एक अनोखा बंधन

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The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 25 Dec 2014 22:47

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अब आगे ....

माँ रिक्क्षे पर बैठ चूँकि थी और रिक्क्षे वाला धीरे-धीरे पेडल मारता हुआ चलने लगा था, पिताजी आगे-आगे चल रहे थे| मैं सबसे पीछे चल रहा था और ,मैंने पीछे मुड़ के एक बार भौजी को देखा तो भौजी मेरी ओर बढ़ रहीं थी|

मैं: आप कहाँ?

भौजी: आपको छोड़ने?

मैं: अरे Main रोड तक कहाँ जाओगे? वो भी इस हालत में?

पिताजी: हाँ-हाँ बहु तुम आराम करो! अजय है ना....

मैं भौजी का दिल नहीं तोडना चाहता था...इसलिए मैंने बात को संभाल लिया|

मैं: चलने दो पिताजी...थोड़ी कसरत ही हो जाएगी इनकी|

माँ: ना बहु...तुम आराम करो...ऐसी हालत में ज्यादा म्हणत नहीं करनी चाहिए... फिर Main रोड यहाँ से बीस-पच्चीस मिनट दूर है| इतना चलोगी तो थक जाओगी|

भौजी: माँ...बस चौक तक|

मैं: (चौधरी बनते हुए) ठीक है!

हम धीरे-धीरे चलने लगे| आगे-आगे पिताजी ओर अजय भैया थे| उनके पीछे-पीछे रिक्क्षे वाला ओर सबसे पीछे मैं, भौजी और नेहा|

मैं: देखो मेरे जाने के बाद अगर आप बीमार पड़े तो मैं अगली फ्लाइट पकड़ के यहाँ आ जाऊँगा| ठीक से खाना ...और कोई भी म्हणत वाला काम मत करना| और कल ही अपने मायके चले जाना?

भौजी: जी (भौजी का गाला भर आया था)

मैं तो ये बातें इस लिए कह रहा था की उनका मन इधर-उधर लग जाए| इधर हम चौक पे पहुँच गए थे|

मैं: अच्छा आप मेरा इन्तेजार करोगे ना?

बस मेरा इतना कहना था की भौजी मुझसे लिपट गईं और रोने लगीं| मैं उनकी पीठ सहलाते हुए उन्हें चुप कराने लगा| अब रोना तो मुझसे भी कंट्रोल नहीं हुआ पर किसी तरह पहले उन्हें चुप कराया और उनके माथे को चूमा| उनके आँसूं पोछे और उन्होंने मेरे आँसूं पोछे...फिर हम दोनों ने अपने सर एक दूसरे से भिड़ा दिया;

मैं: बस जान.... अब और नैन रोना| मैं जल्दी आऊँगा...ठीक है|

भौजी: मैं आपका इन्तेजार करुँगी जानू...

मैं: Now Smile !

भौजी मुस्कुराईं और मैं नसे दो कदम पीछे चलता हु दूर हुआ और हाथ हिला के Bye कहा| नेहा और भौजी दोनों हाथ हिला के Bye कहने लगे| मन को तसल्ली हुई की चलो कम सेकम जाते हुए उनका हँसता हुए चेहरे की "याद" अपने साथ लेके जा रहा हूँ| मैं रिक्क्षे में बैठा और पिताजी अजय भैया की साइकिल में पीछे बैठे और हम तीजी से Main रोड की ओर बढे| हम Main रोड पहुंचे और वहाँ दो मिनट में ही बस आ गई| भैया ने सामान अंदर रखा और मैंने जाते-जाते उन्हें फिर से याद दिल दिया की वो अपना फोन भौजी को अवश्य दे दें और उन्होंने गर्दन हिला के हामी भरी|

बस ने हमें लखनऊ उतारा ...अभी घड़ी में तीन बजे थे और ट्रैन रात दस बजे की थी| मेरा मन अब भी अंदर से उदास था और वो भाग के भौजी के पास जाना चाहता था! पिताजी ने मेरा मन बहलाने के लिए लखनऊ घूमने का प्लान बना डाला| मेरा मन तो नहीं था पर मैं पिताजी और माँ का दिल नहीं तोडना चाहता था| इसलिए मैंने चेहरा ऐसा बनाया ...या ये कहें की मैंने अपने मुँह पे excitement का मुखौटा पहन लिया और लखनऊ घूमने लगा| बड़ा इमाम बाड़ा...छोटा इम्माम बाड़ा... प्रेसीडेंसी और शहीदी पार्क...बस इतना ही घूम पाये| फिर हमने चाय पि और स्टेशन आ गए| रात के साढ़े नौ बजे ट्रैन स्टेशन पे लग गई और हम अपनी सीट पे बैठ गए| जब हम गाँव आ रहे थे तो मन में कितनी ख़ुशी थी...कितनी excitement थी पर जाते समय ...बड़ी उदासी और तन्हाई थी| बस एक बात थी की मैं आया खाली हाथ था और जाते समय भौजी की जिंदगी खुशियों से भर के जा रहा था| और अपने साथ भौजी और नेहा के साथ बिठाये सुखी पलों की माला ले जा रहा था|

बैठे-बैठे याद आया की भौजी को फोन तो कर लूँ| मैंने तुरंत फोन मिलाया पर फोन बंद था! मैं हर आधे घंटे बाद कोशिश करता रहा पर फोन बंद आ रहा था| दिल ने कहा यार अभी तुझे भौजी को अकेले छोड़े हुए कुछ घंटे ही हुए हैं और अभी से इतनी परेशानिया खड़ी हो गईं हैं तो तब क्या होगा जब तू दिल्ली पहुँच जाएगा? फिर सोचा की हो सकता है की अजय भैया के फोन की बैटरी खत्म हो गई हो? कल उनके मायके में ही फोन कर लूँगा और सारा हाल-चाल सुना दूँगा|| इतने में माँ ने खाना जो की भौजी ने पैक कर के दिया था वो निकाल लिया और खाने को कहा| खाना खाने के बाद मैं सबसे ऊपर वाली बर्थ पे लेट गया और भौजी की यादों में खो गया| उन्हें याद करते-करते, ट्रैन के झटकों को सहते हुए सो गया|

अगली सुबह उठा तो मुझे याद ही नहीं था की मैंने गाँव छोड़ दिया है...छोड़ आया मैं भौजी को अकेले....मैं उम्मीद कर रहा था की भौजी आएँगी और मुझे प्यार से उठाएँगी, Good Morning Kiss देंगी... तभ पिताजी की कड़क आवाज कान में पड़ी;

पिताजी: मानु...उठ जा ...स्टेशन आने वाला है|

तब जाके होश आया की ...मैं तो भौजी को अकेला छोड़ आया हूँ...ना यहाँ भौजी हैं और ना ही नेहा! कुछ देर बाद स्टेशन आ गए और हम ऑटो करके घर पहुँच गए| रास्ते में चार बार फोन मिलाया पर कुछ नहीं...फोन अब भी बंद था| घर पहुँचते ही मैं अपने कमरे में भाग गया और पिताजी का फोन छुपा के अपने पास रखा हुआ था| मैंने फिर से कोशिश की पर फोन बंद था| फिर मैंने सोचा की थोड़ा और रूक जाता हूँ.... बारह बजे तक भौजी अपने मायके पहुँच जाएँगी तब उनके भाई वाले नंबर से बात हो जाएगी|थोड़ी देर में पिताजी ने मुझे नीचे बोलया और अपना मोबाइल माँगा| फिर उन्होंने बड़के दादा को फोन किया और उन्हें बता दिया की हम ठीक-ठाक घर पहुँच गए हैं| पहले तो मैंने सोचा की मैं भी उनसे बात करूँ और इसी बहाने से भौजी से बात करूँ| पर फिर सोचा की भौजी ना तो बड़के दादा के पास आएँगी और बड़के दादा को भी ये थोड़ा अजीब लगेगा|

मैं बड़ी बेसब्री से बारह बजने का इन्तेजार करने लगा|नजरें घडी की टिक-टिक पे गड़ी हुई थीं| पर कमबख्त घडी जैसे थम गई थी| धीरे-धीरे घडी ने बारह बजाय और मैंने झट से पिताजी का फोन उठाया और अपने साले साहब का नंबर मिलाया|

अनिल: हेल्लो

मैं: हेल्लो...अनिल ...मैं मानु बोल रहा हूँ|

अनिल: नमस्ते जीजा जी...आप कैसे हैं? ठीक-ठाक पहुँच गए?

मैं: हाँ..हाँ... मेरी बात हो जाएगी...

अनिल: किससे?

मैं: अ...अ..... वो....आपकी दीदी से!

अनिल: जी.........आ....वो तो यहाँ नहीं हैं?

