सेक्स (प्रेम) के सात सबक- must read majedaar hai
Re: सेक्स (प्रेम) के सात सबक- must read majedaar hai
मादक महक भर गई। जवान औरत की चूत से बड़ी मादक खुशबू निकलती है। मैंने कहीं पढ़ा था कि माहवारी आने से कुछ दिन पहले और माहवारी के कुछ दिनों बाद तक औरत के पूरे बदन से बहुत ही मादक महक आती है जो पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करती है। हालांकि यह चूत कुंवारी नहीं थी पर अभी भी उसकी
खुशबू किसी अनचुदी लौंडिया या कुंवारी चूत से कतई कम नहीं थी।
हम दोनों पलंग पर बैठ गए। अब आंटी ने मेरे लंड की ओर हाथ बढ़ाया। मेरे शेर ने उन्हें सलामी दी। आंटी तो उसे देख कर मस्त ही हो गई। मेरा लंड अभी काला नहीं पड़ा था। आप तो जानते हैं कि लंड और चूत का रंग लगातार चुदाई के बाद ही काला पड़ता है। उन्होंने पलंग के पास रखे स्टूल पर पड़ी एक शीशी उठाई और
उसे खोल कर उस में से एक लोशन सा निकाला और मेरे लंड पर लगा दिया। मुझे ठंडा सा अहसास हुआ। आंटी ने बताया कि कभी भी मुट्ठ मारते समय क्रीम नहीं लगानी चाहिए। थूक या तेल ही लगाना चाहिए या फिर कोई पतला लोशन। मेरे कुछ समझ में नहीं आया पर आंटी तो पूरी गुरु थी और मेरी ट्रेनिंग चल रही थी मुझे तो
उनका कहना मानना ही था। उन्होंने कुछ लोशन अपनी चूत की फांकों पर भी लगाया और अंगुली भर कर अन्दर भी लगा लिया। एक हाथ की दोनों अँगुलियों से उन्होंने अपनी चूत की फांकों को चौड़ा किया। तितली के पंखों की तरह दोनों पंखुड़ियां खुल गई। अन्दर से एक दम लाल काम रस से सराबोर चूत ऐसे लग रही थी
जैसे कोई छोटी सी बया (एक चिड़िया) ने अपने नन्हे पंख खोल दिए हों। मटर के दाने जितनी लाल रंग की मदनमणि के एक इंच नीचे मूत्र छिद्र टूथपिक जितना बड़ा। उसके ठीक नीचे स्वर्ग का द्वार तो ऐसे लग रहा था जैसे कस कर बंद कर दिया हो काम रस में भीगा हुआ। जब उन्होंने अपनी जांघें थोड़ी सी फैलाई तो उनकी
गांड का बादामी रंग का छेद भी नज़र आने लगा वह तो कोई चव्वनी के सिक्के से ज्यादा बड़ा कत्तई नहीं था। वह छेद भी खुल और बंद हो रहा था। उन्होंने कुछ लोशन अपनी गांड के छेद पर भी लगाया। जब उन्होंने थोड़ा सा लोशन मेरी भी गांड पर लगाया तो मैं तो उछल ही पड़ा।
आंटी ने बाद में समझाया था कि मुट्ठ मारते समय गांड की अहम् भूमिका होती है जो बहुत से लोगों को पता ही नहीं होती। अब मेरे हैरान होने की बारी थी। उन्होंने बताया कि चूत में अंगुल करते समय और लंड की मुट्ठ मारते समय अगर एक अंगुली पर क्रीम या तेल लगा कर गांड में भी डाली जाए तो मुट्ठ मारने का मज़ा दुगना
हो जाता है। मैंने तो ये पहली बार सुना था।
पहले मेरी बारी थी। उन्होंने मुझे चित्त लेटा दिया और अपना एक पैर ऊपर की ओर मोड़ने को कहा। फिर उन्होंने मेरे लंड को अपने नाजुक हाथों में ले लिया। मेरा जी कर रहा था कि आंटी उसे एक बार मुंह में ले ले तो मैं धन्य हो जाऊं। पर आंटी तो इस समय अपनी ही धुन में थी। उन्होंने मेरे लंड के सुपाड़े की टोपी नीचे की
और प्यार से नंगे सुपाड़े को सहलाया। उन्होंने बे-काबू होते लंड की गर्दन पकड़ी और ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। वो मेरे पैरो के बीच अपने घुटने मोड़ कर बैठी थी। दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली पर थोड़ा सा लोशन लगाकर धीरे से मेरी गांड के छेद पर लगा दी। पहले अपनी अंगुली उस छेद पर घुमाई फिर दो तीन बार
