बड़ा मज़ा आ रहा है चुदने मे"मैं कस के उनकी कमर मेटांगे कस के, बोलती.

"क्या गजब की गदराई मस्त. चुचिया है टेरीबहुत तड़पाया है इन्होने. "वो मसल के बोलते.

"हाँ डार्लिंग हाँ. . दबा दो रगड़ दो कस के बहुत अच्छा लगता है. दबा दो कस के मेरी चूचुचि. "

और वो दोनो चुचिया दबाते हुए कस के एक बार मे पूरा लंड पेल देते.

और दूसरा फ़र्क ये था कि जब उन्हे लगता कि मैं थक रही हू, रुक रही हुउन्हे मेरा 'जादुई बटन' मिल गया था. वो मेरी क्लिट छेड़ देते और फिर मैं जोश मे वापस.

सबसे ज़्यादा तो तब होता जब वो तिहरा हमला करते,

उनके होंठ, पकड़ के कस कस के मेरे एक निपल को चूसते.

एक हाथ की उंगलिया दूसरे निपल को फ्लिक करती, पिंच करती और अंगूठे और तर्जनी के बीच दबा के रोल करती.

और दूसरे हाथ की उंगली, हल्के से मेरी क्लिट प्रेस करती, फ्लिक करती फिर अंगूठे और तर्जनी के बीच कस कस के छेड़ती. इस एक साथ हुए तिहरे हमले सेमेरी जान निकल जाती.

थोड़ी ही देर मे मैं फिर सिसकिया भरने लगती, कमर हिलाने लगती और मेरे चूतड़ अपने आप उछलने लगते.

और वह मुझे इसी तरह तड़पाते रहते, रुके जाते जब तक मैं मस्ती मे आ के, खुल के खुद नही बोलती,


"डार्लिंगओर ना तड़पा करो ने.. प्लीज़ डाल दो छो.. चोदो मुझे"


और उसके बाद तो फिर तूफान चालू हो जाता. उनका वो तिहरा हमला तो जारी ही रहता, मेरी चुचियो का निपल्स का मसला जाना, कस कस के चूसने और क्लिट को छेड़ने और साथ मे ही पूरी ताक़त से, पूरी स्पीड से मेरी बुर को रगड़ता, चीरता और साथ साथ वो बोलते भी रहते आ रहा है ना मज़ा चुदवाने मे और मैं भी. जब मैं थकने लगती तो वो थोड़ी देर रुक जाते और फिर वही तिहरा हमला मेरे दोनो निपल्स और क्लिट पे.

मुझे याद नही कि वो कितनी देर तक मुझे इस तरह चोदते रहे.

बस इतना याद है, मुझे जब हम दोनो अबकी झाडे तो बहुत देर तक झाड़ते रहे.

जैसे एक लहर ख़तम होतो तो दूसरी.. और थोड़ी देर मे फिर मैं एक दम लस्त पस्त हो गयी थी.

जब मेरी आँखे खुली तो पूनम की चाँदनी जा चुकी थी और पूरब मे हल्की लाली छाने लगी थी.

मैं मुस्करा उठी ये सोच के कि भाभी से अगर मैं ये बात कहती तो वो तुरंत बोलती,

जैसे रात भर चुदवा चुदवा के तेरी चूत लाल हो गयी.


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