मैं: तो आप घर पे नहीं हो?

अनिल: नहीं...मैं तो यही हूँ| मतलब घर पे ही हूँ पर दीदी यहाँ नहीं आईं?

मैं: अच्छा? ok ....

अनिल: क्या दीदी न कहा था ई वो आएँगी?

मैं; नहीं..नहीं...शायद ....मतलब मुझे ऐसा लगा| खेर..मैं बाद में बात करता हूँ| बाय!

अनिल: बाय जीजा जी|

अब तो मुझे बहुत चिंता होने लगी थी| मैंने सोहा की चलो एक बार और अजय भैया का नंबर मिला के देखूं| किस्मत से नंबर मिल गया और पहली घंटी बजते ही भौजी की आवाज सुनाई दी;

भौजी: हेल्लो....

मैं: हेल्लो (मेरी आवाज में चिंता झलक रही थी)

भौजी: जानू....जानू...आप कैसे हो? आपकी आवाज सुनने को तरस गई थी|

मैं: ठीक हूँ... कल रात से छत्तीस बार नंबर मिला चूका हूँ ...पर फोन switch off जा रहा था|

भौजी: हाँ फोन की बैटरी खत्म हो गई थी...अभी-अभी अजय भैया फ़ोन चार्ज करा के लाये और मुझे दे दिया| सारी रात सो नहीं पाई.... करवटें बदलती रही.... आपकी आवाज ने सोने नहीं दिया|

मैं: चिंता से मेरी जान जा रही थी... और ये बताओ की आप अब तक यहीं हो?

भौजी: जी....वो..... फोन तो किया था अनिल को...पर वो आया नहीं!

मैं: जूठ बोल रहे हो ना?

भौजी: जी ....वो.....

मैं; मेरी अभी बात हुई थी अनिल से...उसेन बताया की आपने आने का कोई संदेसा ही नहीं भिजवाया तो वो आता कैसे आपको लेने?

भौजी: सॉरी जानू...मुझे याद नहीं रहा...कल आप चले गए और आज मैं चली जाती तो.... घर कौन संभालता?

मैं: घर संभालने के लिए "वो" (रसिका) है ना... आप कल मुझे अपने मायके में मिलने चाहिए? वरना कल रात की गाडी पकड़ के आ रहा हूँ!

भौजी: तो आ जाओ ना....

मैं: सच?

भौजी: नहीं बाबा.... मैं कल चली जाऊँगी| और वहाँ पहुँचते ही आपको फोन करुँगी|

मैं: जब तक आप फोन नहीं करोगे मैं कुछ नहीं खाऊँगा...

भौजी: नहीं..नहीं.. ऐसा मत कहो!

मैं: नहीं मैं कुछ नहीं जानता...कल आप अगर अपने मायके नहीं पहुंचे तो?

भौजी: ठीक है बाबा...

मैं: और हाँ....इसी तरह मुस्कुराते रहना| I Love You !

भौजी: I Love You Too !

मैंने फोन रखा और दिल को अब थोड़ा सकून मिला|

मैंने अपने दोस्तों को फ़ोन मिलाया और उन्हें अपने आने की सुचना दी| अब तो मेरे सामने Holiday Homework का पहाड़ पड़ा हुआ था| डेढ़ महीना मैंने ऐसे ही गुजार दिया...पर हाँ ये डेढ़ महीना वो समय था जिसने मेरी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया था| इन डेढ़ महीनों में मुझे एक पत्नी...एक अच्छी दोस्त, एक प्यारी सी बेटी और एक आने वाले नए मेहमान के आने की ख़ुशी दी थी| इतनी खुशिया वो भी डेढ़ महीने में? कौन यकीन करेगा?

मैंने इस बात को अपने दोस्तों से राज रखने का सोचा, सिवाय एक के ... मेरा सच्चा दोस्त...जिसके बारे में मैंने कहानी में बताया था जब मैंने भौजी को भगा ले जाने का फैसला किया था| अगले दिन हम पार्क में मिले और मैंने उसे सब सच बता दिया| मतलब हमारे सम्भोग के बारे में इतना डिटेल में नहीं बताया जितना आप लोगों को बताया है| उसका कहना था की भाई इस रिलेशन का कोई नाम या अंत नहीं है...ये ऐसा रिलेशन है जो शादी के बाद भी जारी रह सकता है पर उसे एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कहते हैं| चूँकि ये सुनने में बहुत बुरा लगता है तो तू जैसे अभी चलरहा है वैसे चलने दे, जबतक तेरी शादी नहीं होती| शादी के बाद तू इस रिश्ते को खत्म कर दियो! उसका कहना बिलकुल सही था...पर अगर ये रिश्ता इतनी आसानी से टूट जाता तो बात ही क्या थी| खेर अभी मैंने Holiday Homework पे फोकस कर रहा था, वरना स्कूल में टीचर मेरी वाट लगा देते| और वैसे भी मैं जितना भौजी से प्यार करता था, उतना ही मैं पढ़ाई से भी करता था| मैं नहीं चाहता था की पढ़ाई को लेके भौजी चिंता करें| इसलिए मैंने उस दिन से खुद को पढ़ाई में झोंक दिया| दिन में एक घंटा फ्री रखता था ताकि भौजी से फोन पे बात कर सकूँ! पर उसमें भी दिक्कत थी, मेरे पास खुद का फोन नहीं था, हमेशा पिताजी के आने का इन्तेजार करता था| खेर उसका भी रास्ता मैंने निकाल लिया, मैंने सुबह-सुबह पार्क में पिताजी का फोन चुरा के ले जाता और यहां से भौजी को फोन करता था| पर उस समय STD कॉल दो रुपये प्रति मिनट की होती थी, इसलिए पिताजी से पॉलकेत मनी जो मिलती थी, उसका रिचार्ज करवाता था| पैसे कम पड़े तो अपने जिगरी दोस्त से ले लेता था|

अगले दिन जब सुबह०सुबह मैंने फोन किया तो भौजी अपने मायके पहुँच गईं थीं पर फोन उनके पास नहीं बल्कि अनिल के पास था| उसने बताया की वो दोपहर तक पहुंचेगा| अब फिर से मन बेसब्र हो गया और उनकी आवाज सुनने को तड़पने लगा| | खेर दोपहर में जब पिताजी भोजन करने घर आये तो मैंने उनका फोन चुराया और भौजी को मिलाया|

किस्मत से इस बार बात हो गई;

मैं: हेल्लो ...

भौजी: हेल्लो जानू.....

मैं: कैसे हो?

भौजी: आपके बिना....बस समय काट रही हूँ! कब आ रहे हो आप?

मैं: यार जैसे ही स्कूल खुलेंगे मैं जुगाड़ लगा के पता करता हूँ की दशेरे की छुटियाँ कब हैं, फिर तुरंत टिकट बुक करवा लूंगा|

भौजी: और प्लीज ... इस बार कोई सरप्राइज प्लान मत करना!

मैं: जानता हूँ...उस दिन जब आपको सरप्राइज दिया था तो आपकी क्या हालत थी....जानता हूँ|

भौजी: अच्छा ये बताओ, आपने खाना खाया?

मैं: अभी नहीं...

भौजी: तो पहले खाओ ...पता नहीं सुबह से कुछ खाया भी है या नहीं! फिर बाद में बात करते हैं|

मैं: यार, पिताजी अभी खाना खाने आये हैं और फिर चले जायेंगे.... तो बात कब होगी? रात में वो देर से आते हैं.... तो फिर कल सुबह तक कौन इन्तेजार करे|

भौजी: सच कहूँ तो मेरा मन करता है की भाग के आपके पास आ जाऊँ!

मैं: Hey ....मैं आ रहा हूँ ना...तो आपको भागने की क्या जर्रूरत है?

मैं: अच्छा...नेहा से तो बात कराओ?

भौजी: हाँ, अभी बुलाती हूँ.... कल से सौ बार पूछ चुकी है की पापा कब आएंगे...?

भौजी ने नेहा को आवाज लगाईं और अगली आवाज उसकी थी;

नेहा: हेल्लो

मैं: Awww मेरा बच्चा कैसा है?

नेहा: पापा ... I Love You So Much !

मैं: Awwww मेरा बच्चा ... किसने सिखाया ये? मम्मी ने?

नेहा: हाँ जी|

मैं: I Love You Too बेटा! कैसा है मेरा बच्चा?

नेहा: ठीक हूँ पापा...आप कब आ रहे हो?

मैं: बहुत जल्द बेटा...बहुत जल्द....और आपके लिए गिफ्ट भी लाऊँगा...

नेहा: सच पापा?

मैं: हाँ बेटा.... अब मम्मी को फोन दो!

भौजी: हाँ जी बोलिए जानू....

मैं: बहुत कुछ सीखा रहे हो मेरी बेटी को?