थोड़ा सा अन्दर की ओर पुश किया। मैंने गांड सिकोड़ ली। आंटी ने बताया कि गांड को बिलकुल ढीला छोड़ दो तुम्हें बिलकुल दर्द नहीं होगा। और फिर तो जैसे कमाल ही हो गया। 3-4 हलके पुश के बाद तो जैसे मेरी गांड रवां हो गई। उनकी पूरी की पूरी अंगुली मेरी गांड के अन्दर बिना किसी रुकावट और दर्द के चली गई।
मैं तो अनोखे रोमांच से जैसे भर उठा। दूसरे हाथ की नाज़ुक अँगुलियों से मेरे लंड की चमड़ी को ऊपर नीचे करती जा रही थी। मैं तो बस आँखें बंद किये किसी स्वर्ग जैसे आनंद में सराबोर हुआ सीत्कार पर सीत्कार किये जा रहा था। सच पूछो तो मुझे लंड की बजाय गांड में ज्यादा मज़ा आ रहा था। इस अनूठे आनंद से मैं अब तक
अपरिचित था। आंटी ने अपना हाथ रोक लिया।
0826
“ओह … आंटी अब रुको मत जोर जोर से करो … जल्दी …हईई।… ओह …”
खुशबू किसी अनचुदी लौंडिया या कुंवारी चूत से कतई कम नहीं थी।
हम दोनों पलंग पर बैठ गए। अब आंटी ने मेरे लंड की ओर हाथ बढ़ाया। मेरे शेर ने उन्हें सलामी दी। आंटी तो उसे देख कर मस्त ही हो गई। मेरा लंड अभी काला नहीं पड़ा था। आप तो जानते हैं कि लंड और चूत का रंग लगातार चुदाई के बाद ही काला पड़ता है। उन्होंने पलंग के पास रखे स्टूल पर पड़ी एक शीशी उठाई और
उसे खोल कर उस में से एक लोशन सा निकाला और मेरे लंड पर लगा दिया। मुझे ठंडा सा अहसास हुआ। आंटी ने बताया कि कभी भी मुट्ठ मारते समय क्रीम नहीं लगानी चाहिए। थूक या तेल ही लगाना चाहिए या फिर कोई पतला लोशन। मेरे कुछ समझ में नहीं आया पर आंटी तो पूरी गुरु थी और मेरी ट्रेनिंग चल रही थी मुझे तो
उनका कहना मानना ही था। उन्होंने कुछ लोशन अपनी चूत की फांकों पर भी लगाया और अंगुली भर कर अन्दर भी लगा लिया। एक हाथ की दोनों अँगुलियों से उन्होंने अपनी चूत की फांकों को चौड़ा किया। तितली के पंखों की तरह दोनों पंखुड़ियां खुल गई। अन्दर से एक दम लाल काम रस से सराबोर चूत ऐसे लग रही थी
जैसे कोई छोटी सी बया (एक चिड़िया) ने अपने नन्हे पंख खोल दिए हों। मटर के दाने जितनी लाल रंग की मदनमणि के एक इंच नीचे मूत्र छिद्र टूथपिक जितना बड़ा। उसके ठीक नीचे स्वर्ग का द्वार तो ऐसे लग रहा था जैसे कस कर बंद कर दिया हो काम रस में भीगा हुआ। जब उन्होंने अपनी जांघें थोड़ी सी फैलाई तो उनकी
गांड का बादामी रंग का छेद भी नज़र आने लगा वह तो कोई चव्वनी के सिक्के से ज्यादा बड़ा कत्तई नहीं था। वह छेद भी खुल और बंद हो रहा था। उन्होंने कुछ लोशन अपनी गांड के छेद पर भी लगाया। जब उन्होंने थोड़ा सा लोशन मेरी भी गांड पर लगाया तो मैं तो उछल ही पड़ा।
आंटी ने बाद में समझाया था कि मुट्ठ मारते समय गांड की अहम् भूमिका होती है जो बहुत से लोगों को पता ही नहीं होती। अब मेरे हैरान होने की बारी थी। उन्होंने बताया कि चूत में अंगुल करते समय और लंड की मुट्ठ मारते समय अगर एक अंगुली पर क्रीम या तेल लगा कर गांड में भी डाली जाए तो मुट्ठ मारने का मज़ा दुगना
हो जाता है। मैंने तो ये पहली बार सुना था।
पहले मेरी बारी थी। उन्होंने मुझे चित्त लेटा दिया और अपना एक पैर ऊपर की ओर मोड़ने को कहा। फिर उन्होंने मेरे लंड को अपने नाजुक हाथों में ले लिया। मेरा जी कर रहा था कि आंटी उसे एक बार मुंह में ले ले तो मैं धन्य हो जाऊं। पर आंटी तो इस समय अपनी ही धुन में थी। उन्होंने मेरे लंड के सुपाड़े की टोपी नीचे की
और प्यार से नंगे सुपाड़े को सहलाया। उन्होंने बे-काबू होते लंड की गर्दन पकड़ी और ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। वो मेरे पैरो के बीच अपने घुटने मोड़ कर बैठी थी। दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली पर थोड़ा सा लोशन लगाकर धीरे से मेरी गांड के छेद पर लगा दी। पहले अपनी अंगुली उस छेद पर घुमाई फिर दो तीन बार
थोड़ा सा अन्दर की ओर पुश किया। मैंने गांड सिकोड़ ली। आंटी ने बताया कि गांड को बिलकुल ढीला छोड़ दो तुम्हें बिलकुल दर्द नहीं होगा। और फिर तो जैसे कमाल ही हो गया। 3-4 हलके पुश के बाद तो जैसे मेरी गांड रवां हो गई। उनकी पूरी की पूरी अंगुली मेरी गांड के अन्दर बिना किसी रुकावट और दर्द के चली गई।
मैं तो अनोखे रोमांच से जैसे भर उठा। दूसरे हाथ की नाज़ुक अँगुलियों से मेरे लंड की चमड़ी को ऊपर नीचे करती जा रही थी। मैं तो बस आँखें बंद किये किसी स्वर्ग जैसे आनंद में सराबोर हुआ सीत्कार पर सीत्कार किये जा रहा था। सच पूछो तो मुझे लंड की बजाय गांड में ज्यादा मज़ा आ रहा था। इस अनूठे आनंद से मैं अब तक
अपरिचित था। आंटी ने अपना हाथ रोक लिया।
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“ओह … आंटी अब रुको मत जोर जोर से करो … जल्दी …हईई।… ओह …”
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क्यों … मज़ा आया ?” आंटी ने पूछा। उनकी आँखों में भी अनोखी चमक थी।
“हाँ … बहुत मज़ा आ रहा है प्लीज रुको मत !”
आंटी फिर शुरू हो गई। कोई 5-6 मिनट तो जरूर लगे होंगे पर समय की किसे परवाह थी। मुझे लगा कि अब मेरा पानी निकलने वाला है। आंटी ने एक हाथ से मेरे दोनों अंडकोष जोर से पकड़ लिए। मुझे तो लगा जैसे किसी ने पानी की धार एक दम से रोक ही दी है। ओह … कमाल ही था। मेरा स्खलन फिर 2-3 मिनट के लिए
जैसे रुक गया। आंटी का हाथ तेज तेज चलने लगा और जैसे ही उन्होंने मेरे अंडकोष छोड़े मेरे लंड ने पिचकारी छोड़ दी। पहली पिचकारी इतनी जोर से निकली थी कि सीढ़ी आंटी में मुंह पर पड़ी। उन्होंने अपनी जीभ से उसे चाट लिया। और फिर दन-दन करता मेरा तो जैसे लावा ही बह निकला। मेरे पेट और जाँघों को तर
करता चला गया। इस आनंद का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता केवल महसूस ही किया जा सकता है।
और अब आंटी की मुट्ठ मारने की बारी थी। आंटी ने बताया कि चूत की मुट्ठ मारते समय हाथों के नाखून कटे होने चाहियें और हाथ साबुन और डिटोल पानी से धुले। मैंने बाथरूम में जाकर अच्छे से सफाई की। नाखून तो कल ही काटे थे। जब मैं वापस आया तो आंटी पलंग पर उकडू बैठी थी। मुझे बड़ी हैरानी हुई। मेरा तो
अंदाज़ा था कि वो चित लेटी हुई अपनी चूत में अंगुली डाले मेरा इंतज़ार कर रही होगी।
मुझे देख कर आंटी बोली,”अपने एक हाथ में थोड़ा सा लोशन लगा कर मेरी मुनिया को प्यार से सहलाओ !”