भौजी: हाँ...उसने ही पूछा था की I Love You का मतलब क्या होता है? तो मैंने बता दिया|

मैं: अच्छा जी?...उसने ये I Love You शब्द कहाँ सुन लिया?

भौजी: कितनी ही बार तो आप मुझे कहते थे...और मैं भी तो.....

बस इतनी ही बात हो पाई की पिताजी ने मुझे भोजन करने के लिए बुला लिया|

मैं: अच्छा मैं चलता हूँ...कल सुबह फोन करूँगा| बाय!

भौजी: ना...ऐसे नहीं... I Love यू कहो?

मैं: I Love You जान!

भौजी: I Love You Too जानू!

इसी तरह दिन बीतने लगे..और मैं रोज सुबह- शाम उन्हें फोन करने लगा| अब चूँकि मैं दशेरे पे उनसे मिलने जाने को उत्सुक था तो मैंने दोस्तों से बातों-ब्बातों में पूछा की दशेरे की छुटियाँ कब से हैं| तो वो लोग हँसने आगे... कहते, बेटा अभी तो गर्मियों की छुटियाँ खत्म हुई नहीं की तू दशेरे की सोच रहा है! गाँव में कोई बंदी बना ली है क्या, जिससे मिलने को इतना उत्सुक है? मैंने उनकी बात हँसी में टाल दी, अब ये तो सिर्फ मैं और मेरा जिगरी दोस्त जानता था की असल बात क्या है! खेर पर किस्मत को कुछ और मंजूर था..... स्कूल खुल गए और अब मैं उन्हें सुबह तो फोन कर नहीं पाटा केवल दोपहर में, स्कूल से आने पर ही फोन करता था| फिर एक दिन मैंने स्कूल में जुगाड़ लगाया और चपरासी से बातों-बातों में पूछा की दशेरे की छुटियाँ कब हैं तो उसने बताया की दस अक्टूबर से हैं| मैं तो ख़ुशी में उड़ने लगा और घर आते ही सोचा की ये खुश खबरी भौजी को दूँ!


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 25 Dec 2014 22:47

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अब आगे ....

मैंने घर पहुँचते ही उन्हें फोन किया, पर उनका नंबर स्विच ऑफ़ था| मैंने सोचा की कोई बात नहीं...बैटरी खत्म हो गई होगी| उस दिन रात को पिताजी जल्दी आगये थे, तो मैंने फिर से फोन मिलाया पर फोन फिर स्विच ऑफ ! मैंने सोचा की शायद चार्ज नहीं हो पाया होगा ...वैसे भी हमारे गाँव में बिजली है नहीं| फोन चार्ज करने के लिए बाजार जाना पड़ता है और वहां भी बिजली एक-दो घंट ही आती है| अगले सात दिन तक यही चलता रहा...हर बार फोन स्विच ऑफ आता था| अब तो मैं परेशान हो उठा...और सोचने लगा की ऐसा क्या बहाना मारूँ की मैं गाँव हो आऊँ| मैंने अजय भैया का फोन मिलाया ताकि ये पता चले की कहीं भौजी घर वापस तो नहीं आ गईं? इसीलिए वो फोन ना उठा रहीं हों या अनिल को फोन स्विच ऑफ कर रहीं हों| पर भैया ने बताय की वो यहाँ नहीं हैं, वो अपने मायके में ही हैं! मैंने उनसे कहा भी की कहीं वो भौजी के कहने पे तो जूठ नहीं बोल रहे?तो उन्होंने बड़की अम्मा की कसम खाई और कहा की वो सच बोल रहे हैं| अब मन व्याकुल होने लगा...की आखिर ऐसी क्या बात है की ना तो वो मुझे फोन कर रहीं हैं ना ही अनिल का नंबर स्विच ओंन कर रहीं हैं? अगर कोई ज्यादा गंभीर बात होती तो अजय भैया मुझे अवश्य बता देते और फिर वो भला मुझसे बात क्यों छुपाएंगे? कहीं भौजी......वो मुझे avoid तो नहीं कर रहीं? नहीं..नहीं...ऐसा नहीं हो सकता! वो मुझसे बहुत प्यार करती हैं...वो भला ऐसा क्यों करेंगी....नहीं..नहीं...ये बस मेरा वहम है! वो ऐसी नहीं हैं....जर्रूर कोई बात है जो वो मुझसे छुपा रही हैं|

अब उनकी चिंता मुझे खाय जा रही थी...ना ही मुजखे कोई उपाय सूझ रहा था की मैं गाँव भाग जाऊँ| अब करूँ तो करूँ क्या? दस दिन बीत गए पर कोई फोन...कोण जवाब नहीं आया...मेरा खाना-पीना हराम हो गया...सोना हराम हो गया...रात-रात भर उल्लू की तरह जागता रहता था...स्कूल में मन नहीं लग रहा था...दोस्तों के साथ मन नहीं लग रहा था...बस मन भाग के उनके पास जाना चाहता था| फिर ग्यारहवें दिन उनका फोन आया वो भी unknown नंबर से| किस्मत से उस दिन Sunday था और पिताजी और माँ घर पे नहीं थे| उस दिन सुबह से मुझे लग रहा था की आज उनका फोन अवश्य आएगा...इसलिए मैंने फोन अपने पास रख लिया ये कह के की मेरा दोस्त आने वाला है उसके साथ मुझे किताबें लेने चांदनी चौक जाना है| रात को देर हो जाए इसलिए फोन अपने पास रख रहा हूँ| मैंने किताब तो खोल ली पर ध्यान उसमें नहीं था|

इतने में घंटी बजी, मुझे नहीं पता था की ये किसका नंबर है पर फिर सोचा की शायद उन्ही का हो, इसलिए मैंने फटाक से उठा लिया;

मैं: हेल्लो

भौजी: हेल्लो ....

मैं: ओह जान... I Missed You So Much ! कहाँ थे आप? इतने दिन फोन क्यों नहीं किया..और तो और अनिल का
नंबर भी बंद था| मेरी जान सुख गई थी.... और ये नंबर किसका है? आप हो कहाँ?

भौजी: वो सब मैं आपको बाद में बताउंगी , But first I Wanna talk to you about something.

मैं: Yeah Sure my Love! (भौजी की आवाज से लगा की वो बहुत गंभीर हैं|)

भौजी: am..... look….we gotta end this! I mean….आपको मुझे भूलना होगा?

ये सुन के मैं सन्न रह गया और गुस्से से मेरा दिमाग खराब हो गया| एक तो इतने दिन फोन नहीं किया...और मेरे सवालों का जवाब भी देना मुनासिब नहीं समझा...ऊपर से कह रहीं है की मुझे भूल जाओ!

मैं: Are you out of your fucking mind?

भौजी: Look….I’ve thought on it…over and over again..but हमारा कुछ नहीं हो सकता| आपका ध्यान मुझे पे और नेहा पे बहुत है...आपको पढ़ना है..अच्छा इंसान बनना है...माँ-पिताजी के सपने पूरे करने हैं... और मैं और नेहा इसमें बाधा बन रहे हैं| आप रोज-रोज मुझे फोन करते हो...कितना तड़पते हो ये मैं अच्छे से जानती हूँ| गाँव आने को व्याकुल हो... और अगर ये यहाँ ही नहीं रोक गया तो आप अपनी पढ़ाई छोड़ दोगे और यहाँ भाग आओगे|बेहतर यही होगा की आप हमें भूल जाओ... और अपनी पढाई में ध्यान लगाओ!

मैं: पर मेरी....

भौजी: मैं कुछ नहीं सुन्ना चाहती ...ये आखरी कॉल था, आजके बाद ना मैं आपको कभी फोन करुँगी और ना ही आप करोगे ..... इतना सब कहने में मुझे बहुत हिम्मत लगी है... आप मुझे भूल जाओ बस|

और उन्होंने फोन काट दिया| अगले पांच मिनट तक मैं फोन को अपने कान से लगाय बैठा रहा की शायद वो दुबारा कॉल करें...पर नहीं....कोई कॉल नहीं आया| मैं सोचता रहा की आखिर मैंने ऐसा क्या किया जो वो मुझे इतनी बड़ी सजा दे रहीं हैं? मैंने तो कभी नैन कहा की मैं पढ़ाई छोड़ दूँगा? बल्कि वो तो मेरी inspiration थी... उस समय मेरी हालत ऐसी थी जैसे किसी ने आपको दुनिया में जीने के लिए छोड़ दिया बस आपसे साँस लेने का अधिकार छीन लिया| बिना साँस लिए कोई कैसे जी सकता है...!!! उस दिन के बाद तो मैं गमों के समंदर में डूबता चला गया| पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा...बस अकेला बैठा उनके बारे में सोचता रहता| घर पे होता तो छत पे एक कोने पे बैठ रहता ...स्कूल में कैंटीन के पास सीढ़ियां थीं...वहां अकेला बैठा रहता ... क्लास में गुम-सुम रहता...दोस्तों से बातें नहीं.... सेकंड टर्म एग्जाम में passing मार्क्स लाया ...बस...यही रह गया था मेरे जीवन में| इस सबके होने से पहले पिताजी ने मुझे एक MP3 प्लेयर दिलाया था...उसमें दुःख भरे गाने सुन के जीये जा रहा था| मेरे फेवरट गाने थे;

१. जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए (A Train Movie) जो गाना मुझ पे पूरा उतरता था....

२. मैं जहाँ रहूँ (Namaste London) इसका एक-एक शब्द ऐसा था जो मेरी कहानी बयान करता था|

३. जीना यहाँ (Mera Naam Joker) बिलकुल परफेक्ट गाना!

माँ शायद मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देख के समझ गईं की बात क्या है? या फिर उन्होंने तुक्का मार!

माँ: क्या बात है बेटा? आजकल तू बहुत गुम-सुम रहता है!

मैं: कुछ नहीं माँ...

माँ: मुझसे मत छुपा.... तेरे पेपरों में बी अचानक से कम नंबर आये हैं... और जब तेरे पिताजी ने करण पूछा तब भी तू इसी तरह चुप था? देख मैं समझ सकती हूँ की तुझे अपनी भौजी और नेहा की बहुत याद आ रही है! ऐसा है तो फोन कर ले उसे...मन हल्का हो जायेगा! वैसे भी तूने बहुत दिनों से उसे फोन नही किया.... कर ले फोन?

मैं: नहीं माँ... मैं फोन ठीक नहीं करूँगा!

माँ: क्यों लड़ाई हो गई क्या?

मैं: नहीं तो

माँ: हाँ..... समझी...दोनों में लड़ाई हुई है!

मैं: नहीं माँ... ऐसा कुछ नहीं है| Thanks की आप आके मेरे पास बैठे| अब मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ|

माँ से बात छुपाना शायद इतना आसान नहीं होता... पर मेरी बात किसी बात पे अड़ नहीं जाती| उन्होंने इस बात को ज्यादा नहीं दबाया और मेरे सर पे हाथ फेरा और चली गईं| इधर मुझे मेरे सवालों का जवाब अब तक नहीं मिला था और मैं बस तड़प के रह गया..! मन में बस एक ही सवाल की क्यों....आखिर क्यों उन्होंने मुझे अपने जीवन से...इस तरह निकाल के फेंक दिया? आखिर कसूर क्या था मेरा?

यहाँ मैं अपने उस जिगरी दोस्त का जिक्र करना चाहूंगा...जो अगर ना होता तो मैं इस गम से कभी उबर न पाता| मैं उसे "दिषु" कहके बुलाता था| उसने मुझे समझा और मुझे होंसला दिया...तब जाके मैं कुछ संभल पाया| बाकी मेरी जिंदगी का एक लक्ष्य रहा था की मैं कभी भी अपनी माँ को दुखी ना करूँ... तो ये भी एक वजह थी की मैं इस गम को जल्दी भुला दूँ| पर अगर भूलना इतना आसान होता तो बात ही क्या थी! मैंने उनकी याद को मन में दबा लिया...जब अकेला होता तो उन सुहाने पलों को याद करता| पर सब के सामने हँसी का मुखौटा ओढ़ लेता| ऐसे करते-करते बारहवीं के बोर्ड के पेपर हो गए और किस्मत से पास भी हो गया| अब आगे कॉलेज के लिए फॉर्म भर दिए और साथ ही कुछ एंट्रेंस एग्जाम के फॉर्म भी| जिसकी कोचिंग के लिए मैं एक कोचिंग सेंटर जाने लगा| दिषु चूँकि मुझसे पढ़ाई में बहुत अच्छा था तो उसने अलग कोर्स लिया और वो अलग जगह जाता था| पर हम अब भी दोस्त थे|

अब हुआ ये की पहला दिन था कोचिंग सेंटर में और मं किसी को नहीं जानता था तो चुप-चाप बैठा था| शुरू से मेरा एकाउंट्स बहुत तेज रहा है| तो कोचिंग में एकाउंट्स का सब्जेक्ट शुरू होते ही सब के सर मेरी ओर घूम जाया करते थे| पहले दिन सर ने JLP : Joint Life Policy पे एक सवाल हल कर रहे थे, जिसका जवाब सर ने गलत निकाला था| चूँकि मैंने एक दिन पहले से ही तैयारी कर राखी थी तो जब मैंने सर को सही जवाब बताया तो सब के सब हैरानी से मुझे देखने लगे की आखिर इसने सर को करेक्ट कैसे कर दिया? मैं आखरी बेंच पे बैठा था ओर मेरे ठीक सामने एक लड़की बैठ थी| जब सब पीछे मुड के देखने आगे तब हम दोनों की आँखें चार हुईं| उसकी सुंदरता का वर्णन कुछ इस प्रकार है;

मोर सी उसकी गोरी गर्दन, मृग जैसी उसकी काली आँखें...जिनमें डूब जाने को मन करता था... गुलाब से उसके नाजुक होंठ ओर दूध सा सफ़ेद रंग....बालों की एक छोटी ओर उसकी नाक पे बैठा चस्मा....हाय!!! उस दिन से मैं उसका कायल हो गया| वो बड़ी शांत स्वभाव की लड़की थी...लड़कों से बात नहीं करती थी.... बस अपनी सहेलियों से ही हँसी-मजाक करती थी| जब वो हंसती थी तो ऐसा लगता था की फूल मुस्कुरा रहे हैं| क्षमा करें दोस्तों मैं उसका नाम आप लोगों को नहीं बता सकता...क्योंकि उसका नाम बड़ा अनोखा था...अगर कोई उसका नाम ठीक से ना पुकारे तो वो नाराज हो जाया करती थी| पर नजाने क्यों मैं...पहल करने से डरता था| मैंने उस सेंटर में पूरे दो महीने कोचिंग ली...पर सच कहूँ तो मैं सिर्फ उसे देखने आता था| पीछे बैठे-बैठे उसकी तसवीरें लिया करता था...पर कभी भी उसकी पूरी तस्वीर नहीं ले पाया| क्लास के सारे लड़के जानते थे की मैं उससे कितना प्यार करता हूँ....पर कभी हिम्मत नहीं हुई उससे कुछ कहने की! कोचिंग खत्म होने से एक दिन पहले हमारी बात हुई...वो भी बस जनरल बात की आप कौन से स्कूल से हो? कितने परसेंट मार्क्स आये थे? आगे क्या कर रहे हो? बस...मैं मन ही मन जानता था तक़ी इतनी सुन्दर लड़की है और इतना शीतल स्वभाव है...हो न हो इसका कोई न कोई बाँदा तो होगा ही और दूसरी तरफ मैं...उसके मुकाबले कुछ भी नहीं| हाँ व्यक्तित्व में उससे ज्यादा प्रभावशाली था....पर अब कुछ भी कहने के लिए बहुत देर हो चुकी थी|

उस लड़की से एक दिन बात क्या हुई...मैं तो हवा में उड़ने लगा| उसके बारे में सोचने लगा...और मन में दबी भौजी की याद पे अब धुल जमना शुरू हो चुकी थी| पर अभी भी उसपे समाधी नहीं बनी थी! खेर मैंने पेपर दिए और पास भी हो गया| उसके बाद अपने कोचिंग वाले दोस्तों से उसका नंबर निकलवाने की कोशिश की पर कुछ नहीं हो पाया...अब तो बस उसकी तसवीरें जो मेरे फोन में थी वही मेरे जीने का सहारा थी| दिन बीतते गए...साल बीते ...और आज सात साल हो गए इस बात को!