मैंने एक हाथ की अंगुलियों पर ढेर सारा लोशन लगा लिया और उकडू बैठी आंटी की चूत पर प्यार से फिराने लगा। जैसे कोई शहद की कटोरी में मेरी अंगुलियाँ धंस गई हों। चूत एक दम पनियाई हुई थी। रेशमी, मुलायम, घुंघराले, घने झांटों से आच्छादित चूत ऐसे लग रही थी जैसे कोई ताज़ा खिला गुलाब का फूल दूब के लान के
बीच पड़ा हो। मैंने ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर अंगुली फिराई। किसी चूत को छूने का मेरा ये पहला अवसर था। सच पूछो तो मैंने अपने जीवन में आज पहली बार के इतनी नज़दीक से किसी नंगी चूत का दर्शन और स्पर्श किया था। मुझे हैरानी हो रही थी कि आंटी ने अपनी झांटे क्यों नहीं काटी ? हो सकता है इसका
भी कोई कारण रहा होगा।
मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मेरा लंड फिर कुनमुनाने लगा था। मेरा जी किया एक चुम्बन इस प्यारी सी चूत पर ले ही लूं। मैं जैसे ही नीचे झुका आंटी बोली “खबरदार अभी चुम्मा नहीं !”
मुझे बड़ी हैरानी हुई। मैंने सेक्सी कहानियों में पढ़ा था कि औरतें अपनी चूत का चुम्मा देकर तो निहाल ही हो जाती है पर आंटी तो इसके उलट जा रही है। खैर कोई बात नहीं जैसा आंटी चाहेंगी वैसा ही करने की मजबूरी है। मैंने उसकी मदनमणि (भगनासा) को जब छुआ तो आंटी को एक झटका सा लगा और उनके मुंह से
सीत्कार सी निकल गई। मुझे कुछ अटपटा सा लग रहा था। मैं पूरी तरह उनकी चूत को नहीं देख पा रहा था। आंटी अब चित लेट गई और उन्होंने एक घुटना थोड़ा मोड़ कर ऊपर उठा लिया। मैं उनकी दोनों जाँघों के बीच आ गया और उनका एक पैर अपने कन्धों पर रख लिया। उन्होंने एक तकिया अपने नितम्बों के नीचे लगा
लिया था। हाँ अब ठीक था।
मैंने पहले उनकी चूत को ऊपर से सहलाया और फिर धीरे धीरे उनकी पंखुड़ियों के चौड़ा किया। काम रस से सराबोर रक्तिम फांके फूल कर मोटी मोटी हो गई थी। मैंने धीरे से एक अंगुली उनकी चूत के छेद में डाल दी। आंटी थोड़ा सा चिहुंकी। अंगुली पर लोशन लगा होने और चूत गीली होने के कारण अन्दर चली गई। आंटी
की एक मीठी सीत्कार निकल गई और मैं रोमांच से भर उठा।
मैंने धीरे धीरे अंगुली अन्दर बाहर करनी शुरू कर दी। आंटी ओईइ … या।… हाय।.. ईई … करने लगी। उनकी चूत से चिकनाई सी निकल कर गांड के भूरे छेद को भी तर करती जा रही थी। मुझे लगा आंटी को जरूर गांड पर यह मिश्रण लगने से गुदगुदी हो रही होगी। मैंने धीरे से अपनी अंगुली चूत से बाहर निकाली और जैसे
ही उनकी गांड के छेद पर फिराई तो आंटी ने अपना पैर मेरे कंधे से नीचे कर लिया और जोर से चीखी,”ओह … चंदू ! ये अंगुली वहाँ नहीं ! रुको, मुझे पूछे बिना कोई हरकत मत करो !” बड़ी हैरानी की बात थी कि आंटी ने तो खुद बताया था कि मुट्ठ मारते समय एक अंगुली गांड में भी डालनी चाहिए अब मना क्यों कर रही हैं ?
“अपना दूसरा हाथ इस्तेमाल करो और देखो उस अंगुली में लोशन नहीं अपना थूक लगाओ। थूक लगाने से अपनापन और प्रेम बढ़ता है।”
“हाँ … बहुत मज़ा आ रहा है प्लीज रुको मत !”