इन सात सालों में मैं गाँव नहीं गया....मुझे नफरत सी हो गई उस जगह से| 2008 फरवरी में उन्हें लड़का हुआ ... और अब मैं जानता था की भौजी को घर में वही इज्जत मिल रही होगी जो उन्हें मिलनी चाहिए थी| आखिर उन्होंने खानदान को वारिस दिया था! इसी बहाने नेहा को भी वही प्यार मिल जायेगा जो उसे अब तक नहीं मिला| हाँ पिताजी की तो हफ्ते में दो-चार बार बड़के दादा से बात हो जाया करती थी..या फिर वो जब जाते थे तो आके हाल-चाल बताते थे की घर में सब खुश हैं| एक दिन मैंने माँ-पिताजी को बात करते सुना भी था की भौजी को अब सब सर आँखों पे रखते हैं| रही रसिका भाभी की तो उसमें अब बहुत सुधार आया है| सरे घर का काम वही संभालती है और अब वो पहले की तरह सुस्त और ढीली बिलकुल नहीं है| रसिका भाभी के मायके वालों ने आके माफ़ी वगेरह माँगी और अब उनके और अजय भैया के बीच रिश्ते फिर से सुधरने लगे हैं| इन सात सालों में बड़के दादा के छोटे लड़के(गट्टू) की भी शादी थी...पर मैं वो अटेंड करने भी नहीं गया| पढ़ाई का बहाना मार के रूक गया था और माँ-पिताजी को भेज दिया था|... पर अब मुझे इंटरनेट और पंखों की आदत हो गई थी और हमारे गाँव में अब तक बिजली नहीं है! तो मेरे पास गाँव ना जाने की एक और वजह थी! भौजी ने मुझे फोन करने को मना किया था...और खुद से इस तरह काट के अलग कर दिया था तो अब मैं भी उनके प्रति उखड़ चूका था| शायद मैंने नेहा को उनकी इस गलती की सजा दी...या फिर उसे वो प्यार चन्दर भैया से मिल गया होगा! वैसे भी मैं सबसे ज्यादा प्यार तो भौजी से करता था और उनके बाद नेहा से...तो अगर उन्हें ही मुझसे रिश्ता खत्म करना था और खत्म कर भी दिया तो फिर नेहा से मैं किस हक़ से मिलता|ऐसा नहीं था की मैं भौजी को बिलकुल भूल गया था...तन्हाई में उनके साथ बिताये वो लम्हे अब भी मुझे याद थे...रात को सोते समय एक बार उन्हें याद जर्रूर करता था...पर वो सिर्फ मेरी शिकायत थी| मैं उन्हें शिकायत करने को याद किया करता था| पर दूसरी तरफ वो लड़की....जिसके प्रति मैं attracted था ...वो मुझे फिर से भौजी की यादों के गम में डूबने नहीं देती थी| मैंने भौजी से इतना प्यार करता था की मैंने हमेशा भौजी की हर बात मानी थी..उनकी हर इच्छा पूरी की थी...तो फिर उनकी ये बात की मुझे भूल जाओ और दुबारा फोन मत करना...ये कैसे ना मानता? और ऐसा कई बार हुआ की मैं इल के आगे मजबूर हो गया और उन्हें फोन भी करना चाहा पर.... करता किस नंबर पे? उनके पास उनका कोई पर्सनल नंबर तो था नहीं? आखरी बार उन्होंने कॉल भी अनजान नंबर से किया था! अनिल को फोन करता तो लोग हमारे बारे में बातें बनाते| मुझे तो ये तक नहीं पता था की भौजी हैं कहाँ? अपने मायके या ससुराल?

तो जब से मैंने यहाँ कहानी लिखनी शुरू की तभी से कुछ अचानक घटित हुआ| मैं उस लड़की को याद करके खुश था...रात को सोते समय उसे याद करता..उसकी मुस्कान याद करता...उसकी मधुर आवाज याद करता... ये सोचता की अं उसके साथ हूँ...You can call it my imagination! पर मेरी कल्पना में ही सही वो मेरे साथ तो थी! कम से कम वो भौजी की तरह मुझे दग़ा तो नहीं देने वाली थी| एक बात मैं आप लोगों को बताना ही भूल गया या शायद आप खुद ही समझ गए होंगे| जब मैं कोचिंग जाता था तब पिताजी ने मुझे मेरा पहला मोबाइल दिल दिया था| Nokia 3110 Classic !

खेर, इसी साल करवाचौथ से कुछ दिन पहले की बात थी! मुझे एक अनजान नंबर से फोन आया;

मैं: हेल्लो

भौजी: Hi

मैं: Who's this ?

भौजी: पहचाना नहीं?

अब जाके मैं उनकी आवाज पहचान पाया..... मन में बस यही बोला; "oh shit !"

मैं: हाँ

भौजी: तो?

अब हम दोनों चुप थे...वो सोच रही थीं की मैं कुछ बोलूँगा पर मैं चुप था|

भौजी: हेल्लो? You there ?

मैं: हाँ

भौजी: मैं आपसे मिलने आ रही हूँ!

मैं: हम्म्म्म ...

भौजी: बस "हम्म्म्म" मुझे तो लगा आप ख़ुशी से कहोगे कब?

मैं: कब?

भौजी समझ चुकीं थीं की मैं नाराज हूँ और फोन पे किसी भी हाल में मानने वाला|

भौजी: इस शनिवार....तो आप मुझे लेने आओगे ना?

मैं: शायद ...उस दिन मुझे अपने दोस्त के साथ जाना है!

भौजी: नहीं..मैं नहीं जानती...आपको आना होगा!

मैं: देखता हूँ!

भौजी: मैं जानती हूँ की आपको बहुत गुस्सा आ रहा है| मैं मिलके आपको सब बताती हूँ|

मैं: हम्म्म्म!

और मैंने फोन काट दिया| मैंने जानबूझ के भौजी से जूठ बोला था की मैं अपने दोस्त के साथ जा रहा हूँ पर मेरा जूठ पकड़ा ना जाये इसलिए मैंने दिषु को फोन किया और उसे सारी बात बता दी| उसने मुझे कहा की मैं उसके ऑफिस आ जॉन और फिर वहां से हम तफड्डी मारने निकल जायेंगे|

शाम को पिताजी जब लौटे तो उन्होंने कहा की;

पिताजी: "गाँव से तेरे चन्दर भैया आ रहे हैं तो उन्हें लेने स्टेशन चला जईओ|"

मैं: पर पिताजी उस दिन मुझे दिषु से मिलने जाना है?

पिताजी: उसे बाद में मिल लीओ? तेरी भौजी आ रहीं है और तू है की बहाने मार रहा है|

मैं: नहीं पिताजी...आप चाहो तो दिषु को फ़ोन कर लो|

पिताजी: मैं कुछ नहीं जानता| और हाँ चौथी गली में जो गर्ग आंटी का मकान खाली है वो लोग वहीँ रुकेंगे तो कल उसकी सफाई करा दिओ| और आप भी सुन लो (माँ) जबतक उनका रसोई का काम सेट नहीं होता वो यहीं खाना खाएंगे!

माँ: ठीक है...मुझे क्या परेशानी होगी..कम से कम इसी बहाने मेरा भी मन लगा रहेगा|
आज पहलीबार मैंने वो नहीं किया ज पिताजी ने कहा| मैंने अपना प्लान पहले ही बना लिया था| शनिवार सुबह दिषु ने पिताजी को फ़ोन किया, उस समय मैं उनके पास ही बैठा था और चाय पी रहा था ;

दिषु: नमस्ते अंकल जी!

पिताजी: नमस्ते बेटा, कैसे हो?

दिषु: ठीक हूँ अंकल जी| अंकल जी ....मैं एक मुसीबत में फंस गया हूँ|

पिताजी: कैसी मुसीबत?

दिषु: अंकल जी...मैं यहाँ अथॉरिटी आया हूँ...अपने लाइसेंस के लिए ...अब ऑफिस से बॉस ने फोन किया है की जल्दी ऑफिस पहुँचो| अब मैं यहाँ लाइन में लगा हूँ कागज जमा करने को और मुझे सारा दिन लग जायेगा| अगर कागज आज जमा नहीं हुए तो फिर एक हफ्ते तक रुकना पड़ेगा| आप प्लीज मानु को भेज दो, वो यहाँ लाइन में लग कर मेरे डॉक्यूमेंट जमा करा देगा और मैं ऑफिस चला जाता हूँ|

पिताजी: पर बेटा आज उसके भैया-भाभी आ रहे हैं?

दिषु: ओह सॉरी अंकल... मैं...फिर कभी करा दूंगा| (उसने मायूस होते हुए कहा)

पिताजी: अम्म्म... ठीक है बेटा मैं अभी भेजता हूँ|

दिषु: थैंक यू अंकल!

पिताजी: अरे बेटा थैंक यू कैसा... मैं अभी भेजता हूँ|

और पिताजी ने फोन काट दिया|

पिताजी: लाड-साहब अथॉरिटी पे दिषु खड़ा है| उसे तेरी जर्रूरत है...जल्दी जा|

मैं: पर स्टेशन कौन जायेगा?

पिताजी: वो मैं देख लूंगा...उन्हें ऑटो करा दूंगा और तेरी माँ उन्हें घर दिखा देगी|

मैं फटाफट वहाँ से निकल भागा| मैं उसे अथॉरिटी मिला और वहाँ से हम Saket Select City Walk मॉल चले गए| वहाँ घूमे-फिरे;

मैं: ओये यार घर जाके पिताजी ने डॉक्यूमेंट मांगे तो? क्योंकि मैं तो अथॉरिटी से घर निकलूंगा तू थोड़े ही मिलेगा मुझे?