आंटी फिर शुरू हो गई। कोई 5-6 मिनट तो जरूर लगे होंगे पर समय की किसे परवाह थी। मुझे लगा कि अब मेरा पानी निकलने वाला है। आंटी ने एक हाथ से मेरे दोनों अंडकोष जोर से पकड़ लिए। मुझे तो लगा जैसे किसी ने पानी की धार एक दम से रोक ही दी है। ओह … कमाल ही था। मेरा स्खलन फिर 2-3 मिनट के लिए
जैसे रुक गया। आंटी का हाथ तेज तेज चलने लगा और जैसे ही उन्होंने मेरे अंडकोष छोड़े मेरे लंड ने पिचकारी छोड़ दी। पहली पिचकारी इतनी जोर से निकली थी कि सीढ़ी आंटी में मुंह पर पड़ी। उन्होंने अपनी जीभ से उसे चाट लिया। और फिर दन-दन करता मेरा तो जैसे लावा ही बह निकला। मेरे पेट और जाँघों को तर
करता चला गया। इस आनंद का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता केवल महसूस ही किया जा सकता है।
और अब आंटी की मुट्ठ मारने की बारी थी। आंटी ने बताया कि चूत की मुट्ठ मारते समय हाथों के नाखून कटे होने चाहियें और हाथ साबुन और डिटोल पानी से धुले। मैंने बाथरूम में जाकर अच्छे से सफाई की। नाखून तो कल ही काटे थे। जब मैं वापस आया तो आंटी पलंग पर उकडू बैठी थी। मुझे बड़ी हैरानी हुई। मेरा तो
अंदाज़ा था कि वो चित लेटी हुई अपनी चूत में अंगुली डाले मेरा इंतज़ार कर रही होगी।
मुझे देख कर आंटी बोली,”अपने एक हाथ में थोड़ा सा लोशन लगा कर मेरी मुनिया को प्यार से सहलाओ !”
मैंने एक हाथ की अंगुलियों पर ढेर सारा लोशन लगा लिया और उकडू बैठी आंटी की चूत पर प्यार से फिराने लगा। जैसे कोई शहद की कटोरी में मेरी अंगुलियाँ धंस गई हों। चूत एक दम पनियाई हुई थी। रेशमी, मुलायम, घुंघराले, घने झांटों से आच्छादित चूत ऐसे लग रही थी जैसे कोई ताज़ा खिला गुलाब का फूल दूब के लान के
बीच पड़ा हो। मैंने ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर अंगुली फिराई। किसी चूत को छूने का मेरा ये पहला अवसर था। सच पूछो तो मैंने अपने जीवन में आज पहली बार के इतनी नज़दीक से किसी नंगी चूत का दर्शन और स्पर्श किया था। मुझे हैरानी हो रही थी कि आंटी ने अपनी झांटे क्यों नहीं काटी ? हो सकता है इसका
भी कोई कारण रहा होगा।
मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मेरा लंड फिर कुनमुनाने लगा था। मेरा जी किया एक चुम्बन इस प्यारी सी चूत पर ले ही लूं। मैं जैसे ही नीचे झुका आंटी बोली “खबरदार अभी चुम्मा नहीं !”
मुझे बड़ी हैरानी हुई। मैंने सेक्सी कहानियों में पढ़ा था कि औरतें अपनी चूत का चुम्मा देकर तो निहाल ही हो जाती है पर आंटी तो इसके उलट जा रही है। खैर कोई बात नहीं जैसा आंटी चाहेंगी वैसा ही करने की मजबूरी है। मैंने उसकी मदनमणि (भगनासा) को जब छुआ तो आंटी को एक झटका सा लगा और उनके मुंह से
सीत्कार सी निकल गई। मुझे कुछ अटपटा सा लग रहा था। मैं पूरी तरह उनकी चूत को नहीं देख पा रहा था। आंटी अब चित लेट गई और उन्होंने एक घुटना थोड़ा मोड़ कर ऊपर उठा लिया। मैं उनकी दोनों जाँघों के बीच आ गया और उनका एक पैर अपने कन्धों पर रख लिया। उन्होंने एक तकिया अपने नितम्बों के नीचे लगा
लिया था। हाँ अब ठीक था।
मैंने पहले उनकी चूत को ऊपर से सहलाया और फिर धीरे धीरे उनकी पंखुड़ियों के चौड़ा किया। काम रस से सराबोर रक्तिम फांके फूल कर मोटी मोटी हो गई थी। मैंने धीरे से एक अंगुली उनकी चूत के छेद में डाल दी। आंटी थोड़ा सा चिहुंकी। अंगुली पर लोशन लगा होने और चूत गीली होने के कारण अन्दर चली गई। आंटी
की एक मीठी सीत्कार निकल गई और मैं रोमांच से भर उठा।
मैंने धीरे धीरे अंगुली अन्दर बाहर करनी शुरू कर दी। आंटी ओईइ … या।… हाय।.. ईई … करने लगी। उनकी चूत से चिकनाई सी निकल कर गांड के भूरे छेद को भी तर करती जा रही थी। मुझे लगा आंटी को जरूर गांड पर यह मिश्रण लगने से गुदगुदी हो रही होगी। मैंने धीरे से अपनी अंगुली चूत से बाहर निकाली और जैसे
ही उनकी गांड के छेद पर फिराई तो आंटी ने अपना पैर मेरे कंधे से नीचे कर लिया और जोर से चीखी,”ओह … चंदू ! ये अंगुली वहाँ नहीं ! रुको, मुझे पूछे बिना कोई हरकत मत करो !” बड़ी हैरानी की बात थी कि आंटी ने तो खुद बताया था कि मुट्ठ मारते समय एक अंगुली गांड में भी डालनी चाहिए अब मना क्यों कर रही हैं ?
“अपना दूसरा हाथ इस्तेमाल करो और देखो उस अंगुली में लोशन नहीं अपना थूक लगाओ। थूक लगाने से अपनापन और प्रेम बढ़ता है।”
Re: सेक्स (प्रेम) के सात सबक- must read majedaar hai
अब मेरे समझ में आ गया। मैंने अपने दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली पर ढेर सारा थूक लगाया। उनकी गांड पर तो पहले से ही लोशन लगा था। हलके हलके 3-4 पुश किये तो मेरी अंगुली आंटी की नरम गांड में चली गई। वह क्या खुरदरी सिलवटें थी। मेरी अंगुली जाते ही फ़ैल कर नरम मुलायम हो गई बिलकुल रवां। धीरे धीरे
अपनी अंगुली उनकी गांड में अन्दर बाहर करने लगा। एक अनोखा आनंद मिल रहा था मुझे भी और आंटी को भी। वो तो अब किलकारियाँ ही मारने लगी थी। इस चक्कर में मैं तो उनकी चूत को भूल ही गया था। आंटी ने जब याद दिलाया तब मुझे ध्यान आया। अब तो मेरी हाथों की दोनों अंगुलियाँ आराम से उनके दोनों छेदों में
अन्दर बाहर हो रही थी। बीच बीच में मैं उनकी मदनमणि के दाने को भी अपनी चिमटी में पकड़ कर भींच और मसल रहा था। आंटी का शरीर एक बार थोड़ा सा अकड़ा और उन्होंने एक किलकारी मारी। मुझे लगा कि उनकी चूत और ज्यादा गीली हो गई है। अब मैंने दो अंगुलियाँ उनकी चूत में डाल दी। मेरी दोनों अंगुलियाँ
गीली हो गई थी। मेरा जी तो कर रहा था कि मैं अपनी अंगुली चाट कर देखूं कि उसका स्वाद कैसा है पर मजबूरी थी। बिना आंटी की इजाजत के यह नहीं हो सकता था। आंटी की आँखें बंद थी। मैंने चुपके से एक अंगुली अपने मुंह में डाल ली। ओह … खट्टा मीठा और नमकीन सा स्वाद तो तकरीबन वैसा ही था जो मैंने 2-3 दिन
पहले उनकी पैंटी से चखा था।