दिषु: यार चिंता न कर ..मैंने डॉक्यूमेंट पहले ही जमा करा दिए थे| ये ले रख ले और मैं रात को तुझ से लै लूँगा|

The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 25 Dec 2014 22:48

80

अब आगे ....

मैं शाम को पांच बजे घर पहुंचा और ऐसे एक्टिंग की जैसे सारा दिन लाइन में खड़े रहने से मेरी टांगें टूट गईं हों| पर मेरा मन नहीं कर रहा था उनकी सूरत देखने को...अब मैं उन्हें AVOID करना चाहता था| भौजी गर्ग आंटी के घर में सामान सेट कर रहीं थीं और अब तक मेरी और उनकी मुलाकात नहीं हुई थी और ना ही मैं मिलना चाहता था| पर मैं जानता था की रात को तो मिलना ही पड़ेगा.....इसलिए मैंने उसका भी प्लान बना लिया| मैंने दिषु को sms किया की वो मुझे मिलने आये और किसी बहाने से बहार ले जाए| वो ठीक छः बजे आया;

दिषु: नमस्ते आंटी जी|

माँ: नमस्ते बेटा| कैसे हो? घर में सब कैसे हैं?

दिषु: जी सब ठीक हैं...आप सब को बहुत याद करते हैं|

माँ: बेटा समय नहीं मिल पाता वरना मैं भी सोच रही थी की मैं आऊँ|

और माँ अंदर पानी लेने चली गईं| मैंने दिषु को समझा दिया की उसे क्या कहना है|

माँ: ये लो बेटा...नाश्ता करो|

अब दिषु ने प्लान के अनुसार बात शुरू की|

दिषु: यार डाक्यूमेंट्स जमा हो गए थे?

मैं: हाँ ...ये ले उसकी कॉपी|

दिषु: थैंक्स यार.... नहीं तो एक हफ्ता और लगता|

मैं: यार ... थैंक्स मत बोल|

दिषु: चल ठीक है...ट्रीट देता हूँ तुझे|

मैं: हाँ...ये हुई ना बात| कब देगा?

दिषु: अभी चल

मैं: माँ...मैं और दिषु जा रहे हैं|

माँ: अरे अभी तो कह रहा था की टांगें टूट रहीं हैं|

मैं: अरे पार्टी के लिए मैं हमेशा तैयार रहता हूँ| तू बैठ यार मैं अभी चेंज करके आया|

माँ: ठीक है जा...पर कब तक आएगा?

दिषु: आंटी ....नौ बजे तक| डिनर करके मैं इसे बाइक पे यहाँ छोड़ जाऊँगा|

माँ: बेटा बाइक धीरे चलाना|

दिषु: जी आंटी|

मैं जल्दी से तैयार हो के आया और हम निकल पड़े| दिषु अपनी बाइक स्टार्ट कर ही रहा था की भौजी आ गईं ..उन्होंने मुझे देखा...मैंने उन्हें देखा.... पर फिर अपना attitude दिखाते हुए मैंने हेलमेट पहना और दिषु के साथ निकल गया|

उसके साथ घूमने निकल गया पर बार-बार उनका ख्याल आ रहा था| मुझे लगा की मुझे अपना जूठा attitude या अकड़ नहीं दिखना चाहिए था| ये बात मेरे चेहरे से झलक रही थी...दिषु ने मुझसे मेरी उदासी और भौजी को ignore करने का कारन पूछा, तो मैंने कह दिया की मैं अब फिर से उसी हालत में नहीं पहुँचना चाहता जिससे दिषु ने मुझे निकला था| मैं भला और उस लड़की यादें भलीं| रात को आधे नौ बजे घर पहुंचा...जानबूझ कर लेट आया था क्योंकि मैं चाहता था की मेरे आने तक भौजी चली जाएं और मुझे उनका सामना ना करना पड़े| पर भौजी माँ के साथ बैठी टी.वी. पे सास-बहु का सीरियल देख रहीं थीं| मैं आया और माँ को गुड नाईट बोल के अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर के लेट गया|

पर अगले दिन कुछ इस प्रकार हुआ| मैं सो के लेट उठा....दस बजे उठ के तैयार हो के नीचे आया तो माँ ने कहा;

माँ: बेटा...तेरी भौजी के घर में ये सिलिंडर रख आ| चूल्हा तेरे पिताजी आज-कल में ला देंगे|

अब माँ का कहा मैं कभी नहीं टालता था तो मजबूरन मुझे सिलिंडर उठा के उनके घर जाना पड़ा| उनके घर पहुँच कर मैंने दरवाजा खटखटाया और उन्होंने दरवाजा खोला, उनके मुँह पर मुझे देखने की ख़ुशी झलक रही थी|

भौजी: जानू ... यहाँ रख दीजिये|

मैंने सिलिंडर रखा और जाने लगा तो भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रखा और मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे गले लग गईं| उन्होंने मुझे कस के गले लगा लिया, वो अपने हाथ मेरी पीठ पे फ़िर रहीं थीं| पर मैंने अपने हाथ मेरी पेंट की जेब में ठुसे थे| मैंने उन्हें जरा भी छुआ नहीं... कोई अगर देखता तो ये ही कहता की भौजी मेरे गले लगी हैं ...मैं नहीं!

मैं: OK …let go of me!

भौजी: आप मुझसे अब तक नाराज हो?

मैं: हुंह...नाराज.... किस रिश्ते से?

भौजी: प्लीज मुझे माफ़ कर दो...मुझे आपको वो सब कहने में कितनी तकलीफ हुई थी...मैं बता नहीं सकती| ग्यारह दिन तक खुद को रोकती रही आपको कॉल करने को पर.....मैं नहीं चाहती थी की मैं या नेहा आपके पाँव की बेड़ियां बने! प्लीज ...प्लीज मुझे गलत मत समझो!!!

मैं: (उन्हें खुद से अलग करते हुए) तकलीफ? ...इसका मतलब जानते हो आप? पूरे सात साल...Fucking सात साल....आपको भूलने में ...... और आप ग्यारह दिन की बात करते हो? आपने मुझे कुछ कहने का मौका तक नहीं दिया ...अपनी बात रखने का हक़ नहीं था क्या मुझे? कितनी आसानी से आपने कह दिया की; "भूल जाओ मुझे"? हुंह.... आपने मुझे समझा क्या है...? मुझे खुद से ऐसे अलग कर के फेंक दिया जैसे कोई मक्खी को दूध से निकाल के फेंक देता हो! जानते हो की मुझे कितनी तकलीफ हुई होगी... मैं ...मैं इतना दुखी था..इतना तड़प रहा था की.... आपने कहा था की मैं पढ़ाई पे ध्यान दूँ ... और मेरे सेकंड टर्म में कम नंबर आये सिर्फ और सिर्फ आपकी वजह से! इन सात सालों में आपको मेरी जरा भी याद नहीं आई? जरा भी? मैं कहना तो नहं चाहता पर, I feel like… like you USED ME! और जब आपका मन भर गया तो मुझे छोड़ दिया...मरने को? आप ने जरा भी नहीं सोचा की आपके बिना मेरा क्या होगा? मैं मर ही जाता ...अगर मेरा दोस्त दिषु नहीं होता! यही चाहते थे ना आप?

भौजी अब बिलख के रो पड़ीं थीं|

मैं: मेरे बारहवीं पास होने पे फोन नहीं किया...ग्रेजुएट होने पर भी नहीं.... इतना ही नहीं...आपने आयुष(भौजी और मेरा बेटा) के पैदा होने पर भी मुझे फोन तक नहीं किया? एक फोटो तक नहीं भेजी आपने? उसकी आवाज तक नहीं सुनाई? कोई किसी से ऐसा करता है क्या? किस गुनाह की सजा दी आपने मुझे? की आपने मुझे ऐसी सजा सुनाई? आपने तो मुझे ऐसी गलती की सजा दी जो मैंने कभी की ही नहीं! सजा देते समय आपको नेहा के बारे में जरा भी ख्याल नहीं आया? (एक लम्बी साँस लेते हुए) और इतना सब के बाद आप मुझसे कहते हो की क्या मैं आपसे नाराज हूँ?

मैंने उन्हें वो सब सुना दिया जो इतने सालों से मेरे अंदर दबा हुआ था|

भौजी रो रहीं थीं...मैं उन्हें चुप करा सकता था....उनके आँसूं पांच सकता था... पर मैंने ऐसा नहीं किया| मैं उनहीं रोता-बिलखता छोड़ के जाने लगा तभी मुझे दो बच्चे घर में घुटे हुए दिखाई दिए| ये कोई और नहीं बल्कि नेहा और आयुष थे| नेहा अब XX साल की हो गई थी और आयुष की उम्र तो आप समझ ही चुके होंगे| आयुष ने तो मुझे नहीं पहचाना पर नेहा पांच सेकंड तक मुझे देखती रही पर फिर वो भी अंदर चली गई| दोस्तों आब जरा सोच के देखो की अगर कोई आपके साथ ऐसा करे ओ दिल को कितनी ठेस पहुँचती है| मैं उन बच्चों को छूना चाहता था.... पर छू न सका! कुछ कहना चाहता था...पर कह ना सका! गले लगाना चाहता था पर ....नहीं लगा सका| भौजी अंदर से हमें देख रहीं थीं और इससे पहले वो कुछ कहतीं मैं चला गया| घर आके मैंने खुद को अपने कमरे में लॉक किया और दरव्वाजे ले सहारे बैठ गया और अपने घुटनों में अपना चेहरे छुपा के रोने लगा| वो जख्म जिसपे धुल जम चुकी थी आज किसी ने उस जख्म को कुरेद को हरा कर दिया था| यही कारन था की मैं भौजी से बिलकुल मिलना नहीं चाहता था| दोपहर के भोजन से पहले ही मैं बहाना मार के घर से निकल गया और रात को नौ बजे आया| पिताजी से बड़ी डाँट पड़ी, की तू इस तरह अवरगिर्दी करता रहता है! पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया और उनकी डाँट चुप-चाप सुन के अपने कमरे में जाके सो गया| अगले दिन सुबह जल्दी उठ गया और घर से निकलने ही वाला था की पिताजी ने रोक लिया;

पिताजी: कहाँ जा रहा है?

मैं: जी साइट पे| (मैं पिताजी के साथ ही काम करता था| पिताजी ने बिल्डिंग रेनोवेशन का काम ले लिया था और यही कारन था की उन्होंने चन्दर भैया को अपने साथ काम में लगाने के लिए गाँव से बुलाया था|)

पिताजी: कोई जर्रूरत नहीं...मैंने चन्दर को वहां भेजा है..वो आज प्लंबिंग का काम करवा रहा है, वहां तेरा कोई काम नहीं है| तेरी भौजी ने कहा था की घर में कुछ सफाई और बिजली का कुछ काम है| तू जा और वो काम कर के आ|

मैं: पर मैं अभी नहया हूँ| आप मुझे फिरसे धुल-मिटटी का काम दे रहे हो?

पिताजी: तो फिर से नह लिओ...यहाँ कौन सा सुख पड़ा है जो तुझे नहाने को पानी नहीं मिलेगा| जा जल्दी|

मैं बेमन से उनके घर की ओर चल दिया| तभी मुझे अपना एक वादा याद आया..जो मैंने नेहा से किया था| मैं पहले मार्किट गया ओर उसके लिए एक जीन्स और टॉप खरीदा ओर उसे एक गिफ्ट पैक में wrap कराया और उसमें एक चिप्स का पैकेट भी छुपा के रख दिया, क्योंकि उसे बचपन से चिप्स बहुत पसंद थे| गिफ्ट पैक बहुत मोटा होगया था क्योंकि उसमें चिप्स का पैकेट इस तरह रखा था की जैसे ही कोई गिफ्ट खोलेगा तो उसे सबसे पहले चिप्स का पैकेट दिखेगा| पर पता नहीं उसे अब चिप्स पसंद होंगे या नहीं? आयुष के लिए मैंने एक Toy Plane लिया और उसे भी गिफ्ट पैक कराया| मैं भौजी के घर पहुँचा.... बच्चे घर पे नहीं थे| भौजी ने दरवाजा खोला और मुझे बैठने को कहा| फिर भौजी बहार गईं और उन्होंने बच्चों को आवाज दी| बच्चे बहार खेल रहे थे और भागगते हुए घर आये| दोनों मेरे सामने खड़े थे|

भौजी: आयुष बेटा...नेहा...ये आपके पा....

मैं: (मैंने भौजी की बात एक दम से काट दी|) बेटा मैं आपका चाचा हूँ|

मुझे ये बोलने में कितनी तकलीफ हुई ये मैं आप लोगों को बयान नहीं कर सकता| भौजी आँखें फ़ाड़े मेरी ओर देख रहीं थीं और उन्होंने बात पूरी करनी चाही पर मैंने उन्हें बोलने ही नहीं दिया| मैं चाहता था की उन्हें भी वो दर्द महसूस हो जो मुझे हुआ था जब उन्होंने ये कह के फोन काट दिया की ": मैं कुछ नहीं सुन्ना चाहती ...ये आखरी कॉल था, आजके बाद ना मैं आपको कभी फोन करुँगी और ना ही आप करोगे ..... इतना सब कहने में मुझे बहुत हिम्मत लगी है... आप मुझे भूल जाओ बस|"

मैं: नेहा बेटा....पता नहीं आपको याद होगा की नहीं...पर मैंने एक बार आपको प्रॉमिस किया था की मैं दशेरे की छुटियों में आऊँगा ..और आपके लिए गिफ्ट भी लाऊँगा| (ये कहता हुए मेरी आँखें भर आईं थीं...गाला भारी हो गया था, पर जैसे तैसे खुद को रोका|) हाँ थोड़ा लेट हो गया...सात साल! (ये मैंने भौजी को देखते हुए कहा, उनकी नजरें झुक गई थीं|)

नेहा: थैंक यू (वो कुछ कहने वाली थी पर रुक गई)

मैं: और आयुष बेटा...ये आपके लिए .. (मैंने उसे Toy प्लेन दे दिया|)

आयुष तो खिलौना ले के अंदर कमरे में भाग गया पर नेहा कुछ सोचते हुए अंदर जा रही थी... एक बार का तो मन हुआ की उसे रोक लूँ और पूछूं...पर नहीं| अब मेरा उस पे कोई हक़ नहीं था| आयुष को जब इतना नजदीक देख के उसे छूना चाहा...गले लगाना चाहा...आखिर वो मेरा खून था...पर फिर मैं अपना आपा खो देता इसलिए खुद को रोक लिया|

भौजी की आँखें छलक आईं थीं पर मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा... मैं भी पांच मिनट तक चुप बैठा रहा और खुद को संभालने की कोशिश करता रहा| आखिर पांच मिनट बाद में बोला;

मैं: तो ...कहिये "भाभी" क्या काम है आपको?

मेरे मुँह से भाभी शब्द सुन के भौजी मेरे पास आके बैठ गईं और उनकी आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी|मैंने जान-बुझ के वो शब्द कहा था.... कारन साफ़ था!

मैं: क्या हुआ? (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) मैं जा रहा हूँ!

भौजी: (अपने आँसूं पोछते हुए) आप तो मुझे "जान" कहके बुलाया करते थे ना?

मैं: कहता था....जबतक आपने मुझे ऐसे अपराध की सजा नहीं दी थी जो मैंने किया ही नहीं था| और अब रहा ही क्या....जो मैं आपको जान कहके बुलाऊँ?

भौजी: कुछ नहीं रहा हमारे बीच?

मैं: नहीं.... मैं किसी और से प्यार करता हूँ|

भौजी ये सुनते ही रो पड़ीं और मुझे उन्हें रुला के बुरा लग रहा था पर फिर मैं ऐसे दिखा रहा था की मुझे कोई फर्क नहीं पद रहा है| पर ये मेरा दिल जानता है की मुझे पे उस पल क्या बीत रही थी|

भौजी: ठीक है .... (उन्होंने सुबकते हुए पूछा)

मैं: तो कुछ काम है मेरा की मैं जाऊँ?

भौजी कुछ नहीं बोलीं...इतने में मुझे अंदर से बच्चों के खेलने की आवाज सुनाई देने लगी...मैं एक कदम चला और फिर रूक गया|

भौजी: आप आयुष को गले नहीं लगाओगे?

मैं: किस हक़ से? ओह...याद आया....चाचा जो हूँ उसका! (मैंने भौजी को फिर टोंट मार|)

भौजी: आप ऐसा क्यों कह रहे हो?

मैं:हुंह...मैं....ऐसा क्यों कह रहा हूँ? मेरी बात का जवाब दो; क्या आपने उसे बताय की मैं उसका क्या हूँ? ये तो छोडो आपने उसे मेरे बारे में कुछ भी बताया?

भौजी: कैसे बताती ...आप कभी आये ही नहीं मिलने?

मैं: कैसे आता...आपको उस दिन कहना चाहता था की मेरे स्कूल की दशेरे की छुटियाँ पंद्रह अक्टूबर से सगुरु होंगी...पर आपने मेरी बात ही नहीं सुनी| और विासे भी मेरी तस्वीर तो थी ना आपके पास?