मैंने अक्सर सेक्स कहानियों में पढ़ा था कि औरतों की चूत से भी काफी पानी निकलता है। पर आंटी की चूत तो बस गीली सी हो गई थी कोई पानी-वानी नहीं निकला था। आंटी ने मुझे बाद में समझाया था कि औरत जब उत्तेजित होती हैं तो योनि मार्ग में थोड़ी चिकनाहट सी आ जाती है। और जब चरमोत्कर्ष पर पहुँचती हैं तो
उन्हें केवल पूर्ण तृप्ति की अनुभूति होती है। पुरुषों की तरह ना तो गुप्तांग में कोई संकुचन होता है और ना कोई वीर्य जैसा पदार्थ निकलता है।
आंटी ने मुझे बाद में बताया कि कई बार करवट के बल लेट कर (69 पोजीशन) में भी एक दूसरे की मुट्ठ मारी जा सकती है। इसमें दोनों को ही बड़ा आनंद मिलता है।
चौथा सबक पूरा हो गया था। मैंने और आंटी ने अपने अंग डिटोल और साबुन से धोकर कपड़े पहन लिए। हाँ हम दोनों ने ही एक दूसरे के अंगों को साफ़ किया था। आंटी ने मुझे शहद मिला गर्म दूध पिलाया और खुद भी पीया। उन्होंने बताया था कि ऐसा करने से खोई ताकत आधे घंटे में वापस मिल जाती है। अगला सबक दूसरे
दिन था। शाम के 7 बज रहे थे मैं घर आ गया।
5. प्रेम अंगों को चूमना और चूसना
आंटी ने पहले ही बता दिया था कि प्रेम (सेक्स) में कुछ भी गन्दा नहीं होता। मानव शरीर के सारे अंग जब परमात्मा ने ही बनाए हैं तो इनमें कोई गन्दा कैसे हो सकता है। मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओं, अब मुनिया और मिट्ठू (लंड और चूत) की चुसाई का सबक सीखना था। मेरी बहुत सी पाठिकाएं तो शायद नाक-भोंह
सिकोड़ रही होंगी। छी … छी … गंदे बच्चे…. पर मेरा दावा है कि इस सबक को मेरे साथ पढ़ लेने के बाद आप जरूर इसे आजमाना चाहेंगी।
हर बच्चे की एक जन्मजात आदत होती है जो चीज उसे अच्छी और प्यारी लगती है उसे मुंह में ले लेता है। फिर इन काम अंगों को मुंह में लेना कौन सी बड़ी बात है। यह तो नैसर्गिक क्रिया है। आंटी ने तो बताया था कि वीर्य पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण तो यही है कि अपने किसी वैश्या (गणिका)
को चश्मा लगाये नहीं देखा होगा। शास्त्रों में तो इसे अमृत तुल्य कहा गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो वीर्य और कामरस में कई धातुएं और विटामिन्स होते हैं तो फिर ऐसी चीज को भला व्यर्थ क्यों जाने दें। अगर शुरू शुरू में लंड चूसने में थोड़ी ग्लानि सी महसूस हो या अच्छा ना लगे तो लंड और चूत पर पर शहद या
आइसक्रीम लगा कर चूसना चाहिए। ऐसा करने से इनका रंग भी काला नहीं पड़ता। उरोजों पर शहद लगा कर चूसने से उनका आकार सुडौल बनता है। यह ऐसा ही है जैसे गांड मरवाने से नितम्ब चौड़े और सुडौल बनते हैं।
ज्यादातर महिलायें मुख मैथुन पसंद करती हैं। इन में गुप्तांग भी शामिल हैं पर स्त्री सुलभ लज्जा के कारण वो पहल नहीं करती। वो इस कृत्य को बहुत ही अन्तरंग और आत्मीय नज़रिए से देखती हैं। इसलिए पूर्ण प्रेम के दौरान इसका बहुत महत्व है। प्रेमी को यह जानने की कोशिश करते रहना चाहिए कि उसकी प्रेमिका को
अपनी अंगुली उनकी गांड में अन्दर बाहर करने लगा। एक अनोखा आनंद मिल रहा था मुझे भी और आंटी को भी। वो तो अब किलकारियाँ ही मारने लगी थी। इस चक्कर में मैं तो उनकी चूत को भूल ही गया था। आंटी ने जब याद दिलाया तब मुझे ध्यान आया। अब तो मेरी हाथों की दोनों अंगुलियाँ आराम से उनके दोनों छेदों में
अन्दर बाहर हो रही थी। बीच बीच में मैं उनकी मदनमणि के दाने को भी अपनी चिमटी में पकड़ कर भींच और मसल रहा था। आंटी का शरीर एक बार थोड़ा सा अकड़ा और उन्होंने एक किलकारी मारी। मुझे लगा कि उनकी चूत और ज्यादा गीली हो गई है। अब मैंने दो अंगुलियाँ उनकी चूत में डाल दी। मेरी दोनों अंगुलियाँ