भौजी का सर ऑफर से झुक गया| मैं जाने लगा तो नेहा बाहर आई और मेरी कमीज पीछे से पकड़ के खींचते हुए बोली;

नेहा: पापा

उसके मुँह से पापा सुनते ही मैं घटनों पे जा गिरा और उसके गले लग गया| नेहा भी मुझे कस के गले लग गई और हम दोनों की आँखें भर आईं|

नेहा: (मैंने नेहा के आँसूं पोछे) पापा I missed you so much ! आपने कहा था ना की आप मुझसे मिलने दशेरे की छुटियों में आओगे? पर क्यों नहीं आये आप?

मैंने एक पल को तो सोचा की मैं उसे सब सच बता दूँ...पर फिर रूक गया| क्योंकि मैं जानता था की असल बात जानेक वो अपनी ही माँ से नफरत करेगी इसलिए मैंने सारा इल्जाम अपने सर ले लिया|

मैं: बेटा.... वो मैं......Sorry !!! मैं अपना वादा पूरा नहीं कर पाया| (नेहा मेरे आँसूं पोछते हुए बोली)

नेहा: It's okay पापा| अब तो आप कहीं नहीं जाओगे ना?

मैं: नहीं बीता...मैं यहीं पास रहता हूँ...जब चाहे आ जाना| और याद रहे ये पापा वाला सीक्रेट हमारे बीच रहे|

नेहा ने हाँ में सर हिलाया और मैं जाने लगा की एक पल की लिए ठहरा और भौजी की ओर देखने लगा| उनका चेहरे को देख के ये समझ नहीं आया की वो खुश हैं की दुखी?

मैं जाने लगे तो भौजी ने अपने आंसूं पोछे और बोलीं;

भौजी: जानू...प्लीज !!!

मैं रूक गया पर मेरी पीठ उनकी ओर थी और फिर उन्होंने आयुष को आवाज मारी| नेहा ने मेरी ऊँगली पकड़ के मुझे रोक लिया|

भौजी: आयुष...बेटा इधर आओ....

आयुष बाहर आ गया, उसके हाथ में वही टॉय प्लेन था| मैं उसकी तरफ मुड़ा ओर एक बार को मन किया की उसे गले लगा लूँ...पर रूक गया|

भौजी: बेटा ये आपके पापा हैं|

मैं: (मैंने फिर उनकी बात को संभालते हुए कहा) चाचा ..मैं आपका चाचा हूँ.... और बेटा Thanks कहने की कोई जर्रूरत नहीं| आप जाओ और अपनी दीदी के साथ खेलो|

मैंने नेहा को आयुष के साथ खेलने का इशारा किया और वो उसके साथ भीतर चली गई| अब हॉल में बस मैं ओर भौजी ही रह गए थे| भौजी फिर से रोने लगीं.... उन्हें रोता हुआ देख मेरा भी दिल भी पसीज गया...पर मैंने उन्हें अब भी सहारा नहीं दिया| क्योंकि जब मैं रो रहा था तब मुझे सहारा देने वाला कोई नहीं था... उन्हें इसका एहसास करना जर्रुरी था!

फिर मैंने ही बात शुरू जी;

मैं: क्यों जबरदस्ती के रिश्ते बाँध रहे हो?

भौजी: (आसूँ पोछते हुए) जबरदस्ती के? वो आपका बेटा है...आपका अपना खून ...

मैं: Thanks बताने के लिए! (मैंने उन्हें फिर टोंट मारा)

भौजी: प्लीज...प्लीज ...एक बार मेरी बात सुन लो? ...प्लीज...प्लीज....

मैं: चहुँ तो मैं अभी जा सकता हूँ...और आप भी जानते हो की मैं कभी नहीं लौटूंगा और जो सफाई आप देना चाहते हो आपके अंदर ही दब कर रह जाएगी| पर मैं आपकी तरह नहीं हूँ....आपने तो मुझे अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया था...पर मैं अवश्य दूँगा| बोलो क्या बोलना है आपको? (मैं हाथ बांधे खड़ा हो गया|)

भौजी: मैंने आपका इस्तेमाल कभी नहीं किया...मेरे मन में कभी भी ऐसा ख्याल नहीं आया की मैं आपको USE कर रही हूँ| आप के कारन टी मुझे परिवार में वो इज्जत वापस मिली...वो प्यार वापस मिला...नेहा को उसके दादा-दादी का प्यार मिला.... प्लीज मुझे गलत मत समझिए! मैंने खुद को आपसे दूर इसीलिए किया ताकि आप पढ़ाई में अपना मन लगा सको!

मैं: Oh please! Don’t gimme that bullshit story again! क्या मैंने कभी आपसे कहा की मैं पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पा रहा? क्या कभी आपने मुझसे पूछा की मैं पढ़ाई ठीक से कर रहा हूँ या नहीं? आप मेरी Inspiration थे! दिन में बस एक घंटा ही तो आपसे बात करता था...बस.... इससे ज्यादा मैंने कभी आपसे कुछ माँगा? आपके साथ डेढ़ महीना बिताने के बाद सिर्फ 15 दिन....fucking 15 दिन में सारा holiday homework खत्म कर दिया! What else you want me to do? What if I;ve commited suicide over our last telephonic conversation? Would you ever be able to forgive yourself?

भौजी: प्लीज...प्लीज... Don’t say this! मैं मानती हूँ की गलती मेरी थी...मुझे फैसला लेने से पहले आपको पूछना चाहिए था? मैंने बहुत बड़ी गलती की है...Punish Me !

मैं: Punish You ? You gotta be kidding me! ये इतनी छोटी गलती नहीं है की मैं आपको उठक-बैठक करने की सजा दूँ और बात खत्म! आपने.... You ruined everything…everything!

भौजी अपने घुटनों पे गिर गईं और बिलख-बिलख के रोने लगीं| उन्होंने मेरे पाँव पकड़ लिए! अब तो मेरा भी सब्र भी टूटने लगा था, मैंने उनहीं खुद से अलग किया और मैं तीन कदम पीछे गया और बोला;

मैं: Despite everything you did to me……. I forgive you! This is the least I can do!

इसके आगे मैंने उनसे कुछ नहीं कहा और वहां से चला आया|दोपहर को भोजन के समय हम अब बैठ के खाना खा रहे थे| हमारे घर में ऐसा कोई नियम नहीं की आदमी पहले खाएंगे और औरतें बादमें पर चूँकि भौजी को इसकी आदत नहीं थी तो वो हमारे साथ खाने के लिए नहीं बैठीं थीं| हम भोजन कर रहे थे की मुझे सलाद चाहिए था तो मैंने भौजी को कहा;

मैं: भाभी....सलाद देना|

पिताजी: क्यों भई...तू तो बहु को भौजी कहा करता था? अब भाभी कह रहा है?

मैं: जी तब मैं छोटा था....अब बड़ा हो चूका हूँ|

पिताजी: हाँ..हाँ बहुत बड़ा हो गया?

इतने में पिताजी का फोन बजा, साइट पे कोई पंगा हो गया था तो उन्हें और चन्दर भैया को तुरंत निकलना पड़ा| अब टेबल पे मैं, नेहा, आयुष और माँ ही बैठे थे|

माँ: बहु...तू भी आजा...

भौजी कुछ बोलीं नहीं...उन्होंने अब तक घूँघट काढ़ा हुआ था| वो भी अपनी प्लेट ले कर बैठ गईं| मैं उन्हें की तरफ देख रहा था..तभी मुझे टेबल पे टपकी उनकी आँसूं की बूँद दिखी| मैंने अपने माथे पे हाथ रख के चिंता जताई...फिर मैं आगे कुछ नहीं बोला और भोजन आधा छोड़के उठ गया|

माँ: तू कहाँ जा रहा है...खाना तो खा के जा?

मैं: सर दर्द हो रहा है...मैं सोने जा रहा हूँ|

मैं अपने कमरे में जाके बैठ गया| कुछ पांच मिनट बाद दरवाजा खुला और भौजी अंदर आईं| उनके हाथ में प्लेट थी ...

भौजी: जानू...खाना खा लो? चलो?

मैं: मूड नहीं है...और Sorry .....

मैंने उन्हें "भाभी" कहने के लिए Sorry बोला|

भौजी: पहले जख्म देते हो फिर उसपे Sorry की मरहम भी लगा देते हो? अब चलो खाना खा लो?

मैं: नहीं...मुझे कुछ जर्रुरी काम याद आगया...

भौजी: जानती हूँ क्या जर्रुरी काम है| चलो वार्ना मैं भी नहीं खाऊँगी?

मैं: आपकी मर्ज़ी|

और मैं कमरे से बहार चला गया और माँ को बोल गया की मैं साइट पे जा रहा हूँ... रात तक लौटूंगा|


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