गीली हो गई थी। मेरा जी तो कर रहा था कि मैं अपनी अंगुली चाट कर देखूं कि उसका स्वाद कैसा है पर मजबूरी थी। बिना आंटी की इजाजत के यह नहीं हो सकता था। आंटी की आँखें बंद थी। मैंने चुपके से एक अंगुली अपने मुंह में डाल ली। ओह … खट्टा मीठा और नमकीन सा स्वाद तो तकरीबन वैसा ही था जो मैंने 2-3 दिन
पहले उनकी पैंटी से चखा था।
मैंने अक्सर सेक्स कहानियों में पढ़ा था कि औरतों की चूत से भी काफी पानी निकलता है। पर आंटी की चूत तो बस गीली सी हो गई थी कोई पानी-वानी नहीं निकला था। आंटी ने मुझे बाद में समझाया था कि औरत जब उत्तेजित होती हैं तो योनि मार्ग में थोड़ी चिकनाहट सी आ जाती है। और जब चरमोत्कर्ष पर पहुँचती हैं तो
उन्हें केवल पूर्ण तृप्ति की अनुभूति होती है। पुरुषों की तरह ना तो गुप्तांग में कोई संकुचन होता है और ना कोई वीर्य जैसा पदार्थ निकलता है।
आंटी ने मुझे बाद में बताया कि कई बार करवट के बल लेट कर (69 पोजीशन) में भी एक दूसरे की मुट्ठ मारी जा सकती है। इसमें दोनों को ही बड़ा आनंद मिलता है।
चौथा सबक पूरा हो गया था। मैंने और आंटी ने अपने अंग डिटोल और साबुन से धोकर कपड़े पहन लिए। हाँ हम दोनों ने ही एक दूसरे के अंगों को साफ़ किया था। आंटी ने मुझे शहद मिला गर्म दूध पिलाया और खुद भी पीया। उन्होंने बताया था कि ऐसा करने से खोई ताकत आधे घंटे में वापस मिल जाती है। अगला सबक दूसरे
दिन था। शाम के 7 बज रहे थे मैं घर आ गया।
5. प्रेम अंगों को चूमना और चूसना
आंटी ने पहले ही बता दिया था कि प्रेम (सेक्स) में कुछ भी गन्दा नहीं होता। मानव शरीर के सारे अंग जब परमात्मा ने ही बनाए हैं तो इनमें कोई गन्दा कैसे हो सकता है। मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओं, अब मुनिया और मिट्ठू (लंड और चूत) की चुसाई का सबक सीखना था। मेरी बहुत सी पाठिकाएं तो शायद नाक-भोंह
सिकोड़ रही होंगी। छी … छी … गंदे बच्चे…. पर मेरा दावा है कि इस सबक को मेरे साथ पढ़ लेने के बाद आप जरूर इसे आजमाना चाहेंगी।
हर बच्चे की एक जन्मजात आदत होती है जो चीज उसे अच्छी और प्यारी लगती है उसे मुंह में ले लेता है। फिर इन काम अंगों को मुंह में लेना कौन सी बड़ी बात है। यह तो नैसर्गिक क्रिया है। आंटी ने तो बताया था कि वीर्य पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण तो यही है कि अपने किसी वैश्या (गणिका)
को चश्मा लगाये नहीं देखा होगा। शास्त्रों में तो इसे अमृत तुल्य कहा गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो वीर्य और कामरस में कई धातुएं और विटामिन्स होते हैं तो फिर ऐसी चीज को भला व्यर्थ क्यों जाने दें। अगर शुरू शुरू में लंड चूसने में थोड़ी ग्लानि सी महसूस हो या अच्छा ना लगे तो लंड और चूत पर पर शहद या
आइसक्रीम लगा कर चूसना चाहिए। ऐसा करने से इनका रंग भी काला नहीं पड़ता। उरोजों पर शहद लगा कर चूसने से उनका आकार सुडौल बनता है। यह ऐसा ही है जैसे गांड मरवाने से नितम्ब चौड़े और सुडौल बनते हैं।
ज्यादातर महिलायें मुख मैथुन पसंद करती हैं। इन में गुप्तांग भी शामिल हैं पर स्त्री सुलभ लज्जा के कारण वो पहल नहीं करती। वो इस कृत्य को बहुत ही अन्तरंग और आत्मीय नज़रिए से देखती हैं। इसलिए पूर्ण प्रेम के दौरान इसका बहुत महत्व है। प्रेमी को यह जानने की कोशिश करते रहना चाहिए कि उसकी प्रेमिका को